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रिसेप्शन के बाद के दिनों में दोनों की दिनचर्या बँध गई। मीनाक्षी जल्दी उठ जाती, जिससे वो समीर को नाश्ता खिला कर ऑफिस भेज सके। दिन में वो लिखने पढ़ने का काम करती। डांस करती। जिम जाती। आस पड़ोस में और महिलाओं से बात करती। शाम को समीर के आने के बाद उसके लिए नाश्ता रखती। डिनर पर से समीर का एकाधिकार ख़तम हो रहा था। डिनर दोनों मिल कर पकाते। सप्ताहांत में मम्मी डैडी आते, और उनके साथ गप्पें लड़ाने, और मज़े करने में निकल जाता।
मीनाक्षी धीरे धीरे करके समीर के साथ खुलने लगी। दोनों कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते थे, बस, वो दैनिक छोटी-छोटी बातें - जैसे कि समीर का दिन कैसा रहा, उसका खुद का दिन कैसा रहा, क्या देखा, क्या पढ़ा, क्या किया, क्या खाया, ऑफिस में किसने क्या कहा, क्या सुना - बस ऐसी ही छोटी-छोटी बातें! मीनाक्षी ने समीर के साथ अपने किसी बड़े रहस्य को साझा नहीं किया। लेकिन उसने समीर से सहजता के साथ बात करना शुरू कर दिया।
एक बार समीर ने मीनाक्षी से अपने ऑफिस के काम से सम्बंधित किसी बात के सिलसिले में उससे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव मांगे। मीनाक्षी को यकीन ही नहीं हुआ कि वो उससे इस विषय में सलाह मांग सकता है - उसने इंजीनियरिंग की कोई पढ़ाई नहीं करी थी, अब ऐसे में वो समीर को क्या सलाह देती? और तो और, क्या यह एक स्त्री का कोई स्थान है कि वो अपने पति को किसी तरह की कोई सलाह दे? उसको याद आया एक बार की बात जब उसके पापा ने उसकी माँ से इसी तरह अपने काम के सिलसिले में एक प्रश्न पूछ लिया। माँ ने सोचा कि शायद पापा उनसे वाकई कोई उत्तर या सलाह चाहते हैं। लेकिन जब उन्होंने जवाब दिया तो पापा झल्ला गए।
इसलिए मीनाक्षी के मन में अज्ञात का भय था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी किसी नादानी के कारण, ये जो हँसी ख़ुशी के दिन बीत रहे हैं, उनमे कोई विघ्न पड़े। लेकिन समीर ने पूछा था तो कुछ तो बताना ही चाहिए। विषय ज्ञान तो नहीं था। मीनाक्षी ने समीर की तरफ देखा; वो किसी उत्तर या सुझाव की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहा था। थोड़ा अनिश्चय के साथ ही सही, लेकिन मीनाक्षी ने सुझाव देना शुरू किया, और समीर ने सुना। पूरा सुना। पूरी गंभीरता और पूरे आदर के साथ। सुझावों के कुछ बिंदुओं पर उसने मीनाक्षी के साथ कुछ देर तक प्रतिवाद भी किया।
जब वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गया, तो मुस्कुराते हुए ‘थैंक यू … आई मैरिड एन इंटेलीजेंट गर्ल’ बोल कर कमरे से बाहर निकल गया। अपनी उपयोगिता और महत्ता पर आज मीनाक्षी को खूब गर्व महसूस हुआ। आज उसके अंदर एक अलग तरह का आत्मविश्वास पैदा होने लगा था।
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नॉएडा में मीनाक्षी की कुछ सहेलियाँ रहती थीं, जो उसकी शादी में उपस्थित थीं। उनमे से कुछ रिसेप्शन में भी आई थीं। एक बार मीनाक्षी का मन हुआ कि वो उनसे मिल आए। इस बाबत उसने समीर से अपने दोस्तों से मिलने के बारे में आज्ञा चाही।
मीनाक्षी ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “क्या मैं अपनी सहेलियों से मिलने जा सकती हूँ? वो एक शेयर्ड अपार्टमेंट में रहती हैं - शायद आज रात रुकना पड़ जाए। लेकिन मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगी और कैसी भी बेवकूफी वाला काम नहीं करूँगी। आप चाहें तो मुझे फोन कर सकते हैं, या उनको फ़ोन कर सकते हैं। ये डायरी में उनका नंबर भी लिख दिया है। मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगी। जा सकती हूँ?”
