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Great updateयह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
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मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
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तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बा मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाकविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..
रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया
शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"
कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी
कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"
शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"
कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"
शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"
कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"
सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!
कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा
शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"
कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..
शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"
शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!
सोचते सोचते शीला सो गई..
दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"
रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"
शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"
रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"
दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..
शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"
रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"
शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"
रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"
शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"
बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था
रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"
शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"
रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"
शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"
रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"
शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"
रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"
शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"
रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"
शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"
रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"
शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा
"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा
"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला
"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा
शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी
आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!
रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"
रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा
शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"
रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"
शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"
रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"
रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"
रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"
रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"
रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "
शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"
लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..
शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..
जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..
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बहुत ही सुंदर लाजवाब मजेदार और भावना शिल अपडेट है भाई मजा आ गयाघर लौटते वक्त उसने फोन करके रेणुका को पूरी बात बताई.. शीला और रेणुका अब इतने करीब आ चुके थे की एक दूसरे को सारी बातें बताने लगे थे.. पर रेणुका ने सामने से ऐसे समाचार दीये.. जिसे सुनकर शीला अपना टेंशन भूल गई.. लेकिन उसे पता नहीं चल पा रहा था की यह सुनकर वो खुश हो या दुखी..!!
रेणुका ने शीला को बताया की... वो प्रेग्नन्ट थी.. !!
शीला ने मज़ाक करते हुए कहा "यार रेणुका, क्या लगता है तुझे.. किसका बच्चा होगा?? राजेश का या मदन का?"
रेणुका: "शीला, तेरे तो मजे है यार.. जब ईवीएम मशीन ही खराब हो चुका हो तो बोगस वोटिंग होने की कोई टेंशन ही नहीं.. हा हा हा हा हा.. !! अब वो तो मुझे भी पता नहीं की किसका होगा.. अगर मदन जैसा बच्चा हुआ तो मिठाई तुझे बाँटनी पड़ेगी"
शीला ने हँसते हुए कहा "साली मादरचोद.. ऐसा करूंगी तो पूरे शहर को पता चल जाएगा की मदन तुझे चोदता है.. और मैं तेरे पति से चुदवाती हूँ"
रेणुका: "तूने ये क्यों नहीं सोचा.. की मदन या राजेश के अलावा भी किसी और का हो सकता है.. !!"
शीला: "बाप रे.. वो तो मैंने सोचा ही नहीं.. सच सच बता.. कितने लोडो से चुद रही है तू?"
रेणुका ने जवाब नहीं दिया पर हँसते हँसते पाकीज़ा फिल्म का गाना गुनगुनाने लगी
𝄞..𝄞..चलते चलते... यूं ही कोई.. मिल गया था..♬⋆.˚
शीला: "चल अब फोन रखती हूँ.. अपना खयाल रखना.. !!"
रेणुका: "ख्याल रखने मे तो ऐसा है की.. तू अपने पति को यहाँ मत भेजना.. मुझे तो उससे ही सब से ज्यादा खतरा है.. और तो किसी बात से मुझे कुछ प्रॉब्लेम नहीं होने वाली"
शीला: "चल अब फोन रख.. घर आ गया मेरा"
शीला ने हंसकर फोन काट दिया और घर मे घुसी
सामने ही मदन खड़ा था.. शीला के चेहरे पर चुदाई के बाद की संतुष्टि और तृप्ति की चमक साफ दिखाई दे रही थी.. उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी थी
"ओहोहों.. आज तो बड़ी मुस्कुराहट बिखेरी जा रही है.. !! बहुत खुश लग रही हो, क्या बात है?" मदन ने कहा
शीला: "खुशी तो होगी ही.. नया मेहमान जो आने वाला है"
मदन: "कौन से मेहमान?? वैशाली की शादी को तो देर है.. अभी से कौन आ रहा है.. !! जरूर तेरे मायके से कोई होगा"
पेंट के ऊपर से मदन के लंड पर हाथ फेरते हुए शीला ने कहा "सब कमाल इसका है मेरे राजा.. कॉंग्रेटस.. !! तू बाप बनने वाला है.. !!"
मदन बुरी तरह चोंक उठा "ये क्या बकवास कर रही है तू? बेटी को दोबारा ब्याहने की उम्र मे बाप बनने की खबर देते हुए तुझे खुशी नहीं.. शर्म आनी चाहिए.. !"
शीला: "मुझे क्यों शर्म आएगी भला.. मैं तो खुश हूँ.. इतने सालों के बाद यह घर फिर से प्यारी प्यारी किलकारियों से गूँजेगा.. छाती दूध से भर जाएगी.. तेरी फेंटसी भी पूरी कर पाएगा तू.. तुझे तो गर्व होना चाहिए.. इस उम्र मे भी बाप बनने जितना दम है तेरे वीर्य मे.. !!"
मदन गुस्से से परेशान होते हुए बोला "अब चुप भी हो जा शीला.. मुझे नहीं पीना है तेरा दूध.. अभी के अभी चल.. एबॉर्शन करवा लेते है.. !!"
शीला ने बड़े ही नाटकीय अंदाज मे मदन की बैंड बजाते हुए कहा "अरे बाप रे.. !! ये क्या कह दिया तूने मदन.. नहीं.. !!! मेरे कोख मे पल रही तेरी प्यारी निशानी को मैं हरगिज मिटने नहीं दूँगी"
मदन: "अरे पागल औरत.. !! इस बुढ़ापे मे अपना पेट फुलाकर घूमेगी तो लोग क्या कहेंगे? शर्म नहीं आएगी तुझे"
शीला: "जो भी होगा, देखा जाएगा" कहते हुए उसने मदन को धकेला और किचन मे चली गई.. अंदर जाकर उसकी हंसी ही नहीं रुक रही थी.. मदन को ऐसी हालत मे देखकर उसे बड़ा मज़ा आ रहा था.. मदन की गांड फटकर दरवाजा हो गई थी और शीला बड़े ही मजे से गुनगुना रही थी
♪♫♪ आज मदहोश हुआ जाए रे.. मेरा मन.. मेरा मन.. मेरा मन.. ♫⋆。♪ ₊˚♬ ゚.
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अपने घर पहुंचते हुए साढ़े नौ बज गए कविता को.. वैसे उसका प्लैनिंग तो आठ बजे तक पहुँचने का था.. अच्छा हुआ जो पीयूष अब तक नहीं आया था.. वरना उसे सफाई देनी पड़ती..
घर पहुंचकर उसे बहोत अच्छे समाचार मिले.. मौसम ने कविता को बताया की विशाल का परिवार इस रिश्ते के लिए राजी था.. पर एक समस्या थी.. विशाल अब पीयूष की ऑफिस मे नौकरी नहीं करना चाहता था.. उसका कहना थी की जिस ऑफिस की मालकिन उसकी पत्नी हो, ऐसी ऑफिस मे काम करना उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाएगा.. !!
"बात तो सही है उसकी" कविता ने विशाल की साइड ली..
"जीजू ने तो विशाल का प्रमोशन देने की भी बात कही.. पर विशाल का कहना है की बात पोस्ट की नहीं.. उसके स्वाभिमान की है.. !!" मौसम विशाल के बारे में बातें करते थक नहीं रही थी.. और कविता के पास सुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था
काफी बातें करने के बाद मौसम गई... काफी रात गए पीयूष बेंगलोर से लौटा.. उसने कविता को बताया की उनकी ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट फोरम ने बिना कोई वजह बताए.. अचानक नौकरी छोड़ दी थी.. !!
पीयूष कविता को बेंगलोर ट्रिप के बारे मे बता रहा था.. उसकी बातें सुन रही कविता के हाथ मे रुमाल था.. जिससे उसने रसिक के वीर्य को पोंछा था.. सूख कर कडक हो गया था रुमाल.. जैसे स्टार्च किया हो.. उस रुमाल के कोने से खेलते हुए मुस्कुरा रही थी कविता.. जब पीयूष नहाने गया तब कविता ने उस वीर्य लगे रुमाल को अपने नाक पर दबाकर गहरी सांस ली.. वीर्य की अनोखी गंध ने उसे रसिक की मर्दानगी की याद दिला दी.. एक पल के लिए सिहर उठी कविता.. रसिक के लंड से खेलने के लिए फिर से बेताब हो गई.. !! अब तो उसका मन उस लंड से चुदने का भी करने लगा था
नहाने के बाद, पीयूष बाहर आया.. दोनों के बीच अब विशाल और मौसम को लेकर बातें हो रही थी..
