- 5,238
- 14,082
- 174
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाकविता: "अच्छा.. फिर तो ठीक है.. मौका मिला तो तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरा करने की कोशिश करूंगी.. पर जब तक मैं सामने से न कहूँ..तब तक तुम मुझे हाथ भी नहीं लगाओगे.. किसी को भी कोई शक हो ऐसा कुछ भी करने की कोशिश करोगे तो जो मिल रहा होगा वो भी खोने की बारी आ जाएगी"
कविता के बात सुनते हुए वैशाली ने रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया था.. वैशाली के इस साहस मे मदद करने के लिए रसिक की जांघ से उठकर, खटिया के छोर पर खड़ी हो गई कविता
रसिक की मोटी जांघों की दोनों ओर अपने पैर फैलाकर बैठते हुए.. नीचे हाथ डालकर.. अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस पर रगड़ रही थी वैशाली.. स्त्री के शरीर के सब से संवेदनशील हिस्से पर मर्द के जीवंत पौरुष-सभर अंग का गरमागरम स्पर्श होते ही, वैशाली का बदन लहराने लगा..
उसके बदन मे कसाव आने लगा और साथ ही साथ उत्तेजना बढ़ने लगी.. उसका साहस भी अब एक कदम आगे बढ़ने लगा था.. उत्तेजना इंसान को साहसिक बना देती है.. वैशाली ने रसिक का खंभे जैसा लंड अपनी बुर मे लेने के लिए कमर कस ली थी.. अपनी योनि के सुराख पर रसिक का लाल टमाटर जैसा सुपाड़ा टिकाते हुए उसने हल्के हल्के शरीर का दबाव बनाना शुरू किया.. योनिमार्ग के शुरुआती प्रतिरोध के बाद.. रसिक का सुपाड़ा अंदर धीरे धीरे घुस गया.. वैशाली उस विकराल लंड को बड़ी मुश्किल से आधा ही ले पाई अंदर.. वैशाली अब स्थिर हो गई.. शरीर का पूरा वज़न डालने के बावजूद लोडा ज्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.. उसकी चूत अपने महत्तम परिघ तक फैल चुकी थी.. इससे ज्यादा चौड़ी होना मुमकिन नहीं था..
वैशाली के चेहरे पर असह्य पीड़ा के भाव दिख रहे थे.. इतनी सर्द रात मे भी उसका बदन पसीने से तर हो रहा था..
"क्या हो रहा है तुझे वैशाली? बाहर निकाल देना है...??" वैशाली को इस हाल मे देखकर.. घबराते हुए कविता ने कहा..
वैशाली ने टूटती हुई आवाज मे कहा.. "न.. नहीं.. इस दर्द को सहने के लिए.. तो मैं.. आह्ह.. तड़प रही थी.. मर जाने दे मुझे.. पर मैं इसे अब बाहर नहीं निकालूँगी.. ओह्ह.. मज़ा आएगा अब तो.. कविता.. ओह माय गॉड.. क्या मस्त लंड है यार.. प्लीज.. जरा नीचे देखकर बता मुझे.. कितना अंदर गया और कितना बाकी है.. !!"
कविता खटिया के पास, रसिक की जांघों के बीच बैठ गई और देखने की कोशिश करने लगी.. पर अंधेरे मे घंटा कुछ नजर नहीं आ रहा था..
कविता: "कुछ दिख नहीं रहा है वैशाली.. !!"
"एक मिनट भाभी.. " रसिक ने कहा.. और वैशाली को कमर से पकड़कर वो खटिया से खड़ा हो गया.. ऐसा करने से वैशाली की चूत और फैल गई और लंड का अधिक हिस्सा अंदर घुस गया.. वैशाली की चीख निकल गई... !!!!!
"ऊईईईईईई माँ.... !!!!!! मर गईई मम्मी.. रसिक बहोत दुख रहा है मुझे... आह उतार दे मुझे" वैशाली की आँखों से आँसू बहने लगे
रसिक ने वैशाली के चूतड़ों को अपने हाथों से सहारा देकर.. अपना लंड उसकी चूत से हल्का सा बाहर निकालकर वैशाली को थोड़ी सी राहत दी.. वैशाली की जान मे जान आई..
रसिक: "लीजिए भाभी... अब आपको दिखेगा.. " फूल की तरह उठा रखा था वैशाली को रसिक ने
कविता ने नीचे झुककर देखा.. अब लिंग-योनि की महायुति अब स्पष्ट नजर आ रही थी.. कविता ने वैशाली के चूतड़ों को जितना हो सकता था.. अपने हाथों से फैलाकर देखा.. देखकर कविता की जुबान उसके हलक मे उतर गई... वैशाली की चूत के अंदर रसिक का लंड बुरी तरह फंसा हुआ था.. वीर्य से भरे अंडकोश इतने मोटे मोटे नजर आ रहे थे.. वैशाली की द्रवित हो रही चूत के रस से सराबोर होकर.. आग की रोशनी मे कंचे की तरह चमक रहे थे..
"अभी तो आधा ही अंदर गया है वैशाली.. आधा बाहर है" कविता ने रसिक के अंडकोशों पर हाथ फेर लिया.. और लंड के बाहर वाले हिस्से की मोटाई को हाथ लगाकर नापते हुए... घबराकर कहा "ओ बाप रे.. पूरा तो अंदर जाएगा ही नहीं.. फट जाएगी तेरी.. !!"
अपने राक्षसी हाथों मे वैशाली को उठाकर आग की प्रदक्षिणा करते हुए हल्के हल्के चोदने लगा रसिक.. उसके हर नाजुक धक्के के साथ वैशाली की सिसकियाँ और दर्द भरी कराहें निकलकर.. रात के अंधेरे मे ओजल हो रही थी.. बड़ा खतरनाक साहस कर दिया था वैशाली ने.. अपनी हवस को संतुष्ट करने के लिए इंसान बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को तैयार हो जाता है.. यह उसका प्रत्यक्ष उदाहरण था..
कविता खटिया पर बैठे बैठे.. दोनों के कठिन और कामुक मिलन को विस्मय भरी नज़रों से देख रही थी.. गदराए बदन वाली वैशाली को उचककर घूम रहे रसिक के हाथ के डोले फूल गए थे.. वैशाली ने रसिक की गर्दन मे अपने दोनों हाथ पिरोते हुए अपना सारा वज़न उसके शरीर पर डाल दिया था.. रसिक और वैशाली के होंठ बस चार-पाँच इंच के अंतर पर थे.. वैशाली के मुलायम गुलाबी होंठों को अपना बनाने के इरादे से रसिक ने अपने खुरदरे काले होंठों से उसे चूम लिया.. और अनुभवहीनता से चूसने लगा.. वो ऐसे चूम रहा था जैसे पुंगी बजा रहा हो..
