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Romance श्राप [Completed]

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Beautiful-Eyes
* इस चित्र का इस कहानी से कोई लेना देना नहीं है! एक AI सॉफ्टवेयर की मदद से यह चित्र बनाया है। सुन्दर लगा, इसलिए यहाँ लगा दिया!
 
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Kala Nag

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Update #13


बहुत रात हो गई थी, इसलिए अब सभी थक भी बहुत गए थे। क्लेयर ने मीना को कपड़े दिए, और उसको उसका कमरा दिखा कर, गुड नाईट कह कर विदा ली। मीना ने गहरी साँस भरी, फिर अपने कमरे में जा कर क्लेयर की दी हुई एक नाइटी पहनी, और आ कर बिस्तर में लेट गई। इतने बड़े घर में, इतने लोगों के आसपास, वो पहले कभी नहीं रही थी... सोना तो बहुत दूर की बात है। जाहिर सी बात है, कि ऐसे अपरिचित माहौल में उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।

लेटे लेटे मीना की आँखों में पिछले कुछ दिनों की बातें फिल्म की रील के समान चलने लगीं। उस दिन जब उसने पहली बार जय को देखा था, तो कैसा अलग सा लगा था! उस एहसास को वो अभी तक शब्दों का रूप नहीं दे सकी थी वो! अद्भुत सा एहसास! जय की पहली झलक ने जैसे उसके दिल को छू लिया हो! ऐसा एहसास उसको अभी तक बस एक बार ही हुआ था... एक लम्बा अर्सा हो गया था उस एहसास को! ... इतना लम्बा अर्सा कि उसकी याद भी धुँधली पड़ गई थी। लेकिन उस दिन... जय... जय... को देख कर उसके दिल के तार एक अलग ही तरीक़े से झनझना गए!

वो समझती थी कि जय भी उसको उन्ही भावनाओं के साथ देखता था। नवयुवकों के बारे में उसके मन में बहुत उच्च विचार नहीं थे... लेकिन जय सचमुच में एक परफेक्ट जेंटलमैन था। बिना उसकी अनुमति के जय ने उसको एक बार भी नहीं छुआ, और न ही कोई इस तरह की बात ही कही थी जो उसको ठीक न लगे। लेकिन उसकी आँखों की चाहत मीना को साफ़ दिखाई देती। वैसी ही चाहत उसके मन में भी तो थी! यह विचार आते ही उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। उसका नाम भी सोच कर उसके होंठों पर मुस्कान आ जाती थी!

‘बाप रे! एक लड़के ने क्या जादू कर दिया था उस पर!’

उसने कौतूहल से सोचा।

‘कितना समय हो गया?’

जब से वो क्लेयर के साथ अतिथि गृह से उठी थी, तब से उसने जय को नहीं देखा था।

एक बहुत गहरी साँस छोड़ी उसने।

‘जय...’ उसने सोचा, ‘क्या सचमुच वो उसमें इंटरेस्टेड है? ... अपनी फ़ैमिली से मिलवाना... यह तो इसी बात की तरफ़ इशारा करती है! की यूँ ही तो नहीं मिलवाता!’

‘आदित्य और क्लेयर भी तो कितने अच्छे हैं! ... उन दोनों के साथ एक पल को भी ऐसा नहीं लगा कि वो अपने नहीं हैं!’

‘... पहली ही मुलाक़ात में ऐसा अपनापन... अच्छा भी है, और अच्छा नहीं भी... लेकिन, अगर किसी पर विश्वास हो, तो सब अच्छा ही अच्छा होता है।’

‘सब अच्छा है... लेकिन, क्या ये ठीक होगा? ... जय अभी अभी ग्रेजुएट हुआ था... उसके सामने... ओह!’

ऐसी ही अनेकों बातें उसके मानसपटल पर आ और जा रही थीं। तभी उसने अपनी खिड़की के बाहर से आहट सुनी। शिकागो को ‘विंड सिटी’ कहा जाता है। कारण? शिकागो शहर मिशिगन नामक झील के तट पर स्थित है। रात में तेज हवाओं के कारण घर में ठंडक हो जाती थी। मीना बिस्तर से उठी, और खिड़की बंद करने को हुई।

उसने देखा कि जय सिगरेट पीता हुआ, बाहर टहल रहा है।

उसको देख कर अनायास ही मीना के होंठों पर मुस्कान आ गई... लेकिन, उसको सिगरेट पीता हुआ देख कर उसको बुरा लगा। लेकिन इस समय वो बात उठाने का कोई मतलब नहीं था। उसने अपनी खिड़की से बाहर झांकते हुए जय को पुकारा,

काँट स्लीप?”

रात के वीराने में, अचानक ही किसी की आवाज़ सुन कर वो चौंक गया। फिर उसको समझा कि मीना की आवाज़ है ये।

काँट स्लीप!” जय ने उत्तर दिया, “एंड यू?”

मी टू... न्यू प्लेस... न्यू बेड!” मीना ने हँसते हुए कहा, फिर पूछा, “मे आई ज्वाइन यू?”

श्योर थिंग!”

मीना मुस्कुराई, और बाहर आने को हुई तो जय ने पुकार कर कहा, “कुछ गरम पहन लेना... बहुत ठंडक है बाहर!”

“ओके!”

जय ने देखा कि मीना ने अपने ऊपर चादर डाल रखा था। बाहर वाक़ई बहुत ठंडक थी।

“बररररर्र...” चादर ओढ़ कर भी ठंडक कम नहीं हुई! काँपते हुए मीना ने कहा, “बाप रे! इतनी ठंडक में तुम बाहर क्यों टहल रहे हो?”

“कुछ नहीं... रात की ये चुप्पी अच्छी लगती है!”

“हम्म्म... लेकिन मेरी हालत तो खराब हो जाएगी!” मीना ने अपनी हथेलियों को रगड़ते हुए गर्मी पैदा करने की कोशिश करते हुए कहा, “अंदर चलें?”

“मेरे कॉटेज में चलोगी? कॉफ़ी का इंतजाम है!”

“तुम्हारा कॉटेज?” मीना ने अविश्वास से कहा।

उच्चवर्गीय अमेरिकन परिवार के हिसाब से आदित्य और जय का घर, दरअसल एक बड़े से इस्टेट पर था। मुख्य आवास एक बड़ा सा बंगला था, जो सामने की तरफ़ बना हुआ था। मुख्य बंगले में छः कमरे, दो हाल, और एक स्टडी था, जो आदित्य का ऑफ़िस भी था। मुख्य बंगले से थोड़ा अलग एक गेस्ट कॉटेज था, जिसमें दो कमरे, हॉल और एक छोटी रसोई थी। कोई भी मेहमान, या एक छोटा परिवार, इस कॉटेज में बड़े आराम से रह सकते थे। इन दोनों ‘घरों’ से अलग भी एक और कॉटेज था, जिसमें एक कमरा, हाल, और एक रसोई थी। इस छोटे कॉटेज को अक्सर जय ही इस्तेमाल करता था - वो वहीं पर पढ़ता लिखता था। ग्रेजुएशन के बाद, वो ऑफिस का अपना सारा कामकाज वहीं करता था, लेकिन सोने के लिए मुख्य बँगले में अपने कमरे में जाता था।

“हाँ...” जय ने बेहद सामान्य भाषा में कहा, “बड़ा इस्टेट है। ... कल दिन के उजाले में दिखाऊँगा तुमको! चलें?”

“ओके!”

कोई दो मिनट चलने के बाद वो ‘जय’ के कॉटेज में पहुँचे। दरवाज़े पर की-कोड पर कुछ नंबर दबाने पर दरवाज़ा खुल गया। जय ने बिजली का स्विच दबाया और दरवाज़ा खोलते हुए बोला, “आओ, मीना!”

अंदर आ कर उसने अलाव जलाया, और उसके सामने मीना को बैठने को बोल कर कॉफ़ी बनाने लगा। कुछ देर बाद...

“ये लो...” जय ने मीना को कॉफ़ी थमाते हुए कहा।

कुछ देर दोनों यूँ ही चुपचाप चुस्कियाँ भरते रहे। अंत में मीना ने ही चुप्पी तोड़ी,

“जय...” उसने हिचकते हुए कहा, “हम... हम दोनों कंसल्टैंट और क्लाइंट वाले रिलेशनशिप से आगे बढ़ चुके हैं... ये तो मैं भी जानती हूँ... और तुम भी... मेरा मतलब है... हम दोनों अच्छे दोस्त हैं! ... लेकिन... लेकिन... आई जस्ट नीड टू नो... हम दोनों क्या हैं? ... क्या है तुम्हारे मन में?”

“ऐसा क्यों पूछ रही हो मीना?” जय को थोड़ा ‘हर्ट’ महसूस हुआ - उसको लगता था कि मीना समझती होगी उसके मन की बात!

लेकिन नया नया आशिक़ होने के कारण वो यह नहीं समझ सका कि मीना उसके मन की बात समझ रही थी, इसीलिए वो पहेलियाँ न बूझने के बजाय, सीधा सीधा जानना चाहती थी।

“जय...” मीना ने बड़ी कोमलता से कहा, “जय... मैं नहीं चाहती कि किसी मिस-कम्युनिकेशन के कारण हमारे बीच जो है, वो खराब हो जाए! दैट्स व्हाई, आई नीड टू नो!”

अब इससे अधिक कोई लड़की क्या ही कह सकती है। तिस पर भी जय नर्वस हुए बिना न रह सका।

कुछ देर हिचकने के बाद आखिरकार उसको कहना ही पड़ा, “मीना... आई... मैं... मैं तुमको बहुत पसंद करता हूँ!”

इतना कह कर उसने राहत की साँस ली।

लेकिन मीना की नज़रें उसके चेहरे पर ही टिकीं थीं। उसको दीर्घ-उत्तर की अपेक्षा थी, लघु-उत्तर की नहीं। लिहाज़ा, इतनी आसानी से छूटने वाला नहीं था वो।

“ओके?” उसने कुछ इस अंदाज़ में कहा कि जय कुछ और बोले।

जय के चेहरे पर एक नर्वस हँसी आ गई, “मीना... मैं... मैं घुमा-फिरा कर कुछ कह नहीं पाता... इसलिए ऐसा मत सोचना कि मैं कोई ड्राई इंसान हूँ! ... विद मी... व्हाट यू सी, इस व्हाट यू गेट! ... मैं तुमको बहुत पसंद करता हूँ, ... और... भैया और भाभी भी! ... तुमको पसंद करने के लिए मुझे उनका अप्रूवल नहीं चाहिए... बट इट हेल्प्स!”

मीना अभी भी उसको ही देख रही थी। अभी भी उसके चेहरे पर न कोई सकारात्मक भाव थे, न ही नकारात्मक!

ऐसी कठिन स्थिति में वो शायद ही कभी पड़ा हो।

“आई... आई...” जय को जैसे शब्द नहीं मिल रहे थे, “अब कैसे कहूँ... बात सच है, लेकिन न जाने तुमको कैसी लगे! ... तुमको पहली बार देखते ही तुम मुझे भा गई... ऐसा लगा कि जैसे तुम अपनी हो! ... कुछ नहीं मालूम था मुझे तुम्हारे बारे में... लेकिन जो महसूस हुआ, तो मैंने बता दिया!”

मीना ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके मन में अनेकों विचार आने जाने लगे!

‘तो जय को भी वैसा ही महसूस हुआ जैसा मुझे! ... बाप रे!’ कॉफ़ी का मग गरम था, लेकिन अचानक ही उसकी उँगलियों का सिरा ठंडा पड़ने लगा।

“मीना... एस आई सेड, शायद तुमको ऐसा लगे कि मैं ड्राई इंसान हूँ, लेकिन... लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं और कैसे बताऊँ ये बात!” जय के मन में चल रहा था कि शायद मीना उसकी बात सुन कर नाराज़ हो गई है, “मुझे... मुझे प्यार का इज़हार करना नहीं आता मीना... बट, आई लव यू! ... आई रियली डू!”

कह कर जय अंततः चुप हो गया। और बड़ी उम्मीद से मीना को देखने लगा।

बात सीधी सी थी, और सच्ची थी। जय सही कह रहा था - उसके मन में जो होता है, वही उसके होंठों पर होता है। जो भी था, बात अब बाहर आ गई।

कमरे में कुछ देर चुप्पी रही। अब कमरा भी आरामदायक रूप से गरम हो गया था।

“ओह जय... तुमको मेरे बारे में पता भी क्या है?” अंततः मीना ने कहा।

“तुम कोई ख़ूनी हो? या कोई चोर-डाकू? या कोई और क्रिमिनल?” जय ने लगभग हँसते हुए कहा, “नहीं न! पढ़ी लिखी हो और वो भी मुझसे अधिक... अपने पाँवों पर खड़ी हो और वो भी मुझसे पहले... सक्सेसफुल हो और वो भी मुझसे कहीं अधिक... तुम्हारे अंदर मुझसे कहीं अधिक क्वालिटीज़ हैं! फिर क्या जानना है मुझको? ... मुझे बस इतना पता है कि मुझे एक स्ट्रांग और इंटेलीजेंट बीवी चाहिए... और मेरी वो तलाश तुम पर ख़तम हो जाती है!”

“स्ट्रांग?” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“कुश्ती करने के लिए नहीं...” जय हँसने लगा, “स्ट्रांग इन करैक्टर... इन वैल्यू सिस्टम...”

“हम्म्म... फ़िर?”

“फ़िर क्या? मैंने अपनी बात कह दी... अब... अब सब कुछ तुम पर डिपेंड करता है...”

मीना ने कुछ देर तक कुछ नहीं कहा। कॉफ़ी कब की ख़तम हो गई थी, लेकिन वो फिर भी मग के साथ खेल रही थी... अन्यमनस्क सी!

“क्या सोच रही हो मीना?”

“यही कि तुम्हारा क्या करूँ!” मीना ने हँसते हुए कहा, और फिर गहरी साँस भरते हुए बोली, “ओह जय... तुम बहुत अच्छे हो... तुम्हारा परिवार बहुत अच्छा है! आई ऍम श्योर, जो लड़की यहाँ आएगी, वो बहुत लकी होगी...”

कह कर वो चुप हो गई।

“लेकिन?” जय ने कुछ पलों का इंतज़ार करने के बाद कहा।

“लेकिन?" उसके प्रश्न के उत्तर में वो बोली, "... लेकिन कुछ नहीं! आई जस्ट सेड अ फैक्ट!”

“मतलब... तुम सोच रही हो मेरे प्रोपोज़ल के बारे में?”

मीना मुस्कुराई।

“देर बहुत हो गई है... सो जाते हैं?”

“ओह मीना... डोंट बी लाइक दैट! कुछ तो बोल दो। ... नहीं तो सो ही नहीं पाऊँगा!”

“मत सोवो! यही सही सज़ा है तुम्हारे लिए!”

मीना ने हँसते हुए कहा, और उठने लगी।

*
दोनों ही लड़कियाँ बड़ी शार्प हैं
या यूँ कहूँ
हुस्न में गुरूर है हुस्न मगरूर है
इश्क को तड़प है इश्क बेताब है
 
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Update #14


स्वतंत्रता मिलने के बाद से राजस्थान में बड़ी शांति हो गई थी। एक समय था जब राजवाड़े आपस में युद्ध किया करते थे, और महाराजपुर जैसी छोटी रियासतों को बड़े राजवाड़ों के साथ उन थोपे हुए युद्धों में शामिल होना पड़ता था। ठहर कर, शांति से खेती-बाड़ी कर पाना लगभग असंभव हो गया था। अंग्रेज़ों के शासन में उन युद्धों से निजात तो मिली, लेकिन अनावश्यक और नाजायज़ करों का आर्थिक बोझ ऐसा बढ़ा, कि लोग युद्ध को ही श्रेष्ठ मानने लगे। अंदर ही अंदर एक अजीब सा आक्रोश व्याप्त हो गया था सभी में! कई लोगों ने उस आक्रोश को सही दिशा में केंद्रित किया और विभिन्न कलाओं में योग्यता हासिल करने में लगाया। जिसके कारण संगीत, भोजन, वेश-भूषा, इत्यादि में बहुत सम्पन्नता आई।

स्वतंत्रता मिलने के बाद, और भारत देश में सभी रियासतों के विलय के बाद उन कलाओं के प्रदर्शन में राजस्थान, गुजरात और पंजाब राज्यों के साथ, देश में अव्वल दर्जे पर रहने लगा। भूतपूर्व राजवाड़ों ने अपनी अपनी रियासतों के कलाकारों को उच्च मुकाम हासिल करने का हौसला दिया और उनको सभी सुविधाएँ मुहैया कराईं। अक्सर ही इन कलाओं के प्रदर्शन का समारोह होता। पिछले एक सप्ताह से एक ऐसा ही समारोह महाराजपुर में भी हो रहा था। जाहिर सी बात है, राजपरिवार के सदस्य भी हर दिन वहाँ उपस्थित रहते। आज हर्ष की बारी थी।

लेकिन उसकी नज़रें आज एक ख़ास व्यक्ति की खोज में थीं। और उस व्यक्ति को देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। तेज क़दमों से वो गौरीशंकर जी के पास पहुँचा और उनको पुकारा,

“काका?”

आज की रात इस सांस्कृतिक समारोह का बड़ा प्रदर्शन था, जिसमें राजस्थान के विभिन्न उच्चा कलाकारों की कला का प्रदर्शन होना था। आज रात के समारोह में राजस्थान के मुख्यमंत्री जी के साथ साथ महाराज घनश्याम सिंह और उनके समस्त परिवारजन भी आमंत्रित थे। एक तरह से महाराज घनश्याम सिंह के ही आँगन में समारोह हो रहा था, तो वो मेहमान नहीं बल्कि मेज़बान थे! राज्य के कोने कोने से अनेकों कलाकार आमंत्रित थे, और एक सप्ताह से अपनी अपनी कलाओं का प्रदर्शन कर रहे थे।

“अरे, राजकुमार जी? प्रणाम!”

