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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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dhparikh

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Update #33


मजिस्ट्रेट ऑफ़िस में जा कर जब आदित्य ने उसको सारी बात सुनाई, तब वो भी हँसने लगा। सोमवार होने के कारण वैसे भी आज कोई विवाह का समारोह नहीं था, और समय ही समय था। इसलिए उसने आदित्य को कहा कि एक घंटे में वो जय और मीना की शादी करवा सकता है। लेकिन उसने बताया कि उसको कोई भारतीय रीति नहीं आती, इसलिए वो केवल पाश्चात्य तरीके से ही शादी करवा पाएगा। कानूनन यह शादी मान्य होगी - और उसमें कोई समस्या नहीं होगी।

आदित्य को इस बात से कोई समस्या नहीं थी! भगवान तो सभी एक ही हैं। वैसे भी, भारत जा कर धूम-धाम से, रीति के हिसाब से दोनों का ब्याह होना ही था। इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। वो भागा भागा मीना, जय, और क्लेयर को यह खुशखबरी सुनाने लगा।

मैरिज लाइसेंस मिलते ही सभी लोग मजिस्ट्रेट के ऑफिस में पहुँच गए। ऑफिस बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन इतना बड़ा अवश्य था कि एक दर्ज़न लोग बेहद आराम से वहाँ उपस्थित हो सकें।

मजिस्ट्रेट ने शुरू किया,

डिअर फ्रेंड्स, व्ही आर गैदर्ड हियर, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड टू विटनेस एंड ब्लेस दिस यूनियन, एस मीनाक्षी एंड धनञ्जय - जय ज्वाइन टुगेदर इन होली मॅट्रिमनी!"

[अब आगे का मैं अधिकतर हिंदी में अनुवाद कर के लिखूँगा, नहीं तो दो दो बार लिखना पड़ेगा]

"शादी एक पवित्र बंधन है, जिसको हल्के में, और बिना अपने स्नेही स्वजनों से सलाह मशविरा किए नहीं करना चाहिए... बल्कि सोच समझ कर, और पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए... स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, और मिल कर सृष्टि का सृजन करते हैं। यही ईश्वर द्वारा परिवार की परिकल्पना है।”

इतना उपदेश दे कर मजिस्ट्रेट मुस्कुराया।

जय और मीना उत्साह में चमक रहे थे। क्या करने यहाँ आये थे, और क्या करने लगे थे! दिन ने कैसा रोचक और आश्चर्यजनक मोड़ ले लिया था। दोनों ने ही मन ही मन क्लेयर को धन्यवाद किया।

“अगर किसी को ऐसा लगता है कि जय और मीना को शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहिए, तो वो सामने आए, अपनी बात कहे, और अपने दिल का बोझ हल्का कर दे!”

इस बात पर सभी मुस्कुराये। भला किसको उनके बंधन पर ऐतराज़ होता? सभी तो दोस्त ही थे।

“जय और मीना... हम यहाँ ईश्वर की, अपने परिवारों की, और अपने मित्रों की उपस्थिति में मौजूद हैं... अगर तुम दोनों में से किसी को ऐसा कोई भी कारण लगता है कि तुमको ये शादी नहीं करनी चाहिए, तो बोलो...”

दोनों ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्कुराते रहे।

“बहुत बढ़िया...” मैजिस्ट्रेट ने कहा, “हू प्रेजेंट्स मीनाक्षी टू बी मैरीड टू जय?”

दो पल सभी चुप रहे।

क्लेयर ने आदित्य को कोहनी मारी,

वो चौंक के बोला, “आई डू...”

पाश्चात्य व्यवस्था में भी लड़की का पिता ही कन्यादान करता है। लेकिन मीना का तो और कोई था ही नहीं।

आदित्य ने कहा और मीना को जय के सामने खड़ा कर के, स्वयं उसके पीछे खड़ा हो गया।

मजिस्ट्रेट ने दोनों को उसकी तरफ़ देखता हुआ देख कर कहा,

प्लीज फेस ईच अदर एंड ज्वाइन हैंड्स (कृपया एक दूसरे का हाथ थाम कर एक दूसरे की तरफ़ देखें),”

जय और मीना ने निर्देशानुसार वही किया।

“जय, आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

जय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘धनञ्जय जय सिंह’...” जय ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘मीनाक्षी दहिमा’ को... अपनी धर्मपत्नी स्वीकार करता हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगा... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

जय ने हर प्रतिज्ञा दोहराई।

फिर वो मीना से बोला, “मीना, अब आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

मीना ने भी ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘मीनाक्षी दहिमा’...” मीना ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘धनञ्जय सिंह’ को... अपना पति स्वीकार करती हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगी... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

अपनी प्रतिज्ञा करते करते मीना की आँखों में आँसू आ गए। लेकिन वो उनको पोंछ नहीं सकती थी - दोनों ने एक दूसरे का हाथ जो थामा हुआ था।

मजिस्ट्रेट ने ये देखा तो मुस्कुराया।

“रिंग्स?” उसने आदित्य की तरफ़ देखा।

क्लेयर ने दोनों डिब्बियाँ तुरंत निकाल कर दिखाईं, “हियर...”

मजिस्ट्रेट ने कहना शुरू किया, “हे प्रभु, इन अँगूठियों में अपनी कृपा, अपना आशीर्वाद दीजिए, और जय और मीना के विवाह को अपना आशीष दीजिए... आपकी अनंत प्रज्ञा, आपकी अनंत कृपा इन बच्चों पर जीवन पर्यन्त बनी रहे। आमेन!”

प्लीज़ एक्सचेंज द रिंग्स वन बाई वन...” उसने निर्देश दिया।

पहले जय की बारी थी, “मीना, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर जय ने मीना को अँगूठी पहनाई।

अब मीना की बारी थी, “जय, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर मीना ने जय को अँगूठी पहनाई।

इस पर उपस्थित सभी लोग तालियाँ बजाने लगे।

मजिस्ट्रेट मुस्कुराया, और हँसते हुए बोला, “वेट वेट! लेट मी फर्स्ट प्रोनाउन्स देम...”

उसकी बात पर सभी हँसने लगे।

“जय... मीना... बिफोर आई प्रोनाउन्स यू, एक दूसरे को खूब प्यार करना - ठीक वैसे ही जैसे आपके परमेश्वर आपसे करते हैं। विवाह बहुत पवित्र वस्तु है... यह जीवन भर न टूटने वाला वायदा है जो आप एक दूसरे को कर रहे हैं... दोनों के बीच हमेशा प्रेम, आदर, धैर्य, विश्वास, और दयाभाव बनाए रखें। ईश्वर में भरोसा रखें। ... हर कठिन समय में वो आपको राह दिखलाएँगे! ... आप दोनों ऐसा करेंगे तो आप दोनों का जीवन खुशियों से भर जाएगा!”

यह सुन कर जय और मीना ने एक दूसरे का हाथ मज़बूती से थाम लिया।

मजिस्ट्रेट ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया, फिर बोला,

बाय द पॉवर वेस्टेड इन मी बाय द ब्यूटीफुल स्टेट ऑफ़ इलिनॉय, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड एंड द विटनेस ऑफ़ फैमिली एंड फ्रेंड्स, इट इस माय ग्रेट प्रिविलेज टू प्रोनाउन्स यू हस्बैंड एंड वाइफ!

इस बात पर फिर से तालियाँ बजने लगीं।

यू मे किस द ब्राइड!”

इतना सुनते ही दोनों एक दूसरे के आलिंगन में समां गए, और दोनों के होंठ, एक प्रेममय चुम्बन में लिप्त हो गए।

*
Nice update....
 
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parkas

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Update #33


मजिस्ट्रेट ऑफ़िस में जा कर जब आदित्य ने उसको सारी बात सुनाई, तब वो भी हँसने लगा। सोमवार होने के कारण वैसे भी आज कोई विवाह का समारोह नहीं था, और समय ही समय था। इसलिए उसने आदित्य को कहा कि एक घंटे में वो जय और मीना की शादी करवा सकता है। लेकिन उसने बताया कि उसको कोई भारतीय रीति नहीं आती, इसलिए वो केवल पाश्चात्य तरीके से ही शादी करवा पाएगा। कानूनन यह शादी मान्य होगी - और उसमें कोई समस्या नहीं होगी।

आदित्य को इस बात से कोई समस्या नहीं थी! भगवान तो सभी एक ही हैं। वैसे भी, भारत जा कर धूम-धाम से, रीति के हिसाब से दोनों का ब्याह होना ही था। इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। वो भागा भागा मीना, जय, और क्लेयर को यह खुशखबरी सुनाने लगा।

मैरिज लाइसेंस मिलते ही सभी लोग मजिस्ट्रेट के ऑफिस में पहुँच गए। ऑफिस बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन इतना बड़ा अवश्य था कि एक दर्ज़न लोग बेहद आराम से वहाँ उपस्थित हो सकें।

मजिस्ट्रेट ने शुरू किया,

डिअर फ्रेंड्स, व्ही आर गैदर्ड हियर, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड टू विटनेस एंड ब्लेस दिस यूनियन, एस मीनाक्षी एंड धनञ्जय - जय ज्वाइन टुगेदर इन होली मॅट्रिमनी!"

