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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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park

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Update #34


जब प्रियम्बदा ने हरीश को सुहासिनी के बारे में बताया, तो वो भी चिंतित हो गया।

“हमको कुछ तो करना ही चाहिए,” प्रियम्बदा ने कहा - इस उम्मीद में कि उसका पति ही कोई मार्ग दिखायेगा।

“करना तो चाहिए...” हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया।

जब वो कुछ देर तक कुछ नहीं बोला, तो प्रियम्बदा से रहा नहीं गया,

“सुहासिनी इस परिवार की धरोहर है... उसकी संतान भी...”

“प्रिया... हम आपकी बात मानते हैं। ... सुहास और हर्ष की संतान इस परिवार की धरोहर है। ... किन्तु...”

“किन्तु?”

“किन्तु वो नहीं!”

“हरीश!” प्रियम्बदा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसी बात बोल भी सकता है।

“आप हमको गलत मत मानिए, प्रिया!” उसने प्रिया को समझाते हुए कहा, “वो बहुत छोटी है अभी... पूरा जीवन पड़ा है उसके सामने... आप ही सोचिए... खेलने कूदने की उम्र में उस पर माँ बनने का बोझ डालना... ये तो अन्याय है!”

“आप कहना क्या चाहते हैं!” अनजान आशंका से प्रिया का दिल घबरा गया, “कहीं आप गर्भ...”

“प्रिया...” हरीश ने अनकहा हुआ सुन लिया, “आप हमको इतना ग़लत समझती हैं?”

“नहीं हरीश... किन्तु हमने हर्ष को वचन दिया था...”

“वचन? कैसा वचन?”

“हमने हर्ष से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में हम सुहास की देखभाल अपनी पुत्री के समान ही करेंगे...”

प्रिया की बात सुन कर हरीश सोच में पड़ गया। प्रिया भी देख रही थी कि हरीश कुछ गंभीर उपाय सोच रहे हैं, इसलिए उसने उसको टोका नहीं।

कोई पाँच मिनट सोचने के बाद हरीश बोला, “प्रिया... हमारी राजनीतिक स्थिति थोड़ी गंभीर है...”

प्रिया कुछ कहने को हुई कि हरीश ने हाथ उठा कर उसको चुप रहने का संकेत किया।

“सरकार हम पर नज़र रखे हुए है, और सरकार के साथ हमारे शत्रु भी! ... हम इस समय कमज़ोर हैं... और हमारे सभी अशुभचिन्तक इसी ताक में हैं कि कब हमसे कोई गलती हो, और कब वो हम पर घात लगा कर हमला कर दें!”

एक गहरी साँस ले कर वो बोला, “... प्रिया, आप समझने का प्रयास कीजिए... यह हमारी पारिवारिक समस्या है, लेकिन राजनीतिक समस्या भी उतनी ही गम्भीर है... यह मसला इतनी तेजी से उछल सकता है कि हमारी साख़ जो अभी तक निष्कलंक है है प्रजा की नज़र में, वो सब मटियामेट हो जाएगी... हमको प्रजा का साथ चाहिए इस समय। नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। ... इसलिए बहुत सोच कर ही कुछ करना होगा।”

“हाँ... लेकिन कोई उपाय तो होगा?”

“हाँ... है! ... आप अपने वचन का पालन कीजिए... सुहासिनी को सम्हालिए... अवश्य सम्हालिए... किन्तु सम्मुख रूप से नहीं। ... आपका... हमारा नाम... इस राजपरिवार का नाम... कहीं नहीं आना चाहिए!”

“किन्तु...”

“और यह करने का उपाय भी है... गौरीशंकर जी और सुहासिनी को महाराजपुर से कहीं दूर भेज देते हैं। ... किसी ऐसी जगह, जहाँ सुहास को ढंग की मेडिकल केयर मिल सके। उसकी पढ़ाई का नुकसान न हो - इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए हमको! ... प्राइवेट कैपेसिटी में वो एक्साम्स दे सकती है। ... बेबी होने के बाद, हम उसको अपने पास रखेंगे! ... हमारा ये बेटा हमारे साथ पलना चाहिए!”

“बेटा?”

“हाँ! बेटा...”

“आपको कैसे पता?”

“प्रिया... क्या आप हमारे परिवार पर लगे श्राप को भूल गई हैं?”

“नहीं... भूले तो नहीं... लेकिन उन दोनों का विवाह कहाँ हुआ है?”

“प्रिया... आप भी न! ... खून तो हमारा ही है न! ... श्राप हमारे खून पर लगा है!”

हरीश ने प्रिया को समझाया, “... तो, जैसा कि हम कह रहे थे, गौरीशंकर जी और सुहास की पूरी देखभाल करी जायेगी... उसकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखा जाएगा... उनका पूरा ध्यान रखा जाएगा! ... लेकिन हमारा राजकुमार हमको चाहिए। ... सुहास... उसको जो भी मेडिकल हेल्प लगे, सब दी जाएगी! ... उसका कैरियर बनाया जाए... शादी कराई जाय...”

प्रिया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके मन में अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन उसके पति की बातें सही थीं।

सुहासिनी बहुत छोटी थी, और मातृत्व का दायित्व उठाने वाली हालत नहीं थी उसकी। और अगर महाराजपुर की प्रजा जान गई कि उनके चहेते राजकुमार हर्षवर्द्धन के कारण सुहासिनी की यह दशा हुई है, तो बहुत संभव था, सामाजिक उपद्रव भी मच जाता। इसलिए यही उपाय ठीक लग रहा था।

“हम गौरीशंकर काका से बात करते हैं!”

हरीश ने समझते हुए, हमदर्दी से सर हिलाया।



*


“क्यों रे... बदमाश लड़के!” माँ ने फ़ोन पर, जय को बड़े प्यार से डाँटते हुए कहा, “बिना अपनी माँ के ही शादी कर ली तूने?”

“माँ, आई ऍम सॉरी...”

“अरे, मैं तो यूँ ही कह रही हूँ! ... बहुत अच्छा किया! ... मैंने ही बहू से कहा था कि अगर पॉसिबल हो तो तुम दोनों की शादी आज ही हो जाए... सो, सरप्राइज़!” माँ ने आखिरी शब्द पर ज़ोर दे कर हँसते हुए कहा।

“व्हाट! ... माँ! इतना बड़ा खेल खेला आपने और भाभी ने! ... अब बताइये... बदमाश मैं हूँ, या आप!”

“मुझे लगा कि तुझे और तेरी मैडम को अच्छा लगा शादी कर के! ... लेकिन लगता है कि तू खुश नहीं...”

माँ! ... यू आर नॉट प्लेइंग फेयर...” जय ने हँसते हुए शिकायत करी, फिर बोला, “आई लव यू सो मच माँ!”

“आई लव यू टू बेटा...”

“लेकिन माँ, आपने भाभी से ऐसा करने को क्यों कहा?”

