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Romance श्रृष्टि की गजब रित

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मित्रो शायद अगला भाग अंतिम रहेगा

कुछ घटनाओं को कम करके कहानी को ख़तम करते है

पढ़िएगा जरुर
 

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भाग - 36


शाम को करीब चार बजे राघव घर पहुंचा। घर पर तिवारी उस वक्त बैठक में बैठें दिन भर के घटनाओं का विवरण न्यूज चैनल से ले रहे थे। राघव को इतनी जल्दी आया देखकर तिवारी बोला... राघव तेरा काम हों गया।? इतनी जल्दी ?? तुमने तो काफी दिन मांगे थे !!!!!!!!!!

राघव...नहीं पापा बीच में छोड़कर आया हूं।

तिवारी... क्या.. पर क्यों।?

राघव...बता दुंगा पहले आप मेरे सौतेले भाई और सौतेली मां को बाहर बुलाइए।

दांत पीसकर राघव बोला था। जिसे देख तिवारी भी हैरान रह गए क्योंकि राघव कभी इस तरह से बरखा और अरमान के लिए सौतेला नहीं बोला था। तिवारी आगे कुछ बोलता उसे पहले ही अरमान बरखा के कमरे से निकलकर बाहर आया। उसे देखते ही राघव दोनों मुठ्ठी बीचे अरमान की और बढ़ गया और एक खीच के जड़ दिया। बस चटक और अहहा की आवाज निकला और उसके बाद एक और पड़ा। अरमान कुछ बोलने के लिए मुंह खोलता तब एक और पड़ता जितनी बार मुंह खोला उतनी बार झन्नाटेदार थाप्पड पड़ा।

यह देख तिवारी हैरान रह गए कि आज राघव को हो क्या गया। तिवारी उठाकर राघव को रोकने के लिए आगे बढे उधर से बरखा भी कमरे से बाहर निकलकर आई और अरमान को थप्पड पडते देख बोलीं... क्यों मेरे बेटे को मार रहा हैं घर आते ही पगला गया हैं जो इसे मारे जा रहा हैं।

तिवारी... हां क्यों मार रहा हैं।

"क्यों मार रहा हूं ये इससे पूछो... पूछो इससे आज दफ्तर में क्या करके आया।" दांत पीसते हुए राघव बोला

दफ्तर की बात सुनते ही बरखा से छूटकर अरमान भागने को हुआ की राघव ने उसे पकड़कर एक ओर झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया फिर बोला... तूझे भागना है जरूर भागना और साथ में अपनी मां को लेकर हमेशा के लिए इस घर से भाग जाना लेकिन जाने से पहले अपनी कारस्तनी बता दे ताकि तेरी मां बरखा को पता तो चले उन्हें घर से क्यों निकाला जा रहा हैं।

बरखा... मैं क्यों जाऊंगी न मेरा बेटा कहीं जायेगा जाना हैं तो तू जा।

राघव... कैसे नहीं जाओगे तुम्हारे बाप ने दहेज में दिया था जो डेरा जमाए बैठे हों।?

राघव की बाते सुनते ही बरखा दांत पीसकर रह गई और तिवारी बोख्लाते हुए बोले...राघव पहले बता तो दे क्या हुआ फिर मैं फैंसला करुंगा की इन्हें घर से निकलना है कि किया करना हैं।

राघव... पापा ये कमीना बरखा का बेटा मेरा सौतेला भाई पिछले कुछ दिनों से श्रृष्टि के साथ बदसलूकी कर रहा था आज इसने इतनी नीच हरकत किया कि श्रृष्टि ने इसे थाप्पड मार दिया सिर्फ आज ही नहीं इससे पहले भी एक बार इसे मॉल में भीड़ के बीच थप्पड मारा था और जब श्रृष्टि को दफ्तर में देखा तब से ये नीच उससे बदला लेने की बात कहा कर रोज उसके साथ बदसलूकी करने लगा। आज सभी कर्मचारियों ने उसे मार ने की ठान ली थी अब बताओ मै और आप किस मुह से ऑफिस जा पायेंगे ???

