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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28, Update #29, Update #30, Update #31, Update #32, Update #33, Update #34, Update #35, Update #36, Update #37, Update #38, Update #39, Update #40, Update #41, Update #42, Update #43, Update #44, Update #45, Update #46, Update #47, Update #48, Update #49, Update #50, Update #51, Update #52.

Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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पौराणिक कथाओं मे हमने पढ़ा था कि ऋषि एवं महात्मा द्वारा दिए गए श्राप के निवारण का मार्ग भी स्वयं ऋषि - महात्मा ही निर्धारित करते थे ।
लेकिन यहां एक सच्चरित्र स्त्री के साथ दुष्कर्म किया गया था । उनके फैमिली के साथ अन्याय किया हुआ था । इसके फलस्वरूप उस पीड़िता स्त्री के दिल से बददुआ निकली , श्राप के रूप मे उनके मुख से स्वर निकले और उस दुष्कर्मी परिवार पर उस श्राप का कहर टूट पड़ा ।
सैंकड़ो सालों तक वह परिवार पुत्री जनन न कर सका ।

इस श्राप का समाधान अगर कोई कर सकता था तो वह पीड़ित औरत थी लेकिन वह यह कर न सकी क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी ।
इस श्राप के निराकरण का दूसरा मार्ग था , पीड़ित औरत के परिवार के समक्ष अपने पाप का प्रायश्चित करना और उनके जीवन मे वापस खुशियाँ लौटाना । लेकिन यह भी सम्भव नही हुआ क्योंकि उस परिवार का कोई अता - पता नही था ।

यह कुदरत द्वारा दी गई नेमत थी कि गौरीशंकर जी अपनी पुत्री सुहासिनी के साथ राजघराने परिवार के सम्पर्क मे आए , राजकुंवर हर्ष के साथ सुहासिनी का प्रेम संबंध स्थापित हुआ और सुहासिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया ।

जैसा कि प्रियम्बदा जी ने कहा कि जय आधे राजघराने का और आधे सती के खानदान का अंश बन चुका था लेकिन जब तक सती के खानदान का अंश राजपरिवार से अधिक नही होता तब तक उसपर राजपरिवार का ही छाया रहता ।
मैने पहले कहा था , सुहासिनी और जय का वैवाहिक बंधन मे बंधना उस श्राप के निवारण का मार्ग था और वही नियति थी ।

प्रियम्बदा जी ने जय को सच्चाई से रूबरू करवा कर जहां अपने दिल का बोझ हल्का किया वहीं इन दोनो के प्रणय मे बाधा न पड़कर श्राप के निराकरण का मार्ग प्रशस्त भी किया ।

संतोष की बात यह है कि सबकुछ जानने के बाद सुहासिनी के साथ साथ जय को भी किसी प्रकार का अफसोस या पछतावा नही हुआ ।
अब सबकुछ वाह वाह हो गया है । पुरा परिवार सच्चाई से अवगत है । मिंया - बीबी राजी है । श्राप का " द एंड " हो गया है ।
कुल मिलाकर जगमग जगमग हो गया है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट avsji भाई।
 

parkas

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Update #50


संध्याकाल :

“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“जी माँ!”

कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,

“माँ?”

“ह हाँ?”

“आप कुछ कहना चाहती थीं?”

“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”

“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”

माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”

“माँ...?!”

“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”

जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।

कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,

“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”

“श्राप माँ?”

“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।

जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।

“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”

कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।

इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”

“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...

“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”

“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”

“राज़ की बातें?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!

“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।

“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”

“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”

“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”

“क्या?”

“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”

“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”

“तुझे खो देने का डर था मुझे...”

“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”

“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”

“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”

“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”

“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”

“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”

“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”

“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”

“जी माँ!”

“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...

माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।

सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

“तो क्या... तो क्या?”

“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”

कह कर माँ चुप हो गईं।

“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”

वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।

“और आपको यह बात पता थी?”

माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”

“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”

माँ की बात पर जय चुप हो गया।

“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”

जय कुछ कहता नहीं।

“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”

जय अभी भी कुछ नहीं कहता।

“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”

जय कुछ नहीं कहता।

“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।

“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।

“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”

“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...

वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।

“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”

जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।

“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”

“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”

“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”

माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।

लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।

“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”

“मीना...”

“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”

“व्हाट?”

“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”

“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”

“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”

कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।

“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”

“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”

माँ ने कुछ कहा नहीं।

“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।

“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”

जय कुछ क्षण चुप रहा।

“बेटे?”

“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”

यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।

“... और न ही मीना के मन में मेरा...”

बोल कर जय चुप हो गया।

माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?

“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”

जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।

“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”

उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।

“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”

“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”

“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...

“बताइये न माँ!”

“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”

“क्या?”

“हाँ!”

“ये आपको कैसे पता चला?”

“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!

माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”

“माँ?”

“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”

“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”

“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”

“फिर?”

“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”

जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?

“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”

“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”

“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”

“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।

“बेटे?”

“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”

“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”

“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”

“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”

“किस बारे में माँ?”

“तुम्हारे और मीना के बारे में!”

“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”

“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।

“लव यू माँ! लव यू सो मच!”

*
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and awesome update....
 
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dhparikh

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Update #50


संध्याकाल :

“जय,” प्रियम्बदा ने अपने बेटे को पुकारा, “... बेटे, कुछ देर मेरे पास बैठोगे? ... एक ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“जी माँ!”

कुछ देर तक जब माँ ने कुछ भी नहीं कहा, तो जय ही बोला,

“माँ?”

“ह हाँ?”

“आप कुछ कहना चाहती थीं?”

“हाँ बेटे...” उन्होंने एक गहरी साँस भरते हुए कहा, “कहना चाहती तो थी, लेकिन समझ नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ!”

“माँ...” जय ने बड़े प्यार और आदर से कहा, “आपको मुझसे बात करने के लिए... मुझसे कुछ भी कहने के लिए किसी भूमिका की ज़रुरत नहीं है! ... आप मेरी माँ हैं। आपने हमेशा मेरे भले के बारे में सोचा है और किया है! ... यहाँ तक कि भैया से भी कहीं अधिक प्यार दिया है आपने मुझे! ... किसी फॉर्मेलिटी का कोई प्लेस नहीं है हमारे बीच में माँ!”

माँ मुस्कुराईं, “... आई होप बच्चे कि जो मैं तुमको बताने जा रही हूँ, वो जानने के बाद भी तुम ऐसा ही सोचो...”

“माँ...?!”

“अभी सुन लो बेटे... तुम्हारे कहने के लिए पूरा मौका रहेगा।”

जय चुप हो गया, और अपनी माँ की बात शुरू होने का इंतज़ार करने लगा।

कुछ क्षणों बाद माँ बोलीं,

“हमारे वंश पर एक श्राप था बेटा...”

“श्राप माँ?”

“हाँ बेटे, श्राप!” माँ ने कहा और फिर वो जय को सती के श्राप और उसके असर के बारे में देर तक बताती रहीं।

जय भौंचक्क रह कर सब सुनता रहा।

“लेकिन माँ...” सब सुनने के बाद जय बोला, “मीना और मुझे तो बेटी हुई है...”

कहते कहते जय को अचानक से एक झटका लगा, “... कहीं... कहीं आप ये तो नहीं कहना चाहतीं कि चित्रा मेरी बेटी नहीं?” जय ने ज़ोर दे कर कहा।

इस विचार मात्र से जय उद्विग्न हो गया, “... माँ, ऐसा नहीं हो सकता! ... वो हमारी है माँ! हमारी बेटी! मीना और मेरी बेटी... मेरी बेटी... किसी और की नहीं!”

“हाँ बेटे... और... मैंने एक पल के लिए भी मीना की वफ़ादारी पर शक़ नहीं किया। मीना सबसे अच्छी है... बहुत गुणी और तुझसे बहुत प्रेम करती है! वो तुझसे बेवफ़ाई नहीं कर सकती! चित्रा तुम दोनों की ही बेटी है। इस वंश की ही लता...। हमारी वंशबेल...

“फिर क्या बात है माँ?” जय ने संतोष भरी सांस लेते हुए कहा, “अच्छा हो गया न? श्राप का अंत भी हो गया...”

“हाँ बेटे... लेकिन कुछ राज़ की बातें हैं जो तुमको बतानी हैं!”

“राज़ की बातें?”

उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “मेरे लिए इस श्राप के अंत का कारण जानना ज़रूरी था। ... और तुम्हारे लिए भी!

“और मुझे लगता है कि आपको उस कारण का पता चल गया है?” जय बोला।

“हाँ...” फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए, “तू मुझसे कभी अपनी माँ के बारे में नहीं पूछता! ... क्यों?”

“आप मेरी माँ हैं माँ... किसी और माँ की कोई ज़रुरत नहीं है मुझको।”

“लेकिन अगर तुझे ये पता चले कि तेरी माँ जीवित हैं, तो?”

“क्या?”

“हाँ बेटे... मुझे इस बात का पता तेरे और मीना की रिलेशनशिप शुरू होने के टाइम ही पता चली।”

“तो फिर... तो फिर... आपने मुझे बताया क्यों नहीं माँ?”

“तुझे खो देने का डर था मुझे...”

“मुझे खो देने का? माँ... आप कैसी बात कर रही हैं? आप मुझे कभी नहीं खो सकतीं! आप तो मेरी लाइफ-लाइन हैं... और मैं आपका राजा बेटा हूँ... और तो और, आज मैं और मीना बात कर रहे थे कि क्यों न हम यहीं सेटल हो जाएँ! महाराजपुर में!”

“क्या बेटे? तू सच कह रहा है?”

“हाँ माँ! अब हम आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाएँगे! ... आपकी सेवा करेंगे, आपकी छाया में बढ़ेंगे!”

“ओह बेटे... ईश्वर तुम दोनों को दीर्घायु दें!”

“हाँ माँ... बस, आपका आशीर्वाद ही चाहिए हमको!”

“वो तो मेरी हर संतान के लिए है... लेकिन बेटे... तुझे अपनी माँ से मिलने का मन नहीं हो रहा है? उसके बारे में जानने का मन नहीं हो रहा है?”

“माँ, अगर आप चाहती हैं, तो मुझे उनके बारे में बताएँगी ही! ... लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपकी जगह कोई नहीं ले सकता! मेरी माँ आप ही हैं!”

“हम्म... लेकिन फिर भी! अब अपनी माँ के बारे में सुन ले मुझसे बेटे... फिर आगे बात करेंगे!”

“जी माँ!”

“तेरी माँ - सुहासिनी - महाराजपुर के एक बड़े कलाकार, गौरीशंकर जी की बेटी थीं...

माँ ने कहना शुरू किया, और जय को सिलसिलेवार तरीके से राजकुमार हर्ष और सुहासिनी के प्रेम-सम्बन्ध, सुहासिनी की गर्भावस्था, महाराज, महारानी और हर्ष की सड़क हादसे में मृत्यु और फिर उसके बाद सुहासिनी के जीवन के बारे में सब बता दिया।

सारी बातें सुन कर जय का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

“तो क्या... तो क्या?”

“हाँ बेटे... सुहासिनी ही मिनाक्षी है। उसी ने तुझको जन्म दिया है...”

कह कर माँ चुप हो गईं।

“ओह गॉड!” एक बहुत ही लम्बे समय चुप रहने के बाद जय बोला, “मतलब... मैंने... अपनी माँ से ही...”

वो अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया।

“और आपको यह बात पता थी?”

माँ ने अपराधी भाव में ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर भी आपने कुछ किया नहीं?”

“बेटे...” माँ ने जय की बात को काटते हुए कहा, “थोड़ी बात और है... वो सुन ले, फिर तू जो फ़ैसला करेगा, मैं सब मान लूँगी...”

माँ की बात पर जय चुप हो गया।

“जब तू मीना से मिला था, तब तेरे मन में, तेरे दिल में उसके लिए कैसी फ़ीलिंग्स आई थीं?”

जय कुछ कहता नहीं।

“माँ बेटे वाली, या प्रेमी वाली?”

जय अभी भी कुछ नहीं कहता।

“इतने दिनों में... इतने महीनों में कभी भी तेरे मन में उसके लिए माँ वाली फ़ीलिंग्स आई हैं?”

जय कुछ नहीं कहता।

“बोल?” माँ ने इस बार थोड़ा ज़ोर दे कर पूछा।

“नहीं माँ...” जय ने धीरे से कहा।

“तो फिर अपने प्यार की सच्चाई पर संदेह न कर... उसको पाप-कर्म के जैसे मत सोच...”

“लेकिन माँ... बात वो नहीं है...” जय बोला, “... म... म... मीना... आई मीन... आई मीन...

वो चुप हो गया। कोशिश करने पर भी उसके मुँह से मीना के लिए ‘माँ’ शब्द नहीं निकला।

“जय... बेटे... तू सच्चाई जानने के बाद भी मीना के लिए माँ नहीं बोल पा रहा है। बस इसी तथ्य में तुम दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई है। ... वो तेरे लिए मीना है - तेरी पत्नी! ... अब हम यह चाहते हैं कि वो तेरी धर्मपत्नी बन जाय!”

जय कुछ समय कुछ न बोला। विचारों और भावनाओं के भंवर उसके दिमाग में तेजी से बन बिगड़ रहे थे।

“... माँ... अगर मीना को पता चल गया, तो?”

माँ ने समझते हुए सर हिलाया, “बेटे, एक पर्सनल बात पूछूँ तुमसे?”

“माँ... मैंने आपसे पहले ही कहा है कि आपको किसी भी फॉर्मेलिटी की ज़रुरत नहीं!”

“ओके! एक बात बता... कल रात तूने और मीना ने... आई मीन... तुम दोनों में... यू नो?”

माँ की बात के इशारे पर जय एक बार शरमा गया।

लेकिन उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। रात की बात याद कर के उसके होंठों पर मुस्कान भी आ गई।

“और कल रात प्यार की पहल किसने करी? तूने, या मीना ने?”

“मीना...”

“तुझे पता नहीं, लेकिन कल रात तेरे आने से पहले, मैंने सब बातें मीना से कह दी थीं...”

“व्हाट?”

“हाँ... मैंने तुम दोनों को बारी बारी से सब कुछ बता देने का सोच रखा था। ... और अपने सम्बन्ध के बारे में जो भी निर्णय था, वो तुम दोनों पर छोड़ दिया था। ... मीना ने तो तुझे अपने पति के ही रूप में माना है... अब देखना बस ये है कि तू उसको किस रूप में देखता है! ... माँ के रूप में, या फिर... अपने प्यार... अपनी पत्नी के रूप में...”

