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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

CHETANSONI

KING of milf😎
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कविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"

कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता


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रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..


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उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..


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वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..

"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..

वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"

कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..

कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"

"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!

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"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे

रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..

रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने

कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..

"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"

अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..

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कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..

रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..

वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!

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वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!

"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"

कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"

"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "


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बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा

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"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..

तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..

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बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी

घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..

रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..

वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी



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बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!

थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"

सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा

कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"

रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"

इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"

वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..

वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..

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रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..

पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी

रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये

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कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"

रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..

बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"

रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा

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"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..

रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!

वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!

कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..

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वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..

"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..

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"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा

कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"

थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..


रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
Best story tho hai no doubt per every update is creating something good enviorment loving to read it keep updating bhai 🎉🎊
 
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vakharia ji..बहुत बढ़िया और लाजवाब अपडेट. ये कहानी भी दिन प्रतिदिन आपकी लेखन कला के कौशल को दिखा रही है। मेरी समझ के आधार पर नीचे कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं..

हवस का नशा सबसे ज्यादा घातक होता है सीधा दिमाग पर वार करता है। सोचने समझने की इंद्रियों को अपने वश में कर के सिर्फ एक ही मंजिल नजर आने देता है…चरमसुख. चरमसुख का एहसास और चरमसुख तक पहुंच ने में काफी कुछ झेलना पड़ता है। लंबे तगड़े लंड के जोर के झटके खाने पड़ते हैं. बिन लाज शर्म के चरमसुख का एहसास होना मुश्किल है.

कम्मोतेजना के ज्वार में डूबी एक महिला के कामुकता को सिर्फ वो मर्द समझ सकता है जो उससे प्यार ना करता हो।
क्योंकि जब आप प्यार करते हैं तो कठोर नही हो सकते। और ये दोनों बातें वैशाली और रसिक पर बेखूबी लागू होती हैं। वैशाली काम वासना से तड़पती हुई एक औरत और रसिक एक भोरया हुआ सांड जिसको सिर्फ औरत की अपने दमदार लिंग से चुदाई करने से मतलब है। प्रेम का एक मात्र भी कतरा नहीं.

अगर अब कविता की बात करें तो उसके मन की दुविधा बड़ी विचित्र है. एक तरफ घर वालों का प्यार इज्जत उसके कदम रोक रही है और दूसरी तरफ उसके बदन की गर्मी उसे सब बंधनों को तोड़ भी देना चाहती है. जब एक लड़की को संभोग की प्यास लगती है, तो जब तक वो तृप्त ना हो उसे खत्म कर पाना ना मुमकिन है!

एक बार एक पुरुष अपने मन को मार सकता है पर एक स्त्री अपने अंदर आए वेग को रोक नहीं सकती! जो औरत मर्द के आगे झुकती है वो ही ज्यादा चरमसुख प्राप्त कर पाती है।जिस औरत में अकड़ होती हैं वो कभी चरमसुख की भोगी नही होती है। कविता शायद रसिक के लिंग का साइज देख कर थोड़ा गड़बड़ रही है. पर उसे समझना होगा की हम औरतें कितनी भी कोमल क्यों ना हो अगर हम घोड़ी बन जाती है तो तगड़े से तगड़े मर्द को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती है. फिर उनके झटके कीतने भी तगड़े और जोरदार क्यों ना हो...उन्हे तब तक सहन करती रहती है जब तक वो मर्द थक कर पानी नही फेंक देता. रसिक तो एक अनपढ़ और गंवार दूधवाला है लेकिन काम क्रीड़ा का एक चतुर खिलाड़ी भी है। उसे मालूम है की संभोग के लिए अगर महिला को पूर्ण रूप से उत्तेजित किया जाए तो महिला ख़ुद आगे बढ़कर पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि की दरारों में प्रवेश कर देती है जिससे उत्तेजना उच्चतम स्तर तक पहुंच जाती है ओर संभोग बहुत ही आनन्दमय हो जाता है..!!!
कामवासना में पुरुष अक्सर कमजोर हीं होते हैं, वो सबकुछ एकबार मे हीं ले लेना चाहते हैं। जबकि पुरुष स्वभाव के विपरीत स्त्री धीरवान होती है, वो हर आलिंगन का सिख धीरे धीरे लेकर सिसकना चाहती है .मेरे ख्याल से वैशाली से ज्यादा वो कविता को भोगने में दिलचस्पी है। कविता को दोबारा से इस स्थिति में लाना शायद मुश्किल हो। बेहतर होता है कि अपना लिंग रगड़ते रगड़ते वो अंदर घुसा देता है। एक बार अंदर घुस जाने पर कविता का विरोध भी कम हो जाता है और शारीरिक संतुष्टि भी मिल जाती है और भविष्य के लिए भी रास्ता खुल जाता है
Bahut khoob arushi ji,