अरमान के कर्म सुनते ही तिवारी बौखला गया और कुछ कदम आगे बढ़कर अरमान को कई थाप्पड मारा फिर चीखते हुए बोला... नीच आज तूने साबित कर दिया तू सच में मेरा सौतेला बेटा हैं। तूझे मेरी इज्जत की जरा भी परवाह नहीं जिन हरकतों की वजह से राघव ने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरशिप तोडकर करोड़ों का नुकसान उठाया किस लिए सिर्फ इसलिए कि मेरी और कम्पनी की साख पर कोई दाग न लगे और आज तूने वही हरकत हमारे ही दफ्तर में काम करने वाली एक लङकी के साथ करके मेरी बनी बनाई साख को धूमिल कर दिया।

कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर चुप्पी को तोड़ते हुए तिवारी बोला...बरखा आज इसने जो किया ये सब तुम्हारी परवरिश का नतीजा है अच्छा हुआ जो तुम राघव से नफरत करती थी वरना तुम्हारी परवरिश पाकर राघव भी इसके जैसा हों जाता।

बरखा... आप मेरे परवरिश पे दाग न लगाएं मैंने इसे कोई गलत परवरिश नहीं दिया।

तिवारी...चलो माना तुमने इसे गलत परवरिश नहीं दिया फिर इसके अंदर ये गुण आया कहा से जरूर ये इसकी पैदासी गुण होगा और इसके बाप से इसे विरासत में मिला होगा। बरखा अब मैं तुम दोनों मां बेटे को ओर नहीं झेल सकता तुम दोनों ने मेरे और राघव के जीवन में बहुत जहर घोल लिया अब और नहीं तुम दोनों अपना बोरिया बिस्तर समेटो और फौरन निकल जाओ।

बरखा... पर..।

तिवारी... पर वर कुछ नहीं जीतना बोला हैं उतना करो। और हां अब मुज से कुछ भी उम्मीद मत रखना जो दिया है वो भी छीन लूँगा

अरमान... मां चलो इनको तो बाद में देख लेंगे कोर्ट में घसीटकर इनकी नाक न रगड़वाया फ़िर बताना।

इतना बोलते ही राघव ने एक झन्नाटेदार थप्पड जड़ दिया फ़िर बोला... चल जा तूझे जो करना हैं कर लेना। रही बात नाक रगड़वाने की वो तो मैं तेरा रगड़वाऊंगा वो भी बीच सड़क पर अब निकल इस घर से यहां का दाना पानी तेरे लिए बंद हों चुका हैं।

तिवारी... बरखा इससे बोलों चुप रहे और कोर्ट में घसीटने की बात न करें नहीं तो इसे बहुत बुरे दिन देखना पड़ेगा।

बरखा... आप हमारे साथ जो कर रहें हो सही नहीं कर रहे हों इसका भुगतान आपको करना पड़ेगा। चल अरमान अब इन दोनों बाप बेटे को सबक सीखाकर ही रहेंगे।

इतना बोलकर अरमान को साथ लिए बरखा बहार की और चल दिया और तिवारी बोला... बरखा मैं भी देखना चाहुंगा की तुम मुझे क्या सबक सिखाती हो।
 

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कुछ देर की खामोशी छाई रहीं फिर तिवारी ने पानी लाने को कहा तभी राघव को कुछ याद आया और वो बोल…पापा श्रृष्टि के साथ DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में ऐसा कुछ हुआ था जिसके कारण उसने वहा का जॉब छोड़ दिया था आज फ़िर उसके साथ वैसा ही सलूक हुआ कहीं वो यहां का जॉब भी न छोड़ दे अगर जॉब छोड़ दिया। तो मेरा क्या होगा?

तिवारी..तेरा क्या होगा ... कहीं ये वोही लड़की तो नही जिससे...।

राघव... हां पापा श्रृष्टि वोही लड़की है जिससे मैं प्यार करता हूं।

तिवारी... मेरे तो ध्यान से उतर गया था तूझे पहले बोलना चहिए था। चल अभी उसके घर चलते हैं। आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए उससे माफी मांग लूंगा और आज ही उसके घर वालों से रिश्ते की बात कर लूंगा।

राघव... पर पापा...l

बस इतना ही बोला फिर साक्षी को कॉल लगा दिया उससे बात करने के बाद राघव बोला... चलो पापा

(नोट:- कुछ पाठकों को लग रहा होगा कि लड़के वाले कैसे लड़की वालों से बात करने जा रहा हैं जबकि लड़की वाले खुद बात करने आते हैं तो मैं इस पर सिर्फ इतना ही कहुंगी कि दूसरे संप्रदाय में क्या होता हैं मै नहीं जानती लेकिन बंगाली संप्रदाय में ऐसा ही होता हैं मै उसी आधार पर लिख रही हूं


