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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Ek number

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रात के साढ़े बारह बजे थे..घर के बाहर पहुंचते ही.. मदन की गाड़ी पार्किंग मे पड़ी हुई देखकर, दोनों जबरदस्त घबरा गए.. !!!

"बाप रे... मम्मी पापा घर आ गए.. अब क्या करेंगे कविता?" वैशाली के होश उड़ गए थे

पर कविता के चेहरे पर जरा सा भी टेंशन नहीं था

कविता: "डर क्यों रही है?? केह देंगे की मूवी देखने गए थे.. !!"

वैशाली को यह बहाना दिमाग मे सेट हो गया.. शीला-मदन को जगाना न पड़े, इसलिए वह दोनों कविता के पुराने घर मे ही, बाहों मे बाहें डालकर सो गए..

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सुबह पाँच बजे कविता की आँख खुल गई.. तभी उसने रसिक की सायकल की घंटी सुनी.. रोमांचित होते हुए उसने वैशाली की निप्पल पर हल्के से काटते हुए जगाया..

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वैशाली ने कहा "कविता, मुझे मम्मी और रसिक का रोमांस देखना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. !!"

कविता: "मैं क्या सेटिंग करूँ?? तेरी मम्मी को जाकर ये कहूँ की वैशाली को देखना है इसलिए आप रसिक का लंड चुसिए.. !! कैसी बातें कर रही है यार.. !!"

वैशाली: "अरे यार.. तू हर बार जहां खड़े रहकर उन्हें देखती थी.. वहाँ से तो मुझे उनकी लीला नजर आएगी ना.. !!"

कविता: "हाँ, वो हो सकता है.. तू बरामदे मे जाकर खड़ी हो जा.. लाइट बंद ही रखना.. और छुपकर देखेगी तो तेरे घर का दरवाजा साफ नजर आएगा.. पर संभालना.. ज्यादा उठ उठकर देखने की कोशिश मत करना.. वरना भाभी को पता चल जाएगा" कविता ने अपना फोन उठाया और किसी को फोन करने लगी

वैशाली: "इस वक्त कीसे फोन कर रही है ??"

कविता: "रसिक को.. उसे कहती हूँ की आज वो रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा वक्त गुजारें भाभी के साथ.. ताकि हम दोनों को ठीक से देखने का मौका मिलें"

वैशाली: "अरे हाँ.. ये आइडिया अच्छा है.. मैं वहाँ जाकर खड़ी रहती हूँ.. तू भी जल्दी आ जाना.. !!"

वैशाली शॉल ओढ़कर बरामदे मे पहुँच गई और ऐसा एंगल सेट कर खड़ी रही जिससे की उसे अपने घर का दरवाजा नजर आए.. कविता भी उसके पीछे पीछे आकर खड़ी हो गई.. और वैशाली की शॉल मे घुसकर.. उसके जिस्म की गर्मी से सर्दी भगाने की कोशिश करते हुए, सामने नजर दिखने का इंतज़ार करने लगी

सर्दी उड़ाने के लिए.. और थोड़ी देर मे शुरू होने वाले पिक्चर की उत्तेजना मे.. वैशाली ने कविता के स्तनों को शॉल के अंदर मसलना शुरू कर दिया.. बीच बीच मे वह दोनों एक दूसरे के लिप्स भी चूम लेते.. नोबत यहाँ तक आ गई की दोनों एक दूसरे की शॉर्ट्स मे उँगलियाँ डालकर.. उनकी चूतों को उंगली भी करने लगी थी..

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तभी रसिक ने शीला के घर का लोहे का दरवाजा खोला और अंदर एंट्री मारी..

"देख देख वो आ गया.. यार, उसके डोलों पर तो मेरा दिल आ गया है.. !!" वैशाली ने सिसकियाँ भरते हुए कविता के शरीर को इसकी सजा दी

रसिक कोई गीत गुनगुनाते हुए डोरबेल बजाकर खड़ा था.. दरवाजा खुलने तक वो अपना लंड सहलाकर उसे भरोसा दिला रहा था की सुबह की पहली खुराक अब मिलने ही वाली है.. !! कविता और वैशाली, रसिक को उसका लंड मसलते हुए देखकर आहें भरती रही..!!

थोड़ी देर बार शीला ने दरवाजा खोला.. और इससे पहले की कोई कुछ भी सोच या समझ पाता.. उसने रसिक को गिरहबान से पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया..

दरवाजा तो अब भी खुला ही था लेकिन रसिक की आगे पीछे हो रही गांड के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था.. यह देख कविता ने अंदाजा लगाया "लगता है भाभी उसका चूस रही है"

"यार, मम्मी तो नजर ही नहीं आ रही.. कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा" वैशाली ने जवाब दिया.. दोनों निराश हो गई..

कविता वैशाली के कान मे फुसफुसाई.. "रसिक को मैंने फोन किया था इसलिए वो कुछ न कुछ तो खेल करेगा ही, हमें दिखाने के लिए.. ये तो भाभी ने उसे अंदर खींच लिया इसलिए कुछ दिखा नहीं.. !!"

वैशाली: "पर क्या सच मे मम्मी ने उसका चूसा होगा?? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कविता" अपनी माँ की वकालत करते हुए वैशाली ने कहा

दोनों की गुसपुस चल रही थी तभी कविता ने वैशाली को उसके घर की तरफ देखने का इशारा किया.. वैशाली ने वहाँ देखा और स्तब्ध हो गई.. रसिक शीला को अपनी बाहों मे जकड़कर खड़ा था और शीला उसकी छातियों पर मुक्के मारकर छूटने का प्रयत्न कर रही थी.. रसिक शीला को खींचकर बाहर तक ले आया.. तब तक शीला ने अपने आप को रसिक की गिरफ्त से छुड़ाया और घर के अंदर चली गई.. रसिक भी सायकल ले कर निकल गया

कविता और वैशाली बेडरूम मे आ गए.. कविता ने शॉल हटाकर बेड पर फेंकी.. थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य के कारण वैसे भी वो गरम तो हो ही चुकी थी

वैशाली: "कविता, तूने अपनी सास को रसिक से चुदवाते अपनी आँखों से देखा था क्या.. ??"

कविता: "अरे, इसी बिस्तर पर मैं लेटी थी और मुझ से करीब दो फुट दूर ही रसिक ने मेरी सास को घोड़ी बनाकर पेल दिया था.. उससे पहले मम्मी जी ने बड़ी देर तक उसका लोडा चूसा भी था.. और वैशाली, रसिक का लंड लेते वक्त तुझे कितना दर्द हुआ था, पता है ना.. ! पर मेरी सास की गुफा मे रसिक का लंड ऐसे घुस रहा था जैसे मक्खन मे छुरी.. मम्मी जी तो रसिक के मूसल पर फिदा हो गई थी.. मैं सोने का नाटक करते हुए.. आधी खुली आँखों से रसिक के लंड को मम्मी जी की चूत मे गायब होते हुए देख रही थी.. इतना ताज्जुब हो रहा था मुझे.. !! इतनी आसानी से वो इतना बड़ा लंड ले पा रही थी..!!"

वैशाली: "जाहीर सी बात है कविता.. वो बूढ़ी है इसलिए उनकी चूत एकदम ढीली-ढाली हो गई होगी.. तभी आसानी से वो रसिक का ले पा रही थी"

दोनों बातें कर रहे थे.. तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला दोनों के लिए चाय लेकर आई थी.. तीनों चाय पीते पीते बातें करने लगी

शीला: "कल कहाँ गई थी तुम दोनों??"

वैशाली: "हम दोनों अकेले बोर हो रही थी.. तो मूवी देखने चली गई थी" यह सुनकर कविता अपने चेहरे के डरे हुए भाव न दिखे इसलिए मुंह छुपा रही थी

शीला: "अच्छा किया.. वैसे कौनसी मूवी देखने गई थी?"

कविता और वैशाली दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगी..

वैशाली: "साउथ का मूवी था मम्मी.. !!"

शीला: "कैसा लगा? मज़ा आया?"

कविता: "हाँ भाभी.. मस्त मूवी था.. बहुत मज़ा आया"

शीला: "याद है कविता?? हम एक बार साथ मूवी देखने गए थे.. पीयूष के साथ.. तब भी कितना मज़ा किया था.. !!"

कविता शरमा गई.. उसने वैशाली को यह बात बताई हुई थी.. पर शीला अचानक यह बात निकालेगी उसका उसे अंदाजा नहीं था

कविता: "हाँ भाभी.. वो मूवी तो मैं कभी नहीं भूलूँगी"

वैशाली: "क्यों?? ऐसा क्या खास था मूवी मे?"

कविता: "मूवी तो ठीकठाक ही थी.. पर हमने बहोत मजे कीये थे.. हैं ना भाभी.. !!"

वैशाली समझ गई और आगे कुछ बोली नहीं.. सिर्फ कविता को कुहनी मारकर चिढ़ाया

शीला: "देख कविता.. तू हमारे बुलाने पर आई, वो बहोत अच्छा किया.. ऐसे ही वैशाली की शादी से पहले भी तू आ जाना.. और अब मौसम की शादी भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर कर ही दो.. सुबोधकांत की अंतिम इच्छा भी पूरी हो जाए और एक जिम्मेदारी भी खत्म हो"

कविता: "अरे हाँ भाभी.. मैं बताना भूल गई.. मौसम की बात चलाई है हमने एक लड़के के साथ.. हमारी ऑफिस मे ही काम करता है.. बहुत ही होनहार लड़का है और मौसम को पसंद भी है.. बस लड़के वालों की हाँ आने की देर है"

वैशाली: "जवाब हाँ ही होगा.. मौसम को भला कौन मना करेगा?"

