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Shandaarसामने ही एक बड़े खेत के कोने पर एक रूम बनी हुई थी.. शायद वही था रसिक का खेत..!!
कविता: "तू आगे आगे चल.. मुझे तो डर लग रहा है यार.. साली, तुझे रसिक के लंड से चुदने की बड़ी भूख है.. और परेशान मुझे होना पड़ रहा है.. सच कहा है.. कोयले की दलाली करो तो हाथ काले होंगे ही.. कुछ हो गया तो तेरे साथ साथ मैं भी फंस जाऊँगी"
पगडंडी पर संभालकर पैर बढ़ाते हुए वैशाली ने कहा "कुछ नहीं होगा यार.. ऐसा सब सोचने की कोई जरूरत नहीं है.. हम मजे करने के लिए आए है.. जो होगा देखा जाएगा.. फालतू टेंशन करके दिमाग की बैंड मत बजा"
चारों तरफ पानी छिड़के हुए खेतों के कारण.. ठंड और ज्यादा लग रही थी.. दोनों सहेलियाँ ठंड के मारे कांपते हुए पतले से रस्ते पर आगे बढ़ रही थी.. आगे चल रही वैशाली के भारी नितंब.. उसके हर कदम पर मदहोशी से थिरकते हुए देख रही थी कविता.. और सोच रही थी.. अभी तो बड़ी मटक मटक कर चल रही है.. पर वापिस जाते वक्त तेरी चाल बदल न जाए तो मेरा नाम कविता नहीं.. !!
थोड़ा सा और आगे जाते ही वो दोनों उस कमरे के नजदीक आ गए.. एक बड़ा सा बल्ब लटकते हुए पीली रोशनी फेंक रहा था.. उसके उजाले मे उन्हों ने देखा.. पास ही एक खटिया पर रसिक बैठा हुआ था.. खटिया के बगल मे उसने लकड़ियाँ जलाई हुई थी और वो बैठे बैठे हाथ पैर सेंक रहा था..
उन दोनों रूप-सुंदरियों को अपनी तरफ आते हुए देख रसिक मन मे सोच रहा था.. साला क्या किस्मत है..!! जब मैं मिलने के लिए तरस रहा था तब कुछ जुगाड़ नहीं हो पाया.. और जब मैंने कोशिश ही छोड़ दी.. तब यह दोनों सामने से चलकर खेत तक पहुँच गई.. वो भी इतनी सर्दी मे.. !! सच ही कहा है.. ऊपर वाला देता है तब छप्पर फाड़कर नहीं.. आर.सी.सी. कोन्क्रीट से बनी सीलिंग फाड़कर भी देता है..!!! एक नहीं दो दो एक साथ..!! वैशाली के बारे मे तो मैंने सोचा भी नहीं था..!!
दोनों को देखकर रसिक ने अपना लंड खुजाकर एडजस्ट किया.. इतनी ठंड मे भी वो सिर्फ देसी जाँघिया पहनकर आग के पास बैठा था.. एक छोटी सी लकड़ी की मदद से वो जल रही लकड़ियों को ठीक से जला रहा था.. रसिक को अपना लंड एड़जस्ट करते हुए कविता ने देख लिया था
सिर्फ वैशाली ही सुने ऐसी धीमी आवाज मे उसने कहा "देख, वो साला तैयार ही बैठा है.. अन्डरवेर पहने हुए.. अपना लंड खुजा रहा है.. तू भी तैयार हो जा अब.. बहुत चूल थी ना तुझे उससे चुदवाने की.. !! अब अपनी फड़वाने के लिए तैयार हो जा.. !!"
रसिक: "आइए आइए भाभी.. खेत ढूँढने मे कोई तकलीफ तो नहीं हुई??"
जलती हुई लड़कियों के अलाव के पास खड़े रहकर.. कविता और वैशाली को ठंड से थोड़ी सी राहत मिली..
कविता: "हाँ मिल गया.. वैसे रास्ता सीधा ही था इसलिए ढूँढने मे कोई दिक्कत नहीं हुई" आसपास नजरें दौड़ाते हुए कविता ने कहा.. आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था.. एकदम सैफ जगह थी.. सब-सलामत महसूस होते ही कविता ने चैन की सांस ली.. !!
आग की एक तरफ कविता तो दूसरी तरफ वैशाली खड़ी थी.. बीच मे रसिक खटिया पर बैठा था.. आग की रोशनी मे उसका काला विकराल बदन चमक रहा था.. उस कसरती बदन का वैभव देखकर वैशाली की आँखें फटी की फटी रह गई.. अब तक पॉर्न फिल्मों मे जिन कल्लुओ को देखा था बिल्कुल वैसा ही शरीर था रसिक का.. काला गठीला बदन.. छाती पर ढेर सारे घुँघराले बाल.. आग मे तांबे की तरह तप रहा शरीर.. चौड़े मजबूत कंधे.. बड़े बड़े डोले.. वैशाली के साथ साथ कविता की जांघों के बीच भी गर्माहट होने लगी.. उसे देखकर कविता सोच रही थी.. रोज तो एकदम गंदा बदबूदार होता है रसिक.. आज तो साफ सुथरा लग रहा है.. शायद हम आने वाले थे इसलिए अभी नहाया होगा वो.. !!
रसिक: "आप दोनों खड़े क्यों हो?? बैठिए यहाँ" कहते हुए रसिक खटिया से उठकर कविता की ओर आगे बढ़ा.. कविता घबराकर तुरंत खटिया पर बैठ गई.. और उसके पीछे पीछे वैशाली भी जा बैठी.. रसिक उनके सामने पहाड़ की तरह खड़ा था.. लकड़ी की आग और रसिक के बदन को देखकर दोनों की ठंडी गायब हो चुकी थी.. इतनी ठंड मे भी कैसे वो सिर्फ जाँघिया पहने बैठा था उसका जवाब मिल गया दोनों को..!!
सफेद रंग के जांघिये से रसिक के लोडे का आकार दिख रहा था वैशाली को.. रसिक का ध्यान कविता की कमसिन जवानी पर था.. वो धीरे धीरे चलते हुए कविता के पास आकर खड़ा हो गया.. और बोला
रसिक: "आपको आज तीरछी नज़रों से नहीं देखना पड़ेगा.. शांति से मन भरकर देख लीजिए मेरा.. " सिर्फ एक कदम दूर खड़ा था रसिक.. उसका लंड ऐसा उभार बना रहा था.. की कविता चाहकर भी अपनी नजरें फेर नहीं पाई.. वो डर रही थी.. कहीं ये राक्षस उसे नोच न खाए.. कविता समझ गई की उस रात जब रसिक उसकी सास को चोद रहा था तब वो तीरछी नज़रों से हल्की सी आँखें खोलकर उसका लंड देख रही थी उसके बारे मे रसिक ने उसे ताना मारा था.. कविता ने रसिक के लंड से नजरें हटा ली..
रसिक अब वैशाली की ओर मुड़ा.. वैशाली अत्यंत रोमांचित होकर रसिक के तंबू को देख रही थी..
रसिक: "आह्ह वैशाली.. गजब की छातियाँ है तुम्हारी.. वाह.. !!" रसिक के मुख से कामुक उद्गार निकल गए
इतने करीब से रसिक का बम्बू देखकर वैशाली की पुच्ची मे गजब की चुनमुनी होने लगी.. वो रसिक के लंड को चड्डी के अंदर से निकालने के बेकरार थी पर पहल करने से डर रही थी
रसिक अब वैशाली की इतने करीब आ गया की उसके चेहरे और रसिक के लंड के बीच अब सिर्फ एक इंच की ही दूरी रह गई.. वैशाली ने घबराकर मुंह फेर लिया.. और लंड का उभरा हुआ हिस्सा.. वैशाली के गालों के डिम्पल पर जा टकराया..
रसिक अब फिर से कविता के पास आया.. और लंड को चड्डी के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी मे पकड़कर कविता को दिखाने लगा.. उस लंड का भव्य आकार देखकर कविता की पेन्टी गीली हो गई.. !!
रसिक अब कविता और वैशाली के बीच खटिया पर बैठ गया.. उसकी जांघें दोनों की जांघों को छूने लगी.. और दोनों को वह स्पर्श होते ही ४४० वॉल्ट का करंट सा लग गया..
कविता और वैशाली एक दूसरे की आँखों मे देखने लगी.. वैशाली ने एक शरारती मुस्कान देकर कविता को आँख मारते हुए नीचे देखने को कहा
रसिक के अन्डरवेर के साइड से.. खड़ा हुआ लंड.. बाहर झाँकने लगा था.. उसका लाल टोपा देखकर कविता कांपने लगी.. जैसे बिल के अंदर से सांप बाहर निकला हो.. ऐसा लग रहा था रसिक का लंड
दोनों के कंधों पर एक एक हाथ रखते हुए रसिक ने कहा "शर्माने की जरूरत नहीं है.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. आप दोनों खुलकर जो भी करना चाहो कर सकते हो"
फिर उसने कविता की ओर घूमकर कहा "भाभी, अब और कितना तड़पाओगी इसे?? अब तो महरबानी कर दो" कहते हुए कविता का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया उसने
कविता थरथर कांपने लगी.. उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ लोहे के गरम सरिये पर रख दिया हो.. वो हाथ खींचने गई पर रसिक ने राक्षसी ताकत से उसकी कलाई को पकड़ रखा था.. आखिर कविता ने अपनी मुठ्ठी मे उसका लंड पकड़ ही लिया.. !! अभी भी उसकी हथेली और लंड के बीच मे अन्डरवेर का आवरण था पर.. जैसे हिंग-जीरे के छोंक की खुशबू से खाने के स्वाद का पता लग जाता है.. वैसे ही लंड के आकार से उसकी ताकत और चोदने की क्षमता का अंदाजा लग रहा था..