Ek request hai, aapne rakshabandhan pe bhai bahan ki kavita likhi thi wo mil nahi Rahi, please send me or comment
 
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bstyhw

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vakharia ji..बहुत बढ़िया और लाजवाब अपडेट. ये कहानी भी दिन प्रतिदिन आपकी लेखन कला के कौशल को दिखा रही है। मेरी समझ के आधार पर नीचे कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं..

हवस का नशा सबसे ज्यादा घातक होता है सीधा दिमाग पर वार करता है। सोचने समझने की इंद्रियों को अपने वश में कर के सिर्फ एक ही मंजिल नजर आने देता है…चरमसुख. चरमसुख का एहसास और चरमसुख तक पहुंच ने में काफी कुछ झेलना पड़ता है। लंबे तगड़े लंड के जोर के झटके खाने पड़ते हैं. बिन लाज शर्म के चरमसुख का एहसास होना मुश्किल है.

कम्मोतेजना के ज्वार में डूबी एक महिला के कामुकता को सिर्फ वो मर्द समझ सकता है जो उससे प्यार ना करता हो।
क्योंकि जब आप प्यार करते हैं तो कठोर नही हो सकते। और ये दोनों बातें वैशाली और रसिक पर बेखूबी लागू होती हैं। वैशाली काम वासना से तड़पती हुई एक औरत और रसिक एक भोरया हुआ सांड जिसको सिर्फ औरत की अपने दमदार लिंग से चुदाई करने से मतलब है। प्रेम का एक मात्र भी कतरा नहीं.

अगर अब कविता की बात करें तो उसके मन की दुविधा बड़ी विचित्र है. एक तरफ घर वालों का प्यार इज्जत उसके कदम रोक रही है और दूसरी तरफ उसके बदन की गर्मी उसे सब बंधनों को तोड़ भी देना चाहती है. जब एक लड़की को संभोग की प्यास लगती है, तो जब तक वो तृप्त ना हो उसे खत्म कर पाना ना मुमकिन है!

एक बार एक पुरुष अपने मन को मार सकता है पर एक स्त्री अपने अंदर आए वेग को रोक नहीं सकती! जो औरत मर्द के आगे झुकती है वो ही ज्यादा चरमसुख प्राप्त कर पाती है।जिस औरत में अकड़ होती हैं वो कभी चरमसुख की भोगी नही होती है। कविता शायद रसिक के लिंग का साइज देख कर थोड़ा गड़बड़ रही है. पर उसे समझना होगा की हम औरतें कितनी भी कोमल क्यों ना हो अगर हम घोड़ी बन जाती है तो तगड़े से तगड़े मर्द को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती है. फिर उनके झटके कीतने भी तगड़े और जोरदार क्यों ना हो...उन्हे तब तक सहन करती रहती है जब तक वो मर्द थक कर पानी नही फेंक देता. रसिक तो एक अनपढ़ और गंवार दूधवाला है लेकिन काम क्रीड़ा का एक चतुर खिलाड़ी भी है। उसे मालूम है की संभोग के लिए अगर महिला को पूर्ण रूप से उत्तेजित किया जाए तो महिला ख़ुद आगे बढ़कर पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि की दरारों में प्रवेश कर देती है जिससे उत्तेजना उच्चतम स्तर तक पहुंच जाती है ओर संभोग बहुत ही आनन्दमय हो जाता है..!!!
कामवासना में पुरुष अक्सर कमजोर हीं होते हैं, वो सबकुछ एकबार मे हीं ले लेना चाहते हैं। जबकि पुरुष स्वभाव के विपरीत स्त्री धीरवान होती है, वो हर आलिंगन का सिख धीरे धीरे लेकर सिसकना चाहती है .मेरे ख्याल से वैशाली से ज्यादा वो कविता को भोगने में दिलचस्पी है। कविता को दोबारा से इस स्थिति में लाना शायद मुश्किल हो। बेहतर होता है कि अपना लिंग रगड़ते रगड़ते वो अंदर घुसा देता है। एक बार अंदर घुस जाने पर कविता का विरोध भी कम हो जाता है और शारीरिक संतुष्टि भी मिल जाती है और भविष्य के लिए भी रास्ता खुल जाता है
You are god gifted. Amazing description of the mental state of a sexually deprived middle aged women. No one could have described it any better.
 