पीयूष: "मैं सोच रहा था की वैशाली की शादी पर हम विशाल को भी साथ ले चलें.. इस बहाने हमें साथ रहने का मौका भी मिल जाएगा"
कविता ने जवाब नहीं दिया.. वो उतनी देर तक इंतज़ार करने के लिए तैयार नहीं थी.. मौसम की शादी पक्की करने मे वो अब कोई ढील करना नहीं चाहती थी..
दो दिन बाद, कविता और पीयूष ने विशाल को अपने घर खाने पर बुलाया.. जाहीर सी बात थी की मौसम भी साथ थी
खाना खाते वक्त मौसम और पीयूष की मौजूदगी मे कविता ने विशाल के साथ ढेर सारी बातें की.. उसका इरादा विशाल के बारे मे सारी जानकारी प्राप्त कर लेने का था.. उसकी पसंद-नापसंद.. उसका स्वभाव.. सब कुछ जानना चाहती थी कविता
विशाल ने भी सौम्यता से सारे जवाब दीये.. पर एक बात कविता और पीयूष दोनों की नज़रों मे आई.. और वो यह थी.. की विशाल सारे जवाब यंत्रवत दे रहा था.. और खुलकर इस चर्चा मे हिस्सा नहीं ले रहा था.. जैसे किसी बात की झिझक हो... कोई परेशानी हो.. !! ऐसा तो नहीं था की वो लोग एक दूसरे से अनजान थे.. काफी अच्छी तरह जानते थे एक दूसरे को.. इस के बावजूद, विशाल किस बात को लेकर सहम रहा था, उसका पता नहीं चल पाया
जिस दिन विशाल ने रिश्ते के लिए हामी भरी उसी दिन उसने ऑफिस मे अपना त्यागपत्र दे दिया था.. तुरंत तो बराबरी की नौकरी मिलना मुश्किल था इसलिए उसने फिलहाल एक छोटी सी कंपनी मे नौकरी ले ली थी.. और अन्य बड़ी कंपनियों मे इंटरव्यू दे रहा था..
उस दौरान, वैशाली की शादी का न्योता आया.. शीला और मदन ने सब को बड़े ही आग्रहपूर्वक आने का आमंत्रण दिया.. पीयूष के कहने पर मदन ने एक निमंत्रण पत्रिका विशाल के परिवार को भी दे दी..
मौसम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.. पर कुछ समय से वो महसूस कर रही थी की विशाल काफी गुमशुम और उदास रहता था.. हो सकता है की नौकरी बदलने के कारण उसके स्वभाव मे ऐसा परिवर्तन आया हो.. !! आखिर उसने सोचा की समय जाते ही सब ठीक हो जाएगा
एक बात मौसम को खटक रही थी.. जिस दिन विशाल ने नौकरी छोड़ी उसी दिन फोरम ने भी त्यागपत्र दिया था.. विशाल को लेकर, बेहद पजेसीव मौसम को यह शक था की विशाल जिस कंपनी से जुड़ा था शायद फोरम ने भी वही जॉइन किया न हो.. !!
यही विचार मौसम को दिन-रात सताने लगा था.. पूरा दिन वो फोरम के बारे मे जानकारी जुटाने मे मशरूफ़ रहती.. फोरम विशाल की कंपनी मे नहीं पर किसी और कंपनी मे नौकरी कर रही थी.. फिर भी मौसम, आए दिन उसे फोन करती और उसकी खबर रखती रहती थी
बेचारी फोरम की हालत खराब थी.. विशाल से अपने प्यार का परोक्ष इजहार करने के दो दिन बाद ही वो उससे छीन लिया गया था.. मध्यम वर्ग के परिवार से आती फोरम के लिए यह सदमा बहोत ही बड़ा था.. और उसका असर उसके स्वास्थ्य पर बहुत बुरी तरीके से पड़ा था.. वो बीमार रहने लगी थी.. अनियमितता के कारण उसे कंपनी से निकाल दिया गया.. विशाल भी गया और नौकरी भी.. !!
एक दिन, मौसम और फाल्गुनी, बाजार में शॉपिंग कर रहे थे.. वहाँ उन्हें फोरम के पापा मिल गए.. उनसे बात करने पर यह जानने को मिला की फोरम की तबीयत बहुत बिगड़ चुकी थी और वो अस्पताल मे थी
मौसम और फाल्गुनी दोनों ही एड्रेस लेकर अस्पताल पहुँच गए.. बेजान सी फोरम को बेड पर पड़ा देख दोनों को दुख हुआ.. पूछने पर पता चला की उसके प्लेटलेट्स की संख्या काफी कम हो गई थी.. दोनों फोरम के पास बैठे थे तभी विशाल वहाँ आ पहुंचा.. उसे देखकर मौसम को ताज्जुब भी हुआ और ईर्ष्या भी.. पर वह कुछ बोल न सकी क्योंकि फोरम विशाल की भी दोस्त थी और बीमार थी.. दूसरा, अब तक विशाल और मौसम की विधिवत सगाई नहीं हुई थी.. इसलिए विशाल पर अधिकार भावना जताना भी मुमकिन नहीं था
मौसम को देखकर विशाल भी थोड़ा सा सहम गया.. पर अब सब आमने सामने आ ही गए थे तो कुछ भी छुपाने का कोई मतलब नहीं बनता था
सब चुपचाप बैठे थे तब फोरम की मम्मी ने कहा "मौसम बेटा.. तुम्हारी ऑफिस से नौकरी छोड़ने के बाद हमारी तो ग्रहदशा ही जैसे खराब हो गई है.. नई नौकरी भी छूट गई और फोरम भी बीमार हो गई.. !!"
उनके कहने का मतलब समझ रही थी मौसम.. वह जानती थी की फोरम का घर उसकी तनख्वाह पर ही चल रहा था
फोरम के माता-पिता को किसी भी चीज की जरूरत हो तो बिना झिझकें कॉन्टेक्ट करने के लिए बताकर, मौसम और फाल्गुनी वहाँ से निकलने लगे.. अस्पताल की लिफ्ट मे नीचे उतरते वक्त मौसम के दिमाग मे यही बात चल रही थी की फोरम की किस तरह मदद की जाए जिससे की उसके और उसके परिवार के आत्मसन्मान को ठेस न पहुंचे..
लिफ्ट से ग्राउन्ड फ्लोर पहुंचकर वह दोनों लॉबी से चलते हुए रीसेप्शन की और जा रहे थे.. तभी.. उन्हों ने एक वयस्क व्यक्ति को एक स्ट्रेचर ठेलते हुए देखा.. स्ट्रेचर मे पड़ा मरीज लहू-लुहान था.. वह वयस्क व्यक्ति भी चोटिल था पर ज्यादा नहीं.. अपनी पीड़ा को भूलकर वो आते जाते डॉक्टरों से हाथ जोड़कर विनती कर रहा था की वह मरीज को जल्द से जल्द ट्रीट्मन्ट दे..
"प्लीज सर, मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ.. मेरे बेटे को बहोत गंभीर चोटें आई है.. प्लीज जल्दी से जल्दी इसका इलाज शुरू करवाइए" वह बूढ़ा हाथ जोड़कर डॉक्टर के सामने गिड़गिड़ा रहा था
"देखिए, यह एक एक्सीडेंट का केस है.. पहले पुलिस को इसके बारे मे इत्तिला करना होगा उसके बाद ही हम कुछ कर पाएंगे" डॉक्टर ने बेरुखी से जवाब दिया और चल पड़ा
मौसम: "यार, इन्हें कहीं देखा है मैंने.. !!"
फाल्गुनी: "अरे, तूने पहचाना नहीं?? ये तो तरुण के पापा है.. !!"
मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की तरफ देखा..
मौसम: "कहीं वो स्ट्रेचर पर लेटा आदमी, तरुण तो नहीं?? उस आदमी ने बेटे का जिक्र किया.. मतलब पक्का वो तरुण ही होगा.. !! क्या करें?"