“काका, आप हमसे बड़े हैं... आप हमको नहीं, हम आपको प्रणाम करना चाहते हैं,” कहते हुए हर्ष ने गौरीशंकर जी के पैर छुए।

“अरे राजकुमार जी,” गौरीशंकर जी इस अचानक मिले आदर से अचकचा गए - राजपरिवार का शायद ही कोई सदस्य हो, जो उनके जैसा सामान्य-जन के पैर छूता हो - और बड़े खेदजनक स्वर में बोले, “खम्मा घणी, हुकुम! मुझसे ये क्या पाप करा रहे हैं आप? ... मेरे पैर... और आप...”

“क्यों? ऐसे क्यों कह रहे हैं आप काका? आप बड़े हैं, गुणी हैं... आपका आशीर्वाद न लूँ तो किसका लूँ?”

गौरीशंकर जी ने अपने हाथ जोड़ दिए, “ओह राजकुमार, अब हम आपको कैसे समझाएँ!”

“बाद में समझा लीजिएगा काका... आज हम आपके पास एक काम से आए हैं।”

“काम? हमसे? ... हमसे आपको क्या काम आन पड़ा, हुकुम? ... कहिए न राजकुमार!”

“नहीं काका... और कम से कम जब हम दोनों अकेले हों, तो हमको हमारे नाम से पुकारिए!” हर्ष ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “... और हमको आपसे काम नहीं, बल्कि विनती करनी है! ... आपके सामने हमारी अपनी... हमारी व्यक्तिगत... कोई हैसियत नहीं है, लेकिन फिर भी... आशा है कि आप कम से कम उस बारे में सोचेंगे!”

“राजकुमार जी, यूँ घुमा फ़िरा कर न कहिए! ... हम आपकी प्रजा हैं... आप हुकुम करें!”

“काका,” हर्ष ने दुनिया जहान की हिम्मत जुटाते हुए कहा, “आप... हम... आपसे... आपसे... अपने लिए... सुहासिनी का हाथ... हाथ माँगना चाहते हैं!”

“क्या? राजकुमार जी? क्या आप सच कह रहे हैं?” गौरीशंकर जी आश्चर्यचकित हो गए।

हर्ष ने हाथ जोड़ दिए, “काका, हमको सुहासिनी... सुहासिनी हमको बहुत अच्छी लगती है! और हमको उससे बहुत प्रेम है... आपके आशीर्वाद से हम उसको अपनी धर्मपत्नी बनाना चाहते हैं!”

यह छोटी सी बात गौरीशंकर जी को एक मधुर संगीत जैसी सुनाई दी।

“अहोभाग्य हमारे! कौन बाप मेरे जैसा भाग्यशाली होगा!” गौरीशंकर जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “किन्तु हम सातवें आसमान में उड़ने लगे, उससे पहले दो बातें जान लेनी आवश्यक हैं राजकुमार...”

“जी काका, कहिए न?”

हर्ष का दिल तेजी से धड़कने लगा।

‘कहीं काका इस सम्बन्ध के लिए मना न कर दें!’

“पहली बात, हमारी आपके सामने कोई हैसियत नहीं है राजकुमार! न तो हमारी पैदाइश में, और न ही हमारे सामाजिक क़द में... हम तो इसी बात से धन्य हो गए, कि आपने हमको इस लायक समझा कि आप सुहासिनी को अपनी ब्याहता बनाना चाहते हैं... किन्तु, सच में, यह सम्बन्ध संभव नहीं है...!”

हर्ष कुछ कहने को हुआ कि गौरीशंकर जी ने बीच में उसको रोकते हुए कहा,

“... यह सम्बन्ध संभव नहीं है, बिना महाराज और महारानी की अनुमति के...” गौरीशंकर जी ने कहा, “आज तक ऐसा सम्बन्ध बना नहीं! इसलिए यदि ऐसा कुछ होता है, तो समझिए सौभाग्य की वर्षा हो गई हमारे ऊपर!”

हर्ष पूरे धैर्य से उनकी बातें सुन रहा था।

“यह तो हुई पहली बात... अब दूसरी बात, आप दोनों ही अभी बहुत छोटे हैं... इसलिए आप दोनों का सम्बन्ध अभी सम्भव भी तो नहीं है। आप भी पढ़ रहे हैं, और सुहासिनी भी! ... किन्तु... यदि महाराज की कृपा बने, तो उनकी आज्ञा से हम आपका सगपण (रोका) करने आ सकते हैं!”

सुहासिनी और अपने विवाह की संभावनाओं को क्षीण होता देख कर हर्ष का दिल बैठ गया था, लेकिन इस नई सूचना ने बड़ा ढाढ़स बँधाया!

“ये संभव है क्या काका?” हर्ष ने बड़ी उम्मीद से, और मुस्कुराते हुए कहा।

“संभव है राजकुमार...” कुछ भी हो, अपनी एकलौती बेटी का ब्याह राजपरिवार से होने की आशा मात्र से ही गौरीशंकर जी का मन आंदोलित हो चला, “... सब संभव है! ... लेकिन महाराज और महारानी की कृपा से!”

यह ऐसी सम्भावना थी जो गौरीशंकर जैसे बाप को, अपनी हैसियत से कहीं अधिक बढ़ कर, सपने देखने पर मजबूर कर रही थी।

‘मतलब,’ वो सोचने पर मजबूर हो गए, ‘जब बिटिया कह रही थी कि उसको ब्याहने कोई राजकुमार ही आएगा, तो वो कोई दिवास्वप्न नहीं देख रही थी।’

उनको पता था कि महाराज की बड़ी कृपा थी उन पर। लेकिन उनका कृपा-पात्र होना, और उनका समधी होना - दो अलग अलग बातें थीं। बड़ा खतरा था यह बात सामने आने में - महाराज की कृपादृष्टि उन पर से हट सकती थी। उस स्थिति में आर्थिक सहायता कहाँ से मिलेगी? विभिन्न समारोहों में आमंत्रण कैसे मिलेगा? कुछ दिनों से सुनने में आ रहा था कि गौरीशंकर जी के लिए पद्मश्री पुरस्कार की सिफ़ारिश की जा रही थी। यदि महाराज उनसे नाराज़ हो गए, तो भूल ही जाएँ यह पुरस्कार! सबसे बड़ी बात, जग-हँसाई की थी! सब कुछ झेल सकते थे, लेकिन समाज में सर उठा कर चल पाने में जो संतुष्टि मिलती है, उसका क्या मोल है?

लेकिन अपनी बेटी का राजकुमारी बनना... यह एक ऐसी सम्भावना थी, जिसके लिए गौरीशंकर जी यह सब खतरे मोल ले सकते थे।

“तो...” हर्ष ने बड़ी उम्मीद से कहा, “हम पिताजी महाराज से बात करें?”

“नहीं बेटे,” गौरीशंकर जी ने कहा, “कुछ काम बेटी के बाप को ही करने पड़ते हैं! ... आप चिंता न करें! ... हम उचित समय देख कर महाराज से विनती करेंगे!”

राजकुमार हर्ष के साथ, अपनी बेटी के ब्याह के दिन के सुनहरे दृश्य उनकी आँखों के सामने खिंच गए। समाज में सीना तान कर और सर गर्व से उठा कर चलने का समय आ गया था संभवतः!

“भगवान भोलेनाथ ने चाहा, तो आप दोनों का प्रेम अवश्य सफ़ल होगा!”

“धन्यवाद काका,” हर्ष ने एक बार फिर से गौरीशंकर जी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

“आयुष्मान भव पुत्र... यशस्वी भव!”


*


जेठ माह की चटक गर्मी अब सर चढ़ने लगी थी। लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। दोपहर में सभी लोग प्रायः अपने अपने घरों में ही रहना श्रेयष्कर मानते थे। लेकिन प्रेम में पड़े राजकुमार हर्ष की दशा ऐसी थी कि लू की मार बर्दाश्त कर लेगा, लेकिन अपनी सुहासिनी को देखे बिना उसका दिन नहीं पूरा होता।

रोज़ की ही भाँति आज भी वो सुहासिनी से मिलने आया था। उनके मिलने का कोई ठौर ठिकाना नहीं था - एक एकांत स्थान मिला था, जो गाँव से थोड़ी दूरी पर था। खुले में, बस कैर के कुछ पेड़, और उनके आस पास अनेकों झाड़ियाँ! यही दोनों प्रेमियों के मिलने का ठिकाना था। कैर के पेड़ हरे घने नहीं लगते... उनके नीचे घनी छाया नहीं होती। किन्तु दूर से उनको देखने पर बहुत घने लगते हैं, और कोई बहुत निकट आए बिना यह नहीं जान सकता कि कोई उनके पीछे छुपा हुआ है। इन वृक्षों को रेगिस्तान का आशीर्वाद कहा जाता है, क्योंकि इनसे विकट सूखे में भी भोजन मिलता है। कैर के वृक्ष से राजस्थान की प्रसिद्ध केर-सांगरी की सब्ज़ी बनाई जाती है।

“आपने बाबा से क्या कह दिया?” सुहासिनी ने शर्माते हुए हर्ष से कहा।

वो आज हर्ष से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। आँखें नीची किये हुए, वो भूमि पर आड़ी तिरछी रेखाएँ खींच रही थी, और मिटा रही थी।

“क्या कह दिया हमने?”

“आज कल बहुत चुप से रहते हैं... बताइए न, क्या कहा आपने उनसे?”

“वही, जो कहने का हमने आपसे वायदा किया था... हमने आपसे कहा था न कि हम आपके बाबा से बात करेंगे... सो कर लिए!”

अचानक ही सुहासिनी स्वयं को बहुत निर्बल सा महसूस करने लगी। जब आपके भविष्य का फैसला अन्य लोगों के हाथ में चला जाता है, तो असहाय महसूस करना लाज़िमी ही है!

“बाबा नाराज़ हैं हमसे,” सुहासिनी ने मुस्कुराते हुए राजकुमार को छेड़ा।

हर्ष इस छेड़खानी के चक्कर में नहीं पड़ने वाला था! उसको मालूम था कि गौरीशंकर जी भी उसके और सुहासिनी के विवाह की सम्भावना से प्रसन्न थे। अगर पिताजी महाराज ने मना भी कर दिया, तो वो नाराज़ तो नहीं हो सकते। वैसे, उसको इस बात का भान था कि दो सप्ताह बाद भी गौरीशंकर जी ने पिताजी महाराज से इस बारे में बात नहीं करी थी। वो समझ सकता था कि इन कार्यों के लिए समय चाहिए, और साहस भी!

“हो ही नहीं सकते!”

“क्यूँ भला?”

“अपने दामाद से भला कौन नाराज़ हो सकता है?”

सुहासिनी का दिल यह सुन कर तेजी से धड़कने लगा।

कुछ देर दोनों चुप रहे।

“आपको... आपको लगता है कि सब ठीक हो जाएगा?”

“पूरा विश्वास है हमको...” हर्ष बोला, “आपके बाबा से पहले हमने भाभी माँ से अपने दिल की बात कही थी...”

“क्या! युवरानी जी को?”

“और क्या! आपने हमको क्या समझा है! ... हमारा प्यार झूठा नहीं!”

“ये हमने कब कहा?” सुहासिनी ने लगभग माफ़ी माँगते हुए कहा, और फिर उत्सुकतावश आगे जोड़ा, “क्या कहा युवरानी जी ने?”

हर्ष ने मुस्कुराते हुए कहा, “बस ये समझ लीजिए कि हमारे प्रेम को उनका आशीर्वाद प्राप्त है...”

“ओह प्रभु एकलिंग जी...” सुहासिनी ने बड़े आदर से आकाश को सम्मुख हो कर अपने हाथ जोड़ दिए।

जीवन में कम ही इच्छाएँ होती हैं, जिनके साकार होने की आशा इतनी बलवती होती है, कि आप कुछ भी कर देने को तत्पर हो जाते हैं। सुहासिनी और हर्ष चाहते थे कि उनका विवाह हो जाए! यह एक तरह से असंभव कार्य था। इसलिए किसी ईश्वरीय हस्तक्षेप का होना अब अपरिहार्य था।

*
भाई जैसे ही हमारा इमोशन पिक पर पहुँच जाती है ठीक उसी वक़्त अपडेट समाप्त हो जाती है 😏
 
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Update # 15


“अरे जय?” क्लेयर ने जय को साढ़े पाँच बजे किचन में आते देख कर आश्चर्य से कहा।

ऐसा नहीं है कि वो बहुत देर से जागता था, लेकिन इतनी जल्दी भी नहीं जागता था। और ख़ास तौर पर तब, जब कल रात बहुत देर से सोया हो।

“जी भाभी?” जय मुस्कुराते हुए बोला, “गुड मॉर्निंग भाभी!”

वो क्लेयर के पास आया और जैसा कि उन दोनों की रस्म थी, क्लेयर के दोनों गालों को चूमा।

“गुड मॉर्निंग... गुड मॉर्निंग... सोए नहीं क्या आज रात?” क्लेयर ने ख़ुशनुमा अंदाज़ में पूछा।

“ओह भाभी... आप अन्तर्यामी हैं क्या? हा हा!”

“हा हा... हाँ... हो सकती हूँ... बदमाश लड़के!” क्लेयर ने हँसते हुए और बड़े प्यार से जय का कान उमेठते हुए कहा, “... अब बोलो... नींद नहीं आई?”

“आऊ आऊ भाभी... लेकिन पहले कान तो छोड़ो...”

“लो... छोड़ दिया! अब बताओ...”

जय मुस्कुराया... आज उसके चेहरे पर एक नया ही आत्मविश्वास देखने को मिल रहा था। आनंद से उसका मुखड़ा दीप्त हो रहा था। क्लेयर भी समझ रही थी कि कुछ बढ़िया हुआ है उसके देवर के जीवन में।

आई प्रोपोस्ड हर, भाभी!” क्लेयर की बात का जवाब न दे कर, उसने एक बहुत ही बड़ा खुलासा किया।

व्हाट?”

“आई प्रोपोस्ड हर...”

आई हर्ड यू द फर्स्ट टाइम, जय!” क्लेयर ने अविश्वास भरे सुर में कहा, “वाओ! ... मीना श्योर इस अ स्पेशल गर्ल...”

“हा हा...”

“बड़ी जल्दी से कर दिया प्रोपोज़...”

“वो... वो भाभी... मुझे लगा कि आपको अच्छी लगी वो!”

“अरे अच्छी नहीं, बहुत अच्छी लगी, जय!” क्लेयर अभी भी इस रहस्य के सामने आने से उबर नहीं सकी, “बहुत अच्छी!”

“थैंक यू भाभी...”

“नहीं लव, थैंक यू वाली बात नहीं है। ... मीना अच्छी लेडी तो है। शी विल बी अ वैरी गुड मैच फॉर यू! आई ऍम हैप्पी फॉर यू... एंड फॉर हर...” फिर थोड़ा सोच कर, “क्या बोली वो? उसने एक्सेप्ट किया?”

आई थिंक सो भाभी... रिजेक्ट तो नहीं किया... और एक्सप्लिसिटली एक्सेप्ट नहीं किया... न नाराज़ हुई... और न ही बहुत एक्साइटेड! ... ऐसा लगा कि शायद वो एक्सपेक्ट कर रही थी कि मैं कुछ ऐसा ही करूँगा!”

“गुड... गुड!” क्लेयर ने जय को गले से लगा कर कहा, “आई ऍम सो हैप्पी! ... मेरा मानना है कि अगर किसी से प्यार हो जाए, तो उसको तुरंत बता देना चाहिए... और टाइम नहीं वेस्ट करना चाहिए... तो अब जितना जल्दी हो सके, शादी कर लो दोनों!”

“हा हा!”

“अरे, हँस क्यों रहा है! ... क्या गलत कह दिया मैंने?”

“कुछ भी नहीं भाभी, कुछ भी नहीं! ... यू आर द बेस्ट!” जय बड़े प्यार से क्लेयर को अपने आलिंगन में भरते हुए बोला।

“हाँ हाँ... भाभी से काम पड़ा, तो आ गए मक्खन लगाने!” क्लेयर ने उसको चिढ़ाते हुए कहा, “... नहीं तो ऐसे दूर भागते हो जैसे काँटें लगें हों मुझमें!”

“हा हा... नहीं भाभी! वैसा कुछ नहीं है!”

“अरे भई, क्या पक रहा है सवेरे सवेरे देवर भाभी के बीच में?” इसी बीच आदित्य ने भी किचन में आते हुए कहा।

“गुड मॉर्निंग भैया!”

“गुड मॉर्निंग बेटा...” आदित्य ने कहा और फिर क्लेयर को होंठों पर चूमते हुए विनोदपूर्वक आगे कहा, “क्या बात है भाई, आज सूरज जल्दी निकल आया लगता है!”

“क्यों नहीं होगा,” क्लेयर ने हँसते हुए कहा, “आपके भाई को प्यार हो गया है... अपनी मीनाक्षी से!”

“हा हा... वो तो मैंने पहली ही मुलाकात में ही समझ लिया था।” आदित्य ठहाके मार कर हँसते हुए बोला, “उस दिन इसकी शकल देखने लायक थी। ... और हो भी क्यों न! मीना अच्छी है... उसके बारे में मैंने पता किया है!”

“क्या भैया...” जय ने झेंपते हुए कहा, “आपने मेरे पीछे पीछे इतना कुछ कर दिया, और मुझको बताया भी नहीं!”

“बता ही तो रहा हूँ...” आदित्य ने जैसे कोई राज़ खोलते हुए कहा, “और ये मत सोचना कि तुम अपनी भाभी को कोई मैसिव सरप्राइज़ दे रहे हो... मैंने इनको कह रखा है कि जल्दी ही हमको अपनी बहू मिलने वाली है!”

“व्हाट! भा...भी...” जय ने लज्जा से लाल होते हुए कहा, “आप सब कुछ जानते हुए भी मुझसे मज़े ले रही थीं!”