[अब आगे का मैं अधिकतर हिंदी में अनुवाद कर के लिखूँगा, नहीं तो दो दो बार लिखना पड़ेगा]

"शादी एक पवित्र बंधन है, जिसको हल्के में, और बिना अपने स्नेही स्वजनों से सलाह मशविरा किए नहीं करना चाहिए... बल्कि सोच समझ कर, और पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए... स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं, और मिल कर सृष्टि का सृजन करते हैं। यही ईश्वर द्वारा परिवार की परिकल्पना है।”

इतना उपदेश दे कर मजिस्ट्रेट मुस्कुराया।

जय और मीना उत्साह में चमक रहे थे। क्या करने यहाँ आये थे, और क्या करने लगे थे! दिन ने कैसा रोचक और आश्चर्यजनक मोड़ ले लिया था। दोनों ने ही मन ही मन क्लेयर को धन्यवाद किया।

“अगर किसी को ऐसा लगता है कि जय और मीना को शादी के बंधन में नहीं बंधना चाहिए, तो वो सामने आए, अपनी बात कहे, और अपने दिल का बोझ हल्का कर दे!”

इस बात पर सभी मुस्कुराये। भला किसको उनके बंधन पर ऐतराज़ होता? सभी तो दोस्त ही थे।

“जय और मीना... हम यहाँ ईश्वर की, अपने परिवारों की, और अपने मित्रों की उपस्थिति में मौजूद हैं... अगर तुम दोनों में से किसी को ऐसा कोई भी कारण लगता है कि तुमको ये शादी नहीं करनी चाहिए, तो बोलो...”

दोनों ने कुछ नहीं कहा और बस मुस्कुराते रहे।

“बहुत बढ़िया...” मैजिस्ट्रेट ने कहा, “हू प्रेजेंट्स मीनाक्षी टू बी मैरीड टू जय?”

दो पल सभी चुप रहे।

क्लेयर ने आदित्य को कोहनी मारी,

वो चौंक के बोला, “आई डू...”

पाश्चात्य व्यवस्था में भी लड़की का पिता ही कन्यादान करता है। लेकिन मीना का तो और कोई था ही नहीं।

आदित्य ने कहा और मीना को जय के सामने खड़ा कर के, स्वयं उसके पीछे खड़ा हो गया।

मजिस्ट्रेट ने दोनों को उसकी तरफ़ देखता हुआ देख कर कहा,

प्लीज फेस ईच अदर एंड ज्वाइन हैंड्स (कृपया एक दूसरे का हाथ थाम कर एक दूसरे की तरफ़ देखें),”

जय और मीना ने निर्देशानुसार वही किया।

“जय, आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

जय ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘धनञ्जय जय सिंह’...” जय ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘मीनाक्षी दहिमा’ को... अपनी धर्मपत्नी स्वीकार करता हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगा... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

जय ने हर प्रतिज्ञा दोहराई।

फिर वो मीना से बोला, “मीना, अब आप अपने मन में, पूरी शुद्ध रूप से सोच कर मेरी बात दोहराएँ,”

मीना ने भी ‘हाँ’ में सर हिलाया,

“मैं, ‘मीनाक्षी दहिमा’...” मीना ने दोहराया, “भगवान को हाज़िर नाज़िर जान कर... ‘धनञ्जय सिंह’ को... अपना पति स्वीकार करती हूँ... और आज इस दिन, इस क्षण से... अपने पूरे जीवन भर... हर भले - बुरे, ऊँच - नीच, लाभ - हानि, सम्पन्नता - विपन्नता, रोग - निरोग में... पूरे दिल से उनका साथ निभाऊँगी... जब तक मृत्यु हम दोनों को अलग न कर दे... यह मेरी अखंड प्रतिज्ञा है!”

अपनी प्रतिज्ञा करते करते मीना की आँखों में आँसू आ गए। लेकिन वो उनको पोंछ नहीं सकती थी - दोनों ने एक दूसरे का हाथ जो थामा हुआ था।

मजिस्ट्रेट ने ये देखा तो मुस्कुराया।

“रिंग्स?” उसने आदित्य की तरफ़ देखा।

क्लेयर ने दोनों डिब्बियाँ तुरंत निकाल कर दिखाईं, “हियर...”

मजिस्ट्रेट ने कहना शुरू किया, “हे प्रभु, इन अँगूठियों में अपनी कृपा, अपना आशीर्वाद दीजिए, और जय और मीना के विवाह को अपना आशीष दीजिए... आपकी अनंत प्रज्ञा, आपकी अनंत कृपा इन बच्चों पर जीवन पर्यन्त बनी रहे। आमेन!”

प्लीज़ एक्सचेंज द रिंग्स वन बाई वन...” उसने निर्देश दिया।

पहले जय की बारी थी, “मीना, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर जय ने मीना को अँगूठी पहनाई।

अब मीना की बारी थी, “जय, आई गिव यू दिस रिंग एस अ सिम्बल ऑफ़ माय लव एंड डिवोशन... विद आल दैट आई हैव, एंड आल दैट आई ऍम, आई प्रॉमिस टू हॉनर एंड चेरिश यू, इन माय गॉड्स नेम!”

फिर मीना ने जय को अँगूठी पहनाई।

इस पर उपस्थित सभी लोग तालियाँ बजाने लगे।

मजिस्ट्रेट मुस्कुराया, और हँसते हुए बोला, “वेट वेट! लेट मी फर्स्ट प्रोनाउन्स देम...”

उसकी बात पर सभी हँसने लगे।

“जय... मीना... बिफोर आई प्रोनाउन्स यू, एक दूसरे को खूब प्यार करना - ठीक वैसे ही जैसे आपके परमेश्वर आपसे करते हैं। विवाह बहुत पवित्र वस्तु है... यह जीवन भर न टूटने वाला वायदा है जो आप एक दूसरे को कर रहे हैं... दोनों के बीच हमेशा प्रेम, आदर, धैर्य, विश्वास, और दयाभाव बनाए रखें। ईश्वर में भरोसा रखें। ... हर कठिन समय में वो आपको राह दिखलाएँगे! ... आप दोनों ऐसा करेंगे तो आप दोनों का जीवन खुशियों से भर जाएगा!”

यह सुन कर जय और मीना ने एक दूसरे का हाथ मज़बूती से थाम लिया।

मजिस्ट्रेट ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया, फिर बोला,

बाय द पॉवर वेस्टेड इन मी बाय द ब्यूटीफुल स्टेट ऑफ़ इलिनॉय, इन द प्रेसेंस ऑफ़ गॉड एंड द विटनेस ऑफ़ फैमिली एंड फ्रेंड्स, इट इस माय ग्रेट प्रिविलेज टू प्रोनाउन्स यू हस्बैंड एंड वाइफ!

इस बात पर फिर से तालियाँ बजने लगीं।

यू मे किस द ब्राइड!”

इतना सुनते ही दोनों एक दूसरे के आलिंगन में समां गए, और दोनों के होंठ, एक प्रेममय चुम्बन में लिप्त हो गए।

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update.....
 

Sanju@

Well-Known Member
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Update #20


“यहाँ आने के बाद कभी इंडिया गई हो मीना?” बातें करते हुए अचानक ही जय ने पूछ लिया।

“नहीं... आई मीन, कई साल हो गए...” मीना ने न जाने क्यों थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया, “जब तक बाबा थे, तब तक साल में एक बार तो इंडिया आना जाना हो जाता था, लेकिन उनके जाने के बाद...”

“ओह, आई ऍम सॉरी!” जय ने खेदपूर्वक कहा - वो मीना का दिल दुखाना नहीं चाहता था।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। और वैसे भी... तुमको मालूम ही कहाँ था इस बारे में!”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे।

“मेरे साथ चलोगी?”

“कहाँ?” मीना को भली भाँति मालूम था कि कहाँ।

“इंडिया, और कहाँ?”

“अब कोई नहीं है वहाँ मेरा, जय! ... बाबा के बाद वहाँ से अब कोई नाता ही नहीं बचा।”

“इस बार कह दिया बस!” जय ने बुरा मानते हुए कहा, “अब आगे से न कहना कि तुम्हारा इंडिया में कोई नहीं है... हम हैं न! हमारा पूरा परिवार है...!”

मीना मुस्कुराई,

“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं करी...” वो बुदबुदाते हुए बोली।

“नहीं करी?”

हाँ तो कब की कर चुकी थी मीना - लेकिन अपने जय के सामने वो नखरे दिखाना चाहती ज़रूर थी।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो वो ‘आई लव यू’ क्यों बोल रही थी?”

“सच बोल रही थी!”

“फिर भी बोलती हो कि तुमने हाँ नहीं करी?”

“तुमने प्रोपोज़ कहाँ किया... तुमने भी तो बस आई लव यू कहा!”

“हाँ... प्रोपोज़ तो नहीं किया... कर दूँगा! आज ही!”

यह बात सुन कर मीना का दिल धड़क उठा।

‘इतनी बड़ी बात जय कितनी आसानी से कर लेता है... कितना साफ़ दिल है उसका! कितना अच्छा है उसका जय...’