जिस तरह की मीनाक्षी की परवरिश थी, उसमें उसको सिखाया गया था कि शादी के बाद स्त्री पर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है। बिना पति की आज्ञा के कोई कार्य नहीं करना।
लेकिन समीर की गुस्से से भरी शकल देख कर मीनाक्षी का दिल बैठ गया। आज तक समीर को गुस्से में उसने नहीं देखा था। कुछ देर समीर ने कुछ कहा नहीं - वाकई वह बहुत गुस्से में था। उसका यह रूप देख कर उसको डर लग गया। ज़रूर कोई गड़बड़ी हो गई है उससे! उसको लगा कि जैसे वो समीर के सामने नग्न खड़ी हुई है। शर्म के मारे उसकी आँखें जैसे ज़मीन में धंस गईं। आज समीर उसको एक और पाठ पढ़ाने वाला था।
समीर ने लगभग निराश होते हुए कहा, “मीनाक्षी,” (रोज़ के जैसे उसने उसको ‘मिनी’ कह के नहीं पुकारा) “मैंने आपको कितनी बार कहा है कि आप मेरी पत्नी हैं! कितनी बार? और अपनी सहेलियों से मिलने जाने के लिए आप मेरी परमिशन क्यों ले रही हैं? आप मेरी एम्प्लॉई हैं क्या? छुट्टी की एप्लीकेशन लगाओ अब से! ठीक है न?”
फिर कुछ ठहर कर, कम गुस्से में उसने आगे कहा, “आप मुझे बस बता दिया करें! जिससे मुझे मालूम रहे कि आप किसी परेशानी में तो नहीं हैं! बस! उतना काफी है। जाओ। लेकिन अब से ऐसे भीख मत माँगो! प्लीज़!” उसने कहा और वहाँ से चला गया। खुश तो बिलकुल ही नहीं था।
समीर की बातों और उसके बर्ताव से मीनाक्षी को धक्का लगा। सच में, पहले दिन से ही समीर ने उसको इतना आदर दिया था जितना की उसको अपने घर में नहीं मिला था। और यह बात तो उसने कम से कम दस हज़ार बार दोहराई होगी कि मीनाक्षी उसकी पत्नी है, और उसका समीर के जीवन में बराबर का अधिकार है। मीनाक्षी को लगा कि उसने वाकई समीर को निराश कर दिया। मीनाक्षी समीर के पीछे पीछे गई। वह बालकनी से नीचे सड़क को देख रहा था। मीनाक्षी भी उसके संग, उसके बराबर आ कर खड़ी हो गई और नीचे देखा।
“समीर (समीर का नाम अपने मुँह पर आते ही मीनाक्षी एक दो पल के लिए रुक गई - आज उसने पहली बार यह नाम बोला था), मैं सीख रही हूँ। प्लीज मेरे साथ थोड़ा धीरज रखिए।”
मीनाक्षी ने नीचे देखते हुए बोलना जारी रखा, “मेरी जैसी परवरिश रही है, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ? अपने पति से बात करने के लिए मेरी माँ ने मुझे एक लम्बी चौड़ी लिस्ट दी हुई है, कि मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं! कैसे बिहेव करूँ और कैसे नहीं। लेकिन आपके साथ उस लिस्ट की एक भी बात फिट नहीं होती।”
“लेकिन मेरा यकीन मानिए कि मैं सीख रही हूँ। थोड़ा और बर्दाश्त कर लीजिए। प्लीज मुझसे निराश मत होईए।”
मीनाक्षी की बात पर समीर ठट्ठा मार कर हँसा - लेकिन उसकी हंसी में उपहास नहीं परिहास था।
“ओह आई ऍम सॉरी! आई ऍम सॉरी! मैं आप पर नहीं हँस रहा था। वो लिस्ट वाली बात पर हँस रहा था। आल्सो, आई ऍम सॉरी फॉर माय बिहेवियर। मैंने आपसे बदतमीज़ी से बात की, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ। मैं आपकी बात याद रखूँगा। लेकिन आप भी वायदा करिए कि अब आप ‘अपने घर’ में हैं, अपने माँ बाप के घर में नहीं। हम दोनों आगे का सोचेंगे! अतीत का नहीं! है न?”
