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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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park

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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*
Nice and superb update....
 
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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*
Nice update....
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*

Dono hi updates behad shandar he avsji Bhai,

Aakhir Priyadamba bhi khush ho gayi jay aur mina dono ek pati patni ki tarah hi behave kar rahe he..................mina ki matureness ne jay ke sath is rishte ko swikar kar hi liya..............

Ab next week dono ki shadi hone wali he............mina ko shayad abhi bhi yah dar sata raha he ki use yani suhasini ko koi pehchan na le............lekin iske chances bilkul neglible he.......

Keep posting Bhai
 

dhparikh

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Update #49


जय एक कोमल हृदय वाला लड़का था। अगर वो दोनों को विवाह करने से मना कर देतीं, तो जय मीना से विवाह करने से रुक अवश्य जाता, लेकिन उसका दिल टूट जाता। ऐसे में न जाने वो क्या कर बैठता, या उसके मन मस्तिष्क और शरीर पर न जाने कैसा प्रभाव पड़ता। वो कुछ भी बर्दाश्त कर सकती थी, लेकिन अपने बच्चों की ख़ुशी से कोई समझौता नहीं कर सकती थी।

लिहाज़ा, अगर दोनों में प्रेम हुआ है, तो उस प्रेम की परिणति होनी आवश्यक थी।

‘और क्या सुन्दर सा फल मिला था दोनों के विवाह का!’ चित्रांगदा को गोदी में ले कर खिलाते हुए प्रियम्बदा ने सोचा, ‘... न केवल उनके कुल पर से सती का श्राप समाप्त हो गया, बल्कि ये बालिका भी कितनी सुन्दर है... परफ़ेक्ट!’

क्या क्या डर थे उनके मन में - कि कहीं जय और मीना की संतान में कोई कमी न हो! लेकिन नन्ही चित्रा को देख कर वो सभी डर समाप्त हो गए। अति-सुन्दर और स्वस्थ बच्ची! उसकी मुस्कान इतनी सुन्दर कि सभी का मन मोह ले! अगर अभी से उसमें इस तरह का आकर्षण था, तो फिर जब वो युवा होगी, तब क्या हाल होगा! हाँ - परफेक्ट शब्द ही सही बैठता है उस पर! चित्रा का परफेक्शन देख कर अब वो चाहती थीं कि दोनों यथासंभव जितनी हो सकें, उतनी संतानें कर लें! यह घर अब आनंद से और वंश के दीपकों से भर जाना आवश्यक है! लेकिन वो सब हो, उसके पहले वो चाहती थीं कि दोनों का विवाह विधिवत हो जाय। वो जानना चाहती थीं कि दोनों का सम्बन्ध ज्योतिषी के अनुकूल था भी, या नहीं!

उन्होंने मीना की जन्म-पत्री केदार धाम और बद्री धाम के रावलों को विचारने के लिए भेजा, और जानना चाहा कि मीना का जय के साथ मेल बैठता भी है या नहीं! दोनों धामों के रावलों ने एकमत विचार दिया - जय और मीना का सम्बन्ध बड़ा ही शुभ था। ऐसा क्यों था, उनको यह बात अवश्य ही समझ में नहीं आईं, लेकिन विवाह के शुभ होने को ले कर दोनों ही एकमत थे। प्रियम्बदा ने एक और बात पूछी उनसे, कि क्या मीनाक्षी राजपरिवार पर लगा हुआ श्राप समाप्त कर सकेगी? इस प्रश्न पर दोनों ही मौन रहे। दोनों ही रावलों ने कहा कि होने वाली दंपत्ति की कुण्डलियों में संतान सुख तो साफ़ दिख रहा है, लेकिन यह प्रश्न कि संतानों का लिंग कन्या का होगा, यह कह पाना कठिन है। ख़ैर, इस बात का उत्तर प्रियम्बदा को पहले से ही मिला हुआ था, इसलिए उसने इस बात पर कोई तूल नहीं दिया। दोनों की कुण्डलियों के हिसाब से दोनों के विवाह की एक तिथि भी निकाल दी गई थी, जो बस एक सप्ताह में ही आने वाली थी।

जब मीना गर्भवती थी, तो माँ को श्राप का भी डर सता रहा था। वंश पर लगे श्राप ने आदित्य और क्लेयर का पीछा भी नहीं छोड़ा था। एक पल माँ को लगा था कि चूँकि क्लेयर विदेशी मूल की है, इसलिए शायद अब श्राप का असर समाप्त हो जाए! लेकिन अजय और अमर के रूप में दोनों राजकुमार ही आए! लिहाज़ा, माँ के मन में अवश्य ही था कि जय और मीना के पीछे भी यह श्राप पड़ जाएगा!