द बेस्ट!” वो मुस्कुराती हुई जैसे अपने से ही बुदबुदाती हुई बोल पड़ी।

“क्या?” जय ने सुना और हल्के से मुस्कुराया।

“कुछ नहीं...” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! देखो न... क्या कर दिया है तुमने मेरे साथ... अब मैं खुद ही से बातें करने लगी हूँ!” कहते हुए उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ गई, “अभी तो बहुत कुछ एक्सपीरियंस करता है तुमको मेरी जान...”

सवेरे की बातें मीना को याद हो आईं - सवेरे की बातें और चुम्बन भी! वो याद कर के उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

“तुमको प्रोपोज़ भी कर दूँगा और तुमसे शादी भी कर लूँगा... ये तो अब फोर्मलिटीज़ हैं! तुम तो अब हमारी हो गई हो मीना...” जय कह रहा था।

“जबरदस्ती!” मीना ने जय को छेड़ने की गरज़ से कहा।

मीना ने जय को छेड़ा अवश्य, लेकिन आवाज़ में उसकी आनंद का पुट उपस्थित था। उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था कि कोई इस तरह से, अपनेपन से उस पर अपना हक़ जता रहा था। आखिर किसको अच्छा नहीं लगता? कौन नहीं चाहता कि उसको प्यार मिले?

“और नहीं तो क्या!” जय ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “तुमने ही तो कहा है कि तुम्हारे पूरे वज़ूद पर अब मेरा हक़ है! वो क्या बस कहने को कह रही थी?”

“हा हा! ... नहीं जय... मेरी कही हुई हर बात, हर शब्द सच है!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना के चेहरे का भाव इतना समर्पण वाला था कि वो स्वयं को देख कर न पहचान पाती, “तुम अब मुझको न भी अपनाओ न जय... तो भी मैं खुद तो तुम्हारे सिवाय किसी का नहीं मान सकती... अपना भी नहीं!”

“ओह मीना मीना... आई लव यू सो मच!”

आई डोंट नो हाऊ मच आई लव यू... बट वेरी मच!”

जय मुस्कुराया, “माँ को बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिल कर...”

मीना का दिल धमक उठा, “माँ?”

“हाँ! माँ से तो मिलना ही होगा न!” जय ने बड़े आनंद से कहा, “... अपनी होने वाली बहू से मिलना चाहेंगी न वो भी...”

“ओह गॉड!”

“हा हा! अरे ऐसे न कहो! ... हमारी माँ बहुत अच्छी हैं... शी लव्स टू लव अस!”

“हा हा!”

“अरे हाँ, सच में! ... चाचा जी के जाने के बाद वो थोड़ा रिज़र्व ज़रूर हो गईं, लेकिन हम पर ढेरों प्यार लुटाती हैं! जानती हो? शहर में उनकी बहुत रिस्पेक्ट है!” जय ने बड़े घमण्ड से यह बात कही,

“... पहले वो बहुत सोशल वर्क करती थीं... एक्टीवली! ... लेकिन अब नहीं। थोड़ी ऐज भी हो गई है और थोड़ा चाचा जी के बाद वो रिज़र्व भी हो गई हैं... इसलिए अब वो अपने में ही थोड़ा सिमट गई हैं... वो अलग बात है कि अभी भी बड़े बड़े पॉलिटिशियन्स और इंडस्ट्रियलिस्ट्स उनके पास आते हैं... उनका आशीर्वाद लेते हैं!”

“नाइस...”

“अरे, तुमको इम्प्रेस करने के लिए नहीं बता रहा हूँ... बस इसलिए बता रहा हूँ कि माँ बहुत स्वीट हैं... जैसे वो भाभी को बहुत प्यार करती हैं, वैसे ही तुमको भी बहुत प्यार करेंगी...”

“तुम उनके फेवरिट हो या आदित्य?”

“मैं! ऑब्वियस्ली!”

मीना ध्यान से जय की बातें सुन रही थी, लेकिन इस बात पर उसको हँसी आ गई, “हा हा! आई ऍम श्योर दैट आई विल लव टू मीट माँ जी...”

अपनी माँ के लिए मीना के मुँह से ‘माँ जी’ वाला सम्बोधन सुन कर जय को बहुत भला लगा।

“बोलो फिर... कब ले चलूँ तुमको इण्डिया?”

“कभी भी...” मीना मुस्कुराई!

“कभी भी?”

“कभी भी! ... अगर तुम मुझको अपना मानते हो, तो फिर पूछते क्यों हो? ... अपना हक़ जताओ न!”

दैट्स लाइक माय गर्ल!” जय ने खुश होते हुए कहा।

“बट...”

“बट? अरे, अभी भी बट?” जय ने हँसते हुए कहा, “... बोलो?”

“एक बार और अच्छी तरह सोच लो जय... आई ऍम नॉट द बेस्ट गर्ल फॉर यू!”

जय कुछ कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसका हाथ पकड़ कर शांत रहने का इशारा किया, और बोली, “... जय, आई प्रॉमिस यू... तुम्हारी वाइफ बन कर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानूँगी... तुम्हारे जैसा घर... कहाँ मिलते हैं तुम जैसे लोग! ... आदित्य... क्लेयर... तुम... सब लोग कितने अमेज़िंग हो! ... आई ऍम श्योर माँ जी तुम सबसे भी अधिक अमेज़िंग होंगी! ... तभी तो तुम सब ऐसे हो...”

जय मुस्कुराया। लेकिन वो बोला कुछ नहीं - वो समझ रहा था कि मीना की बात ख़तम नहीं हुई है।

“... आई विल आल्सो बी वैरी फॉर्चुनेट! ... और मैं यह वायदा भी करती हूँ कि जब मैं तुम्हारी होऊँगी, तब मैं... मेरा पूरा वज़ूद केवल तुम्हारा होगा! ... अभी भी है... सच में... तुमसे अलग कुछ सोच भी नहीं पाती... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर! ... बट मैं ये ज़रूर कहूँगी कि आई ऍम नॉट गुड... एनफ... फ़ॉर यू !”

“ऐसा क्यों कहती हो मीना?”

“अगर मैं इतनी ही अच्छी होती तो क्या मेरा कोई रिलेशनशिप टूटता?” मीना ने स्वयं को धिक्कारते हुए कहा, “मुझ में ही कोई कमी होगी न?” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, “इसलिए अब डर लगता है इन सब बातों से...”

“तो क्या... तो क्या तुमको मुझसे प्यार नहीं...”

“एक बार भी ये मत कहना जय...” मीना ने निराशा से सर हिलाते हुए कहा, “वर्ड्स कांट डिस्क्राइब हाऊ आई फ़ील अबाउट यू!”

“फ़िर?”

“इसीलिए तो डर लगता है... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत प्यार है...”

“प्यार में डर का क्या काम?”

“... कि कहीं मैं तुमको अपनी किसी हरक़त से डिसअप्पॉइंट न कर दूँ...”

“नहीं करोगी! ... बस हम सब को मन से अपना लो! और कुछ नहीं!”

“ओह जय!” मीना की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह निकलीं।

“क्या हो गया मीना?” जय ने उसको अपने मज़बूत लेकिन प्रेममय आलिंगन में बाँध कर कहा, “क्या हो गया!”

“बहुत डर लग रहा है जय! ... कुछ है मेरे दिल में जो मुझको भी नहीं समझ में आ रहा है। ... डर लग रहा है कि कुछ अनिष्ट न हो जाए! ... कुछ अनर्थ न हो जाए!”

“कुछ नहीं होगा मीना! ... ऐसा अंट शंट मत सोचो!” जय ने उसका माथा चूमते हुए कहा, “... देखो... होगा यह कि हम दोनों शादी करेंगे... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... जल्दी ही... और फिर हम दोनों बहुत बूढ़े हो कर, अपने नाती पोते देख कर मर जाएँगे! द एन्ड... समझी?”

उसकी बात सुन कर मीना रोते रोते भी हँसने मुस्कुराने लगी, “... धत्त... ये भी कोई कहानी है भला? ... इतनी बोरिंग! ... न कोई ट्विस्ट... न कोई सस्पेंस... न कोई थ्रिल...”

बट... बोरिंग इस गुड!” जय ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

मीना ने स्वयं को संयत करते, लेकिन फिर भी रोने के कारण हिचकियाँ खाते हुए कहा, “द बेस्ट...! द बेस्ट! आई लव यू जय... ओह हाऊ मच आई लव यू!”

दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के चुम्बन में लीन हो गए।

*


“अहेम अहेम...” क्लेयर के गला खँखारने की आवाज़ सुन कर मीना और जय अपने चुम्बन और आलिंगन से अलग हुए।

“भाभी?”

“क्या लड़के! बीवी मिली, तो भाभी को भूल गया?” क्लेयर ने जय की टाँग खींची।

“हा हा... नहीं भाभी!” जय मीना से अलग होते हुए क्लेयर को अपनी बाहों में लेते हुए बोला, “मीना, मेरी भाभी मेरी भाभी नहीं, मेरी बड़ी बहन समान हैं... माँ समान हैं!”

“हाँ हाँ... मक्खन मत लगाओ! वैसे मीना जानती है यह बात!”

