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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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Kala Nag

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Update #24


“सुहासिनी,” हर्ष बहुत देर से बर्दाश्त कर रहा था, “बात क्या है? क्या छुपा रही हैं आप हमसे?”

यह प्रश्न हर्ष ने आज संभवतः दसवीं बार पूछा हो - लेकिन सुहासिनी थी कि हर बार केवल लाज से मुस्कुरा देती। कुछ कहती न।

उनके निकुञ्ज में हमेशा की ही तरह नीरवता फैली हुई थी। हाँ, रह रह कर, कभी कभी धनेश पक्षी की आवाज़ आ जाती - जो इस नीरवता को तोड़ती। इस गर्मी में सभी थक गए थे - क्या जीव जंतु, क्या मानुष! दूर दूर तक कोई नहीं था। लेकिन इस निकुञ्ज में कोई ख़ास बात थी। इन दोनों प्रेमियों को यहाँ गर्मी नहीं लगती थी - उल्टे, इन दोनों को यहाँ स्वर्ग जैसा आनंद मिलता था।

“अगर आप नहीं कहेंगी, तो हम जाएँ?”

“नहीं राजकुमार...” इस धमकी का प्रभाव सही स्थान पर हुआ, “ऐसे न कहिए! किन्तु... किन्तु... बात ही कुछ ऐसी है कि कहते हुए हमको लज्जा आ रही है!”

“ठीक है,” हर्ष सुहासिनी के खेल में शामिल होते हुए बोला, “तो हम आँखें बंद कर लेते हैं! ... तब तो नहीं आएगी लज्जा?”

“आएगी... किन्तु तब हम आपको बता अवश्य पाएँगे!”

“ठीक है... तो लीजिए...” कह कर हर्ष ने अपनी हथेलियों से अपनी दोनों आँखें बंद कर लीं, “अब बताईये...”

“जी बात दरअसल ये है कि हमारे पिता जी... उन्होंने... उन्होंने...”

“हाँ हाँ... आगे भी तो कहिए...”

“उन्होंने... आपके और... और हमारे सम्बन्ध के लिए युवरानी जी से बात करी...”

“क्या!” हर्ष ने चौंकते हुए कहा - उसको विश्वास ही नहीं हुआ, “आप सच कह रही हैं?”

“झूठ क्यों कहूँगी?” सुहासिनी ने ठुनकते हुए कहा, “आपको नहीं बताया किसी ने?”

“नहीं! किसी ने कुछ नहीं कहा!”

“ओह...” सुहासिनी की थोड़ी सी निराशा महसूस हुई, “संभव है कि युवरानी जी को किसी से इस विषय में बात करने का अवसर न मिला हो!”

“संभव है! ... अभी तक तो किसी ने भी इस बारे में मुझसे पूछा तक नहीं!” हर्ष अंदर ही अंदर खुश भी था, और डरा हुआ भी, “आपके बाबा ने कोई संकेत दिया आपको? हमारा मतलब...”

“हम आपका मतलब समझ रहे हैं...” सुहासिनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहा, “वो संतुष्ट लग रहे थे... बहुत संतुष्ट! जैसे... जैसे कि उनके ऊपर से कोई बोझ हट गया हो!”

“सच में?” हर्ष यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, “आह! हमको भी... हमारे भी ऊपर से एक बोझ हट गया! ... भाभी माँ को आपके पिता जी से पता चल गया है तो वो पिताजी महाराज से अवश्य ही बात करेंगी! ... क्योंकि अब उनको भी समझ आ गया होगा कि हमारा प्रेम गंभीर है!”

सुहासिनी के गाल इस बात से लाल हुए बिना न रह सके।

दोनों कुछ देर तक कुछ कह न सके। वैसे भी पिछले कुछ समय में दोनों की निकटता आशातीत रूप से बढ़ गई थी। सुहासिनी का रूप अब हर्ष के दिलोदिमाग पर पूरी तरह से हावी था। वो इस बात के संज्ञान से बड़ा खुश हो गया था कि इस सुन्दर सी लड़की से उसका ब्याह संभव है। एक समय था जब ऐसा सोच पाना भी संभव नहीं था - शादी ब्याह तो बराबर वालों में होती है! एक साधारण कलाकार की लड़की, और राजकुमारी! असंभव!

धनेश की आवाज़, एक बार फिर से उस निस्तब्धता को तोड़ती हुई महसूस हुई। ह

र्ष और सुहासिनी - दोनों का ही ध्यान उस ओर आकर्षित हो गया। इस बार उसकी पुकार एक दो कूजन पर ही नहीं रुका, बल्कि कुछ देर तक चलता रहा। तीख़ी आवाज़ थी, लेकिन कानों को कचोट नहीं रही थी - क्योंकि पक्षी कुछ दूर रहा होगा। दूर के ढोल सुहाने होते हैं - क्योंकि उनकी कर्कशता कानों को सुनाई नहीं देती। लिहाज़ा, अगर इस गहन गर्मी में आँखें बंद कर के लेट जाएँ, तो धनेश की पुकार सुन कर, सुख भरी नींद आ जाए।

हर्ष कुछ सोच कर धीरे से मुस्कुराया।

“ये धनेश अपने लिए साथी ढूंढ रहा है!”

“अपने लिए या अपना...” सुहासिनी ने चुहल करी।

“हाँ, वो भी हो सकता है!” हर्ष हँसते हुए बोला, “लेकिन मुझे तो अपना साथी मिल गया!”

सुहासिनी फिर से लजा गई।



*


मीना के हाथ का खाना बड़ा ही स्वादिष्ट था।

लोग कहते हैं कि पुरुष के दिल का रास्ता उसके पेट से हो कर जाता है - हाँ, पेट के नीचे से भी जाता है, लेकिन दैनिक आवश्यकता होती है पोषण की, प्रेम की, साथी की! सम्भोग दैनिक आवश्यकता नहीं है। सुस्वादु भोजन कई बातों की तरफ़ संकेत करता है - यह कि आपका साथी पाक-कला में निपुण है; यह कि उसके मन में आपके लिए अपनत्व है; और यह कि वो सुसंस्कृत है!

“ओह गॉड,” जय ने भोजन की बढ़ाई करते हुए कहा, “दिस इस बेटर दैन भाभीस फ़ूड... ऑर इवन माँ...”

“हा हा...”

नो... सीरियसली! एंड दैट इस सेइंग समथिंग...” जय सच में बहुत खुश था, “वाओ!”

“हाँ, ठीक है, ठीक है! बहुत अधिक चढ़ाने की ज़रुरत नहीं!” मीना अंदर ही अंदर खुश तो थी, लेकिन बाहर वो ख़ुशी दिखा नहीं रही थी।

“अरे यार! सच बात को ऐसे मत बोलो!”

“ठीक है... एन्जॉय देन!”

“ये कढ़ी तो बहुत स्वादिष्ट है!”

हनी, आई ऍम हैप्पी कि तुमको पसंद आई... टाइम कम था, नहीं तो बहुत कुछ खिलाती!”

“रुक जाता हूँ फिर?” जय ने खिलवाड़ करते हुए कहा, “कल दिन भर रह जाता हूँ तुम्हारे साथ ही?”

“सच में?” मीना ने सुखद आश्चर्य वाले भाव में कहा - जैसे उसकी भी मन ही मन यही इच्छा रही हो।

“हाँ! ... मुझे लगा कि तुम ही नहीं चाहती कि मैं यहाँ रहूँ!”

“ऐसा क्यों सोचा तुमने?” मीना ने बड़ी कोमलता और बड़ी सच्चाई से कहा, “... मैं तुम्हारी हूँ, तो मेरा और मुझसे जुड़ा हुआ सब कुछ तुम्हारा है... ये घर भी तुम्हारा है!”

“ओके! देन आई विल स्टे! ... लेकिन मेरे पास चेंग क्लॉथ्स नहीं हैं!”

व्ही विल डू समथिंग!”

“ओके!” जय ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कल क्लेयर, आदित्य और बच्चों को बुला लेंगे?” मीना बड़े उत्साह से बोली, “... लॉन्ग वीकेंड यहीं मनाएँगे? क्या कहते हो?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना की मुस्कराहट बहुत चौड़ी हो गई।

‘पक्की बात’ कहना, उन दोनों का तकिया-कलाम बनता जा रहा था। जब दो लोग प्यार में पड़ते हैं, तो एक दूसरे की ऐसी छोटी छोटी, लेकिन प्यारी बातें आत्मसात कर लेते हैं, और उनको पता भी नहीं चलता। ऐसा ही जय और मीना के साथ भी हो रहा था। दोनों एक दूसरे के रंग में रंगे जा रहे थे, और दोनों को पता भी नहीं चल रहा था।

“ठीक है... तुम भैया भाभी को कॉल कर लेना!”

“अरे! मैं क्यों?”

“तुम्हारा घर है... तुम इनवाइट करो न?”

“लेकिन तुम्हारा घर भी तो है!”

“हाँ - लेकिन इनवाइट तुमको करना होगा! कॉल कर के मैं ये तो बता दूंगा कि आज रात मैं यहीं रुक रहा हूँ, लेकिन कल का प्रोग्राम तुम ही बताना!”

“ठीक है हुकुम! जो आप कहें!”

“हा हा! ... ये वर्ड बहुत समय बात सुना!”

“अच्छा जी! आप ये वर्ड सुनते आ रहे हैं?”

“हाँ... जब भी इंडिया जाता हूँ, तब यही सुनता हूँ!”

“वाह जी! आप राजवाड़े हैं?”

“हो सकते हैं!”

“हा हा हा!”

बाकी का भोजन ऐसी ही हँसी ख़ुशी में बीत गया। भोजन के बाद जय ने अपने घर फ़ोन लगाया, और बताया कि वो आज रात यहीं रुकेगा। फिर उसने बताया कि मीना भी बात करेगी। जब मीना ने फ़ोन लिया, तब क्लेयर लाइन पर थी,

“क्लेयर, हाय!”

“हाय मीना... क्या बात है? ... मेरे देवर को मुझसे अलग कर रही हो?”

“हा हा! नहीं यार! ऐसा कुछ नहीं है... कल आप सभी को यहाँ बुलाने का मन था... तो जय ने कहा कि क्यों न वो रुक जाए!” मीना ने जय की तरफ़ से एक प्यारा सा झूठ कहा।

“अरे रहने दो! ... मुझे पता है कि साहब खुद ही तुमसे दूर नहीं रह सकते! ... इट्स ओके!”

“क्लेयर, एक और बात करनी थी...”

“हाँ बोलो?”

“आप सभी कल मेरे यहाँ आईये न! ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ यहीं करेंगे! ... मेरा घर आपके जैसा महल नहीं है, लेकिन स्पेस तो है!”

“ओह मीना! आर यू श्योर?”

“हाँ! ... पक्की बात!”

“हा हा हा... तुम तो जय के जैसे बातें करने लगी!”

यह बात सुन कर मीना शरमाए बिना न रह सकी।

*
लो कर लो बात
 
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Update #25


धनेश पक्षी को शायद अपना साथी मिल गया था - क्योंकि अब दो दो आवाज़ें आने लगीं थीं। अचानक से ही पक्षियों की आवाज़ें तीखी हो गईं - लेकिन अभी भी उनका शोर सुन कर खराब नहीं लग रहा था। हर्ष कौतूहलवश, उचक कर निकुञ्ज के चारों तरफ देखने लगा कि शायद धनेश पक्षी दिख जाए। लेकिन कुछ नहीं दिखा। देखने में वो वृक्ष और झाड़ियाँ विरल थीं, लेकिन फिर भी आवश्यकतानुसार घनी भी!

“क्या हुआ?” सुहासिनी ने पूछा।

“कुछ नहीं... इतना शोरगुल है, फिर भी कोई पक्षी नहीं दिख रहा है!”

“इसको शोर न कहिए राजकुमार जी...”

“हा हा... जैसी राजकुमारी जी की इच्छा!”

सुहासिनी कुछ देर न जाने क्या सोच कर चुप रही, फिर आगे बोली,

“आपको पता है न राजकुमार जी? ... धनेश पक्षी उम्र भर के लिए साथ निभाते हैं!”

“अच्छा? ऐसा है क्या?”

“जी... बहुत ही कम पक्षी हैं, जो अपना पूरा जीवन केवल एक साथी के संग बिताते हैं। ... आपके पसंदीदा सारस पक्षी भी इन्ही धनेश पक्षियों जैसे ही हैं!”

“आपको हमारी पसंद का पता है!” हर्ष ने आश्चर्य से कहा।

“आपकी साथी होने का दम्भ हममें यूँ ही थोड़े ही आया है!” सुहासिनी ने बड़े घमंड से कहा।

उसकी बात सुन कर हर्ष हो बड़ा भला महसूस हुआ। हाँ, जीवनसाथी हो तो ऐसी!

“हम भी तो आप ही के साथ अपना पूरा जीवन बिता देना चाहते हैं, राजकुमारी जी!”

हर्ष ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा। यह एक इतना कोमल संकेत था, कि सुहासिनी अंदर ही अंदर पूरी तरह पिघल गई। पहले अपने लिए ‘राजकुमारी’ वाला सम्बोधन सुहासिनी को थोड़ा अचकचा लगता था, लेकिन अब नहीं। राजकुमार हर्ष की पत्नी के रूप में वो राजकुमारी के रूप में ही जानी जायेगी, और इस बात का संज्ञान उसको बड़ा भला लग रहा था।

“हम आपको बहुत प्रेम करेंगे...” सुहासिनी ने वचन दिया।

“हमको पता है!” हर्ष ने कहा, और सुहासिनी का एक गाल चूम लिया।

उस दिन के बाद से आज पहली बार हर्ष ने सुहासिनी को चूमा था। इसलिए दोनों के बीच चुम्बन का आदान प्रदान अभी भी अप्रत्याशित था। उसके दिल में हलचल अवश्य मच गई, लेकिन इस बार सुहासिनी घबराई नहीं। लेकिन फिर भी, लज्जा की एक कोमल, रक्तिम लालिमा उसके पूरे शरीर पर फ़ैल गई।

“सुहास...” हर्ष बोला।

“जी?”

उत्तर में हर्ष ने कुछ कहा नहीं - लेकिन उसके सुहासिनी की तरफ़ कुछ ऐसे अंदाज़ में देखा कि उसको लगा कि हर्ष उससे किसी बात की अनुमति माँग रहा है। स्त्री-सुलभ संज्ञान था, या कुछ और - उसने शर्माते हुए बड़े हौले से ‘हाँ’ में सर हिलाया। बस - एक बार! इतना संकेत बहुत था हर्ष के लिए। उसने हाथ बढ़ा कर सुहासिनी की कुर्ती के बटनों को खोलना शुरू कर दिया।

सुहासिनी का दिल फिर से तेजी से धड़कने लगा। उस दिन तो राजकुमार ने जो कुछ किया था, अपनी स्वयं की मनमर्ज़ी से किया था। लेकिन आज वो दोष उस पर नहीं लगने वाला था। आज सुहासिनी ने उसको अनुमति दे दी थी। बहुत संभव है कि सुहासिनी के मन के किसी कोने में यह इच्छा... या यूँ कह लें, कि उम्मीद दबी हुई थी, कि उस दिन की ही तरह फिर से कुछ हो!

