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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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कामदेव का जादू कुछ क्षण यूँ ही चलता रहा, और जब वो जादुई पल समाप्त हुए, तो दोनों यूँ ही शर्मसार हो गए। समीर पलट कर लौट गया, और मीनाक्षी शरमा कर खुद में ही सिमट गई। आज उसको लगा कि उसका सर्वस्व समीर लेता गया। यदि लज्जा ने मीनाक्षी की दृष्टि को रोक न लिया होता, और उसने अपने पति के शरीर पर उस एकमात्र वस्त्र की ओर देख लिया होता, तो उसको पता चल जाता कि कामदेव के जादू का समीर पर क्या असर हुआ है।


(अब आगे)


शाम को दोनों परिवार मीनाक्षी और समीर के घर पर इकठ्ठा हुए।

मीनाक्षी ने पहले से ही समीर को सख़्त हिदायत दे रखी थी कि वो आज रसोई में न आएँ, और उसको ही सारा काम करने दें। इसलिए उसकी इच्छा का मान रखते हुए समीर ने उसको सारा काम तो नहीं, लेकिन ज्यादातर काम करने को दिया। मीनाक्षी ने पूरे उत्साह से विभिन्न पकवान बनाए और सभी के आने की राह देखने लगी।

सबसे पहले मीनाक्षी के माता पिता ही आए। समीर ने दोनों के पैर छू कर दोनों का अभिनन्दन किया। मिसेज़ वर्मा अपने बांके दामाद को चूमे बिना न रह सकीं। वर्मा जी उनके जितना एक्सप्रेसिव तो नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी समीर के कंधों पर हाथ रख कर उसकी कुशल क्षेम पूछी। अपनी बेटी को देख कर दोनों ही बहुत खुश हुए - वो बहुत खुश और स्वस्थ दिख रही थी। उसके चेहरे पर वैसी मुस्कराहट थी, जैसी कई वर्षों पहले होती थी। मिसेज़ वर्मा तो मीनाक्षी के साथ रसोई चलीं गईं उसका हाथ बँटाने और साथ ही एकांत में उसका हाल चाल लेने। समीर और वर्मा जी अकेले ड्राइंग रूम में रह गए।

वो समीर से बात करने में थोड़ा हिचकिचा रहे थे। ज्यादातर इधर उधर की ही बातें कर रहे थे। असहज थे। ‘काम कैसा चल रहा है’, ‘ऑफिस में सब ठीक है’, ‘बढ़िया घर है’, ‘कॉलोनी की अच्छी लोकेशन है’ वगैरह वगैरह। कुछ देर के बाद उनकी बातें घूम फिर कर राजनीति की चर्चा पर आ गई। जब पुरुषों के बीच में उतनी जान पहचान नहीं होती, तब उनके लिए कारगिल, पार्लियामेंट पर आतंकवादियों का हमला, गोधरा - यह सब डिसकस करना ज्यादा आसान होता है। यह सब टॉपिक्स एक न्यूट्रल ग्राउंड पर होते हैं - इसलिए यहाँ व्यक्तिगत ठेस लगने की के कम चान्सेस होते हैं।

वर्मा जी भी क्या करें! उनके मन में एक दुविधा सी थी - समीर उनके बेटे का मित्र है और समीर उनकी बेटी का पति भी है। अब वो किस वाले समीर से बात करें, उनको समझ ही नहीं आती। एकलौती पुत्री के पिता होने के नाते वो शुरुवात में ही चाहते थे कि समीर से पूरी निर्लज्जता से पूछ लें, कि तुम जैसे विवाह वाले दिन थे वैसे ही हो अभी तक, या अभी अपना रंग बदल दिया? समाज का सताया हुआ पुरुष और करे भी तो क्या करे?

लेकिन जब वो अपनी बेटी के मुखारविंद पर प्रसन्नता और आत्मविश्वास की चमक देखते हैं, तो यह प्रश्न ही उनके लिए बेमानी हो जाता है। उनके मन में एक ग्लानि का भाव भी आ जाता है। यह लड़का जिसने उनकी पगड़ी उछलने से बचा लिया, जिसने उनका समाजिक और आत्म सम्मान दोनों ही न सिर्फ बचा लिया, बल्कि बढ़ा भी दिया, उस लड़के बारे में वो अभी भी ऐसा सोचते हैं यह सोच कर उनको ग्लानि हुई।

वो कमरे की दीवारों पर समीर और मीनाक्षी की अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के साथ 2 - 3 मढ़ी हुई तस्वीरें लगी देखते हैं। मीनाक्षी ने उन तस्वीरों में पाश्चात्य परिधान पहना हुआ है। ‘कैसी प्यारी सी लगती है वो!’ उसकी मुस्कान देख कर वर्मा जी को अच्छा लगता है। उसकी यह मुस्कान देखे तो एक मुद्दत हो गई है। उनको याद था कि जब उसकी शादी तय हुई थी, तब भी वो ऐसी खुश नहीं थी। बिटिया सब देख रही थी - कैसे उसके पिता का संचित धन उसकी शादी के व्यर्थ के इंतजाम में जाया हो रहा था। वो कैसे खुश होती?

बेटी से जब वो एकांत में पूछते हैं तो बेटी उनके दामाद का ऐसा बखान करती है की मानों मायके में उसको पिंजरे में बंद कर के रखा गया था। फिर उनको लगा कि शायद यह बात सही ही हो - उन्होंने मीनाक्षी को पारम्परिक तरीके से पाल पास कर बड़ा किया है। बस जो बात उन्होंने बाकियों से भिन्न करी वो यह थी कि उन्होंने उसको पढ़ाने लिखाने में कोई कोताही नहीं करी। बाकी संस्कार तो पूरे दिए। खैर, उनकी बिटिया प्रसन्न है! और क्या चाहिए।

समीर की सास के लिए उससे बात करना, वर्मा जी की अपेक्षा ज्यादा आसान साबित हुआ। ‘बेटा तुम अच्छे से हो?’, ‘मेरी बेटी तुम्हारा ख़याल रखती है ठीक से?’, ‘हर काम में दक्ष है। इसलिए निःसंकोच जो चाहिए, उसको बोल दिया करो’, ‘थोड़ा ढंग से खाया पिया करो…. कमज़ोर से लग रहे हो’ वगैरह।

वो स्त्री हैं। उनको समझ आता है अपनी बेटी का हाव भाव। जब मीनाक्षी रह रह कर मुस्कुराते हुए समीर को देखती है, तो वो समझ जाती हैं कि अंततः उनकी बेटी को एक सुखी घर मिल गया है। जब वो समीर को मीनाक्षी का हाथ बँटाते देखती हैं, तो वो समझ जाती हैं कि समीर उनकी बेटी को प्रेम से रखता है। वो देख लेती हैं कि उनकी बेटी स्वस्थ है। उसके चेहरे पर एक नई लालिमा है।

कुछ देर में उनके समधी भी आ जाते हैं।

“माफ़ कीजिएगा भाई साहब! आने में ज़रा देर हो गई। दरअसल पंद्रह अगस्त, दिवाली, और छब्बीस जनवरी को मेरे ऑफिस में मैं दावत का इंतजाम रखता हूँ। बेटे के की शादी के कारण इस बार की दावत थोड़ा ज्यादा हो गई। हा हा हा हा!”

“हा हा हा हा हा!” वर्मा जी समझ गए कि कैसी पार्टी हुई थी।

मीनाक्षी की माँ सब देख रही हैं।

समीर की माँ उनसे मिलने से पहले मीनाक्षी से मिलती हैं। वो उसको गले लगाती हैं, और उसको चूमती हैं। उसके कान में सहेलियों की तरह खुसुर पुसुर करती हैं। मीनाक्षी भी दाँत निकाले अपनी सास की बातों पर अल्हड़ता से हंसती है। यह सब करने के बाद फिर आ कर वो उनसे और उनके पति से मिलती हैं। मीनाक्षी की माँ बिलकुल भी बुरा नहीं मानतीं अगर समीर की माँ उनसे न भी मिलतीं! क्योंकि उनको एक बात का पक्का विश्वास हो गया था -

‘सच में, उनकी बेटी इस घर में बहू नहीं, बेटी ही बन कर आई है!’

थोड़ी ही देर बाद आदेश भी आ जाता है। और घर में हंसी ठहाकों का दौर चलने लगता है।


रात्रिभोज के बाद वर्मा जी, समीर के पिता से बोले, “भाई साहब, हमारी इच्छा है कि बिटिया को घर लिवा लाएँ। शादी के बाद से आई नहीं।”

“भाई साहब, अब ये तो आप मीनाक्षी बिटिया से ही पूछ लीजिए। वो जैसा चाहेगीं वही होगा। हमारी तरफ से कोई रोक-टोक थोड़े ही है!”

“बोलो बिटिया!”