कविता: "वैशाली, मैं आज दोपहर को घर के लिए निकल जाऊँगी.. और तेरी शादी से पहले हम सब आ जाएंगे"

वैशाली: "वो तो आना ही पड़ेगा ना.. एक हफ्ते पहले से आ जाना.. सारा काम तुझे और अनुमौसी को ही संभालना होगा.. "

शीला: "चलो लड़कियों.. सात बज रहे है.. नहा-धो कर तैयार हो जाओ.. फिर हमें भी शॉपिंग करने निकलना है:

शीला और मदन तैयार होकर वैशाली की शादी की शॉपिंग करने निकल गए.. बाहर रोड पर जगह जगह "सिंघम अगैन" के पोस्टर्स लगे हुए थे..

यह देखकर शीला ने कहा "मदन, मुझे यह मूवी देखना है.. सिंघम के पहले वाले मूवीज भी बड़े मजेदार थे.. चलते है देखने"

मदन: "अरे यार, पहले बताना चाहिए था तुझे.. राजेश तो पिछले हफ्ते ही बोल रहा था की हम चारों यह वाला मूवी देखने चले.. पर ये शॉपिंग के चक्कर मे, मैं तुझे बताना ही भूल गया.. फिर मैंने सोचा, की अभी मूवी नई नई है, भीड़ बहुत ज्यादा होगी.. थोड़ा सा रश कम हो, फिर चलते है.. बता कब चलना है? राजेश को भी बोल देता हूँ"

शीला: "अरे मदन.. वो भूलभुलैया-3 भी तो आई है ना.. !! वो कौन से मल्टीप्लेक्स मे लगी है?"

मदन: "यार शीला.. तू अखबार पढ़ती भी है या नहीं?? वो नए कमिश्नर ने फायर सैफ्टी के चक्कर मे, सारे मल्टीप्लेक्स बंद कर रखे है.. बस ये एक वाला ही खुला है.. और उसमे सिंघम चल रहा है"

शीला के दिमाग मे घंटियाँ बजने लगी.. वैशाली और कविता तो बता रहे थे की कोई साउथ का मूवी देखकर आए..!!!! और यहाँ तो सिंघम अगैन चल रहा है.. !! उसका मतलब ये हुआ की दोनों झूठ बोल रही थी.. तो फिर इतनी रात गए दोनों कहाँ गई होगी?? रात के साढ़े बारह बजे तक दो जवान लड़कियां झूठ बोलकर बाहर अकेली घूम रही हो तो यह जरूर चिंता का विषय है.. दोनों ने जरूर कुछ न कुछ गुल खिलाए होंगे

पीयूष का फोन आ गया था.. वो बेंगलोर से लौट रहा था.. कविता घर वापिस लौटेने के लिए तैयार हो गई.. ब्लू कलर का स्किन-टाइट जीन्स और लाइट ग्रीन रंग का टॉप के ऊपर सन-ग्लास पहन कर वो अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़ी.. दोपहर के दो बज रहे थे.. अंधेरा होने से पहले वो आराम से अपने शहर पहुँच जाएगी

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हाइवे के ऊपर ५० की स्पीड से चल रही गाड़ी.. एक चौराहे पर आकर अचानक रोक दी कविता ने... मैन रोड से अंदर कच्ची सड़क पर ले जाकर उसने गाड़ी एक जगह रोक दी.. और फिर चलते चलते अंदर की तरफ गई

"अरे भाभी... आप यहाँ? वो भी इस वक्त?" अचंभित होकर रसिक ने कविता को देखकर पूछा.. कविता के लिबास को देखकर.. स्तब्ध हो गया रसिक.. अप्रतिम सौन्दर्य से भरा हुआ कविता का गोरा जिस्म.. आँखें ही नहीं हट रही थी रसिक की

"तुम्हें मुझे फेशनेबल कपड़ों मे देखने की इच्छा थी ना.. इसलिए तुम्हें दिखाने आई हूँ... मैं अब घर ही जा रही थी.. देख लो मन भरकर..और आँखें सेंक लो" मुसकुराते हुए कविता ने कहा

रसिक: "ओह भाभी, कितने सुंदर लग रहे हो आप इन कपड़ों मे.. !!" टकटकी लगाकर, टाइट टॉप से दिख रहे उभारों को लार टपकाते हुए रसिक देख रहा था

कविता: "क्या देख रहे हो रसिक?? कल रात को इन्हें खोलकर तो देखा था तुमने"

रसिक: "अरे भाभी.. खुले से ज्यादा इन्हें फेशनेबल कपड़ों में ढंके हुए देखने का मज़ा ही अलग है.. आप खड़ी क्यों हो?? बैठिए ना.. !!"

कविता: "नहीं रसिक, मुझे देर हो रही है.. यहाँ से गुजर रही थी और ये चौराहे को देखा तो मुझे तुम्हारी याद आ गई.. सोचा मिलकर जाऊँ"

रसिक: "ये आपने बड़ा अच्छा किया.. वैसे रात को बहुत मज़ा आया था.. और बताइए, क्या सेवा करूँ आपकी?"

कविता: "किसी सेवा की जरूरत नहीं है.. रात को जो भी सेवा की थी तुमने वो काफी थी.. अब कुछ नहीं.. अब तुमने दिल भरकर देख लिया हो तो मैं चलूँ?"

रसिक: "भाभी, सिर्फ देखने की ही इजाजत है या छु भी सकता हूँ??"

कविता: "क्या रसिक तुम भी.. !! इन दोनों के पीछे ही पड़ गए हो.. मुझ से कई ज्यादा बड़े तो वैशाली के है.. वो यहीं पर है कुछ दिनों के लिए.. उसके ही छु लेना.. और वैसे शीला भाभी तो हमेशा के लिए यही पर रहेगी.. सुबह सुबह उनके पकड़ ही लिए थे न तुमने.. !!"

रसिक: "अरे वो तो आप दोनों को दिखाने के लिए मैं उन्हें पकड़कर बाहर लाया था.. आपने देखा था हम दोनों को?"

कविता: "हाँ थोड़ा थोड़ा.. जो देखना था वो तो घर के अंदर ही हुआ और वो हमें नहीं दिखा.. भाभी ने चूसा था ना तुम्हारा?"

रसिक: "वो तो हमारा रोज का है.. पर सच कहूँ तो.. आपने कल रात जैसे चूसा था ना.. आहाहाहाहा.. याद आते ही झुंझुनाहट सी होने लगती है"

कविता: "वैसे मैं पीयूष का भी ज्यादा चूसती नहीं हूँ कभी.. ये तो तुम्हें खुश करने के लिए चूस लिया था"

रसिक: "बहुत मज़ा आया था भाभी.. इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी के साथ नहीं आया पहले"

कविता: "झूठी तारीफ़ें मत कर.. मुझे पता है.. मर्द जिनके आगोश मे होते है उनकी ऐसी ही तारीफ करते है.. सब पता है मुझे.. जब शीला भाभी पर चढ़ता होगा तुम उन्हें भी तू यही कहता होगा.. की आपके जैसा मज़ा किसी के साथ नहीं आता.. और मम्मीजी का गेम बजाते वक्त उन्हें कहता होगा की मौसी, आपके जितनी टाइट मैंने किसी की नहीं देखी.. !!"

रसिक: "ठीक कह रही हो भाभी.. पर सच्ची तारीफ और झूठी तारीफ मे कुछ तो फरक होता है..!! आप लोगों को तो सुनते ही पता चल जाता होगा.. आप जवान हो.. शीला भाभी और आपकी सास तो एक्स्पाइरी डेट का माल है.. हाँ शीला भाभी की बात अलग है.. उन्हों ने मुझे जो सुख दिया है.. वैसा तो मैं सपने मे भी नहीं सोच सकता.. लेकिन हाँ.. ये बता दूँ आपको.. आपकी सास को तो मैंने मजबूरी मे ही चोदा था.. आप तक पहुँचने के लिए.. उन्हों ने ही यह शर्त रखी थी.. फिर मैं क्या करता?? मैं तो कैसे भी आप तक पहुंचना चाहता था.. वो कहते है ना.. भूख न देखे झूठी बात.. नींद न देखें मुर्दे की खाट.. बस वही हाल था मेरा.. आपको पाने के लिए मैं उस बुढ़िया की फटी हुई गांड भी चाट गया था.. सुनिए ना भाभी... थोड़ा करीब तो आइए.. इतने दूर क्यों खड़े हो?"

कविता धीरे धीरे रसिक के करीब आकर खड़ी हो गई.. फटी आँखों से रसिक उसकी कडक जवानी को देख रहा था.. किसी पराये मर्द की हवस भरी नजर अपने जिस्म पर पड़ती देख कविता शरमा गई...

"क्या देख रहे हो रसिक?? ऐसे देख रहे हो जैसे मुझे पहली बार देखा हो" कविता ने कहा

रसिक: "भाभी, एक बार बबलें दबा लूँ.. !! सिर्फ एक बार.. ज्यादा नहीं दबाऊँगा.. इतने करीब से देखने के बाद.. मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है.. और पता नहीं, फिर इस तरह हम कब मिल पाएंगे.. !!"

कविता: "फिर कभी देखने तो मिल जाएंगे.. हाँ, दबाने शायद ना मिलें.. !!"

रसिक: "इसीलिए तो कह रहा हूँ भाभी.. दबा लेने दीजिए प्लीज"

कविता: "कोई देख लेगा तो??"