रसिक के चूमने के इस तरीके पर वैशाली को हंसी आ गई.. पर वो हंसी ज्यादा देर तक टिकी नहीं.. क्योंकि रसिक को किस करना आता नहीं था और वो खुद भी यह जानता था.. अब तक उसने उस क्षेत्र मे ज्यादा संशोधन किया नहीं था.. जरूरत भी नहीं पड़ी थी.. जितनी औरतों से उसका पाला पड़ा था उन्हें चूमने से ज्यादा उसके लंड से चुदने में ज्यादा दिलचस्पी थी.. उसने एक विशेष इरादे से वैशाली को किस किया था.. जो वैशाली को जल्दी ही समझ आने वाला था..
वैशाली की चूत के बाहर जो आधा लंड घुसना बाकी था.. उसे एक जबरदस्त धक्का देते हुए अंदर डालने के बाद.. वैशाली जोर से चीख न सकें इसलिए रसिक ने उसके मुंह को पकड़कर.. वैशाली के चूतड़ों के नीचे सपोर्ट देने के लिए रखे अपने दोनों हाथों को छोड़ दिया.. वैशाली के भारी शरीर का वज़न लंड पर पड़ते ही.. लंड का चार से पाँच इंच हिस्सा अंदर घुस गया.. !!!!!
वैशाली ऐसे फड़फड़ाते हुए तड़पने लगी जैसे मछली पानी से बाहर निकल ने पर फड़फड़ाती है.. रसिक की बाहों से छूटने के लिए जद्दोजहत करने लगी.. पर चूत के अंदर लंड.. नश्तर की तरह घुसे हुए उसे बहुत दर्द दे रहा था.. असह्य पीड़ा से कराहते हुए वैशली जरा सी भी हलचल करती तो उसका दर्द और बढ़ रहा था.. इसलिए अब वो हिल भी नहीं पा रही थी.. इसलिए वैशाली ने रसिक के बालों को ताकत पूर्वक पकड़कर लीप किस तोड़ दी और रसिक के कंधे पर सिर रखकर.. फुटफुटकर रोने लगी.. !!!
"ओह्ह... रसिक... मैं मर जाऊँगी..मुझे नहीं कराना.. प्लीज.. बाहर निकाल.. बहोत दर्द हो रहा है.. कविता यार.. जरा समझा रसिक को.. !!"
कविता खटिया पर बैठे बैठे एक लकड़ी की मदद से आग के अंदर लकड़ियों को सही कर रही थी.. बड़े ही आराम से उसने कहा "तुझे ही बड़ा शौक था उसका लेने का.. अब अपनी सारी तमन्ना पूरी कर.. !!"
"नहीं नहीं.. रसिक, आज नहीं.. फिर कभी जरूर करेंगे.. आज मुझे माफ कर.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. फट गई है मेरी.. मेरे शरीर के बीच से दो टुकड़े हो जाएंगे ऐसा लग रहा है मुझे.. प्लीज" वैशाली ने दर्द भरी विनती से रसिक और उत्तेजित हो गया.. उसने वैशाली को कविता के बगल मे.. खटिया पर लेटा दिया.. और उसकी दोनों टांगों को फैलाकर कविता के स्तनों को दबाने लगा और बोला "भाभी, आप इसकी दोनों टांगों को चौड़ा पकड़ रखिए.. आज तो वैशाली को पूरा मज़ा देकर ही दम लूँगा.. "
बड़ी ही स्फूर्ति से कविता खड़ी हो गई और वैशाली की दोनों टांगों को पकड़कर चौड़ा कर दिया.. पर ऐसा करते वक्त जांघों के बीच झूल रहे मस्त लंड को पकड़कर अपने मन की मुराद पूरा करना भूली नहीं.. वो भले ही चूत मे लेने के लिए समर्थ नहीं थी.. पर इस मन-लुभावन लंड को पसंद तो करने लगी थी.. कविता का हाथ लंड को छूते ही.. जैसे नेवले को देखकर सांप सचेत हो जाता है.. वैसे ही रसिक का लंड ऊपर होकर आसपास देखने लगा
"ओह् भेनचोद... भाभी, तेरे हाथ मे पता नहीं कौन सा जादू है.. हाथ लगते ही मेरा उछलने लगता है.. आह्ह भाभी, थोड़ा सहलाओ इसे.. आह आह मज़ा आ रहा है.. थोड़ा सा चूस भी ले मेरी रानी.. !!" आज पहली बार रसिक ने उसे "आप" के बदले "तू" कहकर संबोधित किया था.. कविता की प्यारी सी चूत मे जबरदस्त खुजली होने लगी..
तभी रसिक ने कविता को धक्का देकर वैशाली के बगल मे सुला दिया.. और रसिक उन दोनों के बदन पर छा गया.. भले ही अब तक एक भी चूत मे लंड घुस नहीं सका था.. पर रसिक के विशाल शरीर के तले दोनों लड़कियां ढँक गई थी.. वैशाली और कविता के स्तनों की हालत दयनीय थी.. मसल मसलकर रसिक ने स्तनों के आकार बदल दिया था.. उनके कोमल बदनो को कुचलते हुए.. अपने शरीर का तमाम वज़न उसने इन दोनों पर डाल दिया..
बारी बारी से दोनों के गालों को चूम रहा था रसिक.. वो दोनों के स्तनों को चूस रहा था.. जब वैशाली के स्तन को चूसता तब कविता के स्तन को मसलता.. उसके मर्दाना स्पर्श से दोनों कामुक सिसकियाँ निकालने लगी.. लंड बाहर निकल जाने से वैशाली का दर्द भी गायब हो चुका था.. अब वो नए दर्द के लिए तड़पने लगी थी
घनघोर अंधेरा.. कड़ाके की सर्दी... सुमसान खेत.. बीच मे जल रही आग.. पास पड़ी खटिया पर लेटी हुई.. दो अति सुंदर नग्न सुंदरियाँ.. और उनके ऊपर मंडरा रहा हेवान जैसा रसिक.. बड़ी ही अद्भुत रात थी ये कविता और वैशाली के लिए.. दोनों सहेलियाँ इतनी कामुक हो गई थी अब उन्हें रसिक के छूने से कोई संकोच नहीं हो रहा था.. जो कविता रसिक से नफरत करती थी वो उसकी मर्दानगी को सलाम करने लगी थी..
रसिक का खड़ा लंड कविता के पेट और नाभि पर चुभ रहा था.. और उसे बेहद मज़ा आ रहा था.. वैशाली इतनी उत्तेजित थी की रसिक के शरीर को कविता के ऊपर से खींचकर अपने ऊपर लेने की कोशिश कर रही थी.. रसिक के स्वागत के लिए उसने अपनी जांघें खोल रखी थी.. वैशाली का आमंत्रण समझ गया रसिक.. और कविता के ऊपर से सरककर वैशाली के शरीर के ऊपर छा गया..