“तो मीना को सब पता था... फिर भी?”

“तुम दोनों को ईश्वर ने मिलवाया है... तुम्हारा... तुम दोनों का प्रेम सच्चा है! तुम दोनों का सम्बन्ध पवित्र...! और तुम दोनों के प्रेम की निशानी चित्रा भी उतनी ही सच्ची और पवित्र है! ... अब ये सब जानने के बाद, तू जो भी करना चाहता है, मुझे पूरी तरह से मान्य है!”

कोई पाँच मिनट तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा।

प्रियम्बदा जानती थी कि जय बहुत ही भावुक लड़का है। उसके लिए, उसके भविष्य के लिए यही ठीक था कि उसका निर्णय वो स्वयं ले, और उसके परिणामों को स्वीकार करे। इसलिए वो भी चुप ही रही।

“माँ,” अंत में वो बोला, “भैया भाभी जानते हैं यह बात?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “सबसे पहले मैंने तेरी भाभी को बताई थी ये बात और उसी से सब डिसकस किया। ... फिर आदित्य को बताया। ... उन दोनों ने ही मुझको बताया था कि तुम दोनों का प्यार गाढ़ा है, सच्चा है... तुम बहुत खुश भी लग रहे थे मीना को ले कर... इसलिए हम में से किसी ने भी कोई बाधा नहीं पैदा करी!”

“मतलब आप सभी का आशीर्वाद मीना के बहू वाले रूप के लिए ही है?”

माँ ने कुछ कहा नहीं।

“माँ?” जय ने ज़ोर दिया।

“बेटे... सुहास... मीना को मैंने अपनी बेटी ही माना है हमेशा। उसी रूप में उसको पाला पोसा। ... इस वंश में बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं किया जाता।” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा, “और हम उसको किस रूप में चाहते हैं, मानते हैं - वो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उसको किस रूप में चाहते हो, मानते हो!”

जय कुछ क्षण चुप रहा।

“बेटे?”

“माँ... मुझे बड़ी हैरत हो रही है, कि सब जानने के बाद भी मेरे मन में मीना का रूप बदला नहीं...”

यह सुनते ही माँ के सीने पर से जैसे एक बहुत भारी बोझ उतर गया। लेकिन उन्होंने स्वयं को ज़ब्त कर के रखा हुआ था।

“... और न ही मीना के मन में मेरा...”

बोल कर जय चुप हो गया।

माँ ने अभी भी कुछ नहीं कहा। अब बोलने को क्या रह गया था?

“लेकिन माँ,” कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद जय ने फिर बात का सूत्र पकड़ा, “... आप मुझे श्राप वाली बात बताना चाहती थीं? उसका अंत कैसे हुआ?”

जय ने कुछ इस अंदाज़ में कहा जैसे मीना और उसके भूतकाल की बात पुरानी हो गई हो।

“अ? हाँ! श्राप का अंत!” माँ ने गहरी साँस भरी, “किसी नॉवेल का टाइटल लगता है!”

उनकी बात पर दोनों ही हँस पड़े। अचानक से ही माहौल हल्का हो गया।

“... दोनों धामों के रावलों ने एक ही बात कही थी, कि प्रकृति में हर बात का हल है। लिहाज़ा, इस श्राप का अंत भी प्रकृति ने ही किया।”

“तो आपको पता चल गया कि हमारे परिवार से श्राप कैसे हटा?”

“शायद! पक्का पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, लेकिन एक थ्योरी है मेरी...

“बताइये न माँ!”

“बेटे, तुम यकीन नहीं करोगे कि मीना उसी सती के वंश की है...”

“क्या?”

“हाँ!”

“ये आपको कैसे पता चला?”

“सालों से हमने बहुत कोशिश करी कि कहीं से उन सती के बारे में, उनके वंशजों के बारे में कुछ भी पता चल जाए! ... मेरी कामना थी कि हम उनसे अपने पूर्वज के किए की माफ़ी मांगे और उनसे क्षमा की प्रार्थना करें। ... लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी कुछ पता नहीं चला!

माँ बोलीं, और कुछ देर चुप रह के आगे बोलीं, “... लेकिन जब चित्रा पैदा हुई, तब मुझे यकीन हो गया कि हो न हो, मीना का सम्बन्ध उन सती से अवश्य है! ... दोनों धामों के रावलों ने भी मेरी बात की पुष्टि करी।”

“माँ?”

“हाँ बेटा... चित्रा के होने के बाद मैंने गौरीशंकर जी के परिवार के बारे में गहराई से तफ़्तीश करी... हमको लगा था कि उनका कोई परिवार नहीं है, लेकिन कुछ चिन्ह थे जिनको हमने देखा ही नहीं। ... जैसे कि बाद में पता चला कि उनका एक बड़ा भाई भी था। उन दोनों की आपस में बनती नहीं थी। और उस अनबन की वजह भी वही घटना थी। ... गौरीशंकर जी को भी इस तथ्य का पता था, लेकिन उन्होंने हमारे परिवार को क्षमा कर दिया था। लेकिन उनके बड़े भाई ने हमको कभी क्षमा नहीं किया। वो गौरीशंकर जी से भी नाराज़ इसी बात पर थे कि वो हमारे परिवार के इतने निकट थे... हमारे संरक्षण में थे!”

“तो क्या इसीलिए...? मेरा मतलब चूँकि मीना उनके परिवार से है, इसलिए श्राप का अंत हुआ?”

“हाँ और न! ... केवल यही कारण काफी नहीं था। ... जैसा कि मैंने तुमको बताया, तुमको भी तो मीना... मेरा मतलब सुहास ने जना! ... लेकिन तुम तो राजकुमार हो... पुत्र हो! ... मतलब, श्राप का अंत अभी भी नहीं हुआ।”

“फिर?”

“अंत तब हुआ जब तुम दोनों साथ में आ गए! ... थोड़ा सोचो कुमार... तुम्हारे अंदर आधा अंश राजपरिवार का है, और आधा अंश सती के वंश का है... आधा आधा! इसलिए श्राप तुम्हारे होने तक भी प्रभावी था। ... लेकिन चित्रा के अंदर राजपरिवार का केवल एक चौथाई अंश है, और सती का तीन चौथाई!”

जय ने दिमाग में हिसाब किताब लगाया - गणित के हिसाब से सही लग रहा था। लेकिन ऐसा भी कहीं होता है क्या?

“... सोचो!” माँ ने कहा, “सती का श्राप अपने ही परिवार पर तो लगने वाला नहीं... है न?”

“... तो इसका मतलब... अपने अजय और अमर... उनको बेटियाँ हो सकती हैं?”

“क्यों नहीं! श्राप तो समाप्त हो गया है न? ... याद है न, श्राप यह था कि हमारे कुल में कभी कोई लड़की पैदा ही न हो! ... लेकिन चित्रा तो हुई ही है न! मतलब, अब श्राप का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है।”

“वाह!” जय कुछ देर के बाद बोला।

“बेटे?”

“माँ... आप अमेज़िंग हैं!”

“आई नो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर अचानक ही गंभीर हो कर कहा, “पता है बेटे? मैंने तुम्हारे बड़े पिताजी को वचन दिया था कि हम इस श्राप को उतारने में बड़ी अहम् भूमिका निभाने वाले हैं। अनजाने ही सही, हमने एक बड़ी भूमिका अवश्य निभाई!”

“एंड आई थैंक यू फॉर दैट माँ!”

“ना! बच्चे अपनी माँ को थैंक यू नहीं बोलते!” माँ मुस्कुराईं, “... अब बोलो... क्या सोचा है?”

“किस बारे में माँ?”

“तुम्हारे और मीना के बारे में!”

“सोचना क्या है माँ? सात दिनों में हमारा विवाह होने वाला है! ... हम दोनों ही आपका आशीर्वाद पा कर धन्य होना चाहते हैं!”

“ओह मेरे बच्चे!” भावातिरेक में भर के माँ ने जय को अपने सीने में भींच लिया।

“लव यू माँ! लव यू सो मच!”

*
Nice update....
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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पौराणिक कथाओं मे हमने पढ़ा था कि ऋषि एवं महात्मा द्वारा दिए गए श्राप के निवारण का मार्ग भी स्वयं ऋषि - महात्मा ही निर्धारित करते थे ।
लेकिन यहां एक सच्चरित्र स्त्री के साथ दुष्कर्म किया गया था । उनके फैमिली के साथ अन्याय किया हुआ था । इसके फलस्वरूप उस पीड़िता स्त्री के दिल से बददुआ निकली , श्राप के रूप मे उनके मुख से स्वर निकले और उस दुष्कर्मी परिवार पर उस श्राप का कहर टूट पड़ा ।
सैंकड़ो सालों तक वह परिवार पुत्री जनन न कर सका ।

इस श्राप का समाधान अगर कोई कर सकता था तो वह पीड़ित औरत थी लेकिन वह यह कर न सकी क्योंकि उनकी मृत्यु हो चुकी थी ।
इस श्राप के निराकरण का दूसरा मार्ग था , पीड़ित औरत के परिवार के समक्ष अपने पाप का प्रायश्चित करना और उनके जीवन मे वापस खुशियाँ लौटाना । लेकिन यह भी सम्भव नही हुआ क्योंकि उस परिवार का कोई अता - पता नही था ।

यह कुदरत द्वारा दी गई नेमत थी कि गौरीशंकर जी अपनी पुत्री सुहासिनी के साथ राजघराने परिवार के सम्पर्क मे आए , राजकुंवर हर्ष के साथ सुहासिनी का प्रेम संबंध स्थापित हुआ और सुहासिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया ।

जैसा कि प्रियम्बदा जी ने कहा कि जय आधे राजघराने का और आधे सती के खानदान का अंश बन चुका था लेकिन जब तक सती के खानदान का अंश राजपरिवार से अधिक नही होता तब तक उसपर राजपरिवार का ही छाया रहता ।
मैने पहले कहा था , सुहासिनी और जय का वैवाहिक बंधन मे बंधना उस श्राप के निवारण का मार्ग था और वही नियति थी ।

प्रियम्बदा जी ने जय को सच्चाई से रूबरू करवा कर जहां अपने दिल का बोझ हल्का किया वहीं इन दोनो के प्रणय मे बाधा न पड़कर श्राप के निराकरण का मार्ग प्रशस्त भी किया ।

संतोष की बात यह है कि सबकुछ जानने के बाद सुहासिनी के साथ साथ जय को भी किसी प्रकार का अफसोस या पछतावा नही हुआ ।
अब सबकुछ वाह वाह हो गया है । पुरा परिवार सच्चाई से अवगत है । मिंया - बीबी राजी है । श्राप का " द एंड " हो गया है ।
कुल मिलाकर जगमग जगमग हो गया है ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट avsji भाई।

आपकी टिप्पणियाँ इतनी सटीक होती हैं संजू भाई, कि कभी कभी खुद के लिखे पर एक नए सिरे से प्रकाश पड़ता है! 🙏
आपकी बातें सही हैं - या तो वो सती ही अपने श्राप का निवारण कर दे, या फिर उसका परिवार, या फिर प्रकृति स्वयं। क्योंकि प्रकृति से ऊपर कोई नहीं।
प्रकृति भी संतुलन चाहती है। इसलिए जय और मीना साथ आ सके, जिससे वो संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।
इस लिहाज़ से आपका कहना सही है - मीना और जय का विवाह होना ही श्राप का निवारण था।
बस एक और अपडेट, और इस कहानी का अंत! :)
मिलेंगे फिर, अगली कहानी पर... फिलहाल कुछ है नहीं दिमाग में लिखने को!
 

komaalrani

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Update # 4


सवेरे हरीश की नींद प्रियम्बदा से पहले खुली। उनके शयनकक्ष को सुबह सुबह की रौशनी पूरी तरह से नहला रही थी। हरीश ने आँखें खुलते ही अपने बगल लेटी अपनी पत्नी को देखा - जो करवट में उसी की तरफ़ मुँह कर के लेटी हुई थी। एक क्षण को उसको बड़ा अलग सा एहसास हुआ - जैसा किसी अपरिचित को अचानक से पा कर होता है, लेकिन अगले ही पल वो एहसास ग़ायब हो गया। ‘प्रिया’... हाँ, यही नाम हरीश ने सोचा हुआ था प्रियम्बदा के लिए... प्रिया! उसकी प्रिया... अब उसकी अपरिचित तो नहीं रह गई थी! कल रात में दोनों स्थाई रूप से मिल गए थे - जो बंधन उन्होंने अग्नि को साक्षी मान कर बाँधा था, अब वो पूरी तरह से स्थाई हो चला था। उसने बड़े गर्व से यह सोचा, फिर प्रिया पर दृष्टि डाली!


एक बेहद उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली, लेकिन पतली सी चादर से ढँका हुआ उसका शरीर बहुत आकर्षक लग रहा था! कल इसी शरीर के साथ संसर्ग कर के जो अलौकिक आनंद उसको मिला था, वो अवर्णनीय था! कितना डर लग रहा था उसको कि क्या वो अपने से इतनी बड़ी उम्र वाली लड़की से इस तरह से अंतरंग हो भी सकेगा? लेकिन प्रिया आश्चर्यजनक रूप से एक अद्भुत साथी के रूप में सामने आई थी! हरीश की तरह वो भी नौसिखिया थी, लेकिन उसने पूरे सम्भोग के दौरान न केवल हरीश का हौसला ही बढ़ाया था, बल्कि सम्भोग की हर गतिविध में पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लिया था! हर नई ख़ोज, हर नए अनुभव के बारे में उसने हरीश को बताया था। ऐसी पत्नी पा कर वो बहुत खुश था! कुछ देर उसको यूँ निहारने के बाद हरीश से रहा नहीं गया - उसने बहुत गुपचुप तरीके से चादर को हटा दिया, जिससे प्रिया सोती रहे, और वो उसके सौंदर्य का अवलोकन कर सके।

सुबह की ठण्डक का स्पर्श जैसे ही प्रियम्बदा के शरीर पर हुआ, वैसे ही उसकी त्वचा पर नन्हे नन्हे रौंगटे खड़े हो गए। कक्ष में ऐसी ठंडक नहीं थी कि उसको कोई तक़लीफ़ हो। चादर हटते ही कल रात जो कुछ ठीक से नहीं दिख सका, अब वो सब कुछ निर्बाध तरीके से दृषिगोचर हो रहा था : प्रियम्बदा का साँवला सलोना रंग, सुबह की स्वर्णिम रौशनी में ऐसा चमक रहा था, जैसे कि उसकी त्वचा को शहद से सराबोर कर दिया गया हो! कोमल से होंठ - कल इन्ही होंठों को पहली बार चूम कर उसको ऐसा स्वर्गिक आनंद मिला था, जो उसको उम्र भर याद रहेगा! और ये स्तन... अब जा कर उसको प्रिया के स्तनों का सही सही अनुमान लगा! बढ़िया भरे भरे और लगभग गोल स्तन! साँवले लेकिन शफ़्फ़ाक़ चूचक और एरोला! कल रात के जैसे उन चूचकों में उत्तेजना नहीं थी - वो ऐसे लग रहे थे कि मानों अपनी मालकिन की ही भाँति वो भी सो रहे हों!