कहते हुए समीर ने एक क्षण के लिए मीनाक्षी की पीठ को छुआ। दिलासा देने के लिए। यह इतना जादुई स्पर्श था कि मीनाक्षी की आत्मा ने भी उसको महसूस किया। मीनाक्षी के मन में यह विचार आया कि काश समीर उसको चूम ले! उसने महसूस किया कि अगर समीर उसको इस समय चूम लेगा, तो उसको खुद को बहुत अच्छा लगेगा।
समीर ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए अपनी एक हथेली उसके गाल पर रखी और दूसरी से उसके चेहरे पर उतर आई उसकी लटों को पीछे की तरफ फेर दिया। और फिर उसने मीनाक्षी का मुख चूम लिया।
“किसी चीज़ की ज़रुरत हो, तो मुझे बता दीजिएगा। और वॉलेट से पैसे निकाल कर रख लीजिए। और….” इसके पहले समीर उसको और कोई हिदायद देता, मीनाक्षी ने उसके होंठों पर अपनी तर्जनी रख कर उसको चुप हो जाने का इशारा किया।
‘मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं।’
मीनाक्षी के मन में समीर की कही हुई ये बात कौंध गई। उसकी आँखों के कोनों में आँसू उतर गए। उसने आँखें बंद कर समीर को आलिंगनबद्ध कर वापस उसके होंठ चूम लिए।
“आई लव यू!” मीनाक्षी ने कहा।
मीनाक्षी धीरे धीरे करके समीर के साथ खुलने लगी। दोनों कोई बहुत बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते थे, बस, वो दैनिक छोटी-छोटी बातें - जैसे कि समीर का दिन कैसा रहा, उसका खुद का दिन कैसा रहा, क्या देखा, क्या पढ़ा, क्या किया, क्या खाया, ऑफिस में किसने क्या कहा, क्या सुना - बस ऐसी ही छोटी-छोटी बातें! मीनाक्षी ने समीर के साथ अपने किसी बड़े रहस्य को साझा नहीं किया। लेकिन उसने समीर से सहजता के साथ बात करना शुरू कर दिया।
एक बार समीर ने मीनाक्षी से अपने ऑफिस के काम से सम्बंधित किसी बात के सिलसिले में उससे कुछ महत्वपूर्ण सुझाव मांगे। मीनाक्षी को यकीन ही नहीं हुआ कि वो उससे इस विषय में सलाह मांग सकता है - उसने इंजीनियरिंग की कोई पढ़ाई नहीं करी थी, अब ऐसे में वो समीर को क्या सलाह देती? और तो और, क्या यह एक स्त्री का कोई स्थान है कि वो अपने पति को किसी तरह की कोई सलाह दे? उसको याद आया एक बार की बात जब उसके पापा ने उसकी माँ से इसी तरह अपने काम के सिलसिले में एक प्रश्न पूछ लिया। माँ ने सोचा कि शायद पापा उनसे वाकई कोई उत्तर या सलाह चाहते हैं। लेकिन जब उन्होंने जवाब दिया तो पापा झल्ला गए।