“पापा, वो मैं.... अभी नहीं।” मीनाक्षी ने तपाक से बोला, “मैं अभी नहीं आ सकती। अभी तो यहाँ का ही सब सेटअप करना है। और नई नई जॉब है।”

पिता के चेहरे पर निराशा देख कर वो आगे बोलती है, “दशहरा या दिवाली पर प्लान करते हैं।”

कह कर उसने समीर की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक नटखटपन था। मिसेज़ वर्मा से वो नटखटपन छुप न पाया। वर्मा जी यह सब नहीं देख पाते। आदेश अपने दोस्त से बतियाने में व्यस्त था। वर्मा जी कुछ बोलने वाले हुए ही थे, कि मिसेज़ वर्मा ने उनको रोक दिया।

“ठीक है बेटा! हाँ, सही बात है अभी कैसे आओगी! जब भी फुर्सत मिले आ जाना। समीर बेटे के साथ।”

वर्मा जी को आश्चर्य हुआ। उनकी ही तरह उनकी पत्नी भी चाहती थीं की मीनाक्षी घर आ जाए, और कुछ समय साथ में बिताए। लेकिन यहाँ तो उसका सुर ही पलट गया।

बाद में जब उन दोनों को कुछ क्षणों का एकांत मिला, तो वो अपने पति से मुस्कुराते हुए बोलीं, “बिटिया को लिवा लाने की बात छोड़ दीजिए। वो बहुत खुश है यहाँ। मैं बताऊंगी आपको बाद में। लेकिन यकीन मानिए मेरा, मीनाक्षी बहुत खुश है।”
 

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खाने के बाद दोनों समधी लोग समीर के पिता जी के यहाँ चले गए। आदेश यहीं रह गया। दोस्त और दीदी के साथ समय बिताने के लिए। तीनों ने कुछ देर तक गप्पें लड़ाईं, लेकिन फिर मीनाक्षी उनींदी हो कर चली गई,

“मैं सोने जा रही हूँ। जब आप दोनों की बातें ख़तम हो जाएँ, तो आ जाइएगा। आदेश, तेरे सोने का इंतजाम बगल वाले कमरे में हैं। किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो बता देना। ठीक है?” जाते जाते वो कहती गई।

“जी दीदी”

आदेश और समीर देर रात तक दोनों बियर की चुस्कियाँ लेते हुए बतियाते रहे।

“भाई, और सुना..” जब आदेश को लगा कि दीदी दो गई होगी, तब उसने समीर से पूछा।

“सब बढ़िया है यार!”

“हाँ! बढ़िया तो लग रहा है। दीदी तो बहुत बढ़िया लग रही है।”

“अरे यार! तेरी बहन को क्या मैं कोई दुःख दूँगा?”

“बिलकुल भी नहीं! ऐसा मैंने कब कहा? यह तो मैं सोच भी नहीं सकता हूँ! अगर मुझे ऐसा कोई भी अंदेशा होता, तो क्या अपनी दीदी की शादी तुमसे कहने को कहता? मैं तो तुम्हारे बारे में पूछ रहा था… कि कहीं दीदी तुमको तंग तो नहीं करती।”

उत्तर में समीर मुस्कुराया।

“हम्म.. लगता है कि नहीं करती। मुझको तो बहुत परेशान करती थी, बाबा! अच्छा खैर... एक बात तो बता... तूने यार कुछ... सेक्स वेक्स किया या नहीं?” आदेश ने दबी आवाज़ में समीर से पूछा।

“अबे तू क्या पूछ रहा है? कुछ प्राइवेसी तो रहने दे!”

“अरे..! तू मेरा भाई है!”

“हाँ.. और मेरी बीवी तेरी बहन है.. वो भी बड़ी!”

“ये तो और भी अच्छी बात है! और इसीलिए तो पूछ रहा हूँ। तू मेरा भाई है.. दोस्त नहीं! इसलिए दीदी के साथ साथ मुझे तेरी ख़ुशी की भी फ़िक्र है!”

“हा हा”

“सच बता यार... तुम दोनों ने अभी तक कुछ किया या नहीं?”

“नहीं यार.. अभी तक... नहीं। इतना आसान नहीं है यह सब!”

“देख भाई.. तूने उससे शादी करी है। तो...”

आदेश की बात को बीच में ही काटते हुए समीर बोला, “हाँ.. हाँ हमने शादी करी है। लेकिन टाइम चाहिए इन सब बातों के लिए! देखो न, किन हालात में हमारी शादी हुई थी!”

“हम्म। समझता हूँ भाई। सब समझता हूँ। बस पूछ लिया!”

“यार, मैं उसको जानना समझना चाहता हूँ। मैं पहले उसका दोस्त बन जाऊँ, मेरे लिए ये ज़रूरी है। सेक्स तो होता रहेगा।”

“तुझे वो पसंद तो आती है न?”

“न पसंद आती तो शादी करता?”

“नहीं नहीं, मेरा मतलब वैसा पसंद आने से नहीं है। दीदी तुझे सेक्सी तो लगती है?”

“ओह गॉड! मैंने कैसे खुद को रोका हुआ है, मैं ही जानता हूँ!”

“बस भाई तसल्ली हो गई मुझे!” फिर कुछ देर रुक कर, “सोच यार, इंजीनियरिंग के टाइम में हम लोग कैसे सेक्स की बातें कर लेते थे। कितने हल्केपन से... जैसे, कुछ होता ही नहीं! जैसे वो सिर्फ मसाला हो। याद है तुमको? मैं तुझे कहता रहता था, कि मेरा छोटा है.... तो तेरी बीवी की मैं पहले ड्रिलिंग कर दूँगा, मेरे बाद तू बोरिंग कर लियो। लेकिन अब देखो - मेरी अपनी ही दीदी तुमसे ब्याही है। अब लगता है कि ऐसी छिछोरी बातें नहीं करनी चाहिए! नहीं करनी चाहिए थीं।”

समीर मुस्कुराया, “अरे यार, तू भी क्या सोचने में लग गया! इतना मत सोच। वो हमारे लड़कपन के दिन थे। उन दिनों की बातें सोच कर इतना इमोशनल नहीं बनना चाहिए।”

“थैंक यू यार! तू सच्चा दोस्त है! भाई है मेरा! भाई से बढ़कर! आई लव यू!”

“लव यू टू!” समीर मुस्कुराते हुए बोला।

“भाई देख... एक रिक्वेस्ट है। थोड़ा आराम से करना, जब भी करना। तेरा लण्ड बड़ा सा है, और दीदी..... वो भले ही उम्र में बड़ी हैं, लेकिन हैं तो कुँआरी ही न!”

“अबे यार!”

“अबे यार नहीं! समझा कर! और हाँ, अब जल्दी कर लेना। बहुत वेट मत करना। आखिर पति पत्नी हो!”

“साले, अब तू पिटेगा।”

“हा हा.... अरे साला ही तो हूँ मैं तेरा!”

“हा हा.... अरे मेरी बात बहुत हो गई। तू बता, तुझे कोई लड़की मिली अभी तक या अभी तक ऐसे ही है?”

........
 

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समीर मीनाक्षी से सम्भोग करने के लिए हमेशा से आतुर था। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वो तैयार नहीं था - पहले प्रेम होता है, फिर संसर्ग! उसका बस यही मानना था। और आज वो मौका आ गया था - इस अवसर के लिए तीन महीने से ऊपर तक उसने इंतज़ार किया था। मन ही मन समीर को कई प्रश्न सता रहे थे.... जैसे कि, क्या मीनाक्षी भी तैयार होगी? क्या वो भी उससे उतना ही प्रेम करती है? क्या वो मेरा लिंग ले सकेगी? उसका शरीर कैसा होगा? उसके स्तन कैसे होंगे? उसके निप्पल मुँह में लेने में कैसे लगेंगे? उसकी योनि कैसी होगी? उसके होंठों का स्वाद कैसा होगा? उसकी योनि का स्वाद कैसा होगा? इत्यादि।

समीर ने इस सुहागरात को ख़ास बनाने के लिए रैडिसन ब्लू में कमरा बुक किया था। होटल स्टाफ को उसने यह ख़ास निर्देश दिया कि डिनर के बाद, रात में साढ़े आठ या नौ बजे, उनको सुहागरात के अनुकूल एक सुसज्जित कमरे में शिफ्ट कर दिया जाए। उसने कह रखा था कि आज उसकी और उसकी पत्नी की पहली रात है। लिहाज़ा यह रात यादगार होनी चाहिए। इसलिए स्पेशल इंतजाम में कोई कोताही न हो।

समीर मीनाक्षी को वो वहां डिनर कराने के बहाने से लाया था। पहले से बता के रखने से संभव था कि वो ना-नुकुर करने लगती। इसलिए आज का प्लान अगर सरप्राइज ही रहे तो बढ़िया था। मीनाक्षी पहले ही थोड़ा ना-नुकुर कर रही थी, ‘फाइव स्टार में जा कर खाना क्यों खाना है? बिना वजह का खर्च! और आज कोई ओकेशन भी तो नहीं है!’ वगैरह वगैरह! बड़ी मुश्किल से समीर ने उसको भरोसा दिलाया कि उसका आज यहाँ डिनर करने का मन था।

होटल की ही अनुशंसा पर उसने डिनर मेनू पहले से ही तय कर के रखा था। उधर मीनाक्षी इस बात पर आश्चर्य कर रही थी कि वो दोनों इतनी देर से टेबल पर बैठे हैं, और अभी तक कोई आर्डर लेने भी नहीं आया! और इधर बिना कोई आर्डर दिए ही एक मल्टी-कोर्स स्प्रेड उसकी टेबल पर सर्व कर दिया जाता है, एक उम्दा वाइन के साथ!