वैशाली: "बाप रे.. गजब का है.. कितना मोटा है ये तो"
कविता ने वैशाली की ओर देखा.. वैशाली आँखें बंद कर अपने स्तनों का खुद ही मर्दन करते हुए मजे कर रही थी.. रसिक ने वैशाली का हाथ उसके स्तनों से खींचते ही वैशाली ने आँखें खोल दी
"अपने हाथों को क्यों तकलीफ दे रही हो..!! मैं हूँ ना..!! आप सिर्फ इसे संभालो.. मैं आपके दोनों बबलों को संभाल लूँगा" रसिक ने कहा
रसिक ने वैशाली का भी हाथ खींचा और कविता के हाथ के साथ साथ अपने लंड पर रख दिया.. अब कविता की शर्म भी थोड़ी घटने लगी.. वैशाली और कविता की हथेलियों के बीच रसिक का लोडा मचलने लगा..
वैशाली अब बेचैन हो रही थी.. बेहद उत्तेजित होकर उसने सिसकियाँ लेते हुए रसिक का लंड पकड़ दिया.. !!!
"ओ बाप रे.. !!" लंड का आकार और कद देखकर वैशाली के मुंह से निकल गया
वैशाली इतनी जोर से चीखी थी.. कविता आसपास देखने लगी.. कहीं किसी ने सुन तो नहीं लिया.. !!
रसिक ने कविता का सुंदर चेहरा ठुड्डी से पकड़कर अपनी ओर फेरते हुए कहा "कोई नहीं है भाभी.. आप घबराइए मत.. ओह्ह भाभी.. कितनी सुंदर हो आप.. एकदम गोरी गोरी.. इन गोरे गालों को चबा जाने का मन करता है मेरा"
सुनकर कविता शरमा गई.. उसका शरीर अब भी कांप रहा था.. उसका मन अभी भी यह सोच रहा था की वैशाली के दबाव मे आकर उसे यहाँ नहीं आना चाहिए था.. !!
वैशाली अब पूरी तरह बेशर्म होकर रसिक के लंड की चमड़ी उतारकर आगे पीछे करते हुए हिलाने लगी.. रसिक के लंड को महसूस करते हुए वह पॉर्न फिल्मों मे देखे अफ्रीकन मर्दों के लोडॉ को याद करने लगी.. रसिक ने कविता के टॉप पर से उसके स्तनों को दबा दिया.. कविता से अब इतनी अधिक उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. वो खड़ी हो गई और खटिया के साइड पर चली गई..
कविता: "रसिक, तुम्हें जो भी करना हो वो वैशाली के साथ करो.. मुझे कुछ नहीं करवाना"
रसिक: "भाभी, आप तो मुझे पहले से बहोत पसंद हो.. ऐसा क्यों कर रही हो?? बस एक बार मुझे मेरी इच्छा पूरी कर लेने दीजिए.. !! आपको एक बार नंगा देखने की बहोत इच्छा है मुझे.. आह्ह.. देखिए.. ये आपको देखकर कैसे खड़ा हो गया है.. !!"
वैशाली रसिक के मोटे लंड को दबाते हुए बोली "हाँ यार कविता.. गजब का टाइट हो गया है.. !!"
कविता: "वैशाली प्लीज.. डॉन्ट इनवॉल्व मी.. यू इन्जॉय विद हीम.. !!" उनकी अंग्रेजी रसिक के पल्ले नहीं पड़ी..
वैशाली: "ठीक है यार.. जैसी तेरी मर्जी"
फिर रसिक की ओर मुड़कर वैशाली ने कहा "ओह रसिक.. तुम मेरे कपड़े उतारो... मुझे नंगी कर दो" वैशाली ने अपनी बीभत्स मांग रखकर रसिक का ध्यान अपनी ओर खींचा
कविता के सामने देखते हुए रसिक ने वैशाली को अपनी जांघों पर सुला दिया.. वैशाली ओर बेचैन हो गई... उसका पतला सा टॉप ऊपर कर.. अपने हाथ बाहर निकालकर.. टॉप उतार दिया.. और कमर के ऊपर से नंगी हो गई.. !! उसके मदमस्त चुचे देखकर रसिक लार टपकाने लगा..
दोनों स्तनों को बेरहमी पूर्वक आंटे की तरह गूँदने लगा वो.. और फिर अपना एक हाथ उसने वैशाली की चूत वाले हिस्से पर रखकर दबाया.. वैशाली की चूत काफी मात्रा मे पानी छोड़ रही थी..
जैसे जैसे वैशाली की उत्तेजना बढ़ती गई वैसे वैसे उसकी हरकतें भी बढ़ने लगी.. रसिक की गोद मे उसने करवट लेकर अपना मुंह उसके लंड के करीब ले गई.. यह अवस्था चूसने के लिए आदर्श थी.. वैशाली अब पागलों की तरह उस मूसल लंड को चूमने लगी.. लंड को मूल से लेकर टोपे तक अपनी जीभ फेरते हुए उसने अपनी लार से लंड को गीला कर दिया.. अब तक आक्रामकता से वैशाली के बदन को रौंद रहा रसिक.. वैशाली के चाटने के कारण बेबस हो गया.. उसकी हरकतें धीमी पड़ने लगी.. और अब वैशाली आक्रामक होने लगी.. जैसे जैसे वो चूसती गई वैसे वैसे रसिक आनंद के महासागर मे गोते खाने लगा था..
अब तक जितनी भी ब्ल्यू-फिल्में देखकर ब्लो-जॉब की कला सीखी थी.. वह सारी उसने रसिक का लंड चूसने मे लगा दी थी.. वैशाली का यह स्वरूप देखकर कविता भी हतप्रभ हो गई थी.. वैशाली जिस तरह से लंड को मजे लेकर चूस रही थी.. वो देखकर कविता के लिए भी अपने आप को कंट्रोल मे रखना मुश्किल हो रहा था.. आखिर कविता खुद ही कपड़ों के ऊपर से अपनी चूत को दबाने लगी..
"ऐसे नहीं भाभी.. कपड़े उतार दीजिए ना.. !! आप कहोगे तो मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा.. पर एक बार आपका नंगा बदन देखने तो दीजिए.. !!" कविता को ऐसा करने मे कोई दिक्कत नहीं लगी.. जहां तक रसिक उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाता, उसे कोई प्रॉब्लेम नहीं थी.. और वैसे भी वो जिस हद तक गरम हो चुकी थी.. वह खुद भी कपड़े उतारना चाहती थी
एक के बाद एक.. कविता ने अपने सारे कपड़े उतार दीये.. और सर से पाँव तक नंगी होकर.. खटिया के कोने पर बैठ गई.. खटिया की खुरदरी रस्सी उसकी कोमल गांड पर चुभ रही थी.. उसका गोरा संगेमरमरी बदन आग मे तांबे की तरह चमक रहा था..
रसिक का लंड मुंह से बाहर निकालकर वैशाली ने कहा "यार कविता, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा.. चूत मे ना लेना हो तो ना सही.. एक बार चूसकर तो देख.. इतना मज़ा आ रहा है यार.. !!" बड़े ही कामुक अंदाज मे रसिक का गीला लंड पकड़कर हिलाते हुए वो बोली "एक बार देख तो सही.. !! घोड़े के लंड जैसा मोटा और तगड़ा है"
कविता ने जवाब नहीं दिया.. पर उसकी आँखों मे हवस का जबरदस्त खुमार देखते ही बंटा था..
वैशाली का सिर अपनी गोद से हटाकर खटिया पर टिकाकर रसिक खड़ा हो गया.. और अपनी अन्डरवेर उतार दी.. उसका विशाल लंड.. तगड़ा शरीर.. और काला रंग.. आग की रोशनी मे चमककर डरावना सा लग रहा था.. कविता ने सोचा की आदिकाल मे असुर ऐसे ही दिखते होंगे.. !! अब वैशाली भी खटिया से खड़ी हो गई.. और अपना लेगिंग और पेन्टी उतारकर साइड मे रख दिया.. और फिर रसिक की छाती के साथ अपने स्तनों को दबाते हुए उसे चूमने लगी.. नाग की तरह फुँकार रहे लंड को पकड़कर वो हिला भी रही थी..
पहली बार रसिक ने वैशाली के गुलाबी अधरों को चूम लिया.. इतनी लंबी और उत्तेजक किस थी की देखकर ही कविता पिघल गई.. उसकी सांसें भारी हो गई..
कविता की इस अवस्था को भांपकर रसिक ने कहा "भाभी.. आप ऐसे बैठे रहेगी तो कैसे मज़ा आएगा?? चोदने न दो तो कोई बात नहीं... एक बार चाटने तो दीजिए.. उसमें तो आपको ही मज़ा आएगा"
वैशाली ने रसिक का लंड हिलाते हुए कहा "हाँ यार.. चाटने तो दे.. मज़ा आएगा तुझे.. बेकार शरमा रही है तू.. इतना डेरिंग कर ही लिया है तो थोड़ा और सही.. अब यहाँ तक आकर तू बिना कुछ कीये वापिस चली जाएगी तो कैसे चलेगा.. !! सामने इतना मस्त लंड है और तू मुंह धोने जाने की बातें मत कर"
वैसे भी कविता मन ही मन पिघल रही थी.. ऊपर से रसिक और वैशाली के आग्रह ने उसके विरोध को ओर कमजोर किया
"ऐसा नहीं है यार.. मैं देख तो रही हूँ.. आप दोनों करते रहो जो भी करना हो.. मेरा मन करेगा तो मैं जुड़ जाऊँगी.. पर अभी नहीं.. " कविता ने ऊटपटाँग जवाब देकर खिसकना चाहा
वैशाली रसिक को छोड़कर कविता के करीब आई.. उसके नंगे स्तनों के बीच कविता का चेहरा रगड़कर उसे चूम लिया और बोली "मादरचोद.. नखरे मत कर.. चल चुपचाप.. !!" कहते हुए वो कविता को घसीटकर रसिक के पास ले आई और उसे कंधों से दबाकर घुटनों के बल नीचे बीठा दिया.. और खुद भी साथ बैठ गई..