रसिक: "अरे यहाँ कोई नहीं आता.. इतनी देर मे तो मैंने दबा भी लिए होते"

कविता: "जल्दी कर लो.. मुझे देर हो रही है"

कविता रसिक के एकदम नजदीक खड़ी हो गई.. और अपने सन-ग्लास उतारकर बोली "दबा ले रसिक.. !!"

रसिक: "ऐसे नहीं भाभी.. !!"

कविता: "फिर कैसे??"

रसिक: "गॉगल्स पहन लो भाभी... और आज आपने लाली क्यों नहीं लगाई होंठों पर? मुझे लाली लगे होंठ बहुत पसंद है"

कविता: "ध्यान से देख.. मैंने लगाई है.. पर एकदम लाइट शेड है इसलिए तुझे पता नहीं चल रहा.. " रसिक की आँखों के एकदम करीब अपने होंठ ले गई कविता

अपनी उंगली को कविता के होंठों पर फेर लिया रसिक ने.. "अरे वाह.. सच कहा आपने.. लाली तो लगाई है.. पर वो लाल रंग वाली लगाई होती तो आप और भी सुंदर लगती"

कविता ने तंग आकर कहा "अब जल्दी दबा ले.. फिर रूखी के होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाकर पूरी रात देखते रहना.. " अपने होंठों से रसिक का हाथ हटाकर स्तनों पर रख दिया कविता ने..

रसिक उसके स्तनों को दबाता उससे पहले कविता ने रसिक के लंड की ओर इशारा करते हुए कहा "तुम तो दबा लोगे.. फिर मैं खड़े खड़े क्या करूँ? मुझे भी कुछ दबाने के लिए चाहिए"

रसिक पागल सा हो गया.. "अरे भाभी, आपका ही है.. पकड़ लीजिए.. और जो करना हो कीजिए.. !!" कहते हुए रसिक ने पाजामे से अपना गधे जैसा लंड बाहर निकालकर कविता के हाथों मे थमा दिया

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दिन के उजाले मे आज पहली बार रसिक का लंड देख रही थी कविता.. उसे देखते ही कविता जैसे खो सी गई..

बिना कविता की अनुमति लिए.. रसिक कविता के टॉप के अंदर हाथ डालने लगा.. कविता ने कोई विरोध नहीं कीया.. उसका सारा ध्यान रसिक के मजबूत लंड पर केंद्रित था.. मुठ्ठी मे पकड़कर खेलने लगी वो.. जैसे छोटा बच्चा खिलौने से खेल रहा हो.. !!

कविता ने आज बड़े ही ध्यान से रसिक के लंड का अध्ययन किया.. रसिक उसके दोनों उरोजों को ब्रा के ऊपर से पकड़र दबा रहा था.. कविता का शरीर हवस से तपने लगा.. और वो बोल उठी "ओह रसिक.. मैं गरम हो गई.. मुझे अब चाटकर ठंडी कर.. फिर मुझे जाना है.. घर पहुंचना होगा अंधेरा होने से पहले.. !!"

रसिक कविता को उठाकर, वहाँ बने छोटे से कमरे के अंदर ले गया.. फिर बाहर से.. एक हाथ से खटिया को खींचकर अंदर ले आया.. उसपर कविता को लेटाकर जीन्स की चैन पर हाथ रगड़ने लगा.. चूत के ऊपर कपड़े के दो आवरण थे.. जीन्स का और पेन्टी का.. फिर भी कविता की चूत ने रसिक के मर्दाना खुरदरे स्पर्श को अंदर से ही महसूस कर लिया.. और उसने जीन्स का बटन खोलकर चैन को सरका दिया.. और पेंट को घुटनों तक उतार भी दिया.. पेन्टी उतरते ही कविता की लाल गुलाबी चूत पर कामरस की दो बूंदें चमक रही थी.. देखकर चाटने लगा रसिक.. !! और उसकी उंगलियों से फास्ट-फिंगरिंग करते हुए कविता की बुर खोदने लगा.. कविता ने देखा.. पीयूष के लंड की साइज़ की रसिक की उँगलियाँ थी.. !!

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एक लंबी सिसकी भरते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर, चूत के दोनों होंठों को चौड़ा करने के बाद बोली "रसिक.. पूरी जीभ अंदर डालकर चाटो यार.. ओह्ह.. मस्त मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. !!"

कविता को अपनी चटाई की तारीफ करता सुनकर रसिक और आक्रामक हो गया.. ऐसे पागलों की तरह उसने चाटना और उँगलियाँ डालना शुरू कर दिया.. की सिर्फ तीन-चार मिनटों मे ही कविता की चूत ने अपना शहद गिरा दिया.. और रसिक को बालों से पकड़कर अपनी चूत पर दबा दिया.. और उसके मुंह के अंदर अपना सम्पूर्ण स्खलन खाली कर दिया..

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कविता के चेहरे पर तृप्ति की चमक थी.. उसने हांफते हुए रसिक की उँगलियाँ अपने गुनगुने छेद से बाहर निकाली.. रसिक खड़ा हुआ और खटिया पर बैठ गया.. बड़ी जल्दी अपनी मुनिया की आग बुझाकर कविता खड़ी हुई और कपड़े पहनने लगी..

"रसिक, मैं अब निकलती हूँ.. बहोत देर हो गई" शर्ट के बटन बंद करते हुए कविता ने कहा

अपना लंड सहलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, फिर कभी मौका मिले तो रसिक को अपना रस पिलाना भूलना मत.. और हाँ, गाड़ी आराम से चलाइएगा.. चलिए, मैं आपको गाड़ी तक छोड़ दूँ"

अपने लंड को पाजामे के अंदर डालने लगा रसिक.. पर सख्त हो चुका लंड अंदर फिट ही नहीं हो रहा था..

"अरे भाभी, ये तो अब अंदर जाने से रहा.. मैं इस तरह आप के साथ नहीं चल पाऊँगा.. आप अकेले ही चले जाइए" रसिक ने लाचार होकर कहा

कविता को रसिक के प्रति प्रेम उमड़ आया.. वो चाहता तो जबरदस्ती कर खुद भी झड़ सकता था.. पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया..

वो रसिक के करीब आई और उसका लंड पकड़ते हुए बोली "जब तक इसका माल बाहर नहीं निकलेगा तब तक कैसे नरम होगा.. !! लाईये, मैं इसे ठंडा करने मे मदद करती हूँ.. "

कविता घुटनों के बल बैठ गई.. और अपनी स्टाइल मे रसिक का लंड चूसते हुए मुठियाने लगी.. कविता की हथेली का कोमल स्पर्श.. उसकी जीभ की गर्मी.. वैसे भी रसिक को कविता पर कुछ ज्यादा ही प्यार था..

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रसिक के मूसल लंड को चूसते हुए, कविता आफ़रीन हो गई और बार बार उस कडक लंड को अपने गालों पर रगड़ रही थी..

थोड़ी ही देर मे रसिक के लंड ने वीर्य-विसर्जन कर दिया.. इससे पहले की कविता उससे दूर हटती, उसके बालों से लेकर चेहरे तक सब कुछ वीर्य की पिचकारी से भर चुका था..

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"ओह्ह भाभी.. क्या गजब का माल है रे तू.. !! मज़ा आ गया.. !!"

वैसे कोई उसे माल कहकर संबोधित करें तो बड़ा ही गुस्सा आता था कविता को.. पर रसिक के मुंह से यह सुनकर उसे गर्व महसूस हुआ

रसिक अपनी साँसों को नियंत्रित कर रहा था उस वक्त कविता ने पर्स से नैप्किन निकाला और सारा वीर्य पोंछ लिया.. आखिर रसिक को गले लगाकर उसे एक जबरदस्त लिप किस देकर वो जाने के लिए तैयार हो गई.. मन ही मन वो सोच रही थी.. आह्ह, ये रसिक भी कमाल का मर्द है.. मुझे भी शीला भाभी और मम्मीजी की तरह इसने अपने रंग मे रंग ही दिया..!! एक बार तो मैं इसका लेकर ही रहूँगी.. कुछ भी हो जाए.. !!

"अब तो तुम्हारा नरम हुआ की नहीं हुआ??" कविता ने हँसते हुए कहा

"जब तक आप यहाँ खड़े हो वो नरम नहीं होगा.. देखिए ना.. अब भी सलामी दे रहा है आपको.. अब जाइए वरना मुझे फिर से आपकी बुर चाटने का मन हो जाएगा.. और फिर आज की रात आपको यहीं रुक जाना पड़ेगा" रसिक ने मुस्कुराकर अपना मूसल हिलाते हुए कहा

चूत चाटने की बात सुनकर, कविता की पुच्ची मे फिर से एक झटका सा लगा.. फिर से उसे एक और ऑर्गजम की चूल उठी.. पर अपने मन को काबू मे रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था..

"नहीं रसिक, अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा.. चलो अब मैं निकलती हूँ" अपने मस्त मध्यम साइज़ के कूल्हें, बड़ी ही मादकता से मटकाते हुए वो खेत से चलने लगी.. ऊंची हील वाली सेंडल के कारण उसके चूतड़ कुछ ज्यादा ही थिरक रहे थे.. कविता की गोरी पतली कमर की लचक को देखते हुए अपने लंड को सहलाता रसिक.. उसे फिर से कडक कर बैठा.. अब तो उसे हिलाकर शांत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था

कार के पास पहुंचकर कविता ने हाथ हिलाते हुए रसिक को "बाय" कहा.. फिर गाड़ी मे बैठी और सड़क की ओर दौड़ा दी..


कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..
Behtreen update
 

krish1152

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Premkumar65

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"बाप रे... मम्मी पापा घर आ गए.. अब क्या करेंगे कविता?" वैशाली के होश उड़ गए थे

पर कविता के चेहरे पर जरा सा भी टेंशन नहीं था

कविता: "डर क्यों रही है?? केह देंगे की मूवी देखने गए थे.. !!"

