बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गयाशीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
मदन: "क्या कहूँ शीला.. !! कहाँ से शुरुआत करूँ? मुझे बेहद गिल्टी फ़ील हो रहा है.. शर्म आ रही है.. "
शीला: "मदन, तुझे दूध से भरे हुए स्तन बहोत पसंद है ना.. !! मुझे पता है.. दूध से रिसते हुए स्तन देखकर तू अपने आप को रोक ही नही पाता.. वैशाली के जनम के बाद तू कैसे मेरे स्तनों से दूध चूसता था.. !! याद है ना तुझे.. !! मुझे रीक्वेस्ट करनी पड़ती थी की वैशाली के लिए थोड़ा दूध छोड़ दे.. दिन में दस बार तू मेरे स्तन दबाता था.. कभी कभी तो मम्मी-पापा.. या किसी मेहमान की मौजूदगी में भी तू किचन में घुसकर.. ब्लाउस के हुक खोलकर स्तन चूस लेता था.. मुझे तो अब अभी वो सारे दिन याद है!!"
मदन: "हाँ.. पर अभी वो बात क्यों याद आई? फिर से प्रेग्नन्ट होना है क्या तुझे?"
शीला ने शरमाकर मदन की नाक खींचते हुए कहा "वो रास्ता तो कब से बंद हो गया है.. मेरा तो मेनोपोज़ भी हो चुका है.. अब में सुरक्षित जॉन में हूँ.. तू कितना भी लंड घुसा ले.. कितने भी धक्के लगा ले.. कितना भी वीर्य मेरे अंदर भर दे.. अब कुछ नही हो सकता.. !!"
मदन: "मतलब अब हमारा बिना किसी डर के सेक्स को भोगने का समय शुरू हो चुका है.. एक बात पूछूँ?"
शीला: "हाँ.. पूछ ना.. !!"
मदन: "कभी तुझे किसी गैर मर्द से चुदवाने का मन होता है? जीवन में कभी तो दिल किया होगा ना की रोज रोज घर का खाना खाती हूँ.. एक बार बाहर की बिरियानी भी चख लूँ.. !!"
मदन की ये बात सुनते ही शीला के जिस्म में झनझनाहट सी होने लगी
शीला: "चुप साले नालायक.. कुछ भी बोलता है.. शर्म नही आती तुझे!!" कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा
मदन: "शीला, तुझे छोड़कर मैंने किसी ओर के साथ ये कभी नही किया था.. मुझे किसी ओर के साथ सेक्स करके कैसा लगेगा ये मालूम ही नही था.. पर आज तुझे मित्रभाव से कह रहा हूँ.. किसी ओर के साथ सेक्स करने में बड़ा ही मज़ा आता है!! उत्तेजना चार गुना हो जाती है.. पर इसका ये मतलब नही है की मुझे फिरसे वो सब करना है.. मैं तो केवल ये पूछ रहा हूँ की क्या तुझे भी ऐसा करने का मन करता है क्या?"
शीला: "मतलब तुझे उस विदेशी के साथ भी बहोत मज़ा आया होगा.. कैसा लगा था तुझे? मुझे सब कुछ बता न यार.. लगता है तू अभी भी मुझसे कुछ छुपा रहा है.. खुलकर नही बता रहा"
मदन: "शीला, तू एक बार मेरे साथ विदेश चल.. तुझे पता चलेगा की लोग वहाँ कितनी खुली और स्वतंत्र ज़िंदगी जीते है.. वाकई.. ज़िंदगी तो उनकी तरह ही जीनी चाहिए.. !!"
शीला: "तेरी पत्नी.. किसी गैर-मर्द के साथ संबंध रखें तो क्या तुझे अच्छा लगेगा?" एकदम वाहियात प्रश्न पूछ रही थी शीला.. ऐसा कौन सा पति होगा जो अपनी बीवी को किसी और की बाहों में देखना पसंद करेगा??
मदन: "ऑफ कॉर्स मुझे अच्छा नही लगेगा.. पर अगर तुझे पसंद हो तो मैं तुझे रोकूँगा नही.."
शीला: "वो सब तो ठीक है.. पर सच बता.. तुझे दुख होगा या नही?"
मदन: "देख शीला.. अगर अभी यहाँ कोई ऐसी स्त्री आ जाए.. जिसके स्तनों में दूध भरा हो.. तो मैं अभी तेरे सामने ही उसके बॉल दबाकर चूस लूँगा.. पर उसका ये मतलब जरा भी नही है की मुझे तुझसे प्यार नही है.. अब तुझे कैसे समझाऊँ मेरे प्रेम की व्याख्या.. "
शीला: "मदन, मैं तेरी ये इच्छा पूरी कर सकती हूँ.. बोल है इच्छा?"
मदन उत्साहित हो गया "क्या सच में ये मुमकिन है??"
शीला के दिमाग में रूखी का खयाल आ गया.. उसने कहा "वैशाली के जाने के बाद, मैं तेरी ये इच्छा पूरी करवा दूँगी.. ये मेरा वादा है"
तभी उनकी बातों में डोरबेल बजने से विक्षेप हुआ.. शीला ने जाकर दरवाजा खोला.. वैशाली थी.. तेज कदमों से वो घर के अंदर घुसी
वैशाली: "मम्मी, मुझे निकलना है.. मेरा सामान पेक है.. पीयूष, मौसम और फाल्गुनी तैयार बैठे है.. कविता साथ नही चल रही.. उसने कहा है की वो शायद कल आप लोगों के साथ आएगी.. आप दोनों कल मुझे लेने आओगे ना... !! पापा, मैं कोई बहाना नही सुनने वाली. मम्मी को भी अच्छा लगेगा.. आप नही थे तो मम्मी पूरा दिन घर पर बैठी रहती थी.. थोड़ा सा घूम लेगी तो उसका मन बहल जाएगा"
मदन: "हाँ बेटा.. आएंगे तुझे लेने.. !!"
