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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

arushi_dayal

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दूसरी सुबह करीब साढ़े पाँच बजे.. रोज की तरह शीला की आँख खुल गई.. मदन को सोता हुआ छोड़कर वो उतरकर नीचे आई.. नाइट-गाउन में ही वो घर के आँगन में बने झूले पर बैठकर झूलने लगी.. अभी घर में कोई जागा नहीं था.. थोड़ी ही देर में अखबार वाला पेपर फेंक कर गया.. शीला उसे उठाकर पढ़ते हुए झूल रही थी..


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अखबार की खबरों में डूबी हुई शीला को पता ही नहीं चला की कब सुबोधकांत उसके सामने आकर कुर्सी लगाकर बैठ गए..

"अरे आप कब आए??" शीला ने चोंक कर पूछा

"अभी अभी.. वैसे मुझे जल्दी उठ जाने की आदत है.. सुबह सुबह आसपास की खूबसूरती देखने का मज़ा ही कुछ ओर होता है.. और आज तो आपको देखकर मेरी सुबह और भी मस्त हो गई" शीला शर्मा गई.. सुबोधकांत उसके साथ खुलेआम फ़्लर्ट कर रहे थे

शीला एकदम से अपने कपड़ों को लेकर जागरूक हो गई.. उसने गाउन के अंदर ब्रा नहीं पहनी थी.. और उसके दोनों स्तन.. बिगड़ी हुई औलादों की तरह.. उसका कहा मान नहीं रहे थे.. और उभरकर मस्त आकार बना रहे थे.. सुबोधकांत उन उभारों को देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फेर रहा था..

टी-शर्ट और ट्रेक पेंट पहने सुबोधकांत काफी हेंडसम लग रहे थे.. शीला ने उन्हें कनखियों से देखा.. उनके स्वस्थ शरीर की झलक टी-शर्ट से भलीभाँति नजर आ रही थी.. ऐसे पुरुष के साथ थोड़ा बहोत फ़्लर्ट करने में शीला को कोई दिक्कत नहीं थी

"अच्छा.. !! ऐसा तो क्या नजर आ गया आपको.. जो आपकी सुबह सुधर गई..??" शरारती मुस्कान के साथ शीला ने सुबोधकांत से कहा

"अब क्या कहूँ.. कहाँ से शुरू करू.. कुदरत ने आपको बड़े ही इत्मीनान से बनाया है.. क्या आपको कभी किसी ने कहा है की आप दुनिया की सब से सुंदर महिला हो??" सुबोधकांत ने अपनी गाड़ी चौथे गियर में डालकर दौड़ा दी

ये झूठ है.. जानते हुए भी शीला ने शरमाते हुए अपनी आँखें झुका दी.. ऐसी कौन सी स्त्री होगी जिसे अपनी तारीफ पसंद न हो? चाहे फिर झूठी ही क्यों न हो.. !!

"क्या आप भी.. !!! जो बात आपको रमिला बहन से करनी चाहिए वो आप मुझसे कर रहे है.. !!" शीला ने शरमाते हुए कहा

जवाब देने के बजाए.. सुबोधकांत अपनी कुर्सी से उठे और झूले पर शीला की बगल में बैठ गए.. झूला इतना चौड़ा नहीं था की दो लोगों को साथ समा सकें.. शीला और सुबोधकांत की जांघें एक दूसरे से सट कर रह गई.. शीला का चेहरा शर्म से लाल हो गया.. पर अपनी जांघों पर इस मजबूत पुरुष का स्पर्श उसे बड़ा ही लुभावना लगा.. वो बिना कुछ बोलें बैठी रही

"अजी क्या बताएं आपको.. तारीफ तो उसकी की जाती है जिसे कदर हो.. अब बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद.. !! और मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ.. आप के जितनी खूबसूरत महिला मैंने आज तक नहीं देखी.. " कहते ही सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के कानों के नजदीक लाए.. जैसे उसे सूंघ रहे हो..

शीला सहम गई.. !! सुबोधकांत की इतनी हिम्मत का वो कैसे जवाब दे, उसे पता नहीं चल रहा था.. वो वहाँ से खड़ी होकर चली जा सकती थी.. पर पता नहीं ऐसा कौन सा आकर्षण था जो उसे वहाँ से उठने ही नहीं दे रहा था..जैसे उसके कूल्हें झूले से चिपक गए थे..

"रमिला बहन भी कितनी सुंदर है.. गोरी गोरी.. " शीला ने वापिस बात को सुबोधकांत की पत्नी पर ला खड़ा किया

"शीला जी.. आप तो जानती हो.. हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती.. और कुछ हीरे ऐसे होते है जिसकी परख, मुझ जैसे जोहरी के अलावा और कोई नहीं कर सकता.. !!" सुबोधकांत अपनी हरकतों से बाज नहीं आया

"देखिए सुबोधकांत जी.. मैं आपकी बहोत इज्जत करती हूँ.. अच्छा यही होगा की हम दोनों हमारी मर्यादा का उल्लंघन न करें.. !!" शीला ने थोड़ी सी नाराजगी के साथ कहा..

ये सुनते ही.. सुबोधकांत झूले से खड़े हो गए.. मस्त अंगड़ाई लेकर वो शीला के सामने ही खड़े रहे..

"अरे आप तो बुरा मान गई.. अब मुझे नहीं पता था की आपको तारीफ पसंद नहीं है.. "

"ऐसी बात नहीं है सुबोधकांत जी.. पर जैसा मैंने कहा.. हम दोनों अपनी मर्यादा में रहे वही बेहतर होगा" शीला ने कहा

"आपको नहीं पसंद तो मैं आगे कुछ नहीं कहूँगा.. लेकिन.. ये मर्यादा की बातें आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती, शीला जी.. !!" बेशर्मी से सुबोधकांत ने कहा.. सुनकर शीला चकित हो गई.. ऐसी कौन सी बात इन्हें पता थी जो इतने आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे ये?? अभी कल ही तो पहली बार मिले है.. ऐसा कौन सा राज जानते थे सुबोधकांत.. शीला के बारे में.. !!

"आप क्या कहना चाहते है, मैं समझ नहीं पाई" शीला ने पूछा

"देखिए शीला जी.. अब घुमा फिराकर बात करने की आदत मुझे ही नहीं.. और दूसरों की ज़िंदगी में दखल देने की आदत भी नहीं है.. चाहे वो कोई भी क्यों न हो.. ये तो आपने मर्यादा की बात छेड़ दी तो मैंने सोचा की आप को याद दिला दूँ.. कल आप मेरे दामाद के प्राइवेट पार्ट को दबाकर कौन सी मर्यादा का पालन कर रही थी??" शैतानी मुस्कान के साथ सुबोधकांत ने शीला की ओर देखकर कहा

शीला को चक्कर आने लगे.. कल जब वो लोग ड्रॉइंगरूम में बैठे थे ,तब चारों लड़कियां बगल वाले कमरे में थी.. पीयूष जब उठकर उस कमरे की ओर जा रहा था तब शीला भी किचन में जाने के बहाने उठी थी और बीच रास्ते पीयूष का लंड दबा दिया था.. सुबोधकांत की शातिर नजर ने ये देख लिया था इसका उसे पता भी नहीं था..

शीला ने आँखें झुका ली और दुबक कर झूले पर बैठी रही.. उसके हाथ से अखबार भी छूटकर नीचे गिर गया.. मुसकुराती हुए सुबोधकांत ने अखबार उठाया और शीला के हाथों में थमाते हुए वापिस झूले पर उसके साथ बैठ गया

"अरे पढिए पढिए.. अखबार पढ़ना जरूरी है.. पता तो चले की दुनिया में क्या हो रहा है.. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने आसपास क्या हो रहा है उस पर नजर रखना.. !!"

अब शीला के पास बोलने के लिए कुछ बचा नहीं था.. डर के मारे उसकी बोलती बंद हो गई थी.. कल रात वैसे भी संजय और हाफ़िज़ को लेकर काफी टेंशन था.. वो खतम हुआ नहीं की एक नई चिंता जुड़ गई.. वो अखबार को पकड़कर नीचे देखते हुए बैठी रही

"घबराइए मत शीला जी.. मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगा.. जैसा मैंने पहले ही कहा.. मुझे किसी के जीवन में दखल अंदाजी करना पसंद नहीं है" कहते हुए इस बार सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के गालों के इतने करीब ले आए की उनकी गरम साँसों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी शीला.. उफ्फ़.. मर्दानी गरम सांसें.. शीला की आँखें बंद हो गई..

शीला की ओर से कोई विरोध न दिखा तब सुबोधकांत ने हिम्मत करके शीला के कान को धीरे से चूम लिया.. शीला स्तब्ध हो गई.. पर वो जानती थी की उसकी दुखती नस को दबाकर ये इंसान अपनी मनमानी कर रहा था.. वो सोचने लगी.. अगर मैं इसे हड़का कर भगा दूँ तो क्या होगा?? उसने पीयूष के साथ जो हरकत की थी उसका पता अगर सब को लग गया तो कोहराम मच जाएगा.. मदन और उसके जीवन में भूकंप आ जाएगा.. कविता उससे बात नहीं करेगी कभी.. और अनुमौसी को पता चला मतलब पूरे मोहल्ले को पता चल जाएगा.. पूरी ज़िंदगी वो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी.. गनीमत इसी में थी की वो उनका सहयोग करे और देखें की वो आगे कहाँ तक जाने की हिम्मत करते है

शीला ने शरमाकर अपना चेहरा दूर कर लिया..

"क्या मदमस्त खुशबू है आपकी.. जितना सुंदर तन उतनी ही मादक महक आ रही है.. " सुबोधकांत ने धीरे से अपना हाथ शीला की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया.. शीला उसके स्पर्श से ऐसे सिहरने लगी.. न चाहते हुए भी उसका जिस्म उत्तेजित होने लगा.. अजीब सी उत्तेजना होने लगी उसे..

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शीला बस अब आँखें बंद कर.. झूले पर सर पीछे टेककर बैठी रही.. और सुबोधकांत उसकी गर्दन पर चूमते हुए उसके होंठों पर कब पहुँच गए पता ही नहीं चला.. उनका एक हाथ शीला के खरबूजे जैसे बड़े स्तनों पर घूमने लगा.. बिना ब्रा के सिर्फ गाउन के अंदर कैद स्तनों की निप्पल.. बड़ी ही आसानी से सुबोधकांत के हाथ में आ गई.. शीला के होंठों को चूमते हुए जैसे ही सुबोधकांत ने निप्पल को पकड़कर दबाया.. शीला की आह्ह निकल गई.. और दोनों जांघों के बीच सुरसुरी होने के साथ गिलेपन का एहसास भी होने लगा..

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शीला के बदन में खून तेजी से दौड़ने लगा.. उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया.. सुबोधकांत के चुंबनों से वह इतनी उत्तेजित हो गई की खुद ही अपनी निप्पल को मरोड़ने लगी.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन नीचे से उठाना शुरू करते ही शीला संभल गई और अपना गाउन पकड़ कर उसे रोक दिया..

"सुबोधकांत जी.. ये बड़ा ही खतरनाक हो सकता है.. मुझे लगता है की हमें अब इससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए.. !!"

"शीला जी.. आगे बढ़ना चाहिए की नहीं ये इम्पॉर्टन्ट नहीं है.. आप ये बताइए.. क्या आप आगे बढ़ना चाहती है?" बड़ा शातिर था ये बंदा.. ऐसे हिम्मत वाले पुरुष शीला को बेहद पसंद थे.. उसने कोई जवाब नहीं दिया.. और पलके झुकाकर बैठी रही..

पर सुबोधकांत को अपना जवाब मिल गया था.. उसने शीला को हाथ पकड़कर उठाया.. और घर के पिछवाड़े में बने गराज तक ले गए.. गराज का दरवाजा खोलकर दोनों अंदर गए और फिर सुबोधकांत ने उसे बंद कर दिया..

दरवाजा बंद होते ही सुबोधकांत ने शीला को दीवार से दबा दिया और उसके स्तनों को दोनों हाथों से मसलने लगे.. शीला बस आह्ह आह्ह करती रह गई.. उन्हों ने शीला के होंठों को चूसते हुए अपना एक हाथ गाउन के ऊपर से ही शीला के गरम भोसड़े पर दबा दिया.. रात को सोते वक्त शीला कभी गाउन के नीचे पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका भोसड़ा सुबोधकांत के हाथों चढ़ गया..

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नीचे स्पर्श होते ही शीला के सब्र का बांध टूट गया.. और उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत का चेहरा पकड़कर चूम लिया.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन एक झटके में ही ऊपर कर दिया और उसकी लसलसित दरार में अपनी उंगली डाल दी..

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गरम गरम भोसड़े में उंगली घुसते ही शीला ने अपने सारे हथियार डाल दीये.. उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत के कंधों को दबाकर उन्हे नीचे बैठा दिया और अपनी टांगें खड़े खड़े ही चौड़ी कर दी.. इशारा स्पष्ट था और सुबोधकांत को समझने में देर भी नहीं लगी.. उसने एक ही पल में अपनी जीभ शीला की गुफा के अंदर डालकर चाटना शुरू कर दिया..

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शीला की योनि विपुल मात्रा में कामरस बहाने लगी और सुबोधकांत बिना किसी घिन के उस रस को चाट रहे थे.. शीला दोनों हाथों से अपनी निप्पलों को खींचकर मरोड़ रही थी.. अब उसका जिस्म लिंग प्रवेश चाहता था.. उसने आजूबाजू देखा.. इतना कचरा पड़ा हुआ था की लेटना नामुमकिन था..

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उसने धीरे से सुबोधकांत का चेहरा अपनी चूत से अलग किया और उन्हे खड़ा कर दिया.. अब वह पलट गई.. अपना गाउन कमर तक उठा लीया और अपने भोसड़े को चुदाई के लिए पेश कर दिया..

सुबोधकांत ने तुरंत ही अपना पेंट नीचे उतारा और अपना डंडा बाहर निकालकर.. मुंह से थोड़ा थूक लेकर सुपाड़े पर मल दिया.. उसका औज़ार अब शीला के किले को फतह करने के लिए तैयार हो गया था..

शीला को झुकाकर उसने अपने सुपाड़े को उसकी दोनों जांघों के बीच घुसेड़ा.. चूत की खुशबू सूंघते हुए लंड ने तुरंत ही छेड़ ढूंढ निकाला.. एक ही धक्के में लंड ऐसा घुस गया जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी घुस गई हो..


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शीला सिसकने लगी.. और सुबोधकांत ने हौले हौले धक्के लगाने शुरू कर दीये.. दोनों हाथ आगे ले जाकर वो शीला के मदमस्त खरबूजों को मसल भी रहे थे.. दोनों उत्तेजना की पराकाष्ठा पर थे लेकिन साथ ही साथ वह जानते थे की उनके पास ज्यादा समय नहीं था..

शीला खुद ही हाथ नीचे ले जाकर अपनी क्लिटोरिस को कुरेदने लगी.. वो भी जल्द से जल्द स्खलित होना चाहती थी.. पीछे सुबोधकांत ने अपने धक्के तेज कर दीये.. शीला के विशाल चूतड़ों को अपने दोनों हाथ से पकड़कर वो धनाधन पेल रहे थे..

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शीला का बदन अब थरथराने लगा.. अपनी मंजिल नजदीक नजर आते ही उसने अपनी क्लिटोरिस को दबा दिया.. उसका शरीर एकदम तंग हो गया.. और भोसड़े की मांसपेशियों ने सुबोधकांत के लंड को अंदर मजबूती से जकड़ लिया.. दोनों एक साथ झड़ गए.. वीर्य की तीन चार बड़ी पिचकारियों से सुबोधकांत ने शीला के भोसड़े को पावन कर दिया..

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थोड़ी देर तक दोनों हांफते रहे.. सांसें नॉर्मल होते ही पहले सुबोधकांत ने दरवाजा खोलकर बाहर देखकर तसल्ली कर ली और फिर इशारे से शीला को बाहर जाने के लिए कहा.. शीला भागकर घर के अंदर चली गई.. अपने कमरे में जाकर देखा तो मदन अभी भी सो रहा था.. उसने चैन की सांस ली और बाथरूम में चली गई.. सुबोधकांत ने जो निशानी उसके भोसड़े में छोड़ रखी थी उसे साफ करने..

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मदन और शीला जब कविता के घर गए तब सब से अनजान थे.. आज जाते हुए सब की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी.. सब ऐसे बातें कर रहे थे जैसे एक दूसरे को सालों से जानते हो..

शीला को बाय कहते वक्त सुबोधकांत मुस्कुराये.. पिछले चौबीस घंटों में उन्हों ने माँ और बेटी दोनों को चोद लिया था.. दोनों एक से बढ़कर एक थी.. दोनों के संग की चुदाई, सुबोधकांत को पूरी ज़िंदगी याद रहने वाली थी..

वैशाली, मौसम और फाल्गुनी के साथ कुछ गुसपुस कर रही थी.. मौसम के चेहरे पर शर्म और उदासी दोनों के भाव थे.. अब वो पहले वाली नादान लड़की नहीं रही थी.. काफी तब्दीलियाँ आ चुकी थी.. चेहरे पर गंभीरता के भाव भी थे.. कविता मौसम को गले लगाकर खूब रोई.. सुबोधकांत भी भावुक हो गए.. इंसान कितना भी नीच और हलक्त क्यों न हो.. आखिर एक बाप था.. कविता को खुश देखकर उनके दिल को ठंडक मिल रही थी और वे चाहते थे की मौसम भी ऐसे ही खुश रहे..

सब ने एक दूसरे को अलविदा कहा.. रमिला बहन की आँखों से भी आँसू निकल रहे थे.. कल तक जो घर भरा भरा सा था.. आज वो एकदम खाली हो रहा था.. सब लोग कार में बैठे.. मौसम और फाल्गुनी ने गले मिलकर वैशाली को बाय कहा..

जुदाई.. बड़ा ही पीड़ादायक शब्द है.. हर मिलन में जुदाई समाई होती है..

कार चल पड़ी और साथ कितने संबंध अपनी मंजिल पर पहुंचे बिना ही अधूरे रह गए.. ?? सुबोधकांत और रमिला बहन घर के अंदर आए.. मौसम बड़ी देर तक रास्ते को देखती रही.. जा रही कार को अंत तक ऐसे देखती रही जैसे वो अभी वापस आने वाली हो.. उसके अलावा कोई नहीं जानता था की उस कार के साथ ओर क्या क्या चला गया था.. !!

जीजू.. !! जिनके साथ उसने जीवन का प्रथम प्रेम-मिलन किया था.. जिन्होंने उसे जवानी का लुत्फ लेना सिखाया था.. काम इच्छा क्या होती है.. पुरुष और स्त्री का उसमें क्या भाग होता है.. पुरुष का प्रथम स्पर्श.. जीजू मौसम को छोड़कर जा चुके थे.. साथ ही कविता दीदी भी चली गई थी.. शीला भाभी और मदन भैया भी.. वैशाली जैसी सहेली भी जा चुकी थी.. वैशाली तो अब कब मिलेगी, क्या पता.. ?? मुझे भी एक दिन वैशाली की तरह सब को छोड़कर दूर जाना होगा.. मौसम का दिल बेचैन हो गया.. इस सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन करने का मन कर रहा था.. पर नियति को भला कौन बदल सकता है.. !! और उसकी नियति भी यही थी की उसे बाप का घर छोड़ना ही था..

"कब तक धूप में खड़ी रहेगी बेटा? अंदर नहीं आना? वो सब तो चले गए.. तू अंदर आ जा.." प्यार से रमिला बहन ने मौसम को कहा

पिछले एक महीने से मौसम उन लोगों के साथ थी.. इसलिए ये जुदाई का पल उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. मौसम की इस स्थिति को समझकर रमिला बहन उसे पीठ सहलाते हुए सांत्वना दे रहे थे.. मौसम उनके गले लगकर खूब रोई.. रमिला बहन का दिल भी भर आया.. फिर दोनों घर के अंदर आए.. मौसम पानी पीकर शांत हुई.. रमिला बहन तुरंत अंदर से बोर्नविटा वाला दूध लेकर आए जो मौसम को बेहद पसंद था.. कितने अच्छे से समझते है माँ बाप अपनी औलाद को!! उन्हें कब क्या चाहिए होगा, उन्हें सब पता होता है..

