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Awesome poem dear lovely aru sis hiiiiii cccccccc siशीला और रेणुका को लगा है चस्का गैर मर्द के पानी का
बेशर्मी की तो सब हद लंघ गई कहने को मजा जवानी का
एक रात की बात नहीं रही अब अब हफ़्तो साथ बिताती है
यार का लंड घुसा पड़ा चूत जब पति के साथ बतियाती है
मदन और राजेश जैसे कमीने मर्द आज भरे पड़े जमाने में
अपनी बीवी का भी जो सौदा कर ले दूजे की बीवी पटाने में
कपल स्वैप का ऐसा चस्का लगा है दोनो दोस्तो के मन में
अपनी आँखों के सामने ही अपनी बीवी बैठी यार के लन पे
औरत की चूत में जब नियमित गिरे ने उसके मर्द का पानी
कविता शेफाली भी रसिक के लंड को हो जाती है दीवानी
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Awesome madak update hiसुबह साढ़े पाँच बजे... डोरबेल बजते ही.. शीला से पहले कविता उठकर दरवाजे की तरफ गई.. वैसे भी, बिस्तर बदल जाने पर उसे ठीक से नींद नहीं आ रही थी.. डोरबेल की आवाज सुनकर शीला ने भी बेडरूम का दरवाजा खोला था पर कविता को दूध लेने जाते देख... वो वापिस मदन की बाहों मे जाकर सो गई..
कविता और रसिक की एक और बार मुलाकात हुई.. पर अलग परिस्थिति और वातावरण मे..!! बाहर कड़ाके की ठंड थी..!!
रसिक कविता को देखकर चकित हो गया..
रसिक: "अरे भाभी, आज आप यहाँ आ गई?"
कविता: "उस घर मे मच्छर बहुत परेशान कर रहे थे इसलिए यहाँ वैशाली के पास सोने आ गई.. "
पतीला देते वक्त रसिक के हाथ का हल्का सा स्पर्श क्या हो गया.. कविता ऐसे सहम गई जैसे उसका लोडा छु गया हो..
कविता ने एक नजर रसिक पर डाली.. दोनों की नजरें एक पल के लिए मिली.. पतिले मे दूध डालते हुए रसिक की नजर कविता के स्तनों पर चिपकी हुई थी.. वो ये नाप रहा था की कविता के स्तन पहले जैसे ही है या कोई तबदीली हुई है.. !!
अपनी छातियों को तांक रहे रसिक को देखकर कविता को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें.. !! सोच रही थी.. ये रसिक ने तो आज सारी हदें पार ही कर दी.. कैसे बेशरमों की तरह मेरे बूब्स को देख रहा है साला.. !!
कविता: "क्या कर रहे हो रसिक? कब तक ऐसे देखते रहोगे?? दूध पतिले से बाहर गिर रहा है"
रसिक: "दूध गया तेल लेने भाभी.. आज तक ऐसा कभी नही देखा... और वैसे, आप कहाँ पराये हो.. ?? थोड़ा सा ज्यादा दूध चला भी गया तो कोई हर्ज नहीं"
कविता: "हम्म.. वैसे भी इस घर में.. तुम्हें इस तरह देखने की आदत सी हो गई है.. शीला भाभी के साथ बड़ी अच्छी पटती है तुम्हारी"
रसिक: "मुझे तो देखने से ज्यादा करने की आदत है.. वैसे शीला भाभी कहाँ है? वो होती तो इतने सवाल जवाब नहीं करने पड़ते मुझे"
कविता: "सवाल जवाब की जगह क्या करते मुझे सब पता है.. मैंने तो अपनी आँखों से देखा है कई बार "
रसिक: "फिर भी आप तो कभी पिघले नहीं"
कविता: "ऐसी जरूरत ही नहीं पड़ी.. उनके तो पति परदेस गए थे इसलिए उन्हें तुम्हारी जरूरत पड़ती थी"
रसिक: "लेकिन आज तो आप को जरूरत होगी ना.. पति परदेस हो या दूसरे शहर.. बात तो एक ही है.. और कितना तड़पाओगी भाभी? हर बार हाथ मे आकर रेत की तरह फिसल जाती हो.. कम से कम आज तो मुझ गरीब पर कृपा कर दीजिए"
कविता: "तू दूध दे और चलता बन.. मुझे कोई कृपा नहीं करनी तुझ पर"
रसिक: "अच्छा.. !! फिर उस रात बेहोश होने का नाटक कर क्यों पड़ी रही थी?? मेरा लंड देखने के लिए?? उस दिन अगर शीला भाभी टपक नहीं पड़ी होती तो तुम्हें तभी रगड़ दिया होता.. मुझे तो यकीन था की तुम सामने से अपनी सास को बोलकर मुझे बुलाओगी.. " बड़ी सफाई से रसिक "आप" से "तुम" पर आ गया
सुनकर कविता चोंक उठी.. इस कमीने को पता था की मैं बेहोशी का नाटक कर रही थी.. !!
बेखबर होने का नाटक करते हुए कविता ने कहा "मुझे उस बारे मे कुछ नहीं पता.. तू अब जा यहाँ से.. वरना भाभी जाग जाएगी"
रसिक ने आखिर हिम्मत कर के कविता के स्तनों पर हाथ रख दिया और बोला "ओह्ह भाभी.. बहुत हुआ.. और मत तड़पाइए"
रसिक के हाथों से स्तन दबते ही कविता की आँखें बंद हो गई.. उसका पूरा शरीर उस खुरदरे स्पर्श से कांपने लगा.. वो चाहती थी की रसिक को रोके पर जैसे उसका अपने आप पर काबू ही नहीं था.. रसिक का कसरती हाथ उसके नाजुक बबलों को दबा रहा था तभी वैशाली आँखें मलते हुए बाहर निकली.. रसिक को कविता के स्तनों को दबाते हुए देखकर वो स्तब्ध हो गई
वैशाली को देखते ही रसिक ने हाथ हटा लिया.. दूध का केन उठाकर वो खड़ा हो ही रहा था की तब तक वैशाली उन दोनों के करीब पहुँच गई
वैशाली की नजर रसिक के पाजामे के अंदर उभार बनाकर खड़े लंड पर थी.. उभार का साइज़ देखकर उसे कविता के वर्णन पर यकीन हो गया
रसिक: "वैशाली बहन.. कैसे हो आप?"
वैशाली ने मुसकुराते हुए कहा "मैं ठीक हूँ.. लेकिन आप कैसे है वो तो मैंने अभी देख ही लिया.. क्या बात है.. !! आप और कविता अभी क्या कर रहे थे??"
रसिक ने पहली बार वैशाली को ध्यान से देखा.. वैसे आज से पहले उसने कभी वैशाली को इतने करीब से देखा ही नहीं था.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गई.. सांसें ऊपर नीचे होने लगी.. रसिक कभी कविता के अमरूद जैसे स्तनों को देखता तो कभी वैशाली के पके हुए नारियल जैसे मदमस्त बबलों को देखता..
वैशाली और कविता दोनों उसका चेहरा देखकर समझ गए की वो क्या देख रहा था.. कविता किचन मे दूध का पतीला रखने चली गई..
रसिक वैशाली के उन्नत बबलों को भूखी नज़रों से ताड़ रहा था
वैशाली: "ऐसे बेवकूफों की तरह क्या देख रहा है.. !! जैसे कविता के दबा रहा था वैसे मेरे भी दबा.. !!" रसिक का हाथ खींचकर अपने स्तनों पर रखते हुए वह बोली... बिल्कुल अपनी माँ की तरह बेवाक थी वैशाली.. !!
रसिक के तो भाग्य खुल गए.. उसका हाल ऐसा था जैसे बंदर को भांग पीलाकर सीढ़ियाँ दे दी हो चढ़ने के लिए.. !! रसिक ने दूध का केन नीचे रखा और वैशाली को अपनी बाहों मे जकड़ लिया.. जनवरी की जबरदस्त ठंड भरे माहोल मे रसिक के गरमागरम स्पर्श से वैशाली सिहर उठी.. वैसे भी वो कई दिनों से किसी मजबूत पुरुष के स्पर्श के लिए मचल रही थी..
रसिक के बदन से.. दूध, गोबर और पसीने की मिश्र गंध आ रही थी.. पता नहीं क्यों पर इस गंध ने वैशाली की वासना को और तीव्र कर द्या.. उसने रसिक को अपनी बाहों मे भरते हुए उसकी पीठ को अपने नाखूनों से खरोंच दिया.. !! रसिक के मजबूत कसरती शरीर को दोनों हाथों मे भरते हुए वैशाली को ताज्जुब हो रहा था की कितना विशाल शरीर था उसका.. !! दोनों हाथों को घेरने के बावजूद भी वो उसके पूरे शरीर को गिरफ्त मे नहीं ले पा रही थी..!!
पर जिस क्रूरता से रसिक ने अपनी चौड़ी छाती को उसके स्तनों पर दबाकर रखा हुआ था.. वैशाली को मज़ा ही आ गया.. !! वो ऐसे ही किसी मर्द के हाथों रगड़े जाना चाहती थी.. ऐसे ही खुरदरे जिस्म से घर्षण करना चाहती थी..
वैशाली अपने पूर्व पति संजय से जबरदस्त नफरत करती थी.. पर सेक्स के मामले मे वो उसे सौ मे से सौ अंक देने को तैयार थी.. संजय सेक्स की कला मे ऐसा माहिर था की उससे चुदकर वैशाली का पूरा शरीर जैसे खाली सा हो जाता था.. एकदम हलकापन महसूस होता था.. दिनों तक उस जबरदस्त पलंगतोड़ संभोग को याद करते हुए उसकी चूत मे झटके लगते रहते थे.. संजय से मानसिक तौर पर दूर होने के काफी समय बाद वो उससे शारीरिक तौर पर दूर हुई थी.. फिर भी हर एक-दो हफ्ते मे.. संजय जब उसके साथ जबरदस्ती संभोग करता तब ना चाहते हुए वैशाली को शरीक होना पड़ता.. मन भले ही उसका ना हो.. पर उसकी चूत अपने गिलेपन का सबूत तुरंत ही दे देती थी.. !! और उसकी चूत का यह हाल देखकर संजय समझ जाता था की वैशाली का दिल भले ही उससे नफरत करता हो.. पर उसकी चूत अब भी उससे बेहद प्यार करती थी.. !! हालांकि वैशाली संभोग के दौरान पूरा ध्यान रखती की उसके मुंह से जरा सी भी आह्ह-ओह्ह या कोई सिसकी न निकल जाए.. क्योंकि वो संजय को जरा सा भी जताना नहीं चाहती थी की चुदने मे उसे मज़ा आ रहा है.. !! शरीर की हवस और भूख एक तरफ थी और दूसरी और संजय के साथ का उसका रिश्ता दूसरी तरफ.. जब जब संजय वैशाली से सेक्स की मांग करता तब वैशाली को हमेशा यह प्रश्न मन मे आता.. साले काम धंधा कुछ करता नहीं है.. ढेले भर की कमाई नहीं.. और लंड इसका चौबीसों घंटे खड़ा ही रहता है.. !!
पीयूष से तो वो कई बार चुद चुकी थी.. और अपने कॉलेज के दोस्त हिम्मत से भी एक बार सेक्स किया था.. पिंटू को देखकर ही अंदाजा लग रहा था की वो बिस्तर पर भी उतना ही कोमल और मुलायम तरीके से पेश आएगा.. कोई खास आक्रामकता लग नहीं रही थी उसके स्वभाव मे.. जो इस वक्त रसिक के बदन से टपक रही थी..
कविता रसोई की खिड़की से छुपकर वैशाली के शरीर को रसिक के भीमकाय जिस्म से चिपका हुआ देखकर डर रही थी.. वैशाली के हावभाव देखकर कविता को ताज्जुब हो रहा था.. !! वैशाली भी रसिक की ग़ुलाम हो गई थी.. !! जिस तरह वो उससे लिपट रही थी.. अपने स्तनों को रसिक की छाती पर रगड़ रही थी.. जिस तरह अपने नाखूनों से रसिक की पीठ कुरेद रही थी.. यह सब देखकर कविता के मन मे बार बार वही पुराना सवाल उठ रहा था.. आखिर इस अनपढ़ गंवार.. राक्षस जैसे रसिक में ऐसा तो भला क्या था?? की जवान से लेकर बूढ़ी.. तमाम औरतें उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाती है.. !!
कविता किचन से सरककर धीरे से रसिक और वैशाली के पास आई.. और धीं आवाज मे बोली "क्या कर रही है वैशाली?? भाभी या मदन भैया जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी"
सुनते ही वैशाली ने तुरंत रसिक को छोड़ दिया.. पर छोड़ने से पहले उसने रसिक की बालों भरी छाती को चूमकर कहा "यार.. रसिक.. गजब का है तू.. अब तो मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं हूँ.. !!" कहते हुए उसने रसिक का लंड पकड़ने की नाकाम कोशिश की..
सामने वाले घर का दरवाजा खुलने की आवाज आई.. रसिक संभल गया.. उसने कविता के स्तनों को एक आखिरी बार हल्के से दबाते हुए अपना दूध का केन उठाया.. कविता ने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी पर कोई विरोध भी नहीं किया.. !! वो अन्य कोई हावभाव देती इससे पहले रसिक ने नजदीक आकर उससे कहा "कल रात फोन क्यों नहीं उठाया?? इतनी ज़ोरों की ठंड मे कितना परेशान हुआ था कुछ पता है तुम्हें?? एक बार फोन कर बुलाने के बाद ऐसा करना ठीक नहीं है"
कविता: "वो सब तुम जानों और वैशाली जाने.. फोन उसने किया था, मैंने नहीं.. !! तुम अभी निकलो यहाँ से.. बाकी बातें फोन पर हो जाएगी.. देख सामने वाले घर की भाभी बाहर खड़ी है.. " वैशाली का हाथ पकड़कर उसे घर के अंदर खींचकर दरवाजा बंद कर दिया कविता ने..
कविता और वैशाली दोनों वापिस बेडरूम मे आ गए.. वैशाली अब जबरदस्त उत्तेजित हो चुकी थी.. लेकिन वो कोई हरकत करती उससे पहले कविता ने ही उसे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और अपना गाउन उठाकर.. बिना पेन्टी की चूत को वैशाली के मुंह पर रख दिया..