“बेटे, तुझको तो पता ही है कि आज कल देश में माहौल सही नहीं है। ... इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम लोग फ्लाइट वगैरह लो! ... कहीं कुछ हो गया तो!”

“माँ! क्या होगा? ... वैसे भी, इंटरनेशनल फ्लाइट को कोई भी कुछ नहीं कर सकता!”

“अच्छा चल चल... ये सब बातें अब बस! ... ये बता, बहू खुश है?”

“भाभी तो सुपर...” जय ने कहना शुरू किया।

लेकिन माँ ने बीच में ही काट कर कहा, “अरे भाभी के बच्चे, मैं बहू की बात कर रही हूँ... मेरी छोटी बहू... तेरी नई नवेली बीवी, मीनाक्षी की!”

“ओह, हाँ माँ! वो भी बहुत खुश है!”

“बहुत अच्छी बात है रे! ... उसका खूब ध्यान रखना!”

“माँ... काश आप उससे मिल पातीं!” जय बोला, “... आई फ़ील सो बैड!”

“अरे मेरा बच्चा... ऐसे मत सोच! ... मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी शादी के पीछे! ... इसलिए ऐसा वैसा मत सोचो!” माँ ने उसको समझाया, “... अब चल, बहू को फ़ोन दे! ... उससे थोड़ा बतिया लूँ, फिर शांति से दिन बिताऊँ अपना!”

“जी माँ! अभी लीजिए...” कह कर जय ने फ़ोन मीना को पकड़ा दिया।

“माँ,” मीना ने जय और माँ की बातें सुन ली थीं और अब जान गई थी कि माँ की अनुमति से ही उन दोनों की शादी हुई है, “... हमको माफ़ कर दीजिये...”

“मेरी बेटी... मेरी पूता... तू तो अब हमारे परिवार का हिस्सा है! ... इस नए जीवन की शुरुवात आनंद से कर तू... बिना किसी दुःख के, बिना किसी पछतावे के...”

“लेकिन माँ, बिना आपके आशीर्वाद के...”

“अरे, कहाँ मेरे आशीर्वाद के बिना? ... मैंने ही क्लेयर से कहा था कि आज कल यहाँ माहौल ठीक नहीं है, इसलिए अगर हो सके, तो तुम दोनों की शादी वहीं करवा दे! ... जब भी तुम दोनों का यहाँ इंडिया आने का मौका बनेगा न, यहाँ तुम दोनों की शादी करवा दूँगी! ठीक है?”

“पर माँ...”

“मेरी बच्चा, तू खुश रह बस! ... आदित्य और क्लेयर बेटे ने बहुत कुछ बताया है तेरे बारे में! ... मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तू मेरे बेटे को सम्हालेगी! ... वो प्यार का भूखा है, उसको खूब प्यार देना!”

“हाँ माँ!”

“बहुत अच्छा बेटे, बहुत अच्छा... तू आराम कर अब! ... और हाँ, रोज़ बातें करना मुझसे! ... बिना अपने बच्चों से बातें किए मेरा मन चैन से नहीं रह पाता!”

“जी माँ! रोज़ बिना आपसे बातें किए मैं भी नहीं सोऊँगी!” मीना ने बड़े आनंद से कहा, “... इतने सालों बाद मुझे परिवार का प्यार मिला है... अब मैं इसको नहीं छोड़ सकती!”

“लव यू बेटे,”

“लव यू सो मच, माँ!”

*

Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh -- भाईयों, नया अपडेट है!
Nice and superb update....
 

parkas

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Update #34


जब प्रियम्बदा ने हरीश को सुहासिनी के बारे में बताया, तो वो भी चिंतित हो गया।

“हमको कुछ तो करना ही चाहिए,” प्रियम्बदा ने कहा - इस उम्मीद में कि उसका पति ही कोई मार्ग दिखायेगा।

“करना तो चाहिए...” हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया।

जब वो कुछ देर तक कुछ नहीं बोला, तो प्रियम्बदा से रहा नहीं गया,

“सुहासिनी इस परिवार की धरोहर है... उसकी संतान भी...”

“प्रिया... हम आपकी बात मानते हैं। ... सुहास और हर्ष की संतान इस परिवार की धरोहर है। ... किन्तु...”

“किन्तु?”

“किन्तु वो नहीं!”

“हरीश!” प्रियम्बदा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसी बात बोल भी सकता है।

“आप हमको गलत मत मानिए, प्रिया!” उसने प्रिया को समझाते हुए कहा, “वो बहुत छोटी है अभी... पूरा जीवन पड़ा है उसके सामने... आप ही सोचिए... खेलने कूदने की उम्र में उस पर माँ बनने का बोझ डालना... ये तो अन्याय है!”

“आप कहना क्या चाहते हैं!” अनजान आशंका से प्रिया का दिल घबरा गया, “कहीं आप गर्भ...”

“प्रिया...” हरीश ने अनकहा हुआ सुन लिया, “आप हमको इतना ग़लत समझती हैं?”

“नहीं हरीश... किन्तु हमने हर्ष को वचन दिया था...”

“वचन? कैसा वचन?”

“हमने हर्ष से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में हम सुहास की देखभाल अपनी पुत्री के समान ही करेंगे...”

प्रिया की बात सुन कर हरीश सोच में पड़ गया। प्रिया भी देख रही थी कि हरीश कुछ गंभीर उपाय सोच रहे हैं, इसलिए उसने उसको टोका नहीं।

कोई पाँच मिनट सोचने के बाद हरीश बोला, “प्रिया... हमारी राजनीतिक स्थिति थोड़ी गंभीर है...”

प्रिया कुछ कहने को हुई कि हरीश ने हाथ उठा कर उसको चुप रहने का संकेत किया।

“सरकार हम पर नज़र रखे हुए है, और सरकार के साथ हमारे शत्रु भी! ... हम इस समय कमज़ोर हैं... और हमारे सभी अशुभचिन्तक इसी ताक में हैं कि कब हमसे कोई गलती हो, और कब वो हम पर घात लगा कर हमला कर दें!”

एक गहरी साँस ले कर वो बोला, “... प्रिया, आप समझने का प्रयास कीजिए... यह हमारी पारिवारिक समस्या है, लेकिन राजनीतिक समस्या भी उतनी ही गम्भीर है... यह मसला इतनी तेजी से उछल सकता है कि हमारी साख़ जो अभी तक निष्कलंक है है प्रजा की नज़र में, वो सब मटियामेट हो जाएगी... हमको प्रजा का साथ चाहिए इस समय। नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। ... इसलिए बहुत सोच कर ही कुछ करना होगा।”

“हाँ... लेकिन कोई उपाय तो होगा?”

“हाँ... है! ... आप अपने वचन का पालन कीजिए... सुहासिनी को सम्हालिए... अवश्य सम्हालिए... किन्तु सम्मुख रूप से नहीं। ... आपका... हमारा नाम... इस राजपरिवार का नाम... कहीं नहीं आना चाहिए!”