किन्तु घोर आश्चर्य हुआ जब उन्होंने कन्या के जन्म की खबर सुनी! उसको अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। तीन बार पूछा था उन्होंने! पक्का करने के लिए कि क्या वाकई लड़की पैदा हुई है! इतनी ख़ुशी मिली थी उस दिन! राजमहल उस दिन दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरे एक महीने तक पूरे महाराजपुर में जश्न मनाया गया था। दान, भोज, पूजा-पाठ - इन सब कार्यों में हाथ नहीं रोका एक पल को भी! इतनी ख़ुशी हुई थी माँ को! खर्च की परवाह नहीं करी! आखिर, जिस ईश्वर ने यह श्राप समाप्त कर दिया, वो ईश्वर रिक्त कोष भी भर देंगे!

लेकिन उस दिन से उनको इस श्राप के अचानक ही समाप्त हो जाने से बड़ा कौतूहल भी हो रहा था। मीना और जय की कुण्डलियों का मिलान करने के साथ साथ, उन्होंने दोनों धामों के रावलों से पुनः मंत्रणा करी। शायद कोई स्पष्टीकरण हो!


*


“अरे, आ गई बहू!” प्रियम्बदा ने मीना को देखते ही कहा।

कल किए गए अपने व्यवहार से वो भी बहुत दुःखी थी, लेकिन क्या करती? जय के सामने वो उससे माफ़ी भी तो नहीं मांग सकती थी न! नहीं तो उसके अपने ही अलग प्रश्न उठने लगते! अब यह सब वो उसको कैसे बताती?

“गुड मॉर्निंग माँ,” मीना ने चहकते हुए कहा और आ कर माँ के पैर छुए।

“मेरी बच्ची...” प्रियम्बदा ने बड़े लाड़ से कहा, “आयुष्मती भव... सुखी भव... यशस्वी भव...” प्रियम्बदा ने आशीर्वाद दिए और मीना के माथे को स्नेह से चूम लिया।

“गुड मॉर्निंग, माँ...” जय ने भी माँ के पैर छुए।

“आयुष्मान भव मेरे लाल...” माँ ने जय के भी माथे को चूमते हुए आशीर्वाद दिया और आगे कहा, “इसके अलावा और क्या आशीर्वाद दूँ? इतनी प्यारी सी बहू है मेरी... उसकी संगत में तो तुम्हारा सब कुछ अच्छा ही अच्छा होता रहेगा!”

माँ की इस बात पर मीना के गाल सेब जैसे लाल हो गए।

“ठीक से सोए बच्चों?” माँ ने पूछा तो दोनों से, लेकिन पूछते समय देखा केवल मीना को।

“हाँ माँ...” जय बोल पड़ा, “कल इन्होने तो मुझको डरा ही दिया था... लेकिन फिर नार्मल बिहैव करने लगीं! ... अच्छी नींद आई, और देर तक भी!”

माँ अभी भी मीना को ही देख रही थीं।

वो एक पल को संकोच से चुप रही, लेकिन फिर बोली, “... जी माँ! यहाँ तो बहुत सुकून है... बहुत सुख है... बहुत ही अच्छी नींद आई...”

मीना समझ ही रही थी कि कल रात अगर कोई उनके कमरे में आया था, तो बहुत अधिक संभव है कि कमरे के अंदर का हाल माँ को पता चल गया हो। इसलिए उनसे छुपाने से कोई लाभ नहीं है।

“... इसीलिए देर तक सो गए...” उसने आगे जोड़ा।

“गुड! नींद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है!” माँ को वैसे भी सब पता ही था, “तुम लोगों का टाइम ज़ोन भी तो अलग है यहाँ से...”