स्त्री जाती कितनी आसानी से रोकर अपना दिल हल्का कर सकती है.. !! इसीलिए शायद उनको ह्रदयरोग की समस्या कम होती है.. वे अपने दिल पर कोई बोझ रहने नहीं देती.. रोकर हल्का कर देती है.. इसकी तुलना में अगर पुरुषों को देखें.. कितने दंभी होते है.. दिल रो रहा हो फिर भी चेहरे पर मुस्कान ही होती है.. हाँ, पुरुष बिना आँसू के भी रो लेने की अद्भुत क्षमता जरूर रखते है..

मौसम घर के अंदर आई तब सुबोधकांत किसी से फोन पर बात कर रहे थे.. मौसम उदास होकर सोफ़े पर बैठी रही.. इस खलिश भरे माहोल में एक ही अच्छी बात थी और वो थी फाल्गुनी.. फाल्गुनी मौसम के लिए ए.टी.एम के बराबर थी.. जब भी बुलाओ वो हाजिर हो जाती थी.. यही तो होती है सच्चे मित्र की व्याख्या.. मौसम ने तुरंत फाल्गुनी को फोन लगाया पर उसने फोन काट दिया.. और पीछे से आकर हँसते हुए मौसम की आँखों पर अपने हाथ रख दीये.. उसके हाथ हटाते हुए मौसम मुड़कर बोली "लो, शैतान का नाम लो और हाजिर.. !!"

मौसम का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या हुआ?? तरुण की बहोत याद आ रही है क्या?" सुनकर मौसम हंस पड़ी

यहाँ वहाँ की बातें कर फाल्गुनी ने मौसम को नॉर्मल कर दिया.. फिर दोनों मौसम के कमरे में गए तब साढ़े दस बजे थे.. एक बजे तक दोनों कमरे के अंदर है बैठे रहे और तब बाहर निकले जब रमिला बहन ने खाने के लिए बुलाया.. मौसम ने उस दौरान फाल्गुनी को जरा सी भी भनक नहीं लगने दी की उसने कल अपने पापा के साथ उसकी चुदाई को अपनी आँखों से देख लिया था.. मौसम मानती थी की फाल्गुनी को उसके वहाँ होने के बारे में पता नहीं था.. पर हकीकत ये थी की वैशाली ने फोन करके फाल्गुनी को सब कुछ बता दिया था.. उसने ये भी बता दिया था की मौसम खुद ही उसे पापा की ऑफिस तक लेकर आई थी और उसने बाहर खड़े खड़े सब कुछ देख लिया था..

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मदन कार ड्राइव कर रहा था और शीला उसके बगल में बैठी थी.. कविता, पीयूष और वैशाली पीछे बैठे हुए थे.. कार फूल स्पीड पर चल रही थी.. और सबके दिमाग भी उतनी ही तेजी से चल रहे थे..


मदन का दिमाग संजय की बात को लेकर खराब हो रहा था.. अच्छा हुआ जो इंस्पेक्टर उसका दोस्त निकला.. नहीं तो बड़ी मुसीबत हो जाती.. नकली पुलिस बनकर लोगों से पैसे लेना.. कितना बड़ा जुर्म होता है.. !! जो इंसान एक गुनाह कर सकता है.. वो दुसरें भी कर सकता है.. ये संजय कब सुधरेगा? क्या करें उसे सुधारने के लिए? वैशाली के भविष्य का क्या होगा??

अचानक सामने से एक ट्रक आ गई और गाड़ी के एकदम करीब से निकल गई.. एक्सीडेंट होते होते रह गया..

"तेरा ध्यान कहाँ है मदन? अभी एक्सीडेंट हो जाता.. !!" शीला ने उसे हड़काते हुए कहा

मदन ने अपना सर झटकते हुए कहा "सही बात है यार.. विचार करते करते ड्राइविंग नहीं करना चाहिए.. " मदन ने कहा

शीला समझ गई की मदन को किस बात का टेंशन था.. कल पुलिस स्टेशन से फोन आया तब से मदन उलझा हुआ सा लग रहा था.. अब शीला को भी चिंता होने लगी.. संजय की चिंता तो थी ही पर उससे ज्यादा चिंता इस बात की थी की कहीं संजय या हाफ़िज़ ने सब कुछ बक न दिया हो.. वरना उसका भंडाफोड़ होना तय था.. अब क्या करू?? अगर सच में उन दोनों ने सब बक दिया होगा तो?? मैं मदन को क्या मुंह दिखाऊँगी?? अगर मदन को मेरे और संजय की गोवा की ट्रिप के बारे में पता चला तो उसकी नज़रों में, मैं हमेशा के लिए गिर जाऊँगी.. !!!

शीला के चेहरे का नूर उड़ गया.. चिंता उसे दीमक की तरह खाए जा रही थी.. अगर संजय ने पुलिस को दोनों के संबंधों के बारे में कुछ भी बताया होगा तो मदन को पता चलने में देर नहीं लगेगी..

पीयूष के साथ समाधान हो जाने के बाद कविता बेहद खुश थी.. अच्छा हुआ की पीयूष के साथ सारे प्रॉब्लेम एक साथ खतम हो गए.. पिछली रात के हसीन संभोग को याद करते हुए कविता की पेन्टी गीली हो रही थी.. कितने दिनों के बाद हम-बिस्तर हुए थे दोनों.. !! पीयूष के उत्तेजित लंड को याद करते हुए कविता ने अपनी जांघें आपस में दबा दी..

दूसरी तरफ पीयूष के सर पर मौसम सवार थी.. हर आती जाती लड़की में उसे मौसम नजर आ रही थी.. मौसम ने वादा तो किया था की सगाई से पहले के बार अकेले में मिलेगी.. पर ऐसा मौका क्या जाने कब मिलेगा?? मिलेगा भी या नहीं? तरुण थोड़ी देर बाद मौसम की ज़िंदगी में आया होता तो सब सही से हो जाता.. तरुण पर उसे बहोत गुस्सा आ रहा था पर क्या करता??

वैशाली को चिंता हो रही थी.. अब वापिस कलकत्ता जाना पड़ेगा.. कितने दिन हो गए.. ससुराल से किसी का एक फोन तक नहीं आया था.. बेचारे बूढ़े सास ससुर.. फोन करते तो भी किस मुंह से?? उनका बेटा ही जब हरामी निकला हो.. रखैलों के साथ भटकता रहता हो और कुछ कमाई न हो.. ऐसे पति के साथ जीने से तो अच्छा है की जिंदगी अकेले ही गुजारी जाए..

वैशाली को सुबोधकांत के संग बिताएं हसीन पल याद आ गए.. ५२-५५ की उम्र के होने के बावजूद कितनी ताकत थी उनमें.. !! दिखने में भी हेंडसम थे.. उनके मुकाबले रमिला बहन तो बेचारी बहोत सीधी थी.. अगर उनकी मेरे जैसी पत्नी होती तो रोज रात को चुदाई महोत्सव मनाती.. एक बार में ही उन्होंने मुझे पिघला दिया.. फिर बेचारी फाल्गुनी का क्या दोष?? वैसे पर्सनालिटी तो संजय की भी अच्छी है पर साला है एक नंबर का कमीना.. सुबोधकांत तो इतने बड़े बिजनेसमेन है फिर भी पैसों का घमंड नहीं है.. अच्छा हुआ जो उसने मौका देखकर उनसे चुदवा लिया.. पर एक बार करने से कभी मन संतुष्ट कहाँ होता है कभी?? आह्ह फाल्गुनी.. तेरी गलती नहीं है.. सुबोधकांत बूढ़ा है.. पर है कोहिनूर हीरा.. ओल्ड इस गोल्ड.. फिर से एक बार मौका मिले तो मज़ा आ जाएँ.. पर अब कहाँ मौका मिलने वाला था..!! मन ही मन वैशाली मुस्कुरा रही थी

मदन रियर व्यू मिरर से वैशाली को मुसकुराते हुए देखता रहा..इस बेचारी को कहाँ पता ही की उसका पति अभी जैल में बंद है.. !!

रास्ते में एक बढ़िया होटल के बाहर मदन ने गाड़ी रोकी.. सब ने चाय-नाश्ता किया.. नाश्ते के बाद पीयूष और मदन सब के लिए मीठा पान लेने के लिए गए.. शीला, वैशाली और कविता लेडिज बाथरूम की तरफ गए.. बाथरूम तो एक बहाना था इसी बहाने पैरों को रीलैक्स कर रहे थे.. कार में बैठे बैठे पैरों में जकड़न हो गई थी सब को..

जब वैशाली और कविता कुछ गुसपुस कर रहे थे तब शीला वहाँ से दूर चली गई.. उसका मानना था की जवान लड़कियों की बातों में दखलअंदाजी नहीं करने चाहिए.. और उन्हें उनके हिसाब से जीने देना चाहिए.. वैशाली को ये देखकर अपनी मम्मी की परिपक्वता पर गर्व हुआ.. कविता और वैशाली बातें करते करते टॉइलेट में पहुंचे

बाहर निकलकर कविता ने एक जोरदार सिक्सर लगाई.. "वैशाली, टॉइलेट देखकर कुछ याद आया की नहीं?"

वैशाली को समझ नहीं आया "टॉइलेट देखकर भला क्या याद आएगा!!"

"क्यों? माउंट आबू में राजेश सर के साथ.. टॉइलेट ट्रिप.. भूल गई क्या?" शरारती मुस्कुराहट के साथ कविता ने कहा

स्तब्ध रह गई वैशाली.. काटो तो खून न निकले ऐसी दशा हो गई उसकी.. पर पलट कर वार करने में वो भी कम नहीं थी.. आखिर थी तो वो शीला की ही बेटी..

"तू भी ज्यादा होशियार मत बन.. मुझे भी तेरी सारे राज पता है"

कविता: "मेरे कौन से राज.. ज्यादा से ज्यादा पिंटू को इशारे करते हुए देख लिया होगा.. और क्या.. !!"

वैशाली को इस बारे में कुछ मालूम नहीं था.. उसने तो ऐसे ही अंधेरे में तीर चला दिया था.. पर कविता ने पिंटू का नाम लेकर उसे बड़ा हिंट दे दिया था.. उसने मन में ही बात जोड़ दी..

"हाँ.. मुझे मौसम ने बताया था की तुझे पिंटू बहोत पसंद है"

कविता: "तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! सब शादी से पहले की बात थी.. और काफी सालों के बाद जब हमें कोई अपनी पहचान का मिल जाएँ तब पुरानी यादें तो ताज़ा हो ही जाती है.. !!"

वैशाली: "सही बात है.. पुरानी यादें ताज़ा हो जाती है.. और रिपिट भी हो जाती है.. बस मौका मिलना चाहिए.. हैं ना..!!"

वैशाली और कविता बातें कर रहे थे तब शीला को वो बात याद आ रही थी जब ऐसे ही किसी हाइवे होटल पर रात को हाफ़िज़ ने उसे खड़े खड़े चोद दिया था.. गोवा से लौटते वक्त जब वो लोग खाना खाने रुके थे और संजय टॉइलेट गया था तब.. साला कितना हरामी था.. बिना शरमाये अपना लंड निकालकर मेरे मुँह में दे दिया था.. और मेरी छातियाँ तो ऐसे दबाता था जैसे अपनी बीवी की दबा रहा हो..

वैशाली और कविता को करीब आते देख शीला ने अपनी यादों का पिटारा बंद कर दीया.. ये ऐसा प्रकरण था जिसे याद करते ही शीला के चेहरे पर चमक आ जाती थी.. और छुपायें छुपती नहीं थी.. संजय पाँच मिनट के लिए दूर क्या गया.. उस मामूली ड्राइवर ने कितनी हिम्मत दिखाई थी.. और उस दिन जब मदन को छोड़ने आया था तब मुझे आँख मार रहा था.. साला, रंडी समझता था मुझे..!!

"घर पहुंचकर आराम से सारी बातें करेंगे.. अभी देर हो रही है" कहते हुए कविता ने वैशाली को हाथ से खींचकर जल्दी चलने पर मजबूर कर दिया..

मदन एक कोने में खड़े खड़े सिगरेट फूँक रहा था और पीयूष से बातें कर रहा था..

जैसे ही शीला, कविता और वैशाली गाड़ी में बैठे.. मदन ने कार की चाबी पीयूष को थमा दी..

"ले भाई.. मैं तो थक गया.. वैसे भी मुझे कुछ खाने के बाद नींद आ जाती है.. कल भी मैंने ड्राइव किया था.. अब तू ही चला ले" मदन ने कहा

"कोई बात नहीं मदन भैया.. मैं चला लेता हूँ.. आप आराम से शीला भाभी की गोद में सर रखकर सो जाइए" हँसते हुए पीयूष ने कहा

"अरे पागल.. जवान बेटी के सामने ऐसा सब करना ठीक नहीं.. वो नहीं होती तो सो जाता.. " मदन ने गाड़ी में बैठते हुए कहा

पीयूष के ड्राइवर सीट पर बैठते ही कविता भी आगे आ गया.. पीछे मदन का छोटा सा परिवार बैठ गया..

गाड़ी चल पड़ी.. बार बार गियर बदलने पर पीयूष का हाथ कविता की जांघों से टच हो जाता.. और दोनों के जिस्म में अजीब सी सुरसुरी होने लगती थी.. पिछली रात आइसक्रीम लेने गए तब मारुति ८०० में जो संभोग हुआ था वो तो नाश्ते के बराबर था.. फिर रात को जो हुआ वो बड़ा ही मजेदार था.. अब दोनों की भूख जाग चुकी थी.. जल्दी से जल्दी घर पहुंचकर कपड़े उतारकर एक दूसरे में समा जाने की दोनों की चाह थी..

ड्राइव करते करते.. कविता को छेड़ते छेड़ते.. पीयूष बार बार मिरर से वैशाली की ओर देख लेता था और आँखों से इशारे भी कर रहा था.. पर फिलहाल मदन और शीला के बीच बैठी वैशाली उसकी किसी भी हरकत का जवाब नहीं दे पा रही थी.. पीयूष की नजर वैशाली के उछलते स्तनों पर टिकी हुई थी.. गड्ढे में गाड़ी उछलते ही वैशाली के स्तन ऐसे कूदते थे जैसे उसने अपने टॉप में खरगोश के बच्चे छुपाये हो..

तभी पीयूष के मोबाइल पर मेसेज आया.. ड्राइव करते करते उसने मोबाइल को अनलॉक किया और देखा.. मौसम ने ब्लेन्क मेसेज भेजा था.. उसने बिना शब्दों के ही अपने जीजू को यादें भेजी थी.. मौसम का मेसेज देखकर पीयूष फिर से उसकी यादों में खो गया.. कविता के संग संबंधों का जो रिपेर काम चल रहा था उसमे फिर से डेमेज हो गया.. दंगों के वक्त जब कर्फ्यू लगा हो.. और उसमे थोड़े समय के लिए मुक्ति मिले.. उसी दौरान छुरेबाज़ी हो जाए और शांति जिस तरह चकनाचूर हो जाती है.. वैसा ही हाल पीयूष के दिल का भी हो रहा था.. आग लगाने के लिए माचिस की एक तीली ही काफी होती है.. बड़ी मुश्किल से तैरकर वो कविता नाम के किनारे पर पहुँचने ही वाला था तब मौसम नाम की बाढ़ ने उसे फिर से तहसनहस कर दिया.. जैसे ही मौसम के विचारों ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया.. वैसे ही उसने कविता को छेड़ना बंद कर दिया.. मानों कविता का स्पर्श करके वो मौसम को धोखा दे रहा हो ऐसा उसे लग रहा था

इंसान अपने नाजायज प्यार के प्रति जितना वफादार होता है उतनी ही वफादारी अपनी पत्नी की ओर क्यों नहीं दिखाता??

चार घंटों के सफर के बाद.. गाड़ी घर पहुँच गई.. एक के बाद एक सब गाड़ी से उतरें.. पिछले दिन ही तो वो सब वहाँ गए थे.. फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे घर छोड़े हुए अरसा हो गया हो..


बड़ी मुश्किल से पटरी पर आई हुई उसकी और कविता की प्रेम-गाड़ी को दूसरा कोई अवरोध न आए इसलिए पीयूष ने अपने दिमाग से मौसम के खयालों को फिलहाल निकाल फेंका.. और कविता के साथ बातें और मस्ती करते हुए घर की ओर जाने लगा..
शीला के संदर्भ में तो बस इतना ही कहना चाहूंगी की स्त्री के यौवन से भरे बदन में जो नशा है वह और कहीं नहीं.हर नशा कुछ समय के बाद उतर जाता है लेकिन ये नशा कभी नहीं इसकी प्यास कभी बुझती ही नहीं है.ये वो नशा है जो बार-बार करने का मन करता है और सुबोधकांत तो एक ऐसा जौहरी है जो हीरे की परख करना जानता है। एक ही दिन में दीनो माँ बेटी को निपट दिया अपने नीचे और दोनों को अपना दीवाना बना दिया..
शीला ने जब हथियार डाल के नाइटी जरा उठाली
सुबोधकांत के लन ने झट से चूत में जगह बना ली



पीयूष और कविता के बीच प्यार की चिंगारी दोबारा भड़की और ये देख बहुत अच्छा लगा. कविता को दोबारा पाकर तो पीयूष सिर्फ इतना ही बोल पाया

उस रात जब चुपके तेरे पहलू मे आया

नशा शराब से ज्यादा तेरी आँखों में पाया

छोड़ दी शराब उस दिन से पीना मैंने

जब से तेरे होंठो को मुस्कराते पाया

कभी कदम की आहट पे चौंक जाते थे

अब तो हर कदम तेरी चौखट पर पाया

शराब पी सैकड़ों बोतल तोड़ी

हुश्न में इतना नशा होता है अब जाना
 

vakharia

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शीला के संदर्भ में तो बस इतना ही कहना चाहूंगी की स्त्री के यौवन से भरे बदन में जो नशा है वह और कहीं नहीं.हर नशा कुछ समय के बाद उतर जाता है लेकिन ये नशा कभी नहीं इसकी प्यास कभी बुझती ही नहीं है.ये वो नशा है जो बार-बार करने का मन करता है और सुबोधकांत तो एक ऐसा जौहरी है जो हीरे की परख करना जानता है। एक ही दिन में दीनो माँ बेटी को निपट दिया अपने नीचे और दोनों को अपना दीवाना बना दिया..
शीला ने जब हथियार डाल के नाइटी जरा उठाली
सुबोधकांत के लन ने झट से चूत में जगह बना ली



पीयूष और कविता के बीच प्यार की चिंगारी दोबारा भड़की और ये देख बहुत अच्छा लगा. कविता को दोबारा पाकर तो पीयूष सिर्फ इतना ही बोल पाया

उस रात जब चुपके तेरे पहलू मे आया

नशा शराब से ज्यादा तेरी आँखों में पाया

छोड़ दी शराब उस दिन से पीना मैंने

जब से तेरे होंठो को मुस्कराते पाया

कभी कदम की आहट पे चौंक जाते थे

अब तो हर कदम तेरी चौखट पर पाया

शराब पी सैकड़ों बोतल तोड़ी

हुश्न में इतना नशा होता है अब जाना

तुम्हारे लब्जों में है जो तपिश.. जो बरसात ☀️🌧️
काश मेरे किरदार भी ले आते वही रंग, वही जज़्बात.. !! 🎭
 

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वैशाली को बड़ा आश्चर्य हो रहा था.. कहीं मौसम को फाल्गुनी और उसके पापा के बारे में पता तो नही चल गया होगा.. !! उस दिन जब फाल्गुनी के साथ बाथरूम में बातें हुई थी तब कहीं मौसम ने सुन तो नही ली थी!! या फिर मौसम किसी और काम से ले जा रही हो?? पर किसी और काम के लिए वो मुझे क्यों साथ ले जा रही है?? पर लगता तो यही है की मौसम को पता चल गया है.. और वो ये भी जान चुकी है की मुझे इस बात का पता पहले से है.. इसीलिए तो मुझे साथ लिया है..

वैशाली का दिमाग स्कूटी के पहियों से भी तेज चल रहा था.. स्कूटी को एक कोने पर ले जाकर एक गली के पास खड़ा कर दिया मौसम ने और फिर कहा "वैशाली, तू यहाँ रुक.. मैं थोड़ी देर में आती हूँ.. दस मिनट से ज्यादा टाइम नही लगेगा.. तुझे साथ ले जाने में रिस्क है वरना तुझे साथ ले जाती.. जैसा मैंने कहा.. बात गंभीर है और सीक्रेट भी"

वैशाली: "हाँ हाँ.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर जल्दी आना.. इस अनजान रास्ते पर अकेले खड़े रहने में मुझे डर लगता है"

मौसम: "चिंता मत कर.. मैं जल्दी वापिस आ जाऊँगी" कहते हुए मौसम उस गली के अंदर चली गई..