कल रात की अंतरंग, कोमल बातें उसकी याद में वापस ताज़ा हो आईं - कैसे ठोस हो गए थे ये... और कैसी मिठास थी उनमें! अगर उनमें अभी से ऐसी मिठास है, तो जब इनके स्तनों में दूध भर जाएगा, तब कैसी मिठास हो जायेगी! मन में उसके लालच आ गया... वो मिठास जब आएगी तब आएगी... फिलहाल अभी की मिठास का मज़ा क्यों न लिया जाए! हरीश थोड़ा सा झुका और अनुगृहीत हो कर उसने प्रियम्बदा का एक चूचक अपने मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया। चूचक इतना कोमल और संवेदनशील अंग होता है कि इसको छेड़ने से किसी भी स्त्री में बिजली सी तरंग दौड़ जाए! जाहिर सी बात है कि हरीश के होंठों का स्पर्श पा कर प्रियम्बदा की नींद टूट गई।

“हम्म?” वो उनींदी हो कर बोली।

सम्भोग क्रीड़ा के बाद ऐसी गहरी नींद आएगी, उसको आशा ही नहीं थी। विवाहिता होना कैसा अद्भुत सा सुख लिए होता है!

“गुड मॉर्निंग...” हरीश उसके चूचक को अपने मुँह में ही रखे हुए बोला।

“आह्ह... तो अब से हमको ऐसे जगाने का इरादा है आपका?” प्रिया ने बुदबुदाते हुए पूछा।

उसको संशय था कि सवेरे जागने के समय, जब उसकी हालत अस्त व्यस्त रहती है, तो उसको देख कर हरीश न जाने कैसी प्रतिक्रिया देंगे! कोई कुछ भी कह ले, लेकिन हम कैसे दिखते हैं, वो हमारे इम्प्रैशन का सबसे ज़रूरी और सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। प्रियम्बदा भी कोई अपवाद नहीं थी - वो भी अपने पति को सुन्दर दिखना चाहती थी। उसको मालूम था कि वो कोई सुंदरी नहीं थी, इसलिए वो जैसी है, कम से कम उसको तो अच्छी तरह से प्रस्तुत करे!

लेकिन हरीश को इस बात की कोई परवाह ही नहीं थी। अपनी पत्नी को नग्न-रूप में पा कर जैसे उसको अब किसी दिखावे की आवश्यकता ही नहीं थी!

“नहीं... इससे भी बेहतर तरीक़े से...”

“क्या? ... आऊऊऊऊ...” वो कुछ कह पाती कि उससे पहले हरीश ने उसके स्तन का और भी अधिक हिस्सा मुँह में ले कर ज़ोर से चूसा...

यह कोई सामान्य चूषण नहीं था - कल रात जैसा भी नहीं! कल तो बहुत संयमित सा था सब कुछ! संयमित, और अनिश्चित सा! लेकिन अभी... प्रिया ने हरीश के होंठों का बल अपने चूचक पर महसूस किया! कल से कहीं अधिक आत्मविश्वास था... कल से कहीं अधिक अधिकार-बोध! एक मीठी, कामुक तरंग उसके पूरे शरीर में दौड़ गई! कैसा अनोखा खेल है ये! अपने पति के सामने वो ऐसी निर्लज्जता से नग्न लेटी हुई है, लेकिन फिर भी ‘वैसी’ लज्जा की अनुभूति नहीं हो रही है! इसमें उसको गर्व हो रहा है कि उसका हरीश उसके नग्न रूप को देख सकता है, और उसका मनचाहे तरीके से आस्वादन कर सकता है!

“मीठा मीठा स्वाद आ रहा है...” थोड़ी देर बाद हरीश ने संतुष्ट आनंद भाव से कहा!

“आप भी न...”

“हम भी न क्या?”

“आप बहुत शरारती हैं...”

“हमारी शरारत आपको देखनी है?”

“नहीं...” प्रिया शर्म से मुस्कुराती हुई बोली।

यह कोई विरोध नहीं था। यह हरीश भी समझ रहा था, और प्रिय भी जानती थी! हरीश ने प्रिया का हाथ लिया और अपने स्तंभित लिंग पर रख दिया।

रात्रिकाल के हल्के उजाले में प्रिया को अभी के जैसा संकोच नहीं हुआ था। लेकिन भोर के उजाले में कुछ अलग ही बात महसूस हो रही थी। सही मायनों में उनके बीच की अंतरंगता अब सामने आई थी। उस कठोर अंग को अपने हाथ पर महसूस कर के उसको ही शर्म आने लगी।

“ए जी,” उसने कहा, “ये ऐसा कठोर सा क्यों हो गया है?”

“आपको नहीं मालूम?”

“मालूम है,” प्रिया को यह स्वीकार करने में शर्म आ गई कि उसका पति उसके साथ भोर सुबह भी सम्भोग करने में इच्छुक है, “लेकिन, अभी तो सुबह हो गई है न...”

“तो?”

“तो... मतलब... ये सब करने के बजाए... अच्छे बच्चों के जैसे उठिए... नहाईए धोईये... पूजा पाठ कीजिए... माता पिता का आशीर्वाद लीजिए...”

संभव है कि हरीश प्रिया की बात को गंभीरता से ले लेता... अगर... अगर कल रात वो पूरे उत्साह के साथ सम्भोग क्रीड़ा में भाग न ले रही होती!

“अवश्य... किन्तु यह सब कोई ‘अच्छा बच्चा’ करता! ... है न?”

“आप नहीं हैं अच्छे बच्चे?”

“नहीं!” हरीश ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया, “लेकिन आप हैं न...”

“हम?”

“हाँ... हमारे अच्छे अच्छे बच्चे... आप ही से तो आने वाले हैं!”

“हा हा हा...!” प्रिया को मद्धिम सी हँसी आ गई उसकी बात पर!

“फ़िर?”

“फ़िर... क्या?”

“क्या इरादा है आपका?”

“... आपकी इच्छा... हमारे लिए... आज्ञा है! और आपकी आज्ञा शिरोधार्य है...” प्रिया ने लज्जा से, बड़े धीमे से कहा, “और... हम तो हैं ही... आपकी संतानों की माँ...”

“हमारी संतानें...?”

“... होने वाली संतानें... हम ही से तो आएँगी! हम ही तो हैं उनकी माँ!”

“तो?”

“तो... तो फ़िर... शुरू कीजिए न...”

“अवश्य... युवरानी जी...”

हरीश ने कहा, और प्रिया को बिस्तर पर चित कर के लिटा दिया, और उसकी जाँघें खोल कर, वापस उसके अंदर प्रविष्ट हो गया।

“ओओहहह...” प्रिया के गले से एक मीठी कराह निकल गई, जो हरीश के हर धक्के के साथ और भी गहरी होने लगी!

आठ से दस मिनट तक चले सम्भोग के बाद दोनों संतुष्ट हो कर एक दूसरे के मज़बूत आलिंगन में बँध कर अभी अभी संपन्न हुए सम्भोग की सुखानुभूति लेने लगे।

“क्या सोच रहे हैं आप?” प्रिया ने ही चुप्पी तोड़ी।

“प्रिया... हम आपको प्रिया कह कर बुला सकते हैं?”

“आप मुझको जिस भी नाम से पुकारेंगे, वही मेरा नाम है!”

हरीश मुस्कुराया, “प्रिया, हम आपको हमेशा ख़ुश रखेंगे! यह हमारा वचन है!”

“हमको मालूम है...” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “हम भी आपको वचन देते है कि हम आपकी हर इच्छा को यथासंभव पूरा करेंगे... कम से कम पूरा करने का प्रयास करेंगे!”

प्रिया की बात पर हरीश थोड़ी देर चुप हो गया, और फिर कुछ सोचते हुए बोला,

“हमारी... या यह कह लीजिए कि हमारे परिवार की केवल एक ही इच्छा है... हमारे परिवार पर लगा श्राप उतर जाए... बस!”

“श्राप?”

“आपको किसी ने बताया नहीं?”

“नहीं...” प्रियम्बदा को पता था, लेकिन वो अपने पति के मुख से सब सुनना जानना चाहती थी।

लिहाज़ा हरीश ने उसको सब कुछ बताया। कम से कम इस बात को छुपाया नहीं गया।

“क्या सच में हमारे परिवार में कन्याएँ नहीं होतीं!”

हरीश ने बड़ी निराशा से सर हिलाया, “उस श्राप के बाद से नहीं हुईं... अभी तक!”

न जाने किस प्रेरणा से प्रियम्बदा ने गहरी साँस भर के कहा, “आपसे एक बात कहें?”

हरीश ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हमको लगता है कि इस श्राप को उतारने में हमारी बड़ी अहम् भूमिका होने वाली है!”

“क्या सच?”

“जी... इतने सुन्दर परिवार पर किसी भी प्रकार का श्राप नहीं लगा होना चाहिए! ... हम आपको वचन देते हैं... हम सारे व्रत और अनुष्ठान करेंगे, लेकिन इस श्राप को बोझ अवश्य उतारेंगे! ... राज परिवार को एक प्यारी सी राजकुमारी अवश्य मिलेगी!”

“ओह प्रिया... प्रिया...” हरीश ने प्रियम्बदा को चूमते हुए आनंदमय होते हुए कहा, “आज हम इतने प्रसन्न हैं कि आपको बता नहीं सकते! ईश्वर आपको और हमको एक पुत्री का वरदान दें... बस यही कामना है!”


*
Superb story, just started reading today,
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Superb story, just started reading today,

बहुत बहुत धन्यवाद, कोमल रानी जी!
यह कहानी बस समाप्त होने वाली है... आज दो अपडेट, और फिर एक आख़िरी अपडेट!
इसको समाप्त कर के कुछ समय नहीं लिखूँगा। बस, अन्य लेखक बंधुओं की रचनाएँ पढ़ूँगा।
आशा है कि आपको मेरी इस कहानी, और अन्य कहानियों से आनंद मिल सके। :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #51


“मुझे नौलखा मँगा दे रे... ओ सैयाँ दीवाने...
टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग... टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग...”

जय को कमरे के अंदर आते हुए देखते ही, मीना अपने दोनों हाथ अपनी कमर के दोनों तरफ़ रखे हुए, शरारत भरे ठुमके लगाती हुई, शरारत से मुस्कुराती हुई, और आँखें की कटारी चलाती हुई आज कल का एक अति-प्रसिद्ध गाना गुनगुनाने लगी।

जय अपने और माँ के बीच हुई बातचीत के बाद अभी भी गंभीर था। कोई संत महात्मा ही होगा, जिस पर ऐसी पहाड़नुमा सच्चाई सुनने के बाद भी कोई प्रभाव न पड़े! उसको इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि मीना पर उस सच्चाई के संज्ञान का क्या प्रभाव पड़ा! यह तो सत्य है कि कल रात मीना ने जय को एक पल के लिए भी संदेह नहीं होने दिया था, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता चल गया है। लेकिन जय फिलहाल समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या करे? अपनी और मीना की सच्चाई जानने के बाद जय को समझ नहीं आ रहा था कि वो मीना का सामना कैसे करे! अपनी माँ के सामने बड़ी बड़ी बातें करना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - दो अलग बातें थीं।

ऐसे में फिर से मीना उसके उद्धार हेतु प्रस्तुत थी। शायद उसको सहज करने का मीना का स्वयं का कोई तरीका हो! मीना की चंचल शरारत को देख कर जय मुस्कुराने लगा। बड़ी कोशिश के बाद वो अपनी हँसी दबा पाया था।

‘कितनी प्यारी है उसकी मीना!’ उसके मन में बस यही ख़याल आया, ‘... उसको खुश रखने के लिए वो कुछ भी करती है!’

“अरे... ये क्या गा रही हैं आप...?” प्रत्यक्ष, वो मुस्कुराते हुए मीना से बोला।

लेकिन मीना ने उसका उत्तर नहीं दिया, और अपना गुनगुनाना जारी रखा,

“... माथे पे झूमर... कानों में झुमका... पाँव में पायलिया, हाथों में... होओओ... कँगना...
मुझे नौलखा मँगा दे रे, ओ, सैयाँ, दीवाने...”

मीना ने हर आभूषण के लिए नृत्य की भँगिमा बना बना कर दिखाया, फिर लगभग खिलखिलाती हुई आगे गुनगुनाई,

“... तुझे मैं... तुझे मैं...
तुझे गले से लगा लूँगी... ओ सैयाँ दीवाने...”

उसको आगे कुछ नहीं करना पड़ा। अब तक दोनों ही खिलखिला कर हँसने लगे थे।

जय ने आगे बढ़ कर मीना को अपने आलिंगन में मज़बूती से पकड़ लिया। जय को एक आश्चर्यजनक अनुभव महसूस हुआ - इतना सुकून या तो उसको माँ के आलिंगन में आता है, या फिर मीना के आलिंगन में ही! माँ... मीना... माँ... बीवी... माँ... इस रहस्य की स्वीकारोक्ति पर वो अंदर ही अंदर मुस्कुराया।

“क्या बात है!” जब दोनों की हँसी रुकी, तब जय बोला, “... बड़े अच्छे मूड में हैं आप!”

“बहोत!” मीना ने अभी भी शोख़ चंचलता से कहा।

“गुड! ... लेकिन ये गा क्या रही थीं? ... क्या गाना है!”

“अरे, ये? ये गाना सुपरहिट है आज कल... रेडियो में सुना... दो बार आया इतनी देर में!”

“ओह... अच्छा...” जय अभी भी मीना को अपने आलिंगन में लिए हुए था, “और दो बार ही में आपको याद भी हो गया?”