और हां अब ज़माना बदल गया है अब तो लड़का और लड़की खुद ही अपना साथी ढूँढ लेते है | मा बाप को तो सिर्फ आशीर्वाद देना होता है . ये भी जान ले अब बहोत कुछ बदल रहा है यु कहो की पूरा समाज बदल रहा है या बदल गया है)

दोनों बाप बेटे घर से चल पड़े। कुछ ही देर में राघव के मोबाइल में एक msg आया। जिसमे एक एड्रेस था। राघव उस एड्रेस को गूगल मैप में फीड किया और उसी रास्ते पर कार को दौड़ा दिया।

कुछ देर में राघव वहा पहुंचा गया। जहां से श्रृष्टि के घर की गली में घुसना था। उस गली में घुस तो गया पर ठीक लोकेशन वाला घर ढूंढ नहीं पा रहा था। कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद किसी से पूछकर सही ठिकाना श्रृष्टि के घर के पास पहुंच गया।

राघव ने द्वार घंटी बजाया और कुछ देर बाद द्वार खुला द्वार खोलने वाले को देखकर राघव मुस्कुरा दिया क्योंकि सामने श्रृष्टि ही खड़ी थीं। राघव के साथ एक बुजुर्ग को देखकर श्रृष्टि ने उन्हें प्रणाम किया फिर दोनों को अंदर आने का रास्ता दिया।

"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोलीं

अब श्रृष्टि के लिए दुविधा ये थीं राघव को तो जानती थी पर उसके साथ आए शख्स को नहीं पहचानती थी तब राघव धीरे से बोला "मेरे पापा हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्कुराते हुए बोलीं... मां सर और उनके पापा आए है। श्रुष्टि ने तिवारी जी के पैर छुए और एसा कर की एक इशारा राघव को दे ही दिया| अब अपने आप को रोक पाना भी तो मुश्किल था |




इसके बाद सभी अंदर आए। औपचारिक बातों के दौरान तिवारी माताश्री को गौर से देख रहे थे। जैसे उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहें हों। जब पहचान नहीं पाए तो तिवारी बोला…आप को कहीं तो देखा हैं। जाना पहचाना लग रही हों पर याद नहीं आ रहा है आपको कहा देखा हैं।

तिवारी की बाते सुनकर माताश्री ऐसे मुस्कुराई जैसे वो जानती है तिवारी ने उन्हें कहा देखा हैं पर बताना नहीं चाहती हों। बहरहाल तिवारी की बातों का जवाब देते हुए माताश्री बोलीं... मैं इसी शहर के मशहूर *** कॉलेज में आध्यपिका हूं शायद अपने वहीं देखा होगा। (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) श्रृष्टि बेटा इनके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करो।

तिवारी मना करने लगें। लेकिन माताश्री ने अपना तर्क देकर श्रृष्टि को चाय नाश्ते का प्रबंध करने भेज दिया। एक नज़र राघव को देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर श्रृष्टि रसोई की और चली गई फ़िर तिवारी मुद्दे पर आते हुए बोले...देखिए मेडम जी मैं ज्यादा घुमा फिरा कर बात नही करूंगा राघव कह रहा था वो आपके बेटी से प्यार करता है और शायद श्रृष्टि बिटिया भी उससे प्यार करती हैं।

"जी मैं भी ये बात जानती हूं श्रृष्टि भी मूझसे यहीं कह रहीं थीं कि वो भी आपके बेटे से प्यार करती हैं।" और हां मेरा नाम मनोरमा है आप मुझे मेडम ना कहे

तिवारी... जब दोनों एक दूसरे से प्यार करते है तो हमें बीच में दीवार बनके कोई फायदा नहीं है दोनों को एक कर देने में ही भलाई हैं।

"केह तो आप सही रहें हो फ़िर भी कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए उसके बाद ही कुछ फैसला आप ले तो ही बेहतर होगा।"