"थेंक यू पापा.. " कहते हुए वो अपने कमरे में चली गई और तैयार होने लगी.. वो जाने के लिए इसलिए ज्यादा उत्साहित थी क्योंकि वो मौसम के पापा को देखना चाहती थी.. उस इंसान को जिसने नाजुक कच्ची कुंवारी फाल्गुनी की चूत फाड़ दी थी..
करीब बीस मिनट में वैशाली तैयार होकर बाहर निकली.. उसका लो-नेक टीशर्ट.. और उसमे से उभरकर बाहर निकले उसके तंदूरस्त स्तन.. मदन बस देखता ही रह गया.. दोनों को बाय कहकर वैशाली कविता के घर चली गई
शीला: "चलो.. अब हम आराम से बात कर सकेंगे.. " मदन को आँख मारकर कातिल मुस्कान के साथ शीला ने कहा.. शीला की इन नखरों का दीवाना था मदन.. अब पति पत्नी पूरी रात अकेले आराम से काट पाएंगे..
शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे..
शीला: "मदन, खाने में क्या बनाउ??"
मदन: "मेरा मन कर रहा है की तुझे ही कच्चा चबा जाऊँ.. तुझसे बेहतर ओर कोई डिश नही हो सकती" एकांत मिलते ही पतियों की बंदरबाजी शुरू हो जाती है
मदन ने शीला को बाहों में भरकर दबा दिया.. शीला ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़कर अपने आप को मदन के हवाले कर दिया..
शीला के उन्नत स्तनों को दबाते हुए मदन ने कहा "चल.. आज हम बाहर डिनर करेंगे.. फिर पार्क में आराम से बैठकर बातें करेंगे.. " शीला ने हाँ कहते हुए गर्दन हिलाई
मदन: "शीला.. मेरी एक इच्छा पूरी करेगी?"
शीला: "तू बस अपनी इच्छा बता.. ऐसा कभी हुआ है की तेरी इच्छा को मैंने अधूरी रखा हो?"
शीला के ब्लाउस के अंदर उँगलियाँ डालकर उसके गोरे गोरे स्तनों को दबाते हुए मदन ने कहा "शीला.. मैं आज तुझे फेशनेबल अंदाज में देखना चाहता हूँ.. तू आज एकदम हॉट कपड़े पहनकर मेरे लिए तैयार हो जा.. आज तो सारे शहर को दिखाना चाहता हूँ की मेरी पत्नी कितनी सुंदर है"
शीला: "मदन, क्या पागलों जैसी बात कर रहा है.. !! ये कोई उम्र है मेरी फेशनेबल कपड़े पहनने की?? और मेरे इस भारी भरकम शरीर पर फिट हो ऐसे फेशनेबल कपड़े है भी नही.. " शीला थोड़ी सी शरमा गई..
मदन: "तेरे पास नही है तो वैशाली के बेग में देख.. उसके पास तो वैसे कपड़े होंगे ना.. !! और वैसे भी वैशाली का साइज़ भी तेरे बराबर ही है.. हल्का सा उन्नीस-बीस का फरक होगा.. पर उतना तो चलता है"
शीला: "अरे पागल.. उसका ड्रेस तो मुझे फिट हो जाएगा.. पर ये मेरे बबलों का साइज़ तो देख.. !! उसकी साइज़ से डबल साइज़ है मेरी.. इन्हें मैं वैशाली के कपड़ों में कैसे फिट करूँ?? दबा दबाकर तूने कितने बड़े कर दिए है.. "
मदन: "एक बार मुझे तो पहन कर दिखा.. अगर ठीक ना लगे तो मत पहनना.. प्लीज एक बार ट्राइ तो कर.. !! रुक एक मिनट.. मैं ही कोई ड्रेस निकालकर देता हूँ"
वैशाली के वॉर्डरोब से एक ड्रेस निकालकर उसने शीला को दिया.. पतले कपड़े से बना स्लीवलेस ड्रेस शीला को देकर वो दूसरा कोई ड्रेस ढूँढने लगा.. ढूंढते ढूंढते उसके हाथ में वैशाली की ब्रा और पेन्टी आ गई.. पेड़ वाली महंगी ब्रा को हाथ में लेकर उसकी कटोरी पर हाथ फेरते हुए मदन की सिसकी निकल गई..
शीला ने ये देखकर कहा "पागल हो गया है क्या?? ये क्या कर रहा है मदन.. ?? वो वैशाली की ब्रा है.. तुझे ईसे छूना नही चाहिए था" शीला गुस्सा हो गई.. मदन ने जवाब नही दिया.. ब्रा के कप को नाक के पास ले जाकर उसने एक लंबी सांस भरी.. कटोरी की टॉप पर निप्पल वाले हिस्से को किस करके उसने उत्तेजित होते हुए ब्रा को मुठ्ठी में दबा दिया.. जैसे वो वैशाली के......!!!
शीला: "बाप रे.. ये तुझे क्या हो गया है मदन.. !! ऐसा करते हुए तुझे शर्म नही आती?" मदन के हाथ से ब्रा छीनकर उसने वॉर्डरोब में फेंक दी.. और मदन को बाथरूम में धकेलकर नहाने के लीये भेजा.. "जा जल्दी.. और तैयार हो जा..!!" मदन को चिढ़ाने के लिए उसने बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.. और मन में सोचने लगी.. मदन ने आखिर ऐसा क्यों किया?? अपनी बेटी की ब्रा देखकर दबाते हुए वो क्या सोच रहा होगा? हाथ में लेकर सूंघते हुए उसे शर्म भी नही आई?? आज से पहले तो कभी उसने ऐसा कुछ नही किया था.. कहीं वो वैशाली को गंदी नज़रों से तो नही देखता होगा? विदेश में जाकर ये सारे चोंचले तो नही सिख आया होगा वो??