वैशाली को यह बहाना दिमाग मे सेट हो गया.. शीला-मदन को जगाना न पड़े, इसलिए वह दोनों कविता के पुराने घर मे ही, बाहों मे बाहें डालकर सो गए..

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सुबह पाँच बजे कविता की आँख खुल गई.. तभी उसने रसिक की सायकल की घंटी सुनी.. रोमांचित होते हुए उसने वैशाली की निप्पल पर हल्के से काटते हुए जगाया..

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वैशाली ने कहा "कविता, मुझे मम्मी और रसिक का रोमांस देखना है.. कुछ सेटिंग कर न यार.. !!"

कविता: "मैं क्या सेटिंग करूँ?? तेरी मम्मी को जाकर ये कहूँ की वैशाली को देखना है इसलिए आप रसिक का लंड चुसिए.. !! कैसी बातें कर रही है यार.. !!"

वैशाली: "अरे यार.. तू हर बार जहां खड़े रहकर उन्हें देखती थी.. वहाँ से तो मुझे उनकी लीला नजर आएगी ना.. !!"

कविता: "हाँ, वो हो सकता है.. तू बरामदे मे जाकर खड़ी हो जा.. लाइट बंद ही रखना.. और छुपकर देखेगी तो तेरे घर का दरवाजा साफ नजर आएगा.. पर संभालना.. ज्यादा उठ उठकर देखने की कोशिश मत करना.. वरना भाभी को पता चल जाएगा" कविता ने अपना फोन उठाया और किसी को फोन करने लगी

वैशाली: "इस वक्त कीसे फोन कर रही है ??"

कविता: "रसिक को.. उसे कहती हूँ की आज वो रोज के मुकाबले थोड़ा ज्यादा वक्त गुजारें भाभी के साथ.. ताकि हम दोनों को ठीक से देखने का मौका मिलें"

वैशाली: "अरे हाँ.. ये आइडिया अच्छा है.. मैं वहाँ जाकर खड़ी रहती हूँ.. तू भी जल्दी आ जाना.. !!"

वैशाली शॉल ओढ़कर बरामदे मे पहुँच गई और ऐसा एंगल सेट कर खड़ी रही जिससे की उसे अपने घर का दरवाजा नजर आए.. कविता भी उसके पीछे पीछे आकर खड़ी हो गई.. और वैशाली की शॉल मे घुसकर.. उसके जिस्म की गर्मी से सर्दी भगाने की कोशिश करते हुए, सामने नजर दिखने का इंतज़ार करने लगी

सर्दी उड़ाने के लिए.. और थोड़ी देर मे शुरू होने वाले पिक्चर की उत्तेजना मे.. वैशाली ने कविता के स्तनों को शॉल के अंदर मसलना शुरू कर दिया.. बीच बीच मे वह दोनों एक दूसरे के लिप्स भी चूम लेते.. नोबत यहाँ तक आ गई की दोनों एक दूसरे की शॉर्ट्स मे उँगलियाँ डालकर.. उनकी चूतों को उंगली भी करने लगी थी..

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तभी रसिक ने शीला के घर का लोहे का दरवाजा खोला और अंदर एंट्री मारी..

"देख देख वो आ गया.. यार, उसके डोलों पर तो मेरा दिल आ गया है.. !!" वैशाली ने सिसकियाँ भरते हुए कविता के शरीर को इसकी सजा दी

रसिक कोई गीत गुनगुनाते हुए डोरबेल बजाकर खड़ा था.. दरवाजा खुलने तक वो अपना लंड सहलाकर उसे भरोसा दिला रहा था की सुबह की पहली खुराक अब मिलने ही वाली है.. !! कविता और वैशाली, रसिक को उसका लंड मसलते हुए देखकर आहें भरती रही..!!

थोड़ी देर बार शीला ने दरवाजा खोला.. और इससे पहले की कोई कुछ भी सोच या समझ पाता.. उसने रसिक को गिरहबान से पकड़ा और उसे अंदर खींच लिया..

दरवाजा तो अब भी खुला ही था लेकिन रसिक की आगे पीछे हो रही गांड के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था.. यह देख कविता ने अंदाजा लगाया "लगता है भाभी उसका चूस रही है"

"यार, मम्मी तो नजर ही नहीं आ रही.. कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा" वैशाली ने जवाब दिया.. दोनों निराश हो गई..

कविता वैशाली के कान मे फुसफुसाई.. "रसिक को मैंने फोन किया था इसलिए वो कुछ न कुछ तो खेल करेगा ही, हमें दिखाने के लिए.. ये तो भाभी ने उसे अंदर खींच लिया इसलिए कुछ दिखा नहीं.. !!"

वैशाली: "पर क्या सच मे मम्मी ने उसका चूसा होगा?? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कविता" अपनी माँ की वकालत करते हुए वैशाली ने कहा

दोनों की गुसपुस चल रही थी तभी कविता ने वैशाली को उसके घर की तरफ देखने का इशारा किया.. वैशाली ने वहाँ देखा और स्तब्ध हो गई.. रसिक शीला को अपनी बाहों मे जकड़कर खड़ा था और शीला उसकी छातियों पर मुक्के मारकर छूटने का प्रयत्न कर रही थी.. रसिक शीला को खींचकर बाहर तक ले आया.. तब तक शीला ने अपने आप को रसिक की गिरफ्त से छुड़ाया और घर के अंदर चली गई.. रसिक भी सायकल ले कर निकल गया

कविता और वैशाली बेडरूम मे आ गए.. कविता ने शॉल हटाकर बेड पर फेंकी.. थोड़ी देर पहले देखे द्रश्य के कारण वैसे भी वो गरम तो हो ही चुकी थी

वैशाली: "कविता, तूने अपनी सास को रसिक से चुदवाते अपनी आँखों से देखा था क्या.. ??"

कविता: "अरे, इसी बिस्तर पर मैं लेटी थी और मुझ से करीब दो फुट दूर ही रसिक ने मेरी सास को घोड़ी बनाकर पेल दिया था.. उससे पहले मम्मी जी ने बड़ी देर तक उसका लोडा चूसा भी था.. और वैशाली, रसिक का लंड लेते वक्त तुझे कितना दर्द हुआ था, पता है ना.. ! पर मेरी सास की गुफा मे रसिक का लंड ऐसे घुस रहा था जैसे मक्खन मे छुरी.. मम्मी जी तो रसिक के मूसल पर फिदा हो गई थी.. मैं सोने का नाटक करते हुए.. आधी खुली आँखों से रसिक के लंड को मम्मी जी की चूत मे गायब होते हुए देख रही थी.. इतना ताज्जुब हो रहा था मुझे.. !! इतनी आसानी से वो इतना बड़ा लंड ले पा रही थी..!!"

वैशाली: "जाहीर सी बात है कविता.. वो बूढ़ी है इसलिए उनकी चूत एकदम ढीली-ढाली हो गई होगी.. तभी आसानी से वो रसिक का ले पा रही थी"

दोनों बातें कर रहे थे.. तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला दोनों के लिए चाय लेकर आई थी.. तीनों चाय पीते पीते बातें करने लगी

शीला: "कल कहाँ गई थी तुम दोनों??"

वैशाली: "हम दोनों अकेले बोर हो रही थी.. तो मूवी देखने चली गई थी" यह सुनकर कविता अपने चेहरे के डरे हुए भाव न दिखे इसलिए मुंह छुपा रही थी

शीला: "अच्छा किया.. वैसे कौनसी मूवी देखने गई थी?"

कविता और वैशाली दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगी..

वैशाली: "साउथ का मूवी था मम्मी.. !!"

शीला: "कैसा लगा? मज़ा आया?"

कविता: "हाँ भाभी.. मस्त मूवी था.. बहुत मज़ा आया"

शीला: "याद है कविता?? हम एक बार साथ मूवी देखने गए थे.. पीयूष के साथ.. तब भी कितना मज़ा किया था.. !!"

कविता शरमा गई.. उसने वैशाली को यह बात बताई हुई थी.. पर शीला अचानक यह बात निकालेगी उसका उसे अंदाजा नहीं था

कविता: "हाँ भाभी.. वो मूवी तो मैं कभी नहीं भूलूँगी"

वैशाली: "क्यों?? ऐसा क्या खास था मूवी मे?"

कविता: "मूवी तो ठीकठाक ही थी.. पर हमने बहोत मजे कीये थे.. हैं ना भाभी.. !!"

वैशाली समझ गई और आगे कुछ बोली नहीं.. सिर्फ कविता को कुहनी मारकर चिढ़ाया

शीला: "देख कविता.. तू हमारे बुलाने पर आई, वो बहोत अच्छा किया.. ऐसे ही वैशाली की शादी से पहले भी तू आ जाना.. और अब मौसम की शादी भी कोई अच्छा सा लड़का देखकर कर ही दो.. सुबोधकांत की अंतिम इच्छा भी पूरी हो जाए और एक जिम्मेदारी भी खत्म हो"

कविता: "अरे हाँ भाभी.. मैं बताना भूल गई.. मौसम की बात चलाई है हमने एक लड़के के साथ.. हमारी ऑफिस मे ही काम करता है.. बहुत ही होनहार लड़का है और मौसम को पसंद भी है.. बस लड़के वालों की हाँ आने की देर है"

वैशाली: "जवाब हाँ ही होगा.. मौसम को भला कौन मना करेगा?"

