Update #52
जय ने बिना कोई समय गंवाए, अधीरतापूर्वक मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया, और तत्परता से चूसने लगा।
कोई पाँच सात क्षणों में चूचक के सिरे से थोड़ा मीठा सा स्वाद लिया हुआ दूध निकलने लगा। जब जय, मीना को अपने बच्चे की माँ, और अपनी पत्नी के रूप में ही देखता था, तब उसको उसका दूध केवल स्वादिष्ट लगता था। लेकिन आज, जब उसको मीना की एक अलग पहचान का भी मालूम था, तब उसको उसके दूध का स्वाद निराला लग रहा था - लगभग अमृत समान! यह दूध आज उसकी आत्मा को तृप्त कर रहा था। आज मीना के स्तन से उसको पोषण मिल रहा था! लिहाज़ा, उसके मन में अपराधबोध किंचित मात्र भी नहीं था। मनोविज्ञान के खेल बड़े अनोखे होते हैं!
मीना के मन में एक अनजान आशंका तो थी। अगर माँ ने उसको सब बता दिया है, तो बहुत अधिक संभव है कि वो जय को भी सब बता देंगीं। उससे कुछ भी छुपा कर रखना - मतलब उसके साथ छल करना! संबंधों की नींव सच्चाई पर हो, तो ही अच्छा। जय और मीना के बीच की पहली सच्चाई उनका प्रेम था। उसी के कारण मीना ने जय को अपने पूर्व के प्रेम-संबंधों के बारे में सब कुछ सच्चाई-पूर्वक बता दिया था। वो किसी अपराध-बोध के साथ जय के साथ अपना भविष्य नहीं बनाना चाहती थी। लेकिन कल रात वो जय से कुछ कह पाने में अपने आप को पूरी तरह से असमर्थ पा रही थी। शायद वो खुद भी अपने आप को दिलासा देना चाह रही थी कि माँ की बताई हुई सच्चाई, उनकी सच्चाई नहीं है। उसने जिसको अपना वर माना, जिसको अपनी आत्मा का भी स्वामी मान लिया, अब वो उसके साथ अपना सम्बन्ध परिवर्तित नहीं कर सकती थी।
वो लाखों कोशिशों के बाद भी जय को अपने पुत्र के रूप में नहीं देख पा रही थी। उसके लिए यह संभव ही नहीं हो रहा था। लेकिन एक समय पर उसको जय को सब कुछ सच सच बताना ही होगा न! लेकिन जय की अभी की चेष्टा देख कर उसको अनुमान हो गया कि माँ ने उसको सब कुछ बता दिया है। एक तरह से मीना के हृदय से एक भारी बोझ उतर गया था। कम से कम अब, उन दोनों के लिए इस बात पर चर्चा कर पाना आसान हो गया था। शायद बहुत कठिन हो इस विषय पर बात करना - लेकिन करना तो पड़ेगा! दोनों का भविष्य जो इस बात पर निर्भर करता है।
मीना इतना तो समझ ही रही थी कि अनकहे ही सही, जय ‘अपनी माँ’ का दूध पीना चाहता था। इसलिए उसने जय को दिलासा दिया और स्तनपान करने को उकसाया। अगर उसके अख़्तियार में कुछ था, तो जय की कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती - यह उसने बहुत पहले ही सोच लिया था। तो अगर जय उसका स्तनपान करना चाहता था, मीना उसकी यह इच्छा ज़रूर पूरी करेगी। लिहाज़ा, जय बड़ी फुर्सत से स्तनपान करता रहा। उसको न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना के स्तन में बहुत दूध था। मीना को भी अलग सा अनुभव हो रहा था - हाँ, जब चित्रा स्तनपान करती, तो कम दूध निकलता... लेकिन जय के हर चूषण में अधिक निकलता हुआ महसूस हो रहा था। वो खुश थी कि जय स्तनपान कर के प्रसन्न और संतुष्ट था। खैर, जब एक स्तन खाली हो गया तो भी जय का न तो पेट ही भरा और न ही मन। मीना इस बात को समझ चुकी थी। इसलिए एक स्तन खाली होते ही उसने जय को अपने दूसरे स्तन से सटा दिया। कुछ समय बाद दूसरा स्तन भी खाली हो गया।
न चाहते हुए भी जय को मीना के स्तनों से हटना पड़ा।
“मन भरा मेरे राजकुमार का?” मीना ने बड़े लाड़ से पूछा।
जय ने शरारत से मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।
“हा हा,” मीना खिलखिला कर हँस दी, “... कोई बात नहीं, दो घण्टे में फिर से ट्राई करिएगा... और मिलेगा!”