मीनाक्षी समझ जाती है कि यह डिनर उसको सरप्राइज करने के लिए ही समीर ने प्लान किया हुआ था। वो खुश हो जाती है। समीर की यह अदा उसको पसंद है। खाना एकदम लाजवाब था।

डिनर ख़तम होने पर एक वेटर ने समीर से कहा, “सर, योर गिफ्ट इस रेडी! वी होप यू विल लाइक इट वैरी मच!”

मीनाक्षी समझी नहीं कि डिनर के लिए कोई होटल गिफ्ट क्यों देने लगा!

खैर, होटल का अशर समीर और मीनाक्षी को होटल के ऊपरी मंजिल पर बने एक कमरे में ले आया। और दरवाज़ा खोल कर कमरे की पास-की समीर को थमा दी, और ‘शुभ रात्रि’ बोल कर वहाँ से चला गया। होटल स्टाफ ने उनके शयनकक्ष को बहुत शानदार तरीके से सजाया था - पूरे कमरे में फूल ही फूल। बिस्तर पर गुलाब के फूलों की पंखुड़ियाँ। पूरे कमरे में फूलों की ही महक! टी-स्टैंड पर स्पार्कलिंग वाइन की बोतल एक कूलिंग बकेट में रखी थी, और उसके साथ दो वाइन ग्लास रखे हुए थे। दूसरे टी-स्टैंड पर बेल्जियन चॉकलेट का डब्बा रखा हुआ था। कमरे में मूड लाइट्स थीं, और कमरे में पहले से ही एक धीमा, रोमांटिक संगीत बज रहा था। स्टाफ की शरारत थी या कि दूर की सोच, लेकिन वहाँ पर कामसूत्र का एक पैकेट भी रखा हुआ था।

मीनाक्षी जब कमरे में आई तो इस पूरे बंदोबस्त को देख कर दंग रह गई। पहले तो उसको यह सोच कर हैरानी हुई कि वो दोनों एक कमरे में क्यों जा रहे हैं, लेकिन उसने जैसे ही उसने अंदर का नज़ारा देखा, उसको तुरंत सब कुछ समझ आ गया। वो समझ गई कि मिलन के इंतज़ार की घड़ियाँ अब ख़त्म हो गई थीं। वो समझ रही थी कि उसके कौमार्य के दिन में अब बस मिनट ही शेष रह गए थे। लेकिन यह सब देख कर उसको बहुत सुकून हुआ और उसका शरीर रोमांच से भर गया - समीर ने उसके मिलन के इन पलों को यादगार बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। समीर खुद भी अपने प्लान में होटल स्टाफ के सहयोग को देख कर आश्चर्यचकित था। उसको उम्मीद नहीं थी कि वो लोग इतना उम्दा काम करेंगे।

मीनाक्षी ने एक हल्की मुस्कान के साथ समीर को देखा।

“मिनी, मुझे लगता है कि अब हम एक दूसरे को अच्छे से जानते हैं। शायद यह सही समय है कि हम एक दूसरे को पूरी तरह जान लेने की कोशिश करें!”

समीर की बात सुन कर मीनाक्षी की आँखें शर्म से झुक गईं। वो समझ रही थी कि समीर क्या कह रहा था।

“लेकिन मुझे ख़र्राटे अभी भी आते हैं!”

समीर की बात पर मीनाक्षी की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“नहीं आते हैं! मुझे मालूम है!” मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए, शरारत भरी आवाज़ में कहा।

फिर न जाने उसके मन में क्या आया कि वो अचानक ही समीर के पैरों में गिर पड़ी। एक पल को उसको लगा कि मीनाक्षी को शायद चक्कर आ गया। लेकिन जब उसके मीनाक्षी को अपने पैर छूते महसूस किया, तो उसने मीनाक्षी को कंधों से पकड़ कर उठा लिया और कहा,

“अरे! आप यह क्यों कर रही हैं?”

“इसलिए कि मैंने मन से आपको अपना पति माना है!”

“अरे पगली, तो फिर उसके लिए पैर पड़ने की क्या ज़रुरत है? आप तो मेरे दिल की रानी हैं! आपकी जगह मेरे दिल में है! पैर में नहीं! और... वैसे भी आप मुझसे उम्र में बड़ी हैं। उल्टा तो मुझे आपके पैर पड़ने चाहिए।”

इतना सुनते ही मीनाक्षी समीर से लिपट गई।

अलका मीनाक्षी की अनन्य सहेली है, और उसको पता है कि मीनाक्षी शादी होने के तीन महीने बाद भी वो कुँवारी है। यह जान कर अलका को आश्चर्य भी हुआ, और अच्छा भी लगा। आश्चर्य इस बात पर कि मीनाक्षी जैसी सुन्दर लड़की को उसके पति ने तुरंत ही नहीं भोगा। उसमें कितना आत्मनियंत्रण होगा! और अच्छा इस बात पर लगा कि अभी भी समीर जैसे लोग हैं दुनिया में, जो अपनी पत्नी को सिर्फ भोग्या ही नहीं समझते। उसके खुद के पति ने तो उसके साथ अकेलेपन के पहले क्षणों में ही मैथुन कर लिया था। अलका को सम्भोग के वो पल बलात्कार जैसे ही लगे थे। उसकी अपने पति से पहले से कोई जान पहचान तो थी नहीं, और न ही कोई बात चीत। ऐसे में उन दोनों का पहला संपर्क, पहली पारस्परिक क्रिया अगर सम्भोग हो, तो उसको और क्या नाम दिया जाए? वह उस घटना को बस इसलिए बर्दाश्त कर सकी क्योंकि वो दोनों पति-पत्नी थे। नहीं तो न जाने उसके मानस पटल पर कैसा प्रभाव पड़ता! इसलिए वो मीनाक्षी के लिए खुश थी। उसको ऐसा पति मिला था, जो पहले उसका दोस्त, हमराज़, और प्रेमी बनने की कोशिश कर रहा था.... और उसके बाद में उसका पति!

ऐसा नहीं है जब पहली रात को ले कर मीनाक्षी के मन में कौतूहल नहीं था। जैसे जैसे वो समीर को और समझती जाती, वैसे वैसे वो यह भी सोचती जाती कि जल्दी ही दोनों का मिलन होगा। वो भी चाहती थी कि वो समीर को वैसा आनंद दे सके, जैसा उसकी इच्छा हो! इसलिए वो जानना चाहती थी कि पति पत्नी क्या क्या करते हैं जब वो साथ होते हैं। जब मीनाक्षी ने अलका से पूछा कि आखिर होता क्या है सुहागरात में तो अलका ने कहा,


प्यारी बहना, सुहागरात के उन क्षणों में पति शेर होता है और बेचारी पत्नी बकरी। और तेरा पति तो वैसे भी माशा-अल्लाह एकदम तगड़ा है - शेर के माफ़िक। ऐसे में तुझे कुछ करने, या न करने की क्या परवाह? बस, अपनी टांगें चौड़ी करके लेट जाना - वो जैसा चाहेगा, करेगा!’

‘छीः! कितनी गन्दी है अलका!’

कई जगह उसने पढ़ा है, और कई लोगों से सुना भी है कि स्त्री पुरुष का सच्चा यौन संबंध दो शरीरों का मिलन ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है। शादी की रीतियों से वो दोनों परिणय सूत्र में तो बंध ही गए हैं, और अब जीवन सूत्र में बंधना बाकी रहा है। भगवान की कृपा से वो दिन भी आ ही गया। मीनाक्षी के मन में बहुत दिनों से यही विचार आ रहे थे। और अब जब यह सभी विचार मूर्त रूप ले रहे हैं, तब उसको लज्जा आ रही थी।
 
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एक संछिप्त से आलिंगन के बाद समीर उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गया। खुद बैठ कर उसने मीनाक्षी को अपने पैरों के बीच खड़ा कर लिया। इतने दिनों से खुद पर संयम रखने वाला समीर इस समय अधीर हो रहा था - लग रहा था कि उसको अब किसी भी चीज़ की परवाह नहीं है। मीनाक्षी के दोनों हाथ, अपने दोनों हाथ में लिए उसको कई पल निहारता रहा। मीनाक्षी समझ रही थी कि समीर के मन में क्या चल रहा है। उसको यह भी मालूम था कि आज उसके यौवन का उद्घाटन होने वाला है। फिर उसके मन में थोड़ी सी घबड़ाहठ उठी - कहीं समीर ने उसको पसंद न किया तो? कहीं उसको सम्भोग की मनोवाँछित संतुष्टि नहीं मिली तो?

