Update #22
आज ईआईटी के मुख्य प्रेजेंटेशन हॉल में ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप का अंतिम प्रेजेंटेशन था। जेसन अपनी पूरी टीम, जिसमें मीना एक अग्रणी सदस्या थी, के साथ पूरी तैयारी के साथ आया हुआ था। प्रेजेंटेशन करीब दो घण्टे तक चला - अधिकतर समय मीना ने ही लिया। आदित्य और जय के लिए ऐसा कुछ भी नहीं था जो नया हो - मीना ने पहले ही सब कुछ बता दिया था। ... वो तो ‘घर की’ ही हो गई थी, लिहाज़ा, एक अलग ही अधिकार बोध के साथ वो प्रेजेंटेशन दे रही थी। उसके अंदर यह परिवर्तन जेसन और टीम के अन्य सदस्यों ने भी महसूस किया - अन्य क्लाइंट्स के साथ वो प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में प्रेजेंटेशन देती थी, लेकिन यहाँ ऐसा लग रहा था कि जैसे वो आदित्य और जय को अच्छे से जानती हो!
‘बढ़िया!’ उसने सोचा - मतलब आगे भी बिज़नेस मिलते रहने का चांस है।
प्रश्नोत्तर करने का ठेका ईआईटी के बाकी टीम लीडर्स और डायरेक्टर्स ने उठाया, क्योंकि न तो आदित्य और न ही जय कोई प्रश्न पूछ रहे थे। उनको पहले से ही सारे मीना के तार्किक उत्तर इतने अकाट्य थे, कि जो भी चौधरी बनने की कोशिश करता, वो अपना सा मुँह ले कर रह जाता। उसने कई सारी अनुशंसाएँ दीं थीं, जिसमें एक दो बिज़नेस लाइन्स को बंद करने का भी प्राविधान था। अगर आदित्य वो बात मान लेता, तो कई लोगों की नौकरी चली जानी थी। उसके कारण भी कुछ लोग दुःखी थे। लेकिन इतना तो दिख रहा था कि अगर मीना की अनुशंसाएँ मानी गईं, तो अगले पाँच सालों में ईआईटी का वित्तीय कायाकल्प हो जाता।
यह एक अच्छी बात थी!
आदित्य मन ही मन खुश हो रहा था कि एक तरह से मीना ‘अपनी’ कंपनी की भलाई की बातें कर रही थी। प्रोजेक्ट तो ख़तम हो गया था, लिहाज़ा, यूँ रोज़ ऐसे मिलना अब मीना और जय के लिए कितना संभव था, यह देखने वाली बात थी। यही बात जय के दिमाग में बार बार चल रही थी। बिछोह आखिर किसको अच्छा लगता है? प्रेमियों को तो कत्तई नहीं... और इस कारण से उसका ध्यान प्रेजेंटेशन पर नहीं था। लेकिन आदित्य को उसका प्रेजेंटेशन बहुत पसंद आया, और प्रेजेंटेशन ख़तम होने के बाद उसने जेसन और मीना को उनके काम के लिए धन्यवाद किया, और लंच पर ले चलने की पेशकश करी।
लंच के लिए सभी कंसल्टेंट्स और ईआईटी के कुछ डायरेक्टर्स को ले कर आदित्य और जय एक बढ़िया होटल में गए। मीना के साथ उन दोनों को इतना अपनापन हो गया था कि अब वो दोनों उसको प्रोफ़ेशनल रुप में नहीं देख पा रहे थे।
‘मीना एक प्रोफ़ेशनल वुमन है...’ इस बात का बोध वापस आते ही आदित्य को चिंता होने लगी।
थोड़ा एकांत पा कर आदित्य ने जेसन से पूछा,
“जेसन, आपकी कंपनी में क्लाइंट्स से... डेट करने को ले कर कोई पाबंदी तो नहीं है?”
“जी?” जेसन ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, “नहीं! नहीं तो! क्यों? क्या हो गया? आपने ये क्यों पूछा?”