मीना अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई मुस्कुराई।

“और हाँ, इनकी हर बात माननी पड़ेगी तुमको!” जय ने मिर्च लगाई।

“धत्त, मीना इस उल्लू की बात न सुनो! कुछ भी बकवास करता रहता है ये!” क्लेयर ने मीना का हाथ थामते हुए कहा, “तुम बहुत प्यारी हो... तुम्हारा जैसा मन करे... रहो, जैसा मन करे... जियो! ... बस, इस घर को... इस परिवार को जोड़ कर रखना।”

“इतने सुन्दर परिवार को मैं तोड़ने का सोच भी नहीं सकती क्लेयर!”

“भाभी, मीना को इंडिया गए कई साल हो गए हैं!” जय ने सहसा ही कहा।

“तो ले जाओ न उसको इंडिया? ... माँ से भी मिलवा लाना...”

“हाँ भाभी! ... अरे वाह! आपको कैसे पता चली मेरे मन की बात?”

“इतनी सुन्दर सी बीवी ढूंढी है तुमने... माँ को नहीं दिखाओगे?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“वाह भाभी, आपके चरण कहाँ हैं?”

“वहीं, जहाँ हमेशा होते हैं,” क्लेयर ने अपने पैरों की तरफ़ इशारा किया, तो जय ने क्लेयर के पैर पकड़ लिए।

“जय हो मेरी भाभी की, जय हो!”

“हा हा! चल, बहुत हो गया तेरा नाटक! ... अच्छा, एक बात बताओ, आज घर में ही ऐसे टाइम वेस्ट करना है, या कुछ मज़ेदार करने का भी प्लान है? ... मैंने ज़िद कर के मीना को रोक तो लिया है, लेकिन उसको एंटरटेन करने का जिम्मा तुम्हारा है! ... समझे? जल्दी से कोई बढ़िया, मज़ेदार प्लान बनाओ, नहीं तो दिन बीत जाएगा!”

“जो आज्ञा भाभी!” जय ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लिए।

उसकी इस हरकत से मीना और क्लेयर खिलखिला कर हँस दीं।

*
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
मीना को प्यार में मिली नाकामी की वजह से उसके मन मे अभी तक डर है इस रिश्ते को लेकर उसको लगता है कि कही उसकी वजह से ये रिश्ता भी ना टूट जाए लगता है मीना को अब जय से सच्चा वाला प्यार हो गया है और दोनो का प्यार परवान चढ़ रहा है जय मीना को मां से मिलाने की बात कहता है इसके लिए क्लेयर भी राजी है देखते हैं अब मां क्या कहती है इस रिश्ते के लिए ??
 

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Update #21


संध्या का समय था।

महाराज घनश्याम सिंह, राजमहल की एक छोटी बैठक में बैठे हुए रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। इस अवसर पर अक्सर ही उनके साथ युवरानी प्रियम्बदा भी आ कर बैठ जाती थीं। फिर दोनों ही बारी बारी से किसी न किसी ग्रन्थ का पाठ करते, और किसी सम्बंधित विषय पर चर्चा करते। लेकिन आज प्रियम्बदा के मन में एक अलग बात थी, और वो महाराज से उस सम्बन्ध में बात करना चाहती थीं।

“प्रणाम पिता जी महाराज!”

“अरे प्रिया... आओ बेटा, आओ!” महाराज घनश्याम सिंह ने बड़े प्रेम से अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया, “सौभाग्यवती भव, यशस्वी भव... और तू मुझे महाराज वहाराज मत बोला कर...! तू तो मेरी प्यारी बेटी है!”

प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई अपने ससुर के बगल आ कर बैठ गई।

“जी पिता जी...”

“हाँ,” उन्होंने संतुष्ट होते हुए कहा, “अब ठीक है! ... हमेशा याद रखना, तुम बेटी हो... बहू नहीं! तुम हमारी प्यारी हो...”

“आपको अपने पिता जी से कम भी तो नहीं माना हमने कभी,” प्रियम्बदा ने कहा, “इतना प्रेम मिला है हमको कि हम तो मायका भी भूल गए!”

“हा हा... यह बात राजा साहब को न बोल देना कभी!” घनश्याम जी ने ठठाकर हँसते हुए कहा, “बुरा मान जाएँगे!”

प्रियम्बदा भी अपने ससुर के साथ ही हँसी में शामिल हो गई।

दोनों ने थोड़ी देर तक ग्रन्थ का पाठ किया। प्रियम्बदा को अवधी का बहुत कम ज्ञान था, लिहाज़ा अधिकतर समय उसके ससुर ही पढ़ रहे थे, और अपनी समझ से बता भी रहे थे।

“पिता जी,” प्रियम्बदा से कुछ देर बाद रहा नहीं गया।

“हाँ बेटा... बोलो! कोई बात है?”

“जी...”

“अरे तो बोल न!”

“समझ नहीं आता कि हम कैसे कहें...”

“अरे बच्ची...” जब घनश्याम जी को अपनी बहू पर बहुत लाड आता था, तो वो उसको ‘बच्ची’ कह कर पुकारते थे, “इतना क्या हिचकना? वो भी हमसे! ... घर में सब जानते हैं कि तेरे सौ ख़ून माफ़ हैं! बोल न?”

“जी, वो हम सोच रहे थे कि... कि आपकी छोटी बेटी भी घर ले आते...”

“छोटी बेटी? मतलब...?” घनश्याम जी थोड़ी देर के लिए भ्रमित हो गए, फिर अचानक ही समझते हुए बोले, “ओह... ओह! अच्छा, हर्ष के लिए पत्नी?”

“जी पिता जी!”

“हा हा! अरे भाई, ये तो बड़ी जल्दी हो जाएगा!”

“कहाँ! हर्ष भी तो युवा हो गया है...” प्रियम्बदा ने कहा, “ठीक है... संभव है कि विवाह के लिए वो अभी भी कुछ समय लें, किन्तु, और कुछ नहीं तो उनकी मंगनी तो की ही जा सकती है!”

“हा हा! माफ़ करना बेटा... उसको हम बड़ा जैसा देख ही नहीं पाते!” घनश्याम जी आज बढ़िया मनोदशा में थे, “वो अभी भी हमको छोटा बालक ही लगता है! किन्तु तुम... कोई है तुम्हारी दृष्टि में?”

“जी है तो सही!”

“अच्छा? कौन है?”

“अपने राजकुमार को भी पसंद है!”

“अरे! वो इतना बड़ा हो गया कि प्रेम करने लगा है!”

“हा हा! पिता जी! ... प्रेम जैसी बातें, उसकी भावनाएँ उम्र की मोहताज नहीं होतीं!”

“अच्छी बात कही तूने बच्ची! अच्छा बता, कौन है वो सौभाग्यवती, जो हमारे कुमार को पसंद आई है?”

“सुहासिनी...”

“बड़ा प्यारा नाम है!”

“जी...”

“कौन है ये बच्ची? किसी पुत्री है?”

“बस यही एक समस्या है पिता जी...”

“क्या हो गया?”

“वो एक छोटे कुल से है...”

प्रियम्बदा ने हिचकते हुए कहा। उसकी बात सुन कर घनश्याम जी चुप हो गए और बहुत देर तक सोचते रहे। उनको ऐसे चुप देख कर प्रियम्बदा की धड़कनें बढ़ गईं - कहीं उसने कुछ अनर्थ तो नहीं कह दिया।

“पिता जी...” उसने बड़ी हिम्मत कर के कहा, “जानती हूँ कि हमने अपने स्थान से कहीं आगे बढ़ कर ये बात आपसे कह दी है... किन्तु... कुमार भी उसको पसंद करते हैं... इसलिए हमने सोचा कि...”

घनश्याम जी ने उसको कुछ देर यूँ ही देखा - देख तो वो उसकी तरफ़ रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वो शून्य को निहार रहे हों।

“जानती हो बच्ची,” उन्होंने कहना शुरू किया।

अपने लिए यह शब्द सुन कर प्रियम्बदा की जान में जान आई।

“... हम एक श्रापित कुल हैं... इतना नीच अतीत है हमारा कि हमारी कई कई पीढ़ियाँ उस पाप को धोते धोते निकल गईं! ... हमारे वंश में बच्चियाँ जन्म लेना ही बंद हो गई हैं! इसलिए बाहर से लाई जाती हैं... हमको अन्य लोग अभी भी अपनी कन्याएँ दान देते हैं, वो हमारा सौभाग्य है! इसलिए जब तूने कहा कि छोटे कुल से है वो बच्ची, तो समझ नहीं आया कि आख़िर छोटा कौन है!”

प्रियम्बदा अवाक् हो कर अपने ससुर की बातें सुन रही थी।

“हमारी धन सम्पदा के लोभ में आ कर संभव है कि कोई पिता अपनी पुत्री को हमारे किसी पुत्र से ब्याह दे... अभी तक ऐसा हुआ नहीं - किन्तु संभव है। किन्तु सत्य तो यह है कि उस श्राप के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कन्या को हमारे किसी पुत्र के साथ प्रेम हुआ है... कम से कम हमारे संज्ञान में तो यह पहली बार हुआ है!”

कह कर घनश्याम जी चुप हो गए।

प्रियम्बदा भी साँसें रोके जैसे किसी फ़ैसले की उम्मीद में बैठी रही - कि पिता जी अब कुछ कहेंगे, तब कुछ कहेंगे!