फाल्गुनी: "मुझे लगता है की हमें कुछ भी करने से पहले पीयूष जिजू से पूछ लेना चाहिए
मौसम ने तुरंत पीयूष को फोन किया पर किसी कारणवश पीयूष ने फोन नहीं उठाया.. मौसम ने अपनी मम्मी को फोन कर इस बारे मे बताया
रमिलाबहन: "देख बेटा.. पुरानी बातों को भूलकर, ऐसे मामले मे हमे इन्सानियत के नाते उनकी मदद करनी ही चाहिए... तुम दोनों से हो सकें उतना करो.. और मुझे अस्पताल का नाम बताओ.. मैं कविता को वहाँ भेजती हूँ"
मौसम और फाल्गुनी दौड़कर स्ट्रेचर के पास गए.. और तरुण के पापा को सहारा देते हुए कहा "अंकल, आप फिक्र मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा"
तरुण के पापा का सारा ध्यान अपने बेटे पर था.. उन्हों ने ठीक से देखा तक नहीं की वो सहायता करने आई लड़कियां कौन थी.. फाल्गुनी ने अपने पापा को फोन किया.. जिन्हों ने अस्पताल मे अपने कॉन्टेक्ट से बात कर, तरुण को तुरंत भर्ती करवा दिया.. तभी कविता और पीयूष भी वहाँ आ पहुंचे.. पीयूष ने अस्पताल मे जरूरत के सारे पैसे भरकर, यह सुनिश्चित किया की तरुण को अच्छे से अच्छी ट्रीट्मन्ट मिलें..
मुआयने और ट्रीट्मन्ट शुरू होने के बाद डॉक्टर ने आकर बताया की तरुण की हालत स्थिर थी और फिलहाल घबराने की कोई जरूरत नहीं थी.. बस, तरुण को तीन चार दिनों के लिए अस्पताल मे रहना होगा.. सुनकर उसके पापा को चैन मिला.. अब उनका ध्यान इस परिवार पर गया.. जो तारणहार बनकर उनकी मदद करने मे जुटा हुआ था.. उन्हें ताज्जुब तो तब हुआ जब उन्हों ने मौसम को पहचाना..!! वही मौसम जिसके साथ तरुण की मंगनी हुई थी और फिर उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया था..!!
पीयूष ने तरुण के पापा को आश्वासन देते हुए कहा की वो किसी भी चीज की जरूरत के लिए उन्हें बता सकते है.. आभारवश होकर तरुण के पापा ने कहा की उन्होंने अपने रिश्तेदार और परिवारजनों को बुला लिया है.. और शाम से पहले वो लोग पहुँच जाएंगे.. बातों बातों मे यह पता चला की तरुण और उसके पापा, लड़की देखने जा रहे थे तभी उनकी कार का एक्सीडेंट हुआ..
शाम होते ही तरुण के सारे रिश्तेदार आ पहुंचे.. और पीयूष, कविता, मौसम और फाल्गुनी ने उनसे इजाजत ली और घर लौटें.. रात को मौसम और फाल्गुनी सब के लिए खाना लेकर पहुंचे..
अनजान शहर मे, जब इस प्रकार कोई आपकी सहायता करता है, तब इंसानियत की किंमत समझ आती है.. पैसों के घमंड पर उछल रहे लोगों को जब कोई मामूली सा रेहड़ी-वाला या ऑटो-वाला, तकलीफ के वक्त अस्पताल पहुंचाकर उनकी ज़िंदगी बचाने मे मदद करता है.. तब उन्हें उस छोटे आदमी के बड़े दिल के प्रति जज़्बात पैदा हो जाते है.. पर सब ठीक-ठाक हो जाने पर.. वापिस पैसों की गर्मी सर पर चढ़ जाती है.. और फिर वही इंसान उन छोटे लोगों को तुच्छता से देखने लग जाता है..
अस्पताल में तीसरी रात को जब मौसम और फाल्गुनी, तरुण के स्पेशल रूम मे बैठे थे तब..
फाल्गुनी: 'तरुण, तुम जिस लड़की को देखने जा रहे थे.. वह शायद तुम्हारी किस्मत मे नहीं होगी.. इसीलिए कुदरत ने तुम्हें जाने से पहले रोक लिया"
यह सुनते ही, मौसम के दिल की खिड़की.. हल्की सी खुल गई..!! और पुरानी यादें ताज़ा होने लगी.. देखने जाए तो तरुण और मौसम के बीच किसी प्रकार की अनबन तो थी ही नहीं.. जो कुछ भी हुआ था वो सुबोधकांत के कारण और तरुण के पापा की जिद के कारण ही हुआ था.. मौसम तरुण पर पहले भी मरती थी और आज भी वह उसके दिल मे बसा हुआ था.. हालांकि, अब विशाल ने उसके दिल के महद हिस्से को कब्जे मे ले रखा था.. पर फिर भी .. !! सौम्य और हेंडसम तरुण, एक समय पर, मौसम के दिल की धड़कन था.. और आज उसी मौसम ने, समय रहते मदद कर, उसे मरने से बचा लिया था.. विडंबना बस यही थी.. की अब मौसम ने अपने दिल की चाबी विशाल के हाथों मे थमा दी थी..!!
बात करते हुए अचानक तरुण को खांसी आई.. और मौसम उसके लिए पानी भर रही थी तभी विशाल का फोन आया.. वो न उठा पाई और मिसकॉल हो गया.. विशाल के लिए मौसम ने अलग से रिंगटोन सेट कर रखी थी.. इसलिए बिना पर्स से फोन निकाले उसे मालूम चल जाता था की उसका फोन था..
चौथे दिन डॉक्टर ने बताया की तरुण की हालत बेहतर थी और अब उसे डिस्चार्ज किया जा सकता था.. तरुण और उसके पापा ने मौसम, फाल्गुनी, रमिलबहन के प्रति आभार प्रकट किया.. अगर पुरानी बातों को लेकर उनके परिवार ने वक्त रहते मदद न की होती तो पता नहीं क्या हो जाता.. !! आकस्मिक विपत्ति मे मौसम के परिवार ने जिस प्रकार उनकी सहायता की थी.. उसे देखकर, तरुण के पापा की आँखों मे आँसू आ गए..!!
उन्होंने रमिलबहन के आगे दो हाथ जोड़कर कहा "बहनजी, अगर आप लोगों ने समय रहते हमारी मदद न की होती तो मैं सोच भी नहीं सकता की क्या हो जाता.. !! आप लोगों का किस तरह शुक्रियादा करूँ, मुझे तो समझ नहीं आ रहा.. !! आपके परिवार से संबंध तोड़ने के बावजूद.. बिना किसी कड़वाहट के आप लोगों ने हमारी बहोत मदद की.. और साबित कर दिया की आप लोग मुझ से कई ज्यादा गुणी हो.. एक समय पर मुझे लगा था की मौसम और आपका परिवार मेरे लायक नहीं है.. पर अब समझ मे आ रहा है की हकीकत मे, हम ही, आप लोगों के लायक नहीं थे.. मौसम जैसी लड़की हमारे नसीब मे ही नहीं थी.. !!"
यह सुनकर, कमरे मे बैठे हुए सारे लोग भावुक हो उठे.. !! तरुण ने उदास नज़रों से मौसम की ओर देखा पर मौसम ने नजरें फेर ली..
यह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था..!!
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बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
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मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
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तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
अपनी शादी के फैसले को लेकर दुविधा में कविता बेचारीयह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
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मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
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तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी
अपनी शादी के फैसले को लेकर दुविधा में कविता बेचारी
किस से शादी कर के शादी वो उसके लंड की करे सवारी
तरूण प्यार है पहला लेकिन मजबूत नहीं विशाल के जैसा
विशाल केपास तो है चेहरा सुंदर तो तरुण के पास है पैसा
सब बातों में उलझी पहुंच. गई कविता पहले प्यार के पास
फाल्गुनी ने जिसे भड़काया था, बुझाने उसी चूत की प्यास
पीयूष भी है पूरा हरामी दफ्तर में ही चला चोदने साली को
साली के लिया तो खड़ा रखा है चोद ना पाये घरवाली को
हाथ बढ़ा कर जीजा प्यारी साली के नरम चूचे लगा दबाने
पैंटी के अंदर भी हाथ घुसा कर चूत में उंगली लगा घुसाने
कविता भी आज आई थी ऑफिस में चुदने का लेकर मन
खोल के पैंट अपने पीयूष जीजा की मूंह में भर लिया लन
खोल तांगे अपनी साली की चूत पर जीभ वो लगा चलाने
शादी के बाद कैसा चोदूंगा साली को लगा वो प्लान बनाने
जीजा की हरकतों से तड़प कर साली करने लगी गुहार
लंड घुसा कर मेरी चूत में जीजा मुझको कर लो अब प्यार
जीजा ने टेबल पर कर के उल्टी साली की चूत मजे से मारी
अपनी साली को ठंडा कर दिया लंड की मार पिचकारी
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vakharia ji i just wanted to take a moment to express my gratitude for your kind and thoughtful comments on my prose. Your praise means a lot to me, and it's incredibly encouraging to know that my work resonated with you. Your feedback has given me fresh inspiration and renewed excitement to continue writing.arushi_dayal ji,
Your poetic response to my story left me utterly spellbound. It’s one thing to read a tale, but to witness it distilled into such exquisite verse—each word a brushstroke, each rhyme a heartbeat—is nothing short of alchemy. You’ve not only captured the essence of my narrative but elevated it, weaving its soul into a tapestry of rhythm and resonance.