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vakharia

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vakharia ji..बहुत बढ़िया और लाजवाब अपडेट. ये कहानी भी दिन प्रतिदिन आपकी लेखन कला के कौशल को दिखा रही है। मेरी समझ के आधार पर नीचे कुछ टिप्पणियाँ दी गई हैं..

हवस का नशा सबसे ज्यादा घातक होता है सीधा दिमाग पर वार करता है। सोचने समझने की इंद्रियों को अपने वश में कर के सिर्फ एक ही मंजिल नजर आने देता है…चरमसुख. चरमसुख का एहसास और चरमसुख तक पहुंच ने में काफी कुछ झेलना पड़ता है। लंबे तगड़े लंड के जोर के झटके खाने पड़ते हैं. बिन लाज शर्म के चरमसुख का एहसास होना मुश्किल है.

कम्मोतेजना के ज्वार में डूबी एक महिला के कामुकता को सिर्फ वो मर्द समझ सकता है जो उससे प्यार ना करता हो।
क्योंकि जब आप प्यार करते हैं तो कठोर नही हो सकते। और ये दोनों बातें वैशाली और रसिक पर बेखूबी लागू होती हैं। वैशाली काम वासना से तड़पती हुई एक औरत और रसिक एक भोरया हुआ सांड जिसको सिर्फ औरत की अपने दमदार लिंग से चुदाई करने से मतलब है। प्रेम का एक मात्र भी कतरा नहीं.

अगर अब कविता की बात करें तो उसके मन की दुविधा बड़ी विचित्र है. एक तरफ घर वालों का प्यार इज्जत उसके कदम रोक रही है और दूसरी तरफ उसके बदन की गर्मी उसे सब बंधनों को तोड़ भी देना चाहती है. जब एक लड़की को संभोग की प्यास लगती है, तो जब तक वो तृप्त ना हो उसे खत्म कर पाना ना मुमकिन है!

एक बार एक पुरुष अपने मन को मार सकता है पर एक स्त्री अपने अंदर आए वेग को रोक नहीं सकती! जो औरत मर्द के आगे झुकती है वो ही ज्यादा चरमसुख प्राप्त कर पाती है।जिस औरत में अकड़ होती हैं वो कभी चरमसुख की भोगी नही होती है। कविता शायद रसिक के लिंग का साइज देख कर थोड़ा गड़बड़ रही है. पर उसे समझना होगा की हम औरतें कितनी भी कोमल क्यों ना हो अगर हम घोड़ी बन जाती है तो तगड़े से तगड़े मर्द को भी अपने ऊपर चढ़ा लेती है. फिर उनके झटके कीतने भी तगड़े और जोरदार क्यों ना हो...उन्हे तब तक सहन करती रहती है जब तक वो मर्द थक कर पानी नही फेंक देता. रसिक तो एक अनपढ़ और गंवार दूधवाला है लेकिन काम क्रीड़ा का एक चतुर खिलाड़ी भी है। उसे मालूम है की संभोग के लिए अगर महिला को पूर्ण रूप से उत्तेजित किया जाए तो महिला ख़ुद आगे बढ़कर पुरुष का लिंग पकड़कर अपनी योनि की दरारों में प्रवेश कर देती है जिससे उत्तेजना उच्चतम स्तर तक पहुंच जाती है ओर संभोग बहुत ही आनन्दमय हो जाता है..!!!
कामवासना में पुरुष अक्सर कमजोर हीं होते हैं, वो सबकुछ एकबार मे हीं ले लेना चाहते हैं। जबकि पुरुष स्वभाव के विपरीत स्त्री धीरवान होती है, वो हर आलिंगन का सिख धीरे धीरे लेकर सिसकना चाहती है .मेरे ख्याल से वैशाली से ज्यादा वो कविता को भोगने में दिलचस्पी है। कविता को दोबारा से इस स्थिति में लाना शायद मुश्किल हो। बेहतर होता है कि अपना लिंग रगड़ते रगड़ते वो अंदर घुसा देता है। एक बार अंदर घुस जाने पर कविता का विरोध भी कम हो जाता है और शारीरिक संतुष्टि भी मिल जाती है और भविष्य के लिए भी रास्ता खुल जाता है
arushi_dayal जी,