समीर यह सब नहीं सोच रहा था। मीनाक्षी के सौंदर्य सागर में गोते लगाता हुआ वह वह उसे चूम लेना चाहता था। मीनाक्षी उसके होठों से बस हाथ भर की ही दूरी पर थी। इस समय समीर की मनःस्थिति ऐसी थी कि वो मीनाक्षी को चूमे बिना नहीं रह सकता। मीनाक्षी को चूमना, उसके रूप और मदमाते यौवन का जाम चखने जैसा है। समीर ने मीनाक्षी की ठोढ़ी पकड़ कर उसके होंठों को चूम लिया। मीनाक्षी ने चुम्बन के पूर्वानुमान में अपनी आँखें बंद कर ली थीं; जैसे ही उसके होंठ समीर के होंठों से छुए, दोनों के शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई।

चुम्बन भी एक अद्भुत वस्तु है - चुम्बन की प्रक्रिया में आपका कुछ अंश दूसरे की त्वचा में समां जाता है, सदा के लिए। सदा के लिए इसलिए कहा क्योंकि आप चुम्बन समाप्त हो जाने के बाद भी उसको हमेशा महसूस कर सकते हैं। यह एक चमत्कारिक क्रिया है, जिसमें प्रेम के संकेतों का इतने अंतरंग प्रकार से आदान प्रदान होता है। संभव है कि इसी कारण बहुत सारे लोग चुम्बन करते समय अपनी आँखें बंद कर लेते हैं। बस एक चुम्बन।

मीनाक्षी की आँखें खुलीं। समीर उसके हाथों को अपने हाथ में ले कर न जाने क्या निरीक्षण कर रहा था।

समीर ने कुछ देर उसके हाथों को देखा और फिर कहा, “नाइस!”

“क्या हुआ?” मीनाक्षी ने कौतूहलवश पूछ लिया।

“आप इसको देख रही हैं? इसको शुक्र पर्वत कहते हैं। माउंट ऑफ़ वीनस। इसका साइज सेक्स संबंधों की क्वालिटी और कैपेसिटी के बारे में बताता है। आपका देखिए - कितना उभरा हुआ है? इसका मतलब समझीं?”

मीनाक्षी ने ‘न’ में सर हिलाया।

“इसका मतलब है कि हमारी सेक्स लाइफ एकदम मज़ेदार, एकदम धमाकेदार होने वाली है!”

“धत्त!” मीनाक्षी शरमा गई।

“अरे! इसमें धत्त वाली क्या बात है? ये… मेरा भी देखिए! आप जैसा ही है! उभरा हुआ। एकदम बढ़िया मेल है हमारा!”

समीर की ऐसी निर्लज्ज बात का मीनाक्षी क्या जवाब दे? वो बस चुपचाप नज़रें झुकाए बैठी रही - अंदर ही अंदर मुस्कुराती रही। समीर ने आज तक किसी भी लड़की के साथ ऐसी बातचीत नहीं करी थी - इंजीनियरिंग कॉलेज में ज्यादा मौका नहीं मिला; और नौकरी लगने के लगभग साथ ही साथ उसकी शादी हो गई। अपनी उम्र के बाकी लड़कों के समान समीर भी मस्तराम जैसे साहित्य और नीले-फीते वाले चलचित्रों से प्रभावित रहा था। उन्ही से मिली सीख के कारण उसको लगता था कि प्रथम मिलन के खेल को देर तक चलाना है - तभी पत्नी उसकी मुरीद बनेगी। और अगर मिलन का खेल खेलना है तो बीवी को भी तो शीशे में उतारना ही पड़ेगा। इतनी अंतरंग बात समीर ने, मीनाक्षी से आज पहली बार करी थी। वैसे भी पति पत्नी में छुपाने जैसा कुछ होना भी नहीं चाहिए।

“लेट अस सेलिब्रेट?” समीर ने शेम्पेन की बोतल निकालते हुए पूछा।

“वाइन नहीं, चाय पियूँगी।”

“अरे! आज की रात चाय! न न न न न न! बिलकुल नहीं.. चाय तो नहीं मिलेगी आज! ये स्पार्कलिंग वाइन है। शेम्पेन! चाय से बढ़िया! बहुत बढ़िया। पी कर बताइए - बढ़िया है या नहीं?”

“अभी कुछ देर पहले ही तो पिया है मैंने! और मत पिलाइए।”

“हम्म.. ओके!”

समीर ने उठ कर संगीत की आवाज़ थोड़ी बढ़ाई। वाइन ग्लास में शेम्पेन भर कर चुस्कियाँ लेते हुए संगीत की ताल पर उसने मीनाक्षी की तरफ कदम बढ़ाए। मीनाक्षी मुस्कुराते हुए अपने पति को देख रही थी।

‘आज न जाने क्या क्या बदमाशियाँ करने वाले हैं!’

एक हाथ में वाइन लिए समीर से दुसरे हाथ से मीनाक्षी को बिस्तर पर लिटाया और धीरे धीरे उसके कुर्ते के बटन खोलने लगा। एक हाथ से बटन खोलना आसान है, लेकिन एक हाथ से कुर्ते को उतारना बहुत मुश्किल काम है। मीनाक्षी को समीर का मंतव्य समझ में आ रहा था। लेकिन वो अपने खुद के ही चीर-हरण में बढ़ चढ़ कर हिस्सा नहीं लेना चाहती थी। एक तो उसको शरम आ रही थी, और दूसरा वो इस बात से झिझक रही थी कि न जाने समीर क्या सोचे!

समीर स्टाइल मारने के चक्कर में वाइन ग्लास छोड़ नहीं रहा था। वैसे उसको समझ में आ गया था कि मीनाक्षी का कुर्ता ऐसे एक हाथ से ही तो उतरने वाला नहीं था। फिर उसको ख़याल आया कि अपनी बीवी को उसने ढंग से चूमा तक नहीं है। यह ख़याल आते ही उसने मीनाक्षी के अधरों पर एक बार और चुम्बन जड़ दिया। मीनाक्षी भी उसको चूमना चाहती थी, लेकिन झिझक के कारण वो पहल नहीं कर पा रही थी। समीर कभी उसके होंठों को चूमता, तो कभी चूसने लगता। कभी वो उसके गालों को चूमता, तो कभी गले को। प्रत्युत्तर में मीनाक्षी कसमसाती हुई बस उम्… उम्… ही कर रही थी। उससे जैसा बन पड़ रहा था, समीर को चूम रही थी।

उत्तेजना में समीर का खाली हाथ मीनाक्षी के स्तनों पर भी फिरने लगा। समीर की इस हरकत ने मीनाक्षी की कामेक्षा जगाने के लिए एक स्विच का काम किया - उसको अपनी जाँघों के बीच कुछ कसमसाहट सी, कुछ गीलापन सा महसूस होने लगा। जब समीर उसके स्तनों को दबा कर उनका जायज़ा ले चुका, तब वो नीचे झुक कर वक्ष-विदरण में अपना मुँह डाल कर चूमने लगा। यह सब मीनाक्षी के लिए बिलकुल अनूठा अनुभव था - उसको उम्मीद ही नहीं थी कि यह सब करने में इतना आनंद आ सकता है। मीनाक्षी के कंठ से मीठी सिसकियाँ निकलने लग गई।

फिर उसका हाथ मीनाक्षी की पीठ पर आ गया, और कुर्ते के अन्दर हाथ डाल कर उसकी पीठ को सहलाने लगा।

“मिनी?”

“हम्म?”

“मेरे पास आपके लिए कुछ है।”

कह कर समीर मीनाक्षी के ऊपर से हट गया। सच कहें तो मीनाक्षी का मन समीर से अलग होने को बिलकुल भी नहीं हुआ। लेकिन उसने धीरज रखा और समीर क्या दिखाने वाला था, उसका इंतज़ार लगी। समीर ने कमरे की अलमारी में रखी सेफ खोली, और उसमे से एक सुनहरे रंग का मखमली बटुआ निकाला। प्लान के मुताबिक समीर ने यह पहले ही होटल के सुपुर्द कर दिया था। बिस्तर पर वापस आ कर उसने उस बटुए में से सोने की एक लम्बी जंजीर निकाली - साधारण सा डिजाइन था - लम्बी जंजीर और उसके बीच में पतली जंजीरों की तीन लड़ियाँ। उसकी बनावट देख कर लग रहा था कि वो एक करधन है।

समीर ने मीनाक्षी के कुर्ते को थोड़ा ऊपर करके उसकी कमर पर वो करधन बांध दी। फिर उसकी नाभि के नीचे वाले हिस्से पर एक चुम्बन लेते हुए बोला, “अगर आप यह (कुर्ते को पकड़ कर) निकाल दें, तो आपकी कमर से इस करधन की लटकन बहुत सुन्दर लगेगी।”
 

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मीनाक्षी अच्छी तरह समझ रही थी कि समीर क्या चाहता था। वो चाहता तो खुद ही मीनाक्षी के कपड़े उतार सकता था, और वो उसको मना न करती। बिलकुल भी मना न करती। लेकिन समीर चाहता था कि इस खेल में मीनाक्षी की भी बराबरी की हिस्सेदारी हो। लेकिन मीनाक्षी तो आज शर्मीली दुल्हन जैसा ही बर्ताव करना चाहती थी। वो चाहती थी कि पहली बार समीर ही उसको निर्वस्त्र करे। मीनाक्षी बहुत हलके से मुस्कुराई और फिर उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए। इशारा समझते हुए समीर ने बिना कोई देर किये उसके कुर्ते को निकाल फेंका।