What truly astounds me is your ability to condense the sprawling emotions and intricate layers of the story into such a concise yet profound form. It’s as if you’ve held a mirror to my words and reflected back something even more luminous. Your craftsmanship is a rare gift, and I’m deeply honored that my work inspired such artistry from you.
Thank you for this beautiful exchange—it feels less like a comment and more like a collaboration, a meeting of minds across the page. I’ll cherish your poetic echo of my story for a long time to come.
With heartfelt admiration,
vakharia
वखेरीया जीयह देख, तरुण को बहोत बुरा लगा.. पर वो मौसम की स्थिति को समझ रहा था.. एक वक्त था जब मौसम बेहद लाचार और निःसहाय थी.. दिन मे पचास बार कॉल कर रही थी पर वो जवाब नहीं दे रहा था.. लेकिन आज वैसी स्थिति नहीं थी.. मौसम के पास विशाल था.. और अब तो तरुण भी उस कतार मे खड़ा नजर आ रहा था
बगल मे मुंह फेरकर खड़ी मौसम के जवान पुष्ट स्तनों पर उसकी काले घने बालों वाली चोटी ऐसे लग रही थी.. जैसे सांप दूध पी रहा हो.. बेहद आकर्षक अंगों की मलेका मौसम की भरी हुई छाती.. इस तंग वातावरण मे.. सांसें लेते हुए ऊपर नीचे हो रही थी..
मौसम से और बर्दाश्त न हुआ और वो उठकर कमरे से बाहर चली गई.. उसके पीछे पीछे फाल्गुनी और कविता भी उठकर बाहर निकलने गई.. छोटे से दरवाजे से साथ में बाहर निकलते हुए फाल्गुनी के स्तन कविता की पीठ पर रगड़ गए.. कविता और फाल्गुनी की नजरें एक हुई.. फाल्गुनी के स्तनों को देखकर कविता सोचने लगी.. पापा ने कितनी बार इन स्तनों को रगड़ा होगा.. !!!
बाहर आकर कविता ने मौसम से कहा "ऐसे बाहर क्यों आ गई?? उन लोगों को बुरा लगेगा.. !!"
फाल्गुनी: "देख मौसम, विशाल से तेरी सगाई की बात चल रही है, अभी सगाई हुई नहीं है.. तू चाहें तो अब भी तरुण के साथ बात बन सकती है.. शायद कुदरत को भी यही मंजूर होगा.. वरना ऐसा संयोग कैसे होता... !!! हमारा यहाँ फोरम की तबीयत देखने आना.. और उनका मिलना.. सिर्फ कहानियों मे ही ऐसा मुमकिन हो सकता है.. सोच ले मौसम.. तरुण के लिए तू कितनी पागल थी ये मैं जानती हूँ.. अब निर्णय तुझे करना है"
मौसम ने असमंजस भारी नज़रों से फाल्गुनी की ओर देखा.. उसकी आँखों मे हजार सवाल नजर उमड़ रहे थे.. पर उन सवालों को कैसे पेश करना.. वह उसे समझ नहीं आ रहा था
जीवन कभी कभी ऐसे ऐसे मोड पर लाकर खड़ा कर देता है, की अच्छे से अच्छे आदमी की बोलती बंद हो जाती है..
कविता: "मौसम, तू अंदर चल और अच्छे से पेश आना.. वरना उन लोगों को बुरा लग जाएगा"
उसका हाथ पकड़कर खींचते हुए अंदर ले गई कविता
रमिलाबहन अपनी बेटी की दुविधा को भलीभाँति समझ रही थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो विशाल के घर गई थी उनके बेटे के हाथ मांगने.. और अब यह नई स्थिति आ खड़ी हुई थी..!!
तरुण के पापा ने बात आगे बढ़ाई "बहन जी, मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ.. मौसम को मना करके हम लोगों ने बहोत बड़ी गलती कर दी थी.. मुझे मेरी गलती का एहसास हो रहा है.. तरुण और मौसम तो एक दूसरे को पहले से ही बेहद पसंद करते है.. कुछ कारणवश मुझे वह निर्णय लेना पड़ा था.. जिसका मुझे बहोत खेद है.. मैं अपने परिवार की ओर से हाथ जोड़कर माफी मांग रहा हूँ.. और विनती कर रहा हूँ की आप बीती बातों को भूल कर आप की बेटी का हाथ हमें दे दीजिए.. !!"
रमिलाबहन: "भाईसाहब, मुझे तो अब तक यही मालूम नहीं है की आप लोगों ने सगाई क्यों तोड़ दी थी.. !!"
तरुण: "आंटी, बीती बातें याद करने से क्या फायदा..!! जो हो गया सो हो गया..!!"
रमिलबहन: "ऐसे नहीं.. मुझे कारण तो पता होना ही चाहिए.. तभी मैं कुछ आगे के बारे मे सोचूँगी"
सब गंभीर हो गए.. सीधी-सादी रमिलबहन को किसी ने असली कारण बताया ही नहीं था.. ताकि उन्हें उनके स्वर्गस्थ पति की असलियत के बारे मे पता न चले..
पर तरुण के पापा ने बात को बखूबी संभाल लिया
तरुण के पापा: "असल मे ऐसा हुआ था की मेरे और सुबोधकांत के बीच कुछ व्यहवारिक बातों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी और सुबोधकांत ने मेरा अपमान कर दिया था.. बात बहोत बिगड़ गई थी.. फिर तो ऐसा मौका ही नहीं मिला की कुछ संभल सकें.. जो भी हुआ उसमें तरुण और मौसम की कोई गलती नहीं थी.. जो कुछ भी हुआ था, हम बड़ों के बीच ही हुआ था, जिसका फल ईन बेचारे बच्चों को भुगतना पड़ा था"
रमिलाबहन काफी सरल प्रकृति की थी.. और उनके गले मे यह बात आसानी से उतर गई.. वो मौसम का हाथ पकड़कर एक तरफ ले गए
रमिलबहन: "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तू अभी क्या सोच रही है.. !! विशाल को तेरी ज़िंदगी मे आए हुए बस कुछ ही दिन तो हुए है..!! तेरी और तरुण की तो मंगनी तक हो गई थी.. शादी होना तय था.. !! याद कर.. उसके बगैर क्या हाल हो गया था तेरा.. !! तेरा प्यार वापिस लौटकर आया है और तू मुंह फेर रही है??"
मौसम: "और विशाल से क्या कहूँ?? की वो सब भूल जाएँ?? कोई खिलौना है क्या वो??"
रमिलाबहन चुप हो गई.. उनके पास इस बात का कोई उत्तर नहीं था.. मौसम की बात में भी दम था
रात के साढ़े बारह बज रहे थे.. तरुण के माता-पिता अब भी रमिलाबहन को समझाने की कोशिश कर रहे थे.. मौसम उस बातचीत का हिस्सा बनना नहीं चाहती थी इसलिए वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और कहा "चल हम फोरम का हाल जानकर आते है"
जनरल रूम मे प्रवेश करते वक्त मौसम ने देखा.. सो रही फोरम के सर पर विशाल हाथ फेर रहा था.. इन दोनों को देखकर, विशाल उठा और बाहर आया
विशाल: "आप लोग यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना?"
मौसम: "हमारी पहचान के एक व्यक्ति का एक्सीडेंट हुआ था.. अब ठीक है उसे.. फोरम की तबीयत कैसी है अब?"
विशाल: "अच्छी है.. रिकवर कर रही है"
मौसम: "सो तो है... तेरे जैसा केयर-टेकर हो तो फोरम की तबीयत तो सुधर ही जाएगी ना.. !! पूरी रात जागकर बेड के किनारे बैठने वाला, किस्मत से ही मिलता है"
विशाल समझ गया की मौसम क्या कहना चाहती थी.. !!