“नहीं मेरा बेटा,” क्लेयर ने हँसते हुए जय को अपने आलिंगन में लेते हुए कहा, “मज़े नहीं ले रही थी... बस, तुम्हारी ख़ुशी देख कर ख़ुश हो रही थी!”

“ओह भाभी,” जय बहुत खुश था, “थैंक यू सो मच! ... एंड आई लव यू!”

“हाँ... यू बेटर!”

“तो बताओ जय,” आदित्य बोला, “क्या प्लान है अब? शादी कब तक कर रहे हो?”

“एक बार मीना ‘हाँ’ कह दे! ... फिर कभी भी भैया!”

“अरे, तो उसने अभी तक हाँ नहीं कहा?”

“नहीं भैया, ... लेकिन उसने मना भी नहीं किया!”

“हम्म्म... ठीक है! ... कर लो तुम दोनों जने रोमांस!” आदित्य ने हँसते हुए जोड़ा, “कर लो रोमांस... और मैं इस बीच माँ से बात करता हूँ तुम दोनों की शादी की...”

“ओह भैया... थैंक यू... थैंक यू सो मच!”

“गुड मॉर्निंग आदित्य...” इतने में मीना भी किचन के सामने खड़ी हो कर लगभग पुकारती हुई बोली - जाहिर सी बात है कि वो कुछ देर से उस तरफ़ आई हुई थी, और उसने उन तीनों की बातों का कुछ अंश तो सुना ही था, “गुड मॉर्निंग क्लेयर...” और अंत में लगभग झिझकते हुए, “... जय!”

“हे मीना! गुड मॉर्निंग!” आदित्य ने कहा।

“ओह मीना,” क्लेयर ने उसको देखते ही चहकते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग, लव! ... क्या बात है! आज किसी को भी नींद नहीं आई है लगता है!”

“ओह नो, ऐसा नहीं है क्लेयर... मैं उठ जाती हूँ बहुत सुबह! ... आज ही देर से उठी हूँ!”

“नाइस...” फिर जय को देख कर, “सीखो कुछ!”

क्लेयर की बात पर मीना थोड़ा सा झेंप गई।

“भा...भी...!” जय ने भी झेंपते हुए कहा।

“हाँ ठीक है... बाद में कम्प्लेन कर लेना!" क्लेयर बोली, "कॉफ़ी लोगी मीना?”

“ओह क्लेयर... आप अकेली काम न करें! ... आई विल हेल्प यू?”

“ओह डोंट बी फॉर्मल मीना... तुम पहली बार आई हो... तुमसे काम नहीं करवा सकती!”

“फॉर्मल मैं नहीं, आप हो रही हो,” मीना ने अंदर ही अंदर खुश होते हुए कहा - उसको बहुत अच्छा लग रहा था कि उसको सभी से इतना प्यार, इतना अवधान मिल रहा था, “... वैसे भी घर में काम तो करती ही हूँ!”

आई नो, लेकिन बाद में कर लेना काम... और जैसा तुमको मन करे वैसा!” क्लेयर ने अर्थपूर्वक कहा - जिसका मंतव्य मीना ने बखूबी समझ लिया।

“ठीक है क्लेयर...”

“गुड गर्ल...” क्लेयर ने कहा, “देखो, अभी अधिक सुबह है... तो मैं तुमको फ्रेंच टोस्ट और कॉफ़ी देती हूँ? फिर हम सभी साथ में ब्रेकफ़ास्ट करेंगे?”

“जानेमन,” आदित्य जो कुछ देर से चुप था बोला, “जो मन करे, बना लो! ... आज तो अच्छा दिन होने वाला है! मीना भी है तो उसको जाने नहीं देंगे! आज मस्ती करते हैं?”

“हाँ हाँ! बिल्कुल!” क्लेयर ने तुरंत इस प्लान की रज़ामंदी कर दी, जैसे मीना की इच्छा के जानकारी की कोई आवश्यकता ही न हो!

“लेकिन क्लेयर...”

“आज कोई काम है क्या मीना?” क्लेयर ने पूछा, “या कहीं बिजी हो?”

“नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं!”

“तो फिर?” क्लेयर ने कहा, “... लुक लव, हमको अपने से अलग मत समझो! ऑन द कोंट्ररी, विद अ बिट ऑफ़ लक एंड गॉड्स ग्रेस, हम सब एक साथ भी हो सकते हैं!”

क्लेयर की ऐसी खुली बात पर मीना थोड़ा हिचकिचा गई और थोड़ा शरमा भी गई। बीती रात की बातें उसको पूरी तरह से याद थीं। एक तरह से वो रात में सोई ही नहीं - बस, जय की कही बातों पर विचार करती रही। ऐसा नहीं था कि उसको किसी ने पहली बार प्रेम-निवेदन किया हो। लेकिन यह अवश्य था कि जय को देख कर न जाने कैसी अदृश्य शक्ति जैसे उसको खींच ले रही थी। मन ही मन में जैसे उसको समझ आता कि जय उसका ही है और वो जय की! गज़ब का आकर्षण! एक तरह से कल रात जय ने उसको प्रोपोज़ कर के उसके मन की उधेड़बुन को सुलझा दिया था जैसे! जय का परिवार इतना सुन्दर, इतना स्नेही था, कि वो स्वयं भी उसी परिवार का हिस्सा बनने के सपने देखने लगी!

मन ही मन उसको जय स्वीकार था। और जय को वो! जय को मीना के अतीत से जैसे कोई सरोकार ही नहीं था! युवा लड़कों की यही समस्या है - वो हर बात को खिलवाड़ में ले लेते हैं! शादी जैसी गंभीर बात को भी! लेकिन वो चाहती थी कि जय उसके बारे में सब बातें जान जाए! उसके बारे में कुछ छुपा न रहे।

उधर जय मुँह बाये अपनी भाभी की जादूगरी देख सुन रहा था। प्रोपोज़ करना एक बात होती है, लेकिन वैवाहिक सरोकार दो परिवारों का मिलन होता है। ऐसे में मीना को भी इस परिवार में स्वीकृति मिलनी आवश्यक थी। जय मन ही मन सोच रहा था कि वो किस तरह से इस बात को कह दे! लेकिन क्लेयर भाभी तो रॉक स्टार हैं उसकी! उन्होंने इतनी आसानी से इतनी बड़ी बड़ी बातें मीना से कह दी थीं, जो कहने की वो सोच भी नहीं सकता था। भाभी हों, तो ऐसी!

“ठीक ही तो कह रही है क्लेयर, मीना!” इस बार बात की बागडोर आदित्य ने पकड़ी, “भई हम तो तुमको अपनी ही मान रहे हैं! तुम देख लो अपना!” वो हँसते हुए बोला।

‘ऑफिस वाला आदित्य और ये आदित्य कितने अलग लोग हैं...’ मीना सोचने लगी, ‘वहाँ वो कितना धीर गंभीर रहता है, और यहाँ वो कितना हल्का फुल्का - शायद सब क्लेयर का असर है!’

“अरे जय, मीना को एस्टेट घुमा देना सवेरा होने पर! ठीक है?”

“ठीक है भैया! ठीक है!”

“बढ़िया,” आदित्य ने क्लेयर की तरफ़ मुखातिब होते हुए कहा, “आओ जानेमन, मैं तुम्हारी हेल्प कर दूँ!”

“थैंक यू माय लव!”

*
देखा जब भी मैं अपनी इमोशन को पर देता हूँ
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Update #17


सुबह का नाश्ता कर के जय ने मीना को अपना इस्टेट दिखाने की पेशकश करी, जो मीना ने सहर्ष स्वीकार कर ली। इस्टेट दिखाना एक बहाना था - दरअसल वो भी चाहती थी कि सुबह की नरम गुलाबी धूप में जैसा रोमांटिक माहौल बन रहा था, उसमें जय के साथ, अकेले में, थोड़ा समय बिताया जा सके। वो थोड़ी नर्वस थी... ऐसे किसी के साथ कुछ समय बिताये हुए कुछ वर्ष बीत गए थे। पिछले अफेयर के बाद अब उसकी इच्छा नहीं होती थी कि वो किसी और पुरुष के साथ किसी भी तरह का सम्बन्ध बनाए... लेकिन, जय से मिल कर उसके हृदय के तार झनझना उठे। वो जानती थी कि जय भी उसमें उतनी ही रूचि रखता है। लिहाज़ा, उसकी आशा थी कि वो अपने भूत के बारे में जय से बात कर पाएगी, और तब अगर सब ठीक रहा तो दोनों आगे बढ़ सकेंगे। क्लेयर ने मीना को एक शॉल ओढ़ने को दे दिया था, जिससे उसको ठण्ड न लगे। मौसम ठण्डा अवश्य था, लेकिन सुहाना भी बहुत था।

जय इस तरह से मीना के साथ एकांत और समय पा कर उत्साहित भी था, और थोड़ा नर्वस भी... ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उसके पेट में तितलियाँ उड़ रही थीं। उसके और मीना के सम्बन्ध पर उसके परिवार की रज़ामंदी तो मिल ही गई थी, तो अब बस लड़की - यानि कि मीना की रज़ामंदी मिलनी शेष थी। वो चाहता था कि मीना की प्रेम-दृष्टि उस पर पड़े! उसके पहले किसी भी लड़की ने उसको इस तरह से आकर्षित नहीं किया था। और, मीना से कुछ दिनों तक मिलने और उसके साथ काम करने के बाद उसको उसके गुणों के बारे में भी पता चला, तो वो उसकी तरफ़ और भी आकर्षित हो गया। कुछ समय पहले तक उसको विवाह करने की कोई इच्छा नहीं थी, लेकिन मीना से मिलने के बाद उसको ऐसा लगता कि मीना के साथ विवाह करना उसके लिए सबसे आवश्यक काम था।

जैसा कि मीना को कल रात ही स्पष्ट हो गया था, आदित्य और जय का ‘घर’ एक बड़ा सा इस्टेट था। तीन एकड़ भूमि पर बना मुख्य आवास एक बड़ा सा बंगला था, जो इस्टेट के सामने की तरफ़, मुख्य मार्ग के समीप बना हुआ था। इस मुख्य बंगले में छः कमरे, दो हाल, और एक स्टडी था, जो आदित्य के लिया ऑफ़िस का काम करता था। इस मुख्य बंगले से थोड़ा अलग हट कर एक गेस्ट कॉटेज था, जिसमें दो कमरे, एक हॉल और एक छोटी सी रसोई थी। यह किसी भी मेहमान, या उनके परिवार के आवास के रूप में इस्तेमाल होता था। इसके अतिरिक्त एक और कॉटेज था, जिसमें एक कमरा, एक हाल, और एक छोटी सी रसोई थी - इसी में कल रात मीना गई थी। यह जय का मैन-केव था और केवल वो ही इस कॉटेज का इस्तेमाल करता था। आज कल अपना सारा कामकाज वो वहीं करता था। इसके अतिरिक्त पूरे इस्टेट में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और बगीचे लगे हुए थे। एक स्थान पर एक छोटा सा, गोल सा तालाब बना हुआ था, जिसमें बीच में वीनस की एक मूर्ति लगी हुई थी, और उसके हर तरफ से छोटे छोटे फ़ौव्वारे लगे हुए थे। तालाब की परिधि पर करीब दो फुट का चबूतरा था, जो बहुत अच्छी जगह थी बैठ कर आगे की बातचीत करने के लिए।

“जय,” मीना ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “थोड़ा... बैठ जाएँ? ... तुमसे कुछ बातें करनी थीं...”

“बोलो मीना...” जय भी उसी के समान हिचकिचा रहा था।

“जय...” मीना की हिचक बरकरार थी, “... ऐसी बात शायद लड़कियाँ नहीं करतीं... लेकिन... लेकिन... न जाने क्या बात है तुममें... कि मैं बरबस तुम्हारी तरफ़ खिंची चली आती हूँ...”

जय को लगा कि जैसे उसके कानों में मधुर संगीत बजने लगा हो।

“कल तुमने मुझसे कहा था न... कि मुझको पहली बार देखते ही मैं तुमको भा गई... यह कि जैसे मैं तुम्हारी अपनी हूँ? ... तो मुझको भी वैसा ही लगा... जब मैंने तुमको पहली बार देखा! ... कुछ अमेज़िंग सा अट्रैक्शन! अदरवर्ल्डली! ... उसको एक्सप्लेन नहीं कर सकती!”

“मीना...?”

“मुझको कह लेने दो जय... प्लीज़!”

जय ने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“थैंक यू...” मीना ने कहा और एक गहरी साँस भरी, “तुम मुझे पसंद... नो, बहुत पसंद हो! ... लेकिन... मैं चाहती हूँ... कि इसके पहले कि हम आगे बढ़ें, तुमको... कम से कम तुमको... मेरे बारे में पता हो। ... मेरे पास्ट के बारे में...”

“मीना... मैंने तुमसे पहले ही कहा है कि मुझे तुम्हारे पास्ट से कोई मतलब नहीं, कोई परवाह नहीं... अगर तुम कोई ख़ूनी या मुज़रिम न रही हो!”

मीना हौले से हँसी, “नहीं मैं कोई ख़ूनी वूनी नहीं हूँ... बट स्टिल, आई वान्ट यू टू नो अबाउट मी!”

“ओके!”

“मैं एक ग़रीब फ़ैमिली से हूँ...”

जय ने उसकी इस बात पर बड़े ही बेपरवाह तरीके से अपने कन्धे उचकाए - यह बताने के लिए कि इस बात का कोई महत्त्व नहीं है - ख़ास कर अब, जब मीना का खुद का एक मुक़म्मल कैरियर है, और वो स्वयं इतना कमा लेती है जिसमें बड़े ठाठ से अमेरिका में रहा जा सके!

मीना ने फिर भी कहना जारी रखा, “मेरी पढ़ाई लिखाई... सब एक चैरिटेबल ट्रस्ट ने मैनेज किया है...”

आई वुड से, यू डिड वण्डरफुल्ली ग्रेट!” जय खुश होते हुए बोला, “नाम बताना उस ट्रस्ट का... मैं भी उसमें डॉलर डोनेट करूँगा! ... भई, क्या बढ़िया जेम ढूँढ़ निकाला है उन लोगों ने!”

जय की बात पर मीना के होंठों पर एक नर्वस सी हँसी आ गई, “आई नो... आई नो! ... तुमको फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन तुमको अपने बारे में सब कुछ बता देना मेरा फ़र्ज़ है!”

“हा हा! ओके! बताओ सब!”

आई डोंट नो हाऊ यू फ़ील अबाउट इट... बट मैं बड़ी भी बहुत हूँ तुमसे...”

आई नो... तुम्हारा रेज़्युमे पढ़ा है मैंने! ... मुझसे कहीं अधिक क्वालिफाइड हो, मुझसे अधिक एक्सपीरियंस है, तो जाहिर सी बात है कि मुझसे बड़ी भी हो!” जय ने फिर से इस बात को नकारते हुए कहा, “... वैसे, भैया भी जानते हैं ये बात! ... और शायद अब भाभी भी... फिर भी उन्होंने इस बारे में एक बात भी नहीं बोली!”

मीना चुप ही रही।

उसको चुप देख कर जय ने ही बात आगे बढ़ाई, “वैसे, एक बात बताऊँ तुमको? ... उम्र में भाभी भी भैया से बड़ी हैं। ... वो हम सबसे कहीं अधिक मैच्योर हैं... इसीलिए तो हम सब में इतना ठहराव है।”

“ओह?”

“हाँ! ... भाभी पहले चाचा जी - मतलब हमारी कंपनी के फाउंडर... की पर्सनल सेक्रेटरी थीं।” जय ने अपने परिवार का एक राज़ खोला, “... भाभी बहुत स्किलफुल थीं और बहुत एजुकेटेड भी... और इसलिए चाचा जी उनको बहुत पसंद भी करते थे! शायद अपनी बेटी के ही जैसे... लेकिन इतना पसंद करने के बावज़ूद, वो भाभी में अपनी बहू का रूप नहीं देख पाए। ... उसका सबसे बड़ा कारण यह था कि वो चाहते थे कि भैया उनकी पसंद की किसी भारतीय लड़की से शादी करें!”

बताते बताते जय ने गहरी साँस भरी, “... लेकिन भैया और भाभी दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते थे... उसके कारण थोड़ा फ़्रिक्शन भी हुआ! लेकिन, फिर चाचा जी की मौत के बाद भाभी ने जिस तरह भैया... हमारे बिज़नेस... और फिर मुझको सम्हाला... सबकी बोलती बंद कर दी उन्होंने! ... चाची जी के मन में उनको ले कर बहुत से प्रीकंसीवड नोशंस थे... लेकिन जब उन्होंने भाभी का असली रूप देखा... उनके सभी गुण समझे, तब वो भी शांत हो गईं।”

कहते हुए जय ने बड़े गर्व से मीना को देखा - वो हतप्रभ हो कर सब सुन रही थी,

“एक देसी लड़की क्या इतना सब कर सकेगी? ... मेरे ख्याल से नहीं!” वो बड़े गर्व से बोला, “... और अब आलम ये है कि चाची जी अपनी ‘प्यारी बहू’ के बिना नहीं रह पातीं। हम बेटों से मिलने से अधिक उनको अपनी बहू और दोनों पोतों से मिलने का मन होता रहता है!”

“हा हा! दैट इस सो नाइस टू नो, जय...” मीना अब थोड़ा सहज हो गई, “थैंक यू फॉर टेलिंग मी ऑल दिस!”

“नो प्रॉब्लम!” जय ने बड़ी दरियादिली से कहा, “आगे बोलो... क्या कहना था तुमको!”

“उम्म्म...” मीना ने एक भूमिका बाँधी, “शायद तुमको ये बात सुन कर बुरा लगे!”

“बुरा लगना है, तो लगने दो! ... तुम कम से कम अपनी बात तो कहो!”