मीनाक्षी वैसे तो रोज़मर्रा पहनने वाली कॉटन की सफ़ेद ब्रा पहनती थी, लेकिन आज उसने न जाने क्या सोच कर काले रंग की लेस वाली ब्रा पहनी हुई थी। उसके शरीर के रंग और आकार पर वो काले रंग का छोटा सा वस्त्र वाकई कामुक लग रहा था। मीनाक्षी को लगा कि समीर की तवज्जो पा कर उसके स्तन थोड़े भारी से हो गए थे। शर्म से उसने अपनी आँखें बंद कर ली। स्तनों के बीच फँसा हुआ उसका मंगलसूत्र उसकी नग्नता को और भी कामुक बना रहा था।

स्वयं रति का रूप इस समय धीरे धीरे अनावृत हो रही थी, और समीर पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था। कामावेश से अधीर हो कर समीर ने मीनाक्षी को अपने सीने से लगा लिया। वो कभी उसको चूमता, तो कभी चूसता और साथ ही साथ उसकी पीठ को सहलाता। मीनाक्षी का शरीर एक अनूठे रोमांच में डूबने लगा।

“मिनी, मेरी जान! अपनी आँखें खोलो ना।” समीर ने उसकी ठोड़ी छूते हुए कहा।

मीनाक्षी क्या विरोध करती? और क्यों करती? उसने अपनी आँखें खोल दीं। समीर के आलिंगन में वो पहले ही समाई हुई थी। इसी कारण मीनाक्षी को पता ही नहीं चला कि उसकी ब्रा का हुक कब खुल गया। मालूम पड़ता भी, तो भी वो क्या करती? आज की रात, और अब आगे आने वाली अनेक रातों में विरोध करने जैसा कुछ नहीं। जैसे ही आलिंगन थोड़ा ढीला हुआ, समीर ने मीनाक्षी की ब्रा खींच कर उसके शरीर से अलग कर दी। नग्नता का प्रदर्शन होने से पहले ही मीनाक्षी ने मारे शर्म के अपने स्तनों को अपनी बाहों में भींच लिया। उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

‘बदमाश कहीं के!’

समीर ने उसकी हथेलियां हटाने का कोई प्रयास भी नहीं किया। बस, उसके स्तनों के खुले हुए गोलार्धों को बारी बारी से चूमने लगा। उसके चुम्बनों से मीनाक्षी के निप्पल कड़े हो कर उसकी हथेलियों में चुभने लगे। मीनाक्षी को लगता था कि उसको अपने शरीर के बारे में सब मालूम है। लेकिन समीर की हरकतों से उसको अपना एक अलग, एक नया ही रूप देखने और महसूस करने को मिल रहा था। उसकी योनि में आग सी लग गई।

‘ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ।’

इन विचारों में खोई हुई मीनाक्षी के हाथ कब अपने स्तनों से हट गए, उसको पता ही नहीं चला। समीर ने आज पहली बार किसी लड़की के स्तन वास्तविकता में देखे थे। एक बात उसने तुरंत देखी और वो यह कि मीनाक्षी के शरीर में यौवन की समुचित कसावट थी - वो न तो पतली थी, और न ही मोटी। एक सुन्दर, स्वस्थ शरीर! कसावट के साथ साथ उसके शरीर में स्त्र्योचित कोमलता भी थी। समीर ने मन भर कर मीनाक्षी के नग्न स्तनों को देखा - उसके अनुमान में मीनाक्षी के स्तन 34C साइज के होंगे। सुन्दर गहरे, लाल-भूरे रंग (टेरा रोज़ा रंग) के निप्पल मीनाक्षी के स्तनों की शोभा बढ़ा रहे थे। उनका इस समय बस एक ही उपयोग हो सकता था - उनको चूसना!

मीनाक्षी को अपने स्तनों की नितांत नग्नता का पता तब चला जब समीर उसका दाहिना निप्पल अपने मुँह में ले कर चूसने लगा। मीनाक्षी की एक मीठी किलकारी निकल गई। मीनाक्षी ने अपनी सुहागरात की परिकल्पना करी थी; लेकिन जो यह सब हो रहा था वैसे तो उसने कभी सोचा ही नहीं था। समीर मग्न हो कर बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को पी रहा था। चूचकों से रोमाँच की ऐसी तरंगें निकल रही थीं जो मीनाक्षी के पूरे अस्तित्व को कम्पित कर दे रही थीं। इतने में ही मीनाक्षी की पूरी देह लहरा कर काँपने लगी। उसकी योनि में से रति-निष्पत्ति का मधु बह निकला। लेकिन समीर इस बात से पूरी तरह से अनजान था। मीनाक्षी भी नहीं समझ सकी कि उसको क्या हो गया - उसको एक अद्भुत आनंद की अनुभूति तो अवश्य हुई, लेकिन वो अनुभूति क्या थी और क्यों थी, उसको कुछ समझ नहीं आई। उधर समीर का सारा ध्यान स्तनपान के आनंद पर केंद्रित था। मीनाक्षी भी आज समीर को अपना सर्वस्व देने को तत्पर थी। समीर तभी रुका, जब उसका मन भर गया।

मीनाक्षी ने देखा कि उसके स्तनों का रंग और रूप दोनों ही बदल गया था। दोनों स्तनों पर चूसने, चूमने और काटने के निशान स्पष्ट दिख रहे थे। चूचकों का रंग गहरा हो गया था और दोनों चूचक उत्तेजनावश एक एक इंच लम्बे हो चले थे। लेकिन फिलहाल इस बात की शिकायत करने का कोई मतलब नहीं था। सम्भोग तो होना अभी बाकी ही था।

मीनाक्षी ने चूड़ीदार शलवार पहना हुआ था। जाहिर सी बात थी कि अगली बारी शलवार की थी। मीनाक्षी को इस बात पर अधिक आश्चर्य हो रहा था कि वो समीर के सामने समुचित नग्नावस्था को प्राप्त थी, लेकिन उसको जितनी शर्म आनी चाहिए थी, उतनी आ नहीं रही थी। खैर, समीर ने बिना देर लगाए उसकी शलवार का नाड़ा ढीला कर के शलवार को नीचे की तरफ खिसका दिया - ऐसा लगा कि वो मीनाक्षी को किसी भी तरह का विरोध करने का मौका नहीं देना चाहता हो।

शादी को ले कर मीनाक्षी ने नए नए वस्त्र खरीदे थे - जाहिर है कि उसके अन्तः वस्त्र भी नए ही थे। मीनाक्षी की पैंटी थी तो कॉटन की, लेकिन बहुत पतले कपड़े की थी। अलका ने ज़बरदस्ती कर के ख़रीदवाई थी ऐसी ही तीन जोड़ी पैंटी। बोली कि मीनाक्षी ‘माल’ लगेगी उसको पहने हुए। कैसा संयोग है, शादी के बाद आज ही पहली बार उसने उन अधोवस्त्रों को पहना, और आज ही उसका पति उसको निर्वस्त्र कर रहा है! समीर ने कुछ सोचा नहीं - उसका एक हाथ मीनाक्षी की जाँघों के बीच में योनि को छेड़ने लगा। इतनी पतली पैंटी में दिक्कत यह है कि वो हमेशा पारदर्शी ही रहती है - चाहे सूखी हो, चाहे गीली। और अगर एक बार काम-रस निकल गया हो, जैसा कि मीनाक्षी के साथ हुआ, तो योनि की सारी बनावट दिखने लगती है। उस समय भी यही हो रहा था - मीनाक्षी की योनि के दोनों होंठ साफ़ दिखाई दे रहे थे। पैंटी होने या होने का क्या फायदा जब उसकी सामने वाली पट्टी, उन दोनों होंठों के बीच धंस जाए!
 