दोनों के बिच की बाते चल ही रही थी कि श्रृष्टि चाय लेकर आ गई। एक एक करके सभी को चाय दिया जब राघव को चाय दे रहीं थीं तो कुछ पल के लिए दोनों की निगाह एक दूसरे में अटक गई फिर श्रृष्टि खुद ही शर्माकर अपना निगाह हटा लिया और अपने निर्धारित जगह बैठ गई। तब तिवारी बोला... श्रृष्टि बेटा आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए हमे खेद हैं। मैं नहीं जानता था अपने ही घर में एक सपोला पाल रखा हैं जो सरेआम मेरी इज्जत उछलता फिरता हैं। अब जो हों गया उसे तो बदल नहीं सकता पर तुमसे माफ़ी तो जरूर मांग...।

"सर आप माफी न मांगे आप मेरे पिता के उम्र के है। इसलिए आप माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा न करें।" बीच में रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं

श्रृष्टि की बाते सुनके वह मौजूद सभी मुस्कुरा दिए और श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। इसके बाद सभी चाय पीने लगे चाय पीने के दौरान राघव बोला... माजी मुझे श्रृष्टि से कुछ बात करना हैं। क्या मैं कर सकता हूं?

"हां क्यों नही श्रृष्टि बेटा चाय खत्म करके अपने सर से बात कर लो सुनो वो क्या कहना चाहते हैं।"

चाय पीने के बाद श्रृष्टि राघव को लेकर छत पर चली गई। दोनों के जाते ही तिवारी... हां तो मनोरमाजी आप कुछ कह रहे थे।
 

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"देखिए बात आगे बढ़ाने से पहले कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए क्या है कि मैं एक तलाक सुदा हूं और श्रृष्टि जब लभभग चार साल की थी तब से मैं मेरे पति से अलग रहा रहीं हूं।"

तभी डोरबेल बजी और मनोरमा ने दरवाजा खोला तो सामने साक्षी मुस्कुराए हुए अन्दर चली आई अब उसे अन्दर आने के लिए कोई परमिशन की जरुरत तो थी ही नहीं|

अन्दर अपनी जगह पर बैठते ही बोली “ सोरी आप लोगो की बिच में मै आ गई लेकिन मेरे बगैर कुछ होने नहीं दूंगी” कह के हस दी

तिवारीजी ने भी साक्षी को आवकारते हुए बोले हा बेटा तुम्हारे बगैर कुछ नहीं हो सकता लेकिन कुछ जल्दी ही आ गई

मनोरमाजी “ खेर अब आ ही गई है तो मुझे कोइ आपत्ति नहीं वैसे भी ये सब जानती है और कुछ तो उसके ये पोलिटिकल व्यवहार से ही ये सब और यहाँ तक है “ कह के हस्ते हुए बोली चले अब हम आगे बात करते है


तो ये जान लेना आवश्यक था जो मैंने बता दिया

जारी रहेगा...
 

sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates hain kahani bahut tej gati se aagey badhai hai aapne … 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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Bahut hi behtarin updates hain kahani bahut tej gati se aagey badhai hai aapne … 👏🏻👏🏻👏🏻
Ji jaisa ki maine kaha tha
Bas ab last episod baki hai jo abhi pipeline me hai
 
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भाग - 37


तिवारी... तो इसमें क्या बडी बात है ऐसे तो मैं भी हूं बस फर्क इतना है
आपने दूसरी शादी नहीं किया और मैंने पहली पत्नी के मौत के बाद दूसरी शादी कर लिया था। वैसे एक बात बता दूं अपने दूसरी शादी न करके ही सही किया। आप दूसरी शादी कर लेते तो शायद श्रृष्टि बिटिया का जीवन भी राघव जैसा हो जाता।

"आप कहना किया चाहते है मैं कुछ समझी नहीं।"

तिवारी... मैं समझा देता हूं। देखिए मेरा मानना है की जब रिश्ता जोड़ने आए ही है तो आप बिना पूछे ही अपने बारे में बता रहें हैं तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं भी अपने बारे में बता दूं। दरअसल राघव के मां की मौत के बाद राघव अकेला रहता था और मैं काम में रहता था इसलिए मैंने दूसरी शादी किया क्योंकि राघव उस वक्त पांच साल का था। लेकिन मेरी शादी का फैंसला मेरे बेटे के लिए मुसीबत लेकर आया। अब आप समझ ही रहीं हो एक सौतेली मां क्या क्या कर सकती हैं। बस इसलिए मैंने कहा था आप दूसरी शादी न करके ठीक किया था।

तिवारी की बाते सुनने के बाद माताश्री बोलीं…मतलब आपके बेटे को मां के होते हुए भी बाल उम्र से मां की ममता के लिए तरसना पडा।?