“ओके! ... जब मैं यहाँ ऍमबीए करने आई, तब से ले कर अब तक मेरे तीन अफेयर्स हो चुके हैं...” उसने कहा - और थोड़ी देर रुक कर देखने लगी कि इस बात का जय पर क्या प्रभाव पड़ा।

आई ऍम सॉरी मीना... सॉरी इस बात के लिए कि प्यार की तुम्हारी तलाश अभी तक क़ामयाब नहीं हो पाई... लेकिन शायद ये इसलिए भी हुआ है कि... तुम जैसी अमेजिंग लड़की... उन तीनों से बेहतर डिज़र्व करती है!” जय ने कहा।

उसको भी विश्वास नहीं हुआ कि उसके अंदर इतनी सहनशीलता कहाँ से आ गई! शायद इसीलिए कहते हैं कि प्यार में लोग अंधे हो जाते हैं।

“ओह जय... तुम पर तो किसी बात का कोई असर ही नहीं होता!” मीना ऊपर से निराश, लेकिन अंदर से बहुत आनंदित होती हुई बोली!

“मैंने कहा न - मेरे लिए तुम्हारा पास्ट मायने नहीं रखता! ... मायने रखता है तो बस... हमारा फ्यूचर!”

“ओके...” मीना ने भी इस बार बम गिरा देने की ठान ली, “तुम कुछ सुन ही नहीं रहे हो... कुछ मान ही नहीं रहे हो, तो सुनो... हाऊ विल यू रिएक्ट, इफ आई टेल यू दैट आई हैड फिज़िकल रिलेशनशिप्स विद दोज़ मेन?”

हाँ - इस बार जय के चेहरे पर शिकन आई - लेकिन बहुत हल्की सी!

वो सोचते हुए बोला, “याह... दैट इस अ बिट सैड मीना... आई अंडरस्टैंड कि तुमको कैसा फ़ील हुआ होगा! ... लेकिन ये भी सच बात है, कि बिना सच्चे प्यार के सेक्स करने से कोई फ़ायदा नहीं होता... और न ही कोई सटिस्फैक्शन मिलता है!” उसने बुझे हुए स्वर में कहा, “... आई विश व्ही हैड मेट अर्लियर (काश कि हम पहले मिले होते)!”

“ओह जय...” मीना ने गहरी साँस लेते हुए, बड़े अशक्त भाव से कहा - और बोलते बोलते उसका पूरा शरीर काँप गया, “कैसे हो तुम!”

सच में - उसको समझ ही नहीं आया कि कैसा आदमी है जय! कोई और होता तो उसको वेश्या होने का तमगा पकड़ा चुका होता। गोरे अमेरिकन्स भी शायद इतने खुले हुए न हों, जबकि उनका समाज सेक्स को ले कर कहीं अधिक खुला हुआ है।

द बेस्ट!” वो मुस्कुराया।

“हा हा!” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! नो वंडर आई लव यू सो मच!” उसने एक झोंक में कह डाला।

फिर वो बोलते बोलते हठात ही रुक गई - उसको संज्ञान हुआ कि उसने ये क्या कह दिया! मन की बात ज़ुबान से निकल गई। पहले तो उसके चेहरे से सारा रंग निचुड़ गया और फिर अगले ही क्षण उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान आ गई, “मतलब... अभी तो कोई और नहीं है तुम्हारी लाइफ में?”

“कोई नहीं जय...” मीना ने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, “जब से तुम मिले हो...” वो बोलते बोलते रुक गई, और फिर थोड़ा ठहर कर बोली, “... किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती अब मैं...”

“पक्की बात?” जय मुस्कुराया।

“हम्म उम्म...” मीना ने स्वीकारा... बहुत हल्के से, दबे हुए स्वर निकले उसके!

अब तक दोनों के दिलों की धड़कनें बहुत बढ़ गई थीं।

“आई लव यू...” जय ने मीना के कान में बहुत धीरे से कहा।

“लव यू टू...” मीना ने भी उतने ही धीरे से उत्तर दिया, “आई ऍम सो लकी! ... ऍम आई सो लकी?”

“तुम्हारा मुझको नहीं पता मीना,” जय बोला, “लेकिन मैं तो लकी हूँ!”

“ओह जय... जय... मेरे जय!” कह कर मीना जय की मज़बूत बाज़ुओं के घेरे में समां गई।

वो आलिंगन इतना सुखदायक था जिसका शब्दों में बयान कर पाना कठिन है।

“वायदा करो कि तुम मुझसे अलग नहीं होगी!” जय बोला।

“मरते दम तक नहीं!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात... मेरे पूरे वज़ूद पर अब तुम्हारा हक़ है जय! बस तुम्हारा!” मीना भावनाओं के आवेश में बोलती जा रही थी, “... मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं किसी को इतनी बड़ी बात कह सकूँगी...”

उसको अपने आलिंगन में ही बाँधे हुए जय बड़े प्यार से उसको देखता है।

“ओह जय! ... काश मैंने वो सब बेवक़ूफ़ियाँ न करी होतीं!”

“मीना... जैसा कि मैंने पहले भी कहा है... उन बातों का हमारे आगे की लाइफ पर कोई असर नहीं होने वाला... सो नहीं होने वाला!” उसने मीना का माथा चूमा, “... भूल जाओ वो सब!”

“तुम साथ रहोगे... तो भूल जाऊँगी... सब कुछ!”

“पक्की बात?” कह कर जय ने मीना के दोनों गालों पर अपने दोनों हाथ रख कर हल्के से दबाया।

“हम्म उम्म...”

गाल दबाने से मीना के होंठ किसी चोंच की भाँति सामने की तरफ़ निकल आए। अगले ही पल जय ने मीना की चोंच को अपने मुँह में भर लिया, और दोनों ही एक बेहद प्रेममय फ्रेंच चुम्बन में लिप्त हो गए।

*
वाव वाव वाव
यह सबसे बढ़िया पार्ट था
मैंने पहले भी आपसे कहा था आपका सिग्नेचर स्टाइल की कहानी है
पर इस बार प्यार के पुर्व अपना अतीत के बारे बारे मीना का जय को बताना और जय का यह कहना की मीना बेस्ट डिजर्व करती है और जय बेस्ट है
यार मेरा दिल जीत लिया
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Update #18


आदित्य ने क्लेयर को बाहों में भर के चूमते हुए कहा, “जानेमन, क्या कहती हो? क्या लगता है तुमको... बात बन जाएगी इन दोनों की?”

“क्यों नहीं बन जाएगी? ... और बन जाएगी नहीं, बन गई है! आलरेडी... इस समय दोनों के मन में छोटे छोटे कंफ्यूशन्स हो सकते हैं, लेकिन फंडामेंटली सब ठीक है दोनों के बीच! तुमने देखा नहीं... कैसे देखते हैं दोनों एक दूसरे को? नज़र ही नहीं हटती दोनों की एक दूसरे से!” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“हाँ, वो तो है ही! मैंने भी नोटिस किया है। लेकिन फिर भी... मीना... वर्ल्डली-वाइज है, और अपना भाई... भोला!” आदित्य ने हँसते हुए कहा, “... और, दोनों की उम्र में भी तो अंतर है...”

“डिअर हस्बैंड, मैं भी तो आपसे बड़ी हूँ...”

आदित्य मुस्कुराया, “... एंड वाइसर आल्सो...”

क्लेयर ने आदित्य को चूमा, “दैट टू! और इन्ही ख़ूबियों ने आपको अपील किया था न? तो शायद यही सब बातें अपील हों, दोनों की एक दूसरे के लिए?”

“हो सकता है...” आदित्य ने कुछ समय सोचा, फिर बोला, “माँ को क्या कहेंगे? कैसे समझाएँगे?”

“तुम माँ की चिंता न करो... मैं समझा दूँगी! ... माँ अब पहले जैसी नहीं रहीं... नॉन-इण्डियन लड़कियों से उनको अब कोई परेशानी नहीं है!”

ऑल थैंक्स टू यू...”

“हा हा हा, मेरे जानू, इतना मस्का मारने की ज़रुरत नहीं है! ... माँ बहुत अच्छी हैं... गिव हर सम क्रेडिट!”

“आई लव यू!”

“आई लव यू टू...” क्लेयर ने आदित्य को बड़े प्यार से आलिंगन में भर कर उसके होंठों पर चूमा, फिर बोली, “बोलो न, क्या चल रहा है मन में?”

“ओह क्लेयर! तुमको कैसे समझ में आ जाता है कि मैं तुमसे कुछ छुपा रहा हूँ?”

“बीवी हूँ तुम्हारी! इतना भी नहीं समझूँगी? बोलो न?”

“यार... जय को पहली ही लड़की मिली, और उसी से मोहब्बत हो गई उसको... मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि इसमें कोई गलत बात है। लेकिन फिर भी... थोड़ा रुक जाए... थोड़ा सोच समझ ले...”

“सोच समझ कर भी प्यार होता है कहीं, सिंह साहब?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा, “सोच समझ कर होता है, बिज़नेस! प्यार नहीं! आई थिंक दे विल बी ग्रेट टुगेदर...”

“मुझे भी ऐसा ही लगता है। और, अगर ऐसा होता है, तो बहुत अच्छा है! ... अगली बार माँ से मिलूँगा तो उनको मीना के बारे में बताऊँगा... हो सका तो मिलवा भी दूँगा... आई होप शी लाइक्स हर...”

शी विल... मैं गारण्टी देती हूँ!”

“हा हा... आई लव यू सो मच मिसेज़ सिंह!”

ऑलवेज मिस्टर सिंह, ऑलवेज!” क्लेयर ने हँसते हुए कहा, और अपने पति को एक फ्रेंच किस देने लगी।

*

स्टडी में बैठे हुए क्लेयर ने मीना और जय को घर में प्रवेश करते हुए देखा। दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ था - इस तरह से जैसे कि यह दोनों के लिए बड़ी ‘आम बात’ हो। उसने कुछ देर इंतज़ार किया, जिससे मीना अपने कमरे में सेटल हो जाए, और अकेली हो। जब उसको यकीन हो गया कि अब मीना अपने कमरे में अकेली होगी, तो वो वहाँ गई और दरवाज़े पर दस्तख़त करी।

“आ जाईए,” मीना ने दरवाज़े पर हुई दस्तख़त सुन कर कहा।

दरवाज़ा खोल कर क्लेयर मुस्कुराती हुई कमरे के अंदर आई। उसने देखा कि मीना ने कपड़े बदल लिए थे, और शायद ‘अपने’ घर जाने की तैयारी में थी। क्लेयर ने फिलहाल इस बात को नज़रअंदाज़ किया।

“कहाँ तक पहुँची तुम दोनों की बात?” क्लेयर ने मुस्कुराते हुए मीना से पूछा।

उत्तर में मीना चेहरे पर शर्म की लाली फ़ैल गई, “ओह क्लेयर... आप भी न!”

“अरे, ऐसे शरमाओगी, तो कैसे चलेगा? ... बहन हूँ तुम्हारी!”

“बहन?” मीना को क्लेयर की बात अच्छे से समझ आ गई थी, लेकिन फिर भी जान कर अनजान बनी हुई थी।

“जय से शादी होगी जब तुम्हारी, तब तो हम दोनों बहनें ही बन जाएँगी न... ऑफिशियली?”

इस बात से मीना के चेहरे पर लज्जा की लालिमा दौड़ गई।

“बोलो न! शादी होगी न तुम दोनों की?” क्लेयर ने आगे कुरेदा।

“ओह क्लेयर... न जाने क्या बात है जय में कि उसको मैं मना ही नहीं कर पाती... यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि आई ऍम नॉट वैरी गुड फॉर हिम...”

“ऐसे क्यों कहती हो मीना?”

“और कैसे कहूँ क्लेयर? ... आप लोगों का प्यार पा कर मैं ओवरव्हेल्मड हूँ... जो लड़की इस घर में आएगी, वो बहुत ही लकी होगी...”

आई नो! ... जैसे कि मैं!”

“तुम बहुत अच्छी हो क्लेयर... बहुत ही अच्छी! मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ!”

“फिर कैसी हो?”

“तुमसे कम अच्छी...” मीना ने थोड़ा बुझे मन से कहा, और फिर जैसे बात सम्हालती हुई बोली, “और फिर... और फिर... मेरा और आप लोगों का सोशल स्टेटस भी तो इतना अलग है...”

क्लेयर ने मीना का हाथ पकड़ कर उसको कुर्सी पर बैठाते हुए कहा, “मीना, बैठो... क्या हो गया? बोलो न!”

ओह आई डोंट नो क्लेयर! ... जब इतनी सारी ख़ुशियाँ मिलने लगती हैं, तो अपनी ही किस्मत पर शक़ होने लगता है।”

“तुम जय को पसंद तो करती हो न?”

“बहुत... बहुत पसंद!” मीना ने धीरे से, दबी आवाज़ में कहा।

“फिर क्या दिक़्क़त है?”

“क्लेयर... ओह, हाउ शुड आई से दिस... आई ऍम नॉट अ वर्जिन...” मीना ने हिचकते हुए बताया, “एमबीए और उसके बाद मेरे रिलेशनशिप्स रह चुके हैं...”

“ये ऐसी कोई बात तो नहीं! ... यस, आई नो दैट जय इस अ वर्जिन... लेकिन, उसका कारण यह है कि ज्यादातर समय उसने इंडिया में बिताया है, और हायर स्टडीज़ के लिए यहाँ अमेरिका आया था। ... इसलिए बहुत मौका नहीं मिला उसको... नहीं तो यहाँ लड़के लड़कियाँ हाई-स्कूल में ही सेक्स कर लेते हैं! इसलिए वो सब मत सोचो... वो एक फिजिकल प्रोसेस है!”

“जय को भी उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता... बट व्हाट अबाउट द फैक्ट दैट आल माय रिलेशनशिप्स फेल्ड?”

“उनमें से कोई भी आदमी जय जैसा था? ... या जैसा तुमने जय के साथ महसूस किया, वैसा तुमने उनमें से किसी के भी साथ महसूस किया?”

“नहीं... न तो कोई जय जैसा था, और न ही किसी के साथ मैंने जय जैसा महसूस किया! ... वो सबसे अलग है! ... उसके जैसा मुझे कोई आज तक नहीं मिला...” मीना ने ऐसे कहा कि जैसे वो किसी अलग ही दुनिया में खो गई हो, “पहली नज़र में ही...”

वो बोलते बोलते हठात ही रुक गई! क्लेयर उसको बड़े ध्यान से देख रही थी और उसके होंठों पर मुस्कान थी।

“और अब भी तुम सोचती हो कि तुम और वो एक दूसरे के लिए नहीं बने?” क्लेयर ने मीना को समझाते हुए कहा, “मीना, तुमको वैसे नहीं सोचना चाहिए... तुम तो समझदार हो! प्यार बड़ी चीज़ होती है... अगर तुमको और जय को पहली ही नज़र में प्यार हो गया है, तो फिर इतना सोचना क्यों है?”

“क्या करूँ क्लेयर! ... जब हम इतना कुछ देख लेते हैं, तो फिर कभी कभी खुद से ही भरोसा उठ जाता है!”

“ओह मीना!” क्लेयर ने मीना का हाथ दबाते हुए कहा, “देखो, तुम हमको पसंद हो! मेरा मतलब है आदित्य को और मुझको! ऑब्वियस्ली, जय तुमसे बहुत मोहब्बत करता है... नहीं तो हम आज ऐसे साथ में न बैठे हुए होते।”

मीना ने कुछ नहीं कहा।

“प्यार पाने, और प्यार देने का चांस जब भी मिले, ले लो! उसको यूँ बहुत सोच कर करने में ऐसे ही मत चले जाने दो!” क्लेयर ने उसको समझाते हुए कहा, “... मैं तो बस इतना ही कहूँगी कि रिलेशनशिप के पौधे को भरोसे की ज़मीन में रोपना चाहिए और उसमें प्यार और रिस्पेक्ट का खाद पानी देना चाहिए! तभी वो पौधा तेजी से बढ़ता, और फलता फूलता है!”

मीना को क्लेयर की बात समझ में आ रही थी। अब जा कर उसका चित्त थोड़ा स्थिर हुआ था। जब आपको इतने सारे लोग बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं, तो आप में सुरक्षा की भावना तो आ ही जाती है। मीना स्वयं को इस तरह से अपनाए जाने से बहुत प्रभावित थी, और बहुत आभारी महसूस कर रही थी।

“क्लेयर...” उसने बड़े आभार से कहा, “थैंक यू...”

“नहीं मीना, इसमें थैंक यू वाली कोई बात ही नहीं है! ... बस, ख़ूब खुश रहो! खूब प्यार दो जय को, वो तुमको बहुत खुश रखेगा... बहुत प्यार करेगा! और... हम लोग तो हैं ही!”

मीना मुस्कुराई। इस बात पर उसका दिल लरज़ गया।

“ओह क्लेयर... आई ऍम सो हैप्पी!”

“गुड! अब बताओ, सुबह सुबह तैयार हो कर कहाँ जा रही थी?”

“घर... पहले ही बिन बुलाई मेहमान बन गई... अब जाना चाहिए...”

“अरे, अभी अभी तो तुम हमारी बनी थी, और अभी अभी तुम मेहमान बन गई!” क्लेयर ने हँसते हुए कहा, “मैं देखने सुनने में अमेरिकन हो सकती हूँ, लेकिन दिल से हिंदुस्तानी हूँ! ... इस घर में फॉर्मेलिटी नहीं चलती... सभी पूरी तरह से बिंदास रहते हैं!”

“लेकिन मैं फॉर्मल कहाँ हो रही हूँ?”

“हो तो रही हो! ... आई हो, तो वीकेंड बिता कर जाओ!”

“अरे, लेकिन काम...”

“काम का क्या है? वो तो होता ही रहेगा! ... आई हो, तो रहो अब कुछ समय!”

“लेकिन क्लेयर...”

