दृश्य में बदलाव
राघव और श्रृष्टि जब छत पर पहुंचे तब राघव बोला... श्रृष्टि मुझे माफ़ कर देना मैं तुमसे वादा किया था फ़िर भी तुम्हारे साथ वैसा ही हुआ। जिसके लिए तुमने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था।
राघव की बाते सुनकर श्रृष्टि को शरारत सुझा इसलिए श्रृष्टि बोलीं...सर आपका वादा तो टूट चुका हैं इसलिए मैंने तय किया हैं अब मैं आपकी कम्पनी में नौकरी नहीं करूंगी।
राघव की निगाह श्रृष्टि पर बना हुआ था। इसलिए उसे श्रृष्टि की आंखों में दिख गया कि वो शरारत करने पे उतर आईं हैं तो राघव भी शरारत करते हुए बोला... ठीक है जब तुमने इस्तीफा देने का मन बना ही लिया है तो मैं क्या कर सकता हूं? ठीक है श्रृष्टि तुम कल को इस्तीफा भेज देना अब में चलता हूं।
इतना बोलकर राघव दो कदम बड़ा ही था कि श्रृष्टि उसका हाथ थामे रोकते हुए बोली…सॉरी सर मै तो बस आपसे शरारत कर रही थीं।
राघव... वो क्यों भला।
श्रृष्टि... आप नहीं जानते।
राघव... नहीं बिल्कुल नहीं जानता।
श्रृष्टि...तो फिर अपने रेस्टोरेंट में जो बोला क्या वो सभी बाते झूठ कहा था?
राघव... नहीं वो सभी बाते सच था लेकिन तुमने मेरे प्यार को स्वीकारा ही नहीं बल्कि मेरे आंखों में आंखे डालकर बोल दिया तुम्हारे और मेरे प्यार के बीच मेरी अपार संपत्ति दीवार बने खड़ी हैं। मैं….।
राघव इससे आगे बोल ही नहीं पाया क्योंकि श्रृष्टि राघव से लिपट गई और सिसकते हुए बोलीं…सॉरी सर मै भी आपसे उतना ही प्यार करती हूं जितना की आप मूझसे करते है। मैं तो...।
"इसलिए न की कुछ बाते हैं जो तुम्हें मेरे प्यार को स्वीकारने से रोक रहीं थी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए राघव भी श्रृष्टि से लिपट गया। हम्मम बस इतना ही श्रृष्टि कह पाई और राघव से लिपटे सुबकती रहीं तब राघव बोला... श्रृष्टि जब तुमने वो बात कहीं थी तब मैं खुद अचंभित था कि तुमने ऐसा कहा तो कहा क्यों? लेकिन जब दफ्तर पहूंच के तुम छुट्टी लेकर चली गईं तब मैंने रेस्टोरेंट की एक एक बात को फ़िर से मस्तिष्क में दोहराया तब मुझे समझ आया कि तुम मेरी आंखों में धूल झोंकने के लिए ही मेरी आंखो से आंखे मिलाकर पूर्ण आत्म विश्वास से वो बाते कहीं थी।
श्रृष्टि... इसके अलावा मैं और क्या करती आप मेरी शारीरिक भाषा से समझ जा रहे थे कि मेरा अंतर मन कुछ कहा रहा है और मुंह से कुछ ओर ही निकल रहा हैं
इतना कहाकर श्रृष्टि फिर से सुबकने लग गई तब श्रृष्टि का सिर खुद से तोड़ा अलग करके उसके आंखों में देखते हुए राघव बोला…बस श्रृष्टि बस अब और नही अब तुम मुझे वो बाते बताओ जिसके लिए तुम मुझे जीतना तकलीफ दे रही थीं उससे कहीं ज्यादा तकलीफ तुम खुद सह रहीं थीं।
श्रृष्टि... बताना जरूरी हैं।?
राघव... हां ज़रूरी हैं क्योंकि उन्हीं बातों के कारण मेरी श्रृष्टि जो मूझसे प्यार करते हुए भी स्वीकार नहीं पा रही थीं और तकलीफ सह रहीं थीं।
इसके बाद कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर श्रृष्टि ने वो सभी बाते बता दिया जो वो माताश्री के बारे में जानती थी और उसके अलावा यहां भी बता दिया कि माताश्री की बीती जिंदगी के बारे में जानकर कहीं राघव के परिवार वाले उसे ठुकरा न दे और उसके मां पर लांछन न लगा दे। इतना कहने के बाद श्रृष्टि बोलीं…मैं सब कुछ सह सकती हूं पर मां पर कोई मेरे कारण लांछन लगाएं ये मैं कभी नहीं सह सकती हूं। यहीं एक मूल वजह है आपको मना करने के पीछे।
राघव...श्रृष्टि तुम अपने मन से यह डर निकाल फेंको क्योंकि पापा तुम्हारे और मेरे शादी की बात करने आएं हैं। समझी।
श्रृष्टि... क्या शादी।?
राघव... हां हमारी शादी। मैं पापा को बता दिया था की मैं तुमसे प्यार करता हूं और पापा को भी इस बात से कोई आपत्ती नहीं है कि तुम हमारे कम्पनी में मुलाजिम हों या कुछ ओर।
ये बात सुनकर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फ़िर राघव से अलग होकर दो कदम पीछे गई फ़िर बोलीं…मुझे आप से शादी नहीं करनी।
राघव... अच्छा फ़िर से नखरे! चलो बताओं शादी क्यों नहीं करना?
श्रृष्टि... वो इसलिए, वो इसलिए... बस मुझे आपसे शादी नहीं करनी।
इतना बोलकर श्रृष्टि नीचे भाग गई और राघव भी उसके पीछे पीछे नीचे चला गया।
खेर इस बिच जब राघव और श्रुष्टि एक दूजे से बात या फिर यु कही की छेड़छाड़ कर रहे थे तब .......