जय मुस्कुरा दिया।
“लेकिन हम तो थक गए, यूँ बैठे बैठे...” मीना ने आलस से अँगड़ाई भरते हुए कहा, “... थोड़ा लेट जाऊँ?”
अँगड़ाई भरते ही मीना के स्तन बड़े ही लुभावने अंदाज़ में ऊपर उठ गए। एक गज़ब का युवा दृढ़ता थी उसके स्तनों में। पिलपिले स्तन नहीं थे - फर्म, लज़्ज़तदार! सेक्सी!
लेकिन न जाने क्यों इस बात का जय पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।
वो बोला, “आपको मुझ से इजाज़त लेने की ज़रुरत नहीं... आप तो खुद ही हमारी सब कुछ हैं... मालकिन हैं...”
“ओ हो हो हो... मालकिन! ... हा हा... हम आपकी मालकिन हैं?” मीना ने बिस्तर पर लेटते हुए कहा।
“आप तो सब कुछ हैं मेरी...”
“सब कुछ?”
“सब कुछ!”
“पक्की बात?”
“पक्की बात...” जय मुस्कुराते हुए बोला।
“तो फिर... मेरे राजकुमार जी, टेल मी... व्हाट इस एलिंग यू (आपको कौन सी बात परेशान कर रही है)?” मीना ने इस बार स्पष्ट बात बोली।
जय कुछ देर चुप रहा।
“जय...?” मीना ने फिर से कहा।
“मीना... अभी... कुछ देर पहले... माँ से बात हुई...” उसने हिचकते हुए कहा।
मीना चुप ही रही... वो जानती थी कि माँ ने क्या बताया होगा उसको।
“उन्होंने... उन्होंने... बताया...”
कह कर जय चुप हो गया।
मीना ने कुछ क्षण इंतज़ार किया, लेकिन जब जय आगे कुछ न बोला, तो उसने कुरेदा,
“क्या?”
“यही... कि... हम दोनों... हम दोनों...” जय कह न सका... और उसने नज़रें झुका लीं।
मीना को लगा कि बात की बागडोर हाथ में लेने का समय आ ही गया है। चूँकि जय उम्र में उससे छोटा है, इसलिए शायद वो इस बात को उचित परिपक्वता से सम्हाल न सके।
“जय... मेरे जय...” मीना बोली, “मेरी तरफ़ देखो...”
जय ने झिझकते हुए मीना की तरफ़ देखा।
“मेरे एक सवाल का सीधा सीधा जवाब देना। ... ठीक है?”
जय ने उसकी तरफ़ देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तुम मुझे कैसे देखते हो... अपनी बीवी के जैसे, या फ़िर अपनी माँ के...”
जय अपना उत्तर देने में एक पल भी नहीं रुका, “... ऑब्वियस्ली अपनी बीवी के जैसे...”
“तो फ़िर हम इस बारे में बात भी क्यों कर रहे हैं?” मीना बोली, “माँ यह बात हमसे छुपा नहीं सकती थीं... माँ को लगा कि यह उनका फ़र्ज़ है कि हमको इस सच्चाई से अवगत कराएँ... इसलिए उन्होंने हमसे कुछ नहीं छुपाया। हाँ, यह ज़रूर है कि उन्होंने हमको देर में सब बताया... अगर वो पहले ये बात बता देतीं, तो शायद हमारा अंज़ाम कुछ अलग होता। लेकिन...” कह कर वो थोड़ा रुकी, “... लेकिन अब... ये हम दोनों पर है कि हम इस बात को अपनी लाइफ में कितनी तवज्जो देते हैं।”
“लेकिन मीना...”