कविता: "वैशाली, मैं आज दोपहर को घर के लिए निकल जाऊँगी.. और तेरी शादी से पहले हम सब आ जाएंगे"

वैशाली: "वो तो आना ही पड़ेगा ना.. एक हफ्ते पहले से आ जाना.. सारा काम तुझे और अनुमौसी को ही संभालना होगा.. "

शीला: "चलो लड़कियों.. सात बज रहे है.. नहा-धो कर तैयार हो जाओ.. फिर हमें भी शॉपिंग करने निकलना है:

शीला और मदन तैयार होकर वैशाली की शादी की शॉपिंग करने निकल गए.. बाहर रोड पर जगह जगह "सिंघम अगैन" के पोस्टर्स लगे हुए थे..

यह देखकर शीला ने कहा "मदन, मुझे यह मूवी देखना है.. सिंघम के पहले वाले मूवीज भी बड़े मजेदार थे.. चलते है देखने"

मदन: "अरे यार, पहले बताना चाहिए था तुझे.. राजेश तो पिछले हफ्ते ही बोल रहा था की हम चारों यह वाला मूवी देखने चले.. पर ये शॉपिंग के चक्कर मे, मैं तुझे बताना ही भूल गया.. फिर मैंने सोचा, की अभी मूवी नई नई है, भीड़ बहुत ज्यादा होगी.. थोड़ा सा रश कम हो, फिर चलते है.. बता कब चलना है? राजेश को भी बोल देता हूँ"

शीला: "अरे मदन.. वो भूलभुलैया-3 भी तो आई है ना.. !! वो कौन से मल्टीप्लेक्स मे लगी है?"

मदन: "यार शीला.. तू अखबार पढ़ती भी है या नहीं?? वो नए कमिश्नर ने फायर सैफ्टी के चक्कर मे, सारे मल्टीप्लेक्स बंद कर रखे है.. बस ये एक वाला ही खुला है.. और उसमे सिंघम चल रहा है"

शीला के दिमाग मे घंटियाँ बजने लगी.. वैशाली और कविता तो बता रहे थे की कोई साउथ का मूवी देखकर आए..!!!! और यहाँ तो सिंघम अगैन चल रहा है.. !! उसका मतलब ये हुआ की दोनों झूठ बोल रही थी.. तो फिर इतनी रात गए दोनों कहाँ गई होगी?? रात के साढ़े बारह बजे तक दो जवान लड़कियां झूठ बोलकर बाहर अकेली घूम रही हो तो यह जरूर चिंता का विषय है.. दोनों ने जरूर कुछ न कुछ गुल खिलाए होंगे

पीयूष का फोन आ गया था.. वो बेंगलोर से लौट रहा था.. कविता घर वापिस लौटेने के लिए तैयार हो गई.. ब्लू कलर का स्किन-टाइट जीन्स और लाइट ग्रीन रंग का टॉप के ऊपर सन-ग्लास पहन कर वो अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़ी.. दोपहर के दो बज रहे थे.. अंधेरा होने से पहले वो आराम से अपने शहर पहुँच जाएगी

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हाइवे के ऊपर ५० की स्पीड से चल रही गाड़ी.. एक चौराहे पर आकर अचानक रोक दी कविता ने... मैन रोड से अंदर कच्ची सड़क पर ले जाकर उसने गाड़ी एक जगह रोक दी.. और फिर चलते चलते अंदर की तरफ गई

"अरे भाभी... आप यहाँ? वो भी इस वक्त?" अचंभित होकर रसिक ने कविता को देखकर पूछा.. कविता के लिबास को देखकर.. स्तब्ध हो गया रसिक.. अप्रतिम सौन्दर्य से भरा हुआ कविता का गोरा जिस्म.. आँखें ही नहीं हट रही थी रसिक की

"तुम्हें मुझे फेशनेबल कपड़ों मे देखने की इच्छा थी ना.. इसलिए तुम्हें दिखाने आई हूँ... मैं अब घर ही जा रही थी.. देख लो मन भरकर..और आँखें सेंक लो" मुसकुराते हुए कविता ने कहा

रसिक: "ओह भाभी, कितने सुंदर लग रहे हो आप इन कपड़ों मे.. !!" टकटकी लगाकर, टाइट टॉप से दिख रहे उभारों को लार टपकाते हुए रसिक देख रहा था

कविता: "क्या देख रहे हो रसिक?? कल रात को इन्हें खोलकर तो देखा था तुमने"

रसिक: "अरे भाभी.. खुले से ज्यादा इन्हें फेशनेबल कपड़ों में ढंके हुए देखने का मज़ा ही अलग है.. आप खड़ी क्यों हो?? बैठिए ना.. !!"

कविता: "नहीं रसिक, मुझे देर हो रही है.. यहाँ से गुजर रही थी और ये चौराहे को देखा तो मुझे तुम्हारी याद आ गई.. सोचा मिलकर जाऊँ"

रसिक: "ये आपने बड़ा अच्छा किया.. वैसे रात को बहुत मज़ा आया था.. और बताइए, क्या सेवा करूँ आपकी?"

कविता: "किसी सेवा की जरूरत नहीं है.. रात को जो भी सेवा की थी तुमने वो काफी थी.. अब कुछ नहीं.. अब तुमने दिल भरकर देख लिया हो तो मैं चलूँ?"

रसिक: "भाभी, सिर्फ देखने की ही इजाजत है या छु भी सकता हूँ??"

कविता: "क्या रसिक तुम भी.. !! इन दोनों के पीछे ही पड़ गए हो.. मुझ से कई ज्यादा बड़े तो वैशाली के है.. वो यहीं पर है कुछ दिनों के लिए.. उसके ही छु लेना.. और वैसे शीला भाभी तो हमेशा के लिए यही पर रहेगी.. सुबह सुबह उनके पकड़ ही लिए थे न तुमने.. !!"

रसिक: "अरे वो तो आप दोनों को दिखाने के लिए मैं उन्हें पकड़कर बाहर लाया था.. आपने देखा था हम दोनों को?"

कविता: "हाँ थोड़ा थोड़ा.. जो देखना था वो तो घर के अंदर ही हुआ और वो हमें नहीं दिखा.. भाभी ने चूसा था ना तुम्हारा?"

रसिक: "वो तो हमारा रोज का है.. पर सच कहूँ तो.. आपने कल रात जैसे चूसा था ना.. आहाहाहाहा.. याद आते ही झुंझुनाहट सी होने लगती है"

कविता: "वैसे मैं पीयूष का भी ज्यादा चूसती नहीं हूँ कभी.. ये तो तुम्हें खुश करने के लिए चूस लिया था"

रसिक: "बहुत मज़ा आया था भाभी.. इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी के साथ नहीं आया पहले"

कविता: "झूठी तारीफ़ें मत कर.. मुझे पता है.. मर्द जिनके आगोश मे होते है उनकी ऐसी ही तारीफ करते है.. सब पता है मुझे.. जब शीला भाभी पर चढ़ता होगा तुम उन्हें भी तू यही कहता होगा.. की आपके जैसा मज़ा किसी के साथ नहीं आता.. और मम्मीजी का गेम बजाते वक्त उन्हें कहता होगा की मौसी, आपके जितनी टाइट मैंने किसी की नहीं देखी.. !!"

रसिक: "ठीक कह रही हो भाभी.. पर सच्ची तारीफ और झूठी तारीफ मे कुछ तो फरक होता है..!! आप लोगों को तो सुनते ही पता चल जाता होगा.. आप जवान हो.. शीला भाभी और आपकी सास तो एक्स्पाइरी डेट का माल है.. हाँ शीला भाभी की बात अलग है.. उन्हों ने मुझे जो सुख दिया है.. वैसा तो मैं सपने मे भी नहीं सोच सकता.. लेकिन हाँ.. ये बता दूँ आपको.. आपकी सास को तो मैंने मजबूरी मे ही चोदा था.. आप तक पहुँचने के लिए.. उन्हों ने ही यह शर्त रखी थी.. फिर मैं क्या करता?? मैं तो कैसे भी आप तक पहुंचना चाहता था.. वो कहते है ना.. भूख न देखे झूठी बात.. नींद न देखें मुर्दे की खाट.. बस वही हाल था मेरा.. आपको पाने के लिए मैं उस बुढ़िया की फटी हुई गांड भी चाट गया था.. सुनिए ना भाभी... थोड़ा करीब तो आइए.. इतने दूर क्यों खड़े हो?"

कविता धीरे धीरे रसिक के करीब आकर खड़ी हो गई.. फटी आँखों से रसिक उसकी कडक जवानी को देख रहा था.. किसी पराये मर्द की हवस भरी नजर अपने जिस्म पर पड़ती देख कविता शरमा गई...

"क्या देख रहे हो रसिक?? ऐसे देख रहे हो जैसे मुझे पहली बार देखा हो" कविता ने कहा

रसिक: "भाभी, एक बार बबलें दबा लूँ.. !! सिर्फ एक बार.. ज्यादा नहीं दबाऊँगा.. इतने करीब से देखने के बाद.. मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है.. और पता नहीं, फिर इस तरह हम कब मिल पाएंगे.. !!"

कविता: "फिर कभी देखने तो मिल जाएंगे.. हाँ, दबाने शायद ना मिलें.. !!"

रसिक: "इसीलिए तो कह रहा हूँ भाभी.. दबा लेने दीजिए प्लीज"

कविता: "कोई देख लेगा तो??"

रसिक: "अरे यहाँ कोई नहीं आता.. इतनी देर मे तो मैंने दबा भी लिए होते"

कविता: "जल्दी कर लो.. मुझे देर हो रही है"

कविता रसिक के एकदम नजदीक खड़ी हो गई.. और अपने सन-ग्लास उतारकर बोली "दबा ले रसिक.. !!"

