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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है कविता को अपने पापा के कारनामों का पता चल गया है साथ ही उसने फाल्गुनी को भी पूछने के लिए बुलाया लेकिन पता नहीं क्या सोचकर वह फाल्गुनी से कुछ कह नहीं पाई मौसम को कोई फर्क नही पड़ा दोनों ने मजे करने के लिए पार्टी का इंतजाम कर लिया है देखते हैं फाल्गुनी किसके साथ मजे करती हैंउस रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हुए वैशाली ने मदन से पूछा.. "पापा, इस क्रिसमस के वेकेशन मे क्या मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँ?? ३१ दिसंबर मनाने के लिए वह सब किसी हिल-स्टेशन पर जाने का सोच रहे है.. !!"
मदन: "तू जाना चाहती है तो जरूर जा.. पर मेरा मानना है की न्यू-यर की पार्टी किसी फ्रेंड के घर पर ही इन्जॉय करो तो बेहतर रहेगा.. बेटा, तेरे साथ एक दुर्घटना तो घट चुकी है.. कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तेरी बाकी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.. और ३१ दिसंबर को बाहर क्या क्या होता है ये तू भी जानती है और मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ.. अच्छे घर की लड़कियों के साथ हेवानियत भरे जो किस्से घटते है.. वो अक्सर अखबार में पढ़ता हूँ.. आश्चर्य की बात तो ये है की जिन लड़कों पर वो भरोसा कर निकलती है.. वहीं लड़के उनके साथ यह दुर्व्यवहार करते है.. और इन्जॉय करने के लिए बाहर ही जाना जरूरी थोड़े ही है.. !! किसी सलामत जगह भी मजे कीये जा सकते है.. अनजानी दूर जगह पर मिलती स्वतंत्रता, कब स्वेच्छाचार का स्वरूप धारण कर लेती है, कुछ कह नहीं सकते"
वैशाली अपने पापा की हिदायतों को बड़े ही ध्यान से सुन रही थी.. उसने तुरंत जवाब नहीं दिया और चुपचाप खाती रही.. खाना खतम करने के बाद हाथ ढोते हुए उसने मदन से कहा "आप ठीक कह रहे हो पापा.. वैसे अभी कुछ तय नहीं हुआ है.. दो-तीन दिनों में हम सब सोच के फाइनल करेंगे.. "
मदन ने स्माइल देकर बात को वहीं विराम दिया.. वैशाली बाहर चली गई और तभी शीला बाहर आई और बोली "मैं भी अपनी सहेली के घर इन्जॉय करने वाली हूँ.. हम सब महिलायें साथ मिलकर न्यू-यर की पार्टी मनाने वाले है"
मदन: "ओहोहों.. क्या बात है.. फिर मैं भी क्यों पीछे रहूँ?? मैं भी राजेश के साथ मिलकर कोई प्रोग्राम बना लेता हूँ.. !!"
शीला ने बेफिक्री से कहा "तेरी मर्जी.. तुझे जो करना हो वो कर.. बस इकत्तीस तारीख को मुझे डिस्टर्ब मत करना.. !!"
मदन: "हम्म.. लगता है कुछ बड़ा प्लान किया है आप लोगों ने.. किस तरह की पार्टी है?? बता तो सही.. !!"
शीला: "तू समझ रहा है ऐसी कोई फ्री-सेक्स पार्टी नहीं है.. जिसके लिए मुझे घर पर झूठ बोलकर.. मीटिंग का बहाना बनाकर जाना पड़े.. !!"
मदन की बोलती बंद हो गई.. शीला नटखट मुस्कान के साथ, मदन को ध्वस्त कर, किचन में बर्तन रखने चली गई..
मदन ने शीला के सामने ही राजेश को फोन किया.. और ३१ दिसंबर के प्लान के बारे में पूछा.. पर राजेश ने बताया की उसका तो पहले से ही अन्य दोस्तों के साथ पार्टी का प्लान बन चुका था.. और वो फ्री नहीं था.. !!
मदन ने और एक-दो दोस्तों को फोन किया.. पर सब का कुछ न कुछ प्लान बन चुका था.. निराश होकर मदन अपने बिस्तर पर लेट गया और सोचता रहा.. भेनचोद, ३१ दिसंबर को मैं अकेला बैठकर क्या मुठठ मारूँगा.. ?? पूरी दुनिया मजे कर रही होगी और मैं घर पर बैठे बैठे टीवी पर अनुपमा देखूँगा क्या.. !!
रात को मदन और वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे थे.. घर का सारा काम निपटाकर शीला भी टीवी देखने बैठ गई.. तीनों साथ बैठकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे थे.. ब्रेक के दौरान शीला ने वैशाली को मौसम और तरुण की सगाई टूटने के कारण के बारे मैं पूछा.. यह सोचकर की शायद वैशाली को कुछ पता हो.. पर वैशाली इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी.. बल्कि उसने तो यह भी कहा की वह खुद असली कारण जानने के लिए उत्सुक थी..
वैशाली की ओर से कुछ मदद की आशा न दिखाई दी तो शीला ने मदन की तरफ रुख किया "मदन, क्यों न तू ही फोन लगाकर तरुण से इसका कारण पूछ लेता.. !! उस घटना को भी काफी समय हो गया है.. हो सकता है की वो थोड़ा सा नरम हुआ हो और वो तुझे बता दे.. !!"
वैशाली सुन न सके उस तरह मदन ने शीला के कान मे कहा "वो आदमी है.. कोई लंड नहीं.. जो नरम हो जाए"
सुनकर शीला हंस पड़ी.. मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए उसने अपने मोबाइल में सेव तरुण का नंबर मदन को दिया..
मदन ने तरुण को फोन लगाया.. फोन उठाते ही मदन ने अपनी पहचान दी.. तरुण ने उसे तुरंत पहचान लिया..
मदन के एक बार पूछने पर ही तरुण ने उसे सारी बात बता दी.. और फोन रख दिया..
वैशाली ने उत्सुकतावश पूछा "क्या हुआ पापा? उसने कुछ बताया??"
एक भारी सांस छोड़कर मदन ने कहा "नहीं बेटा.. वो कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है"
लेकिन शीला समझ गई की मदन झूठ बोल रहा था.. मदन के चेहरे के हाव भाव से यह स्पष्ट था की तरुण ने उसे हकीकत बता दी थी
बात जानने के लिए शीला को चटपटी होने लगी.. रात को बेडरूम मे जाते ही उसने मदन से पूछा "तूने वैशाली से झूठ क्यों बोला ??"
मदन: "अब उसे कैसे बताता की सुबोधकांत सेक्स-रैकिट की रैड में रंगेहाथों पकड़ा गया था.. इस बात का तरुण के परिवार को पता लग गया था.. इसलिए उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया.. और यार, तरुण के पास तो ये बात भी आई है की सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच नाजायज संबंध थे.. !!"
मम्मी और पापा के बेडरूम के दरवाजे पर कान लगाकर सुन रही वैशाली स्तब्ध हो गई.. !!! वैसे उसे तभी अंदाज लग चुका था की तरुण ने पापा को सब बता दिया था.. इसीलिए तो उनका फोन इतना लंबा चला था.. किसी कारणवश उन्हों ने वैशाली को सच नहीं बताया था पर वैशाली को यकीन था की बेडरूम में जाते ही मम्मी और पापा के बीच इस बारे में जरूर बात होगी.. !!!
वैशाली का दिमाग चक्कर खाने लगा.. पापा को तो चलो तरुण ने बताया.. पर तरुण को फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में किसने बताया होगा?? वो सोच रही थी.. क्या फाल्गुनी को इस बारे में मुझे आगाह करना चाहिए??
रात को अपने कमरे से वैशाली ने पिंटू को फोन पर सारी बात बता दी.. वो तो तभी कविता को भी सारी बात बताना चाहती थी.. पर यह सोचकर नहीं फोन किया क्यों की उसे मालूम था की वो इस वक्त पीयूष के साथ होगी.. कविता के साथ सुबह बात करेगी ये सोचकर वैशाली सोने की कोशिश करने लगी.. पर मम्मी-पापा की बातों ने उसे सोच में डाल दिया था.. बाप के दुष्कर्मों की सजा संतानों को भुगतनी पड़ सकती है.. वैशाली के केस में उसके पति के कुकर्मों की सजा भुगतना लिखा था.. बिना किसी गुनाह के वैशाली को इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा था.. ज़माना कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए.. कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले.. लोग जवान लड़कियों के प्रति कभी अपनी संकुचित विचारधारा नहीं छोड़ेंगे.. किसी लड़की की सगाई टूटी हो.. या उसका तलाक हुआ हो.. उसका हर कोई मूल्यांकन करने लगता है..
वैशाली का मन किया की वो अभी के अभी तरुण को फोन लगाकर झाड दे.. !! की उसने बाप के गुनाहों की सजा उनकी बेटी की क्यों दी? पर तब उसे एहसास हुआ.. की बात सिर्फ मौसम से शादी की नहीं थी.. हमारे समाज में शादी सिर्फ दो इंसानों का मिलाप नहीं होता.. दो परिवारों का.. दो समाजों का मिलन होता है.. जाहीर सी बात थी की सुबोधकांत के बारे में यह सब जानकर तरुण के परिवार वालों को या रिश्ता मंजूर न हो.. सोचते सोचते वैशाली सो गई
सुबह ऑफिस जाते हुए रास्ते में वैशाली ने कविता और बाद में मौसम को फोन करके तरुण के सगाई तोड़ने का असली कारण बता दिया.. हालांकि उसने सिर्फ सुबोधकांत की रंगरेलियों के बारे में ही बताया और फाल्गुनी वाली बात नहीं बताई
मौसम तो अपने बाप के रंगीन किस्सों के बारे में फाल्गुनी से जान ही चुकी थी.. उसे तो पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में भी पता था इसलिए उसे कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. पर कविता को जबरदस्त सदमा पहुंचा.. !!! क्या मेरे पापा इतने गिरे हुए थे?? वैशाली ने तो पूरी बात खतम कर फोन रख दिया था
पर कविता से रहा नहीं गया.. उसने सीधा तरुण को फोन लगाया.. सुबह सुबह तरुण अभी बस ऑफिस पहुंचा ही था की कविता का फोन आया.. सगाई तोड़ने के बाद तरुण ने मौसम के परिवार के सारे नंबर डिलीट कर दीये थे
तरुण: "हैलो.. कौन बात कर रहा है"
कविता: "गुड मॉर्निंग तरुण.. मैं कविता बोल रही हूँ.. मौसम की बड़ी बहन"
तारुण: "ओह हाय दीदी.. कैसी है आप??"
कविता: "बस ठीक ही हूँ.. तुम कैसे हो?"
तरुण: "ठीक न भी हो तो भी "ठीक हूँ" कहने का तो हमारा जैसे रिवाज ही है.. हैं ना दीदी..!!