आख़िरकार घनश्याम जी ने चुप्पी तोड़ी, “... तो हमको न जाने क्यों लग रहा है कि यह बच्ची हमारे वंश पर लगे हुए श्राप को मिटा सकती है!”

“पिता जी?”

“हाँ बच्ची... हमको तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा! ... हमको अच्छा लगा कि राजपरिवार में कोई है जो हमको पिता जैसा मानता है... राजा जैसा नहीं! तूने अपने मन की बात कह कर बड़ा अच्छा किया!”

“ओह पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा अपने ससुर के चरणों से जा लगी।

“न बेटा... तू देवी माँ का आशीर्वाद है! ... जब हमने तुझे पहली बार देखा था, तब ही लग गया था कि तू इस परिवार के लिए सबसे उचित है! ... तेरे कारण आज इस परिवार को इतने आदर से देखा जाता है। तेरे आने से पहले कोई अन्य राजपरिवार हमको अपनी कन्या ही नहीं देना चाहता था! किन्तु अब... अब पुनः सभी चाहते हैं कि कुमार का सम्बन्ध उनके परिवार से हो! ... यह परिवर्तन तेरे कारण ही आया है! तू गौरव है हमारा!”

“पिता जी, आपने यह सब कह कर हमको बड़ा मान दिया है! ... किन्तु हमको अपनी बेटी ही रहने दीजिए! ... आपकी छत्रछाया में हम बच्चे फलें फूलें... बस यही चाहिए हमको!”

“बेटी ही तो है तू हमारी!” घनश्याम जी की आँखों में आँसू आ गए थे, जो उन्होंने जल्दी से पोंछे और बोले, “... अच्छा, तो अब हमारी दूसरी बेटी के बारे में कुछ बता! सुहासिनी... कितना सुन्दर नाम है! वो कन्या क्या अपने नाम के जैसी ही है?”

“पिता जी, उसको देखा तो हमने भी नहीं... लेकिन हाँ, कुमार उसके बारे में अधिक अच्छे से बता पाएँगे!” प्रियम्बदा ने ठिठोली करते हुए कहा।

“... अच्छा! तो क्या तुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता?”

“जी वो अपने गौरीशंकर जी की पुत्री है...”

“क्या! ओह... अच्छा! ... अरे बेटा, वो कोई छोटे कुल के नहीं हैं। ... वो हमारे जैसे संपन्न नहीं हैं, लेकिन उनका कुल ऊँचा है हमसे!”

“ओह, क्षमा करें पिता जी! हमको पता नहीं था!”

“कोई बात नहीं! ... उनका परिवार सदा से माँ सरस्वती का पुजारी रहा है! माँ की कृपा है उनके वंश पर! जैसे हम निर्गुण हैं, किन्तु माँ लक्ष्मी की कृपा हम पर है, वैसे ही... कहते हैं न, ये दोनों माताएँ साथ नहीं रह पातीं! संभवतः इसी कारण वो संपन्न नहीं हैं!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“ऐसे परिवार की कन्या अगर हमारे परिवार में आएगी, तो हमारे तो भाग्य खुल जाएँगे!”

उनकी बात पर प्रियम्बदा प्रसन्न हो कर मुस्कुरा दी।

“तो फिर पिता जी... हम कुमार को ये बात बता दें?”

“नहीं... नहीं! ... अभी यह बात स्वयं तक सीमित रख... हम महारानी से बात करते हैं! ... वैसे भी हमारे राजपरिवार में इस माह में शुभ कार्य नहीं किए जाते!”

“जी... यह बात हमको भी मालूम है! किन्तु क्यों? ... कारण किसी ने नहीं बताया आज तक...

“वो इसलिए, क्योंकि हमारे उस नीच पूर्वज ने इसी माह में वो कुकर्म किया था, जिसका प्रायश्चित हम सब आज तक करते आ रहे हैं!” घनश्याम जी के चेहरे पर तनाव स्पष्ट था, “इसलिए उसके एक पक्ष पहले और एक पक्ष बाद इस कुल का मुखिया ईश्वर से क्षमा याचना करता है! यह अशुभ समय है पूरे परिवार के लिए... इसलिए इस समय में परिवार में कोई भी... कैसा भी शुभ काम नहीं करता!”

“जी...”

“... अतः प्रयास कर के अपनी प्रसन्नता पर नियंत्रण रखना... हम महारानी से इस बारे में बात करेंगे!” घनश्याम जी ने प्रसन्न हो कर कहा।

फिर कुछ याद करते हुए, “तनिक एक बात बता बच्ची... हमको याद तो आ रहा है... इस बिटिया को हमने देखा है न... पहले भी?”

“जी... अवश्य देखा है! किन्तु ध्यान में नहीं होगा! ... वो गौरीशंकर जी के साथ आई थी... कुमार के जन्मदिवस पर आयोजित उत्सव में!”

“हाँ... सत्य है! चेहरा उसका स्मरण तो हमको भी नहीं है। ... किन्तु हमको स्मरण है कि हम उससे मिले अवश्य हैं!”

“जी पिता जी!”

“अच्छी बात है! ... तू निश्चिन्त रह! यदि कुमार को सुहासिनी बिटिया पसंद है, तो हम उन दोनों के विवाह को प्रशस्त करेंगे। ... हम अन्य पिता जैसे नहीं हैं, जो निरर्थक बातों पर अपने बच्चों की प्रसन्नता न्योछावर कर दें! ... किन्तु कुछ समय रुक जा! ... थोड़ी व्यस्तता भी है। चीन के साथ तनाव चल रहा है, उसके लिए पण्डित नेहरू से भी मिलने जाना है दिल्ली। ... तब तक ये श्रापित माह भी समाप्त हो जाएगा! ... फिर करेंगे हम धूमधाम से अपने बच्चों का विवाह!”

“किन्तु दोनों की उम्र पिता जी?”

“जब बिटिया हमारी है, तो रहेगी भी हमारे ही पास... हमको नहीं लगता कि गौरी शंकर जी इस बात के लिए हमको मना कर सकेंगे!”

“जो आज्ञा पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा ने घनश्याम जी को प्रणाम किया, और उनके सामने नत हो गई।

लेकिन यह काम उसने होंठों पर आ गई प्रसन्न मुस्कान को छुपाने के लिए किया था।

*


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Amazing update
प्रियम्बदा ने महाराजा घनश्याम सिंह को कुमार और सुहासिनी के बारे में बताया महाराज ने इस रिश्ते को स्वीकार भी कर लिया है महाराज घनश्याम सिंह के विचार बहुत ही उत्तम है उनके लिए ऊंच नीच हैशियत कोई मायने नहीं रखती हैं।
 
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Update #22


आज ईआईटी के मुख्य प्रेजेंटेशन हॉल में ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप का अंतिम प्रेजेंटेशन था। जेसन अपनी पूरी टीम, जिसमें मीना एक अग्रणी सदस्या थी, के साथ पूरी तैयारी के साथ आया हुआ था। प्रेजेंटेशन करीब दो घण्टे तक चला - अधिकतर समय मीना ने ही लिया। आदित्य और जय के लिए ऐसा कुछ भी नहीं था जो नया हो - मीना ने पहले ही सब कुछ बता दिया था। ... वो तो ‘घर की’ ही हो गई थी, लिहाज़ा, एक अलग ही अधिकार बोध के साथ वो प्रेजेंटेशन दे रही थी। उसके अंदर यह परिवर्तन जेसन और टीम के अन्य सदस्यों ने भी महसूस किया - अन्य क्लाइंट्स के साथ वो प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में प्रेजेंटेशन देती थी, लेकिन यहाँ ऐसा लग रहा था कि जैसे वो आदित्य और जय को अच्छे से जानती हो!

‘बढ़िया!’ उसने सोचा - मतलब आगे भी बिज़नेस मिलते रहने का चांस है।

प्रश्नोत्तर करने का ठेका ईआईटी के बाकी टीम लीडर्स और डायरेक्टर्स ने उठाया, क्योंकि न तो आदित्य और न ही जय कोई प्रश्न पूछ रहे थे। उनको पहले से ही सारे मीना के तार्किक उत्तर इतने अकाट्य थे, कि जो भी चौधरी बनने की कोशिश करता, वो अपना सा मुँह ले कर रह जाता। उसने कई सारी अनुशंसाएँ दीं थीं, जिसमें एक दो बिज़नेस लाइन्स को बंद करने का भी प्राविधान था। अगर आदित्य वो बात मान लेता, तो कई लोगों की नौकरी चली जानी थी। उसके कारण भी कुछ लोग दुःखी थे। लेकिन इतना तो दिख रहा था कि अगर मीना की अनुशंसाएँ मानी गईं, तो अगले पाँच सालों में ईआईटी का वित्तीय कायाकल्प हो जाता।

यह एक अच्छी बात थी!