तिवारी...मां कहा सौतेली मां खैर छोड़िए मैं उन बातों पर ज्यादा चर्चा नहीं करने आया हूं। मैं बस इतना जानना चाहता हूं क्या आपको ये रिश्ता मंजूर हैं।?

साक्षी “ हां मजूर है ही ही ही “

तिवारीजी स”साक्षी तू अपना मुह बंध रखे तो अच्छा “




"मंजूर तो हैं पर...।"

तिवारी... आप डरिए नहीं श्रृष्टि बिटिया को राघव की सौतेली मां परेशान नहीं करेगी क्योंकि वो अब हमारे साथ नहीं रहती हैं।

राघव की सौतेली मां क्यों उनके साथ नहीं रहती यहां सवाल माताश्री के मन में उपजा मगर वो इस सवाल को नहीं पुछा बल्कि कुछ ओर बोला... ठीक है अब बच्चों को आने दिजिए वो जैसा कहेंगे वैसा ही करेंगे।

तिवारी भी उनकी बातों से सहमत हों गए फ़िर दोनों दूसरी ओर बाते करने लग गए।



 

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दृश्य में बदलाव

राघव और श्रृष्टि जब छत पर पहुंचे तब राघव बोला... श्रृष्टि मुझे माफ़ कर देना मैं तुमसे वादा किया था फ़िर भी तुम्हारे साथ वैसा ही हुआ। जिसके लिए तुमने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था।

राघव की बाते सुनकर श्रृष्टि को शरारत सुझा इसलिए श्रृष्टि बोलीं...सर आपका वादा तो टूट चुका हैं इसलिए मैंने तय किया हैं अब मैं आपकी कम्पनी में नौकरी नहीं करूंगी।

राघव की निगाह श्रृष्टि पर बना हुआ था। इसलिए उसे श्रृष्टि की आंखों में दिख गया कि वो शरारत करने पे उतर आईं हैं तो राघव भी शरारत करते हुए बोला... ठीक है जब तुमने इस्तीफा देने का मन बना ही लिया है तो मैं क्या कर सकता हूं? ठीक है श्रृष्टि तुम कल को इस्तीफा भेज देना अब में चलता हूं।

इतना बोलकर राघव दो कदम बड़ा ही था कि श्रृष्टि उसका हाथ थामे रोकते हुए बोली…सॉरी सर मै तो बस आपसे शरारत कर रही थीं।

राघव... वो क्यों भला।

श्रृष्टि... आप नहीं जानते।

राघव... नहीं बिल्कुल नहीं जानता।

श्रृष्टि...तो फिर अपने रेस्टोरेंट में जो बोला क्या वो सभी बाते झूठ कहा था?

राघव... नहीं वो सभी बाते सच था लेकिन तुमने मेरे प्यार को स्वीकारा ही नहीं बल्कि मेरे आंखों में आंखे डालकर बोल दिया तुम्हारे और मेरे प्यार के बीच मेरी अपार संपत्ति दीवार बने खड़ी हैं। मैं….।

राघव इससे आगे बोल ही नहीं पाया क्योंकि श्रृष्टि राघव से लिपट गई और सिसकते हुए बोलीं…सॉरी सर मै भी आपसे उतना ही प्यार करती हूं जितना की आप मूझसे करते है। मैं तो...।

"इसलिए न की कुछ बाते हैं जो तुम्हें मेरे प्यार को स्वीकारने से रोक रहीं थी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए राघव भी श्रृष्टि से लिपट गया। हम्मम बस इतना ही श्रृष्टि कह पाई और राघव से लिपटे सुबकती रहीं तब राघव बोला... श्रृष्टि जब तुमने वो बात कहीं थी तब मैं खुद अचंभित था कि तुमने ऐसा कहा तो कहा क्यों? लेकिन जब दफ्तर पहूंच के तुम छुट्टी लेकर चली गईं तब मैंने रेस्टोरेंट की एक एक बात को फ़िर से मस्तिष्क में दोहराया तब मुझे समझ आया कि तुम मेरी आंखों में धूल झोंकने के लिए ही मेरी आंखो से आंखे मिलाकर पूर्ण आत्म विश्वास से वो बाते कहीं थी।