लेकिन जब वैसा कुछ होने लगता है, तो मन में होता है कि वो कहीं छुप जाए! बेचैनी और आस के बीच की रस्साकशी बड़ी अजीब होती है। लेकिन, वो यह होने से रोकने देना नहीं चाहती थी।

कुछ ही क्षणों में सुहासिनी कमर के ऊपर से पुनः नग्न थी। उसके छोटे छोटे नारंगी के फलों के आकर के गोल-मटोल नवकिशोर स्तन पुनः हर्ष के सामने थे।

“कितने सुन्दर हैं ये...” हर्ष उनको सहलाते हुए बोल रहा था, “... कैसे न पसंद आएँ ये हमको...”

हर्ष जैसे खुद से ही बातें कर रहा था।

ऐसी बातें किस लड़की के दिल में हलचल न पैदा कर दें? सुहासिनी भी अपवाद नहीं थी। उसको शर्म आ रही थी, लेकिन उसके मन में एक गज़ब का आंदोलन भी हो रहा था! उसको लग रहा था जैसे घण्टों बीते जा रहे हों - उसका राजकुमार उसके स्तनों को बड़ी लालसा, बड़ी रुचिकर दृष्टि से देख रहा था, सहला रहा था, महसूस कर रहा था। शायद ही उसके स्तनों का कोई भी विवरण हर्ष की नज़र से बच सका हो। इतनी क़रीबी जान पहचान हो गई!

अपने मन की व्यथा वो किस से कहे?

“राजकुमार...?” अंततः वो बोली।

“हम्म?”

“अ... आप को ऐसे शरारतें करना अच्छा लगता है?”

“बहुत!” कह कर हर्ष ने सुहासिनी को चूम लिया, “... आप इतनी सुन्दर भी तो हैं... हम करें भी तो क्या करें? ”

बात तो सही थी! कमसिन, क्षीण से शरीर वाली सुहासिनी एक ख़ालिस राजस्थानी सुंदरी थी! और अपने नग्न स्वरुप में और भी सुन्दर सी लग रही थी! अप्सरा जैसी! मनभावन! कामुक!

‘कामुक!’

यह शब्द हर्ष के मस्तिष्क में अचानक ही कौंध गया, और इस बात के बोध मात्र से उसके शरीर में कम्पन होने लगा। यौवन के सहज आकर्षण से वशीभूत हर्ष ने बढ़ कर सुहासिनी को अपने आलिंगन में भर लिया। और यह भावना हर्ष तक ही सीमित नहीं थी - सुहासिनी भी, हर्ष की ही भाँति काँप रही थी। अपरिचित एहसास! डरावना भी! लेकिन ऐसा नहीं कि जिसको रोकना दोनों के लिए संभव हो!

हर्ष सुहासिनी की तरफ़ थोड़ा झुका - सुहासिनी समझ तो रही थी कि वो उसको चूमना चाहता है, लेकिन किस तरह से चूमना चाहता है - उसको इस बात का अंदाजा नहीं था। हर्ष ने अपने भैया हरिश्चन्द्र और भाभी प्रियम्बदा को उनके अंतरंग क्षणों में एक दो बार चुम्बन करते हुए देखा अवश्य था, लिहाज़ा, वो अब वही क्रिया अपनी प्रेमिका पर आज़माना चाहता था। सुहासिनी को लगा कि वो उसके गालों या माथे पर चूमेगा - लेकिन हुआ कुछ और! हर्ष के होंठ ज्यों की उसके होंठों पर स्पर्श हुए, जैसे विद्युत् की कोई तीव्र तरंग उसके शरीर में दौड़ गई!

खजुराहो के मंदिरों में युवतियों की कई मूर्तियाँ हैं - कुछेक में ऐसा दर्शाया गया है कि बिच्छू उन युवतियों की जाँघों पर काट रहा है। यह बिच्छू दरअसल है ‘काम’! हर्ष के होंठों को अपने होंठों पर स्पर्श होते महसूस होते ही सुहासिनी के शरीर का ताप किसी तीव्र ज्वर के होने के समान ही बढ़ गया। काम का ज्वार, किसी ज्वर समान ही चढ़ता है। नवोदित यौवन की मालकिन सुहासिनी भी अब काम के ताप में तप रही थी। अपरिचित आंदोलनों से उसका शरीर काँप रहा था। ऐसा कैसे होने लगता है कि आपका शरीर स्वयं आपके नियंत्रण में न रहे? न जाने कौन सी प्रणाली है, लेकिन अब सुहासिनी का अपने खुद के ऊपर से नियंत्रण समाप्त हो गया था।

दोनों का चुम्बन कुछ देर तक चला - दोनों के लिए यह बहुत ही अपरिचित एहसास था, लेकिन किसी भी कोण से खराब नहीं था। मन में अजीब सा लगा लेकिन बुरा नहीं। चुम्बन समाप्त होते होते दोनों की साँसें धौंकनी के समान चल रही थीं - जैसे एक लम्बी दूरी की दौड़ पूरी कर के आए हों दोनों।

लेकिन हर्ष आज कुछ अलग ही करने की मनोदशा में था।

जब मन में चोर होता है, तब आप कोई भी काम चोरी छुपे, सबसे बचा कर करते हैं। लेकिन हर्ष के मन में चोर नहीं था - जब से उसने सुहासिनी को देखा था, वो तब से उसको अपनी ही मान रहा था। वो उसको चोरी से प्रेम नहीं करना चाहता था। इसलिए जब उसके हाथ स्वतः ही उसके घाघरे का नाड़ा खोलने में व्यस्त हो गए, तब उसने एक बार भी ऐसा नहीं सोचा कि वो आस पास का जायज़ा ले। उसको इस बात का ध्यान तो था कि उनके निकुंज में एकांत था, उसके कारण उनको यूँ अंतरंग होने में सहूलियत थी। लेकिन वो निकुंज एक तरह से दोनों का घर था - उनका शयन कक्ष था। जिसमें दोनों एक दूसरे के साथ अकेले में मिल सकते थे।

सुहासिनी जानती थी कि विवाह के बाद यह तो होना ही है, लेकिन अभी? थोड़ा अलग तो था, लेकिन उसको ऐसा नहीं लगा कि यह नहीं होना चाहिए। राजकुमार उसके प्रेमी नहीं रह गए थे - वो उनको अपना पति कब से स्वीकार कर चुकी थी। अपने इष्टदेवता से वो कब से प्रार्थना कर के अपने और अपने राजकुमार के साथ की कामना कर चुकी थी। कम से कम तीन बार दोनों ने एक साथ मंदिर में जा कर पूजन किया, और ईश्वर से एक दूसरे को अपने अपने लिए माँग लिया था। और तो और, अब तो उनके सम्बन्ध को उसके बाबा और युवरानी जी का आशीर्वाद भी प्राप्त था! इतना सब हो जाने के बाद अब तो बस, कुछ रस्में ही बची हुई थीं!

दो चार पल ही बीतें होंगे, लेकिन दोनों को लग रहा था जैसे युग बीत गए हों!

लेकिन अब सुहासिनी अपने पूर्ण नग्न स्वरुप में अपने राजकुमार के सम्मुख थी।


*
तो आगे क्या होगा
 
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Update #26


“जानेमन, आपने हमको रोक तो लिया है... लेकिन हमारे सोने का इंतज़ाम कहाँ है, वो तो बताईए?” जय ने ठिठोली करते हुए मीना से कहा।

“अच्छा जी,” मीना ने उसके खेल में शामिल होते हुए कहा, “... हम आपके पहलू में बैठे हैं, और आपको सोने की पड़ी है! ... इतनी बोर कंपनी है हमारी?”

“मेरी जान, आप हमारे पहलू में बैठी होतीं, तो कौन गधा सोने का सोचता... आप हमारे पहलू में नहीं बैठी हैं, इसीलिए तो नींद आ रही है!”

“हुकुम... आप और आपकी बातें! ... आइए आइए,” मीना ने भी खेल में शामिल होते हुए कहा, “चलिए... हम आपको आपके सोने का इंतज़ाम दिखा दें!”

“जी, चलिए...” कह कर जय मीना के पीछे चल दिया।

जब मीना ड्राइंग रूम में आई, तो जय को अचरज हुआ। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मीना पर डाली।

अपने अनकहे प्रश्न का उत्तर उसको तुरंत मिल गया।

“वो देखिए... वहाँ... वो काउच दिख रहा है न,” मीना ने इशारे से दिखाते हुए कहा, “... बस, वहीं है आपके सोने का इंतज़ाम! ... आज रात वहीं आराम फरमाईये आप...”

“अरे! काउच... आउच...” जय ने पीड़ित होने का नाटक किया।

उसके इस नाटक को देख कर मीना ज़ोर से हँसने लगी, “ओह जय, कैसे हो तुम!”

और कह कर उसने जय को ज़ोर से अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अरे बताया तो है... द बेस्ट!”

द बेस्ट नहीं,” मीना ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... बेस्टेस्ट”, और इस बार उसको चूमने की पहल उसने खुद करी।

अगले ही पल दोनों के होंठ एक जोशीले चुम्बन में जुम्बिश (कम्पन) कर रहे थे - लेकिन यह एक सुकून भरा जोश था। शांत! दोनों के दूसरे के आलिंगन में बँध कर जैसे इस दीन दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो गए थे। चुम्बन के उन क्षणों में कोई अन्य प्राणी अस्तित्व में ही नहीं था! बस वो दोनों ही थे। कोई एक मिनट तक दोनों चुपचाप एक दूसरे को चूमते रहे! चुम्बन तब टूटा, जब मीना की साँस उखड़ने लगी।

“हुकुम...” उसने गहरी साँस भरते हुए, किन्तु शरारत भरे लहज़े में कहा, “किस करने की हो रही थी... मेरी साँस निकालने की नहीं!”

“ओह सॉरी सॉरी!” जय को अपनी गलती समझ आई।

“कोई बात नहीं माय लव... आई लव किसिंग यू!” वो बोली - आखिरी के शब्द बोलते बोलते उसके गालों में लाल रंगत गहरा आई, “... आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

नॉट पॉसिबल...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

“तो फ़िर...” जय ने शरारत भरे अंदाज़ में फिर से कहा, “मेरे सोने का इंतज़ाम किधर है?”

“... मेरे पहलू में...” मीना ने जय के सीने पर अपना माथा टिकाते हुए कहा, “... और कहाँ?”

“पक्की बात?”

मीना ने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जानेमन...” जय ने अपने परिचित शरारती अंदाज़ में कहना शुरू किया, लेकिन अचानक ही गंभीर हो गया, “... आर यू श्योर माय लव?”

मीना ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“... आई ऍम श्योर अबाउट यू सिन्स द डे व्ही मेट!”

“ओह मीना... आई लव यू सो सो वैरी मच!”

“मुझसे ज़्यादा नहीं...”

“... बट आई कैन ट्राई...”

योर होल लाइफ?” मीना बोल रही थी, लेकिन उसकी आँखों के कोने में आँसू निकल आए थे।

माय दिस लाइफ एंड द नेक्स्ट...” जय ने उसकी आँखों को चूमते हुए कहा।

“ओह जय! ... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर...”

बट... लव इस मैजिक!”

एंड आई ऍम इनचैंटेड...” मीना ने बड़े प्यार से दो पल जय को देखा।

फिर उसकी बाँह थाम कर चलती हुई, बड़ी कोमलता से बोली, “कम...”

कुछ ही पलों में दोनों मीना के शयनकक्ष में थे।

जय ने देखा कि उसका कमरा भी घर के ही समान बहुत ही स्वच्छ और सुरुचिपूर्ण तरीक़े से व्यवस्थित और सुसज्जित था। जिस व्यक्ति का रहन सहन स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है, वो व्यक्ति भी अक़्सर स्वच्छ और सुव्यवस्थित होता है। यह बात जय ने अपनी माँ से बहुत पहले से ही सीख ली थी, और अपनी भाभी के साथ रहते हुए उसको इस बात का यकीन भी हो गया था। तो मीना को भी वैसा ही अनुकूल आचरण करते देख कर वो बहुत खुश हुआ।

लवली...” उसके मुँह से मीना के रहन सहन के लिए बढ़ाई निकल ही गई।

“क्या?” मीना ने उत्सुकतावश पूछा।

“कितना साफ़ सुथरा घर है... सुन्दर भी! ... तुम्हारी तरह!”

मीना मुस्कुराई, “थैंक यू...”

“मेरा घर भी इसी तरह सुन्दर कर दो...”

आई वांट टू...” मीना ने संजीदगी से कहा, “लेकिन कभी कभी मेरा दिल बहुत घबराता है...”

बोलते बोलते उसकी आँखों के कोनों से आँसू की पतली सी लकीर बन आई।

“मीना... मेरी जान... तुम और मैं एक दूसरे के लिए बने हैं... मुझे इस बात पर हंड्रेड परसेंट से भी अधिक यकीन है! ... और... मैं यह बात बार बार कह सकता हूँ... बिना थके! ... इसलिए तुम किसी भी बात की चिंता न करो! ... आई लव यू!”

जय ने उसके आँसुओं को पोंछते हुए कहा।

“इसी बात का तो डर है जय... मैं भी तुमको बहुत चाहती हूँ! खूब... अपनी जान से भी ज़्यादा! ... इसीलिए डर लगता है कि कहीं तुमको खो न दूँ... या कुछ ऐसा न हो जाए, कि तुमको मेरे कारण कोई दुःख हो...”

“ओह मीना... मीना... कुछ नहीं होगा! जय ने कहना शुरू किया, ... क्या होगा बताऊँ?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कल मैं माँ से बात करूँगा... उनसे कहूँगा कि मुझे तुम बहुत पसंद हो, और मैं तुमसे शादी करूँगा! ... फिर माँ हम दोनों की शादी करा देंगी... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... दो तीन...”

मीना ने उसकी बात पर चौंकने की प्रतिक्रिया दे कर जय की पसली में मज़ाकिया घूँसा मारा। लेकिन वो घूँसा बस एक कोमल, प्रेम-मय स्पर्श मात्र था - जो प्रेम में, ठिठोली के जैसे किया जाता है।

“अरे! क्या हुआ?” जय ने हँसते हुए कहा, “... तो फिर तुम्ही बता दो न कि कितने बच्चे करने हैं...”

जय हमेशा ही मीना का मूड बढ़िया कर देता था, तो आज भी कुछ अलग नहीं था। जय की बातें सुन कर, मीना का मन फिर से हल्का हो गया। उसने अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराते हुए कहा,

“जितने तुमको चाहिए...”

“आए हाय... फ़िट हो गई है कुड़ी!”

“हैं?” मीना को समझ नहीं आया कि जय का क्या मतलब था।

“कुड़ी मतलब लड़की...”

“ओह...”

“तो मैं कह रहा था कि हमको कम से कम तीन बच्चे चाहिए!”

“वो क्यों?”

“वो इसलिए मेरी जान, क्योंकि किसी ने दो से अधिक बच्चे नहीं किए अभी तक घर में... मिनिमम तीन बच्चे चाहिए... फोर विल बी आईडियल...”

“जो हुकुम... हुकुम!”

“हा हा...” जय ने हँसते हुए मीना को अपनी तरफ खींचा और अपने आलिंगन में बाँध लिया।

“अच्छा प्लान है न?” उसने कहा।

“बहुत अच्छा...”

मीना ने कहा और जय के आलिंगन में कुछ इस तरह से समां गई कि जैसे वो दुनिया जहान छोड़ कर बस अपने जय की ही पनाह में रह जाए। जय ही उसका घर है... जय ही उसकी दुनिया है!