वो कह ही रही थीं, कि चित्रा उनकी गोदी में ठुनकने लगी! उन्होंने बड़े लाड़ से चित्रा को अपनी गोदी में खिलाते हुए कहा, “... पता है, मैं और हमारी ये नन्ही सी राजकुमारी सवेरे से खेल रहे हैं! ... और सबसे अच्छी बात यह है कि ये एक बार भी नहीं रोई!”

“क्यों रोयेगी, माँ?” मीना बोली, “... अपनी दादी माँ को पहचानती है न!”

“हाँ... वो तो है!” कहते हुए माँ ने कई कई बार चित्रा को चूमा।

अपनी माँ को ऐसे करते हुए देख कर जय एक बनावटी शिकायती लहज़े में बोला, “माँ... ये क्या बात हुई! ... अपनी पोती को देख कर आप अपने बेटे को ही भूल गईं!”

“भूली नहीं हूँ... अपने राजा बेटा को! ... बस, फिलहाल तो अपनी बिटिया के साथ क्वालिटी टाइम बिता रही हूँ... आ जा... तू भी आ जा...” कह कर उन्होंने जय की तरफ़ अपनी बाँह बढ़ाई, कि जैसे वो उसको भी अपनी गोदी में ले लेंगी।

जय भी बिना किसी हील हुज्जत के अपनी माँ की कुर्सी के बगल, ज़मीन पर ऐसे बैठ गया कि उसका सर उनकी गोदी में ही रह जाए। उसको ऐसा करते देख कर मीना मुस्कुराई।

‘सच ही कहा था माँ ने... जय की माँ वो ही तो हैं...’

“जानती है बहू? ... ये तेरा हस्बैंड... चाहे कहीं भी हो... चाहे कोई इसको कितना भी दुलार कर ले... इसको मेरे सीने से ही लग कर सुकून आता था...”

“माँ...” कह कर जय प्रियम्बदा से लिपट गया।

मीना मुस्कुराती हुई बोली, “... मुझे भी अपने सीने से लगा लीजिए माँ! ... यही तो मिस करती रही हूँ पूरी उम्र भर... अपनी माँ का प्यार और दुलार...”

“आ जा... तू भी आ जा मेरी लाडो!”

मीना भी माँ की गोदी में सर रख ली।

“ये तो गोदी है न बच्चे...” माँ ने अपनी छाती की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, “मेरा सीना इधर है...”

उनकी बात पर मीना उनके सीने पर सर रख कर दुबक जाती है।

कुछ देर चारों उसी तरह से यूँ ही आलिंगन में बंधे रहे। फिर माँ ही कहती हैं,

“बहू, अभी नाश्ता लगवा देती हूँ... फ़िर हम सब बाहर चलते हैं! ... तुमको इस्टेट भी तो दिखाना है... उसके बाद शॉपिंग करनी है...”

“शॉपिंग माँ?”

“हाँ! अरे, एक हफ़्ते में तुम दोनों की शादी है न... अभी नहीं करेंगे तो फ़िर कब?”

“... लेकिन... माँ...” मीना ने थोड़ा चिंतित होते हुए कहा, “... अगर कहीं कोई...”

“चिंता न करो बच्चे... सब ठीक रहेगा...”

चित्रा एक बार फिर से ठुनकने लगी।

“बहू, शायद इसको भूख लगी है...” माँ ने चित्रा को मीना की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, “नहीं तो ये ऐसे न परेशान होती। ... दूध पिला दो इसको... मैं नाश्ता लगवाती हूँ... खूब भूख लगी होगी न!”

“हाँ माँ,” इस बार जय बोला, “भूख तो लगी है खूब... कल मैडम के चक्कर में मैंने भी नहीं खाया था!”

“अले मेला नन्हा राजकुमार,” माँ ने उसको लाड़ से तोतली भाषा में दुलराया, “बस अभ्भी लगवा देती हूँ खाना...”

कह कर वो अपनी कुर्सी से उठने लगीं।

“माँ, भैया भाभी?”

“वो तो कब का खा कर बाहर चले गए... आदित्य से मिलने के लिए कई लोग उत्सुक थे न!”

