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Romance श्रृष्टि की गजब रित

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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates… bhavon ko bahut ache se sambhal rahe ho aap 👏🏻👏🏻👏🏻
 

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भाग - 34


दिन के करीब चार बजे माताश्री कॉलेज से घर लौटी घर का मुख्य द्वार खुला था और श्रृष्टि की स्कूटी आंगन में खड़ी थीं। यह देखकर वो समझ गई कि श्रृष्टि घर आ गई हैं मगर एक सवाल उनके मस्तिष्क में कौंधा कि श्रृष्टि आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गई। कहीं उसकी तबीयत तो खराब तो नहीं हैं।

इस सवाल के उत्पन्न होते ही माताश्री तुरंत घर में प्रवेश किया। बैठक में श्रृष्टि को न पाकर आवाजे देते हुए श्रृष्टि के कमरे की ओर बढ़ गईं।

कमरे का द्वार खुला हुआ था। भीतर जाते ही देखा श्रृष्टि छीने के बल लेटी हुई थीं। तूरंत माताश्री उसके पास गईं और बिस्तर पे बैठकर श्रृष्टि के पीठ पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू आज इतनी जल्दी कैसे आ गईं।?

मां की आवाज सुनते ही श्रृष्टि तूरंत उठाकर बैठ गई और आंखों को पोंछने लग गईं। क्षणिक पल में ही माताश्री भाप गई श्रृष्टि किसी बात से बहुत आहत हुई हैं और उसकी भरपाई करते हुए अपने कोमल आंखो को बहुत कष्ट दिया हैं।

"श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू इतना क्यों रोई कि तेरी आंखे और चेहरा सूज सा गया हैं।"

श्रृष्टि... मां मुझे जिस बात का डर था आज वोही हो गया जिससे न जानें मैं कब से बचती आ रही थीं। आज सर ने अपने प्यार का इजहार कर दिया और मैं चाहकर भी उनके प्यार को अपना नहीं पाई।

इतना बोलकर श्रृष्टि की रुलाई फिर से फूट पड़ी और मां से लिपट गईं। माताश्री उसके सिर सहलाते हुए बोलीं... जब तू उससे इतना प्यार करती हैं। उससे दूर नहीं रह सकती हैं फ़िर मना क्यों किया?

मां के इस सवाल का जवाब श्रृष्टि के पास था पर दे नहीं पाई और माताश्री बखुबी समझ रहीं थीं कि किस वजह से श्रृष्टि इतना प्यार करने के बावजूद राघव को मना कर दिया। इसलिए वो खुद से बोलीं... श्रृष्टि बेटा हम कभी कभी इंसान को समझने में भुल कर बैठते हैं। यही भूल तू और मैं तेरे सर को लेकर कर बैठें। मेरी भूल उसी दिन टूट गई थी जिस दिन मेरी पैर में फैक्चर हुआ था और शाम को तेरी साक्षी मैम हमारे घर आई थी उस दिन साक्षी बिटिया ने मुझे कुछ ऐसी बातें बताया जिसे जानकर मैं समझ गई कि तेरे सर तेरे पापा और नाना नानी जैसे दोहरे चरित्र वाला नहीं है।

श्रृष्टि तूरंत मां से अलग हुई और अपने आंखों को पोछते हुए बोली... उस दिन तो मैं आप दोनों के साथ ही थी फ़िर कब बताया कहीं आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।

"नहीं रे मैं क्यों झूठ बोलने लगीं उस दिन जब तू चाय बनाने गई थी तब बोला था। क्या बोला था ये मैं तूझे नहीं बोल सकती क्योंकि साक्षी बिटिया ने वो बाते तूझे बताने से मना किया था। तूझे जानना हैं तो साक्षी बिटिया से पूछ लेना।"

श्रृष्टि... वो तो मैं पूछ ही लूंगी साली मादर....तभी मा ने उसके मुह पे हाथ रख दिया और बोली नो गाली। जान लो अब वो तुम्हारी बहन है

सोरी मां, मा मैं कुछ कुछ तो जान ही गई थीं कि सर दोहरे चरित्र वाले नहीं हैं लेकिन उनके घर वाले ऐसे हुए तो क्या होगा और अगर नहीं हुए तो कहीं वो आप के बारे में जानकर आप पे लांछन लगाकर मुझे ठुकरा दिया तो।? मैं सब कुछ सह सकती हूं पर कोई आप पर लांछन लगाएं ये मैं नहीं सह सकती सिर्फ इसी कारण मैं सर को मना कर दिया।