कोई दो मिनट तक मीना जय की पनाह में ही दुबक कर बैठी रही - उसको जय के दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। एक शक्तिशाली मर्दाना दिल! और उसकी संयत, नपी-तुली धड़कन! कोई घबराहट नहीं... कोई हिचकिचाहट नहीं... ऐसा लग रहा था कि जैसे मीना को अपने सीने से लगा कर रखना उसके लिए रोज़मर्रा का काम हो।

‘ऐसे तो वो लोग होते हैं, जिनकी शादी हुए सालों साल बीत गए हों!’

ये ख़याल मन में आते ही मीना के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गई।

उस मुस्कान को जय ने भी अपने सीने में महसूस किया।

“क्या हुआ, मेरी जान?”

मीना मुस्कुराती हुई जय के सीने से अलग हटती हुई गुनगुनाई,

हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए...”

उसके गुनगुनाने पर जय मुस्कुराया - उसको अच्छा लगा कि मीना गा भी लेती है। वैसे भी उसकी आवाज़ ऐसी थी कि वो गाना गा सकती है।

लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

“सच में?”

मीना ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय ने इस बात पर मीना की आँखों को चूम लिया।

मीना चुप हो गई।

“गाओ न, माय लव...”

“मैं दुनिया की सबसे लकी लड़की हूँ!” उसने गाने के बजाए बड़ी सहजता और ईमानदारी से कहा।

“और मैं सबसे लकी लड़का... गाओ न!”

“बस एक दो लाइनें ही आती हैं... पूरा गाना नहीं...” मीना बोली और फिर से गुनगुनाने लगी,

खुशबू चमन को छोड़ के साँसों में घुल गई...
लहरा के अपने आप जवान ज़ुल्फ़ खुल गई...”

इस लाइन पर जय ने बड़े प्यार से मीना की अलकों में अपनी उँगलियाँ उलझा दीं।

मीना मुस्कुराई,

हम अपनी दिलपसंद पनाहों में आ गए...
हम जब सिमट के आप की बाहों में आ गए...
लाखों हसीं ख़्वाब निगाहों में आ गए...”

आई लव यू...” गाना ख़तम कर के मीना ने कहा।

जय मुस्कुराया, “बात हुई थी कि हम आपके पहलू में सोएँगे... लेकिन हमारी बेग़म तो बार बार हमारे पहलू में आने की बात कर रही हैं...”

“आ जाईये हमारी पहलू में... हुकुम...” मीना ने बड़ी सेक्सी अदा से अपनी बाहें फ़ैला दीं।

जय की तो मन माँगी मुराद पूरी हो गई - वो पूरे उत्साह से मीना के सीने में, उसके स्तनों के बीच अपना चेहरा घुसा कर उसके आलिंगन में समां गया। मीना के ठोस स्तनों की कोमलता को महसूस कर के उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसको स्तनों का कोई ख़ास अनुभव नहीं था - बचपन में स्तनपान करते समय जो हुआ हो, वही हुआ था। उसके बाद नहीं। कम से कम स्तनों की कोई याद ताज़ा नहीं थी। हाँ, भाभी के सीने पर सर रखने, उनके आलिंगन में उसको जो अनुभव था, बस वही था। क्लेयर के स्तन अधिक कोमल थे, लेकिन मीना के अधिक ठोस! उसको इस बोध से अच्छा लगा।

उसने स्वेटर के ऊपर से ही मीना के दोनों स्तनों को बारी बारी चूम लिया।

न कोई हिचक दिखाई, और न ही कोई शर्म!

लेकिन मीना का पूरा शरीर उन दोनों चुम्बनों के कारण सिहर गया।

“जय...” वो बस फुसफुसा सकी।

कोई विरोध नहीं था यह - बस, विस्मय भरा एक शब्द था... और वो भी उसके प्रियतम का नाम! जय ऐसी अपूर्व सुंदरी को अपनी पत्नी के रूप में पा कर गदगद था। चोरी छुपे खिलवाड़ बहुत हो चुका था - अब असली बात हो जानी चाहिए थी। उसको एक समय से मीना को नग्न देखने की चाह थी। आज की रात उस चाह को पूरा करने की रात थी।

*
उफ यह रात इश्क को हुस्न का साथ
 
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Update #27


उसने मीना का स्वेटर उसके शरीर से ऊपर उठाया - मीना और उसकी आँखें दो पल को मिलीं, और फिर मीना ने अपनी आँखें नीची कर लीं। जय ने उसकी इस हरकत को उसकी मौन स्वीकृति माना। लेकिन अगले ही पल मीना ने अपने दोनों हाथ थोड़े ऊपर उठा लिए - अब संदेह की कोई गुंजाईश ही नहीं थी। यह स्वीकृति चाहे कितनी ही मौन हो, लेकिन चीख चीख कर सब कुछ साफ़ साफ़ कह रही थी।

दो ही पलों में मीना के ब्रा से ढँके स्तन जय के सामने उजागर हो गए - मीना ने बेबी पिंक रंग की, लेस वाली फ्रेंच ब्रा पहनी हुई थी! उसमें लेस थोड़ा पारदर्शी था, लिहाज़ा, उसके गहरे रंग के चूचक लेस के पैटर्न के पीछे से दिखाई दे रहे थे।

ऐसा दिव्य नज़ारा जय ने पहले कभी नहीं देखा था। उसको यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसे अद्भुत अंगों को उसने अभी बस कुछ ही पलों पहले चूमा था! उसकी किस्मत सिर्फ इसलिए अच्छी नहीं थी कि वो मीना जैसी गुणों से संपन्न लड़की का पति बनने वाला था, बल्कि इसलिए भी अच्छी थी कि वो गुणों के साथ साथ रूप संपन्न भी थी!

दे आर माय मोस्ट फेवरेट ब्रेस्ट्स इन द होल वर्ल्ड...”

ऐसी भारी माहौल में भी मीना को हँसी आ गई, “... और किसके ब्रेस्ट्स देख लिए आपने हुकुम?”

“अरे क्यों! माँ हैं... भाभी हैं...”

कहा तो था जय ने मीना को जलाने की गरज़ से, लेकिन पास उल्टा पड़ गया, “अच्छा जी... आप अभी भी दुद्धू पीते हैं?”

लेकिन मीना को अभी तक जय के सौम्य स्वभाव का पूरा अंदाज़ा नहीं था। वो न तो इतनी जल्दी गुस्सा होता था, और न ही किसी बात से जलता या कुढ़ता था। वो हँसमुख और निश्छल प्रवृत्ति का आदमी था।

“नहीं मेरी जान... अभी भी नहीं, अभी से...” वो हँसते हुए बोला, “... अभी से हम आपका दुद्धू पिएँगे...”

“हाँ ज़रूर... मान न मान, मैं तेरा मेहमान!”

“हम तो ऐसे ही हैं... आप देख लीजिए...”

उसकी बात पर मीना पल भर में पिघल गई, “आप हमको ऐसे ही बहुत अच्छे लगते हैं...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात...”

“ये कैसे उतरती है?” जय ने पूछा।

“आप तो एक्सपर्ट हैं दुद्धू पीने में... आपको तो मालूम होगा!” कह कर मीना अपनी ब्रा का क्लास्प खोलने को हुई।

उसकी इस हरकत से जय को समझ आ गया कि ये वाले ब्रा पीठ के पीछे खुलती है।

“तुमको निर्वसन करने का यह शुभ काम मुझे करने दो प्रिये...” जय ने बदमाशी भरे अंदाज़ में कहा।

“क्या करने दो?” मीना को समझ ही नहीं आया कि उसने क्या कहा।

“तुमको नंगा...”

“धत्त...” मीना ने जय के बढ़े हुए हाथ पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा, “पूरे बेशर्म हो तुम...”

“हमको शर्म करनी चाहिए क्या मेरी जान?” जय ने मीना के पीठ के पीछे अपनी बाहें डालते हुए कहा।

वो मुस्कुराई।

बोली कुछ भी नहीं।

जय ने उसकी तरफ़ झुकते हुए, उसके कंधे और गर्दन को चूमते हुए उसकी ब्रा का क्लास्प पकड़ा।

उन दोनों के संछिप्त से, लेकिन तेजी से प्रगाढ़ हुए अंतरंग सम्बन्ध में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय था। आप कितना भी कह लें, कि आपको अपनी प्रेमिका के गुण पसंद हैं, लेकिन आपके सम्बन्ध में कभी न कभी वो समय आ ही जाता है, जब आप दोनों के बीच शारीरिक आकर्षण किसी भी अन्य आकर्षण से अधिक बलवान हो जाता है। संभव है कि क्रमिक विकास की प्रक्रिया में, प्रकृति ने यह एक आवश्यक घटक डाला हुआ हो...! जब आपको अपना मनचाहा साथी मिल ही गया है, तो क्यों न उसके साथ संतानोत्पत्ति करें? फिर भी, जय ने स्वयं को कुछ समय से ज़ब्त कर के रखा हुआ था। मीना ने भी... क्योंकि उसको अपने पुराने असफ़ल संबंधों की याद ताज़ा थी। लेकिन वो जय को निराश नहीं करना चाहती थी। वो समझती थी कि अगर जय को उसके साथ अंतरंग होने की इच्छा है, तो वो इच्छा लाज़मी भी है और जायज़ भी... और यह, कि उन दोनों के बीच कभी न कभी यह सब होगा ही!

वैसे भी, आज दोनों के बीच माहौल अलग ही था! दोनों ही बड़े ठहराव और आनंद से एक दूसरे के साथ का आनंद ले रहे थे। ऐसे में, दोनों के बीच अवरोध की बाधा घट गई थी। मीना के दिल की धड़कनें तेज हो गईं... और जय के भी... आज वो मीना को देखने वाला था... पहली बार! वो एक पल को रुका, और मीना की आँखों में देखते हुए मुस्कुराया, और उसके होठों को चूमा। मीना भी मुस्कुरा दी... एक शर्मीली और कोमल मुस्कान!

ब्रा का क्लास्प खुल गया, और जय के हाथ की एक छोटी सी हरकत से उसकी ब्रा उसके शरीर से अलग हो गई। इतने दिनों के सब्र का प्रतिफल देखने का समय आ गया था...

जय ने थोड़ा पीछे हट कर मीना के सीने की तरफ़ देखा।

ओह गॉड!’

जैसी जय को उम्मीद थी, उससे हज़ारों गुणा सुन्दर और आकर्षक स्तनों की जोड़ी थी मीना की! यौवन के शिखर पर उपस्थित, और घमण्ड से उन्नत ठोस, गोल टीलों जैसे थे मीना के स्तन! दृढ़ और मुलायम - एक साथ! घोर विरोधाभासों का सम्मिश्रण! स्तनों के दोनों गोलार्द्धों के ऊपर स्वादिष्ट से दिखने वाले गहरे भूरे रंग के चूचक शोभायमान थे, और उसी से मिलते जुलते, लेकिन थोड़े हल्के रंग के कोई दो इंच के एरोला से घिरे हुए थे। मीना के स्तन देखने में बड़े कोमल, और नाज़ुक से लग रहे थे - लेकिन उनको देख कर ऐसा भी मन हो रहा था कि बस, दबोच कर उनका सारा रस पी जाओ!

अब तक जय के मन में इतना जोश चढ़ चुका था कि वो मीना के चूचक को अपने मुँह में लेने का लोभ-संवरण न कर सका। जैसे ही उसने मीना का एक चूचक चूमा, तो मीना के साथ साथ वो भी सिहर गया! उसने देखा कि उसके चुम्बन की प्रतिक्रिया स्वरुप मीना के स्तन के रौंगटे खड़े हो गए थे।

“ओह! सो ब्यूटीफुल! वैरी वैरी ब्यूटीफुल!” जय उसका दूसरा चूचक चूमने से पहले बोला, “... एंड परफेक्ट!”

जय मीना के स्तनों की सुंदरता में पूरी तरह से डूब गया था। उसने यह नहीं देखा कि मीना ने उसकी बढ़ाई पर कैसी प्रतिक्रिया दी, लेकिन मीना के दोनों गाल शर्म से लाल लाल हो गए!

उधर, मीना के दिव्य-दर्शन से जय पर एक अलग ही प्रभाव पड़ रहा था - उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से उत्तेजित हो गया था। पुराने अनुभव से उसको समझ आ रहा था कि बिना स्खलन हुए, वो शांत नहीं होने वाला! लेकिन उसमें समय था।

उसने मीना का स्वेटर उसके शरीर पर ऊपर की तरफ़ उठाया - मीना और उसकी आँखें दो पल को मिलीं, और फिर मीना ने अपनी आँखें नीची कर लीं। इस बात का क्या मतलब था? जय के मन में हुआ कि मीना की इस हरकत को उसकी मौन स्वीकृति मान ली जाए - लेकिन पक्का नहीं पता। बिना मीना की सहमति के वो कुछ भी करना नहीं चाहता था - जो भी हो, मीना उससे उम्र में बड़ी है, और उसका सम्मान करना ही होगा। जय दो पल पशोपेश में था और शायद मीना ने भी उसकी हिचक का कारण समझ लिया। अगले ही पल मीना ने अपने दोनों हाथ थोड़े ऊपर उठा लिए - अब जय के मन में संदेह की कोई गुंजाईश ही नहीं थी। यह स्वीकृति चाहे कितनी ही मौन हो, लेकिन चीख चीख कर सब कुछ साफ़ साफ़ कह रही थी।

दो ही पलों में मीना के ब्रा से ढँके हुए स्तन, जय के सामने उजागर हो गए। मीना ने बेबी पिंक रंग की, लेस वाली फ्रेंच ब्रा पहनी हुई थी! उस प्रकार की ब्रा में इस्तेमाल होने वाला लेस थोड़ा कोमल, और पारदर्शी होता है। लिहाज़ा, उसके गहरे रंग के चूचक लेस के पैटर्न के पीछे से दिखाई दे रहे थे।

ऐसा दिव्य नज़ारा जय ने पहले कभी नहीं देखा था!

उसको यकीन ही नहीं हो रहा था कि ऐसे अद्भुत अंगों को उसने अभी बस कुछ ही पलों पहले (कपड़ों के ऊपर से ही सही) चूमा था! उसकी किस्मत सिर्फ इसलिए अच्छी नहीं थी कि वो मीना जैसी अनेक-गुण संपन्न लड़की का पति बनने वाला था, बल्कि इसलिए भी अच्छी थी कि वो अनेक-गुण संपन्न होने के साथ साथ, अनन्य रूपवती भी थी!

दे आर माय मोस्ट फेवरेट ब्रेस्ट्स इन द होल वर्ल्ड...”

भावनात्मक रूप से भारी ऐसे माहौल में भी मीना को हँसी आ गई - जय का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर था ही ऐस!

“... और किसके ब्रेस्ट्स देख लिए आपने हुकुम?”

“अरे क्यों! आपने हमको क्या पूरा अनाड़ी समझा हुआ है! ... दिल्ली की लड़कियाँ अपना दिल हमारे क़दमों में रखती हैं... अपनी जान छिड़कती हैं हम पर...”

“अच्छा जी... तो उनके ब्रेस्ट्स देख लिए आपने!” मीना ने ठिठोली करी, “... हाँ ठीक भी है...”

“अरे ऐसे नहीं हैं हम... लेकिन माँ हैं... भाभी हैं...”

कहा तो था जय ने मीना को जलाने की गरज़ से, लेकिन पास उल्टा पड़ गया। जलने के बजाय उसका कथन मज़ाकिया बन के रह गया,

“ओह्हो... तो आप अभी भी दुद्धू पीते हैं?”