रसिक अब पैर चौड़े कर अपने हाथ को पीछे ले जाकर विश्राम की पोजीशन मे खड़ा हो गया.. कविता और वैशाली दोनों के चेहरों के बीच उसका तगड़ा लंड सेंडविच होने के लिए तैयार था.. पर कविता उसे हाथ लगाने से झिझक रही थी.. वैशाली ने जबरन कविता के दोनों हाथों को पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और कविता उन्हें मसलने लगी.. वैशाली की निप्पल एकदम कडक बेर जैसी हो गई थी.. अपनी पहली उंगली और अंगूठे के बीच उस सख्त निप्पल को दबाकर खींचते हुए उसने पहली बार वैशाली के होंठों के करीब आना चाहा.. धीरे धीरे माहोल मे ढल रही कविता को देखकर वैशाली ने दोगुने उत्साह से अपने होंठ उसके होंठों पर रख दीये.. कविता वैशाली के होंठों को चूसने लगी.. अपनी जीभ उसकी जीभ से मिलाकर उसका स्वाद चखने लगी..
कविता इस लिप किस मे बेतहाशा खो चुकी थी.. तभी वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से रसिक का लँड दोनों के मुंह के बीच रख दिया.. लंड इतना कडक था की दोनों के होंठों को चीरकर आरपार निकल गया.. इतना कामुक द्रश्य था.. की कविता ने पहली बार सामने से रसिक के सुपाड़े को पकड़ लिया.. कविता के स्पर्श को पहचानकर रसिक बेहद खुश हो गया.. उसका सख्त तगड़ा लंड कविता नाम की मोरनी को रिझाने के लिए नृत्य करने लगा.. वैशाली ने उस लंड को थोड़ी देर तक चूसा और फिर कविता को देते हुए कहा "ले, अब तू चूस.. !!"
कविता ने मुंह फेर लिया "मुझे नहीं चूसना है.. !!"
वैशाली: "अब नखरे छोड़ भी दे.. !!"
कविता: "मुझे फोर्स मत कर वैशाली.. तुझे जो करना हो कर.. चूसना हो तो चूस.. आगे पीछे जहां भी लेना हो ले.. तुझे कहाँ रोक रही हूँ मैं??"
वैशाली अपना आपा खो बैठी "भेनचोद.. इतना मस्त लोडा मिला है मजे करने को.. और इस महारानी के नखरे ही खतम नहीं हो रहे है.. चल.. अब इसे चूस.. वरना तुझे उल्टा सुलाकर तेरी गांड मे दे दूँगी रसिक का लंड.. !!" कविता के मुंह मे रसिक का लंड जबरदस्ती डालकर ही चैन लिया वैशाली ने
"ओह्ह यस बेबी.. सक इट.. !!" वैशाली कविता को उकसाने लगी
कविता को शुरू शुरू मे.. बड़ा अटपटा सा लगा.. पर वो खुद भी इतनी उत्तेजित थी की जो आदमी उसे देखकर ही पसंद नहीं था.. उसका लंड चूस रही थी.. थोड़ी देर के बाद वैशाली ने कविता को धकेल दिया और खुद चूसने लगी..
काफी देर तक लंड की चुसाई के बाद वैशाली ने लंड छोड़ा.. फिर कविता को खटिया पर लेटाकर रसिक को उसकी चूत चाटने का इशारा किया.. रसिक बावरा हो गया.. और अपनी पसंदीदा चूत पर टूट पड़ने के लिए तैयार हो गया..
कविता की चूत पर रसिक की जीभ फिरते ही वो सिहर उठी.. सातवे आसमान पर उड़ने लगी कविता.. उसकी निप्पलें टाइट हो गई.. और शुरुआत मे जांघें दबाकर रखने वाली कविता ने खुद ही अपनी टांगें फैलाते हुए रसिक को चाटने मे आसानी कर दी..
पैर चौड़े होते ही कविता की नाजुक चूत के पंखुड़ियों जैसे होंठ खुल गए.. उसकी लाल क्लिटोरिस और छोटा सा छेद देखकर रसिक समझ गया की वो उसका लंड अंदर नहीं ले पाएगी..
कविता की लाल क्लिटोरिस को होंठों के बीच दबाकर रसिक ने जब चूसा... तब उत्तेजित होकर कविता अपनी गांड उछालकर गोल गोल घुमाते हुए ऊपर नीचे करने लगी.. आह्ह आह्ह आह्ह.. की आवाज़ें रसिक के खेत मे गूंजने लगी.. कविता की चूत चाट रहे रसिक के लंड को वैशाली बड़े ही प्यार से देख रही थी.. वो उसके लंड से कभी अपने गालों को रगड़ती तो कभी दो स्तनों के बीच उसे दबा देती..
"भाभी.. आप अपनी खोलकर मेरे मुंह पर बैठ जाओ.. मज़ा आएगा.. मुझे उस तरह चाटना बहोत अच्छा लगता है" पतली सी कविता के बदन को खिलौने की तरह उठाकर खड़ा कर दिया रसिक ने.. और खुद खटिया पर लेट गया.. कविता के गोरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए उसे अपने मुंह पर बीठा दिया रसिक ने..
कविता की कोमल चूत के वर्टिकल होंठों को चाटते हुए अंदर घुसाने का सुराख ढूंढ रही थी रसिक की जीभ.. !! कविता को तो जैसे बिन मांगे ही स्वर्ग मिल गया.. !! एक साल से ऊपर हो गया किसी मर्द ने उसकी चूत चाटे हुए.. महीने मे एक बार पीयूष मुश्किल से उसे चोदता था.. चूत चाटने का तो कोई सवाल ही नहीं था.. रसिक के प्रति उसके मन मे जो घृणा थी.. वो उत्तेजना की गर्मी से भांप बनकर उड़ गई.. !! आँखें बंद कर वो रसिक के मुंह पर सवारी कर अपनी चूत को आगे पीछे रगड़ रही थी.. ऐसा मौका दिलाने के लिए वो मन ही मन वैशाली का आभार प्रकट करने लगी.. अगर वैशाली ने इतनी हिम्मत न की होती.. तो ऐसा आनंद उसे कभी नहीं मिलता..!! लंड तो लंड.. रसिक की तो जीभ भी कितनी कडक थी.. चूत की अंदरूनी परतों को कुरेद रही थी.. माय गॉड.. इतना सख्त तो आज तक पीयूष का कभी नहीं हुआ.. यह आदमी वाकई असुर योनि का लगता है.. इसकी जीभ तो लंड से भी ज्यादा खतरनाक है..
कविता का शरीर अकड़ने लगा. और उसने अपनी चूत की मांसपेशियों को जकड़ लिया.. रसिक की जीभ और तीव्रता से कविता की चूत मे जितना अंदर जा सकती थी.. घुस गई.. !! दोनों तरफ आनंद की लहरें उठ रही थी.. दोनों हाथ ऊपर कर रसिक ने कविता के नाजुक स्तनों को पकड़ लिया और दबाते हुए अपनी जीभ उसकी चूत मे नचाने लगा..
कविता ने दोनों हाथ से रसिक का सर पकड़ लिया और अपनी चूत को ताकत के साथ उसकी जीभ पर दबाते हुए अपने शरीर को तंग कर दिया.. दूसरे ही पल.. रसिक का लोडा चूस रही वैशाली के मुंह मे.. गाढ़े लस्सेदार वीर्य की पिचकारी छूटी.. वैशाली इस प्रहार के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. वह उत्तेजित तो थी पर वीर्य को मुंह मे लेने की उसकी तैयारी नहीं थी.. उसने तुरंत लंड मुंह से बाहर निकाल दिया.. वीर्य थूक दिया और छी छी करते हुए खाँसने लगी..
रसिक के चेहरे से उतरकर खटिया के कोने पर बैठ गई.. वैशाली के हाल पर हँसते हुए उसने रसिक के लंड की तरफ देखा.. बाप रे.. !! वैशाली की लार और वीर्य से तरबतर लोडा, हर सेकंड पर एक झटका मार रहा था.. अद्भुत द्रश्य था.. !! वैशाली और कविता दोनों की नजर उस आसुरी लंड पर चिपक गई थी.. कविता ऐसे देख रही थी जैसी किसी दुर्लभ प्रजाति के प्राणी को देख रही हो.. और वैशाली थोड़ी सी नाराजगी से रसिक की तरफ देख रही थी
थोड़ी देर के बाद सब से पहले कविता उठी और कपड़े पहनने लगी..
"अरे भाभी.. अभी से कपड़े पहनने लगी आप? अभी तो सिर्फ शुरुआत हुई है.. " रसिक खड़ा हो गया और कविता के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों मे जकड़कर स्तनों को दबाने लगा.. इस बार कविता को रसिक के प्रति कोई घृणा नहीं हो रही थी.. पर फिर भी रसिक को अपने शरीर से दूर धकेलते हुए कहा "मुझे ठंड लग रही है.. जरूरत पड़ी तो फिर से उतार दूँगी.. अभी पहन लेने दो मुझे.. और पहले उस रंडी की चूत चोदकर ढीली कर दो.. कब से मचल रही है चुदवाने के लिए" कविता अब बेझिझक होकर बोलने लगी थी
वैशाली खुश होकर बोली "अरे वाह.. अब तो तू भी एकदम खुल गई कविता.. !!"