मदन नहाने के लिए बाथरूम तो गया.. पर जिस चीज से वो अपने आप को दूर रखना चाहता था वो सब खुद ही सामने से चलकर उसके पास आ रही थी.. बाथरूम को कोने में वैशाली की इस्तेमाल की हुई ब्रा और पेन्टी पड़ी थी.. खुद को काफी बार रोकने के बावजूद उसकी नजर उस गीली पेन्टी पर बार बार जा रही थी.. सर झटका कर उसने अपने मन के विकृत विचारों को दूर धकेलना चाहा.. पर अपने आप को रोक नही पाया.. यंत्रवत उसका हाथ वहाँ चला गया.. वैशाली की पेन्टी हाथ में लेकर मदन ध्यान से देखने लगा.. पेन्टी का जो हिस्सा चूत से चिपका हुआ होता है.. वहाँ टिपिकल सफेद धब्बे को देखकर मदन की जीभ वहाँ पहुँच गई.. विचित्र गंध और स्वाद से मदन का लंड खंभे की तरह खड़ा होकर लहराने लगा.. पेन्टी की मादक गंध को अपने नथुनों में भरते हुए मदन ने अपने लंड पर पेन्टी को रगड़ा.. दिमाग पर ऐसा नशा छा रहा था की जैसे वो किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गया हो.. आँखें बंद हो गई.. पता नही अचानक उसे क्या हुआ.. वैशाली की पेन्टी को अपने मुंह में डाल दिया.. और ऐसे स्वाद लेने लगा जैसे वैशाली की चूत चाट रहा हो.. साथ ही वैशाली की ब्रा को अपने लंड पर लपेटकर हिलाने लगा.. एक ही मिनट में उसके लंड ने पिचकारी छोड़ दी..
जब वो नहाकर बाहर निकला.. तब शीला वो टॉप पहनकर खड़ी थी जो संजय ने उसे गोवा में दिलाया था.. हाफ़िज़ के खींचने से थोड़ा सा फटा हुआ हिस्सा शीला ने धागे से सील दिया था.. मदन शीला के बिना ब्रा के उरोजों को देखकर.. उसकी उभरी हुई निप्पल के आकार को देखकर बावरा सा हो गया
मदन: "शीला यार.. अगर ये पहन कर हम डिनर करने गए.. तो वहाँ होटल के सारे मर्द पेंट में ही झड़ जाएंगे.. " शीला के दोनों स्तनों को टॉप के ऊपर से मसलते हुए मदन ने कहा
शीला: "वो सब तो ठीक है मदन.. पर ये पहनकर में सोसाइटी से बाहर कैसे निकलूँ? शाम के वक्त सब बाहर बैठे होंगे"
मदन: "मेरे पास उसका भी उपाय है.. तू इसके ऊपर साड़ी पहन ले.. शाम का वक्त है.. अभी अंधेरा हो जाएगा.. फिर वहाँ रेस्टोरेंट के बाथरूम में जाकर तुम साड़ी निकाल देना.. "
इस टॉप को पहनते ही शीला के दिलोदिमाग में गोवा की यादें ताज़ा हो गई..
मदन तो एकदम पागाल सा हो गया शीला को ऐसे कपड़ों में देखकर.. अब तक उसने शीला को सिर्फ साड़ी में ही देखा था.. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की वेस्टर्न कपड़ों में उसकी बीवी इतनी गरम लगेगी..
शीला ने टॉप के ऊपर साड़ी पहन ली.. दोनों चलते हुए बाहर निकले.. और ऑटो लेकर एक शानदार रेस्टोरेंट पर पहुंचे.. बाथरूम में जाकर शीला ने साड़ी निकाल दी.. और पतले टाइट टॉप पहनकर बाहर निकली.. उसे देखकर पूरे रेस्टोरेंट में हाहाकार मच गया..
अनगिनत बार जिसे नंगी देख चुका था उस शीला को.. आज इस टॉप में देखकर मदन को एकदम नया नया लग रहा था.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो अपनी पत्नी के नही.. पर अपनी बेटी की भरी हुई छातियाँ देख रहा हो..
"शीला, ये टॉप वैशाली का है क्या??" टेबल पर बैठते हुए मदन ने पूछा
शीला हिचकिचाई.. "हाँ मदन.. उसका कोई पुराना टॉप ही है.. वैशाली को तो याद भी नही होगा.. उसके वॉर्डरोब के एकदम नीचे पड़ा हुआ था.. लड़की इतने नए कपड़े खरीद लाती है फिर पुराने कपड़ों को देखती तक नही"
मेनू कार्ड देखते हुए मदन ने कहा "तुझे क्या खाना है.. ? मैं तो पालक पनीर और नान मँगवाने की सोच रहा हूँ"
शीला: "मेरे लिए रोटी और दाल-फ्राई मँगवा ले.. मुझे ज्यादा हेवी नही खाना है.. ज्यादा खा लूँगी तो रात को मज़ा नही आएगा" शैतानी मुस्कान के साथ उसने मदन से कहा
सामने के टेबल पर बैठ आदमी.. टकटकी लगाकर शीला को देख रहा था.. शीला अब अपने अंगों को ढँकने की स्थिति में नही थी.. साड़ी पहनी होती तो पल्लू से अपने स्तन ढँक लेती और अपने विराट स्तन युग्मों को छुपा लेती.. पर इस छोटे से पतले टॉप से कुछ भी ढँक पाना नामुमकिन था..
शीला: "मदन.. देख उस नालायक को.. मुझे देख रहा है चूतिया.. " मदन के पैर पर लात मारकर गुस्से से बोली
मदन: "अरे मेरी जान.. तुझे पता है तू कैसी लग रही है?? मैं अब तक तुझे हजारों बार नंगी देख चुका हूँ और लाखों बार तेरे बबले दबा चुका हूँ फिर भी मेरा लंड अंदर ठुमक रहा है.. तो देखने वालों का क्या दोष?? बस देख ही तो रहे है बेचारे.. तू भी आनंद ले.. चिंता मत कर"
शीला को संकोच हो रहा था.. लेकिन मदन की मौजूदगी के कारण वह सलामत महसूस कर रही थी.. वैसे संजय ने गोवा में भी कुछ ऐसी ही चूतियागिरी की थी.. पर तब वो शहर से दूर थे.. यहाँ तो वो अपने पति के साथ थी इसलिए डर की कोई बात नही थी..