“किन्तु...”

“और यह करने का उपाय भी है... गौरीशंकर जी और सुहासिनी को महाराजपुर से कहीं दूर भेज देते हैं। ... किसी ऐसी जगह, जहाँ सुहास को ढंग की मेडिकल केयर मिल सके। उसकी पढ़ाई का नुकसान न हो - इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए हमको! ... प्राइवेट कैपेसिटी में वो एक्साम्स दे सकती है। ... बेबी होने के बाद, हम उसको अपने पास रखेंगे! ... हमारा ये बेटा हमारे साथ पलना चाहिए!”

“बेटा?”

“हाँ! बेटा...”

“आपको कैसे पता?”

“प्रिया... क्या आप हमारे परिवार पर लगे श्राप को भूल गई हैं?”

“नहीं... भूले तो नहीं... लेकिन उन दोनों का विवाह कहाँ हुआ है?”

“प्रिया... आप भी न! ... खून तो हमारा ही है न! ... श्राप हमारे खून पर लगा है!”

हरीश ने प्रिया को समझाया, “... तो, जैसा कि हम कह रहे थे, गौरीशंकर जी और सुहास की पूरी देखभाल करी जायेगी... उसकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखा जाएगा... उनका पूरा ध्यान रखा जाएगा! ... लेकिन हमारा राजकुमार हमको चाहिए। ... सुहास... उसको जो भी मेडिकल हेल्प लगे, सब दी जाएगी! ... उसका कैरियर बनाया जाए... शादी कराई जाय...”

प्रिया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके मन में अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन उसके पति की बातें सही थीं।

सुहासिनी बहुत छोटी थी, और मातृत्व का दायित्व उठाने वाली हालत नहीं थी उसकी। और अगर महाराजपुर की प्रजा जान गई कि उनके चहेते राजकुमार हर्षवर्द्धन के कारण सुहासिनी की यह दशा हुई है, तो बहुत संभव था, सामाजिक उपद्रव भी मच जाता। इसलिए यही उपाय ठीक लग रहा था।

“हम गौरीशंकर काका से बात करते हैं!”

हरीश ने समझते हुए, हमदर्दी से सर हिलाया।



*


“क्यों रे... बदमाश लड़के!” माँ ने फ़ोन पर, जय को बड़े प्यार से डाँटते हुए कहा, “बिना अपनी माँ के ही शादी कर ली तूने?”

“माँ, आई ऍम सॉरी...”

“अरे, मैं तो यूँ ही कह रही हूँ! ... बहुत अच्छा किया! ... मैंने ही बहू से कहा था कि अगर पॉसिबल हो तो तुम दोनों की शादी आज ही हो जाए... सो, सरप्राइज़!” माँ ने आखिरी शब्द पर ज़ोर दे कर हँसते हुए कहा।

“व्हाट! ... माँ! इतना बड़ा खेल खेला आपने और भाभी ने! ... अब बताइये... बदमाश मैं हूँ, या आप!”

“मुझे लगा कि तुझे और तेरी मैडम को अच्छा लगा शादी कर के! ... लेकिन लगता है कि तू खुश नहीं...”

माँ! ... यू आर नॉट प्लेइंग फेयर...” जय ने हँसते हुए शिकायत करी, फिर बोला, “आई लव यू सो मच माँ!”

“आई लव यू टू बेटा...”

“लेकिन माँ, आपने भाभी से ऐसा करने को क्यों कहा?”

“बेटे, तुझको तो पता ही है कि आज कल देश में माहौल सही नहीं है। ... इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम लोग फ्लाइट वगैरह लो! ... कहीं कुछ हो गया तो!”

“माँ! क्या होगा? ... वैसे भी, इंटरनेशनल फ्लाइट को कोई भी कुछ नहीं कर सकता!”

“अच्छा चल चल... ये सब बातें अब बस! ... ये बता, बहू खुश है?”

“भाभी तो सुपर...” जय ने कहना शुरू किया।

लेकिन माँ ने बीच में ही काट कर कहा, “अरे भाभी के बच्चे, मैं बहू की बात कर रही हूँ... मेरी छोटी बहू... तेरी नई नवेली बीवी, मीनाक्षी की!”

“ओह, हाँ माँ! वो भी बहुत खुश है!”

“बहुत अच्छी बात है रे! ... उसका खूब ध्यान रखना!”

“माँ... काश आप उससे मिल पातीं!” जय बोला, “... आई फ़ील सो बैड!”

“अरे मेरा बच्चा... ऐसे मत सोच! ... मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी शादी के पीछे! ... इसलिए ऐसा वैसा मत सोचो!” माँ ने उसको समझाया, “... अब चल, बहू को फ़ोन दे! ... उससे थोड़ा बतिया लूँ, फिर शांति से दिन बिताऊँ अपना!”

“जी माँ! अभी लीजिए...” कह कर जय ने फ़ोन मीना को पकड़ा दिया।

“माँ,” मीना ने जय और माँ की बातें सुन ली थीं और अब जान गई थी कि माँ की अनुमति से ही उन दोनों की शादी हुई है, “... हमको माफ़ कर दीजिये...”

“मेरी बेटी... मेरी पूता... तू तो अब हमारे परिवार का हिस्सा है! ... इस नए जीवन की शुरुवात आनंद से कर तू... बिना किसी दुःख के, बिना किसी पछतावे के...”

“लेकिन माँ, बिना आपके आशीर्वाद के...”

“अरे, कहाँ मेरे आशीर्वाद के बिना? ... मैंने ही क्लेयर से कहा था कि आज कल यहाँ माहौल ठीक नहीं है, इसलिए अगर हो सके, तो तुम दोनों की शादी वहीं करवा दे! ... जब भी तुम दोनों का यहाँ इंडिया आने का मौका बनेगा न, यहाँ तुम दोनों की शादी करवा दूँगी! ठीक है?”

“पर माँ...”

“मेरी बच्चा, तू खुश रह बस! ... आदित्य और क्लेयर बेटे ने बहुत कुछ बताया है तेरे बारे में! ... मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तू मेरे बेटे को सम्हालेगी! ... वो प्यार का भूखा है, उसको खूब प्यार देना!”

“हाँ माँ!”

“बहुत अच्छा बेटे, बहुत अच्छा... तू आराम कर अब! ... और हाँ, रोज़ बातें करना मुझसे! ... बिना अपने बच्चों से बातें किए मेरा मन चैन से नहीं रह पाता!”

“जी माँ! रोज़ बिना आपसे बातें किए मैं भी नहीं सोऊँगी!” मीना ने बड़े आनंद से कहा, “... इतने सालों बाद मुझे परिवार का प्यार मिला है... अब मैं इसको नहीं छोड़ सकती!”

“लव यू बेटे,”

“लव यू सो मच, माँ!”