रसिक: "जब कपड़े ही उतर चुके हो.. फिर किस बात की झिझक.. !! क्यों सही कहा ना भाभी.. !! आप को ठंड लग रही है ना.. रुकिए, मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाता हूँ" रसिक नंगे बदन ही वो कमरे मे गया.. उसका झूलता हुआ लंड और काले चूतड़ देखकर.. कविता और वैशाली एक दूसरे के सामने देखकर हंसने लगे..
रसिक चाय बना रहा था उस दौरान दोनों यहाँ से निकलने के समय के बारे मे बात करने लगी
कविता: "अभी साढ़े दस बजे है.. साढ़े ग्यारह बजे तो निकल जाएंगे"
वैशाली: "अरे यार.. एक बजे भी निकले तो क्या दिक्कत है?? घर पर कोई पूछने वाला तो है नहीं.. !!"
तभी चीमटे से एल्युमिनियम की पतीली पकड़कर रसिक आया और बोला "आज की रात आपको यहीं रहना है.. जाने की बात मत कीजिए.. मेरा मन भर जाएगा उसके बाद ही आप लोगों को जाने दूंगा"
प्लास्टिक के तीन कप मे रसिक ने चाय निकाली.. और तीनों पीने लगे.. कविता कपड़े पहन कर बैठी थी पर रसिक और वैशाली अभी भी सम्पूर्ण नग्न थे..
चाय पीने से शरीर गरम हुआ.. और ऑर्गजम की सुस्ती चली गई.. रसिक अब खटिया पर बैठ गया और कविता तथा वैशाली दोनों को अपनी एक एक जांघ पर बीठा दिया.. और फिर उनकी काँखों के नीचे से हाथ डालकर दोनों को स्तनों को दबाते हुए बोला "भाभी, आपको नंगा देखने की मेरी इच्छा आज पूरी हो गई.. अब एक बार आपको जीन्स और टी-शर्ट मे देखने की इच्छा है.. हो सके तो कभी वो इच्छा भी पूरी कर देना मेरी.. शहर की जवान लड़कियों को ऐसे फेशनेबल कपड़ों मे एक्टिवा पर जाते हुए देखता हूँ तब इतना मन करता है की उन्हें पकड़कर दबोच लूँ.. और सारे कपड़े उतरवाकर खड़े खड़े चोद दूँ.. !!"
वैशाली: "इसमें कौन सी बड़ी बात है.. तुम्हारी यह इच्छा तो मैं पूरी कर दूँगी, रसिक.. !!"
रसिक: "नहीं.. मुझे तो भाभी को ऐसे कपड़ों मे देखना है"
कविता: "मैं तो यहाँ से चली जाऊँगी.. तो वो इच्छा तो पूरी होने से रही.. हाँ कभी मेरे शहर आओ तो वैसे कपड़ों मे जरूर देखने मिलूँगी तुम्हें.. !!"
रसिक: "आप जब और जहां कहो.. मैं आ जाऊंगा भाभी"
वैशाली रसिक के आधे-मुरझाए लंड से खेलते हुए बोली "कविता, ये रसिक ही तेरा असली आशिक है.. मौका मिले तो उसकी यह इच्छा जरूर पूरी करना.. !!"
वैशाली के हाथों के जादू से रसिक का लंड फिर से खड़ा हो गया.. उसका विकराल रूप देखकर कविता फिर से घबरा गई "देख तो सही वैशाली.. इसके लंड की इच्छा पूरी करने मे मेरी गुलाबी कोमल चूत की धज्जियां उड़ जाएगी.. !!"
रसिक: "आपको इतना डर हो तो मैं वादा करता हूँ.. के कभी अंदर डालने के लिए मजबूर नहीं करूंगा आपको.. मुझे बस अपनी चूत पर लंड रगड़ने देगी तो भी मेरा निकल जाएगा.. !!"
कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
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खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों
Renuka ka bajaa baja diya Madan aur Rasik ne.आधे घंटे मे मदन और रेणुका तैयार होकर निकल गए.. रास्ते मे शीला और राजेश के बारे मे बातें करते हुए दोनों कुछ घंटों मे अपने शहर पहुँच गए.. रेणुका ने मदन के घर से थोड़े दूर गाड़ी रोकी और मदन उतर गया
रेणुका: "ओके मदन.. मैं अब निकलती हूँ.. बहुत मज़ा आया, यार.. !! टाइम नहीं था.. वरना सुबह सुबह एक और राउन्ड करने की इच्छा थी.. "
मदन: "यार, मेरा भी बड़ा मन था की तुझे एक दिन और शीला बनाकर रखू.. वैशाली भी लौटी नहीं होगी.. मेरा यह लंड, एक बार और तेरी चूत मारना चाहता है.. पर क्या करे??"
रेणुका: "मैं तो तैयार हूँ.. पर शीला घर पर आ चुकी होगी.. जब हम निकले तब उनका कॉटेज खाली था.. मतलब वो दोनों कब के निकल चुके थे और घर पर पहुँच भी चुके होंगे.. "
दोनों बातें कर रहे थे तब रेणुका पर राजेश का फोन आया.. उसने रेणुका से कहा की वह दोनों चाहे तो वही रुक जाए.. क्योंकि राजेश और शीला एक दिन और साथ रहने वाले थे.. मदन चाहे तो शीला से बात कर सकता है.. !!
यह सुनते ही रेणुका और मदन के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान आ गई..
मदन ने तुरंत शीला को फोन लगाया..
मदन: "शीला, मेरा इंतज़ार मत करना.. हम दोनों कल ही आएंगे"
शीला: "ओके.. " कहते हुए शीला ने फोन काट दिया
मदन मुस्कुराते हुए बोला "रेणुका, कभी सपने भी नहीं सोचा था की अपने ही शहर मे हम इस तरह अपने पार्टनर बदल पाएंगे"
रेणुका: "वो तो ठीक है मदन.. पर यहाँ शहर मे.. कोई हमे देख लेगा तो दिक्कत हो जाएगी.. उससे अच्छा तो वही होता की हम रिसॉर्ट मे रुक जाते.. यार मुझे तो उस जंगल मे ही चुदवाने मे बड़ा मज़ा आ रहा था"
मदन: "सही कहा रेणु.. पर कोई बात नहीं.. अब चांस मिला ही है तो हम उसे जाया नहीं होने देंगे.. हम घर पर नहीं जाएंगे.. किसी अच्छी होटल मे जाकर.. पहले लंच लेते है.. फिर कोई मूवी देखेंगे.. और रात को मस्त चुदाई करेंगे..!!"
जवाब मे रेणुका ने मदन के कंधे पर अपना सिर रखकर अनुमति दे दी
रेणुका ड्राइविंग सीट से उठ गई और गाड़ी मदन को चलाने दे दी.. मदन तेजी से गाड़ी चलाते हुए अपने और रेणुका के घर के इलाके से दूर जाने लगा.. करीब पंद्रह मिनट बाद वो दोनों एक बढ़िया सी रेस्टोरेंट मे बैठे था.. खाना खाने के बाद.. दोनों करीब के एक पार्क मे जा बैठे और प्रेमी-युगलों की तरह काफी देर तक बाते करते रहे.. फिर दोनों एक मॉल मे गए और एक घंटे तक, हाथ मे हाथ डालकर घूमते रहे..
आखिर एक मल्टीप्लेक्स के पास जाकर मदन ने गाड़ी रोकी.. रात के नौ बजे का शो था.. शो शुरू होने मे देर थी पर यहाँ मल्टीप्लेक्स मे सब की नज़रों के सामने रहने मे खतरा था.. इसलिए रेणुका चलते हुए बाहर आ गई.. और मदन भी बाहर जाकर दूर एक टपरी पर खड़े खड़े सिगरेट फूंकने लगा..
जब शो का टाइम हुआ और सारी ऑडियंस अंदर चली गई उसके बाद दोनों अंदर गए और अपनी सीट पर बैठ गए..
सिनेमा हॉल के अंधेरे मे हीरोइन के लटके-झटके देखते हुए रेणुका के कामुक हाथ मदन के लंड पर पहुँच गए.. और उसे रात की चुदाई के लिए तैयार करने लगे.. पूरा दिन इतनी मस्ती से बीता था की वह दोनों शीला-राजेश को भूल ही गए थे..
इंटरवल के दौरान रेणुका ने मदन से कहा "यार, उन दोनों को फोन तो लगा.. और पूछ.. की वह लोग कहाँ है.. !!"
मदन ने राजेश को फोन लगाया तब रात के ग्यारह बज चुके थे..
राजेश ने फोन उठाकर बिना हैलो कहे.. फोन चालू रखकर बाजू मे रख दिया.. क्योंकि तब राजेश और शीला के बीच घमासान चुदाई चल रही थी.. मूवी फिर से शुरू हो चुका था.. लेकिन रेणुका और मदन तो फोन को कान पर लगाकर... साथ मे सुनने लगे थे.. गरम होकर मदन रेणुका के स्तनों को दबा रहा था और रेणुका मदन के लंड को मसल रही थी.. और साथ ही साथ दोनों राजेश-शीला की चुदाई के लाइव-अपडेट को सुन रहे थे
शीला: "ओह्ह राजेश.. फक मी हार्ड.. आह.. तेरे साथ इतना मज़ा आ रहा है.. अब तो मैं उसे ढीले मदन के पास जाने ही नहीं वाली.. मुझे तो अब सिर्फ तू ही चाहिए.. ओह्ह.. !!"