वैशाली की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. रसिक का लोडा वैशाली की चूत ढूंढकर.. बड़े ही आराम से आधा अंदर उतर गया.. वैशाली की आँखों मे मोटे लंड-प्रवेश का जबरदस्त सुरूर छाने लगा था.. रसिक के काले चूतड़ों पर हाथ फेरते हुए वो उसके कंधों पर काटने लगी
बगल मे लेटी कविता खुद ही अपनी चूत सहलाते हुए रसिक के कूल्हे और पीठ पर हाथ सहला रही थी.. और आश्चर्य भरी नज़रों से वैशाली के इस अप्रतिम साहस को देख रही थी.. एक पल के लिए उसे ऐसा मन हुआ की वो वैशाली को हटाकर खुद रसिक के नीचे लेट जाए.. जो होगा फिर देखा जाएगा.. पर दूसरे ही पल.. वैशाली की दर्द-सभर चीखें याद आ गई और उसका हौसला पस्त हो गया.. !!
थोड़ी देर पहले रसिक ने जितना लंड वैशाली की चूत मे डाला था, उतना तो इस बार आसानी से चला गया.. पर लंड का बाकी हिस्सा अंदर घुसने का नाम ही नहीं ले रहा था.. रसिक ने अब बाकी का लंड, किसी भी सूरत मे, अंदर डालने का मन बनाकर कविता से कहा "तुम इसका मुंह बंद दबाकर रखो.. मैं आखरी शॉट मारने जा रहा हूँ"
सुनते ही वैशाली की शक्ल रोने जैसी हो गई, वो बोली "नहीं रसिक.. मेरी फट जाएगी.. खून निकल जाएगा.. पूरा अंदर नहीं जाएगा.. बस जितना अंदर गया है उतना ही अंदर बाहर करते है ना.. !!! दोनों को मज़ा आएगा" अपना मुंह दबाने करीब आ रही कविता को दूर धकेलते हुए वैशाली ने कहा
कविता: "हाँ रसिक.. उसको जिस तरह करवाना हो वैसे ही करो.. जो करने मे उसे मज़ा न आए और दर्द हो.. ऐसा करने मे क्या फायदा??"
रसिक: "ठीक है भाभी.. जैसा तुम कहो.. !!"
इतना कहते हुए रसिक ने कविता का हाथ पकड़कर.. चूत से बाहर लंड के हिस्से पर रखते हुए कहा "इस आधे लंड को तुम पकड़कर रखो.. ताकि इससे ज्यादा अंदर जाए नहीं.. मैं धक्के मारना शुरू कर रहा हूँ.. वैशाली, अगर दर्द ज्यादा हो तो बता देना.. मैं पूरा बाहर निकाल दूंगा.. ठीक है.. !!"
वैशाली की चूत मे आधे घुसे लंड के बाद जो हिस्सा बाहर रह गया था, उसे मुठ्ठी मे पकड़ लिया कविता ने.. लंड के परिघ को नापते हुए कविता के रोंगटे खड़े हो गए.. इतना मोटा था की कविता अपनी हथेली से उसे पूरी तरह पकड़ भी नहीं पा रही थी..
वैशाई के भारी भरकम स्तनों को मसलते हुए.. पहले लोकल ट्रेन की गति से.. और फिर राजधानी की स्पीड से.. रसिक पेलने लगा..!! वैशाली आनंद से सराबोर हो गई.. उसके शरीर मे.. रसिक के लंड के घर्षण से एक तरह की ऐसी ऊर्जा उत्पन्न हुई की इतने भारी रसिक के नीचे दबे होने के बावजूद वो अपने चूतड़ उठाकर उछल रही थी.. रसिक को भी बहोत मज़ा आ रहा था.. बड़ी उम्र की.. फैले हुए भोसड़ों वाली औरतों के मुकाबले.. वैशाली की चूत तो काफी टाइट थी.. वो सिसकते हुए वैशाली की जवानी को रौंदने लगा..
रसिक ने धक्के लगाने की गति को और तेज कर दिया.. उसके हेवानी धक्कों की वजह से हुआ यह की.. कविता का हाथ उसके लंड से छूट गया.. जो स्टापर का काम कर रहा था.. चूत के अंदर जाने का जो तय नाप था.. वो अब नहीं रहा.. और लंड पूरा अंदर घुस गया.. और वैशाली की फिर से चीख निकल गई..
पर अब रसिक रुकने वाला नहीं था.. लगभग पाँच मिनट की जंगली चुदाई के बाद वैशाली का शरीर ढीला पड़ गया और वो रसिक के बदन से लिपट पड़ी.. "आह आह रसिक.. आह्ह आह्ह ओह्ह मैं गई अब... ऊँहह.. आह्ह.. !!!" कहते हुए वैशाली की चूत का रस झड़ गया.. इस अनोखे स्खलन को कविता बड़े ही करीब से देख रही थी
रसिक के लंड को पता चल गया की इस युद्ध मे उसकी भव्य विजय हुई है.. अब बिना एक पल का इंतज़ार कीये रसिक ने वैशाली की चूत से लंड बाहर निकाला और उसके शरीर के ऊपर से खड़ा हो गया.. हल्का सा सरककर वो कविता के ऊपर चढ़ गया.. उससे पहले की कविता को सोच या समझ पाती.. रसिक ने अपने हाथ से लंड के सुपाड़े को कविता की फुलझड़ी पर रगड़ना शुरू कर दिया.. रसिक की इस हरकत को देखकर ही कविता कांप उठी.. उसने हाथ जोड़ दीये
कविता: "नहीं नहीं रसिक.. वैशाली की बात अलग है.. मेरे अंदर डालने की कोशिश भी की तो मेरी जान निकल जाएगी"
रसिक: "तुम चिंता मत करो भाभी.. अंदर नहीं डालूँगा.. मुझे पता है की अंदर जाएगा ही नहीं.. इतनी संकरी है आपकी फुद्दी.. जहां मेरी उंगली भी मुश्किल से घुस पाती हो वहाँ ये डंडा तो जाने से रहा.. मैं तो बस ऊपर ऊपर से रगड़कर आपको मज़ा देना चाहता हूँ.. देखना अभी कितना मज़ा आता है" कहते हुए रसिक कविता के गाल को चूमता हुआ उसके होंठों को चूसकर.. कविता की क्लिटोरिस को अपने खूंखार सुपाड़े से घिसने लगा.. आनंद से फड़फड़ाने लगी कविता..