*

Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh -- भाईयों, नया अपडेट है!
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai.....
Nice and lovely update.....
 

kas1709

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Update #34


जब प्रियम्बदा ने हरीश को सुहासिनी के बारे में बताया, तो वो भी चिंतित हो गया।

“हमको कुछ तो करना ही चाहिए,” प्रियम्बदा ने कहा - इस उम्मीद में कि उसका पति ही कोई मार्ग दिखायेगा।

“करना तो चाहिए...” हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया।

जब वो कुछ देर तक कुछ नहीं बोला, तो प्रियम्बदा से रहा नहीं गया,

“सुहासिनी इस परिवार की धरोहर है... उसकी संतान भी...”

“प्रिया... हम आपकी बात मानते हैं। ... सुहास और हर्ष की संतान इस परिवार की धरोहर है। ... किन्तु...”

“किन्तु?”

“किन्तु वो नहीं!”

“हरीश!” प्रियम्बदा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसी बात बोल भी सकता है।

“आप हमको गलत मत मानिए, प्रिया!” उसने प्रिया को समझाते हुए कहा, “वो बहुत छोटी है अभी... पूरा जीवन पड़ा है उसके सामने... आप ही सोचिए... खेलने कूदने की उम्र में उस पर माँ बनने का बोझ डालना... ये तो अन्याय है!”

“आप कहना क्या चाहते हैं!” अनजान आशंका से प्रिया का दिल घबरा गया, “कहीं आप गर्भ...”

“प्रिया...” हरीश ने अनकहा हुआ सुन लिया, “आप हमको इतना ग़लत समझती हैं?”

“नहीं हरीश... किन्तु हमने हर्ष को वचन दिया था...”

“वचन? कैसा वचन?”

“हमने हर्ष से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में हम सुहास की देखभाल अपनी पुत्री के समान ही करेंगे...”

प्रिया की बात सुन कर हरीश सोच में पड़ गया। प्रिया भी देख रही थी कि हरीश कुछ गंभीर उपाय सोच रहे हैं, इसलिए उसने उसको टोका नहीं।

कोई पाँच मिनट सोचने के बाद हरीश बोला, “प्रिया... हमारी राजनीतिक स्थिति थोड़ी गंभीर है...”

प्रिया कुछ कहने को हुई कि हरीश ने हाथ उठा कर उसको चुप रहने का संकेत किया।

“सरकार हम पर नज़र रखे हुए है, और सरकार के साथ हमारे शत्रु भी! ... हम इस समय कमज़ोर हैं... और हमारे सभी अशुभचिन्तक इसी ताक में हैं कि कब हमसे कोई गलती हो, और कब वो हम पर घात लगा कर हमला कर दें!”

एक गहरी साँस ले कर वो बोला, “... प्रिया, आप समझने का प्रयास कीजिए... यह हमारी पारिवारिक समस्या है, लेकिन राजनीतिक समस्या भी उतनी ही गम्भीर है... यह मसला इतनी तेजी से उछल सकता है कि हमारी साख़ जो अभी तक निष्कलंक है है प्रजा की नज़र में, वो सब मटियामेट हो जाएगी... हमको प्रजा का साथ चाहिए इस समय। नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। ... इसलिए बहुत सोच कर ही कुछ करना होगा।”

“हाँ... लेकिन कोई उपाय तो होगा?”

“हाँ... है! ... आप अपने वचन का पालन कीजिए... सुहासिनी को सम्हालिए... अवश्य सम्हालिए... किन्तु सम्मुख रूप से नहीं। ... आपका... हमारा नाम... इस राजपरिवार का नाम... कहीं नहीं आना चाहिए!”

“किन्तु...”

“और यह करने का उपाय भी है... गौरीशंकर जी और सुहासिनी को महाराजपुर से कहीं दूर भेज देते हैं। ... किसी ऐसी जगह, जहाँ सुहास को ढंग की मेडिकल केयर मिल सके। उसकी पढ़ाई का नुकसान न हो - इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए हमको! ... प्राइवेट कैपेसिटी में वो एक्साम्स दे सकती है। ... बेबी होने के बाद, हम उसको अपने पास रखेंगे! ... हमारा ये बेटा हमारे साथ पलना चाहिए!”

“बेटा?”

“हाँ! बेटा...”

“आपको कैसे पता?”

“प्रिया... क्या आप हमारे परिवार पर लगे श्राप को भूल गई हैं?”

“नहीं... भूले तो नहीं... लेकिन उन दोनों का विवाह कहाँ हुआ है?”

“प्रिया... आप भी न! ... खून तो हमारा ही है न! ... श्राप हमारे खून पर लगा है!”

हरीश ने प्रिया को समझाया, “... तो, जैसा कि हम कह रहे थे, गौरीशंकर जी और सुहास की पूरी देखभाल करी जायेगी... उसकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखा जाएगा... उनका पूरा ध्यान रखा जाएगा! ... लेकिन हमारा राजकुमार हमको चाहिए। ... सुहास... उसको जो भी मेडिकल हेल्प लगे, सब दी जाएगी! ... उसका कैरियर बनाया जाए... शादी कराई जाय...”

प्रिया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके मन में अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन उसके पति की बातें सही थीं।

सुहासिनी बहुत छोटी थी, और मातृत्व का दायित्व उठाने वाली हालत नहीं थी उसकी। और अगर महाराजपुर की प्रजा जान गई कि उनके चहेते राजकुमार हर्षवर्द्धन के कारण सुहासिनी की यह दशा हुई है, तो बहुत संभव था, सामाजिक उपद्रव भी मच जाता। इसलिए यही उपाय ठीक लग रहा था।

“हम गौरीशंकर काका से बात करते हैं!”

हरीश ने समझते हुए, हमदर्दी से सर हिलाया।



*


“क्यों रे... बदमाश लड़के!” माँ ने फ़ोन पर, जय को बड़े प्यार से डाँटते हुए कहा, “बिना अपनी माँ के ही शादी कर ली तूने?”

“माँ, आई ऍम सॉरी...”

“अरे, मैं तो यूँ ही कह रही हूँ! ... बहुत अच्छा किया! ... मैंने ही बहू से कहा था कि अगर पॉसिबल हो तो तुम दोनों की शादी आज ही हो जाए... सो, सरप्राइज़!” माँ ने आखिरी शब्द पर ज़ोर दे कर हँसते हुए कहा।

“व्हाट! ... माँ! इतना बड़ा खेल खेला आपने और भाभी ने! ... अब बताइये... बदमाश मैं हूँ, या आप!”

“मुझे लगा कि तुझे और तेरी मैडम को अच्छा लगा शादी कर के! ... लेकिन लगता है कि तू खुश नहीं...”

माँ! ... यू आर नॉट प्लेइंग फेयर...” जय ने हँसते हुए शिकायत करी, फिर बोला, “आई लव यू सो मच माँ!”

“आई लव यू टू बेटा...”