बिना किसी आनाकानी के वैशाली ने अपनी जीभ कविता की चूत मे डाल दी और चाटने लगी.. आँखें बंद कर अपने स्तनों को खुद ही मसलते हुए कविता अपनी मुनिया को वैशाली की जीभ पर रगड़ रही थी.. केवल दो मिनट मे ही कविता की चूत का शहद निकल गया जिसे वैशाली ने चटकारे लेते हुए चाट लिया.. !!
इतनी जल्दी स्खलित होने के पीछे की वजह वैशाली का चाटना नहीं पर रसिक के दबाने से उठी उत्तेजना थी.. वैशाली ने महसूस किया की आज कविता जबरदस्त उत्तेजित थी.. उसे इतना आक्रामक होते हुए पहले कभी नहीं देखा था..
तकिये के नीचे से रबर का डिल्डो निकालकर कविता ने वैशाली की चूत मे पेल दिया.. और पाँच मिनट तक लगातार घर्षण होने के बाद.. वैशाली भी थरथराते हुए झड़ गई..
उस दौरान शीला ने एक बार.. और मदन ने दो बार उनके बेडरूम का दरवाजा खटखटाया.. दोनों को जगाने के लिए.. पर यह काम ऐसा होता है की जब तक निपट न जाए.. दिमाग किसी और जगह स्थिर ही नहीं होता.. !!
दोपहर के बाद, शीला और मदन.. रेणुका-राजेश के घर जाने वाले थे.. पूरी रात पार्टनर बदल कर चुदाई करने का प्रोग्राम था उनका.. वैशाली और कविता को संभालकर रहने की सलाह देकर दोनों निकल गए.. !!
शीला-मदन के जाते ही.. वैशाली और कविता, दोनों एक दूसरे के सामने सूचक अर्थ से देखने लगी.. दोनों की आँखों मे एक ही प्रश्न था.. जिसका जवाब जरा भी कठिन नहीं था.. सुबह सुबह रसिक ने अपनी हरकतों से दोनों को ऐसे गीला कर दिया था.. की अब दोनों की बस फिसलने की ही देरी थी..
रात का खाना खाने के बाद वैशाली ने रसिक को फोन किया..
रसिक: "हाँ बोलीये" रसिक ने पिछली रात नंबर सेव कर लिया था
वैशाली: "कहाँ हो?"
रसिक: "मैं तो घर पर ही हूँ.. कहिए क्या काम था?"
वैशाली: "कविता को तुम्हारा काम था.. कितने बजे आओगे?"
रसिक: "कल जिस समय आने वाला था उस टाइम पर आ सकता हूँ.. अगर आप फोन उठायेंगे तो" कल की रात की घटना का ताना मारते हुए रसिक ने कहा
वैशाली: "अरे कल तो एक प्रॉब्लेम हो गया था.. रोज रोज थोड़े ही ऐसा होगा"
रसिक: "ठीक है.. बताइए, कितने बजे आऊँ??"
वैशाली: "इतनी ठंड है इसलिए दस बजे तो सारे घर बंद हो ही जाते है.. तुम एक काम करो.. ग्यारह बजे तक आ जाओ"
रसिक: "अरे.. मुझे अभी याद आया.. आज तो खेत मे सिंचाई करने जाना है.. पूरी रात वहीं रहना पड़ेगा.. आज पानी नहीं दिया तो फसल सूख जाएगी"
वैशाली निराश हो गई सुनकर.. सारा प्लैनिंग चॉपट हो जाएगा.. !! कल तो मम्मी-पापा लौट आएंगे.. मौका केवल आज ही था
वैशाली ने रसिक को ललचाने के लिए कहा "देखो रसिक.. सिर्फ आज का ही दिन है हमारे पास.. कल तो कविता वापिस चली जाएगी.. और फिर लौट के नहीं आने वाली.. तुम्हें वो कितनी पसंद है मैं जानती हूँ.. !!"
रसिक: "वो तो है.. पर मैं आज रात नहीं आ सकता.. कहो तो कल दिन के समय आ सकता हूँ"
वैशाली: "पागल हो गए हो क्या.. !!! दिन मे तो कोई चांस ही नहीं है.. रसिक, प्लीज यार.. ऐसा क्यों करते हो?? एक बार आ जाओ ना.. थोड़ी देर के लिए ही सही.. !!" वैशाली ने लगभग विनती करते हुए कहा
रसिक: "आप एक काम क्यों नहीं करती.. !! यहाँ मेरे खेत पर ही आ जाओ.. एकदम सलामत है.. रात को यहाँ कोई नहीं आता और कोई जोखिम भी नहीं है"
वैशाली: "कहाँ है तुम्हारा खेत??"
रसिक: "हाइवे पर.. शहर से बाहर निकलकर आप लगभग तीन किलोमीटर आगे आओगे.. तब चौराहे से दाई तरफ मुड़ना है.. फिर एक छोटी सी पगडंडी जैसा रास्ता आएगा.. वहाँ से थोड़ा सा आगे जाओगे तो मेरे खेत पर पहुँच जाओगे.. वहाँ तक पहुंचकर मुझे फोन करना.. मैं लेने आ जाऊंगा"
वैशाली खामोश हो गई.. इतनी रात को.. हाइवे के किसी अनजान खेत पर.. इतनी ठंड मे... और वो भी रसिक के साथ??
वैशाली: "मैं थोड़ी देर बाद फोन करती हूँ.. और फिर बताती हूँ"
इतना कहकर वैशाली ने फोन काट दिया.. और परेशान नज़रों से कविता के सामने देखा
वैशाली: "वो तो यहाँ आने से मना कर रहा है.. केह रहा था की खेत मे पानी देने जाना है.. इसलिए हमें खेत पर बुला रहा है.. बता रहा था की उसका खेत बिल्कुल ही सैफ है.. कोई रिस्क नहीं है"
कविता: "मतलब तू उसके काले लोडे को लेने के लिए.. इतनी रात गए उसके खेत जाएगी??"
वैशाली चुप हो गई..
कविता: "और वहाँ कुछ उंच-नीच हो गई तो??"
वैशाली: "तू यार नेगेटिव बात मत कर.. कुछ नहीं होगा.. अभी तो नौ भी नहीं बजे है.. ज्यादा दूर नहीं है.. पंद्रह-बीस मिनट मे तो पहुँच जाएंगे.. मूवी देखने जाते है तब इतनी रात को घर से बाहर निकलते ही है ना.. कोई बड़ी बात नहीं है.. तेरी कार तो है ही.. अगर तू साथ चलें तो हम अभी निकलकर वहाँ पहुँच जाएंगे.. और अपना काम निपटाकर वहाँ से ग्यारह बजे तक वापिस आ जाएंगे"
कविता: "अरे पागल.. कार अंदर तक थोड़ी न जाएगी.. !! उसने कहा ना की सड़क के अंदर आते ही छोटी सी पगडंडी जैसा रास्ता है.. वहाँ तक कार कैसे लेकर जाएंगे??"
वैशाली: "अरे यार.. उसने कहा ही की मुझे फोन करना.. मैं लेने आऊँगा.. वही कोई रास्ता निकालेगा.. अब तू टाइम खोटी मत कर.. और चल"
कविता: "यार, किसी को पता चल गया तो?"
वैशाली: "किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. अब तू गाड़ी निकाल जल्दी और चल मेरे साथ"
कविता: "नहीं यार.. मुझे उस गंदे काले रसिक के साथ नहीं करवाना.. !!"
वैशाली: "अरे मेरी अम्मा.. तुझे ना करवाना हो तो कुछ मत करना.. पर मेरा बहुत मन है.. मुझ पर थोड़ी दया कर.. तुझे जिसके साथ जब मन हो तब करवा लेना.. ठीक है.. !! अब चल भी.. तुझे तेरे पिंटू की कसम है.. !!"
कविता का हाथ पकड़कर लगभग खींचते हुए वैशाली उसे ले गई..
वैशाली: "तू कार निकालकर बाहर रोड तक आ.. तब तक मैं ताला लगाकर आती हूँ"
कविता अब भी ठीक से फैसला नहीं कर पा रही थी.. पर वैशाली के दबाव के कारण वो गाड़ी बाहर निकालने लगी.. यू टर्न लेकर जब वो गाड़ी रोड पर लेकर आई तब वैशाली बाहर सड़क पर खड़ी हुई थी.. कड़ाके की ठंड थी.. पर जल्दबाजी मे स्वेटर या शॉल लेना भूल गए थे दोनों.. वैशाली गाड़ी मे बैठ गई और कविता गाड़ी चलाने लगी
वैशाली ने रसिक को फोन किया
वैशाली: "हैलो, रसिक... हम दोनों वहाँ आने के लिए निकल गए है.. कोई प्रॉब्लेम तो नहीं होगी ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा.. !!"
रसिक: "यहाँ दिन मे भी कोई नहीं आता.. तो इतनी सर्द रात मे कौन आएगा भला.. !! आप बिंदास आइए.. कुछ नहीं होगा"
वैशाली: "हम दोनों कविता की गाड़ी मे आ रहे है.. फिर कार कहाँ रखेंगे??"
रसिक: "उसकी चिंता आप मत कीजिए.. चौराहे से थोड़े अंदर तक तो गाड़ी आराम से आ सकती है.. फिर वहीं गाड़ी छोड़ देना.. मैं लेने आ जाऊंगा..वहीं नजदीक ही मेरा खेत है"
फोन स्पीकर पर था.. दस मिनट मे गाड़ी चौराहे से मुड़कर अंदर कच्चे रास्ते तक पहुँच गई.. !! पगडंडी नजर आते ही दोनों ने गाड़ी वहीं छोड़ दिया.. और उस रास्ते पर संभलते हुए आगे बढ़ने लगे..
सामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत.. !!
dono RASIK ki diwani ho gai ................Story updated
Napster Ajju Landwalia Rajizexy Smith_15 krish1152 Rocky9i crucer97 Gauravv liverpool244 urc4me SKYESH sunoanuj Sanjay dham normal_boy Raja1239 Haseena Khan CuriousOne sab ka pyra Raj dulara 8cool9 Dharmendra Kumar Patel surekha1986 CHAVDAKARUNA Delta101 rahul 23 SONU69@INDORE randibaaz chora Rahul Chauhan DEVIL MAXIMUM Pras3232 Baadshahkhan1111 pussylover1 Ek number Pk8566 Premkumar65 @Baribar Raja thakur Iron Man DINNA Rajpoot MS Hardwrick22 Raj3465 Rohitjony Dirty_mind Nikunjbaba @brij728 Rajesh Sarhadi ROB177A Raja1239 Tri2010 rhyme_boy Sanju@ Sauravb Bittoo raghw249 Coolraj839 Jassybabra rtnalkumar avi345 Nileshmckn kamdev99008 SANJU ( V. R. ) Neha tyagi Rishiii Aeron Boy Bhatakta Rahi 1234 kasi_babu Sutradhar dangerlund Arjun125 Gentleman Radha Shama nb836868 Monster Dick Rajgoa anitarani Jlodhi35 Raj_sharma Mukesh singh Pradeep paswan अंजुम Loveforyou Neelamptjoshi sandy1684 Royal boy034 mastmast123 Rajsingh Kahal Mr. Unique Vikas@170 DB Singh trick1w Vincenzo rahulg123 Lord haram Rishi_J flyingsara messyroy SKY is black Ayhina Pooja Vaishnav moms_bachha himansh Kamini sucksena Jay1990 rkv66 Ek number Hot&sexyboy Ben Tennyson Jay1990 sunitasbs 111ramjain Rocky9i krish1152 U.and.me archana sexy Gauravv vishali robby1611 Amisha2 Tiger 786 rahul198848 Sing is king 42 Tri2010 ellysperry Raja1239 macssm Slut Queen Anjali Ragini Ragini Karim Saheb rrpr Ayesha952 sameer26.shah26 rahuliscool smash001 rajeev13 Luv69 kingkhankar arushi_dayal rangeeladesi Mastmalang 695 Rumana001 rangeeladesi sushilk Rishiii satya18 Rowdy Pandu1990 small babe CHETANSONI sonukm Bulbul_Rani shameless26 Lover ❤️ NehaRani9 Random2022 officer Rashmi Hector_789
Mind blowing update. One of the hottest story I have ever read before. Too hot.सामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत..!!
कविता: "तू आगे आगे चल.. मुझे तो डर लग रहा है यार.. साली, तुझे रसिक के लंड से चुदने की बड़ी भूख है.. और परेशान मुझे होना पड़ रहा है.. सच कहा है.. कोयले की दलाली करो तो हाथ काले होंगे ही.. कुछ हो गया तो तेरे साथ साथ मैं भी फंस जाऊँगी"
पगडंडी पर संभालकर पैर बढ़ाते हुए वैशाली ने कहा "कुछ नहीं होगा यार.. ऐसा सब सोचने की कोई जरूरत नहीं है.. हम मजे करने के लिए आए है.. जो होगा देखा जाएगा.. फालतू टेंशन करके दिमाग की बैंड मत बजा"
चारों तरफ पानी छिड़के हुए खेतों के कारण.. ठंड और ज्यादा लग रही थी.. दोनों सहेलियाँ ठंड के मारे कांपते हुए पतले से रस्ते पर आगे बढ़ रही थी.. आगे चल रही वैशाली के भारी नितंब.. उसके हर कदम पर मदहोशी से थिरकते हुए देख रही थी कविता.. और सोच रही थी.. अभी तो बड़ी मटक मटक कर चल रही है.. पर वापिस जाते वक्त तेरी चाल बदल न जाए तो मेरा नाम कविता नहीं.. !!
थोड़ा सा और आगे जाते ही वो दोनों उस कमरे के नजदीक आ गए.. एक बड़ा सा बल्ब लटकते हुए पीली रोशनी फेंक रहा था.. उसके उजाले मे उन्हों ने देखा.. पास ही एक खटिया पर रसिक बैठा हुआ था.. खटिया के बगल मे उसने लकड़ियाँ जलाई हुई थी और वो बैठे बैठे हाथ पैर सेंक रहा था..