विशाल: "मौसम.. हम दोनों का रिश्ता होने वाला है उसका यह मतलब नहीं है की मैं अपने पुराने दोस्तों का ख्याल नहीं रख सकता.. तुझे पता तो है फोरम का हाल कैसा है.. !! उनके परिवार की मदद करने वाला कोई नहीं है.. और फोरम मेरी बेस्ट फ्रेंड है, यह तुम भी अच्छी तरह जानती हो.. !!"
विशाल की बात सुनकर मौसम ईर्ष्या से जल उठी, उसने कहा "सिर्फ फ्रेंड है या उससे भी ज्यादा कुछ है?"
सुनकर विशाल सहम गया.. पर बेझिझक उसने कहा "जिस तरह के हालात हुए है उसमें किसी की भी गलती नहीं है मौसम.. जिस दिन तुम्हारे घर वाले मेरे घर रिश्ता लेकर आए थे.. उसी दिन फोरम ने अपने प्यार का इजहार किया था.. तब तो मुझे पता भी नहीं था की तुम मुझे पसंद करती हो..!! मम्मी के समझाने के कारण मैंने तेरे लिए हाँ कह दी और फोरम से मुझे रिश्ता तोड़ना पड़ा.. यह बात सिर्फ मैं और फोरम ही जानते है.. और अब तुम दोनों..!!"
मौसम और फाल्गुनी स्तब्ध होकर विशाल को सुनते रहे
विशाल: "और एक बात, फोरम की बीमारी के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, यह जानने के बाद भी अगर मैं उसकी मदद न करूँ तो ऊपर वाला मुझे कभी माफ नहीं करेगा.. उस बेचारी ने तो बिना कुछ कहें अपने प्यार को तुझे सौंप दिया... मैं तो बस उसे इस सदमे से बाहर आने मे मदद कर रहा हूँ.. जरूरत के इस समय क्या तुम मुझे इतना भी नहीं करने दोगी??"
मौसम: "ऐसी बात नहीं है विशाल.. पर मुझे हमेशा यह डर लगा रहता है की कहीं तुम दोनों के बीच नजदीकियाँ न बढ़ जाएँ.. !!"
विशाल: "जब तक हम दोनों की सगाई नहीं हो जाती तब तक मुझे मेरी किसी भी बात की सफाई तुम्हें देने की जरूरत महसूस नहीं हो रही"
परोक्ष रूप से अल्टिमेटम दे दिया विशाल ने
बात को बिगड़ता देख फाल्गुनी समझ गई और मौसम को खींचकर विशाल से दूर ले गई
फाल्गुनी: "अभी इन सब बातों का वक्त नहीं है मौसम.. जो होगा देखा जाएगा.. तू चिंता मत कर"
वह दोनों चले गए.. और विशाल फोरम के पास वापिस लौटकर आया..
फोरम की आँखों से आँसू बह रहे थे.. उनकी बातें फोरम ने सुन ली थी..
फोरम के सर पर हाथ फेरते हुए विशाल ने कहा "तू क्यों रो रही है फोरम.. !! तेरे लिए मेरे दिल मे अब भी जज़्बात है.. जिसे जो मन मे आए वो सोच सकता है.. मेरा प्रॉब्लेम नहीं है.. रो मत फोरम.. प्लीज"
फोरम ने रोना बंद कर दिया.. उसके सर पर रखा विशाल का हाथ अपने गाल पर दबाते हुए फोरम ने कहा "विशाल.. अगर तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो तो मौसम से सगाई कर लो.. मैं तुझे कुछ भी नहीं दे पाऊँगी.. प्लीज.. मौसम के पास पैसा है और वो खूबसूरत भी है"
विशाल ने अपना हाथ झटकाते हुए कहा "पागल हो गई है क्या.. !! कुछ पाने के इरादे से प्यार कभी होता है क्या.. !! "
फोरम का इलाज भले ही डॉक्टर कर रहे थे.. पर उसके मर्ज की असली दवाई तो विशाल ही था..विशाल की प्रेम-वाणी का फोरम पर जादुई असर हुआ..
विशाल: "किसी इंसान के लिए प्यार बेश-किंमती होता है तो किसी के लिए सिर्फ टाइम-पास करने का जरिया.. प्यार की कोई किंमत नहीं होती.. इसीलिए तो उसे अनमोल कहा जाता है.. ये "अनमोल" शब्द भी कितना गहरा होता है ना.. !! एक ही शब्द के दो विपरीत अर्थ होते है.. शायद दुनिया का इकलौता शब्द होगा ऐसा.. "
विशाल की यह फ़िलोसोफीकल बातें फोरम को समझ नहीं आ रही थी..
विशाल ने समझाते हुए कहा "देख फोरम.. जिसकी किंमत तय की न जा सके उसे अनमोल कहते है, राइट?"
फोरम: "जैसे कोई तराशा हुआ हीरा.. तेरे जैसा"
विशाल: "वैसे ही, जिसकी कोई किंमत न हो उसे भी अनमोल ही कहते है"
फोरम उदास होकर बोली "जैसे की मैं.. !!"
विशाल: "बकवास बंद कर यार.. मैं तुझसे प्यार करता हूँ यह हकीकत है.. और मौसम से मुझे शादी करनी होगी यह मेरी वास्तविकता है.. !!" इतना बोलते बोलते विशाल हांफ गया
यह सुनकर, एक गहरी सांस लेकर फोरम ने विशाल का हाथ और मजबूती से पकड़ लिया.. बिछड़ने की क्षण पर ही इंसान अपने साथी का हाथ और मजबूती से पकड़ लेता है.. !!
विशाल: "मैं अपने घरवालों को अच्छी तरह जानता हूँ.. वो कभी तेरा स्वीकार अपनी बहु के रूप मे नहीं करेंगे.. इसलिए नहीं की तुझ मे कोई खोट है.. मगर इसलिए की मौसम के परिवार के पास बहोत पैसा है.. और इस वक्त, मेरे परिवार की सारी समस्याओं का उपाय, पैसा ही है..!! अगर तेरा हाथ पकड़ूँगा तो मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी नहीं हो पाएगी.. पापा ने जो घर का लोन लिया है वो भी चुकाने का और कोई रास्ता नहीं है.. मम्मी के इलाज मे भी बहोत पैसा जा रहा है.. !!" विशाल की आँखों से भी आक्रोश के रूप मे आँसू बहने लगे
फोरम: "और मेरे दिल मे जो जज़्बात और भावनाएँ है, उनकी कोई किंमत नहीं??"
विशाल: "दिल के जज़्बात?? वहाँ देख.. वो कोने में डस्टबिन पड़ा है.. उसमें जाकर डाल दे.. वहीं जगह होती है दिल के जज़्बातों की"
एक दूसरे से लिपटकर बहोत देर तक रोयें दोनों.. प्रेमियों के पास रोने के अलावा और कोई स्वतंत्रता नहीं होती..!!
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मौसम और फाल्गुनी दोनों रीसेप्शन पर बनी सीट पर बैठी थी
मौसम: "यार फाल्गुनी, मुझे पक्का शक है की विशाल अब भी फोरम से प्यार करता है"
फाल्गुनी: "हो सकता है.. प्यार पानी जैसा होता है.. प्रेमरूपी ढलान जिस ओर होती है, उसी ओर बहने लगता है"
मौसम: "तो फिर विशाल का झुकाव मेरी तरह होना चाहिए ना.. !! मैं तो उससे बहोत प्यार करती हूँ"
फाल्गुनी: "मौसम, मन के मंदिर मे एक बार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा हो गई.. तो हो गई..!! फिर दूसरी मूर्तियों की स्थापना मुख्य प्रतिमा के इर्दगिर्द ही होती है"
मौसम: "मैं समझ रही हूँ फाल्गुनी.. पर अब इस स्थति में, मैं क्या करूँ, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. !! तू ही कुछ रास्ता बता"
फाल्गुनी: "मौसम बेटा... !!" मौसम को इस तरह संबोधित करते ही पुरानी बातें याद आ गई.. मौसम ने चोंककर फाल्गुनी की ओर देखा
फाल्गुनी: "चोंक क्यों गई.. !! हमारा असली रिश्ता भूल गई क्या?"
मौसम: "ओह याद आ गया मम्मी.. !!"
फाल्गुनी ने हंसकर मौसम की छाती पर हाथ रखकर उसके स्तनों को हौले हौले दबाते हुए कहा "अब देखना ये है की तेरे यह सुंदर रसगुल्लों की चासनी कौन चूसेगा.. !! कौन दबाएगा.. कौन चखेगा.. किसके नसीब मे होंगे ये?"