श्रृष्टि... इसके अलावा मैं और क्या करती आप मेरी शारीरिक भाषा से समझ जा रहे थे कि मेरा अंतर मन कुछ कहा रहा है और मुंह से कुछ ओर ही निकल रहा हैं

इतना कहाकर श्रृष्टि फिर से सुबकने लग गई तब श्रृष्टि का सिर खुद से तोड़ा अलग करके उसके आंखों में देखते हुए राघव बोला…बस श्रृष्टि बस अब और नही अब तुम मुझे वो बाते बताओ जिसके लिए तुम मुझे जीतना तकलीफ दे रही थीं उससे कहीं ज्यादा तकलीफ तुम खुद सह रहीं थीं।

श्रृष्टि... बताना जरूरी हैं।?

राघव... हां ज़रूरी हैं क्योंकि उन्हीं बातों के कारण मेरी श्रृष्टि जो मूझसे प्यार करते हुए भी स्वीकार नहीं पा रही थीं और तकलीफ सह रहीं थीं।

इसके बाद कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर श्रृष्टि ने वो सभी बाते बता दिया जो वो माताश्री के बारे में जानती थी और उसके अलावा यहां भी बता दिया कि माताश्री की बीती जिंदगी के बारे में जानकर कहीं राघव के परिवार वाले उसे ठुकरा न दे और उसके मां पर लांछन न लगा दे। इतना कहने के बाद श्रृष्टि बोलीं…मैं सब कुछ सह सकती हूं पर मां पर कोई मेरे कारण लांछन लगाएं ये मैं कभी नहीं सह सकती हूं। यहीं एक मूल वजह है आपको मना करने के पीछे।

राघव...श्रृष्टि तुम अपने मन से यह डर निकाल फेंको क्योंकि पापा तुम्हारे और मेरे शादी की बात करने आएं हैं। समझी।

श्रृष्टि... क्या शादी।?

राघव... हां हमारी शादी। मैं पापा को बता दिया था की मैं तुमसे प्यार करता हूं और पापा को भी इस बात से कोई आपत्ती नहीं है कि तुम हमारे कम्पनी में मुलाजिम हों या कुछ ओर।

ये बात सुनकर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फ़िर राघव से अलग होकर दो कदम पीछे गई फ़िर बोलीं…मुझे आप से शादी नहीं करनी।

राघव... अच्छा फ़िर से नखरे! चलो बताओं शादी क्यों नहीं करना?

श्रृष्टि... वो इसलिए, वो इसलिए... बस मुझे आपसे शादी नहीं करनी।

इतना बोलकर श्रृष्टि नीचे भाग गई और राघव भी उसके पीछे पीछे नीचे चला गया।




खेर इस बिच जब राघव और श्रुष्टि एक दूजे से बात या फिर यु कही की छेड़छाड़ कर रहे थे तब .......
 
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साक्षी मा मुझे एक कप चाय मिलेगा अगर आप को तकलीफ ना हो

मा “ अरे इसमें तकलीफ कैसी पर तू खुद भी बना सकती है

नहीं मा मै तब तक कुछ बाते सर से करना चाहती हु

अच्छा !!!! देख कुछ गर्बाद मत करना तिवारी जी इस से जरा संभाल के तब तक मै इस नटखट की चाय बना लेती हु

माताजी चाय तो रसोई में बना रही थी पर उनके कान तिवारी और साक्षी की बातो की ऑर थे पर खास कुछ सुने नहीं दिया फिर सोचा खेर जो होगा वो देखा जाएगा

जब तक मा चाय बना के लायी तब तक शायद साक्षी और तिवारी जी ने बाते कर लि थि



श्रृष्टि चुप चाप जाकर माताश्री के पास बैठ गई और राघव को आते देखकर ठेंगा दिखा दिया फ़िर मुस्कुराने लग गईं।


राघव श्रृष्टि की शरारतें देखकर मुस्करा दिया और खुद से बोलीं... दिखाने में जितनी भोली और मासूम है उतनी ही शरारती है। चलो इसी बहाने पता तो चल गया श्रृष्टि शरारते भी करना जानती हैं।

राघव भी जाकर तिवारी के पास बैठ गया। तब तिवारी बोला... दोनों में बाते हों गईं हो तो बता दो मूहर्त कब का निकले।