कविता: "तरुण अगर आसपास कोई न हो तो मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ.. क्या पूछ सकती हूँ?"
तरुण: "हाँ पूछिए ना दीदी.. वैसे ऑफिस में हूँ पर अकेला हूँ इसलिए कोई दिक्कत नहीं है"
कविता: "तरुण, पापा के चारित्र को लेकर जिन अफवाहों के कारण तुमने सगाई तोड़ दी.. उसका मुझे पता चला.. तुमने जो भी निर्णय लिया वो अब पुरानी बात हो चुकी है.. पर मुझे ये समझ मे नहीं आ रहा की इतने पढे लिखे और समझदार होने के बावजूद तुमने ऐसी वाहियात अफवाहों को मानकर मौसम जैसी निर्दोष लड़की के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया.. !!!"
तरुण: "दीदी, मैं पागल नहीं हूँ की सिर्फ कही-सुनी बातों पर विश्वास कर इतना बड़ा कदम उठाता.. मैं खुद मौसम को बेहद पसंद करता हूँ.. और यह निर्णय मेरे लिए भी उतना ही कठिन था जितना मौसम के लिए.. !!"
कविता: "तरुण, तुम्हारी सगाई तो टूट चुकी है.. इसलिए तुझे यह कहना चाहिए की "मौसम को पसंद करता था "
तरुण: "दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे यह फैसला अपने परिवार के दबाव में आकर लेना पड़ा पर उसका मतलब यह नहीं की मुझे मौसम पसंद नहीं है.. कॉलेज के वक्त जब सारे लड़के-लड़कियां जवानी के जोश में मजे कर रहे थे.. तब मैं किताब में मुंह छुपाकर पढ़ रहा था.. अगर वैसा न किया होता तो आज सी.ए. नहीं बन पाता.. पढ़ाई खत्म करने के बाद, मौसम वो पहली लड़की थी जो मेरी ज़िंदगी में आई और मौसम में ऐसा एक नुक्स नहीं है जिस में बता सकूँ.. किसी नसीबवाले को ही मौसम जैसी लड़की मिलेगी.. और मेरे भाग्य में मौसम नहीं है, उसका मुझे बेहद अफसोस है"
कविता समझ गई की सगाई तोड़कर तरुण भी काफी दुखी था.. और वो अब तक मौसम को भूल नहीं सका है
कविता: "फिर भी.. मुझे लगता है तुमने मेरे पापा के बारे में जो भी बातें सुनी.. उसकी चर्चा तुम्हें एक बार मौसम से करनी चाहिए थी"
तरुण: "मुझे वह बात करना इसलिए जरूरी नहीं लगा क्यों की मुझे यकीन था की मौसम को पहले से ही उस बात का पता था"
चोंक गई कविता... !!! मौसम को मालूम था.. !!!! कैसे??
कविता: "मैं नहीं मानती ये बात.. क्योंकी मौसम खुद अभी इस कारण को तलाश रही है.. यही जानने के लिए उसने तुम्हें कितनी बार फोन कीये है ये तो तुम्हें पता ही होगा"
तरुण: "हाँ दीदी.. बहोत बार फोन आए.. पर मैंने उठाए नहीं.. उठाकर क्या कहता?? की तेरे पापा एक रंगीन मिजाज और अईयाश किस्म के आदमी है.. ये कहता???"
अपने स्वर्गीय पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर कविता का खून घौल उठा..
तरुण: " दीदी, आपके पापा के बारे में खराब बोलकर मैं आपको दुख देना नहीं चाहता.. पर मुझे लगता है की आपको भी पूरी बात मालूम होनी ही चाहिए"
कविता: "देख तरुण.. तुझे पता तो लग गया होगा की आधी बात तो मैं जान ही गई हूँ.. तू मुझे दिल खोलकर साफ साफ सब बता दे.. जिससे की हम आगे मौसम के जीवन के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले... इस पहलू को ध्यान में रख सकें"
तरुण खामोश हो गई
कविता: "बता ना तरुण?? प्लीज ऐसे चुप मत हो जा"
एक लंबी सांस लेकर तरुण ने कहा "दीदी, आप के पापा और फाल्गुनी के बीच अवैद्य संबंध थे.. जिस्मानी संबंध.. !! उतना ही नहीं.. आपके पापा एक होटल में चल रही ग्रुप सेक्स पार्टी में पड़ी रैड के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए थे.. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा.. अखबार में उनके नाम के साथ पूरा आर्टिकल छपा था.. शायद आपने पढ़ा न हो.. पूरी रात लॉक-अप में बंद थे आपके पापा.. बड़े चर्चे हुए थे उस घटना के.. और स्थानिक अखबारों में तो दो दिन तक सब छपता रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की यह घटना सिर्फ हमारे शहर के लोकल अखबार में ही छपी थी.. वरना आपके शहर में लोगों को पता चलता तो आप सबका जीना दुसवार हो जाता.. मेरे रिश्तेदारों ने यह खबर पढ़ी.. आपके पापा का नाम पढ़ा.. अरे, मेरे एक चाचा तो पुलिस स्टेशन जाकर तसल्ली भी कर चुके है.. अब आप ही बताइए..कौन से शरीफ माँ-बाप, अपने बेटे का रिश्ता ऐसे इंसान की बेटी के साथ करना चाहेंगे?"
कविता ने परेशान होकर बेतुकी बात कह दी "तुम आरोप पर आरोप लगा रहे हो.. पर तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत भी है??"
तरुण: "वो आर्टिकल जिस अखबार में छपा था उसका कटिंग अभी भी मैंने संभाल कर रखा हुआ है.. और तो और.. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा की फोन पर जो बातें हुई उसका रेकॉर्डिंग भी है मेरे पास.. आप सुनना चाहेगी??"
कविता: "हाँ, मुझे सुनना है.. प्लीज तरुण.. क्या तुम मुझे वो भेज सकते हो?"
तरुण: "भेज तो नहीं सकता पर आपको सुना जरूर सकता हूँ.. उसके अलावा भी मेरे पास एक रेकॉर्डिग है जिससे साबित होता था की तुम्हारे पापा कितने बड़े अईयाश थे.. और ढेर सारी गंदी आदतों के शिकार भी थे"
सुनकर कविता के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा... एक और टेप???
तरुण: "हाँ दीदी.. आज तो मैं आपको सब कुछ साफ साफ बता देना चाहता हूँ.. जिससे कम से कम आप तो मुझे गलत न समझो.. क्यों की यही कारण जानने के लिए कल रात फाल्गुनी का फोन आया था.. फिर मदन भैया ने फोन किया था.. और हाँ.. आपका फोन आया उससे थोड़ी देर पहले ही वैशाली का भी फोन आया था.. मैं कितने लोगों को सफाई देता रहूँ?? उससे अच्छा तो यही होगा की मैं आपको सब कुछ सच सच बता दूँ.. ताकि आप बाकी सब लोगों को बता सकें.. मौसम के लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. उसे कहना की वो मुझे माफ कर दे.. मैं अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सका.. मैं अब ये फोन कट कर रहा हूँ.. क्यों की वो वोइस रेकॉर्डिंग ईसी फोन में है.. मैं आपको लेंडलाइन से फोन करता हूँ और फिर वो दोनों रेकॉर्डिंग सुनाता हूँ.. आप अकेले में सुनिएगा.. कुछ आपत्तिजनक शब्द और बातें भी होगी.. उसके लिए क्षमा चाहूँगा.. आप दोनों क्लिप सुन लीजिएगा.. सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा"
जिस आत्मविश्वास के साथ तरुण बोल रहा था.. उससे साफ प्रतीत हो रहा था की तरुण के पास पुख्ता सबूत थे और वो शत-प्रतिशत सच बोल रहा था.. कविता के चेहरा सफेद पड़ गया.. पापा.. जो मौसम की शादी के लिए इतने उत्साहित थे.. उनकी गलत हरकतों की वजह से आज मौसम की ज़िंदगी तबाह हो गई... तरुण जैसा होनहार लड़का गंवाना पड़ा.. पापा.. पापा... ये आपने क्या किया?? और क्यों किया???
तभी लेंडलाइन से तरुण का फोन आया..
तरुण: "दीदी, अब मैं मोबाइल पर वो क्लिप प्ले कर रहा हूँ.. आप ध्यान से सुनिए"
रेकॉर्डिंग:
तरुण: "सॉरी पापा.. पर मेरे घर वाले अब इस सगाई को तोड़ना चाहते है.. होल्ड कीजिए.. मैं मेरे पापा को फोन देता हूँ"
सुबोधकांत: "भाई साहब.. आपको मौसम से कोई शिकायत है क्या?? ये मैं क्या सुन रहा हूँ?"
तरुण के पापा: "शिकायत मौसम से नहीं.. आप से है सुबोधकांत.. आपकी हरकतें ही ऐसी है की मैं तो क्या कोई भी आपकी बेटी का हाथ न पकड़ें"
सुबोधकांत: "मुंह संभाल कर बात कीजिए... "
तरुण के पापा: "संभालने की जरूरत मुझे नहीं.. आपको थी.. सुबोधकांत.. इस उम्र में अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ होटल में रंगरेलियाँ मनाते हुए शर्म नहीं आती??"
सुबोधकांत: "आपको कुछ गलतफहमी हुई है समधी जी.. !!"
तरुण के पापा: "पुलिसस्टेशन में जाकर सारी जानकारी लेकर ही बोल रहा हूँ.. यहाँ के अखबार में भी आपके कारनामे छपे थे.. आपके नाम के साथ.. होटल का नाम.. लड़की का नाम.. कमरे का रूम नंबर.. सब मालूम है.. बताऊँ आपको?? राँडों के साथ इस उम्र में मुंह काला करते हुए आपको शर्म नहीं आई??"
तरुण के पापा की बात सुनकर कविता स्तब्ध हो गई.. वो अब अपने पापा के जवाब का इंतज़ार कर रही थी
सुबोधकांत: "देखिए भाई साहब.. अब जब आपको सबकुछ पता चल ही गया तो फिर मेरे आगे बात करने का कोई मतलब नहीं है.. मैं अपना गुनाह कुबूल करता हूँ.. आपको सगाई तोड़ने से मैं नहीं रोकूँगा..पर मेरी आप से एक विनती है.. !! महरबानी करके प्लीज आप ये बात मेरे परिवार वालों को मत बताना.. आपकी नज़रों से तो मैं गिर ही चुका हूँ.. अपनी बेटियों की नजर में, मैं नहीं गिरना चाहता.. मेरी भोली पत्नी तो ये बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी.. वैसे भी वो दिल की मरीज है और अगर उसे कुछ हो गया तो हमारा पूरा परिवार बिखर जाएगा"
तरुण के पापा: "मुझे कोई शौक नहीं है आपके परिवार वालों के ये सब बताने का.. आप का प्रॉब्लेम है और आप ही जानों.. दोबारा यहाँ फोन मत करना और आपके परिवार के सदस्यों को भी कहना की सफाई मांगने के लिए फोन न करे.. मैं आपके बेटी से हुई सगाई तोड़ रहा हूँ.. और आप को भी सलाह देता हूँ... की सुधर जाइए... वरना बर्बाद हो जाएंगे.. अपनी बेटी को ब्याहने की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.. !!"