मौसम: "अरे यार, इतने टेंशन मे भी तुझे ये सब सूझ रहा है.. !! यहाँ मेरी जान जा रही है और तुझे नीचे खुजली हो रही है?"
फाल्गुनी: "ऐसा नहीं है य आर.. जब किसी गंभीर समस्या का हल न दिखें.. तब सेक्स ही दिमाग को शांत और रिलेक्स करता है.. ऐसा तेरे पापा हमेशा कहते थे"
सुबोधकांत को याद करते हुए फाल्गुनी ने मजबूती से मौसम के स्तनों को दबा दिया..
देर रात हो गई थी.. रीसेप्शन के पास बने वैटिंग रूम मे फाल्गुनी और मौसम के अलावा कोई नहीं था.. मौसम चुपचाप फाल्गुनी के स्तन-मर्दन को महसूस करते हुए मौसम सोचने लगी.. तरुण की आँखों मे अब भी उसे अपने लिए प्यार नजर आ रहा था.. विशाल के लिए उसके मन मे प्यार उतना परिपक्व नहीं हुआ था.. पर विशाल उसे बेहद पसंद था.. दोनों की जोड़ी भी बड़ी ही जचती थी.. तरुण होनहार, गंभीर, आमिर और चार्टर्ड अकाउन्टन्ट था.. जब की विशाल बिन-अनुभवी, थोड़ा सा दिलफेंक और मध्यम परिवार से था.. देखने मे तरुण के मुकाबले विशाल हेंडसम था.. अब क्या करूँ? कीसे पसंद करूँ?
फाल्गुनी मौसम के टॉप के अंदर हाथ डालकर उसके उरोजों के ब्रा के ऊपर से मसल रही थी.. मौसम को अपने करीब खींचकर उसके गुलाबी अधरों को चूमते हुए फाल्गुनी खुद भी गरम हो रही थी और मौसम को भी उत्तेजित कर रही थी.. मौसम ने अपना एक हाथ फाल्गुनी के स्कर्ट के अंदर डाल दिया था और पेन्टी के ऊपर से वो उसके गीले होंठों को महसूस कर रही थी.. तो उसका दूसरा हाथ टॉप के ऊपर से ही फाल्गुनी की निप्पल को ढूंढकर मसल रहा था..
रात के सन्नाटे मे वहाँ किसी के भी आने की गुंजाइश नहीं थी.. इसलिए दोनों की हवस उछलने लगी.. मौसम ने फाल्गुनी को अपनी बाहों मे दबा दिया.. दोनों के स्तन आपस मे भीड़ गए थे.. और होंठों से होंठ भी मिले हुए थे.. दोनों की आँखें बंद थी
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तभी उन्हें ढूंढते हुए कविता वहाँ पहुंची.. मौसम और फाल्गुनी को इस हाल मे देखकर वह छुपकर उनकी हरकतें देखने लगी
छोटे से बल्ब की रोशनी में जवान लड़कियां एक दूसरे से लिपटते हुए अपने जिस्मों को गरम कर रही थी.. कविता को पीयूष की याद आ गई.. उसका मन कर रहा था की वह अभी घर जाए.. सारे कपड़े उतारकर, पीयूष के साथ नंगे बदन ही, कंबल के नीचे लिपटकर लेट जाए.. धीरे धीरे कविता उन दोनों के नजदीक आई.. फाल्गुनी मौसम के टॉप के नीचे से हाथ डालकर उसके स्तनों को मसल रही थी.. यह देखकर कविता से रहा नहीं गया.. कविता ने अपना टॉप और ब्रा एक साथ ऊपर कर दीये.. और अपने एक स्तन पर फाल्गुनी का हाथ पकड़कर रख दिया और दूसरे स्तन पर रखने के लिए मौसम का हाथ खींचने लगी.. इस तरह वह भी उन दोनों के साथ उस खेल में जुड़ गई
अचानक हुई इस हरकत से फाल्गुनी और मौसम दोनों चौंक गए.. कविता को इस अवस्था मे देख दोनों शरमा गई.. आज पहली बार मौसम ने अपनी सगी बहन को इस अवस्था मे देखा था..
फाल्गुनी: "अरे दीदी.. आप कब आए? मुझे तो पता ही नहीं चला"
मौसम तो कविता के आगमन से ज्यादा उसकी इस हरकत से ज्यादा अचंभित थी..
कविता: "जब इंसान सेक्स की दुनिया मे खोया हुआ हो तब उसे न कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है.. फाल्गुनी, तुझे सेक्स करने के लिए मेरे ही परिवार के लोग नजर आते है??"
फाल्गुनी चुप हो गई.. कविता के ताने का.. पर देने के लिए उसके पास कोई जवाब नहीं था
कविता: "इतनी देर हो गई और तुम दोनों आई नहीं इसलिए मुझे चिंता होने लगी और मैं ढूँढने चली आई.. पर यहाँ टेंशन कम और पलेजर ज्यादा नजर आ रहा है.. तो सोचा मैं भी शामिल हो जाऊँ.. !!"
मौसम ने मुसकुराते हुए कहा "दीदी, ठंड कितनी है.. !! आप को तो जीजू के साथ गर्मी मिल जाती होगी पर हमें तो इसी तरह अपनी ठंड मिटानी पड़ती है.. !!"
कविता ने हंसकर कहा "तेरे जीजू ही अब ठंडे पड़ चुके है.. इसलिए तो मुझे तुम दोनों के साथ शामिल होना पड़ा.. अब तेरी ठंडी उड़ाने की तैयारियां चल रही है.. बता.. तुझे तरुण के शरीर की गर्मी चाहिए या विशाल की?"
मौसम : "आप क्या कहती हो दीदी??"
कविता: "तरुण भोला-भाला सा पतला है.. विशाल का शरीर एकदम मजबूत और तंदूरस्त है.. जिस्मानी तौर पर विशाल तुझे ज्यादा खुश रख पाएगा.. जज्बाती तौर पर कौन ज्यादा बेहतर है ये कहना मुश्किल है.. उसके लिए तो मुझे उन दोनों से क्लोज होना पड़ेगा.. तब पता चलेगा.. पर तुम दोनों इधर ऐसे ही कब तक खड़ी रहोगी? ऊपर चलो, मम्मी राह देख रही है"
मौसम: "आप जीजू के बारे मे क्या बता रही थी??"
कविता: "पापा का बिजनेस संभालने के चक्कर में, तेरे जीजू मुझे भूल ही गए है.. पहले तो हम दोनों साथ में कितने खुश थे.. !! अब तो वो समय बस याद बनकर ही रह गया है.. मैं उस टाइम को बहोत ही मिस करती हूँ मौसम.. !"
कविता मायूष हो गई पर उसकी उदासी को ज्यादा देर टिकने नहीं दिया फाल्गुनी ने
फाल्गुनी: "दीदी, आपके पास तो एक हीटर है.. मौसम के लिए तो दो-दो हीटर लाइन में खड़े है.. पर मेरा क्या??"
कविता: "तू भी अपना कुछ सेटिंग कर ले.. नहीं तो फिर से किसी बाप के उमर के मर्द के साथ उलझ जाएगी.. " फाल्गुनी की निप्पल पर चिमटी काटते हुए कविता ने कहा
मौसम: "चलिए चलते है.. बहोत देर हो गई.. विशाल और तरुण के बारे मे कल सोचेंगे"
तीनों ऊपर तरुण के कमरे मे पहुंचे.. सब चुपचाप बैठे थे.. तरुण के पापा की एक ही प्रपोज़ल ने सारे समीकरण बदलकर रख दीये थे.. सुबह वापिस आने का वादा कर चारों निकल गए
दोपहर के बारह बजे तरुण को डिस्चार्ज देने की तैयारी हो रही थी.. रमिलबहन, मौसम और फाल्गुनी भी उस वक्त वहाँ पहुँच गए..
मौसम और फाल्गुनी एक कोने मे खड़े होकर कुछ बात कर रहे थे तभी तरुण वहाँ पहुंचा
तरुण: "मौसम, हमारी सगाई भले ही टूट गई थी पर मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाया था.. जो हो गया उसे भूलकर.. मुझे माफ करने के बाद क्या तुम मुझे फिर से स्वीकार करोगी?"