“जय... मैं... तुम... तुम मुझसे बने हो, यह सच है! मैं इस बात से इंकार नहीं करूँगी... लेकिन मुझे उस बात की कोई याद ही नहीं है! ... हाँ... कल के बाद से मुझे राजकुमार जी... मतलब, तुम्हारे पिता जी की याद वापस आ गई है... लेकिन... न तो मुझे प्रेग्नेंसी की याद है, न ही लेबर की, और न ही अपने माँ बनने की!”
जय सुन रहा था... चुपचाप।
“मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी मैंने तुमको अपनी गोद में लिया हो... ऐसे में तुम्हारे लिए मेरे मन में माँ वाली फ़ीलिंग्स कैसे आ सकती हैं?” मीना ने समझाते हुए पूछा, “हाँ... तुमको ले कर जो यादें हैं, वो हैं तुमसे मिलने की यादें... हमारी यादें... जब तुमने मुझको पहली बार छुआ था एस माय लव... वो यादें... जब... जब तुमने और मैंने पहली बार...” कहते कहते वो थोड़ा रुकी, “... तो हमारी सच्चाई ये ही है... तुम मेरे हस्बैंड हो... मेरा प्यार... मेरी बेटी के पापा! और... हमारे होने वाले बच्चों के पापा!” मीना मुस्कुराती हुई बोली, “मेरे अलावा किसी और से बच्चे करने का सोचा भी न तो देख लेना...”
मीना हँसने लगी, और उसके साथ जय भी, “... तो ये है हमारा सच! ... जो माँ ने बताया... वो उस तरह का सच है जिसका हम पर... हमारे फ्यूचर पर कोई असर नहीं होगा...”
“सच में मीना?” जय ने पूछा - जैसे वो उससे दिलासा लेना चाहता हो, “सच में कोई असर नहीं होगा न?”
“बिल्कुल भी नहीं होगा! ... आई लव यू टू मच टू गिव अप ऑन आवर फ्यूचर टुगेदर...”
“ओह थैंक यू सो मच मीना...”
“थैंक यू?”
“सॉरी...” जय मुस्कुराते हुए बोला।
“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?”
“नहीं नहीं!” फिर मुस्कुराते हुए, “... आई लव यू मीना!”
“यू बेटर! ... बीवी को ‘बेटर हॉफ’ यूँ ही नहीं कहते हैं!”
“हा हा! ... बट यू आर माय बेटर हॉफ!”
मीना उसकी बात पर पहले तो हँसी, फिर अचानक से जय को उसके होंठों पर चूमने लगी।
“आई लव यू! ... थैंक यू फॉर बीईंग माय हस्बैंड!”
“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?” जय ने मीना की ही कही गई बात दोहरा दी।
“सम टाइम्स” मीना हँसने लगी।
माहौल को भारी करने वाली बातें यूँ ही आई-गई हो गईं।
“मेरी जान?” जय कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए बोला।
“जी?”
“तुमसे एक बात करनी थी...”
“अरे तो इसमें इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रुरत है... कहिए न! ... आप मेरे हस्बैंड हैं... आपकी मैं उसी तरह से इज़्ज़त करती हूँ! आपको कभी भी मुझसे फॉर्मल होने की ज़रुरत नहीं... आप हुकुम करिए, मेरे हुकुम!” मीना ने हँसते हुए कहा।
“आज माँ से बात करते हुए मैंने उनसे एक प्रॉमिस जैसा कर दिया...”
“ओके!” मीना ने उत्सुकतावश पूछा, “क्या प्रॉमिस किया आपने?”
“मैंने उनसे कह दिया कि मैं और मीना यहीं, महाराजपुर में सेटल हो जाने का सोच रहे हैं!”
“सच में?”
“हाँ!”
“दिस इस सच अ ग्रेट थॉट!” वो चहकती हुई बोली, “आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”
“सच में! यू थिंक सो?”