“अच्छा, एक काम करते हैं! आज रात यहीं रुक जाओ। ... कल शाम को जय तुमको तुम्हारे घर छोड़ आएगा!”

“ओह...”

“अरे यार मीना! ऐसे न बनो! ... रहो न! वैसे आज का मौसम बहुत बढ़िया है! साथ में एक परिवार की तरह हमारे साथ समय बिताओ! एन्जॉय करो! कल चली जाना!”

“लेकिन मेरे पास पहनने को कपड़े नहीं हैं!”

“रियली? मैं किसलिए हूँ?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा!

*
अतीत ने जो भरोसा तोड़ा था उसे पुनर्जीवित किया जय ने और मजबुत कर दी क्लेयर ने l वाकई मन का प्रेम और देह का प्रेम में फर्क़ को कितनी खूबसूरती से क्लेयर और मीना की बातों के जरिए समझा दिया आपने
 
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Update #19


राजकुमार हर्ष की बातें और अपनी बेटी में उनकी रूचि की बात सुन कर गौरीशंकर जी का चैन, उनकी नींद... सब गायब हो गई थी। लड़की का बाप होना ऐसे ही बड़ा भारी काम है, और उस पर ऐसी लड़की का बाप होना, जो बिन माँ की हो! दो दो भूमिकाओं का निर्वहन अकेले करना! आसान नहीं होता! हर्ष की बातों को याद कर के उनके मन में उथल पुथल मचा हुआ था। न चाहते हुए भी इच्छाओं का ज्वार प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। वो एक व्यावहारिक व्यक्ति थे : अपनी सामर्थ्य से अधिक वो उछलना नहीं चाहते थे, अपनी चादर के अंदर ही अपने पाँव रखना चाहते थे। लेकिन जब इस तरह के सम्बन्ध सामने आते हैं, तो ऐसी व्यवहारिकता की बातें, कहीं दूर, किसी कोने में जा कर छुप जाती हैं। उनको अपनी दशा दशराज जैसी होती हुई महसूस हो रही थी - अपनी एकलौती संतान के लिए राजयोग की सम्भावना सोच कर ही वो रोमांचित हुए जा रहे थे।

(दशराज सत्यवती के पिता थे, और हस्तिनापुर के मछुवारों की बस्ती के मुखिया थे। सत्यवती या मत्स्यगंधा एक मछुवारी और नौकाटन करने का काम करती थी, और उस पर हस्तिनापुर के राजा शान्तनु का दिल आ गया था! बाद में वो हस्तिनापुर की पटरानी बनी।)

जब से हर्ष ने उनसे सुहासिनी का हाथ माँगा था, उसी क्षण से उनकी चाल में एक अलग ही तरह का उछाल आ गया था। वो अचानक ही युवा महसूस करने लगे थे - मूँछों में उनके अनायास ही एक ताव आ गया था। उनको लगता था कि कहीं न कहीं कोई दैवीय कृपा बन पड़ी है उन पर और उनकी संतान पर! क्या पता, सुहासिनी के जीवन में भी सत्यवती की भाँति ही ‘राजयोग’ लिखा हो! लेकिन यह सब फिलहाल स्वप्न की बातें थीं। राजकुमार और सुहासिनी सा सम्बन्ध तभी संभव था, जब महाराज की अनुमति मिल जाए! और उनके अंदर इतनी मजाल नहीं थी कि वो सीधे सीधे महाराजाधिराज से सुहासिनी के सम्बन्ध की बात कर सकते।

अगर महाराज से नहीं, तो किस से बात करी जाए? वो पिछले कुछ समय से इसी विषय में सोचते रहते। महारानी जी प्रजावत्सल अवश्य थीं, और गौरीशंकर जी पर उनकी कृपा भी बहुत थी, और बहुत संभव है कि कोमल हृदय वाली भी हों... लेकिन उनके व्यक्तित्व में कुछ ऐसी बात थी कि उनके सम्मुख आज तक आँखें उठा कर बात करने का साहस ही नहीं हुआ था गौरीशंकर जी का! महाराजाधिराज से भी वो यदा-कदा ठिठोली कर भी लेते थे, किन्तु महारानी के सम्मुख वो शील का पूरा पालन करते थे... हाथ जोड़े और शीश नवाए... यही परम्परा थी, और उनका साहस नहीं था कि इस परम्परा को तोड़ दें। और वैसे भी यह ज्ञात तथ्य है कि माताएँ अपने पुत्रों को ले कर होती भी बड़ी रक्षणशील हैं! ऐसे में महारानी जी अवश्य ही किसी राजकुमारी से ही राजकुमार का विवाह कराना चाहेंगी।

फिर किस से बात करें इस विषय पर?

युवरानी जी से?

युवरानी प्रियम्बदा अपने युवराज जी से आयु में बड़ी हैं, और युवराज जी उनका आदर भी करते हैं। यह बात सर्वज्ञात है। आदर के साथ साथ दोनों में प्रेम भी बहुत है। महाराज ने स्वयं युवरानी को अपने पुत्र के लिए पसंद किया था - उन्होंने उनमें कुछ ऐसी बातें देखी थीं जो अन्य लोग नहीं देख पाए! बहुत संभव है कि युवरानी प्रियम्बदा जी गौरीशंकर जी की समस्या का निदान दे सकें। और जहाँ तक उन्होंने देखा है, युवरानी जी राजकुमार को अपने पुत्र समान ही मानती हैं। यदि बड़ी माता (महारानी जी) से बात करने का साहस नहीं है, तो कोई बात नहीं - छोटी माता (युवरानी जी) से तो बात करी ही जा सकती है। और कुछ नहीं तो उनसे इस विषय में बात अवश्य की जा सकती है। यदि युवरानी जी के हाथों उनका तिरस्कार भी हुआ, तो कम से कम अपने समाज में उनका सर नहीं झुकेगा!

हाँ, यही ठीक रहेगा।


*


“काका,” प्रियम्बदा ने ख़ास बैठक में प्रवेश करते हुए, सामने खड़े हुए गौरीशंकर जी को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया, “प्रणाम!”

गौरीशंकर जी प्रियम्बदा के इस आदरपूर्ण सम्बोधन से अचकचा गए। शताब्दियों से राजपरिवार के सदस्य सामान्य-जन को प्रणाम नहीं करते, इनके पैर नहीं छूते। हाँ, देश स्वतंत्र हुआ था, लेकिन फिर भी, राजपरिवार के सदस्यों को ऐसी कोई आवश्यकता नहीं आन पड़ी थी।

उन्होंने आज हिम्मत कर के पहली बार राजपरिवार की किसी नारी को इतनी निकटता से आँख उठा कर देखा। सौम्य राजसी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं युवरानी जी! वो राजस्थान के राजपरिवार की युवरानी अवश्य थीं, लेकिन उनको अपनी तरफ़ की कलाकारी बहुत पसंद आती थी। आज भी प्रियम्बदा ने राजसी नीले रंग की खंडुआ रेशम की साड़ी पहनी हुई थी - साड़ी का बॉर्डर लाल रंग का था, और उस पर बीच बीच में हलके बैंगनी रंग के बड़े बड़े बूटे बने हुए थे। साड़ी का रंग चटक अवश्य था, लेकिन बहुत ही राजसी था! और एक सौभाग्यवती स्त्री के ऊपर बड़ा सुशोभित हो रहा था।

उन्होंने देखा कि वो युवरानी को देख रहे थे। अपनी हिमाकत पर वो सकपका गए। वो बेहद खेदजनक, किन्तु सम्मानपूर्ण स्वर में बोले,

“खम्मा घणी, युवरानी साहिबा! हुकुम... आप... आप...”

“अरे काका,” प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई बोली - उसके दोनों हाथ अभी भी प्रणाम की मुद्रा में ही जुड़े हुए थे, “बड़ों का आदर करना तो हम छोटों का कर्तव्य है! ... और वैसे भी, नाते में हम आपकी बहू हैं... यदि हम आपको प्रणाम नहीं करेंगीं, तब तो बड़ी धृष्टता हो जाएगी! ... और नुकसान भी!”

गौरीशंकर जी को समझ ही नहीं आया कि वो क्या उत्तर दें। उनके मुँह से अनायास ही निकल गया, “नुकसान युवरानी जी?”

“और आप हमको बेटी कह कर पुकारिए... क्योंकि हम आपकी बेटी समान ही तो हैं!” प्रियम्बदा ने उनको बैठने का संकेत करते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “... नुकसान ही तो हो गया हमारा... हमको अभी तक आशीर्वाद ही नहीं मिला!”

“अरे... ओह! क्षमा युवरानी जी...”

“बेटी!” प्रियम्बदा ने उनकी बात का संशोधन करते हुए कहा, “अभी अभी तो आपसे निवेदन किया था हमने... और आप हमसे क्षमा नहीं माँग सकते! हम अपने बड़ों को आदर के अतिरिक्त और क्या दे सकते हैं? आप बड़े हैं... आप आशीर्वाद दीजिए!”

“युवरानी जी... बेटी जी... अब हम आपको कैसे समझाएँ!” इतना सम्मान शायद ही कभी मिला हो एक सामान्यजन को! उनसे कुछ कहते ही न बन पड़ा।

“पहले बैठिए न! ... बैठ के समझा लीजिए काका...”

बहुत हिचकिचाते हुए गौरीशंकर जी प्रियम्बदा के सामने पड़ी आराम कुर्सी पर बैठे। उनके बैठने के बाद ही प्रियम्बदा दूसरी कुर्सी पर बैठी।

“कहिए... क्या सेवा करें हम आपकी?”

“युव... बेटी जी...” गौरीशंकर जी ने अपने हाथ जोड़ दिए, और बहुत हिचकिचाते हुए बोले, “एक धृष्टता करने आया हूँ आपके पास!”

“काका! ... हमने कहा न आपसे... आप हमसे बड़े हैं। आप आदेश दें! ... लेकिन वो सब बातें बाद में करेंगे...” प्रियम्बदा वाकपटुता से अनवरत बोलती जा रही थी, “पहले यह बताइए कि सुहासिनी कैसी है?”

युवरानी के मुँह से अपनी बेटी का नाम सुनते ही गौरीशंकर जी चौंक गए। उनको दो पल यकीन ही नहीं हुआ कि युवरानी जी को उनकी बेटी का नाम भी मालूम होगा। एक अज्ञात आशंका में उनका हृदय डूबने लगा। उन्होंने तत्क्षण ही हथियार डाल दिए - अब जो होगा, सो होगा!

“हम अकिंचनों के बारे में आपको ज्ञात है युवरानी... बेटी जी... हमारे लिए वही बड़े सम्मान की बात है...” उन्होंने थोड़ा संयत हो कर कहा।

“अरे काका, क्या हो गया! ... ऐसे क्यों कह रहे हैं आप? आप और आपकी बेटी कला के उपासक हैं! हम आपका बहुत सम्मान करते हैं!” प्रियम्बदा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, “कैसी है सुहासिनी?”

“बहुत अच्छी है वो... जब उसको पता चलेगा कि आपने उसका स्मरण किया है, तो वो प्रसन्नता से फूली न समाएगी!”

“हा हा!” प्रियम्बदा हँसती हुई बोली, “कभी अपने साथ ले आईए उसको यहाँ... मिलना चाहेंगे हम उससे... या हम ही किसी दिन आपके घर चलते हैं उससे मिलने!”

गौरीशंकर जी ने फिर से हाथ जोड़ दिए, “हुकुम, आपने इतना कह दिया, बहुत बड़ी बात हो गई!”

“काका... फिर वही! बेटी!” प्रियम्बदा ने बेटी शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा।

“क्षमा कीजिएगा... बेटी... आदत नहीं है न!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“सुहास... मैं उसको सुहास कह कर बुलाऊँ तो आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं होगा?”

“कैसी बातें कर रही हैं बेटी आप! ये तो बड़ा ही प्यारा नाम है...”

प्रियम्बदा मुस्कुराई, “सुहास नृत्य के अतिरिक्त और भी कुछ करती है? ... पढ़ाई लिखाई चल रही है उसकी?”

“जी... अगले साल स्कूल का इम्तिहान लिखेगी!”

“बढ़िया! ... बच्ची को अच्छी शिक्षा अवश्य दीजिएगा! पिताजी महाराज और राजमाता जी भी उच्च शिक्षा के बड़े हिमायती हैं... क्या लड़का क्या लड़की!”

“जी युव... बेटी... वो बात तो सर्वविदित है...”

गौरीशंकर जी अब बहुत नर्वस हो चुके थे। वो चाहते थे कि शीघ्र अतिशीघ्र जो कहने वो यहाँ आए थे, वो कह दें! फिर चाहे जो दंड उनको मिले, सब स्वीकार्य है।

वो कुछ कहने को हुए कि तीन परिचारिकाएँ आईं और तरह तरह के जलपान ला कर एक मेज़ पर सजा दीं।

“युवरानी,” मुख्य परिचारिका ने आदर से कहा, “जलपान की व्यवस्था कर दी गई है।”

“आईए काका,” कह कर प्रियम्बदा कुर्सी से उठने लगी।

वो पूरी तरह से उठ भी पाती कि गौरीशंकर जी सावधान हो कर अपनी कुर्सी से उठ गए।

“युवरानी जी, क्षमा करें! ... एक बात है, जो हम आपसे कह देने की इच्छा ले कर आए हैं!”

“हाँ ठीक है... किन्तु पहले जलपान तो कर लें?”

उनकी हिम्मत नहीं हुई कि परिचारिकाओं के सामने युवरानी जी के कथन का अनादर कर दें। जितना आदर उनको अब तक मिल गया था, वो उनकी हैसियत से कहीं अधिक था। अब वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहते थे जो युवरानी जी का जाने अनजाने में अनादर कर दे। वो चुपचाप उठ कर खाने की मेज़ पर लगी कुर्सी पर बैठ गए।

जब तक जलपान परोसा गया, तब तक वो शांत ही रहे। जलपान लगने के बाद प्रियम्बदा ने परिचारिकाओं को जाने का संकेत दिया। वो भी समझ रही थी कि गौरीशंकर जी अब क्लांत हो चले हैं। इसलिए वो ही पूछ पूछ कर उनको खिला रही थी। जलपान कुछ समय चला। लेकिन गौरीशंकर जी को उससे बल बहुत मिला।

“अब कहिए काका,” जलपान के उपरांत प्रियम्बदा ने पूछा।

“बेटी... हम आपके पास एक काम से आए थे।”

“काम? ... कहिए न काका!”

“हमको खेद है बेटी कि हमने आपको आशीर्वाद भी नहीं दिया,” गौरीशंकर जी ने हिम्मत कर के कहा, “किन्तु जिसके स्वयं के हाथ रिक्त हों, वो आपको क्या दे? ... और वैसे भी... वैसे भी... आज हम आपसे माँगने ही आये थे!”

“अरे काका! क्या हो गया? यूँ घुमा फ़िरा कर न कहिए!”

“बेटी,” गौरीशंकर जी ने दुनिया जहान की हिम्मत जुटाते हुए कहा, “हम... हम... हमको... हमको ज्ञात हुआ है... कि राजकुमार हर्षवर्द्धन... मेरी सुहासिनी... को पसंद करते हैं।” लेकिन आगे की बात करने में वो हकलाने लगे, “... तो... तो... तो... हम निवेदन करने आए थे... कि... कि... सुहासिनी को आप अपने चरणों में स्थान दे दीजिए...”


*
परंपरा और रूढ़िवादी समाज से आए गौरीशंकर को कितना मुस्किल हो रहा है यह साफ दिख रहा है l प्रियंवदा भी अपनी मर्यादा में रह कर गौरीशंकर को अनुरूप सम्मान दे रही है अंत में गौरीशंकर ने अपने मन से बोझ हल्का कर दिया
 
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Update #20


“यहाँ आने के बाद कभी इंडिया गई हो मीना?” बातें करते हुए अचानक ही जय ने पूछ लिया।

“नहीं... आई मीन, कई साल हो गए...” मीना ने न जाने क्यों थोड़ा हिचकिचाते हुए बताया, “जब तक बाबा थे, तब तक साल में एक बार तो इंडिया आना जाना हो जाता था, लेकिन उनके जाने के बाद...”

“ओह, आई ऍम सॉरी!” जय ने खेदपूर्वक कहा - वो मीना का दिल दुखाना नहीं चाहता था।

“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। और वैसे भी... तुमको मालूम ही कहाँ था इस बारे में!”

थोड़ी देर दोनों चुप रहे।

“मेरे साथ चलोगी?”

“कहाँ?” मीना को भली भाँति मालूम था कि कहाँ।

“इंडिया, और कहाँ?”

“अब कोई नहीं है वहाँ मेरा, जय! ... बाबा के बाद वहाँ से अब कोई नाता ही नहीं बचा।”

“इस बार कह दिया बस!” जय ने बुरा मानते हुए कहा, “अब आगे से न कहना कि तुम्हारा इंडिया में कोई नहीं है... हम हैं न! हमारा पूरा परिवार है...!”

मीना मुस्कुराई,

“मैंने ‘हाँ’ तो नहीं करी...” वो बुदबुदाते हुए बोली।

“नहीं करी?”

हाँ तो कब की कर चुकी थी मीना - लेकिन अपने जय के सामने वो नखरे दिखाना चाहती ज़रूर थी।

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो वो ‘आई लव यू’ क्यों बोल रही थी?”

“सच बोल रही थी!”

“फिर भी बोलती हो कि तुमने हाँ नहीं करी?”

“तुमने प्रोपोज़ कहाँ किया... तुमने भी तो बस आई लव यू कहा!”

“हाँ... प्रोपोज़ तो नहीं किया... कर दूँगा! आज ही!”

यह बात सुन कर मीना का दिल धड़क उठा।

‘इतनी बड़ी बात जय कितनी आसानी से कर लेता है... कितना साफ़ दिल है उसका! कितना अच्छा है उसका जय...’