मौसम कुछ नहीं बोली पर फाल्गुनी ने जवाब दिया "तरुण, दरअसल बात ऐसी है की जब तुम ने सगाई तोड़ दी उसके बाद मौसम एक साल तक तुम्हारा इंतज़ार करती रही.. पर जब तुम्हारे तरफ से कोई पहल नहीं हुई तब उसकी दोस्ती, उनकी ऑफिस मे काम करते विशाल के साथ हो गई.. और दोनों काफी आगे भी बढ़ चुके है.. इसलिए अब मौसम के लिए तय कर पाना बहोत ही मुश्किल हो रहा है"
तरुण का चेहरा लटक गया.. उदास होकर वो बोला "ओह्ह.. यह तो मुझे दिमाग मे ही नहीं आया.. जैसे मैं नया साथी तलाश रहा हूँ वैसे मौसम भी किसी को ढूंढ रही हो इसमे कुछ गलत नहीं है.. आई एम सॉरी मौसम.. !! फिर भी, मैं एक हफ्ते तक तुम्हारे जवाब का इंतज़ार करूंगा.. वरना, बेस्ट ऑफ लक तुम्हें और विशाल को.. बस इतना ही कहूँगा की किसी भी कारणवश विशाल के साथ बात आगे ना बढ़ें तो लौटकर जरूर आना.. क्योंकि तुम्हें प्यार करते रहने से मैं कभी अपने आप को रोक नहीं पाऊँगा"
तरुण अपने परिवार के साथ चला गया
मगर उस दिन के बाद मौसम का मन विचलित हो गया.. कभी वो विशाल की तरफ झुकती तो कभी तरुण की तरफ.. इसके बारे मे वो हररोज फाल्गुनी से बात करती.. और तरुण रोज रात को फाल्गुनी से फोन पर बात करता.. और मौसम के विचारों के बारे मे जानकारी लेता रहता.. मौसम के दिल मे दोनों के लिए जज़्बात थे.. पर पसंद तो किसी एक को ही करना था.. कुछ सूझ नहीं रहा था उसे.. एक सप्ताह का समय भी तेजी से पूरा हो रहा था.. दो दिन ही बचे थे.. दूसरी तरफ विशाल फोरम की तरफ खींचता चला जा रहा था.. तरुण का जीवन भी अब मौसम के फैसले पर निर्भर था
उस दिन शाम को मौसम और फाल्गुनी कविता के बारे मे बातें कर रहे थे
मौसम: "यार जीजू दीदी को ऐसे इग्नोर क्यों करते होंगे? क्या उनका सेक्स करने को दिल नहीं करता होगा?"
फाल्गुनी: "मर्दों के लिए ऐसा कभी नहीं हो सकता की उन्हें सेक्स करने का मन न होता हो... अंकल का तो हमेशा खड़ा ही रहता था.. मैंने कभी उनका बैठा हुआ लंड देखा ही नहीं है.. मैं तो बस इतना ही कहूँगी की जीजू को इच्छा न होती हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.. बस काम के बोझ के कारण समय नहीं निकाल पाते होंगे.. और जब वो फ्री हो तब हो सकता है की दीदी के पास टाइम न हो.. !!"
मौसम: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर इसका उपाय कैसे निकालें?"
फाल्गुनी: "सिम्पल है यार.. तेरे और जीजू के बीच वैसे भी खुल कर बातें होती ही है.. जाके सीधा पूछ ले.. !!"
मौसम: "फोन करूँ जीजू को?"
फाल्गुनी: "ऐसी नाजुक बातें फोन पर नहीं की जाती... वैसे भी तुम दोनों ऑफिस मे एक साथ ही होते हो.. जब आसपास कोई न हो तब उनकी चेम्बर मे जाके बात कर लेना.. !"
मौसम: "दिन के वक्त तो ऐसा मौका मिलना मुमकिन ही नहीं है.. पूरा दिन कोई न कोई होता ही है.. और जब वो फ्री हो तब मैं बिजी रहती हूँ.. शाम को छह बजे के बाद जब सारा स्टाफ घर चला जाता है उसके बाद ट्राय करती हूँ कल शाम को.. कुछ भी हो जाए दीदी और जीजू के बीच की इस दूरी को कम करना ही पड़ेगा"
दूसरे दिन की शाम को साढ़े छह बजे जब स्टाफ के सारे लोग घर जा चुके थे तब मौसम ने पीयूष की केबिन मे प्रवेश किया.. आज के दिन के लिए मौसम ने साड़ी और लो-कट ब्लाउज पहना हुआ था.. फ़ाइल को बड़ी बारीकी से पढ़ रहे पीयूष का तो ध्यान भी नहीं गया.. जानबूझ कर अपने पल्लू को सरकाकर मौसम जीजू के सामने झुककर बैठ गई..
मौसम: "जीजू, काम के अलावा भी बहुत कुछ होता है ज़िंदगी मे"
फ़ाइल से आँख उठाकर अपनी साली के गोल स्तनों की ओर देखकर मुसकुराते हुए पीयूष ने कहा "मेरी प्यारी साली साहेबा.. आपके इरादे आज कुछ ठीक नहीं लग रहे है.. तूफान बनकर आई हो आज.. मेनका की तरह विश्वामित्र का तपोभंग करने.. !!"
मौसम ने रूठने का नाटक करते हुए कहा "जीजू, सगाई वाली रात हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद तो आप मुझे जैसे भूल ही गए.. !!"
पीयूष: "मौसम, उस रात को तूने ही तो मुझे कहा था की वो बस आखिरी बार था.. इसलिए मैंने फिर कभी कुछ जिक्र किया ही नहीं और खामोश रहा.. बाकी तेरे ये होंठ.. तेरे ये कातिल बूब्स.. मुझे कितना उत्तेजित कर देते है.. ये बस मैं ही जानता हूँ"
मौसम: "अरे जीजू.. आखिरी बार का इसलिए कहा था की उस दिन मेरी तरुण से सगाई जो हो रही थी.. पर जब सगाई ही टूट गई उसके बाद तो आप मुझसे फिर से मिलने आ सकते थे ना.. !!"
पीयूष: "यार.. काफी समय तक तू इतने सदमे मे थी.. और ऐसी मुरझाई सी शक्ल लेकर घूमती रहती थी.. की सेक्स के लिए फिर से प्रपोज करने का दिल ही नहीं किया"
मौसम: "उस बात को कितना वक्त बीत चुका है.. और मैं तो उस सदमे से कब की उभर चुकी हूँ.. पर आप ही मुझे भूल गए है"
पीयूष: "ऐसा नहीं है मौसम.. !!" पीयूष ने फ़ाइल को एक तरफ रख दिया.. और मौसम के चेहरे के करीब आकर उसके होंठों को चूम लिया..
मौसम ने जरा सा भी विरोध नहीं किया.. बल्कि उसने पीयूष की कीस का जवाब सिसककर दे दिया.. और पीयूष का हाथ पकड़कर अपने स्तन पर रखते हुए बोली "आह्ह जीजू.. देखिए ना.. कितने टाइट हो गए है ये.. !! दबने के लिए कब से तरस रहे है.. प्लीज दबाइए ना.. !!"
मौसम का इतना कहते ही.. पीयूष की ऑफिस बेडरूम मे तब्दील हो गई.. वो खड़ा होकर मौसम के पीछे गया और उसे कमर से पकड़कर खड़ा कर दिया.. अपने लंड को उसकी गांड पर दबाते हुए उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर हाथ डालकर अपनी एक उंगली मौसम की मुनिया मे डाल दी..
मौसम की आह निकल गई.. जीजू का लंड उसके कूल्हें को छु रहा था और उनकी मर्दाना उंगली चूत के अंदर घुस चुकी थी.. गर्दन पर जीजू की सांसें भलीभाँति महसूस कर रही थी मौसम.. पीयूष ने अपनी जीभ निकालकर मौसम की गर्दन को चाट लिया.. !!!
चूत के अंदर फूल स्पीड से अंदर बाहर होती उंगली ने थोड़ी ही देर मे मौसम को स्खलित कर दिया.. और वो हांफने लगी.. पहला ऑर्गजम जल्दी हो जाने वाला था यह मौसम और पीयूष दोनों ही जानते थे..
अपनी अनियमित साँसों को अनदेखा कर.. मौसम हाथ पीछे ले गई और पीयूष का लँड पेंट के ऊपर से पकड़ लिया.. उस मर्दाना सख्ती को छूकर मौसम फिर से उत्तेजित होने लगी
पीयूष ने लहराती आवाज मे मौसम के कानों मे कहा "मौसम... !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. !!"
पीयूष; "इतने दिनों तक क्यों तड़पाया मुझे?" पीयूष ने अपनी एफ.आई.आर दाखिल की
मौसम: "मैंने नहीं.. आपने ही मुझे तड़पाया है जीजू.. इतने महीनों से आपको मेरी तरफ देखने का समय ही नहीं मिला.. !!"