फोन कट हो गया..
तरुण: "सुना आपने दीदी??"
कविता सुबक सुबककर रो रही थी..
तरुण: "दीदी प्लीज आप रोइए मत.. मौसम को मुझसे भी अच्छा लड़का मिल जाएगा.. अरे, आप कहेंगे तो मैं ढूँढूँगा मौसम के लिए लड़का.."
तरुण की सज्जनता देखकर कविता को बहोत अच्छा लगा.. रोते रोते उसने कहा :तरुण, पापा की नादानी सजा आज मौसम को भुगतनी पड़ रही है"
तरुण: "हाँ दीदी.. मुझे भी मौसम को लेकर बड़ा दुख हो रहा है पर अब मैं कुछ कर नहीं सकता"
थोड़ी देर रोने के बाद कविता शांत हो गई.. इसलिए तरुण ने कहा "आप दूसरी क्लिप सुनना चाहेगी, दीदी?"
अपनी नाक पोंछते हुए कविता ने कहा "हाँ.. सुना.. !!"
तरुण ने क्लिप प्ले कर दी.. सुबोधकांत और किसी अनजान शख्स के बीच बात चल रही थी..
शख्स: "हैलो.. !!"
सुबोधकांत: "हाँ बोलीये.. "
शख्स: "जी मैं हेमंत बोल रहा हूँ.. होटल का मेनेजर.. पहचाना.. ??"
सुबोधकांत: "अरे तुम्हें तो मैं कैसे भूल सकता हूँ?? तेरी वजह से ही तो मेरी ज़िंदगी आज रंगीन है.. एक मिनट लाइन पर रहना हेमंत.. !!"
हेमंत: "ठीक है सर.. !"
सुबोधकांत: "अरे यार.. मेरे आसपास लोग खड़े थे इसलिए मुझे बाहर आना पड़ा"
हेमंत: "सर, मैंने याद दिलाने के लिए फोन किया की आज की पार्टी तय है.. आप जॉइन कर रहे है ना.. ??"
सुबोधकांत: "अरे यार थोड़ा पहले से बताना चाहिए ना.. तू अभी बता रहा है.. अब मैं पार्टनर कैसे अरेंज करू?"
हेमंत: "क्यों आपके साथ वो जवान लड़की आती है ना.. जिसे आप अक्सर होटल पर लेकर आते है.. !!"
सुबोधकांत: "अरे वो लड़की फाल्गुनी तो मेरी पर्सनल माल है यार.. उसे मैं ऐसी ग्रुप सेक्स पार्टी में नहीं लेकर आ सकता.. और वैसे भी वो अभी कच्ची कली है.. वो ये सब देखेगी तो डर जाएगी.. ऐसी पार्टी के लिए तो कोई बाजारू माल का बंदोबस्त करना पड़ेगा"
हेमंत: "तो अब क्या करेंगे सर?"
सुबोधकांत: "तू ही बता.. हर बार तू ही कुछ सेटिंग करता है"
हेमंत: "हाँ सर.. लेकिन ऐसी पार्टी के लिए लड़कियां बहोत ज्यादा पैसा चार्ज करती है.. "
सुबोधकांत: "जो भी हो तू ही कुछ जुगाड़ कर.. अभी मैं लड़की ढूँढने कहाँ जाऊँ?? होटल पहुँचने में भी मुझे तीन घंटों का समय लगेगा.. "
हेमंत: "सर, दो औरतें यहाँ आई है जो पार्टी जॉइन करना चाहती है.. लेकिन उनके पार्टनर नहीं है.. मैंने उनको अभी रोक कर रखा है.. सोचा अप से बात कर लूँ.. फिर उन्हें जवाब दूँ.. आप कहें तो एक आप के लिए रख लूँ?? वैसे उम्र थोड़ी सी ज्यादा है"
सुबोधकांत: "कितनी उम्र होगी??"
हेमंत: "४०-४५ के करीब.. पर दोनों गजब का माल है सर"
सुबोधकांत: "चलेगा.. पैसा कितना लेगी?"
हेमंत: "पच्चीस हजार.. !!"
सुबोधकांत: "ओके.. वैसे भी पार्टी में कौन किसके पास जाएगा क्या पता.. !! कोई फ़र्क नहीं पड़ता.. कर दे फिक्स उसे.. !!"
हेमंत: "ठीक है सर.. दूसरी वाली के साथ मैं पार्टनर बन जाऊंगा"
सुबोधकांत: "ठीक है.. अब रखता हूँ... मुझे अभी निकलना होगा.. तीन घंटे का रास्ता है"
हेमंत: "ओके सर.. "
क्लिप खतम हो गई.. कविता को खड़े खड़े चक्कर आने लगे...
तरुण: "हैलो... हैलो दीदी.. आप लाइन पर है??" कविता की ओर से कोई रिस्पॉन्स न मिलने पर तरुण ने कहा
कविता: "सुन रही हूँ तरुण.. पर अब बोलने जैसा कुछ रहा ही नहीं.. मैं तुमसे बाद मैं बात करती हूँ"
तरुण: "ओके दीदी.. आपका खयाल रखिएगा.. और मौसम का भी... बाय"
फोन खतम होते ही कविता सोफे पर धम्म से बैठ गई.. पापा का आज नया ही रूप सामने आया था.. सारे सबूत सामने होने के बावजूद उसका मन इससे मनने को तैयार ही नहीं था.. पापा की इस रास-लीला का फल मौसम को भुगतना पड़ा था..
भयानक गुस्से के साथ कविता ने फाल्गुनी को फोन लगाया
फाल्गुनी कॉलेज में थी और लेक्चर चल रहा था इसलिए उसने फोन काट दिया.. बाहर आकर उसने कविता को फोन लगाया
फाल्गुनी: "हैलो दीदी.. मैं लेक्चर में थी इसलिए फोन काट दिया.. बताइए क्या काम था??"
कविता: "कॉलेज से निकलकर तू सीधे मेरे घर आना.. मुझे अकेले में तुझ से कुछ बातें करनी है.. और हाँ.. मौसम को इस बारे में कुछ भी मत बताना.. "
इतना कहकर कविता ने फोन काट दिया..
फाल्गुनी सोच में पड़ गई.. दीदी को आखिर ऐसा क्या काम होगा?? और मौसम को बताने से क्यों मना किया होगा?
कॉलेज के बाकी लेक्चर छोड़कर फाल्गुनी सीधे कविता के घर पहुँच गई..
ड्रॉइंग रूम के अंदर आते ही सोफ़े पर बैठकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या काम था दीदी?"
कविता के दिमाग में विचारों का ज्वालामुखी सा फट रहा था.. उसने तय तो किया था की साफ साफ शब्दों में फाल्गुनी को बता देगी की आज के बाद उसका मम्मी के घर आना जाना बंद.. पापा के साथ उसके नाजायज संबंधों के कारण मौसम की सगाई टूटी थी.. इसलिए अब से वो मौसम से मिलने कभी नहीं आएगी..
पर अचानक उसके विचार बदल गए.. दिमाग में कुछ सुझा और उसने पूरी बात ही बदल दी
कविता: "काम तो कुछ खास नहीं था.. तुझे मिलें हुए बहोत दिन हो गए थे.. पापा के जाने के बाद तो तूने घर आना ही बंद कर दिया" ताना मारते हुए कविता ने कहा
सुनकर एक पल के लिए फाल्गुनी सकपका गई.. फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा
"ऐसा कुछ नहीं है दीदी.. मैं और मौसम तो अक्सर मिलते रहते है"
कविता: "पता नहीं क्यों.. पर आज पापा की बहोत याद आ रही है.. कितने अच्छे थे मेरे पापा.. !! तुझे भी अपनी बेटी मानते थे"
अब फाल्गुनी का दिमाग जागृत हो गया.. जरूर दीदी को कुछ शक हुआ है.. वरना वो ऐसे लहजे में कभी बात नहीं करती थी..
सिर्फ दो ही प्रहारों में फाल्गुनी का मुंह लटक गया.. और उसका अब कविता के सामने ज्यादा देर बैठ पाना मुश्किल था..
फाल्गुनी: "दीदी, मुझे घर जाना पड़ेगा.. रास्ते में ही मम्मी का फोन आया था.. उनका बीपी बढ़ गया है.. मैं घर जाने ही वाली थी की तब आपका फोन आ गया इसलिए यहाँ आ गई.. अगर कुछ अर्जेंट न हो तो मैं निकलूँ??"
कविता जवाब देती उससे पहले फाल्गुनी अपना पर्स उठाकर भाग गई
उसे जाता हुआ खिड़की से देखते हुए कविता मन ही मन हंसने लगी.. कविता ने देखा की फाल्गुनी चलते चलते मौसम के घर के पास गई.. मौसम बाहर ही खड़ी थी.. दोनों बातें करते हुए आगे चल दीये
मौसम: "क्या काम था दीदी को??"
फाल्गुनी: "कुछ खास नहीं.. ऐसे ही मिलने बुलाया था.. !!"
मौसम: "सच सच बता फाल्गुनी.. मुझे बेवकूफ मत बना"
फाल्गुनी: "यार मौसम, मुझे लगता है की अंकल और मेरे संबंधों के बारे में दीदी को शक हो गया है.. आज जिस टोन में उन्हों ने मुझसे बात की.. मुझे पक्का यकीन है यार"
मौसम सोच में पड़ गई.. दीदी को इसके बारे में कैसे पता चला होगा??
मौसम: "हो सकता है वैशाली ने पिंटू को बताया हो.. और पिंटू ने दीदी को बता दिया हो.. !!"
फाल्गुनी: "मुझे क्या पता यार.. "
मौसम: "चल छोड़ वो सब.. जो होना था वो हो गया.. जब पापा ही नहीं रहे तो उन सब पुरानी बातों से डरने का कोई मतलब नहीं है.. भूल जा सब... कल शाम को मैं अपनी ऑफिस गई थी.. जीजू से मिलने.. कितने महीनों के बाद गई वहाँ यार.. !!"
फाल्गुनी: "अंकल के जाने के बाद.. मैं उस रास्ते से गुजरी भी नहीं हूँ"
मौसम: "वहाँ ऑफिस में एक लड़का काम करता है.. विशाल नाम है उसका.. बहोत ही हेंडसम है यार"
फाल्गुनी: "अरे वाह.. बोल दे जीजू को.. की तेरी बात चलाएं उसके साथ"
मौसम: "वक्त आने दे.. वो भी करूंगी.. मैं तुझे ये बताने वाली थी की जीजू ने ३१ दिसंबर को अपने घर पर ही मस्त पार्टी करने का प्लान बनाया है.. वैशाली और पिंटू को भी बुलाने वाले है.. और दीदी से छुपकर रखा है.. उन्हें सरप्राइज़ देना का विचार है"
यह सुनकर फाल्गुनी की उदासी थोड़ी कम हुई..