इसलिए मीनाक्षी के मन में अज्ञात का भय था। वो नहीं चाहती थी कि उसकी किसी नादानी के कारण, ये जो हँसी ख़ुशी के दिन बीत रहे हैं, उनमे कोई विघ्न पड़े। लेकिन समीर ने पूछा था तो कुछ तो बताना ही चाहिए। विषय ज्ञान तो नहीं था। मीनाक्षी ने समीर की तरफ देखा; वो किसी उत्तर या सुझाव की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहा था। थोड़ा अनिश्चय के साथ ही सही, लेकिन मीनाक्षी ने सुझाव देना शुरू किया, और समीर ने सुना। पूरा सुना। पूरी गंभीरता और पूरे आदर के साथ। सुझावों के कुछ बिंदुओं पर उसने मीनाक्षी के साथ कुछ देर तक प्रतिवाद भी किया।
जब वो पूरी तरह से संतुष्ट हो गया, तो मुस्कुराते हुए ‘थैंक यू … आई मैरिड एन इंटेलीजेंट गर्ल’ बोल कर कमरे से बाहर निकल गया। अपनी उपयोगिता और महत्ता पर आज मीनाक्षी को खूब गर्व महसूस हुआ। आज उसके अंदर एक अलग तरह का आत्मविश्वास पैदा होने लगा था।
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नॉएडा में मीनाक्षी की कुछ सहेलियाँ रहती थीं, जो उसकी शादी में उपस्थित थीं। उनमे से कुछ रिसेप्शन में भी आई थीं। एक बार मीनाक्षी का मन हुआ कि वो उनसे मिल आए। इस बाबत उसने समीर से अपने दोस्तों से मिलने के बारे में आज्ञा चाही।
मीनाक्षी ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “क्या मैं अपनी सहेलियों से मिलने जा सकती हूँ? वो एक शेयर्ड अपार्टमेंट में रहती हैं - शायद आज रात रुकना पड़ जाए। लेकिन मैं जल्दी आने की कोशिश करूँगी और कैसी भी बेवकूफी वाला काम नहीं करूँगी। आप चाहें तो मुझे फोन कर सकते हैं, या उनको फ़ोन कर सकते हैं। ये डायरी में उनका नंबर भी लिख दिया है। मैं जल्दी ही वापस आ जाऊंगी। जा सकती हूँ?”
जिस तरह की मीनाक्षी की परवरिश थी, उसमें उसको सिखाया गया था कि शादी के बाद स्त्री पर उसके पति का पूर्ण अधिकार होता है। बिना पति की आज्ञा के कोई कार्य नहीं करना।
लेकिन समीर की गुस्से से भरी शकल देख कर मीनाक्षी का दिल बैठ गया। आज तक समीर को गुस्से में उसने नहीं देखा था। कुछ देर समीर ने कुछ कहा नहीं - वाकई वह बहुत गुस्से में था। उसका यह रूप देख कर उसको डर लग गया। ज़रूर कोई गड़बड़ी हो गई है उससे! उसको लगा कि जैसे वो समीर के सामने नग्न खड़ी हुई है। शर्म के मारे उसकी आँखें जैसे ज़मीन में धंस गईं। आज समीर उसको एक और पाठ पढ़ाने वाला था।
समीर ने लगभग निराश होते हुए कहा, “मीनाक्षी,” (रोज़ के जैसे उसने उसको ‘मिनी’ कह के नहीं पुकारा) “मैंने आपको कितनी बार कहा है कि आप मेरी पत्नी हैं! कितनी बार? और अपनी सहेलियों से मिलने जाने के लिए आप मेरी परमिशन क्यों ले रही हैं? आप मेरी एम्प्लॉई हैं क्या? छुट्टी की एप्लीकेशन लगाओ अब से! ठीक है न?”