शीला: "मदन, मेरी एक इच्छा है.. !!" पानी का घूंट भरते हुए उसने कहा
प्रश्नसूचक नजर से मदन ने शीला के सामने देखा
शीला: "हम कहीं घूमने चले तो.. ?? दो चार दिनों के लिए.. वहाँ मैं ऐसे कपड़े पहनकर आराम से घूम सकूँगी.. और तेरे साथ एन्जॉय भी करूंगी.. यहाँ हमारे शहर में तो कोई न कोई देख लेगा इसी बात का डर सताता रहता है"
खाने का ऑर्डर देकर दोनों इंतज़ार कर रहे थे उसी दौरान एक नए जानदार प्लॉट का निर्माण हो रहा था
थोड़ी ही देर में वेटर आकर खाना परोस गया.. खाने की शुरुआत करते हुए मदन ने कहा "कहाँ जाना है बोल.. !! तू जहां कहेगी वहाँ चलेंगे"
शीला: "वो तो बाद में तय करेंगे.. पर पहले ये वैशाली और संजय का कुछ करना पड़ेगा" गंभीर चर्चा की शुरुआत की शीला ने..
मदन: "क्यों? क्या तकलीफ है वैशाली को? दामाद जी से झगड़ा हुआ है? या फिर से संजय कुमार ने कोई नया कांड कर दिया?? फिर से उसने किसी से कर्ज लिया होगा.. "
शीला: "वो तो मुझे पता नही है.. पर वैशाली का कहना है की वो अब संजय कुमार के साथ ओर नही रह सकती"
शीला ने खाते खाते मदन को अपनी बेटी वैशाली के वैवाहिक जीवन से संलग्न सारी तकलीफों का ब्योरा देकर मदन को सत्य हकीकत से अवगत कराया..
कोई भी बाप.. कितना भी अमीर और शक्तिशाली क्यों न हो.. पर दामाद के आगे वह अशक्त हो जाता है.. मदन का खाने से मन ही उठ गया.. पर शीला का मूड खराब न हो इसलिए उसने चेहरे से जताया नही.. और न चाहते हुए भी खाता रहा..
कुछ देर सोचकर वो बोला "शीला, अगर वैशाली को कोई तकलीफ हो.. अपने पति से या ससुराल से.. तो उसे उस तकलीफ से निकालना मेरी जिम्मेदारी है.. तू वैशाली से बोल दे.. की पापा आ गए है और डरने की या चिंता करने की कोई जरूरत नही है.. तू ज्यादा सोच मत.. मैं सब संभाल लूँगा.. आने दे उसे फिर बात करते है.. अब तू सारी चिंता छोड़कर आराम से खाना कहा.. "
मदन के इस आत्मविश्वास भरे जवाब को सुनकर शीला को बहोत अच्छा लगा.. खाना खतम कर जब मदन बिल चुकाने काउन्टर पर गया तब शीला ने उत्सुकतावश उस आदमी के सामने देखा जो उसे तांक रहा था.. जैसे ही दोनों की नजरें एक हुई.. उस आदमी ने अपनी दो उंगलियों से चूत का आकार बनाया और दूसरे हाथ की उंगली से अंदर बाहर करने लगा.. शीला समझ गई उसका इशारा.. मदन काउन्टर पर खड़ा था.. उसका ध्यान शीला की तरफ नही था.. शीला ने उस आदमी को हल्की सी मुस्कान दी..
पेमेंट कर जैसे ही मदन आया.. शीला मुसकुराते हुए उसके हाथों में हाथ डालकर साथ चल दी.. और उस अनजान शख्स को इशारे से बाय कहा..और अंगूठा दिखाते हुए चिढ़ाने लगी.. मदन शीला के आगे चल रहा था इसलिए उसे शीला की इन हरकतों के बारे में पता न चला..
चलते चलते वो दोनों मुख्य सड़क की पास बनी बैठक पर जा बैठे.. रात के साढ़े दस बज रहे थे.. ठंडी हवा शीला की निप्पलों को सख्त करने का काम कर रही थी.. शीला की मजबूरी ये थी की रात के १२ बजे तक वो घर नही जा सकती थी.. वरना किसी पड़ोसी के देख लेने का डर था.. बातों ही बातों में एक घंटा व्यतीत हो गया.. सर्द रात में साढ़े ग्यारह बजे सड़क पर आवाजाही बिल्कुल न के बराबर थी.. रात का अंधेरा अपना प्रभाव स्थापित कर चुका था.. सारी दुकानें भी बंद हो चुकी थी.. चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था..
ऐसा एकांत मिलते ही मदन ने शीला के कंधों पर हाथ रखकर उसके टॉप के अंदर अपनी हथेली डाल दी.. उसका पूरा एक स्तन पकड़ कर मसलते हुए उसने शीला का हाथ अपने लंड पर रख दिया..
शीला: "आह्ह मदन.. क्या कर रहा है.. ऐसे पब्लिक रोड पर ऐसा करता है कोई?? जरा शर्म कर.. ये तेरा तो एक ही पल में तैयार भी हो गया.. चल अब घर चलते है.. नहीं तो तू यहीं पर अंदर डालने की जिद करेगा.. एक बार गरम होने के बाद तुझे कुछ भी होश नही रहता.. पता है न तुझे??"
मदन ने आसपास देखकर तसल्ली कर ली की कोई आ-जा नही रहा था.. उसने शीला के होंठों पर एक जबरदस्त चुंबन दिया और उसके होंठ चूसने लगा.. शीला की मुठ्ठी अपनेआप ही मदन के लंड पर सख्त हो गई.. वो ये भी भूल गई की यहाँ खुली सड़क पर ये सब छपरीबाजी करना उन्हें शोभा नही देता था.. दोनों एक दूसरे के अंगों को टटोलने में मशरूफ़ थे तभी उनके पास अचानक एक जीप आकर खड़ी हो गई
शीला और मदन दोनों घबरा गए.. शीला ने मदन के लंड से हाथ हटा लिया और अपने टॉप से उसका हाथ झटक दिया.. अपने आप को ठीकठाक करके दोनों शरीफ होकर बैठ गए..