फाल्गुनी: "अरे वाह.. तब तो बड़ा मज़ा आएगा, मौसम.. !! काफी टाइम हो गया.. किसी पार्टी में गए हुए.. !!"
मौसम: "और ये सब मेरी बदौलत हुआ है.. मैंने ऑफिस जाकर जीजू को झाड ही दिया तब जाकर वो तैयार हुए.. बाकी उन्हें बिजनेस से फुरसत ही कहाँ मिलती है.. !! जीजू ने प्लान बनाया और फिर विशाल और फोरम को भी न्योता दे दिया पार्टी में आने का.. मज़ा आएगा फ्लर्ट करने का.. और हाँ फाल्गुनी. पहले से बोल देती हूँ.. तू विशाल से दूर ही रहना"
फाल्गुनी: "अरे बाबा.. तू कहेगी तो मैं उसे पार्टी से पहले ही राखी बांध दूँगी... पर ये फोरम कौन है?"
मौसम: "जीजू की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. जैसे अंकल ने तुझे जुगाड़कर रखा हुआ था वैसे जीजू ने इस फोरम को रखा होगा.. आज कल तो सभी गाड़ियों में स्पेर-व्हील की सुविधा होती ही है ना.. हा हा हा हा.. !"
फाल्गुनी: "तो फोरम की जगह तुझे रीसेप्शनिस्ट बन जाना चाहिए था.. जीजू का अनुभव तो तू पहले ही कर चुकी है.. !!"
मौसम: "हम्म विचार तो अच्छा है.. ये कॉलेज का आखिरी साल खत्म हो जाने दे.. अब और पढ़ाई नहीं करनी है.. बस पापा की ऑफिस में आराम से बैठना है"
फाल्गुनी: "बात तो सही है.. तू वहाँ बैठकर ऑफिस का ध्यान भी रखेगी और जीजू का भी.. !!"
मौसम: "और साथ में विशाल का भी.. !!"
फाल्गुनी: "देखना पड़ेगा इस विशाल को.. उसका नाम बोलते बोलते तेरे गाल लाल हो जा रहे है"
दोनों बातें करते करते घूम कर वापिस आ गई.. मौसम अपने घर चली गई और फाल्गुनी अपने घर..
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है वैशाली ने गाड़ी में थोड़े बहुत मजे पिंटू के साथ कर लिए लेकिन वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुई लेकिन कविता और वैशाली ने एक दूसरे को शांत कर दिया वैशाली को अपनी मां के एक नए राज का पता कविता से चला लगता है अब तो वैशाली भी रसिक से जल्दी ही चुदेगी३१ दिसंबर की सुबह, वैशाली ऑफिस जाने के लिए निकल गई.. आज कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ३१ दिसंबर का प्रोग्राम बनाया था.. वैशाली ने शीला और मदन को बता दिया था की वो आज पिंटू के साथ दोस्त के घर जाने वाली है.. और आते आते देर हो जाएगी
वैशाली ऑफिस पहुंची और अपना काम कर ही रही थी की पिंटू ने आकर उसे बताया की पीयूष का फोन आया था और ३१ दिसंबर की पार्टी के लिए उनके घर.. वैशाली और पिंटू को आमंत्रित किया गया था.. और वहाँ पहुँचने के लिए उन्हें अभी निकलना था..
वैशाली ने फोन करके मदन से अनुमति ली.. पीयूष और कविता के घर वैशाली जाएँ उसमें मदन और शीला को क्या आपत्ति होगी भला.. !!! मदन ने तुरंत हाँ कह दिया..
पिंटू राजेश से छुट्टी मांगने गया.. राजेश ने खुश होकर दो दिन की छुट्टी दे दी.. और साथ में कंपनी की गाड़ी ले जाने को कहा..
पिंटू और वैशाली दोनों ही खुश हो गए.. गाड़ी लेकर दोनों कविता के शहर की और निकल पड़े.. रास्ते में वैशाली ने पिंटू को उकसाने की बेहद कोशिशें की.. अपने स्तन पिंटू के कंधे से रगड़ रगड़कर उसे उत्तेजित करना चाहा.. पर पिंटू ने अपना सारा ध्यान ड्राइविंग पर ही केंद्रित रखा..
आखिर वैशाली को शीला का तरीका आजमाना पड़ा.. क्योंकी ये पिंटू तो भाव ही नहीं दे रहा था.. !! वो सोच रही थी की अभी दो घंटों का सफर बाकी था और गाड़ी में दोनों अकेले थे.. ऐसा मौका अगर पीयूष को मिला होता तो उसने अब तक अपना लंड वैशाली के मुंह में दे दिया होता और उसके बबले दबा दबाकर ढीले कर दीये होते..!!
बड़ी सुहानी रात थी.. जोबन लूटने के लिए बेकरार था.. वैशाली मर्दाना स्पर्श के लिए तड़प रही थी.. उसकी मादक जवानी अपनी माँद में पिंटू का लंड लेने के लिए मचल रही थी.. हाइवे पर सरपट गाड़ी दौड़ रही थी.. आसपास कोई देखने वाला नहीं था.. मस्त रोमेन्टीक म्यूज़िक भी बज रहा था..
वैशाली ने पिंटू की तरफ देखा.. पिंटू का सारा ध्यान रास्ते पर था
वैशाली: "पिंटू, लड़की के सारे अंगों में से कौन सा अंग तुझे सब से ज्यादा पसंद है?"
पिंटू ने तीरछी नज़रों से वैशाली की ओर देखा और हंसने लगा
वैशाली: "अरे बता ना... !!"
पिंटू: "कैसा वाहियात सवाल पूछ रही है तू..!! लड़की का तो हर अंग पसंद होता है सब को"
वैशाली: "यार तुझे कैसे पटाऊँ कुछ समझ ही नहीं आता.. अच्छा ये बता.. तुझे गालियां बकने में मज़ा आता है क्या?"
पिंटू: "ना... जरा भी नहीं"
वैशाली: "तो भेनचोद तुझे अच्छा क्या लगता है??"
वैशाली के मुंह से गाली सुनकर पिंटू स्तब्ध हो गया.. वो बेचारा इस प्रहार के लिए जरा भी तैयार नहीं था.. एक पल के लिए तो उसके हाथ से गाड़ी का स्टियरिंग ही छूट गया
वैशाली: "यार... तूने कभी मुझे ध्यान से देखा है कभी?? मेरा बहोत मन है की तुझे मैं अपना जिस्म दिखाऊँ.. तुझे पता है.. ऑफिस के सारे मर्द मेरे बूब्स को बड़े ध्यान से देखते रहते है.. एक तू ही बेवकूफ है जिसका ध्यान नहीं जाता"
पिंटू: "तेरे है ही ऐसे.. सब का ध्यान वहाँ चला जाता है"
वैशाली: "ऐसे मतलब?? कैसे है मेरे बूब्स?"
पिंटू को लगा की अब अगर उसने जवाब नहीं दिया तो वैशाली उसे पता नहीं कौन सी गाली सुना देगी
पिंटू: "मस्त.. कडक और बड़े बड़े"
वैशाली: "तुझे बड़े बड़े पसंद है या छोटे?"
पिंटू: "मुझे तो तेरे पसंद है"
पिंटू का जवाब सुनकर वैशाली खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "वाह वाह पिंटू.. मान गई.. जवाब देना तो कोई तुझ से सीखें.. पर अगर तुझे मेरे पसंद है तो कभी हाथ क्यों नहीं लगाता??"
पिंटू: "वैशाली, तुझे एक रीक्वेस्ट करूँ?"
वैशाली: "हम्म... बोल.. !!"
पिंटू: "मुझे कभी बेवकूफ मत बोलना.. हर्ट होता है यार.. प्लीज"
वैशाली: "अरे यार मैं तो मज़ाक मज़ाक में कह रही थी.. अगर तुझे नहीं पसंद तो नहीं बोलूँगी कभी.. पर इतने सामान्य शब्द से तुझे ऐसा तो क्या परहेज है?"
पिंटू ने थोड़ी देर सोचकर कहा "यार, वैशाली.. मैं तुझसे झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे बेवकूफ कहकर सिर्फ कविता ही बुलाती थी..और तुझे तो पता है की हम दोनों एक दूसरे को चाहते थे"
वैशाली: "चाहते थे या अभी भी चाहते है??"
पिंटू: "कहने के लिए कह सकते है की चाहते थे.. वरना मुझे पूछ तो अब भी कहूँगा की चाहते है"
वैशाली: "तो फिर मेरे साथ तू टाइम पास कर रहा है क्या??"
पिंटू: "बिल्कुल नहीं.. कविता मेरा भूतकाल थी और तू मेरा वर्तमान है"
वैशाली: "हम्ममम.. तो भविष्य के लिए कीसे पसंद कर रखा है?"
पिंटू: "भविष्य हमेशा वर्तमान पर आधारित होता है.. और भूतकाल केवल यादों के लिए होता है"
वैशाली: "तो फिर मुझे अभी अपना भविष्य बना ले.. " पिंटू की ईमानदारी की कायल हो गई वैशाली.. पिंटू के गालों को चूम लिया उसने
पिंटू के शरीर में बिजली सी दौड़ गई.. चूमते वक्त वैशाली का एक स्तन उसके कंधे से दब गया.. वैशाली ने पिंटू की जांघ पर हाथ रखकर कहा "आई लव यू यार.. !!"
पिंटू: "वैशाली, मैंने तुझे कविता का स्थान तब ही दे दिया था जब तेरे मम्मी पापा से तेरा हाथ मांगा था.. झूठ नहीं बोलूँगा पर कविता को लेकर अब भी मेरे मन में जज़्बात है.. उसे भूलने की मैं पूरी कोशिश करूंगा.. ये मेरा वादा है तुझसे.. आई लव यू टू.. !!"
वैशाली: "थेंकस पिंटू.. सब कुछ साफ साफ बताने के लिए.. मुझे गर्व है की तुझ जैसा दोस्त मुझे मिला है.. !!"
पिंटू: "मेरे लिए प्रेम एक एहसास होने के साथ साथ.. एक जिम्मेदारी भी है.. तेरी हर जरूरत को पूरा करना मेरा धर्म है"
वैशाली: "अभी तो मेरे शरीर को तेरे मर्दानगी भरे स्पर्श की बेहद जरूरत है.." कहते हुए पिंटू के लंड पर उसने हाथ रख दिया.. छूते ही वैशाली को लगा की अभी पेंट के अंदर किसी प्रकार की हरकत नहीं हो रही थी.. इसलिए वैशाली ने पिंटू का हाथ गियर से हटाकर अपने स्तन पर रख दिया..