उन दोनों रूप-सुंदरियों को अपनी तरफ आते हुए देख रसिक मन मे सोच रहा था.. साला क्या किस्मत है..!! जब मैं मिलने के लिए तरस रहा था तब कुछ जुगाड़ नहीं हो पाया.. और जब मैंने कोशिश ही छोड़ दी.. तब यह दोनों सामने से चलकर खेत तक पहुँच गई.. वो भी इतनी सर्दी मे.. !! सच ही कहा है.. ऊपर वाला देता है तब छप्पर फाड़कर नहीं.. आर.सी.सी. कोन्क्रीट से बनी सीलिंग फाड़कर भी देता है..!!! एक नहीं दो दो एक साथ..!! वैशाली के बारे मे तो मैंने सोचा भी नहीं था..!!
दोनों को देखकर रसिक ने अपना लंड खुजाकर एडजस्ट किया.. इतनी ठंड मे भी वो सिर्फ देसी जाँघिया पहनकर आग के पास बैठा था.. एक छोटी सी लकड़ी की मदद से वो जल रही लकड़ियों को ठीक से जला रहा था.. रसिक को अपना लंड एड़जस्ट करते हुए कविता ने देख लिया था
सिर्फ वैशाली ही सुने ऐसी धीमी आवाज मे उसने कहा "देख, वो साला तैयार ही बैठा है.. अन्डरवेर पहने हुए.. अपना लंड खुजा रहा है.. तू भी तैयार हो जा अब.. बहुत चूल थी ना तुझे उससे चुदवाने की.. !! अब अपनी फड़वाने के लिए तैयार हो जा.. !!"
रसिक: "आइए आइए भाभी.. खेत ढूँढने मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई??"
जलती हुई लड़कियों के अलाव के पास खड़े रहकर.. कविता और वैशाली को ठंड से थोड़ी सी राहत मिली..
कविता: "हाँ मिल गया.. वैसे रास्ता सीधा ही था इसलिए ढूँढने मे कोई दिक्कत नहीं हुई" आसपास नजरें दौड़ाते हुए कविता ने कहा.. आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था.. एकदम सैफ जगह थी.. सब-सलामत महसूस होते ही कविता ने चैन की सांस ली.. !!
आग की एक तरफ कविता तो दूसरी तरफ वैशाली खड़ी थी.. बीच मे रसिक खटिया पर बैठा था.. आग की रोशनी मे उसका काला विकराल बदन चमक रहा था.. उस कसरती बदन का वैभव देखकर वैशाली की आँखें फटी की फटी रह गई.. अब तक पॉर्न फिल्मों मे जिन कल्लुओ को देखा था बिल्कुल वैसा ही शरीर था रसिक का.. काला गठीला बदन.. छाती पर ढेर सारे घुँघराले बाल.. आग मे तांबे की तरह तप रहा शरीर.. चौड़े मजबूत कंधे.. बड़े बड़े डोले.. वैशाली के साथ साथ कविता की जांघों के बीच भी गर्माहट होने लगी.. उसे देखकर कविता सोच रही थी.. रोज तो एकदम गंदा बदबूदार होता है रसिक.. आज तो साफ सुथरा लग रहा है.. शायद हम आने वाले थे इसलिए अभी नहाया होगा वो.. !!
रसिक: "आप दोनों खड़े क्यों हो?? बैठिए यहाँ" कहते हुए रसिक खटिया से उठकर कविता की ओर आगे बढ़ा.. कविता घबराकर तुरंत खटिया पर बैठ गई.. और उसके पीछे पीछे वैशाली भी जा बैठी.. रसिक उनके सामने पहाड़ की तरह खड़ा था.. लकड़ी की आग और रसिक के बदन को देखकर दोनों की ठंडी गायब हो चुकी थी.. इतनी ठंड मे भी कैसे वो सिर्फ जाँघिया पहने बैठा था उसका जवाब मिल गया दोनों को..!!
सफेद रंग के जांघिये से रसिक के लोडे का आकार दिख रहा था वैशाली को.. रसिक का ध्यान कविता की कमसिन जवानी पर था.. वो धीरे धीरे चलते हुए कविता के पास आकर खड़ा हो गया.. और बोला
रसिक: "आपको आज तीरछी नज़रों से नहीं देखना पड़ेगा.. शांति से मन भरकर देख लीजिए मेरा.. " सिर्फ एक कदम दूर खड़ा था रसिक.. उसका लंड ऐसा उभार बना रहा था.. की कविता चाहकर भी अपनी नजरें फेर नहीं पाई.. वो डर रही थी.. कहीं ये राक्षस उसे नोच न खाए.. कविता समझ गई की उस रात जब रसिक उसकी सास को चोद रहा था तब वो तीरछी नज़रों से हल्की सी आँखें खोलकर उसका लंड देख रही थी उसके बारे मे रसिक ने उसे ताना मारा था.. कविता ने रसिक के लंड से नजरें हटा ली..
रसिक अब वैशाली की ओर मुड़ा.. वैशाली अत्यंत रोमांचित होकर रसिक के तंबू को देख रही थी..
रसिक: "आह्ह वैशाली.. गजब की छातियाँ है तुम्हारी.. वाह.. !!" रसिक के मुख से कामुक उद्गार निकल गए
इतने करीब से रसिक का बम्बू देखकर वैशाली की पुच्ची मे गजब की चुनमुनी होने लगी.. वो रसिक के लंड को चड्डी के अंदर से निकालने के बेकरार थी पर पहल करने से डर रही थी
रसिक अब वैशाली की इतने करीब आ गया की उसके चेहरे और रसिक के लंड के बीच अब सिर्फ एक इंच की ही दूरी रह गई.. वैशाली ने घबराकर मुंह फेर लिया.. और लंड का उभरा हुआ हिस्सा.. वैशाली के गालों के डिम्पल पर जा टकराया..
रसिक अब फिर से कविता के पास आया.. और लंड को चड्डी के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी मे पकड़कर कविता को दिखाने लगा.. उस लंड का भव्य आकार देखकर कविता की पेन्टी गीली हो गई.. !!
रसिक अब कविता और वैशाली के बीच खटिया पर बैठ गया.. उसकी जांघें दोनों की जांघों को छूने लगी.. और दोनों को वह स्पर्श होते ही ४४० वॉल्ट का करंट सा लग गया..
कविता और वैशाली एक दूसरे की आँखों मे देखने लगी.. वैशाली ने एक शरारती मुस्कान देकर कविता को आँख मारते हुए नीचे देखने को कहा
रसिक के अन्डरवेर के साइड से.. खड़ा हुआ लंड.. बाहर झाँकने लगा था.. उसका लाल टोपा देखकर कविता कांपने लगी.. जैसे बिल के अंदर से सांप बाहर निकला हो.. ऐसा लग रहा था रसिक का लंड
दोनों के कंधों पर एक एक हाथ रखते हुए रसिक ने कहा "शर्माने की जरूरत नहीं है.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. आप दोनों खुलकर जो भी करना चाहो कर सकते हो"
फिर उसने कविता की ओर घूमकर कहा "भाभी, अब और कितना तड़पाओगी इसे?? अब तो महरबानी कर दो" कहते हुए कविता का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया उसने
कविता थरथर कांपने लगी.. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ लोहे के गरम सरिये पर रख दिया हो.. वो हाथ खींचने गई पर रसिक ने राक्षसी ताकत से उसकी कलाई को पकड़ रखा था.. आखिर कविता ने अपनी मुठ्ठी मे उसका लंड पकड़ ही लिया.. !! अभी भी उसकी हथेली और लंड के बीच मे अन्डरवेर का आवरण था पर.. जैसे हिंग-जीरे के छोंक की खुशबू से खाने के स्वाद का पता लग जाता है.. वैसे ही लंड के आकार से उसकी ताकत और चोदने की क्षमता का अंदाजा लग रहा था..
वैशाली: "बाप रे.. गजब का है.. कितना मोटा है ये तो"
कविता ने वैशाली की ओर देखा.. वैशाली आँखें बंद कर अपने स्तनों का खुद ही मर्दन करते हुए मजे कर रही थी.. रसिक ने वैशाली का हाथ उसके स्तनों से खींचते ही वैशाली ने आँखें खोल दी
"अपने हाथों को क्यों तकलीफ दे रही हो..!! मैं हूँ ना..!! आप सिर्फ इसे संभालो.. मैं आपके दोनों बबलों को संभाल लूँगा" रसिक ने कहा
रसिक ने वैशाली का भी हाथ खींचा और कविता के हाथ के साथ साथ अपने लंड पर रख दिया.. अब कविता की शर्म भी थोड़ी घटने लगी.. वैशाली और कविता की हथेलियों के बीच रसिक का लोडा मचलने लगा..
वैशाली अब बेचैन हो रही थी.. बेहद उत्तेजित होकर उसने सिसकियाँ लेते हुए रसिक का लंड पकड़ दिया.. !!!
"ओ बाप रे.. !!" लंड का आकार और कद देखकर वैशाली के मुंह से निकल गया
वैशाली इतनी जोर से चीखी थी.. कविता आसपास देखने लगी.. कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया.. !!
रसिक ने कविता का सुंदर चेहरा ठुड्डी से पकड़कर अपनी ओर फेरते हुए कहा "कोई नहीं है भाभी.. आप घबराइए मत.. ओह्ह भाभी.. कितनी सुंदर हो आप.. एकदम गोरी गोरी.. इन गोरे गालों को चबा जाने का मन करता है मेरा"
सुनकर कविता शरमा गई.. उसका शरीर अब भी कांप रहा था.. उसका मन अभी भी यह सोच रहा था की वैशाली के दबाव मे आकर उसे यहाँ नहीं आना चाहिए था.. !!
वैशाली अब पूरी तरह बेशर्म होकर रसिक के लंड की चमड़ी उतारकर आगे पीछे करते हुए हिलाने लगी.. रसिक के लंड को महसूस करते हुए वह पॉर्न फिल्मों मे देखे अफ्रीकन मर्दों के लोडॉ को याद करने लगी.. रसिक ने कविता के टॉप पर से उसके स्तनों को दबा दिया.. कविता से अब इतनी अधिक उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. वो खड़ी हो गई और खटिया के साइड पर चली गई..
कविता: "रसिक, तुम्हें जो भी करना हो वो वैशाली के साथ करो.. मुझे कुछ नहीं करवाना"
रसिक: "भाभी, आप तो मुझे पहले से बहोत पसंद हो.. ऐसा क्यों कर रही हो?? बस एक बार मुझे मेरी इच्छा पूरी कर लेने दीजिए.. !! आपको एक बार नंगा देखने की बहोत इच्छा है मुझे.. आह्ह.. देखिए.. ये आपको देखकर कैसे खड़ा हो गया है.. !!"
वैशाली रसिक के मोटे लंड को दबाते हुए बोली "हाँ यार कविता.. गजब का टाइट हो गया है.. !!"
कविता: "वैशाली प्लीज.. डॉन्ट इनवॉल्व मी.. यू इन्जॉय विद हीम.. !!" उनकी अंग्रेजी रसिक के पल्ले नहीं पड़ी..
वैशाली: "ठीक है यार.. जैसी तेरी मर्जी"
फिर रसिक की ओर मुड़कर वैशाली ने कहा "ओह रसिक.. तुम मेरे कपड़े उतारो... मुझे नंगी कर दो" वैशाली ने अपनी बीभत्स मांग रखकर रसिक का ध्यान अपनी ओर खींचा
कविता के सामने देखते हुए रसिक ने वैशाली को अपनी जांघों पर सुला दिया.. वैशाली ओर बेचैन हो गई... उसका पतला सा टॉप ऊपर कर.. अपने हाथ बाहर निकालकर.. टॉप उतार दिया.. और कमर के ऊपर से नंगी हो गई.. !! उसके मदमस्त चुचे देखकर रसिक लार टपकाने लगा..
दोनों स्तनों को बेरहमी पूर्वक आंटे की तरह गूँदने लगा वो.. और फिर अपना एक हाथ उसने वैशाली की चूत वाले हिस्से पर रखकर दबाया.. वैशाली की चूत काफी मात्रा मे पानी छोड़ रही थी..
जैसे जैसे वैशाली की उत्तेजना बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी हरकतें भी बढ़ने लगी.. रसिक की गोद मे उसने करवट लेकर अपना मुंह उसके लंड के करीब ले गई.. यह अवस्था चूसने के लिए आदर्श थी.. वैशाली अब पागलों की तरह उस मूसल लंड को चूमने लगी.. लंड को मूल से लेकर टोपे तक अपनी जीभ फेरते हुए उसने अपनी लार से लंड को गीला कर दिया.. अब तक आक्रामकता से वैशाली के बदन को रौंद रहा रसिक.. वैशाली के चाटने के कारण बेबस हो गया.. उसकी हरकतें धीमी पड़ने लगी.. और अब वैशाली आक्रामक होने लगी.. जैसे जैसे वो चूसती गई वैसे वैसे रसिक आनंद के महासागर मे गोते खाने लगा था..
अब तक जितनी भी ब्ल्यू-फिल्में देखकर ब्लो-जॉब की कला सीखी थी.. वह सारी उसने रसिक का लंड चूसने मे लगा दी थी.. वैशाली का यह स्वरूप देखकर कविता भी हतप्रभ हो गई थी.. वैशाली जिस तरह से लंड को मजे लेकर चूस रही थी.. वो देखकर कविता के लिए भी अपने आप को कंट्रोल मे रखना मुश्किल हो रहा था.. आखिर कविता खुद ही कपड़ों के ऊपर से अपनी चूत को दबाने लगी..
"ऐसे नहीं भाभी.. कपड़े उतार दीजिए ना.. !! आप कहोगे तो मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. पर एक बार आपका नंगा बदन देखने तो दीजिए.. !!" कविता को ऐसा करने मे कोई दिक्कत नहीं लगी.. जहां तक रसिक उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाता, उसे कोई प्रॉब्लेम नहीं थी.. और वैसे भी वो जिस हद तक गरम हो चुकी थी.. वह खुद भी कपड़े उतारना चाहती थी
एक के बाद एक.. कविता ने अपने सारे कपड़े उतार दीये.. और सर से पाँव तक नंगी होकर.. खटिया के कोने पर बैठ गई.. खटिया की खुरदरी रस्सी उसकी कोमल गांड पर चुभ रही थी.. उसका गोरा संगेमरमरी बदन आग मे तांबे की तरह चमक रहा था..