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समीर की छेड़खानी बढ़ती जा रही थी - उसके होंठ मीनाक्षी को चूमने में, एक हाथ उसके स्तन को दबाने कुचलने में, और दूसरा हाथ उसकी योनि को छेड़ रहा था। बीच बीच में कभी वो एक निप्पल मुँह में भर लेता, तो कभी दूसरा मुँह में लेकर चूसने लग जाता। उसके हाथों की छेड़खानी से ना सोचते हुए भी मीनाक्षी की जांघें खुद ब खुद खुलने लगी। जब समीर का हाथ उसकी योनि के चीरे पर पड़ा, तब जा कर मीनाक्षी को समझा कि वो अब समीर के सामने पूरी तरह से नंगी पड़ी है।

उसने थोड़ा चैतन्य हो कर अपने चारों तरफ का जायज़ा लिया - वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी; पूर्णतया नग्न थी; उसके सारे कपड़े कमरे में इधर उधर इस प्रकार फैले हुए थे जैसे वो कोई फ़ालतू चीज़ हों।

‘आज सचमुच में मेरा ‘मिस’ वाला स्टेटस गया’ यह सोच कर मीनाक्षी ने खुद को थोड़ा संयत करते हुए, खुद को अपने निकट भविष्य के लिए तैयार कर लिया। समीर उसके होंठो पर लम्बा लम्बा चुबन देते हुए चूसने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे वो मीनाक्षी के होंठों को ही नहीं, बल्कि उनकी लालिमा को भी चूस लेना चाहता हो।

इस फोरप्ले के दौरान न जाने क्यों, मीनाक्षी को अपने और समीर के बीच के उम्र के फासले का ध्यान हो आया। समीर उससे कोई नौ साल छोटा था; और आदेश आठ साल! मीनाक्षी को याद हो आया कि वो आदेश के बचपन में उसकी देखभाल ऐसे करती थी जैसे कि वो खुद उसकी माँ हो। और आदेश भी उसको अक्सर माँ जैसा ही मान और प्यार देता था। उसके छुटपन में मीनाक्षी ने न जाने कितनी ही बार उसकी तेल-मालिश करी, और उसको नहलाया, धुलाया। उस समय की बात याद आ गई - कैसे वो आदेश के नन्हे से छुन्नू से खेलती थी, उसको चुम्मियाँ देती थी। समीर का छुन्नू कैसा होगा? समीर तो आदेश से भी एक साल छोटा है। लेकिन देखो, कैसे उस पर अपना अधिकार जता रहा है! न उसकी उम्र का लिहाज़, और न ही कोई वर्जना। और समीर यह सब सोचे भी क्यों? आख़िर उसका पति जो ठहरा!

उसके होंठों पर अपने होंठ रखे हुए समीर ने अपने दोनों हाथ उसके स्तनों पर जमा लिए। मीनाक्षी को पुरुषों में मन में स्तनों के लिए होने वाली आसक्ति का ज्ञान था। घर के बाहर वो जब भी निकलती थी, वो देखती थी कि कैसे पुरुषों की आँखें उसकी छातियों पर चिपकी हुई रहती थीं। कैसे राह चलने वाले जवान, अधेड़ और बूढ़े लोग या तो चोरी छुपे, या पूरी निर्लज्जता से उसके और अन्य लड़कियों और महिलाओं के शरीरों की वक्रताओं की नाप-जोख करते रहते थे। उनकी नज़रें अपने शरीर पर चिपकी महसूस करके मीनाक्षी को बहुत घिनौना लगता था - लेकिन समीर इस समय जो कुछ भी कर रहा था, उसको बहुत अच्छा लग रहा था। अच्छा ही नहीं, वह चाहती थी कि समीर उसको ऐसे देखे, और यही सब करे। प्रेम और गन्दी वासना में शायद यही अंतर है।

मीनाक्षी ने शर्म से अपनी आँखें बंद कर लीं, और खुद को चादर से ढक लिया। समीर ने उस चादर को हटा दिया। लेकिन लज्जा के मारे मीनाक्षी ने अपनी छाती पर अपने हाथ आड़े तिरछे रख लिए। समीर उसके दोनों हाथों को हटा कर मन्त्र-मुग्ध होकर उसके शरीर को देखने लगा।

जब समीर अपनी सुहागरात की कल्पना करता, तो उसमे उसकी पत्नी पूर्ण नग्न अवस्था में होती - न तो वस्त्र का एक भी धागा होता, और न ही कोई आभूषण। और तो और वो तो अपनी पत्नी की योनि भी पूरी तरह से क्लीन-शेव्ड हुई सोचता था। लेकिन मीनाक्षी की वैसी अवस्था नहीं थी। उसके शरीर पर कपड़े तो खैर नहीं थे, लेकिन आभूषण थे - उसने मंगलसूत्र पहना हुआ था, छोटी सी बिंदी लगाई हुई थी (जो अपनी जगह से खिसक गई थी), उसने नाक की कील और कानों में बालियाँ पहनी हुई थीं। सुहाग की लाल चूड़ियाँ उसकी कलाइयों की शोभा बढ़ा रही थीं, उँगलियों में अँगूठी, और पैरों में पायल, और उनकी उँगलियों में बिछिया। अभी अभी समीर ने जो करधन पहनाई वो भी थी। और उसकी योनि पर बाल भी थे। कल्पना से इतनी भिन्न अवस्था के बाद भी मीनाक्षी इस समय जैसे साक्षात् रति का ही अवतार लग रही थी।

कुछ देर ऐसे ही मीनाक्षी को देखने के बाद वो कांपते हुए स्वर में बोला,

“तुम कितनी खूबसूरत हो, मीनाक्षी!”

पहले ही वो शर्मसार हो रखी थी, लेकिन अपने सौंदर्य की बढ़ाई सुन कर उसके पूरे शरीर में लज्जा की एक और लालिमा चढ़ गई। मीनाक्षी ने करवट बदलकर खुद को छुपाते हुए कहा, “क्या सुन्दर है मुझमें?”

“तुम्हारा रंग…” समीर की आवाज़ में अब उत्तेजना सुनाई देने लगी थी।

“ऐसा कोई गोरा रंग तो नहीं है…” वो बोली।

“इसीलिए तो सुन्दर है..” फिर कुछ रुक कर वो आगे बोला, “तुम्हारा पूरा शरीर ही गज़ब का है! कैसी सुन्दर, कैसी चिकनी स्किन... कैसे मुलायम और चमकीले बाल.. कैसे काले काले हैं! … और कितने सुन्दर स्तन हैं तुम्हारे (वो बूब्स कहना चाहता था)! बहुत सुन्दर! गोल गोल और… सॉफ्ट! और ये निप्पल तो देखो! आह! इतने सुन्दर मैंने पहले कभी नहीं देखे! तुम मुझे पागल कर दोगी!”

कहते हुए उसने मीनाक्षी के स्तनों को बारी बारी चूम लिया। फिर उसने वाइन ग्लास से बूँद बूँद कर मीनाक्षी के स्तनों पर वाइन डाल दी, और जीभ से चाटने लगा। उसके इस खेल पर मीनाक्षी को हंसी आ गई,

“इससे वाइन का स्वाद बढ़ गया क्या?”

“हाँ..”

“ह्म्म्म..”

उसके बाद समीर वाइन को मीनाक्षी के पूरे शरीर - स्तनों, पेट, पेडू, पर डाल कर चाटने लगा। सच में, मीनाक्षी के सौंदर्य में घुल कर वाइन और भी शराबी हो गई और समीर पर उन्मादक मदहोशी सी छाने लगी। उधर मीनाक्षी समीर के बालों में उंगलियाँ डाले आनंद लेने लगी। समीर ने अपनी उंगली से उसके चूचकों को कोमलता से स्पर्श किया, फिर उनको अपनी नाक की नोक से किसी पक्षी की चोंच के समान सहलाया और सूंघा। फिर उसके दोनों चूचकों को अपने मुँह में लेकर जी भर चूसा। मीनाक्षी के दोनों निप्पल इस समय सतर्क द्वारपालों जैसे सावधान मुद्रा में खड़े हुए थे।

“तुमको मालूम है कि वाइन पीने के बाद ‘चेरी’ खानी चाहिए?”

“अच्छा? मुझे नहीं मालूम... लेकिन यहाँ ‘चेरी’ तो नहीं है…” मीनाक्षी समझ रही थी कि वो शरारत कर रहा था।

“अरे है तो! ये (उसने मीनाक्षी के निप्पलों की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो हैं!”

“हा हा! आप तो इनको बहुत देर से खा रहे हैं!”

“हाँ! इतने स्वादिष्ट जो हैं! अब से ये मेरे! वादा करो - जब इनसे दूध निकलेगा न, तब तुम मुझे जी भर के पीने दोगी?”

“धत!” मीनाक्षी इस बात पर बुरी तरह शरमा गई।

“अरे! धत क्यों?”

“दूध तो बच्चे पीते हैं”

“दूध बच्चे पीते हैं, तभी तो वो तगड़े आदमी बनते हैं! और आदमी इसलिए पीते हैं, कि वो तगड़े बने रहें!”

“हा हा! ठीक है बाबा - मेरे तगड़े आदमी - आपका जब मन करे, जितना मन करे, पी लीजिएगा।”
 

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समीर ने कुछ देर मीनाक्षी के स्तनों को पिया, और फिर धीरे धीरे स्तनों और पेट का चुम्बन करते हुए धीरे धीरे नीचे की ओर उसके नाज़ुक यौनांगों तक आ गया। मीनाक्षी ने सख्ती से अपनी दोनों जांघें जोड़ी हुई थीं। उनको समीर ने अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए कहा,

“अपना स्वाद लेने दो!”

“छी! नहीं..!” मीनाक्षी ने वापस अपनी जांघें आपस में भींच लीं।

“क्यों?”

“अरे! कितना गन्दा काम है!”

“गन्दा काम! अरे देखो तो! कितनें सुन्दर हैं तुम्हारी चूत के होंठ! इनके अन्दर अमृत भरा हुआ है… प्लीज़ मुझे पीने दो!”