बेटी की बाते सुनते ही माताश्री की पलके भारी हों गई और आंखे मिच लिया फ़िर श्रृष्टि को खुद से लिपटा कर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि आज तेरी बातों ने मुझे भी ये सोचने पर मजबूर कर दिया और जो साक्षी ने भी बोला था कि तू जब मेरे कोख में थी जरूर मैंने अलहदा कुछ खाया था जिसके कारण तू ऐसी सोच के साथ पैदा हुइ। जहां प्यार होते ही प्रेमी सिर्फ अपने खुशी की सोचते हैं वहीं तू सिर्फ इसलिए अपना प्यार कुर्बान कर रही है ताकि तेरे मां पर लांछन न लगें। तूझे अपना प्यार कुर्बान करने की जरूरत नहीं हैं तू अभी के अभी फोन कर और तेरे सर को हां कर दे।

श्रृष्टि... मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी मैं जुदाई सह लूंगी पर आप पर लांछन लगे ये सह नहीं पाऊंगी।

"अरे पगली मां पर इतना तो भरोसा कर ले तेरे कारण तेरी मां पर लांछन नहीं लगेगा।"

श्रृष्टि... मतलब क्या हैं आपका?

"बस इतना जान ले कुछ बातें समय आने पर पता चले तो ही बेहतर होता हैं।"

श्रृष्टि... मतलब आप सर के परिवार के बारे मे जानते है। बताओं न मां आप उनके परिवार के बारे में क्या जानते हों।?

"क्या और कैसे जानती हूं ये तेरे लिए अभी जानना ज़रूरी नही है। जब समय आएगा मैं तूझे बता दूंगी अभी जो जरूरी है वहीं कर तेरे सर को फ़ोन कर और हां बोल दे।"
अपने प्यार को मार मत बेटी


मां से “हां” बोलने की बात सुनकर श्रृष्टि का चेहरा खिल उठा और तूरंत फोन उठा लिया फ़िर कुछ सोचकर मुस्करा दिया और फ़ोन को वापस रख दिया।

"क्या हुआ फ़ोन क्यों रख दिया?"

श्रृष्टि…कल दफ्तर जाकर मै खुद उन्हे डेट पर चलने को कहूंगी फिर वहीं पर ही उनके प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लूंगी और कुछ बातों की माफी भी मांग लूंगी जो आज मैंने उन्हें कहा था।

"एक तो प्रपोजल एक्सेप्ट नहीं किया। ऊपर से कुछ कह आई। बता क्या कह आई? जिसके लिए तूझे माफी मांगनी हैं।"

श्रृष्टि... ये बातें उनके ओर मेरे बीच की हैं जिसे मैं किसी को भी नहीं बताने वाली।

माताश्री ने जानने की जिद्द भी नहीं कियाबस सिर्फ अनुभवी आँखों ने उसे भाप ने की कोशिश की। श्रृष्टि को देखकर वो समझ गई। बाते बहुत बडी है। जिसके कारण उसकी खुशी में हल्की सी उदासी और अफसोस झलक रहीं थीं।

अब उसके मन के मोर फिर नाच उठे थे
 

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अगले दिन जब श्रृष्टि दफ्तर पहुंची तो उसका चेहरा खिला हुआ था। भीतर ही भीतर श्रृष्टि प्रफुल्लित महसूस कर रहीं थीं।

जिसे देखकर साक्षी समझ गई कि इसका कारण क्या हों सकता हैं फिर भी वो बार बार श्रृष्टि से पूछ रहीं थीं और श्रृष्टि बाद में बताऊंगी कहकर टाल दे रहीं थीं।

धीरे धीरे वक्त बीता लेकिन श्रृष्टि को राघव अभी तक नहीं दिखा। तब राघव से मिलने चली गईं। वहा राघव के जगह किसी ओर को बैठा देखकर चौक गई और बिना कुछ बोले वापिस आ गईं। वापस आकर साक्षी से पुछा तो साक्षी ने बता दिया की राघव कुछ दिनों के लिए बहार गया हैं।

राघव की न होने की बात जानकर श्रृष्टि को अफसोस हों रहा था। इसलिए उसने अपना मोबाइल निकला और एक msg राघव को भेज दिया फिर अपना काम करने लग गईं।