“लेकिन माँ, आपने भाभी से ऐसा करने को क्यों कहा?”

“बेटे, तुझको तो पता ही है कि आज कल देश में माहौल सही नहीं है। ... इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम लोग फ्लाइट वगैरह लो! ... कहीं कुछ हो गया तो!”

“माँ! क्या होगा? ... वैसे भी, इंटरनेशनल फ्लाइट को कोई भी कुछ नहीं कर सकता!”

“अच्छा चल चल... ये सब बातें अब बस! ... ये बता, बहू खुश है?”

“भाभी तो सुपर...” जय ने कहना शुरू किया।

लेकिन माँ ने बीच में ही काट कर कहा, “अरे भाभी के बच्चे, मैं बहू की बात कर रही हूँ... मेरी छोटी बहू... तेरी नई नवेली बीवी, मीनाक्षी की!”

“ओह, हाँ माँ! वो भी बहुत खुश है!”

“बहुत अच्छी बात है रे! ... उसका खूब ध्यान रखना!”

“माँ... काश आप उससे मिल पातीं!” जय बोला, “... आई फ़ील सो बैड!”

“अरे मेरा बच्चा... ऐसे मत सोच! ... मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी शादी के पीछे! ... इसलिए ऐसा वैसा मत सोचो!” माँ ने उसको समझाया, “... अब चल, बहू को फ़ोन दे! ... उससे थोड़ा बतिया लूँ, फिर शांति से दिन बिताऊँ अपना!”

“जी माँ! अभी लीजिए...” कह कर जय ने फ़ोन मीना को पकड़ा दिया।

“माँ,” मीना ने जय और माँ की बातें सुन ली थीं और अब जान गई थी कि माँ की अनुमति से ही उन दोनों की शादी हुई है, “... हमको माफ़ कर दीजिये...”

“मेरी बेटी... मेरी पूता... तू तो अब हमारे परिवार का हिस्सा है! ... इस नए जीवन की शुरुवात आनंद से कर तू... बिना किसी दुःख के, बिना किसी पछतावे के...”

“लेकिन माँ, बिना आपके आशीर्वाद के...”

“अरे, कहाँ मेरे आशीर्वाद के बिना? ... मैंने ही क्लेयर से कहा था कि आज कल यहाँ माहौल ठीक नहीं है, इसलिए अगर हो सके, तो तुम दोनों की शादी वहीं करवा दे! ... जब भी तुम दोनों का यहाँ इंडिया आने का मौका बनेगा न, यहाँ तुम दोनों की शादी करवा दूँगी! ठीक है?”

“पर माँ...”

“मेरी बच्चा, तू खुश रह बस! ... आदित्य और क्लेयर बेटे ने बहुत कुछ बताया है तेरे बारे में! ... मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तू मेरे बेटे को सम्हालेगी! ... वो प्यार का भूखा है, उसको खूब प्यार देना!”

“हाँ माँ!”

“बहुत अच्छा बेटे, बहुत अच्छा... तू आराम कर अब! ... और हाँ, रोज़ बातें करना मुझसे! ... बिना अपने बच्चों से बातें किए मेरा मन चैन से नहीं रह पाता!”

“जी माँ! रोज़ बिना आपसे बातें किए मैं भी नहीं सोऊँगी!” मीना ने बड़े आनंद से कहा, “... इतने सालों बाद मुझे परिवार का प्यार मिला है... अब मैं इसको नहीं छोड़ सकती!”

“लव यू बेटे,”

“लव यू सो मच, माँ!”

*

Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh -- भाईयों, नया अपडेट है!
Nice update....
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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तो जय और हर्ष की मां की ही सहमति से क्लेयर ने दोनो की शादी करवा दी, कारण तो वही दिया है कि देश का माहौल अच्छा नही है।

उधर हरीश का भी कहना सही ही है कि सुहासिनी को अपनाना अभी के माहौल में अच्छा नही।

वैसे हरीश का ये कहना की वो राजकुमार को अपनाएगा, मुझे फिर से अपने 2 अलग समय वाली सोच पर कायम कर रहा है।

PS: notification नही आया
 

dhparikh

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Update #34


जब प्रियम्बदा ने हरीश को सुहासिनी के बारे में बताया, तो वो भी चिंतित हो गया।

“हमको कुछ तो करना ही चाहिए,” प्रियम्बदा ने कहा - इस उम्मीद में कि उसका पति ही कोई मार्ग दिखायेगा।

“करना तो चाहिए...” हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया।

जब वो कुछ देर तक कुछ नहीं बोला, तो प्रियम्बदा से रहा नहीं गया,

“सुहासिनी इस परिवार की धरोहर है... उसकी संतान भी...”

“प्रिया... हम आपकी बात मानते हैं। ... सुहास और हर्ष की संतान इस परिवार की धरोहर है। ... किन्तु...”

“किन्तु?”

“किन्तु वो नहीं!”

“हरीश!” प्रियम्बदा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसी बात बोल भी सकता है।

“आप हमको गलत मत मानिए, प्रिया!” उसने प्रिया को समझाते हुए कहा, “वो बहुत छोटी है अभी... पूरा जीवन पड़ा है उसके सामने... आप ही सोचिए... खेलने कूदने की उम्र में उस पर माँ बनने का बोझ डालना... ये तो अन्याय है!”

“आप कहना क्या चाहते हैं!” अनजान आशंका से प्रिया का दिल घबरा गया, “कहीं आप गर्भ...”

“प्रिया...” हरीश ने अनकहा हुआ सुन लिया, “आप हमको इतना ग़लत समझती हैं?”

“नहीं हरीश... किन्तु हमने हर्ष को वचन दिया था...”

“वचन? कैसा वचन?”

“हमने हर्ष से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में हम सुहास की देखभाल अपनी पुत्री के समान ही करेंगे...”

प्रिया की बात सुन कर हरीश सोच में पड़ गया। प्रिया भी देख रही थी कि हरीश कुछ गंभीर उपाय सोच रहे हैं, इसलिए उसने उसको टोका नहीं।

कोई पाँच मिनट सोचने के बाद हरीश बोला, “प्रिया... हमारी राजनीतिक स्थिति थोड़ी गंभीर है...”

प्रिया कुछ कहने को हुई कि हरीश ने हाथ उठा कर उसको चुप रहने का संकेत किया।

“सरकार हम पर नज़र रखे हुए है, और सरकार के साथ हमारे शत्रु भी! ... हम इस समय कमज़ोर हैं... और हमारे सभी अशुभचिन्तक इसी ताक में हैं कि कब हमसे कोई गलती हो, और कब वो हम पर घात लगा कर हमला कर दें!”