राजेश: "क्या बॉडी है तेरा, शीला... !!! ये तेरे बड़े बड़े बॉल... ओहोहओहो.. रेणुका का तो कोई मुकाबला ही नहीं है इनके सामने.. कितनी गरम है तू, मेरी जान.. !! और तेरे भोसड़े मे ऐसी गर्मी है की लंड बाहर निकालने का मन ही नहीं करता.. !! काश रेणुका के बदले तू मेरी पत्नी होती.. !!"
फोन पर कान लगाकर रेणुका और मदन लाइव कमेंटरी सुन रहे थे.. और सिनेमा-हॉल मे ही एक दूसरे के गुप्त अंगों को मदहोश होकर सहला रहे थे..
रात के एक बजे मूवी खत्म हुआ..
मदन: "यार माँ चुदाने गई सारी दुनियादारी.. अब मुझे शीला क्या सोचेगी उसकी कोई फिक्र नहीं है.. होटल छोड़.. हम दोनों मेरे घर ही चलते है.. शीला आ जाएगी तो देख लेंगे"
रेणुका; "ठीक है.. जैसा तुम ठीक समझो.. !!"
दोनों गाड़ी मे मदन के घर की तरफ निकल गए.. मदन गाड़ी चला रहा था और रेणुका झुककर उसका लंड चूस रही थी.. बीच बीच मे मदन उसकी पीठ पर हाथ फेर लेता तो कभी नीचे हाथ डालकर उसका बबला दबा देता.. !!
करीब डेढ़ बजे दोनों मदन के घर के पास पहुंचे.. इतनी ठंड थी की पूरी सोसायटी मे सन्नाटा छाया हुआ था..
मदन का लंड छोड़कर रेणुका गाड़ी से उतरी और मदन के घर का मैन गेट खोलकर बरामदे के अंदर जाने से पहले वही रुक गई.. अपना जीन्स और पेन्टी घुटनों तक उतारकर.. वह अपनी गोरी गांड हिलाकर मदन को आमंत्रित करने लगी.. मदन का लंड यह द्रश्य देखकर ही पागलों की तरह उछलने लगा..
मदन तुरंत गाड़ी से उतरा और रेणुका के करीब पहुंचकर अपनी पेंट की चैन खोलने लगा.. रेणुका के मस्त गोरे चूतड़ों को सहलाते हुए उसने कूल्हों को फैलाकर रेणुका की गुलाबी चूत को उजागर कर दिया.. !! अपने स्तनों को दबाते हुए रेणुका और झुक गई ताकि योनि-प्रवेश मे आसानी हो.. चूत की फाँकों पर रगड़ते हुए मन तो मदन का भी कर रहा था की लंड अंदर डाल दे.. आसपास भले ही सन्नाटा था पर यहाँ खतरा मोड़कर चुदाई करने मे मज़ा नहीं आता..
वो रेणुका को खींचकर घर के अंदर ले गया.. और दोनों बिस्तर पर जा गिरे.. !!
मदन बोला "बाहर बड़ी गर्मी दिखा रही थी.. देखता हूँ की अब कितनी गर्मी बची है..!!"
अपने दोनों मम्मे टॉप के अंदर दबाते हुए रेणुका ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा: "यह तो अंदर डालकर जाँचने से ही पता चलेगा..!!"
मदन बेड पर आ कर बैठ गया.. रेणुका उसके पास खिसक आई.. मदन ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसके माथे पर चुम्बन ले लिया.. इस से रेणुका का चेहरा लाल हो गया.. उसके शरीर में करंट दौड़ गया.. रेणुका के होंठ मदन के होंठों से चिपक गए.. दोनों गहरे चुम्बन में डुब गए..
पिछले दिन इतनी धुआंधार चूदाइयाँ होने के बावजूद दोनों का जैसे मन ही नहीं भरा था.. असल में, शीला और राजेश को एक साथ देखकर.. थोड़ी सी ईर्ष्या और थोड़ी सी उत्तेजना के चलते, दोनों की भूख और तीव्र हो चली थी.. कुछ देर बाद दोनों सांस फुलने के कारण अलग हो गए .. दोनों की सांस बहोत तेज चल रही थी..
मदन ने रेणुका को अपने शरीर से चिपका लिया.. रेणुका ने अपना चेहरा उसकी छाती में छुपा लिया.. उसके हाथ रेणुका की पीठ को सहलाने लगे.. रेणुका उसके हाथों से पिघलती सी गई.. वह भी मदन की पीठ सहलाने लगी.. दोनों के शरीर में काम की आग लगनी शुरु हो गई थी.. मदन ने उसके टॉप को सर के ऊपर से उतार दिया.. उम्र के साथ रेणुका के उरोज ढ़ल भले गया थे लेकिन उसकी पुष्टता कम नहीं हुई थी.. मदन के हाथों द्वारा सहलाये जाने से वह उत्तेजित हो कर कठोर हो गया थे.. निप्पल फुल कर लंबें हो गया..
मदन निप्पलों को अपनी ऊंगलियों के बीच लेकर दबाते रहे.. रेणुका आहहहहहहहहहहहह करने लग गई.. इस के बाद मदन ने गरदन झुका कर निप्पलों को अपने होंठों के बीच दबोच लिया और उसको चुसने लगे.. इस से रेणुका की उत्तेजना और बढ़ गई.. पहले एक निप्पल चुसा गया और फिर दूसरे का नंबर आया.. इस से रेणुका का सारा शरीर अकड़ने लगा.. उसने मदन का कुर्ता उतार दिया.. अब उसके हाथ मदन के नंगें शरीर पर घुम रहे थे.. मदन के निप्पल भी उसकी ऊंगलियों में आ गया.. वह उसे मसलने लगी.. इस से मदन के शरीर में उत्तेजना की लहरें उठने लग गई.. काफी देर तक दोनों एक दूसरे के शरीर में वासना की आग भड़काते रहे..
जब आग भड़क गई तो मदन ने रेणुका का जीन्स भी उतार दिया.. वह भी अपने कपड़ें उतार कर नंगा हो गया.. रेणुका का शरीर अभी भी उम्र को छुपाने में सफल हो रहा था.. शरीर में भरपुर कसाब मौजूद था.. कही पर फालतु मांस नहीं था.. मदन ने उसकी जाँघों पर हाथ फिरा कर उसे और उत्तेजित करना शुरु कर दिया.. इस के बाद वह उसे लिटा कर उसके सारे शरीर को चुमने लग गया.. स्तनों को दबाने और चुमने के बाद वह उसकी कमर को चुम कर उसकी नाभी को गिला कर के उसकी जाँघों के मध्य में उतर गया.. बिना बालों वाली चूत की मादक सुगंध उसकी नाक में आने लग गई.. उसकी ऊंगली रेणुका की चूत में घुस गई, वहाँ नमी तो थी लेकिन कम थी.. उसनें अपनी ऊंगली को चूत के अंदर बाहर करना शुरु कर दिया.. रेणुका आहहहह उहहहहहहहह करने लग गई.. कुछ देर बाद ही रेणुका ने उत्तेजित हो कर उसके होंठ अपने होंठों में ले कर काटना शुरु कर दिया..
मदन 69 की पोजिशन में आ गया और उसका लंड अब रेणुका के चेहरे पर लहरा रहा था.. रेणुका ने उसे अपने मुँह में ले लिया.. मुँह की नमी और जीभ का स्पर्श पा कर मदन का लंड और तनाव लेने लगा.. रेणुका उसे अपने मुँह से अंदर बाहर करने लगी..
कुछ देर बाद मदन को लगा कि वह रेणुका के मुँह में ना स्खलित हो जाये यही सोच कर वह रेणुका के ऊपर से उठ गया और उसकी जाँघों को चौड़ा करके उसके बीच में बैठ गया.. रेणुका ने भी अपनी टाँगें फैला ली.. मदन ने अपने तने लंड को रेणुका की चूत पर रख कर दबाया तो लंड अंदर तो गया लेकिन वहाँ पर नमी की कमी होने के कारण आगे नहीं खिसका.. मदन ने दूबारा प्रयास किया, मदन ने थोड़ा सा थूक लेकर अपने सुपाड़े पर मल दिया और उसने अपने लंड को रेणुका की चूत के मुँह पर लगाया और जोर डाला तो लंड आसानी से चूत में समा गया..
दूसरी बार धक्का देने से मदन का लंड अंडकोष तक चूत में समा गया.. रेणुका दर्द से कराही.. मदन रुका और फिर उसंने धक्कें लगाने शुरु कर दिये.. रेणुका के हाथ मदन की पीठ पर पहुँच गए.. रेणुका की भरी जाँघों के बीच मदन का लंड पुरा समा रहा था.. रेणुका इस का पुरा आनंद उठा रही थी.. आनंद के कारण उसकी आँखें बंद हो गई थी.. काफी देर तक मदन धक्कें लगाता रहा फिर थक कर रेणुका के ऊपर से उतर कर बगल में लेट गया.. कुछ देर आराम करने के बाद वह फिर से रेणुका में समा गया और उसकी चूत पर प्रहार करने लगा.. रेणुका ने अपनी बांहें मदन की गरदन में डाल कर उसे झुकाया और उसके होंठ चुम कर कहा "यार मदन, कल पूरा दिन चुदाई करने के बाद अब भी तुम्हारा दम कायम है..!!"
रेणुका ने अपनी चूत को कसना और मथना शुरु कर दिया था.. मदन समझ गया थे कि अब वह दोनों स्खलित होने वाले है.. रेणुका भी स्खलित हो चुकी थी उसकी टाँगें मदन की पीठ पर आ गई.. मदन ने बड़े जोर से पिचकारी मारी और रेणुका के ऊपर लेट गया.. उसकी सांस बड़े जोर से चल रही थी.. वह लुढक कर रेणुका की बगल में आ गया..