मीना ने कह तो दिया, लेकिन उसको एक पल मन में ख़याल आया कि कहीं जय बुरा न मान जाए! लेकिन मीना को अभी तक जय के सौम्य स्वभाव का पूरा अंदाज़ा नहीं था। वो न तो जल्दी गुस्सा होता था, और न ही किसी बात से जलता या कुढ़ता था। वो हँसमुख और निश्छल प्रवृत्ति का आदमी था।

“नहीं मेरी जान... अभी भी नहीं, अभी से...” वो हँसते हुए बोला, “... अभी से हम दुद्धू पिएँगे... आपका...”

“हाँ जी ज़रूर... मान न मान, मैं तेरा मेहमान!”

“हम तो ऐसे ही हैं... आप अपना देख लीजिए... हमारा साथ चाहिए या नहीं...”

उसकी बात पर मीना पल भर में पिघल गई, “आपका नहीं, तो और किसका साथ चाहिए, हुकुम! ... आप जैसे हैं, हमको वैसे ही बहुत अच्छे लगते हैं...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात...”

जय मुस्कुराया और फिर उसकी ब्रा को छूते हुए पूछा, “ये कैसे उतरती है?”

“आप तो एक्सपर्ट हैं दुद्धू पीने में... आपको तो मालूम होगा!” कह कर मीना अपनी ब्रा का क्लास्प खोलने को हुई।

उसकी इस हरकत से जय को समझ आ गया, कि ब्रा पीठ के पीछे खुलती है।

“तुमको निर्वसन करने का यह शुभ काम मुझे करने दो प्रिये...” जय ने बदमाशी भरे अंदाज़ में कहा।

“क्या करने दो?” मीना को समझ ही नहीं आया कि उसने क्या कहा।

“तुमको नंगा...”

“धत्त...” मीना ने जय के बढ़े हुए हाथ पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा, “पूरे बेशर्म हो तुम...”

“हमको शर्म करनी चाहिए क्या मेरी जान?” जय ने मीना के पीठ के पीछे अपनी बाहें डालते हुए कहा।

वो मुस्कुराई।

बोली कुछ भी नहीं।

जय ने उसकी तरफ़ झुकते हुए, उसके कंधे और गर्दन को चूमते हुए उसकी ब्रा का क्लास्प पकड़ा।

उन दोनों के संछिप्त से, लेकिन तेजी से प्रगाढ़ हुए अंतरंग सम्बन्ध में यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय था। आप कितना भी कह लें, कि आपको अपनी प्रेमिका के गुण पसंद हैं, लेकिन आपके सम्बन्ध में कभी न कभी वो समय आ ही जाता है, जब आप दोनों के बीच शारीरिक आकर्षण किसी भी अन्य आकर्षण से अधिक बलवान हो जाता है। संभव है कि क्रमिक विकास की प्रक्रिया में, प्रकृति ने यह एक आवश्यक घटक डाला हुआ हो...! जब आपको अपना मनचाहा साथी मिल ही गया है, तो क्यों न उसके साथ संतानोत्पत्ति करें? फिर भी, जय ने स्वयं को कुछ समय से ज़ब्त कर के रखा हुआ था। मीना ने भी... क्योंकि उसको अपने पुराने असफ़ल संबंधों की याद ताज़ा थी। लेकिन वो जय को निराश नहीं करना चाहती थी। वो समझती थी कि अगर जय को उसके साथ अंतरंग होने की इच्छा है, तो वो इच्छा लाज़मी भी है और जायज़ भी... और यह, कि उन दोनों के बीच कभी न कभी यह सब होगा ही!

वैसे भी, आज दोनों के बीच माहौल अलग ही था! दोनों ही बड़े ठहराव और आनंद से एक दूसरे के साथ का आनंद ले रहे थे। ऐसे में, दोनों के बीच अवरोध की बाधा घट गई थी। मीना के दिल की धड़कनें तेज हो गईं... और जय के भी... आज वो मीना को देखने वाला था... पहली बार! वो एक पल को रुका, और मीना की आँखों में देखते हुए मुस्कुराया, और उसके होठों को चूमा। मीना भी मुस्कुरा दी... एक शर्मीली और कोमल मुस्कान!

ब्रा का क्लास्प खुल गया, और जय के हाथ की एक छोटी सी हरकत से उसकी ब्रा उसके शरीर से अलग हो गई। इतने दिनों के सब्र का प्रतिफल देखने का समय आ गया था...

जय ने थोड़ा पीछे हट कर मीना के सीने की तरफ़ देखा।

ओह गॉड!’
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Update #28


जैसी जय को उम्मीद थी, उससे हज़ारों गुणा सुन्दर और आकर्षक स्तनों की जोड़ी थी मीना की! यौवन के शिखर पर उपस्थित, और घमण्ड से उन्नत ठोस, गोल टीलों जैसे थे मीना के स्तन! दृढ़ और मुलायम - एक साथ! घोर विरोधाभासों का सम्मिश्रण! स्तनों के दोनों गोलार्द्धों के ऊपर स्वादिष्ट से दिखने वाले गहरे भूरे रंग के चूचक शोभायमान थे, और उसी से मिलते जुलते, लेकिन थोड़े हल्के रंग के कोई दो इंच के एरोला से घिरे हुए थे। मीना के स्तन देखने में बड़े कोमल, और नाज़ुक से लग रहे थे - लेकिन उनको देख कर ऐसा भी मन हो रहा था कि बस, दबोच कर उनका सारा रस पी जाओ!

अब तक जय के मन में इतना जोश चढ़ चुका था कि वो मीना के चूचक को अपने मुँह में लेने का लोभ-संवरण न कर सका। जैसे ही उसने मीना का एक चूचक चूमा, तो मीना के साथ साथ वो भी सिहर गया! उसने देखा कि उसके चुम्बन की प्रतिक्रिया स्वरुप मीना के स्तन के रौंगटे खड़े हो गए थे।

“ओह! सो ब्यूटीफुल! वैरी वैरी ब्यूटीफुल!” जय उसका दूसरा चूचक चूमने से पहले बोला, “... एंड परफेक्ट!”

जय मीना के स्तनों की सुंदरता में पूरी तरह से डूब गया था। उसने यह नहीं देखा कि मीना ने उसकी बढ़ाई पर कैसी प्रतिक्रिया दी, लेकिन मीना के दोनों गाल शर्म से लाल लाल हो गए!

उधर, मीना के दिव्य-दर्शन से जय पर एक अलग ही प्रभाव पड़ रहा था - उसका लिंग अभूतपूर्व रूप से उत्तेजित हो गया था। पुराने अनुभव से उसको समझ आ रहा था कि बिना स्खलन हुए, वो शांत नहीं होने वाला! लेकिन उसमें समय था। उतावलापन सही नहीं होता - वैसा करने से मीना के साथ साथ खुद की ही नज़रों में गिरने का डर है।

जय ने मीना के एक स्तन को हाथ में पकड़ा! वाक़ई, ठोस और मुलायम एहसास!

‘ओह! सॉफ़्ट बट फर्म! एंड अनबीलीवेबली सेक्सी!’

सच में - कहाँ माँ और भाभी के स्तनों को देख कर उसके मन में यह शब्द कभी आया ही नहीं, वहीं मीना के स्तनों को देख कर उसके मन में सबसे पहला शब्द यही आया! माता और प्रेमिका में यही अंतर होता है।

देखने में दृढ़, लेकिन जहाँ कहीं भी जय मीना के स्तन को दबाता, वहाँ वो आसानी से दब जाता! लेकिन न जाने कैसा अद्भुत लचीलापन था उनमें कि शब्दों में बयान कर पाना कठिन है! जय भी उत्तेजित था, और मीना भी - उसके दोनों स्तनों के चूचक स्तंभित हो गए थे। जब जय ने उत्सुकतावश उसके चूचकों को अपनी हथेली से ढँका, तो वो उसकी हथेलियों में चुभते हुए से महसूस हुए। उधर, उसके स्पर्श से मीना कराह उठी! प्रतिक्रिया में उसने अपने हाथों से जय के हाथों को ढँक दिया। लेकिन ऐसा करने से जय की हथेलियों का दबाव उसके स्तनों पर और भी बढ़ गया, और साथ ही साथ मीना की कराह की तीव्रता भी!

जब इतनी दूर तक साथ में आ गए, तो अगला कदम बढ़ाना स्वाभाविक ही था। उत्सुक प्रत्याशा में जय ने झुक कर मीना के एक चूचक को अपने मुँह में उसके एरोला समेत अपने मुँह में भर लिया, और उसको चूसने की कोशिश करने लगा। चूषण होने से पहले जय की जीभ उसके कोमल अंग को छुई - मीना के गले से एक अनियंत्रित सिसकी छूट गई, जो जय को साफ़ सुनाई दी!

‘मतलब मीना को भी अच्छा लगा...’ जय ने मीना की इस प्रतिक्रिया को अपने मन में टांक लिया - भविष्य के लिए।

अगर दूध न हो तो चूचक से स्वाद तो खैर क्या ही आता है, लेकिन थोड़ी ही देर में जय को लगा कि जैसे उसका कठोर चूचक, उसके मुँह में आ कर घुलने लगा हो - जैसे मिश्री की डली, थोड़ी सी नमी और गर्माहट पा कर घुलने लगती है। कैसा अजीबोगरीब अनुभव था यह! जय को बड़ा आनंद आ रहा था और उसको उम्मीद थी कि मीन को भी उसके जितना ही आनंद आ रहा हो!

मीना को बहुत अच्छा लगा कि जय ने प्रेमक्रीड़ा में पहल की! उसकी इच्छा थी कि जय पहला कदम उठाए और वो उसके पीछे कदम से कदम मिलाती हुई उसका साथ दे। जय नौसिखिया अवश्य था, लेकिन उसके व्यवहार, उसकी चेष्टाओं में सच्चाई थी... प्रेम था... ईमानदारी थी! इन बातों का कोई मोल नहीं दे सकता! जय ने उसके मन के कोने में कहीं किसी तरफ़ दबी हुई भावनाओं को जगा दिया था। ऐसी भावनाएँ, जिनके बारे में वो जानती थी कि वो हैं, लेकिन पिछले अनेक वर्षों में कहीं खो सी गई थीं। अपने प्रेमी के लिए शुद्ध प्रेम की भावनाएँ!

मीना ने अपने हाथ से जय के सर के पीछे अपने स्तन की ओर दबाया, और एक संतुष्ट कराह छोड़ी। उसी समय उसका शरीर काँप गया। जय को पता नहीं था कि मीना को कितना आनंद आ रहा था - लेकिन उसके शरीर की इस हरकत को महसूस कर के उसको बहुत उत्तेजना हो रही थी।

जय इस बात से अनजान था, लेकिन मीना कामुक आरोहण की दहलीज़ पर खड़ी हुई थी। सही दिशा में बस एक हल्का सा धक्का, और वो दोनों ही प्रेम रस के अथाह सागर में निश्चित रूप से डूबने वाले थे! न तो जय ही रुक पाता और न ही मीना उसको रोक पाती। दोनों के ही दिल उस प्रतिबंधित फल को खाने के लिए लरज रहे थे।

आदित्य ने जय को चेताया था कि जब तक वो मीना को ले कर निश्चित नहीं है, तब तक वो उसके साथ कुछ न करे! वो उसी समय आदित्य से कहना चाहता था कि मीना को ले कर वो पहले दिन से निश्चित है। जैसे उसकी नियति हो कि वो मीना में घुल मिल जाए... दोनों साथ में हो लें! ‘पहली नज़र का प्यार’ एक हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण अवधारणा लगती है, लेकिन जय और मीना के मामले में सौ प्रतिशत सही था।

न जाने कौन सा परफ्यूम लगाया हुआ था मीना ने, जिसकी महक से जय के मन की मादकता बढ़ती जा रही थी! बहुत कष्ट ले कर वो अपने उतावलेपन पर नियंत्रण कर पा रहा था। वो कभी उस चूचक को अपनी जीभ से छेड़ता तो कभी चूसता! ऐसे ही खेल खेल में चूसने की तीव्रता बढ़ती रही। जय बीच बीच में चूचक को दाँतों से थोड़ा थोड़ा कुतर भी देता, जिसके उत्तर में मीना ‘आऊ आऊ’ कर के चिहुँक भी जाती!

कैसा खेल! लेकिन सच में, अद्भुत और सुखद अनुभव!

मीना आनंद में किलकारी लेना, कराहना, और उत्तेजनावश जय को अपने आलिंगन में अधिक से अधिक समेट लेना - यह सभी बातें इसी बात का स्पष्ट संकेत थीं, कि वो जो कुछ भी कर रहा था, उससे मीना को बहुत आनंद मिल रहा था। उसका खुद का शरीर कामोत्तेजना के मारे काँप रहा था - उसकी श्रोणि और नितम्बों की माँस-पेशियाँ संभावित सम्भोग की प्रत्याशा में तनी हुई थीं और उसका पूरी तरह से कठोर हो चला लिंग रह रह कर झटके खा रहा था। मीना को आदिकाल से स्थापित, प्राकृतिक तरीके से भोगने की इच्छा अब जय के मस्तिष्क पर हावी हो चुकी थी।

जब उसने मीना का स्तन पीना छोड़ कर उसको देखा, तो पाया कि वो भी उसी की तरफ़ देखती हुई मुस्करा रही है! वो मुस्कुरा ज़रूर रही थी, लेकिन उसकी साँसें तेज़ थीं, और उत्तेजनावश उसकी नाक के कोमल नथुने फड़क रहे थे। ऐसी सुंदरी को ऐसे रूप में देख कर मादकता और भी अधिक बढ़ जाती है।

जय भी उसे देखकर मुस्कुराया।

“जानेमन, ये दोनों तो इतने सुंदर हैं! ... तुमसे भी अधिक! ... तुम्हे पता भी है?” वो दोनों स्तनों को सहलाते हुए बोला।

जय के प्रश्न के उत्तर में उसने ‘न’ में सर हिलाया, और उसको चूमने के लिए सामने झुकी! दोनों के होंठ एक बार फिर से एक असीम चुम्बन के बंधन में बंध गए! कुछ अनोखी बात तो थी दोनों के बीच आकर्षण में! भले ही दोनों के सीने और शरीर में कामुकता का ज्वार सीमा तोड़ने के प्रयास में था, लेकिन फिर भी दोनों के बीच प्रेम की कोमल भावनाएँ ज्यों की त्यों थीं। मन दोनों का अब सम्भोग के सागर में डूब जाने का हो रहा था, लेकिन प्रेम की कोमल इच्छा ऐसी बलवती हो गई थी, कि दोनों से चुम्बन लिए बिना रहा भी नहीं जा रहा था।

चुम्बन के दौरान मीना बड़े प्यार से अपना हाथ जय के सर के पीछे सहलाते हुए पकड़े थी। दोनों एक दूसरे के शरीर के कम्पन को महसूस कर रहे थे और दोनों एक बात को जानते थे कि दूसरा भी उनके कम्पन को महसूस कर पा रहा था। लेकिन इस सहज बात को छुपाने की भी क्या आवश्यकता? बिना बोली के बातें और कैसे करी जाएँ? शरीर के स्पंदनों, उसकी प्रतिक्रियाओं से ही तो समझ आता है कि एक दूसरे को कैसा महसूस हो रहा है!