बेहद उत्तेजित होकर कविता ने कहा "बहुत मज़ा आ रहा है रसिक.. एक बार मेरी चाटो ना.. !!"
रसिक बड़ी ही सावधानी से एक एक कदम आगे बढ़ रहा था.. वो ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता थी जिससे कविता नाराज हो.. वो खड़ा हो गया.. कविता के पूरे शरीर को सहलाते हुए पलट गया.. कविता के मुख की तरफ अपना लंड सेट करके वो उसके ऊपर लेट गया.. कविता के चूतड़ों के नीचे हाथ डालकर खिलौने की तरह ऊपर उठाते हुए वो चूत चाटने लगा
"आह्ह रसिक.. ओह ओह्ह.. " कविता ने सिसकने के लिए अपना मुंह खोला और तभी रसिक ने अपना लंड उसके होंठों के बीच दबाकर उसका मुंह बंद कर दिया.. बिना किसी घिन के रसिक का लंड पकड़कर बड़े ही प्रेम से चूसते हुए कविता ने अपना पूरा शरीर रसिक को सौंप दिया..
रसिक ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा था कविता भाभी उसका लंड चुसेगी.. अपने बबले दबाने देगी.. गुलाब की पंखुड़ियों जैसी उसकी चूत चाटने देगी..!!
वैशाली रसिक को कविता की चूत का रस चाटते हुए देखती रही और मन ही मन सोचने लगी "मम्मी या अनुमौसी की कोई गलती नहीं है.. रसिक है ही ऐसा की कोई भी औरत उसके नीचे सोने के लिए बेताब हो जाए.. जैसे मैं और कविता सुबह सुबह दूध लेते वक्त रसिक के साथ मस्ती कर रहे थे वैसे मम्मी भी करती ही होगी.. !! और कविता का कहना था की उसने मम्मी को रसिक के साथ यह सब करते हुए काफी बार देखा है.. !! इसका मतलब यह हुआ की मम्मी अभी भी रसिक के साथ ये सब करती होगी...?? जरूर करती होगी.. ऐसे लंड को भला कौन छोड़ेगा.. !!
कविता अपनी उत्तेजना के आखरी पड़ाव पर पहुँच चुकी थी.. और इस वक्त वो इतनी बेकाबू हो गई थी की रसिक के लंड को मुंह मे आधा लेकर वो पॉर्न फिल्मों की राँडों की तरह चूसने लगी.. रसिक भी सिसकियाँ भरते हुए कविता के मुंह से अपने लंड को निकालकर उसी अवस्था मे मुठ्ठी से पकड़कर जबरदस्त स्पीड से हिलाने लगा.. फांसी की सजा हुए कैदी की जैसे आखिरी इच्छा पूरी की जाती है वैसे रसिक अपने लंड को अंतिम सत्य के लिए लयबद्ध तरीके से हिला रहा था..
वैशाली कभी उसके हाथ के डोलों को देखती.. तो कभी उसकी मुठ्ठी मे आगे पीछे होते सुपाड़े को.. !! रसिक के चौड़े कंधे और बड़ी लाल आँखें रात के अंधेरे मे बेहद डरावनी लग रही थी..
"आह्ह आह्ह भाभी... आह.. !!" झटके खाते हुए रसिक का लंड अपना मलाईदार वीर्य स्खलित करने लगा.. दो फुट दूर बैठी वैशाली के गूँदाज बबलों पर वीर्य की पिचकारी जा गिरी.. दो तीन और पिचकारियों ने कविता के सुंदर स्तनों को भी पावन कर दिया.. लस्सेदार वीर्य को अपनी छाती पर मलने के बाद कविता के स्तन, अंधेरी रात मे तारों की तरह चमक रहे थे..
"वाह, यार रसिक, मज़ा आ गया.. तू सही मे असली वाला मर्द है.. तेरे बारे मे जितना कुछ सुना था.. उससे कई ज्यादा निकला.. दिल खुश हो गया.. कविता, अब हम चलें?" हांफते हुए वैशाली ने कविता को मदहोशी से होश मे लाने की कोशिश करते हुए कहा
कविता अब भी इस दमदार चूत चटाई के नशे मे ही थी.. उसकी ढली हुई आँखें, बड़ी मुश्किल से उठाते हुए उसने कहा " जाना ही पड़ेगा क्या.. !!"
थोड़ी देर के लिए दोनों रसिक की छाती को तकिया बनाकर लेटे रहे.. और आराम करने के बाद कपड़े पहनकर निकल गए..
रात के साढ़े बारह बज चुके थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
अगला अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
यह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
![]()
तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयारात के साढ़े बारह बजे थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!
"बाप रे... मम्मी पापा घर आ गए.. अब क्या करेंगे कविता?" वैशाली के होश उड़ गए थे
पर कविता के चेहरे पर जरा सा भी टेंशन नहीं था
कविता: "डर क्यों रही है?? केह देंगे की मूवी देखने गए थे.. !!"
वैशाली को यह बहाना दिमाग मे सेट हो गया.. शीला-मदन को जगाना न पड़े, इसलिए वह दोनों कविता के पुराने घर मे ही, बाहों मे बाहें डालकर सो गए..
सुबह पाँच बजे कविता की आँख खुल गई.. तभी उसने रसिक की सायकल की घंटी सुनी.. रोमांचित होते हुए उसने वैशाली की निप्पल पर हल्के से काटते हुए जगाया..
वैशाली ने कहा "कविता, मुझे मम्मी और रसिक का रोमांस देखना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. !!"
कविता: "मैं क्या सेटिंग करूँ?? तेरी मम्मी को जाकर ये कहूँ की वैशाली को देखना है इसलिए आप रसिक का लंड चुसिए.. !! कैसी बातें कर रही है यार.. !!"
वैशाली: "अरे यार.. तू हर बार जहां खड़े रहकर उन्हें देखती थी.. वहाँ से तो मुझे उनकी लीला नजर आएगी ना.. !!"
कविता: "हाँ, वो हो सकता है.. तू बरामदे मे जाकर खड़ी हो जा.. लाइट बंद ही रखना.. और छुपकर देखेगी तो तेरे घर का दरवाजा साफ नजर आएगा.. पर संभालना.. ज्यादा उठ उठकर देखने की कोशिश मत करना.. वरना भाभी को पता चल जाएगा" कविता ने अपना फोन उठाया और किसी को फोन करने लगी
वैशाली: "इस वक्त कीसे फोन कर रही है ??"
कविता: "रसिक को.. उसे कहती हूँ की आज वो रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा वक्त गुजारें भाभी के साथ.. ताकि हम दोनों को ठीक से देखने का मौका मिलें"
वैशाली: "अरे हाँ.. ये आइडिया अच्छा है.. मैं वहाँ जाकर खड़ी रहती हूँ.. तू भी जल्दी आ जाना.. !!"