रेणुका की छातियाँ जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी.. वह भी चरम के आनंद में डुबी हुई थी.. कुछ देर तक दोनों अपनी सांसों को सहेजते रहे.. जब दोनों कुछ नॉर्मल हुए तो रेणुका बोली "आज भी मेरी कमर का दम निकल गया.."
दोनों के निजी अंग पानी छोड़ रहे थे.. और काफी थक चुके थे..
रात के दो बजे से लेकर जो सेक्स का सिलसिला चला वो साढ़े तीन तक जारी रहा.. प्यास तो कम नहीं हुई.. पर दोनों की ऊर्जा खतम हो चुकी थी.. एक दूसरे की बाहों मे बाहें डालकर मदन और रेणुका गहरी नींद सो गए..
नींद तब खुली जब सुबह साढ़े पाँच बजे डोरबेल बजी.. रेणुका ने उठकर पास पड़ा शीला का गाउन पहन लिया और झटपट दरवाजा खोला
सामने रसिक खड़ा था
रसिक: "आप अभी तक यहीं हो?? शीला भाभी कहाँ है??" रसिक की आँखें शीला के मांसल बदन को ढूंढ रही थी.. कई दिनों हो गए थे भाभी के गूँदाज बबलों को दबाए हुए..
रेणुका ने हंसकर चुटकी लेते हुए कहा "नहीं, अब मैं ही मदन भैया के साथ रहूँगी.. शीला का मेरे पति के साथ ब्याह हो गया है.. अब से मैं ही रोज दूध लेने आऊँगी.. और तू शीला के साथ जो जो करता था.. वो सब मेरे साथ करना होगा.. समझा.. !!" आँख मारकर कातिल मुस्कान के साथ रेणुका ने कहा
रेणुका किचन से दूध भरने के लिए पतीला लेकर आई
रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !! भाभी का गाउन क्या पहन लिया.. आप तो साहब की बीवी बन गई.. !!"
अपने दोनों स्तनों को गाउन के ऊपर से... दोनों हाथों से एक कर दबाते हुए रेणुका ने अत्यंत कामुक अंदाज मे कहा "ओह्ह.. !! रसिक.. क्या फ़र्क है मुझ मे और शीला मे??"
रसिक ने रेणुका के बॉल पकड़कर दबाते हुए कहा "सब से पहला फ़र्क तो इसका ही है.. शीला भाभी के बबले इतने बड़े है की एक किलोमीटर दूर से भी नजर आ जाते है"
रेणुका ने रसिक का लंड पाजामे के ऊपर से पकड़कर दबा दिया.. लंड एकदम टाइट हो गया
रेणुका: "तेरे पास तो बहोत सारी भेस होगी.. ये बता.. तू सिर्फ ज्यादा दूध देने वाली भेस को ही चारा देता है क्या?? कम दूध देने वाली भेस को कुछ नहीं खिलाता?"
रसिक: "कैसी बात कर रही हो भाभी.. !! दूध ज्यादा दे या कम.. चारा तो सब को डालना ही पड़ता है"
रेणुका: "बिल्कुल वैसे ही.. देख.. मेरे चाहे शीला जीतने बड़े न हो.. फिर भी ये तेरा खड़ा तो हो ही गया ना.. !!!"
रसिक: "उसका तो काम ही है खड़ा होने का.. कही भी खड़ा हो जाता है.. आखिर मर्द का लंड है.. भेस के थन देखकर भी खड़ा हो जाता है.. तो यहाँ आपकी चूचियाँ देखकर तो खड़ा हो ही जाएगा..!! चलिए, अब उलटे हो जाइए.. ताकि मैं घुसा दूँ... मुझे देर हो रही है.. "
"रसिक मादरचोद.. तू दूध देने आता है या लंड घुसाने??" पीछे से मदन की आवाज आई
मदन ने बाहर आकर कहा "तुम दोनों अपना खेल अंदर आकर करो.. बाहर कोई देख लेगा..
मदन के पीछे पीछे रेणुका और रसिक घर के अंदर आ गए और दरवाजा बंद कर लिया
रेणुका: "साले, परसो तो मुझे चोद चोदकर रुला दिया था.. फिर भी तेरा मन नहीं भरा.. !! चल अब बाहर निकाल इसे.. थोड़ा चूस लेती हूँ.. !!" कहते हुए रेणुका घुटनों पर बैठकर उसके पाजामे का नाड़ा खोलने लगी.. "कितना बांध कर रखता है इसे.. !! अंदर दम घुट जाएगा इसका"
रसिक ने रेणुका के गाउन मे हाथ डालकर उसके दोनों स्तनों को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपनी लंगोट के साइड से.. अपना गधे जैसा लंबा मोटा और काला लंड बाहर निकाला.. रेणुका ने तुरंत लंड का हवाला ले लिया.. और उस काले नाग के सुपाड़े को चूमते हुए बोली "बाप रे.. !! इसे तो देखकर ही कुछ कुछ होने लगता है"
रेणुका ने तुरंत उसके सुपाड़े को मुंह मे भरकर गीला कर दिया.. और फिर आराम से नीचे बैठकर चूसने लगी.. वो चूसने मे मगन थी तभी मदन भी अपना लोडा खोलकर रेणुका के सामने खड़ा हो गया
मदन: "एक से तेरा क्या होगा रेणुका.. !! आज तो तू दो दो लंड एक साथ चूस"
रेणुका ने रसिक का लंड चूसते हुए दूसरे हाथ से मदन का लंड पकड़ लिया और हिलाने लगी.. अब वो बारी बारी से दोनों लंड चूस रही थी.. कभी मदन के लंड को चूसती तो कभी रसिक के.. दोनों लंड रेणुका के मुख की लार से लिप्त होकर.. टाइट हो गए थे.. !!
अब रेणुका को मदन का लंड चूसने देकर.. रसिक उसके पीछे खड़ा हो गया.. और उसकी कमर उचककर एक ही धक्के मे अपना लंड अंदर घुसेड़ दीया...
रेणुका के मुंह से मदन का लंड छूट गया और वो दर्द से कराह उठी.. "ऊईईई माँ.. साले धीरे से डाल.. मेरी चूत है.. कोई सार्वजनिक कुआं नहीं.. जिसमे जो चाहा डाल दिया.. "
रसिक ने रेणुका की बात अनसुनी कर धक्के लगाना शुरू कर दिया.. रेणुका भी अपनी चूत मे धक्के लेते लेते मदन का लंड चूसती रही.. रसिक ने गति बढ़ाई और रेणुका का बदन अकड़ने लगा... और रसिक के डंडे ने जैसे ही अंदर गरम वीर्य की बौछार की.. रेणुका की चूत ने भी भरपूर मात्रा मे पानी छोड़ दिया.. अपना काम खतम कर रसिक ने फटाफट पाजामा पहन लिया.. और फिर दरवाजा खोलकर भाग गया.. !!
रेणुका की चूत से रसिक का वीर्य बाहर निकलकर फर्श पर गिर रहा था.. उसे साफ करना जरूरी था.. वो उठकर बाथरूम की तरफ गई.. पीछे पीछे मदन भी गया.. शावर ऑन कर.. दोनों ने साथ मे ही नहाते नहाते जबरदस्त चुदाई की.. !! तृप्त होकर दोनों बाहर निकले
रेणुका कपड़े पहन रही थी तब तक मदन ने झोमेटो से नाश्ता ऑर्डर कर दिया... थोड़ी ही देर मे लड़का पार्सल दे गया.. डाइनिंग टेबल पर बैठकर दोनों बातें करते हुए नाश्ता करने लगे..
मदन: "रेणुका, वाकई पिछले दो दिन.. मेरी ज़िंदगी के सबसे यादगार दिन थे.. अगर फिर कभी ऐसा मौका मिला तो मैं छोड़ूँगा नहीं"
रेणुका: "मदन, मैं तो सोच रही हूँ.. की अगर पूरी ज़िंदगी ही ऐसे रहना पड़ा तो मुझे कोई हर्ज न होगा.. तेरे साथ मुझे उतना ही मज़ा आता है जितना राजेश के साथ.. हाँ, मुझे संतुष्ट करने का तेरा तरीका मुझे जरूर ज्यादा पसंद है.. !! फिर से मौका जरूर ढूँढेंगे.. तेरे घर पर तो वैशाली के कारण कुछ मुमकिन नहीं होगा.. हाँ, जब राजेश शहर से बाहर होगा तब मैं तुझे जरूर बुला लूँगी.. "
मदन: "वैसे अब राजेश हो न हो, क्या फरक पड़ता है?"
रेणुका: "हाँ, वो भी है.. मेरे कहने का मतलब यह था की मैं यहाँ शायद न आ पाउ.. पर तुम मेरे घर कभी भी आ सकते हो"
मदन: "रेणुका, आई लव यू यार"
रेणुका ने मुस्कुराकर मदन के गाल पर हाथ फेरते हुए कहा "आई लव यू टू, मदन.. !!"
तभी घर की डोरबेल बजी...
डाइनिंग टेबल के पास की खिड़की से रेणुका ने देखा.. वैशाली थी.. !!! अच्छा हुआ जो तुरंत दरवाजा नहीं खोल दिया.. वरना मुसीबत हो जाती.. !!!
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Great going. Age story aur bhi interesting hogi. Ab Pintu ki family bhi involve hogi.डाइनिंग टेबल के पास की खिड़की से रेणुका ने देखा.. वैशाली थी.. !!! अच्छा हुआ जो तुरंत दरवाजा नहीं खोल दिया.. वरना मुसीबत हो जाती.. !!!
रेणुका ने घबराकर मदन से कहा "मदन, वैशाली बाहर खड़ी है.. !! अब क्या करेंगे?"
मदन भी चोंक गया.. वैशाली तो शाम को आने वाली थी.. अभी कैसे टपक पड़ी?? अब क्या करें?