यह कोई प्रश्न नहीं था - जय को पता था कि मीना की स्मरणशक्ति सामान्य से अधिक है।

“आप भी दो बार सुनेंगे, तो आपको भी याद हो जाएगा,” मीना ने जय की दोनों बाहें थाम कर ठुमकते हुए कहा, “इट हैस अ लवली ट्यून...” और फिर आगे गुनगुनाने लगी,

“... मुझे अँगिया सिला दे रे... ओ सैयाँ दीवाने...
टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग... टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग...
तुझे मैं... तुझे मैं... तुझे सीने से लगा लूँगी... ओ सैयाँ दीवाने...”

अब तक जय को ज़ोर से हँसी आने लगी थी। एक तो मीना के गाने के साथ साथ ठुमके लगाने का जो अंदाज़ था, वो बड़ा ही मज़ाकिया था, और साथ ही में उसका ‘टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग’ करना भी उतना ही मज़ाकिया था!

कितना आश्चर्यजनक था कि मीना उसको भनक भी नहीं लगने दे रही थी, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता था। वो शायद यही धारणा ले कर चल रही थी, कि माँ ने शायद जय को उसके बारे में न पता हो! लेकिन, जय के मन में अभी भी संकोच था। हाँ - यह सच है कि वो मीना को अपनी पत्नी के रूप में ही चाहता था, लेकिन उन दोनों के सत्य को झुठला पाना, उसको अनदेखा कर पाना भी तो कठिन काम था!

“... अच्छा... तो आपको अँगिया सिलवानी है?”

मीना ने अपनी चँचल आँखों पर अपनी सुन्दर पलकों को झपकाते हुए, चंचल अदा से, ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“इस अँगिया में क्या प्रॉब्लम है?”

पूछते हुए जय ने मीना के होंठों को चूमा - एक अलग ही तरह का आनंद आया उस चुम्बन में! जैसे किसी कोमल, रसीले, किन्तु गरम फल का स्पर्श हुआ हो उसके स्वयं के होंठों पर!

“नए कपड़ों के लिए पुराने कपड़ों में कोई प्रॉब्लम होनी ज़रूरी है क्या, मेरे भोले जानू?”

मीना ने इतनी आसानी से ‘मेरे भोले जानू’ कहा कि जय का दिल लरज़ गया।

‘बाप रे!’ जय ने सोचा, ‘कितनी सेक्सी है मेरी मीना! ... प्यारी भी... सेक्सी भी...’

मीना की इस छोटी सी ही बात पर जय का मन उत्तेजना से भर गया। उसके लिंग में ऐसी भयंकर हलचल उठी, जो परिचित भी थी, और अपरिचित भी!

‘ऐसा क्यों महसूस हुआ मुझको?’ उसके मन में एक प्रश्न उठा, ‘मीना तो वही है, जैसी अभी शाम तक थी... क्या उसको देखने का मेरा नज़रिया बदल गया है?’

शायद!

यह सच है कि प्रियम्बदा ने जय को इतने लाड़ प्यार से पाला था कि उसके मन में एक पल को भी यह ख़याल नहीं आया कि वो उसकी माँ नहीं हैं। माँ महारानी थीं, और उनके पास अपने राज्य, राजनीति, और बड़े पापा के व्यापार से सम्बंधित कितने सारे काम रहे होंगे। लेकिन इन सभी व्यस्तताओं के बावज़ूद, उन्होंने अपने हाथों से उसका लालन-पालन किया था। वो ही उसको सुबह सुबह स्कूल के लिए तैयार करतीं, उसको अपने हाथों से खाना खिलातीं... फिर शाम को उसके साथ खेलतीं! जय का पालन सेविकाओं पर निर्भर नहीं था। जय आदित्य को चिढ़ाता भी था कि बहुत संभव है कि माँ से उसको भैया से भी अधिक प्यार मिला हो! ऐसे में माँ उसकी माँ नहीं हो सकतीं, यह विचार कैसे आ सकता था उसके मन में? इसलिए आज माँ के मुँह से सच्चाई सुनने के बाद भी उसको यकीन नहीं हुआ। लेकिन, उनकी बात पर यकीन न करना भी असंभव था। वो उससे खेलने के लिए तो ऐसी बात नहीं बोलेंगी! बोल तो वो सच ही रही थीं! मतलब मीना उसकी माँ हैं... और... पत्नी भी... और... उसकी संतान की माँ भी... और आने वाली संतानों की भी होने वाली माँ हैं!

‘बाप रे! ... कैसा गड्ड मड्ड...!!’

उसने माँ से वायदा तो कर दिया था, कि इस खुलासे का उसके और मीना के सम्बन्ध पर... उनके पति-पत्नी होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन, माँ के सामने बड़बोला बनना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - ये दो बड़ी अलग बातें थीं। कमरे में प्रवेश करने से पहले तक उसके मन में अनेकों विचार आ जा रहे थे कि वो मीना का सामना कैसे करेगा! लेकिन, एक आदर्श पत्नी की भाँति मीना ने बड़ी कुशलता से उसकी मुश्किल आसान कर दी थी। एक प्रेमिका की शोख़ चंचलता दिखाते हुए उसने जय के जीवन में अपना स्थान सुनिश्चित कर दिया था। दोनों के सम्बन्ध में संशय का कोई स्थान नहीं बचा था - मीना उसकी पत्नी है, और उसकी पत्नी ही रहेगी! बस, मन में से इस नए विचार को दूर करना होगा।

“कोई ज़रूरी नहीं है...” जय ने मीना की ब्लाउज के एक कोने को छूते हुए कहा, “... लेकिन इसको अँगिया नहीं कहते...”

“नहीं?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया, “ये तो ब्लाउज है... मतलब चोली...”

“ओओओह्ह्हह्ह...”

“हाँआँआँआँ...” मीना के ही अंदाज़ में बोल कर वो मुस्कुराते हुए मीना की ब्लाउज के बटन खोलने लगा।

“तो फ़िर अँगिया क्या होती है?” मीना ने बड़े नटखट भोलेपन से पूछा।

इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले जय ने इंतज़ार किया। जब मीना की ब्लाउज के सभी बटन खुल गए, तो उसके पट खोल कर वो मीना की ब्रा को छेड़ते हुए बोला, “... इसको... इसको कहते हैं अँगिया...”

“हैं? ये है अँगिया?” उसने चौंकते हुए कहा, “... फिर तो बड़ा नुकसान हो गया!”

“वो कैसे,” जय अभी भी रुका नहीं था - मीना का वस्त्र-हरण अभी भी जारी था।

“हमको लगा था कि आप अपनी राजकुमारी को रंग-बिरंगा सा, महँगा सा ब्लाउज देंगे... लेकिन...”

“लेकिन...?” जय ने उसकी ब्रा को उतारते हुए कहा।

अब मीना के दोनों स्तन स्वतंत्र हो चले थे।

“लेकिन हमारे राजकुमार जी तो मेरे बदन पर कपड़े ही नहीं रहने देना चाहते!” मीना ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “... वैसे ही छोटा सा कपड़ा है... और उसको भी उतार दिया...”

“राँग...” जय ने मीना के स्तनों को सहलाते हुए कहा।

“राँग?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और फुसफुसाते हुए बोला, “कंडीशंस अप्लाई...”

जय ने बड़ी आशा और आदर से मीना के स्तनों को देखा।

अगर भाग्य ने ऐसी कहानी न लिखी होती, तो इन्ही स्तनों से उसको अपने जीवन का पहला पोषण मिला होता। एक संतान का अपनी माँ से पहला परिचय भी तो इसी अंग से होता है! माँ ने बचपन में उसको स्तनपान कराया था - वो अलग बात है कि उनको दूध नहीं बनता था। बनता भी तो कैसे? यह बात उसको अब समझ आ रही थी। आज तक वो इसी धारणा के साथ जीता रहा कि मीना का दूध उसकी बेटी के लिए है। फोरप्ले के अंतरंग क्षणों में, कभी कभी जब जोश में वो उसका दूध पी लेता, तो उसको थोड़ा अपराध-बोध सा हो जाता, कि जैसे वो अपनी ही संतान के हिस्से का दूध गटक जा रहा हो।

“कंडीशंस?” मीना बोली, “कैसी कंडीशंस?”

लेकिन जय सुन नहीं रहा था। उसका ध्यान, उसका मन कहीं और ही था! इस समय उसका मन हो रहा था कि वो इन स्तनों का दूध पी ले। अनकहे ही सही, लेकिन एक बार... बस एक बार वो अपनी माँ के स्तनों को महसूस करना चाहता था... पत्नी के नहीं! एक अजीबोगरीब कश्मक़श सी महसूस हो रही थी उसको - एक अपराधबोध सा! अनोखी क़िस्मत थी दोनों की कि वो दोनों यूँ इस वर्जनीय बंधन में बंध गए थे। समाज इस सम्बन्ध को पाप का नाम देता है। लेकिन वो इस बंधन से अलग नहीं होना चाहता था। पाप हो या पुण्य! दोनों के बीच प्रेम का बंधन था, और चित्रा उस प्रेम का परिणाम! इन दोनों सच्चाईयों को झुठलाया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी, जय के मन में एक उलझन सी थी...

मीना ने एक दो बार कुछ कहा भी, लेकिन जय के कानों में उसकी आवाज़ ही नहीं आ रही थी। जय कुछ देर तक उसके स्तनों को सहलाता रहा। मीना ने भी उस छुवन में कुछ अलग सा महसूस किया - जय का यह स्पर्श, पहले जैसा... प्रेमी वाला स्पर्श नहीं लग रहा था। उस स्पर्श में एक प्रकार की अधीरता होती थी, अधिकार होता था। इस स्पर्श से लग रहा था कि वो उससे कुछ मांग रहा हो। कल रात की बातें उसके दिमाग में अचानक से कौंध गईं। उसने देखा कि जय एक टक उसके स्तनों को देख रहा है।

“क्या हुआ मेरे जानू?” अनजाने ही बड़ा ही कोमल, बड़ा ही ममता भरा स्वर निकल गया मीना के मुँह से।

“हम्म्म? ... जी?” जय बोला।

“क्या बात है? ... क्या हो गया मेरे भोलू जानू को?”

“क... कुछ नहीं...” जय ने असहज हो कर कहा।

“बोलो न...”

“कुछ भी नहीं,” जय झिझकते हुए बोला।

लेकिन मीना समझ रही थी। स्त्रियों की छठी इन्द्रिय इस मामले में बड़ी अनूठी होती है।

“हमारे बीच कुछ छुपा हुआ भी रहना चाहिए क्या?”

मीना की बात पर जय थोड़ा झिझक गया - उसके मन में एक और तरह का अपराधबोध हो आया। सच है - अपनी पत्नी से कुछ नहीं छुपाना चाहिए... नहीं तो सम्बन्ध की पवित्रता बनी नहीं रह सकती। इस मामले में सच सच कहना ही होगा।

“नहीं...” जय झिझकते हुए थोड़ा रुका, और फिर बोला, “लेकिन... लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे कहूँ!”

“मेरे राजकुमार,” मीना ने बड़े अधिकार से कहा, “... आपको जो कहना हो, वो मुझसे आप कह सकते हैं! ... अगर आपकी कोई इच्छा हो, तो मुझसे कहिए... मैं उसको पूरा करने की पूरी कोशिश करूँगी...”

मीना को जय की सारी चेष्टाएँ समझ में आ रही थीं... इसलिए उसने उसको थोड़ा उकसाया।

मीना की बात से जय को थोड़ा सम्बल मिला। वो झिझकते हुए मुस्कुराया,

“व...वो... मुझे... मुझे... दूध पीना... है...”

दूध पीना है?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो इसमें क्या है?” मीना समझ रही थी, लेकिन वो जय को थोड़ा छेड़ना चाहती थी, “किसी से कह दूँ? ... या... मैं ही ले आऊँ?”

जय ने उसको बनावटी गुस्से की नज़र से देखा... मानों कहना चाहता हो कि ‘कितनी मूरख हो तुम! क्या करने का कह रहा हूँ, और क्या सोच रही हो!’

जय को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए मीना ने समझने का नाटक किया,

“ओओओह्ह... अच्छाआआ... आपको मेरा दूध पीना है?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

यहाँ से?” मीना ने अपने स्तनों की तरफ अपनी तर्जनी से इशारा किया।

जय ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सीधे? निप्पल से?” मीना बोली...

उसका मन हो रहा था कि वो जय को थोड़ा और छेड़े। न जाने कैसे वो जय के साथ छोटी हो जाती थी। उसका मन होने लगता था, जय के साथ खेलने का... मस्ती करने का! उम्र में उससे बड़ी होने के बावज़ूद! जय उसको इतना प्यार करता था कि उसको किसी भी बात के लिए मना नहीं करता था... उसको अपने हिसाब से जीने देता था। इसलिए मीना को जय के साथ न केवल बहुत सुरक्षित महसूस होता था, बल्कि बहुत नैसर्गिक सा लगता था! दोनों का प्यार इतना भोला सा था कि ऐसी छोटी-छोटी, मीठी छेड़खानी से भी दोनों बहुत आनंदित हो जाते थे।

जय ने बार तेजी से कई बार ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो फिर... मेरे राजकुमार... मेरी जान... आप इतना झिझक क्यों रहे हैं?” मीना ने मुस्कुराते हुए और जय के गाल को सहलाते हुए कहा, “... मेरा सब कुछ आपका है... और आप... आप तो मेरे सब कुछ हैं! मेरी हर चीज़ पर पहला हक़ आपका है...”

“सच में?”

“सच मुच में...” मीना मुस्कुराई, “आप हमारे हस्बैंड हैं... विदेशों में पढ़ी लिखी और बड़ी हुई हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि आपके लिए मेरे मन में कम रिस्पेक्ट है... मेरे मन में आपकी वही जगह है, जो किसी भी इण्डियन, मैरीड लेडी के मन में अपने हस्बैंड के लिए होती है!”

इससे बड़ी हरी झंडी मीना उसको नहीं दे सकती थी।

जय की आँखों में अचानक ही चमक सी आ गई - वैसी ही जैसे बच्चों की आँखों में आ जाती है, जब उनको उनके पसंद की कोई वस्तु मिल जाती है।

“... तो... मैं...?”