फिर कुछ ठहर कर, कम गुस्से में उसने आगे कहा, “आप मुझे बस बता दिया करें! जिससे मुझे मालूम रहे कि आप किसी परेशानी में तो नहीं हैं! बस! उतना काफी है। जाओ। लेकिन अब से ऐसे भीख मत माँगो! प्लीज़!” उसने कहा और वहाँ से चला गया। खुश तो बिलकुल ही नहीं था।
समीर की बातों और उसके बर्ताव से मीनाक्षी को धक्का लगा। सच में, पहले दिन से ही समीर ने उसको इतना आदर दिया था जितना की उसको अपने घर में नहीं मिला था। और यह बात तो उसने कम से कम दस हज़ार बार दोहराई होगी कि मीनाक्षी उसकी पत्नी है, और उसका समीर के जीवन में बराबर का अधिकार है। मीनाक्षी को लगा कि उसने वाकई समीर को निराश कर दिया। मीनाक्षी समीर के पीछे पीछे गई। वह बालकनी से नीचे सड़क को देख रहा था। मीनाक्षी भी उसके संग, उसके बराबर आ कर खड़ी हो गई और नीचे देखा।
“समीर (समीर का नाम अपने मुँह पर आते ही मीनाक्षी एक दो पल के लिए रुक गई - आज उसने पहली बार यह नाम बोला था), मैं सीख रही हूँ। प्लीज मेरे साथ थोड़ा धीरज रखिए।”
मीनाक्षी ने नीचे देखते हुए बोलना जारी रखा, “मेरी जैसी परवरिश रही है, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ? अपने पति से बात करने के लिए मेरी माँ ने मुझे एक लम्बी चौड़ी लिस्ट दी हुई है, कि मैं क्या कर सकती हूँ और क्या नहीं! कैसे बिहेव करूँ और कैसे नहीं। लेकिन आपके साथ उस लिस्ट की एक भी बात फिट नहीं होती।”
“लेकिन मेरा यकीन मानिए कि मैं सीख रही हूँ। थोड़ा और बर्दाश्त कर लीजिए। प्लीज मुझसे निराश मत होईए।”
मीनाक्षी की बात पर समीर ठट्ठा मार कर हँसा - लेकिन उसकी हंसी में उपहास नहीं परिहास था।
“ओह आई ऍम सॉरी! आई ऍम सॉरी! मैं आप पर नहीं हँस रहा था। वो लिस्ट वाली बात पर हँस रहा था। आल्सो, आई ऍम सॉरी फॉर माय बिहेवियर। मैंने आपसे बदतमीज़ी से बात की, उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ। मैं आपकी बात याद रखूँगा। लेकिन आप भी वायदा करिए कि अब आप ‘अपने घर’ में हैं, अपने माँ बाप के घर में नहीं। हम दोनों आगे का सोचेंगे! अतीत का नहीं! है न?”
कहते हुए समीर ने एक क्षण के लिए मीनाक्षी की पीठ को छुआ। दिलासा देने के लिए। यह इतना जादुई स्पर्श था कि मीनाक्षी की आत्मा ने भी उसको महसूस किया। मीनाक्षी के मन में यह विचार आया कि काश समीर उसको चूम ले! उसने महसूस किया कि अगर समीर उसको इस समय चूम लेगा, तो उसको खुद को बहुत अच्छा लगेगा।
समीर ने उसकी तरफ प्यार से देखते हुए अपनी एक हथेली उसके गाल पर रखी और दूसरी से उसके चेहरे पर उतर आई उसकी लटों को पीछे की तरफ फेर दिया। और फिर उसने मीनाक्षी का मुख चूम लिया।
“किसी चीज़ की ज़रुरत हो, तो मुझे बता दीजिएगा। और वॉलेट से पैसे निकाल कर रख लीजिए। और….” इसके पहले समीर उसको और कोई हिदायद देता, मीनाक्षी ने उसके होंठों पर अपनी तर्जनी रख कर उसको चुप हो जाने का इशारा किया।
‘मैं आपको जानना चाहता हूँ। इतना कि बिना आपके कुछ बोले मुझे समझ में आ जाए कि आप क्या सोच रही हैं।’
मीनाक्षी के मन में समीर की कही हुई ये बात कौंध गई। उसकी आँखों के कोनों में आँसू उतर गए। उसने आँखें बंद कर समीर को आलिंगनबद्ध कर वापस उसके होंठ चूम लिए।
“आई लव यू!” मीनाक्षी ने कहा।