अभी कुछ ही वक्त बीता था कि "सूना है कोई नई नई आई हैं जिसकी खूब चर्चे हों रहीं हैं" की आवाज वहा गुंजा।

बोलने वाले शख्श को देखकर श्रृष्टि फ़िर से चौक गईं और साक्षी सहित बाकि सभी लोग उसे देखकर औपचारिक बाते करने लग गए मगर बातों के दौरान वह शख्स श्रृष्टि को देखकर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा रहा था और अपने होठों पर जीभ फिराकर सूखे होंठो को गीला कर रहा था।

यह देखकर श्रृष्टि का हावभाव बदल गया जहां वो खुशी से चहक रहीं थी पल भर में उसकी खुशी गुस्से में बदल गई और मुट्ठी को सकती से भींचे खड़ी थीं।

वह शख्स कुछ कदमों का फैंसला तय करके श्रृष्टि के पास गया और उसके सिर से पाव तक नज़रे फेरकर बोला...बड़ा ही खिला खिला फूल लग रही हों वैसे बता सकती हो किस भंवरे ने रस चूस कर कली से फूल बना दिया।

इन शब्दों का मतलब वह मौजद एक एक शख्स समझ गया था और श्रृष्टि का गुस्सा आसमान को छू गया। दोनों मुठ्ठी को शक्ति से भीचे दांत किटकिटाते हुए बोलीं... अरमान सर तमीज से बात करना सीख लिजिए आपके बहुत काम आएगा। खासकर किसी लड़की से, किसी लङकी के बारे में कुछ भी बोलने से पहले जानकारी ले लेना चहिए। एक वो राघव सर हैं जो सभी से कितने सलीके से पेश आते है एक आप हों जिसे तमीज से सख्त परहेज हैं।

अरमान... राघव मेरा भाई तो है पर सगा नहीं सौतेला इसलिए मेरा उससे कोई सरोकार नहीं हैं और तमीज की बात तू न ही करें तो बेहतर हैं। भूल गई मॉल वाली बात।

श्रृष्टि... भूली नहीं वहा भी बदतमीजी आप ही ने किया था इसलिए तो...।

"अरमान राघव सर नहीं हैं इसका मतलब ये नहीं की तू किसी के साथ बदतमीजी करेगा।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर साक्षी बोलीं

"तू मेरी दोस्त है या राघव की चमची भूल गई मेरे ही कारण तूझे यहां नौकरी मिली थी।" अरमान साक्षी की और बढ़ते हुए बोला

साक्षी... हां ये सच हैं की नौकरी तेरे कारण मिली थी। लेकिन यहां टिकी हुई हूं तो सिर्फ मेरे टैलेंट के कारण अब तू यहां से जाता हैं कि राघव या फिर तिवारी सर को फ़ोन करू।

तिवारी का नाम आते ही अरमान वहा से खिसक लिया मगर जाते जाते श्रृष्टि को बोला... मॉल में जो किया था उसका बदला तो मैं तेरे से लेकर रहूंगा। भारी भीड़ में मुझे बेइज्जत किया था न देख अब मैं तेरा क्या हस्र करता हूं।

जारी रहेगा...
 

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भाग - 35


अरमान बोलकर चला गया और साक्षी सहित सभी श्रृष्टि को अचंभित होकर देखने लग गए। जहां श्रृष्टि गुस्से में फुफकार रहीं थीं। ये देख साक्षी एक गिलास पानी श्रृष्टि को दिया। जिसे पीकर श्रृष्टि का गुस्सा कुछ कम हुआ तब साक्षी बोली... श्रृष्टि तूने ऐसा किया क्या था? जिसका बदला अरमान तुझसे लेना चाहता हैं।

श्रृष्टि... जिस दिन मैं यह साक्षत्कार देने आई थी उससे एक दिन पहले की बात हैं। मैं और समीक्षा शॉपिंग पर गए थे। जब हम बिल काउंटर पर बिल पे कर रहे थे। तभी ये हरामी मेरे पीछे हाथ रख दिया सिर्फ रखा ही नहीं दा…(आस पास देखकर वो पूरा नहीं बोली रूक गई कुछ देर रूकने के बाद आगे बोली) तब मैंने इसे खीच कर दो तीन करारे थप्पड़ जड़ दिऐ...थे।