रसिक का लंड मुंह से बाहर निकालकर वैशाली ने कहा "यार कविता, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. चूत मे ना लेना हो तो ना सही.. एक बार चूसकर तो देख.. इतना मज़ा आ रहा है यार.. !!" बड़े ही कामुक अंदाज मे रसिक का गीला लंड पकड़कर हिलाते हुए वो बोली "एक बार देख तो सही.. !! घोड़े के लंड जैसा मोटा और तगड़ा है"
कविता ने जवाब नहीं दिया.. पर उसकी आँखों मे हवस का जबरदस्त खुमार देखते ही बंटा था..
वैशाली का सिर अपनी गोद से हटाकर खटिया पर टिकाकर रसिक खड़ा हो गया.. और अपनी अन्डरवेर उतार दी.. उसका विशाल लंड.. तगड़ा शरीर.. और काला रंग.. आग की रोशनी मे चमककर डरावना सा लग रहा था.. कविता ने सोचा की आदिकाल मे असुर ऐसे ही दिखते होंगे.. !! अब वैशाली भी खटिया से खड़ी हो गई.. और अपना लेगिंग और पेन्टी उतारकर साइड मे रख दिया.. और फिर रसिक की छाती के साथ अपने स्तनों को दबाते हुए उसे चूमने लगी.. नाग की तरह फुँकार रहे लंड को पकड़कर वो हिला भी रही थी..
पहली बार रसिक ने वैशाली के गुलाबी अधरों को चूम लिया.. इतनी लंबी और उत्तेजक किस थी की देखकर ही कविता पिघल गई.. उसकी सांसें भारी हो गई..
कविता की इस अवस्था को भांपकर रसिक ने कहा "भाभी.. आप ऐसे बैठे रहेगी तो कैसे मज़ा आएगा?? चोदने न दो तो कोई बात नहीं... एक बार चाटने तो दीजिए.. उसमें तो आपको ही मज़ा आएगा"
वैशाली ने रसिक का लंड हिलाते हुए कहा "हाँ यार.. चाटने तो दे.. मज़ा आएगा तुझे.. बेकार शरमा रही है तू.. इतना डेरिंग कर ही लिया है तो थोड़ा और सही.. अब यहाँ तक आकर तू बिना कुछ कीये वापिस चली जाएगी तो कैसे चलेगा.. !! सामने इतना मस्त लंड है और तू मुंह धोने जाने की बातें मत कर"
वैसे भी कविता मन ही मन पिघल रही थी.. ऊपर से रसिक और वैशाली के आग्रह ने उसके विरोध को ओर कमजोर किया
"ऐसा नहीं है यार.. मैं देख तो रही हूँ.. आप दोनों करते रहो जो भी करना हो.. मेरा मन करेगा तो मैं जुड़ जाऊँगी.. पर अभी नहीं.. " कविता ने ऊटपटाँग जवाब देकर खिसकना चाहा
वैशाली रसिक को छोड़कर कविता के करीब आई.. उसके नंगे स्तनों के बीच कविता का चेहरा रगड़कर उसे चूम लिया और बोली "मादरचोद.. नखरे मत कर.. चल चुपचाप.. !!" कहते हुए वो कविता को घसीटकर रसिक के पास ले आई और उसे कंधों से दबाकर घुटनों के बल नीचे बीठा दिया.. और खुद भी साथ बैठ गई..
रसिक अब पैर चौड़े कर अपने हाथ को पीछे ले जाकर विश्राम की पोजीशन मे खड़ा हो गया.. कविता और वैशाली दोनों के चेहरों के बीच उसका तगड़ा लंड सेंडविच होने के लिए तैयार था.. पर कविता उसे हाथ लगाने से झिझक रही थी.. वैशाली ने जबरन कविता के दोनों हाथों को पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और कविता उन्हें मसलने लगी.. वैशाली की निप्पल एकदम कडक बेर जैसी हो गई थी.. अपनी पहली उंगली और अंगूठे के बीच उस सख्त निप्पल को दबाकर खींचते हुए उसने पहली बार वैशाली के होंठों के करीब आना चाहा.. धीरे धीरे माहोल मे ढल रही कविता को देखकर वैशाली ने दोगुने उत्साह से अपने होंठ उसके होंठों पर रख दीये.. कविता वैशाली के होंठों को चूसने लगी.. अपनी जीभ उसकी जीभ से मिलाकर उसका स्वाद चखने लगी..
कविता इस लिप किस मे बेतहाशा खो चुकी थी.. तभी वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से रसिक का लँड दोनों के मुंह के बीच रख दिया.. लंड इतना कडक था की दोनों के होंठों को चीरकर आरपार निकल गया.. इतना कामुक द्रश्य था.. की कविता ने पहली बार सामने से रसिक के सुपाड़े को पकड़ लिया.. कविता के स्पर्श को पहचानकर रसिक बेहद खुश हो गया.. उसका सख्त तगड़ा लंड कविता नाम की मोरनी को रिझाने के लिए नृत्य करने लगा.. वैशाली ने उस लंड को थोड़ी देर तक चूसा और फिर कविता को देते हुए कहा "ले, अब तू चूस.. !!"
कविता ने मुंह फेर लिया "मुझे नहीं चूसना है.. !!"
वैशाली: "अब नखरे छोड़ भी दे.. !!"
कविता: "मुझे फोर्स मत कर वैशाली.. तुझे जो करना हो कर.. चूसना हो तो चूस.. आगे पीछे जहां भी लेना हो ले.. तुझे कहाँ रोक रही हूँ मैं??"
वैशाली अपना आपा खो बैठी "भेनचोद.. इतना मस्त लोडा मिला है मजे करने को.. और इस महारानी के नखरे ही खतम नहीं हो रहे है.. चल.. अब इसे चूस.. वरना तुझे उल्टा सुलाकर तेरी गांड मे दे दूँगी रसिक का लंड.. !!" कविता के मुंह मे रसिक का लंड जबरदस्ती डालकर ही चैन लिया वैशाली ने
"ओह्ह यस बेबी.. सक इट.. !!" वैशाली कविता को उकसाने लगी
कविता को शुरू शुरू मे.. बड़ा अटपटा सा लगा.. पर वो खुद भी इतनी उत्तेजित थी की जो आदमी उसे देखकर ही पसंद नहीं था.. उसका लंड चूस रही थी.. थोड़ी देर के बाद वैशाली ने कविता को धकेल दिया और खुद चूसने लगी..
काफी देर तक लंड की चुसाई के बाद वैशाली ने लंड छोड़ा.. फिर कविता को खटिया पर लेटाकर रसिक को उसकी चूत चाटने का इशारा किया.. रसिक बावरा हो गया.. और अपनी पसंदीदा चूत पर टूट पड़ने के लिए तैयार हो गया..
कविता की चूत पर रसिक की जीभ फिरते ही वो सिहर उठी.. सातवे आसमान पर उड़ने लगी कविता.. उसकी निप्पलें टाइट हो गई.. और शुरुआत मे जांघें दबाकर रखने वाली कविता ने खुद ही अपनी टांगें फैलाते हुए रसिक को चाटने मे आसानी कर दी..
पैर चौड़े होते ही कविता की नाजुक चूत के पंखुड़ियों जैसे होंठ खुल गए.. उसकी लाल क्लिटोरिस और छोटा सा छेद देखकर रसिक समझ गया की वो उसका लंड अंदर नहीं ले पाएगी..
कविता की लाल क्लिटोरिस को होंठों के बीच दबाकर रसिक ने जब चूसा... तब उत्तेजित होकर कविता अपनी गांड उछालकर गोल गोल घुमाते हुए ऊपर नीचे करने लगी.. आह्ह आह्ह आह्ह.. की आवाज़ें रसिक के खेत मे गूंजने लगी.. कविता की चूत चाट रहे रसिक के लंड को वैशाली बड़े ही प्यार से देख रही थी.. वो उसके लंड से कभी अपने गालों को रगड़ती तो कभी दो स्तनों के बीच उसे दबा देती..
"भाभी.. आप अपनी खोलकर मेरे मुंह पर बैठ जाओ.. मज़ा आएगा.. मुझे उस तरह चाटना बहोत अच्छा लगता है" पतली सी कविता के बदन को खिलौने की तरह उठाकर खड़ा कर दिया रसिक ने.. और खुद खटिया पर लेट गया.. कविता के गोरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए उसे अपने मुंह पर बीठा दिया रसिक ने..
कविता की कोमल चूत के वर्टिकल होंठों को चाटते हुए अंदर घुसाने का सुराख ढूंढ रही थी रसिक की जीभ.. !! कविता को तो जैसे बिन मांगे ही स्वर्ग मिल गया.. !! एक साल से ऊपर हो गया किसी मर्द ने उसकी चूत चाटे हुए.. महीने मे एक बार पीयूष मुश्किल से उसे चोदता था.. चूत चाटने का तो कोई सवाल ही नहीं था.. रसिक के प्रति उसके मन मे जो घृणा थी.. वो उत्तेजना की गर्मी से भांप बनकर उड़ गई.. !! आँखें बंद कर वो रसिक के मुंह पर सवारी कर अपनी चूत को आगे पीछे रगड़ रही थी.. ऐसा मौका दिलाने के लिए वो मन ही मन वैशाली का आभार प्रकट करने लगी.. अगर वैशाली ने इतनी हिम्मत न की होती.. तो ऐसा आनंद उसे कभी नहीं मिलता..!! लंड तो लंड.. रसिक की तो जीभ भी कितनी कडक थी.. चूत की अंदरूनी परतों को कुरेद रही थी.. माय गॉड.. इतना सख्त तो आज तक पीयूष का कभी नहीं हुआ.. यह आदमी वाकई असुर योनि का लगता है.. इसकी जीभ तो लंड से भी ज्यादा खतरनाक है..
कविता का शरीर अकड़ने लगा. और उसने अपनी चूत की मांसपेशियों को जकड़ लिया.. रसिक की जीभ और तीव्रता से कविता की चूत मे जितना अंदर जा सकती थी.. घुस गई.. !! दोनों तरफ आनंद की लहरें उठ रही थी.. दोनों हाथ ऊपर कर रसिक ने कविता के नाजुक स्तनों को पकड़ लिया और दबाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत मे नचाने लगा..
कविता ने दोनों हाथ से रसिक का सर पकड़ लिया और अपनी चूत को ताकत के साथ उसकी जीभ पर दबाते हुए अपने शरीर को तंग कर दिया.. दूसरे ही पल.. रसिक का लोडा चूस रही वैशाली के मुंह मे.. गाढ़े लस्सेदार वीर्य की पिचकारी छूटी.. वैशाली इस प्रहार के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. वह उत्तेजित तो थी पर वीर्य को मुंह मे लेने की उसकी तैयारी नहीं थी.. उसने तुरंत लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. वीर्य थूक दिया और छी छी करते हुए खाँसने लगी..
रसिक के चेहरे से उतरकर खटिया के कोने पर बैठ गई.. वैशाली के हाल पर हँसते हुए उसने रसिक के लंड की तरफ देखा.. बाप रे.. !! वैशाली की लार और वीर्य से तरबतर लोडा, हर सेकंड पर एक झटका मार रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. !! वैशाली और कविता दोनों की नजर उस आसुरी लंड पर चिपक गई थी.. कविता ऐसे देख रही थी जैसी किसी दुर्लभ प्रजाति के प्राणी को देख रही हो.. और वैशाली थोड़ी सी नाराजगी से रसिक की तरफ देख रही थी
थोड़ी देर के बाद सब से पहले कविता उठी और कपड़े पहनने लगी..
"अरे भाभी.. अभी से कपड़े पहनने लगी आप? अभी तो सिर्फ शुरुआत हुई है.. " रसिक खड़ा हो गया और कविता के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों मे जकड़कर स्तनों को दबाने लगा.. इस बार कविता को रसिक के प्रति कोई घृणा नहीं हो रही थी.. पर फिर भी रसिक को अपने शरीर से दूर धकेलते हुए कहा "मुझे ठंड लग रही है.. जरूरत पड़ी तो फिर से उतार दूँगी.. अभी पहन लेने दो मुझे.. और पहले उस रंडी की चूत चोदकर ढीली कर दो.. कब से मचल रही है चुदवाने के लिए" कविता अब बेझिझक होकर बोलने लगी थी
वैशाली खुश होकर बोली "अरे वाह.. अब तो तू भी एकदम खुल गई कविता.. !!"
रसिक: "जब कपड़े ही उतर चुके हो.. फिर किस बात की झिझक.. !! क्यों सही कहा ना भाभी.. !! आप को ठंड लग रही है ना.. रुकिए, मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाता हूँ" रसिक नंगे बदन ही वो कमरे मे गया.. उसका झूलता हुआ लंड और काले चूतड़ देखकर.. कविता और वैशाली एक दूसरे के सामने देखकर हंसने लगे..
रसिक चाय बना रहा था उस दौरान दोनों यहाँ से निकलने के समय के बारे मे बात करने लगी
कविता: "अभी साढ़े दस बजे है.. साढ़े ग्यारह बजे तो निकल जाएंगे"
वैशाली: "अरे यार.. एक बजे भी निकले तो क्या दिक्कत है?? घर पर कोई पूछने वाला तो है नहीं.. !!"
तभी चीमटे से एल्युमिनियम की पतीली पकड़कर रसिक आया और बोला "आज की रात आपको यहीं रहना है.. जाने की बात मत कीजिए.. मेरा मन भर जाएगा उसके बाद ही आप लोगों को जाने दूंगा"
प्लास्टिक के तीन कप मे रसिक ने चाय निकाली.. और तीनों पीने लगे.. कविता कपड़े पहन कर बैठी थी पर रसिक और वैशाली अभी भी सम्पूर्ण नग्न थे..
चाय पीने से शरीर गरम हुआ.. और ऑर्गजम की सुस्ती चली गई.. रसिक अब खटिया पर बैठ गया और कविता तथा वैशाली दोनों को अपनी एक एक जांघ पर बीठा दिया.. और फिर उनकी काँखों के नीचे से हाथ डालकर दोनों को स्तनों को दबाते हुए बोला "भाभी, आपको नंगा देखने की मेरी इच्छा आज पूरी हो गई.. अब एक बार आपको जीन्स और टी-शर्ट मे देखने की इच्छा है.. हो सके तो कभी वो इच्छा भी पूरी कर देना मेरी.. शहर की जवान लड़कियों को ऐसे फेशनेबल कपड़ों मे एक्टिवा पर जाते हुए देखता हूँ तब इतना मन करता है की उन्हें पकड़कर दबोच लूँ.. और सारे कपड़े उतरवाकर खड़े खड़े चोद दूँ.. !!"