दोनों कुछ देर तक उस चुम्बन में मग्न रहे! दोनों को ही ऐसा लग रहा था कि अगर उनका बस चले, तो पूरे दिन भर बस यही करते रहें! जब दोनों को थोड़ा होश आया, तब समझ आया कि दोनों ही बिस्तर पर करवट में, अधलेटी अवस्था में लेटे हुए थे। मीना नीचे, बिस्तर पर, और जय उसके थोड़ा ऊपर! आज की पूरी शाम जय को ‘रिस्क’ (जोखिम) लेने की प्रेरणा हुई। हाँ, वो मीना से बहुत प्रेम करता है, और उससे भी अधिक उसका सम्मान भी... लेकिन वो जो करना चाह रहा था, वो उससे पूछे भी कैसे! यह तो नहीं पूछ सकता कि ‘जानेमन, मैं तुम्हारी स्कर्ट उतार दूँ!’ ऐसा सकरने से जो समां बँधा है, उसका तो पूरी तरह ही सत्यानाश हो जाएगा। इसलिए उसने बिना कुछ कहे, बस, कर देने की सोची।

‘अगर मीना को बुरा लगेगा, तो वो खुद ही मना कर देगी, और वो पीछे हट जाएगा।’ उसने सोचा, ‘हाँ, यही ठीक रहेगा!’

उसने हाथ बढ़ा कर मीना की कमर पर उसकी स्कर्ट के बंधन को टटोला। कुछ ही पलों में उसको समझ में आ गया कि उसकी स्कर्ट में साइड में चौड़े हुक लगे हुए हैं। थोड़े ही यत्न से जय ने हुक को उसके काज से निकाल दिया। मीना की स्कर्ट बस अब उसकी कमर के ऊपर बस टिकी हुई थी। अगर वो खड़ी हो जाय, या जय अगर उसको नीचे सरका दे, तो झट से वो उसकी कमर से उतर जाय! मीना को भी यह बात मालूम थी।

लेकिन वो आज रात खुद भी जय के सामने नग्न होना चाहती थी! आज उन दोनों का सम्बन्ध या तो बहुत दूर तक जाने वाला था, या फिर उसकी यहीं इतिश्री हो जानी थी। मीना यह बात समझती थी। अगर जय केवल उसका शरीर प्राप्त करना चाहता है, तो यही सही! उसको जय से इतना प्रेम था कि वो उसको शारीरिक सुख दे कर खुश देखना चाहती थी - भले ही वो उसको किसी इस्तेमाल की हुई वस्तु की तरह छोड़ ही दे! लेकिन अगर जय उसको विधि के हिसाब से पाना चाहता है, तो भी यह सही दिशा में कदम था। वो भी जय को बताना चाहती थी कि वो उसके लिए सब कुछ है! आज के बाद वो जय के अतिरिक्त किसी अन्य को इस तरह से कभी प्रेम नहीं करेगी। इस बात का सवाल ही नहीं।

उधर जय इस बात से प्रसन्न था कि मीना जैसी सुन्दर सी लड़की को वो नग्न देखने वाला था - जीवन में पहली बार! सच में, कभी कभी कुछ कार्य कैसे ‘परफेक्ट’ से हो जाते हैं। जैसे कोई बल्लेबाज़, अपने पहले ही मैच में शतक जड़ दे! परफेक्ट! आज वो अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की के साथ अंतरंग हो रहा था और वो भी मीना जैसी परफेक्ट लड़की के साथ! अद्भुत किस्मत है न! अच्छा किया आज उसने हिम्मत कर ली। एक बार जो उसने हिम्मत कर के शुरुवात करी, तो अब सब कुछ संभव हो रहा था! जय अपनी उत्तेजना के शिखर पर था... उसका शरीर स्पष्ट रूप से उत्तेजना के लक्षण दिखा रहा था। उसके लिंग का तनाव उसकी पैंट के सामने साफ़ साफ़ दिख रहा था! मीना को भी उसके बारे में जानने का अधिकार है... उसको देखने का मन होगा, उसने सोचा। लेकिन बाद में... पहले वो देख ले, फिर उसके बाद!

जय ने उसकी स्कर्ट नीचे खींचनी शुरू की।
अरे यार हम अपनी इमोशन को पंख लगाते रहे
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Update #29


उसकी स्कर्ट उतारते समय वो मीना को चूम तो रहा था, लेकिन वो अच्छी तरह समझ रही थी कि वो क्या चाहता है! वो भी तो यही चाहती थी कि जय अपने मन का कर सके... मीना ने अपने नितम्ब ऊपर उठा कर, स्कर्ट उतारने में जय की मदद करने लगी। अब शंका का कोई स्थान नहीं रह गया था - जय समझ गया कि उसको मीना का पूर्ण समर्थन प्राप्त है! बस, फिर क्या! उसने हाथ के एक तीव्र गति से उसकी स्कर्ट को उतार फेंका! स्कर्ट फ़र्श पर कहीं दूर जा कर गिरी।

दोनों का चुम्बन अचानक से ही तेज और भावनात्मक आवेश युक्त हो गया! अचानक से उसमें एक तत्परता सी आ गई। वो कोमल प्रेम वाला भाव अचानक ही लुप्त हो गया - प्रकृति अचानक ही प्रेम-वृत्ति पर भारी पड़ने लगी! जय ने किसी भी लड़की को इस तरह से नग्न पहले कभी नहीं देखा था! मीना की पैंटी उसकी ब्रा मैचिंग सेट की थी। केवल बेबी पिंक रंग की, लेस वाली चड्ढी पहने हुए वो इतनी शानदार लग रही थी कि कुछ पलों के लिए जय की बोलती ही बंद हो गई। कोई और समय होता, तो संभव है जय उसको उतारता नहीं - लेकिन बिना उसे उतारे वो मीना का अति-दिव्य दर्शन कैसे करता?

उसका हाथ मीना के पेट पर फिसलते हुए उसकी पैंटी पर आ गया। वो उसको उतारने को हुआ, लेकिन फिर कुछ सोच कर लेस के ऊपर से ही मीना की योनि की फाँकों को सहलाने लगा। स्त्री-पुरुष का अंतर उसको मालूम था, लेकिन उस अंतर को जीवन में पहली बार, इतनी निकटता से देखना - अलग ही अनुभव था। उसकी श्रोणि पर कड़े बाल थे लेकिन मीना की श्रोणि चिकनी थी... लिंग कितना कठोर होता है, लेकिन योनि कितनी... कोमल! मीना की योनि की फाँकों को सहलाते सहलाते वो उसके भगशेफ की कली को महसूस कर रहा था! कोमल अंग के ऊपर उसकी कोमल कठोरता बड़ी अनोखी महसूस हो रही थी। उसके मन में यह चल रहा था मीना की योनि कैसी होगी! बस कुछ ही क्षणों में उसको यह राज़ भी पता होने वाला था! इस कामुक विचार से जय की उत्तेजना और भी अधिक बढ़ गई।

“मीना...” वो फुसफुसाते हुए कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसके होंठों पर उंगली रख के चुप रहने का इशारा किया।

स्वयं पर और नियंत्रण कर पाना जय के लिए अब लगभग असंभव हो गया था। उसने पैंटी के अंदर अपना हाथ डाला और कमर से इलास्टिक को हटा कर झरोखे के अंदर झाँका।

अंदर का नज़ारा अनोखा था!

‘तो ऐसी होती है योनि...’ मीना की योनि का आंशिक दर्शन कर के भी वो खुद को धन्य महसूस कर रहा था।

इट्स ब्यूटीफुल...” उसके मुँह से निकल ही गया।

“हु...कु...म...” इतनी देर में मीना ने पहली बार कुछ कहा, “प्लीज़ डोंट टीज़ मी...”

मीना की योनि के आंशिक दर्शन से जय की उत्तेजना बिना किसी लगाम के भागने लगी। अब तो अपने गंतव्य पर पहुँच कर ही उसकी कामाग्नि ठंडी होने वाली थी। मीना ने भी इस तथ्य को स्वीकार कर लिया था कि आज रात उन दोनों का ‘एक होना’ तय है! अनुभवी होने के बावज़ूद उसके दिल में डर सा बैठा हुआ था... शायद इसलिए कि वो चाहती थी कि दोनों का मिलन जय के लिए सुखकारी हो! उसको आनंद मिले। और उसको इस बात से संतुष्टि मिल रही थी कि वो कुछ ही देर में अपने जय की होने वाली थी! पूरी तरह से! इस तथ्य को आत्मसात करना बहुत मुश्किल था।

जय ने उसकी योनि को हल्के से छुआ! मीना उत्तेजनावश कराह उठी! वो कब से सम्भोग के लिए तैयार बैठी थी, लेकिन जय उस तथ्य से अपरिचित था। उसने उसकी पैंटी को थोड़ा नीचे सरकाया। बड़ी कोमलता से! मीना ने फिर से अपने नितम्ब उठा कर पैंटी उतरवाने में जय की मदद करी।

अंततः!

जय ने जब अपनी सुन्दर और सेक्सी प्रेमिका का पूर्ण नग्न शरीर पहली बार देखा तो कुछ समय के लिए सन्न रह गया। रूप की देवी थी मीना! चेहरा तो सुन्दर था ही; स्तनों का हाल बयान कर ही चुके; अब बाकी की बातें बता देते हैं। मीना की जाँघें सुगढ़, दृढ़, और चिकनी थीं; उन दोनों जाँघों के बीच उसकी योनि के दोनों होंठ उत्तेजनावश सूजे हुए थे, और उन होंठों के बीच में कामातुर योनि-मुख! उसका आकार ट्यूलिप की कली के समान था। जय को उसका आकार और प्रकार दोनों ही पसंद आया।

“मीना... यार...” जय से रहा नहीं गया, “ये तो... बहुत सुन्दर है! ट्यूलिप की कली जैसा... जैसी...”

“आपको पसंद आई?”

“बहुत! बहुत! थैंक यू!”

मीना का शरीर सुडौल था ही, लेकिन अपने नग्न रूप में वो और भी सुगठित लग रही थी।

जय बेहद उत्तेजित था - उसके अंदर सम्भोग करने की इच्छा इतनी बलवती हो गई थी कि उसको अब कुछ और सूझ नहीं रहा था। लेकिन न जाने कैसे, अचानक ही उसका प्रेम-भाव वापस आ गया - जय को लगा कि उसकी मीना चाहती है कि वो उसको अपने आलिंगन में भर ले! शायद स्वयं जय को मीना के आलिंगन में आने की इच्छा हो आई हो!

जय ने तुरंत ही मीना को अपनी बाहों में भर लिया, और जितना अधिक संभव था, उसको अपने में भींच लिया। उस जोशीले आलिंगन में आते ही दोनों के होंठ आपस में मिल गए! यह चुम्बन बड़ा ही भावुक करने वाला था। जय को उस क्षण एक अभूतपूर्व और अलौकिक सा एहसास हुआ... एहसास कि उसका और मीना का साथ हमेशा का है... कि दोनों के अस्तित्व एक दूसरे के कारण हैं... कि उनका बंधन अटूट है, चाहे कुछ भी हो जाय। इस एहसास के कारण जय के मन में मीना के लिए और भी प्यार उमड़ आया।

‘हाँ, बस मीना ही चाहिए उसको! और कुछ भी नहीं!’

दोनों बिना कुछ बोले चुम्बन का आनंद उठाते रहे। फिर अचानक ही मीना ने कुछ अनोखा किया : चुम्बन लेते लेते, उसने जय है हाथ अपने स्तन पर रख दिया। जय ने उसके स्तनों को बारी बारी सहलाया... कुछ ही देर में होंठों का चुम्बन, चूचकों का चुम्बन बन गया - दोनों को समझ नहीं आया! मीना इस अनुभव का आनंद लेते हुए किलकारियाँ भर रही थी! जय के साथ कुछ ही पलों के साथ ने उसको गज़ब का सुख दिया था।

“आई लव यू...” जय बोला।

उसकी बोली में इतनी सच्चाई और ईमानदारी थी, जो मीना को साफ़ साफ़ सुनाई दी।

“आई नो!”

वो मुस्कुराया, और मीना के हर अंग को चूमने लगा। देर तक चूमने के कारण मीना का निचला होंठ थोड़ा सूज गया था और एक दो जगह से थोड़ा फट गया था। जय के साथ मीना एक छोटी लड़की के समान हो गई थी - उसकी भाव-भंगिमा थोड़ी नटखट सी, थोड़ी चुलबुली सी हो गई थी। जय को पता नहीं था कि इतनी देर के प्रेम-मई चुम्बन, चूषण इत्यादि से मीना को कुछ समय पहले ओर्गास्म हो आया था। उसकी योनि से भारी मात्रा में काम-रस निकल रहा था, जो बाहर से भी दिख रहा था। बिस्तर पर वो जहाँ जहाँ बैठ रही थी, वहाँ वहाँ गीलेपन के चिन्ह साफ़ दिखाई दे रहे थे।

जब जय एक बार फिर से उसके एक चूचक से जा लगा, तब मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“मेरे जय... तुमको ये इतने पसंद आए?”

“बहुत!”

डोंट फ़िनिश देम... नहीं तो तुम्हारे चारों बच्चे गाय का दूध पियेंगे!”

मीना ने कुछ ऐसे चुलबुले अंदाज़ में कहा कि जय भी हँसने लगा। उसकी सँगत का बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था मीना पर! और इस बात को देख कर उसको स्वयं पर बड़ा ही गर्व महसूस हो रहा था।

“जो हुकुम...” वो बोला, “... हुकुम!”

मीना मुस्कुराई... एक चौड़ी, चमकती हुई मुस्कान! अब उसको भी पहल करने का समय आ गया था। उसने एक एक कर के जय की शर्ट के बटन खोले और फिर उसको उतारने लगे। पहली बार उसको भी जय का शरीर देखने को मिला। उसको जैसी उम्मीद थी, जय का शरीर वैसा ही था - माँसल, मज़बूत, और युवा शक्ति से लबरेज़!

लाइक्ड व्हाट यू सी?” उसने मीना से पूछा।

वैरी मच! ... एग्ज़क्टली ऍस हाऊ आई होप्ड...”

फिर उसने उसकी पैंट की बेल्ट उतारी और थोड़ी जल्दबाज़ी से उसकी पैंट की ज़िप खोल कर उसको उतार दिया। जय के अंडरवियर से उसका उत्तेजित लिंग बुरी तरह से उभरा हुआ था। मीना उसको देख कर प्रभावित हुए बिना न रह सकी। जय भी चाहता था कि अब वो वस्त्रों के इस अनावश्यक दबाव से मुक्त हो जाय। उसको थोड़ी शर्म ज़रूर आ रही थी, लेकिन मन में यह बात भी आ रही थी कि मीना के सामने नग्न होना बड़ी प्राकृतिक सी बात है। वो भी चाहता था कि मीना उसको देख कर प्रभावित हो। उसकी चड्ढी उतारने से पहले मीना उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई। जय भी मुस्कुराया।

अगले ही पल जय का उत्तेजित लिंग मुक्त हो कर हवा में तन गया। अन्य दिनों की अपेक्षा आज उसके लिंग का आकार थोड़ा अधिक ही बढ़ गया था, और इस कारण से वो जय को भी अजनबी सा लग रहा था! लेकिन यह अच्छी बात थी - अगर जय स्वयं अपने ही अंग से प्रभावित हो सकता है, तो मीना भी अवश्य होगी। लेकिन मीना को उसके लिंग से प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं थी - अगर जय उसका है, तो किसी भी अन्य बात का कोई महत्त्व नहीं! मीना ने हाथ बढ़ा कर उसके स्तंभित लिंग पर रख दिया। उसके लिंग पर हाथ लगाते ही मीना की सिसकी सी निकल गई और वो हाथ हटा कर उसको देखने लगी।

“क्या इरादे हैं हुकुम?” उसने जय से पूछा।

लेट्स मेक अ बेबी?”