“अच्छा अच्छा...” जय ने कहा।

“तू मन मसोस के न रह! तुझसे और बहू से भी कई लोग मिलना चाहते थे... लेकिन मैंने ही मना कर दिया है... विवाह से पहले किसी से नहीं मिलना है!”

“जो आज्ञा माते!”

माँ के जाने के बाद मीना ने जय से कहा,

“तुम भी न!”

“क्यों? अब क्या किया मैंने?”

“माँ को भेज दिया हमारे लिए खाना लाने को! ... अच्छे खासे जवान मर्द हो... खुद जाते!”

“अरे, तुमको क्या लगता है? माँ मेरे कहने से रुक जातीं? ... हरगिज़ नहीं!” जय ने हँसते हुए कहा, “... अभी तुमको पता नहीं है मेरी जान! ... माँ हमको देखते ही उत्साह से भर जाती हैं!”

“आई नो! ... लेकिन हमारा भी तो कुछ बनता है न, उनके लिए कुछ करने का!”

“यस! ... तुम माँ से पूछ लेना कि क्या करना है!” फिर चित्रा की तरफ़ इशारा करते हुए, “... लेकिन अभी हमारी गोलू मोलू को अपना मीठा मीठा दुद्धू तो पिला दो!”

“जी हुकुम...” मीना ने कहा और हँसते हुए चित्रा को अपनी गोदी में स्तनपान कराने के लिए व्यवस्थित करने लगी।

*
Nice update....
 
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258
जब आप समाज के बनाए गए तथाकथित नियमों का उल्लंघन करते है , जब आप सैंकड़ो सालों से चली आ रही परम्परा को बदलने का प्रयास करते है तब यह स्वभाविक है कि आप के जेहन मे कई तरह के विमर्श , गलत - सही का विवेचना करना होता ही है ।
यही हाल प्रियम्बदा जी का है ।
उन्होने एक ऐसा कार्य किया , एक ऐसा जोखिम लिया जो उन्हे रह- रहकर गिल्टी महसूस करा रहा था और इस अपराधग्रस्त भाव से निजात पाने के लिए आखिरकार सुहासिनी उर्फ मीना को सच बता देने का निर्णय लिया ।

लेकिन यह अपराध ग्रस्त भाव अब भी समाप्त होने वाला नही है क्योंकि इस खेल के दो प्लेयर्स मे सिर्फ एक के समक्ष ही सच्चाई बयां की है । जब तक दोनो प्लेयर्स के समक्ष सच्चाई जाहिर नही होती तब तक यह फेयर प्ले कैसे हो सकता है ! यह एक प्लेयर के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी ।

प्रियम्बदा जी ने यह अविश्वसनीय निर्णय इसलिए लिया क्योंकि वह सुहासिनी को पहचान गई थी । वह अब , मतलब कई वर्षों बाद सुहासिनी को अपने आंखो से ओझल नही देखना चाहती थी ।
उन्हे जय के प्रेम सम्बंधित मैच्योरिटी पर भी संदेह था । उन्हे डर था कि कहीं उनके इन्कार करने की वजह जय पर भारी न पड़ जाए ।

वैसे उन्हे सच्चाई बता देने से कुछ भी हो सकता था -
शायद सुहासिनी अपना कदम पीछे खिंच ले , शायद जय को भी बहुत शर्मिंदगी महसूस हो और वह भी पीछे हट जाए ।
या शायद दोनो मे कोई एक इस रिश्ते को पनपना देखना चाहता हो , या फिर दोनो ही इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हों ।
या फिर दोनो ही अपनी अपनी राहें अलग अलग करना चाहते हों ।
मतलब कुछ भी हो सकता था । लेकिन प्रियम्बदा जी ने तब तक चुप्पी साधी रखी जब तक दोनो का विवाह न हो जाए ।
अगर सबकुछ जानने के बाद भी सुहासिनी और जय को विवाह करने से किसी तरह का परहेज नही होता तब हम अवश्य कह सकते थे कि यही इन दोनो की नियति थी । दोनो का प्रारब्ध था । पर हकीकत यह है कि इनके तकदीर का डिसिजन प्रियम्बदा जी ने लिया ।