मदन: "रेणुका, तू पीछे के दरवाजे से निकल.. मैं दरवाजा खोलता हूँ.. और सुन.. बाहर जाकर शीला को फोन कर.. और उसे कहना की वो जल्दी यहाँ आ जाए.. और ये भी कहना की वैशाली उससे पूछे की कहाँ गई थी तो बताए की बाजार गई थी.. मैं भी वैशाली से यही कहूँगा.. "
जाने से पहले रेणुका ने मदन को किस कर बाहों मे भरते हुए उसका लंड दबा दिया.. और किचन के रास्ते, कंपाउंड से निकलकर वैशाली के अंदर जाने का इंतज़ार करने लगी.. जैसे ही वैशाली अंदर गई.. रेणुका ने चुपके से लोहे का दरवाजा खोला और बाहर निकली तब उसे याद आया.. गाड़ी की चाबी तो अंदर ही रह गई.. अब क्या होगा?
रेणुका ने शीला को फोन लगाया
रेणुका: "यार जल्दी आजा.. वैशाली आ चुकी है"
शीला: "कोई बात नहीं.. वैशाली को बोल दे की आज से तू ही उसकी मम्मी है"
परेशान होते हुए रेणुका ने कहा "मज़ाक का टाइम नहीं है अभी शीला.. !!"
शीला: "अरे, टेंशन मत ले.. मैं ऑलरेडी राजेश के साथ घर पहुँच ही रही हूँ.. देख पलट कर.. हमारी गाड़ी गली के अंदर आ चुकी है"
रेणुका ने मुड़कर देखा.. राजेश ने गाड़ी रेणुका के पास लाकर खड़ी कर दी..
रेणुका दौड़कर गाड़ी के पास आई.. शीला उतर गई और रेणुका तुरंत अंदर बैठ गई..
रेणुका: "शीला सुन.. मेरी गाड़ी की चाबी तेरे घर के अंदर ही छूट गई है.. मदन से बोलकर गाड़ी मेरे घर भिजवा देना.. ओके.. !! चल राजेश.. गाड़ी चला, जल्दी.. !!"
राजेश ने गाड़ी दौड़ा दी और वो लोग तुरंत ही शीला की सोसायटी के बाहर निकल गए
रेणुका राजेश से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. दूर रहकर जो जो गुलछर्रे उड़ाये थे.. जो गंदी बातें की थी.. वो याद आते ही वो बेहद झिझकने लगी थी..
राजेश ने भी रेणुका के साथ कुछ बात नहीं की और उसे घर के पास उतारकर ऑफिस चला गया
इस तरफ शीला घर के अंदर आई
वैशाली और मदन ब्रेकफ़ास्ट करते हुए बातें कर रहे थे..
शीला: "अरे वैशाली बेटा.. तू आ गई?? कैसी रही तुम लोगों की पार्टी?"
मदन के साथ शीला न तो नजर मिला रही थी और ना ही बात कर रही थी
वैशाली: "ओह मम्मी, बहोत मज़ा आया.. कविता और पीयूष तो खुश हो गए मुझे देखकर.. और पापा को पीयूष ने एक ऑफर दी ही"
शीला ने चोंककर पूछा "कैसी ऑफर?"
वैशाली ने हंसकर कहा "तुझे नहीं.. पापा को दी है ऑफर.. पीयूष को एक अमरीकन कंपनी का ऑर्डर मिला है.. और उसी सिलसिले मे वह चाहता है की पापा उसे कन्सल्टन्सी दे.. जल्द से जल्द उसने मिलने के लिए कहा है"
"वैसे पीयूष ने सुबोधकांत का बिजनेस बड़े ही अच्छे से संभाल लिया है, वाकई बड़ा होनहार लड़का है " पीयूष की तारीफ करते हुए मदन ने कहा
शीला: "हाँ, बड़ा ही मेहनती लड़का है" कहते हुए शीला को वो दिन याद आ गया जब सिनेमा हॉल मे पीयूष ने उसके स्तनों को मसला था.. !!
वैशाली: "हाँ पापा.. वो तो है" वैशाली भी उस दिन की याद आ गई.. जब उस बन रहे मकान के अंदर.. रेत के ढेर पर पीयूष ने उसे रगड़कर चोद दिया था.. !!
वैशाली: "बाकी सब तो ठीक है मम्मी.. पर कविता बहोत ही बोर हो रही है.. पीयूष के पास टाइम ही नहीं होता उसे देने के लिए.. पूरा दिन बिजनेस मे उलझा रहता है.. कविता पुराने दिनों को बहोत मिस कर रही थी.. खास कर तुम्हें वो बहोत ही मिस कर रही थी, मम्मी"
शीला: "पीयूष को समझना चाहिए.. पैसा ही सब कुछ नहीं होता.. पुरुषों को अपने काम और गृहस्थी.. दोनों के बीच संतुलन बनाकर रखना आना चाहिए.. अब मेरी ही बात कर.. तेरे पापा विदेश थे तब मैं भी यहाँ कितना बोर होती रहती थी अकेले अकेले.. !! और कविता का बोर होना भी जायज है.. घर की चार दीवारों के बीच पूरा दिन बैठकर कोई भी तंग आ जाएगा.. !! और जब पति को तुम्हारे सामने देखने का भी टाइम न हो तो पत्नी बेचारी क्या करेगी??"
मदन: "बात तो तेरी सही है शीला.. पर आज कल की पत्नियाँ और बच्चों की जरूरतें इतनी बढ़ चुकी है की उनके खर्चों को पूरा करने के लिए मर्दों को अपनी क्षमता से भी दोगुना काम करना पड़ता है.. उसके ऊपर भी चौबीस घंटों मे अड़तालीस घंटों का काम खत्म करने का दबाव हरपल रहता है.. ये भी हमें भूलना नहीं चाहिए.. मैं तेरी उस बात से सहमत हूँ की पुरुष को दोनों तरफ ठीक से बेलेन्स बनाना आना चाहिए.. पर कहना बड़ा ही आसान है.. अगर पीयूष अपना आधा ध्यान कविता को देता. तो हो सकता है की अब तक सुबोधकांत का पूरा बिजनेस ही ठप्प हो चुका होता.. क्यों की अगर किसी काम को करने मे आप अपना १०० प्रतिशत ध्यान और प्रयास नहीं देते है.. तो आप कभी भी सफल नहीं हो पाएंगे" मदन ने पुरुषों का पक्ष रखते हुए कहा
वैशाली: "फिर तो पापा.. मर्दों को अपना १०० प्रतिशत ध्यान अपनी पत्नी को ही देना चाहिए.. क्योंकि अगर व्यापार मे घाटा हो तो उसकी भरपाई हो सकती है.. लेकिन अगर पत्नी छोड़कर भाग गई तो कभी वापिस लौटकर नहीं आएगी" अपनी बात पर खुद ही ठहाका लगाकर हंसने लगी वैशाली
खिलखिलाकर हंस रही वैशाली को देखकर.. मदन और शीला को बहोत अच्छा लगा.. पिंटू के संसर्ग मे आकर वैशाली कितना खुश लग रही थी..
वैशाली का साथ देते हुए उसकी बात पर शीला भी हंसने लगी..
वैशाली उठकर अपने कमरे मे चली गई..
शीला ने मदन के करीब आकर उसके कान मे कहा "एक रात के लिए बीवी भी छोड़कर भाग जा सकती है.. अगर उसका ध्यान ठीक से ना रखो तो.. समझे मिस्टर बेवकूफ.. !!"
मदन ने हँसते हँसते कहा "असन्तुष्ट पत्नी.. घर पर बैठे बैठे रोज नए लंडों से चुदवाये.. उससे तो यही बेहतर होगा की वो किसी एक के साथ.. एक रात के लिए भाग जाए.. हाहाहाहाहा.. पति विदेश गया हो तब.. कभी दूध वाले के साथ तो कभी सब्जी वाले के साथ.. घर पर रंगरेलियाँ मना रही पत्नी से तो अच्छा है की वो किसी के साथ कहीं भाग जाए.. !! कम से कम जिसके साथ भागी है उसे तो वफादार रहेगी.. !!!"
शीला: "अगर पत्नी की इतनी ही चिंता हो तो या तो उसे साथ ले जाना चाहिए.. या फिर घर पर ही गांड चिपकाकर बैठना चाहिए.. मदन, जब हम अपनी मकान मालकिन के बबलों का दूध चूस रहे हो ना तब अपनी बीवी के बबले याद आने चाहिए.. पत्नी बेचारी पति के याद मे उँगलियाँ डाल डालकर दिन गुजार रही हो और पति वहाँ विदेश मे.. गोरी राँडों के बबलों से दूध चूस रहा हो.. ठीक तो ये भी नहीं है.. !!"
मदन ने आखिर हथियार डाल दीये.. शीला से बहस मे जीतना नामुमकिन था
मदन: "बस भी कर शीला.. अब मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला.. !!"
तब तक वैशाली कपड़े बदल कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी
शीला: "आज ऑफिस नहीं जाना है बेटा?"