आदित्य मन ही मन खुश हो रहा था कि एक तरह से मीना ‘अपनी’ कंपनी की भलाई की बातें कर रही थी। प्रोजेक्ट तो ख़तम हो गया था, लिहाज़ा, यूँ रोज़ ऐसे मिलना अब मीना और जय के लिए कितना संभव था, यह देखने वाली बात थी। यही बात जय के दिमाग में बार बार चल रही थी। बिछोह आखिर किसको अच्छा लगता है? प्रेमियों को तो कत्तई नहीं... और इस कारण से उसका ध्यान प्रेजेंटेशन पर नहीं था। लेकिन आदित्य को उसका प्रेजेंटेशन बहुत पसंद आया, और प्रेजेंटेशन ख़तम होने के बाद उसने जेसन और मीना को उनके काम के लिए धन्यवाद किया, और लंच पर ले चलने की पेशकश करी।

लंच के लिए सभी कंसल्टेंट्स और ईआईटी के कुछ डायरेक्टर्स को ले कर आदित्य और जय एक बढ़िया होटल में गए। मीना के साथ उन दोनों को इतना अपनापन हो गया था कि अब वो दोनों उसको प्रोफ़ेशनल रुप में नहीं देख पा रहे थे।

‘मीना एक प्रोफ़ेशनल वुमन है...’ इस बात का बोध वापस आते ही आदित्य को चिंता होने लगी।

थोड़ा एकांत पा कर आदित्य ने जेसन से पूछा,

“जेसन, आपकी कंपनी में क्लाइंट्स से... डेट करने को ले कर कोई पाबंदी तो नहीं है?”

“जी?” जेसन ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, “नहीं! नहीं तो! क्यों? क्या हो गया? आपने ये क्यों पूछा?”

“आप सभी को देर सवेर पता तो चल ही जाएगा - इसलिए अच्छा यही है कि मुझसे आपको पता चले,” आदित्य ने पूरी गंभीरता से कहना शुरू किया, “मेरा भाई... जय, और मीनाक्षी, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे हैं... और हमको भी मीनाक्षी बहुत पसंद है। तो बहुत जल्दी ही ये रिलेशनशिप मैरिज में भी बदल जाएगा... लेकिन मैं नहीं चाहता कि क्लाइंट के साथ मोहब्बत करने, और उससे शादी करने के कारण मीना के कैरियर पर कोई आँच आए!”

“ओह... नहीं नहीं! ऐसा कुछ नहीं है... ऐसा कुछ न सोचिए! हमारे यहाँ ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है... मेरा मतलब, फिलहाल तो नहीं है!” जेसन बोला, फिर थोड़ा ठहर कर बोला, “... वैसे, हमको भी लग रहा था कि जय और मीना एक दूसरे की तरफ़ अट्रक्टेड हैं, लेकिन बात इतनी आगे बढ़ गई है, उसका अंदाज़ा नहीं था।” जेसन हँसते हुए बोला, “वैसे भी दोनों एडल्ट्स हैं, और इसलिए उनके अफेयर पर किसी को कोई ऑब्जेक्शन होना तो नहीं चाहिए... और अगर है भी, तो आई प्रॉमिस यू, मीना पर कोई आँच नहीं आने दूँगा।”

आदित्य ने समझते हुए सर हिलाया।

जेसन बोला, “मीना बहुत अच्छी लड़की है। टीम में लोग उसको पसंद करते हैं... कंपनी में एक दो उसको चाहते भी हैं, क्योंकि वो है ही बहुत लाइकेबल! एक तरह से वो मेरी प्रॉटेजी भी है... मैंने ही उसको रिक्रूट किया था। कंपनी ग्रो कर रही है, और उसमें उसका फ़्यूचर भी है! इसलिए आप निश्चिन्त रहें! उसके ऊपर... उसके कैरियर पर कोई आँच नहीं आएगी!”

“बढ़िया! बढ़िया! थैंक यू जेसन!”

यू आर मोस्ट वेलकम, आदित्य!” जेसन में मुस्कुराते हुए कहा।

लंच बड़े आनंद से बीता।

जाते जाते जय ने मीना के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा, “... आज शाम मिलोगी?”

अचानक ही मीना के मन में प्रोफेशनल माहौल बदल कर रोमांटिक हो गया।

“जय,” उसने शर्माते हुए कहा, “... सब देख रहे हैं!”

“तो क्या?”

“हाँ बाबा... मिलूँगी! ... आज तुम घर आओ! ठीक है?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना मुस्कुराई।

शाम को मिलने का वायदा पा कर जय वैसे ही संतुष्ट हो गया था, लिहाज़ा बाकी का दिन आराम से बीत गया।


*


“जय,” शाम को घर निकलते समय आदित्य ने जय से पूछा, “... मैं तुमको ड्राप कर दूँ? ... मीना के यहाँ?”

“नहीं भैया... मैं चला जाऊँगा! टैक्सी या पब्लिक ट्रांसपोर्ट ले कर...”

आई इंसिस्ट...” आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, “वैसे भी तुमसे एक बात कहनी है...”

“क्या भैया?”

“रास्ते में बताता हूँ न...”

“ओ...के...” जय ने न समझते हुए कहा, “सब ठीक तो है न भैया?”

“अरे सब ठीक है...”

“ठीक है भैया!”

गाड़ी आदित्य ही चला रहा था।

“हाँ भैया... क्या कहना चाहते हैं, आप?”

“जय... बेटा... देख - तू मेरा छोटा भाई ही नहीं, बल्कि बेटे जैसा भी है! ... हाँ, हमारी उम्र में बहुत अंतर नहीं है, लेकिन फिर भी, तुझे मैं बहुत प्यार करता हूँ!”

“हाँ भैया! ... इस बात से मैंने कब इंकार किया?”

“तो तू यह भी समझता है कि अगर मैं कुछ कहूँगा, तो तेरी भलाई के लिए ही...”

“हाँ भैया! पर हुआ क्या है?”

“देख बेटा... मीना बहुत अच्छी है! क्लेयर किसी को ऐसे ही नहीं पसंद करती - और मुझे उसकी पसंद पर भरोसा है...”

जय मुस्कुराया।

“तो... आई ऍम हैप्पी कि तुम दोनों एक दूसरे को पसंद हो!” आदित्य बोला, “... लेकिन आगे कुछ भी करने से पहले सोच लेना...”

“मतलब भैया? मैं कुछ समझा नहीं!”

“तुम दोनों का प्यार बहुत तेजी से परवान चढ़ा है... जाहिर सी बात है कि तुम दोनों की मोहब्बत में एक तरह का... हाऊ टू से दैट... एक तरह का जोश भी है... तो... मेरा मतलब... तुम दोनों के बीच... यू नो... इंटरकोर्स होने का भी बहुत चाँस है!”

“भैया!” जय ने झेंपते हुए कहा।

“भैया नहीं! ... मेरी बात थोड़ा सीरियसली सोचो... कॉल मी ओल्ड फैशन्ड... मेरे लिए यह दो लोगों के बीच एक प्रॉमिस है... कि दोनों उम्र भर एक दूसरे का साथ निभाएँगे... एक दूसरे के साथ संसार बनाएँगे!”

जय शांत हो कर सुन रहा था।

“तो तुम दोनों जब तक सर्टेन न हो, तब तक कुछ न करना। ... बस इतना ही कहना था मुझे।”

“ओह भैया!”

आई ऍम सॉरी अगर मैंने तुमको एम्बैरस किया हो...”

“नहीं भैया... आप ऐसा कुछ कर ही नहीं सकते! ... थैंक यू!”

आदित्य मुस्कुराया, “एन्जॉय यू टू... तुम दोनों बहुत सुन्दर लगते हो साथ में! क्यूट कपल!”

“लव यू भैया!”

लव यू टू माय लिटिल ब्रदर!”


*


“जय!” दरवाज़ा खोलते हुए मीना ने मुस्कुराते हुए कहा।

माय लव!” आदित्य ने भी बड़े रोमांटिक अंदाज़ में कहा।

अपने लिए ‘माय लव’ शब्द सुन कर मीना का दिल धमक ज़रूर गया, लेकिन उसने जय के ऊपर यह बात ज़ाहिर होने नहीं दी। वो बोली,

“आदित्य आया था?”

“हाँ! ... लेकिन केवल मुझे यहाँ छोड़ने!”

“अरे, क्यों! बिना मुझसे मिले क्यों चला गया?”

“अरे यार! पहली बार तुम्हारे घर आया हूँ... कॉफ़ी वोफ़ी पिलाओ! भैया से कल मिल लेना!”

“हा हा! ओके साहब जी!” मीना ने जय को अंदर आने का इशारा किया और दरवाज़ा बंद करते हुए बोली, “पिलाती हूँ... लेकिन कॉफ़ी पियोगे, या चाय? आई मेक वैरी टेस्टी चाय! ... अदरक इलाइची वाली!” उसने आँखें नचाते हुए पूछा।

“अब तुम इतना कह रही हो, तो ठीक है... चाय इट इस...”

“आओ बैठो,”

“बैठ जाएँगे मेरी जान...” जय ने मीना को उसकी कमर से पकड़ते हुए कहा, “लेकिन पहले अपना अधर-रस पान तो करने दो...”

“हैं? क्या करने दो?” मीना ने न समझते हुए कहा।

“मेरा मतलब किस...” जय उसके बहुत क़रीब आते हुए बोला, “पूरा दिन निकल गया, लेकिन एक भी किस नहीं मिली!”