यह जो नई इतिहास लिखी जा रही थी , वह प्रियम्बदा जी को बराबर परेशान कर रहा था । यह परेशानी , कुछ गलत कार्य का बोध ने ही उन्हे विवश किया कि वह सुहासिनी के सामने सच्चाई बयां करे ।

लेकिन जैसा मैने पहले कहा , यह अपराध ग्रस्त भाव तब तक पुरी तरह समाप्त नही होने वाला है जब तक सच्चाई दोनो पक्ष को न हो जाए । अगर सुहासिनी और जय को वास्तविकता का बोध होने के बावजूद भी कोई दिक्कत नही तो फिर प्रियम्बदा जी को ऐसी बातें सोचने की भला क्या जरूरत !


सुहासिनी ने सबकुछ जानकर भी जय को अपने पति के रूप मे स्वीकार कर लिया लेकिन क्या यह हकीकत जानकर जय भी सुहासिनी को स्वीकार कर पाएगा ? यह यक्ष प्रश्न है ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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22,403
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Dono hi updates behad shandar he avsji Bhai,

Aakhir Priyadamba bhi khush ho gayi jay aur mina dono ek pati patni ki tarah hi behave kar rahe he..................mina ki matureness ne jay ke sath is rishte ko swikar kar hi liya..............

अभी भी एक काम बाकी है!
अभी अपडेट पोस्ट कर रहा हूँ, उसमें बात साफ़ हो जाएगी।

Ab next week dono ki shadi hone wali he............mina ko shayad abhi bhi yah dar sata raha he ki use yani suhasini ko koi pehchan na le............lekin iske chances bilkul neglible he.......

Keep posting Bhai

बस आ गया अगला अपडेट। :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,023
22,403
159
जब आप समाज के बनाए गए तथाकथित नियमों का उल्लंघन करते है , जब आप सैंकड़ो सालों से चली आ रही परम्परा को बदलने का प्रयास करते है तब यह स्वभाविक है कि आप के जेहन मे कई तरह के विमर्श , गलत - सही का विवेचना करना होता ही है ।
यही हाल प्रियम्बदा जी का है ।
उन्होने एक ऐसा कार्य किया , एक ऐसा जोखिम लिया जो उन्हे रह- रहकर गिल्टी महसूस करा रहा था और इस अपराधग्रस्त भाव से निजात पाने के लिए आखिरकार सुहासिनी उर्फ मीना को सच बता देने का निर्णय लिया ।

लेकिन यह अपराध ग्रस्त भाव अब भी समाप्त होने वाला नही है क्योंकि इस खेल के दो प्लेयर्स मे सिर्फ एक के समक्ष ही सच्चाई बयां की है । जब तक दोनो प्लेयर्स के समक्ष सच्चाई जाहिर नही होती तब तक यह फेयर प्ले कैसे हो सकता है ! यह एक प्लेयर के साथ नाइंसाफी ही कही जाएगी ।

प्रियम्बदा जी ने यह अविश्वसनीय निर्णय इसलिए लिया क्योंकि वह सुहासिनी को पहचान गई थी । वह अब , मतलब कई वर्षों बाद सुहासिनी को अपने आंखो से ओझल नही देखना चाहती थी ।
उन्हे जय के प्रेम सम्बंधित मैच्योरिटी पर भी संदेह था । उन्हे डर था कि कहीं उनके इन्कार करने की वजह जय पर भारी न पड़ जाए ।

वैसे उन्हे सच्चाई बता देने से कुछ भी हो सकता था -
शायद सुहासिनी अपना कदम पीछे खिंच ले , शायद जय को भी बहुत शर्मिंदगी महसूस हो और वह भी पीछे हट जाए ।
या शायद दोनो मे कोई एक इस रिश्ते को पनपना देखना चाहता हो , या फिर दोनो ही इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते हों ।
या फिर दोनो ही अपनी अपनी राहें अलग अलग करना चाहते हों ।
मतलब कुछ भी हो सकता था । लेकिन प्रियम्बदा जी ने तब तक चुप्पी साधी रखी जब तक दोनो का विवाह न हो जाए ।
अगर सबकुछ जानने के बाद भी सुहासिनी और जय को विवाह करने से किसी तरह का परहेज नही होता तब हम अवश्य कह सकते थे कि यही इन दोनो की नियति थी । दोनो का प्रारब्ध था । पर हकीकत यह है कि इनके तकदीर का डिसिजन प्रियम्बदा जी ने लिया ।