"क्या थाप्पड जड़ दिया।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर चौकते हुए साक्षी बोलीं तू ऐसा भी कर सकती है मुझे ऐसा अंदाजा नहीं था|

"साक्षी मैम इसमें चौकने की कोई बात नही है अरमान सर ने हरकते ही ऐसा किया था।" एक सहयोगी बोला

"राघव सर के होते हुए भी दफ्तर में सभी से बदतमीजी से पेश आता है। तो बाहर तो पता नहीं किया किया करता होगा।" एक और साथी बोला

शिवम... श्रृष्टि मैम आपने सही नाम दिया हरामी साला कमीना कहीं का जहां राघव सर सभी से कितने तमीज से पेश आते है। चाहें वो सफाई वाला ही क्यों न हों और ये हरामी सभी से ऐसे पेश आता है जैसे कीड़ा मकौड़ा हों। महीनों से नहीं था तो सभी शान्ति से रह रहे थे अब आ गया है पता नहीं क्या क्या करेगा और श्रृष्टि मैम आप जरा बचकर रहना।

श्रृष्टि... बचकर किया रहना ज्यादा बदतमीजी करेगा तो अच्छे से उसके गालों को छैंक दूंगी।

साक्षी…मैं वो नौबत ही नहीं आने दूंगी। अभी राघव सर को फ़ोन करके बताती हूं।

"नहीं साक्षी अभी रहने दे वो काम से गए हैं। ऐसी बातें जानकर बहुत परेशान हों जायेंगे।" साक्षी को रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी... ओ हो बड़ी फिक्र है उनकी हां होनी भी चहिए उनकी मा…(आस पास देखकर माशूका पूरा नहीं बोलीं फिर कुछ देर रूक कर आगे बोलीं) चल आज रहने देती हूं आगे इसने परेशान किया तो मैं किसी की नहीं सुनुगी।

इसके बाद सभी काम में लग गए। लंच के वक्त सभी खाना खा रहे थे तभी श्रृष्टि का फ़ोन बजा स्क्रीन पर नाम देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर वॉल्यूम बटन दबाकर फोन को साइलेंट कर दिया। उसके बाद कई बार फ़ोन बजा हर बार श्रृष्टि ने ऐसा किया।

कुछ देर बाद साक्षी का फ़ोन बजा तो साक्षी फोन लेकर साईड में चली गई फिर फ़ोन रिसीव करके बोलीं... हां सर बोलिए।

"ये श्रृष्टि फ़ोन क्यों नहीं रिसीव कर रही हैं। पहले तो खुद msg करती है सॉरी सर आप कब आ रहे हो जल्दी से आना मेरे पास आपके लिए एक सरप्राइस है। अब कॉल कर रहा हूं तो रिसीव नहीं कर रहीं हैं।"

साक्षी... आपकी माशूका है आप ही जानो कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। वैसे ये सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं।

"सॉरी क्यों बोला ये आकर बता दूंगा। लेकिन सरप्राइस क्या है ये श्रृष्टि ही जानें वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाजा है।"

साक्षी...नॉटी बॉय कल ही प्रपोज किया और इतनी जल्दी बड़ी...।

"हट पगली कुछ भी सोचती है। मैं रखता हूं।" इतना बोलकर कॉल काट दिया।

इसके बाद साक्षी श्रृष्टि के पास गई और उससे पूछने लगी की वो राघव का कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं। उसकी एक ऊँगली श्रुष्टि के पेट की तरफ बढाते हुई तो श्रुष्टि ने उसकी ऊँगली को वाही टोक दिया और इशारे से समझाया की जगह सानुकूल नहीं है तो उसने भी टाल दिया ये कह कर की बाद में बताएगी।
 

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राघव को गए लगभग एक हफ्ता हों चुका था। इन एक हफ्ते में अरमान दफ्तर आने के बाद कुछ देर काम करता कभी नहीं करता फिर जा पहुंचता श्रृष्टि लोगों के पास वहां पहुंचते ही शुरू हो जाता।

उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ श्रृष्टि ही थी। उसके साथ वाहियात हरकते करता बदजुबानी करता कभी कभी तो श्रृष्टि को यह वहा छूने की कोशिश करता और हर बार श्रृष्टि उसके वाहियात हरकतों के लिए जी भरके सूना देती लेकिन अरमान पे कोई असर ही नहीं होता।