वैशाली शॉल ओढ़कर बरामदे मे पहुँच गई और ऐसा एंगल सेट कर खड़ी रही जिससे की उसे अपने घर का दरवाजा नजर आए.. कविता भी उसके पीछे पीछे आकर खड़ी हो गई.. और वैशाली की शॉल मे घुसकर.. उसके जिस्म की गर्मी से सर्दी भगाने की कोशिश करते हुए, सामने नजर दिखने का इंतज़ार करने लगी
सर्दी उड़ाने के लिए.. और थोड़ी देर मे शुरू होने वाले पिक्चर की उत्तेजना मे.. वैशाली ने कविता के स्तनों को शॉल के अंदर मसलना शुरू कर दिया.. बीच बीच मे वह दोनों एक दूसरे के लिप्स भी चूम लेते.. नोबत यहाँ तक आ गई की दोनों एक दूसरे की शॉर्ट्स मे उँगलियाँ डालकर.. उनकी चूतों को उंगली भी करने लगी थी..
![]()
तभी रसिक ने शीला के घर का लोहे का दरवाजा खोला और अंदर एंट्री मारी..
"देख देख वो आ गया.. यार, उसके डोलों पर तो मेरा दिल आ गया है.. !!" वैशाली ने सिसकियाँ भरते हुए कविता के शरीर को इसकी सजा दी
रसिक कोई गीत गुनगुनाते हुए डोरबेल बजाकर खड़ा था.. दरवाजा खुलने तक वो अपना लंड सहलाकर उसे भरोसा दिला रहा था की सुबह की पहली खुराक अब मिलने ही वाली है.. !! कविता और वैशाली, रसिक को उसका लंड मसलते हुए देखकर आहें भरती रही..!!
थोड़ी देर बार शीला ने दरवाजा खोला.. और इससे पहले की कोई कुछ भी सोच या समझ पाता.. उसने रसिक को गिरहबान से पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया..
दरवाजा तो अब भी खुला ही था लेकिन रसिक की आगे पीछे हो रही गांड के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था.. यह देख कविता ने अंदाजा लगाया "लगता है भाभी उसका चूस रही है"
"यार, मम्मी तो नजर ही नहीं आ रही.. कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा" वैशाली ने जवाब दिया.. दोनों निराश हो गई..
कविता वैशाली के कान मे फुसफुसाई.. "रसिक को मैंने फोन किया था इसलिए वो कुछ न कुछ तो खेल करेगा ही, हमें दिखाने के लिए.. ये तो भाभी ने उसे अंदर खींच लिया इसलिए कुछ दिखा नहीं.. !!"
वैशाली: "पर क्या सच मे मम्मी ने उसका चूसा होगा?? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कविता" अपनी माँ की वकालत करते हुए वैशाली ने कहा
दोनों की गुसपुस चल रही थी तभी कविता ने वैशाली को उसके घर की तरफ देखने का इशारा किया.. वैशाली ने वहाँ देखा और स्तब्ध हो गई.. रसिक शीला को अपनी बाहों मे जकड़कर खड़ा था और शीला उसकी छातियों पर मुक्के मारकर छूटने का प्रयत्न कर रही थी.. रसिक शीला को खींचकर बाहर तक ले आया.. तब तक शीला ने अपने आप को रसिक की गिरफ्त से छुड़ाया और घर के अंदर चली गई.. रसिक भी सायकल ले कर निकल गया
कविता और वैशाली बेडरूम मे आ गए.. कविता ने शॉल हटाकर बेड पर फेंकी.. थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य के कारण वैसे भी वो गरम तो हो ही चुकी थी
वैशाली: "कविता, तूने अपनी सास को रसिक से चुदवाते अपनी आँखों से देखा था क्या.. ??"
कविता: "अरे, इसी बिस्तर पर मैं लेटी थी और मुझ से करीब दो फुट दूर ही रसिक ने मेरी सास को घोड़ी बनाकर पेल दिया था.. उससे पहले मम्मी जी ने बड़ी देर तक उसका लोडा चूसा भी था.. और वैशाली, रसिक का लंड लेते वक्त तुझे कितना दर्द हुआ था, पता है ना.. ! पर मेरी सास की गुफा मे रसिक का लंड ऐसे घुस रहा था जैसे मक्खन मे छुरी.. मम्मी जी तो रसिक के मूसल पर फिदा हो गई थी.. मैं सोने का नाटक करते हुए.. आधी खुली आँखों से रसिक के लंड को मम्मी जी की चूत मे गायब होते हुए देख रही थी.. इतना ताज्जुब हो रहा था मुझे.. !! इतनी आसानी से वो इतना बड़ा लंड ले पा रही थी..!!"
वैशाली: "जाहीर सी बात है कविता.. वो बूढ़ी है इसलिए उनकी चूत एकदम ढीली-ढाली हो गई होगी.. तभी आसानी से वो रसिक का ले पा रही थी"
दोनों बातें कर रहे थे.. तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला दोनों के लिए चाय लेकर आई थी.. तीनों चाय पीते पीते बातें करने लगी
शीला: "कल कहाँ गई थी तुम दोनों??"
वैशाली: "हम दोनों अकेले बोर हो रही थी.. तो मूवी देखने चली गई थी" यह सुनकर कविता अपने चेहरे के डरे हुए भाव न दिखे इसलिए मुंह छुपा रही थी
शीला: "अच्छा किया.. वैसे कौनसी मूवी देखने गई थी?"
कविता और वैशाली दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगी..
वैशाली: "साउथ का मूवी था मम्मी.. !!"
शीला: "कैसा लगा? मज़ा आया?"
कविता: "हाँ भाभी.. मस्त मूवी था.. बहुत मज़ा आया"
शीला: "याद है कविता?? हम एक बार साथ मूवी देखने गए थे.. पीयूष के साथ.. तब भी कितना मज़ा किया था.. !!"
कविता शरमा गई.. उसने वैशाली को यह बात बताई हुई थी.. पर शीला अचानक यह बात निकालेगी उसका उसे अंदाजा नहीं था
कविता: "हाँ भाभी.. वो मूवी तो मैं कभी नहीं भूलूँगी"
वैशाली: "क्यों?? ऐसा क्या खास था मूवी मे?"
कविता: "मूवी तो ठीकठाक ही थी.. पर हमने बहोत मजे कीये थे.. हैं ना भाभी.. !!"