जय की बात सुन कर मीना हँसने लगी!

“हुकुम आज ही पापा बनना चाहते हैं?”

“अगर हमारी राजकुमारी की भी यही इच्छा है, तो!”

मीना ने जय को बहुत प्रभावित हो कर देखा। कैसा सीधा सा और सच्चा सा है उसका जय! उसका दिल घमंड से भर गया! हाँ, वो अपने जय को संतान देगी। एक नहीं, चार! जैसा वो चाहता है। उन दोनों का जीवन अब बस जुड़ने ही वाला है, और वो ग़ुरूर से भरी जा रही थी। कैसी किस्मत होनी चाहिए जय जैसा सुन्दर, सरल, सच्चा साथी पाने के लिए!

आई विल बी हैप्पी एंड प्राउड टू हैव योर बेबी, माय लव! ... नथिंग एल्स विल मेक माय लाइफ वर्थ मोर!”

“ओह मीना! मीना...”

कह कर जय ने मीना को बिस्तर पर लिटा दिया, और उसको अपनी तरफ़ सरका कर व्यवस्थित किया। उसका उत्तेजित लिंग मीना के पेट को छूने लगा। उन दोनों के होंठ फिर से मल्लयुद्ध में रत हो गए। एक कामुक चुम्बन! अंततः, अब समय आ ही गया था!

मीना ने अपने पाँव उठा कर जय के साइड में ला कर, उसकी पीठ पर टिका दिए। उधर जय का हाथ उसकी योनि पर चला गया। जब उसकी उँगलियों ने मीना के योनिमुख को छुआ, तो मीना के मुँह से एक कामुक कराह छूट गई। जय ने अपने लिंग को उसकी योनि पर फिराया - मीना की योनि पूरी तरह से नम थी और उसके लिंग का स्वागत करने को तत्पर भी थी।

आई लव यू सो मच, मीना!” वो फुुसफुसाया।

आई लव यू मोर...” वो भी फुसफुसाई।

जय ने फिर से उसकी योनि को अपने लिंग को फिराया।

“बहुत पेन होगा?”

मीना ने ‘न’ में सर हिलाया, “डोंट वरि अबाउट दैट! ... हमको मम्मी पापा बनना है न? ... तो हुकुम, बस आप वही सोचिए... और कुछ भी नहीं!”

जय ने ‘हाँ’ में एक दो बार हिलाया, फिर अपने लिंग को पकड़ कर उसके सिरे को मीना की योनि के अंदर धक्का दिया। जय नौसिखिया था - उसको सेक्स करने का कोई व्यवहारिक ज्ञान नहीं था। इसलिए पहला धक्का ही बलपूर्वक लग गया। अच्छी बात यह थी कि मीना की योनि अच्छी तरह से चिकनी हो रखी थी - इसलिए उसका लिंग मीना की योनि में फिसल कर काफी अंदर तक घुस गया।

अद्भुत एहसास!

कितना लम्बा अर्सा हो गया था!

मीना ने गहरी आह भरते हुए कहा, “ओह हनी!”

जय को लगा कि उसने जो किया, वो अच्छा किया। लिहाज़ा उसने फिर से एक और बलवान धक्का लगाया। पिछली बार उसके लिंग का जो भी हिस्सा बचा था, वो इस बार पूरा मीना की योनि में समाहित हो गया। मीना की कराह की आवाज़ ही बदल गई इस बार! लेकिन फिर भी मीना ने कोई शिकायत नहीं करी। लिहाज़ा, जय को अभी भी नहीं समझ आया कि उसके हर धक्के से मीना को चोट लग रही है। कुछ ब्लू फिल्मों से, जो उसने देखी हुई थीं, प्रेरित हो कर जय ने लगातार धक्के लगाने का सोचा और अगले ही पल उसका क्रियान्वयन भी कर दिया।

इस बार मीन स्वयं को रोक न सकी, “आह आह आआह्ह्ह!!” और उसकी चीख निकल गई।

जब जय ने उसकी आँखों में आँसू बनते देखे, तब उसको समझ आया कि उसकी हरकतों से मीना को चोट लग गई है। ग्लानि से भर के जय ने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया - उसका शरीर काँप रहा था।

वो बड़बड़ाया, “आई ऍम सॉरी, हनी! ... आई हर्ट यू... डिडन्ट आई? ... आर यू ओके?”

दर्द और कराह के बीच, मीना मुस्कुराई और बड़ी कोमलता से बोली, “माय लव... डोंट वरि! यस, आई ऍम अ बिट हर्ट... बट डोंट वरि...! आई लव यू द मोस्ट! ... एंड आई वांटेड इट टू हैपन! ... डोंट स्टॉप नाउ! ... अच्छे से सेक्स करो मेरे साथ!”

फिर वो आह लेते हुए बोली, “आई फ़ील सो फुल इनसाइड! ... फुल... एंड ग्रेट! ... डोंट स्टॉप हनी... जी भर के प्यार करो मेरे साथ...”

जय ने प्रोत्साहन पा कर लिंग को थोड़ा बाहर निकाला, और वापस बलशाली धक्का लगाया। मीना की फिर से गहरी आह निकल गई। उसकी योनि अपने खुद के तरीके से चल रही थी इस समय - योनि की दीवारों में स्वतः ही संकुचन हो रहा था।

“हुकुम... कैसा लग रहा है?” जब जय वापस लयबद्ध धक्के लगाने लगा, तो मीना ने पूछा।

“ओह मीना... माय लव... आई कांट डिस्क्राइब द फ़ीलिंग...”

“गुड! एन्जॉय देन...”

“क्या अभी भी दर्द हो रहा है?”

“नहीं... उतना नहीं।”

“गुड...,” जय शरारत से मुस्कुराते हुए बोला, “क्योंकि मैं ये रोज़ करूँगा तुम्हारे साथ!”

“हा हा...” दर्द में भी मीना हँसने लगी।

हर खिलखिलाहट पर उसकी योनि और कस जाती, और जय के लिंग को अद्भुत ढंग से दबा देती!

जय ओर्गास्म को सन्निकट महसूस कर रहा था, इसलिए उसने धक्के लगाना तेज़ कर दिया। उधर मीना की योनि फिर से और भी गीली हो रही थी - उसका ओर्गास्म भी सन्निकट था।

संयोग से जब जय के वीर्य की पहली धार उसकी कोख में गिरी, उसी समय मीना भी अपने ओर्गास्म के शिखर पर पहुँच गई। अपने शरीर में वो मीठी, कामुक लहर बनती हुई महसूस कर के दोनों प्रेमी आनंद के सातवें आसमान पर उड़ने लगे। दोनों का शरीर एक पल को सख्त हो गया, और फिर अगले ही पल शांत हो कर शिथिल पड़ गया। जैसे-जैसे उनके कामुक उन्माद में कमी आई, दोनों एक दूसरे के कोमल आलिंगन में समां गए। दोनों ही थक गए थे।

इट वास अनबिलिवेबल!” अंततः जय ने चुप्पी तोड़ी, “बेबीज़ बनाना इतना मज़ेदार होता है, यह मालूम होता तो अब तक न जाने कितने बेबीज़ बना चुका होता!”

“हा हा... बदमाश...” मीना ने उसके गालों को प्यार से सहलाते हुए कहा।

“मीना?”

“हम्म्म?”

“इंडिया चलो मेरे साथ... माँ से मिलो! ... फिर हम शादी कर लेंगे!”

“हाँ!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!”

आई लव यू!”

आई लव यू मोर...”

*
यार मजा आ गया
मैंने कामुक कहानियाँ बहुत पढ़ी हैं पर ऐसी शब्द संयोजन के साथ और इतनी उत्कृष्टता से सधी हुई लेखन आपसे ही संभव हो सकता था l
 
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Update #43


तीन सप्ताह बाद, पूरा परिवार पालम हवाई अड्डे पर उतरा।

वहाँ पर उनके स्वागत के लिए कुछ लोग पहले से ही उपस्थित थे। मीना को थोड़ा आश्चर्य हुआ - उसको यह तो पता था कि उसका परिवार धनाढ्य है, लेकिन सबकी वेशभूषा देख कर राजसी पुट साफ़ लग रहा था। मतलब जिस बात को जय मज़ाक के तौर पर कहता रहता था, वो दरअसल सच था। मीना एक राजपरिवार में ब्याही गई थी! अद्भुत!

अचानक से ही उसके दिल की धड़कन बढ़ गई। रोमाँच से मीना का शरीर काँपने लगा।

वो एक बड़े परिवार की बहू है, इतना तो उसको पता था! लेकिन वो एक राजसी परिवार की बहू है, उसको बस थोड़ी देर पहले ही पता चला था। अचानक से ही उसका मनोबल क्षीण हो गया। एक तो एक बेहद लम्बे समय बाद वो भारत आई थी, पहली बार अपनी ससुराल और सासू माँ से मिलने आ रही थी, और अचानक से यह नई घटना! इसके लिए वो कत्तई तैयार नहीं थी।

“अभिनन्दन युवराज सा,” सभी लोगों ने आदित्य को देखते ही राजस्थानी अभिवादन में हाथ जोड़ दिए।

आदित्य ने मुस्कुराते हुए सभी को हाथ जोड़ कर बारी बारी से प्रणाम किया।

“अभिनन्दन युवरानी सा,” फिर क्रमशः सभी लोगों ने क्लेयर के सामने अभिवादन में हाथ जोड़ दिए।

क्लेयर ने भी बड़ी शालीनता से सभी को प्रणाम किया। एक वृद्ध पुरुष के पैर भी छुए उसने।

“अभिनन्दन राजकुमार सा,” जब सभी ने जय का भी अभिवादन किया तो मीना आश्चर्य में पड़ गई।

जय शायद सभी से छोटा था, इसलिए उसने सभी के पैर छुए।

अभी तक मीना जय के लिए ‘हुकुम’ शब्द मज़ाक के तौर पर इस्तेमाल करती थी। परिवार में किसी के भी बर्ताव से ऐसा लगता ही नहीं था कि वो राजसी खानदान के हैं। लेकिन अब - यह सब देख कर - किसी संदेह की कोई गुंजाईश नहीं थी।

“अभिनन्दन राजकुमारी सा,” उस वृद्ध ने मीना के सामने अभिवादन में हाथ जोड़ कर कहा, “भारत देश में आप का स्वागत है!”

अपने लिए अभिवादन सुन कर मीना अचकचा गई।

“मीना,” जय ने कहा, “ये हमारे काका हैं...”

इतना कहने मात्र से मीना समझ गई कि वो बहुत आदरणीय हैं। उसने उनके पैर छुए।

“धनी खम्मा, राजकुमारी सा...” काका की बोली में क्षमा का भाव स्पष्ट था, “आप हमारे पैर नहीं...”

“क्यों?” मीना को समझ नहीं आया।

“छोटा मुँह, राजकुमारी सा... लेकिन आपको सब बातें महारानी सा ही बताएँगी...” काका ने हाथ जोड़ दिए।

बाहर लाइन से बेहद महँगी विदेशी गाड़ियाँ खड़ी थीं, जिनके द्वार खोल कर ड्राइवर खड़े हुए थे। आदित्य और क्लेयर एक कार में, एक सहायिका के साथ अजय और अमर दूसरी में, और जय मीना और चित्रा तीसरी में बैठे। एक सहायिका ने उनके साथ बैठने की पेशकश करी, लेकिन जय ने ससम्मान उसको मना कर दिया। बाकी स्टाफ़ बची हुई गाड़ियों में बैठा और काफ़िला चल दिया।

“ज... जय?” मीना ने काँपते होंठों से पूछा।

“हाँ?”

“हम कहाँ जा रहे हैं?”

“घर...” जय ने ऐसे कहा जैसे कि बहुत सामान्य सी बात हो।

“घर कहाँ है?”

“महाराजपुर... राजस्थान में एक छोटी सी रियासत है!”

“म...हा...रा...ज...पु...र...” हर एक शब्द बड़ी मुश्किल से निकले।

मीना का दिल तेजी से धड़कने लगा।

उसके मस्तिष्क में साँय साँय कर के हवाएँ चलने लगीं।


*


पालम से महाराजपुर का सफ़र लम्बा तो था, लेकिन आरामदायक था। समय लग रहा था, लेकिन सभी के जलपान की अच्छी व्यवस्था थी और कारें बड़ी आरामदायक। मार्ग में पड़ने वाली दो रियासतों के राजवाड़े उनसे मिले भी। अपने नियत समय पर जब वो महाराजपुर पहुँचे, तो उन सभी के स्वागत के लिए भव्य बंदोबस्त हुआ था! ऐसा कुछ मीना ने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। उसकी आँखें चुँधिया गईं - ऐसा स्वागत हुआ!

अभी भी दिन ही था - लिहाज़ा, महाराजपुर की साफ़ सफ़ाई और साज सज्जा स्पष्ट थी। रंगीन तिकोने झंडियों से मुख्य मार्ग सजा हुआ था। सड़क के दोनों तरफ़ चूने से सीधी लकीर खींची गई थी। और महाराजपुर के निवासी कौतूहल से अपने राजकुमारों और राजकुमारियों से देखने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे स्वागत के बारे में मीना ने केवल पढ़ा ही था, कभी देखा नहीं था। नर्वस हो कर उसका दिल मानों बैठ गया था। हाथ पाँव ठन्डे पड़ने लगे थे।

धीरे धीरे करते हुए काफ़िला उसके नए ‘घर’ महाराजपुर के राजमहल के सामने पहुँचा। राजमहल की प्राचीर से मुख्य द्वार तक लाल रंग की कालीन बिछी हुई थी, जिस पर फूलों की वर्षा से एक कालीन सी बिछ गई थी।

सभी जने क्रमशः अपनी अपनी कारों से उतरे। गाजे-बाजे, ढोल, नगाड़े, तुरही, और ऐसे ही अनेकों प्रकार के ऊँचे स्वर वाले वाद्य-यंत्र पूरे उत्साह से बज रहे थे! राजमहल के द्वार पर अपनी संतानों के स्वागत के लिए महारानी स्वयं मौजूद थीं, और फूलों की वर्षा के बीच, अपने बेटे और बहू की आरती उतार रही थीं।

बाहर उपस्थित लोग उन पर पुष्प वर्षा कर रहे थे, लेकिन मीना के मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी। गला उसका सूख रहा था और हृदय धमक रहा था! जब जय और मीना की बारी आई, तो मीना को लगा कि उसके पैर रबड़ के हो गए हों। उनमें स्थिरता नहीं रह गई थी। जैसे तैसे उसने दो पग भरे लेकिन तीसरा पग उठाते उठाते उसको चक्कर आ गया, और वो वहीं कालीन पर गिर गई। गनीमत यह थी कि नन्ही चित्रांगदा को एक परिचारिका ने अपनी गोद में ले रखा था, नहीं तो वो चोटिल हो जाती।

अचेत होने से पहले मीना ने कई लोगों को अपनी तरफ़ भाग कर आते हुए देखा, और उसके बाद उसके मष्तिष्क में अँधेरा छा गया।


*


मीना को कई बार लगा जैसे कितना एक जैसा सपना देख रही हो वो! ‘महाराजपुर’ - यह नाम जो कुछ देर पहले जाना-अनजाना सा लग रहा था, अब उसको पूरी तरह से परिचित लग रहा था। नाम ही क्या, वो पूरी जगह ही जानी पहचानी सी लग रही थी। लोग भी! माँ भी! उसको यह भी लग रहा था कि सपने में कभी क्लेयर उसके माथे को सहला कर उससे बात करने की कोशिश कर रही होती, तो कभी जय, तो कभी आदित्य!