"हां श्रृष्टि बेटा बताओं।" माताश्री भी तिवारी का साथ देते हुए पुछा चाय का कप साक्षी को थमाते हुए बोली

"मां मुझे अभी शादी नहीं करनी है चार पांच साल रूकके शादी करनी हैं।" राघव की और शरारती निगाहों से देखकर श्रृष्टि बोली

"पापा नहीं दो तीन दिन बाद का कोई मूहर्त निकलवाइए पता चला चार पांच साल में श्रृष्टि का मन फ़िर से बदल गया तो मैं आधार में लटक जाऊंगा।" उतावलापन में राघव बोला

राघव की बाते सुनकर सभी हंस दिए और श्रृष्टि सभी के सामने ही राघव को ठेंगा दिखाते हुए बोला... आप चार पांच साल रूक सकते हों तो ठीक वरना मैं अपने लिए किसी और को देख लूंगी हां।

श्रृष्टि की बाते और उसकी हरकते देखकर राघव सहित सभी समझ गए कि श्रृष्टि शरारत कर रहीं हैं। इसलिए तिवारी भी श्रृष्टि का साथ देते हुए बोला... ठीक हैं श्रृष्टि बेटा तुम जब चाहोगी शादी तब ही होगी।

राघव…ठीक हैं पापा (फिर श्रृष्टि की ओर देखकर बोला) श्रृष्टि थोड़ा एडजेस्ट करके देखो न शायद शादी के दिन नजदीक आ जाएं।

राघव की बाते सुनकर एक बार फिर से सभी हंस दिए फ़िर माताश्री और तिवारी ने फैसला किया की जब दोनों चाहेंगे तब कोई अच्छा सा मूहर्त देखकर दोनों को एक कर देगें फ़िर विदा लेकर जाते वक्त राघव उठ ही नहीं रहा था तो तिवारी जी उसका बाजू थामे उसे उठाते हुए बोला... अरे चल न अब क्या शादी करके ही जायेगा क्या ?
 

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राघव बेमन से उठाकर चल दिया फिर द्वार तक जाकर राघव पलट कर पीछे देखा तब श्रृष्टि ने मुस्कुराते हुए एक बार फ़िर से राघव को ठेंगा दिखा दिया। ये देखकर राघव मुस्कुराते हुए चला गया। लेकिन दोनों अभी सिर्फ दरवाजे तक ही पहोचे थे की तिवारीजी वापिस कमरे में आये

मनोरमाजी मुझे लगता है की शादी के समय पे ये बात करना ठीक नहीं

तो को ना अभिबात की जाए ??



“हां हां बैठिये आपको जो कहना है कहिये “ माताश्री जरा चिंतित होकर बोली

हां हां सर कहिये साक्षी ने भी सुर पूराया

तिवारी जी सोफे पे बैठते हुए बोले मै घुमा फिरा के बात नहीं करूँगा जो है सीधा बोलूँगा

जी कही ये माताश्री अब ज्यादा चिंतित हुई



जी अब शादी हो रही है तो कुछ लेनदेन की बात भी हो जाए !!!

मनोरमा और श्रुष्टि दोनों ही मन में बोली “ आ गए अपनी औकात पे “

माताश्री ने अपनी परिपक्वता दिखाते हुए बोली जी बोलिए आपकी क्या डिमांड है ??

साक्षी “हां हां भईया (राघव की ऑर देखते हुए)

जो भी हो बिनधास्त बोलिए

राघव: भैया ???????????

जी अब तिवारी सर ने मुझे अपनी बेटी मान लिया है तो उस नाते मै तुम्हारी बहन हुई



माताश्री को कुछ समजते देर ना लगी उन्हों ने साक्षी के कान में कहा ये फितूर था ???????????

साक्षी ने सिर्फ अपना सर हकार में हिलाया

तुम्हे कोइ र्पोब्ब्लेम तो नहीं

भाई की शादी मै धूमधाम से करुँगी देखना मम्मी

मम्मी भी समज गई

जी तिवारी जी बोलिए आप कुछ कह रहे थे

तिवारी: जी मनोरमाजी दहेज़ की बात कर रहे थे हम

तभी श्रुष्टि अपनी अपरिपक्वता दिखाते हुए अपनी सिट से उठी और कुछ बोले उस से पहले मनोरमा ने उसे हाथ से बैठ ने को कहा

जी तिवारी जी आप की डिमांड बोलिए

राघव बेचारा कुछ समज नहीं सका ये क्या हो रहा है

वैसे भगवान ने हमें सबकुछ दिया है पर एक डिमांड है और दहेज़ तो लेना ही है

जी ??? बोलिए तो

साक्षी हा हा हा बिलकुल दहेज़ तो लेना ही पड़ेगा और देना भी पड़ेगा

माताश्री की धीरज अब जवाब दे रही थी “अब बोलेंगे नहीं तो मै क्या समजू ??”