यह जो नई इतिहास लिखी जा रही थी , वह प्रियम्बदा जी को बराबर परेशान कर रहा था । यह परेशानी , कुछ गलत कार्य का बोध ने ही उन्हे विवश किया कि वह सुहासिनी के सामने सच्चाई बयां करे ।

लेकिन जैसा मैने पहले कहा , यह अपराध ग्रस्त भाव तब तक पुरी तरह समाप्त नही होने वाला है जब तक सच्चाई दोनो पक्ष को न हो जाए । अगर सुहासिनी और जय को वास्तविकता का बोध होने के बावजूद भी कोई दिक्कत नही तो फिर प्रियम्बदा जी को ऐसी बातें सोचने की भला क्या जरूरत !


सुहासिनी ने सबकुछ जानकर भी जय को अपने पति के रूप मे स्वीकार कर लिया लेकिन क्या यह हकीकत जानकर जय भी सुहासिनी को स्वीकार कर पाएगा ? यह यक्ष प्रश्न है ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट avsji भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

पूरी तरह से सही बात कही है आपने, संजू भाई! बिना जय को सच्चाई बताए, दोनों का सम्बन्ध सही नहीं होगा।
प्रियम्बदा यह जानती है, और इसलिए वो जय को सच्चाई बताने ही वाली है (अभी के अपडेट में सब पता चल जायेगा)... उसको अभी तक समय ही नहीं मिला।
मीना को चक्कर आ गए, और उसके बाद इतनी देर हो गई कि बात हो ही नहीं सकी।
लेकिन, सब बातें इस अपडेट में क्लियर हो जाएँगी :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Update #50


संध्याकाल :

“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“जी माँ!”

कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,

“माँ?”

“ह हाँ?”

“आप कुछ कहना चाहती थीं?”

“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”

“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”

माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”

“माँ...?!”

“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”

जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।

कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,

“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”

“श्राप माँ?”

“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।

जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।

“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”

कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।

इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”

“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...

“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”

“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”

“राज़ की बातें?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!

“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।

“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”

“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”

“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”

“क्या?”

“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”

“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”

“तुझे खो देने का डर था मुझे...”

“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”

“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”

“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”

“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”

“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”

“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”

“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”

“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”

“जी माँ!”

“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...

माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।

सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

“तो क्या... तो क्या?”

“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”

कह कर माँ चुप हो गईं।

“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”

वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।

“और आपको यह बात पता थी?”

माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”

“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”

माँ की बात पर जय चुप हो गया।

“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”

जय कुछ कहता नहीं।

“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”

जय अभी भी कुछ नहीं कहता।

“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”

जय कुछ नहीं कहता।

“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।

“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।

“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”

“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...

वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।

“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”

जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।

“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”

“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”

“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”

माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।

लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।

“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”

“मीना...”

“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”

“व्हाट?”

“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”

“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”

“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”

कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।

“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”

“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”

माँ ने कुछ कहा नहीं।

“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।

“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”

जय कुछ क्षण चुप रहा।

“बेटे?”

“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”

यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।

“... और न ही मीना के मन में मेरा...”

बोल कर जय चुप हो गया।

माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?

“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”

जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।

“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”

उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।

“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”

“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”

“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...

“बताइये न माँ!”

“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”

“क्या?”

“हाँ!”

“ये आपको कैसे पता चला?”

“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!

माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”

“माँ?”

“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”

“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”

“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”

“फिर?”

“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”

जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?

“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”

“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”

“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”

“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।

“बेटे?”

“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”

“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”

“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”

“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”

“किस बारे में माँ?”

“तुम्हारे और मीना के बारे में!”

“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”

“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।

“लव यू माँ! लव यू सो मच!”

*
 

park

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Update #50


संध्याकाल :

“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“जी माँ!”

कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,

“माँ?”

“ह हाँ?”