आपकी टिप्पणी पढ़कर गहराई से विचार करने का अवसर मिला.. आपने हवस और चरमसुख के विषय में जो लिखा है, वह वास्तव में विचारणीय है.. हवस का नशा वास्तव में मनुष्य के विवेक और सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है.. यह एक ऐसी अवस्था है जो व्यक्ति को अपने वश में कर लेती है और उसकी सारी ऊर्जा और चेतना को एक ही लक्ष्य की ओर केंद्रित कर देती है..

चरमसुख की प्राप्ति निस्संदेह एक गहन अनुभव है, लेकिन जैसा कि आपने कहा, इसे प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ झेलना पड़ता है.. यह केवल शारीरिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि मानसिक स्तर पर भी एक चुनौतीपूर्ण यात्रा है.. हवस और चरमसुख की चाह मनुष्य की आंतरिक द्वंद्व को दर्शाता है, जहां वह अपनी इंद्रियों और विवेक के बीच झूलता रहता है..

आपने जिस बिंदु को उठाया है कि "बिना लाज-शर्म के चरमसुख का एहसास होना मुश्किल है," वह अत्यंत सटीक है.. लाज और शर्म मनुष्य के सामाजिक और नैतिक बंधनों का प्रतीक हैं, और इनके बिना चरमसुख की प्राप्ति अधूरी लगती है..

इस विषय को और गहराई से देखें तो हवस और चरमसुख का यह संबंध केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मनुष्य के अस्तित्व और उसकी आंतरिक खोज से भी जुड़ा हुआ है.. यह एक ऐसा अनुभव है जो हमें हमारी सीमाओं और संभावनाओं के बारे में सोचने पर मजबूर करता है..

आपका यह कहना कि "कामोत्तेजना के ज्वार में डूबी एक महिला के कामुकता को सिर्फ वही मर्द समझ सकता है जो उससे प्यार न करता हो," एक विचारणीय बिंदु है.. यह विचार प्रेम और कामुकता के बीच के अंतर को रेखांकित करता है..

प्रेम और कामुकता दो अलग-अलग ध्रुव हैं, जो कभी-कभी एक-दूसरे के समानांतर चलते हैं तो कभी विपरीत दिशाओं में.. प्रेम में कोमलता, समर्पण और संवेदनशीलता होती है, जबकि कामुकता अक्सर आवेग, तीव्र इच्छा और शारीरिक आकर्षण से जुड़ी होती है.. जैसा कि आपने कहा, प्रेम करने वाला व्यक्ति कठोर नहीं हो सकता, क्योंकि प्रेम में दूसरे की भावनाओं और इच्छाओं का सम्मान करने की क्षमता होती है.. वहीं, कामुकता कभी-कभी स्वार्थी और एकतरफा हो सकती है, जहां सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति मायने रखती है..

आपने वैशाली और रसिक के उदाहरण के माध्यम से इस विचार को और स्पष्ट किया है.. वैशाली का काम-वासना से तड़पना और रसिक का सिर्फ शारीरिक सुख की तलाश में भटकना, यह दोनों ही चरित्र प्रेम और कामुकता के बीच के अंतर को उजागर करते हैं.. वैशाली की तड़प उसकी आंतरिक इच्छाओं और भावनाओं को दर्शाती है, जबकि रसिक का व्यवहार शुद्ध रूप से शारीरिक आकर्षण और स्वार्थ पर केंद्रित है.. यह द्वंद्व मानवीय संबंधों की जटिलता को दर्शाता है..