“हा हा... ओह गॉड! कभी कभी कितनी टफ भाषा यूज़ करते हो... फिर से बताओ?” मीना बड़े प्यार से जय की बाहों में आती हुई बोली।

जय ने उसको आलिंगन में भरते हुए उसके होंठों को चूमा, और बोला, “अधर... मतलब लिप्स...”

“हम्म्म,” मीना आँखें बंद करती हुई, उस चुम्बन का आनंद लेती हुई, मुस्कुरा दी।

“रस... मतलब नेक्टर...”

जय ने फिर से मीना के होंठों को चूमा।

“और पान मतलब...”

“ओह आई नो... पान मतलब बीटल लीफ... वो क्या कहते हैं? हाँ, पान की गिलौरी? राइट?”

“हा हा हा, ऑलमोस्ट ऑलमोस्ट...” जय ने फिर से उसको चूमा, “लेकिन यहाँ पान का मतलब है... टू ड्रिंक...”

“ओओहहह...” मीना ने चुम्बनों के बीच में समझते हुए कहा, “अब समझी... एंड दैट्स व्हाई इट मीन्स अ किस...”

इनडीड माय लव...”

मीना जय की जाँघों पर, जाँघों के इधर उधर पैर रख कर बैठ गई थी, और पूरे जोश से चुम्बन में जय का साथ दे रही थी। जो एहसास उस समय जय को हुआ, वो उसको पहले कभी भी नहीं हुआ था। मतलब ऐसा नहीं है कि उसका लिंगोत्थान कभी हुआ ही नहीं - हमेशा होता, हर दिन/रात होता, और कई कई बार होता! लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि मीना का भार उसकी जाँघों और श्रोणि पर होने के बावज़ूद उसको बेहद कठोर लिंगोत्थान हो रहा था! बेहद कठोर! ऐसा हो ही नहीं सकता कि मीना को पता न चला हो।

लेकिन दोनों चुप थे, लेकिन फिर भी कमरे में शोर हो रहा था। शोर था दोनों के चुम्बन का! पहले भी दोनों ने एक दूसरे को चूमा था - लेकिन आज चुम्बन में दोनों को एक अलग ही रस आ रहा था। दोनों का चुम्बन कभी निमित्तक बन जाता, तो कभी घट्टितक! मीना कभी कोमलता से जय के होंठों पर अपने होंठ रख देती कि वो अपनी मनमानी कर सके, तो कभी उसके होंठों को अपने होंठों में ले कर चूमती!

जय का कठोर होता हुआ लिंग अब अपने कठोरतम स्तर पर था। उसको महसूस कर के मीना की साँसें अस्थिर हो रही थीं। जय को ले कर अपने मन में होने वाली ऊष्णता का ज्ञान था उसको, लेकिन अब उसको जय की भी हालत का पता चल गया था। वो भी उसके लिए उतना ही उद्धत था! ठीक है कि उसको सेक्स को ले कर जय से कहीं अधिक अनुभव था, लेकिन जय के साथ अंतरंग होने, उसके साथ सेक्स करने की भावना ने उसको अभिभूत कर दिया। जब सम्भोग की भावना में शुद्ध प्रेम की भावना भी सम्मिलित हो जाए, तो उससे बलवती शक्ति शायद ही कोई हो संसार में! लेकिन मन के किसी कोने में से आवाज़ भी आई कि सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है, सम्हल जा! थोड़ा संयम से काम ले!

अचानक ही विशुद्ध भावनाओं पर विवेक हावी होने लगा। और शायद इसी कारण वो चुम्बन तोड़ कर जय की गोदी में से उठने की कोशिश करने लगी।

जय ने उसको प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं। जय की हालत भी कमोवेश वैसी ही थी।

“कॉफ़ी...” उसने बुदबुदाते हुए कहा।

“चाय...” जय ने उसकी बात को सुधारते हुए कहा।

“अ...हहाँ...” मीना को ध्यान आया कि चाय बनाने की पेशकश तो उसी ने करी थी, और वो खुद ही भूल गई!

अपनी इस क्यूट सी हरकत पर उसको खुद ही हँसी आ गई, लेकिन हँसी केवल मुस्कान के रूप में ही बाहर आई।

“चाय... बनाती हूँ!” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “... बैठो?”

*
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
आदित्य ने जय को बड़े भाई की तरह समझाया है हमारे संस्कार शादी से पहले सेक्स की अनुमति नहीं देते हैं लेकिन मीना और जय के बीच जो किस शुरू हुआ है उससे आदित्य की सीख धरी रह जाती लेकिन दोनो संभल गए हैं देखते हैं आगे क्या होता है
 

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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


*
Awesome update
 

Sanju@

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Update #24


“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”

यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।

उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।

“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”

“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”

“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”

“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”

“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”

“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”

“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”

“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”

“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”

“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”

“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”

“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”

“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”

“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”

“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”

सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।

दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!

धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह

र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।

हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।

“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”

“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।

“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”

सुहासिनी फिर से लजा गई।



*


मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!

“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”

“हा हा...”

नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”

“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।

“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”

“ठीक है... एन्जॉय देन!”

“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”

हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”

“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”

“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।

“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”

“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”

“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”

व्ही विल डू समथिंग!”

“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।

‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।

“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”

“अरे! मैं क्यों?”

“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”

“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”

“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”

“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”

“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”

“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”

“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”

“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”

“हो सकते हैं!”

“हा हा हा!”

बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,

“क्लेयर, हाय!”

“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”

“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।

“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”

“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”

“हाँ बोलो?”

“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”

“ओह मीना! आर यू श्योर?”

“हाँ! ... पक्की बात!”

“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”

यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।

*
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
एक ओर मीना और जय दूसरी ओर सुहासिनी और हर्ष का प्यार परवान चढ़ रहा है दोनो के रिश्ते को परिवार से सहमति मिल गई है दोनो परिवार में ढेर सारी खुशियां आई है कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Update #34


जब प्रियम्बदा ने हरीश को सुहासिनी के बारे में बताया, तो वो भी चिंतित हो गया।

“हमको कुछ तो करना ही चाहिए,” प्रियम्बदा ने कहा - इस उम्मीद में कि उसका पति ही कोई मार्ग दिखायेगा।

“करना तो चाहिए...” हरिश्चंद्र सोच में पड़ गया।

जब वो कुछ देर तक कुछ नहीं बोला, तो प्रियम्बदा से रहा नहीं गया,

“सुहासिनी इस परिवार की धरोहर है... उसकी संतान भी...”

“प्रिया... हम आपकी बात मानते हैं। ... सुहास और हर्ष की संतान इस परिवार की धरोहर है। ... किन्तु...”

“किन्तु?”

“किन्तु वो नहीं!”

“हरीश!” प्रियम्बदा को यकीन ही नहीं हुआ कि उसका पति ऐसी बात बोल भी सकता है।

“आप हमको गलत मत मानिए, प्रिया!” उसने प्रिया को समझाते हुए कहा, “वो बहुत छोटी है अभी... पूरा जीवन पड़ा है उसके सामने... आप ही सोचिए... खेलने कूदने की उम्र में उस पर माँ बनने का बोझ डालना... ये तो अन्याय है!”

“आप कहना क्या चाहते हैं!” अनजान आशंका से प्रिया का दिल घबरा गया, “कहीं आप गर्भ...”

“प्रिया...” हरीश ने अनकहा हुआ सुन लिया, “आप हमको इतना ग़लत समझती हैं?”

“नहीं हरीश... किन्तु हमने हर्ष को वचन दिया था...”

“वचन? कैसा वचन?”

“हमने हर्ष से कहा था कि उसकी अनुपस्थिति में हम सुहास की देखभाल अपनी पुत्री के समान ही करेंगे...”

प्रिया की बात सुन कर हरीश सोच में पड़ गया। प्रिया भी देख रही थी कि हरीश कुछ गंभीर उपाय सोच रहे हैं, इसलिए उसने उसको टोका नहीं।

कोई पाँच मिनट सोचने के बाद हरीश बोला, “प्रिया... हमारी राजनीतिक स्थिति थोड़ी गंभीर है...”

प्रिया कुछ कहने को हुई कि हरीश ने हाथ उठा कर उसको चुप रहने का संकेत किया।

“सरकार हम पर नज़र रखे हुए है, और सरकार के साथ हमारे शत्रु भी! ... हम इस समय कमज़ोर हैं... और हमारे सभी अशुभचिन्तक इसी ताक में हैं कि कब हमसे कोई गलती हो, और कब वो हम पर घात लगा कर हमला कर दें!”

एक गहरी साँस ले कर वो बोला, “... प्रिया, आप समझने का प्रयास कीजिए... यह हमारी पारिवारिक समस्या है, लेकिन राजनीतिक समस्या भी उतनी ही गम्भीर है... यह मसला इतनी तेजी से उछल सकता है कि हमारी साख़ जो अभी तक निष्कलंक है है प्रजा की नज़र में, वो सब मटियामेट हो जाएगी... हमको प्रजा का साथ चाहिए इस समय। नहीं तो सब कुछ बिखर जाएगा। ... इसलिए बहुत सोच कर ही कुछ करना होगा।”

“हाँ... लेकिन कोई उपाय तो होगा?”