‘उसका जय’ ... ‘कहाँ है जय?’ ... ‘और मेरी बच्ची...?’

सपने में उसको ये विचार जब भी आते, उसको अजब सी बेबसी महसूस होती। लेकिन शरीर जैसे लाचार था। वो कुछ कर ही नहीं पा रही थी। मानों हर अंग में लकवा मार गया था! सपने में हर बार कोई उसका प्रिय, कोई स्वजन, उसको देख जाता, लेकिन हर बार उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा जाता। और वो चाह कर भी कुछ न कर पाती।

और भी कुछ हो रहा था उसके साथ। कुछ ऐसी बातें उसके मष्तिष्क में कौंध रही थीं, जिनके बारे में उसको कुछ पता ही नहीं था। अजीब अजीब से सपने। अनजाने से! अनजानी जगहों में पहचाने हुए लोग, और पहचानी जगहों में अनजाने से लोग! सब कुछ गड्ड मड्ड! अपने सपनों से ही बेचैनी होने लगी उसको। जैसे वो उनके जाल से मुक्त होना चाहती हो।

अपने सपने से मुक्त होने के लिए उसका मन और शरीर दोनों बेचैनी से तड़पने लगे। उसी बेचैनी उसका शरीर झटके से खाने लगा, और एकदम से उसकी आँखें खुलीं।

आँखें खुलते ही उसने जिस शख़्श को सामने बैठा देखा, उसको देखते ही उसके मुँह से अनायास ही निकल गया,

“दी...दी...? आप? यहाँ?”

जो दृश्य उसके सामने था, उसको देख कर उसको अपनी आँखों पर यकीन ही नहीं हुआ।

‘ये कैसे हो रहा है? क्या ये भी सपना ही है?’

यकीन हो भी तो कैसे? उसके सामने युवरानी प्रियम्बदा उसका हाथ थामे बैठी हुई थी!

मीना के मुँह से दो बोल सुनते ही वो मुस्कुराती हुई बोली, “हाँ मेरी बच्ची... मैं! ... मैं यहाँ नहीं, तो और कहाँ रहूँगी? यही तो मेरा घर है... और तुम सब मेरे ही बच्चे हो!”

“ले ले... किन...”

फिर उसका माथा चूम कर प्रियम्बदा आगे बोली, “कुछ मत सोच बिटिया रानी! बस अभी सुन ले! तू... तू मेरी बहू है... मेरे जय की पत्नी! ... इतने महीनों से मुझसे बातें कर रही है, लेकिन मुझे पहचान न सकी?”

“आप... माँ? आप माँ हैं?”

उसकी बात पर प्रियम्बदा ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और कहा, “अभी भी शक़ है?”

मीना का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया।

प्रियम्बदा कहती रही, “... हाँ... लेकिन... एक बात समझ नहीं आ रही है! मैं तुझे मीना कह कर पुकारूँ या सुहास कह कर?”

“सुहास?” मीना के माथे पर बल पड़ गए...

‘पहचाना हुआ सा नाम है ये तो...’

“भूल गई सुहास को? अच्छा, चल आसान कर देती हूँ... सुहासिनी याद है?”

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला, “सुहास... सुहासिनी? ... मैं... सुहासिनी?”

प्रियम्बदा ने पूरी सहानुभूति के साथ ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दीदी...” उसने कहना शुरू किया, लेकिन फिर अचकचा कर बोली, “माँ... ये सब... मुझे कुछ... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है!”
ओ तेरी
मैं बस इसी अंक की प्रतीक्षा में था
क्यूँकी मैं उत्सुक था के कब दो समांतर कहानी आपस में टकराएंगे और एक सीधी रेखा में जाएंगे l
 
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Update #45


माँ ने मीना की हालत देख कर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया, और ‘हाँ’ में सर हिला कर बोलीं,

“हम मान गए बेटी... क्या करते? हाँलाकि उस समय भी, और अभी भी ये केवल एक एक्सपेरिमेंटल ट्रीटमेंट ही है। लेकिन हम मरते क्या न करते? तेरी हालत देखी न जाती हमसे! ... तेरे फ्यूचर के लिए हमने इस ट्रीटमेंट के लिए हाँ कर दी... हमने, मतलब तेरे बाबा ने, तेरे भैया ने और मैंने भी!”

उनकी आँखें डबडबा आईं तो उन्होंने अपनी हथेली के पिछले हिस्से से अपनी आँखें पोंछ लीं।

“तूने उस इलाज को बढ़िया रेस्पोंड किया। ... ऐसा लग रहा था जैसे सब अच्छा हो जायेगा। तुझको उस समय की बातें भूल गई थीं। ... शुरू में तो सब ठीक था, लेकिन बाद में ऐसा होने लगा कि अगर तेरे पुराने जीवन का कोई भी तेरे सामने आता, तो तू पुरानी बातें फिर से याद करने लगती, और बेचैन होने लगती थी। ... अगर मैं या तेरे भैया (युवराज हरिश्चंद्र) भी तेरे सामने आ जाते, तो तुझे पुरानी बातें याद आने लगतीं।”

मीना हैरानी से सब सुन रही थी।

“इसलिए डॉक्टरों ने हमको सजेस्ट किया कि हम तेरे सामने आए ही न! दिल टूट गया ये सुन कर... लेकिन क्या करते हम, बच्चे? हमने खुद को तेरा माँ बाप माना - तो अपने बच्ची की भलाई के लिए जो करना पड़ा, सब किया! हमने डिसाइड किया कि अपने हर्ष की अमानत को, अपनी बच्ची को अपने से दूर कर देंगे हम!”

“तो इसीलिए...” मीना बुदबुदाते हुए बोली।

“हाँ बेटे, इसीलिए तुझे लग रहा है कि हमने तुझे छोड़ दिया! लेकिन ऐसा किया नहीं हमने! दिल पर पत्थर रख कर हम अलग हो गए बस! लेकिन हमने खुद से वायदा किया कि भले ही हम तेरे सामने न आयें, लेकिन कभी भी तुझे कोई कमी नहीं होने देंगे... अगर तेरी भलाई इसी में है कि तू हमको भूल जाए, तो हमको सब मंज़ूर है! ... जैसा तूने हमसे प्रॉमिस किया था, उस साल तू पूरे स्टेट में टॉप पर आई थी।” माँ ने बड़े गर्व से बताया, “कितनी ख़ुशी मनाई थी हमने यहाँ... तेरे भैया ने तेरा दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज में करवा दिया। और तो और, तेरी मेरिट के कारण तुझको तीनों साल फुल स्कॉलरशिप मिल रही थी वहाँ!”

माँ के चेहरे पर अपार ख़ुशी थी,

“हमने तेरे लिए एक ट्रस्ट फण्ड खोल दिया था...”

यह एक नई बात थी - बाबा ने तो बताया था कि एक चैरिटेबल ट्रस्ट उसको स्कॉलरशिप दे रहा था पढ़ने के लिए। लेकिन ये तो माँ और भैया... मतलब, पिता जी ही थे, जो उसको हर पल सम्हाल रहे थे!

“... और तुझसे दूर रहते रहते भी तेरी हर अचीवमेंट, तेरी हर बात, तेरी हर आवश्यकता के बारे में पता रख रहे थे। ... जानती है बच्चे, मेरे कमरे में तेरी ग्रेजुएशन की तस्वीर भी है...” वो मुस्कुराते हुए आनंद से बोलीं, “... फिर अचानक से न जाने क्या हुआ... तू और तेरे बाबा अचानक से इंग्लैंड से गायब ही हो गए। पता चला कि उन्होंने ट्रस्ट फण्ड भी तुड़वा लिया है, और कहीं बाहर चले गए। कहाँ गए, कुछ पता ही नहीं चला... हमने तो यही सोचा कि शायद काका वापस इण्डिया आ गए हैं... लेकिन बहुत पता करने पर भी कुछ खबर नहीं मिली। ... वैसे भी, इतने बड़े देश में क्या ही पता चलेगा!”

माँ की बात सुन कर मीना के मन में अपराधबोध हो आया।

‘उसके बाबा इनके पैसे ले कर भाग गए!’

“माँ... बाबा ने कहा था कि उनको किसी ने स्पांसर किया है अमेरिका जाने के लिए... मेरा नाम भी ऑफिशियली बदलवा दिया... समझ में ही नहीं आया कि क्यों!” उसने दुःखी स्वर में कहा, “... मुझे नहीं पता था कि वो आपका पैसा ले कर भागे थे!”

“नहीं बेटे, ऐसा मत बोल! ... उन्होंने कुछ सोच कर ही वो कदम उठाया होगा। वैसे भी, वो सब तेरे ही पैसे थे... ट्रस्ट फण्ड में तेरे लिए पैसे थे, और हमारी जागीर में भी! तेरे भैया ने वसीयत में बहुत कुछ तेरे नाम लिखा हुआ है... और न भी लिखा होता, तो भी ये सब कुछ तेरा ही होता...”

“ओह माँ! आई ऍम सो सॉरी! सो सॉरी!” मीना की आँखों से आँसू उतर आये।

“अरे न न! ऐसे नहीं करते मेरी बच्चा... तुमको किसी भी बात के लिए सॉरी कहने की ज़रुरत नहीं! ... जैसा कि मैंने पहले ही बताया, तुम इस परिवार का हिस्सा हो, और इसकी जागीर का भी!”

माँ ने उसको चूम कर कहा, “अच्छा है चलो... आज पता चल गया कि पिछले सत्तरह अट्ठारह सालों से तू अमेरिका में ही है! हमारे दिमाग में कभी यह ख़याल ही नहीं आया कि तू वहाँ हो सकती है! ... वैसे आ भी जाता, तो भी कैसे ढूंढते तुझको वहाँ!”

“... हाँ माँ! इंग्लैंड से आ कर एक साल मैंने बस एक छोटा मोटा सा काम किया यहाँ।” उसने आँसू पोंछते हुए कहा, “... फिर, ऍमबीए की पढ़ाई करने दो साल न्यू यॉर्क में रही।”

“हाँ... आदि ने बताया था कि मेरी होने वाली बहू बहुत पढ़ी लिखी है! ... मुझे बहुत गर्व है तेरे अचीवमेंट्स पर!”

मीना एक क्षण मुस्कुराई, फिर उदास स्वर में बोली, “लेकिन बाबा जल्दी ही वापस इंडिया चले गए थे। अब समझ में आ रहा है मुझको... शायद उनको गिल्ट फ़ील हो रहा होगा, कि आपके साथ उन्होंने ऐसी अहसान फरामोशी करी!”

“नहीं बच्चे... मैंने कहा न? ... ऐसे मत बोल! ... लेकिन वो कहाँ रह रहे थे? ... उनसे फिर कभी मुलाक़ात ही नहीं हुई!”

“बहुत समय तक रायपुर में थे! ... वहाँ किसी कल्चरल ग्रुप में थे वो, शायद। ... शायद इसलिए लगाया मैंने कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने मुझसे क्या क्या झूठ कहा है! ... फिर वहाँ से वो बहादुरगढ़ आ गए! वहाँ एक छोटा सा घर ले लिया था उन्होंने...”

जब माँ को समझ नहीं आया कि बहादुरगढ़ कहाँ है, तो मीना ने बताया, “दिल्ली के पास एक छोटा सा शहर है, माँ!”

“ओह... काश वो एक बार मिल लेते हमसे!” माँ ने निराश हो कर कहा, “हमने तो उनको अपना पिता ही माना!”

“वही तो माँ! शायद इसी बात का गिल्ट रहा हो उनको!” मीना भी अपने पिता के बर्ताव से निराश थी, “मेरे साथ भी कहाँ रहे वो! ... मैंने बहुत बार कहा कि आ कर मेरे साथ रहें, लेकिन उन्होंने तो जैसे देश छोड़ कर न जाने की कसम खा रखी थी। ... फिर, कोई पाँच साल पहले उनको कैंसर हो गया... तब भी वो नहीं आए! इलाज के लिए भी नहीं! ... और तो और, मुझको भी इंडिया आने से मना किया हुआ था उन्होंने! क़सम दे दी थी! ... लेकिन फिर मन नहीं माना! उनकी डिमाइस के दो महीने पहले आई थी... और तब से बस अभी ही वापस आई हूँ!”

“ओह! आई ऍम सॉरी बेटा... बाबू जी की मृत्यु के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था हमको।”

“कैसे पता चलता आपको माँ? उन्होंने तो सभी से सब कुछ छुपा रखा था न!”

माँ ने केवल हाँ में सर हिलाया।

थोड़ी देर चुप्पी रही। मीना कुछ पूछना चाहती थी, लेकिन समझ नहीं पा रही थी कि वो पूछे कैसे।

“क्या बात है बेटा? ... कोई परेशानी है? कोई बात है जो तू पूछना चाहती है?”

“हाँ माँ!”

“पूछ न मेरी बच्ची? ... मुझसे ऐसे हिचकिचाएगी?”

“आप... आपने मेरी फ़ोटो देख कर मुझे पहचान लिया था न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... तुरंत!” माँ मुस्कुरा उठीं - जैसे वो उस बात को याद कर के आनंदित हो उठीं हों, “... अपनी लाडली बिटिया रानी को कैसे न पहचानती? ... मेरी प्यारी बिटिया रानी... सच है कि तू पहले के मुकाबले और भी अधिक ख़ूबसूरत हो गई है, लेकिन है तो मेरी ही बच्ची न? अपने हृदय के अंश को कैसे न पहचानती?”

“फिर भी आपने कुछ कहा नहीं!”

“किस बारे में?”

“मेरी और जय की शादी के बारे में... मेरा मतलब है कि पहले आप राजकुमार जी और मेरी शादी कराना चाहती थीं...”

“ओह! अच्छा अच्छा... देख बच्चे, तू हमको इस वंश की बहू के रूप में चहिए थी! या तो मेरे देवर की पत्नी बन कर आती, या फिर मेरे बेटे की! दोनों ही रूप में, तू रहती तो मेरी बहू ही न...”

मीना पहली बार लज्जा से मुस्कुराई।

माँ की बातों, और उनके स्नेह से उसके दिल को बहुत आराम मिल रहा था। लेकिन एक दो और बातें थीं, जो वो पूछना चाहती थी।

“माँ... भैया... आई मीन, पिता जी...?”

“वो नहीं रहे बेटा... कोई सात साल पहले उनका देहांत हो गया।”

“आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं बच्चे! होनी को कौन टाल सकता है?”

“माँ?”

“हाँ बच्चे?”

“एक और सवाल है!”

“पूछ न!”

“तो... अह... आदित्य आपके बेटे हैं?”

“हाँ... उसका नाम ज्योतिर्यादित्य है, लेकिन अमेरिका में तो सब छोटे नाम रखते हैं न!” माँ ने विनोदपूर्वक कहा, “ज्योतिर्यादित्य से आदित्य या आदि बन गया वो... और, तेरा जय भी मेरा बेटा है... उसका नाम धनञ्जय है! धनञ्जय से जय बन गया वो!”

यह बात उसको पता थीं। लेकिन सवाल कुछ और था,

“लेकिन... लेकिन... माँ आप प्लीज़ बुरा मत मानिएगा...”

“पूछ न बेटे!”

“वो... वो... वो तो पिता जी को ‘चाचा जी’ कह कर बुलाते हैं... फिर वो आपके... बेटे... कैसे...?”