‘चूत? ये तो गाली होती है!’ मीनाक्षी ने सोचा। उसको थोड़ा बुरा सा लगा, लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं करी।

समीर ने इस बार धीरे धीरे उसकी जाँघों को अलग किया। मीनाक्षी ने इस बार विरोध नहीं किया, लेकिन उसने शर्म से अपनी आँखें बंद कर ली। उत्तेजनावश उसकी योनि में से पहले ही काम-रस रिस रहा था। समीर ने मीनाक्षी की योनि में अपने मुँह को पूरी तरह से अन्दर डाल दिया और मन भर कर उसका रस पीने लगा। कुछ देर में उसने मीनाक्षी का सारा अमृत पी लिया..

‘ओह कैसी प्यास!’

मीनाक्षी आँखें बंद किये इस अनोखे अनुभव को जी रही थी.. उसको नहीं मालूम हुआ कि उसका योनि रस-पान करते हुए समीर ने खुद को पूरी तरह से अनावृत कर लिया।

“आँखें खोलो मिनी.. मुझे देखो!”

मीनाक्षी ने आँखें खोलीं। सामने का दृश्य देख कर वो एक पल को डर गई। उसने सुना तो था कि मर्दों का पुरुषांग, बच्चों के अंग से बड़ा होता है, लेकिन ऐसा…? उसको आदेश के छोटे से लिंग की याद आ गई।

‘कितना मुलायम सा, कितना छोटा सा था आदेश का छुन्नू! लेकिन ये? यह तो जैसे राक्षस की प्रजाति का है!’

लगभग सात इंच लम्बा, और कोई दो इंच मोटा! पूरी तरह उन्नत।

‘और उसकी नसें! बाप रे! कैसा डरावना अंग!’

और यह अंग उसके भीतर जाने वाला था। इसको वो अपने भीतर महसूस करने वाली थी। समीर इसके द्वारा उसको भोगने वाला था। भय और लज्जा से उसने फिर से अपनी आँखें मूँद लीं। समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया।

“डरो मत! इसको मन भर कर महसूस करो.. आज से यह तुम्हारा है!”

स्वतः प्रेरणा से मीनाक्षी ने अपनी हथेली समीर के लिंग पर लिपटा ली। उसके हाथ अभी भी कांप रहे थे।

“क्या हुआ मिनी?”

“हे भगवान! कितना बड़ा है यह!” मीनाक्षी मंत्रमुग्ध सी और डरी हुई समीर के लिंग को स्पर्श कर रही थी... “मेरे अंदर तो यह बिलकुल भी फिट नहीं हो सकता।” वह बेसुध सी हो कर कुछ भी बोल रही थी – संभवतः उसको ध्यान भी न हो।

“ऐसे मत कहो! इसको ठीक से देखो और महसूस करो... इतना डर नहीं लगेगा! आँखें खोलो... ये देखो..” कह कर समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग की पूरी लम्बाई पर फिराया।

“ठीक से महसूस करो... इसको ऐसे दबाओ (समीर ने मीनाक्षी की हथेली से अपने लिंग को दबाया).. अपने गालों से लगाओ (उसने लिंग को मीनाक्षी के गाल पर फिराया).. सीने से लगाओ (उसने मीनाक्षी के दोनों स्तनों के बीच में अपने लिंग को टिकाया और स्तनों से ही दबाया)... मुँह में लो.. (उसने लिंग को उसके होंठों पर फिराया) आनंद लो!”

मीनाक्षी के चेहरे पर घबराहट और संकोच साफ़ दिख रहे थे, लेकिन इस समय वह उत्सुकता के वशीभूत थी। अपने पति को अपना सर्वस्व सौंपने की इच्छा उसमें बलवती थी। उसकी उँगलियों ने समीर के लिंग को पहले हल्के से छुआ और फिर दबाया,

“कितना कड़ा है, लेकिन फिर भी कितना सॉफ्ट!” उसने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, “और कितना गरम भी” यह सब मीनाक्षी के लिए एकदम नया था। कामुक कौतूहल ने उसकी वर्जनाओं का बाँध तोड़ दिया था।

समीर ने प्यार से मीनाक्षी के सीने पर हाथ फिराया। उसकी इस हरकत पर मीनाक्षी की आँख फिर से बंद हो गई... समीर ने उसकी बंद आँखों पर चूम लिया, फिर उसके गालों पर.. मीनाक्षी अब पूरी तरह से तैयार थी, इतना तो दोनों को ही मालूम था। वैसे दोनों ही इस रात के आरम्भ से ही सम्भोग के लिए पूरी तरह से तैयार थे। वो तो समीर ने इतनी देर तक अपने आप पर संयम बनाए हुए रखा था। लेकिन अब उससे भी रहा नहीं जा रहा था। उसने अपने लिंग की त्वचा को पीछे की तरफ खींच कर लिंग का शिश्नमुण्ड खोल दिया, और उसको मीनाक्षी के योनि-द्वार पर छेड़ते हुए चलाने लगा। कामोन्माद के मारे मीनाक्षी छटपटा रही थी। वासना की ज्वाला अब उसको कष्ट देने लगी थी। उसने आँखें खोल कर समीर को देखा.. और वो, बस मुस्कुराया।

फिर आगे जो हुआ वो बहुत अप्रत्याशित था! उसने दोनों हाथों से मीनाक्षी की कमर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा।

“बोलो.. क्या चाहती हो?” उसने मीनाक्षी को छेड़ा।

कामोद्दीपन के चरम पर पहुँच कर मीनाक्षी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। उसका पूरा शरीर वासना के अधीन हो कर कांप रहा था। एक सुन्दर सी लालिमा उसके पूरे शरीर पर फ़ैल गई थी। वो चाह रही थी कि कह दे समीर से कि वो उसको भोगना शुरू करे। आखिर कितनी देर वो इंतज़ार करे? लेकिन वो कुछ कह नहीं पाई।

“बताओ.. क्या चाहती हो?” समीर ने फिर कुरेदा।

मीनाक्षी अभी भी कुछ नहीं कह रही थी। बस अपने सर को धीरे धीरे, दाएँ बाएँ हिला रही थी। उसकी योनि ऐसी तरंगें छोड़ रही थी कि अब वो बेबस हुई जा रही थी। उसको मालूम ही नहीं था कि उसका शरीर ऐसे अजायब हरकतें कर सकता है।

"देर सही नहीं जा रही है क्या?" समीर ने कुछ और छेड़ा।

‘अरे इसको मेरे मन की बात कैसे पता चली?’

इस पूरे दरम्यान समीर उसकी योनि को छेड़ता रहा।
 

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वाकई मीनाक्षी से देर सही नहीं जा रही थी। लेकिन, कैसे कह दे मीनाक्षी समीर से कि देर नहीं सही जा रही है! यह सब कहना तो उसने कभी सीखा ही नहीं। उसको तो सच कहो तो अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि उसका अपना शरीर इस समय उसके अधीन क्यों नहीं है। क्यों वो समीर की ताल पर नाच रही है? समीर, जो उसके सामने बच्चा है! समीर, जो उसका पति है! समीर, जो उसका सबसे अच्छा दोस्त है! समीर, जो उसका अंतरंग प्रेमी है! समीर, जो उसकी होने वाली सन्तानो का पिता भी है! दाम्पत्य की सीढ़ी के इस पहले पायदान पर पैर रखने में समीर ने कितना धैर्य रखा! उसकी सहेलियाँ मीनाक्षी को कहतीं कि वो बहुत लकी है। उनके पतियों ने तो पहली रात में ही उनको भोग लिया था - न उनकी मर्ज़ी की परवाह करी और न ही उनके दर्द की!

और समीर! उसने पति बनने से पहला उसका दोस्त बनना ठीक समझा। वो उसका सहारा बना। उम्र में इतना फासला होते हुए भी वो उसका गार्जियन है! और आज जब वो मीनाक्षी को पूरी तरह से अपनी बना लेना चाहता है, तो वो भी तो यही चाहती है! अब समीर के प्रश्न पर वो क्या बोले? लड़कियाँ यह सब कैसे कहें! लज्जा की चादर ने उसको पूरी तरह से ढँक लिया था। वो देख रही थी.. समीर की आँखों में अपने लिए प्यास! उसके होंठों पर अपने लिए प्यास!

समीर ने अपना लिंग मीनाक्षी की योनि पर टिकाया - वो इतना कड़ा था कि मीनाक्षी को समीर का लिंग चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था। दोनों की ही साँसें बहुत तेज़ हो रही थी। दोनों ही जानते थे कि पूर्ण मिलन के क्षण आने ही वाले थे। आदि काल से चली आ रही इस क्रिया के शुरू होने में अब देर नहीं थी।

“मीनाक्षी…?”

“हम्म?”

“कुछ बोलो?”

मीनाक्षी का मन हुआ कि वो ज़ोर से हँसे। वो समझ रही थी कि समीर चाहता था कि वो अपने मुँह से उसको अपने से सम्भोग करने को कहे। चाहती तो वो भी थी यह कहना, लेकिन चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाई। उसके होंठ कांप रहे थे, आँखें बंद हो रही थीं, और दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। वो कुछ कह तो नहीं सकी, लेकिन उसने समीर को अपनी बाहों में ज़ोर से कस लिया। समीर को संकेत मिल गया था।

“शायद थोड़ा सा दर्द होगा... लेकिन तुम सह लेना?”

मीनाक्षी ने उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया और प्रहार के लिए तैयार हो कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। समीर ने भी बिना और देर किये अपने लिंग को मीनाक्षी की योनि में ठेल दिया। मीनाक्षी को समीर का मोटा सा लिंग अपने अंदर धंसता हुआ महसूस हुआ - उसको लगा जैसे उसकी योनि-छल्ले के ऊतक फट गए हों - जैसे अनगिनत चीटियों ने एक साथ ही उसकी योनि को काट खाया हो। तीस वर्षों तक अभेद्य रहे मीनाक्षी के कौमार्य को समीर ने अब जीत लिया था। सरसराता हुआ उसका लिंग मीनाक्षी की चिकनी, संकरी सुरंग को रौंदता हुआ योनि के अंदर तक समां गया। मीनाक्षी के गले से चीख निकल गई।

उसकी जैसे साँसें ही जम गई थी; वो दर्द से बिलबिला उठी और समीर की बाहों में कसमसाने लगी। उसको अनुमान था कि दर्द होगा, लेकिन इतना होगा- इस बात का अंदाजा नहीं था। शरीर के भीतर तो कुछ अंदाजा लगता भी नहीं। मीनाक्षी को लगा कि समीर का लिंग उसकी नाभि तक आ गया है। उसका सात इंच लम्बा लिंग पूरी तरह से मीनाक्षी के अंदर तक पैवस्त था। दरअसल मीनाक्षी को जो दर्द हो रहा था वो मन के नहीं, बल्कि शरीर के विरोध के कारण था। उसकी आँखों से आँसू की कुछ बूँदें उसके गालों पर लुढ़क आई।

अलका ने बताया था कि कौमार्य भेदन के बाद ही सम्भोग का असली आनंद आता है। मतलब, जो बुरा होना था, वो हो चुका। अब वो इस क्षणिक दुःख दर्द को भूल कर उन्मुक्त भाव से सम्भोग के सुख को भोगना चाहती थी। समीर उसको चूमते सहलाते हुए कह रहा था,

“बस बस… हो गया… हो गया… शायद अब और दर्द नहीं होगा।”

यह कह कर समीर ने धक्के लगाने शुरू कर दिए। हर धक्के के साथ मीनाक्षी की जाँघें और खुलती जातीं और अंततः उतनी खुल गईं, जितना कि वो खोल सकती थी। कुछ देर के बाद, समीर ने धक्कों की गति कुछ और बढ़ा दी। मीनाक्षी का दर्द पूरी तरह ख़त्म तो नहीं हुआ, लेकिन कम ज़रूर हो गया था। समीर मीनाक्षी को पूरी तरह भोग रहा था - उसके स्तनों को अपने हाथों से; उसके होंठों को अपने होंठों से; और उसकी योनि को अपने लिंग से। मीनाक्षी पुनः रति-निष्पत्ति के चरम पर पहुँच गई थी और उसकी देह कांपने लगी।

“आह….”

उधर समीर लयबद्ध तरीके से धक्के लगाए जा रहा था। साथ ही साथ मीनाक्षी को चूमता भी जा रहा था। उसने महसूस किया कि मीनाक्षी की साँसे उखड़ने लगी और देह थिरकने लगी। मीनाक्षी ने महसूस किया कि पहले जैसा ही, लेकिन अधिक तीव्रता से उसकी योनि में उबाल आने लगा। कामोद्दीपन के शिखर पर पहुँच कर कैसा महसूस होता है, आज उसको पहली बार महसूस हुआ था। वो छटपटाने लगी और उसकी योनि से कामरस छूट गया। मीनाक्षी ने समीर के होंठों को अपने मुँह में ले लिया, और उसकी कमर को अपनी टांगों में कस लिया। स्खलन के साथ ही मीनाक्षी की आहें निकलने लगी - आज अपने जीवन में पहली बार वो इस निर्लज्जता से आनंद ले रही थी। मीनाक्षी ने महसूस किया कि सम्भोग में वाकई पर्याप्त और अलौकिक सुख है। विवाहित जीवन अगर ऐसा होता है, तो वो सदा विवाहित रहना चाहेगी!

उधर समीर भी कमोवेश इसी हालत में था। वो जल्दी जल्दी धक्के लगा रहा था। उसकी साँसें और दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी थी। आवेश के कारण उसके चेहरे पर लालिमा आ गई थी। उसने भी महसूस कर लिया था कि उसका स्खलन होने वाला है; और वो अब मीनाक्षी को जोर जोर से चूम रहा था और उसके स्तनों को कुचल मसल रहा था। उसी समय समीर के लिंग ने भी अपना वीर्य मीनाक्षी की योनि में छोड़ना शुरू कर दिया। आश्चर्य है कि मीनाक्षी की योनि स्वतः संकुचन करने लगी कि जैसे समीर के लिंग से निकलने वाले प्रेम-रस का हर बूँद निचोड़ लेगी। समीर ने सात आठ आखिरी धक्के और लगाए, और मीनाक्षी के ऊपर ही गिर गया। उसने मीनाक्षी को अपने आलिंगन में कस कर भर लिया, और कुछ देर उस पर ही लेटा रहा।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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वो दोनों ही कोई दो तीन मिनट तक बिना कुछ बोले इसी तरह पड़े रहे। यह भावनाओं का ज्वार था, जो अपने शिखर पर पहुँच कर अब शिथिल पड़ रहा था। सम्भोग की यह आखिरी अभिव्यक्ति है - जिन क्षणों में दो शरीर जुड़ गए हों, उनके रसायन मिल गए हों, और दो आत्माएँ जुड़ गयी हों, उन क्षणों में कुछ कहने सुनने को क्या रह जाता है? यह एक अनूठा अनुभव है, जिसका आस्वादन बस चुप चाप रह कर किया जा सकता है।

मीनाक्षी ने महसूस किया कि समीर का लिंग बड़ी तेजी से आकार में घट रहा था। और कुछ देर में वो फिसल कर उसकी योनि से खुद ब खुद बाहर आ गया। फिर भी समीर ने मीनाक्षी को अपने आलिंगन में ही पकड़े रहा। मीनाक्षी को लगा कि उसकी योनि से कुछ गर्म सा द्रव बह कर बाहर आने लगा। मीनाक्षी के लिए यह बिलकुल अशुद्ध भावना थी। बिस्तर तो उसने अपनी याद में कभी गीला नहीं किया था, और तीस की उम्र में वो यह काम शुरू नहीं करने वाली थी। उसने अपनी योनि को हाथ से ढँका और बिस्तर से उठने लगी। वो जैसे ही उठने को हुई, समीर ने उसे रोक दिया।

“अरे यार! थोड़ा रुको!”

“जाने दीजिए प्लीज! इसमें से कुछ निकल रहा है!”

“किसमें से क्या निकल रहा है?” समीर ने उसको छेड़ा।

“इसमें से!” मीनाक्षी थोड़ा अधीर होते हुए, आँखों से नीचे की ओर इशारा करते हुए बोली।

“इसको क्या कहते हैं?”

“जाने दीजिए न!”

“नहीं - पहले बताइए!”

“देखिए - बिस्तर गीला हो जाएगा!”

“छीः छीः! इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो! हा हा!”

“धत्त!”

“अरे बोलो न! मुझसे क्या शर्माना?”

“क्या बोलूँ?”

“इसको क्या कहते हैं?”

“ओह्हो! आप भी न! बस एक ही रट लगा कर बैठ गए!”

“तुम भी ज़िद्दी हो!”

“हम्म - इसको वजाइना बोलते हैं! अब खुश? चलिए छोड़िए, अब जाने दीजिए!”

“आओ - साथ साथ ही चलते हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ कहा।

“नहीं! अभी जाने दीजिए मुझे! मैं इसको धो लूँ!”

मीनाक्षी ने विनती करते हुए कहा और बाथरूम की ओर जाने लगी। बिना एक भी कपड़े के बाथरूम जाने में उसको संकोच भी हो रहा था, और शर्म भी आ रही थी। शरीर पर कुछ ओढ़ने के लिए नहीं था, इसलिए मीनाक्षी अपनी योनि पर हाथ लगाए हुए, वैसी ही नग्न अवस्था में ही लगभग दौड़ कर बाथरूम में चली गई। उसको यह नहीं मालूम था कि उसके ऐसा करने से समीर को उसके उछलते कूदते स्तनों का मजेदार दर्शन हुआ। बाथरूम में जा कर मीनाक्षी ने अपनी योनि का हाल देखा। उसकी योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ बढे हुए रक्त प्रवाह, और प्रथम सम्भोग के घर्षण के कारण सूजी हुई लग रही थीं। योनि की झिर्री खुल गई थी। उसी खुले हुए मुँह से उसके और समीर के काम रस का सम्मिश्रण बह रहा था।

‘ओ गॉड! कैसी हालत करी है इसकी बदमाश ने! छुन्नू है कि मूसल!’ सोच कर मीनाक्षी हल्का सा मुस्कुराई और प्रत्यक्ष में दबी हुई आवाज़ में खुद से कहा, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स मिसेज़ मीनाक्षी सिंह!”
 
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