जीप से एक रुआबदार पुलिस इंस्पेक्टर बाहर उतरा.. छह फुट ऊंचा.. बड़ी बड़ी मुछ.. डरावना सा.. देखते ही शीला की गांड फट गई
मदन की ओर देखकर इंस्पेक्टर ने धमकी भरे सुर में कहा "इतनी रात गए क्या कर रहे हो तुम लोग यहाँ?"
मदन: "हम होटल पर डिनर करने गए थे.. थोड़ी देर फ्रेश होने के लिए यहाँ बैठे थे सर.. "
शीला को एक नजर देखकर इंस्पेक्टर ने कहा "क्यों? फ्रेश होने के लिए घर में बेडरूम नही है?"
मदन: "हम पति-पत्नी है.. मेरा नाम मदन है और ये मेरी पत्नी है.. शीला.. सर हम कोई लफड़ेबाज कपल नही है.. आप हमे गलत समझ रहे है:
इंस्पेक्टर: "ओ मिस्टर मदन.. आधी रात को खुली सड़क पर बैठकर बीभत्स हरकतें तुम कर रहे हो और गलत मुझे बता रहे हो.. !! चलो अपना नाम, नंबर और अड्रेस बताओ.. जल्दी.. !!"
बिना घबराएं मदन ने अपनी सारी डिटेल्स लिखा दी.. शीला जबरदस्त डरी हुई थी.. मदन की गैर-मौजूदगी में जो भी कांड उसने कीये थे.. उन सारी बातों के खुल जाने का अनजाना सा डर उसे सताने लगा था..
शीला के टॉप से उभर रही निप्पलों की ओर बार बार इंस्पेक्टर का ध्यान जा रहा था..
इंस्पेक्टर: "और कितने देर तक यहाँ बैठे रहने का इरादा है? बारह तो बज चुके है.. पूरी रात यहीं गुजारनी हो तो बिस्तर भिजवा दूँ?? " शीला के दोनों बबलों के बीच की खाई को देखकर अपने लंड को एडजस्ट करते हुए इंस्पेक्टर ने कहा
"साहब.. हम बस निकल ही रहे है" कांपते हुए शीला ने कहा
"अभी तो कोई ऑटो वाला भी नही मिलेगा.. जाओगे कैसे.. ?? चल कर?? सुबह तक पहुँचोगे.. और ऐसे कपड़ों में.. बीच रास्ते कोई मवाली से पाला पड़ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. चलिए.. मैँ उसी तरफ जा रहा हूँ.. आप लोगों को छोड़ दूंगा.. "
पुलिस वाले बड़े शातिर होते है.. उन्हें घर छोड़ने के बहाने वह इंस्पेक्टर यह चेक करना चाहता था की जो पता मदन ने लिखवाया वो सही था या नही.. पर मदन ने बिना डरे शीला से कहा
मदन: "शीला, बैठ जा.. अच्छा हुआ जो यह साहब मिल गए.. वरना इतनी रात गए हमे कुछ नही मिलता"
शीला जीप में पीछे बैठ गई.. साथ में मदन बैठ गया.. इंस्पेक्टर भी पीछे की सीट पर शीला के सामने बैठ गया.. मदन को ये आश्चर्य हो रहा था की आगे की सीट खाली होने के बावजूद इंस्पेक्टर पीछे क्यों बैठा था?? जीप में और दो लोग भी बैठे हुए थे जो शीला और मदन को विचित्र नजर से देख रहे थे.. एक बार को तो उसे शक भी हुआ की कहीं ये नकली पुलिस वाले तो नही है ना.. !! आज कल ऐसी काफी घटनाएं हो रही थी.. पर आगे के डैशबोर्ड पर पड़े वायरलेस सेट को देखकर उसे यकीन हो गया की यह असली पुलिस ही थी..
अपने भटक रहे विचारों को ढकेलेने के लिए मदन खिड़की से बाहर अंधेरी सड़क को देखने लगा.. शीला को बहोत गुस्सा आया.. ये मदन बाहर क्या देख रहा है? मेरी तरफ क्यों नही देख रहा.. !!