"नहीं मम्मी.. पिंटू एक दिन के लिए अपने घर ही रुक गया है.. उसके बगैर ऑफिस मे दिल नहीं लगेगा.. सोचा मैं भी आज छुट्टी इन्जॉय कर लू"
"ठीक है बेटा.. ये बता.. पिंटू के साथ तेरा कैसा चल रहा है? मेरा मतलब है कितना आगे बढ़े हो?? शादी करने के बारे मे कुछ सोचा भी है या नहीं?" मदन के अंदर का जिम्मेदारी भरा पिता बोल पड़ा
वैशाली: "दरअसल, पिंटू वही बात करने के लिए घर पर रुक गया है.. पिंटू का परिवार थोड़ा सा रूढ़िवादी है.. उसका कहना है की एक तलाकशुदा लड़की से शादी करने के लिए उसके परिवार को मनाना कठिन होगा "कहते हुए वैशाली गंभीर हो गई
शीला के चेहरे पर भी चिंता की शिकन आ गई.. मदन ने खड़े होकर वैशाली के कंधे पर हाथ रख दिया और बोला "देख बेटा.. अगर पिंटू के परिवार वाले नहीं माने.. तो तुझे वास्तविकता का स्वीकार करना ही होगा.. तेरा तलाक हो चुका है और पिंटू अभी कुंवारा है.. कोई भी माँ बाप अपने कुँवारे बेटे की शादी किसी तलाकशुदा लड़की से नहीं करना चाहेंगे.. अगर पिंटू का प्यार सच्चा होगा तो वो अपने परिवार के सामने अड़ग रहकर अपना पक्ष रखेगा तो मुझे लगता है की उसके परिवार वालों को मानना ही होगा.. हम तो बस ईश्वर से प्रार्थना कर सकते है की वो सब को सद्बुद्धि दे और तुझे अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाए.. मान लो की अगर ऐसा नहीं भी होता.. तो हमें किसी और की तलाश करनी होगी.. पर तुम निराश मत होना बेटा.. याद रखना.. कुछ भी हो.. तेरे ये माँ-बाप हमेशा तेरे साथ खड़े रहेंगे" कहते हुए मदन की आँखें नम हो गई
अपनी बेटी को वास्तविकता का ज्ञान देना हर पिता का फर्ज होता है..
वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे.. पिंटू को खो देने का डर उसकी आँखों से साफ झलक रहा था.. उसे इस हाल मे देख शीला और मदन दोनों बेचैन हो गए.. जब खुद पर कंट्रोल न रहा तब वैशाली दौड़कर अपने कमरे मे चली गई और दरवाजा बंद कर दिया.. शीला और मदन दोनों समझ गए की अपने माँ-बाप से अपने आंसुओं को छुपाने के लिए वो अंदर चली गई थी.. वैसे सेंकड़ों किलोमीटर का अंतर भी क्यों न हो.. बेटी के आँसू तो माँ और बाप कहीं भी बैठे बैठे भांप लेते है.. मदन सब कुछ बर्दाश्त कर सकता था पर अपनी बेटी को रोते हुए नहीं देख सकता था.. और अब तक वैशाली ने बहोत दुख सहे थे.. और वो जरा भी नहीं चाहता था की वैशाली और दुखी हो.. !! सख्त और कठोर बापों को भी मैंने अपनी बेटी की जुदाई के गम मे छोटे बच्चों की तरह रोते हुए देखा है..
जब मदन से और बर्दाश्त नहीं हुआ तब उसने शीला से कहा "मैं थोड़ी देर मे आ रहा हूँ"
कहते हुए वो घर से बाहर निकल गया.. और फिर एक कोने मे खड़े रहकर बहोत रोया.. कुछ देर तक रोने के बाद दिल हल्का हो गया.. पास की दुकान से बिसलेरी की बोतल लेकर उसने अपना चेहरा धोया और ठंडा पानी पिया..
थोड़ा सा सामान्य होने के बाद, मदन ने पिंटू को फोन लगाया.. और पिंटू से उसके पिता के बारे मे.. उनके स्वभाव.. उनके कामकाज के बारे मे सारी जानकारी ले ली.. पिंटू ने भी बड़े उत्साह से उसे सब कुछ बताया..
पिंटू के पापा एक शिक्षक थे.. पिंटू ने कहा की उसने वैशाली के बारे मे घर पर बता दिया था.. उसकी मम्मी तो तैयार थी पर उसके पापा को समाज का डर सता रहा था..
पिंटू: "मुझे लगता है की मैं और मम्मी मिलकर पापा को मना लेंगे.. क्योंकी घर मे चलती तो आखिर मेरी मम्मी की ही है"
मदन: "ये तो कहानी घर घर की है.. दुनिया भर के अधिकतर घरों मे यही होता है.. पिंटू.. बेटा अगर तुझे एतराज न हो तो क्या मैं तेरे पापा से एक बार बात कर सकता हूँ?"
पिंटू: "मुझे क्यूँ एतराज होगा भला.. !! पर मैं चाहता हूँ की एक बार पापा को मना लूँ.. फिर आप बात कीजिए.. मैं नहीं चाहता की वो बेवजह आपका कोई इंसल्ट कर दे.. !!"
पिंटू की समझदारी देखकर मदन को बहुत ही अच्छा लगा.. उसने कहा "ओके बेटा.. जैसा तुम कहो.. वैसे कब तक फैसला आने की संभावना है?"
पिंटू: "अंकल, मम्मी ने कहा ही की वो आज रात को ही पापा से बात करेगी.. सुबह तक तो पता चला जाएगा.. और मुझे आशा है की फैसला हमारे पक्ष मे ही आएगा"
मदन ने फोन रख दिया.. उस पूरे दिन मदन वैशाली के भविष्य के बारे मे चिंता करता रहा.. पिंटू के साथ फोन पर हुई बातचीत के बारे मे मदन ने शीला या वैशाली को कुछ नहीं बताया.. होता कुछ नहीं और बेकार मे वह दोनों भी पूरा दिन टेंशन लेकर घूमती रहती..
दूसरी सुबह उठाते ही मदन ने पिंटू को फोन किया
पिंटू: "सॉरी अंकल.. पापा नहीं मान रहे.. उनका कहना है की एक तलाकशुदा लड़की उनकी बहु बनकर आई तो उनकी नाक कट जाएगी.. लोग कहेंगे की इकलौते लड़के के लिए एक कुंवारी लड़की भी नहीं ढूंढ पाए"
शीला और वैशाली सुन न ले इसलिए मदन ने तभी फोन काट दिया..
वैशाली के ऑफिस जाने के बाद.. मदन ने पिंटू के पापा को कॉल किया.. और वैशाली के भूतकाल.. उसकी निर्दोषता की अच्छी वकालत करते हुए.. उन्हें सारी हकीकत बता दी.. काफी समझाने के बाद पिंटू के पापा मान गए.. और बच्चों की खुशी के खातिर हाँ कह दी.. !! पिंटू की मम्मी का भी यही मानना था की उनके बेटे को उसी से ब्याह करना चाहिए जिससे वो प्यार करता हो.. !!
वैशाली और पिंटू के जीवन मे खुशी का एक स्थायी रंग जुडने वाला था.. जो आखिरी समस्या थी वह अब हल होती नजर आ रही थी
पर पिंटू के पापा ने एक शर्त रखी थी.. वह चाहते थे की रिश्ता तय करने से पहले, वैशाली एक महीने के लिए उनके घर आकर रहें.. जिससे को उनके परिवार के लोग वैशाली के स्वभाव, आदतों और चारित्र से भलीभाँति परिचित हो सके.. साथ ही वैशाली भी उनके परिवार के सदस्यों को अच्छी तरह पहचान ले..
उनकी यह शर्त शीला और मदन को बड़ी अटपटी सी लगी.. लेकिन आखिर वो भी इस बात के लिए मान ही गए..
इस शर्त को पूरा करने के लिए अब वैशाली को राजेश सर की ऑफिस वाली नौकरी छोड़नी पड़ेगी.. एक ही निर्णय से कितने सारे बदलाव आने लगे थे.. !! जीवन के कुछ परिवर्तन ऐसे होते है जिन्हें स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं होता.. !! वैशाली ने बड़े ही दुख के साथ राजेश को अपना त्यागपत्र सौंप दिया और कुछ दिनों के बाद पिंटू के घर जाने की घड़ी आ गई
शीला और मदन के लिए तो एक ही जनम मे.. एक बेटी को दूसरी बार विदा करने का मौका आया था.. जब पिंटू वैशाली को लेने आया तब वैशाली शीला से लिपट कर खूब रोई.. मदन के कंधे पर आँसू बहाए.. पिंटू के काफी प्रयासों के बाद वैशाली आखिर शांत हुई और उसके साथ चली गई
वैशाली के जाते ही.. शीला और मदन का घर एक अजीब से खलिश से भर गया.. जैसे उनके बागीचे की इकलौती चिड़िया जा चुकी हो.. !!
बेटी को विदा करने के बाद.. घर शमशान सा प्रतीत होता है.. जन्म से लेकर जवानी तक.. जिस घर मे उस लड़की की परवरिश हुई हो.. जिसके चहकने से पूरा घर हर पल गूँजता रहता हो.. वह बेटी जब घर से चली जाए.. तब घर के सदस्यों के साथ साथ घर की दीवारें भी रो पड़ती है.. !! यह दर्द तो वही जानता है जिसने महसूस किया हो.. !!
मदन और शीला बिल्कुल अकेले हो गए.. उन्हें सामान्य होने मे कई दिन लग गए..
कविता दिन मे एक-दो बार वैशाली को फोन करती और उसके हाल पूछती.. पीयूष और कविता हफ्ते मे एक बार पिंटू के घर आते.. और दोनों जोड़ें मिलकर साथ मे बहोत मजे करते.. वैशाली के आने से कविता के जीवन का खालीपन थोड़ा सा कम होने लगा था.. पीयूष पूरा दिन ऑफिस रहता.. हाँ मौसम और फाल्गुनी की कंपनी मिलती.. पर वो दोनों भी अपनी कॉलेज के आखिरी साल मे काफी बीजी रहते थे.. वैशाली के आने से कविता को एक साथ मिल गया
पीयूष को आखिर उस अमरीकन कंपनी का ऑर्डर मिल ही गया.. पर उसके कारण तो पीयूष की व्यस्तता और बढ़ गई.. !!
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