इस घटना के कोई दस दिन बाद स्वतंत्रता दिवस था। और उस कारण तीन दिनों की छुट्टी मिलती। समीर ने सुझाया कि कहीं घूमने चला जाए। लेकिन मीनाक्षी ने कहा कि पूरे परिवार के साथ कुछ दिन बिताते हैं। ठीक बात थी, सभी से मिले कुछ समय भी हो गया था। समीर ने कॉल कर के अपने सास ससुर और आदेश को घर आने का न्योता दिया। इसको सभी ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया। सभी लोग पंद्रह अगस्त की शाम को आने वाले थे, इसलिए मीनाक्षी ने सोचा कि घर की थोड़ी सफाई कर ली जाए। कामवाली कुछ दिनों की छुट्टी पर थी, इसलिए घर की सफाई थोड़ा उपेक्षित हो गई थी।
लगभग दस बज रहा था।
नाश्ता और साफ़ सफ़ाई वगैरह निबटा कर मीनाक्षी नहाने के लिए बाथरूम गई। काम काज और गर्मी ने पूरे बदन को पसीने से तर बतर कर दिया था; और ऊपर से ऊमस। ऐसे में चैन नहीं मिलता। जैसे ही नहाते हुए उसने पहला मग पानी का डाला, उसका मन हुआ कि बस कुछ इसी तरह वो पानी में पड़ी रहे। काफी देर तक बाहर निकलने को उसका मन ही नहीं हो रहा था। लेकिन आखिरकार बाहर आना ही पड़ा। बाहर आते हुए उसने अपना बदन एक पतले सूती अंगौछे में लपेट लिया। ऐसी सड़ी हुई गर्मी में तौलिया लपेटने में तो गर्मी के मारे जान निकल जाती।
बाथरूम से निकलकर उसने जैसे ही पहला कदम रखा तो देखा समीर उसके सामने खड़ा है। इतने दिनों में वो आज पहली बार इतनी देर से सो कर उठा था। वो इस समय सिर्फ अपने अंडरवियर को पहने था। समीर का मर्दाना चौकोर चेहरा, छोटे बाल, उनींदी लेकिन चमकती आँखें, होठों पर सहज मुस्कुराहट, लंबी काठी और कसा हुआ शरीर .... अपने पति को ऐसे देख कर मीनाक्षी के दिल में एक धमक सी हुई।
‘ओह! कैसा मॉडल जैसा लगता है!’
वह ठगी सी उसको देखती रह गई। दोनों के इस संछिप्त विवाहित जीवन में अंतरंगता के यह प्रथम क्षण थे। मीनाक्षी समीर को देख तो रही थी, लेकिन समीर क्या देख रहा था? छाती से जाँघ तक के शरीर को सूती अंगौछे से ढकी एक युवती। उसका यौवन जैसे अभी-अभी ही अपने शिखर तक पहुँचा हो। कितनी सुन्दर… मीनाक्षी... मछली के आकार की आँखों वाली! मीनाक्षी को उस हाल में आज तक किसी भी पुरूष ने नहीं देखा था। गीले बालों से टपकते हुए पानी से उसका पतला, सफ़ेद अंगौछा पूरी तरह से भीग चुका था। अब वह वस्त्र मीनाक्षी के शरीर को जितना छुपा रहा था, उससे अधिक उसकी नुमाइश लगा रहा था। उसके स्तनों की गोलाइयाँ, चूचकों का गहरा रंग, शरीर का कटाव, कमर का लोच, नितंब का आकार - कुछ भी नहीं छुप रहा था।
समीर हतप्रभ सा अपनी पत्नी को देख रहा था। उसको लगा जैसे उसके दिल की धड़कनें रुक जायेंगीं।
‘हे प्रभु! ये लड़की जब सजती सँवरती है, तब भी रति का रूप लगती है, और जब नहीं भी सजती सँवरती है, तब भी! कैसी आश्चर्यजनक बात है!’
समीर अपनी प्रतिज्ञा अपनी प्रतिज्ञा के कारण रास्ता बदल देना चाहता है! लेकिन वो ऐसा करे भी तो कैसे? ईश्वर-प्रदत्त इस अवसर को भला कैसे ठुकरा दे? वह चरित्रवान तो है, लेकिन इतना भी नहीं कि कामदेव के इस अद्वितीय उपहार से दृष्टि बचा कर निकल जाए। वह शर्मीला भी है, लेकिन इतना नहीं कि अपने ऐसे सौभाग्य से शरमा जाए। ऐसी ही अवस्था में जब राजा पाण्डु ने अपनी रानी माद्री को देखा, तब वो कामाग्नि से भस्म हो गए। ऐसी ही अवस्था में जब ऋषि विश्रवा ने कैकसी को देखा तो उनके संयोग से रावण का जन्म हुआ।
‘कुछ दिन और सब्र कर लो। जल्दबाज़ी से कुछ भी सार्थक नहीं निकलता है।’
कामदेव का जादू कुछ क्षण यूँ ही चलता रहा, और जब वो जादुई पल समाप्त हुए, तो दोनों यूँ ही शर्मसार हो गए। समीर पलट कर लौट गया, और मीनाक्षी शरमा कर खुद में ही सिमट गई। आज उसको लगा कि उसका सर्वस्व समीर लेता गया। यदि लज्जा ने मीनाक्षी की दृष्टि को रोक न लिया होता, और उसने अपने पति के शरीर पर उस एकमात्र वस्त्र की ओर देख लिया होता, तो उसको पता चल जाता कि कामदेव के जादू का समीर पर क्या असर हुआ है।