ठिठकने की बारी अब माँ की थी। वो कुछ देर के लिए चुप हो गईं।
चलो अब धीरे धीरे सस्पेंस खुल रहा है
अच्छा है आखिर प्रियंवदा की धेय की जीत हुई
 
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Update #46


“माँ?” मीना को उत्तर की प्रतीक्षा थी।

“सुहास... मेरी बेटी, दरअसल, तू सही है। ... तेरा जय... मेरा और तेरे पिता जी का बेटा नहीं है...”

“फ़...फ़िर...?”

“वो हर्ष का बेटा है...” माँ ने कुछ देर चुप रह कर कहा।

“र...राजकुमार जी का?”

माँ ने ‘हाँ’ मेर सर हिलाया।

“प... पर...”

“व्वो... वो तो मेरे साथ...”

“सुहास... बेटा... मैं जो कहने जा रही हूँ, उसको ध्यान से, और धैर्य से सुनना...”

मीना दो पल को साँस थाम कर बैठ गई - उसका मन अजीब सा होने लगा था, फिर से।

माँ ने एक गहरी साँस भरी, “... जय जैसे हर्ष का बेटा है... वैसे ही वो... वो तेरा भी बेटा है...”

मानों एक साथ ही सैकड़ों बिजलियाँ गिर गईं हों मीना पर!

“क्या!” उसका चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया!

‘यह कैसा खुलासा है!’

“म्म्ममाँ... ये आप क्या कह रही हैं?” उसको यकीन ही नहीं हुआ कि माँ ने ये क्या अनहोनी कह दी।

“सच कह रही हूँ। ... तुझे अपने अतीत का पूरा पूरा अभी भी याद नहीं आया क्या बच्चे?”

बहुत संभव है यह! डॉक्टरों ने मीना का ‘इलाज़’ कर के उसके जीवन की ‘उस समय’ की घटनाओं की याददाश्त दबा या भुला दी थी। हर्ष की मृत्यु, उसके होने वाले सास ससुर की मृत्यु, और फिर उसकी खुद की गर्भावस्था और प्रसव! लेकिन जब दिमाग में एक गुत्थी सुलझती है, तो बाकी बातें स्वयं ही खुलती चली जाती हैं।

“मेरा बच्चा...” उसको अचानक ही याद हो आया।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“जय... धनञ्जय... तेरा ही है...”

ऐसा बड़ा झटका मीना को अपने पूरे जीवन में नहीं लगा था। कुछ पलों के लिए वो संज्ञा शून्य हो गई - न दिमाग काम कर रहा था, और न ही शरीर!

“बहू... सम्हाल अपने आप को!” उसको होश तब वापस आया, जब माँ ने उसको झिंझोड़ा, “बच्ची गिरने वाली थी अभी!”

“अ...ह...हाँ?”

“बच्ची अभी तेरी गोदी से गिरने वाली थी, सुहास...”

“माँ... क्या आप सच कह रही है?”

उन्होंने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“कैसा बड़ा पाप हो गया माँ...”

“पाप?”

“और नहीं तो क्या! ... अपने ही बेटे से... अब मैं अपना ही सामना कैसे करूँगी माँ? ... अपने जय का सामना कैसे करूँगी...?”

“क्या पागलों जैसी बातें कर रही है?”

“माँ मैं मर जाऊँगी... इतनी शर्म के साथ मैं नहीं जी...”

मीना का वाक्य समाप्त होता, उसके पहले ही उसके गाल पर एक थप्पड़ आ कर लगा,

“ख़बरदार जो आइंदा मरने की बात अपनी ज़बान पर लाई भी,” माँ ने सख़्त स्वर में उसको हिदायद दी, “... तुझे क्या ज़िन्दगी इतनी सस्ती लगती है, जो मर जाएगी? ... ये बेहूदा बात बोलने से पहले एक बार सोचा भी कि तेरे बिना जय का क्या होगा? चित्रा का क्या होगा? ... हमारा क्या होगा? हम कोई नहीं हैं तेरे?”

मीना की आँखों से आँसू ढलक आए, लेकिन रुलाई की आवाज़ न आई। वो फ़फ़क फ़फ़क कर रोना चाहती थी, लेकिन उस थप्पड़ की मार सीधा उसके दिल पर आ कर लगी। उसको उम्मीद नहीं थी कि इतना प्यार करने वाली माँ उसको मार भी सकती हैं।

फिर उसको अपनी कही हुई बात याद आई, तो उसको समझा कि सही ही किया माँ ने। मूर्खता का कोई इलाज़ तो होना चाहिए न!

“... ले... लेकिन माँ... पाप तो हो गया न...”

“अपने प्रेम को पाप का नाम देती है? ... ये इतनी सुन्दर सी, इतनी प्यारी सी गुड़िया पाप का परिणाम है?”

मीना से कुछ कहते न बना।

“जब तेरे दिल में जय के लिए प्यार उमड़ रहा था, तब क्या वो पाप लग रहा था तुझे? ... जब तुम दोनों साथ होते हो, तो क्या तुझे उसका साथ पाप लगता है? ... इस बच्ची को दूध पिलाते समय क्या तुझे पाप महसूस होता है? ऐसा लगता है कि पाप का परिणाम है?”

मीना को रुलाई आ गई। वो ‘न’ में सर हिलाते हुए रोने लगी।

माँ क्षत्राणी अवश्य थीं, लेकिन पत्थर-दिल नहीं। उन्होंने लपक कर मीना को अपने सीने में छुपा लिया,

“प्रेम करना कब से पाप हो गया, बच्चा?”

कुछ क्षण रोने के बाद मीना बोली, “प्रेम करना पाप नहीं है माँ... लेकिन अपने ही बेटे से...”

“एक बात बता बच्चे,” माँ ने बड़े ही स्नेह और लाड़ से पूछा, “... जब तूने पहली बार जय को देखा था, तब तेरे मन में क्या उसके लिए माँ की ममता वाले भाव उमड़े थे, या प्रेमिका वाले?”

माँ की बात पर मीना को जय के साथ अपनी पहली मुलाक़ात याद आ गई।

अद्भुत सा आकर्षण उसने महसूस किया था उस दिन - पहली नज़र में ही उसको ऐसा लगा था कि जय अपना है। हो सकता है कि चूँकि दोनों की डोर इस क़दर जुडी हुई थी, इसलिए वैसा महसूस हुआ हो मीना को, लेकिन हाँ, यह तो सच ही है कि जय को देख कर उसके अंदर माँ वाले भाव तो नहीं आये थे। भाव आये थे प्रेमिका वाले ही। और उसके बाद भी - बिस्तर में अंतरंग क्षणों में मीना को लज्जा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण महसूस होता है, जब जय उसके अंदर प्रविष्ट होता है। उससे एकाकार हो कर मीना पूर्ण हो जाती है, आनंदित हो जाती है। इन बातों को झुठलाया तो नहीं जा सकता।

लेकिन,

“... लेकिन माँ... अब ये सब जानने के बाद...”

“क्यों? क्या बदल गया ऐसा?”

“अब मैं जय का सामना कैसे करूँगी माँ?”

माँ शायद कुछ और कहना चाहती थीं, लेकिन अंत समय में उन्होंने कुछ सोच कर कुछ और ही कहा,

“देख बच्चे, तूने उसको जना ज़रूर है, लेकिन तू उसकी माँ नहीं है! ... उसकी माँ तो मैं ही हूँ, और मैं ही रहूँगी... तू उसकी पत्नी है! और उसके इस बच्चे और होने वाले बच्चों की माँ है! ... इसलिए मेरी सलाह तो यही रहेगी कि तू उसके साथ वैसी ही रह, जैसी कि अभी है...”

“... लेकिन... अपने बेटे के साथ...”

“मेरी लाडो... एक बात समझ ले... तू अब सुहास नहीं है... मीना है, मीनाक्षी... राजकुमारी मीनाक्षी... मेरे बेटे जय की पत्नी!” माँ ने रुक रुक कर कहा - जैसे वो सुनिश्चित करना चाहती हों कि मीना के मन में कोई संदेह न शेष रहे, “... उसको मैंने अच्छे संस्कार दिए हैं... मैंने उसके अंदर यह बात कूट कूट कर भरी है कि किसी लड़की को ग़लत नज़र से न देखे... जानती है? तुझसे मिलने से पहले तो उसकी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी... तू ही पसंद आई उसको। तुझी से उसने प्रेम किया, और तुझी से शादी भी!”

मीना जानती थी यह बात। और वो स्वयं को बहुत भाग्यशाली भी मानती थी इसीलिए।

माँ कह रही थीं, “तुम दोनों का जोड़ा ईश्वर ने बनाया है... हम बस यह चाहते हैं कि तुम दोनों विधिपूर्वक पूरे उम्र के लिए साथ में बँध जाओ... तू उसकी कानूनन पत्नी है... अब धर्मपत्नी बन जा...”

“पर माँ... कैसे करूँगी ये सब...”

“जैसे अभी तक करती आई है! ... देख बच्चे, तुझ पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन जय और चित्रा तेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं, और तू हमारे जीवन का! ... मेरे लिए तू मेरे जय की पत्नी है... और यह बात बदलेगी नहीं।”

मीना कुछ न बोली।

“सोच ले! ... लेकिन एक बात समझ ले बच्चे, तू और जय आपस में बहुत प्रेम करते हैं... अब यही प्रेम बस और बढ़ते रहना चाहिए... कम नहीं होना चाहिए! ... ईश्वर ने कुछ सोच कर ही तुम दोनों को मिलाया होगा...”

उसी समय दरवाज़े पर बहुत हल्की सी दस्तख़त हुई।

“माँ?” जय की आवाज़ थी।

“आ जा बेटा... बहू उठ गई है...”


*


जय धीरे से दरवाज़ा खोल कर कमरे के भीतर आया और वापस बंद कर के अपनी माँ और पत्नी के पास आ गया।

उसको देख कर मीना की धड़कनें बढ़ गईं। क्या बोले वो जय से, क्या करे - उसको कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

“आ जा बेटा...” माँ ने जय से कहा, और फिर सामान्य स्वर में मीना से बोलीं, “... जानती है बहू... ये तो तेरे पास से जा ही नहीं रहा था। ये तो मैंने ही जबरदस्ती कर के भेजा इसको कि सो जा कुछ देर... बहू को मैं सम्हाल लूँगी। तब गया...”

“माँ, नींद ही नहीं आई... चिंता लगी हुई थी न!”

“क्यों नहीं होगी चिंता... तू इसका पति है, और पति को अपनी पत्नी की चिंता, उसकी देखभाल तो करनी ही चाहिए...” माँ ने ार्थपूर्वक कहा - जैसे कि मीना को सुना रही हों, और फिर मीना के गाल को प्यार से सहलाते हुए बोलीं, “अच्छा बहू, मैं चलती हूँ... कुछ देर आराम कर लूँ!”

कुछ ही देर में जय, चित्रा, और मीना कमरे में अकेले हो गए।


*


“मेरी जान,” जय बोला, और उसने मीना को अपने आलिंगन में भर लिया, “... आई वास सो वरीड... क्या हो गया था तुमको?”

“पता नहीं...” हमेशा की तरह ‘जान’, ‘माय लव’, ‘हनी’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग नहीं किया मीना ने - उसको हिचक सी महसूस हो रही थी, “शायद ट्रैवेलिंग की वीकनेस हो... यहाँ की हीट... ऑर परहैप्स अ कॉम्बिनेशन ऑफ़ द टू...”

“हम्म... डॉक्टर ने भी यही सस्पेक्ट किया है... लेकिन तुम बहुत देर तक अनकॉन्शियस रही...”

“कितनी देर?”

अबाउट सिक्स सेवन आवर्स...”

“बाप रे...”

“लेकिन कोई चिंता वाली बात नहीं थी - तुम्हारे वाइटल्स बढ़िया थे, और तुमको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे तुम गहरी नींद में हो, और कोई सपना देख रही हो...” जय ने उसके हाथ को चूमते हुए कहा।

मीना मुस्कुराई।

जय के साथ अभी भी वही कोमलता महसूस हो रही थी उसको, जो यहाँ आने से पहले थी। क्या हो रहा था ये सब, क्यों हो रहा था ये सब - सारी बातें गड्ड-मड्ड हो गई थीं मीना के मन में!

“सपना ही देख रही थी... लेकिन जो देखा, वो हक़ीक़त के जितना ही सुन्दर था...” वो बोली।

“अच्छा जी? ऐसा क्या देख लिया?”

मीना के होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गई, “अभी नहीं... फिर कभी बताऊँगी...”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना बोली।

जय मुस्कुराया।

जय का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख कर मीना मुस्कुराए बिना नहीं रह पाती थी। इस समय भी कोई अपवाद नहीं था। जय के लिए जैसा प्रेम उसने अपनी पहली मुलाकात में महसूस किया था, आज माँ के खुलासे के बाद भी, वो वैसा ही था। क्या पता, अब और भी प्रगाढ़ हो गया हो।

“कैसा लग रहा है मेरी राजकुमारी को?”

आई ऍम गुड... माय लव,” मीना ने आख़िरी दो शब्द थोड़ा रुक कर जोड़े, “आई थिंक आई विल बी ऑलराइट...”

“हाँ... चिंता न करो! ... तुमको कल रेस्ट करना है, फिर इस्टेट दिखाएँगे तुम्हे!” जय ने उत्साह से बताया, “बहुत से लोग तुमसे मिला चाहते हैं... नई राजकुमारी से मिलने को बहुत से लोग बेक़रार हैं...”

जय की इसी अदा पर तो वो फ़िदा थी। चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कैसा भी विचार हो उसके मन में, जय उसके होंठों पर, और उसके मन में मुस्कान ला ही देता था।

“... और माँ ने बताया है कि एक सप्ताह बाद की तारीख़ निकली है हमारी शादी की...”

यह सुन कर मीना की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“फिर हम लीगली मैरीड कपल से, रिचुअली मैरीड कपल बन जायेंगे...”

आई वुड लव दैट...” मीना ने कोमलता से कहा।

“सच में?”

“हनी?” मीना बोली।

“हाँ?”

प्लीज़ मेक लव टू मी?”

“अभी?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

जय के आलिंगन में आ कर मीना पिघल गई। इससे सुख वाली जगह कोई नहीं है संसार में - उसको तुरंत ही समझ में आ गया। कोई पंद्रह मिनट के लम्बे फ़ोरप्ले के बाद जब जय मीना के अंदर प्रविष्ट हुआ, तो मीना को कोई पहले के और अभी के अनुभव में कोई अंतर नहीं महसूस हुआ। ये उसका जय ही था... उसका प्यार... उसका हस्बैंड! उसको वो बहुत प्यार करती है... और करती रहेगी। कोई भी बात इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

'हाँ, वो जय की धर्मपत्नी बनेगी!'

*
ओ भाई यह मेरी खोपड़ी की ढक्कन उड़ा ले गई
 
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मुझे पहले से ही अंदेशा था कहानी शायद दो कालखंड में चल रही है पर फिर सोचा मेरा भ्रम हो सकता है l फिर लगा दो भूभाग की कहानी समानांतर चल रही है शायद कहीं एक दूसरे को छेदेंगे पर अंत में मालुम हुआ मेरी पहली सोच ही सही थी l वैसे थोड़ा थोड़ा क्लियर हो गया था जब चीन युद्ध के उपरांत शराबी फिल्म की इन्तेहा हो गई का गाना जय के मुहँ से निकला l अच्छा प्रयोग था कहानी को दो कालखंड में तालमेल बना कर जिगजाग शैली में प्रस्तुत किया l
हमेशा की तरह आपकी कहानी प्रस्तुति और उपस्थापन अभूत पूर्व है
 
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