वैशाली का दिमाग चकरा रहा था.. कहाँ गई होगी? ऐसा क्या सीक्रेट होगा उसका? इस गली के अंदर क्या होगा?? वैशाली ने गली के अंदर थोड़ा सा अंदर जाकर देखा.. गली के आखिरी छोर पर एक गाड़ी पार्क थी.. कार का मॉडल और कलर देखकर वैशाली चोंक गई.. ये तो मौसम के पापा, सुबोधकांत की कार थी.. !! मतलब उनकी ऑफिस यहाँ थी.. तो मौसम जरूर फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में जान गई होगी.. और इसी बात की तहकीकात करने आई है.. अब जब मौसम सब जान ही गई है.. तो फिर मुझे जाने में क्या दिक्कत!!

वैशाली के कदम अपने आप ही गली के अंदर चले गए.. और चलते मुसाफिर को मंजिल तक पहुँचने में देर नही लगती.. मुश्किल से थोड़ा आगे गई होगी और एक दरवाजे पर उसे मौसम के सेंडल पड़े नजर आए.. वैशाली की धड़कन तेज हो गई.. दरवाजे के ऊपर एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था.. एस.के. एंटरप्राइज़.. धीरे से दरवाजा खोलकर वैशाली ने अंदर देखा.. उसे मौसम का हरा दुपट्टा नजर आया.. उसे यकीन हो गया की यही था सुबोधकांत का ऑफिस और मौसम का दुपट्टा भी इस बात का सबूत दे रहा था.. पक्का मौसम अपने बाप की लीला के दर्शन करने ऑफिस दौड़ी चली आई थी.. अब सवाल ये था.. की मौसम के रहते, वैशाली अंदर जाए कैसे??

ऑफिस के अंदर एक आगे की केबिन थी जहां मौसम खड़ी थी.. और पीछे वाली केबिन में शायद सुबोधकांत थे.. जिसे मौसम देख रही थी.. वैशाली ने बड़े ही आराम से मेइन दरवाजा खोला और लपककर मौसम के पीछे खड़ी हो गई.. सुबोधकांत की केबिन का दरवाजा आधे इंच जितना खुला हुआ था.. और अंदर का द्रश्य देखते ही मौसम और वैशाली दोनों दंग रह गए.. सुबोधकांत फाल्गुनी का टॉप ऊपर करके उसके स्तनों को चूस रहे थे.. !!

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वैशाली ने धीरे से मौसम के कंधे पर अपना हाथ रख दिया.. घबराई मौसम ने एकदम से पीछे देखा.. वैशाली पर नजर पड़ते ही वो शरमा गई.. दोनों ने आँखों आँखों में सारी बात कर ली.. वैशाली ने मौसम के पीछे से अपने दोनों हाथ डालकर उसके स्तनों को पकड़ लिया.. और उन्हे दबाते हुए मौसम की गर्दन के पीछे किस करने लगी.. अपने बाप के कारनामे देखकर मौसम भी अपनी चूत को खुजाते हुए वैशाली के बालों में उँगलियाँ फेरने लगी.. पीठ पर चुभ रहे वैशाली के उन्नत स्तनों की गर्माहट और साथ ही साथ स्तनों का मर्दन.. मौसम किसी अलौकिक दुनिया में पहुँच गई.. उसकी सांसें बेहद भारी हो गई थी..

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जैसे जैसे उसके पापा फाल्गुनी के जवान शरीर के साथ खिलवाड़ करते.. उसके स्तनों को चूसते देखती गई.. वैसे वैसे मौसम और उत्तेजित होती गई.. सुबोधकांत ने फाल्गुनी का हाथ अपने लंड पर रख दिया.. और ये सीन देखकर मौसम के स्तनों पर वैशाली की पकड़ और मजबूत हो गई..

"आह्ह.. जरा धीरे कर वैशाली.. दर्द हो रहा है.. अगर बहुत चूल मची हो तो तू भी अंदर चली जा.. मेरे बूब्स को क्यों दबोच रही है? " एकदम फुसफुसाते हुए मौसम ने वैशाली के कान में कहा..

जवाब में वैशाली ने मौसम के ड्रेस के अंदर हाथ डालने की कोशिश की पर ड्रेस इतना टाइट था की हाथ अंदर गया ही नही.. ऊपर से मौसम के स्तन उत्तेजित होकर और फूल गए थे.. और इतना दबाव बना रहे थे की देखकर लगता था जैसे मौसम की ड्रेस अभी फट जाएगी.. वैशाली अंदर हाथ न डाल पाई पर उसने खुद के स्तनों को मौसम की पीठ पर रगड़कर कसर निकाली.. उसका दूसरा हाथ मौसम की चूत तक ले जाकर.. हौले हौले सलवार के ऊपर से उसकी रसीली कुंवारी चूत को सहला रहा था..

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वैशाली ने मौसम के ड्रेस की चैन को पीछे से खींचकर.. उसकी सुंदर गोरी पीठ को खुला कर दिया.. अब वैशाली का हाथ बड़ी ही आसानी से मौसम के स्तनों तक जा पहुंचा.. ब्रा को ऊपर करके उसने मौसम के स्तनों पर अपने हथेली से स्पर्श करते ही एक जबरदस्त स्पार्क हुआ.. और दोनों की हवस प्रखरता से प्रज्वलित हो गई

सुबोधकांत फाल्गुनी की निप्पलों को मसल रहा था और उसी वक्त वैशाली मौसम की निप्पलों को भी मसलने लगी.. मौसम की आँखें बंद सी होने लगी.. मन ही मन में वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे उसकी निप्पल वैशाली नही पर उसके पापा मसल रहे थे.. मौसम की चूत रस छोड़ते हुए उसकी पेन्टी को गीला कर रही थी.. सलवार के ऊपर से हाथ फेर रही वैशाली भी गीली हो रही पेन्टी को महसूस कर रही थी.. वैशाली ने आपा खोकर मौसम की पूरी चुत को कपड़े के ऊपर से ही अपनी मुठ्ठी में भरकर दबा दिया.. चूत पर दबाव आते ही मौसम को थोड़ी सी राहत हुई.. अपने बाप को अपनी खास सहेली के होंठों को बेताबी से चूसते हुए देखकर उसकी चुत में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. उससे अब रहा नही जा रहा था..

वैशाली और मौसम केबिन के अंदर का द्रश्य देखकर उत्तेजना और हवस से झुलसने लगे.. वैशाली मौसम के जिस्म को पीछे से दबोचे जा रही थी.. कमर के ऊपर सम्पूर्ण नग्न फाल्गुनी के स्तनों पर सुबोधकांत टूट पड़े.. दोनों हाथों से बेरहमी से उसने फाल्गुनी के बबलों को इतनी जोर से मसला की फाल्गुनी की आँखों में पानी आ गया.. वो दोनों धीरे से कुछ बात भी कर रहे थे पर मौसम या वैशाली को सुनाई नही दे रहा था..

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मौसम अपने अंगों पर हो रही वैशाली की हरकतों का मज़ा लेते हुए अपने बाप और सहेली के गुलछर्रों को देख रही थी.. फाल्गुनी की पेन्टी के अंदर हाथ डालकर सुबोधकांत उसकी चूत से खेलने लगे.. चूत पर मर्दाना हाथ का स्पर्श होते ही फाल्गुनी सुबोधकांत से लिपट गई.. और उनके चेहरे को चूमने लगी.. चूमते हुए वह सुबोधकांत के शर्ट के बटन खोलने लगी और शर्ट को उतार दिया.. हेंडसम पर्सनालिटी वाले सुबोधकांत की चौड़ी छाती पर बालों के जंगल को देखकर वैशाली और मौसम भी गरम हो गए..

फाल्गुनी ने सुबोधकांत के पेंट की चैन खोली और उनका लंड बाहर निकाला.. अपने बाप का खुला लंड देखकर मौसम स्तब्ध हो गई.. ये वही अंग था जिसके रस से मौसम का जन्म हुआ था.. पुरुष का ये सख्त अंग.. किसी कुंवारी लड़की के मन में शर्म या हया को जन्म दे सकता है.. पर किसी अनुभवी स्त्री के लिए.. चूत की गहराई तक जाकर.. बच्चेदानी पर चोट करने वाला उपकरण था.. वैशाली काफी समय से लंड के लिए तरस रही थी.. उससे दोगुनी उम्र के पुरुष का लंड पकड़ने में शरमा रही फाल्गुनी पर वैशाली को गुस्सा आ रहा था.. उसके मुंह से निकल गया

"ये मादरचोद शरमा क्यूँ रही है? कितना मस्त लंड है यार.. !! मौसम, मैं तो उसे एक घंटे तक चुस्ती रहूँ फिर भी मेरा मन न भरें.. अंदर घुसाने पर कितना मज़ा आएगा यार.. !! ये सारी खुजली एकदम शांत हो जाए.. बाप रे.. काफी बड़ा है.. मन कर रहा है की अभी अंदर चली जाऊ और फाल्गुनी को धकेलकर तेरे पापा का लंड पकड़ लू.. "

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मौसम: "तो चली जा अंदर.. और बुझा ले अपने जिस्म की प्यास.. !!"

वैशाली: "सही में यार.. बहोत मस्त लंड है तेरे पापा का.. इस उम्र में भी उनकी फिटनेस गजब की है.. मुझे तो सच में उनसे चुदवाने का मन कर रहा है.. यार, देख ना.. कैसे ऊपर नीचे झटके खा रहा है.. ये फाल्गुनी बेकार में समय बर्बाद कर रही है.. "

वैशाली ने अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और मौसम को अपनी ओर घुमा दिया.. उसे नीचे झुकाकर अपनी निप्पल मौसम के मुंह में दे दी.. बिना शरमाये मौसम चूसने लगी क्योंकि वह खुद भी बहोत गरम थी.. वैशाली मौसम की सलवार के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत में उंगली आगे पीछे करने लगी.. गीली पुच्ची में उंगली पुच-पुच की आवाज करते अंदर बाहर हो रही थी.. मौसम की चूत में फिंगर-फकिंग करते हुए वैशाली की हवस बेकाबू हो गई थी

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वैशाली की कामुक बातें.. मुंह में उसकी निप्पल.. चूत में उसकी उंगली और सामने चल रही पापा और फाल्गुनी की रंगीन चुदाई.. इन सब के संयोजन से मौसम की चूत ने पानी छोड़ दिया.. किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई वो.. उसकी आँखें ऊपर चढ़ गई.. आह्ह आह्ह के उद्गार करते हुए वो वैशाली के शरीर पर ढल गई.. अचानक वज़न आने से दोनों असंतुलित होकर पास पड़े टेबल से टकराए और उसकी आवाज से सब चोंक उठे.. घबराकर मौसम खड़ी हुई.. अपने जिस्म को दुपट्टे से ढँकते हुए वो ऑफिस से बाहर भाग गई.. उधर आवाज सुनकर चोंके हुए सुबोधकांत ने अपनी केबिन का दरवाजा खोला.. वो अपना लंड भी पेंट के अंदर डालना भूल गए थे.. इस अचानक हरकत से सुबोधकांत का लंड सिकुड़ गया..

वैशाली अपने आप को संभाल पाती उससे पहले ही सुबोधकांत अपनी केबिन से लंड लटकाए हुए बाहर निकले.. बाहर वैशाली को खुले हुए स्तन के साथ खड़ी देखकर उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा

सुबोधकांत: "अरे तुम?? यहाँ कैसे.. ?? यहाँ का पता किसने दिया तुम्हें?"

वो आगे कुछ बोलते उससे पहले ही वैशाली उनसे लिपट गई और चूमने लगी.. सुबोधकांत को पता नही चल रहा था की ये सब अचानक क्या हो रहा था.. !!! पर फाल्गुनी से बड़े स्तन को खुला देख उनके लंड ने एक झटका जरूर लिया..

"इन सब बातों का टाइम नही है अभी अंकल.. मैं अभी बहोत गरम हूँ"

फाल्गुनी डरते हुए बाहर निकली और उसने देखा की सुबोधकांत और वैशाली एक दूसरे से लिपटे हुए थे.. वैशाली का चेहरा फाल्गुनी की तरफ था.. सुबोधकांत को पता नही था की फाल्गुनी बाहर आ चुकी है.. वैशाली ने फाल्गुनी को आँख मारी.. फाल्गुनी शरमाकर केबिन के अंदर चली गई..

तुरंत घुटनों पर बैठकर वैशाली ने सुबोधकांत का लंड मुंह मे ले लिया.. उसके मुंह की गर्मी से लंड पल भर में सख्त होकर लहराने लगा.. बाहर खड़ी मौसम, दरवाजे को हल्का सा खोलकर अपने बाप का लंड चूस रही वैशाली को देख रही थी.. वो अभी भी कांप रही थी..

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जिस तरह वैशाली लंड चूस रही थी उससे साफ जाहीर हो रहा था की उसकी तड़प कितनी तीव्र थी.. मौसम बाहर खड़े ये देखकर घबरा रही थी की कहीं उसके पापा को पता न चल जाए की वो वैशाली के साथ थी और उनकी रंगरेलियों को देख चुकी थी.. !! दरवाजे से छुपकर देख रही मौसम पकड़े जाने के डर से थर थर कांप रही थी.. लेकिन वो चाहकर भी वहाँ से जा न सकी.. इतने करीब से वैशाली और पापा की हवस-लीला को देख रही मौसम को डर के साथ साथ चूत की खुजली भी सता रही थी जो उसे वहाँ से जाने से रोक रही थी.. उसकी कुंवारी जवान चूत लंड लेने के लिए बेचैन हो रही थी.. वैशाली ने साहस किया तो उसे लंड मिल गया.. मौसम ने आज एक महत्वपूर्ण पाठ सिख लिया था.. मजे करने के लिए साहस करना बेहद जरूरी था.. बिना साहस, सिद्धि नही मिलती.. और लंड भी नही मिलता.. !!

ऑफिस के बाहर सुमसान गली में खड़ी मौसम कपड़ों के ऊपर से ही अपने स्तनों को भींच रही थी.. मन ही मन उसने तय कर लिया था की एक बार तो जीजू के साथ चुदवाना ही पड़ेगा.. चाहे कुछ भी हो जाए.. अब मौका मिले तो शरमाकर वक्त बर्बाद नही करना है.. उस समय का भरपूर उपयोग कर पूरा मज़ा लेना है.. नही तो जीजू और मेरी दोनों की इच्छाएं अधूरी रह जाएगी..

शर्म से पानी पानी हो रही मौसम की नज़रों के सामने वैशाली अपने दोनों स्तनों को बेशर्मी से सुबोधकांत के हवाले करते हुए निप्पल चुसवा रही थी.. वैशाली के बड़े बड़े बबले देखकर सुबोधकांत का लंड लोहे की पाइप जैसा सख्त होकर ऊपर नीचे हो रहा था.. मौसम ने अपने पापा का विकराल लंड देखकर आँखें बंद कर ली.. और करती भी क्या.. !!

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अपनी सहेली के उरोजों को मसल रहे पापा को देखकर मौसम के दिमाग में एकदम गंदा खयाल आया.. छी.. छी.. अपने सगे बाप के बारे में ऐसा सोचना कितना गलत है.. !! अपने आप पर ही घृणा होने लगी मौसम को.. दूसरी तरफ फाल्गुनी अंदर ऑफिस में बैठकर वैशाली और सुबोधकांत की कामुक हरकतों को देखकर ज्यादा गरम हो रही थी.. वैसे जब सुबोधकांत उसे छोड़कर बाहर निकलें तब उसका ऑर्गजम बाकी था.. बीच राह में छोड़कर गए लंड का वो बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी.. टेबल पर पड़ी पेन लेकर फाल्गुनी अपनी चूत पर रगड़ने लगी..

वैशाली की हरकतें सुबोधकांत को पागल बना रही थी.. फाल्गुनी के मुकाबले वो अनुभवी थी इसलिए जिस तरह वो सहयोग दे रही थी उससे सुबोधकांत हतप्रभ थे.. उसके प्रत्येक स्पर्श में अनुभवी स्त्री की झलक थी.. चाहे सुबोधकांत के लंड को सहलाने की बात हो या उसके अंडकोशों को दबाने की.. सुबोधकांत वैशाली के अर्धनग्न शरीर पर भूखे भेड़िये की तरह टूट पड़ा था.. इतना गदराया बदन.. आहाहा.. वैशाली के जिस्म के मुकाबले फाल्गुनी का जिस्म काफी साधारण लगने लगा सुबोधकांत को.. अक्सर पुरुषों को सेक्स करते वक्त बेशर्म औरतें ज्यादा पसंद होती है.. वैशाली आखिर थी तो शीला की ही बेटी.. हवस और उत्तेजना में उसका कोई सानी नही था.. वो भी सुबोधकांत पर ऐसे टूट पड़ी जैसे आज के बंद उसे लंड मिलने वाला ही न हो.. और यहाँ किसी बात का कोई डर नही था.. फाल्गुनी और मौसम से तो वो खुल ही चुकी थी.. अब यहाँ उसे चुदवाने से कोई रोक नही सकता था..

जैसे जैसे वैशाली सोचती गई वैसे वैसे उसे महसूस हुआ की सुबोधकांत से चुदवाने में कोई खतरा नही था.. उसका सहयोग और बढ़ने लगा और उसके अंदर की भूखी स्त्री खिलने लगी.. जिसका सीधा फायदा सुबोधकांत को मिल रहा था.. वैशाली जवान थी.. खूबसूरत थी.. गदराए जिस्म वाली थी.. उसका भरा हुआ शरीर किसी भी मर्द को आकर्षित करने के काबिल था.. उसके स्तन बड़े बड़े थे और दो स्तनों के बीच की खाई इतनी नशीली थी किसी भी पुरुष को देखकर ही बीच में लंड डालने का मन हो जाए..

अब तक फाल्गुनी ने मौसम को देखा नही था इसलिए उसकी मौजूदगी के बारे में उसे पता नही चला था.. और सामने जब इतना बड़ा कांड चल रहा हो.. साथ में खुद की चूत में भी आग लगी हो.. तब और कहीं ध्यान जाता भी कैसे??

अपनी उत्तेजक हरकतों से वैशाली.. न केवल सुबोधकांत को मजे दे रही थी.. बल्कि साथ साथ फाल्गुनी और मौसम को प्रेक्टिकल ट्यूशन भी दे रही थी.. आज की इस क्लास के बाद मौसम और फाल्गुनी को सेक्स का पाठ कहीं और सीखने जाने की जरूरत नही पड़ने वाली थी.. वह दोनों परीक्षा में बैठकर उत्तीर्ण होने जीतने तैयार हो जाने वाले थे..

मौसम ने आज जीवन में पहली दफा किसी को लंड चूसते देखा था.. जिस अंग को वो मुंह में लेने लायक नही मानती थी.. वही अंग अभी उसे महंगी लोलिपोप जैसा लग रहा था.. जैसे जैसे मौसम वैशाली को अपने पापा का लंड चूसते देखती रही उसके मन में पीयूष जीजू का लंड चूसने की इच्छा और अधिक तीव्र होने लगी.. कभी कभी बेहद उत्तेजित होकर वैशाली पूरा लंड निगल जाती.. और कुछ सेकंडों के लिए वैसे ही स्थिर रहती तब मौसम को ताज्जुब होता की इतने लंबे समय तक वैशाली किस तरह इतना बड़ा लंड अंदर ले पा रही है.. !! एक पल के लिए तो मौसम को उलटी करने का मन होने लगा

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अब तक के कार्यक्रम देखकर मौसम और फाल्गुनी ने लंड चूसना सीख लिया था.. लंड चूसते हुए अचानक वैशाली की नजर.. दरवाजे के पीछे से देख रही मौसम पर पड़ी.. उसने बड़ी ही चालाकी से सुबोधकांत को घुमाकर उनकी पीठ मौसम की ओर कर दी ताकि वो पकड़ी न जाए.. मौसम का डर अब चला गया..

अब मौसम को अपने पापा के कूल्हें नजर आ रहे थे.. लंड छोड़कर वैशाली खड़ी हुई और सुबोधकांत के गले लग गई.. उनकी बालों वाली छाती से अपने स्तनों को रगड़ते हुए वो उन्हे उनकी केबिन में खींच गई.. जहां फाल्गुनी कोने में पड़े सोफ़े पर पैर चौड़े कर अपनी चूत पर पेन रगड़ रही थी.. फाल्गुनी की आँखें बंद होने के कारण उसे पता नही चला की वैशाली और सुबोधकांत अंदर केबिन में आ चुके थे.. जब वैशाली ने फाल्गुनी के एक स्तन को दबाया तब उसने अचानक आँख खोली और शरमा गई..

वैशाली: "साली हरामजादी.. अपने बाप के उम्र के अंकल से चुदवाते वक्त तो शर्म नही आई थी तुझे.. तो अब क्यों शरमा रही है?"

फाल्गुनी को अब शर्म छोड़नी ही पड़ी क्योंकि उसका एक स्तन वैशाली चूस रही थी और दूसरा स्तन सुबोधकांत ने मुंह में ले रखा था.. साथ साथ दोनों फाल्गुनी की चूत में भी बारी बारी उंगली करने लगे.. एक साथ दो लोगों का स्पर्श पाकर फाल्गुनी की बची-कूची शर्म भी हवा हो गई.. और उसने सुबोधकांत के लंड को मुठ्ठी में पकड़ लिया.. वैशाली की लार से पूरा लंड गीला और चिपचिपा था.. फाल्गुनी का शरीर तब अकड़ कर सख्त हो गया जब वैशाली की जीभ उसकी चूत पर चलने लगी..

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धीरे धीरे तीनों ने अपने सारे कपड़े उतार दिए.. और मादरजात नंगे हो गए.. कौन क्या कर रहा था उसकी परवाह कीये बगैर सब अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने में लग गए.. वैशाली सुबोधकांत का लंड अपनी चूत मे लेने के लिए तड़प रही थी.. सांप जैसे अपने शिकार को सूंघ रहा हो वैसे ही सुबोधकांत का सुपाड़ा वैशाली के चूत के होंठों को सूंघ रहा था..

अपने आप को अनुकूल पोजीशन में सेट करके वैशाली ने सुबोधकांत के लंड को अपनी चूत के छेद पर रखकर एक धक्का दिया.. आधा लंड अंदर घुस गया और वैशाली आनंद से नाच उठी.. हररोज चुदवाने की आदत वाली वैशाली को अपने पति से अनबन के बाद लंड के लाले पड़ गए थे.. अपने ससुराल में वो कहीं मुंह मार न सकी.. और बगैर लंड लिए उसे चलता नही था.. अच्छा हुआ की वो अपने मायके आ गई.. और उसे हिम्मत, पीयूष, राजेश सर और सुबोधकांत का लंड मिला.. वरना वो पागल हो जाती..

हिम्मत के साथ रोज रोज कर पाना मुमकिन नही था इसलिए उसने पीयूष को पटाया.. लेकिन पीयूष पड़ोस में ही रहता था.. किसी को पता चल जाने का डर था.. और आज कल तो वो भी मौसम में डूबा रहता था और उसकी तरफ देखता नही था.. राजेश सर के साथ उस छोटे से संभोग में मज़ा आया था पर तब बड़े टेंशन में उसने चुदवाया था.. वैशाली बड़े आराम से बिना किसी चिंता के चुदवाना चाहती थी और वो मौका आज उसे मिल ही गया..

वैशाली की चूत में सुबोधकांत का आधा लंड घुसा ही था तब फाल्गुनी ने कहा "वैशाली, पहले मेरा तो खतम हो जाने दे.. फिर तू करवा लेना.. तुझे देखकर अंकल बाहर भागे और मेरा अधूरा रह गया.. मैं तब से बैठी तड़प रही हूँ.. नीचे चुनचुनी हो रही है कब से.. अगर अंकल जल्दी अंदर डालेंगे नही तो मैं पागल हो जाऊँगी.. ओह्ह.. देख ना.. कब से इस पेन को घिसे जा रही हूँ.. अंकल प्लीज पहले मुझे करो फिर वैशाली के साथ करना"

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अपने दोनों स्तनों को विजातीय और सजातीय दोनों पात्रों से चुसाई होते देख फाल्गुनी की हवस पराकाष्ठा पर पहुँच गई थी.. वैशाली ने फाल्गुनी की चिपचिपी चूत में दो उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर किया.. और फिर फाल्गुनी को सोफ़े पर उलटे होकर डॉगी स्टाइल में हो जाने को कहा.. सुबोधकांत का लंड पकड़कर वैशाली ने उसे फाल्गुनी की चूत की तरफ खींच और उसके सुराख पर सुपाड़ा रख दिया.. जानी पहचानी चूत पर सुपाड़े ने वीर्य की एक बूंद गिराकर चुंबन किया.. उत्तेजना के कारण और पेन से घिसाई करने के बाद चिपचिपी चूत में सुबोधकांत का लंड एक धक्के में घुस गया.. फाल्गुनी के चूतड़ों को दोनों हाथों से फैलाकर लंड के शानदार योनि-प्रवेश का नजारा बिल्कुल करीब से देखने लगी वैशाली..

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सोफ़े पर घोड़ी बनी फाल्गुनी अपनी चूत में सुबोधकांत के लंड के धक्के खा रही थी.. तभी वैशाली उसकी पीठ पर इस तरह सवार हो गई की उसके दोनों स्तन सुबोधकांत के बिल्कुल सामने आ जाए.. और अपनी नंगी चूत को फाल्गुनी की कमर पर रगड़ते हुए.. सुबोधकांत का सर अपने भव्य स्तनों के बीच दबा दिया..

लंड पर महसूस होती फाल्गुनी की चूत की गर्मी.. और चेहरे पर वैशाली के स्तनों की गर्माहट का एहसास.. सुबोधकांत की तो जैसे लॉटरी लग गई थी.. लयबद्ध तरीके से कमर को हिलाते हुए फाल्गुनी ने पूरा लंड अंदर ले लिया था.. फुला हुआ लोडा पूरा अंदर तक घुसते ही उसकी नाजुक चूत सहम गई.. उसे दर्द होने लगा

"आह्ह.. मर गई.. ऊई माँ.. थोड़ा सा बाहर निकालिए अंकल.. !!" फाल्गुनी चीख रही थी.. पर उसका कोई विरोध नही था.. ये तो आनंद भरी चीखें थी.. कुछ पीड़ाएं ऐसी होती है जिसमे अद्वितीय आनंद छुपा होता है.. अपने प्रियतम के हाथों स्तन मर्दन से होती पीड़ा का अनुभव करने के लिए हर माशूका दुनिया से छुपकर.. अपने चेहरे को दुपट्टे से ढँककर.. गली गली फिरती नजर आती है.. उस पीड़ा में जो आनंद की अनुभूति होती है वैसा ही कुछ फाल्गुनी को भी महसूस हो रहा था.. वैशाली भी सुबोधकांत के लंड को अंदर बाहर होते देखकर अपने स्तनों को जोर से मसलवाते हुए उसी पीड़ा भरे आनंद के मजे लूट रही थी..

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सुबोधकांत वैशाली के स्तनों की साइज़ पर फ़ीदा हो चुके थे.. इतने बड़े होने के बावजूद एकदम सख्त थे वैशाली के स्तन.. वैशाली के होंठों पर किस करते हुए सुबोधकांत ने कहा

"लगता है ज्यादा इस्तेमाल नही हुए है.. इसीलिए इतने टाइट है"

वैशाली: "हाँ अंकल.. मेरे पति से मेरी जमती नही है इसलिए जिस्मानी सुख के लिए तड़प रही हूँ.. फाल्गुनी ने मुझे माउंट आबू में आप दोनों के संबंधों के बारे में बताया तब से दिल कर रहा था की कब मुझे भी आप के साथ करने का मौका मिलें.. !! फाल्गुनी का हो जाए बाद में मेरे साथ भी करोगे ना अंकल, प्लीज??"

ये एक ऐसी रीक्वेस्ट थी जिसे दुनिया का कोई मर्द मना नही कर सकता.. सुबोधकांत हवस से पागल हो रहा था.. वैशाली जैसा कडक माल सामने से चुदने के लिए विनती कर रहा हो तब कौन भला इनकार करेगा?? वैशाली के दोनों स्तनों को तहसनहस करते हुए सुबोधकांत ने कहा

"तेरे साथ भी करूंगा मेरी जान.. तेरी चूत चाटकर पहले गरम करूंगा और फिर तसल्ली से चोदूँगा.. और ऐसा चोदूँगा की तेरे पति की कमी तुझे महसूस नही होगी.. जब मन करें मेरी ऑफिस पर चली आना.. तुझे रानी बनाकर चोदूँगा.. !!" उत्तेजक बातें करते हुए सुबोधकांत ने फाल्गुनी की चूत का फ़ालूदा बना दिया.. उनके दमदार लंड के हर धक्के पर फाल्गुनी आह-आह कर रही थी..

"डॉन्ट वरी फाल्गुनी.. अभी दर्द सहन कर ले.. अंकल का मोटा है इसलिए दर्द हो रहा है.. पर शादी के बाद बिल्कुल तकलीफ नही होगी तुझे और तेरे पति का बड़ी आसानी से अंदर चला जाएगा.. " संकरी चूत में लंड अंदर बाहर होने से कराह रही फाल्गुनी के लटक रहे बबलों को दबाते हुए वैशाली ने कहा

"वैशाली यार.. तेरे बोल बड़े मस्त है.. मेरे इतने बड़े होते तो कितना अच्छा होता.. ?? वैसे तेरे इतने बड़े बड़े हुए कैसे?" फाल्गुनी ने पूछा.. वह देख सकती थी की सुबोधकांत का सारा ध्यान वैशाली के बड़े स्तनों पर था और उसे स्त्री सहज ईर्ष्या हो रही थी

फाल्गुनी के लटकते स्तनों को पकड़कर मसलते हुए वैशाली ने कहा "ओह फाल्गुनी.. तू रोज अंकल से बॉल दबवाना और चुदवाते रहना.. वो जीतने ज्यादा दबाएंगे उतने ही बड़े होते जाएंगे तेरे.. और रोज चूत में अंकल के लंड का पानी जाएगा तो उससे पोषण पाकर तेरे स्तन मुझ जैसे बड़े हो जाएंगे.. जितना ज्यादा चुदवाएगी उतने बड़े होंगे " खिलखिलाकर हँसते हुए मज़ाक करने लगी वैशाली

जितना मज़ा सुबोधकांत को फाल्गुनी के साथ संभोग करने में आ रहा था उतना ही मज़ा उन्हें वैशाली की कामुक बातों में भी आ रहा था.. सुबोधकांत ने जीवन में पहली बार किसी जवान लड़की को इस तरह खुली भाषा का प्रयोग करते हुए सुना था.. इन नंगी बातों को सुनकर उनका लंड.. फाल्गुनी की चूत के अंदर और सख्त हो रहा था.. और ये फाल्गुनी भी महसूस कर रही थी.. पहले के मुकाबले आज उसे कुछ ज्यादा ही दर्द हो रहा था.. वो यही सोचकर परेशान हो रही थी की अंकल आज पिछली बार के मुकाबले ज्यादा आक्रामक क्यों लग रहे थे.. !! वैसे इतनी बार चुदने के बाद तो दर्द कम होना चाहिए.. फिर आज क्यों इतना दर्द हुआ? क्या हर बार के मुकाबले आज उनका लंड ज्यादा मोटा था?

हकीकत तो यह थी.. फाल्गुनी की कमसिन जवानी के साथ वैशाली का जोबन साथ मिलते ही.. सुबोधकांत का लंड उत्तेजना से फूल गया था.. दो लड़कियों को एक साथ भोगने का सुबोधकांत के लिए भी पहला मौका था.. वह भी एक कारण था.. !!

सुबोधकांत ने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी और फाल्गुनी की चूत में हाहाकार मच गया.. उनकी केबिन का दरवाजा खुला ही था इसलिए मौसम भी एकदम बाहर खड़े हुए यह सारा नजारा देख पा रही थी.. अपनी दोनों सहेलियों को पापा से चुदते हुए देख वो बेकाबू होकर अपने स्तन मसल रही थी..

उसी वक्त मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. अब तक छुपकर बैठी मौसम की पोल खुलने वाली थी.. हड़बड़ाते हुए मौसम ने फोन काट दिया.. और दरवाजे से दूर डस्टबिन के पीछे छुप गई..

"किसका फोन बजा??" सुबोधकांत ने वैशाली से पूछा.. वैशाली ने जवाब नही दिया पर सुबोधकांत को पक्का यकीन हो गया की बाहर जरूर कोई था.. सुबोधकांत के चेहरे के हावभाव देख वैशाली भी चौकन्ना हो गई.. अगर अंकल को डाउट गया और वो बाहर गए तो मौसम पकड़ी जाएगी..

"अरे अंकल, वो तो बाहर से कोई गुजरा होगा और उसका मोबाइल बजा होगा.. " कहते हुए वैशाली ने अपने अमोघ-शस्त्र जैसे स्तनों के बीच सुबोधकांत का सर दबा दिया.. वैशाली के भरपूर स्तनों को मुंह में लेकर चूसते हुए सुबोधकांत मोबाइल की रिंग को भूल गए.. और उस स्वर्गीय आनंद का लुत्फ उठाने लगे

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अब मौसम ने अपने कपड़े ठीक कीये.. और मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया.. और चुपके से अपनी स्कूटी की ओर चल दी.. उसके हर कदम के साथ उसकी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही थी.. आते जाते लोगों की नजर उस जवान स्तन-युग्म पर चिपक गई थी.. मौसम गली के बाहर जाकर स्कूटी के पास खड़ी रहकर वैशाली का इंतज़ार करने लगी.. आते जाते लोगों की नज़रों से परेशान होकर उसने स्कूटी स्टार्ट किया और पास के एक गार्डन की बैठक पर जा बैठी.. आज उसने जो कुछ भी देखा था वो उसे ज़िंदगी भर याद रहने वाला था.. उम्र के ऐसे मुकाम पर उसने यह द्रश्य देखा था जब की वह खुद जवानी के महासागर की उन्मादक लहरों में गोते खा रही थी.. पापा इतने कामुक होंगे उसका उसे अंदाजा नही था.. अपने पापा का जितना सन्मान उसकी नज़रों में था वह सब एक ही पल में खाक हो कर रह गया.. मेरे पापा ऐसे ??? छी..छी..छी.. क्या पापा को मेरी मौजूदगी के बारे में पता चल गया होगा? क्या उन्होंने मेरे मोबाइल की रिंग सुन ली होगी?

मौसम ने तुरंत अपनी ब्रा में दबाए मोबाइल को बाहर निकाला और स्विच ऑन किया.. सब से पहला काम उसने अपना रिंगटोन बदलने का किया.. ताकि फिर कभी सुबोधकांत उस रिंगटोन को सुनकर शक न करें..

मौसम विचार कर रही थी की वैशाली को कैसे बताऊँ की मैं यहाँ गार्डन में बैठी हूँ?? अभी क्या कर रही होगी वो? बहोत ही हॉट है वैशाली.. पापा के साथ सब काम पूरा करके ही आएगी.. फाल्गुनी भी हरामी छुपी रुस्तम निकली.. जितनी भोली लगती है वैसी है नही.. कितनी मस्ती से पापा से चुदवा रही थी.. !! फिर वो सेक्स की बातें करते वक्त इतना डरती क्यों थी?? अभी तो उसके चेहरे पर कोई डर नही था.. या फिर मेरे साथ नाटक करती थी?? अब तक तो उसने फाल्गुनी और पापा के कारनामों के बारे में सिर्फ सुना ही था.. आज अपनी सगी आँखों से देख भी लिया.. सारे भेद आज खुल चुके थे.. पापा को अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ ये सब करने में शर्म नही आई होगी?? दोनों के बीच ये प्रेम प्रकरण की शुरुआत कैसे हुई होगी? पहल पापा ने की होगी या फाल्गुनी ने? अनगिनत सवालों से मौसम का दिमाग घिर चुका था पर जवाब नही थे

लगभग एक घंटा बीत चुका था पर वैशाली लौटी नही थी.. मौसम को अपनी जगह पर ना देखकर वो फोन तो जरूर करती.. बैठे बैठे मौसम बोर हो रही थी.. कितनी देर लगा दी वैशाली ने?? अब तक उसकी आग नही बुझी?? क्या करूँ? फोन करूँ उसे? पर पापा को पता चल जाएगा.. फोन तो नही कर सकती..


बिल्कुल उसी वक्त पीयूष, कविता, शीला और मदन ने उसी बागीचे में प्रवेश किया जहां मौसम बैठी हुई थी.. मौसम उनको देखकर घबरा गई और झाड़ियों के पीछे छुपने जा ही रही थी की तब शीला ने उसे देख लिया..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है मौसम और वैशाली ने सुबोधकांत और फाल्गुनी की रासलीला देख ली है दोनो ही फाल्गुनी और सुबोधकांत की रासलीला देखकर गरम हो गई वैशाली तो सुबोधकांत से चुदने के लिए तैयार हो गई सुबोधकांत के मजे हो गए फाल्गुनी के साथ वैशाली की चूत मिल गई वही मौसम को शीला कविता पीयूष ने पार्क में देख लिया है अब देखते हैं मौसम फाल्गुनी और वैशाली को कैसे बचाती हैं
 

vakharia

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बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है शीला संजय के ड्राइवर से भी चूद गई बेचारा ड्राइवर गाड़ी चलाते वक्त दोनो की रासलीला देखकर गरम हो गया और उसे मोका मिल गया शीला को हाफिज का लन्ड पसंद आया
Thanks a lot for your lovely comments Sanju@ bhai :love: :love2: :love3:
 

vakharia

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बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है शीला संजय के ड्राइवर से भी चूद गई बेचारा ड्राइवर गाड़ी चलाते वक्त दोनो की रासलीला देखकर गरम हो गया और उसे मोका मिल गया शीला को हाफिज का लन्ड पसंद आया
Thanks bhai💖❤️💖
 
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vakharia

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बहुत ही धमाकेदार अपडेट है गोवा में शिला अपने दामाद के साथ रंगरेलियां मना रही है वही बेटी टूर पर राजेश से चूद गई दोनो मां बेटी के लिए वोदका काम कर गई वैशाली को पीयूष और राजेश की बीवी रेणुका के बारे में पता चल गया है
Thanks a lot bhai💖❤️💖
 
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Sanju@

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लगभग एक घंटा बीत चुका था पर वैशाली लौटी नही.. मौसम को अपनी जगह पर ना देखकर वो फोन तो जरूर करती.. बैठे बैठे मौसम बोर हो रही थी.. कितनी देर लगा दी वैशाली ने?? अब तक उसकी आग नही बुझी?? क्या करूँ? फोन करूँ उसे? पर पापा को पता चल जाएगा.. फोन तो नही कर सकती..

बिल्कुल उसी वक्त पीयूष, कविता, शीला और मदन ने उसी बागीचे में प्रवेश किया जहां मौसम बैठी हुई थी.. मौसम उनको देखकर घबरा गई और झाड़ियों के पीछे छुपने जा ही रही थी की तब शीला ने उसे देख लिया..

"अरे मौसम.. तू यहाँ कैसे?? अकेली बैठी क्या कर रही थी?" शीला ने पूछा.. कविता और पीयूष भी चोंक गए थे मौसम को यहाँ देखकर

मौसम के दिमाग में तुरंत कोई जवाब नही आया.. क्या बहाना बनाउ??

"वैशाली बाथरूम गई है.. उसके वापिस आते ही हम घर जा रहे थे.. आप सब जगह घूम आए? कैसा लगा मेरा शहर?" मौसम ने अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लाकर कहा

मौसम कितनी भी होशियारी क्यों न कर ले.. आखिर वो नादान थी.. अनुभवहीन थी.. प्रपंचों की कला उसे आती नही थी.. उसके सुंदर चेहरे पर कुछ छुपाने का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था.. शीला की शातिर नजर ने ये बखूबी पकड़ लिया

जवान लड़कियों के निजी मामलों में दखल नही देनी चाहिए ऐसा शीला मानती थी.. मौसम के झूठ को तो उसके दिमाग ने पकड़ लिया था पर वो उसे परेशान करना नही चाहती थी..

"चलो सब.. ये तो गार्डन ही है.. यहाँ कुछ खास देखने लायक नही है.. पीयूष, हमें किसी मॉल में ले चल.. यहाँ तक आए है तो थोड़ी शॉपिंग भी कर लेते है" कहते हुए शीला बाकी सब को लेकर गार्डन से निकल गई

मन ही मन शीला भाभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए मौसम ने चैन की सांस ली.. अब उसके पास कोई चारा नही था.. डरते डरते उसने वैशाली को फोन लगाया

"हैलो, कहाँ है तू यार.. मैं तो कब से तुझे ढूंढ रही हूँ" वैशाली ने उल्टा सवाल किया

चिढ़ी हुई मौसम ने कहा "अरे बेवकूफ.. कितनी देर तक खड़ी रहती वहाँ? आते जाते सब लोग मुझे शक की निगाह से देख रहे थे.. और तू तो बाहर निकलने का नाम ही नही ले रही थी? क्या किया इतनी देर तक? तेरा मन भरा की नही? चल छोड़.. जहां मैंने स्कूटी पार्क किया था वहीं इंतज़ार कर.. मैं दो मिनट में पहुँचती हूँ"

फोन काटकर मौसम ने स्कूटी दौड़ा दी.. वैशाली को देखकर आज पहली बार मौसम शरमा गई.. जो लड़की उसके सामने खड़ी थी वो अभी अभी उसके पापा से चुदवाकर आई थी.. ये बात मौसम को शर्माने के लिए काफी थी

मौसम की स्कूटी वैशाली के करीब आते ही दोनों की आँखें चार हुई और वैशाली ने शरारती मुस्कान के साथ मौसम को देखा.. वैशाली के शरीर और चेहरे की चमक देखते ही पता लगता था की वो पूर्णतः संतुष्ट होकर आई थी.. जब वो अंदर गई तब निस्तेज थी.. चेहरे पर नूर नही था.. और अब एक घंटे के बाद उसका चेहरा गुलाब के पौधे की तरह खिला खिला लग रहा था.. मौसम समझ गई की पापा के संग सेक्स भोगकर वैशाली इतनी संतुष्ट हो गई थी की उसका चेहरा चमक रहा था..

पेट की भूख के लिए होटल या रेस्टोरेंट आसानी से मिल जाते है पर जिस्म की भूख के लिए?? उसके लिए तो मन को मनाकर तड़पना पड़ता है.. पुरुष तो फिर भी रेड-लाइट एरिया में जाकर अपनी भूख मिटा सकते है पर औरतों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नही है.. विधवा, तलाक-शुदा औरतें.. या फिर ऐसी औरतें जिनका पति अब उन्हें संतुष्ट नही कर पाता.. ये सब बेचारी कैसे अपनी आग बुझाएं.. !! हर जगह सामाजिक बंधन अड़ंगा जमाएं उन्हें रोक लेते है.. ऐसी कोई व्यवस्था होनी ही चाहिए जहां कोई भी लड़की या औरत बेफिक्री से और गर्व के साथ अपनी भूख संतुष्ट कर सकें.. पर नही.. पुरुष प्रधान समाज इसकी कभी इजाजत नही देगा..

कई पुरुष सिर्फ यही समझते है की स्त्री, जब चाहे इस्तेमाल करने का और भोगने का साधन मात्र है.. पर स्त्री की जरूरतों के बारे में पूछने का खयाल उनके दिमाग में कभी नही आता.. सामाजिक शर्म के कारण शारीरिक रूप से असन्तुष्ट स्त्री बेचारी इज्जत को बचाने के चक्कर में सेक्स के परम आनंद को भोग नही पाती.. आखिर उस भूख से तड़प तड़पकर.. अयोग्य पुरुषों को अपना जिस्म सौंप बैठती है और फिर वही पुरुष उसके विश्वास का भंग करके.. पान की दुकान या चाय की टपरी पर.. अपने दोस्तों के बीच.. उस स्त्री के शरीर को कैसे भोगा.. उसका विवरण देकर वाह-वाही बटोरते है.. जैसे शिकारी शेर मारकर आया हो.. !!

स्त्री वाकई इन मामलों में अबला है.. क्यों की जिस मर्द पर वो पूरा विश्वास रखकर अपना सर्वस्व अर्पण करती है.. वही पुरुष दुःशासन बनकर पब्लिक में उनके जिस्म का वर्णन कर, सरेआम वस्त्राहरण कर देते है.. इन सारी बातों से अनजान वह स्त्री उस मर्द को प्यार कीये जाती है और उल्लू बनती रहती है.. जब उसे पता चलता है तब तक बहोत देर हो चुकी होती है और वो कुछ नही कर पाती.. ऐसे लोफ़रों से प्यार करना चक्करखिली की सवारी जैसा होता है.. सिर्फ गोल गोल घूमते है पर मंजिल पर कभी नही पहुंचते..

खैर, अब वक्त बदल रहा है.. स्त्री सशक्तिकरण पूरे ज़ोरों से चल रहा है.. और कई स्त्रीयां इसका गलत लाभ भी भरपूर उठा रही है.. जरूरत है.. सोच बदलने की.. पुरुषों को और स्त्रीयों को भी.. !!

वैशाली मौसम के पीछे उसके काँधें पर हाथ रखकर स्कूटी पर बैठ गई.. फिर से एक बार वैशाली के मदमस्त स्तन मौसम की पीठ से दबकर चपटे हो गए.. मौसम को बहोत कुछ पूछना था पर स्कूटी चलाते वक्त ये सब बातें करना उसे ठीक नही लगा.. वैशाली के तमाम जवाबों में उसके पापा शामिल थे और उसे आखिर ये सब सुनकर शर्म ही आनेवाली थी.. पर स्त्री का मन ही ऐसा होता है.. वो कोई बात छुपा ही नही सकती.. कोई भी गुप्त या गोपनीय बात किसी औरत से कहें तो उसके थोड़े ही वक्त में पूरे मोहल्ले को वो बात पता चल जाती है.. अगर वाकई में आप किसी बात को गुप्त रखना चाहते है तो वो बतानी ही नही चाहिए..

कुदरत ने स्त्री का मन बड़ा ही भोला बनाया है.. जिसके साथ बात करती है उस पर पूर्ण विश्वास रखकर अपनी सबसे गुप्त बातें भी शेर कर देती है.. अनजान स्त्रीयां आपस में इसीलिए तो बड़ी ही आसानी से घुलमिल जाती है.. लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पहली किस करे तब उसे तब तक चैन नही पड़ता जब तक वो इस बारे में अपनी खास सहेली को बता नही देती.. उसकी किस तब तक पूर्ण ही नही होती.. इसी लिए तो जब वो लड़की अपने परिवार से छुपकर किसी लोफ़र के साथ भाग जाती है तब पुलिस सब से पहले उसकी सहेली से पूछताछ करती है.. पुलिस भी जानती है की लड़कियां अपने कारनामों के बारे में किसी न किसी सहेली की जरूर बताती है.. सहेली को सारी बात बताकर कहती है की किसीको बताना मत.. अरे, जब बात छुपानी ही है तो बताना क्यों?? फिर जब वो दोनों पुलिस के हाथों पकड़े जाते है.. तब उसके बॉयफ्रेंड को इतने डंडे पड़ते है.. की चुदाई का सारा मज़ा एक पल में गायब हो जाता है.. आखिर तक उस लड़के के दिमाग में यहीं विचार आता रहता है की आखिर उनके बारे में पुलिस को बताया किसने??

वैशाली भी सारी बातें बताने से खुद को रोक नही पाई.. एक के बाद एक रोमांचक अनुभव वो मौसम को बताती गई..

मौसम ने सिर्फ इतना ही पूछा.. "आखिर इतनी देर क्यों हुई तुझे? एकाध बार करवाने में इतना वक्त लगता है क्या?"

वैशाली: "अरे यार.. पहले अंकल ने फाल्गुनी को चोदा.. अब मर्द का एक बार निकल जाए फिर तुरंत तैयार नही होता.. "

मौसम के निर्दोष दिमाग को ये समझ में नही आया... उसने पूछा "मतलब.. ??"

वैशाली: "एक बार मर्द चोद ले और उसकी पिचकारी निकल जाए.. फिर उसके लंड को टाइट होने में थोड़ा वक्त लगता है.. ऐसे तुरंत ही खड़ा नही हो सकता.. !!"

"ओह.. !! अब समझी" स्कूटी को रोड पर मोड़ते हुए मौसम ने कहा

रास्ते के गड्ढों पर स्कूटी ऐसे उछल रही थी की अगर वैशाली को लंड होता तो अब तक उसने मौसम को दो-तीन बार स्खलित कर दिया होता.. वैशाली की कामुक बातों से और पीठ पर दब रहे स्तनों से मौसम तो उत्तेजित तो हो ही चुकी थी.. ऊपर से गड्ढों में ऊपर नीचे होकर पटखनी खाती स्कूटी की सीट पर चूत के घर्षण से बहोत मज़ा भी आ रहा था.. कुछ गड्ढों पर तो मौसम ने जानबूझकर स्कूटी डाल दी थी.. जो काम वो अपने जीजू से करवाना चाहती थी वही काम स्कूटी पर बैठे बैठे हो रहा था.. वो सोच रही थी.. जीजू को प्रोमिस तो कर दिया है पर अब उसे निभाऊँ कैसे?? अकेले मिलने का वादा तो कर लिया पर मिलेंगे कहाँ? और कब? बड़ा ही पेचीदा सवाल था.. तरुण के साथ सगाई से पहले जीजू के साथ मौका मिल जाए तो सब कुछ संभल जाएगा..

काफी अंधेरा हो चुका था.. साढ़े सात का समय हो रहा था..

वैशाली ने बात आगे बढ़ाई "थोड़ी देर बाद तेरे पापा का फिर से खड़ा हुआ.. फिर मैंने करवाया.. पर अंकल को मेरे साथ इतना मज़ा आया की जब मैं निकल रही थी तब मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा की उन्हें एक बार ओर मेरे साथ करना था.. अब तू बाहर मेरा इंतज़ार कर रही थी.. इसलिए मैं जाना चाहती थी पर क्या करती!! मैं अंकल को मना नही कर सकी.. असल में मुझे ही एक बार करवाने में संतोष नही हुआ था.. और दूसरी बार ऑर्गजम आने में हमेशा थोड़ी देर लगती है.. सॉरी बेबी.. तुझे इतना इंतज़ार करवाने के लिए.. पर यार आज तो मज़ा ही आ गया.. आई फ़ील सो हैप्पी.. ऐसा मज़ा ज़िंदगी में कभी नही आया.. मस्त और तंदूरस्त है तेरे पापा.. और शक्तिशाली भी.. ऐसे करारे शॉट मारे है.. आह्ह.. नीचे तो सब बाग बाग हो गया.. बहोत मज़ा आया.. !!"

ऊबड़खाबड़ रास्तों पर अपनी चूत रगड़ते हुए मौसम का जिस्म सख्त हो गया.. उसकी चूचियाँ टाइट हो गई..

"वैशाली.. यार.. मेरे बॉल दबा दे.. प्लीज.. !! तेरी बातों ने मुझे पागल बना दिया है.. ओह्ह.. अब मुझे आगे कुछ नही सुनना.. नहीं तो जिस तरह तू मेरे पापा के पास गई वैसे मुझे तेरे पापा के पास जाना पड़ेगा" मौसम ने सिसकियाँ लेते हुए कहा

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"तो जा ना.. किसने रोका है.. !! हाँ, मेरी मम्मी को पता नही चलना चाहिए.. वरना वो तेरी गांड फाड़कर रख देगी.. " अंधेरे का लाभ उठाते हुए वैशाली मौसम के स्तनों को दबाने लगी..

"आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. जोर से दबा.. मसल दे जोर से.. ओह्ह"

"जैसे तेरे पापा मेरे दबा रहे थे वैसे ही दबाऊ? या ओर जोर से?" वैशाली ने मौसम की गर्दन को पीछे से चूमते हुए कहा..

मौसम: "वैशाली.. मेरा बहोत मन कर रहा है यार.. की तुझसे अपनी चुत चटवाऊँ.. !!"

वैशाली: "तू फिकर मत कर.. रात को हम दोनों एक ही कमरे के सो जाएंगे.. तब तेरी ये इच्छा पूरी कर दूँगी.. और लगभग ये हमारी आखिरी मुलाकात होगी.. मैं तो फिर कलकत्ता लौट जाऊँगी.. कौन जाने फिर कब मिलना होगा हमारा.. !!"

मौसम: "क्यों? मेरी सगाई और शादी में नही आएगी तू?"

वैशाली: "अरे पगली.. तब हम एक दूसरे की चूत थोड़ी न चाट पाएंगे..!! तब तो तू तरुण के सपनों में और उसके लंड की याद में खो गई होगी.. " तभी स्कूटी मौसम के घर के नजदीक पहुँच गई..

मौसम: "मेरी छाती से हाथ हटा ले.. घर आ गया.. अब बाकी सब रात को करेंगे"

मौसम और वैशाली ने घर में प्रवेश किया.. सुबोधकांत को आराम से टीवी देखते हुए देखकर दोनों चकित हो गए.. मजे की बात तो ये थी की सुबोधकांत ने वैशाली और मौसम की ओर देखा तक नही.. और वैसे अच्छा ही हुआ.. वो देखते तो भी मौसम उनसे नजरें मिला नही पाती.. थोड़ी ही देर पहले अपने पापा को नंगा.. चुदाई करते हुए देखा था.. वो द्रश्य उसकी आँखों के सामने से हट ही नही रहा था.. सदमा, उत्तेजना और ईर्ष्या.. ये सारे भाव.. एक साथ परेशान कर रहे थे मौसम को.. !!

मौसम को उसके पापा की ओर देखती हुई देख.. वैशाली ने उसके हाथों को दबाया.. और मस्ती भरी मुस्कान के साथ आँख मारी..

भोजन के बाद.. सुबोधकांत, मदन और पीयूष के साथ पान की दुकान पर गए.. राजनीति से लेकर ओलिंपिक्स तक ढेर सारी बातें हुई.. पर पीयूष को उन बातों में जरा भी दिलचस्पी नही थी.. उसका दिमाग तो बस मौसम के दो खुले स्तन और उसके नीचे के टाइट छेद के बारे में सोच रहा था.. उसे तो घर से बाहर निकलना ही नही था.. पर क्या करता.. सारी लड़किया और औरतें.. शॉपिंग, ज्वेलरी और साड़ियों की बातें कर रही थी.. वहाँ बैठकर करता भी क्या??

थोड़ी देर बाद वो तीनों घर वापिस लौटे.. तब मौसम की शादी की बातें पूरे जोर-शोर से हो रही थी.. थोड़ी थोड़ी देर पर पीयूष वैशाली और शीला के स्तनों को देखकर उनके बीच साम्यता ढूँढने की निरर्थक कोशिश कर रहा था..

रमिला बहन: "दामाद जी, आपको और कविता को शादी के दो हफ्तों पहले से यहाँ आ जाना होगा.. सारी तैयारियां आप लोगों को ही तो करनी है.. अब हमारी उम्र हो चली है.. भाग-दौड़ के सारे काम आप को ही करने होंगे.. " ये सुनकर वैशाली मन ही मन हँसकर सोच रही थी.. आंटी, उम्र तो आपकी होगई है.. आपके पति में तो अभी बहोत जान बाकी है.. !!

तभी मदन के फोन की घंटी बजी.. पोलिस स्टेशन से उसके दोस्त का फोन था.. वो उठकर छत पर चला गया.. शीला बेहद डर गई.. अब क्या हुआ होगा?? कहीं पूछताछ में संजय या हाफ़िज़ ने कुछ बता तो नही दिया होगा?? बाप रे.. अब मैं क्या करूँ?? मन ही मन वो प्रार्थना करने लगी

इंस्पेक्टर: "मदन, तेरे दामाद को मैंने बराबर खर्चा-पानी दे दिया है.. बता अब क्या करूँ उसके साथ?? तेरा दामाद है इसलिए मैंने अब तक केस नही बनाया है"

मदन: "अभी तो मैं एक काम से शहर से बाहर हूँ.. कल शाम तक वापिस आऊँगा.. फिर मैं आकर उसे ले जाऊंगा.. आज रात वहीं लोकअप में मेहमान-नवाजी कर उसकी.. वैसे भी वो काफी टाइम से मेरी बेटी को परेशान कर रहा है"

मदन गंभीर चेहरे के साथ लौटा

वैशाली: "पापा, सब ठीक तो है ना?? पुलिस स्टेशन से क्यों फोन आया था?" मदन के चेहरे की उदासी देखकर पता चल रहा था की सब ठीक तो नही था.. मदन ने शीला की आँखों में देखा और दोनों इस बात से सहमत हुए की सुबोधकांत को ये बात बताने में कुछ गलत नही था

शीला ने अपनी बेटी की अस्तव्यस्त ज़िंदगी के बारे में सब को बताया और साथ ये भी कहा की अपने दामाद को कहीं सेट करने के बारे में वो लोग कितने चिंतित थे.. हालांकि संजय जैल में बंद है ये बात नहीं बताई.. ये बात तो वैशाली को भी पता नहीं थी.. सिर्फ शीला और मदन ही इस बात को जानते थे.. वैशाली की आँखों से आँसू टपकने लगे.. सारा वातावरण गंभीर हो गया.. ये सारी बातें सुनकर सुबोधकांत के दिमाग में एक प्लान आकार लेने लगा था..

सुबोधकांत ने वैशाली की ओर देखकर कहा "बेटा.. अगर तुम लोगों को कोई प्रॉब्लेम न हो तो इस शहर में शिफ्ट हो जाइए.. मेरा बिजनेस बहोत बड़ा है.. और अच्छे काम करने वाले लोगों की मुझे हमेशा जरूरत पड़ती है.. मेरे लिए तो जैसे कविता मेरी बेटी है वैसी है है तू.. दोनों एक बराबर"

मौसम ये सुनकर सोचने लगी.. ये मेरा बाप तो वक्त आने पर कविता दीदी को भी चोद ले ऐसा हरामी है..पता नही क्या प्लान बनाया है साले ने.. लगता है मेरे बाप ने एक तीर से दो शिकार करने का तय किया है.. पहला शिकार वैशाली और दूसरा शीला भाभी का.. बड़ा लंबा सोचा था.. !!

वैशाली की गृहस्थी की बात आते ही वातावरण काफी शांत और गंभीर हो गया.. शीला और मदन की मानसिक स्थिति समझी जा सकती थी.. उनका दामाद जैल में बंद था.. ऐसी सूरत में उनकी मायुषी और उदासी देखते ही बनती थी..

वातावरण की गंभीरता कम करने के इरादे से मौसम की माँ, रमिला बहन ने कहा "आज मौसम ने लड़का पसंद कर लिया है.. सब का मुंह मीठा कराना होगा.. पीयूष कुमार.. जरा सुनिए तो.. !!"

"हाँ मम्मी जी.. कहिए क्या करना है?"

तभी सुबोधकांत ने कहा "आप और कविता बाजार जाइए.. और सब के लिए आइसक्रीम लेकर आइए"

पीयूष क्या बोलता.. !! सास और ससुर की इच्छा को तो पूरा करना ही था.. पर सुबोधकांत को कहाँ पता था की पीयूष और कविता एक दूसरे से सीधे मुंह बात भी नही करते थे.. !!

पीयूष ने कविता के सामने देखा.. कविता भी अपने माँ बाप की बात को टाल न सकी.. पीयूष के प्रति अपनी नफरत को छुपाकर उसने हँसते हुए चेहरे से हामी भरी और खड़ी हो गई..

पीयूष सोच रहा था की अगर कविता के साथ सारे झगड़े खतम करने हो तो ये अच्छा मौका था..

पीयूष घर से बाहर निकल ही रहा था की पीछे से मौसम ने आवाज दी.. "जीजू, ये स्कूटी की चाबी तो लेते जाइए.." चाबी देते वक्त मौसम ने पीयूष की हथेली को छु लिया पर पीयूष का दिमाग अभी कविता के विचारों से घिरा हुआ था.. मौसम भी सोचती रही.. जीजू ने मेरी तरफ देखा क्यों नही?? आबू की ट्रिप के बाद उसे जीजू और दीदी की अनबन की बात तो मालूम ही थी.. इसलिए उन दोनों के हावभाव देखने के लिए वो भी उनके पीछे घर के बाहर निकली..

बाहर जाकर पीयूष ने स्कूटी स्टार्ट की.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. दोनों में से किसी ने भी मौसम की तरफ देखा तक नही.. दोनों के दिमाग में विचारों का तुमुलयुद्ध चल रहा था.. वो स्कूटी लेकर निकले और मौसम वापिस घर के अंदर जा ही रही थी तभी उसने दूर से फाल्गुनी को आता हुआ देखा.. मौसम वही खड़ी रही.. फाल्गुनी ने उसके पास आकर कहा "मौसम, मेरे मामी का फोन था.. उनका बेटा हॉस्टल से आया है.. तो वो मुझे लेने आ रहा है.. मुझे उसके साथ जाना होगा"

मौसम समझ गई की फाल्गुनी अब घर नही आएगी.. उसने भी उसे रोका नही.. फाल्गुनी चलकर बाहर निकली.. एक पल्सर बाइक आकर खड़ी हो गई.. फाल्गुनी के मामा के बेटे की.. दोनों भाई-बहन, मौसम को "बाय" कहकर चले गए

मौसम बाहर झूले पर बैठ गई.. वैसे भी अंदर चल रही गंभीर बातों में उसे दिलचस्पी नही थी.. उससे अच्छा यहीं बैठकर आइसक्रीम आने का इंतज़ार किया जाए..

झूले पर झूलते हुए मौसम के विचार चलने लगे.. आज का दिन कितना महत्वपूर्ण था उसकी ज़िंदगी के लिए.. !! क्यों की आज उसने अपना जीवन साथ चुन लिया था.. अब तक जो सारी कल्पनाएं थी वो अब हकीकत बनने वाली थी.. उसे अपने सपनों का राजकुमार मिल गया था.. और वो था तरुण.. वो तरुण के साथ बिताएं पल याद करने लगी.. और उसकी और तरुण की जोड़ी कैसी लगेगी वो भी मन ही मन सोचने लगी.. और शर्माने लगी.. आज का दिन किसी और कारण से भी खास था.. आज पहली बार उसने अपने पिता और सहेली को नंगा.. चोदते हुए देखा.. बाप और बेटी के बीच जो मर्यादा की दीवार होती है वो आज हवस की बाढ़ में बह चुकी थी.. मौसम ने कभी भी नही सोचा था की सभ्य और संस्कारी दिखने वाले उसके पिता.. इतने बेशर्म होंगे.. !!

झूले पर बैठे बैठे उसने झुककर ड्रॉइंगरूम के अंदर देखा.. उसे वहाँ से अपने पिता सुबोधकांत सोफ़े पर बैठे हुए नजर आ रहे थे.. उनकी शक्ल में उसे अपने पापा नही.. पर फाल्गुनी और वैशाली को चोदनेवाला सुबोधकांत नजर आ रहा था.. उसकी आँखों के सामने वह द्रश्य फिर आ गया.. फाल्गुनी कैसे बेशर्मों की तरह अपने स्तन खोलकर पापा से चुसवा रही थी.. !! और वैशाली भी कम नही थी.. कैसे पकड़कर पापा का लंड चूस रही थी.. !!! मौसम ने अपना सर झटकाया.. ये सब मैं क्या सोच रही हूँ..!! जिसके लंड को देखकर उसकी चूत गीली हो गई थी वो और कोई नही पर उसका सगा बाप था.. !!

मौसम को अपनी सोच पर शर्म आने लगी.. तभी मौसम की नजर किचन की खिड़की से दिख रही उसकी माँ की तरफ गई.. रमिला बहन काम में इतनी व्यस्त थी की उनका पल्लू कब गिर गया उन्हें पता ही नही चला.. मौसम अपने मन पर काबू न रख पाई और अपनी मम्मी के जिस्म की गोलाइयों को देखने लगी.. सोचने लगी.. मम्मी भी देखने में कितनी सुंदर है.. !! क्या पापा मम्मी को भी ऐसे ही पीछे से चोदते होंगे? मम्मी जब झुककर चुदवाती होंगी तब उनके ये बड़े बड़े स्तन कैसे झूलते होंगे..!! मौसम सोच रही थी की अगर इस उम्र में उनके स्तन इतने बड़े है तो जब मेरा जन्म हुआ तब कितने बड़े होंगे.. दूध से भरे हुए.. !! क्या पापा और मम्मी इतनी ही उत्तेजना से चोदते होंगे?? सोचते सोचते मौसम की पेन्टी गीली हो गई

अपने इन हीन विचारों से शर्माकर वो सोचने लगे.. बाप रे.. ये सब मैं क्या सोच रही हूँ? क्यूँ इतने गंदे गंदे खयाल आ रहे है मन में?? मैं कितने संस्कारी खानदान की बेटी हूँ.. आज से एक महीने पहले मैंने किसी पराये मर्द के बारे में सोचा भी नही था.. और आज अपने सगे माँ बाप के बारे में.... !!!

मौसम का दिमाग दो हिस्सों में विभाजित हो गया था.. एक पक्ष अपने पापा की हरकतों का विरोध कर रहा था तो दूसरा उन्हें जायज ठहरा रहा था.. जैसे मौसम के दिमाग में ही सुबोधकांत का केस चलने लगा था..

एक तरफ.. बेहद प्यार करने वाले, जज्बाती और वात्सल्य से भरा हुआ बाप था तो दूसरी तरफ फाल्गुनी और वैशाली को चोदने वाला कामी पुरुष.. कौनसा स्वरूप असली था ये पता नही चल रहा था.. उनकी हकीकत आखिर क्या थी? आज मौसम का अपने विचारों पर काबू नही था.. अब इन विचारों का बोझ महसूस हो रहा था उसे.. काफी देर तक वो यूं ही विचारों में खोई बैठी रही.. उसकी विचार शृंखला तब टूटी जब बहोत सारे कुत्ते एक साथ भोंकने लगे..

मौसम ने देखा.. ५-६ कुत्ते.. एक कुत्तिया के पीछे पड़े थे.. भादों का महिना चल रहा था और कुत्तों को भी अपना टारगेट अचीव करना था.. सारे कुत्तों की एक ही मंजिल थी.. उस कुत्तिया की पूत्ती.. एक अनार और सो बीमार वाला हिसाब था..

अब तक तो दीदी और जीजू को आ जाना चाहिए था.. मौसम उनका इंतज़ार कर रही थी..
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दूसरी तरफ स्कूटी पर सवार होकर पीयूष और कविता बाजार की तरफ जा रहे थे.. प्री-मॉनसून प्लान की कार्यवाही में रिजेक्ट हुए रास्तों के गड्ढों की महरबानी से पीयूष और कविता के जीवन की वसंत खिलने की तैयारी पर थी.. जब शरीरों की निकटता बढ़ती है तब दिमाग और मन का अहंकार पिघलना शुरू हो जाता है.. शारीरिक स्पर्श मन के घावों पर मरहम का काम करता है.. पीयूष और कविता दोनों ही ये बात जानते थे की वो बाहर कितना भी मुंह क्यों न मार ले.. आखिर उन्हें एक दूसरे के पास ही लौटकर आना होगा.. मनोचिकित्सकों का भी ये कहना है की पति और पत्नी के बीच चाहें कितना भी बड़ा झगड़ा क्यों न हो जाए.. उन्हे संवाद को बरकरार रखना चाहिए.. जिससे की अहंकार की जमी हुई बर्फ पिघल सके.. उससे थोड़ा आगे सोचे तो.. बातें या संवाद चाहें बंद हो जाएँ.. पर शारीरिक निकटता कम नहीं होनी चाहिए ताकि दोनों के बीच अहंकार की दीवार बन न जाएँ..

बात की शुरुआत कविता ने की..

कविता: "तुझे याद है पीयूष? तुम जब सगाई के बाद पहली बार मिलने आए थे तब हमने इसी दुकान पर आइसक्रीम खाया था.. !! हम दोनों अकेले साथ न जाए इसलीये मम्मी ने मौसम को भी साथ भेजा था.. याद है या भूल गए!!"

पीयूष का मन भी अब पिघलने लगा और वो अतीत की यादों में खो गया
"हाँ हाँ.. बराबर याद है.. सारे फ्लेवर्स ट्राय करने के बाद मुझे तो पिस्ता वाला आइसक्रीम ही पसंद आया था.. ३ दिन तक रोज वो आइसक्रीम खाने के बाद भी मन नही भरा था.. और तेरा फेवरिट कौन सा था?? अरे हाँ.. याद आया.. तू हमेशा चॉकोबार खाती थी.. कैसे हाथ में लेकर चूसती थी"

कविता ने शरमाकर पीयूष की पीठ पर प्यार भरी थपकी लगाते हुए कहा "क्या तू भी.. कुछ भी बोलता है.. !! बेचारी छोटी सी मौसम को हम आइसक्रीम दिलाकर सामने कुर्सी पर बीठा देते थे.. और तुम चुपके से मेरे बॉल दबा देते थे.. हा हा हा.. !! पर सच कहूँ पीयूष.. आज भी उस स्पर्श की याद आती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है.. थोड़ी सी घबराहट.. थोड़ा सा हक का भाव.. जज़्बातों के उस संमिश्रण को मैं कभी भूल नही पाऊँगी"

सगाई से लेकर शादी तक का समय.. हर जोड़ी के लिए बड़ा ही यादगार होता है.. सब से सुंदर समय.. दिमाग साथ बैठकर नए नए सपने बुनता है.. और शरीर नए नए अंगों की खोज करता है

पीयूष भी अब धीरे धीरे मूड में आने लगा..

पीयूष: "कविता.. चल फिर से वो यादें ताज़ा करते है.. घर के लिए आइसक्रीम लेने से पहले एक एक कप पिस्ता का आइसक्रीम हो जाए.. जब से तूने मेरे साथ बोलना छोड़ दिया है तब से ऐसा महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी नेता की कुर्सी चली गई हो.. लंड तो बेचारा ऐसे दुबक के छुप गया है की ढूँढने पर भी नजर नही आता.. "

कविता: "चल झूठे.. कितना ड्रामा करता है रे तू.. !! ये देख.. तेरा मिनी-चॉकोबार धीरे धीरे बड़ा हो रहा है"

पीयूष और कविता अपनी पसंदीदा आइसक्रीम की दुकान पर पहुँच गए.. आइसक्रीम के कप लेकर दोनों अंधेरे पार्किंग में साथ बैठकर खाते हुए एक दूसरे को छेड़ने लगे.. जवान जोड़ियों की तरह हरकतें करने लगे.. थोड़ी ही देर में दोनों लय में आ गए.. दोनों को पता था की यहाँ कुछ भी खुल कर कर पाना मुमकिन नही था.. फिर भी पार्किंग के अंधेरे में जितनी छूट ली जा सकती थी उन्हों ने ले ली.. साथ ही साथ आस पास के लोगों का भी ध्यान रखना पड़ता था

पीयूष: "यार, स्कूटी के बदले गाड़ी लेकर आए होते तो अच्छा रहता.. ये तो ऐसा हाल हो गया की सूप पीने को मिला.. भूख तेज हो गई अब खाने के लिए कुछ नही है"

यहाँ वहाँ देखकर पीयूष के मन में एक तरकीब सूझी..

पीयूष: "कविता, वो देख सामने के कॉम्प्लेक्स के साइड में जो अंधेरी गली दिख रही है.. वहाँ पर एक पुरानी मारुति ८०० पार्क की है.. हाल देखकर लगता है की पिछले कई महीनों से किसी ने इस्तेमाल नही की है.. कॉम्प्लेक्स की सारी दुकानें भी बंद है.. मैं वहाँ जाकर कुछ सेटिंग करता हूँ.. जैसे ही मैं इशारा करूँ, तुम वहाँ आ जाना"

नीचे पड़ी चॉकोबार की स्टिक लेकर पीयूष गाड़ी की तरफ गया.. दरवाजे के कांच पर लगी धूल साफ करके उसने साइड ग्लास के रबर को ऊपर किया और स्टिक अंदर डाली.. थोड़ी मेहनत के बाद लोक खुल गया.. शतक बनाकर जिस तरह विराट कोहली अपना बेट ऊपर करता है बिल्कुल वैसे ही पीयूष ने स्टिक ऊपर करके कविता को वहाँ आने का इशारा किया.. गाड़ी में घुसते ही दोनों एक दूसरे पर ऐसे टूट पड़े जैसे जनम जनम से भूखे हो.. कोई देख न ले इसलिए जल्दी जल्दी में पीयूष ने चैन खोलकर लंड बाहर निकाला.. कविता ने अपना स्कर्ट ऊपर कर पेन्टी को घुटनों तक सरका लिया था.. उसका छेद पीयूष के लंड को ग्रहण करने के लिए आतुर था.. पार्किंग में फॉरप्ले पहले ही हो चुका था इसलिए पीयूष का लंड तैयार था और कविता की चुत गीली हो रखी थी.. सिर्फ ५ मिनट में उन्होंने अपना काम खतम कर लिया

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और तभी पीयूष के मोबाइल पर वैशाली का फोन आया..

पीयूष के फोन उठाते ही वैशाली ने कहा "तुम दोनों आइसक्रीम लेने गए हो या बनाने? जल्दी आओ यार.. सब यहाँ वेइट कर रहे है" वैशाली ने जिस मज़ाकिया अंदाज में बात की उससे ये मालूम हो रहा था की घर का वातावरण भी नॉर्मल हो चुका था.. दोनों ने अपने कपड़े ठीक कीये.. गाड़ी से बाहर निकले और आइसक्रीम लेकर घर की ओर रवाना हुए..

जब गए तब दो अलग अलग इंसान थे.. वापिस लौट रहे थे दो जिस्म और एक जान बनकर.. कितने समय के बाद दोनों के बीच की कड़वाहट दूर हुई थी.. वाकई.. संवाद करने से.. बात करने से.. बड़े से बड़े प्रॉब्लेम का हल मिल ही जाता है.. जरूरत होती है सिर्फ पहल करने की.. दोनों का पेट आइसक्रीम खाने से ठंडा हो गया था और गाड़ी में बिताएं उस समय ने उनके मन को भी शांत कर दिया था

हल्की हल्की बारिश हो रही थी.. मिट्टी की मीठी खुश्बू सारे माहोल को सुगंधित कर रही थी.. आबोहवा की ठंडक अब कविता और पीयूष के कामागनी को भड़का रही थी..

घर पहुंचते ही सब ने आइसक्रीम खाया और सोने की तैयारी करने लगे.. दामाद होने के नाते.. पीयूष और कविता के लिए ऊपर का मास्टर बेडरूम आरक्षित रखा गया था..

कविता ने पीयूष से कहा "तुम नहाकर फ्रेश हो जाओ.. मैं अभी नीचे जाकर आती हूँ"

थोड़ी देर बाद जब कविता कमरे में आई तब उसके हाथ में दूध का ग्लास था.. पीयूष अभी भी बाथरूम में था.. उसने ग्लास टेबल पर रखकर लाइट को बुझा दिया और नाइट-लैम्प ऑन कर दिया.. बेडरूम का माहोल रोमेन्टीक बन गया..

पीयूष के बाहर आते ही कविता बाथरूम में घुस गई..

लगभग पंद्रह मिनट बाद बाथरूम का दरवाजा खुला.. और पीयूष का ध्यान उस तरफ गया.. देखकर उसके होश उड़ गए

उसने देखा.. कविता पिंक कलर की पारदर्शक लॉन्जरी पहन कर बड़ी ही मस्ती भरी अदा में खड़ी थी.. जालीदार लॉन्जरी से कविता के सारे अंग दिख रहे थे.. सिर्फ निप्पल और चूत की लकीर पर कपड़े की पट्टी उसकी इज्जत को ढँक रही थी.. कविता साक्षात अप्सरा जैसी लग रही थी.. लाइट कलर की लिपस्टिक और हल्का सा मेकअप लगाकर तैयार कविता ने बड़े ही मादक अंदाज में अपने जिस्म पर हाथ फेरा और कातिल शृंगारिक अदा से पीयूष के दिल को घायल कर दिया..


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साथ ही साथ पीयूष को विचारों ने घेर लिया.. ये वही लॉन्जरी थी जो उसने शादी के एक महीने पहले खरीदी थी.. कविता को सुहागरात पर गिफ्ट देने के लिए.. शादी के एक महीने पहले वो दोनॉ ओयो-रूम में मिले थे तब उसने जिद की थी की घर जाकर कविता इस लॉन्जरी को पहने और विडिओ-कॉल पर उसे दिखाए.. इस बात पर दोनों के बीच काफी कहा-सुनी हो गई थी.. और उसके बाद इस लॉन्जरी को उसने कभी देखा नही था..

पर आज वही लॉन्जरी पहन कर कविता ने पीयूष को इशारे से कह दिया की माउंट आबू के झगड़े के बाद.. आज की रात उनके लिए सुहाग रात से कम नही थी.. शादी के बाद कविता का शरीर काफी गदराया था इसलिए ये नाइटी उसके जिस्म पर एकदम टाइट चिपक गई थी.. पर उससे तो वो और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी

पीयूष खड़ा हुआ और कविता को घूर घूरकर देखने लगा.. उसकी तीक्ष्ण नजर और हवस युक्त मुस्कान से कविता शरमा गई.. पीयूष ने कविता को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और उसके सुलगते होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. कविता अब पीयूष की जीभ चाटने लगी.. पीयूष ने कविता के रेशमी लहराते बालों को पकड़कर अपनी ओर झुकाया और उसके गाल, गर्दन और कान के पीछे चूमने लगा.. कविता का हाथ पीयूष की मर्दाना पीठ को सहला रहा था

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उस दौरान दोनों एक दूसरे के होंठों का रस पान कर रहे थे और पीयूष की छाती से दबे हुए कविता के उन्नत स्तन अब वासना की आग में तप कर सख्त और कड़े बन गए थे.. कविता ने पीयूष को धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. और उसकी टी-शर्ट निकाल फेंकी.. इस तरफ पीयूष ने लेटकर कविता के स्तनों पर हल्ला-बोल कर दिया.. पीयूष की शॉर्ट्स में खड़ा सख्त लंड बार बार कविता की चूत को छु रहा था.. और अंदर घुसने की अनुमति मांग रहा था.. कविता ने अपनी नाइटी की डोर को खींचकर खोल दिया और उसे हटा फेंका.. अब वो पीयूष की शॉर्ट्स को खींचकर निकालने की कोशिश कर रही थी.. इशारा समझकर पीयूष ने अपनी शॉर्ट्स और अन्डरवेयर उतार दी और नंगा हो गया.. अब उसने कविता को बेड पर लेटा दिया और उसकी पिंक पेन्टी में उंगली डालकर उतार दी..

होंठ और मुख की कशमकश से विमुख होकर भूखे भेड़िये की तरह पीयूष कविता की छातियों को मसल रहा था.. उसकी निप्पल को दांतों के बीच दबाकर उसने हल्के से काट लिया.. कविता के मुख से तीखी "आह्ह" निकल गई.. और उस आह्ह ने पीयूष की वासना की आग में घी का काम किया.. और वो दोगुने जोश के साथ कविता के स्तनों पर टूट पड़ा.. कविता ने भी अपने एक हाथ के नाखून पीयूष की पीठ पर गाड़ दिए और दूसरे हाथ से उसका लंड पकड़ लिया

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दोनों हाथों से स्तनों को मसलते हुए पीयूष.. कविता के पेट, नाभी और जांघ पर अविरत चूमता जा रहा था.. कविता भी किसी नागिन की तरह बल खाती हुई अपने जिस्म को आधे फिट जितना ऊपर कर पीयूष को अपनी चूत चाटने के लिए आमंत्रित कर रही थी.. पीयूष ने अपने दांतों से कविता की चूत के होंठों को बड़ी ही नाजुकता से काट लिया.. उसके पैरों को चौड़ा करके चूत को खुली कर अपनी जीभ उसके गरम छेद में घोंप दी.. उसकी इस हरकत ने कविता को इतना उत्तेजित कर दिया की उसका बदन सिहरने लगा..


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चूत के होंठों को उंगलियों से अलग करते ही.. अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा.. देखकर पीयूष ने आपा खो दिया और पागलों की तरह अंदर जीभ डालकर चाटने लगा.. कविता ने अपने दोनों पैर पीयूष के कंधों पर जमाकर उसे जकड़ लिया.. पीयूष के चाटने से उसकी चूत इतनी गीली हो गई थी की चूत का अमृत रस बहते हुए उसकी गांड के छेद तक पहुँच गया था.. छेद के अंदर तक जीभ घुसाकर.. पीयूष अपने अंगूठे से कविता की क्लिटोरिस पर गोल गोल घुमा रहा था.. कविता का शरीर कांपने लगा.. उसने अपनी चूत को पीयूष के चेहरे पर दबा दिया और पैरों से दबाकर बराबर सिकंजे में कस लिया..

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पीयूष का लंड अब झटके खा रहा था.. पीयूष तुरंत ६९ की पोजीशन मे आ गया.. अपना लंड कविता के मुँह में देकर उसने फिर से कविता की चूत को चाटना शुरू कर दिया.. दोनों एक दूसरे के जननांगों को खुश करने में व्यस्त हो गए..


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पीयूष का लोडा अब चरम पर था.. उसने कविता के मुंह से बाहर निकाला और कविता की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. सुपाड़े को कविता की ज्वालामुखी जैसी चूत पर रख दिया.. एक धक्के में आधा लंड अंदर घुसा दिया.. रस से गीली चुत.. लंड प्रवेश के लिए इतनी आतुर थी.. के कविता ने कमर उठाकर बाकी का आधा लंड भी निगल लिया..

"पचाक.. !!" की आवाज के लोडा कविता की चूत में घुस गया.. कविता के गले से "आह्ह" निकल गई.. पीयूष की कमर पर अपने दोनों पैर लिपटा कर वो उसके लंड को अपनी चूत की तरफ धकेलती रही

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पीयूष ने एक जबरदस्त धक्का लगाया और उसका लंड कविता की बच्चेदानी के मुख पर जा टकराया.. कविता की आनंद भरी किलकारी निकल गई

"पीयूष.. मज़ा आ गया यार.. चोद मुझे.. जी भर कर चोद.. आह्ह आह्ह.. !!"

पीयूष का पूरा जिस्म दोगुने जोश के साथ कविता की जांघों के बीच.. इंजन के पिस्टन की तरह अंदर बाहर करने लगा.. बीच बीच में वो कविता के स्तनों को दांतों से काट लेता.. कभी निप्पल चूसता.. कभी हाथ नीचे डालकर कविता की क्लिटोरिस को मसल देता.. कविता की कोल्हू जैसी चूत में पीयूष का गन्ने जैसा लंड पिसता गया.. पिसता गया और दोनों का रस निकलता गया.. कविता की लाल गरम चूत भांप छोड़ रही थी.. और लंड उसपर पानी की बूंदें बरसा रहा था

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पीयूष ने धक्कों की गति बढ़ाई और उसके साथ कविता भी उछल उछल कर लंड लेती रही.. और उसी क्षण.. एक जबरदस्त धक्के के साथ.. दोनों आलिंगन में लिप्त होकर.. तृप्त हो गए.. और एक दूसरे के बाहों में स्खलित होकर गिर गए..


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पसीने की चमकती बूंदें दोनों के शरीर पर ओस की तरह जम गई थी.. पिछले कई हफ्तों से कविता की सारी अतृप्त इच्छाएं आज संतुष्ट होकर शांत हो चुकी थी.. अपनी चूत और शरीर की दहकती भड़कती अदम्य इच्छाओं का शमन होते ही.. परमानन्द में डूबकर वो पीयूष की बाहों में सो गई..

तो दूसरी तरफ वैशाली और मौसम भी एक दुसरें की चूत चाटकर तृप्त हो चुकी थी और बाहों में बाहें डालकर सो रही थी..

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बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
मौसम शीला कविता मदन और पीयूष से जूठ बोलकर पीछा छुड़ा लिया लेकिन शिला को शक हो गया है वैशाली बहुत खुश हैं सुबोधकांत ने उसकी दमदार चूदाई करके उसकी भूख को शांत कर दिया है मदन और शीला की बात सुनकर सुबोधकांत ने एक तीर से दो शिकार कर लिए हैं अब वह वैशाली के साथ शीला को भी जरूर लपेटने वाला है लगता है पीयूष और कविता की चूदाई के साथ नाराजगी खत्म हो गई है
 

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दूसरी सुबह करीब साढ़े पाँच बजे.. रोज की तरह शीला की आँख खुल गई.. मदन को सोता हुआ छोड़कर वो उतरकर नीचे आई.. नाइट-गाउन में ही वो घर के आँगन में बने झूले पर बैठकर झूलने लगी.. अभी घर में कोई जागा नहीं था.. थोड़ी ही देर में अखबार वाला पेपर फेंक कर गया.. शीला उसे उठाकर पढ़ते हुए झूल रही थी..


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अखबार की खबरों में डूबी हुई शीला को पता ही नहीं चला की कब सुबोधकांत उसके सामने आकर कुर्सी लगाकर बैठ गए..

"अरे आप कब आए??" शीला ने चोंक कर पूछा

"अभी अभी.. वैसे मुझे जल्दी उठ जाने की आदत है.. सुबह सुबह आसपास की खूबसूरती देखने का मज़ा ही कुछ ओर होता है.. और आज तो आपको देखकर मेरी सुबह और भी मस्त हो गई" शीला शर्मा गई.. सुबोधकांत उसके साथ खुलेआम फ़्लर्ट कर रहे थे

शीला एकदम से अपने कपड़ों को लेकर जागरूक हो गई.. उसने गाउन के अंदर ब्रा नहीं पहनी थी.. और उसके दोनों स्तन.. बिगड़ी हुई औलादों की तरह.. उसका कहा मान नहीं रहे थे.. और उभरकर मस्त आकार बना रहे थे.. सुबोधकांत उन उभारों को देखते हुए अपने होंठों पर जीभ फेर रहा था..

टी-शर्ट और ट्रेक पेंट पहने सुबोधकांत काफी हेंडसम लग रहे थे.. शीला ने उन्हें कनखियों से देखा.. उनके स्वस्थ शरीर की झलक टी-शर्ट से भलीभाँति नजर आ रही थी.. ऐसे पुरुष के साथ थोड़ा बहोत फ़्लर्ट करने में शीला को कोई दिक्कत नहीं थी

"अच्छा.. !! ऐसा तो क्या नजर आ गया आपको.. जो आपकी सुबह सुधर गई..??" शरारती मुस्कान के साथ शीला ने सुबोधकांत से कहा

"अब क्या कहूँ.. कहाँ से शुरू करू.. कुदरत ने आपको बड़े ही इत्मीनान से बनाया है.. क्या आपको कभी किसी ने कहा है की आप दुनिया की सब से सुंदर महिला हो??" सुबोधकांत ने अपनी गाड़ी चौथे गियर में डालकर दौड़ा दी

ये झूठ है.. जानते हुए भी शीला ने शरमाते हुए अपनी आँखें झुका दी.. ऐसी कौन सी स्त्री होगी जिसे अपनी तारीफ पसंद न हो? चाहे फिर झूठी ही क्यों न हो.. !!

"क्या आप भी.. !!! जो बात आपको रमिला बहन से करनी चाहिए वो आप मुझसे कर रहे है.. !!" शीला ने शरमाते हुए कहा

जवाब देने के बजाए.. सुबोधकांत अपनी कुर्सी से उठे और झूले पर शीला की बगल में बैठ गए.. झूला इतना चौड़ा नहीं था की दो लोगों को साथ समा सकें.. शीला और सुबोधकांत की जांघें एक दूसरे से सट कर रह गई.. शीला का चेहरा शर्म से लाल हो गया.. पर अपनी जांघों पर इस मजबूत पुरुष का स्पर्श उसे बड़ा ही लुभावना लगा.. वो बिना कुछ बोलें बैठी रही

"अजी क्या बताएं आपको.. तारीफ तो उसकी की जाती है जिसे कदर हो.. अब बंदर क्या जाने अदरख का स्वाद.. !! और मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ.. आप के जितनी खूबसूरत महिला मैंने आज तक नहीं देखी.. " कहते ही सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के कानों के नजदीक लाए.. जैसे उसे सूंघ रहे हो..

शीला सहम गई.. !! सुबोधकांत की इतनी हिम्मत का वो कैसे जवाब दे, उसे पता नहीं चल रहा था.. वो वहाँ से खड़ी होकर चली जा सकती थी.. पर पता नहीं ऐसा कौन सा आकर्षण था जो उसे वहाँ से उठने ही नहीं दे रहा था..जैसे उसके कूल्हें झूले से चिपक गए थे..

"रमिला बहन भी कितनी सुंदर है.. गोरी गोरी.. " शीला ने वापिस बात को सुबोधकांत की पत्नी पर ला खड़ा किया

"शीला जी.. आप तो जानती हो.. हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती.. और कुछ हीरे ऐसे होते है जिसकी परख, मुझ जैसे जोहरी के अलावा और कोई नहीं कर सकता.. !!" सुबोधकांत अपनी हरकतों से बाज नहीं आया

"देखिए सुबोधकांत जी.. मैं आपकी बहोत इज्जत करती हूँ.. अच्छा यही होगा की हम दोनों हमारी मर्यादा का उल्लंघन न करें.. !!" शीला ने थोड़ी सी नाराजगी के साथ कहा..

ये सुनते ही.. सुबोधकांत झूले से खड़े हो गए.. मस्त अंगड़ाई लेकर वो शीला के सामने ही खड़े रहे..

"अरे आप तो बुरा मान गई.. अब मुझे नहीं पता था की आपको तारीफ पसंद नहीं है.. "

"ऐसी बात नहीं है सुबोधकांत जी.. पर जैसा मैंने कहा.. हम दोनों अपनी मर्यादा में रहे वही बेहतर होगा" शीला ने कहा

"आपको नहीं पसंद तो मैं आगे कुछ नहीं कहूँगा.. लेकिन.. ये मर्यादा की बातें आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती, शीला जी.. !!" बेशर्मी से सुबोधकांत ने कहा.. सुनकर शीला चकित हो गई.. ऐसी कौन सी बात इन्हें पता थी जो इतने आत्मविश्वास के साथ बोल रहे थे ये?? अभी कल ही तो पहली बार मिले है.. ऐसा कौन सा राज जानते थे सुबोधकांत.. शीला के बारे में.. !!

"आप क्या कहना चाहते है, मैं समझ नहीं पाई" शीला ने पूछा

"देखिए शीला जी.. अब घुमा फिराकर बात करने की आदत मुझे ही नहीं.. और दूसरों की ज़िंदगी में दखल देने की आदत भी नहीं है.. चाहे वो कोई भी क्यों न हो.. ये तो आपने मर्यादा की बात छेड़ दी तो मैंने सोचा की आप को याद दिला दूँ.. कल आप मेरे दामाद के प्राइवेट पार्ट को दबाकर कौन सी मर्यादा का पालन कर रही थी??" शैतानी मुस्कान के साथ सुबोधकांत ने शीला की ओर देखकर कहा

शीला को चक्कर आने लगे.. कल जब वो लोग ड्रॉइंगरूम में बैठे थे ,तब चारों लड़कियां बगल वाले कमरे में थी.. पीयूष जब उठकर उस कमरे की ओर जा रहा था तब शीला भी किचन में जाने के बहाने उठी थी और बीच रास्ते पीयूष का लंड दबा दिया था.. सुबोधकांत की शातिर नजर ने ये देख लिया था इसका उसे पता भी नहीं था..

शीला ने आँखें झुका ली और दुबक कर झूले पर बैठी रही.. उसके हाथ से अखबार भी छूटकर नीचे गिर गया.. मुसकुराती हुए सुबोधकांत ने अखबार उठाया और शीला के हाथों में थमाते हुए वापिस झूले पर उसके साथ बैठ गया

"अरे पढिए पढिए.. अखबार पढ़ना जरूरी है.. पता तो चले की दुनिया में क्या हो रहा है.. पर उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने आसपास क्या हो रहा है उस पर नजर रखना.. !!"

अब शीला के पास बोलने के लिए कुछ बचा नहीं था.. डर के मारे उसकी बोलती बंद हो गई थी.. कल रात वैसे भी संजय और हाफ़िज़ को लेकर काफी टेंशन था.. वो खतम हुआ नहीं की एक नई चिंता जुड़ गई.. वो अखबार को पकड़कर नीचे देखते हुए बैठी रही

"घबराइए मत शीला जी.. मैं ये बात किसी को नहीं बताऊँगा.. जैसा मैंने पहले ही कहा.. मुझे किसी के जीवन में दखल अंदाजी करना पसंद नहीं है" कहते हुए इस बार सुबोधकांत अपना चेहरा शीला के गालों के इतने करीब ले आए की उनकी गरम साँसों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी शीला.. उफ्फ़.. मर्दानी गरम सांसें.. शीला की आँखें बंद हो गई..

शीला की ओर से कोई विरोध न दिखा तब सुबोधकांत ने हिम्मत करके शीला के कान को धीरे से चूम लिया.. शीला स्तब्ध हो गई.. पर वो जानती थी की उसकी दुखती नस को दबाकर ये इंसान अपनी मनमानी कर रहा था.. वो सोचने लगी.. अगर मैं इसे हड़का कर भगा दूँ तो क्या होगा?? उसने पीयूष के साथ जो हरकत की थी उसका पता अगर सब को लग गया तो कोहराम मच जाएगा.. मदन और उसके जीवन में भूकंप आ जाएगा.. कविता उससे बात नहीं करेगी कभी.. और अनुमौसी को पता चला मतलब पूरे मोहल्ले को पता चल जाएगा.. पूरी ज़िंदगी वो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी.. गनीमत इसी में थी की वो उनका सहयोग करे और देखें की वो आगे कहाँ तक जाने की हिम्मत करते है

शीला ने शरमाकर अपना चेहरा दूर कर लिया..

"क्या मदमस्त खुशबू है आपकी.. जितना सुंदर तन उतनी ही मादक महक आ रही है.. " सुबोधकांत ने धीरे से अपना हाथ शीला की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया.. शीला उसके स्पर्श से ऐसे सिहरने लगी.. न चाहते हुए भी उसका जिस्म उत्तेजित होने लगा.. अजीब सी उत्तेजना होने लगी उसे..

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शीला बस अब आँखें बंद कर.. झूले पर सर पीछे टेककर बैठी रही.. और सुबोधकांत उसकी गर्दन पर चूमते हुए उसके होंठों पर कब पहुँच गए पता ही नहीं चला.. उनका एक हाथ शीला के खरबूजे जैसे बड़े स्तनों पर घूमने लगा.. बिना ब्रा के सिर्फ गाउन के अंदर कैद स्तनों की निप्पल.. बड़ी ही आसानी से सुबोधकांत के हाथ में आ गई.. शीला के होंठों को चूमते हुए जैसे ही सुबोधकांत ने निप्पल को पकड़कर दबाया.. शीला की आह्ह निकल गई.. और दोनों जांघों के बीच सुरसुरी होने के साथ गिलेपन का एहसास भी होने लगा..

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शीला के बदन में खून तेजी से दौड़ने लगा.. उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया.. सुबोधकांत के चुंबनों से वह इतनी उत्तेजित हो गई की खुद ही अपनी निप्पल को मरोड़ने लगी.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन नीचे से उठाना शुरू करते ही शीला संभल गई और अपना गाउन पकड़ कर उसे रोक दिया..

"सुबोधकांत जी.. ये बड़ा ही खतरनाक हो सकता है.. मुझे लगता है की हमें अब इससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए.. !!"

"शीला जी.. आगे बढ़ना चाहिए की नहीं ये इम्पॉर्टन्ट नहीं है.. आप ये बताइए.. क्या आप आगे बढ़ना चाहती है?" बड़ा शातिर था ये बंदा.. ऐसे हिम्मत वाले पुरुष शीला को बेहद पसंद थे.. उसने कोई जवाब नहीं दिया.. और पलके झुकाकर बैठी रही..

पर सुबोधकांत को अपना जवाब मिल गया था.. उसने शीला को हाथ पकड़कर उठाया.. और घर के पिछवाड़े में बने गराज तक ले गए.. गराज का दरवाजा खोलकर दोनों अंदर गए और फिर सुबोधकांत ने उसे बंद कर दिया..

दरवाजा बंद होते ही सुबोधकांत ने शीला को दीवार से दबा दिया और उसके स्तनों को दोनों हाथों से मसलने लगे.. शीला बस आह्ह आह्ह करती रह गई.. उन्हों ने शीला के होंठों को चूसते हुए अपना एक हाथ गाउन के ऊपर से ही शीला के गरम भोसड़े पर दबा दिया.. रात को सोते वक्त शीला कभी गाउन के नीचे पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका भोसड़ा सुबोधकांत के हाथों चढ़ गया..

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नीचे स्पर्श होते ही शीला के सब्र का बांध टूट गया.. और उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत का चेहरा पकड़कर चूम लिया.. सुबोधकांत ने शीला का गाउन एक झटके में ही ऊपर कर दिया और उसकी लसलसित दरार में अपनी उंगली डाल दी..

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गरम गरम भोसड़े में उंगली घुसते ही शीला ने अपने सारे हथियार डाल दीये.. उसने दोनों हाथों से सुबोधकांत के कंधों को दबाकर उन्हे नीचे बैठा दिया और अपनी टांगें खड़े खड़े ही चौड़ी कर दी.. इशारा स्पष्ट था और सुबोधकांत को समझने में देर भी नहीं लगी.. उसने एक ही पल में अपनी जीभ शीला की गुफा के अंदर डालकर चाटना शुरू कर दिया..

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शीला की योनि विपुल मात्रा में कामरस बहाने लगी और सुबोधकांत बिना किसी घिन के उस रस को चाट रहे थे.. शीला दोनों हाथों से अपनी निप्पलों को खींचकर मरोड़ रही थी.. अब उसका जिस्म लिंग प्रवेश चाहता था.. उसने आजूबाजू देखा.. इतना कचरा पड़ा हुआ था की लेटना नामुमकिन था..

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उसने धीरे से सुबोधकांत का चेहरा अपनी चूत से अलग किया और उन्हे खड़ा कर दिया.. अब वह पलट गई.. अपना गाउन कमर तक उठा लीया और अपने भोसड़े को चुदाई के लिए पेश कर दिया..

सुबोधकांत ने तुरंत ही अपना पेंट नीचे उतारा और अपना डंडा बाहर निकालकर.. मुंह से थोड़ा थूक लेकर सुपाड़े पर मल दिया.. उसका औज़ार अब शीला के किले को फतह करने के लिए तैयार हो गया था..

शीला को झुकाकर उसने अपने सुपाड़े को उसकी दोनों जांघों के बीच घुसेड़ा.. चूत की खुशबू सूंघते हुए लंड ने तुरंत ही छेड़ ढूंढ निकाला.. एक ही धक्के में लंड ऐसा घुस गया जैसे मक्खन के अंदर गरम छुरी घुस गई हो..


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शीला सिसकने लगी.. और सुबोधकांत ने हौले हौले धक्के लगाने शुरू कर दीये.. दोनों हाथ आगे ले जाकर वो शीला के मदमस्त खरबूजों को मसल भी रहे थे.. दोनों उत्तेजना की पराकाष्ठा पर थे लेकिन साथ ही साथ वह जानते थे की उनके पास ज्यादा समय नहीं था..

शीला खुद ही हाथ नीचे ले जाकर अपनी क्लिटोरिस को कुरेदने लगी.. वो भी जल्द से जल्द स्खलित होना चाहती थी.. पीछे सुबोधकांत ने अपने धक्के तेज कर दीये.. शीला के विशाल चूतड़ों को अपने दोनों हाथ से पकड़कर वो धनाधन पेल रहे थे..

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शीला का बदन अब थरथराने लगा.. अपनी मंजिल नजदीक नजर आते ही उसने अपनी क्लिटोरिस को दबा दिया.. उसका शरीर एकदम तंग हो गया.. और भोसड़े की मांसपेशियों ने सुबोधकांत के लंड को अंदर मजबूती से जकड़ लिया.. दोनों एक साथ झड़ गए.. वीर्य की तीन चार बड़ी पिचकारियों से सुबोधकांत ने शीला के भोसड़े को पावन कर दिया..

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थोड़ी देर तक दोनों हांफते रहे.. सांसें नॉर्मल होते ही पहले सुबोधकांत ने दरवाजा खोलकर बाहर देखकर तसल्ली कर ली और फिर इशारे से शीला को बाहर जाने के लिए कहा.. शीला भागकर घर के अंदर चली गई.. अपने कमरे में जाकर देखा तो मदन अभी भी सो रहा था.. उसने चैन की सांस ली और बाथरूम में चली गई.. सुबोधकांत ने जो निशानी उसके भोसड़े में छोड़ रखी थी उसे साफ करने..