एक गहरी साँस ले कर वो बोला, “... प्रिया, आप समझने का प्रयास कीजिए... यह हमारी पारिवारिक समस्या है, लेकिन राजनीतिक समस्या भी उतनी ही गम्भीर है... यह मसला इतनी तेजी से उछल सकता है कि हमारी साख़ जो अभी तक निष्कलंक है है प्रजा की नज़र में, वो सब मटियामेट हो जाएगी... हमको प्रजा का साथ चाहिए इस समय। नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। ... इसलिए बहुत सोच कर ही कुछ करना होगा।”

“हाँ... लेकिन कोई उपाय तो होगा?”

“हाँ... है! ... आप अपने वचन का पालन कीजिए... सुहासिनी को सम्हालिए... अवश्य सम्हालिए... किन्तु सम्मुख रूप से नहीं। ... आपका... हमारा नाम... इस राजपरिवार का नाम... कहीं नहीं आना चाहिए!”

“किन्तु...”

“और यह करने का उपाय भी है... गौरीशंकर जी और सुहासिनी को महाराजपुर से कहीं दूर भेज देते हैं। ... किसी ऐसी जगह, जहाँ सुहास को ढंग की मेडिकल केयर मिल सके। उसकी पढ़ाई का नुकसान न हो - इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए हमको! ... प्राइवेट कैपेसिटी में वो एक्साम्स दे सकती है। ... बेबी होने के बाद, हम उसको अपने पास रखेंगे! ... हमारा ये बेटा हमारे साथ पलना चाहिए!”

“बेटा?”

“हाँ! बेटा...”

“आपको कैसे पता?”

“प्रिया... क्या आप हमारे परिवार पर लगे श्राप को भूल गई हैं?”

“नहीं... भूले तो नहीं... लेकिन उन दोनों का विवाह कहाँ हुआ है?”

“प्रिया... आप भी न! ... खून तो हमारा ही है न! ... श्राप हमारे खून पर लगा है!”

हरीश ने प्रिया को समझाया, “... तो, जैसा कि हम कह रहे थे, गौरीशंकर जी और सुहास की पूरी देखभाल करी जायेगी... उसकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखा जाएगा... उनका पूरा ध्यान रखा जाएगा! ... लेकिन हमारा राजकुमार हमको चाहिए। ... सुहास... उसको जो भी मेडिकल हेल्प लगे, सब दी जाएगी! ... उसका कैरियर बनाया जाए... शादी कराई जाय...”

प्रिया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके मन में अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन उसके पति की बातें सही थीं।

सुहासिनी बहुत छोटी थी, और मातृत्व का दायित्व उठाने वाली हालत नहीं थी उसकी। और अगर महाराजपुर की प्रजा जान गई कि उनके चहेते राजकुमार हर्षवर्द्धन के कारण सुहासिनी की यह दशा हुई है, तो बहुत संभव था, सामाजिक उपद्रव भी मच जाता। इसलिए यही उपाय ठीक लग रहा था।

“हम गौरीशंकर काका से बात करते हैं!”

हरीश ने समझते हुए, हमदर्दी से सर हिलाया।



*


“क्यों रे... बदमाश लड़के!” माँ ने फ़ोन पर, जय को बड़े प्यार से डाँटते हुए कहा, “बिना अपनी माँ के ही शादी कर ली तूने?”

“माँ, आई ऍम सॉरी...”

“अरे, मैं तो यूँ ही कह रही हूँ! ... बहुत अच्छा किया! ... मैंने ही बहू से कहा था कि अगर पॉसिबल हो तो तुम दोनों की शादी आज ही हो जाए... सो, सरप्राइज़!” माँ ने आखिरी शब्द पर ज़ोर दे कर हँसते हुए कहा।

“व्हाट! ... माँ! इतना बड़ा खेल खेला आपने और भाभी ने! ... अब बताइये... बदमाश मैं हूँ, या आप!”

“मुझे लगा कि तुझे और तेरी मैडम को अच्छा लगा शादी कर के! ... लेकिन लगता है कि तू खुश नहीं...”

माँ! ... यू आर नॉट प्लेइंग फेयर...” जय ने हँसते हुए शिकायत करी, फिर बोला, “आई लव यू सो मच माँ!”

“आई लव यू टू बेटा...”

“लेकिन माँ, आपने भाभी से ऐसा करने को क्यों कहा?”

“बेटे, तुझको तो पता ही है कि आज कल देश में माहौल सही नहीं है। ... इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम लोग फ्लाइट वगैरह लो! ... कहीं कुछ हो गया तो!”

“माँ! क्या होगा? ... वैसे भी, इंटरनेशनल फ्लाइट को कोई भी कुछ नहीं कर सकता!”

“अच्छा चल चल... ये सब बातें अब बस! ... ये बता, बहू खुश है?”

“भाभी तो सुपर...” जय ने कहना शुरू किया।

लेकिन माँ ने बीच में ही काट कर कहा, “अरे भाभी के बच्चे, मैं बहू की बात कर रही हूँ... मेरी छोटी बहू... तेरी नई नवेली बीवी, मीनाक्षी की!”

“ओह, हाँ माँ! वो भी बहुत खुश है!”

“बहुत अच्छी बात है रे! ... उसका खूब ध्यान रखना!”

“माँ... काश आप उससे मिल पातीं!” जय बोला, “... आई फ़ील सो बैड!”

“अरे मेरा बच्चा... ऐसे मत सोच! ... मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी शादी के पीछे! ... इसलिए ऐसा वैसा मत सोचो!” माँ ने उसको समझाया, “... अब चल, बहू को फ़ोन दे! ... उससे थोड़ा बतिया लूँ, फिर शांति से दिन बिताऊँ अपना!”

“जी माँ! अभी लीजिए...” कह कर जय ने फ़ोन मीना को पकड़ा दिया।

“माँ,” मीना ने जय और माँ की बातें सुन ली थीं और अब जान गई थी कि माँ की अनुमति से ही उन दोनों की शादी हुई है, “... हमको माफ़ कर दीजिये...”

“मेरी बेटी... मेरी पूता... तू तो अब हमारे परिवार का हिस्सा है! ... इस नए जीवन की शुरुवात आनंद से कर तू... बिना किसी दुःख के, बिना किसी पछतावे के...”

“लेकिन माँ, बिना आपके आशीर्वाद के...”

“अरे, कहाँ मेरे आशीर्वाद के बिना? ... मैंने ही क्लेयर से कहा था कि आज कल यहाँ माहौल ठीक नहीं है, इसलिए अगर हो सके, तो तुम दोनों की शादी वहीं करवा दे! ... जब भी तुम दोनों का यहाँ इंडिया आने का मौका बनेगा न, यहाँ तुम दोनों की शादी करवा दूँगी! ठीक है?”

“पर माँ...”

“मेरी बच्चा, तू खुश रह बस! ... आदित्य और क्लेयर बेटे ने बहुत कुछ बताया है तेरे बारे में! ... मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तू मेरे बेटे को सम्हालेगी! ... वो प्यार का भूखा है, उसको खूब प्यार देना!”

“हाँ माँ!”