कोई कुछ बोल नही रहा था.. तभी आगे बैठे हवालदार ने धीमे से कहा "साहब.. ये तो वही बिरादर का पता है.. जीसे आपने कल अंदर कीया था"
इंस्पेक्टर: "अच्छा?? जरा ठीक से पढ़कर कन्फर्म कर"
जीप के हलन चलन से शीला के पतले कपड़े वाले टॉप के अंदर उसके स्तन उछल रहे थे और जीप में बैठे दोनों आदमी उन स्तनों को एकटक तांक रहे थे.. ऐसी परिस्थिति आज से पहले कभी नही हुई थी शीला के साथ.. पुलिस वाले की गाड़ी में.. अनजान लोगों के बीच.. बिना ब्रा के पतला टॉप पहन कर बैठे हुए सब की नज़रों का शिकार होना.. शीला को बहोत झिझक हो रही थी और शर्म भी आ रही थी।
हवालदार: "चेक कर लिया साहब.. पक्का वही पता है.. लगता है ये दोनों भी ऐसे ही किसी कारण से आधी रात को बाहर भटक रहे होंगे"
इंस्पेक्टर: "जेन्टलमेन.. माफी चाहता हूँ.. पर आप लोगों को मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा"
मदन: "पर क्यों सर?? ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया हमने? हम दोनों पति-पत्नी है.. मैं दो सालों से विदेश था और कल ही लौटा हूँ.. इस बात की खुशी मनाने हम बाहर निकले थे.. बस इतनी सी बात के लिए आप हमें पुलिस स्टेशन क्यों ले जा रहे हो? रही बात हमारी हरकतों की.. तू उसके लिए हम दोनों माफी मांगते है आप से"
इंस्पेक्टर: "देखिए.. टेंशन मत लीजिए.. उन सारी बातों से मुझे कोई दिक्कत नही है.. इतनी सुंदर पत्नी बगल में बैठी हो तो थोड़ी सी छेड़छाड़ करने का मन होना लाज़मी है.. मैं समझ सकता हूँ.. पर फिलहाल आपका पुलिस स्टेशन आना जरूरी है.. चिंता मत कीजिए.. स्टेशन रास्ते में ही है.. और बाद में मेरी जीप आपको घर छोड़ जाएगी"
अब तक चुप बैठी शीला को ये लगने लगा की इंस्पेक्टर मदन को गोल गोल घुमा रहा है.. अब इस केस को अपने हाथ में लेना होगा.. नही तो ये लोग मेरी और मदन की इज्जत का फ़ालूदा बना देंगे.. इतनी छोटी बात को खींचकर लंबा कर रहे है"
मदन: "कोई बात नही सर.. कानून की मदद करना मेरा फर्ज है.. पर मेरी आपसे एक विनती है.. अभी मेरी पत्नी पर्सनल ड्रेसिंग में है.. प्लीज.. अगर हम पहले मेरे घर जाए और कपड़े चेंज करने के बाद पुलिस स्टेशन पहुंचे तो?? हो सकता है की पुलिस स्टेशन में थोड़ा वक्त लग जाए.. शायद सुबह भी हो जाएँ.. तो मेरी पत्नी को इन कपड़ों में काफी तकलीफ होगी.. समझने की कोशिश कीजिये सर, प्लीज"
इंस्पेक्टर ने कुछ सोचकर कहा " एक काम करते है.. पहले आपकी बीवी को घर छोड़ देते है फिर आप मेरे साथ स्टेशन चलिए"
शीला: "मदन.. तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं साहब से बात करूँ?"
मदन की इजाजत का इंतज़ार कीये बगैर ही शीला ने केस अपने हाथ में ले लिया.. वो मदन को अकेले स्टेशन भेजना नही चाहती थी.. मदन काफी सीधा-साधा आदमी था.. और उसे पक्का यकीन था की मदन के सिम्पल जवाबों का ये पुलिस वाले हजार अलग अलग मतलब निकालकर उसे फंसा देंगे..
सामने बैठे हवालदार के पैर से पैर टकराते हुए.. शीला ने इंस्पेक्टर की आँखों में देखकर नैन मटकाते हुए कहा "सर, चलिए.. हम पहले थाने चलते है.. मेरे पति वहाँ हो तब मैं घर पर अकेले बैठकर क्या करूंगी? मुझे इन कपड़ों में वहाँ आने में कोई दिक्कत नही है" शीला की बिंदास बातों से इन्स्पेक्टर भी सोच में पड़ गए.. फिर उस हवालदार ने.. जिसके पैर से शीला का पैर टकरा रहा था.. उसने इंस्पेक्टर के कान में कुछ कहा
इंस्पेक्टर: "ठीक है.. पहले हम आपके घर चलते है.. और फिर स्टेशन साथ चले जाएंगे"
शीला: "सर, अगर पोसीबल हो तो ऊपर लगी लाल लाइट बंद कर दीजिए.. अगर किसी ने देख लिया तो बेकार ही बदनामी हो जाएगी हमारी"
इन्स्पेक्टर: "आधी रात को ऐसे कपड़े पहनकर निकलने में बदनामी नही हुई थी?? ये तो अच्छा हुआ की आज मेरी ड्यूटी थी तो बच गए आप दोनों.. वो दूसरा इंस्पेक्टर होता तो अब तक आपका टॉप उतर चुका होता"
इंस्पेक्टर की बात सुनकर मदन बहोत डर गया.. वह कुछ बोलने जा रहा था तभी शीला ने उसे रोक दिया
"लेकिन सर लाइट बंद करने में आपको क्या दिक्कत है??" कहते हुए शीला ने फिर उस हवालदार के पैर से अपनी जांघों का स्पर्श किया
तुरंत उस हवालदार ने कहा "बंद कर देते है न सर.. !!" आखिर शीला की रिश्वत काम कर गई
हवालदार: "एक काम करते है सर.. मैं गाड़ी दूर खड़ी रखूँगा.. आप इनके साथ उनके घर चले जाइएगा"
इन्स्पेक्टर: "हाँ ये बात भी ठीक है.. तू सामने उस खंभे के नीचे गाड़ी खड़ी कर.. मैं इन लोगों के साथ जाता हूँ"
गाड़ी से उतरकर मदन, शीला और इंस्पेक्टर तीनों मदन के घर पहुंचे.. घर के अंदर घुसते ही इंस्पेक्टर की पैनी नजर पूरे घर को छानने लगी.. शीला बेडरूम में जाकर साड़ी पहन कर.. ट्रे में दो ग्लास पानी लेकर बाहर आई.. एक ग्लास इंस्पेक्टर को देते हुए बोली
शीला: "सर क्या लेंगे आप? चाय, नाश्ता या कोल्डड्रिंक?"