“आप सभी को देर सवेर पता तो चल ही जाएगा - इसलिए अच्छा यही है कि मुझसे आपको पता चले,” आदित्य ने पूरी गंभीरता से कहना शुरू किया, “मेरा भाई... जय, और मीनाक्षी, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे हैं... और हमको भी मीनाक्षी बहुत पसंद है। तो बहुत जल्दी ही ये रिलेशनशिप मैरिज में भी बदल जाएगा... लेकिन मैं नहीं चाहता कि क्लाइंट के साथ मोहब्बत करने, और उससे शादी करने के कारण मीना के कैरियर पर कोई आँच आए!”
“ओह... नहीं नहीं! ऐसा कुछ नहीं है... ऐसा कुछ न सोचिए! हमारे यहाँ ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है... मेरा मतलब, फिलहाल तो नहीं है!” जेसन बोला, फिर थोड़ा ठहर कर बोला, “... वैसे, हमको भी लग रहा था कि जय और मीना एक दूसरे की तरफ़ अट्रक्टेड हैं, लेकिन बात इतनी आगे बढ़ गई है, उसका अंदाज़ा नहीं था।” जेसन हँसते हुए बोला, “वैसे भी दोनों एडल्ट्स हैं, और इसलिए उनके अफेयर पर किसी को कोई ऑब्जेक्शन होना तो नहीं चाहिए... और अगर है भी, तो आई प्रॉमिस यू, मीना पर कोई आँच नहीं आने दूँगा।”
आदित्य ने समझते हुए सर हिलाया।
जेसन बोला, “मीना बहुत अच्छी लड़की है। टीम में लोग उसको पसंद करते हैं... कंपनी में एक दो उसको चाहते भी हैं, क्योंकि वो है ही बहुत लाइकेबल! एक तरह से वो मेरी प्रॉटेजी भी है... मैंने ही उसको रिक्रूट किया था। कंपनी ग्रो कर रही है, और उसमें उसका फ़्यूचर भी है! इसलिए आप निश्चिन्त रहें! उसके ऊपर... उसके कैरियर पर कोई आँच नहीं आएगी!”
“बढ़िया! बढ़िया! थैंक यू जेसन!”
“यू आर मोस्ट वेलकम, आदित्य!” जेसन में मुस्कुराते हुए कहा।
लंच बड़े आनंद से बीता।
जाते जाते जय ने मीना के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा, “... आज शाम मिलोगी?”
अचानक ही मीना के मन में प्रोफेशनल माहौल बदल कर रोमांटिक हो गया।
“जय,” उसने शर्माते हुए कहा, “... सब देख रहे हैं!”
“तो क्या?”
“हाँ बाबा... मिलूँगी! ... आज तुम घर आओ! ठीक है?”
“पक्की बात?”
“पक्की बात!” मीना मुस्कुराई।
शाम को मिलने का वायदा पा कर जय वैसे ही संतुष्ट हो गया था, लिहाज़ा बाकी का दिन आराम से बीत गया।
*
“जय,” शाम को घर निकलते समय आदित्य ने जय से पूछा, “... मैं तुमको ड्राप कर दूँ? ... मीना के यहाँ?”
“नहीं भैया... मैं चला जाऊँगा! टैक्सी या पब्लिक ट्रांसपोर्ट ले कर...”
“आई इंसिस्ट...” आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, “वैसे भी तुमसे एक बात कहनी है...”
“क्या भैया?”
“रास्ते में बताता हूँ न...”
“ओ...के...” जय ने न समझते हुए कहा, “सब ठीक तो है न भैया?”
“अरे सब ठीक है...”
“ठीक है भैया!”
गाड़ी आदित्य ही चला रहा था।
“हाँ भैया... क्या कहना चाहते हैं, आप?”
“जय... बेटा... देख - तू मेरा छोटा भाई ही नहीं, बल्कि बेटे जैसा भी है! ... हाँ, हमारी उम्र में बहुत अंतर नहीं है, लेकिन फिर भी, तुझे मैं बहुत प्यार करता हूँ!”
“हाँ भैया! ... इस बात से मैंने कब इंकार किया?”