द बेस्ट!” वो मुस्कुराती हुई जैसे अपने से ही बुदबुदाती हुई बोल पड़ी।

“क्या?” जय ने सुना और हल्के से मुस्कुराया।

“कुछ नहीं...” मीना नर्वस हो कर हँसी, और बोली, “ओह गॉड! देखो न... क्या कर दिया है तुमने मेरे साथ... अब मैं खुद ही से बातें करने लगी हूँ!” कहते हुए उसके चेहरे पर लज्जा की लालिमा फ़ैल गई।

जय के चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान आ गई, “अभी तो बहुत कुछ एक्सपीरियंस करता है तुमको मेरी जान...”

सवेरे की बातें मीना को याद हो आईं - सवेरे की बातें और चुम्बन भी! वो याद कर के उसके गाल शर्म से लाल हो गए।

“तुमको प्रोपोज़ भी कर दूँगा और तुमसे शादी भी कर लूँगा... ये तो अब फोर्मलिटीज़ हैं! तुम तो अब हमारी हो गई हो मीना...” जय कह रहा था।

“जबरदस्ती!” मीना ने जय को छेड़ने की गरज़ से कहा।

मीना ने जय को छेड़ा अवश्य, लेकिन आवाज़ में उसकी आनंद का पुट उपस्थित था। उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था कि कोई इस तरह से, अपनेपन से उस पर अपना हक़ जता रहा था। आखिर किसको अच्छा नहीं लगता? कौन नहीं चाहता कि उसको प्यार मिले?

“और नहीं तो क्या!” जय ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “तुमने ही तो कहा है कि तुम्हारे पूरे वज़ूद पर अब मेरा हक़ है! वो क्या बस कहने को कह रही थी?”

“हा हा! ... नहीं जय... मेरी कही हुई हर बात, हर शब्द सच है!”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना के चेहरे का भाव इतना समर्पण वाला था कि वो स्वयं को देख कर न पहचान पाती, “तुम अब मुझको न भी अपनाओ न जय... तो भी मैं खुद तो तुम्हारे सिवाय किसी का नहीं मान सकती... अपना भी नहीं!”

“ओह मीना मीना... आई लव यू सो मच!”

आई डोंट नो हाऊ मच आई लव यू... बट वेरी मच!”

जय मुस्कुराया, “माँ को बहुत अच्छा लगेगा तुमसे मिल कर...”

मीना का दिल धमक उठा, “माँ?”

“हाँ! माँ से तो मिलना ही होगा न!” जय ने बड़े आनंद से कहा, “... अपनी होने वाली बहू से मिलना चाहेंगी न वो भी...”

“ओह गॉड!”

“हा हा! अरे ऐसे न कहो! ... हमारी माँ बहुत अच्छी हैं... शी लव्स टू लव अस!”

“हा हा!”

“अरे हाँ, सच में! ... चाचा जी के जाने के बाद वो थोड़ा रिज़र्व ज़रूर हो गईं, लेकिन हम पर ढेरों प्यार लुटाती हैं! जानती हो? शहर में उनकी बहुत रिस्पेक्ट है!” जय ने बड़े घमण्ड से यह बात कही,

“... पहले वो बहुत सोशल वर्क करती थीं... एक्टीवली! ... लेकिन अब नहीं। थोड़ी ऐज भी हो गई है और थोड़ा चाचा जी के बाद वो रिज़र्व भी हो गई हैं... इसलिए अब वो अपने में ही थोड़ा सिमट गई हैं... वो अलग बात है कि अभी भी बड़े बड़े पॉलिटिशियन्स और इंडस्ट्रियलिस्ट्स उनके पास आते हैं... उनका आशीर्वाद लेते हैं!”

“नाइस...”

“अरे, तुमको इम्प्रेस करने के लिए नहीं बता रहा हूँ... बस इसलिए बता रहा हूँ कि माँ बहुत स्वीट हैं... जैसे वो भाभी को बहुत प्यार करती हैं, वैसे ही तुमको भी बहुत प्यार करेंगी...”

“तुम उनके फेवरिट हो या आदित्य?”

“मैं! ऑब्वियस्ली!”

मीना ध्यान से जय की बातें सुन रही थी, लेकिन इस बात पर उसको हँसी आ गई, “हा हा! आई ऍम श्योर दैट आई विल लव टू मीट माँ जी...”

अपनी माँ के लिए मीना के मुँह से ‘माँ जी’ वाला सम्बोधन सुन कर जय को बहुत भला लगा।

“बोलो फिर... कब ले चलूँ तुमको इण्डिया?”

“कभी भी...” मीना मुस्कुराई!

“कभी भी?”

“कभी भी! ... अगर तुम मुझको अपना मानते हो, तो फिर पूछते क्यों हो? ... अपना हक़ जताओ न!”

दैट्स लाइक माय गर्ल!” जय ने खुश होते हुए कहा।

“बट...”

“बट? अरे, अभी भी बट?” जय ने हँसते हुए कहा, “... बोलो?”

“एक बार और अच्छी तरह सोच लो जय... आई ऍम नॉट द बेस्ट गर्ल फॉर यू!”

जय कुछ कहने को हुआ, लेकिन मीना ने उसका हाथ पकड़ कर शांत रहने का इशारा किया, और बोली, “... जय, आई प्रॉमिस यू... तुम्हारी वाइफ बन कर मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानूँगी... तुम्हारे जैसा घर... कहाँ मिलते हैं तुम जैसे लोग! ... आदित्य... क्लेयर... तुम... सब लोग कितने अमेज़िंग हो! ... आई ऍम श्योर माँ जी तुम सबसे भी अधिक अमेज़िंग होंगी! ... तभी तो तुम सब ऐसे हो...”

जय मुस्कुराया। लेकिन वो बोला कुछ नहीं - वो समझ रहा था कि मीना की बात ख़तम नहीं हुई है।

“... आई विल आल्सो बी वैरी फॉर्चुनेट! ... और मैं यह वायदा भी करती हूँ कि जब मैं तुम्हारी होऊँगी, तब मैं... मेरा पूरा वज़ूद केवल तुम्हारा होगा! ... अभी भी है... सच में... तुमसे अलग कुछ सोच भी नहीं पाती... न जाने क्या जादू कर दिया है तुमने मुझ पर! ... बट मैं ये ज़रूर कहूँगी कि आई ऍम नॉट गुड... एनफ... फ़ॉर यू !”

“ऐसा क्यों कहती हो मीना?”

“अगर मैं इतनी ही अच्छी होती तो क्या मेरा कोई रिलेशनशिप टूटता?” मीना ने स्वयं को धिक्कारते हुए कहा, “मुझ में ही कोई कमी होगी न?” उसकी आँखों में आँसू आ गए थे, “इसलिए अब डर लगता है इन सब बातों से...”

“तो क्या... तो क्या तुमको मुझसे प्यार नहीं...”

“एक बार भी ये मत कहना जय...” मीना ने निराशा से सर हिलाते हुए कहा, “वर्ड्स कांट डिस्क्राइब हाऊ आई फ़ील अबाउट यू!”

“फ़िर?”

“इसीलिए तो डर लगता है... क्योंकि मुझे तुमसे बहुत प्यार है...”

“प्यार में डर का क्या काम?”

“... कि कहीं मैं तुमको अपनी किसी हरक़त से डिसअप्पॉइंट न कर दूँ...”

“नहीं करोगी! ... बस हम सब को मन से अपना लो! और कुछ नहीं!”

“ओह जय!” मीना की आँखों से आँसुओं की धाराएँ बह निकलीं।

“क्या हो गया मीना?” जय ने उसको अपने मज़बूत लेकिन प्रेममय आलिंगन में बाँध कर कहा, “क्या हो गया!”

“बहुत डर लग रहा है जय! ... कुछ है मेरे दिल में जो मुझको भी नहीं समझ में आ रहा है। ... डर लग रहा है कि कुछ अनिष्ट न हो जाए! ... कुछ अनर्थ न हो जाए!”

“कुछ नहीं होगा मीना! ... ऐसा अंट शंट मत सोचो!” जय ने उसका माथा चूमते हुए कहा, “... देखो... होगा यह कि हम दोनों शादी करेंगे... जल्दी ही... फिर हमारे बच्चे होंगे... जल्दी ही... और फिर हम दोनों बहुत बूढ़े हो कर, अपने नाती पोते देख कर मर जाएँगे! द एन्ड... समझी?”

उसकी बात सुन कर मीना रोते रोते भी हँसने मुस्कुराने लगी, “... धत्त... ये भी कोई कहानी है भला? ... इतनी बोरिंग! ... न कोई ट्विस्ट... न कोई सस्पेंस... न कोई थ्रिल...”

बट... बोरिंग इस गुड!” जय ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

मीना ने स्वयं को संयत करते, लेकिन फिर भी रोने के कारण हिचकियाँ खाते हुए कहा, “द बेस्ट...! द बेस्ट! आई लव यू जय... ओह हाऊ मच आई लव यू!”

दोनों एक बार फिर से एक दूसरे के चुम्बन में लीन हो गए।

*


“अहेम अहेम...” क्लेयर के गला खँखारने की आवाज़ सुन कर मीना और जय अपने चुम्बन और आलिंगन से अलग हुए।

“भाभी?”

“क्या लड़के! बीवी मिली, तो भाभी को भूल गया?” क्लेयर ने जय की टाँग खींची।

“हा हा... नहीं भाभी!” जय मीना से अलग होते हुए क्लेयर को अपनी बाहों में लेते हुए बोला, “मीना, मेरी भाभी मेरी भाभी नहीं, मेरी बड़ी बहन समान हैं... माँ समान हैं!”

“हाँ हाँ... मक्खन मत लगाओ! वैसे मीना जानती है यह बात!”

मीना अपनी आँखों के आँसुओं को पोंछती हुई मुस्कुराई।

“और हाँ, इनकी हर बात माननी पड़ेगी तुमको!” जय ने मिर्च लगाई।

“धत्त, मीना इस उल्लू की बात न सुनो! कुछ भी बकवास करता रहता है ये!” क्लेयर ने मीना का हाथ थामते हुए कहा, “तुम बहुत प्यारी हो... तुम्हारा जैसा मन करे... रहो, जैसा मन करे... जियो! ... बस, इस घर को... इस परिवार को जोड़ कर रखना।”

“इतने सुन्दर परिवार को मैं तोड़ने का सोच भी नहीं सकती क्लेयर!”

“भाभी, मीना को इंडिया गए कई साल हो गए हैं!” जय ने सहसा ही कहा।

“तो ले जाओ न उसको इंडिया? ... माँ से भी मिलवा लाना...”

“हाँ भाभी! ... अरे वाह! आपको कैसे पता चली मेरे मन की बात?”

“इतनी सुन्दर सी बीवी ढूंढी है तुमने... माँ को नहीं दिखाओगे?” क्लेयर ने हँसते हुए कहा।

“वाह भाभी, आपके चरण कहाँ हैं?”

“वहीं, जहाँ हमेशा होते हैं,” क्लेयर ने अपने पैरों की तरफ़ इशारा किया, तो जय ने क्लेयर के पैर पकड़ लिए।

“जय हो मेरी भाभी की, जय हो!”

“हा हा! चल, बहुत हो गया तेरा नाटक! ... अच्छा, एक बात बताओ, आज घर में ही ऐसे टाइम वेस्ट करना है, या कुछ मज़ेदार करने का भी प्लान है? ... मैंने ज़िद कर के मीना को रोक तो लिया है, लेकिन उसको एंटरटेन करने का जिम्मा तुम्हारा है! ... समझे? जल्दी से कोई बढ़िया, मज़ेदार प्लान बनाओ, नहीं तो दिन बीत जाएगा!”

“जो आज्ञा भाभी!” जय ने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ लिए।

उसकी इस हरकत से मीना और क्लेयर खिलखिला कर हँस दीं।

*
पता नहीं मन्ने क्यूँ लागे
इंडीया में ट्विस्ट और टर्न होणे वाले से
 
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Update #21


संध्या का समय था।

महाराज घनश्याम सिंह, राजमहल की एक छोटी बैठक में बैठे हुए रामचरितमानस का पाठ कर रहे थे। इस अवसर पर अक्सर ही उनके साथ युवरानी प्रियम्बदा भी आ कर बैठ जाती थीं। फिर दोनों ही बारी बारी से किसी न किसी ग्रन्थ का पाठ करते, और किसी सम्बंधित विषय पर चर्चा करते। लेकिन आज प्रियम्बदा के मन में एक अलग बात थी, और वो महाराज से उस सम्बन्ध में बात करना चाहती थीं।

“प्रणाम पिता जी महाराज!”

“अरे प्रिया... आओ बेटा, आओ!” महाराज घनश्याम सिंह ने बड़े प्रेम से अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया, “सौभाग्यवती भव, यशस्वी भव... और तू मुझे महाराज वहाराज मत बोला कर...! तू तो मेरी प्यारी बेटी है!”

प्रियम्बदा मुस्कुराती हुई अपने ससुर के बगल आ कर बैठ गई।

“जी पिता जी...”

“हाँ,” उन्होंने संतुष्ट होते हुए कहा, “अब ठीक है! ... हमेशा याद रखना, तुम बेटी हो... बहू नहीं! तुम हमारी प्यारी हो...”

“आपको अपने पिता जी से कम भी तो नहीं माना हमने कभी,” प्रियम्बदा ने कहा, “इतना प्रेम मिला है हमको कि हम तो मायका भी भूल गए!”

“हा हा... यह बात राजा साहब को न बोल देना कभी!” घनश्याम जी ने ठठाकर हँसते हुए कहा, “बुरा मान जाएँगे!”

प्रियम्बदा भी अपने ससुर के साथ ही हँसी में शामिल हो गई।

दोनों ने थोड़ी देर तक ग्रन्थ का पाठ किया। प्रियम्बदा को अवधी का बहुत कम ज्ञान था, लिहाज़ा अधिकतर समय उसके ससुर ही पढ़ रहे थे, और अपनी समझ से बता भी रहे थे।

“पिता जी,” प्रियम्बदा से कुछ देर बाद रहा नहीं गया।

“हाँ बेटा... बोलो! कोई बात है?”

“जी...”

“अरे तो बोल न!”

“समझ नहीं आता कि हम कैसे कहें...”

“अरे बच्ची...” जब घनश्याम जी को अपनी बहू पर बहुत लाड आता था, तो वो उसको ‘बच्ची’ कह कर पुकारते थे, “इतना क्या हिचकना? वो भी हमसे! ... घर में सब जानते हैं कि तेरे सौ ख़ून माफ़ हैं! बोल न?”

“जी, वो हम सोच रहे थे कि... कि आपकी छोटी बेटी भी घर ले आते...”

“छोटी बेटी? मतलब...?” घनश्याम जी थोड़ी देर के लिए भ्रमित हो गए, फिर अचानक ही समझते हुए बोले, “ओह... ओह! अच्छा, हर्ष के लिए पत्नी?”

“जी पिता जी!”

“हा हा! अरे भाई, ये तो बड़ी जल्दी हो जाएगा!”

“कहाँ! हर्ष भी तो युवा हो गया है...” प्रियम्बदा ने कहा, “ठीक है... संभव है कि विवाह के लिए वो अभी भी कुछ समय लें, किन्तु, और कुछ नहीं तो उनकी मंगनी तो की ही जा सकती है!”

“हा हा! माफ़ करना बेटा... उसको हम बड़ा जैसा देख ही नहीं पाते!” घनश्याम जी आज बढ़िया मनोदशा में थे, “वो अभी भी हमको छोटा बालक ही लगता है! किन्तु तुम... कोई है तुम्हारी दृष्टि में?”

“जी है तो सही!”

“अच्छा? कौन है?”

“अपने राजकुमार को भी पसंद है!”

“अरे! वो इतना बड़ा हो गया कि प्रेम करने लगा है!”

“हा हा! पिता जी! ... प्रेम जैसी बातें, उसकी भावनाएँ उम्र की मोहताज नहीं होतीं!”

“अच्छी बात कही तूने बच्ची! अच्छा बता, कौन है वो सौभाग्यवती, जो हमारे कुमार को पसंद आई है?”

“सुहासिनी...”

“बड़ा प्यारा नाम है!”

“जी...”

“कौन है ये बच्ची? किसी पुत्री है?”

“बस यही एक समस्या है पिता जी...”

“क्या हो गया?”

“वो एक छोटे कुल से है...”

प्रियम्बदा ने हिचकते हुए कहा। उसकी बात सुन कर घनश्याम जी चुप हो गए और बहुत देर तक सोचते रहे। उनको ऐसे चुप देख कर प्रियम्बदा की धड़कनें बढ़ गईं - कहीं उसने कुछ अनर्थ तो नहीं कह दिया।

“पिता जी...” उसने बड़ी हिम्मत कर के कहा, “जानती हूँ कि हमने अपने स्थान से कहीं आगे बढ़ कर ये बात आपसे कह दी है... किन्तु... कुमार भी उसको पसंद करते हैं... इसलिए हमने सोचा कि...”

घनश्याम जी ने उसको कुछ देर यूँ ही देखा - देख तो वो उसकी तरफ़ रहे थे, लेकिन ऐसा लग रहा था कि वो शून्य को निहार रहे हों।

“जानती हो बच्ची,” उन्होंने कहना शुरू किया।

अपने लिए यह शब्द सुन कर प्रियम्बदा की जान में जान आई।

“... हम एक श्रापित कुल हैं... इतना नीच अतीत है हमारा कि हमारी कई कई पीढ़ियाँ उस पाप को धोते धोते निकल गईं! ... हमारे वंश में बच्चियाँ जन्म लेना ही बंद हो गई हैं! इसलिए बाहर से लाई जाती हैं... हमको अन्य लोग अभी भी अपनी कन्याएँ दान देते हैं, वो हमारा सौभाग्य है! इसलिए जब तूने कहा कि छोटे कुल से है वो बच्ची, तो समझ नहीं आया कि आख़िर छोटा कौन है!”