वैशाली: "इसमें कौन सी बड़ी बात है.. तुम्हारी यह इच्छा तो मैं पूरी कर दूँगी, रसिक.. !!"
रसिक: "नहीं.. मुझे तो भाभी को ऐसे कपड़ों मे देखना है"
कविता: "मैं तो यहाँ से चली जाऊँगी.. तो वो इच्छा तो पूरी होने से रही.. हाँ कभी मेरे शहर आओ तो वैसे कपड़ों मे जरूर देखने मिलूँगी तुम्हें.. !!"
रसिक: "आप जब और जहां कहो.. मैं आ जाऊंगा भाभी"
वैशाली रसिक के आधे-मुरझाए लंड से खेलते हुए बोली "कविता, ये रसिक ही तेरा असली आशिक है.. मौका मिले तो उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करना.. !!"
वैशाली के हाथों के जादू से रसिक का लंड फिर से खड़ा हो गया.. उसका विकराल रूप देखकर कविता फिर से घबरा गई "देख तो सही वैशाली.. इसके लंड की इच्छा पूरी करने मे मेरी गुलाबी कोमल चूत की धज्जियां उड़ जाएगी.. !!"
रसिक: "आपको इतना डर हो तो मैं वादा करता हूँ.. के कभी अंदर डालने के लिए मजबूर नहीं करूंगा आपको.. मुझे बस अपनी चूत पर लंड रगड़ने देगी तो भी मेरा निकल जाएगा.. !!"
कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
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सामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत..!!
कविता: "तू आगे आगे चल.. मुझे तो डर लग रहा है यार.. साली, तुझे रसिक के लंड से चुदने की बड़ी भूख है.. और परेशान मुझे होना पड़ रहा है.. सच कहा है.. कोयले की दलाली करो तो हाथ काले होंगे ही.. कुछ हो गया तो तेरे साथ साथ मैं भी फंस जाऊँगी"
पगडंडी पर संभालकर पैर बढ़ाते हुए वैशाली ने कहा "कुछ नहीं होगा यार.. ऐसा सब सोचने की कोई जरूरत नहीं है.. हम मजे करने के लिए आए है.. जो होगा देखा जाएगा.. फालतू टेंशन करके दिमाग की बैंड मत बजा"
चारों तरफ पानी छिड़के हुए खेतों के कारण.. ठंड और ज्यादा लग रही थी.. दोनों सहेलियाँ ठंड के मारे कांपते हुए पतले से रस्ते पर आगे बढ़ रही थी.. आगे चल रही वैशाली के भारी नितंब.. उसके हर कदम पर मदहोशी से थिरकते हुए देख रही थी कविता.. और सोच रही थी.. अभी तो बड़ी मटक मटक कर चल रही है.. पर वापिस जाते वक्त तेरी चाल बदल न जाए तो मेरा नाम कविता नहीं.. !!
थोड़ा सा और आगे जाते ही वो दोनों उस कमरे के नजदीक आ गए.. एक बड़ा सा बल्ब लटकते हुए पीली रोशनी फेंक रहा था.. उसके उजाले मे उन्हों ने देखा.. पास ही एक खटिया पर रसिक बैठा हुआ था.. खटिया के बगल मे उसने लकड़ियाँ जलाई हुई थी और वो बैठे बैठे हाथ पैर सेंक रहा था..
उन दोनों रूप-सुंदरियों को अपनी तरफ आते हुए देख रसिक मन मे सोच रहा था.. साला क्या किस्मत है..!! जब मैं मिलने के लिए तरस रहा था तब कुछ जुगाड़ नहीं हो पाया.. और जब मैंने कोशिश ही छोड़ दी.. तब यह दोनों सामने से चलकर खेत तक पहुँच गई.. वो भी इतनी सर्दी मे.. !! सच ही कहा है.. ऊपर वाला देता है तब छप्पर फाड़कर नहीं.. आर.सी.सी. कोन्क्रीट से बनी सीलिंग फाड़कर भी देता है..!!! एक नहीं दो दो एक साथ..!! वैशाली के बारे मे तो मैंने सोचा भी नहीं था..!!
दोनों को देखकर रसिक ने अपना लंड खुजाकर एडजस्ट किया.. इतनी ठंड मे भी वो सिर्फ देसी जाँघिया पहनकर आग के पास बैठा था.. एक छोटी सी लकड़ी की मदद से वो जल रही लकड़ियों को ठीक से जला रहा था.. रसिक को अपना लंड एड़जस्ट करते हुए कविता ने देख लिया था
सिर्फ वैशाली ही सुने ऐसी धीमी आवाज मे उसने कहा "देख, वो साला तैयार ही बैठा है.. अन्डरवेर पहने हुए.. अपना लंड खुजा रहा है.. तू भी तैयार हो जा अब.. बहुत चूल थी ना तुझे उससे चुदवाने की.. !! अब अपनी फड़वाने के लिए तैयार हो जा.. !!"
रसिक: "आइए आइए भाभी.. खेत ढूँढने मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई??"
जलती हुई लड़कियों के अलाव के पास खड़े रहकर.. कविता और वैशाली को ठंड से थोड़ी सी राहत मिली..
कविता: "हाँ मिल गया.. वैसे रास्ता सीधा ही था इसलिए ढूँढने मे कोई दिक्कत नहीं हुई" आसपास नजरें दौड़ाते हुए कविता ने कहा.. आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था.. एकदम सैफ जगह थी.. सब-सलामत महसूस होते ही कविता ने चैन की सांस ली.. !!
आग की एक तरफ कविता तो दूसरी तरफ वैशाली खड़ी थी.. बीच मे रसिक खटिया पर बैठा था.. आग की रोशनी मे उसका काला विकराल बदन चमक रहा था.. उस कसरती बदन का वैभव देखकर वैशाली की आँखें फटी की फटी रह गई.. अब तक पॉर्न फिल्मों मे जिन कल्लुओ को देखा था बिल्कुल वैसा ही शरीर था रसिक का.. काला गठीला बदन.. छाती पर ढेर सारे घुँघराले बाल.. आग मे तांबे की तरह तप रहा शरीर.. चौड़े मजबूत कंधे.. बड़े बड़े डोले.. वैशाली के साथ साथ कविता की जांघों के बीच भी गर्माहट होने लगी.. उसे देखकर कविता सोच रही थी.. रोज तो एकदम गंदा बदबूदार होता है रसिक.. आज तो साफ सुथरा लग रहा है.. शायद हम आने वाले थे इसलिए अभी नहाया होगा वो.. !!
रसिक: "आप दोनों खड़े क्यों हो?? बैठिए यहाँ" कहते हुए रसिक खटिया से उठकर कविता की ओर आगे बढ़ा.. कविता घबराकर तुरंत खटिया पर बैठ गई.. और उसके पीछे पीछे वैशाली भी जा बैठी.. रसिक उनके सामने पहाड़ की तरह खड़ा था.. लकड़ी की आग और रसिक के बदन को देखकर दोनों की ठंडी गायब हो चुकी थी.. इतनी ठंड मे भी कैसे वो सिर्फ जाँघिया पहने बैठा था उसका जवाब मिल गया दोनों को..!!
सफेद रंग के जांघिये से रसिक के लोडे का आकार दिख रहा था वैशाली को.. रसिक का ध्यान कविता की कमसिन जवानी पर था.. वो धीरे धीरे चलते हुए कविता के पास आकर खड़ा हो गया.. और बोला
रसिक: "आपको आज तीरछी नज़रों से नहीं देखना पड़ेगा.. शांति से मन भरकर देख लीजिए मेरा.. " सिर्फ एक कदम दूर खड़ा था रसिक.. उसका लंड ऐसा उभार बना रहा था.. की कविता चाहकर भी अपनी नजरें फेर नहीं पाई.. वो डर रही थी.. कहीं ये राक्षस उसे नोच न खाए.. कविता समझ गई की उस रात जब रसिक उसकी सास को चोद रहा था तब वो तीरछी नज़रों से हल्की सी आँखें खोलकर उसका लंड देख रही थी उसके बारे मे रसिक ने उसे ताना मारा था.. कविता ने रसिक के लंड से नजरें हटा ली..
रसिक अब वैशाली की ओर मुड़ा.. वैशाली अत्यंत रोमांचित होकर रसिक के तंबू को देख रही थी..
रसिक: "आह्ह वैशाली.. गजब की छातियाँ है तुम्हारी.. वाह.. !!" रसिक के मुख से कामुक उद्गार निकल गए
इतने करीब से रसिक का बम्बू देखकर वैशाली की पुच्ची मे गजब की चुनमुनी होने लगी.. वो रसिक के लंड को चड्डी के अंदर से निकालने के बेकरार थी पर पहल करने से डर रही थी
रसिक अब वैशाली की इतने करीब आ गया की उसके चेहरे और रसिक के लंड के बीच अब सिर्फ एक इंच की ही दूरी रह गई.. वैशाली ने घबराकर मुंह फेर लिया.. और लंड का उभरा हुआ हिस्सा.. वैशाली के गालों के डिम्पल पर जा टकराया..
रसिक अब फिर से कविता के पास आया.. और लंड को चड्डी के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी मे पकड़कर कविता को दिखाने लगा.. उस लंड का भव्य आकार देखकर कविता की पेन्टी गीली हो गई.. !!
रसिक अब कविता और वैशाली के बीच खटिया पर बैठ गया.. उसकी जांघें दोनों की जांघों को छूने लगी.. और दोनों को वह स्पर्श होते ही ४४० वॉल्ट का करंट सा लग गया..
कविता और वैशाली एक दूसरे की आँखों मे देखने लगी.. वैशाली ने एक शरारती मुस्कान देकर कविता को आँख मारते हुए नीचे देखने को कहा
रसिक के अन्डरवेर के साइड से.. खड़ा हुआ लंड.. बाहर झाँकने लगा था.. उसका लाल टोपा देखकर कविता कांपने लगी.. जैसे बिल के अंदर से सांप बाहर निकला हो.. ऐसा लग रहा था रसिक का लंड
दोनों के कंधों पर एक एक हाथ रखते हुए रसिक ने कहा "शर्माने की जरूरत नहीं है.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. आप दोनों खुलकर जो भी करना चाहो कर सकते हो"
फिर उसने कविता की ओर घूमकर कहा "भाभी, अब और कितना तड़पाओगी इसे?? अब तो महरबानी कर दो" कहते हुए कविता का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया उसने
कविता थरथर कांपने लगी.. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ लोहे के गरम सरिये पर रख दिया हो.. वो हाथ खींचने गई पर रसिक ने राक्षसी ताकत से उसकी कलाई को पकड़ रखा था.. आखिर कविता ने अपनी मुठ्ठी मे उसका लंड पकड़ ही लिया.. !! अभी भी उसकी हथेली और लंड के बीच मे अन्डरवेर का आवरण था पर.. जैसे हिंग-जीरे के छोंक की खुशबू से खाने के स्वाद का पता लग जाता है.. वैसे ही लंड के आकार से उसकी ताकत और चोदने की क्षमता का अंदाजा लग रहा था..
वैशाली: "बाप रे.. गजब का है.. कितना मोटा है ये तो"
कविता ने वैशाली की ओर देखा.. वैशाली आँखें बंद कर अपने स्तनों का खुद ही मर्दन करते हुए मजे कर रही थी.. रसिक ने वैशाली का हाथ उसके स्तनों से खींचते ही वैशाली ने आँखें खोल दी
"अपने हाथों को क्यों तकलीफ दे रही हो..!! मैं हूँ ना..!! आप सिर्फ इसे संभालो.. मैं आपके दोनों बबलों को संभाल लूँगा" रसिक ने कहा
रसिक ने वैशाली का भी हाथ खींचा और कविता के हाथ के साथ साथ अपने लंड पर रख दिया.. अब कविता की शर्म भी थोड़ी घटने लगी.. वैशाली और कविता की हथेलियों के बीच रसिक का लोडा मचलने लगा..
वैशाली अब बेचैन हो रही थी.. बेहद उत्तेजित होकर उसने सिसकियाँ लेते हुए रसिक का लंड पकड़ दिया.. !!!
"ओ बाप रे.. !!" लंड का आकार और कद देखकर वैशाली के मुंह से निकल गया
वैशाली इतनी जोर से चीखी थी.. कविता आसपास देखने लगी.. कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया.. !!
रसिक ने कविता का सुंदर चेहरा ठुड्डी से पकड़कर अपनी ओर फेरते हुए कहा "कोई नहीं है भाभी.. आप घबराइए मत.. ओह्ह भाभी.. कितनी सुंदर हो आप.. एकदम गोरी गोरी.. इन गोरे गालों को चबा जाने का मन करता है मेरा"
सुनकर कविता शरमा गई.. उसका शरीर अब भी कांप रहा था.. उसका मन अभी भी यह सोच रहा था की वैशाली के दबाव मे आकर उसे यहाँ नहीं आना चाहिए था.. !!
वैशाली अब पूरी तरह बेशर्म होकर रसिक के लंड की चमड़ी उतारकर आगे पीछे करते हुए हिलाने लगी.. रसिक के लंड को महसूस करते हुए वह पॉर्न फिल्मों मे देखे अफ्रीकन मर्दों के लोडॉ को याद करने लगी.. रसिक ने कविता के टॉप पर से उसके स्तनों को दबा दिया.. कविता से अब इतनी अधिक उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. वो खड़ी हो गई और खटिया के साइड पर चली गई..
कविता: "रसिक, तुम्हें जो भी करना हो वो वैशाली के साथ करो.. मुझे कुछ नहीं करवाना"
रसिक: "भाभी, आप तो मुझे पहले से बहोत पसंद हो.. ऐसा क्यों कर रही हो?? बस एक बार मुझे मेरी इच्छा पूरी कर लेने दीजिए.. !! आपको एक बार नंगा देखने की बहोत इच्छा है मुझे.. आह्ह.. देखिए.. ये आपको देखकर कैसे खड़ा हो गया है.. !!"
वैशाली रसिक के मोटे लंड को दबाते हुए बोली "हाँ यार कविता.. गजब का टाइट हो गया है.. !!"