“और नहीं तो क्या! ... आपने बहुत अच्छा किया माँ से ये प्रॉमिस कर के!”
“आर यू श्योर? तुम्हारा काम... कैरियर...?”
“अरे... मेरी जान... मेरा काम, मेरा कैरियर सब इसी परिवार से ही तो है! ... इतना बढ़िया बिज़नेस है हमारा... यहाँ से भी सम्हाल सकते हैं न बहुत कुछ? आदि और क्लेयर वहाँ हैं... लेकिन, यहाँ इण्डिया का बंदोबस्त भी देखने वाला कोई होना चाहिए न? ... तो आप हम हैं न?”
मीना मुस्कुराते हुए बोली, “... लेकिन सबसे बड़ी बात, जो मेरे खुद के मन में थी... वो यह है कि माँ को देखने वाला कोई चाहिए न... उनके साथ होने वाला कोई चाहिए न? हम उनके बच्चे हैं... अगर हम नहीं करेंगे, तो किसके भरोसे छोड़ देंगे उनको?”
“यू आर सच अ लवली पर्सन मीना...”
“ऑलवेज रिमेम्बर दिस...” मीना ने हँसते हुए उसको छेड़ा।
“ऑलवेज! ... तो मैंने माँ को प्रॉमिस कर के कुछ गड़बड़ नहीं किया!”
“बिल्कुल भी नहीं... बल्कि आपने बहुत अच्छा किया माँ से प्रॉमिस कर के! ... मैं हूँ न! मैं उनकी सेवा करूँगी! ... मुझे नहीं जाना उस डेड सिटी में रहने! ... मुझे यहाँ रहना है... अपनों के साथ! अपनी माँ के साथ... अपने हस्बैंड के साथ... अपने बच्चों के साथ! माँ को बहुत अच्छा लगेगा... वो अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन के संग रहेंगीं, तो जल्दी से और अच्छी हो जायेंगीं!”
“ओह मीना! आई लव यू! आई लव यू! ... थैंक यू सो मच!”
“अब आपने फिर से ‘थैंक यू’ कहा न, तो आपको थप्पड़ लगाऊँगी...”
“अरे! ये क्या!! ... बस अभी दो सेकंड पहले तो कह रही थीं कि मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ... और अभी थप्पड़ लगाने की बात कर रही हैं!”
“इज़्ज़त आपकी बीवी बन कर करती हूँ, और थप्पड़ लगाऊँगी आपकी माँ बन कर...” यह बात कहते कहते खुद मीना ही शरमा गई।
“हा हा हा...” जय ठहाके मार कर हँसने लगा, “अब ऐसा होगा हमारे साथ?”
“हाँ!” मीना ने इठलाते हुए कहा - लेकिन उसके बोलने में शरम अभी भी थी, “हम आपकी माँ हैं... ये बात भूलिएगा नहीं!”
“अच्छा... नहीं भूलेंगे! लेकिन, जो इस समय मेरे सामने है, वो कौन है?”
“आपकी बीवी...”
“हम्म्म... और... कुछ देर पहले मैंने दूध किसका पिया?” जय ने दबी आवाज़ में पूछा।
“अपनी माँ का...” मीना ने भी दबी आवाज़ में कहा।
उसके गाल लाल हो गए शर्म से! यह सब बहुत अपरिचित सा था... वर्जना से पूर्ण! अनोखा!
“मीना... कभी कभी... बस, कभी कभी अगर मैं आपका बेटा बनना चाहूँ, तो आपको कोई प्रॉब्लम होगी?”
“कोई प्रॉब्लम नहीं होगी... तुमको जिस रूप में मेरा प्यार चाहिए, वो तुमको मिलेगा!” मीना ने कोमलता से कहा।
“दैट्स लाइक माय गर्ल... आई लव यू,” जय मुस्कुराते हुए, और मीना की साड़ी को उसके पेटीकोट के खींच कर निकालते हुए आगे बोला, “... अच्छा बताओ, इस समय मैं नंगा किसको कर रहा हूँ?”