मीना ने जय के सर और बालों को सहलाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Update #52


जय ने बिना कोई समय गंवाए, अधीरतापूर्वक मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया, और तत्परता से चूसने लगा।

कोई पाँच सात क्षणों में चूचक के सिरे से थोड़ा मीठा सा स्वाद लिया हुआ दूध निकलने लगा। जब जय, मीना को अपने बच्चे की माँ, और अपनी पत्नी के रूप में ही देखता था, तब उसको उसका दूध केवल स्वादिष्ट लगता था। लेकिन आज, जब उसको मीना की एक अलग पहचान का भी मालूम था, तब उसको उसके दूध का स्वाद निराला लग रहा था - लगभग अमृत समान! यह दूध आज उसकी आत्मा को तृप्त कर रहा था। आज मीना के स्तन से उसको पोषण मिल रहा था! लिहाज़ा, उसके मन में अपराधबोध किंचित मात्र भी नहीं था। मनोविज्ञान के खेल बड़े अनोखे होते हैं!

मीना के मन में एक अनजान आशंका तो थी। अगर माँ ने उसको सब बता दिया है, तो बहुत अधिक संभव है कि वो जय को भी सब बता देंगीं। उससे कुछ भी छुपा कर रखना - मतलब उसके साथ छल करना! संबंधों की नींव सच्चाई पर हो, तो ही अच्छा। जय और मीना के बीच की पहली सच्चाई उनका प्रेम था। उसी के कारण मीना ने जय को अपने पूर्व के प्रेम-संबंधों के बारे में सब कुछ सच्चाई-पूर्वक बता दिया था। वो किसी अपराध-बोध के साथ जय के साथ अपना भविष्य नहीं बनाना चाहती थी। लेकिन कल रात वो जय से कुछ कह पाने में अपने आप को पूरी तरह से असमर्थ पा रही थी। शायद वो खुद भी अपने आप को दिलासा देना चाह रही थी कि माँ की बताई हुई सच्चाई, उनकी सच्चाई नहीं है। उसने जिसको अपना वर माना, जिसको अपनी आत्मा का भी स्वामी मान लिया, अब वो उसके साथ अपना सम्बन्ध परिवर्तित नहीं कर सकती थी।

वो लाखों कोशिशों के बाद भी जय को अपने पुत्र के रूप में नहीं देख पा रही थी। उसके लिए यह संभव ही नहीं हो रहा था। लेकिन एक समय पर उसको जय को सब कुछ सच सच बताना ही होगा न! लेकिन जय की अभी की चेष्टा देख कर उसको अनुमान हो गया कि माँ ने उसको सब कुछ बता दिया है। एक तरह से मीना के हृदय से एक भारी बोझ उतर गया था। कम से कम अब, उन दोनों के लिए इस बात पर चर्चा कर पाना आसान हो गया था। शायद बहुत कठिन हो इस विषय पर बात करना - लेकिन करना तो पड़ेगा! दोनों का भविष्य जो इस बात पर निर्भर करता है।

मीना इतना तो समझ ही रही थी कि अनकहे ही सही, जय ‘अपनी माँ’ का दूध पीना चाहता था। इसलिए उसने जय को दिलासा दिया और स्तनपान करने को उकसाया। अगर उसके अख़्तियार में कुछ था, तो जय की कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती - यह उसने बहुत पहले ही सोच लिया था। तो अगर जय उसका स्तनपान करना चाहता था, मीना उसकी यह इच्छा ज़रूर पूरी करेगी। लिहाज़ा, जय बड़ी फुर्सत से स्तनपान करता रहा। उसको न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना के स्तन में बहुत दूध था। मीना को भी अलग सा अनुभव हो रहा था - हाँ, जब चित्रा स्तनपान करती, तो कम दूध निकलता... लेकिन जय के हर चूषण में अधिक निकलता हुआ महसूस हो रहा था। वो खुश थी कि जय स्तनपान कर के प्रसन्न और संतुष्ट था। खैर, जब एक स्तन खाली हो गया तो भी जय का न तो पेट ही भरा और न ही मन। मीना इस बात को समझ चुकी थी। इसलिए एक स्तन खाली होते ही उसने जय को अपने दूसरे स्तन से सटा दिया। कुछ समय बाद दूसरा स्तन भी खाली हो गया।

न चाहते हुए भी जय को मीना के स्तनों से हटना पड़ा।

“मन भरा मेरे राजकुमार का?” मीना ने बड़े लाड़ से पूछा।

जय ने शरारत से मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“हा हा,” मीना खिलखिला कर हँस दी, “... कोई बात नहीं, दो घण्टे में फिर से ट्राई करिएगा... और मिलेगा!”

जय मुस्कुरा दिया।

“लेकिन हम तो थक गए, यूँ बैठे बैठे...” मीना ने आलस से अँगड़ाई भरते हुए कहा, “... थोड़ा लेट जाऊँ?”

अँगड़ाई भरते ही मीना के स्तन बड़े ही लुभावने अंदाज़ में ऊपर उठ गए। एक गज़ब का युवा दृढ़ता थी उसके स्तनों में। पिलपिले स्तन नहीं थे - फर्म, लज़्ज़तदार! सेक्सी!

लेकिन न जाने क्यों इस बात का जय पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।

वो बोला, “आपको मुझ से इजाज़त लेने की ज़रुरत नहीं... आप तो खुद ही हमारी सब कुछ हैं... मालकिन हैं...”

“ओ हो हो हो... मालकिन! ... हा हा... हम आपकी मालकिन हैं?” मीना ने बिस्तर पर लेटते हुए कहा।

“आप तो सब कुछ हैं मेरी...”

“सब कुछ?”

“सब कुछ!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात...” जय मुस्कुराते हुए बोला।

“तो फिर... मेरे राजकुमार जी, टेल मी... व्हाट इस एलिंग यू (आपको कौन सी बात परेशान कर रही है)?” मीना ने इस बार स्पष्ट बात बोली।

जय कुछ देर चुप रहा।

“जय...?” मीना ने फिर से कहा।

“मीना... अभी... कुछ देर पहले... माँ से बात हुई...” उसने हिचकते हुए कहा।

मीना चुप ही रही... वो जानती थी कि माँ ने क्या बताया होगा उसको।

“उन्होंने... उन्होंने... बताया...”

कह कर जय चुप हो गया।

मीना ने कुछ क्षण इंतज़ार किया, लेकिन जब जय आगे कुछ न बोला, तो उसने कुरेदा,

“क्या?”

“यही... कि... हम दोनों... हम दोनों...” जय कह न सका... और उसने नज़रें झुका लीं।

मीना को लगा कि बात की बागडोर हाथ में लेने का समय आ ही गया है। चूँकि जय उम्र में उससे छोटा है, इसलिए शायद वो इस बात को उचित परिपक्वता से सम्हाल न सके।

“जय... मेरे जय...” मीना बोली, “मेरी तरफ़ देखो...”

जय ने झिझकते हुए मीना की तरफ़ देखा।

“मेरे एक सवाल का सीधा सीधा जवाब देना। ... ठीक है?”

जय ने उसकी तरफ़ देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम मुझे कैसे देखते हो... अपनी बीवी के जैसे, या फ़िर अपनी माँ के...”

जय अपना उत्तर देने में एक पल भी नहीं रुका, “... ऑब्वियस्ली अपनी बीवी के जैसे...”

“तो फ़िर हम इस बारे में बात भी क्यों कर रहे हैं?” मीना बोली, “माँ यह बात हमसे छुपा नहीं सकती थीं... माँ को लगा कि यह उनका फ़र्ज़ है कि हमको इस सच्चाई से अवगत कराएँ... इसलिए उन्होंने हमसे कुछ नहीं छुपाया। हाँ, यह ज़रूर है कि उन्होंने हमको देर में सब बताया... अगर वो पहले ये बात बता देतीं, तो शायद हमारा अंज़ाम कुछ अलग होता। लेकिन...” कह कर वो थोड़ा रुकी, “... लेकिन अब... ये हम दोनों पर है कि हम इस बात को अपनी लाइफ में कितनी तवज्जो देते हैं।”

“लेकिन मीना...”

“जय... मैं... तुम... तुम मुझसे बने हो, यह सच है! मैं इस बात से इंकार नहीं करूँगी... लेकिन मुझे उस बात की कोई याद ही नहीं है! ... हाँ... कल के बाद से मुझे राजकुमार जी... मतलब, तुम्हारे पिता जी की याद वापस आ गई है... लेकिन... न तो मुझे प्रेग्नेंसी की याद है, न ही लेबर की, और न ही अपने माँ बनने की!”

जय सुन रहा था... चुपचाप।

“मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी मैंने तुमको अपनी गोद में लिया हो... ऐसे में तुम्हारे लिए मेरे मन में माँ वाली फ़ीलिंग्स कैसे आ सकती हैं?” मीना ने समझाते हुए पूछा, “हाँ... तुमको ले कर जो यादें हैं, वो हैं तुमसे मिलने की यादें... हमारी यादें... जब तुमने मुझको पहली बार छुआ था एस माय लव... वो यादें... जब... जब तुमने और मैंने पहली बार...” कहते कहते वो थोड़ा रुकी, “... तो हमारी सच्चाई ये ही है... तुम मेरे हस्बैंड हो... मेरा प्यार... मेरी बेटी के पापा! और... हमारे होने वाले बच्चों के पापा!” मीना मुस्कुराती हुई बोली, “मेरे अलावा किसी और से बच्चे करने का सोचा भी न तो देख लेना...”

मीना हँसने लगी, और उसके साथ जय भी, “... तो ये है हमारा सच! ... जो माँ ने बताया... वो उस तरह का सच है जिसका हम पर... हमारे फ्यूचर पर कोई असर नहीं होगा...”

“सच में मीना?” जय ने पूछा - जैसे वो उससे दिलासा लेना चाहता हो, “सच में कोई असर नहीं होगा न?”

“बिल्कुल भी नहीं होगा! ... आई लव यू टू मच टू गिव अप ऑन आवर फ्यूचर टुगेदर...”

“ओह थैंक यू सो मच मीना...”

“थैंक यू?”

“सॉरी...” जय मुस्कुराते हुए बोला।

“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?”

“नहीं नहीं!” फिर मुस्कुराते हुए, “... आई लव यू मीना!”

“यू बेटर! ... बीवी को ‘बेटर हॉफ’ यूँ ही नहीं कहते हैं!”

“हा हा! ... बट यू आर माय बेटर हॉफ!”

मीना उसकी बात पर पहले तो हँसी, फिर अचानक से जय को उसके होंठों पर चूमने लगी।

“आई लव यू! ... थैंक यू फॉर बीईंग माय हस्बैंड!”

“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?” जय ने मीना की ही कही गई बात दोहरा दी।

“सम टाइम्स” मीना हँसने लगी।

माहौल को भारी करने वाली बातें यूँ ही आई-गई हो गईं।

“मेरी जान?” जय कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए बोला।

“जी?”

“तुमसे एक बात करनी थी...”

“अरे तो इसमें इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रुरत है... कहिए न! ... आप मेरे हस्बैंड हैं... आपकी मैं उसी तरह से इज़्ज़त करती हूँ! आपको कभी भी मुझसे फॉर्मल होने की ज़रुरत नहीं... आप हुकुम करिए, मेरे हुकुम!” मीना ने हँसते हुए कहा।

“आज माँ से बात करते हुए मैंने उनसे एक प्रॉमिस जैसा कर दिया...”

“ओके!” मीना ने उत्सुकतावश पूछा, “क्या प्रॉमिस किया आपने?”

“मैंने उनसे कह दिया कि मैं और मीना यहीं, महाराजपुर में सेटल हो जाने का सोच रहे हैं!”

“सच में?”

“हाँ!”

दिस इस सच अ ग्रेट थॉट!” वो चहकती हुई बोली, “आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”

“सच में! यू थिंक सो?”

“और नहीं तो क्या! ... आपने बहुत अच्छा किया माँ से ये प्रॉमिस कर के!”

“आर यू श्योर? तुम्हारा काम... कैरियर...?”

“अरे... मेरी जान... मेरा काम, मेरा कैरियर सब इसी परिवार से ही तो है! ... इतना बढ़िया बिज़नेस है हमारा... यहाँ से भी सम्हाल सकते हैं न बहुत कुछ? आदि और क्लेयर वहाँ हैं... लेकिन, यहाँ इण्डिया का बंदोबस्त भी देखने वाला कोई होना चाहिए न? ... तो आप हम हैं न?”

मीना मुस्कुराते हुए बोली, “... लेकिन सबसे बड़ी बात, जो मेरे खुद के मन में थी... वो यह है कि माँ को देखने वाला कोई चाहिए न... उनके साथ होने वाला कोई चाहिए न? हम उनके बच्चे हैं... अगर हम नहीं करेंगे, तो किसके भरोसे छोड़ देंगे उनको?”

यू आर सच अ लवली पर्सन मीना...”

ऑलवेज रिमेम्बर दिस...” मीना ने हँसते हुए उसको छेड़ा।

“ऑलवेज! ... तो मैंने माँ को प्रॉमिस कर के कुछ गड़बड़ नहीं किया!”

“बिल्कुल भी नहीं... बल्कि आपने बहुत अच्छा किया माँ से प्रॉमिस कर के! ... मैं हूँ न! मैं उनकी सेवा करूँगी! ... मुझे नहीं जाना उस डेड सिटी में रहने! ... मुझे यहाँ रहना है... अपनों के साथ! अपनी माँ के साथ... अपने हस्बैंड के साथ... अपने बच्चों के साथ! माँ को बहुत अच्छा लगेगा... वो अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन के संग रहेंगीं, तो जल्दी से और अच्छी हो जायेंगीं!”

“ओह मीना! आई लव यू! आई लव यू! ... थैंक यू सो मच!”

“अब आपने फिर से ‘थैंक यू’ कहा न, तो आपको थप्पड़ लगाऊँगी...”

“अरे! ये क्या!! ... बस अभी दो सेकंड पहले तो कह रही थीं कि मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ... और अभी थप्पड़ लगाने की बात कर रही हैं!”

“इज़्ज़त आपकी बीवी बन कर करती हूँ, और थप्पड़ लगाऊँगी आपकी माँ बन कर...” यह बात कहते कहते खुद मीना ही शरमा गई।

“हा हा हा...” जय ठहाके मार कर हँसने लगा, “अब ऐसा होगा हमारे साथ?”

“हाँ!” मीना ने इठलाते हुए कहा - लेकिन उसके बोलने में शरम अभी भी थी, “हम आपकी माँ हैं... ये बात भूलिएगा नहीं!”

“अच्छा... नहीं भूलेंगे! लेकिन, जो इस समय मेरे सामने है, वो कौन है?”

“आपकी बीवी...”