वैशाली समझ गई और आगे कुछ बोली नहीं.. सिर्फ कविता को कुहनी मारकर चिढ़ाया
शीला: "देख कविता.. तू हमारे बुलाने पर आई, वो बहोत अच्छा किया.. ऐसे ही वैशाली की शादी से पहले भी तू आ जाना.. और अब मौसम की शादी भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर कर ही दो.. सुबोधकांत की अंतिम इच्छा भी पूरी हो जाए और एक जिम्मेदारी भी खत्म हो"
कविता: "अरे हाँ भाभी.. मैं बताना भूल गई.. मौसम की बात चलाई है हमने एक लड़के के साथ.. हमारी ऑफिस मे ही काम करता है.. बहुत ही होनहार लड़का है और मौसम को पसंद भी है.. बस लड़के वालों की हाँ आने की देर है"
वैशाली: "जवाब हाँ ही होगा.. मौसम को भला कौन मना करेगा?"
कविता: "वैशाली, मैं आज दोपहर को घर के लिए निकल जाऊँगी.. और तेरी शादी से पहले हम सब आ जाएंगे"
वैशाली: "वो तो आना ही पड़ेगा ना.. एक हफ्ते पहले से आ जाना.. सारा काम तुझे और अनुमौसी को ही संभालना होगा.. "
शीला: "चलो लड़कियों.. सात बज रहे है.. नहा-धो कर तैयार हो जाओ.. फिर हमें भी शॉपिंग करने निकलना है:
शीला और मदन तैयार होकर वैशाली की शादी की शॉपिंग करने निकल गए.. बाहर रोड पर जगह जगह "सिंघम अगैन" के पोस्टर्स लगे हुए थे..
यह देखकर शीला ने कहा "मदन, मुझे यह मूवी देखना है.. सिंघम के पहले वाले मूवीज भी बड़े मजेदार थे.. चलते है देखने"
मदन: "अरे यार, पहले बताना चाहिए था तुझे.. राजेश तो पिछले हफ्ते ही बोल रहा था की हम चारों यह वाला मूवी देखने चले.. पर ये शॉपिंग के चक्कर मे, मैं तुझे बताना ही भूल गया.. फिर मैंने सोचा, की अभी मूवी नई नई है, भीड़ बहुत ज्यादा होगी.. थोड़ा सा रश कम हो, फिर चलते है.. बता कब चलना है? राजेश को भी बोल देता हूँ"
शीला: "अरे मदन.. वो भूलभुलैया-3 भी तो आई है ना.. !! वो कौन से मल्टीप्लेक्स मे लगी है?"
मदन: "यार शीला.. तू अखबार पढ़ती भी है या नहीं?? वो नए कमिश्नर ने फायर सैफ्टी के चक्कर मे, सारे मल्टीप्लेक्स बंद कर रखे है.. बस ये एक वाला ही खुला है.. और उसमे सिंघम चल रहा है"
शीला के दिमाग मे घंटियाँ बजने लगी.. वैशाली और कविता तो बता रहे थे की कोई साउथ का मूवी देखकर आए..!!!! और यहाँ तो सिंघम अगैन चल रहा है.. !! उसका मतलब ये हुआ की दोनों झूठ बोल रही थी.. तो फिर इतनी रात गए दोनों कहाँ गई होगी?? रात के साढ़े बारह बजे तक दो जवान लड़कियां झूठ बोलकर बाहर अकेली घूम रही हो तो यह जरूर चिंता का विषय है.. दोनों ने जरूर कुछ न कुछ गुल खिलाए होंगे
पीयूष का फोन आ गया था.. वो बेंगलोर से लौट रहा था.. कविता घर वापिस लौटेने के लिए तैयार हो गई.. ब्लू कलर का स्किन-टाइट जीन्स और लाइट ग्रीन रंग का टॉप के ऊपर सन-ग्लास पहन कर वो अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़ी.. दोपहर के दो बज रहे थे.. अंधेरा होने से पहले वो आराम से अपने शहर पहुँच जाएगी
हाइवे के ऊपर ५० की स्पीड से चल रही गाड़ी.. एक चौराहे पर आकर अचानक रोक दी कविता ने... मैन रोड से अंदर कच्ची सड़क पर ले जाकर उसने गाड़ी एक जगह रोक दी.. और फिर चलते चलते अंदर की तरफ गई
"अरे भाभी... आप यहाँ? वो भी इस वक्त?" अचंभित होकर रसिक ने कविता को देखकर पूछा.. कविता के लिबास को देखकर.. स्तब्ध हो गया रसिक.. अप्रतिम सौन्दर्य से भरा हुआ कविता का गोरा जिस्म.. आँखें ही नहीं हट रही थी रसिक की
"तुम्हें मुझे फेशनेबल कपड़ों मे देखने की इच्छा थी ना.. इसलिए तुम्हें दिखाने आई हूँ... मैं अब घर ही जा रही थी.. देख लो मन भरकर..और आँखें सेंक लो" मुसकुराते हुए कविता ने कहा
रसिक: "ओह भाभी, कितने सुंदर लग रहे हो आप इन कपड़ों मे.. !!" टकटकी लगाकर, टाइट टॉप से दिख रहे उभारों को लार टपकाते हुए रसिक देख रहा था
कविता: "क्या देख रहे हो रसिक?? कल रात को इन्हें खोलकर तो देखा था तुमने"
रसिक: "अरे भाभी.. खुले से ज्यादा इन्हें फेशनेबल कपड़ों में ढंके हुए देखने का मज़ा ही अलग है.. आप खड़ी क्यों हो?? बैठिए ना.. !!"
कविता: "नहीं रसिक, मुझे देर हो रही है.. यहाँ से गुजर रही थी और ये चौराहे को देखा तो मुझे तुम्हारी याद आ गई.. सोचा मिलकर जाऊँ"
रसिक: "ये आपने बड़ा अच्छा किया.. वैसे रात को बहुत मज़ा आया था.. और बताइए, क्या सेवा करूँ आपकी?"
कविता: "किसी सेवा की जरूरत नहीं है.. रात को जो भी सेवा की थी तुमने वो काफी थी.. अब कुछ नहीं.. अब तुमने दिल भरकर देख लिया हो तो मैं चलूँ?"
रसिक: "भाभी, सिर्फ देखने की ही इजाजत है या छु भी सकता हूँ??"
कविता: "क्या रसिक तुम भी.. !! इन दोनों के पीछे ही पड़ गए हो.. मुझ से कई ज्यादा बड़े तो वैशाली के है.. वो यहीं पर है कुछ दिनों के लिए.. उसके ही छु लेना.. और वैसे शीला भाभी तो हमेशा के लिए यही पर रहेगी.. सुबह सुबह उनके पकड़ ही लिए थे न तुमने.. !!"
रसिक: "अरे वो तो आप दोनों को दिखाने के लिए मैं उन्हें पकड़कर बाहर लाया था.. आपने देखा था हम दोनों को?"