“बहुत अच्छा बेटे, बहुत अच्छा... तू आराम कर अब! ... और हाँ, रोज़ बातें करना मुझसे! ... बिना अपने बच्चों से बातें किए मेरा मन चैन से नहीं रह पाता!”

“जी माँ! रोज़ बिना आपसे बातें किए मैं भी नहीं सोऊँगी!” मीना ने बड़े आनंद से कहा, “... इतने सालों बाद मुझे परिवार का प्यार मिला है... अब मैं इसको नहीं छोड़ सकती!”

“लव यू बेटे,”

“लव यू सो मच, माँ!”

*

Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh -- भाईयों, नया अपडेट है!
Nice update....
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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तो जय और हर्ष की मां की ही सहमति से क्लेयर ने दोनो की शादी करवा दी, कारण तो वही दिया है कि देश का माहौल अच्छा नही है।

उधर हरीश का भी कहना सही ही है कि सुहासिनी को अपनाना अभी के माहौल में अच्छा नही।

वैसे हरीश का ये कहना की वो राजकुमार को अपनाएगा, मुझे फिर से अपने 2 अलग समय वाली सोच पर कायम कर रहा है।

PS: notification नही आया

मैंने तो आप लोगों को tag भी किया था। फिर भी नोटिफिकेशन नहीं आया 😳
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मैंने तो आप लोगों को tag भी किया था। फिर भी नोटिफिकेशन नहीं आया 😳
पता नही, न पोस्ट का, न टैग का
 

Ajju Landwalia

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Wah avsji Bhai,

Sabhi updates ek se badhkar ek he................chahe wo Jay aur mina ka pehla milan..........ya suahisni aur rajparivar par pade apar dukh ki ghadi............

Ek ek shabd aapne moti ki tarah piroya he..............shabdo ke jadugar he aap..........jab tak sabhi updates ek sath padh nahi li...........hil nahi paya apni jagah se.............

Harish bhi pani jagah bilkul sahi he.............aise samay me wo log suhasini ko nahi pana sakte the............

Ab dekhna yah he ki Aditya aur Jay me se Suhasini ka beta kaun he?????

Keep posting Bhai
 

Sanju@

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Update #25


धनेश पक्षी को शायद अपना साथी मिल गया था - क्योंकि अब दो दो आवाज़ें आने लगीं थीं। अचानक से ही पक्षियों की आवाज़ें तीखी हो गईं - लेकिन अभी भी उनका शोर सुन कर खराब नहीं लग रहा था। हर्ष कौतूहलवश, उचक कर निकुञ्ज के चारों तरफ देखने लगा कि शायद धनेश पक्षी दिख जाए। लेकिन कुछ नहीं दिखा। देखने में वो वृक्ष और झाड़ियाँ विरल थीं, लेकिन फिर भी आवश्यकतानुसार घनी भी!

“क्या हुआ?” सुहासिनी ने पूछा।

“कुछ नहीं... इतना शोरगुल है, फिर भी कोई पक्षी नहीं दिख रहा है!”

“इसको शोर न कहिए राजकुमार जी...”

“हा हा... जैसी राजकुमारी जी की इच्छा!”

सुहासिनी कुछ देर न जाने क्या सोच कर चुप रही, फिर आगे बोली,

“आपको पता है न राजकुमार जी? ... धनेश पक्षी उम्र भर के लिए साथ निभाते हैं!”

“अच्छा? ऐसा है क्या?”

“जी... बहुत ही कम पक्षी हैं, जो अपना पूरा जीवन केवल एक साथी के संग बिताते हैं। ... आपके पसंदीदा सारस पक्षी भी इन्ही धनेश पक्षियों जैसे ही हैं!”

“आपको हमारी पसंद का पता है!” हर्ष ने आश्चर्य से कहा।

“आपकी साथी होने का दम्भ हममें यूँ ही थोड़े ही आया है!” सुहासिनी ने बड़े घमंड से कहा।

उसकी बात सुन कर हर्ष हो बड़ा भला महसूस हुआ। हाँ, जीवनसाथी हो तो ऐसी!

“हम भी तो आप ही के साथ अपना पूरा जीवन बिता देना चाहते हैं, राजकुमारी जी!”

हर्ष ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। यह एक इतना कोमल संकेत था, कि सुहासिनी अंदर ही अंदर पूरी तरह पिघल गई। पहले अपने लिए ‘राजकुमारी’ वाला सम्बोधन सुहासिनी को थोड़ा अचकचा लगता था, लेकिन अब नहीं। राजकुमार हर्ष की पत्नी के रूप में वो राजकुमारी के रूप में ही जानी जायेगी, और इस बात का संज्ञान उसको बड़ा भला लग रहा था।

“हम आपको बहुत प्रेम करेंगे...” सुहासिनी ने वचन दिया।

“हमको पता है!” हर्ष ने कहा, और सुहासिनी का एक गाल चूम लिया।

उस दिन के बाद से आज पहली बार हर्ष ने सुहासिनी को चूमा था। इसलिए दोनों के बीच चुम्बन का आदान प्रदान अभी भी अप्रत्याशित था। उसके दिल में हलचल अवश्य मच गई, लेकिन इस बार सुहासिनी घबराई नहीं। लेकिन फिर भी, लज्जा की एक कोमल, रक्तिम लालिमा उसके पूरे शरीर पर फ़ैल गई।

“सुहास...” हर्ष बोला।

“जी?”

उत्तर में हर्ष ने कुछ कहा नहीं - लेकिन उसके सुहासिनी की तरफ़ कुछ ऐसे अंदाज़ में देखा कि उसको लगा कि हर्ष उससे किसी बात की अनुमति माँग रहा है। स्त्री-सुलभ संज्ञान था, या कुछ और - उसने शर्माते हुए बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। बस - एक बार! इतना संकेत बहुत था हर्ष के लिए। उसने हाथ बढ़ा कर सुहासिनी की कुर्ती के बटनों को खोलना शुरू कर दिया।

सुहासिनी का दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। उस दिन तो राजकुमार ने जो कुछ किया था, अपनी स्वयं की मनमर्ज़ी से किया था। लेकिन आज वो दोष उस पर नहीं लगने वाला था। आज सुहासिनी ने उसको अनुमति दे दी थी। बहुत संभव है कि सुहासिनी के मन के किसी कोने में यह इच्छा... या यूँ कह लें, कि उम्मीद दबी हुई थी, कि उस दिन की ही तरह फिर से कुछ हो!

लेकिन जब वैसा कुछ होने लगता है, तो मन में होता है कि वो कहीं छुप जाए! बेचैनी और आस के बीच की रस्साकशी बड़ी अजीब होती है। लेकिन, वो यह होने से रोकने देना नहीं चाहती थी।

कुछ ही क्षणों में सुहासिनी कमर के ऊपर से पुनः नग्न थी। उसके छोटे छोटे नारंगी के फलों के आकर के गोल-मटोल नवकिशोर स्तन पुनः हर्ष के सामने थे।

“कितने सुन्दर हैं ये...” हर्ष उनको सहलाते हुए बोल रहा था, “... कैसे न पसंद आएँ ये हमको...”