“हम्म्म... और... कुछ देर पहले मैंने दूध किसका पिया?” जय ने दबी आवाज़ में पूछा।

“अपनी माँ का...” मीना ने भी दबी आवाज़ में कहा।

उसके गाल लाल हो गए शर्म से! यह सब बहुत अपरिचित सा था... वर्जना से पूर्ण! अनोखा!

“मीना... कभी कभी... बस, कभी कभी अगर मैं आपका बेटा बनना चाहूँ, तो आपको कोई प्रॉब्लम होगी?”

“कोई प्रॉब्लम नहीं होगी... तुमको जिस रूप में मेरा प्यार चाहिए, वो तुमको मिलेगा!” मीना ने कोमलता से कहा।

“दैट्स लाइक माय गर्ल... आई लव यू,” जय मुस्कुराते हुए, और मीना की साड़ी को उसके पेटीकोट के खींच कर निकालते हुए आगे बोला, “... अच्छा बताओ, इस समय मैं नंगा किसको कर रहा हूँ?”

दोनों का खेल अभी भी जारी था।

उसकी हरकत पर मीना की आवाज़ काँप गई, “अ... अपनी... बीवी... को...”

“हम्म्म... अपनी माँ को नहीं?”

“उम् हम्म...” उसने ‘न’ में सर हिलाया, “... आपको अपनी माँ के साथ ये सब करना है?”

“शायद...”

जय ने मीना का वस्त्र-हरण जारी रखा।

“हम्म...”

उसकी पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए उसने पूछा, “और... इस पेटीकोट के हटने पर मुझे किसकी चूत मिलेगी?”

“धत्त... गंदे बच्चे!”

“अरे बोलो न...” जय ने मीना का पेटीकोट उतारते हुए कहा।

“नहीं बताती... जाओ!”

“अरे! बोलो न!?”

मीना ने नकली गुस्से में कहा, “छीः... दो दिनों में ही आप गड़बड़ हो गए हैं!”

“मेरी जान... इसमें क्या गड़बड़ है? तुमसे नहीं, तो और किससे ऐसी बातें करूँगा?” जय ने भी मीना के ही अंदाज़ में कहा, “... तुम न बिल्कुल स्पॉइल स्पोर्ट हो... बोलो न!” और उसको उकसाया।

वो वापस बहुत उत्तेजित हो गया था। माँ के दिए गए नए संज्ञान से संशय के बादल हट गए थे। मीना का साथ उसके जीवन में हमेशा बना रहेगा - इस बात के ज्ञान से उसके अंदर एक नया उत्साह भर गया था।

“मार खाओगे तुम...” मीना बोली।

लेकिन जय इस खेल को रोकने वाला नहीं था। मीना की योनि के होंठों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए उसने उसको फिर से छेड़ा, “... बोलो न यार... किसकी चूत है ये?”

“आअह्ह्ह... आपकी माँ की, हुकुम! आपकी माँ की...”

मीना के यह कह देने मात्र से जय की उत्तेजना अपने शिखर पर पहुँच गई। ऐसे वर्जनीय सम्बन्ध के साकार होने की सम्भावना से उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से कठोर हो गया।

“तो आज माँ बेटे का मिलन हो जाए?”

“हो जाए मेरे जय!” मीना ने शरमाते हुए, लेकिन शरारत से कहा, “... हो जाए...!”

“अहा! हम खुश हुए...” कह कर उसने तेजी से अपने शरीर से कपड़े नोचने शुरू कर दिए।

जब दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए, तो जय बोला, “इतने बड़े राजमहल में केवल एक नन्ही चित्रा काफ़ी नहीं है, माँ...”

“तो मैं हूँ न,” मीना भी उत्तेजना से हाँफती हुई बोली, “... मैंने तुमसे वायदा किया था न... जितने कहोगे, उतने बच्चे दूँगी तुमको!”

“ऐसे नहीं,” उसकी योनि पर अपना लिंग व्यवस्थित करते हुए जय ने आग्रह किया, “... वैसे कहो, जैसे माँ अपने बेटे से प्रॉमिस करती है...”

शायद सभी वर्जनाओं को तोड़ कर एक हो जाना ही पति-पत्नी का कर्म होता है। मीना भी समझ गई थी कि जय आज उसके मुँह से बिना उन वर्जनाओं के टूटने की बात सुने, उसके साथ आत्मसात नहीं होने वाला। उसने वायदा भी तो किया था न!

“मेरे लाल, मेरे बेटे,” मीना ने उत्तेजना से टूटी हुई आवाज़ में कहा, “मैं दूँगी तुझे... जितने बच्चे चाहेगा तू... उतने बच्चे दूँगी मैं तुझे, मेरे लाल... ये राजमहल मैं तेरे नन्हे मुन्नों से भर दूँगी...”

मीना की बात पर जय के होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई।

“थैंक यू, माँ!” कह कर उसने बलपूर्वक धक्का लगा दिया।

अगले करीब पौन घटिका तक दोनों के बीच काम-युद्ध चलता रहा, फिर दोनों निढाल हो कर एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर कुछ समय के लिए सो गए।

*
 

kas1709

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Update #52


जय ने बिना कोई समय गंवाए, अधीरतापूर्वक मीना का एक चूचक अपने मुँह में भर लिया, और तत्परता से चूसने लगा।

कोई पाँच सात क्षणों में चूचक के सिरे से थोड़ा मीठा सा स्वाद लिया हुआ दूध निकलने लगा। जब जय, मीना को अपने बच्चे की माँ, और अपनी पत्नी के रूप में ही देखता था, तब उसको उसका दूध केवल स्वादिष्ट लगता था। लेकिन आज, जब उसको मीना की एक अलग पहचान का भी मालूम था, तब उसको उसके दूध का स्वाद निराला लग रहा था - लगभग अमृत समान! यह दूध आज उसकी आत्मा को तृप्त कर रहा था। आज मीना के स्तन से उसको पोषण मिल रहा था! लिहाज़ा, उसके मन में अपराधबोध किंचित मात्र भी नहीं था। मनोविज्ञान के खेल बड़े अनोखे होते हैं!

मीना के मन में एक अनजान आशंका तो थी। अगर माँ ने उसको सब बता दिया है, तो बहुत अधिक संभव है कि वो जय को भी सब बता देंगीं। उससे कुछ भी छुपा कर रखना - मतलब उसके साथ छल करना! संबंधों की नींव सच्चाई पर हो, तो ही अच्छा। जय और मीना के बीच की पहली सच्चाई उनका प्रेम था। उसी के कारण मीना ने जय को अपने पूर्व के प्रेम-संबंधों के बारे में सब कुछ सच्चाई-पूर्वक बता दिया था। वो किसी अपराध-बोध के साथ जय के साथ अपना भविष्य नहीं बनाना चाहती थी। लेकिन कल रात वो जय से कुछ कह पाने में अपने आप को पूरी तरह से असमर्थ पा रही थी। शायद वो खुद भी अपने आप को दिलासा देना चाह रही थी कि माँ की बताई हुई सच्चाई, उनकी सच्चाई नहीं है। उसने जिसको अपना वर माना, जिसको अपनी आत्मा का भी स्वामी मान लिया, अब वो उसके साथ अपना सम्बन्ध परिवर्तित नहीं कर सकती थी।

वो लाखों कोशिशों के बाद भी जय को अपने पुत्र के रूप में नहीं देख पा रही थी। उसके लिए यह संभव ही नहीं हो रहा था। लेकिन एक समय पर उसको जय को सब कुछ सच सच बताना ही होगा न! लेकिन जय की अभी की चेष्टा देख कर उसको अनुमान हो गया कि माँ ने उसको सब कुछ बता दिया है। एक तरह से मीना के हृदय से एक भारी बोझ उतर गया था। कम से कम अब, उन दोनों के लिए इस बात पर चर्चा कर पाना आसान हो गया था। शायद बहुत कठिन हो इस विषय पर बात करना - लेकिन करना तो पड़ेगा! दोनों का भविष्य जो इस बात पर निर्भर करता है।

मीना इतना तो समझ ही रही थी कि अनकहे ही सही, जय ‘अपनी माँ’ का दूध पीना चाहता था। इसलिए उसने जय को दिलासा दिया और स्तनपान करने को उकसाया। अगर उसके अख़्तियार में कुछ था, तो जय की कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रह सकती - यह उसने बहुत पहले ही सोच लिया था। तो अगर जय उसका स्तनपान करना चाहता था, मीना उसकी यह इच्छा ज़रूर पूरी करेगी। लिहाज़ा, जय बड़ी फुर्सत से स्तनपान करता रहा। उसको न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना के स्तन में बहुत दूध था। मीना को भी अलग सा अनुभव हो रहा था - हाँ, जब चित्रा स्तनपान करती, तो कम दूध निकलता... लेकिन जय के हर चूषण में अधिक निकलता हुआ महसूस हो रहा था। वो खुश थी कि जय स्तनपान कर के प्रसन्न और संतुष्ट था। खैर, जब एक स्तन खाली हो गया तो भी जय का न तो पेट ही भरा और न ही मन। मीना इस बात को समझ चुकी थी। इसलिए एक स्तन खाली होते ही उसने जय को अपने दूसरे स्तन से सटा दिया। कुछ समय बाद दूसरा स्तन भी खाली हो गया।

न चाहते हुए भी जय को मीना के स्तनों से हटना पड़ा।

“मन भरा मेरे राजकुमार का?” मीना ने बड़े लाड़ से पूछा।

जय ने शरारत से मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“हा हा,” मीना खिलखिला कर हँस दी, “... कोई बात नहीं, दो घण्टे में फिर से ट्राई करिएगा... और मिलेगा!”

जय मुस्कुरा दिया।

“लेकिन हम तो थक गए, यूँ बैठे बैठे...” मीना ने आलस से अँगड़ाई भरते हुए कहा, “... थोड़ा लेट जाऊँ?”

अँगड़ाई भरते ही मीना के स्तन बड़े ही लुभावने अंदाज़ में ऊपर उठ गए। एक गज़ब का युवा दृढ़ता थी उसके स्तनों में। पिलपिले स्तन नहीं थे - फर्म, लज़्ज़तदार! सेक्सी!

लेकिन न जाने क्यों इस बात का जय पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा।

वो बोला, “आपको मुझ से इजाज़त लेने की ज़रुरत नहीं... आप तो खुद ही हमारी सब कुछ हैं... मालकिन हैं...”

“ओ हो हो हो... मालकिन! ... हा हा... हम आपकी मालकिन हैं?” मीना ने बिस्तर पर लेटते हुए कहा।

“आप तो सब कुछ हैं मेरी...”

“सब कुछ?”

“सब कुछ!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात...” जय मुस्कुराते हुए बोला।

“तो फिर... मेरे राजकुमार जी, टेल मी... व्हाट इस एलिंग यू (आपको कौन सी बात परेशान कर रही है)?” मीना ने इस बार स्पष्ट बात बोली।

जय कुछ देर चुप रहा।

“जय...?” मीना ने फिर से कहा।

“मीना... अभी... कुछ देर पहले... माँ से बात हुई...” उसने हिचकते हुए कहा।

मीना चुप ही रही... वो जानती थी कि माँ ने क्या बताया होगा उसको।

“उन्होंने... उन्होंने... बताया...”

कह कर जय चुप हो गया।

मीना ने कुछ क्षण इंतज़ार किया, लेकिन जब जय आगे कुछ न बोला, तो उसने कुरेदा,

“क्या?”

“यही... कि... हम दोनों... हम दोनों...” जय कह न सका... और उसने नज़रें झुका लीं।

मीना को लगा कि बात की बागडोर हाथ में लेने का समय आ ही गया है। चूँकि जय उम्र में उससे छोटा है, इसलिए शायद वो इस बात को उचित परिपक्वता से सम्हाल न सके।

“जय... मेरे जय...” मीना बोली, “मेरी तरफ़ देखो...”

जय ने झिझकते हुए मीना की तरफ़ देखा।

“मेरे एक सवाल का सीधा सीधा जवाब देना। ... ठीक है?”

जय ने उसकी तरफ़ देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम मुझे कैसे देखते हो... अपनी बीवी के जैसे, या फ़िर अपनी माँ के...”

जय अपना उत्तर देने में एक पल भी नहीं रुका, “... ऑब्वियस्ली अपनी बीवी के जैसे...”

“तो फ़िर हम इस बारे में बात भी क्यों कर रहे हैं?” मीना बोली, “माँ यह बात हमसे छुपा नहीं सकती थीं... माँ को लगा कि यह उनका फ़र्ज़ है कि हमको इस सच्चाई से अवगत कराएँ... इसलिए उन्होंने हमसे कुछ नहीं छुपाया। हाँ, यह ज़रूर है कि उन्होंने हमको देर में सब बताया... अगर वो पहले ये बात बता देतीं, तो शायद हमारा अंज़ाम कुछ अलग होता। लेकिन...” कह कर वो थोड़ा रुकी, “... लेकिन अब... ये हम दोनों पर है कि हम इस बात को अपनी लाइफ में कितनी तवज्जो देते हैं।”

“लेकिन मीना...”

“जय... मैं... तुम... तुम मुझसे बने हो, यह सच है! मैं इस बात से इंकार नहीं करूँगी... लेकिन मुझे उस बात की कोई याद ही नहीं है! ... हाँ... कल के बाद से मुझे राजकुमार जी... मतलब, तुम्हारे पिता जी की याद वापस आ गई है... लेकिन... न तो मुझे प्रेग्नेंसी की याद है, न ही लेबर की, और न ही अपने माँ बनने की!”

जय सुन रहा था... चुपचाप।

“मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी मैंने तुमको अपनी गोद में लिया हो... ऐसे में तुम्हारे लिए मेरे मन में माँ वाली फ़ीलिंग्स कैसे आ सकती हैं?” मीना ने समझाते हुए पूछा, “हाँ... तुमको ले कर जो यादें हैं, वो हैं तुमसे मिलने की यादें... हमारी यादें... जब तुमने मुझको पहली बार छुआ था एस माय लव... वो यादें... जब... जब तुमने और मैंने पहली बार...” कहते कहते वो थोड़ा रुकी, “... तो हमारी सच्चाई ये ही है... तुम मेरे हस्बैंड हो... मेरा प्यार... मेरी बेटी के पापा! और... हमारे होने वाले बच्चों के पापा!” मीना मुस्कुराती हुई बोली, “मेरे अलावा किसी और से बच्चे करने का सोचा भी न तो देख लेना...”