प्रियम्बदा अवाक् हो कर अपने ससुर की बातें सुन रही थी।

“हमारी धन सम्पदा के लोभ में आ कर संभव है कि कोई पिता अपनी पुत्री को हमारे किसी पुत्र से ब्याह दे... अभी तक ऐसा हुआ नहीं - किन्तु संभव है। किन्तु सत्य तो यह है कि उस श्राप के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी कन्या को हमारे किसी पुत्र के साथ प्रेम हुआ है... कम से कम हमारे संज्ञान में तो यह पहली बार हुआ है!”

कह कर घनश्याम जी चुप हो गए।

प्रियम्बदा भी साँसें रोके जैसे किसी फ़ैसले की उम्मीद में बैठी रही - कि पिता जी अब कुछ कहेंगे, तब कुछ कहेंगे!

आख़िरकार घनश्याम जी ने चुप्पी तोड़ी, “... तो हमको न जाने क्यों लग रहा है कि यह बच्ची हमारे वंश पर लगे हुए श्राप को मिटा सकती है!”

“पिता जी?”

“हाँ बच्ची... हमको तुम्हारी बात का बुरा नहीं लगा! ... हमको अच्छा लगा कि राजपरिवार में कोई है जो हमको पिता जैसा मानता है... राजा जैसा नहीं! तूने अपने मन की बात कह कर बड़ा अच्छा किया!”

“ओह पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा अपने ससुर के चरणों से जा लगी।

“न बेटा... तू देवी माँ का आशीर्वाद है! ... जब हमने तुझे पहली बार देखा था, तब ही लग गया था कि तू इस परिवार के लिए सबसे उचित है! ... तेरे कारण आज इस परिवार को इतने आदर से देखा जाता है। तेरे आने से पहले कोई अन्य राजपरिवार हमको अपनी कन्या ही नहीं देना चाहता था! किन्तु अब... अब पुनः सभी चाहते हैं कि कुमार का सम्बन्ध उनके परिवार से हो! ... यह परिवर्तन तेरे कारण ही आया है! तू गौरव है हमारा!”

“पिता जी, आपने यह सब कह कर हमको बड़ा मान दिया है! ... किन्तु हमको अपनी बेटी ही रहने दीजिए! ... आपकी छत्रछाया में हम बच्चे फलें फूलें... बस यही चाहिए हमको!”

“बेटी ही तो है तू हमारी!” घनश्याम जी की आँखों में आँसू आ गए थे, जो उन्होंने जल्दी से पोंछे और बोले, “... अच्छा, तो अब हमारी दूसरी बेटी के बारे में कुछ बता! सुहासिनी... कितना सुन्दर नाम है! वो कन्या क्या अपने नाम के जैसी ही है?”

“पिता जी, उसको देखा तो हमने भी नहीं... लेकिन हाँ, कुमार उसके बारे में अधिक अच्छे से बता पाएँगे!” प्रियम्बदा ने ठिठोली करते हुए कहा।

“... अच्छा! तो क्या तुझे उसके बारे में कुछ नहीं पता?”

“जी वो अपने गौरीशंकर जी की पुत्री है...”

“क्या! ओह... अच्छा! ... अरे बेटा, वो कोई छोटे कुल के नहीं हैं। ... वो हमारे जैसे संपन्न नहीं हैं, लेकिन उनका कुल ऊँचा है हमसे!”

“ओह, क्षमा करें पिता जी! हमको पता नहीं था!”

“कोई बात नहीं! ... उनका परिवार सदा से माँ सरस्वती का पुजारी रहा है! माँ की कृपा है उनके वंश पर! जैसे हम निर्गुण हैं, किन्तु माँ लक्ष्मी की कृपा हम पर है, वैसे ही... कहते हैं न, ये दोनों माताएँ साथ नहीं रह पातीं! संभवतः इसी कारण वो संपन्न नहीं हैं!”

प्रियम्बदा मुस्कुराई।

“ऐसे परिवार की कन्या अगर हमारे परिवार में आएगी, तो हमारे तो भाग्य खुल जाएँगे!”

उनकी बात पर प्रियम्बदा प्रसन्न हो कर मुस्कुरा दी।

“तो फिर पिता जी... हम कुमार को ये बात बता दें?”

“नहीं... नहीं! ... अभी यह बात स्वयं तक सीमित रख... हम महारानी से बात करते हैं! ... वैसे भी हमारे राजपरिवार में इस माह में शुभ कार्य नहीं किए जाते!”

“जी... यह बात हमको भी मालूम है! किन्तु क्यों? ... कारण किसी ने नहीं बताया आज तक...

“वो इसलिए, क्योंकि हमारे उस नीच पूर्वज ने इसी माह में वो कुकर्म किया था, जिसका प्रायश्चित हम सब आज तक करते आ रहे हैं!” घनश्याम जी के चेहरे पर तनाव स्पष्ट था, “इसलिए उसके एक पक्ष पहले और एक पक्ष बाद इस कुल का मुखिया ईश्वर से क्षमा याचना करता है! यह अशुभ समय है पूरे परिवार के लिए... इसलिए इस समय में परिवार में कोई भी... कैसा भी शुभ काम नहीं करता!”

“जी...”

“... अतः प्रयास कर के अपनी प्रसन्नता पर नियंत्रण रखना... हम महारानी से इस बारे में बात करेंगे!” घनश्याम जी ने प्रसन्न हो कर कहा।

फिर कुछ याद करते हुए, “तनिक एक बात बता बच्ची... हमको याद तो आ रहा है... इस बिटिया को हमने देखा है न... पहले भी?”

“जी... अवश्य देखा है! किन्तु ध्यान में नहीं होगा! ... वो गौरीशंकर जी के साथ आई थी... कुमार के जन्मदिवस पर आयोजित उत्सव में!”

“हाँ... सत्य है! चेहरा उसका स्मरण तो हमको भी नहीं है। ... किन्तु हमको स्मरण है कि हम उससे मिले अवश्य हैं!”

“जी पिता जी!”

“अच्छी बात है! ... तू निश्चिन्त रह! यदि कुमार को सुहासिनी बिटिया पसंद है, तो हम उन दोनों के विवाह को प्रशस्त करेंगे। ... हम अन्य पिता जैसे नहीं हैं, जो निरर्थक बातों पर अपने बच्चों की प्रसन्नता न्योछावर कर दें! ... किन्तु कुछ समय रुक जा! ... थोड़ी व्यस्तता भी है। चीन के साथ तनाव चल रहा है, उसके लिए पण्डित नेहरू से भी मिलने जाना है दिल्ली। ... तब तक ये श्रापित माह भी समाप्त हो जाएगा! ... फिर करेंगे हम धूमधाम से अपने बच्चों का विवाह!”

“किन्तु दोनों की उम्र पिता जी?”

“जब बिटिया हमारी है, तो रहेगी भी हमारे ही पास... हमको नहीं लगता कि गौरी शंकर जी इस बात के लिए हमको मना कर सकेंगे!”

“जो आज्ञा पिता जी!” कह कर प्रियम्बदा ने घनश्याम जी को प्रणाम किया, और उनके सामने नत हो गई।

लेकिन यह काम उसने होंठों पर आ गई प्रसन्न मुस्कान को छुपाने के लिए किया था।

*


Riky007 Sanju@ SANJU ( V. R. ) parkas TheBlackBlood kamdev99008 Ajju Landwalia Umakant007 Thakur kas1709 park dhparikh
श्राप
लगता है कहानी में कोई मोड़ आने वाला है
क्यूँकी कोई भी कहानी या जीवन इतनी सरल तो हो ही नहीं सकती l तूफान भी तभी आती है जब बागों में बहार छाई होती है
 
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Update #22


आज ईआईटी के मुख्य प्रेजेंटेशन हॉल में ईस्ट कंसल्टिंग ग्रुप का अंतिम प्रेजेंटेशन था। जेसन अपनी पूरी टीम, जिसमें मीना एक अग्रणी सदस्या थी, के साथ पूरी तैयारी के साथ आया हुआ था। प्रेजेंटेशन करीब दो घण्टे तक चला - अधिकतर समय मीना ने ही लिया। आदित्य और जय के लिए ऐसा कुछ भी नहीं था जो नया हो - मीना ने पहले ही सब कुछ बता दिया था। ... वो तो ‘घर की’ ही हो गई थी, लिहाज़ा, एक अलग ही अधिकार बोध के साथ वो प्रेजेंटेशन दे रही थी। उसके अंदर यह परिवर्तन जेसन और टीम के अन्य सदस्यों ने भी महसूस किया - अन्य क्लाइंट्स के साथ वो प्रोफ़ेशनल अंदाज़ में प्रेजेंटेशन देती थी, लेकिन यहाँ ऐसा लग रहा था कि जैसे वो आदित्य और जय को अच्छे से जानती हो!

‘बढ़िया!’ उसने सोचा - मतलब आगे भी बिज़नेस मिलते रहने का चांस है।

प्रश्नोत्तर करने का ठेका ईआईटी के बाकी टीम लीडर्स और डायरेक्टर्स ने उठाया, क्योंकि न तो आदित्य और न ही जय कोई प्रश्न पूछ रहे थे। उनको पहले से ही सारे मीना के तार्किक उत्तर इतने अकाट्य थे, कि जो भी चौधरी बनने की कोशिश करता, वो अपना सा मुँह ले कर रह जाता। उसने कई सारी अनुशंसाएँ दीं थीं, जिसमें एक दो बिज़नेस लाइन्स को बंद करने का भी प्राविधान था। अगर आदित्य वो बात मान लेता, तो कई लोगों की नौकरी चली जानी थी। उसके कारण भी कुछ लोग दुःखी थे। लेकिन इतना तो दिख रहा था कि अगर मीना की अनुशंसाएँ मानी गईं, तो अगले पाँच सालों में ईआईटी का वित्तीय कायाकल्प हो जाता।

यह एक अच्छी बात थी!

आदित्य मन ही मन खुश हो रहा था कि एक तरह से मीना ‘अपनी’ कंपनी की भलाई की बातें कर रही थी। प्रोजेक्ट तो ख़तम हो गया था, लिहाज़ा, यूँ रोज़ ऐसे मिलना अब मीना और जय के लिए कितना संभव था, यह देखने वाली बात थी। यही बात जय के दिमाग में बार बार चल रही थी। बिछोह आखिर किसको अच्छा लगता है? प्रेमियों को तो कत्तई नहीं... और इस कारण से उसका ध्यान प्रेजेंटेशन पर नहीं था। लेकिन आदित्य को उसका प्रेजेंटेशन बहुत पसंद आया, और प्रेजेंटेशन ख़तम होने के बाद उसने जेसन और मीना को उनके काम के लिए धन्यवाद किया, और लंच पर ले चलने की पेशकश करी।

लंच के लिए सभी कंसल्टेंट्स और ईआईटी के कुछ डायरेक्टर्स को ले कर आदित्य और जय एक बढ़िया होटल में गए। मीना के साथ उन दोनों को इतना अपनापन हो गया था कि अब वो दोनों उसको प्रोफ़ेशनल रुप में नहीं देख पा रहे थे।

‘मीना एक प्रोफ़ेशनल वुमन है...’ इस बात का बोध वापस आते ही आदित्य को चिंता होने लगी।

थोड़ा एकांत पा कर आदित्य ने जेसन से पूछा,

“जेसन, आपकी कंपनी में क्लाइंट्स से... डेट करने को ले कर कोई पाबंदी तो नहीं है?”

“जी?” जेसन ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा, “नहीं! नहीं तो! क्यों? क्या हो गया? आपने ये क्यों पूछा?”

“आप सभी को देर सवेर पता तो चल ही जाएगा - इसलिए अच्छा यही है कि मुझसे आपको पता चले,” आदित्य ने पूरी गंभीरता से कहना शुरू किया, “मेरा भाई... जय, और मीनाक्षी, दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे हैं... और हमको भी मीनाक्षी बहुत पसंद है। तो बहुत जल्दी ही ये रिलेशनशिप मैरिज में भी बदल जाएगा... लेकिन मैं नहीं चाहता कि क्लाइंट के साथ मोहब्बत करने, और उससे शादी करने के कारण मीना के कैरियर पर कोई आँच आए!”

“ओह... नहीं नहीं! ऐसा कुछ नहीं है... ऐसा कुछ न सोचिए! हमारे यहाँ ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है... मेरा मतलब, फिलहाल तो नहीं है!” जेसन बोला, फिर थोड़ा ठहर कर बोला, “... वैसे, हमको भी लग रहा था कि जय और मीना एक दूसरे की तरफ़ अट्रक्टेड हैं, लेकिन बात इतनी आगे बढ़ गई है, उसका अंदाज़ा नहीं था।” जेसन हँसते हुए बोला, “वैसे भी दोनों एडल्ट्स हैं, और इसलिए उनके अफेयर पर किसी को कोई ऑब्जेक्शन होना तो नहीं चाहिए... और अगर है भी, तो आई प्रॉमिस यू, मीना पर कोई आँच नहीं आने दूँगा।”

आदित्य ने समझते हुए सर हिलाया।

जेसन बोला, “मीना बहुत अच्छी लड़की है। टीम में लोग उसको पसंद करते हैं... कंपनी में एक दो उसको चाहते भी हैं, क्योंकि वो है ही बहुत लाइकेबल! एक तरह से वो मेरी प्रॉटेजी भी है... मैंने ही उसको रिक्रूट किया था। कंपनी ग्रो कर रही है, और उसमें उसका फ़्यूचर भी है! इसलिए आप निश्चिन्त रहें! उसके ऊपर... उसके कैरियर पर कोई आँच नहीं आएगी!”

“बढ़िया! बढ़िया! थैंक यू जेसन!”

यू आर मोस्ट वेलकम, आदित्य!” जेसन में मुस्कुराते हुए कहा।

लंच बड़े आनंद से बीता।

जाते जाते जय ने मीना के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए पूछा, “... आज शाम मिलोगी?”

अचानक ही मीना के मन में प्रोफेशनल माहौल बदल कर रोमांटिक हो गया।

“जय,” उसने शर्माते हुए कहा, “... सब देख रहे हैं!”

“तो क्या?”

“हाँ बाबा... मिलूँगी! ... आज तुम घर आओ! ठीक है?”

“पक्की बात?”

“पक्की बात!” मीना मुस्कुराई।

शाम को मिलने का वायदा पा कर जय वैसे ही संतुष्ट हो गया था, लिहाज़ा बाकी का दिन आराम से बीत गया।


*


“जय,” शाम को घर निकलते समय आदित्य ने जय से पूछा, “... मैं तुमको ड्राप कर दूँ? ... मीना के यहाँ?”

“नहीं भैया... मैं चला जाऊँगा! टैक्सी या पब्लिक ट्रांसपोर्ट ले कर...”

आई इंसिस्ट...” आदित्य ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, “वैसे भी तुमसे एक बात कहनी है...”

“क्या भैया?”

“रास्ते में बताता हूँ न...”

“ओ...के...” जय ने न समझते हुए कहा, “सब ठीक तो है न भैया?”

“अरे सब ठीक है...”

“ठीक है भैया!”

गाड़ी आदित्य ही चला रहा था।

“हाँ भैया... क्या कहना चाहते हैं, आप?”

“जय... बेटा... देख - तू मेरा छोटा भाई ही नहीं, बल्कि बेटे जैसा भी है! ... हाँ, हमारी उम्र में बहुत अंतर नहीं है, लेकिन फिर भी, तुझे मैं बहुत प्यार करता हूँ!”

“हाँ भैया! ... इस बात से मैंने कब इंकार किया?”

“तो तू यह भी समझता है कि अगर मैं कुछ कहूँगा, तो तेरी भलाई के लिए ही...”

“हाँ भैया! पर हुआ क्या है?”

“देख बेटा... मीना बहुत अच्छी है! क्लेयर किसी को ऐसे ही नहीं पसंद करती - और मुझे उसकी पसंद पर भरोसा है...”

जय मुस्कुराया।

“तो... आई ऍम हैप्पी कि तुम दोनों एक दूसरे को पसंद हो!” आदित्य बोला, “... लेकिन आगे कुछ भी करने से पहले सोच लेना...”

“मतलब भैया? मैं कुछ समझा नहीं!”

“तुम दोनों का प्यार बहुत तेजी से परवान चढ़ा है... जाहिर सी बात है कि तुम दोनों की मोहब्बत में एक तरह का... हाऊ टू से दैट... एक तरह का जोश भी है... तो... मेरा मतलब... तुम दोनों के बीच... यू नो... इंटरकोर्स होने का भी बहुत चाँस है!”

“भैया!” जय ने झेंपते हुए कहा।

“भैया नहीं! ... मेरी बात थोड़ा सीरियसली सोचो... कॉल मी ओल्ड फैशन्ड... मेरे लिए यह दो लोगों के बीच एक प्रॉमिस है... कि दोनों उम्र भर एक दूसरे का साथ निभाएँगे... एक दूसरे के साथ संसार बनाएँगे!”

जय शांत हो कर सुन रहा था।

“तो तुम दोनों जब तक सर्टेन न हो, तब तक कुछ न करना। ... बस इतना ही कहना था मुझे।”

“ओह भैया!”

आई ऍम सॉरी अगर मैंने तुमको एम्बैरस किया हो...”

“नहीं भैया... आप ऐसा कुछ कर ही नहीं सकते! ... थैंक यू!”

आदित्य मुस्कुराया, “एन्जॉय यू टू... तुम दोनों बहुत सुन्दर लगते हो साथ में! क्यूट कपल!”

“लव यू भैया!”

लव यू टू माय लिटिल ब्रदर!”


*


“जय!” दरवाज़ा खोलते हुए मीना ने मुस्कुराते हुए कहा।

माय लव!” आदित्य ने भी बड़े रोमांटिक अंदाज़ में कहा।

अपने लिए ‘माय लव’ शब्द सुन कर मीना का दिल धमक ज़रूर गया, लेकिन उसने जय के ऊपर यह बात ज़ाहिर होने नहीं दी। वो बोली,

“आदित्य आया था?”