"आह्ह दबा इन्हें पिंटू.. बहोत दिनों से मेरे यह दोनों किसी मर्दाना स्पर्श के लिए तरस रहे है.. "
पिंटू ने दोनों स्तनों को बारी बारी मसल दीये.. वैशाली कराहने लगी.. पिंटू की तरफ से ३१ दिसंबर की सब से अनोखी भेंट थी यह वैशाली के लिए
गियर बदलने के लिए पिंटू ने अपना हाथ वैशाली की चूचियों से हटाया तब वैशाली ने अपने व्हाइट शर्ट के तीन बटन खोल दीये और ब्रा को ऊपर कर दोनों स्तनों को बाहर निकाल लिया.. और पिंटू के हाथों की प्रतीक्षा करने लगी.. पर पिंटू की तरफ से कोई प्रतिक्रीया नहीं मिली..
आखिर वैशाली को सामने से कहना पड़ा "तुझे बहोत पसंद है ना मेरे.. ले, तेरे लिए खोल कर बाहर निकाल दीये.. एक बार देख तो सही"
वैशाली के खुले स्तन देखकर पिंटू की आँखें फट गई.. "वाऊ... जबरदस्त है बेबी.. "
वैशाली: "अब इन्हें छु भी ले यार.. !!"
पिंटू ने पहली बार वैशाली के नंगे बबलों का स्पर्श किया था.. नरम नरम मांस के गोलों की वो गर्माहट.. हाथ लगाते ही पिंटू का लंड टॉप गियर में आने लगा..
अंधेरी रात में हाइवे पर एक कोने पर.. गाड़ी रोक दी पिंटू ने.. अब पिंटू ने सामने से वैशाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया.. थोड़ी देर पहले शांत बैठा लंड.. अब पूरे खुमार पर था.. पिंटू की इस हरकत से वैशाली को बहोत अच्छा लगा.. उसने पेंट के ऊपर से ही पिंटू की मर्दानगी को मसलकर रख दिया.. उसका कडक लंड देखने के लिए वैशाली मर रही थी..
वैशाली ने सामने से कहा "ओहह पिंटू.. प्लीज बाहर निकाल इसे.. मैं मन भरकर देखना चाहती हूँ"
पिंटू ने तुरंत अपनी चैन खोल दी और लंड को बाहर निकाल दिया.. स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर निकले लंड को देखने के लिए वैशाली कब से बेताब थी..
मुठ्ठी में पकड़कर हिलाते हुए वैशाली बोली "मस्त लंड है तेरा यार.. अब इसे मेरे अंदर डालकर कब मुझे स्वर्ग की सैर कराएगा??"
पिंटू: "सब कुछ होगा वैशाली.. जब तू कायदे से मेरी हो जाएगी.. तब वो भी करेंगे.. तब तक ऐसे ही मजे करते है ना.. मुझे भी तेरी ये दमदार छातियों को देखकर बहोत सारी इच्छाएं हो रही है.. पर फिलहाल हमें कंट्रोल रखना पड़ेगा..."
पिंटू की बातें सुनते हुए वैशाली उसके कंधे पर सर रखकर लगभग सो ही गई.. पिंटू का लंड हिलाते हुए भविष्य के सुनहरे सपने देखते देखते वो दूसरे हाथ से जीन्स के अंदर अपनी चूत को सहलाने लगी..
इन सब हरकतों के बीच वो दोनों कविता के शहर कब पहुँच गए पता ही नहीं चला.. वैशाली को कविता के घर छोड़कर पिंटू अपने घर चला गया.. क्योंकी अब वैशाली से नजदीक आने के बाद कविता के सामने जाना नहीं चाहता था.. उसके प्रति प्रेम को वो अब भूलना चाहता था..
पीयूष या मौसम में से किसी ने भी पार्टी के बारे में कविता को कुछ भी नहीं बताया था.. इसलिए वैशाली को आया देख वो चोंक गई..
कविता: "क्या बात है वैशाली.. !! तू यहाँ.. इस वक्त??"
वैशाली दौड़कर कविता से गले मिल गई.. दोनों सखियाँ काफी समय बाद मिल रही थी.. शरारती वैशाली ने पिंटू के साथ थोड़ी देर पहले हुए गरमागरम सेशन की कसर कविता के होंठों को चूमकर निकाल दी.. बगैर पीयूष के साथ के तड़प रही कविता ने भी उसे रिस्पॉन्स दिया.. और वैशाली के दोनों स्तनों को हल्के से दबा दिया.. तो वैशाली ने भी कविता के मस्त कूल्हों पर हाथ फेर लिए...
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दोनों लड़कियां संसर्ग के लिए तड़प ही रही थी.. अचानक से दो गरम जिस्मों का मिलन होते ही.. वह देखते ही देखते लेस्बियन सेक्स पर उतर आई.. बिना कुछ कहें ही दोनों एक दूसरे के वस्त्रों को उतारने लगी.. टॉप उतर चुके थे और कमर से ऊपर अर्ध-नग्न सुंदरियाँ एक दूसरे की तड़प को बढ़ा रही थी..
उसी दौरान, फाल्गुनी और मौसम ने दौड़कर घर के अंदर प्रवेश किया.. पीयूष ने दोनों को यह कहकर भेजा था की वो दोनों जाएँ और कविता को सरप्राइज़ दे..
ड्रॉइंग रूम में कविता और वैशाली सिर्फ ब्रा में आवृत स्तनों को हाथों से महसूस कर रही थी.. तभी फाल्गुनी और मौसम को आया हुआ देखकर, वैशाली को तो कुछ फरक नहीं पड़ा.. लेकिन कविता शर्म से पानी पानी हो गई.. वैसे मौसम और फाल्गुनी ने कई बार कविता को टॉप-लेस अवस्था में भी देखा था.. जवान लड़कियां अक्सर साथ कपड़े बदलते वक्त एक दूसरे को इस अवस्था में देखने की आदि होती है.. पर यहाँ सीन अलग था.. मौसम और फाल्गुनी दोनों ने वैशाली और कविता को एक दूसरे के आलिंगन में देखा था.. और वो भी स्तनों से खेलते हुए.. !!
कविता इतनी शरमा गई की मौसम को धमकाते हुए बोली "जरा भी मेनर्स नहीं है इस लड़की मे.. घर में घुसने से पहले डोरबेल तो बजानी चाहिए ना.. !!"
मौसम खिलखिलाकर हँसते हुए बोली "उत्तेजना में किसी बात का ध्यान नहीं रहता.. ये आज समझ में आ गया मुझे.. !! दीदी, तुम मेनर्स की बात कर रही हो तो इतना भी पता नहीं चलता की ऐसा कुछ करने से पहले दरवाजा बंद कर लेना चाहिए.. !!! ये तो अच्छा है की मैं और फाल्गुनी थे.. अगर मम्मी आ गई होती तो??"
वैशाली: "अरे यार.. तुम लोग छोड़ो भी यह सब बातें.. मैं यहाँ तुम लोगों का भाषण सुनने नहीं आई.. 31 दिसंबर की पार्टी के मजे लेने आई हूँ.. बोलो, क्या इंतेजाम किया है तुम लोगों ने?"
कविता: "अरे यार.. मोस्ट वेलकम.. मैं वैसे भी अकेले बोर हो रही थी.. तुम लोगों की बहोत याद आ रही थी.. आज अगर शीला भाभी के साथ होते तो पार्टी के लिए सोचना भी नहीं पड़ता"
मौसम: "वैशाली यार.. बहोत अच्छा किया जो तू आ गई.. आज जैसा तू कहेगी वैसे हम पार्टी मनाएंगे.. बोल क्या करना है? मूवी देखने चले? या फिर किसी अच्छी होटल में??"
वैशाली: "पागल है क्या तू.. एक जवान तलाकशुदा लड़की को इन सर्दियों में क्या चाहिए वो तुझे कैसे बताऊँ.. !! मैं तो अभी इन्जॉय ही कर रही थी.. हमारी पार्टी चल रही थी तभी तुम दोनों, कबाब में हड्डी की तरह टपक पड़ी.. !!"
फाल्गुनी: "वैशाली, जो तू मांग रही है.. वो सिर्फ तुझे नहीं.. हम सब को चाहिए.. !!"
कविता: "हाँ.. सब को जरूरत है.. जिनके पति को बिजनेस से फुरसत नहीं उसे भी चाहिए और जिनका आशिक गुजर चुका हो उसे भी"
सुनकर फाल्गुनी उदास हो गई..
मौसम: "दीदी यार तुम भी ना.. वैशाली इतनी दूर से पार्टी करने आई है और तुम बेकार की बातें करके मूड खराब कर रही हो"
कविता को मन तो बहोत था की वो फाल्गुनी को सुनाएं.. पर फिर उसने सोचा.. ये बातें तो वैशाली के जाने के बाद भी हो सकती थी..
वैशाली की छेड़खानियों के कारण उत्पन्न हुई शारीरिक गर्मी से कविता अब भी उत्तेजित थी.. वैशाली की हरकतों ने कविता के शांत पड़े अरमानों को झकझोर कर जगा दिया था..पिछले काफी सप्ताहों से पीयूष ने एक बार भी कविता को ढंग से संतुष्ट नहीं किया था..
चारों लड़कियां मिलकर बातें कर रही थी तभी पीयूष का फोन आया की काम के चक्कर में उसे बहोत देर हो जाएगी और वो घर नहीं आ पाएगा..
गुस्से से लाल हो गई कविता.. !! उसने फोन काटकर सोफ़े पर लगभग फेंक ही दिया..
मौसम और फाल्गुनी को थोड़े स्नेक्स फ्राई करने का काम सौंपकर, कविता वैशाली का हाथ पकड़कर बेडरूम में खींचकर ले गई.. !!
बेडरूम मे जाते ही कविता ने दरवाजा बंद किया और धक्का देकर वैशाली को बेड पर लैटा दिया.. और छलांग मारकर उसपर सवार हो गई.. वैशाली के दोनों उभारों को पकड़कर जोर जोर से मसलते हुए उसने झुककर उसके होंठों को चूम लिया..
वैशाली तो पहले से ही गरम थी.. उसने कहा "यार कविता.. तू तो आज जबरदस्त मूड में है.. पीयूष ठीक से चोदता नहीं है क्या तुझे?"
कविता: "नहीं यार.. इस बिजनेस के कारण हम दोनों की बीच बहोत दूरी आ गई है.. देख ना.. !! आज ३१ दिसंबर है और उसने फोन कर दिया की नहीं आ पाऊँगा.. उसे खाना खाने का टाइम नहीं है.. तो चोदने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता.. आज तो इतना मन कर रहा था की चांस मिलता तो रसिक के सामने ही टांगें खोल देती??"
वैशाली: "कौन रसिक?? वो दूधवाला भैया??"