“तो तू यह भी समझता है कि अगर मैं कुछ कहूँगा, तो तेरी भलाई के लिए ही...”
“हाँ भैया! पर हुआ क्या है?”
“देख बेटा... मीना बहुत अच्छी है! क्लेयर किसी को ऐसे ही नहीं पसंद करती - और मुझे उसकी पसंद पर भरोसा है...”
जय मुस्कुराया।
“तो... आई ऍम हैप्पी कि तुम दोनों एक दूसरे को पसंद हो!” आदित्य बोला, “... लेकिन आगे कुछ भी करने से पहले सोच लेना...”
“मतलब भैया? मैं कुछ समझा नहीं!”
“तुम दोनों का प्यार बहुत तेजी से परवान चढ़ा है... जाहिर सी बात है कि तुम दोनों की मोहब्बत में एक तरह का... हाऊ टू से दैट... एक तरह का जोश भी है... तो... मेरा मतलब... तुम दोनों के बीच... यू नो... इंटरकोर्स होने का भी बहुत चाँस है!”
“भैया!” जय ने झेंपते हुए कहा।
“भैया नहीं! ... मेरी बात थोड़ा सीरियसली सोचो... कॉल मी ओल्ड फैशन्ड... मेरे लिए यह दो लोगों के बीच एक प्रॉमिस है... कि दोनों उम्र भर एक दूसरे का साथ निभाएँगे... एक दूसरे के साथ संसार बनाएँगे!”
जय शांत हो कर सुन रहा था।
“तो तुम दोनों जब तक सर्टेन न हो, तब तक कुछ न करना। ... बस इतना ही कहना था मुझे।”
“ओह भैया!”
“आई ऍम सॉरी अगर मैंने तुमको एम्बैरस किया हो...”
“नहीं भैया... आप ऐसा कुछ कर ही नहीं सकते! ... थैंक यू!”
आदित्य मुस्कुराया, “एन्जॉय यू टू... तुम दोनों बहुत सुन्दर लगते हो साथ में! क्यूट कपल!”
“लव यू भैया!”
“लव यू टू माय लिटिल ब्रदर!”
*
“जय!” दरवाज़ा खोलते हुए मीना ने मुस्कुराते हुए कहा।
“माय लव!” आदित्य ने भी बड़े रोमांटिक अंदाज़ में कहा।
अपने लिए ‘माय लव’ शब्द सुन कर मीना का दिल धमक ज़रूर गया, लेकिन उसने जय के ऊपर यह बात ज़ाहिर होने नहीं दी। वो बोली,
“आदित्य आया था?”
“हाँ! ... लेकिन केवल मुझे यहाँ छोड़ने!”
“अरे, क्यों! बिना मुझसे मिले क्यों चला गया?”
“अरे यार! पहली बार तुम्हारे घर आया हूँ... कॉफ़ी वोफ़ी पिलाओ! भैया से कल मिल लेना!”
“हा हा! ओके साहब जी!” मीना ने जय को अंदर आने का इशारा किया और दरवाज़ा बंद करते हुए बोली, “पिलाती हूँ... लेकिन कॉफ़ी पियोगे, या चाय? आई मेक वैरी टेस्टी चाय! ... अदरक इलाइची वाली!” उसने आँखें नचाते हुए पूछा।
“अब तुम इतना कह रही हो, तो ठीक है... चाय इट इस...”
“आओ बैठो,”
“बैठ जाएँगे मेरी जान...” जय ने मीना को उसकी कमर से पकड़ते हुए कहा, “लेकिन पहले अपना अधर-रस पान तो करने दो...”
“हैं? क्या करने दो?” मीना ने न समझते हुए कहा।
“मेरा मतलब किस...” जय उसके बहुत क़रीब आते हुए बोला, “पूरा दिन निकल गया, लेकिन एक भी किस नहीं मिली!”
“हा हा... ओह गॉड! कभी कभी कितनी टफ भाषा यूज़ करते हो... फिर से बताओ?” मीना बड़े प्यार से जय की बाहों में आती हुई बोली।
जय ने उसको आलिंगन में भरते हुए उसके होंठों को चूमा, और बोला, “अधर... मतलब लिप्स...”