“हाँ! ... लेकिन केवल मुझे यहाँ छोड़ने!”

“अरे, क्यों! बिना मुझसे मिले क्यों चला गया?”

“अरे यार! पहली बार तुम्हारे घर आया हूँ... कॉफ़ी वोफ़ी पिलाओ! भैया से कल मिल लेना!”

“हा हा! ओके साहब जी!” मीना ने जय को अंदर आने का इशारा किया और दरवाज़ा बंद करते हुए बोली, “पिलाती हूँ... लेकिन कॉफ़ी पियोगे, या चाय? आई मेक वैरी टेस्टी चाय! ... अदरक इलाइची वाली!” उसने आँखें नचाते हुए पूछा।

“अब तुम इतना कह रही हो, तो ठीक है... चाय इट इस...”

“आओ बैठो,”

“बैठ जाएँगे मेरी जान...” जय ने मीना को उसकी कमर से पकड़ते हुए कहा, “लेकिन पहले अपना अधर-रस पान तो करने दो...”

“हैं? क्या करने दो?” मीना ने न समझते हुए कहा।

“मेरा मतलब किस...” जय उसके बहुत क़रीब आते हुए बोला, “पूरा दिन निकल गया, लेकिन एक भी किस नहीं मिली!”

“हा हा... ओह गॉड! कभी कभी कितनी टफ भाषा यूज़ करते हो... फिर से बताओ?” मीना बड़े प्यार से जय की बाहों में आती हुई बोली।

जय ने उसको आलिंगन में भरते हुए उसके होंठों को चूमा, और बोला, “अधर... मतलब लिप्स...”

“हम्म्म,” मीना आँखें बंद करती हुई, उस चुम्बन का आनंद लेती हुई, मुस्कुरा दी।

“रस... मतलब नेक्टर...”

जय ने फिर से मीना के होंठों को चूमा।

“और पान मतलब...”

“ओह आई नो... पान मतलब बीटल लीफ... वो क्या कहते हैं? हाँ, पान की गिलौरी? राइट?”

“हा हा हा, ऑलमोस्ट ऑलमोस्ट...” जय ने फिर से उसको चूमा, “लेकिन यहाँ पान का मतलब है... टू ड्रिंक...”

“ओओहहह...” मीना ने चुम्बनों के बीच में समझते हुए कहा, “अब समझी... एंड दैट्स व्हाई इट मीन्स अ किस...”

इनडीड माय लव...”

मीना जय की जाँघों पर, जाँघों के इधर उधर पैर रख कर बैठ गई थी, और पूरे जोश से चुम्बन में जय का साथ दे रही थी। जो एहसास उस समय जय को हुआ, वो उसको पहले कभी भी नहीं हुआ था। मतलब ऐसा नहीं है कि उसका लिंगोत्थान कभी हुआ ही नहीं - हमेशा होता, हर दिन/रात होता, और कई कई बार होता! लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि मीना का भार उसकी जाँघों और श्रोणि पर होने के बावज़ूद उसको बेहद कठोर लिंगोत्थान हो रहा था! बेहद कठोर! ऐसा हो ही नहीं सकता कि मीना को पता न चला हो।

लेकिन दोनों चुप थे, लेकिन फिर भी कमरे में शोर हो रहा था। शोर था दोनों के चुम्बन का! पहले भी दोनों ने एक दूसरे को चूमा था - लेकिन आज चुम्बन में दोनों को एक अलग ही रस आ रहा था। दोनों का चुम्बन कभी निमित्तक बन जाता, तो कभी घट्टितक! मीना कभी कोमलता से जय के होंठों पर अपने होंठ रख देती कि वो अपनी मनमानी कर सके, तो कभी उसके होंठों को अपने होंठों में ले कर चूमती!

जय का कठोर होता हुआ लिंग अब अपने कठोरतम स्तर पर था। उसको महसूस कर के मीना की साँसें अस्थिर हो रही थीं। जय को ले कर अपने मन में होने वाली ऊष्णता का ज्ञान था उसको, लेकिन अब उसको जय की भी हालत का पता चल गया था। वो भी उसके लिए उतना ही उद्धत था! ठीक है कि उसको सेक्स को ले कर जय से कहीं अधिक अनुभव था, लेकिन जय के साथ अंतरंग होने, उसके साथ सेक्स करने की भावना ने उसको अभिभूत कर दिया। जब सम्भोग की भावना में शुद्ध प्रेम की भावना भी सम्मिलित हो जाए, तो उससे बलवती शक्ति शायद ही कोई हो संसार में! लेकिन मन के किसी कोने में से आवाज़ भी आई कि सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है, सम्हल जा! थोड़ा संयम से काम ले!

अचानक ही विशुद्ध भावनाओं पर विवेक हावी होने लगा। और शायद इसी कारण वो चुम्बन तोड़ कर जय की गोदी में से उठने की कोशिश करने लगी।

जय ने उसको प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं। जय की हालत भी कमोवेश वैसी ही थी।

“कॉफ़ी...” उसने बुदबुदाते हुए कहा।

“चाय...” जय ने उसकी बात को सुधारते हुए कहा।

“अ...हहाँ...” मीना को ध्यान आया कि चाय बनाने की पेशकश तो उसी ने करी थी, और वो खुद ही भूल गई!

अपनी इस क्यूट सी हरकत पर उसको खुद ही हँसी आ गई, लेकिन हँसी केवल मुस्कान के रूप में ही बाहर आई।

“चाय... बनाती हूँ!” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “... बैठो?”

*
अच्छा तो मीना चाय बनाने गई
 
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Update #23


जय मीना के पीछे पीछे ही उसकी किचन में आ गया। किचन आधुनिक था - हाँलाकि उसके घर की किचन से छोटा था, लेकिन मीना के घर के हिसाब से उचित! सारी सुविधाएँ थीं वहाँ और बड़ा ही सुव्यवस्थित सा घर था।

सब देख कर जय को बड़ा संतोष हुआ - 'कैरियर ओरिएण्टेड वुमन है मीना, लेकिन फिर भी पूरा घर सुव्यवस्थित!'

किचन काउंटर के बगल दो बार स्टूल्स रखे हुए थे, उनमें से एक पर वो बैठ गया, और मीना चाय बनाने में व्यस्त हो गई।

“मीना?”

“हाँ?” मीना ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

“कुछ अपने बारे में बताओ...”

“अरे! क्या हो गया ठाकुर साहब?” मीना ने हँसते हुए कहा, “आपको कहीं डर तो नहीं लग रहा है कि ये मेरे लिए सही लड़की है भी या नहीं!”

“हा हा! नो... नो वे! कैसी बातें करती हो! तुमसे सही लड़की कोई नहीं है मेरे लिए... कोई और हो ही नहीं सकती... लेकिन बस, क्यूरियस हूँ!”

“हा हा! ओके! ... क्या जानना चाहते हो? पूछो?”

“कुछ भी! जो भी तुम्हारा मन हो, बता दो... वैसे, तुम और तुम्हारा परिवार... कहाँ से हो इंडिया में?”

“बहादुरगढ़...”

जब जय को समझ नहीं आया कि ये कहाँ है, तो मीना ने बताना जारी रखा, “दिल्ली के पास है - एक छोटा सा शहर है! शायद ही नाम सुना हो!”

“ओह! ओके! नहीं सुना! ... मैं भी दिल्ली से हूँ... था... हूँ!”

“हा हा... थे, कि हो? एक पे रहना!”

“ओके, था! वैसे, वहाँ हमारा बंगला है... माँ वहीं रहती हैं न!”

माँ का नाम सुनते ही मीना हिचक गई।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!”

“अरे बोलो न!” जय ने समझते हुए पूछा, “... माँ को ले कर कोई चिंता है?”

मीना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे, उनकी चिंता मत करो! ... माँ बहुत स्वीट हैं। मैंने बताया तो है... और अब तो हमारी बात भाभी ने सम्हाल ली है... वो माँ को मना लेंगी! अगर माँ को हमको ले कर कोई चिंता है भी, तो भाभी सब ठीक कर देंगी!” जय बड़े आत्मविश्वास से बोला, “... और वैसे भी, वो तुमको एक बार देख लेंगी न, तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि वो तुमको पसंद न करें!”

“हम्म...! आई होप सो!” मीना ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा।

आई नो सो! ... अच्छा, तुमको खाने में क्या पसंद है?” जय ने बात बदल दी।

“सब कुछ... लेकिन मॉडरेट अमाउंट में खाती हूँ... अधिक अधिक नहीं!”

“वो तो दिख ही रहा है!” जय ने मीना के शरीर का जायज़ा लेते हुए कहा।

मीना अदा से मुस्कुराई।

“अच्छा, तुमको हस्बैंड कैसा चाहिए?”

“अरे वाह ठाकुर साहब... कहाँ से हो... खाने में क्या पसंद है... से सीधे हस्बैंड कैसा चाहिए पर आ गए! ... गुड, क्विक जम्प!” कह कर मीना खिलखिला कर हँसने लगी।

“अरे यार बताओ न!”

जवाब में मीना जय की तरफ़ मुड़ी, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में थाम कर उसके होंठों को चूम कर बोली, “तुम... तुम्हारे जैसा!”

“सच सच बताओ!” जय को सुन कर अच्छा लगा, फिर भी वो तसल्ली कर लेना चाहता था।

“ओह जय... सच कह रही हूँ! तुम्हारे जैसा ही साथी चाहिए था मुझे! ... तुम! तुम चाहिए थे मुझे... हाँ, तुम थोड़े ओल्डर होते, तो बेटर था, लेकिन अभी भी ठीक है!” उसने आखिरी वाक्य शरारत से कहा।

“हा हा... व्हाट इस इट विद यू एंड माय एज...” जय हँसते हुए बोला, “तुमसे छोटा हूँ, तो कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं! नो प्रॉब्लम... जो किस्मत में है, वो ही तो मिलेगा न!” मीना ने उदास होने का नाटक करते हुए कहा, “सब कुछ चाहा हुआ तो नहीं हो सकता न!”

अच्छा!” जय ने भी नाराज़ होने का नाटक किया, “तो जाओ, किसी बुड्ढे से कर लो शादी!”

“अरे मेरा प्यारा वुड बी हस्बैंड... मेरी बात का बुरा मान गए?” मीना उसकी नाक को चूमती हुई बोली।

उसी समय चाय में उबाल आ गया। चाय में उबाल की आवाज़ सुन कर मीना चौंक कर तेजी से चूल्हे के पास जा कर उसका नॉब बंद कर देती है। बिल्कुल ठीक समय पर।

“देखा! चाय भी नाराज़ हो गई तुम्हारी बात पर!” जय हँसते हुए बोला।

“कोई नाराज़ वाराज़ नहीं है... वो कह रही है कि मैं तैयार हूँ, और, बहुत टेस्टी हूँ...” मीना मुस्कुराती हुई बोली।

“अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू! बिना पिये कैसे जान लें?”

“हे भगवान! तुमको बहुत हिंदी आती है! इसका मतलब?”
“वो बाद में! पहले चाय पिलाओ! इतनी देर से केवल बातों से ही मन बहला रही हो!”

“अभी लो...”

मीना ने दो प्यालों में चाय छान कर पहले जय को थमाई, फिर खुद ली। दोनों ने चाय की चुस्की ली।

“कैसी बनी है?”

जय ने नाक भौं सिकोड़ते हुए ‘न’ में तेजी तेजी सर हिलाया, “ये कैसी चाय है...”

“अरे, क्या हो गया,” मीना को यकीन ही नहीं हुआ कि जय की चाय का स्वाद ऐसा ख़राब हो सकता है, क्योंकि उसकी चाय तो हमेशा की ही तरह बढ़िया स्वाद वाली थी, “इधर लाओ तो...”

मीना ने जय के प्याले से चुस्की ले कर बड़ी मासूमियत से कहा, “अच्छी तो है!”

जय ने उसके हाथों से अपना प्याला ले कर फिर से चुस्की ली, “हाँ... अब आया इसमें टेस्ट!”

“अच्छा जी... बदमाशी!” जय की शरारत मीना को समझ में आ गई।

“तुमसे नहीं, तो आखिर और किससे करूँ शरारत?”

“किसी से नहीं!” मीना ने बड़े प्यार से जय को देखा।

उसकी आँखों में उसके लिए दुनिया जहान की मोहब्बत वो साफ़ देख सकता था। जय को उस समय इस बात का बोध भी हुआ कि कितनी सुन्दर आँखें हैं मीना की! वो इनको उम्र भर देख सकता है। मीना के मन की सच्चाई उसकी आँखों और उसके चेहरे से बयाँ हो रही थी। और वो सच्चाई थी मीना के मन में उसके लिए मोहब्बत की!

दोनों अचानक से ही ख़ामोश हो गए थे - और चुप हो कर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। जय मीना का हाथ अपने हाथ में ले कर कोमलता से सहला रहा था। अचानक ही कुछ कहने सुनने की आवश्यकता ही नहीं रही। कुछ देर में चाय ख़तम हो गई।

मीना बोली, “क्या खिलाऊँ डिनर में?”

“क्या आता है तुमको?”

“इतने सालों से यहाँ हूँ, इसका ये मतलब नहीं कि मुझे कुछ आता नहीं!” मीना अदा से मुस्कुराई, “तुम्हारी होने वाली बीवी लगभग सर्व-गुण संपन्न है!”

“हा हा! अरे वाह! तुमको ये फ़्रेज़ मालूम है?”

“बस कुछ ही... ये उनमें से एक है!” मीना ने ईमानदारी से कहा, “बोलो न! क्या खाओगे?”

“कुछ भी खिला दो मेरी जान! हम तो आसानी से खुश हो जाते हैं!”

“ऐसे मत बोलो जय... आई वांट टू मेक यू फ़ील स्पेशल... तुम मेरे लिए सबसे स्पेशल हो! और, पहली बार घर भी आये हो, तो बिना तुम्हारी ठीक से ख़ातिरदारी किए तुमको नहीं जाने दूँगी!”

“हा हा! ... जो तुमको सबसे अच्छा आता है, वो पका दो! मेरे लिए वही स्पेशल है!”

“ठीक है! तुम आराम से बैठो... मन करे तो घर देखो... वैसे, देखने जैसा कुछ भी नहीं है! मैं बनाती हूँ कुछ ख़ास!”

मीना ने जय के गले में अपनी बाँहें डाल कर उसको दो बार चूमा, और फिर अलग हो कर डिनर की तैयारी में व्यस्त हो गई। कुछ देर तक दोनों बातें करते रहे, और मीना खाना पकाने में व्यस्त रही। खाना पकाने को ले कर उसका उत्साह देख कर जय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था।

शाम में पहली बार उसने मीना की देहयष्टि को बड़ी ध्यान से देखा - उसने एक रंग-बिरंगा स्वेटर पहना हुआ था, और नीचे एक घुटनों तक लम्बा स्कर्ट। घर में हीटिंग चल रही थी, नहीं तो इन महीनों शिकागो की ठंडक बढ़ जाती थी। वैसे भी दिन भर तेज़ ठंडी हवाएँ चलती ही रहती थीं। स्वेटर ढीला ढाला था, लेकिन सुरुचिपूर्ण था - ऐसा, जिसमें लड़की अपने प्रियतम को पसंद आए।
मीना सचमुच उसको बहुत पसंद आ रही थी!

“वाइन पियोगे?” कुछ समय बाद मीना ने पूछा।

“हाँ...”

“शिराज़ या मेर्लो?”

“शिराज़...”

मीना ने मुस्कुरा कर किचन के बगल लगे सेलर से रेड वाइन की एक बोतल निकाली और दो वाइन गिलासों में बारी बारी डाला। ठंडी के मौसम के हिसाब से रेड वाइन मुफ़ीद थी।

“चियर्स,” जय ने कहा और अपने गिलास को मीना के गिलास से टुनकाया।

“चियर्स...”

“उम्म...” पहला सिप ले कर जय ने अनुमोदन में सर हिलाया, “लेकिन यार, चाय का स्वाद खराब हो गया!”

“ओह्हो!” मीना नहीं चाहती थी कि जय का कोई भी अनुभव खराब हो, “सॉरी हनी!”

“हनी?” जय ने फिर से शरारत से पूछा।

मीना के गाल शर्म से गुलाबी हो गए, “इंडियन वीमेन डू नॉट कॉल दीयर हस्बैंड्स बाई दीयर नेम्स...!”

“ओये होए... क्या बात है मेरी जान!” जय मीना के करीब आते हुए बोला, “ऐसे करोगी तो कण्ट्रोल नहीं होगा मुझे...”

“किस बात पर कण्ट्रोल नहीं होगा?” मीना ने भली भाँति जानते हुए भी पूछा।

“मेरे इरादों पर...”

मीना बनावटी चाल में इठलाती हुई जय के पास आई, और उसके गले में बाहें डालती हुई बोली, “अभी नहीं हनी! ... बट आई प्रॉमिस, कि तुमको मैं हर तरह का सुख दूँगी! यू विल नेवर बी अनसैटिस्फाइड!”

“ये सब मत बोलो... दिल में कुछ कुछ होने लगता है!”

“हा हा... आई लव यू!” कह कर मीना ने उसको चूम लिया।
“अब जल्दी से इस वाइन का भी टेस्ट बढ़िया कर दो!”
मीना ने जय के गिलास से वाइन सिप पर के उसको वापस दे दिया। जय ने सहर्ष उसकी जूठी की हुई वाइन की चुस्की ली, और बोला,

“हाँ! अब आया स्वाद!”

मीना उसकी बात पर दिल खोल कर, खिलखिला कर हँसने लगी।

जय के मन के ख़याल आया कि वो मीना को बहुत चाहता है, और उससे अधिक वो किसी और लड़की को कभी प्यार नहीं कर सकेगा।

'शी इस द वन!'


*
यह शाम रूमानी सी इश्क रुहानी सी
 
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