हर्ष जैसे खुद से ही बातें कर रहा था।

ऐसी बातें किस लड़की के दिल में हलचल न पैदा कर दें? सुहासिनी भी अपवाद नहीं थी। उसको शर्म आ रही थी, लेकिन उसके मन में एक गज़ब का आंदोलन भी हो रहा था! उसको लग रहा था जैसे घण्टों बीते जा रहे हों - उसका राजकुमार उसके स्तनों को बड़ी लालसा, बड़ी रुचिकर दृष्टि से देख रहा था, सहला रहा था, महसूस कर रहा था। शायद ही उसके स्तनों का कोई भी विवरण हर्ष की नज़र से बच सका हो। इतनी क़रीबी जान पहचान हो गई!

अपने मन की व्यथा वो किस से कहे?

“राजकुमार...?” अंततः वो बोली।

“हम्म?”

“अ... आप को ऐसे शरारतें करना अच्छा लगता है?”

“बहुत!” कह कर हर्ष ने सुहासिनी को चूम लिया, “... आप इतनी सुन्दर भी तो हैं... हम करें भी तो क्या करें? ”

बात तो सही थी! कमसिन, क्षीण से शरीर वाली सुहासिनी एक ख़ालिस राजस्थानी सुंदरी थी! और अपने नग्न स्वरुप में और भी सुन्दर सी लग रही थी! अप्सरा जैसी! मनभावन! कामुक!

‘कामुक!’

यह शब्द हर्ष के मस्तिष्क में अचानक ही कौंध गया, और इस बात के बोध मात्र से उसके शरीर में कम्पन होने लगा। यौवन के सहज आकर्षण से वशीभूत हर्ष ने बढ़ कर सुहासिनी को अपने आलिंगन में भर लिया। और यह भावना हर्ष तक ही सीमित नहीं थी - सुहासिनी भी, हर्ष की ही भाँति काँप रही थी। अपरिचित एहसास! डरावना भी! लेकिन ऐसा नहीं कि जिसको रोकना दोनों के लिए संभव हो!

हर्ष सुहासिनी की तरफ़ थोड़ा झुका - सुहासिनी समझ तो रही थी कि वो उसको चूमना चाहता है, लेकिन किस तरह से चूमना चाहता है - उसको इस बात का अंदाजा नहीं था। हर्ष ने अपने भैया हरिश्चन्द्र और भाभी प्रियम्बदा को उनके अंतरंग क्षणों में एक दो बार चुम्बन करते हुए देखा अवश्य था, लिहाज़ा, वो अब वही क्रिया अपनी प्रेमिका पर आज़माना चाहता था। सुहासिनी को लगा कि वो उसके गालों या माथे पर चूमेगा - लेकिन हुआ कुछ और! हर्ष के होंठ ज्यों की उसके होंठों पर स्पर्श हुए, जैसे विद्युत् की कोई तीव्र तरंग उसके शरीर में दौड़ गई!

खजुराहो के मंदिरों में युवतियों की कई मूर्तियाँ हैं - कुछेक में ऐसा दर्शाया गया है कि बिच्छू उन युवतियों की जाँघों पर काट रहा है। यह बिच्छू दरअसल है ‘काम’! हर्ष के होंठों को अपने होंठों पर स्पर्श होते महसूस होते ही सुहासिनी के शरीर का ताप किसी तीव्र ज्वर के होने के समान ही बढ़ गया। काम का ज्वार, किसी ज्वर समान ही चढ़ता है। नवोदित यौवन की मालकिन सुहासिनी भी अब काम के ताप में तप रही थी। अपरिचित आंदोलनों से उसका शरीर काँप रहा था। ऐसा कैसे होने लगता है कि आपका शरीर स्वयं आपके नियंत्रण में न रहे? न जाने कौन सी प्रणाली है, लेकिन अब सुहासिनी का अपने खुद के ऊपर से नियंत्रण समाप्त हो गया था।

दोनों का चुम्बन कुछ देर तक चला - दोनों के लिए यह बहुत ही अपरिचित एहसास था, लेकिन किसी भी कोण से खराब नहीं था। मन में अजीब सा लगा लेकिन बुरा नहीं। चुम्बन समाप्त होते होते दोनों की साँसें धौंकनी के समान चल रही थीं - जैसे एक लम्बी दूरी की दौड़ पूरी कर के आए हों दोनों।

लेकिन हर्ष आज कुछ अलग ही करने की मनोदशा में था।

जब मन में चोर होता है, तब आप कोई भी काम चोरी छुपे, सबसे बचा कर करते हैं। लेकिन हर्ष के मन में चोर नहीं था - जब से उसने सुहासिनी को देखा था, वो तब से उसको अपनी ही मान रहा था। वो उसको चोरी से प्रेम नहीं करना चाहता था। इसलिए जब उसके हाथ स्वतः ही उसके घाघरे का नाड़ा खोलने में व्यस्त हो गए, तब उसने एक बार भी ऐसा नहीं सोचा कि वो आस पास का जायज़ा ले। उसको इस बात का ध्यान तो था कि उनके निकुंज में एकांत था, उसके कारण उनको यूँ अंतरंग होने में सहूलियत थी। लेकिन वो निकुंज एक तरह से दोनों का घर था - उनका शयन कक्ष था। जिसमें दोनों एक दूसरे के साथ अकेले में मिल सकते थे।

सुहासिनी जानती थी कि विवाह के बाद यह तो होना ही है, लेकिन अभी? थोड़ा अलग तो था, लेकिन उसको ऐसा नहीं लगा कि यह नहीं होना चाहिए। राजकुमार उसके प्रेमी नहीं रह गए थे - वो उनको अपना पति कब से स्वीकार कर चुकी थी। अपने इष्टदेवता से वो कब से प्रार्थना कर के अपने और अपने राजकुमार के साथ की कामना कर चुकी थी। कम से कम तीन बार दोनों ने एक साथ मंदिर में जा कर पूजन किया, और ईश्वर से एक दूसरे को अपने अपने लिए माँग लिया था। और तो और, अब तो उनके सम्बन्ध को उसके बाबा और युवरानी जी का आशीर्वाद भी प्राप्त था! इतना सब हो जाने के बाद अब तो बस, कुछ रस्में ही बची हुई थीं!

दो चार पल ही बीतें होंगे, लेकिन दोनों को लग रहा था जैसे युग बीत गए हों!

लेकिन अब सुहासिनी अपने पूर्ण नग्न स्वरुप में अपने राजकुमार के सम्मुख थी।


*
Awesome update
हर्ष और सुहासनी के प्रेम मिलन का चित्रण बहुत ही शानदार तरीके से किया है साथ ही उनके सच्चे प्रेम की तुलना धनेश पक्षी से की है
 
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