यह सुनते ही, पीयूष ने मौसम की साड़ी को उतारा और उसे धक्का देकर उलटे पेट टेबल पर लेटा दीया.. उसकी पेटीकोट और पेन्टी को उतार दिया.. पीयूष की नज़रों के सामने, मौसम के चाँद जैसे दो कूल्हें खुले हुए थे.. यह देखते ही पीयूष का लंड झटके खाने लगा..
पीयूष ने मौसम को टेबल से खड़ा किया और मौसम उसकी और मुड़ी.. साड़ी तो उतर चुकी थी.. पर ऊपर पहने टाइट ब्लाउज को उतारने में बड़ी मुशक्कत करनी पड़ी... क्योंकि हुक खुल ही नहीं रहे थे.. पर आखिर ब्लाउज उतर ही गई.. मौसम ने आज वही ब्रा पहनी थी जो पीयूष ने उसे सगाई से पहले गिफ्ट की थी
पीयूष: "ये तो वही ब्रा है ना.. !!"
मौसम: "हाँ जीजू.. मैंने संभालकर रखी हुई थी.. इसे देखकर मुझे आपके साथ बिताया वह अद्भुत समय याद आ जाता था.. इसलिए फिर कभी पहनी नहीं.. !!"
ब्रा की कटोरियों के ऊपर से मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने पूछा "तो फिर आज क्यों पहन ली?"
मौसम ने सिसकते हुए कहा "आज तो मैं मन बनाकर आई थी.. कैसे भी करके आपको आज पाकर ही रहूँगी"
पीयूष ने मौसम की नाजुक निप्पलों को मरोड़ दिया..
मौसम: "आह्ह.. !!! जरा धीरे धीरे करो जीजू.. दर्द हो रहा है मुझे"
पीयूष: "धीरे से तो कर रहा हूँ... ये तो बहुत दिनों से किसी ने छूए नहीं इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है वरना बबलों को तो ऐसे ही दबाया जाता है.. वैसे तरुण ने सगाई के बाद दबाए नहीं थे तेरे?"
मौसम: "चांस ही नहीं मिला... !!"
पीयूष: "किस तो की होगी.. "
मौसम: "वो भी नहीं.. आपने जो पहली बार मुझे लीप किस की थी उसके बाद से मेरे ये होंठ अभी भी कोरा कागज ही है"
यह सुनते ही, ताव मे आकर, पीयूष ने अपने पेंट की चैन खोल दी और लंड बाहर निकालकर मौसम के हाथों में दे दिया..
मौसम: "वाऊ जीजू... इट इस सो हार्ड एंड हेंडसम"
एक लंबे अरसे बाद लंड को देखकर मौसम जोश मे आ गई और झुककर उसने लंड के टोपे पर किस कर दिया.. धीरे धीरे वो पीयूष के लंड को मुंह मे लेकर चूसने लगी..
सिसकते हुआ पीयूष, मौसम के बालों मे उँगलिया फेरते हुए अपने लंड को मौसम के मुंह के अंदरूनी हिस्सों पर रगड़ता रहा.. कभी अपनी कमर से ठेलता तो कभी मौसम के सर को दोनों हाथों से पकड़कर लंड को गर्दन तक अंदर धकेलता..
मौसम के मुंह को चोदते हुए पीयूष ने पूछा "मौसम, तुझे विशाल ज्यादा पसंद है या तरुण?"
जवाब देने के लिए खुद को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ा कर, मुंह से लंड बाहर निकालते हुए मौसम ने कहा "वही तो कन्फ़्युशन है जीजू.. पता ही नहीं चल रहा की मैं क्या करूँ.. !! आप का क्या सजेशन है?"
पीयूष: "अब इसमें मैं भला क्या कहूँ? जो भी तय करना है वो तुझे करना है.. जीना तुझे है या मुझे? हाँ इतना कह सकता हूँ की दोनों ही लड़के होनहार है.. तुझे खुश रखेंगे... अगर तरुण को चुनेगी तो तुझे शहर छोड़ना होगा.. अपनी मम्मी से दूर जाना पड़ेगा.. उन्हें कभी कुछ जरूरत पड़ी तो तू समय पर पहुँच नहीं पाएगी.. विशाल को पसंद करेगी तो इसी शहर मे रहेगी.. हम सब की नज़रों के सामने.. तुझे कभी भी, कुछ भी जरूरत पड़ी तो हम सब दौड़ कर तेरे पास आ सकेंगे"
मौसम: "आप की बात सौ फीसदी सच है जीजू.. विशाल की ओर ही मेरा रुझान है.. पर तरुण के साथ मेरा टयूनिंग बहुत अच्छा था.. और हम दोनों काफी क्लोज भी थे.. इसलिए मुझे पता नहीं चल रहा है की कीसे पसंद करूँ.. !!"
पीयूष मौसम के स्तनों से खेलते हुए बोला "सोच समझकर तय करना.. अगर इसी शहर मे रहेगी तो यह तेरा सुंदर जोबन मुझे देखने तो मिलेगा.. वरना फ़ोटो देखकर ही मन मनाना पड़ेगा.. यार मौसम, शादी हो जाने के बाद तू मुझे कुछ नहीं देगी?"
मौसम: "पागल हो क्या जीजू?? शादी के बाद कैसे दे पाऊँगी?"
पीयूष ने मौसम को खड़ा किया और टेबल पर सुला दिया.. उसकी दोनों टांगों को जितना हो सकता था उतना चौड़ा कर अपनी गर्दन के इर्दगिर्द उन्हें सेट कर.. बड़े ही चाव से मौसम की चूत को चाटने लगा.. मौसम कराहने लगी..
चूत चाटते हुए पीयूष ने सवाल किया "क्यों नहीं दे पाएगी.. !! चूत नहीं दे पाएगी.. पर दबाने तो देगी ना.. !! दबाने से तेरे बूब्स घिस नहीं जाएंगे"
मौसम: "वैसे देखने जाओ तो चूत भी कहाँ देने से घिस जाने वाली है... !! आह्ह.. अब बातें छोडो जीजू.. और डाल दो अंदर.. !!
पीयूष खड़ा हो गया.. और अपने लंड को मौसम की चूत की सिलवटों पर रगड़ने लगा..
गरम गरम मर्दाना स्पर्श अपने निजी अंग पर महसूस होते ही मौसम की छातियाँ ओर टाइट हो गई.. और उसकी निप्पलें बंदूक की कारतूस जैसे कडक हो गई.. पीयूष का गरम सुपाड़ा उसकी क्लिटोरिस को सुलगा रहा था तो दूसरी तरफ उसकी क्लिटोरिस पर लंड का लावारस, मरहम का काम कर रहा था..
मौसम से अब और बर्दाश्त न हुआ "ओह्ह जीजू, अब खेलना बंद भी कीजिए.. डाल दीजिए अंदर.. वरना मैं कपड़े पहनकर यहाँ से चली जाऊँगी.. !!" मौसम इतनी नाराज हो गई थी.. नाराजगी से ज्यादा बेताबी थी.. एक साल तरसने के बाद आखिर लंड उसकी योनि मे प्रवेश करने जा रहा था.. !!
मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर पीयूष ने अपने लंड को धीरे से उसके गुलाबी गरम छेद के अंदर डाल दिया.. और मस्ती पूर्वक धक्के लगाने लगा.. पहले से पसीज चुकी चूत के अंदर काफी गीलापन था.. मक्खन मे गरम छुरी की तरह उसका लंड अंदर घुस गया
मौसम सातवे आसमान मे उड़ते हुए अपनी गांड की नीचे से उठाते हुए गोल गोल घुमाकर.. लंड के नायाब स्पर्श का लाभ, चूत के हर अंदरूनी हिस्से को देने लगी.. !! उसकी सिसकियों से पता चल रहा था की वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पलों को अनुभवित कर रही थी..
तीन-चार मिनट के अनोखे समागम के बाद पीयूष ने लंड बाहर निकाल लिया और अपने पेंट पर ही वीर्य गिरा दिया.. और इस कामोत्सव को परिपूर्ण कर दिया..
दोनों जवान शरीर हांफने लगे.. कुछ मिनटों के बाद मौसम ने कपड़े पहनने की शुरुआत करते हुए पेन्टी हाथ मे ली.. और सवाल जवाब शुरू किए.. जिस उद्देश्य के लिए वो यहाँ आई थी वो मौसम भूली नहीं थी