कविता: "हाँ यार.. तू अब मेरे भी दबा... आह्ह.. तुझे पता नहीं होगा.. वो दूधवाला भैया.. तेरी मम्मी का दूध भी चूसता है और मेरी सास को घोड़ी बनाकर चोदता है.. सोसायटी की आधी बुढ़ियाँ उससे चुदवाती होगी.. मेरी बारी भी आते आते रह गई.. !!"
तब तक दोनों ने अपने सारे कपड़े उतार दीये थे... और दोनों एक दूसरे की चूतों को रगड़ रही थी..
वैशाली के लिए यह जानकारी अचंभित करने वाली थी.. उस मामूली दूध वाले के साथ मम्मी??
वैशाली: "तेरी बारी आते आते रह गई मतलब?? क्या तू भी उसके साथ.. !!!"
कविता: "नहीं यार.. वो तो बिना तेल लगाएं मेरे लेने की फिराक में था.. पर तभी तुम लोग आ गए और मेरी फटते फटते बची"
कविता ने उस रात की पूरी घटना बताई वैशाली को
अपनी कुहनी तक इशारा करते हुए कविता ने कहा "यार इतना बड़ा है उसका.. काला काला.. और तेरी कलाई से भी मोटा.. अगर डाल देता तो मैं वहीं मर जाती.. !!"
कविता की चूत से पानी रिसने लगा था.. और वैशाली पिंटू के लँड को याद करते हुए एकदम गरम हो चुकी थी.. ऊपर से रसिक के मूसल जैसे लंड का वर्णन सुनकर उसकी आग और भड़क गई.. दोनों लड़कियों को स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा.. उत्तेजना की बॉर्डर लाइन पर खड़ी दोनों ने.. केवल एक दूसरे की चूत मैं उंगली कर ही स्खलन प्राप्त कर लिया..
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शांत होकर दोनों ने कपड़े पहने और बेडरूम के बाहर निकली.. तब दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.. उन्हें बाहर आया देख मौसम और फाल्गुनी ने एक दूसरे की तरफ देखा और मुस्कुराने लगी.. क्योंकी अभी थोड़ी देर पहले ही वो दोनों मौसम के बेडरूम में संतुष्ट होकर ही आई थी
वैशाली: "मज़ा आ गया" उसने बिंदास होकर अपनी तृप्ति के भाव प्रदर्शित कर दीये.. वैसे भी उसे फाल्गुनी और मौसम से शर्माने की कोई वजह नहीं थी.. पर मौसम अपनी दीदी की मौजूदगी में शरमा रही थी..
चार चूत मिलकर.. बिना लोड़े के.. ३१ दिसंबर की पार्टी मनाने की तैयारियां कर रही थी.. अंदर बेडरूम में कविता की चूत में उंगली करते हुए ही वैशाली ने अपने और पिंटू के संबंधों के बारे में कविता को बता दिया था.. कविता और पिंटू का पहले से चक्कर था, यह बात तो कविता उसे पहले ही बता चुकी थी.. कविता ने अब वैशाली और पिंटू के संबंधों का मन ही मन स्वीकार कर लिया था
चार चूत मिलकर.. बिना लोड़े के.. ३१ दिसंबर की पार्टी मनाने की तैयारियां कर रही थी.. अंदर बेडरूम में कविता की चूत में उंगली करते हुए ही वैशाली ने अपने और पिंटू के संबंधों के बारे में कविता को बता दिया था.. कविता और पिंटू का पहले से चक्कर था, यह बात तो कविता उसे पहले ही बता चुकी थी.. कविता ने अब वैशाली और पिंटू के संबंधों का मन ही मन स्वीकार लिया था
चारों म्यूज़िक लगाकर झूम रही थी तभी मौसम की माँ, रमिला बहन वहाँ पहुंची.. वैशाली को देखकर वो बहुत खुश हो गई.. उसे गले मिलने पर उन्हें सुबोधकांत की याद आ गई और वो रो पड़ी.. धमाल भरा माहोल एक ही पल में सिरियस हो गया.. आंसुओं में गजब की ताकत होती है..!! अच्छे से अच्छे मौकों को देखते ही देखते मातम में बदल सकते है..!!
रमिलाबहन ने अपने पति को याद कर.. काफी सारे पुराने किस्से कहें.. यह सब सुनकर फाल्गुनी को अंकल की याद बेहद सताने लगी.. उसकी आँखें नम होने लगी.. माहोल को परखते हुए मौसम उसका हाथ पकड़कर दूसरे कमरे में ले गई और कहा "देख फाल्गुनी.. दीदी को तो अभी सिर्फ शक ही है.. तेरे और पापा के अफेर के बारे में.. और मम्मी को तो कुछ पता ही नहीं है.. अगर तू सब के सामने ऐसे जज्बाती हो गई तो बहोत बड़ी मुसीबत हो जाएगी.. प्लीज यार.. कंट्रोल कर.. !!"
फाल्गुनी समझ गई.. उसने तुरंत अपना चेहरा पानी से धो लिया.. और फ्रेश होकर सब के साथ फिर से जॉइन हो गई..
आठ बज रहे थे.. कविता का मूड थोड़ा सा ऑफ था क्योंकी पीयूष ने एन मौके पर आने से मना कर दिया था.. वो तो अच्छा हुआ की वैशाली यहाँ आ गई.. वरना वही घिसी-पिटी सीरियल और न्यू-यर के बकवास कार्यक्रम टीवी पर देखकर नींद का इंतज़ार करना पड़ता..
नौ बजे सब से पहले फोरम आई.. पीयूष की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. !! कविता तो उसे जानती भी नहीं थी.. जब उसने आके अपनी पहचान दी तब कविता को पता चला.. उसके पीछे पीछे विशाल आया.. कविता को लगा की वो दोनों साथ आए होंगे.. मतलब की दोनों गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड हो सकते है..
मौसम के सामने देखकर विशाल मुस्कुराया और "हाई" कहा.. मौसम ने भी हंसकर जवाब दिया.. पर फोरम और विशाल को साथ आया देख मौसम को अच्छा नहीं लगा.. उसे विशाल पसंद था और वो किसी भी तरह उससे फ्रेंडशिप करना चाहती थी.. इस बात से बेखबर विशाल.. फोरम के साथ मस्ती कर रहा था.. फोरम की उम्र बीस के करीब थी.. नाजुक पतली सुंदर लड़की थी.. जिसके अल्पविकसित अंग उसकी निर्दोषता को व्यक्त कर रहे थे..
साढ़े दस बज चुके थे..
घर में धीरे धीरे सब पर पार्टी का रंग चढ़ने लगा था.. एक के बाद एक अन्य मेहमान आते गए.. और तभी पिंटू की एंट्री हुई.. उसे देखते ही वैशाली का चेहरा खिल उठा और कविता का चेहरा उतर गया.. सबको साथ देखकर पिंटू भी बहोत खुश हो गया.. कविता के दिमाग में पुराने समय की यादें ताज़ा होने लगी.. मन ही मन वो पिंटू से बिछड़ भी गई और उसे वैशाली को सौंप भी दिया..
वैशाली तुरंत पिंटू के पास पहुंची और कविता की दी हुई इस प्रेम भरी सौगात को स्वीकार भी लिया.. कविता के सारे करीबी घर पर मौजूद थे.. बस पीयूष को छोड़कर.. इस बात से बार बार दुखी हो रही थी वो.. पर अपनी उदासी को छटाकर सब के साथ घुल-मिलकर पार्टी में शामिल होने की कोशिश भी कर रही थी
ग्यारह बजे.. कुछ ऐसा हुआ.. जिसके कारण कविता का चेहरा खिलकर कमल हो उठा..!!
पीयूष की एंट्री हुई.. और उसने आते ही कविता के गले में सोने का महंगा मंगलसूत्र पहनाकर.. अपनी मौजूदगी और प्यार... दोनों का प्रमाणपत्र दे दिया.. !!
वैशाली को पिंटू के साथ इतना घुला-मिला देखकर.. पीयूष सब कुछ समझ गया.. वैशाली से जब उसकी आँखें मिलीं तब उसने उसे आँख मारी और थम्बस-अप का इशारा करते हुए अंगूठा दिखाकर अपनी खुशी व्यक्त की.. वैशाली ने भी स्त्री-सहज कोमल मुस्कान के साथ उस अभिनंदन और शुभेच्छा का स्वीकार किया..
फोरम वापिस जा रही थी.. वो जल्दी घर आ जाएगी उसी शर्त पर उसके पापा ने यह पार्टी में आने की अनुमति दी थी.. उसके जाते ही मौसम खिल उठी.. अब विशाल का सम्पूर्ण ध्यान वो अपनी तरफ खींच पाएगी..
हल्का रोमेन्टीक म्यूज़िक बज रहा था.. तभी पीयूष ने कविता का हाथ पकड़कर कपल डांस करने का न्योता दिया
कविता शरमाकर बोली "नहीं बाबा.. मुझे नहीं आता ऐसा डांस-बांस..!!"
पीयूष: "क्या यार.. कहाँ तुझे कोई स्टेज परफ़ॉर्मन्स देने के लिए कह रहा हूँ.. !!! आता तो मुझे भी नहीं है..!! आज मौका है तो थोड़े से पैर चला लेते है.. मज़ा आएगा.. !!"
मौसम: "हाँ दीदी.. चलिए ना सब डांस करते है.. विशाल को भी डांस करना बहोत अच्छा आता है.. मैंने उसकी फेसबूक पोस्ट पर देखा था.. सब साथ डांस करते है, मज़ा आएगा.. !! वैशाली, तुम भी चलो"
तीनों जोड़ियाँ बनाकर साथ में डांस करने लगे.. कविता-पीयूष, मौसम-विशाल और वैशाली-पिंटू.. !! ऊपर के माले के बाथरूम से हल्का होकर लौट रही फाल्गुनी ने तीनों को नाचते हुए देखा और वही सीढ़ियों पर खड़ी रह गई.. तीनों साथ डांस करते हुए बहोत अच्छे लग रहे थे.. अचानक फाल्गुनी उदास हो गई.. अंकल की याद उसे रह रहकर सता रही थी..वो नीचे जाने मे थोड़ा अजीब सा महसूस कर रही थी.. वो अकेली नीचे जाकर करेगी भी क्या??
वो वापिस सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आई.. और ऊपर बने गेस्ट-रूम में अंदर जाकर बैठ गई.. वो मोबाइल पर रील्स देख रही थी तभी राजेश का मेसेज आया.. एक नॉन-वेज जोक भेजा था.. पढ़कर फाल्गुनी की हंसी रुक ही नहीं रही थी..
पिछले काफी समय से, रोज रात को राजेश और फाल्गुनी के बीच यह सिलसिला चल रहा था.. जोक के जवाब में फाल्गुनी ने स्माइली भेज दिया..
फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसका फाल्गुनी को अंदाजा ही नहीं था.. राजेश ने एक विडिओ क्लिप भेजी.. जिसमे वो बाथरूम मे अपना लंड हिला रहा था.. !! वह क्लिप देखते ही फाल्गुनी की सांसें थम गई.. !! एक बार को तो उसका मन किया की वो क्लिप डिलीट कर दे.. उसने मोबाइल साइड मे रख दिया और आँखें बंद कर तेज साँसे लेने लगी..!! बार बार उसकी आँखों के सामने राजेश का मस्त मोटा लंड ही आ जा रहा था.. जो राजेश अपनी मुठ्ठी में पकड़कर हिला रहा था.. उसका चमकता हुआ गुलाबी सुपाड़ा देखकर फाल्गुनी सिहर उठी
उसने फिर से वो क्लिप चला दी.. रगों मे खून तेजी से दौड़ रहा था.. अनजाने में ही उसका हाथ कब उसके स्कर्ट के अंदर चला गया उसका फाल्गुनी को पता ही नहीं चला.. राजेश के रगों से भरे लंड को देखकर फाल्गुनी अपनी छोटी सी क्लिटोरिस को रगड़ने लगी.. पेन्टी का चूत पर लगा हिस्सा गीला होने लगा..
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फाल्गुनी एकदम से उठ खड़ी हुई.. उसने सब से पहले रूम का दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर जा बैठी.. अपना स्कर्ट कमर तक उठाकर उसने पेन्टी उतार दी.. टांगें फैलाकर उसने अपनी चूत को गुदगुदाना शुरू कर दिया..
उसकी तनी हुई गुलाबी क्लिट भी बाहर को खड़ी थी.. चूत-रस की कईं धारें चू कर फाल्गुनी की अंदरूनी जाँघों से नीचे बह रही थीं..
फाल्गुनी ने अपनी अँगुलियों को अपनी चूत पे फिराया तो उसे अपनी सख्त क्लिट थिरकती हुई महसूस हुई.. उसने धीरे से सहलाते हुए अपनी अँगुलियाँ चूत के अंदर खिसका दीं.. उसकी चूत में लहरें उठने लगीं और उसके हाथ में और ज़्यादा चूत-रस बह निकला.. वो दोनों हाथों से अपनी चूत रगड़ने लगी.. वो अपनी चूत की गर्मी कम कर लेना चाहती थी.. लेकिन उसकी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं
अपनी ठोस गाँड के नीचे तकिया सटाकर वो मोबाइल पर राजेश वाली क्लिप बार बार प्ले कर रही थी.. उसी पल उसकी चूत में से रस बह कर फाल्गुनी की गाँड के नीचे बेड की चद्दर पर फैल गया.. एक पल के लिए अपनी चूत को बगैर छुए फाल्गुनी ने सारस की तरह अपनी सुराहीदार गर्दन आगे को निकाल कर अपना सिर झुकाया.. फाल्गुनी झड़ने के लिए तड़प रही थी लेकिन फिर भी वो उसे टाल रही थी.. उसे एहसास था कि आज उसका झड़ना बड़ा ही तूफानी और ज़बरदस्त होगा और वो चूदासी लड़की इसी उम्मीद में हवस में मदमस्त हो रही थी..
थोड़ा और नीचे झुक कर फाल्गुनी ने अपनी टाँगों के बीच में फूँक मारी.. उसकी क्लिट धधकने लगी और चूत जलती हुई मालूम हुई जैसे कि उसने सुलगती हुई लकड़ी में अपनी साँस फूँक कर उसमें आग भड़का दी हो.. अपनी चूत की गर्मी का झोंका उसे अपने चेहरे पर महसूस हो रहा था.. अपनी ही चूत की तेज़ खशबू से उसकी नाक फड़क उठी..
फाल्गुनी अपनी गोद में आगे झुकी.. उसकी ज़ुबान उसके निचले होंठ पर आगे-पीछे फिसलने लगी.. उसके मुँह में उसके झागदार थूक के बुलबुले उठने लगे.. फाल्गुनी सोच रही थी कि काश वो इतनी लचकदार होती कि खुद अपनी चूत चाट सकती.. कितना मज़ा आता अगर वो अपनी खुद की चूत चाट सकती और अपनी फड़फड़ाती ज़ुबान पर झड़ सकती.. कितना हॉट होता अगर वो अपनी खुद की ही चूत का गरमागरम रस अपने ही मुँह में बहा सकती.. झड़ते हुए अपनी ही चूत से रिसता हुआ चिपचिपा रस पीने की दोहरी लज़्ज़त कितनी बेमिसाल होती..!! ये ख़याल उसे और उत्तेजित कर रहे थे और साथ ही तड़पा भी रहे थे क्योंकि वो जानती थी कि ये उसके बस की बात नहीं है.. उसने पहले भी कई बार कोशिश कर रखी थी..
हांफते हुए फिर से पीछे हो कर फाल्गुनी अपनी गर्म और गीली अंदरूनी जाँघों पर अपने हाथ फिराने लगी.. वो अपनी गाँड को बिस्तर पर मथ रही थी और उसका पेट ऊपर-नीचे हो रहा था.. उसने अपना एक हाथ चूत पर रखा और उसकी अँगुलियाँ फिसल कर क्लिट को आहिस्ता से सहलाने लगी..
फाल्गुनी ने अपने दूसरे हाथ की दो अंगुलियाँ आपस में जोड़कर लंड की शक्ल में इकट्ठी करीं और धीरे से चूत में अंदर घुसा दीं.. उसकी क्लिट हिलकोरे मारने लगी और चूत से बहुत सारा झाग निकलने लगा..
फाल्गुनी थरथराते हुए सिसकने लगी.. वो एक हाथ की अंगुलियों से अपनी चूत को चोद रही थी और दूसरे हाथ से अपनी क्लिट सहला रही थी.. उसकी जाँघें हिलोरे मारते हुए झटक रही थीं.. वो जानती थी कि आज इस आग को बुझाने के लिए उसे एक से ज़्यादा बार झड़ना पड़ेगा..
उसकी पलकें बंद हो गयी और उसके हाथ बड़ी मेहनत से पहले मलाईदार स्खलन पर पहुँचने के लिए प्रयास करने लगे.. उसकी चूत जितनी गर्मी ही उसके दिमाग में भी चढ़ी हुई थी.. राजेश का मस्त लंड उसके दिमाग में पुरजोश नाच रहा था.. बारबार वो क्लिप देख रही थी..
ज़ोर से हिलकोरे मारती हुई एक लहर उसके पेट और चूत में दौड़ गयी.. हांफते हुए फाल्गुनी ने अपनी दोनों अंगुलियाँ पूरी की पूरी अपनी चूत में घुसा दीं.. दूसरे हाथ से अपनी क्लिट को जोर से रगड़ते हुए फाल्गुनी अपनी तरबतर चूत के अंदर दोनों अंगुलियाँ घुमाने लगी..
अचनक ही वो झड़ने लगी.. एक पल वो चरमोत्कर्ष के शिखर पर मंडरा रही थी और दूसरे ही पल उसकी चूत ज्वालमुखी की तरह फट पड़ी..
एक के बाद एक लहर उसके शरीर में हिलोरे मारती हुई दौड़ने लगी और एक के बाद एक सिहरन उसकी चूत और जाँघों को झंझोड़ने लगी.. फाल्गुनी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा जिस्म पिघल रहा है और रगों में चुदासी मस्ती की करोड़ों चिंगारियाँ फूट रही हैं और जैसे उसका दिमाग फट जायेगा..
फाल्गुनी आगे झुकी और फिर कमर पीछे मोड़कर अपनी चूत को अंगुलियों से लगातार चोदते हुए अपनी चूत का रस निकालने लगी और ऑर्गैज़्म की लहरें सिलसिला-वार फूटने लगी.. उसकी चूत का रस उसके पेट के नीचे झाग बनाने लगा और उसकी धारायें टाँगों से नीचे बहने लगी.. उसकी क्लिट में भी बार-बार धमाका होने लगा और हर धमाके के साथ उसकी चूत की गहराइयों से चूत-रस की धार फूट पड़ती..
चूत मे जुनूनी लज़्ज़त की एक जोरदार आखिरी लहर ने उसे झंझोड़ कर रख दिया और फाल्गुनी हाँफती हुई बिस्तर पर पीछे फिसल कर मुस्कुराने लगी.. उसकी अंगुलियाँ अभी भी उसकी चूत को कुरेद रही थी कि कहीं कोई सनसनी ख़ेज़ लहर अंदर ना रह जाये.. उसकी हवस कुछ कम हुई पर जैसे-जैसे उसने अपनी चूत को सहलाना जारी रखा, उसकी क्लिट फिर से तनने लगी.. इतनी बार झड़ने के कुछ ही पलों के बाद वो चुदक्कड़ लड़की फिर से गरम हो रही थी..
उसने एक बार फिर राजेश वाली विडिओ क्लिप देखना शुरू किया ही था.. की मौसम का कॉल उसके मोबाइल पर आया
मौसम: "कहाँ रह गई तू? कब से दिखाई नहीं दे रही?"
फाल्गुनी: "अरे यार.. मेरा पेट थोड़ा खराब था इसलिए टॉइलेट मे थी.. !! आ रही हूँ नीचे"
मौसम: "जल्दी आजा यार.. हम सब डांस कर रहे है.. बहोत मज़ा आ रहा है"
फाल्गुनी: "हाँ, आ रही हूँ.. !!"
एक गहरी सांस छोड़कर फाल्गुनी ने बेड की चद्दर से अपनी चूत को पोंछ लिया.. और कपड़े पहन कर नीचे चली आई
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अपनी सहेलियों के साथ ३१ दिसंबर की पार्टी में जाने से पहले.. शीला ने सोचा की मदन की अच्छी तरह खातिरदारी कर दी जाए.. वैशाली के जाते ही..शीला ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया..!!
बाहर सोफ़े पर बैठकर न्यूज़-पेपर पढ़ रहे मदन को, गिरहबान से पकड़कर खींचते हुए बेडरूम मे ले गई शीला.. चकित होकर मदन पीछे खींचा चला आ रहा था.. उसे पता नहीं चला की शीला आखिर क्या करना चाहती थी..!!
बेडरूम मे पहुंचते ही शीला ने मदन को धक्का देकर बेड पर गिराया.. दरवाजा बंद कर शीला मदन की ओर मुड़ी.. और एक शेतानी मुस्कान के साथ, अपना पल्लू गिराकर ब्लाउज के बटन खोलने लगी..
मदन: "क्या बात है शीला.. !!! आज सुबह सुबह मूड बन गया तेरा.. !!"
ब्लाउज के बटन खोलकर अब ब्रा के हुक निकालते हुए शीला ने कहा "लोग ३१ दिसंबर रात को मनाते है.. हम सुबह सुबह ही शुरुआत कर देते है.. फिर तो मैं चली जाऊँगी मेरी सहेलियों के साथ.. !!"