मीना हँसने लगी, और उसके साथ जय भी, “... तो ये है हमारा सच! ... जो माँ ने बताया... वो उस तरह का सच है जिसका हम पर... हमारे फ्यूचर पर कोई असर नहीं होगा...”

“सच में मीना?” जय ने पूछा - जैसे वो उससे दिलासा लेना चाहता हो, “सच में कोई असर नहीं होगा न?”

“बिल्कुल भी नहीं होगा! ... आई लव यू टू मच टू गिव अप ऑन आवर फ्यूचर टुगेदर...”

“ओह थैंक यू सो मच मीना...”

“थैंक यू?”

“सॉरी...” जय मुस्कुराते हुए बोला।

“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?”

“नहीं नहीं!” फिर मुस्कुराते हुए, “... आई लव यू मीना!”

“यू बेटर! ... बीवी को ‘बेटर हॉफ’ यूँ ही नहीं कहते हैं!”

“हा हा! ... बट यू आर माय बेटर हॉफ!”

मीना उसकी बात पर पहले तो हँसी, फिर अचानक से जय को उसके होंठों पर चूमने लगी।

“आई लव यू! ... थैंक यू फॉर बीईंग माय हस्बैंड!”

“अच्छा जी! तो अब हमारे बीच थैंक यू, एक्सक्यूज़ मी, और सॉरी आने लगा है?” जय ने मीना की ही कही गई बात दोहरा दी।

“सम टाइम्स” मीना हँसने लगी।

माहौल को भारी करने वाली बातें यूँ ही आई-गई हो गईं।

“मेरी जान?” जय कुछ देर की चुप्पी तोड़ते हुए बोला।

“जी?”

“तुमसे एक बात करनी थी...”

“अरे तो इसमें इतना फॉर्मल होने की क्या ज़रुरत है... कहिए न! ... आप मेरे हस्बैंड हैं... आपकी मैं उसी तरह से इज़्ज़त करती हूँ! आपको कभी भी मुझसे फॉर्मल होने की ज़रुरत नहीं... आप हुकुम करिए, मेरे हुकुम!” मीना ने हँसते हुए कहा।

“आज माँ से बात करते हुए मैंने उनसे एक प्रॉमिस जैसा कर दिया...”

“ओके!” मीना ने उत्सुकतावश पूछा, “क्या प्रॉमिस किया आपने?”

“मैंने उनसे कह दिया कि मैं और मीना यहीं, महाराजपुर में सेटल हो जाने का सोच रहे हैं!”

“सच में?”

“हाँ!”

दिस इस सच अ ग्रेट थॉट!” वो चहकती हुई बोली, “आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”

“सच में! यू थिंक सो?”

“और नहीं तो क्या! ... आपने बहुत अच्छा किया माँ से ये प्रॉमिस कर के!”

“आर यू श्योर? तुम्हारा काम... कैरियर...?”

“अरे... मेरी जान... मेरा काम, मेरा कैरियर सब इसी परिवार से ही तो है! ... इतना बढ़िया बिज़नेस है हमारा... यहाँ से भी सम्हाल सकते हैं न बहुत कुछ? आदि और क्लेयर वहाँ हैं... लेकिन, यहाँ इण्डिया का बंदोबस्त भी देखने वाला कोई होना चाहिए न? ... तो आप हम हैं न?”

मीना मुस्कुराते हुए बोली, “... लेकिन सबसे बड़ी बात, जो मेरे खुद के मन में थी... वो यह है कि माँ को देखने वाला कोई चाहिए न... उनके साथ होने वाला कोई चाहिए न? हम उनके बच्चे हैं... अगर हम नहीं करेंगे, तो किसके भरोसे छोड़ देंगे उनको?”

यू आर सच अ लवली पर्सन मीना...”

ऑलवेज रिमेम्बर दिस...” मीना ने हँसते हुए उसको छेड़ा।

“ऑलवेज! ... तो मैंने माँ को प्रॉमिस कर के कुछ गड़बड़ नहीं किया!”

“बिल्कुल भी नहीं... बल्कि आपने बहुत अच्छा किया माँ से प्रॉमिस कर के! ... मैं हूँ न! मैं उनकी सेवा करूँगी! ... मुझे नहीं जाना उस डेड सिटी में रहने! ... मुझे यहाँ रहना है... अपनों के साथ! अपनी माँ के साथ... अपने हस्बैंड के साथ... अपने बच्चों के साथ! माँ को बहुत अच्छा लगेगा... वो अपने ग्रैंड चिल्ड्रेन के संग रहेंगीं, तो जल्दी से और अच्छी हो जायेंगीं!”

“ओह मीना! आई लव यू! आई लव यू! ... थैंक यू सो मच!”

“अब आपने फिर से ‘थैंक यू’ कहा न, तो आपको थप्पड़ लगाऊँगी...”

“अरे! ये क्या!! ... बस अभी दो सेकंड पहले तो कह रही थीं कि मैं आपकी इज़्ज़त करती हूँ... और अभी थप्पड़ लगाने की बात कर रही हैं!”

“इज़्ज़त आपकी बीवी बन कर करती हूँ, और थप्पड़ लगाऊँगी आपकी माँ बन कर...” यह बात कहते कहते खुद मीना ही शरमा गई।

“हा हा हा...” जय ठहाके मार कर हँसने लगा, “अब ऐसा होगा हमारे साथ?”

“हाँ!” मीना ने इठलाते हुए कहा - लेकिन उसके बोलने में शरम अभी भी थी, “हम आपकी माँ हैं... ये बात भूलिएगा नहीं!”

“अच्छा... नहीं भूलेंगे! लेकिन, जो इस समय मेरे सामने है, वो कौन है?”

“आपकी बीवी...”

“हम्म्म... और... कुछ देर पहले मैंने दूध किसका पिया?” जय ने दबी आवाज़ में पूछा।

“अपनी माँ का...” मीना ने भी दबी आवाज़ में कहा।

उसके गाल लाल हो गए शर्म से! यह सब बहुत अपरिचित सा था... वर्जना से पूर्ण! अनोखा!

“मीना... कभी कभी... बस, कभी कभी अगर मैं आपका बेटा बनना चाहूँ, तो आपको कोई प्रॉब्लम होगी?”

“कोई प्रॉब्लम नहीं होगी... तुमको जिस रूप में मेरा प्यार चाहिए, वो तुमको मिलेगा!” मीना ने कोमलता से कहा।

“दैट्स लाइक माय गर्ल... आई लव यू,” जय मुस्कुराते हुए, और मीना की साड़ी को उसके पेटीकोट के खींच कर निकालते हुए आगे बोला, “... अच्छा बताओ, इस समय मैं नंगा किसको कर रहा हूँ?”

दोनों का खेल अभी भी जारी था।

उसकी हरकत पर मीना की आवाज़ काँप गई, “अ... अपनी... बीवी... को...”

“हम्म्म... अपनी माँ को नहीं?”

“उम् हम्म...” उसने ‘न’ में सर हिलाया, “... आपको अपनी माँ के साथ ये सब करना है?”

“शायद...”

जय ने मीना का वस्त्र-हरण जारी रखा।

“हम्म...”

उसकी पेटीकोट का नाड़ा ढीला करते हुए उसने पूछा, “और... इस पेटीकोट के हटने पर मुझे किसकी चूत मिलेगी?”

“धत्त... गंदे बच्चे!”

“अरे बोलो न...” जय ने मीना का पेटीकोट उतारते हुए कहा।

“नहीं बताती... जाओ!”

“अरे! बोलो न!?”

मीना ने नकली गुस्से में कहा, “छीः... दो दिनों में ही आप गड़बड़ हो गए हैं!”

“मेरी जान... इसमें क्या गड़बड़ है? तुमसे नहीं, तो और किससे ऐसी बातें करूँगा?” जय ने भी मीना के ही अंदाज़ में कहा, “... तुम न बिल्कुल स्पॉइल स्पोर्ट हो... बोलो न!” और उसको उकसाया।

वो वापस बहुत उत्तेजित हो गया था। माँ के दिए गए नए संज्ञान से संशय के बादल हट गए थे। मीना का साथ उसके जीवन में हमेशा बना रहेगा - इस बात के ज्ञान से उसके अंदर एक नया उत्साह भर गया था।

“मार खाओगे तुम...” मीना बोली।

लेकिन जय इस खेल को रोकने वाला नहीं था। मीना की योनि के होंठों को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए उसने उसको फिर से छेड़ा, “... बोलो न यार... किसकी चूत है ये?”

“आअह्ह्ह... आपकी माँ की, हुकुम! आपकी माँ की...”

मीना के यह कह देने मात्र से जय की उत्तेजना अपने शिखर पर पहुँच गई। ऐसे वर्जनीय सम्बन्ध के साकार होने की सम्भावना से उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से कठोर हो गया।

“तो आज माँ बेटे का मिलन हो जाए?”

“हो जाए मेरे जय!” मीना ने शरमाते हुए, लेकिन शरारत से कहा, “... हो जाए...!”

“अहा! हम खुश हुए...” कह कर उसने तेजी से अपने शरीर से कपड़े नोचने शुरू कर दिए।

जब दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए, तो जय बोला, “इतने बड़े राजमहल में केवल एक नन्ही चित्रा काफ़ी नहीं है, माँ...”

“तो मैं हूँ न,” मीना भी उत्तेजना से हाँफती हुई बोली, “... मैंने तुमसे वायदा किया था न... जितने कहोगे, उतने बच्चे दूँगी तुमको!”

“ऐसे नहीं,” उसकी योनि पर अपना लिंग व्यवस्थित करते हुए जय ने आग्रह किया, “... वैसे कहो, जैसे माँ अपने बेटे से प्रॉमिस करती है...”

शायद सभी वर्जनाओं को तोड़ कर एक हो जाना ही पति-पत्नी का कर्म होता है। मीना भी समझ गई थी कि जय आज उसके मुँह से बिना उन वर्जनाओं के टूटने की बात सुने, उसके साथ आत्मसात नहीं होने वाला। उसने वायदा भी तो किया था न!

“मेरे लाल, मेरे बेटे,” मीना ने उत्तेजना से टूटी हुई आवाज़ में कहा, “मैं दूँगी तुझे... जितने बच्चे चाहेगा तू... उतने बच्चे दूँगी मैं तुझे, मेरे लाल... ये राजमहल मैं तेरे नन्हे मुन्नों से भर दूँगी...”

मीना की बात पर जय के होंठों पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई।

“थैंक यू, माँ!” कह कर उसने बलपूर्वक धक्का लगा दिया।

अगले करीब पौन घटिका तक दोनों के बीच काम-युद्ध चलता रहा, फिर दोनों निढाल हो कर एक दूसरे से गुत्थमगुत्थ हो कर कुछ समय के लिए सो गए।

*
Nice update....
 

parkas

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Update #51


“मुझे नौलखा मँगा दे रे... ओ सैयाँ दीवाने...
टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग... टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग...”

जय को कमरे के अंदर आते हुए देखते ही, मीना अपने दोनों हाथ अपनी कमर के दोनों तरफ़ रखे हुए, शरारत भरे ठुमके लगाती हुई, शरारत से मुस्कुराती हुई, और आँखें की कटारी चलाती हुई आज कल का एक अति-प्रसिद्ध गाना गुनगुनाने लगी।

जय अपने और माँ के बीच हुई बातचीत के बाद अभी भी गंभीर था। कोई संत महात्मा ही होगा, जिस पर ऐसी पहाड़नुमा सच्चाई सुनने के बाद भी कोई प्रभाव न पड़े! उसको इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि मीना पर उस सच्चाई के संज्ञान का क्या प्रभाव पड़ा! यह तो सत्य है कि कल रात मीना ने जय को एक पल के लिए भी संदेह नहीं होने दिया था, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता चल गया है। लेकिन जय फिलहाल समझ नहीं पा रहा था कि वो क्या करे? अपनी और मीना की सच्चाई जानने के बाद जय को समझ नहीं आ रहा था कि वो मीना का सामना कैसे करे! अपनी माँ के सामने बड़ी बड़ी बातें करना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - दो अलग बातें थीं।

ऐसे में फिर से मीना उसके उद्धार हेतु प्रस्तुत थी। शायद उसको सहज करने का मीना का स्वयं का कोई तरीका हो! मीना की चंचल शरारत को देख कर जय मुस्कुराने लगा। बड़ी कोशिश के बाद वो अपनी हँसी दबा पाया था।

‘कितनी प्यारी है उसकी मीना!’ उसके मन में बस यही ख़याल आया, ‘... उसको खुश रखने के लिए वो कुछ भी करती है!’

“अरे... ये क्या गा रही हैं आप...?” प्रत्यक्ष, वो मुस्कुराते हुए मीना से बोला।

लेकिन मीना ने उसका उत्तर नहीं दिया, और अपना गुनगुनाना जारी रखा,

“... माथे पे झूमर... कानों में झुमका... पाँव में पायलिया, हाथों में... होओओ... कँगना...
मुझे नौलखा मँगा दे रे, ओ, सैयाँ, दीवाने...”

मीना ने हर आभूषण के लिए नृत्य की भँगिमा बना बना कर दिखाया, फिर लगभग खिलखिलाती हुई आगे गुनगुनाई,

“... तुझे मैं... तुझे मैं...
तुझे गले से लगा लूँगी... ओ सैयाँ दीवाने...”

उसको आगे कुछ नहीं करना पड़ा। अब तक दोनों ही खिलखिला कर हँसने लगे थे।

जय ने आगे बढ़ कर मीना को अपने आलिंगन में मज़बूती से पकड़ लिया। जय को एक आश्चर्यजनक अनुभव महसूस हुआ - इतना सुकून या तो उसको माँ के आलिंगन में आता है, या फिर मीना के आलिंगन में ही! माँ... मीना... माँ... बीवी... माँ... इस रहस्य की स्वीकारोक्ति पर वो अंदर ही अंदर मुस्कुराया।

“क्या बात है!” जब दोनों की हँसी रुकी, तब जय बोला, “... बड़े अच्छे मूड में हैं आप!”

“बहोत!” मीना ने अभी भी शोख़ चंचलता से कहा।

“गुड! ... लेकिन ये गा क्या रही थीं? ... क्या गाना है!”

“अरे, ये? ये गाना सुपरहिट है आज कल... रेडियो में सुना... दो बार आया इतनी देर में!”

“ओह... अच्छा...” जय अभी भी मीना को अपने आलिंगन में लिए हुए था, “और दो बार ही में आपको याद भी हो गया?”