तिवारी: हमें दहेज़ में बहु की मा चाहिए

क्या ???????????

एक साथ श्रुष्टि और माताश्री

“हां हा दी पर उस से आगे कुछ नहीं मिलेगा बस” साक्षी ने तुरंत हकार में अपना निर्णय बता दिया

मनोरमा: देखिये ये नामुमकिन है एक मा अपनी बेटी के साथ कैसे रह सकती है उसके ससुराल में ???? ये नहीं हो सकता आप कुछ और मांग लीजिये कोशिश करुँगी देने को

श्रुष्टि को अब समज में आ गया की ये सब किस की चाल है वही माताश्री को भी अब पता चल ही गया की वो जब रसोई में थी तब क्या बात हुई पर राघव बुध्धू बना बैठा अपने पापा की और प्रश्नार्थ मुद्रा में देख रहा था

देखिये अब ये तो हमें चाहिए बस और कुछ नहीं चाहए

ये नहीं हो सकता माताश्री

“अच्छा एक रास्ता है अगर आप लोगो को ठीक लगे” साक्षी ने अपनी चाल चलते हुए कहा “इस रास्ते में मम्मी को बेटी के ससुराल में रहने की जरुरत नहीं पड़ेगी और कोई शर्मिंदगी भी नहीं रहेगी “

“क्या?” मम्मी

वैसे राघव भैया को और मुझे मा का प्रेम नहीं मिला सो अगर मम्मी आप ठीक समजो तो आप तिवारीजी से शादी कर के अपना बाकी का समय सही तरीके से बिता सकते हो “

“क्या बकवास कर रही हो साक्षी तुम जाओ अपने घर” मम्मी को गुस्सा आया और उसने साक्षी को अपने द्वार का रास्ता दिखाया

मम्मी आप समजो

खेर तिवारी ने भी कहा वैसे ये साक्षी का विचार पे विचार तो करना ही चाहीये ऐसा मुझे लगता है

सर क्या हमें थोड़ी देर अकेला छोड़ सकते है श्रुष्टि ने आखिर बोला

तिवारी: जी जी बिलकुल हम एक ड्राइव लगाके आते है आप लोग बाते कार्लो और सोच लो

दोनों बाप बेटे अब चल दिए तो तीनो के बिच घमासान हुआ

साक्षी: मम्मी आपने अपनी जवानी सिर्फ और सिर्फ अपने बेटी के लिए कुर्बान की अब मुका है और पिछली जिंदगी में किसी का साथ हो तो क्या बुरा है

तीनो के बिच काफी बात हुई कही कही ततुम तू मै मै भी हुई समाज क्या कहेगा उसकी चर्चा भी हु यु कही ये की हर तरफ की चर्चा हुई

आखिर श्रुष्टि समज गई और उसने भी अब साक्षी का पक्ष लेते हुए बोली मा साक्षी की सोच सही है

और दोनों बेटी ने मनोरमा पर दबाव डाला आखिर मनोरमा भी कुछ शर्तो पे राजी हुई

अब बाप बेटे भी आ गए

तिवारीजी “क्या सोचा”

साक्षी “सोचना क्या है बस आप मम्मी को प्रपोज कर दीजिये”

तिवारी: देखिये मनोरमाजी अब उमर वो नहीं रही की मै I love you कहू पर अब उम्र के हिसाब से मै आपको प्रपोज़ करता हु की क्या आप मेरे बेटे की मा बन सकती है ????

खेर कुछ बाते यहाँ वह हुई पर आखिर सब के दबाव पे मनोरमा मान ही गई

लेकिन शादी सर कागज़ पे होंगी ये शरत के साथ सब आगे बढे......

और इस तरह राघव और श्रुष्टि की एक नयी श्रुष्टि का शुभारंभ हुआ



|| शुभारम्भ ||

समाप्त
 
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