“हम्म्म,” मीना आँखें बंद करती हुई, उस चुम्बन का आनंद लेती हुई, मुस्कुरा दी।
“रस... मतलब नेक्टर...”
जय ने फिर से मीना के होंठों को चूमा।
“और पान मतलब...”
“ओह आई नो... पान मतलब बीटल लीफ... वो क्या कहते हैं? हाँ, पान की गिलौरी? राइट?”
“हा हा हा, ऑलमोस्ट ऑलमोस्ट...” जय ने फिर से उसको चूमा, “लेकिन यहाँ पान का मतलब है... टू ड्रिंक...”
“ओओहहह...” मीना ने चुम्बनों के बीच में समझते हुए कहा, “अब समझी... एंड दैट्स व्हाई इट मीन्स अ किस...”
“इनडीड माय लव...”
मीना जय की जाँघों पर, जाँघों के इधर उधर पैर रख कर बैठ गई थी, और पूरे जोश से चुम्बन में जय का साथ दे रही थी। जो एहसास उस समय जय को हुआ, वो उसको पहले कभी भी नहीं हुआ था। मतलब ऐसा नहीं है कि उसका लिंगोत्थान कभी हुआ ही नहीं - हमेशा होता, हर दिन/रात होता, और कई कई बार होता! लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि मीना का भार उसकी जाँघों और श्रोणि पर होने के बावज़ूद उसको बेहद कठोर लिंगोत्थान हो रहा था! बेहद कठोर! ऐसा हो ही नहीं सकता कि मीना को पता न चला हो।
लेकिन दोनों चुप थे, लेकिन फिर भी कमरे में शोर हो रहा था। शोर था दोनों के चुम्बन का! पहले भी दोनों ने एक दूसरे को चूमा था - लेकिन आज चुम्बन में दोनों को एक अलग ही रस आ रहा था। दोनों का चुम्बन कभी निमित्तक बन जाता, तो कभी घट्टितक! मीना कभी कोमलता से जय के होंठों पर अपने होंठ रख देती कि वो अपनी मनमानी कर सके, तो कभी उसके होंठों को अपने होंठों में ले कर चूमती!
जय का कठोर होता हुआ लिंग अब अपने कठोरतम स्तर पर था। उसको महसूस कर के मीना की साँसें अस्थिर हो रही थीं। जय को ले कर अपने मन में होने वाली ऊष्णता का ज्ञान था उसको, लेकिन अब उसको जय की भी हालत का पता चल गया था। वो भी उसके लिए उतना ही उद्धत था! ठीक है कि उसको सेक्स को ले कर जय से कहीं अधिक अनुभव था, लेकिन जय के साथ अंतरंग होने, उसके साथ सेक्स करने की भावना ने उसको अभिभूत कर दिया। जब सम्भोग की भावना में शुद्ध प्रेम की भावना भी सम्मिलित हो जाए, तो उससे बलवती शक्ति शायद ही कोई हो संसार में! लेकिन मन के किसी कोने में से आवाज़ भी आई कि सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है, सम्हल जा! थोड़ा संयम से काम ले!
अचानक ही विशुद्ध भावनाओं पर विवेक हावी होने लगा। और शायद इसी कारण वो चुम्बन तोड़ कर जय की गोदी में से उठने की कोशिश करने लगी।
जय ने उसको प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं। जय की हालत भी कमोवेश वैसी ही थी।
“कॉफ़ी...” उसने बुदबुदाते हुए कहा।
“चाय...” जय ने उसकी बात को सुधारते हुए कहा।
“अ...हहाँ...” मीना को ध्यान आया कि चाय बनाने की पेशकश तो उसी ने करी थी, और वो खुद ही भूल गई!
अपनी इस क्यूट सी हरकत पर उसको खुद ही हँसी आ गई, लेकिन हँसी केवल मुस्कान के रूप में ही बाहर आई।
“चाय... बनाती हूँ!” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “... बैठो?”
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