यह कोई प्रश्न नहीं था - जय को पता था कि मीना की स्मरणशक्ति सामान्य से अधिक है।

“आप भी दो बार सुनेंगे, तो आपको भी याद हो जाएगा,” मीना ने जय की दोनों बाहें थाम कर ठुमकते हुए कहा, “इट हैस अ लवली ट्यून...” और फिर आगे गुनगुनाने लगी,

“... मुझे अँगिया सिला दे रे... ओ सैयाँ दीवाने...
टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग... टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग...
तुझे मैं... तुझे मैं... तुझे सीने से लगा लूँगी... ओ सैयाँ दीवाने...”

अब तक जय को ज़ोर से हँसी आने लगी थी। एक तो मीना के गाने के साथ साथ ठुमके लगाने का जो अंदाज़ था, वो बड़ा ही मज़ाकिया था, और साथ ही में उसका ‘टिटिढिंग... ढिंईंईंईंईंग’ करना भी उतना ही मज़ाकिया था!

कितना आश्चर्यजनक था कि मीना उसको भनक भी नहीं लगने दे रही थी, कि उसको उन दोनों के सम्बन्ध की सच्चाई के बारे में पता था। वो शायद यही धारणा ले कर चल रही थी, कि माँ ने शायद जय को उसके बारे में न पता हो! लेकिन, जय के मन में अभी भी संकोच था। हाँ - यह सच है कि वो मीना को अपनी पत्नी के रूप में ही चाहता था, लेकिन उन दोनों के सत्य को झुठला पाना, उसको अनदेखा कर पाना भी तो कठिन काम था!

“... अच्छा... तो आपको अँगिया सिलवानी है?”

मीना ने अपनी चँचल आँखों पर अपनी सुन्दर पलकों को झपकाते हुए, चंचल अदा से, ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“इस अँगिया में क्या प्रॉब्लम है?”

पूछते हुए जय ने मीना के होंठों को चूमा - एक अलग ही तरह का आनंद आया उस चुम्बन में! जैसे किसी कोमल, रसीले, किन्तु गरम फल का स्पर्श हुआ हो उसके स्वयं के होंठों पर!

“नए कपड़ों के लिए पुराने कपड़ों में कोई प्रॉब्लम होनी ज़रूरी है क्या, मेरे भोले जानू?”

मीना ने इतनी आसानी से ‘मेरे भोले जानू’ कहा कि जय का दिल लरज़ गया।

‘बाप रे!’ जय ने सोचा, ‘कितनी सेक्सी है मेरी मीना! ... प्यारी भी... सेक्सी भी...’

मीना की इस छोटी सी ही बात पर जय का मन उत्तेजना से भर गया। उसके लिंग में ऐसी भयंकर हलचल उठी, जो परिचित भी थी, और अपरिचित भी!

‘ऐसा क्यों महसूस हुआ मुझको?’ उसके मन में एक प्रश्न उठा, ‘मीना तो वही है, जैसी अभी शाम तक थी... क्या उसको देखने का मेरा नज़रिया बदल गया है?’

शायद!

यह सच है कि प्रियम्बदा ने जय को इतने लाड़ प्यार से पाला था कि उसके मन में एक पल को भी यह ख़याल नहीं आया कि वो उसकी माँ नहीं हैं। माँ महारानी थीं, और उनके पास अपने राज्य, राजनीति, और बड़े पापा के व्यापार से सम्बंधित कितने सारे काम रहे होंगे। लेकिन इन सभी व्यस्तताओं के बावज़ूद, उन्होंने अपने हाथों से उसका लालन-पालन किया था। वो ही उसको सुबह सुबह स्कूल के लिए तैयार करतीं, उसको अपने हाथों से खाना खिलातीं... फिर शाम को उसके साथ खेलतीं! जय का पालन सेविकाओं पर निर्भर नहीं था। जय आदित्य को चिढ़ाता भी था कि बहुत संभव है कि माँ से उसको भैया से भी अधिक प्यार मिला हो! ऐसे में माँ उसकी माँ नहीं हो सकतीं, यह विचार कैसे आ सकता था उसके मन में? इसलिए आज माँ के मुँह से सच्चाई सुनने के बाद भी उसको यकीन नहीं हुआ। लेकिन, उनकी बात पर यकीन न करना भी असंभव था। वो उससे खेलने के लिए तो ऐसी बात नहीं बोलेंगी! बोल तो वो सच ही रही थीं! मतलब मीना उसकी माँ हैं... और... पत्नी भी... और... उसकी संतान की माँ भी... और आने वाली संतानों की भी होने वाली माँ हैं!

‘बाप रे! ... कैसा गड्ड मड्ड...!!’

उसने माँ से वायदा तो कर दिया था, कि इस खुलासे का उसके और मीना के सम्बन्ध पर... उनके पति-पत्नी होने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन, माँ के सामने बड़बोला बनना, और अपनी माँ-पत्नी का सामना करना - ये दो बड़ी अलग बातें थीं। कमरे में प्रवेश करने से पहले तक उसके मन में अनेकों विचार आ जा रहे थे कि वो मीना का सामना कैसे करेगा! लेकिन, एक आदर्श पत्नी की भाँति मीना ने बड़ी कुशलता से उसकी मुश्किल आसान कर दी थी। एक प्रेमिका की शोख़ चंचलता दिखाते हुए उसने जय के जीवन में अपना स्थान सुनिश्चित कर दिया था। दोनों के सम्बन्ध में संशय का कोई स्थान नहीं बचा था - मीना उसकी पत्नी है, और उसकी पत्नी ही रहेगी! बस, मन में से इस नए विचार को दूर करना होगा।

“कोई ज़रूरी नहीं है...” जय ने मीना की ब्लाउज के एक कोने को छूते हुए कहा, “... लेकिन इसको अँगिया नहीं कहते...”

“नहीं?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया, “ये तो ब्लाउज है... मतलब चोली...”

“ओओओह्ह्हह्ह...”

“हाँआँआँआँ...” मीना के ही अंदाज़ में बोल कर वो मुस्कुराते हुए मीना की ब्लाउज के बटन खोलने लगा।

“तो फ़िर अँगिया क्या होती है?” मीना ने बड़े नटखट भोलेपन से पूछा।

इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले जय ने इंतज़ार किया। जब मीना की ब्लाउज के सभी बटन खुल गए, तो उसके पट खोल कर वो मीना की ब्रा को छेड़ते हुए बोला, “... इसको... इसको कहते हैं अँगिया...”

“हैं? ये है अँगिया?” उसने चौंकते हुए कहा, “... फिर तो बड़ा नुकसान हो गया!”

“वो कैसे,” जय अभी भी रुका नहीं था - मीना का वस्त्र-हरण अभी भी जारी था।

“हमको लगा था कि आप अपनी राजकुमारी को रंग-बिरंगा सा, महँगा सा ब्लाउज देंगे... लेकिन...”

“लेकिन...?” जय ने उसकी ब्रा को उतारते हुए कहा।

अब मीना के दोनों स्तन स्वतंत्र हो चले थे।

“लेकिन हमारे राजकुमार जी तो मेरे बदन पर कपड़े ही नहीं रहने देना चाहते!” मीना ने बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “... वैसे ही छोटा सा कपड़ा है... और उसको भी उतार दिया...”

“राँग...” जय ने मीना के स्तनों को सहलाते हुए कहा।

“राँग?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और फुसफुसाते हुए बोला, “कंडीशंस अप्लाई...”

जय ने बड़ी आशा और आदर से मीना के स्तनों को देखा।

अगर भाग्य ने ऐसी कहानी न लिखी होती, तो इन्ही स्तनों से उसको अपने जीवन का पहला पोषण मिला होता। एक संतान का अपनी माँ से पहला परिचय भी तो इसी अंग से होता है! माँ ने बचपन में उसको स्तनपान कराया था - वो अलग बात है कि उनको दूध नहीं बनता था। बनता भी तो कैसे? यह बात उसको अब समझ आ रही थी। आज तक वो इसी धारणा के साथ जीता रहा कि मीना का दूध उसकी बेटी के लिए है। फोरप्ले के अंतरंग क्षणों में, कभी कभी जब जोश में वो उसका दूध पी लेता, तो उसको थोड़ा अपराध-बोध सा हो जाता, कि जैसे वो अपनी ही संतान के हिस्से का दूध गटक जा रहा हो।

“कंडीशंस?” मीना बोली, “कैसी कंडीशंस?”

लेकिन जय सुन नहीं रहा था। उसका ध्यान, उसका मन कहीं और ही था! इस समय उसका मन हो रहा था कि वो इन स्तनों का दूध पी ले। अनकहे ही सही, लेकिन एक बार... बस एक बार वो अपनी माँ के स्तनों को महसूस करना चाहता था... पत्नी के नहीं! एक अजीबोगरीब कश्मक़श सी महसूस हो रही थी उसको - एक अपराधबोध सा! अनोखी क़िस्मत थी दोनों की कि वो दोनों यूँ इस वर्जनीय बंधन में बंध गए थे। समाज इस सम्बन्ध को पाप का नाम देता है। लेकिन वो इस बंधन से अलग नहीं होना चाहता था। पाप हो या पुण्य! दोनों के बीच प्रेम का बंधन था, और चित्रा उस प्रेम का परिणाम! इन दोनों सच्चाईयों को झुठलाया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी, जय के मन में एक उलझन सी थी...

मीना ने एक दो बार कुछ कहा भी, लेकिन जय के कानों में उसकी आवाज़ ही नहीं आ रही थी। जय कुछ देर तक उसके स्तनों को सहलाता रहा। मीना ने भी उस छुवन में कुछ अलग सा महसूस किया - जय का यह स्पर्श, पहले जैसा... प्रेमी वाला स्पर्श नहीं लग रहा था। उस स्पर्श में एक प्रकार की अधीरता होती थी, अधिकार होता था। इस स्पर्श से लग रहा था कि वो उससे कुछ मांग रहा हो। कल रात की बातें उसके दिमाग में अचानक से कौंध गईं। उसने देखा कि जय एक टक उसके स्तनों को देख रहा है।

“क्या हुआ मेरे जानू?” अनजाने ही बड़ा ही कोमल, बड़ा ही ममता भरा स्वर निकल गया मीना के मुँह से।

“हम्म्म? ... जी?” जय बोला।

“क्या बात है? ... क्या हो गया मेरे भोलू जानू को?”

“क... कुछ नहीं...” जय ने असहज हो कर कहा।

“बोलो न...”

“कुछ भी नहीं,” जय झिझकते हुए बोला।

लेकिन मीना समझ रही थी। स्त्रियों की छठी इन्द्रिय इस मामले में बड़ी अनूठी होती है।

“हमारे बीच कुछ छुपा हुआ भी रहना चाहिए क्या?”

मीना की बात पर जय थोड़ा झिझक गया - उसके मन में एक और तरह का अपराधबोध हो आया। सच है - अपनी पत्नी से कुछ नहीं छुपाना चाहिए... नहीं तो सम्बन्ध की पवित्रता बनी नहीं रह सकती। इस मामले में सच सच कहना ही होगा।

“नहीं...” जय झिझकते हुए थोड़ा रुका, और फिर बोला, “लेकिन... लेकिन समझ नहीं पा रहा हूँ कि कैसे कहूँ!”

“मेरे राजकुमार,” मीना ने बड़े अधिकार से कहा, “... आपको जो कहना हो, वो मुझसे आप कह सकते हैं! ... अगर आपकी कोई इच्छा हो, तो मुझसे कहिए... मैं उसको पूरा करने की पूरी कोशिश करूँगी...”

मीना को जय की सारी चेष्टाएँ समझ में आ रही थीं... इसलिए उसने उसको थोड़ा उकसाया।

मीना की बात से जय को थोड़ा सम्बल मिला। वो झिझकते हुए मुस्कुराया,

“व...वो... मुझे... मुझे... दूध पीना... है...”

दूध पीना है?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो इसमें क्या है?” मीना समझ रही थी, लेकिन वो जय को थोड़ा छेड़ना चाहती थी, “किसी से कह दूँ? ... या... मैं ही ले आऊँ?”

जय ने उसको बनावटी गुस्से की नज़र से देखा... मानों कहना चाहता हो कि ‘कितनी मूरख हो तुम! क्या करने का कह रहा हूँ, और क्या सोच रही हो!’

जय को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए मीना ने समझने का नाटक किया,

“ओओओह्ह... अच्छाआआ... आपको मेरा दूध पीना है?”

जय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

यहाँ से?” मीना ने अपने स्तनों की तरफ अपनी तर्जनी से इशारा किया।

जय ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सीधे? निप्पल से?” मीना बोली...

उसका मन हो रहा था कि वो जय को थोड़ा और छेड़े। न जाने कैसे वो जय के साथ छोटी हो जाती थी। उसका मन होने लगता था, जय के साथ खेलने का... मस्ती करने का! उम्र में उससे बड़ी होने के बावज़ूद! जय उसको इतना प्यार करता था कि उसको किसी भी बात के लिए मना नहीं करता था... उसको अपने हिसाब से जीने देता था। इसलिए मीना को जय के साथ न केवल बहुत सुरक्षित महसूस होता था, बल्कि बहुत नैसर्गिक सा लगता था! दोनों का प्यार इतना भोला सा था कि ऐसी छोटी-छोटी, मीठी छेड़खानी से भी दोनों बहुत आनंदित हो जाते थे।

जय ने बार तेजी से कई बार ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो फिर... मेरे राजकुमार... मेरी जान... आप इतना झिझक क्यों रहे हैं?” मीना ने मुस्कुराते हुए और जय के गाल को सहलाते हुए कहा, “... मेरा सब कुछ आपका है... और आप... आप तो मेरे सब कुछ हैं! मेरी हर चीज़ पर पहला हक़ आपका है...”

“सच में?”

“सच मुच में...” मीना मुस्कुराई, “आप हमारे हस्बैंड हैं... विदेशों में पढ़ी लिखी और बड़ी हुई हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि आपके लिए मेरे मन में कम रिस्पेक्ट है... मेरे मन में आपकी वही जगह है, जो किसी भी इण्डियन, मैरीड लेडी के मन में अपने हस्बैंड के लिए होती है!”

इससे बड़ी हरी झंडी मीना उसको नहीं दे सकती थी।

जय की आँखों में अचानक ही चमक सी आ गई - वैसी ही जैसे बच्चों की आँखों में आ जाती है, जब उनको उनके पसंद की कोई वस्तु मिल जाती है।

“... तो... मैं...?”

मीना ने जय के सर और बालों को सहलाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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