ब्रा निकलते ही शीला के इतने बड़े बड़े स्तन मुक्त होकर दो दिशा मे झूलने लगे.. मदन ने लेटे लेटे ही अपनी शॉर्ट्स उतार दी.. उसका आधा कडक लंड शीला को अपनी ओर आकर्षित करने लगा.. शीला अब भी अपने बाके के कपड़े उतार रही थी.. पेटीकोट का नाड़ा खिंचकर वो नंगी हो गई.. घर पर पेन्टी तो वो पहनती ही नहीं थी.. !!!
मादरजात नंगी शीला का गदराया चरबीदार मांसल बदन देखकर ही मदन के लंड मे रक्त-संचार होने लगा.. और वो शीला को अपने करीब बुलाने लगा.. !! शीला मटकते हुए मदन के करीब आई.. बेड पर उसके बगल मे लेटते ही उसने मदन के लंड का हवाला ले लिया.. अपनी मुट्ठी में लंड को दबाकर उसने सुपाड़े को उजागर किया.. और फिर झुककर उसने लंड के टोपे को अपने मुंह मे ले लिया.. !!
शीला ने चूसना शुरू किया और मदन तड़फड़ाने लगा.. !!! ऐसी मस्त चुसाई हो रही थी की एक पल के लिए मदन को लगा की वो अभी झड़ जाएगा.. पर शीला को बिना तृप्त किए अगर वो स्खलित हो जाता तो शीला उसकी गांड फाड़ देती.. शीला अभी भी होटल की उस रात को याद दिलाकर मदन को अपने दबाव मे रखे हुए थी..
बड़ी ही मुश्किल से मदन ने अपने वीर्य का स्त्राव होने से रोकें रखा था.. उसने शीला को अपने लंड से दूर कर दिया ताकि वो झड़ने से बच सकें..
अब शीला मदन के ऊपर सवार हो गई.. मदन की दोनों तरफ अपनी जांघें जमाकर उसने झुककर अपने दोनों स्तनों को मदन के चेहरे के ऊपर दबा दिया.. उसके अलमस्त मदमस्त स्तनों को दोनों हाथों से दबाते हुए मदन अपने चेहरे पर स्तनों को रगड़ने लगा और साथ ही साथ.. अपने लंड को पागलों की तरह हिलाने लगा.. शीला की निप्पलों को मुंह मे भरकर बारी बारी से चूसते हुए उसने शीला के भोसड़े को द्रवित कर दिया..
शीला अपनी क्लिटोरिस को मदन की जीभ पर रगड़ रही थी.. अब उसका तवा गरम हो चुका था..
वो थोड़ा सा पीछे की ओर गई और अपना हाथ नीचे डालकर.. मदन का लंड पकड़कर अपने गरम सुराख पर रखते हुए बैठ गई.. गप्पपप से पूरा लंड उसकी चूत मे समा गया.. आठ-दस सेकंड का विराम लेकर उसने लंड पर कूदना शुरू कर दिया..
नीचे लेटे हुए मदन, शीला की विराट काया को अपने शरीर पर ऊपर नीचे होता देख रहा था.. उसका लंड गपागप अंदर बाहर हो रहा था.. शीला ने तेजी से उछलना शुरू कर दिया
मदन के चेहरे के बदलते हुए हावभाव देखकर वो समझ गई की अब किसी भी वक्त उसकी विकेट गिर सकती थी.. मदन का लंड बस पिचकारी छोड़ने की कगार पर ही था तब शीला ने उछलना बंद कर दिया..और मदन के ऊपर से उतर गई.. मदन बेचारे की हालत ऐसी हो गई जैसे किनारे आकर उसकी कश्ती डूब गई हो..
बिना कुछ कहें.. शीला घोड़ी बनकर तैयार हो गई.. और मदन को सिर्फ आँखों से इशारा किया.. मदन समझ गया.. वो उठकर.. शीला के चूतड़ों पर हाथ रखकर पीछे से पेलने की तैयारी करने लगा.. हाथ डालकर शीला के भोसड़े का छेद ढूंढकर जैसे ही वो अपना लंड डालने गया.. शीला ने अपनी कमर हटाकर उसे रोक लिया.. मदन को समझ मे नहीं आ रहा था की शीला आखिर करना क्या चाहती थी.. !!!
मदन: "अरे यार.. हट क्यों गई.. !! नहीं डलवाना क्या??"
शीला: "डलवाना तो है.. पर जिस छेद मे तू डाल रहा था वहाँ नहीं.. पीछे डाल"
मदन चोंक उठा.. ऐसा नहीं था की उन दोनों ने इससे पहले कभी गुदा-मैथुन नहीं किया था.. पर काफी समय गुजर चुका था उन्हें इसका प्रयोग किए.. दूसरी बात यह की.. होटल वाले कांड के बाद.. शीला मदन को बेहद नियंत्रण मे रखती थी.. उसकी सब हरकतों पर नजर रखती थी.. फोन से लेकर बाहर जाने तक.. सेक्स भी राशन की तरह ही मिलता था उसे.. वो भी जब शीला की मर्जी हो.. और सेक्स के दौरान भी वही होता जो शीला चाहती थी..
मदन ने अपना लंड चूत से हटाकर शीला की गांड के बादामी सुराख पर रखा.. सुपाड़े को छेद पर रखकर वो धक्का देने ही वाला था की तब..
शीला: "बहेनचोद पागल हो गया है क्या???"
मदन अब परेशान हो गया.. !!! शीला आखिर क्या चाहती थी, उसकी समझ के बाहर था..!!
मदन: "यार शीला, तू मुझे कन्फ्यूज मत कर.. पहले तूने कहा की आगे नहीं डालना है.. पीछे डाला तो तू भड़क रही है.. करना क्या चाहती है तू?"
शीला: "अरे बेवकूफ.. गांड मे सूखा ही पेल देगा क्या?? अक्ल घास चरने गई है क्या तेरी?? साले मैं तुझे वो होटल वाली रांड लगती हूँ क्या?? जा, वैसलिन लेकर आ.. ड्रॉअर में होगा.. !!"
अपना सर खुजाते हुए मदन उठा और ड्रॉअर में ढूँढने लगा
मदन: "यहाँ तो कहीं नहीं दिख रही वैसलिन की डब्बी.. !!"
शीला: "तो किचन मे जा और घी या तेल कुछ लेकर आ.. !! पता नहीं किस गधे से पाला पड़ गया है मेरा.. साले ऐसा शाणा बन रहा है जैसे पहली बार चोद रहा हो.. अब मुंह क्या देख रहा है मेरा..!!! किचन मे जा और तेल-घी कुछ लेकर आ.. और वो भी ना मिलें तो वहाँ से बेलन लेकर आ.. और सूखा बेलन ही अपनी गांड में डाल दे..गांडु कहीं का !!"
मदन तो बेचारा सकपकाकर ही रह गया.. उसे पता नहीं चल रहा था की ऐसी कौन सी गंभीर भूल हो गई थी जो शीला उसे, टेबल पर लगी धूल की तरह झाड रही थी.. !!! पिछले एक साल से उसका वही हाल था.. वक्त बेवक्त शीला उसे कुछ भी खरी-खोटी सुनाते रहती.. कभी भी बरस पड़ती.. कभी भी उसे डांट देती..!!! होटल वाले उस कांड के बाद मदन का जीना ही दुसवार हो गया था.. !! इतना समय बीत गया था पर शीला उस वाकिए को भूल ही नहीं रही थी.. !! कैसे भूलती.. यह तो ब्रह्मास्त्र था शीला के हाथ मे.. जो उसे मदन को नियंत्रण में रखने मे मदद कर रहा था.. !! मर्द नियंत्रण मे हो तो औरत अपनी मनमानी कर सकती है.. और शीला तो मनमानी का दूसरा नाम ही था.. !! अपने हिसाब से जीने मे विश्वास रखती थी शीला.. उसकी इच्छाओं को पूरा करने मे आ रही किसी भी अड़चन को बर्दाश्त नहीं करती थी वो.. फिर वो उसका पति ही क्यों न हो.. !!
उतरा हुआ मुंह लेकर हाथ मे घी का डब्बा उठाकर आया मदन.. अपने लंड पर घी लगाने ही जा रहा था.. की तभी उसके ध्यान मे आया.. उसका लंड तो सिकुड़ चुका था.. !! घोड़ी बनकर अपनी गांड मरवाने के लिए तैयार शीला ने मुड़कर मदन के मुरझाए हुए लंड की तरफ देखा.. मदन शीला की तरफ लाचार नज़रों से देख रहा था.. !!
मदन: "ये तो बैठ गया यार.. !! फिर से खड़ा करना पड़ेगा"
शीला ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा "जो भी करना है वो जल्दी कर.. और तेरा खड़ा न हुआ तो अपनी उंगली डालकर चोद.. अब मैं और देर बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी" शीला इतने जोर से चिल्लाई की मदन कांप उठा.. इतना क्रोधित होते हुए उसने कभी नहीं देखा था.. पर इतने सालो के अनुभव से वो जान चुका था की शीला एक बार गरम हो गई फिर अगर चुदाई न मिले तो वो पागल हो जाती थी..
सब कुछ भूलकर मदन अपना लंड हिलाने लगा.. पर हीनता के भाव से पीड़ित मदन, अपना लंड खड़ा ही नहीं कर पाया.. जब दो-तीन मिनट तक उसका लंड खड़ा नहीं हुआ तब शीला का पारा आसमान छु गया.. !! वो इतनी क्रोधित हो गई की बिस्तर से उठ गई और कपड़े पहनने लगी..!! मदन अब भी अपना लंड खड़ा करने की कोशिश कर रहा था..
बेरुखी से शीला ने सारे कपड़े पहन लिए और बेडरूम से बाहर जाने लगी
मदन: "यार.. थोड़ा मुंह मे ले लेती तो खड़ा हो जाता"
शीला ने गुर्रा कर कहा "एक काम कर.. योगा सीख ले.. शरीर लचीला हो जाएगा.. फिर खुद ही झुककर अपना चूस लेना.. !!"
बेडरूम का दरवाजा पटककर बंद किया शीला ने.. और वो घर से निकल गई.. ये कहकर की अब वो दूसरे दिन दोपहर को आएगी.. !! न मदन की हिम्मत हुई पूछने की.. ना शीला ने उसे कुछ बताया की कहाँ जा रही थी.. उस रात की पार्टी पर पुलिस की रैड पड़ने के बाद जो हुआ.. उसके बाद.. मदन की स्थिति नाजुक थी.. और शीला इस बात का पूरा लाभ उठा रही थी.. !! किसी बात को लेकर अगर मदन कुछ ज्यादा पुछताछ करता.. तो तुरंत शीला कहती की वो किसी अनजान व्यक्ति को पार्टनर बनाकर चोदने नहीं जा रही है.. ऐसे जवाब सुन सुनकर मदन ने अब चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी..