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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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Ajju Landwalia

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Update #19


राजकुमार हर्ष की बातें और अपनी बेटी में उनकी रूचि की बात सुन कर गौरीशंकर जी का चैन, उनकी नींद... सब गायब हो गई थी। लड़की का बाप होना ऐसे ही बड़ा भारी काम है, और उस पर ऐसी लड़की का बाप होना, जो बिन माँ की हो! दो दो भूमिकाओं का निर्वहन अकेले करना! आसान नहीं होता! हर्ष की बातों को याद कर के उनके मन में उथल पुथल मचा हुआ था। न चाहते हुए भी इच्छाओं का ज्वार प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। वो एक व्यावहारिक व्यक्ति थे : अपनी सामर्थ्य से अधिक वो उछलना नहीं चाहते थे, अपनी चादर के अंदर ही अपने पाँव रखना चाहते थे। लेकिन जब इस तरह के सम्बन्ध सामने आते हैं, तो ऐसी व्यवहारिकता की बातें, कहीं दूर, किसी कोने में जा कर छुप जाती हैं। उनको अपनी दशा दशराज जैसी होती हुई महसूस हो रही थी - अपनी एकलौती संतान के लिए राजयोग की सम्भावना सोच कर ही वो रोमांचित हुए जा रहे थे।

(दशराज सत्यवती के पिता थे, और हस्तिनापुर के मछुवारों की बस्ती के मुखिया थे। सत्यवती या मत्स्यगंधा एक मछुवारी और नौकाटन करने का काम करती थी, और उस पर हस्तिनापुर के राजा शान्तनु का दिल आ गया था! बाद में वो हस्तिनापुर की पटरानी बनी।)

जब से हर्ष ने उनसे सुहासिनी का हाथ माँगा था, उसी क्षण से उनकी चाल में एक अलग ही तरह का उछाल आ गया था। वो अचानक ही युवा महसूस करने लगे थे - मूँछों में उनके अनायास ही एक ताव आ गया था। उनको लगता था कि कहीं न कहीं कोई दैवीय कृपा बन पड़ी है उन पर और उनकी संतान पर! क्या पता, सुहासिनी के जीवन में भी सत्यवती की भाँति ही ‘राजयोग’ लिखा हो! लेकिन यह सब फिलहाल स्वप्न की बातें थीं। राजकुमार और सुहासिनी सा सम्बन्ध तभी संभव था, जब महाराज की अनुमति मिल जाए! और उनके अंदर इतनी मजाल नहीं थी कि वो सीधे सीधे महाराजाधिराज से सुहासिनी के सम्बन्ध की बात कर सकते।

अगर महाराज से नहीं, तो किस से बात करी जाए? वो पिछले कुछ समय से इसी विषय में सोचते रहते। महारानी जी प्रजावत्सल अवश्य थीं, और गौरीशंकर जी पर उनकी कृपा भी बहुत थी, और बहुत संभव है कि कोमल हृदय वाली भी हों... लेकिन उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसी बात थी कि उनके सम्मुख आज तक आँखें उठा कर बात करने का साहस ही नहीं हुआ था गौरीशंकर जी का! महाराजाधिराज से भी वो यदा-कदा ठिठोली कर भी लेते थे, किन्तु महारानी के सम्मुख वो शील का पूरा पालन करते थे... हाथ जोड़े और शीश नवाए... यही परम्परा थी, और उनका साहस नहीं था कि इस परम्परा को तोड़ दें। और वैसे भी यह ज्ञात तथ्य है कि माताएँ अपने पुत्रों को ले कर होती भी बड़ी रक्षणशील हैं! ऐसे में महारानी जी अवश्य ही किसी राजकुमारी से ही राजकुमार का विवाह कराना चाहेंगी।

फिर किस से बात करें इस विषय पर?

युवरानी जी से?

युवरानी प्रियम्बदा अपने युवराज जी से आयु में बड़ी हैं, और युवराज जी उनका आदर भी करते हैं। यह बात सर्वज्ञात है। आदर के साथ साथ दोनों में प्रेम भी बहुत है। महाराज ने स्वयं युवरानी को अपने पुत्र के लिए पसंद किया था - उन्होंने उनमें कुछ ऐसी बातें देखी थीं जो अन्य लोग नहीं देख पाए! बहुत संभव है कि युवरानी प्रियम्बदा जी गौरीशंकर जी की समस्या का निदान दे सकें। और जहाँ तक उन्होंने देखा है, युवरानी जी राजकुमार को अपने पुत्र समान ही मानती हैं। यदि बड़ी माता (महारानी जी) से बात करने का साहस नहीं है, तो कोई बात नहीं - छोटी माता (युवरानी जी) से तो बात करी ही जा सकती है। और कुछ नहीं तो उनसे इस विषय में बात अवश्य की जा सकती है। यदि युवरानी जी के हाथों उनका तिरस्कार भी हुआ, तो कम से कम अपने समाज में उनका सर नहीं झुकेगा!

हाँ, यही ठीक रहेगा।


*


“काका,” प्रियम्बदा ने ख़ास बैठक में प्रवेश करते हुए, सामने खड़े हुए गौरीशंकर जी को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया, “प्रणाम!”

गौरीशंकर जी प्रियम्बदा के इस आदरपूर्ण सम्बोधन से अचकचा गए। शताब्दियों से राजपरिवार के सदस्य सामान्य-जन को प्रणाम नहीं करते, इनके पैर नहीं छूते। हाँ, देश स्वतंत्र हुआ था, लेकिन फिर भी, राजपरिवार के सदस्यों को ऐसी कोई आवश्यकता नहीं आन पड़ी थी।

उन्होंने आज हिम्मत कर के पहली बार राजपरिवार की किसी नारी को इतनी निकटता से आँख उठा कर देखा। सौम्य राजसी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं युवरानी जी! वो राजस्थान के राजपरिवार की युवरानी अवश्य थीं, लेकिन उनको अपनी तरफ़ की कलाकारी बहुत पसंद आती थी। आज भी प्रियम्बदा ने राजसी नीले रंग की खंडुआ रेशम की साड़ी पहनी हुई थी - साड़ी का बॉर्डर लाल रंग का था, और उस पर बीच बीच में हलके बैंगनी रंग के बड़े बड़े बूटे बने हुए थे। साड़ी का रंग चटक अवश्य था, लेकिन बहुत ही राजसी था! और एक सौभाग्यवती स्त्री के ऊपर बड़ा सुशोभित हो रहा था।

उन्होंने देखा कि वो युवरानी को देख रहे थे। अपनी हिमाकत पर वो सकपका गए। वो बेहद खेदजनक, किन्तु सम्मानपूर्ण स्वर में बोले,

“खम्मा घणी, युवरानी साहिबा! हुकुम... आप... आप...”

“अरे काका,” प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई बोली - उसके दोनों हाथ अभी भी प्रणाम की मुद्रा में ही जुड़े हुए थे, “बड़ों का आदर करना तो हम छोटों का कर्तव्य है! ... और वैसे भी, नाते में हम आपकी बहू हैं... यदि हम आपको प्रणाम नहीं करेंगीं, तब तो बड़ी धृष्टता हो जाएगी! ... और नुकसान भी!”

गौरीशंकर जी को समझ ही नहीं आया कि वो क्या उत्तर दें। उनके मुँह से अनायास ही निकल गया, “नुकसान युवरानी जी?”

“और आप हमको बेटी कह कर पुकारिए... क्योंकि हम आपकी बेटी समान ही तो हैं!” प्रियम्बदा ने उनको बैठने का संकेत करते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “... नुकसान ही तो हो गया हमारा... हमको अभी तक आशीर्वाद ही नहीं मिला!”

“अरे... ओह! क्षमा युवरानी जी...”

“बेटी!” प्रियम्बदा ने उनकी बात का संशोधन करते हुए कहा, “अभी अभी तो आपसे निवेदन किया था हमने... और आप हमसे क्षमा नहीं माँग सकते! हम अपने बड़ों को आदर के अतिरिक्त और क्या दे सकते हैं? आप बड़े हैं... आप आशीर्वाद दीजिए!”

“युवरानी जी... बेटी जी... अब हम आपको कैसे समझाएँ!” इतना सम्मान शायद ही कभी मिला हो एक सामान्यजन को! उनसे कुछ कहते ही न बन पड़ा।

“पहले बैठिए न! ... बैठ के समझा लीजिए काका...”

बहुत हिचकिचाते हुए गौरीशंकर जी प्रियम्बदा के सामने पड़ी आराम कुर्सी पर बैठे। उनके बैठने के बाद ही प्रियम्बदा दूसरी कुर्सी पर बैठी।

“कहिए... क्या सेवा करें हम आपकी?”

“युव... बेटी जी...” गौरीशंकर जी ने अपने हाथ जोड़ दिए, और बहुत हिचकिचाते हुए बोले, “एक धृष्टता करने आया हूँ आपके पास!”

“काका! ... हमने कहा न आपसे... आप हमसे बड़े हैं। आप आदेश दें! ... लेकिन वो सब बातें बाद में करेंगे...” प्रियम्बदा वाकपटुता से अनवरत बोलती जा रही थी, “पहले यह बताइए कि सुहासिनी कैसी है?”

युवरानी के मुँह से अपनी बेटी का नाम सुनते ही गौरीशंकर जी चौंक गए। उनको दो पल यकीन ही नहीं हुआ कि युवरानी जी को उनकी बेटी का नाम भी मालूम होगा। एक अज्ञात आशंका में उनका हृदय डूबने लगा। उन्होंने तत्क्षण ही हथियार डाल दिए - अब जो होगा, सो होगा!

“हम अकिंचनों के बारे में आपको ज्ञात है युवरानी... बेटी जी... हमारे लिए वही बड़े सम्मान की बात है...” उन्होंने थोड़ा संयत हो कर कहा।

“अरे काका, क्या हो गया! ... ऐसे क्यों कह रहे हैं आप? आप और आपकी बेटी कला के उपासक हैं! हम आपका बहुत सम्मान करते हैं!” प्रियम्बदा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, “कैसी है सुहासिनी?”

“बहुत अच्छी है वो... जब उसको पता चलेगा कि आपने उसका स्मरण किया है, तो वो प्रसन्नता से फूली न समाएगी!”

“हा हा!” प्रियम्बदा हँसती हुई बोली, “कभी अपने साथ ले आईए उसको यहाँ... मिलना चाहेंगे हम उससे... या हम ही किसी दिन आपके घर चलते हैं उससे मिलने!”

गौरीशंकर जी ने फिर से हाथ जोड़ दिए, “हुकुम, आपने इतना कह दिया, बहुत बड़ी बात हो गई!”

“काका... फिर वही! बेटी!” प्रियम्बदा ने बेटी शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

“क्षमा कीजिएगा... बेटी... आदत नहीं है न!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“सुहास... मैं उसको सुहास कह कर बुलाऊँ तो आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?”

“कैसी बातें कर रही हैं बेटी आप! ये तो बड़ा ही प्यारा नाम है...”

प्रियम्बदा मुस्कुराई, “सुहास नृत्य के अतिरिक्त और भी कुछ करती है? ... पढ़ाई लिखाई चल रही है उसकी?”

“जी... अगले साल स्कूल का इम्तिहान लिखेगी!”

“बढ़िया! ... बच्ची को अच्छी शिक्षा अवश्य दीजिएगा! पिताजी महाराज और राजमाता जी भी उच्च शिक्षा के बड़े हिमायती हैं... क्या लड़का क्या लड़की!”

“जी युव... बेटी... वो बात तो सर्वविदित है...”

गौरीशंकर जी अब बहुत नर्वस हो चुके थे। वो चाहते थे कि शीघ्र अतिशीघ्र जो कहने वो यहाँ आए थे, वो कह दें! फिर चाहे जो दंड उनको मिले, सब स्वीकार्य है।

वो कुछ कहने को हुए कि तीन परिचारिकाएँ आईं और तरह तरह के जलपान ला कर एक मेज़ पर सजा दीं।

“युवरानी,” मुख्य परिचारिका ने आदर से कहा, “जलपान की व्यवस्था कर दी गई है।”

“आईए काका,” कह कर प्रियम्बदा कुर्सी से उठने लगी।

वो पूरी तरह से उठ भी पाती कि गौरीशंकर जी सावधान हो कर अपनी कुर्सी से उठ गए।

“युवरानी जी, क्षमा करें! ... एक बात है, जो हम आपसे कह देने की इच्छा ले कर आए हैं!”

“हाँ ठीक है... किन्तु पहले जलपान तो कर लें?”

उनकी हिम्मत नहीं हुई कि परिचारिकाओं के सामने युवरानी जी के कथन का अनादर कर दें। जितना आदर उनको अब तक मिल गया था, वो उनकी हैसियत से कहीं अधिक था। अब वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहते थे जो युवरानी जी का जाने अनजाने में अनादर कर दे। वो चुपचाप उठ कर खाने की मेज़ पर लगी कुर्सी पर बैठ गए।

जब तक जलपान परोसा गया, तब तक वो शांत ही रहे। जलपान लगने के बाद प्रियम्बदा ने परिचारिकाओं को जाने का संकेत दिया। वो भी समझ रही थी कि गौरीशंकर जी अब क्लांत हो चले हैं। इसलिए वो ही पूछ पूछ कर उनको खिला रही थी। जलपान कुछ समय चला। लेकिन गौरीशंकर जी को उससे बल बहुत मिला।

“अब कहिए काका,” जलपान के उपरांत प्रियम्बदा ने पूछा।

“बेटी... हम आपके पास एक काम से आए थे।”

“काम? ... कहिए न काका!”

“हमको खेद है बेटी कि हमने आपको आशीर्वाद भी नहीं दिया,” गौरीशंकर जी ने हिम्मत कर के कहा, “किन्तु जिसके स्वयं के हाथ रिक्त हों, वो आपको क्या दे? ... और वैसे भी... वैसे भी... आज हम आपसे माँगने ही आये थे!”

“अरे काका! क्या हो गया? यूँ घुमा फ़िरा कर न कहिए!”

“बेटी,” गौरीशंकर जी ने दुनिया जहान की हिम्मत जुटाते हुए कहा, “हम... हम... हमको... हमको ज्ञात हुआ है... कि राजकुमार हर्षवर्द्धन... मेरी सुहासिनी... को पसंद करते हैं।” लेकिन आगे की बात करने में वो हकलाने लगे, “... तो... तो... तो... हम निवेदन करने आए थे... कि... कि... सुहासिनी को आप अपने चरणों में स्थान दे दीजिए...”


*


Bada hi sunder update diya he avsji Bhai,

Gaurishankar ke manodasha bahut hi sunder chitran kiya he aapne........ek beti ka baap vo bhi garib upar se apne se bade aur shahi gharane me apni beti ke rishte ki baat karne gaya he...uski sthiti savbhav aur manodasha ka ekdum jivant chitran kiya he

Pryadamba ne abhi tak bahut hi achche tarike se guarsahnkar aadar samman kiya he...........lekin ab baat unkde devar aur sahasini ke rishte ke aa gayi he...........reaction kaisa hoga.........ye dekhne wali baat he.........

Keep posting Bhai
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #20


“यहाँ आने के बाद कभी इंडिया गई हो मीना?” बातें करते हुए अचानक ही जय ने पूछ लिया।

“नहीं... आई मीन, कई साल हो गए...” मीना ने न जाने क्यों थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया, “जब तक बाबा थे, तब तक साल में एक बार तो इंडिया आना जाना हो जाता था, लेकिन उनके जाने के बाद...”

“ओह, आई ऍम सॉरी!” जय ने खेदपूर्वक कहा - वो मीना का दिल दुखाना नहीं चाहता था।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। और वैसे भी... तुमको मालूम ही कहाँ था इस बारे में!”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे।

“मेरे साथ चलोगी?”

“कहाँ?” मीना को भली भाँति मालूम था कि कहाँ।

“इंडिया, और कहाँ?”

“अब कोई नहीं है वहाँ मेरा, जय! ... बाबा के बाद वहाँ से अब कोई नाता ही नहीं बचा।”

“इस बार कह दिया बस!” जय ने बुरा मानते हुए कहा, “अब आगे से न कहना कि तुम्हारा इंडिया में कोई नहीं है... हम हैं न! हमारा पूरा परिवार है...!”

मीना मुस्कुराई,

“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं करी...” वो बुदबुदाते हुए बोली।

“नहीं करी?”

हाँ तो कब की कर चुकी थी मीना - लेकिन अपने जय के सामने वो नखरे दिखाना चाहती ज़रूर थी।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो वो ‘आई लव यू’ क्यों बोल रही थी?”

“सच बोल रही थी!”

“फिर भी बोलती हो कि तुमने हाँ नहीं करी?”

“तुमने प्रोपोज़ कहाँ किया... तुमने भी तो बस आई लव यू कहा!”

“हाँ... प्रोपोज़ तो नहीं किया... कर दूँगा! आज ही!”

यह बात सुन कर मीना का दिल धड़क उठा।

‘इतनी बड़ी बात जय कितनी आसानी से कर लेता है... कितना साफ़ दिल है उसका! कितना अच्छा है उसका जय...’

द बेस्ट!” वो मुस्कुराती हुई जैसे अपने से ही बुदबुदाती हुई बोल पड़ी।

“क्या?” जय ने सुना और हल्के से मुस्कुराया।

“कुछ नहीं...” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! देखो न... क्या कर दिया है तुमने मेरे साथ... अब मैं खुद ही से बातें करने लगी हूँ!” कहते हुए उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ गई, “अभी तो बहुत कुछ एक्सपीरियंस करता है तुमको मेरी जान...”

सवेरे की बातें मीना को याद हो आईं - सवेरे की बातें और चुम्बन भी! वो याद कर के उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

“तुमको प्रोपोज़ भी कर दूँगा और तुमसे शादी भी कर लूँगा... ये तो अब फोर्मलिटीज़ हैं! तुम तो अब हमारी हो गई हो मीना...” जय कह रहा था।

“जबरदस्ती!” मीना ने जय को छेड़ने की गरज़ से कहा।

मीना ने जय को छेड़ा अवश्य, लेकिन आवाज़ में उसकी आनंद का पुट उपस्थित था। उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था कि कोई इस तरह से, अपनेपन से उस पर अपना हक़ जता रहा था। आखिर किसको अच्छा नहीं लगता? कौन नहीं चाहता कि उसको प्यार मिले?

“और नहीं तो क्या!” जय ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “तुमने ही तो कहा है कि तुम्हारे पूरे वज़ूद पर अब मेरा हक़ है! वो क्या बस कहने को कह रही थी?”

“हा हा! ... नहीं जय... मेरी कही हुई हर बात, हर शब्द सच है!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना के चेहरे का भाव इतना समर्पण वाला था कि वो स्वयं को देख कर न पहचान पाती, “तुम अब मुझको न भी अपनाओ न जय... तो भी मैं खुद तो तुम्हारे सिवाय किसी का नहीं मान सकती... अपना भी नहीं!”

“ओह मीना मीना... आई लव यू सो मच!”

आई डोंट नो हाऊ मच आई लव यू... बट वेरी मच!”

जय मुस्कुराया, “माँ को बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिल कर...”

मीना का दिल धमक उठा, “माँ?”

“हाँ! माँ से तो मिलना ही होगा न!” जय ने बड़े आनंद से कहा, “... अपनी होने वाली बहू से मिलना चाहेंगी न वो भी...”

“ओह गॉड!”

“हा हा! अरे ऐसे न कहो! ... हमारी माँ बहुत अच्छी हैं... शी लव्स टू लव अस!”

“हा हा!”

“अरे हाँ, सच में! ... चाचा जी के जाने के बाद वो थोड़ा रिज़र्व ज़रूर हो गईं, लेकिन हम पर ढेरों प्यार लुटाती हैं! जानती हो? शहर में उनकी बहुत रिस्पेक्ट है!” जय ने बड़े घमण्ड से यह बात कही,

“... पहले वो बहुत सोशल वर्क करती थीं... एक्टीवली! ... लेकिन अब नहीं। थोड़ी ऐज भी हो गई है और थोड़ा चाचा जी के बाद वो रिज़र्व भी हो गई हैं... इसलिए अब वो अपने में ही थोड़ा सिमट गई हैं... वो अलग बात है कि अभी भी बड़े बड़े पॉलिटिशियन्स और इंडस्ट्रियलिस्ट्स उनके पास आते हैं... उनका आशीर्वाद लेते हैं!”

“नाइस...”

“अरे, तुमको इम्प्रेस करने के लिए नहीं बता रहा हूँ... बस इसलिए बता रहा हूँ कि माँ बहुत स्वीट हैं... जैसे वो भाभी को बहुत प्यार करती हैं, वैसे ही तुमको भी बहुत प्यार करेंगी...”

“तुम उनके फेवरिट हो या आदित्य?”

“मैं! ऑब्वियस्ली!”

मीना ध्यान से जय की बातें सुन रही थी, लेकिन इस बात पर उसको हँसी आ गई, “हा हा! आई ऍम श्योर दैट आई विल लव टू मीट माँ जी...”

अपनी माँ के लिए मीना के मुँह से ‘माँ जी’ वाला सम्बोधन सुन कर जय को बहुत भला लगा।

“बोलो फिर... कब ले चलूँ तुमको इण्डिया?”

“कभी भी...” मीना मुस्कुराई!

“कभी भी?”

“कभी भी! ... अगर तुम मुझको अपना मानते हो, तो फिर पूछते क्यों हो? ... अपना हक़ जताओ न!”

दैट्स लाइक माय गर्ल!” जय ने खुश होते हुए कहा।

“बट...”

“बट? अरे, अभी भी बट?” जय ने हँसते हुए कहा, “... बोलो?”

“एक बार और अच्छी तरह सोच लो जय... आई ऍम नॉट द बेस्ट गर्ल फॉर यू!”

जय कुछ कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसका हाथ पकड़ कर शांत रहने का इशारा किया, और बोली, “... जय, आई प्रॉमिस यू... तुम्हारी वाइफ बन कर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानूँगी... तुम्हारे जैसा घर... कहाँ मिलते हैं तुम जैसे लोग! ... आदित्य... क्लेयर... तुम... सब लोग कितने अमेज़िंग हो! ... आई ऍम श्योर माँ जी तुम सबसे भी अधिक अमेज़िंग होंगी! ... तभी तो तुम सब ऐसे हो...”

जय मुस्कुराया। लेकिन वो बोला कुछ नहीं - वो समझ रहा था कि मीना की बात ख़तम नहीं हुई है।

“... आई विल आल्सो बी वैरी फॉर्चुनेट! ... और मैं यह वायदा भी करती हूँ कि जब मैं तुम्हारी होऊँगी, तब मैं... मेरा पूरा वज़ूद केवल तुम्हारा होगा! ... अभी भी है... सच में... तुमसे अलग कुछ सोच भी नहीं पाती... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर! ... बट मैं ये ज़रूर कहूँगी कि आई ऍम नॉट गुड... एनफ... फ़ॉर यू !”

“ऐसा क्यों कहती हो मीना?”

“अगर मैं इतनी ही अच्छी होती तो क्या मेरा कोई रिलेशनशिप टूटता?” मीना ने स्वयं को धिक्कारते हुए कहा, “मुझ में ही कोई कमी होगी न?” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, “इसलिए अब डर लगता है इन सब बातों से...”

“तो क्या... तो क्या तुमको मुझसे प्यार नहीं...”

“एक बार भी ये मत कहना जय...” मीना ने निराशा से सर हिलाते हुए कहा, “वर्ड्स कांट डिस्क्राइब हाऊ आई फ़ील अबाउट यू!”

“फ़िर?”

“इसीलिए तो डर लगता है... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत प्यार है...”

“प्यार में डर का क्या काम?”

“... कि कहीं मैं तुमको अपनी किसी हरक़त से डिसअप्पॉइंट न कर दूँ...”

“नहीं करोगी! ... बस हम सब को मन से अपना लो! और कुछ नहीं!”

“ओह जय!” मीना की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह निकलीं।

“क्या हो गया मीना?” जय ने उसको अपने मज़बूत लेकिन प्रेममय आलिंगन में बाँध कर कहा, “क्या हो गया!”

“बहुत डर लग रहा है जय! ... कुछ है मेरे दिल में जो मुझको भी नहीं समझ में आ रहा है। ... डर लग रहा है कि कुछ अनिष्ट न हो जाए! ... कुछ अनर्थ न हो जाए!”

“कुछ नहीं होगा मीना! ... ऐसा अंट शंट मत सोचो!” जय ने उसका माथा चूमते हुए कहा, “... देखो... होगा यह कि हम दोनों शादी करेंगे... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... जल्दी ही... और फिर हम दोनों बहुत बूढ़े हो कर, अपने नाती पोते देख कर मर जाएँगे! द एन्ड... समझी?”

उसकी बात सुन कर मीना रोते रोते भी हँसने मुस्कुराने लगी, “... धत्त... ये भी कोई कहानी है भला? ... इतनी बोरिंग! ... न कोई ट्विस्ट... न कोई सस्पेंस... न कोई थ्रिल...”

बट... बोरिंग इस गुड!” जय ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

मीना ने स्वयं को संयत करते, लेकिन फिर भी रोने के कारण हिचकियाँ खाते हुए कहा, “द बेस्ट...! द बेस्ट! आई लव यू जय... ओह हाऊ मच आई लव यू!”

दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के चुम्बन में लीन हो गए।

*


“अहेम अहेम...” क्लेयर के गला खँखारने की आवाज़ सुन कर मीना और जय अपने चुम्बन और आलिंगन से अलग हुए।

“भाभी?”

“क्या लड़के! बीवी मिली, तो भाभी को भूल गया?” क्लेयर ने जय की टाँग खींची।

“हा हा... नहीं भाभी!” जय मीना से अलग होते हुए क्लेयर को अपनी बाहों में लेते हुए बोला, “मीना, मेरी भाभी मेरी भाभी नहीं, मेरी बड़ी बहन समान हैं... माँ समान हैं!”

“हाँ हाँ... मक्खन मत लगाओ! वैसे मीना जानती है यह बात!”

मीना अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई मुस्कुराई।

“और हाँ, इनकी हर बात माननी पड़ेगी तुमको!” जय ने मिर्च लगाई।

“धत्त, मीना इस उल्लू की बात न सुनो! कुछ भी बकवास करता रहता है ये!” क्लेयर ने मीना का हाथ थामते हुए कहा, “तुम बहुत प्यारी हो... तुम्हारा जैसा मन करे... रहो, जैसा मन करे... जियो! ... बस, इस घर को... इस परिवार को जोड़ कर रखना।”

“इतने सुन्दर परिवार को मैं तोड़ने का सोच भी नहीं सकती क्लेयर!”

“भाभी, मीना को इंडिया गए कई साल हो गए हैं!” जय ने सहसा ही कहा।

“तो ले जाओ न उसको इंडिया? ... माँ से भी मिलवा लाना...”

“हाँ भाभी! ... अरे वाह! आपको कैसे पता चली मेरे मन की बात?”

“इतनी सुन्दर सी बीवी ढूंढी है तुमने... माँ को नहीं दिखाओगे?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“वाह भाभी, आपके चरण कहाँ हैं?”

“वहीं, जहाँ हमेशा होते हैं,” क्लेयर ने अपने पैरों की तरफ़ इशारा किया, तो जय ने क्लेयर के पैर पकड़ लिए।

“जय हो मेरी भाभी की, जय हो!”

“हा हा! चल, बहुत हो गया तेरा नाटक! ... अच्छा, एक बात बताओ, आज घर में ही ऐसे टाइम वेस्ट करना है, या कुछ मज़ेदार करने का भी प्लान है? ... मैंने ज़िद कर के मीना को रोक तो लिया है, लेकिन उसको एंटरटेन करने का जिम्मा तुम्हारा है! ... समझे? जल्दी से कोई बढ़िया, मज़ेदार प्लान बनाओ, नहीं तो दिन बीत जाएगा!”

“जो आज्ञा भाभी!” जय ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लिए।

उसकी इस हरकत से मीना और क्लेयर खिलखिला कर हँस दीं।

*
 

avsji

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गौरीशंकर जी और प्रियम्बदा मैडम के बीच मे जो हैसियत का बड़ा सा फर्क है उससे स्पष्ट झलक रहा है कि वो कितने मानसिक तनाव मे थे ।
लेकिन वो करें भी तो क्या करें ! मां-बाप के लिए संतान से बढ़कर दुनिया मे कोई चीज नही होता। उसकी खुशी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार रहते है।

सत्य है!

प्रियम्बदा मैडम की आचरण , व्यवहार और इन्सानियत उन्हे बड़े लोगों की श्रेणी मे खड़ा करती है। लोग धन दौलत और प्रसिद्धी से महान नही बनते । लोग अपने आचरण , व्यवहार और इन्सानियत से महान बनते है। ऐसे लोगों के लिए कोई भी मनुष्य छोटा या बड़ा नही होता।
जिस तरह से उन्होने गौरीशंकर जी के साथ विहेव किया वह कोई बड़ा लोग ही करता है।

सत्य है - व्यक्ति बड़ा होता है अपने आचरण से।
प्रियम्बदा को अच्छी सीख मिली है, और शायद इसीलिए वो महाराजपुर राजपरिवार में ब्याही गई है।
ज्ञात हो - राजपरिवार पर श्राप है, और वो स्त्रियों का बड़ा आदर करते हैं।

लेकिन न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि वो गौरीशंकर जी के आने का प्रयोजन पहले से जानती है ! शायद वो अच्छी तरह जानती है कि गौरीशंकर जी अपनी पुत्री सुहासिनी के लिए हर्ष का रिश्ता मांगने आए है ।

संभव है।

देखें नेक्स्ट अपडेट मे ऐसा ही कुछ होता है या कुछ और ही कहानी है !
बहुत खुबसूरत अपडेट था यह । गौरीशंकर जी की मानसिकता और प्रियम्बदा मैडम के शानदार आचरण का लाजवाब वर्णन था।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट avsji भाई।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई! :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Bada hi sunder update diya he avsji Bhai,

Gaurishankar ke manodasha bahut hi sunder chitran kiya he aapne........ek beti ka baap vo bhi garib upar se apne se bade aur shahi gharane me apni beti ke rishte ki baat karne gaya he...uski sthiti savbhav aur manodasha ka ekdum jivant chitran kiya he

Pryadamba ne abhi tak bahut hi achche tarike se guarsahnkar aadar samman kiya he...........lekin ab baat unkde devar aur sahasini ke rishte ke aa gayi he...........reaction kaisa hoga.........ye dekhne wali baat he.........

Keep posting Bhai

बहुत बहुत धन्यवाद अज्जू भाई!
जल्दी ही बात खुलने वाली है - बस थोड़ा सा और धैर्य! :)
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Update #20


“यहाँ आने के बाद कभी इंडिया गई हो मीना?” बातें करते हुए अचानक ही जय ने पूछ लिया।

“नहीं... आई मीन, कई साल हो गए...” मीना ने न जाने क्यों थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया, “जब तक बाबा थे, तब तक साल में एक बार तो इंडिया आना जाना हो जाता था, लेकिन उनके जाने के बाद...”

“ओह, आई ऍम सॉरी!” जय ने खेदपूर्वक कहा - वो मीना का दिल दुखाना नहीं चाहता था।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। और वैसे भी... तुमको मालूम ही कहाँ था इस बारे में!”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे।

“मेरे साथ चलोगी?”

“कहाँ?” मीना को भली भाँति मालूम था कि कहाँ।

“इंडिया, और कहाँ?”

“अब कोई नहीं है वहाँ मेरा, जय! ... बाबा के बाद वहाँ से अब कोई नाता ही नहीं बचा।”

“इस बार कह दिया बस!” जय ने बुरा मानते हुए कहा, “अब आगे से न कहना कि तुम्हारा इंडिया में कोई नहीं है... हम हैं न! हमारा पूरा परिवार है...!”

मीना मुस्कुराई,

“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं करी...” वो बुदबुदाते हुए बोली।

“नहीं करी?”

हाँ तो कब की कर चुकी थी मीना - लेकिन अपने जय के सामने वो नखरे दिखाना चाहती ज़रूर थी।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो वो ‘आई लव यू’ क्यों बोल रही थी?”

“सच बोल रही थी!”

“फिर भी बोलती हो कि तुमने हाँ नहीं करी?”

“तुमने प्रोपोज़ कहाँ किया... तुमने भी तो बस आई लव यू कहा!”

“हाँ... प्रोपोज़ तो नहीं किया... कर दूँगा! आज ही!”

यह बात सुन कर मीना का दिल धड़क उठा।

‘इतनी बड़ी बात जय कितनी आसानी से कर लेता है... कितना साफ़ दिल है उसका! कितना अच्छा है उसका जय...’

द बेस्ट!” वो मुस्कुराती हुई जैसे अपने से ही बुदबुदाती हुई बोल पड़ी।

“क्या?” जय ने सुना और हल्के से मुस्कुराया।

“कुछ नहीं...” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! देखो न... क्या कर दिया है तुमने मेरे साथ... अब मैं खुद ही से बातें करने लगी हूँ!” कहते हुए उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ गई, “अभी तो बहुत कुछ एक्सपीरियंस करता है तुमको मेरी जान...”

सवेरे की बातें मीना को याद हो आईं - सवेरे की बातें और चुम्बन भी! वो याद कर के उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

“तुमको प्रोपोज़ भी कर दूँगा और तुमसे शादी भी कर लूँगा... ये तो अब फोर्मलिटीज़ हैं! तुम तो अब हमारी हो गई हो मीना...” जय कह रहा था।

“जबरदस्ती!” मीना ने जय को छेड़ने की गरज़ से कहा।

मीना ने जय को छेड़ा अवश्य, लेकिन आवाज़ में उसकी आनंद का पुट उपस्थित था। उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था कि कोई इस तरह से, अपनेपन से उस पर अपना हक़ जता रहा था। आखिर किसको अच्छा नहीं लगता? कौन नहीं चाहता कि उसको प्यार मिले?

“और नहीं तो क्या!” जय ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “तुमने ही तो कहा है कि तुम्हारे पूरे वज़ूद पर अब मेरा हक़ है! वो क्या बस कहने को कह रही थी?”

“हा हा! ... नहीं जय... मेरी कही हुई हर बात, हर शब्द सच है!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना के चेहरे का भाव इतना समर्पण वाला था कि वो स्वयं को देख कर न पहचान पाती, “तुम अब मुझको न भी अपनाओ न जय... तो भी मैं खुद तो तुम्हारे सिवाय किसी का नहीं मान सकती... अपना भी नहीं!”

“ओह मीना मीना... आई लव यू सो मच!”

आई डोंट नो हाऊ मच आई लव यू... बट वेरी मच!”

जय मुस्कुराया, “माँ को बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिल कर...”

मीना का दिल धमक उठा, “माँ?”

“हाँ! माँ से तो मिलना ही होगा न!” जय ने बड़े आनंद से कहा, “... अपनी होने वाली बहू से मिलना चाहेंगी न वो भी...”

“ओह गॉड!”

“हा हा! अरे ऐसे न कहो! ... हमारी माँ बहुत अच्छी हैं... शी लव्स टू लव अस!”

“हा हा!”

“अरे हाँ, सच में! ... चाचा जी के जाने के बाद वो थोड़ा रिज़र्व ज़रूर हो गईं, लेकिन हम पर ढेरों प्यार लुटाती हैं! जानती हो? शहर में उनकी बहुत रिस्पेक्ट है!” जय ने बड़े घमण्ड से यह बात कही,

“... पहले वो बहुत सोशल वर्क करती थीं... एक्टीवली! ... लेकिन अब नहीं। थोड़ी ऐज भी हो गई है और थोड़ा चाचा जी के बाद वो रिज़र्व भी हो गई हैं... इसलिए अब वो अपने में ही थोड़ा सिमट गई हैं... वो अलग बात है कि अभी भी बड़े बड़े पॉलिटिशियन्स और इंडस्ट्रियलिस्ट्स उनके पास आते हैं... उनका आशीर्वाद लेते हैं!”

“नाइस...”

“अरे, तुमको इम्प्रेस करने के लिए नहीं बता रहा हूँ... बस इसलिए बता रहा हूँ कि माँ बहुत स्वीट हैं... जैसे वो भाभी को बहुत प्यार करती हैं, वैसे ही तुमको भी बहुत प्यार करेंगी...”

“तुम उनके फेवरिट हो या आदित्य?”

“मैं! ऑब्वियस्ली!”

मीना ध्यान से जय की बातें सुन रही थी, लेकिन इस बात पर उसको हँसी आ गई, “हा हा! आई ऍम श्योर दैट आई विल लव टू मीट माँ जी...”

अपनी माँ के लिए मीना के मुँह से ‘माँ जी’ वाला सम्बोधन सुन कर जय को बहुत भला लगा।

“बोलो फिर... कब ले चलूँ तुमको इण्डिया?”

“कभी भी...” मीना मुस्कुराई!

“कभी भी?”

“कभी भी! ... अगर तुम मुझको अपना मानते हो, तो फिर पूछते क्यों हो? ... अपना हक़ जताओ न!”

दैट्स लाइक माय गर्ल!” जय ने खुश होते हुए कहा।

“बट...”

“बट? अरे, अभी भी बट?” जय ने हँसते हुए कहा, “... बोलो?”

“एक बार और अच्छी तरह सोच लो जय... आई ऍम नॉट द बेस्ट गर्ल फॉर यू!”

जय कुछ कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसका हाथ पकड़ कर शांत रहने का इशारा किया, और बोली, “... जय, आई प्रॉमिस यू... तुम्हारी वाइफ बन कर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानूँगी... तुम्हारे जैसा घर... कहाँ मिलते हैं तुम जैसे लोग! ... आदित्य... क्लेयर... तुम... सब लोग कितने अमेज़िंग हो! ... आई ऍम श्योर माँ जी तुम सबसे भी अधिक अमेज़िंग होंगी! ... तभी तो तुम सब ऐसे हो...”

जय मुस्कुराया। लेकिन वो बोला कुछ नहीं - वो समझ रहा था कि मीना की बात ख़तम नहीं हुई है।

“... आई विल आल्सो बी वैरी फॉर्चुनेट! ... और मैं यह वायदा भी करती हूँ कि जब मैं तुम्हारी होऊँगी, तब मैं... मेरा पूरा वज़ूद केवल तुम्हारा होगा! ... अभी भी है... सच में... तुमसे अलग कुछ सोच भी नहीं पाती... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर! ... बट मैं ये ज़रूर कहूँगी कि आई ऍम नॉट गुड... एनफ... फ़ॉर यू !”

“ऐसा क्यों कहती हो मीना?”

“अगर मैं इतनी ही अच्छी होती तो क्या मेरा कोई रिलेशनशिप टूटता?” मीना ने स्वयं को धिक्कारते हुए कहा, “मुझ में ही कोई कमी होगी न?” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, “इसलिए अब डर लगता है इन सब बातों से...”

“तो क्या... तो क्या तुमको मुझसे प्यार नहीं...”

“एक बार भी ये मत कहना जय...” मीना ने निराशा से सर हिलाते हुए कहा, “वर्ड्स कांट डिस्क्राइब हाऊ आई फ़ील अबाउट यू!”

“फ़िर?”

“इसीलिए तो डर लगता है... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत प्यार है...”

“प्यार में डर का क्या काम?”

“... कि कहीं मैं तुमको अपनी किसी हरक़त से डिसअप्पॉइंट न कर दूँ...”

“नहीं करोगी! ... बस हम सब को मन से अपना लो! और कुछ नहीं!”

“ओह जय!” मीना की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह निकलीं।

“क्या हो गया मीना?” जय ने उसको अपने मज़बूत लेकिन प्रेममय आलिंगन में बाँध कर कहा, “क्या हो गया!”

“बहुत डर लग रहा है जय! ... कुछ है मेरे दिल में जो मुझको भी नहीं समझ में आ रहा है। ... डर लग रहा है कि कुछ अनिष्ट न हो जाए! ... कुछ अनर्थ न हो जाए!”

“कुछ नहीं होगा मीना! ... ऐसा अंट शंट मत सोचो!” जय ने उसका माथा चूमते हुए कहा, “... देखो... होगा यह कि हम दोनों शादी करेंगे... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... जल्दी ही... और फिर हम दोनों बहुत बूढ़े हो कर, अपने नाती पोते देख कर मर जाएँगे! द एन्ड... समझी?”

उसकी बात सुन कर मीना रोते रोते भी हँसने मुस्कुराने लगी, “... धत्त... ये भी कोई कहानी है भला? ... इतनी बोरिंग! ... न कोई ट्विस्ट... न कोई सस्पेंस... न कोई थ्रिल...”

बट... बोरिंग इस गुड!” जय ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

मीना ने स्वयं को संयत करते, लेकिन फिर भी रोने के कारण हिचकियाँ खाते हुए कहा, “द बेस्ट...! द बेस्ट! आई लव यू जय... ओह हाऊ मच आई लव यू!”

दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के चुम्बन में लीन हो गए।

*


“अहेम अहेम...” क्लेयर के गला खँखारने की आवाज़ सुन कर मीना और जय अपने चुम्बन और आलिंगन से अलग हुए।

“भाभी?”

“क्या लड़के! बीवी मिली, तो भाभी को भूल गया?” क्लेयर ने जय की टाँग खींची।

“हा हा... नहीं भाभी!” जय मीना से अलग होते हुए क्लेयर को अपनी बाहों में लेते हुए बोला, “मीना, मेरी भाभी मेरी भाभी नहीं, मेरी बड़ी बहन समान हैं... माँ समान हैं!”

“हाँ हाँ... मक्खन मत लगाओ! वैसे मीना जानती है यह बात!”

मीना अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई मुस्कुराई।

“और हाँ, इनकी हर बात माननी पड़ेगी तुमको!” जय ने मिर्च लगाई।

“धत्त, मीना इस उल्लू की बात न सुनो! कुछ भी बकवास करता रहता है ये!” क्लेयर ने मीना का हाथ थामते हुए कहा, “तुम बहुत प्यारी हो... तुम्हारा जैसा मन करे... रहो, जैसा मन करे... जियो! ... बस, इस घर को... इस परिवार को जोड़ कर रखना।”

“इतने सुन्दर परिवार को मैं तोड़ने का सोच भी नहीं सकती क्लेयर!”

“भाभी, मीना को इंडिया गए कई साल हो गए हैं!” जय ने सहसा ही कहा।

“तो ले जाओ न उसको इंडिया? ... माँ से भी मिलवा लाना...”

“हाँ भाभी! ... अरे वाह! आपको कैसे पता चली मेरे मन की बात?”

“इतनी सुन्दर सी बीवी ढूंढी है तुमने... माँ को नहीं दिखाओगे?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“वाह भाभी, आपके चरण कहाँ हैं?”

“वहीं, जहाँ हमेशा होते हैं,” क्लेयर ने अपने पैरों की तरफ़ इशारा किया, तो जय ने क्लेयर के पैर पकड़ लिए।

“जय हो मेरी भाभी की, जय हो!”

“हा हा! चल, बहुत हो गया तेरा नाटक! ... अच्छा, एक बात बताओ, आज घर में ही ऐसे टाइम वेस्ट करना है, या कुछ मज़ेदार करने का भी प्लान है? ... मैंने ज़िद कर के मीना को रोक तो लिया है, लेकिन उसको एंटरटेन करने का जिम्मा तुम्हारा है! ... समझे? जल्दी से कोई बढ़िया, मज़ेदार प्लान बनाओ, नहीं तो दिन बीत जाएगा!”

“जो आज्ञा भाभी!” जय ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लिए।

उसकी इस हरकत से मीना और क्लेयर खिलखिला कर हँस दीं।

*
२ रिलेशनशिप फेल होने का डर साफ साफ देखा जा सकता है मीना के मन में, उम्मीद है की मां से मिल कर वो डर दूर होगा।
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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दोनों ही अपडेट बेहद खूबसूरत थे।
गौरी शंकर के मनोभावों को बहुत ही नायाब तरीके से वर्णन किया है आपने। प्रियंबदा के सामने वो बहुत ज्यादा नर्वस था और ये स्वाभाविक भी था क्योंकि ऐसा उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उसकी बेटी की वजह से उसे इतने अद्भुत सम्मान की अनुभूति होगी अथवा मिलेगा। प्रियंबदा भी बखूबी समझ रही थी उसकी हालत को इसी लिए तो उसने उसको सहज और शांत करने के लिए उससे खुद को बेटी बोलने का आग्रह किया। ख़ैर गौरी शंकर ने आख़िर बड़ी हिम्मत जुटा कर वो बात कह ही दी जिसके लिए वो यहां आया था। अब देखना ये है कि प्रियंबदा क्या कहेगी उससे। वैसे मेरा अनुमान तो यही है कि प्रियंबदा को उसकी बेटी का अपने देवर के लिए रिश्ता मंज़ूर ही होगा लेकिन ये भी सच है कि राज परिवार की वो मालकिन नहीं है। यानि इस रिश्ते के संदर्भ में कोई भी फ़ैसला राज परिवार के मुखिया ही लेंगे। प्रियंबदा रिश्ता तय करने में सहयोग ज़रूर कर सकती है तो देखते हैं फिर.....

वही दूसरी तरफ मीना और जय का प्रेम अलग ही तरह से परवान चढ़ रहा है। मीना अभी भी कहीं न कहीं जय के साथ अपने रिश्ते को ले कर नर्वस है। अतीत में दो दो बार प्रेम में मिली नाकामी के चलते उसके अंदर थोड़ी घबराहट है। उसे लगता है कि कहीं उसकी वजह से जय के साथ भी उसका संबंध न टूट जाए। मेरा खयाल है कि मीना को अब जा कर सच्चा प्रेम हुआ है। पहले वाला प्रेम तो महज आकर्षण मात्र ही था जिसमे कहीं न कहीं हवस भी शामिल हो गई थी। बहरहाल, क्लेयर और आदित्य जैसे किरदार के चलते लगता नहीं है कि मीना और जय की जोड़ी बिछड़ेगी। बाकी नियति में क्या है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो मीना को इंडिया में मां से मिलवाने की बात चल रही है। देखते हैं मीना को देख कर मां का क्या फैसला होता है। लाजवाब कहानी चल रही है भैया जी, आगे का इंतजार है अब। :waiting:
 
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मीना मैडम की बातों से मै इत्तफाक नही रखता। आप दोनो की प्रेम कहानी किसी हाल मे भी बोरिंग नही होने वाली। आप की इस लव स्टोरी मे ट्विस्ट भी होगा , सस्पेंस भी होगा और थ्रिल भी होगा।

मै स्वीकार करता हूं कि आप तहे दिल से जय से मोहब्बत करती है। और यह भी स्वीकार करता हूं कि आप दोनो की अरेंज मैरेज भी होगी।
लेकिन हमारे जीवन के कुछ अतीत ऐसे होते है जो मरते दम तक पीछा नही छोड़ते । और अगर वो अतीत बुरी हो तब तो बिल्कुल ही नही ।
अब यह निर्भर करेगा आप पर और आपके हसबैंड जय साहब पर कि आप दोनो किस तरह इसका सामना करते है ! किस तरह विपरीत परिस्थितियों मे अपना धैर्य नही खोते है ! किस तरह एक दूसरे का सहारा बने रहते है !

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
 

parkas

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Update #20


“यहाँ आने के बाद कभी इंडिया गई हो मीना?” बातें करते हुए अचानक ही जय ने पूछ लिया।

“नहीं... आई मीन, कई साल हो गए...” मीना ने न जाने क्यों थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया, “जब तक बाबा थे, तब तक साल में एक बार तो इंडिया आना जाना हो जाता था, लेकिन उनके जाने के बाद...”

“ओह, आई ऍम सॉरी!” जय ने खेदपूर्वक कहा - वो मीना का दिल दुखाना नहीं चाहता था।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। और वैसे भी... तुमको मालूम ही कहाँ था इस बारे में!”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे।

“मेरे साथ चलोगी?”

“कहाँ?” मीना को भली भाँति मालूम था कि कहाँ।

“इंडिया, और कहाँ?”

“अब कोई नहीं है वहाँ मेरा, जय! ... बाबा के बाद वहाँ से अब कोई नाता ही नहीं बचा।”

“इस बार कह दिया बस!” जय ने बुरा मानते हुए कहा, “अब आगे से न कहना कि तुम्हारा इंडिया में कोई नहीं है... हम हैं न! हमारा पूरा परिवार है...!”

मीना मुस्कुराई,

“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं करी...” वो बुदबुदाते हुए बोली।

“नहीं करी?”

हाँ तो कब की कर चुकी थी मीना - लेकिन अपने जय के सामने वो नखरे दिखाना चाहती ज़रूर थी।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो वो ‘आई लव यू’ क्यों बोल रही थी?”

“सच बोल रही थी!”

“फिर भी बोलती हो कि तुमने हाँ नहीं करी?”

“तुमने प्रोपोज़ कहाँ किया... तुमने भी तो बस आई लव यू कहा!”

“हाँ... प्रोपोज़ तो नहीं किया... कर दूँगा! आज ही!”

यह बात सुन कर मीना का दिल धड़क उठा।

‘इतनी बड़ी बात जय कितनी आसानी से कर लेता है... कितना साफ़ दिल है उसका! कितना अच्छा है उसका जय...’

द बेस्ट!” वो मुस्कुराती हुई जैसे अपने से ही बुदबुदाती हुई बोल पड़ी।

“क्या?” जय ने सुना और हल्के से मुस्कुराया।

“कुछ नहीं...” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! देखो न... क्या कर दिया है तुमने मेरे साथ... अब मैं खुद ही से बातें करने लगी हूँ!” कहते हुए उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ गई, “अभी तो बहुत कुछ एक्सपीरियंस करता है तुमको मेरी जान...”

सवेरे की बातें मीना को याद हो आईं - सवेरे की बातें और चुम्बन भी! वो याद कर के उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

“तुमको प्रोपोज़ भी कर दूँगा और तुमसे शादी भी कर लूँगा... ये तो अब फोर्मलिटीज़ हैं! तुम तो अब हमारी हो गई हो मीना...” जय कह रहा था।

“जबरदस्ती!” मीना ने जय को छेड़ने की गरज़ से कहा।

मीना ने जय को छेड़ा अवश्य, लेकिन आवाज़ में उसकी आनंद का पुट उपस्थित था। उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था कि कोई इस तरह से, अपनेपन से उस पर अपना हक़ जता रहा था। आखिर किसको अच्छा नहीं लगता? कौन नहीं चाहता कि उसको प्यार मिले?

“और नहीं तो क्या!” जय ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “तुमने ही तो कहा है कि तुम्हारे पूरे वज़ूद पर अब मेरा हक़ है! वो क्या बस कहने को कह रही थी?”

“हा हा! ... नहीं जय... मेरी कही हुई हर बात, हर शब्द सच है!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना के चेहरे का भाव इतना समर्पण वाला था कि वो स्वयं को देख कर न पहचान पाती, “तुम अब मुझको न भी अपनाओ न जय... तो भी मैं खुद तो तुम्हारे सिवाय किसी का नहीं मान सकती... अपना भी नहीं!”

“ओह मीना मीना... आई लव यू सो मच!”

आई डोंट नो हाऊ मच आई लव यू... बट वेरी मच!”

जय मुस्कुराया, “माँ को बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिल कर...”

मीना का दिल धमक उठा, “माँ?”

“हाँ! माँ से तो मिलना ही होगा न!” जय ने बड़े आनंद से कहा, “... अपनी होने वाली बहू से मिलना चाहेंगी न वो भी...”

“ओह गॉड!”

“हा हा! अरे ऐसे न कहो! ... हमारी माँ बहुत अच्छी हैं... शी लव्स टू लव अस!”

“हा हा!”

“अरे हाँ, सच में! ... चाचा जी के जाने के बाद वो थोड़ा रिज़र्व ज़रूर हो गईं, लेकिन हम पर ढेरों प्यार लुटाती हैं! जानती हो? शहर में उनकी बहुत रिस्पेक्ट है!” जय ने बड़े घमण्ड से यह बात कही,

“... पहले वो बहुत सोशल वर्क करती थीं... एक्टीवली! ... लेकिन अब नहीं। थोड़ी ऐज भी हो गई है और थोड़ा चाचा जी के बाद वो रिज़र्व भी हो गई हैं... इसलिए अब वो अपने में ही थोड़ा सिमट गई हैं... वो अलग बात है कि अभी भी बड़े बड़े पॉलिटिशियन्स और इंडस्ट्रियलिस्ट्स उनके पास आते हैं... उनका आशीर्वाद लेते हैं!”

“नाइस...”

“अरे, तुमको इम्प्रेस करने के लिए नहीं बता रहा हूँ... बस इसलिए बता रहा हूँ कि माँ बहुत स्वीट हैं... जैसे वो भाभी को बहुत प्यार करती हैं, वैसे ही तुमको भी बहुत प्यार करेंगी...”

“तुम उनके फेवरिट हो या आदित्य?”

“मैं! ऑब्वियस्ली!”

मीना ध्यान से जय की बातें सुन रही थी, लेकिन इस बात पर उसको हँसी आ गई, “हा हा! आई ऍम श्योर दैट आई विल लव टू मीट माँ जी...”

अपनी माँ के लिए मीना के मुँह से ‘माँ जी’ वाला सम्बोधन सुन कर जय को बहुत भला लगा।

“बोलो फिर... कब ले चलूँ तुमको इण्डिया?”

“कभी भी...” मीना मुस्कुराई!

“कभी भी?”

“कभी भी! ... अगर तुम मुझको अपना मानते हो, तो फिर पूछते क्यों हो? ... अपना हक़ जताओ न!”

दैट्स लाइक माय गर्ल!” जय ने खुश होते हुए कहा।

“बट...”

“बट? अरे, अभी भी बट?” जय ने हँसते हुए कहा, “... बोलो?”

“एक बार और अच्छी तरह सोच लो जय... आई ऍम नॉट द बेस्ट गर्ल फॉर यू!”

जय कुछ कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसका हाथ पकड़ कर शांत रहने का इशारा किया, और बोली, “... जय, आई प्रॉमिस यू... तुम्हारी वाइफ बन कर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानूँगी... तुम्हारे जैसा घर... कहाँ मिलते हैं तुम जैसे लोग! ... आदित्य... क्लेयर... तुम... सब लोग कितने अमेज़िंग हो! ... आई ऍम श्योर माँ जी तुम सबसे भी अधिक अमेज़िंग होंगी! ... तभी तो तुम सब ऐसे हो...”

जय मुस्कुराया। लेकिन वो बोला कुछ नहीं - वो समझ रहा था कि मीना की बात ख़तम नहीं हुई है।

“... आई विल आल्सो बी वैरी फॉर्चुनेट! ... और मैं यह वायदा भी करती हूँ कि जब मैं तुम्हारी होऊँगी, तब मैं... मेरा पूरा वज़ूद केवल तुम्हारा होगा! ... अभी भी है... सच में... तुमसे अलग कुछ सोच भी नहीं पाती... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर! ... बट मैं ये ज़रूर कहूँगी कि आई ऍम नॉट गुड... एनफ... फ़ॉर यू !”

“ऐसा क्यों कहती हो मीना?”

“अगर मैं इतनी ही अच्छी होती तो क्या मेरा कोई रिलेशनशिप टूटता?” मीना ने स्वयं को धिक्कारते हुए कहा, “मुझ में ही कोई कमी होगी न?” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, “इसलिए अब डर लगता है इन सब बातों से...”

“तो क्या... तो क्या तुमको मुझसे प्यार नहीं...”

“एक बार भी ये मत कहना जय...” मीना ने निराशा से सर हिलाते हुए कहा, “वर्ड्स कांट डिस्क्राइब हाऊ आई फ़ील अबाउट यू!”

“फ़िर?”

“इसीलिए तो डर लगता है... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत प्यार है...”

“प्यार में डर का क्या काम?”

“... कि कहीं मैं तुमको अपनी किसी हरक़त से डिसअप्पॉइंट न कर दूँ...”

“नहीं करोगी! ... बस हम सब को मन से अपना लो! और कुछ नहीं!”

“ओह जय!” मीना की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह निकलीं।

“क्या हो गया मीना?” जय ने उसको अपने मज़बूत लेकिन प्रेममय आलिंगन में बाँध कर कहा, “क्या हो गया!”

“बहुत डर लग रहा है जय! ... कुछ है मेरे दिल में जो मुझको भी नहीं समझ में आ रहा है। ... डर लग रहा है कि कुछ अनिष्ट न हो जाए! ... कुछ अनर्थ न हो जाए!”

“कुछ नहीं होगा मीना! ... ऐसा अंट शंट मत सोचो!” जय ने उसका माथा चूमते हुए कहा, “... देखो... होगा यह कि हम दोनों शादी करेंगे... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... जल्दी ही... और फिर हम दोनों बहुत बूढ़े हो कर, अपने नाती पोते देख कर मर जाएँगे! द एन्ड... समझी?”

उसकी बात सुन कर मीना रोते रोते भी हँसने मुस्कुराने लगी, “... धत्त... ये भी कोई कहानी है भला? ... इतनी बोरिंग! ... न कोई ट्विस्ट... न कोई सस्पेंस... न कोई थ्रिल...”

बट... बोरिंग इस गुड!” जय ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

मीना ने स्वयं को संयत करते, लेकिन फिर भी रोने के कारण हिचकियाँ खाते हुए कहा, “द बेस्ट...! द बेस्ट! आई लव यू जय... ओह हाऊ मच आई लव यू!”

दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के चुम्बन में लीन हो गए।

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“अहेम अहेम...” क्लेयर के गला खँखारने की आवाज़ सुन कर मीना और जय अपने चुम्बन और आलिंगन से अलग हुए।

“भाभी?”

“क्या लड़के! बीवी मिली, तो भाभी को भूल गया?” क्लेयर ने जय की टाँग खींची।

“हा हा... नहीं भाभी!” जय मीना से अलग होते हुए क्लेयर को अपनी बाहों में लेते हुए बोला, “मीना, मेरी भाभी मेरी भाभी नहीं, मेरी बड़ी बहन समान हैं... माँ समान हैं!”

“हाँ हाँ... मक्खन मत लगाओ! वैसे मीना जानती है यह बात!”

मीना अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई मुस्कुराई।

“और हाँ, इनकी हर बात माननी पड़ेगी तुमको!” जय ने मिर्च लगाई।

“धत्त, मीना इस उल्लू की बात न सुनो! कुछ भी बकवास करता रहता है ये!” क्लेयर ने मीना का हाथ थामते हुए कहा, “तुम बहुत प्यारी हो... तुम्हारा जैसा मन करे... रहो, जैसा मन करे... जियो! ... बस, इस घर को... इस परिवार को जोड़ कर रखना।”

“इतने सुन्दर परिवार को मैं तोड़ने का सोच भी नहीं सकती क्लेयर!”

“भाभी, मीना को इंडिया गए कई साल हो गए हैं!” जय ने सहसा ही कहा।

“तो ले जाओ न उसको इंडिया? ... माँ से भी मिलवा लाना...”

“हाँ भाभी! ... अरे वाह! आपको कैसे पता चली मेरे मन की बात?”

“इतनी सुन्दर सी बीवी ढूंढी है तुमने... माँ को नहीं दिखाओगे?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“वाह भाभी, आपके चरण कहाँ हैं?”

“वहीं, जहाँ हमेशा होते हैं,” क्लेयर ने अपने पैरों की तरफ़ इशारा किया, तो जय ने क्लेयर के पैर पकड़ लिए।

“जय हो मेरी भाभी की, जय हो!”

“हा हा! चल, बहुत हो गया तेरा नाटक! ... अच्छा, एक बात बताओ, आज घर में ही ऐसे टाइम वेस्ट करना है, या कुछ मज़ेदार करने का भी प्लान है? ... मैंने ज़िद कर के मीना को रोक तो लिया है, लेकिन उसको एंटरटेन करने का जिम्मा तुम्हारा है! ... समझे? जल्दी से कोई बढ़िया, मज़ेदार प्लान बनाओ, नहीं तो दिन बीत जाएगा!”

“जो आज्ञा भाभी!” जय ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लिए।

उसकी इस हरकत से मीना और क्लेयर खिलखिला कर हँस दीं।

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai......
Nice and beautiful update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #21


संध्या का समय था।

महाराज घनश्याम सिंह, राजमहल की एक छोटी बैठक में बैठे हुए रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। इस अवसर पर अक्सर ही उनके साथ युवरानी प्रियम्बदा भी आ कर बैठ जाती थीं। फिर दोनों ही बारी बारी से किसी न किसी ग्रन्थ का पाठ करते, और किसी सम्बंधित विषय पर चर्चा करते। लेकिन आज प्रियम्बदा के मन में एक अलग बात थी, और वो महाराज से उस सम्बन्ध में बात करना चाहती थीं।

“प्रणाम पिता जी महाराज!”

“अरे प्रिया... आओ बेटा, आओ!” महाराज घनश्याम सिंह ने बड़े प्रेम से अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया, “सौभाग्यवती भव, यशस्वी भव... और तू मुझे महाराज वहाराज मत बोला कर...! तू तो मेरी प्यारी बेटी है!”

प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई अपने ससुर के बगल आ कर बैठ गई।

“जी पिता जी...”

“हाँ,” उन्होंने संतुष्ट होते हुए कहा, “अब ठीक है! ... हमेशा याद रखना, तुम बेटी हो... बहू नहीं! तुम हमारी प्यारी हो...”

“आपको अपने पिता जी से कम भी तो नहीं माना हमने कभी,” प्रियम्बदा ने कहा, “इतना प्रेम मिला है हमको कि हम तो मायका भी भूल गए!”

“हा हा... यह बात राजा साहब को न बोल देना कभी!” घनश्याम जी ने ठठाकर हँसते हुए कहा, “बुरा मान जाएँगे!”

प्रियम्बदा भी अपने ससुर के साथ ही हँसी में शामिल हो गई।

दोनों ने थोड़ी देर तक ग्रन्थ का पाठ किया। प्रियम्बदा को अवधी का बहुत कम ज्ञान था, लिहाज़ा अधिकतर समय उसके ससुर ही पढ़ रहे थे, और अपनी समझ से बता भी रहे थे।

“पिता जी,” प्रियम्बदा से कुछ देर बाद रहा नहीं गया।

“हाँ बेटा... बोलो! कोई बात है?”

“जी...”

“अरे तो बोल न!”

“समझ नहीं आता कि हम कैसे कहें...”

“अरे बच्ची...” जब घनश्याम जी को अपनी बहू पर बहुत लाड आता था, तो वो उसको ‘बच्ची’ कह कर पुकारते थे, “इतना क्या हिचकना? वो भी हमसे! ... घर में सब जानते हैं कि तेरे सौ ख़ून माफ़ हैं! बोल न?”

“जी, वो हम सोच रहे थे कि... कि आपकी छोटी बेटी भी घर ले आते...”

“छोटी बेटी? मतलब...?” घनश्याम जी थोड़ी देर के लिए भ्रमित हो गए, फिर अचानक ही समझते हुए बोले, “ओह... ओह! अच्छा, हर्ष के लिए पत्नी?”

“जी पिता जी!”

“हा हा! अरे भाई, ये तो बड़ी जल्दी हो जाएगा!”

“कहाँ! हर्ष भी तो युवा हो गया है...” प्रियम्बदा ने कहा, “ठीक है... संभव है कि विवाह के लिए वो अभी भी कुछ समय लें, किन्तु, और कुछ नहीं तो उनकी मंगनी तो की ही जा सकती है!”

“हा हा! माफ़ करना बेटा... उसको हम बड़ा जैसा देख ही नहीं पाते!” घनश्याम जी आज बढ़िया मनोदशा में थे, “वो अभी भी हमको छोटा बालक ही लगता है! किन्तु तुम... कोई है तुम्हारी दृष्टि में?”

“जी है तो सही!”

“अच्छा? कौन है?”

“अपने राजकुमार को भी पसंद है!”

“अरे! वो इतना बड़ा हो गया कि प्रेम करने लगा है!”

“हा हा! पिता जी! ... प्रेम जैसी बातें, उसकी भावनाएँ उम्र की मोहताज नहीं होतीं!”

“अच्छी बात कही तूने बच्ची! अच्छा बता, कौन है वो सौभाग्यवती, जो हमारे कुमार को पसंद आई है?”

“सुहासिनी...”

“बड़ा प्यारा नाम है!”

“जी...”

“कौन है ये बच्ची? किसी पुत्री है?”

“बस यही एक समस्या है पिता जी...”

“क्या हो गया?”

“वो एक छोटे कुल से है...”

प्रियम्बदा ने हिचकते हुए कहा। उसकी बात सुन कर घनश्याम जी चुप हो गए और बहुत देर तक सोचते रहे। उनको ऐसे चुप देख कर प्रियम्बदा की धड़कनें बढ़ गईं - कहीं उसने कुछ अनर्थ तो नहीं कह दिया।

“पिता जी...” उसने बड़ी हिम्मत कर के कहा, “जानती हूँ कि हमने अपने स्थान से कहीं आगे बढ़ कर ये बात आपसे कह दी है... किन्तु... कुमार भी उसको पसंद करते हैं... इसलिए हमने सोचा कि...”

घनश्याम जी ने उसको कुछ देर यूँ ही देखा - देख तो वो उसकी तरफ़ रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वो शून्य को निहार रहे हों।

“जानती हो बच्ची,” उन्होंने कहना शुरू किया।

अपने लिए यह शब्द सुन कर प्रियम्बदा की जान में जान आई।

“... हम एक श्रापित कुल हैं... इतना नीच अतीत है हमारा कि हमारी कई कई पीढ़ियाँ उस पाप को धोते धोते निकल गईं! ... हमारे वंश में बच्चियाँ जन्म लेना ही बंद हो गई हैं! इसलिए बाहर से लाई जाती हैं... हमको अन्य लोग अभी भी अपनी कन्याएँ दान देते हैं, वो हमारा सौभाग्य है! इसलिए जब तूने कहा कि छोटे कुल से है वो बच्ची, तो समझ नहीं आया कि आख़िर छोटा कौन है!”

प्रियम्बदा अवाक् हो कर अपने ससुर की बातें सुन रही थी।

“हमारी धन सम्पदा के लोभ में आ कर संभव है कि कोई पिता अपनी पुत्री को हमारे किसी पुत्र से ब्याह दे... अभी तक ऐसा हुआ नहीं - किन्तु संभव है। किन्तु सत्य तो यह है कि उस श्राप के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कन्या को हमारे किसी पुत्र के साथ प्रेम हुआ है... कम से कम हमारे संज्ञान में तो यह पहली बार हुआ है!”

कह कर घनश्याम जी चुप हो गए।

प्रियम्बदा भी साँसें रोके जैसे किसी फ़ैसले की उम्मीद में बैठी रही - कि पिता जी अब कुछ कहेंगे, तब कुछ कहेंगे!

आख़िरकार घनश्याम जी ने चुप्पी तोड़ी, “... तो हमको न जाने क्यों लग रहा है कि यह बच्ची हमारे वंश पर लगे हुए श्राप को मिटा सकती है!”

“पिता जी?”

“हाँ बच्ची... हमको तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा! ... हमको अच्छा लगा कि राजपरिवार में कोई है जो हमको पिता जैसा मानता है... राजा जैसा नहीं! तूने अपने मन की बात कह कर बड़ा अच्छा किया!”

“ओह पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा अपने ससुर के चरणों से जा लगी।

“न बेटा... तू देवी माँ का आशीर्वाद है! ... जब हमने तुझे पहली बार देखा था, तब ही लग गया था कि तू इस परिवार के लिए सबसे उचित है! ... तेरे कारण आज इस परिवार को इतने आदर से देखा जाता है। तेरे आने से पहले कोई अन्य राजपरिवार हमको अपनी कन्या ही नहीं देना चाहता था! किन्तु अब... अब पुनः सभी चाहते हैं कि कुमार का सम्बन्ध उनके परिवार से हो! ... यह परिवर्तन तेरे कारण ही आया है! तू गौरव है हमारा!”

“पिता जी, आपने यह सब कह कर हमको बड़ा मान दिया है! ... किन्तु हमको अपनी बेटी ही रहने दीजिए! ... आपकी छत्रछाया में हम बच्चे फलें फूलें... बस यही चाहिए हमको!”

“बेटी ही तो है तू हमारी!” घनश्याम जी की आँखों में आँसू आ गए थे, जो उन्होंने जल्दी से पोंछे और बोले, “... अच्छा, तो अब हमारी दूसरी बेटी के बारे में कुछ बता! सुहासिनी... कितना सुन्दर नाम है! वो कन्या क्या अपने नाम के जैसी ही है?”

“पिता जी, उसको देखा तो हमने भी नहीं... लेकिन हाँ, कुमार उसके बारे में अधिक अच्छे से बता पाएँगे!” प्रियम्बदा ने ठिठोली करते हुए कहा।

“... अच्छा! तो क्या तुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता?”

“जी वो अपने गौरीशंकर जी की पुत्री है...”

“क्या! ओह... अच्छा! ... अरे बेटा, वो कोई छोटे कुल के नहीं हैं। ... वो हमारे जैसे संपन्न नहीं हैं, लेकिन उनका कुल ऊँचा है हमसे!”

“ओह, क्षमा करें पिता जी! हमको पता नहीं था!”

“कोई बात नहीं! ... उनका परिवार सदा से माँ सरस्वती का पुजारी रहा है! माँ की कृपा है उनके वंश पर! जैसे हम निर्गुण हैं, किन्तु माँ लक्ष्मी की कृपा हम पर है, वैसे ही... कहते हैं न, ये दोनों माताएँ साथ नहीं रह पातीं! संभवतः इसी कारण वो संपन्न नहीं हैं!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“ऐसे परिवार की कन्या अगर हमारे परिवार में आएगी, तो हमारे तो भाग्य खुल जाएँगे!”

उनकी बात पर प्रियम्बदा प्रसन्न हो कर मुस्कुरा दी।

“तो फिर पिता जी... हम कुमार को ये बात बता दें?”

“नहीं... नहीं! ... अभी यह बात स्वयं तक सीमित रख... हम महारानी से बात करते हैं! ... वैसे भी हमारे राजपरिवार में इस माह में शुभ कार्य नहीं किए जाते!”

“जी... यह बात हमको भी मालूम है! किन्तु क्यों? ... कारण किसी ने नहीं बताया आज तक...

“वो इसलिए, क्योंकि हमारे उस नीच पूर्वज ने इसी माह में वो कुकर्म किया था, जिसका प्रायश्चित हम सब आज तक करते आ रहे हैं!” घनश्याम जी के चेहरे पर तनाव स्पष्ट था, “इसलिए उसके एक पक्ष पहले और एक पक्ष बाद इस कुल का मुखिया ईश्वर से क्षमा याचना करता है! यह अशुभ समय है पूरे परिवार के लिए... इसलिए इस समय में परिवार में कोई भी... कैसा भी शुभ काम नहीं करता!”

“जी...”

“... अतः प्रयास कर के अपनी प्रसन्नता पर नियंत्रण रखना... हम महारानी से इस बारे में बात करेंगे!” घनश्याम जी ने प्रसन्न हो कर कहा।

फिर कुछ याद करते हुए, “तनिक एक बात बता बच्ची... हमको याद तो आ रहा है... इस बिटिया को हमने देखा है न... पहले भी?”

“जी... अवश्य देखा है! किन्तु ध्यान में नहीं होगा! ... वो गौरीशंकर जी के साथ आई थी... कुमार के जन्मदिवस पर आयोजित उत्सव में!”

“हाँ... सत्य है! चेहरा उसका स्मरण तो हमको भी नहीं है। ... किन्तु हमको स्मरण है कि हम उससे मिले अवश्य हैं!”

“जी पिता जी!”

“अच्छी बात है! ... तू निश्चिन्त रह! यदि कुमार को सुहासिनी बिटिया पसंद है, तो हम उन दोनों के विवाह को प्रशस्त करेंगे। ... हम अन्य पिता जैसे नहीं हैं, जो निरर्थक बातों पर अपने बच्चों की प्रसन्नता न्योछावर कर दें! ... किन्तु कुछ समय रुक जा! ... थोड़ी व्यस्तता भी है। चीन के साथ तनाव चल रहा है, उसके लिए पण्डित नेहरू से भी मिलने जाना है दिल्ली। ... तब तक ये श्रापित माह भी समाप्त हो जाएगा! ... फिर करेंगे हम धूमधाम से अपने बच्चों का विवाह!”

“किन्तु दोनों की उम्र पिता जी?”

“जब बिटिया हमारी है, तो रहेगी भी हमारे ही पास... हमको नहीं लगता कि गौरी शंकर जी इस बात के लिए हमको मना कर सकेंगे!”

“जो आज्ञा पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा ने घनश्याम जी को प्रणाम किया, और उनके सामने नत हो गई।

लेकिन यह काम उसने होंठों पर आ गई प्रसन्न मुस्कान को छुपाने के लिए किया था।

*


Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh
 
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२ रिलेशनशिप फेल होने का डर साफ साफ देखा जा सकता है मीना के मन में, उम्मीद है की मां से मिल कर वो डर दूर होगा।

धन्यवाद मित्र!
देखते हैं आगे क्या होता है!
 
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