कविता: "हाँ थोड़ा थोड़ा.. जो देखना था वो तो घर के अंदर ही हुआ और वो हमें नहीं दिखा.. भाभी ने चूसा था ना तुम्हारा?"
रसिक: "वो तो हमारा रोज का है.. पर सच कहूँ तो.. आपने कल रात जैसे चूसा था ना.. आहाहाहाहा.. याद आते ही झुंझुनाहट सी होने लगती है"
कविता: "वैसे मैं पीयूष का भी ज्यादा चूसती नहीं हूँ कभी.. ये तो तुम्हें खुश करने के लिए चूस लिया था"
रसिक: "बहुत मज़ा आया था भाभी.. इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी के साथ नहीं आया पहले"
कविता: "झूठी तारीफ़ें मत कर.. मुझे पता है.. मर्द जिनके आगोश मे होते है उनकी ऐसी ही तारीफ करते है.. सब पता है मुझे.. जब शीला भाभी पर चढ़ता होगा तुम उन्हें भी तू यही कहता होगा.. की आपके जैसा मज़ा किसी के साथ नहीं आता.. और मम्मीजी का गेम बजाते वक्त उन्हें कहता होगा की मौसी, आपके जितनी टाइट मैंने किसी की नहीं देखी.. !!"
रसिक: "ठीक कह रही हो भाभी.. पर सच्ची तारीफ और झूठी तारीफ मे कुछ तो फरक होता है..!! आप लोगों को तो सुनते ही पता चल जाता होगा.. आप जवान हो.. शीला भाभी और आपकी सास तो एक्स्पाइरी डेट का माल है.. हाँ शीला भाभी की बात अलग है.. उन्हों ने मुझे जो सुख दिया है.. वैसा तो मैं सपने मे भी नहीं सोच सकता.. लेकिन हाँ.. ये बता दूँ आपको.. आपकी सास को तो मैंने मजबूरी मे ही चोदा था.. आप तक पहुँचने के लिए.. उन्हों ने ही यह शर्त रखी थी.. फिर मैं क्या करता?? मैं तो कैसे भी आप तक पहुंचना चाहता था.. वो कहते है ना.. भूख न देखे झूठी बात.. नींद न देखें मुर्दे की खाट.. बस वही हाल था मेरा.. आपको पाने के लिए मैं उस बुढ़िया की फटी हुई गांड भी चाट गया था.. सुनिए ना भाभी... थोड़ा करीब तो आइए.. इतने दूर क्यों खड़े हो?"
कविता धीरे धीरे रसिक के करीब आकर खड़ी हो गई.. फटी आँखों से रसिक उसकी कडक जवानी को देख रहा था.. किसी पराये मर्द की हवस भरी नजर अपने जिस्म पर पड़ती देख कविता शरमा गई...
"क्या देख रहे हो रसिक?? ऐसे देख रहे हो जैसे मुझे पहली बार देखा हो" कविता ने कहा
रसिक: "भाभी, एक बार बबलें दबा लूँ.. !! सिर्फ एक बार.. ज्यादा नहीं दबाऊँगा.. इतने करीब से देखने के बाद.. मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है.. और पता नहीं, फिर इस तरह हम कब मिल पाएंगे.. !!"
कविता: "फिर कभी देखने तो मिल जाएंगे.. हाँ, दबाने शायद ना मिलें.. !!"
रसिक: "इसीलिए तो कह रहा हूँ भाभी.. दबा लेने दीजिए प्लीज"
कविता: "कोई देख लेगा तो??"
रसिक: "अरे यहाँ कोई नहीं आता.. इतनी देर मे तो मैंने दबा भी लिए होते"
कविता: "जल्दी कर लो.. मुझे देर हो रही है"
कविता रसिक के एकदम नजदीक खड़ी हो गई.. और अपने सन-ग्लास उतारकर बोली "दबा ले रसिक.. !!"
रसिक: "ऐसे नहीं भाभी.. !!"
कविता: "फिर कैसे??"
रसिक: "गॉगल्स पहन लो भाभी... और आज आपने लाली क्यों नहीं लगाई होंठों पर? मुझे लाली लगे होंठ बहुत पसंद है"
कविता: "ध्यान से देख.. मैंने लगाई है.. पर एकदम लाइट शेड है इसलिए तुझे पता नहीं चल रहा.. " रसिक की आँखों के एकदम करीब अपने होंठ ले गई कविता
अपनी उंगली को कविता के होंठों पर फेर लिया रसिक ने.. "अरे वाह.. सच कहा आपने.. लाली तो लगाई है.. पर वो लाल रंग वाली लगाई होती तो आप और भी सुंदर लगती"
कविता ने तंग आकर कहा "अब जल्दी दबा ले.. फिर रूखी के होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाकर पूरी रात देखते रहना.. " अपने होंठों से रसिक का हाथ हटाकर स्तनों पर रख दिया कविता ने..
रसिक उसके स्तनों को दबाता उससे पहले कविता ने रसिक के लंड की ओर इशारा करते हुए कहा "तुम तो दबा लोगे.. फिर मैं खड़े खड़े क्या करूँ? मुझे भी कुछ दबाने के लिए चाहिए"
रसिक पागल सा हो गया.. "अरे भाभी, आपका ही है.. पकड़ लीजिए.. और जो करना हो कीजिए.. !!" कहते हुए रसिक ने पाजामे से अपना गधे जैसा लंड बाहर निकालकर कविता के हाथों मे थमा दिया
दिन के उजाले मे आज पहली बार रसिक का लंड देख रही थी कविता.. उसे देखते ही कविता जैसे खो सी गई..
बिना कविता की अनुमति लिए.. रसिक कविता के टॉप के अंदर हाथ डालने लगा.. कविता ने कोई विरोध नहीं कीया.. उसका सारा ध्यान रसिक के मजबूत लंड पर केंद्रित था.. मुठ्ठी मे पकड़कर खेलने लगी वो.. जैसे छोटा बच्चा खिलौने से खेल रहा हो.. !!
कविता ने आज बड़े ही ध्यान से रसिक के लंड का अध्ययन किया.. रसिक उसके दोनों उरोजों को ब्रा के ऊपर से पकड़र दबा रहा था.. कविता का शरीर हवस से तपने लगा.. और वो बोल उठी "ओह रसिक.. मैं गरम हो गई.. मुझे अब चाटकर ठंडी कर.. फिर मुझे जाना है.. घर पहुंचना होगा अंधेरा होने से पहले.. !!"