रसिक: "ऐसे नहीं भाभी.. !!"

कविता: "फिर कैसे??"

रसिक: "गॉगल्स पहन लो भाभी... और आज आपने लाली क्यों नहीं लगाई होंठों पर? मुझे लाली लगे होंठ बहुत पसंद है"

कविता: "ध्यान से देख.. मैंने लगाई है.. पर एकदम लाइट शेड है इसलिए तुझे पता नहीं चल रहा.. " रसिक की आँखों के एकदम करीब अपने होंठ ले गई कविता

अपनी उंगली को कविता के होंठों पर फेर लिया रसिक ने.. "अरे वाह.. सच कहा आपने.. लाली तो लगाई है.. पर वो लाल रंग वाली लगाई होती तो आप और भी सुंदर लगती"

कविता ने तंग आकर कहा "अब जल्दी दबा ले.. फिर रूखी के होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाकर पूरी रात देखते रहना.. " अपने होंठों से रसिक का हाथ हटाकर स्तनों पर रख दिया कविता ने..

रसिक उसके स्तनों को दबाता उससे पहले कविता ने रसिक के लंड की ओर इशारा करते हुए कहा "तुम तो दबा लोगे.. फिर मैं खड़े खड़े क्या करूँ? मुझे भी कुछ दबाने के लिए चाहिए"

रसिक पागल सा हो गया.. "अरे भाभी, आपका ही है.. पकड़ लीजिए.. और जो करना हो कीजिए.. !!" कहते हुए रसिक ने पाजामे से अपना गधे जैसा लंड बाहर निकालकर कविता के हाथों मे थमा दिया

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दिन के उजाले मे आज पहली बार रसिक का लंड देख रही थी कविता.. उसे देखते ही कविता जैसे खो सी गई..

बिना कविता की अनुमति लिए.. रसिक कविता के टॉप के अंदर हाथ डालने लगा.. कविता ने कोई विरोध नहीं कीया.. उसका सारा ध्यान रसिक के मजबूत लंड पर केंद्रित था.. मुठ्ठी मे पकड़कर खेलने लगी वो.. जैसे छोटा बच्चा खिलौने से खेल रहा हो.. !!

कविता ने आज बड़े ही ध्यान से रसिक के लंड का अध्ययन किया.. रसिक उसके दोनों उरोजों को ब्रा के ऊपर से पकड़र दबा रहा था.. कविता का शरीर हवस से तपने लगा.. और वो बोल उठी "ओह रसिक.. मैं गरम हो गई.. मुझे अब चाटकर ठंडी कर.. फिर मुझे जाना है.. घर पहुंचना होगा अंधेरा होने से पहले.. !!"

रसिक कविता को उठाकर, वहाँ बने छोटे से कमरे के अंदर ले गया.. फिर बाहर से.. एक हाथ से खटिया को खींचकर अंदर ले आया.. उसपर कविता को लेटाकर जीन्स की चैन पर हाथ रगड़ने लगा.. चूत के ऊपर कपड़े के दो आवरण थे.. जीन्स का और पेन्टी का.. फिर भी कविता की चूत ने रसिक के मर्दाना खुरदरे स्पर्श को अंदर से ही महसूस कर लिया.. और उसने जीन्स का बटन खोलकर चैन को सरका दिया.. और पेंट को घुटनों तक उतार भी दिया.. पेन्टी उतरते ही कविता की लाल गुलाबी चूत पर कामरस की दो बूंदें चमक रही थी.. देखकर चाटने लगा रसिक.. !! और उसकी उंगलियों से फास्ट-फिंगरिंग करते हुए कविता की बुर खोदने लगा.. कविता ने देखा.. पीयूष के लंड की साइज़ की रसिक की उँगलियाँ थी.. !!

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एक लंबी सिसकी भरते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर, चूत के दोनों होंठों को चौड़ा करने के बाद बोली "रसिक.. पूरी जीभ अंदर डालकर चाटो यार.. ओह्ह.. मस्त मज़ा आ रहा है.. आह्ह.. !!"

कविता को अपनी चटाई की तारीफ करता सुनकर रसिक और आक्रामक हो गया.. ऐसे पागलों की तरह उसने चाटना और उँगलियाँ डालना शुरू कर दिया.. की सिर्फ तीन-चार मिनटों मे ही कविता की चूत ने अपना शहद गिरा दिया.. और रसिक को बालों से पकड़कर अपनी चूत पर दबा दिया.. और उसके मुंह के अंदर अपना सम्पूर्ण स्खलन खाली कर दिया..

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कविता के चेहरे पर तृप्ति की चमक थी.. उसने हांफते हुए रसिक की उँगलियाँ अपने गुनगुने छेद से बाहर निकाली.. रसिक खड़ा हुआ और खटिया पर बैठ गया.. बड़ी जल्दी अपनी मुनिया की आग बुझाकर कविता खड़ी हुई और कपड़े पहनने लगी..

"रसिक, मैं अब निकलती हूँ.. बहोत देर हो गई" शर्ट के बटन बंद करते हुए कविता ने कहा

अपना लंड सहलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, फिर कभी मौका मिले तो रसिक को अपना रस पिलाना भूलना मत.. और हाँ, गाड़ी आराम से चलाइएगा.. चलिए, मैं आपको गाड़ी तक छोड़ दूँ"

अपने लंड को पाजामे के अंदर डालने लगा रसिक.. पर सख्त हो चुका लंड अंदर फिट ही नहीं हो रहा था..

"अरे भाभी, ये तो अब अंदर जाने से रहा.. मैं इस तरह आप के साथ नहीं चल पाऊँगा.. आप अकेले ही चले जाइए" रसिक ने लाचार होकर कहा

कविता को रसिक के प्रति प्रेम उमड़ आया.. वो चाहता तो जबरदस्ती कर खुद भी झड़ सकता था.. पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया..

वो रसिक के करीब आई और उसका लंड पकड़ते हुए बोली "जब तक इसका माल बाहर नहीं निकलेगा तब तक कैसे नरम होगा.. !! लाईये, मैं इसे ठंडा करने मे मदद करती हूँ.. "

कविता घुटनों के बल बैठ गई.. और अपनी स्टाइल मे रसिक का लंड चूसते हुए मुठियाने लगी.. कविता की हथेली का कोमल स्पर्श.. उसकी जीभ की गर्मी.. वैसे भी रसिक को कविता पर कुछ ज्यादा ही प्यार था..

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रसिक के मूसल लंड को चूसते हुए, कविता आफ़रीन हो गई और बार बार उस कडक लंड को अपने गालों पर रगड़ रही थी..

थोड़ी ही देर मे रसिक के लंड ने वीर्य-विसर्जन कर दिया.. इससे पहले की कविता उससे दूर हटती, उसके बालों से लेकर चेहरे तक सब कुछ वीर्य की पिचकारी से भर चुका था..

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"ओह्ह भाभी.. क्या गजब का माल है रे तू.. !! मज़ा आ गया.. !!"

वैसे कोई उसे माल कहकर संबोधित करें तो बड़ा ही गुस्सा आता था कविता को.. पर रसिक के मुंह से यह सुनकर उसे गर्व महसूस हुआ

रसिक अपनी साँसों को नियंत्रित कर रहा था उस वक्त कविता ने पर्स से नैप्किन निकाला और सारा वीर्य पोंछ लिया.. आखिर रसिक को गले लगाकर उसे एक जबरदस्त लिप किस देकर वो जाने के लिए तैयार हो गई.. मन ही मन वो सोच रही थी.. आह्ह, ये रसिक भी कमाल का मर्द है.. मुझे भी शीला भाभी और मम्मीजी की तरह इसने अपने रंग मे रंग ही दिया..!! एक बार तो मैं इसका लेकर ही रहूँगी.. कुछ भी हो जाए.. !!

"अब तो तुम्हारा नरम हुआ की नहीं हुआ??" कविता ने हँसते हुए कहा

"जब तक आप यहाँ खड़े हो वो नरम नहीं होगा.. देखिए ना.. अब भी सलामी दे रहा है आपको.. अब जाइए वरना मुझे फिर से आपकी बुर चाटने का मन हो जाएगा.. और फिर आज की रात आपको यहीं रुक जाना पड़ेगा" रसिक ने मुस्कुराकर अपना मूसल हिलाते हुए कहा

चूत चाटने की बात सुनकर, कविता की पुच्ची मे फिर से एक झटका सा लगा.. फिर से उसे एक और ऑर्गजम की चूल उठी.. पर अपने मन को काबू मे रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था..

"नहीं रसिक, अब तो मुझे जाना ही पड़ेगा.. चलो अब मैं निकलती हूँ" अपने मस्त मध्यम साइज़ के कूल्हें, बड़ी ही मादकता से मटकाते हुए वो खेत से चलने लगी.. ऊंची हील वाली सेंडल के कारण उसके चूतड़ कुछ ज्यादा ही थिरक रहे थे.. कविता की गोरी पतली कमर की लचक को देखते हुए अपने लंड को सहलाता रसिक.. उसे फिर से कडक कर बैठा.. अब तो उसे हिलाकर शांत करने के सिवाय और कोई उपाय नहीं था

कार के पास पहुंचकर कविता ने हाथ हिलाते हुए रसिक को "बाय" कहा.. फिर गाड़ी मे बैठी और सड़क की ओर दौड़ा दी..


कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..
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कविता की गाड़ी को नज़रों से ओजल होते हुए रसिक देखता रहा और मन ही मन बड़बड़ाया.. "भाभी, आज तो आपने मुझे धन्य कर दिया.. " पिछले चार-पाँच दिनों में रसिक का जीवन बेहद खुशहाल और जीवंत सा बन गया था..

