Update #50
संध्याकाल :
“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”
“जी माँ!”
कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,
“माँ?”
“ह हाँ?”
“आप कुछ कहना चाहती थीं?”
“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”
“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”
माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”
“माँ...?!”
“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”
जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।
कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,
“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”
“श्राप माँ?”
“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।
जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।
“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”
कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।
इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”
“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...”
“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”
“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”
“राज़ की बातें?”
उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!”
“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।
“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”
“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”
“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”
“क्या?”
“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”
“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”
“तुझे खो देने का डर था मुझे...”
“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”
“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”
“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”
“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”
“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”
“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”
“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”
“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”
“जी माँ!”
“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...”
माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।
सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
“तो क्या... तो क्या?”
“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”
कह कर माँ चुप हो गईं।
“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”
वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।
“और आपको यह बात पता थी?”
माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”
“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”
माँ की बात पर जय चुप हो गया।
“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”
जय कुछ कहता नहीं।
“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”
जय अभी भी कुछ नहीं कहता।
“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”
जय कुछ नहीं कहता।
“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।
“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।
“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”
“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...”
वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।
“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”
जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।
“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”
माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”
“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”
“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”
माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।
लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।
“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”
“मीना...”
“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”
“व्हाट?”
“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”
“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”
“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”
कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।
प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।
“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”
“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”
माँ ने कुछ कहा नहीं।
“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।
“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”
जय कुछ क्षण चुप रहा।
“बेटे?”
“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”
यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।
“... और न ही मीना के मन में मेरा...”
बोल कर जय चुप हो गया।
माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?
“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”
जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।
“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”
उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।
“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”
“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”
“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...”
“बताइये न माँ!”
“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”
“क्या?”
“हाँ!”
“ये आपको कैसे पता चला?”
“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!”
माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”
“माँ?”
“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”
“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”
“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”
“फिर?”
“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”
जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?
“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”
“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”
“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”
“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।
“बेटे?”
“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”
“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”
“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”
“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”
“किस बारे में माँ?”
“तुम्हारे और मीना के बारे में!”
“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”
“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।
“लव यू माँ! लव यू सो मच!”
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