“हाँ... है! ... आप अपने वचन का पालन कीजिए... सुहासिनी को सम्हालिए... अवश्य सम्हालिए... किन्तु सम्मुख रूप से नहीं। ... आपका... हमारा नाम... इस राजपरिवार का नाम... कहीं नहीं आना चाहिए!”

“किन्तु...”

“और यह करने का उपाय भी है... गौरीशंकर जी और सुहासिनी को महाराजपुर से कहीं दूर भेज देते हैं। ... किसी ऐसी जगह, जहाँ सुहास को ढंग की मेडिकल केयर मिल सके। उसकी पढ़ाई का नुकसान न हो - इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए हमको! ... प्राइवेट कैपेसिटी में वो एक्साम्स दे सकती है। ... बेबी होने के बाद, हम उसको अपने पास रखेंगे! ... हमारा ये बेटा हमारे साथ पलना चाहिए!”

“बेटा?”

“हाँ! बेटा...”

“आपको कैसे पता?”

“प्रिया... क्या आप हमारे परिवार पर लगे श्राप को भूल गई हैं?”

“नहीं... भूले तो नहीं... लेकिन उन दोनों का विवाह कहाँ हुआ है?”

“प्रिया... आप भी न! ... खून तो हमारा ही है न! ... श्राप हमारे खून पर लगा है!”

हरीश ने प्रिया को समझाया, “... तो, जैसा कि हम कह रहे थे, गौरीशंकर जी और सुहास की पूरी देखभाल करी जायेगी... उसकी पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखा जाएगा... उनका पूरा ध्यान रखा जाएगा! ... लेकिन हमारा राजकुमार हमको चाहिए। ... सुहास... उसको जो भी मेडिकल हेल्प लगे, सब दी जाएगी! ... उसका कैरियर बनाया जाए... शादी कराई जाय...”

प्रिया ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके मन में अच्छा तो नहीं लग रहा था, लेकिन उसके पति की बातें सही थीं।

सुहासिनी बहुत छोटी थी, और मातृत्व का दायित्व उठाने वाली हालत नहीं थी उसकी। और अगर महाराजपुर की प्रजा जान गई कि उनके चहेते राजकुमार हर्षवर्द्धन के कारण सुहासिनी की यह दशा हुई है, तो बहुत संभव था, सामाजिक उपद्रव भी मच जाता। इसलिए यही उपाय ठीक लग रहा था।

“हम गौरीशंकर काका से बात करते हैं!”

हरीश ने समझते हुए, हमदर्दी से सर हिलाया।



*


“क्यों रे... बदमाश लड़के!” माँ ने फ़ोन पर, जय को बड़े प्यार से डाँटते हुए कहा, “बिना अपनी माँ के ही शादी कर ली तूने?”

“माँ, आई ऍम सॉरी...”

“अरे, मैं तो यूँ ही कह रही हूँ! ... बहुत अच्छा किया! ... मैंने ही बहू से कहा था कि अगर पॉसिबल हो तो तुम दोनों की शादी आज ही हो जाए... सो, सरप्राइज़!” माँ ने आखिरी शब्द पर ज़ोर दे कर हँसते हुए कहा।

“व्हाट! ... माँ! इतना बड़ा खेल खेला आपने और भाभी ने! ... अब बताइये... बदमाश मैं हूँ, या आप!”

“मुझे लगा कि तुझे और तेरी मैडम को अच्छा लगा शादी कर के! ... लेकिन लगता है कि तू खुश नहीं...”

माँ! ... यू आर नॉट प्लेइंग फेयर...” जय ने हँसते हुए शिकायत करी, फिर बोला, “आई लव यू सो मच माँ!”

“आई लव यू टू बेटा...”

“लेकिन माँ, आपने भाभी से ऐसा करने को क्यों कहा?”

“बेटे, तुझको तो पता ही है कि आज कल देश में माहौल सही नहीं है। ... इसलिए मैं नहीं चाहती कि तुम लोग फ्लाइट वगैरह लो! ... कहीं कुछ हो गया तो!”

“माँ! क्या होगा? ... वैसे भी, इंटरनेशनल फ्लाइट को कोई भी कुछ नहीं कर सकता!”

“अच्छा चल चल... ये सब बातें अब बस! ... ये बता, बहू खुश है?”

“भाभी तो सुपर...” जय ने कहना शुरू किया।

लेकिन माँ ने बीच में ही काट कर कहा, “अरे भाभी के बच्चे, मैं बहू की बात कर रही हूँ... मेरी छोटी बहू... तेरी नई नवेली बीवी, मीनाक्षी की!”

“ओह, हाँ माँ! वो भी बहुत खुश है!”

“बहुत अच्छी बात है रे! ... उसका खूब ध्यान रखना!”

“माँ... काश आप उससे मिल पातीं!” जय बोला, “... आई फ़ील सो बैड!”

“अरे मेरा बच्चा... ऐसे मत सोच! ... मेरा आशीर्वाद है तुम्हारी शादी के पीछे! ... इसलिए ऐसा वैसा मत सोचो!” माँ ने उसको समझाया, “... अब चल, बहू को फ़ोन दे! ... उससे थोड़ा बतिया लूँ, फिर शांति से दिन बिताऊँ अपना!”

“जी माँ! अभी लीजिए...” कह कर जय ने फ़ोन मीना को पकड़ा दिया।

“माँ,” मीना ने जय और माँ की बातें सुन ली थीं और अब जान गई थी कि माँ की अनुमति से ही उन दोनों की शादी हुई है, “... हमको माफ़ कर दीजिये...”

“मेरी बेटी... मेरी पूता... तू तो अब हमारे परिवार का हिस्सा है! ... इस नए जीवन की शुरुवात आनंद से कर तू... बिना किसी दुःख के, बिना किसी पछतावे के...”

“लेकिन माँ, बिना आपके आशीर्वाद के...”

“अरे, कहाँ मेरे आशीर्वाद के बिना? ... मैंने ही क्लेयर से कहा था कि आज कल यहाँ माहौल ठीक नहीं है, इसलिए अगर हो सके, तो तुम दोनों की शादी वहीं करवा दे! ... जब भी तुम दोनों का यहाँ इंडिया आने का मौका बनेगा न, यहाँ तुम दोनों की शादी करवा दूँगी! ठीक है?”

“पर माँ...”

“मेरी बच्चा, तू खुश रह बस! ... आदित्य और क्लेयर बेटे ने बहुत कुछ बताया है तेरे बारे में! ... मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तू मेरे बेटे को सम्हालेगी! ... वो प्यार का भूखा है, उसको खूब प्यार देना!”

“हाँ माँ!”

“बहुत अच्छा बेटे, बहुत अच्छा... तू आराम कर अब! ... और हाँ, रोज़ बातें करना मुझसे! ... बिना अपने बच्चों से बातें किए मेरा मन चैन से नहीं रह पाता!”

“जी माँ! रोज़ बिना आपसे बातें किए मैं भी नहीं सोऊँगी!” मीना ने बड़े आनंद से कहा, “... इतने सालों बाद मुझे परिवार का प्यार मिला है... अब मैं इसको नहीं छोड़ सकती!”

“लव यू बेटे,”

“लव यू सो मच, माँ!”

*

Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas The_InnoCent kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh -- भाईयों, नया अपडेट है!
 

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कुछ लिख लेता हूँ
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
मीना को प्यार में मिली नाकामी की वजह से उसके मन मे अभी तक डर है इस रिश्ते को लेकर उसको लगता है कि कही उसकी वजह से ये रिश्ता भी ना टूट जाए लगता है मीना को अब जय से सच्चा वाला प्यार हो गया है और दोनो का प्यार परवान चढ़ रहा है जय मीना को मां से मिलाने की बात कहता है इसके लिए क्लेयर भी राजी है देखते हैं अब मां क्या कहती है इस रिश्ते के लिए ??

Amazing update
प्रियम्बदा ने महाराजा घनश्याम सिंह को कुमार और सुहासिनी के बारे में बताया महाराज ने इस रिश्ते को स्वीकार भी कर लिया है महाराज घनश्याम सिंह के विचार बहुत ही उत्तम है उनके लिए ऊंच नीच हैशियत कोई मायने नहीं रखती हैं।

बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
आदित्य ने जय को बड़े भाई की तरह समझाया है हमारे संस्कार शादी से पहले सेक्स की अनुमति नहीं देते हैं लेकिन मीना और जय के बीच जो किस शुरू हुआ है उससे आदित्य की सीख धरी रह जाती लेकिन दोनो संभल गए हैं देखते हैं आगे क्या होता है

Awesome update

बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
एक ओर मीना और जय दूसरी ओर सुहासिनी और हर्ष का प्यार परवान चढ़ रहा है दोनो के रिश्ते को परिवार से सहमति मिल गई है दोनो परिवार में ढेर सारी खुशियां आई है कहीं कोई अनहोनी ना हो जाए

धन्यवाद संजू भाई!
आपने तेजी से कहानी पढ़नी शुरू कर दी है, लेकिन कहानी उतनी ही तेजी से आगे बढ़ रही है :)
इसलिए... जल्दी से ये सारे अपडेट्स भी पढ़ डालिये :)
 
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