“आप कुछ कहना चाहती थीं?”

“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”

“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”

माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”

“माँ...?!”

“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”

जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।

कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,

“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”

“श्राप माँ?”

“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।

जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।

“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”

कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।

इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”

“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...

“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”

“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”

“राज़ की बातें?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!

“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।

“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”

“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”

“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”

“क्या?”

“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”

“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”

“तुझे खो देने का डर था मुझे...”

“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”

“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”

“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”

“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”

“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”

“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”

“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”

“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”

“जी माँ!”

“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...

माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।

सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

“तो क्या... तो क्या?”

“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”

कह कर माँ चुप हो गईं।

“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”

वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।

“और आपको यह बात पता थी?”

माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”

“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”

माँ की बात पर जय चुप हो गया।

“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”

जय कुछ कहता नहीं।

“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”

जय अभी भी कुछ नहीं कहता।

“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”

जय कुछ नहीं कहता।

“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।

“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।

“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”

“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...

वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।

“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”

जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।

“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”

“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”

“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”

माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।

लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।

“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”

“मीना...”

“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”

“व्हाट?”

“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”

“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”

“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”

कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।

“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”

“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”

माँ ने कुछ कहा नहीं।

“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।

“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”

जय कुछ क्षण चुप रहा।

“बेटे?”

“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”

यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।

“... और न ही मीना के मन में मेरा...”

बोल कर जय चुप हो गया।

माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?

“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”

जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।

“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”

उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।

“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”

“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”

“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...

“बताइये न माँ!”

“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”

“क्या?”

“हाँ!”

“ये आपको कैसे पता चला?”

“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!

माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”

“माँ?”

“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”

“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”

“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”

“फिर?”

“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”

जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?

“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”

“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”

“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”

“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।

“बेटे?”

“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”

“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”

“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”

“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”

“किस बारे में माँ?”

“तुम्हारे और मीना के बारे में!”

“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”

“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।

“लव यू माँ! लव यू सो मच!”

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Nice and superb update....
 

kas1709

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संध्याकाल :

“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“जी माँ!”

कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,

“माँ?”

“ह हाँ?”

“आप कुछ कहना चाहती थीं?”

“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”

“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”

माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”

“माँ...?!”

“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”

जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।

कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,

“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”

“श्राप माँ?”

“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।

जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।

“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”

कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।

इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”

“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...

“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”

“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”

“राज़ की बातें?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!

“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।

“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”

“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”

“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”

“क्या?”

“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”

“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”

“तुझे खो देने का डर था मुझे...”

“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”

“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”

“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”

“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”

“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”

“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”

“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”

“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”

“जी माँ!”

“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...

माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।

सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

“तो क्या... तो क्या?”

“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”

कह कर माँ चुप हो गईं।

“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”

वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।

“और आपको यह बात पता थी?”

माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”

“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”

माँ की बात पर जय चुप हो गया।

“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”

जय कुछ कहता नहीं।

“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”

जय अभी भी कुछ नहीं कहता।

“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”

जय कुछ नहीं कहता।

“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।

“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।

“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”

“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...

वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।

“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”

जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।

“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”

“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”

“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”

माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।

लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।

“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”

“मीना...”

“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”

“व्हाट?”

“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”

“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”

“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”

कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।

“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”

“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”

माँ ने कुछ कहा नहीं।

“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।

“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”

जय कुछ क्षण चुप रहा।

“बेटे?”

“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”

यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।

“... और न ही मीना के मन में मेरा...”

बोल कर जय चुप हो गया।

माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?

“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”

जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।

“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”

उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।

“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”

“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”

“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...

“बताइये न माँ!”

“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”

“क्या?”

“हाँ!”

“ये आपको कैसे पता चला?”

“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!

माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”

“माँ?”

“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”

“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”

“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”

“फिर?”

“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”

जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?

“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”

“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”

“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”

“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।

“बेटे?”

“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”

“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”

“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”

“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”

“किस बारे में माँ?”

“तुम्हारे और मीना के बारे में!”

“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”

“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।

“लव यू माँ! लव यू सो मच!”

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Niceupdate...
 
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