कविता: "वैशाली प्लीज.. डॉन्ट इनवॉल्व मी.. यू इन्जॉय विद हीम.. !!" उनकी अंग्रेजी रसिक के पल्ले नहीं पड़ी..
वैशाली: "ठीक है यार.. जैसी तेरी मर्जी"
फिर रसिक की ओर मुड़कर वैशाली ने कहा "ओह रसिक.. तुम मेरे कपड़े उतारो... मुझे नंगी कर दो" वैशाली ने अपनी बीभत्स मांग रखकर रसिक का ध्यान अपनी ओर खींचा
कविता के सामने देखते हुए रसिक ने वैशाली को अपनी जांघों पर सुला दिया.. वैशाली ओर बेचैन हो गई... उसका पतला सा टॉप ऊपर कर.. अपने हाथ बाहर निकालकर.. टॉप उतार दिया.. और कमर के ऊपर से नंगी हो गई.. !! उसके मदमस्त चुचे देखकर रसिक लार टपकाने लगा..
दोनों स्तनों को बेरहमी पूर्वक आंटे की तरह गूँदने लगा वो.. और फिर अपना एक हाथ उसने वैशाली की चूत वाले हिस्से पर रखकर दबाया.. वैशाली की चूत काफी मात्रा मे पानी छोड़ रही थी..
जैसे जैसे वैशाली की उत्तेजना बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी हरकतें भी बढ़ने लगी.. रसिक की गोद मे उसने करवट लेकर अपना मुंह उसके लंड के करीब ले गई.. यह अवस्था चूसने के लिए आदर्श थी.. वैशाली अब पागलों की तरह उस मूसल लंड को चूमने लगी.. लंड को मूल से लेकर टोपे तक अपनी जीभ फेरते हुए उसने अपनी लार से लंड को गीला कर दिया.. अब तक आक्रामकता से वैशाली के बदन को रौंद रहा रसिक.. वैशाली के चाटने के कारण बेबस हो गया.. उसकी हरकतें धीमी पड़ने लगी.. और अब वैशाली आक्रामक होने लगी.. जैसे जैसे वो चूसती गई वैसे वैसे रसिक आनंद के महासागर मे गोते खाने लगा था..
अब तक जितनी भी ब्ल्यू-फिल्में देखकर ब्लो-जॉब की कला सीखी थी.. वह सारी उसने रसिक का लंड चूसने मे लगा दी थी.. वैशाली का यह स्वरूप देखकर कविता भी हतप्रभ हो गई थी.. वैशाली जिस तरह से लंड को मजे लेकर चूस रही थी.. वो देखकर कविता के लिए भी अपने आप को कंट्रोल मे रखना मुश्किल हो रहा था.. आखिर कविता खुद ही कपड़ों के ऊपर से अपनी चूत को दबाने लगी..
"ऐसे नहीं भाभी.. कपड़े उतार दीजिए ना.. !! आप कहोगे तो मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. पर एक बार आपका नंगा बदन देखने तो दीजिए.. !!" कविता को ऐसा करने मे कोई दिक्कत नहीं लगी.. जहां तक रसिक उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाता, उसे कोई प्रॉब्लेम नहीं थी.. और वैसे भी वो जिस हद तक गरम हो चुकी थी.. वह खुद भी कपड़े उतारना चाहती थी
एक के बाद एक.. कविता ने अपने सारे कपड़े उतार दीये.. और सर से पाँव तक नंगी होकर.. खटिया के कोने पर बैठ गई.. खटिया की खुरदरी रस्सी उसकी कोमल गांड पर चुभ रही थी.. उसका गोरा संगेमरमरी बदन आग मे तांबे की तरह चमक रहा था..
रसिक का लंड मुंह से बाहर निकालकर वैशाली ने कहा "यार कविता, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. चूत मे ना लेना हो तो ना सही.. एक बार चूसकर तो देख.. इतना मज़ा आ रहा है यार.. !!" बड़े ही कामुक अंदाज मे रसिक का गीला लंड पकड़कर हिलाते हुए वो बोली "एक बार देख तो सही.. !! घोड़े के लंड जैसा मोटा और तगड़ा है"
कविता ने जवाब नहीं दिया.. पर उसकी आँखों मे हवस का जबरदस्त खुमार देखते ही बंटा था..
वैशाली का सिर अपनी गोद से हटाकर खटिया पर टिकाकर रसिक खड़ा हो गया.. और अपनी अन्डरवेर उतार दी.. उसका विशाल लंड.. तगड़ा शरीर.. और काला रंग.. आग की रोशनी मे चमककर डरावना सा लग रहा था.. कविता ने सोचा की आदिकाल मे असुर ऐसे ही दिखते होंगे.. !! अब वैशाली भी खटिया से खड़ी हो गई.. और अपना लेगिंग और पेन्टी उतारकर साइड मे रख दिया.. और फिर रसिक की छाती के साथ अपने स्तनों को दबाते हुए उसे चूमने लगी.. नाग की तरह फुँकार रहे लंड को पकड़कर वो हिला भी रही थी..
पहली बार रसिक ने वैशाली के गुलाबी अधरों को चूम लिया.. इतनी लंबी और उत्तेजक किस थी की देखकर ही कविता पिघल गई.. उसकी सांसें भारी हो गई..
कविता की इस अवस्था को भांपकर रसिक ने कहा "भाभी.. आप ऐसे बैठे रहेगी तो कैसे मज़ा आएगा?? चोदने न दो तो कोई बात नहीं... एक बार चाटने तो दीजिए.. उसमें तो आपको ही मज़ा आएगा"
वैशाली ने रसिक का लंड हिलाते हुए कहा "हाँ यार.. चाटने तो दे.. मज़ा आएगा तुझे.. बेकार शरमा रही है तू.. इतना डेरिंग कर ही लिया है तो थोड़ा और सही.. अब यहाँ तक आकर तू बिना कुछ कीये वापिस चली जाएगी तो कैसे चलेगा.. !! सामने इतना मस्त लंड है और तू मुंह धोने जाने की बातें मत कर"
वैसे भी कविता मन ही मन पिघल रही थी.. ऊपर से रसिक और वैशाली के आग्रह ने उसके विरोध को ओर कमजोर किया
"ऐसा नहीं है यार.. मैं देख तो रही हूँ.. आप दोनों करते रहो जो भी करना हो.. मेरा मन करेगा तो मैं जुड़ जाऊँगी.. पर अभी नहीं.. " कविता ने ऊटपटाँग जवाब देकर खिसकना चाहा
वैशाली रसिक को छोड़कर कविता के करीब आई.. उसके नंगे स्तनों के बीच कविता का चेहरा रगड़कर उसे चूम लिया और बोली "मादरचोद.. नखरे मत कर.. चल चुपचाप.. !!" कहते हुए वो कविता को घसीटकर रसिक के पास ले आई और उसे कंधों से दबाकर घुटनों के बल नीचे बीठा दिया.. और खुद भी साथ बैठ गई..
रसिक अब पैर चौड़े कर अपने हाथ को पीछे ले जाकर विश्राम की पोजीशन मे खड़ा हो गया.. कविता और वैशाली दोनों के चेहरों के बीच उसका तगड़ा लंड सेंडविच होने के लिए तैयार था.. पर कविता उसे हाथ लगाने से झिझक रही थी.. वैशाली ने जबरन कविता के दोनों हाथों को पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और कविता उन्हें मसलने लगी.. वैशाली की निप्पल एकदम कडक बेर जैसी हो गई थी.. अपनी पहली उंगली और अंगूठे के बीच उस सख्त निप्पल को दबाकर खींचते हुए उसने पहली बार वैशाली के होंठों के करीब आना चाहा.. धीरे धीरे माहोल मे ढल रही कविता को देखकर वैशाली ने दोगुने उत्साह से अपने होंठ उसके होंठों पर रख दीये.. कविता वैशाली के होंठों को चूसने लगी.. अपनी जीभ उसकी जीभ से मिलाकर उसका स्वाद चखने लगी..
कविता इस लिप किस मे बेतहाशा खो चुकी थी.. तभी वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से रसिक का लँड दोनों के मुंह के बीच रख दिया.. लंड इतना कडक था की दोनों के होंठों को चीरकर आरपार निकल गया.. इतना कामुक द्रश्य था.. की कविता ने पहली बार सामने से रसिक के सुपाड़े को पकड़ लिया.. कविता के स्पर्श को पहचानकर रसिक बेहद खुश हो गया.. उसका सख्त तगड़ा लंड कविता नाम की मोरनी को रिझाने के लिए नृत्य करने लगा.. वैशाली ने उस लंड को थोड़ी देर तक चूसा और फिर कविता को देते हुए कहा "ले, अब तू चूस.. !!"
कविता ने मुंह फेर लिया "मुझे नहीं चूसना है.. !!"
वैशाली: "अब नखरे छोड़ भी दे.. !!"
कविता: "मुझे फोर्स मत कर वैशाली.. तुझे जो करना हो कर.. चूसना हो तो चूस.. आगे पीछे जहां भी लेना हो ले.. तुझे कहाँ रोक रही हूँ मैं??"
वैशाली अपना आपा खो बैठी "भेनचोद.. इतना मस्त लोडा मिला है मजे करने को.. और इस महारानी के नखरे ही खतम नहीं हो रहे है.. चल.. अब इसे चूस.. वरना तुझे उल्टा सुलाकर तेरी गांड मे दे दूँगी रसिक का लंड.. !!" कविता के मुंह मे रसिक का लंड जबरदस्ती डालकर ही चैन लिया वैशाली ने
"ओह्ह यस बेबी.. सक इट.. !!" वैशाली कविता को उकसाने लगी
कविता को शुरू शुरू मे.. बड़ा अटपटा सा लगा.. पर वो खुद भी इतनी उत्तेजित थी की जो आदमी उसे देखकर ही पसंद नहीं था.. उसका लंड चूस रही थी.. थोड़ी देर के बाद वैशाली ने कविता को धकेल दिया और खुद चूसने लगी..
काफी देर तक लंड की चुसाई के बाद वैशाली ने लंड छोड़ा.. फिर कविता को खटिया पर लेटाकर रसिक को उसकी चूत चाटने का इशारा किया.. रसिक बावरा हो गया.. और अपनी पसंदीदा चूत पर टूट पड़ने के लिए तैयार हो गया..
कविता की चूत पर रसिक की जीभ फिरते ही वो सिहर उठी.. सातवे आसमान पर उड़ने लगी कविता.. उसकी निप्पलें टाइट हो गई.. और शुरुआत मे जांघें दबाकर रखने वाली कविता ने खुद ही अपनी टांगें फैलाते हुए रसिक को चाटने मे आसानी कर दी..
पैर चौड़े होते ही कविता की नाजुक चूत के पंखुड़ियों जैसे होंठ खुल गए.. उसकी लाल क्लिटोरिस और छोटा सा छेद देखकर रसिक समझ गया की वो उसका लंड अंदर नहीं ले पाएगी..
कविता की लाल क्लिटोरिस को होंठों के बीच दबाकर रसिक ने जब चूसा... तब उत्तेजित होकर कविता अपनी गांड उछालकर गोल गोल घुमाते हुए ऊपर नीचे करने लगी.. आह्ह आह्ह आह्ह.. की आवाज़ें रसिक के खेत मे गूंजने लगी.. कविता की चूत चाट रहे रसिक के लंड को वैशाली बड़े ही प्यार से देख रही थी.. वो उसके लंड से कभी अपने गालों को रगड़ती तो कभी दो स्तनों के बीच उसे दबा देती..
"भाभी.. आप अपनी खोलकर मेरे मुंह पर बैठ जाओ.. मज़ा आएगा.. मुझे उस तरह चाटना बहोत अच्छा लगता है" पतली सी कविता के बदन को खिलौने की तरह उठाकर खड़ा कर दिया रसिक ने.. और खुद खटिया पर लेट गया.. कविता के गोरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए उसे अपने मुंह पर बीठा दिया रसिक ने..
कविता की कोमल चूत के वर्टिकल होंठों को चाटते हुए अंदर घुसाने का सुराख ढूंढ रही थी रसिक की जीभ.. !! कविता को तो जैसे बिन मांगे ही स्वर्ग मिल गया.. !! एक साल से ऊपर हो गया किसी मर्द ने उसकी चूत चाटे हुए.. महीने मे एक बार पीयूष मुश्किल से उसे चोदता था.. चूत चाटने का तो कोई सवाल ही नहीं था.. रसिक के प्रति उसके मन मे जो घृणा थी.. वो उत्तेजना की गर्मी से भांप बनकर उड़ गई.. !! आँखें बंद कर वो रसिक के मुंह पर सवारी कर अपनी चूत को आगे पीछे रगड़ रही थी.. ऐसा मौका दिलाने के लिए वो मन ही मन वैशाली का आभार प्रकट करने लगी.. अगर वैशाली ने इतनी हिम्मत न की होती.. तो ऐसा आनंद उसे कभी नहीं मिलता..!! लंड तो लंड.. रसिक की तो जीभ भी कितनी कडक थी.. चूत की अंदरूनी परतों को कुरेद रही थी.. माय गॉड.. इतना सख्त तो आज तक पीयूष का कभी नहीं हुआ.. यह आदमी वाकई असुर योनि का लगता है.. इसकी जीभ तो लंड से भी ज्यादा खतरनाक है..
कविता का शरीर अकड़ने लगा. और उसने अपनी चूत की मांसपेशियों को जकड़ लिया.. रसिक की जीभ और तीव्रता से कविता की चूत मे जितना अंदर जा सकती थी.. घुस गई.. !! दोनों तरफ आनंद की लहरें उठ रही थी.. दोनों हाथ ऊपर कर रसिक ने कविता के नाजुक स्तनों को पकड़ लिया और दबाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत मे नचाने लगा..
कविता ने दोनों हाथ से रसिक का सर पकड़ लिया और अपनी चूत को ताकत के साथ उसकी जीभ पर दबाते हुए अपने शरीर को तंग कर दिया.. दूसरे ही पल.. रसिक का लोडा चूस रही वैशाली के मुंह मे.. गाढ़े लस्सेदार वीर्य की पिचकारी छूटी.. वैशाली इस प्रहार के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. वह उत्तेजित तो थी पर वीर्य को मुंह मे लेने की उसकी तैयारी नहीं थी.. उसने तुरंत लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. वीर्य थूक दिया और छी छी करते हुए खाँसने लगी..