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मदन और शीला जब कविता के घर गए तब सब से अनजान थे.. आज जाते हुए सब की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी.. सब ऐसे बातें कर रहे थे जैसे एक दूसरे को सालों से जानते हो..

शीला को बाय कहते वक्त सुबोधकांत मुस्कुराये.. पिछले चौबीस घंटों में उन्हों ने माँ और बेटी दोनों को चोद लिया था.. दोनों एक से बढ़कर एक थी.. दोनों के संग की चुदाई, सुबोधकांत को पूरी ज़िंदगी याद रहने वाली थी..

वैशाली, मौसम और फाल्गुनी के साथ कुछ गुसपुस कर रही थी.. मौसम के चेहरे पर शर्म और उदासी दोनों के भाव थे.. अब वो पहले वाली नादान लड़की नहीं रही थी.. काफी तब्दीलियाँ आ चुकी थी.. चेहरे पर गंभीरता के भाव भी थे.. कविता मौसम को गले लगाकर खूब रोई.. सुबोधकांत भी भावुक हो गए.. इंसान कितना भी नीच और हलक्त क्यों न हो.. आखिर एक बाप था.. कविता को खुश देखकर उनके दिल को ठंडक मिल रही थी और वे चाहते थे की मौसम भी ऐसे ही खुश रहे..

सब ने एक दूसरे को अलविदा कहा.. रमिला बहन की आँखों से भी आँसू निकल रहे थे.. कल तक जो घर भरा भरा सा था.. आज वो एकदम खाली हो रहा था.. सब लोग कार में बैठे.. मौसम और फाल्गुनी ने गले मिलकर वैशाली को बाय कहा..

जुदाई.. बड़ा ही पीड़ादायक शब्द है.. हर मिलन में जुदाई समाई होती है..

कार चल पड़ी और साथ कितने संबंध अपनी मंजिल पर पहुंचे बिना ही अधूरे रह गए.. ?? सुबोधकांत और रमिला बहन घर के अंदर आए.. मौसम बड़ी देर तक रास्ते को देखती रही.. जा रही कार को अंत तक ऐसे देखती रही जैसे वो अभी वापस आने वाली हो.. उसके अलावा कोई नहीं जानता था की उस कार के साथ ओर क्या क्या चला गया था.. !!

जीजू.. !! जिनके साथ उसने जीवन का प्रथम प्रेम-मिलन किया था.. जिन्होंने उसे जवानी का लुत्फ लेना सिखाया था.. काम इच्छा क्या होती है.. पुरुष और स्त्री का उसमें क्या भाग होता है.. पुरुष का प्रथम स्पर्श.. जीजू मौसम को छोड़कर जा चुके थे.. साथ ही कविता दीदी भी चली गई थी.. शीला भाभी और मदन भैया भी.. वैशाली जैसी सहेली भी जा चुकी थी.. वैशाली तो अब कब मिलेगी, क्या पता.. ?? मुझे भी एक दिन वैशाली की तरह सब को छोड़कर दूर जाना होगा.. मौसम का दिल बेचैन हो गया.. इस सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन करने का मन कर रहा था.. पर नियति को भला कौन बदल सकता है.. !! और उसकी नियति भी यही थी की उसे बाप का घर छोड़ना ही था..

"कब तक धूप में खड़ी रहेगी बेटा? अंदर नहीं आना? वो सब तो चले गए.. तू अंदर आ जा.." प्यार से रमिला बहन ने मौसम को कहा

पिछले एक महीने से मौसम उन लोगों के साथ थी.. इसलिए ये जुदाई का पल उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.. मौसम की इस स्थिति को समझकर रमिला बहन उसे पीठ सहलाते हुए सांत्वना दे रहे थे.. मौसम उनके गले लगकर खूब रोई.. रमिला बहन का दिल भी भर आया.. फिर दोनों घर के अंदर आए.. मौसम पानी पीकर शांत हुई.. रमिला बहन तुरंत अंदर से बोर्नविटा वाला दूध लेकर आए जो मौसम को बेहद पसंद था.. कितने अच्छे से समझते है माँ बाप अपनी औलाद को!! उन्हें कब क्या चाहिए होगा, उन्हें सब पता होता है..

स्त्री जाती कितनी आसानी से रोकर अपना दिल हल्का कर सकती है.. !! इसीलिए शायद उनको ह्रदयरोग की समस्या कम होती है.. वे अपने दिल पर कोई बोझ रहने नहीं देती.. रोकर हल्का कर देती है.. इसकी तुलना में अगर पुरुषों को देखें.. कितने दंभी होते है.. दिल रो रहा हो फिर भी चेहरे पर मुस्कान ही होती है.. हाँ, पुरुष बिना आँसू के भी रो लेने की अद्भुत क्षमता जरूर रखते है..

मौसम घर के अंदर आई तब सुबोधकांत किसी से फोन पर बात कर रहे थे.. मौसम उदास होकर सोफ़े पर बैठी रही.. इस खलिश भरे माहोल में एक ही अच्छी बात थी और वो थी फाल्गुनी.. फाल्गुनी मौसम के लिए ए.टी.एम के बराबर थी.. जब भी बुलाओ वो हाजिर हो जाती थी.. यही तो होती है सच्चे मित्र की व्याख्या.. मौसम ने तुरंत फाल्गुनी को फोन लगाया पर उसने फोन काट दिया.. और पीछे से आकर हँसते हुए मौसम की आँखों पर अपने हाथ रख दीये.. उसके हाथ हटाते हुए मौसम मुड़कर बोली "लो, शैतान का नाम लो और हाजिर.. !!"

मौसम का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या हुआ?? तरुण की बहोत याद आ रही है क्या?" सुनकर मौसम हंस पड़ी

यहाँ वहाँ की बातें कर फाल्गुनी ने मौसम को नॉर्मल कर दिया.. फिर दोनों मौसम के कमरे में गए तब साढ़े दस बजे थे.. एक बजे तक दोनों कमरे के अंदर है बैठे रहे और तब बाहर निकले जब रमिला बहन ने खाने के लिए बुलाया.. मौसम ने उस दौरान फाल्गुनी को जरा सी भी भनक नहीं लगने दी की उसने कल अपने पापा के साथ उसकी चुदाई को अपनी आँखों से देख लिया था.. मौसम मानती थी की फाल्गुनी को उसके वहाँ होने के बारे में पता नहीं था.. पर हकीकत ये थी की वैशाली ने फोन करके फाल्गुनी को सब कुछ बता दिया था.. उसने ये भी बता दिया था की मौसम खुद ही उसे पापा की ऑफिस तक लेकर आई थी और उसने बाहर खड़े खड़े सब कुछ देख लिया था..

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मदन कार ड्राइव कर रहा था और शीला उसके बगल में बैठी थी.. कविता, पीयूष और वैशाली पीछे बैठे हुए थे.. कार फूल स्पीड पर चल रही थी.. और सबके दिमाग भी उतनी ही तेजी से चल रहे थे..


मदन का दिमाग संजय की बात को लेकर खराब हो रहा था.. अच्छा हुआ जो इंस्पेक्टर उसका दोस्त निकला.. नहीं तो बड़ी मुसीबत हो जाती.. नकली पुलिस बनकर लोगों से पैसे लेना.. कितना बड़ा जुर्म होता है.. !! जो इंसान एक गुनाह कर सकता है.. वो दुसरें भी कर सकता है.. ये संजय कब सुधरेगा? क्या करें उसे सुधारने के लिए? वैशाली के भविष्य का क्या होगा??

अचानक सामने से एक ट्रक आ गई और गाड़ी के एकदम करीब से निकल गई.. एक्सीडेंट होते होते रह गया..

"तेरा ध्यान कहाँ है मदन? अभी एक्सीडेंट हो जाता.. !!" शीला ने उसे हड़काते हुए कहा

मदन ने अपना सर झटकते हुए कहा "सही बात है यार.. विचार करते करते ड्राइविंग नहीं करना चाहिए.. " मदन ने कहा

शीला समझ गई की मदन को किस बात का टेंशन था.. कल पुलिस स्टेशन से फोन आया तब से मदन उलझा हुआ सा लग रहा था.. अब शीला को भी चिंता होने लगी.. संजय की चिंता तो थी ही पर उससे ज्यादा चिंता इस बात की थी की कहीं संजय या हाफ़िज़ ने सब कुछ बक न दिया हो.. वरना उसका भंडाफोड़ होना तय था.. अब क्या करू?? अगर सच में उन दोनों ने सब बक दिया होगा तो?? मैं मदन को क्या मुंह दिखाऊँगी?? अगर मदन को मेरे और संजय की गोवा की ट्रिप के बारे में पता चला तो उसकी नज़रों में, मैं हमेशा के लिए गिर जाऊँगी.. !!!

शीला के चेहरे का नूर उड़ गया.. चिंता उसे दीमक की तरह खाए जा रही थी.. अगर संजय ने पुलिस को दोनों के संबंधों के बारे में कुछ भी बताया होगा तो मदन को पता चलने में देर नहीं लगेगी..

पीयूष के साथ समाधान हो जाने के बाद कविता बेहद खुश थी.. अच्छा हुआ की पीयूष के साथ सारे प्रॉब्लेम एक साथ खतम हो गए.. पिछली रात के हसीन संभोग को याद करते हुए कविता की पेन्टी गीली हो रही थी.. कितने दिनों के बाद हम-बिस्तर हुए थे दोनों.. !! पीयूष के उत्तेजित लंड को याद करते हुए कविता ने अपनी जांघें आपस में दबा दी..

दूसरी तरफ पीयूष के सर पर मौसम सवार थी.. हर आती जाती लड़की में उसे मौसम नजर आ रही थी.. मौसम ने वादा तो किया था की सगाई से पहले के बार अकेले में मिलेगी.. पर ऐसा मौका क्या जाने कब मिलेगा?? मिलेगा भी या नहीं? तरुण थोड़ी देर बाद मौसम की ज़िंदगी में आया होता तो सब सही से हो जाता.. तरुण पर उसे बहोत गुस्सा आ रहा था पर क्या करता??

वैशाली को चिंता हो रही थी.. अब वापिस कलकत्ता जाना पड़ेगा.. कितने दिन हो गए.. ससुराल से किसी का एक फोन तक नहीं आया था.. बेचारे बूढ़े सास ससुर.. फोन करते तो भी किस मुंह से?? उनका बेटा ही जब हरामी निकला हो.. रखैलों के साथ भटकता रहता हो और कुछ कमाई न हो.. ऐसे पति के साथ जीने से तो अच्छा है की जिंदगी अकेले ही गुजारी जाए..

वैशाली को सुबोधकांत के संग बिताएं हसीन पल याद आ गए.. ५२-५५ की उम्र के होने के बावजूद कितनी ताकत थी उनमें.. !! दिखने में भी हेंडसम थे.. उनके मुकाबले रमिला बहन तो बेचारी बहोत सीधी थी.. अगर उनकी मेरे जैसी पत्नी होती तो रोज रात को चुदाई महोत्सव मनाती.. एक बार में ही उन्होंने मुझे पिघला दिया.. फिर बेचारी फाल्गुनी का क्या दोष?? वैसे पर्सनालिटी तो संजय की भी अच्छी है पर साला है एक नंबर का कमीना.. सुबोधकांत तो इतने बड़े बिजनेसमेन है फिर भी पैसों का घमंड नहीं है.. अच्छा हुआ जो उसने मौका देखकर उनसे चुदवा लिया.. पर एक बार करने से कभी मन संतुष्ट कहाँ होता है कभी?? आह्ह फाल्गुनी.. तेरी गलती नहीं है.. सुबोधकांत बूढ़ा है.. पर है कोहिनूर हीरा.. ओल्ड इस गोल्ड.. फिर से एक बार मौका मिले तो मज़ा आ जाएँ.. पर अब कहाँ मौका मिलने वाला था..!! मन ही मन वैशाली मुस्कुरा रही थी

मदन रियर व्यू मिरर से वैशाली को मुसकुराते हुए देखता रहा..इस बेचारी को कहाँ पता ही की उसका पति अभी जैल में बंद है.. !!

रास्ते में एक बढ़िया होटल के बाहर मदन ने गाड़ी रोकी.. सब ने चाय-नाश्ता किया.. नाश्ते के बाद पीयूष और मदन सब के लिए मीठा पान लेने के लिए गए.. शीला, वैशाली और कविता लेडिज बाथरूम की तरफ गए.. बाथरूम तो एक बहाना था इसी बहाने पैरों को रीलैक्स कर रहे थे.. कार में बैठे बैठे पैरों में जकड़न हो गई थी सब को..

जब वैशाली और कविता कुछ गुसपुस कर रहे थे तब शीला वहाँ से दूर चली गई.. उसका मानना था की जवान लड़कियों की बातों में दखलअंदाजी नहीं करने चाहिए.. और उन्हें उनके हिसाब से जीने देना चाहिए.. वैशाली को ये देखकर अपनी मम्मी की परिपक्वता पर गर्व हुआ.. कविता और वैशाली बातें करते करते टॉइलेट में पहुंचे

बाहर निकलकर कविता ने एक जोरदार सिक्सर लगाई.. "वैशाली, टॉइलेट देखकर कुछ याद आया की नहीं?"

वैशाली को समझ नहीं आया "टॉइलेट देखकर भला क्या याद आएगा!!"

"क्यों? माउंट आबू में राजेश सर के साथ.. टॉइलेट ट्रिप.. भूल गई क्या?" शरारती मुस्कुराहट के साथ कविता ने कहा

स्तब्ध रह गई वैशाली.. काटो तो खून न निकले ऐसी दशा हो गई उसकी.. पर पलट कर वार करने में वो भी कम नहीं थी.. आखिर थी तो वो शीला की ही बेटी..

"तू भी ज्यादा होशियार मत बन.. मुझे भी तेरी सारे राज पता है"

कविता: "मेरे कौन से राज.. ज्यादा से ज्यादा पिंटू को इशारे करते हुए देख लिया होगा.. और क्या.. !!"

वैशाली को इस बारे में कुछ मालूम नहीं था.. उसने तो ऐसे ही अंधेरे में तीर चला दिया था.. पर कविता ने पिंटू का नाम लेकर उसे बड़ा हिंट दे दिया था.. उसने मन में ही बात जोड़ दी..

"हाँ.. मुझे मौसम ने बताया था की तुझे पिंटू बहोत पसंद है"

कविता: "तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! सब शादी से पहले की बात थी.. और काफी सालों के बाद जब हमें कोई अपनी पहचान का मिल जाएँ तब पुरानी यादें तो ताज़ा हो ही जाती है.. !!"

वैशाली: "सही बात है.. पुरानी यादें ताज़ा हो जाती है.. और रिपिट भी हो जाती है.. बस मौका मिलना चाहिए.. हैं ना..!!"

वैशाली और कविता बातें कर रहे थे तब शीला को वो बात याद आ रही थी जब ऐसे ही किसी हाइवे होटल पर रात को हाफ़िज़ ने उसे खड़े खड़े चोद दिया था.. गोवा से लौटते वक्त जब वो लोग खाना खाने रुके थे और संजय टॉइलेट गया था तब.. साला कितना हरामी था.. बिना शरमाये अपना लंड निकालकर मेरे मुँह में दे दिया था.. और मेरी छातियाँ तो ऐसे दबाता था जैसे अपनी बीवी की दबा रहा हो..

वैशाली और कविता को करीब आते देख शीला ने अपनी यादों का पिटारा बंद कर दीया.. ये ऐसा प्रकरण था जिसे याद करते ही शीला के चेहरे पर चमक आ जाती थी.. और छुपायें छुपती नहीं थी.. संजय पाँच मिनट के लिए दूर क्या गया.. उस मामूली ड्राइवर ने कितनी हिम्मत दिखाई थी.. और उस दिन जब मदन को छोड़ने आया था तब मुझे आँख मार रहा था.. साला, रंडी समझता था मुझे..!!

"घर पहुंचकर आराम से सारी बातें करेंगे.. अभी देर हो रही है" कहते हुए कविता ने वैशाली को हाथ से खींचकर जल्दी चलने पर मजबूर कर दिया..

मदन एक कोने में खड़े खड़े सिगरेट फूँक रहा था और पीयूष से बातें कर रहा था..

जैसे ही शीला, कविता और वैशाली गाड़ी में बैठे.. मदन ने कार की चाबी पीयूष को थमा दी..

"ले भाई.. मैं तो थक गया.. वैसे भी मुझे कुछ खाने के बाद नींद आ जाती है.. कल भी मैंने ड्राइव किया था.. अब तू ही चला ले" मदन ने कहा

"कोई बात नहीं मदन भैया.. मैं चला लेता हूँ.. आप आराम से शीला भाभी की गोद में सर रखकर सो जाइए" हँसते हुए पीयूष ने कहा

"अरे पागल.. जवान बेटी के सामने ऐसा सब करना ठीक नहीं.. वो नहीं होती तो सो जाता.. " मदन ने गाड़ी में बैठते हुए कहा

पीयूष के ड्राइवर सीट पर बैठते ही कविता भी आगे आ गया.. पीछे मदन का छोटा सा परिवार बैठ गया..

गाड़ी चल पड़ी.. बार बार गियर बदलने पर पीयूष का हाथ कविता की जांघों से टच हो जाता.. और दोनों के जिस्म में अजीब सी सुरसुरी होने लगती थी.. पिछली रात आइसक्रीम लेने गए तब मारुति ८०० में जो संभोग हुआ था वो तो नाश्ते के बराबर था.. फिर रात को जो हुआ वो बड़ा ही मजेदार था.. अब दोनों की भूख जाग चुकी थी.. जल्दी से जल्दी घर पहुंचकर कपड़े उतारकर एक दूसरे में समा जाने की दोनों की चाह थी..

ड्राइव करते करते.. कविता को छेड़ते छेड़ते.. पीयूष बार बार मिरर से वैशाली की ओर देख लेता था और आँखों से इशारे भी कर रहा था.. पर फिलहाल मदन और शीला के बीच बैठी वैशाली उसकी किसी भी हरकत का जवाब नहीं दे पा रही थी.. पीयूष की नजर वैशाली के उछलते स्तनों पर टिकी हुई थी.. गड्ढे में गाड़ी उछलते ही वैशाली के स्तन ऐसे कूदते थे जैसे उसने अपने टॉप में खरगोश के बच्चे छुपाये हो..

तभी पीयूष के मोबाइल पर मेसेज आया.. ड्राइव करते करते उसने मोबाइल को अनलॉक किया और देखा.. मौसम ने ब्लेन्क मेसेज भेजा था.. उसने बिना शब्दों के ही अपने जीजू को यादें भेजी थी.. मौसम का मेसेज देखकर पीयूष फिर से उसकी यादों में खो गया.. कविता के संग संबंधों का जो रिपेर काम चल रहा था उसमे फिर से डेमेज हो गया.. दंगों के वक्त जब कर्फ्यू लगा हो.. और उसमे थोड़े समय के लिए मुक्ति मिले.. उसी दौरान छुरेबाज़ी हो जाए और शांति जिस तरह चकनाचूर हो जाती है.. वैसा ही हाल पीयूष के दिल का भी हो रहा था.. आग लगाने के लिए माचिस की एक तीली ही काफी होती है.. बड़ी मुश्किल से तैरकर वो कविता नाम के किनारे पर पहुँचने ही वाला था तब मौसम नाम की बाढ़ ने उसे फिर से तहसनहस कर दिया.. जैसे ही मौसम के विचारों ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया.. वैसे ही उसने कविता को छेड़ना बंद कर दिया.. मानों कविता का स्पर्श करके वो मौसम को धोखा दे रहा हो ऐसा उसे लग रहा था

इंसान अपने नाजायज प्यार के प्रति जितना वफादार होता है उतनी ही वफादारी अपनी पत्नी की ओर क्यों नहीं दिखाता??

चार घंटों के सफर के बाद.. गाड़ी घर पहुँच गई.. एक के बाद एक सब गाड़ी से उतरें.. पिछले दिन ही तो वो सब वहाँ गए थे.. फिर भी ऐसा लग रहा था की जैसे घर छोड़े हुए अरसा हो गया हो..


बड़ी मुश्किल से पटरी पर आई हुई उसकी और कविता की प्रेम-गाड़ी को दूसरा कोई अवरोध न आए इसलिए पीयूष ने अपने दिमाग से मौसम के खयालों को फिलहाल निकाल फेंका.. और कविता के साथ बातें और मस्ती करते हुए घर की ओर जाने लगा..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है आखिर सुबोधकांत ने शीला नाम की चिड़िया का शिकार कर लिया
 
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