रसिक के इस बदले बदले से रूप को देखकर शीला को भी ताज्जुब हो रहा था.. वो सोच रही थी.. या तो इसे लोटरी लगी है.. कोई धनलाभ हुआ है.. या तो इसकी दिल की कोई अदम्य इच्छ पूरी हुई है.. छोटा आदमी तो छोटी छोटी बात पर भी खुश हो सकता है.. गरीब इंसान को तो सेकंड-हेंड सायकल भी खुश कर देती है.. पर रसिक किस कारण से इतना खुश लग रहा था वह जानने की बड़ी ही बेसब्री हो रही थी शीला को
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गाड़ी चलाते हुए बोर हो रही कविता ने स्पीकर फोन पर वैशाली को फोन लगाया.. रसिक के साथ जो गुलछर्रे उड़ाये उसके बारे मे वो वैशाली को बतानी चाहती थी.. लेकिन फोन शीला ने उठाया.. मजबूरन कविता को शीला से बात करनी पड़ी.. थोड़ी सी प्राथमिक बातचीत के बाद, शीला ने अपना इन्टेरोगैशन शुरू कर दिया

शीला: "कविता, याद है वो दिन.. जब मैंने तुझे अपने प्रेमी पिंटू, जो की अब मेरा दामाद बनने वाला है, उसके साथ सेटिंग कर के दिया था.. !! यहाँ तक की तू आराम से उसके साथ वक्त बीता सकें इसलिए मैंने पीयूष को अपने दबाने भी दीये थे.. यह भी याद होगा.. की मैंने ही रेणुका को बात कर के पीयूष की जॉब लगवाई थी.. पीयूष की गैर-मौजूदगी मे, मैंने तुझे कई बार चाटकर ठंडा किया था.. सिनेमा हॉल मे वो पिंटू तेरी चूत मे उंगली डाल रहा था तब पीयूष देख न ले इसलिए मैंने तेरे पति को मेरे बबले दबाने दीये थे.. सब याद है या भूल गई?"

कविता को समझ नहीं आ रहा था की पिछली बातें याद दिला कर शीला भाभी अब क्यों एहसान जता रही थी

कविता: "अरे भाभी, आप ऐसा क्यों बोल रही हो.. !! सब कुछ याद है मुझे.. !!"

शीला: "तो फिर तू कुछ बातें मुझसे छुपा क्यों रही है?? तू पीयूष, पिंटू या मौसम से बातें छुपाएँ, ये मैं समझ सकती हूँ, पर मुझसे क्यों छुपाना पड़ रहा है तुझे? क्या तू जानती नहीं है मुझे... की कितना भी छुपा ले मुझे सब पता चल ही जाता है.. !! जिस शख्स के साथ तुम लोग नाश्ता कर रही हो.. उसके साथ मैं रोज खाना खाती हूँ, यह भूल गई क्या?"

कविता: "साफ साफ बताइए भाभी.. आप क्या कहना चाहती हो?"

शीला: "भेनचोद.. ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर... उस दिन जब मैंने पूछा की तू और वैशाली रात को कहाँ गए थे तब तू झूठ क्यों बोली? चलो वैशाली के सामने तू मुझे सच नहीं बता सकी.. पर बाद मे तो मुझे बता ही सकती थी ना.. !! मुझे पता है की तुम दोनों अपने भोसड़े मरवाने गई थी.. पर तेरे दिमाग मे ये क्यों नहीं आया की कुछ ही दिनों में वैशाली की शादी है.. !! कुछ उंच-नीच हो गई तो.. !! तेरी खुजली मिटाने के चक्कर मे, मेरी बेटी का भविष्य दांव पर लगा दिया तूने.. ????"

कविता: "भाभी, आप सारा दोष मुझे मत दीजिए.. खुजली मेरी नहीं.. वैशाली की चूत में उठी थी.. और आपकी जानकारी के लिए बता दूँ... मैंने तो चुदवाया भी नहीं है.. ऐसा मोटा लँड मेरे छेद मे लेने की हिम्मत नहीं है मेरी, ये तो आप भी जानती हो.. !! वैशाली भी मुश्किल से आधा डलवा पाई थी.. उसने ही जिद की थी.. और मुझे खेत मे ले गई.. मैं तो सिर्फ साथ इसलिए गई थी की वैशाली की मदद कर सकूँ.. ऐसी जगह मैं उसे अकेले जाने देना नहीं चाहती थी.. मैंने तो रसिक का लंड लिया भी नहीं है.. हाँ ओरल सेक्स जरूर किया था पर उससे ज्यादा कुछ नहीं किया मैंने.. !!"

सुनकर शीला स्तब्ध हो गई.. उसकी आँखों के सामने रसिक का असुर जैसा लंड झलकने लगा.. जो लंड शीला और अनुमौसी को भी रुला गया हो.. उस लंड ने वैशाली का क्या हाल कर दिया होगा.. !! मन ही मन वो रसिक को गालियां देने लगी.. रसिक मादरचोद.. मेरी बेटी का घर बसने से पहले ही उझाड़ देगा क्या.. !! साले भड़वे.. तेरा गधे जैसा लंड लेने के बाद.. पहली रात को वैशाली उस पिंटू की मामूली सी नुन्नी से कैसे मज़ा ले पाएगी.. !!

कविता: "चुप क्यों हो गए भाभी? मेरी बात का विश्वास नहीं हो रहा क्या आपको.. !!" चिंतित होकर कविता ने पूछा

शीला: "नहीं यार, मुझे पता है, रसिक का इतना बड़ा है की उसका लेना तेरे बस की बात ही नहीं है.. पर मुझे यह समझ मे नहीं आया की आखिर वैशाली और रसिक का कनेक्शन हुआ कैसे?"

कविता: "भाभी, वैशाली को सब पता चल गया है की आप और मेरी सास उसके लंड के आशिक हो.. और आप तो अभी भी उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो.. मैंने ही बातों बातों में सब बता दिया था उसे.. मेरी सास और रसिक ने उस रात जो साजिश की थी.. उस घटना के बारे में बताते हुए मेरे मुंह से सब निकल गया.. लेकिन वो सब जान लेने के बाद.. वैशाली ने रसिक का लंड देखने की जिद पकड़ ली.. अब रसिक का लंड कोई सिनेमा थोड़े ही है की टिकट लिया और देख लिए.. !! मेरे लाख मना करने के बावजूद वैशाली नहीं मानी.. भाभी, आपकी बेटी भी आप ही की तरह बेहद शौकीन है..!! उस दिन वैशाली खुद दूध लेने उठी और वहीं से सब कुछ शुरू हुआ.. और फिर आप और मदन भैया रेणुका के घर चले गए अदला-बदली का खेल खेलने.. उसी रात वैशाली मुझे खींचकर रसिक के खेत पर ले गई.. " और फिर कविता ने पूरी घटना का विवरण दिया..

शीला ने सब कुछ सुनकर एक गहरी सांस ली और कहा "कविता, तूने तो रसिक और पिंटू, दोनों के लंड देख रखे है.. तुझे इतना भी खयाल नहीं आया की वैशाली को रसिक के महाकाय लंड की आदत लग गई तो वो पिंटू के संग कैसे खुश रह पाएगी?? अरे, जिस लंड को लेने मे, मुझ जैसी अनुभवी को भी आँखों के आगे अंधेरा छा जाता है.. उस लंड से तूने वैशाली को चुदने दिया??? खैर, जो हो गया सो हो गया.. रखती हूँ फोन"

शीला को रसिक पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. इस खेल को जल्द से जल्द रोकना पड़ेगा वरना बात हाथ से निकल जाएगी.. वैशाली से यह बात करने मे बेहद झिझक रही थी शीला.. अब एक ही रास्ता था.. सीधे रसिक से ही बात की जाए.. उस सांड को कैसे भी करके रोकना पड़ेगा.. वरना वो शादी से पहले ही वैशाली की चूत फाड़ देगा..!!!

सोचते सोचते शीला सो गई..

दूसरी सुबह, जब रसिक दूध देने आया.. तब रोज की तरह वो शीला के गदराए जिस्म से खेलने लगा.. और शीला ने उसे मना भी नहीं किया.. पर जैसे ही रसिक, शीला का एक बबला बाहर निकालकर चूसने गया, तब शीला ने कहा "रसिक, मुझे तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है.. आज एक घंटे का समय निकाल.. बता, मैं कितने बजे आऊँ तेरे घर?"

रसिक: "दोपहर को आ जाना भाभी.. रूखी भी कहीं बाहर जाने वाली है उस वक्त"

शीला: "एक बजे ठीक रहेगा.. ??"

रसिक: "हाँ भाभी.. थोड़ा टाइम निकालकर आना.. काफी दिन हो गए है भाभी"

दोपहर के एक बजे.. शीला रसिक के घर पर थी.. रसिक सामने बैठा था.. बात को कैसे शुरू की जाए उस कश्मकश मे थी शीला..

शीला: "सुन रसिक.. मुझे कविता ने सब बता दिया है.. तूने दोनों को खेत पर बुलाया था.. और जो कुछ किया.. उसके बारे में बात करने आई हूँ"

रसिक: "भाभी, मैंने सामने से चलकर कुछ नहीं किया.. आपकी बेटी ही जिद कर रही थी.. उसे ही बड़ी चूल थी मुझसे करवाने की.. मैंने कभी कोई जबरदस्ती नहीं की किसी के साथ.. और कविता के पीछे मैं कितना पागल हूँ ये तो आपको पता ही है.. फिर भी मैंने उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती नहीं की.. ऊपर ऊपर से ही सब कीया था.. !!!"