रसिक के चेहरे से उतरकर खटिया के कोने पर बैठ गई.. वैशाली के हाल पर हँसते हुए उसने रसिक के लंड की तरफ देखा.. बाप रे.. !! वैशाली की लार और वीर्य से तरबतर लोडा, हर सेकंड पर एक झटका मार रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. !! वैशाली और कविता दोनों की नजर उस आसुरी लंड पर चिपक गई थी.. कविता ऐसे देख रही थी जैसी किसी दुर्लभ प्रजाति के प्राणी को देख रही हो.. और वैशाली थोड़ी सी नाराजगी से रसिक की तरफ देख रही थी
थोड़ी देर के बाद सब से पहले कविता उठी और कपड़े पहनने लगी..
"अरे भाभी.. अभी से कपड़े पहनने लगी आप? अभी तो सिर्फ शुरुआत हुई है.. " रसिक खड़ा हो गया और कविता के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों मे जकड़कर स्तनों को दबाने लगा.. इस बार कविता को रसिक के प्रति कोई घृणा नहीं हो रही थी.. पर फिर भी रसिक को अपने शरीर से दूर धकेलते हुए कहा "मुझे ठंड लग रही है.. जरूरत पड़ी तो फिर से उतार दूँगी.. अभी पहन लेने दो मुझे.. और पहले उस रंडी की चूत चोदकर ढीली कर दो.. कब से मचल रही है चुदवाने के लिए" कविता अब बेझिझक होकर बोलने लगी थी
वैशाली खुश होकर बोली "अरे वाह.. अब तो तू भी एकदम खुल गई कविता.. !!"
रसिक: "जब कपड़े ही उतर चुके हो.. फिर किस बात की झिझक.. !! क्यों सही कहा ना भाभी.. !! आप को ठंड लग रही है ना.. रुकिए, मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाता हूँ" रसिक नंगे बदन ही वो कमरे मे गया.. उसका झूलता हुआ लंड और काले चूतड़ देखकर.. कविता और वैशाली एक दूसरे के सामने देखकर हंसने लगे..
रसिक चाय बना रहा था उस दौरान दोनों यहाँ से निकलने के समय के बारे मे बात करने लगी
कविता: "अभी साढ़े दस बजे है.. साढ़े ग्यारह बजे तो निकल जाएंगे"
वैशाली: "अरे यार.. एक बजे भी निकले तो क्या दिक्कत है?? घर पर कोई पूछने वाला तो है नहीं.. !!"
तभी चीमटे से एल्युमिनियम की पतीली पकड़कर रसिक आया और बोला "आज की रात आपको यहीं रहना है.. जाने की बात मत कीजिए.. मेरा मन भर जाएगा उसके बाद ही आप लोगों को जाने दूंगा"
प्लास्टिक के तीन कप मे रसिक ने चाय निकाली.. और तीनों पीने लगे.. कविता कपड़े पहन कर बैठी थी पर रसिक और वैशाली अभी भी सम्पूर्ण नग्न थे..
चाय पीने से शरीर गरम हुआ.. और ऑर्गजम की सुस्ती चली गई.. रसिक अब खटिया पर बैठ गया और कविता तथा वैशाली दोनों को अपनी एक एक जांघ पर बीठा दिया.. और फिर उनकी काँखों के नीचे से हाथ डालकर दोनों को स्तनों को दबाते हुए बोला "भाभी, आपको नंगा देखने की मेरी इच्छा आज पूरी हो गई.. अब एक बार आपको जीन्स और टी-शर्ट मे देखने की इच्छा है.. हो सके तो कभी वो इच्छा भी पूरी कर देना मेरी.. शहर की जवान लड़कियों को ऐसे फेशनेबल कपड़ों मे एक्टिवा पर जाते हुए देखता हूँ तब इतना मन करता है की उन्हें पकड़कर दबोच लूँ.. और सारे कपड़े उतरवाकर खड़े खड़े चोद दूँ.. !!"
वैशाली: "इसमें कौन सी बड़ी बात है.. तुम्हारी यह इच्छा तो मैं पूरी कर दूँगी, रसिक.. !!"
रसिक: "नहीं.. मुझे तो भाभी को ऐसे कपड़ों मे देखना है"
कविता: "मैं तो यहाँ से चली जाऊँगी.. तो वो इच्छा तो पूरी होने से रही.. हाँ कभी मेरे शहर आओ तो वैसे कपड़ों मे जरूर देखने मिलूँगी तुम्हें.. !!"
रसिक: "आप जब और जहां कहो.. मैं आ जाऊंगा भाभी"
वैशाली रसिक के आधे-मुरझाए लंड से खेलते हुए बोली "कविता, ये रसिक ही तेरा असली आशिक है.. मौका मिले तो उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करना.. !!"
वैशाली के हाथों के जादू से रसिक का लंड फिर से खड़ा हो गया.. उसका विकराल रूप देखकर कविता फिर से घबरा गई "देख तो सही वैशाली.. इसके लंड की इच्छा पूरी करने मे मेरी गुलाबी कोमल चूत की धज्जियां उड़ जाएगी.. !!"
रसिक: "आपको इतना डर हो तो मैं वादा करता हूँ.. के कभी अंदर डालने के लिए मजबूर नहीं करूंगा आपको.. मुझे बस अपनी चूत पर लंड रगड़ने देगी तो भी मेरा निकल जाएगा.. !!"
कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
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Mast updateसुबह साढ़े पाँच बजे... डोरबेल बजते ही.. शीला से पहले कविता उठकर दरवाजे की तरफ गई.. वैसे भी, बिस्तर बदल जाने पर उसे ठीक से नींद नहीं आ रही थी.. डोरबेल की आवाज सुनकर शीला ने भी बेडरूम का दरवाजा खोला था पर कविता को दूध लेने जाते देख... वो वापिस मदन की बाहों मे जाकर सो गई..
कविता और रसिक की एक और बार मुलाकात हुई.. पर अलग परिस्थिति और वातावरण मे..!! बाहर कड़ाके की ठंड थी..!!
रसिक कविता को देखकर चकित हो गया..
रसिक: "अरे भाभी, आज आप यहाँ आ गई?"
कविता: "उस घर मे मच्छर बहुत परेशान कर रहे थे इसलिए यहाँ वैशाली के पास सोने आ गई.. "
पतीला देते वक्त रसिक के हाथ का हल्का सा स्पर्श क्या हो गया.. कविता ऐसे सहम गई जैसे उसका लोडा छु गया हो..
कविता ने एक नजर रसिक पर डाली.. दोनों की नजरें एक पल के लिए मिली.. पतिले मे दूध डालते हुए रसिक की नजर कविता के स्तनों पर चिपकी हुई थी.. वो ये नाप रहा था की कविता के स्तन पहले जैसे ही है या कोई तबदीली हुई है.. !!
अपनी छातियों को तांक रहे रसिक को देखकर कविता को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें.. !! सोच रही थी.. ये रसिक ने तो आज सारी हदें पार ही कर दी.. कैसे बेशरमों की तरह मेरे बूब्स को देख रहा है साला.. !!
कविता: "क्या कर रहे हो रसिक? कब तक ऐसे देखते रहोगे?? दूध पतिले से बाहर गिर रहा है"
रसिक: "दूध गया तेल लेने भाभी.. आज तक ऐसा कभी नही देखा... और वैसे, आप कहाँ पराये हो.. ?? थोड़ा सा ज्यादा दूध चला भी गया तो कोई हर्ज नहीं"
कविता: "हम्म.. वैसे भी इस घर में.. तुम्हें इस तरह देखने की आदत सी हो गई है.. शीला भाभी के साथ बड़ी अच्छी पटती है तुम्हारी"
रसिक: "मुझे तो देखने से ज्यादा करने की आदत है.. वैसे शीला भाभी कहाँ है? वो होती तो इतने सवाल जवाब नहीं करने पड़ते मुझे"
कविता: "सवाल जवाब की जगह क्या करते मुझे सब पता है.. मैंने तो अपनी आँखों से देखा है कई बार "
रसिक: "फिर भी आप तो कभी पिघले नहीं"
कविता: "ऐसी जरूरत ही नहीं पड़ी.. उनके तो पति परदेस गए थे इसलिए उन्हें तुम्हारी जरूरत पड़ती थी"
रसिक: "लेकिन आज तो आप को जरूरत होगी ना.. पति परदेस हो या दूसरे शहर.. बात तो एक ही है.. और कितना तड़पाओगी भाभी? हर बार हाथ मे आकर रेत की तरह फिसल जाती हो.. कम से कम आज तो मुझ गरीब पर कृपा कर दीजिए"
कविता: "तू दूध दे और चलता बन.. मुझे कोई कृपा नहीं करनी तुझ पर"
रसिक: "अच्छा.. !! फिर उस रात बेहोश होने का नाटक कर क्यों पड़ी रही थी?? मेरा लंड देखने के लिए?? उस दिन अगर शीला भाभी टपक नहीं पड़ी होती तो तुम्हें तभी रगड़ दिया होता.. मुझे तो यकीन था की तुम सामने से अपनी सास को बोलकर मुझे बुलाओगी.. " बड़ी सफाई से रसिक "आप" से "तुम" पर आ गया
सुनकर कविता चोंक उठी.. इस कमीने को पता था की मैं बेहोशी का नाटक कर रही थी.. !!
बेखबर होने का नाटक करते हुए कविता ने कहा "मुझे उस बारे मे कुछ नहीं पता.. तू अब जा यहाँ से.. वरना भाभी जाग जाएगी"
रसिक ने आखिर हिम्मत कर के कविता के स्तनों पर हाथ रख दिया और बोला "ओह्ह भाभी.. बहुत हुआ.. और मत तड़पाइए"
रसिक के हाथों से स्तन दबते ही कविता की आँखें बंद हो गई.. उसका पूरा शरीर उस खुरदरे स्पर्श से कांपने लगा.. वो चाहती थी की रसिक को रोके पर जैसे उसका अपने आप पर काबू ही नहीं था.. रसिक का कसरती हाथ उसके नाजुक बबलों को दबा रहा था तभी वैशाली आँखें मलते हुए बाहर निकली.. रसिक को कविता के स्तनों को दबाते हुए देखकर वो स्तब्ध हो गई
वैशाली को देखते ही रसिक ने हाथ हटा लिया.. दूध का केन उठाकर वो खड़ा हो ही रहा था की तब तक वैशाली उन दोनों के करीब पहुँच गई
वैशाली की नजर रसिक के पाजामे के अंदर उभार बनाकर खड़े लंड पर थी.. उभार का साइज़ देखकर उसे कविता के वर्णन पर यकीन हो गया
रसिक: "वैशाली बहन.. कैसे हो आप?"
वैशाली ने मुसकुराते हुए कहा "मैं ठीक हूँ.. लेकिन आप कैसे है वो तो मैंने अभी देख ही लिया.. क्या बात है.. !! आप और कविता अभी क्या कर रहे थे??"
रसिक ने पहली बार वैशाली को ध्यान से देखा.. वैसे आज से पहले उसने कभी वैशाली को इतने करीब से देखा ही नहीं था.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गई.. सांसें ऊपर नीचे होने लगी.. रसिक कभी कविता के अमरूद जैसे स्तनों को देखता तो कभी वैशाली के पके हुए नारियल जैसे मदमस्त बबलों को देखता..
वैशाली और कविता दोनों उसका चेहरा देखकर समझ गए की वो क्या देख रहा था.. कविता किचन मे दूध का पतीला रखने चली गई..
रसिक वैशाली के उन्नत बबलों को भूखी नज़रों से ताड़ रहा था
वैशाली: "ऐसे बेवकूफों की तरह क्या देख रहा है.. !! जैसे कविता के दबा रहा था वैसे मेरे भी दबा.. !!" रसिक का हाथ खींचकर अपने स्तनों पर रखते हुए वह बोली... बिल्कुल अपनी माँ की तरह बेवाक थी वैशाली.. !!
रसिक के तो भाग्य खुल गए.. उसका हाल ऐसा था जैसे बंदर को भांग पीलाकर सीढ़ियाँ दे दी हो चढ़ने के लिए.. !! रसिक ने दूध का केन नीचे रखा और वैशाली को अपनी बाहों मे जकड़ लिया.. जनवरी की जबरदस्त ठंड भरे माहोल मे रसिक के गरमागरम स्पर्श से वैशाली सिहर उठी.. वैसे भी वो कई दिनों से किसी मजबूत पुरुष के स्पर्श के लिए मचल रही थी..
रसिक के बदन से.. दूध, गोबर और पसीने की मिश्र गंध आ रही थी.. पता नहीं क्यों पर इस गंध ने वैशाली की वासना को और तीव्र कर द्या.. उसने रसिक को अपनी बाहों मे भरते हुए उसकी पीठ को अपने नाखूनों से खरोंच दिया.. !! रसिक के मजबूत कसरती शरीर को दोनों हाथों मे भरते हुए वैशाली को ताज्जुब हो रहा था की कितना विशाल शरीर था उसका.. !! दोनों हाथों को घेरने के बावजूद भी वो उसके पूरे शरीर को गिरफ्त मे नहीं ले पा रही थी..!!
पर जिस क्रूरता से रसिक ने अपनी चौड़ी छाती को उसके स्तनों पर दबाकर रखा हुआ था.. वैशाली को मज़ा ही आ गया.. !! वो ऐसे ही किसी मर्द के हाथों रगड़े जाना चाहती थी.. ऐसे ही खुरदरे जिस्म से घर्षण करना चाहती थी..
वैशाली अपने पूर्व पति संजय से जबरदस्त नफरत करती थी.. पर सेक्स के मामले मे वो उसे सौ मे से सौ अंक देने को तैयार थी.. संजय सेक्स की कला मे ऐसा माहिर था की उससे चुदकर वैशाली का पूरा शरीर जैसे खाली सा हो जाता था.. एकदम हलकापन महसूस होता था.. दिनों तक उस जबरदस्त पलंगतोड़ संभोग को याद करते हुए उसकी चूत मे झटके लगते रहते थे.. संजय से मानसिक तौर पर दूर होने के काफी समय बाद वो उससे शारीरिक तौर पर दूर हुई थी.. फिर भी हर एक-दो हफ्ते मे.. संजय जब उसके साथ जबरदस्ती संभोग करता तब ना चाहते हुए वैशाली को शरीक होना पड़ता.. मन भले ही उसका ना हो.. पर उसकी चूत अपने गिलेपन का सबूत तुरंत ही दे देती थी.. !! और उसकी चूत का यह हाल देखकर संजय समझ जाता था की वैशाली का दिल भले ही उससे नफरत करता हो.. पर उसकी चूत अब भी उससे बेहद प्यार करती थी.. !! हालांकि वैशाली संभोग के दौरान पूरा ध्यान रखती की उसके मुंह से जरा सी भी आह्ह-ओह्ह या कोई सिसकी न निकल जाए.. क्योंकि वो संजय को जरा सा भी जताना नहीं चाहती थी की चुदने मे उसे मज़ा आ रहा है.. !! शरीर की हवस और भूख एक तरफ थी और दूसरी और संजय के साथ का उसका रिश्ता दूसरी तरफ.. जब जब संजय वैशाली से सेक्स की मांग करता तब वैशाली को हमेशा यह प्रश्न मन मे आता.. साले काम धंधा कुछ करता नहीं है.. ढेले भर की कमाई नहीं.. और लंड इसका चौबीसों घंटे खड़ा ही रहता है.. !!
पीयूष से तो वो कई बार चुद चुकी थी.. और अपने कॉलेज के दोस्त हिम्मत से भी एक बार सेक्स किया था.. पिंटू को देखकर ही अंदाजा लग रहा था की वो बिस्तर पर भी उतना ही कोमल और मुलायम तरीके से पेश आएगा.. कोई खास आक्रामकता लग नहीं रही थी उसके स्वभाव मे.. जो इस वक्त रसिक के बदन से टपक रही थी..
कविता रसोई की खिड़की से छुपकर वैशाली के शरीर को रसिक के भीमकाय जिस्म से चिपका हुआ देखकर डर रही थी.. वैशाली के हावभाव देखकर कविता को ताज्जुब हो रहा था.. !! वैशाली भी रसिक की ग़ुलाम हो गई थी.. !! जिस तरह वो उससे लिपट रही थी.. अपने स्तनों को रसिक की छाती पर रगड़ रही थी.. जिस तरह अपने नाखूनों से रसिक की पीठ कुरेद रही थी.. यह सब देखकर कविता के मन मे बार बार वही पुराना सवाल उठ रहा था.. आखिर इस अनपढ़ गंवार.. राक्षस जैसे रसिक में ऐसा तो भला क्या था?? की जवान से लेकर बूढ़ी.. तमाम औरतें उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाती है.. !!
कविता किचन से सरककर धीरे से रसिक और वैशाली के पास आई.. और धीं आवाज मे बोली "क्या कर रही है वैशाली?? भाभी या मदन भैया जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी"
सुनते ही वैशाली ने तुरंत रसिक को छोड़ दिया.. पर छोड़ने से पहले उसने रसिक की बालों भरी छाती को चूमकर कहा "यार.. रसिक.. गजब का है तू.. अब तो मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं हूँ.. !!" कहते हुए उसने रसिक का लंड पकड़ने की नाकाम कोशिश की..
सामने वाले घर का दरवाजा खुलने की आवाज आई.. रसिक संभल गया.. उसने कविता के स्तनों को एक आखिरी बार हल्के से दबाते हुए अपना दूध का केन उठाया.. कविता ने कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दी पर कोई विरोध भी नहीं किया.. !! वो अन्य कोई हावभाव देती इससे पहले रसिक ने नजदीक आकर उससे कहा "कल रात फोन क्यों नहीं उठाया?? इतनी ज़ोरों की ठंड मे कितना परेशान हुआ था कुछ पता है तुम्हें?? एक बार फोन कर बुलाने के बाद ऐसा करना ठीक नहीं है"
कविता: "वो सब तुम जानों और वैशाली जाने.. फोन उसने किया था, मैंने नहीं.. !! तुम अभी निकलो यहाँ से.. बाकी बातें फोन पर हो जाएगी.. देख सामने वाले घर की भाभी बाहर खड़ी है.. " वैशाली का हाथ पकड़कर उसे घर के अंदर खींचकर दरवाजा बंद कर दिया कविता ने..
कविता और वैशाली दोनों वापिस बेडरूम मे आ गए.. वैशाली अब जबरदस्त उत्तेजित हो चुकी थी.. लेकिन वो कोई हरकत करती उससे पहले कविता ने ही उसे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और अपना गाउन उठाकर.. बिना पेन्टी की चूत को वैशाली के मुंह पर रख दिया..
बिना किसी आनाकानी के वैशाली ने अपनी जीभ कविता की चूत मे डाल दी और चाटने लगी.. आँखें बंद कर अपने स्तनों को खुद ही मसलते हुए कविता अपनी मुनिया को वैशाली की जीभ पर रगड़ रही थी.. केवल दो मिनट मे ही कविता की चूत का शहद निकल गया जिसे वैशाली ने चटकारे लेते हुए चाट लिया.. !!
इतनी जल्दी स्खलित होने के पीछे की वजह वैशाली का चाटना नहीं पर रसिक के दबाने से उठी उत्तेजना थी.. वैशाली ने महसूस किया की आज कविता जबरदस्त उत्तेजित थी.. उसे इतना आक्रामक होते हुए पहले कभी नहीं देखा था..
तकिये के नीचे से रबर का डिल्डो निकालकर कविता ने वैशाली की चूत मे पेल दिया.. और पाँच मिनट तक लगातार घर्षण होने के बाद.. वैशाली भी थरथराते हुए झड़ गई..
उस दौरान शीला ने एक बार.. और मदन ने दो बार उनके बेडरूम का दरवाजा खटखटाया.. दोनों को जगाने के लिए.. पर यह काम ऐसा होता है की जब तक निपट न जाए.. दिमाग किसी और जगह स्थिर ही नहीं होता.. !!
दोपहर के बाद, शीला और मदन.. रेणुका-राजेश के घर जाने वाले थे.. पूरी रात पार्टनर बदल कर चुदाई करने का प्रोग्राम था उनका.. वैशाली और कविता को संभालकर रहने की सलाह देकर दोनों निकल गए.. !!
शीला-मदन के जाते ही.. वैशाली और कविता, दोनों एक दूसरे के सामने सूचक अर्थ से देखने लगी.. दोनों की आँखों मे एक ही प्रश्न था.. जिसका जवाब जरा भी कठिन नहीं था.. सुबह सुबह रसिक ने अपनी हरकतों से दोनों को ऐसे गीला कर दिया था.. की अब दोनों की बस फिसलने की ही देरी थी..
रात का खाना खाने के बाद वैशाली ने रसिक को फोन किया..
रसिक: "हाँ बोलीये" रसिक ने पिछली रात नंबर सेव कर लिया था
वैशाली: "कहाँ हो?"
रसिक: "मैं तो घर पर ही हूँ.. कहिए क्या काम था?"
वैशाली: "कविता को तुम्हारा काम था.. कितने बजे आओगे?"
रसिक: "कल जिस समय आने वाला था उस टाइम पर आ सकता हूँ.. अगर आप फोन उठायेंगे तो" कल की रात की घटना का ताना मारते हुए रसिक ने कहा
वैशाली: "अरे कल तो एक प्रॉब्लेम हो गया था.. रोज रोज थोड़े ही ऐसा होगा"
रसिक: "ठीक है.. बताइए, कितने बजे आऊँ??"
वैशाली: "इतनी ठंड है इसलिए दस बजे तो सारे घर बंद हो ही जाते है.. तुम एक काम करो.. ग्यारह बजे तक आ जाओ"
रसिक: "अरे.. मुझे अभी याद आया.. आज तो खेत मे सिंचाई करने जाना है.. पूरी रात वहीं रहना पड़ेगा.. आज पानी नहीं दिया तो फसल सूख जाएगी"
वैशाली निराश हो गई सुनकर.. सारा प्लैनिंग चॉपट हो जाएगा.. !! कल तो मम्मी-पापा लौट आएंगे.. मौका केवल आज ही था
वैशाली ने रसिक को ललचाने के लिए कहा "देखो रसिक.. सिर्फ आज का ही दिन है हमारे पास.. कल तो कविता वापिस चली जाएगी.. और फिर लौट के नहीं आने वाली.. तुम्हें वो कितनी पसंद है मैं जानती हूँ.. !!"
रसिक: "वो तो है.. पर मैं आज रात नहीं आ सकता.. कहो तो कल दिन के समय आ सकता हूँ"
वैशाली: "पागल हो गए हो क्या.. !!! दिन मे तो कोई चांस ही नहीं है.. रसिक, प्लीज यार.. ऐसा क्यों करते हो?? एक बार आ जाओ ना.. थोड़ी देर के लिए ही सही.. !!" वैशाली ने लगभग विनती करते हुए कहा
रसिक: "आप एक काम क्यों नहीं करती.. !! यहाँ मेरे खेत पर ही आ जाओ.. एकदम सलामत है.. रात को यहाँ कोई नहीं आता और कोई जोखिम भी नहीं है"
वैशाली: "कहाँ है तुम्हारा खेत??"
रसिक: "हाइवे पर.. शहर से बाहर निकलकर आप लगभग तीन किलोमीटर आगे आओगे.. तब चौराहे से दाई तरफ मुड़ना है.. फिर एक छोटी सी पगडंडी जैसा रास्ता आएगा.. वहाँ से थोड़ा सा आगे जाओगे तो मेरे खेत पर पहुँच जाओगे.. वहाँ तक पहुंचकर मुझे फोन करना.. मैं लेने आ जाऊंगा"
वैशाली खामोश हो गई.. इतनी रात को.. हाइवे के किसी अनजान खेत पर.. इतनी ठंड मे... और वो भी रसिक के साथ??
वैशाली: "मैं थोड़ी देर बाद फोन करती हूँ.. और फिर बताती हूँ"
इतना कहकर वैशाली ने फोन काट दिया.. और परेशान नज़रों से कविता के सामने देखा
वैशाली: "वो तो यहाँ आने से मना कर रहा है.. केह रहा था की खेत मे पानी देने जाना है.. इसलिए हमें खेत पर बुला रहा है.. बता रहा था की उसका खेत बिल्कुल ही सैफ है.. कोई रिस्क नहीं है"
कविता: "मतलब तू उसके काले लोडे को लेने के लिए.. इतनी रात गए उसके खेत जाएगी??"
वैशाली चुप हो गई..
कविता: "और वहाँ कुछ उंच-नीच हो गई तो??"
वैशाली: "तू यार नेगेटिव बात मत कर.. कुछ नहीं होगा.. अभी तो नौ भी नहीं बजे है.. ज्यादा दूर नहीं है.. पंद्रह-बीस मिनट मे तो पहुँच जाएंगे.. मूवी देखने जाते है तब इतनी रात को घर से बाहर निकलते ही है ना.. कोई बड़ी बात नहीं है.. तेरी कार तो है ही.. अगर तू साथ चलें तो हम अभी निकलकर वहाँ पहुँच जाएंगे.. और अपना काम निपटाकर वहाँ से ग्यारह बजे तक वापिस आ जाएंगे"
कविता: "अरे पागल.. कार अंदर तक थोड़ी न जाएगी.. !! उसने कहा ना की सड़क के अंदर आते ही छोटी सी पगडंडी जैसा रास्ता है.. वहाँ तक कार कैसे लेकर जाएंगे??"
वैशाली: "अरे यार.. उसने कहा ही की मुझे फोन करना.. मैं लेने आऊँगा.. वही कोई रास्ता निकालेगा.. अब तू टाइम खोटी मत कर.. और चल"
कविता: "यार, किसी को पता चल गया तो?"
वैशाली: "किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. अब तू गाड़ी निकाल जल्दी और चल मेरे साथ"
कविता: "नहीं यार.. मुझे उस गंदे काले रसिक के साथ नहीं करवाना.. !!"
वैशाली: "अरे मेरी अम्मा.. तुझे ना करवाना हो तो कुछ मत करना.. पर मेरा बहुत मन है.. मुझ पर थोड़ी दया कर.. तुझे जिसके साथ जब मन हो तब करवा लेना.. ठीक है.. !! अब चल भी.. तुझे तेरे पिंटू की कसम है.. !!"
कविता का हाथ पकड़कर लगभग खींचते हुए वैशाली उसे ले गई..
वैशाली: "तू कार निकालकर बाहर रोड तक आ.. तब तक मैं ताला लगाकर आती हूँ"
कविता अब भी ठीक से फैसला नहीं कर पा रही थी.. पर वैशाली के दबाव के कारण वो गाड़ी बाहर निकालने लगी.. यू टर्न लेकर जब वो गाड़ी रोड पर लेकर आई तब वैशाली बाहर सड़क पर खड़ी हुई थी.. कड़ाके की ठंड थी.. पर जल्दबाजी मे स्वेटर या शॉल लेना भूल गए थे दोनों.. वैशाली गाड़ी मे बैठ गई और कविता गाड़ी चलाने लगी
वैशाली ने रसिक को फोन किया
वैशाली: "हैलो, रसिक... हम दोनों वहाँ आने के लिए निकल गए है.. कोई प्रॉब्लेम तो नहीं होगी ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा.. !!"
रसिक: "यहाँ दिन मे भी कोई नहीं आता.. तो इतनी सर्द रात मे कौन आएगा भला.. !! आप बिंदास आइए.. कुछ नहीं होगा"
वैशाली: "हम दोनों कविता की गाड़ी मे आ रहे है.. फिर कार कहाँ रखेंगे??"
रसिक: "उसकी चिंता आप मत कीजिए.. चौराहे से थोड़े अंदर तक तो गाड़ी आराम से आ सकती है.. फिर वहीं गाड़ी छोड़ देना.. मैं लेने आ जाऊंगा..वहीं नजदीक ही मेरा खेत है"
फोन स्पीकर पर था.. दस मिनट मे गाड़ी चौराहे से मुड़कर अंदर कच्चे रास्ते तक पहुँच गई.. !! पगडंडी नजर आते ही दोनों ने गाड़ी वहीं छोड़ दिया.. और उस रास्ते पर संभलते हुए आगे बढ़ने लगे..
सामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत.. !!
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