दोनों का खेल अभी भी जारी था।
उसकी हरकत पर मीना की आवाज़ काँप गई, “अ... अपनी... बीवी... को...”
“हम्म्म... अपनी माँ को नहीं?”
“उम् हम्म...” उसने ‘न’ में सर हिलाया, “... आपको अपनी माँ के साथ ये सब करना है?”
“शायद...”
जय ने मीना का वस्त्र-हरण जारी रखा।
“हम्म...”
उसकी पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए उसने पूछा, “और... इस पेटीकोट के हटने पर मुझे किसकी चूत मिलेगी?”
“धत्त... गंदे बच्चे!”
“अरे बोलो न...” जय ने मीना का पेटीकोट उतारते हुए कहा।
“नहीं बताती... जाओ!”
“अरे! बोलो न!?”
मीना ने नकली गुस्से में कहा, “छीः... दो दिनों में ही आप गड़बड़ हो गए हैं!”
“मेरी जान... इसमें क्या गड़बड़ है? तुमसे नहीं, तो और किससे ऐसी बातें करूँगा?” जय ने भी मीना के ही अंदाज़ में कहा, “... तुम न बिल्कुल स्पॉइल स्पोर्ट हो... बोलो न!” और उसको उकसाया।
वो वापस बहुत उत्तेजित हो गया था। माँ के दिए गए नए संज्ञान से संशय के बादल हट गए थे। मीना का साथ उसके जीवन में हमेशा बना रहेगा - इस बात के ज्ञान से उसके अंदर एक नया उत्साह भर गया था।
“मार खाओगे तुम...” मीना बोली।
लेकिन जय इस खेल को रोकने वाला नहीं था। मीना की योनि के होंठों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए उसने उसको फिर से छेड़ा, “... बोलो न यार... किसकी चूत है ये?”
“आअह्ह्ह... आपकी माँ की, हुकुम! आपकी माँ की...”
मीना के यह कह देने मात्र से जय की उत्तेजना अपने शिखर पर पहुँच गई। ऐसे वर्जनीय सम्बन्ध के साकार होने की सम्भावना से उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से कठोर हो गया।
“तो आज माँ बेटे का मिलन हो जाए?”
“हो जाए मेरे जय!” मीना ने शरमाते हुए, लेकिन शरारत से कहा, “... हो जाए...!”
“अहा! हम खुश हुए...” कह कर उसने तेजी से अपने शरीर से कपड़े नोचने शुरू कर दिए।
जब दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए, तो जय बोला, “इतने बड़े राजमहल में केवल एक नन्ही चित्रा काफ़ी नहीं है, माँ...”
“तो मैं हूँ न,” मीना भी उत्तेजना से हाँफती हुई बोली, “... मैंने तुमसे वायदा किया था न... जितने कहोगे, उतने बच्चे दूँगी तुमको!”
“ऐसे नहीं,” उसकी योनि पर अपना लिंग व्यवस्थित करते हुए जय ने आग्रह किया, “... वैसे कहो, जैसे माँ अपने बेटे से प्रॉमिस करती है...”
शायद सभी वर्जनाओं को तोड़ कर एक हो जाना ही पति-पत्नी का कर्म होता है। मीना भी समझ गई थी कि जय आज उसके मुँह से बिना उन वर्जनाओं के टूटने की बात सुने, उसके साथ आत्मसात नहीं होने वाला। उसने वायदा भी तो किया था न!
“मेरे लाल, मेरे बेटे,” मीना ने उत्तेजना से टूटी हुई आवाज़ में कहा, “मैं दूँगी तुझे... जितने बच्चे चाहेगा तू... उतने बच्चे दूँगी मैं तुझे, मेरे लाल... ये राजमहल मैं तेरे नन्हे मुन्नों से भर दूँगी...”
मीना की बात पर जय के होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई।
“थैंक यू, माँ!” कह कर उसने बलपूर्वक धक्का लगा दिया।
अगले करीब पौन घटिका तक दोनों के बीच काम-युद्ध चलता रहा, फिर दोनों निढाल हो कर एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर कुछ समय के लिए सो गए।
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