इन्स्पेक्टर: "नो थेंक्स मैडम.. अब हम चलें? जितना जल्दी ये काम खतम हो जाए उतना जल्दी आप वापिस आ सकते है.. आपको तो अभी फ्रेश होना भी बाकी है.. आई नो" हँसते हुए इंस्पेक्टर ने कहा.. मदन और शीला दोनों शरमा गए
मदन किसी गहन विचारों में खोया हुआ था.. "साहब.. मुझे लगता है की मैंने आपको कहीं देखा है"
इंस्पेक्टर: "अच्छा?? असल में मुझे भी ऐसा लगा की आपको कहीं देखा है.. वरना इतने सॉफ्ट टोन में मैं किसी से बात नही करता.. याद कीजिए.. कहाँ मिले थे!! मुझे तो याद नही आ रहा"
ये कहकर इन्स्पेक्टर ने ग्लास शीला को वापिस दिया.. मुड़कर किचन में जा रही शीला की गोरी चिकनी पीठ को वो देखता रहा.. भारतीय पहनावे में पीठ को खुला रखना काफी सामान्य माना जाता है.. फिर भी यह एक ऐसा अंग है जो देखने वालों को उत्तेजित कर सकता है.. शीला जब बाजार जाती तब अपनी पीठ खुली ही रखती.. उसे पल्लू से ढंकती नही थी.. क्योंकि उसमे उसे कुछ गलत नही लगता था.. पर उसे कहाँ पता था.. देखने वालों को सिर्फ आगे के हिस्से में ही दिलचस्पी नही होती.. सुंदर चिकनी पीठ के आशिक भी सेंकड़ों होते है.. वैसे सुंदरता तो देखने वालों की आँखों में होती है.. ऐसा शायर लोग कहते रहते है.. किसी को खुले स्तन या ब्लाउस में छुपे स्तनों का आकर पसंद होते है.. किसी को खुले बाल.. किसी को पीठ तो किसी को कमर.. तो किसी को कूल्हें.. वैसे शीला काफी शातिर थी.. लोगों की नजर देखकर परख लेती थी की वो क्या देख रहे होंगे!!
इंस्पेक्टर की नज़रों से बेखबर शीला किचन में ग्लास रखने गई तब मदन और इंस्पेक्टर के बीच ये बातें हो रही थी
इंस्पेक्टर: "वेल मिस्टर मदन.. मेरा नाम है तपन देसाई"
मदन की आँखों में पुरानी यादें बिजली की तरह चमक कर निकल गई..
इंस्पेक्टर: "मिस्टर तपन.. जब आप आठवी कक्ष में थे.. तब आपके साथ पढ़ती शीतल से एकतरफा प्रेम करते थे.. क्यों सही कहा ना मैंने?"
इंस्पेक्टर गहरी सोच में पड़ गए.. रात के एक बजे ऐसी पुरानी बातें भला कैसे याद आती?? पर ये तो प्रेम की बात थी.. वो भी पहले प्रेम की.. ऐसी बातें इंसान मरते दम तक नही भूलता
मदन: "याद कीजिए.. आप बेंच पर बैठने गए तब पीछे किसी ने खड़ी पेंसिल रख दी थी जो आपके पिछवाड़े में घुस गई थी.. !! और आप चीख पड़े थे.. जिसके बदले आपको क्लास टीचर मंजुला मैडम ने आप के शैतान दोस्त को पूरा दिन बेंच पर खड़ा रहने की सजा दी थी!! और फिर दोपहर दो बजे आप स्टाफरूम में जाकर मंजुला मैडम से रीक्वेस्ट करने गए थे की मेरा दोस्त थक गया होगा.. उसे बैठा दे.. और आपके उस माफ करने के गुण के कारण आपको क्लास मॉनिटर बना दिया गया था .. !!"
"बस बस.. इतना सारा याद दिलाने के बाद अगर मुझे याद न आए तो लानत है मुझपर.. हमारे प्रोफेशन में याददस्त तेज होना बेहद जरूरी है.. देखा नही.. जैसे ही आपने अपना पता लिखवाया.. मेरे हवालदार ने तुरंत बता दिया.. की यह पता एक अन्य केस में भी दर्ज है.. साले मदन.. भेनचोद.. कितने सालों के बाद मिला!!! साले तेरी बीवी है या चलता फिरता एटम-बम?? क्या माल है यार!! कहीं ये हमारी क्लास वाली शीतल तो नही?? जिसने मेरा खाना-पीना-सोना सब हराम कर रखा था.. उसके बबले भी तेरी बीवी जैसे थे.. याद है ना तुझे.. !!"
मदन: "साले चूतिये.. तू अभी भी वैसे का वैसा ही है.. जब छोटा था तब मंजुला मैडम के बबलों की तस्वीर नोटबुक में बनाता था.. और फिर हमें दिखाकर हँसाता था.. अभी भी पराई औरतों को ही इस्तेमाल करता है या खुद का मशीन भी है घर पर??"
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े
इंस्पेक्टर: "है भई है.. घर पर है मेरी घरवाली.. पर ये बता.. तू इतने सालों तक कहाँ गायब था?"
मदन: "वो सब बातें बाद में करेंगे.. पहले थाने चलते है.. तू किस बात के लिए हमें थाने ले जाना चाहता है? कोई दूसरे केस की बात कर रहा था "
इंस्पेक्टर: "हाँ यार.. स्टेशन तो चलना पड़ेगा.. पर देख.. हम दोनों एक दूसरे को जानते है ये बात अभी किसी को बताना मत.. क्यों की क्या होगा.. मेरे हवालदार ये समझेंगे की घर जाकर मैंने आप लोगों के साथ कुछ सेटिंग कर ली और इसलिए नरम होकर बात कर रहा हूँ.. बात में कुछ होता नही है और बेकार में लोग शक करने लगते है.. भाभी आ रही है.. तू चुप रहना.. मैं उन्हे थोड़ा चिढ़ाता हूँ"
शीला बहार आई और इंस्पेक्टर ने कहा "मैडम, आप उस टॉप में बहोत अच्छी लग रही थी.. वही पहने रखना था न.. !! हमें भी दर्शन का मौका मिलता.. कितनी सुंदर हो आप!!"
अपने पति की मौजूदगी में एक पुलिस इंस्पेक्टर को इस तरह बात करे देख शीला चोंक गई
इंस्पेक्टर की बातों को नजरअंदाज करते हुए सीधा मुद्दे पर आई शीला "आप हमें किसी तहकीकात के लिए स्टेशन ले जाने वाले थे सर!!"
इंस्पेक्टर: "हाँ हाँ.. चलिए.. " कहते हुए तपन घर से बाहर निकला.. शीला और मदन भी उसके पीछे चल दिए
जीप तक चलकर वो दोनों पीछे बैठ गए.. इस बार वो हवालदार ने सामने से ही शीला के पैर के करीब अपना पैर रख दिया और स्पर्श सुख का आनंद लेने लगा.. पुलिस स्टेशन पहुंचते ही इंस्पेक्टर तपन और सारे हवालदार अंदर गए..