शीला: "कोई बात नहीं रसिक.. मैं यहाँ तुझे धमकाने या डराने नहीं आई हूँ.. पर यह बताने आई हूँ की थोड़े दिन बाद वैशाली की शादी है.. अब तू ऐसे ही अगर अपने मोटे लंड से वैशाली को चोदता रहेगा, तो वो शादी के बाद किसी काम की नहीं रहेगी.. इसलिए तू मुझसे वादा कर की वैशाली कितनी भी जिद क्यों न करे.. तू ऊपर ऊपर से ही सब करना.. उसे चोदना मत.. !!"

रसिक: "भाभी.. वैशाली कितनी सुंदर है.. ऊपर ऊपर से करने के बाद मैं अपने आप को कैसे काबू मे रख पाऊँगा.. !! और वो तो खुद ही मेरा पकड़कर अंदर डाल देती है.. !!"

शीला: "बेवकूफ, इसलिए तो तुझसे मिलने आई हूँ.. उसे समझाने का कोई मतलब नहीं है.. पर अब तुझे ध्यान रखना होगा... तू अब से उसे हाथ भी नहीं लगाएगा.. अगर फिर भी तूने कुछ किया.. और वैशाली की शादी में कोई बाधा आई.. तो समझ लेना.. मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा"

बड़े ही क्रोधित स्वर मे शीला ने कहा.. लेकिन रसिक जैसा मर्द, किसी औरत की धमकी को ऐसे ही सुन लेने वालों मे से नहीं था

रसिक: "एक बात मेरी भी ध्यान से सुन लीजिए भाभी.. मुझे धमकाने की कोशिश मत करना.. किसी के बाप से भी नही डरता हूँ मैं.. अब आप कह रही हो तो वैशाली को तो छोड़ो, मैं अब आपको भी कभी हाथ नहीं लगाऊँगा.. ठीक है.. !! अब खुश.. !!"

शीला: "अरे पागल, मुझे छूने से कहाँ मना कर रही हूँ तुझे.. !! बस वैशाली से दूर रहना"

रसिक: "ठीक है.. जैसी आपकी इच्छा"

शीला: "तो अब मैं जाऊँ?"

रसिक: "कल से दूध देने रूखी आएगी.. साहब को कहना की उससे दूर ही रहें"

शीला: "क्यों? तू नहीं आएगा?"

रसिक: "अगर मैं आऊँगा तो वैशाली मौका देखकर मेरा लंड फिर से पकड़ लेगी.. और फिर मैं मना नहीं कर पाऊँगा"

शीला: "अरे पर दूध तो रोज मैं ही लेती हूँ ना.. !!"

रसिक: "कभी आपको उठने मे देर हो जाए.. या कहीं बाहर गई हो तब वैशाली ही दूध लेने निकलती है.. एक दिन के लिए आप बाहर क्या गई.. यह सारा कांड हो गया.. !!"

शीला: "अब वैशाली की शादी होने तक मैं कहीं नहीं जाने वाली.. तू बेफिक्र होकर दूध देने आना.. और वैसे भी.. शादी से पहले मेहमान आना शुरू हो जाएंगे.. फिर ये सब वैसे भी बंद कर देना पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आप फिक्र मत करना.. आप सोच रही हो, उतना गिरा हुआ नही है ये रसिक.. !!"

शीला: "ठीक है.. तो मैं चलूँ?? और हाँ.. मेरी बात का बुरा मानने की जरूरत नहीं है.. और आज तुझे तेरी भाभी की बबले नजर क्यों नहीं आ रहे? मुझे देखने या छूने से कहाँ मना किया है मैंने?? " खड़े होकर अपने स्तनों को टाइट कर रसिक के सामने पेश करते हुए शीला ने कहा

"अरे क्या भाभी.. आप तो बस आप ही हो.. एक नंबर.. आप जैसा कोई कहाँ हो सकता है भला.. !!! चलिए भाभी.. तो अब मैं अपने काम पर लग जाऊँ?" रसिक ने कहा

"काम पर क्यों?? मेरे शरीर से ही लग जा.. !!" कहते हुए रसिक की कुहनी पर अपने स्तनों को दबाते हुए रसिक को गुदगुदी करने लगी शीला

"सुन भी रहा है.. !! ये भी तो काम ही है.. बाकी सारे काम मेरे जाने के बाद कर लेना.. पहले तेरे सामने आकर जो काम पड़ा हुआ है उसे कर" शीला ने अपना पल्लू गिराते हुए कहा

शीला की बातों से रसिक नाराज था पर फिर भी शीला ने अपने अनोखे अंदाज मे रसिक के शरीर से अपने भरे भरे स्तनों को दबाकर उसका खड़ा कर दिया.. रसिक का हाथ अपने ब्लाउज के अंदर डालकर वो पाजामे मे हाथ डालकर उसके लंड से खेलती रही.. रसिक ने शीला का एक स्तन बाहर निकालकर चूसना शुरू कीया ही था की तब शीला अपना स्तन छुड़वाकर वो नीचे बैठ गई.. और रसिक का लंड चूसने लगी

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आज लंड चूसते वक्त शीला को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था.. सोच रही थी.. ये वही लंड है जो वैशाली की चूत मे गया होगा.. बाप रे.. बेचारी फूल सी कोमल बच्ची ने कैसे इतना मोटा लंड लिया होगा.. !!

रसिक का लंड शीला की लार से चमक रहा था.. मुठ्ठी मे उसे मोटे मूसल को पकड़े हुए शीला ने कहा "एक नजर इस लंड को तो देख.. ऐसा तगड़ा लंड भला वैशाली कैसे ले पाएगी? उसकी बुद्धि तो घास चरने गई थी पर तेरा दिमाग भी नहीं चला था क्या???"

रसिक: "अब ऊपर वाले ने मुझे ऐसा लंड दिया उसमे मेरी क्या गलती.. !! वैसे आपके भी बबले कितने बड़े बड़े है.. कविता भाभी से तो पाँच गुना ज्यादा बड़े है... !!" शीला के दोनों स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए रसिक ने कहा

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शीला: "मैं समझती हूँ रसिक.. पर जरा सोच.. सायकल पर हाथी को बिठायेंगे तो क्या होगा??"

रसिक: "आप वैशाली को कम मत समझना.. मेरा आधा लंड तो बड़ी आसानी से ले लिया था.. हिम्मत तो उनकी आपसे भी एक कदम ज्यादा है.. हाँ, कविता भाभी बिल्कुल डरपोक है.. जरा सा भी अंदर लेने की कोशिश नहीं की"

शीला: "अंदर डालने से पहले तूने उसकी चाटी थी?"

रसिक: "हाँ भाभी.. चाट चाटकर पूरा छेद गीला कर दिया.. उसके बाद ही अंदर डाला था मैंने.. !!"

रसिक के अंडकोशों को चाटते हुए शीला ने पूछा "तूने ऊपर चढ़कर डाला था क्या?"

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रसिक: "गोदी मे उठाकर.. फिर उन्हें उठाकर मैं खड़ा हो गया.. क्योंकि कविता भाभी और वैशाली को ये देखना था की कितना अंदर गया"

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रसिक का आधा लंड मुठ्ठी मे दबाकर रसिक को दिखाते हुए शीला बोली "क्या इतना अंदर गया था?"

रसिक: "हाँ, लगभग उतना तो गया ही था.. कविता भाभी ने बाकी का आधा लंड पकड़कर रखा हुआ था.. ताकि बाकी का लंड अंदर ना घुस जाएँ.. पर सच कहूँ तो.. उससे ज्यादा अंदर जाने की गुंजाइश भी नहीं थी.. "

शीला: "जाहीर सी बात है.. वैशाली की जवान चूत मे इससे ज्यादा अंदर जाना मुमकिन ही नहीं है.. हाँ, मेरी और अनुमौसी की बात अलग है"

लंड चूसते चूसते शीला ने सब कुछ उगलवा लिया रसिक से.. और उस दौरान.. जब उसके भोसड़े से पर्याप्त मात्रा मे गीलापन टपकने लगा तब वो खड़ी हो गई और रसिक के कंधों पर जोर लगाते हुए उसे नीचे बीठा दिया.. अपने दोनों हाथों से भोसड़े के होंठों को फैलाकर रसिक के मुंह पर रख दिया.. रसिक ने अपनी खुरदरी जीभ से शीला के भोसड़े मे खजाना-खोज का खेल शुरू कर दिया.. भीतर के गरम गुलाबी हिस्से को कुरेद कुरेदकर चाटने लगा. अपनी उंगलियों से शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ भी रहा था..

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शीला की चूत से अब रस की धाराएँ बहते हुए रसिक के पूरे चहरे को तर कर रही थी.. अब रसिक उठा.. शीला के दोनों हाथ दीवार पर टिकाकर.. उसने चूतड़ों के बीच से शीला के गरम सुराख को ढूंढकर अपने सेब जैसे बड़े सुपाड़े को रख दिया.. एक ही धक्के मे उस गीले भोसड़े ने रसिक के लंड को निगल लिया.. इंजन मे जैसे पिस्टन आगे पीछे होता है.. बिल्कुल वैसे ही, शीला के भोसड़े को धनाधान चोदने लगा रसिक.. शीला तब तक चुदवाती रही जब तक की रसिक के लोड़े के अंजर-पंजर ढीले नहीं हो गए.. !! रसिक के मजबूत लंड से २४ केरेट सोने जैसा शुद्ध ऑर्गजम प्राप्त नहीं कर लिया.. तब तक शीला ने उसे छोड़ा नहीं..

जब उसके भोसड़े ने संतुष्टि के डकार मार लिए.. तब शीला कपड़े पहने और घर जाने के लिए निकली..

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