आज भी अरमान वहां पहोचा और चुपके से द्वार खोलकर भीतर गया जहां सभी अपने अपने काम में मग्न थे और श्रृष्टि खड़ी थी। उसका ध्यान प्रोजेक्टर पर था।

अरमान धीरे से श्रृष्टि के पास पहोचा और एक हाथ से उसके नितंब की गोलाई नाप ने की नकार कोशिश की कुछ ही देर में एक झन्नाटेदार थाप्पड़ अरमान को हिला दिया उसके बाद तो एक के बाद एक कई थाप्पड़ अरमान के गालों का मस्त छिकाईं कर दिया फ़िर श्रृष्टि चीखते हुए बोलीं...तुझ जैसा गिरा हुआ इंसान मैंने आज तक नहीं देखा तूझे पैदा करने वाले भी तेरे जैसा कमीना होगा तभी तुझ जैसा जलील पैदा हुआ। जिसे कितनी भी गालियां दे लो फर्क ही नहीं पड़ता।

"तेरी तो..मा की चु.....।" बस इतना ही अरमान ने बोला था की एक और झन्नाटेदार थाप्पड़ उसके गालों को हिला दिया। इस बार थप्पड़ मरने वाली साक्षी थीं।

साक्षी... तू तो जानवर कहलाने के लायक भी नहीं उन्हें एक बार डांटो फटकारों तो कहना मान लेते है मगर तू.. तू तो उनसे भी गया गुजरा हैं जिस पर किसी भी बात का फर्क हैं नहीं पड़ता।

अरमान आगे कुछ बोलता उसे पहले दूसरे सहयोगी में से एक बोला...अरमान आज तूने हद पर कर दिया। अब तू चुप चाप निकल जा वरना हम भूल जायेंगे की तू यहां का मालिक हैं। और एक कुत्ते से बदतर बन कार बाहर जाएगा

शिवम...अरे कहां भेज रहा है पकड़ इसे आज इसे चप्पल की माला पहनाकर दफ्तर में मौजूद सभी लड़कियों के पैर चटवाएंगे।

माहौल बिगड़ता देख अरमान खिसक लेना ही बेहतर समझा और श्रृष्टि धम से वहा बैठ गई और सुबकने लग गई।

साक्षी ने मोर्चा संभाला और श्रृष्टि को दिलासा देने लग गईं। कुछ देर बाद श्रृष्टि खड़ी हुई और बोलीं... मैं आज ही इस्तीफा देखकर यहां का जॉब छोड़ दूंगी मुझे ऐसे जगह काम नहीं करना जहां अरमान जैसे जलील लोग हो उसे उसकी इज्जत की फिक्र नहीं पर मुझे मेरी इज्ज़त सब से प्यारी हैं।

साक्षी... श्रृष्टि मेरी बात सुन इस बारे में राघव सर को कुछ भी पता नहीं पहले उन्हें बताते हैं। अगर उन्होंने अरमान पर कोई एक्शन नहीं लिया तो सिर्फ तू ही नहीं हम सभी इस्तीफा दे देगें।

इसके बाद तो एक एक करके सभी साक्षी की कही बात दोहराया फ़िर श्रृष्टि मान गई तब साक्षी ने राघव को फोन करके वहां क्या क्या पिछले कुछ दिनों में हुआ सभी बता दिया साथ ही इसकी शुरुआत कब से हुआ यह भी बता दिया।

राघव सभी बाते सुनते ही गुस्से में तिलमिला उठा और बोला... साक्षी फोन श्रृष्टि को दो।

साक्षी ने फोन श्रृष्टि के कान में लगा दिया और राघव बोला... श्रृष्टि मैं अभी यहां से निकल रहा हूं। घर पहुंचते ही पहले अरमान का बो हांल करुंगा की जिदंगी भर किसी भी लङकी के साथ बदसलूकी नहीं करेगा। बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना।

इतना बोलकर राघव ने फोन काट दिया फिर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि सर क्या बोले

श्रृष्टि... सर बोल रहे थे वो अभी वहा से निकल रहें हैं और कह रहें थे मुझे….।

आगे पूरा नहीं बोलीं बस इतने में ही चुप हों गई और साक्षी उसके कहने का मतलब समझकर मुस्कुरा दिया फ़िर कुछ देर में सब सामान्य हो गया।

जारी रहेगा….



 
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