मदन ने देखा की आसपास कोई नही था.. उसने चुपके से शीला के कान में कहा "शीला, मुझे लगता है की इंस्पेक्टर को तेरे बबले पसंद आ गए है.. इसीलिए हमें उठाकर यहाँ ले आया.. " इंस्पेक्टर दोस्त निकला इस बात से मदन का सारा टेंशन दूर हो गया था और वो मस्ती के मूड में था.. पुलिस स्टेशन आने की कोई चिंता उसके चेहरे पर नही थी.. शीला इस बात से अनजान थी.. इसलिए घबराई हुई थी.. पर उन्होंने कोई गुनाह नही किया था इसलिए निश्चिंत भी थी.. पर उसे ताज्जुब इस बात का था की उनका पता पुलिस स्टेशन पहुंचा कैसे?? वो कौन शख्स था जिसने हमारा पता दिया था??
स्टेशन के अंदर घुसते ही शीला और मदन के पैरों तले से धरती हिल गई.. लॉकअप में खड़े शख्स को देखकर वो दोनों चोंक गए.. लॉकअप में संजय था.. !!!
इंस्पेक्टर: "इस महानुभाव को आप जानते है जेन्टलमेन?" एकदम कडक आवाज में तपन ने मदन से पूछा
मदन: "जी हाँ सर.. ये मेरे दामाद है.. क्या किया है इन्हों ने? इन्हें बंद क्यों कीया है?"
इंस्पेक्टर: "ये भाईसाहब नकली इंस्पेक्टर बनकर लोगों से पैसे एठते थे.. कितने लोगों को ठग चुका है ये.. उसके साथ उसके साथी को भी बंद किया है.. अगर आप उसे भी जानते हो तो देख लीजिए" संजय के साथ हाफ़िज़ भी खड़ा था.. देखकर ही शीला की हालत खराब हो गई.. एक सेकंड में उसके चेहरे का सारा नूर उड़ गया.. कांप उठी वो.. !! शीला इस बात से डर रही थी की कहीं तहकीकात में इन दोनों में से किसी ने भी उसका नाम ले लिया तो उसका वैवाहिक जीवन यहीं समाप्त हो जाएगा.. क्या करूँ.. मुझसे ये कितनी बड़ी गलती हो गई.. !!
संजय: "मम्मी जी, इन लोगों ने मुझे बेवजह पकड़ रखा है.. मुझे छुड़वाइए प्लीज.. " संजय ने झूठे आँसू निकालकर विनती की
इंस्पेक्टर तपन ने लॉकअप की सलाखों के बीच से संजय का गिरहबान पकड़ कर एक मजबूत तमाचा रसीद कर दिया उसके गाल पर.. संजय का पूरा थोबड़ा घूम गया..
अपने सास और ससुर की मौजूदगी में ऐसा अपमान होने से संजय का अहंकार घायल हो गया "मम्मी जी.. आप चुप क्यों हो? मुझे यहाँ से जल्दी छुड़ाइए.. वरना.. !!!!"
शीला इतनी डर गई की उसे चक्कर आने लगे.. वो कुर्सी पर बैठ गई.. पूरी दुनिया गोल गोल घुमती नजर आ रही थी.. उसका शरीर भी तपने लगा था
शीला का यह हाल देखकर इंस्पेक्टर तपन और मदन दोनों घबरा गए
इंस्पेक्टर: "भाभी जी.. आपको क्या हो रहा है?"
शीला चोंक उठी.. उसे ये पता नही चला की इंस्पेक्टर उसे "भाभी जी" कहकर क्यों संबोधित कर रहा था.. !!
शीला के चेहरे पर अचरज के भाव देखकर मदन ने कहा "हाँ शीला.. ये मेरा दोस्त है.. तपन देसाई.. हम दोनों स्कूल में साथ पढ़ते थे.. एक ही बेंच पर.. चौथी से लेकर दसवीं कक्षा तक.. तू चिंता मत कर.. ये जरूर कोई न कोई रास्ता निकालेगा.. !!"
ये सुनकर शीला की जान में जान आई.. उसका शैतानी दिमाग.. अचानक आन पड़ी इस विपदा से कुंठित हो गया था..
इंस्पेक्टर: "आप चिंता मत कीजिए भाभी.. आप को कुछ नही होगा.. मैं बैठा हूँ ना.. !!" शीला को ढाढ़स बांधते हुए इंस्पेक्टर तपन ने कहा "अब आप दोनों घर जाइए.. और आराम से अपने आप को फ्रेश कीजिए.. हम कल मिलते है" मित्रभाव से मदन के कंधे पर हाथ रखते हुए उसने कहा "इस महाशय को पुलिस वालों का थोड़ा सा प्रसाद मिलेगा तो अपने आप ठिकाने पर आ जाएंगे"
फिर इंस्पेक्टर ने हवालदार की ओर देखकर कहा "गोहील.. तुम इन दोनों सज्जनों को उनके घर छोड़ दो"
हवालदार ड्राइवर और गाड़ी लेकर शीला तथा मदन को उनके घर छोड़ आया.. इस बार हवालदार ने शीला के पैरों को छूने की हिम्मत नही की.. बड़ी ही शालीनता से बर्ताव करने लगा..
घर के अंदर पहुंचकर.. दरवाजा बंद कर.. शीला मदन के गले लगकर रोने लगी.. इतना रोई.. इतना रोई की मदन को भी ताज्जुब हो रहा था
रात के तीन बज रहे थे.. चुदाई के कार्यक्रम का सत्यानाश हो चुका था.. दोनों का मूड ऑफ हो गया था.. मदन शीला को सांत्वना देते देते थक गया पर शीला का रोना अब भी बंद नही हुआ था..
ये बहनचोद संजय ने ये कौनसा नया कांड कर दिया
लगता हैं साला शीला को ब्लँक मेल करने अपने को पुलिस से छुडाने के लिये शीला के कांड ना उजागर कर दे
खैर देखते हैं आगे