इस विषय को और आगे बढ़ाएं तो हम पाएंगे कि प्रेम और कामुकता के बीच का यह अंतर मनुष्य के अस्तित्व और उसकी आंतरिक खोज से जुड़ा हुआ है.. प्रेम एक ऐसा बंधन है जो दो आत्माओं को जोड़ता है, जबकि कामुकता अक्सर शारीरिक सुख तक सीमित रहती है.. हालांकि, यह भी सच है कि प्रेम और कामुकता का सही संतुलन ही एक संपूर्ण और सार्थक संबंध का निर्माण कर सकता है..


आपने कविता की जिस "दुविधा" की बात की है, वह वास्तव में एक स्त्री के मन की उस जटिलता को दर्शाता है, जहां एक ओर परिवार और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियाँ और इज्जत हैं, तो दूसरी ओर उसकी शारीरिक और भावनात्मक आकांक्षाएँ हैं.. यह युद्ध न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि उसकी पहचान और स्वतंत्रता के प्रश्न को भी गहराई से छूता है.. एक तरफ समाज और परिवार का प्यार और इज्जत उसके लिए एक सुरक्षा कवच का काम करते हैं, तो दूसरी तरफ यही चीजें उसकी आजादी और इच्छाओं पर पाबंदी भी लगाती हैं.. दूसरी ओर, शारीरिक गर्मी और संभोग की प्यास उसकी प्राकृतिक इच्छा है, जो उसे अपने अस्तित्व और सुख की तलाश में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है.. यह संघर्ष केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि यह उसकी मानसिक स्वतंत्रता से भी जुड़ा हुआ है..

आपका यह कहना कि "जब एक लड़की को संभोग की प्यास लगती है, तो जब तक वो तृप्त ना हो उसे खत्म कर पाना ना मुमकिन है," यह एक सच्चाई को दर्शाता है.. यह प्यास केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि यह उसकी आत्मा की गहराई से जुड़ी हुई है.. यह उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है.. यह तृप्ति केवल शारीरिक सुख तक सीमित न होकर उसकी भावनात्मक और मानसिक संतुष्टि से भी जुड़ी हुई है..

इस विषय को और गहराई से देखें तो हम पाएंगे कि यह मानसिक युद्ध केवल एक स्त्री तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवीय अस्तित्व का एक सार्वभौमिक पहलू है.. हर व्यक्ति के जीवन में कुछ ऐसे पल आते हैं, जहां उसे अपनी इच्छाओं और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है.. यह संघर्ष हमें हमारी मानवीयता और हमारे अस्तित्व के बारे में सोचने पर मजबूर करता है..

पुरुष और स्त्री की विभिन्न कामोत्तेजना के बारे में आपने बड़ी ही बारीकी से कहा.. पुरुष की उत्तेजना बोतल से निकलती हुई सोडा के झाग जैसी होती है.. रोक पाना कठिन और झाग एक बार निकल जाएँ फिर शांत भी तुरंत हो जाती है.. जब की स्त्री की उत्तेजना उबलते हुए पानी जैसी होती है.. गरम होने में वक्त लगता है पर एक बार उबाल आ गया फिर ठंडा होने में लंबा समय लगता है..

अब कविता रसिक के पौरुषसभर अंग को अपने यौनांग में लेने की हिम्मत कर पाती है या नहीं, यह कथा के आगे के भागों में आप पढ़ पाएंगे.. कहानी से जुड़े रहिए और यूं ही अपनी प्रतिक्रिया और विचारों को प्रदर्शित करते रहिए

सादर


वखारिया
 
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rtnalkumar

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वखारिया जी, आपने बहुत अच्छी व्याख्या की है। चरमसुख, कामोत्तेजना, क्षणिक सुख बहुत सुंदर।
 
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krish1152

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nice update
 
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vakharia

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परफोरमन्स रिव्यू हो.. अप्रेज़ल हो.. प्रमोशन की बात हो या फिर टारगेट हासिल न हुआ हो..

बॉस के पास जाकर, भिन्न भिन्न तरीकों से मुआवजा देना ही पड़ता है..!!



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