रसिक कविता को उठाकर, वहाँ बने छोटे से कमरे के अंदर ले गया.. फिर बाहर से.. एक हाथ से खटिया को खींचकर अंदर ले आया.. उसपर कविता को लेटाकर जीन्स की चैन पर हाथ रगड़ने लगा.. चूत के ऊपर कपड़े के दो आवरण थे.. जीन्स का और पेन्टी का.. फिर भी कविता की चूत ने रसिक के मर्दाना खुरदरे स्पर्श को अंदर से ही महसूस कर लिया.. और उसने जीन्स का बटन खोलकर चैन को सरका दिया.. और पेंट को घुटनों तक उतार भी दिया.. पेन्टी उतरते ही कविता की लाल गुलाबी चूत पर कामरस की दो बूंदें चमक रही थी.. देखकर चाटने लगा रसिक.. !! और उसकी उंगलियों से फास्ट-फिंगरिंग करते हुए कविता की बुर खोदने लगा.. कविता ने देखा.. पीयूष के लंड की साइज़ की रसिक की उँगलियाँ थी.. !!
एक लंबी सिसकी भरते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर, चूत के दोनों होंठों को चौड़ा करने के बाद बोली "रसिक.. पूरी जीभ अंदर डालकर चाटो यार.. ओह्ह.. मस्त मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. !!"
कविता को अपनी चटाई की तारीफ करता सुनकर रसिक और आक्रामक हो गया.. ऐसे पागलों की तरह उसने चाटना और उँगलियाँ डालना शुरू कर दिया.. की सिर्फ तीन-चार मिनटों मे ही कविता की चूत ने अपना शहद गिरा दिया.. और रसिक को बालों से पकड़कर अपनी चूत पर दबा दिया.. और उसके मुंह के अंदर अपना सम्पूर्ण स्खलन खाली कर दिया..
कविता के चेहरे पर तृप्ति की चमक थी.. उसने हांफते हुए रसिक की उँगलियाँ अपने गुनगुने छेद से बाहर निकाली.. रसिक खड़ा हुआ और खटिया पर बैठ गया.. बड़ी जल्दी अपनी मुनिया की आग बुझाकर कविता खड़ी हुई और कपड़े पहनने लगी..
"रसिक, मैं अब निकलती हूँ.. बहोत देर हो गई" शर्ट के बटन बंद करते हुए कविता ने कहा
अपना लंड सहलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, फिर कभी मौका मिले तो रसिक को अपना रस पिलाना भूलना मत.. और हाँ, गाड़ी आराम से चलाइएगा.. चलिए, मैं आपको गाड़ी तक छोड़ दूँ"
अपने लंड को पाजामे के अंदर डालने लगा रसिक.. पर सख्त हो चुका लंड अंदर फिट ही नहीं हो रहा था..
"अरे भाभी, ये तो अब अंदर जाने से रहा.. मैं इस तरह आप के साथ नहीं चल पाऊँगा.. आप अकेले ही चले जाइए" रसिक ने लाचार होकर कहा
कविता को रसिक के प्रति प्रेम उमड़ आया.. वो चाहता तो जबरदस्ती कर खुद भी झड़ सकता था.. पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया..
वो रसिक के करीब आई और उसका लंड पकड़ते हुए बोली "जब तक इसका माल बाहर नहीं निकलेगा तब तक कैसे नरम होगा.. !! लाईये, मैं इसे ठंडा करने मे मदद करती हूँ.. "
कविता घुटनों के बल बैठ गई.. और अपनी स्टाइल मे रसिक का लंड चूसते हुए मुठियाने लगी.. कविता की हथेली का कोमल स्पर्श.. उसकी जीभ की गर्मी.. वैसे भी रसिक को कविता पर कुछ ज्यादा ही प्यार था..
रसिक के मूसल लंड को चूसते हुए, कविता आफ़रीन हो गई और बार बार उस कडक लंड को अपने गालों पर रगड़ रही थी..
थोड़ी ही देर मे रसिक के लंड ने वीर्य-विसर्जन कर दिया.. इससे पहले की कविता उससे दूर हटती, उसके बालों से लेकर चेहरे तक सब कुछ वीर्य की पिचकारी से भर चुका था..
"ओह्ह भाभी.. क्या गजब का माल है रे तू.. !! मज़ा आ गया.. !!"
वैसे कोई उसे माल कहकर संबोधित करें तो बड़ा ही गुस्सा आता था कविता को.. पर रसिक के मुंह से यह सुनकर उसे गर्व महसूस हुआ
रसिक अपनी साँसों को नियंत्रित कर रहा था उस वक्त कविता ने पर्स से नैप्किन निकाला और सारा वीर्य पोंछ लिया.. आखिर रसिक को गले लगाकर उसे एक जबरदस्त लिप किस देकर वो जाने के लिए तैयार हो गई.. मन ही मन वो सोच रही थी.. आह्ह, ये रसिक भी कमाल का मर्द है.. मुझे भी शीला भाभी और मम्मीजी की तरह इसने अपने रंग मे रंग ही दिया..!! एक बार तो मैं इसका लेकर ही रहूँगी.. कुछ भी हो जाए.. !!
"अब तो तुम्हारा नरम हुआ की नहीं हुआ??" कविता ने हँसते हुए कहा
"जब तक आप यहाँ खड़े हो वो नरम नहीं होगा.. देखिए ना.. अब भी सलामी दे रहा है आपको.. अब जाइए वरना मुझे फिर से आपकी बुर चाटने का मन हो जाएगा.. और फिर आज की रात आपको यहीं रुक जाना पड़ेगा" रसिक ने मुस्कुराकर अपना मूसल हिलाते हुए कहा
चूत चाटने की बात सुनकर, कविता की पुच्ची मे फिर से एक झटका सा लगा.. फिर से उसे एक और ऑर्गजम की चूल उठी.. पर अपने मन को काबू मे रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था..
"नहीं रसिक, अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा.. चलो अब मैं निकलती हूँ" अपने मस्त मध्यम साइज़ के कूल्हें, बड़ी ही मादकता से मटकाते हुए वो खेत से चलने लगी.. ऊंची हील वाली सेंडल के कारण उसके चूतड़ कुछ ज्यादा ही थिरक रहे थे.. कविता की गोरी पतली कमर की लचक को देखते हुए अपने लंड को सहलाता रसिक.. उसे फिर से कडक कर बैठा.. अब तो उसे हिलाकर शांत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था
कार के पास पहुंचकर कविता ने हाथ हिलाते हुए रसिक को "बाय" कहा.. फिर गाड़ी मे बैठी और सड़क की ओर दौड़ा दी..
कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..
अगला अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
Very interesting and erotic update.!यह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
![]()
तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
Arranging Mausam's marriage & also showing her lesbian & straight sex.यह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
![]()
तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
Awesome kammotsav tha,यह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
![]()
तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
Fantastic updateयह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
-----------------------------------------------------------------------------------------------------
मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
![]()
तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी