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Romance संयोग का सुहाग [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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साफ़ सफ़ाई कर के जब मीनाक्षी बाथरूम से बाहर आई तो उसने देखा कि समीर उसी की दिशा में देख रहा था। तौलिए से अपना तन ढँकना वो भूल गई थी। समीर ने भी खुद को ढँकने की कोई कोशिश नहीं करी थी। वो वैसे ही नंगा बिस्तर पर लेटा हुआ था। जब वो बिस्तर के पास आई तो समीर ने प्यार से उसका हाथ पकड़ कर अपने बगल बैठा लिया और उसकी गोद में अपना सर रख कर लेट गया। उसके लेटने का तरीका ऐसा था कि उसका चेहरा मीनाक्षी की योनि की तरफ था।

“मिनी?”

“हम्म”

“तुम बहुत सुन्दर हो!”

मीनाक्षी ने देखा कि यह कहते हुए समीर उसकी योनि को देख रहा था।

‘एक नंबर का बदमाश है!’

“तुम बहुत सुन्दर हो! जैसा सोचा था, उससे भी कहीं अधिक!”

‘समझ आ रहा है कि साहब को क्या सुन्दर लग रहा है!’ उसने मन में सोचा।

“क्या सुन्दर लगा आपको?” और प्रत्यक्ष में कहा।

“तुम्हारा कुछ! कोई एक ही चीज़ हो तो बताऊँ! अब इसको ही ले लो.... तुम्हारी चूत.... इसकी बनावट - जैसे दो पल्लों का दरवाज़ा कस कर भेड़ लिया गया हो! और अभी, जब तुम ऐसे बैठी हो, तो इसको देखने पर ये गुलाब के फूल की पंखुड़ियों जैसी लग रही हैं। सच में, अंदर जा कर मज़ा आ गया!”

जिस तरह समीर ने यह सब कहा, मीनाक्षी हँसे बिना न रह सकी।

“आप इसको चूत क्यों कहते हैं? चूत तो गाली होती है न?”

“ओहहह! अच्छा वो? वो तो देहाती और आवारा लोगों के लिए गाली होती है। असल में चूत तो फल होता है। संस्कृत में ‘चूतफल’ मतलब आम! मैं तो इसको आम कह रहा हूँ! ऐसी प्यारी सी चीज़ को मैं गाली क्यों दूँगा भला?”

“बातें बनाना कोई आपसे सीखे!”

“अरे! अब किसकी कसम लूँ मैं! आम जैसी ही रसदार है ये!”

“हा हा बदमाश! लोग तो ब्रेस्ट्स को आम कहते हैं।”

“क्या बात है! इसका मतलब यह है कि मेरी बीवी आम की टोकरी है पूरी - एक जोड़ी राजापुरी आम ऊपर, और दशहरी आम के रस की प्याली नीचे!”

“धत्त गंदे!”

“मिनी, आज तुमने मुझे कम्पलीट कर दिया! थैंक यू!” कह कर समीर ने उसकी योनि को चूम लिया।

“आप ने भी तो मुझे कम्पलीट कर दिया!”

मीनाक्षी की बात पर समीर मुस्कुराया, और उसने मीनाक्षी के सर को थोड़ा सा नीचे करने की कोशिश की। मीनाक्षी ने भी अपना सर थोड़ा नीचे कर, उसको चूमने में सहयोग किया। जब चुम्बन टूटा, तो उसके स्तन समीर के चेहरे से जा लगे। उसने झट से मीनाक्षी का एक निप्पल अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।

मीनाक्षी समीर को मना करने की स्थिति में नहीं थी। समीर के प्रेम करने के तरीके की वो अब मुरीद बन चुकी थी। समीर जहाँ चाहता, जैसे चाहता, और जो भी चाहता, मीनाक्षी उसको वो सब करने से मना नहीं कर सकती थी। अलका ने एक बार मीनाक्षी को कहा था कि उन पुरुषों को अपनी पत्नियों के स्तनपान में ख़ास रूचि होती है, जिन्होंने अपनी माँ का या तो बहुत ही कम, या बहुत ही अधिक स्तनपान किया हो।

‘समीर ने कितना किया है?’ मीनाक्षी के मन में यह सवाल उठा, ‘कम या ज्यादा? शरीर देख कर तो लगता है कि साहब ने अपनी माँ का दूध खूब पिया है! और अब अपनी बीवी का भी!’

“आपसे एक बात पूछूँ?”

“एक नहीं, सौ बात पूछो!”

“आपने मम्मी का दूध कब तक पिया है?”

“उम्म्म, यही कोई छः सात साल तक!”

“अरे वाह। मम्मी आपको बहुत प्यार करती हैं इसका मतलब।”

“हाँ! बहुत प्यार करती हैं! मैं भी उनको बहुत प्यार करता हूँ। वो अभी भी मेरा बचपन याद कर के बताती हैं कि मैं उनके दूध को कभी छोड़ना ही नहीं चाहता था। उनका दूध पीना मुझे सबसे ज्यादा सुख देता था। पर अफ़सोस, उम्र बढ़ी और मैं मम्मी के दूध से वंचित हो गया। हर औरत के स्तन माँ के प्रेम की याद दिलाते तो हैं, लेकिन हर औरत प्रेममयी हो, ये ज़रूरी नहीं।”

समीर ने देखा की मीनाक्षी बहुत इंटरेस्ट ले कर उसकी बात सुन रही थी। वो मुस्कुराया और फिर बोला,

“लेकिन इनमें (उसने बारी बारी से मीनाक्षी के दोनों चूचक चूमे) से मेरे लिए प्रेम की मीठी धारा बहती है।”
 

avsji

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मीनाक्षी मुस्कुरा दी। उसका ध्यान समीर के लिंग पर गया - सम्भोग के बाद वो विकराल अंग अब मात्र दो-ढाई इंच जितना ही रह गया था। सिकुड़ा हुआ, कोमल, निर्जीव! जैसे सो गया हो! अलका कहती है कि इसे मुँह में लेकर चूसने में बहुत मज़ा आता है! और यह कि उसके पति को इस काम में बहुत मज़ा आता है। कभी कभी अलका तो चूस चूस कर उसका वीर्य भी पी लेती है!

“छीः! गन्दी” ख्यालों में डूबी मीनाक्षी के मुँह से निकल गया।

“हम्म?” उसके स्तनों को पीने में मगन समीर उसकी आवाज़ सुन कर चौंक गया।

“कुछ नहीं” तन्द्रा में डूबी मीनाक्षी धरातल पर वापस आई, “वो… वो मैं कह रही थी कि आप पी लीजिए!”

“पी ही तो रहा हूँ!”

“ओहो! आहहह! आप ऐसे चूस चूस कर इनका दम निकाल देंगे!”

“अरे दम कहाँ निकला - ये देखो? तुम्हारी चेरियाँ कैसी कड़क हो गई हैं!” समीर ने शरारती अंदाज़ में कहा।

“अब बस जानू! दर्द होने लगता है!”

“ओह! ठीक है!” कह कर समीर उसके स्तन से अलग हो गया।

मीनाक्षी को लगा कि समीर का मन बुझ गया। उसको मनाने के अंदाज़ में उसने कहा, “मेरी आदत नहीं है न! और आप पीते भी इतने जोश में हैं! अच्छा ठीक है, इनको मुँह में ले कर दुलारते रहिए… फिर कुछ देर बाद पी लीजिएगा! मैं कहीं भागी थोड़े न जा रही हूँ! है न?”

“हम्म्म” कह कर समीर फिर से उसको अपनी बाहों में भरने की कोशिश करने लगा।

“ओहो! समीर… छोड़िए ना… अभी मन नहीं भरा क्या?”

“तुम्हारे जैसी खूबसूरत बीवी हो तो किसी का मन भरेगा क्या? ये देखो!” कह कर समीर ने उसका हाथ अपने लिंग पर रख दिया। जो लिंग अभी बस कुछ क्षणों पहले मुरझाया हुआ था, न जाने कब वापस अपने विकराल रूप में आ गया था। मीनाक्षी को बहुत आश्चर्य हुआ।

“मिनी, तुम बहुत सुन्दर हो! प्लीज, मुझे अपने से दूर मत करो!” कह कर उसने एक साथ कई चुम्बन मीनाक्षी के चेहरे पर जड़ दिए।

मीनाक्षी भी कहाँ उसको मना करने वाली थी? लेकिन मिलन की रात में थोड़ा ठुनकना तो बनता है न? लड़की थोड़ी शोख़ी न दिखाए, चंचलता न दिखाए, मान मनुहार न करवाए, तो क्या मज़ा? उसके कुछ कहने से पहले ही समीर उससे गुत्थम-गुत्था हो गया। वो पेट के बल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी। और समीर उसके ऊपर आ कर चढ़ बैठा। पहली बार मीनाक्षी को अपने मुकाबले समीर के शरीर के आकार का अनुमान हुआ - समीर वाकई बड़े कद काठी का नौजवान था। पूरा मर्द!

उसने पीछे से ही मीनाक्षी के स्तनों को पकड़ लिया, और उसकी पीठ, गर्दन, कानों पर चुम्बन देने लगा। उसके नितम्बो के बीच में समीर का कड़क लिंग चुभने लगा। थोड़ी ही देर पहले जो कुछ हुआ था, उसके फिर से होने की सोच कर मीनाक्षी की देह काँप गई। बीच बीच में समीर कभी उसके कान, तो कभी गाल, तो कभी गर्दन तो कभी पीठ को चूमता। बीच बीच में वो उसके स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर दबाता और मसलता, तो उसकी साँसे फूल जातीं।

कुछ देर के बाद समीर ने कहा, “तुमको मालूम है?”

“क्या?” मीनाक्षी ने हाँफते हुए पूछा।

“तुम्हारी दाहिने चूतड़ पर एक प्यारा सा तिल है! यहाँ।” कह कर उसने जहाँ तिल था, वहाँ अपनी तर्जनी से छुआ।

“धत्त बत्तमीज़!”

“अरे क्यूँ?”

“कैसे कैसे गन्दा गन्दा बोलते हो आप!”

“अरे! गन्दा क्या है? चूतड़ ही तो हैं - सुन्दर, गोल गोल!” उसके मीनाक्षी ने नितम्बों को सहलाते हुए कहा, “और उनके बीच में ये तुम्हारी प्यारी सी चूत!” उसने उसकी योनि पर हाथ फिराया, “और ये, वाह वाह… क्या बढ़िया सी गाँड़!” उसने मीनाक्षी के नितम्बों को फ़ैलाते हुए उसकी गुदा को अनावृत कर दिया।

मीनाक्षी चिहुँक गई। उसने अपनी पुट्ठे की पेशियाँ सिकोड़ लीं, और पलट गई।

“धत्त! थप्पड़ पड़ेगा!” एक स्वतः प्रेरणा से मीनाक्षी ने समीर की हरकतों का विरोध किया। लेकिन ऐसा करते ही उसको अपनी गलती का एहसास हो गया। आज की रात तो वर्जनाएँ तोड़ने की है, परदे गिराने की है! आज से तो समीर का उस पर पूरा अधिकार है!

“सॉरी जानू! मेरा वो मतलब नहीं था!” उसने कहा। लेकिन समीर ने बुरा माना ही नहीं।

“थप्पड़ मार लेना, लेकिन एक बार चूमने दो न”

“जानू, गन्दा है वो” मीनाक्षी ने मिन्नत करी।

“होगा गन्दा। लेकिन मैं तुम्हारे हर अंग को चूमना चाहता हूँ। हर अंग पर अपने प्यार की मुहर लगाना चाहता हूँ।”

मीनाक्षी ने अविश्वास से समीर को देखा और फिर वापस सीने के बल लेट गई।

‘मेरे कहने से ये थोड़े न मानेंगे’

“जो करना है कीजिए। लेकिन उसके बाद मुँह धो लीजिएगा! नहीं तो लिप्स पे नो किस्सी!”

समीर ने वापस उसके दोनों नितम्बों को फैला कर उसकी गुदा फिर से अनावृत करी और उसकी बनावट का जायज़ा लेने लगा। वह ऐसा कोई आकर्षक अंग तो खैर नहीं था, लेकिन मीनाक्षी का था, इसलिए उसको आकर्षक लगा।

“ज़रा अपने चूतड़ तो उठाओ मेरी जान! तभी तो चूमूँगा!”

न चाहते हुए भी मीनाक्षी ने अपने नितम्ब बिस्तर से ऊपर उठा दिए। और अगले ही पल उसने समीर की साँस और उसका चुम्बन अपने ‘वहाँ’ महसूस किया। उस एहसास से उसकी आँखें बंद हो गईं।

“मुँह धो कर आता हूँ! ऐसे ही रहना!” कह कर समीर बिस्तर से उठा। उसने जाते हुए देखा कि समीर का लिंग ज़मीन के समतल से कोई साठ अंश का कोण बनाए तना हुआ था, और चलने के कारण झूल रहा था।

‘बाप रे’
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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समीर कुछ देर बाद वापस आया। उसके लिंग में उत्तेजना थोड़ी कम हो गई थी। बिस्तर पर बैठ कर उसने कहा,

“अब मन करे, तो थप्पड़ मार लो।”

“मैं आपको थप्पड़ मारूँगी क्या भला!”

“नहीं… बोला था, तो करना पड़ेगा। चलो, लगाओ थप्पड़ मुझे! चलो...”

समीर की ज़िद पर मीनाक्षी ने बारी बारी से उसके दोनों गालों को प्यार से सहला दिया। समीर को हँसी आ गई,

“ये तुम्हारा थप्पड़ है?! इसकी धौंस मिल रही थी मुझे?” कहते हुए वो मीनाक्षी के सामने अपने घुटनों के बल खड़ा हुआ।

“मिनी, मुँह खोलो!” उसने कहा।

मीनाक्षी समझ गई कि समीर क्या चाहता है। जब समीर ने उसकी योनि को प्यार किया था, तो उसको बहुत आनंद आया था। उसने मुँह खोला। समीर ने लिंग का शिश्नाग्रच्छद पीछे किया और चमकता हुआ शिश्नमुंड मीनाक्षी के मुँह में डाल दिया। समीर ने मीनाक्षी की जीभ अपने शिश्नमुण्ड पर फिरती महसूस करी। उसको यह अनुभव बहुत अच्छा लगा। जीभ फिराने के साथ साथ, वो लिंग को चूस भी लेती। उत्तेजना-वश समीर के शरीर में कंपकंपी दौड़ गई। कुछ देर के चूषण के बाद उसने महसूस किया कि उसका वीर्य निकलने को हो गया।

“बस बस! अब छोड़ दो।”

मीनाक्षी ने सवालिया दृष्टि से समीर को देखा।

उसने कहा, “मेरी जान, अब छोड़ दो। नहीं तो मेरा वीर्य निकल जाएगा तुम्हारे मुँह में ही।”

तब जा कर मीनाक्षी को समझ आया और उसके चूसना बंद किया और अलग हो कर गहरी साँस भरने लगी। ऐसे बड़े, फूलते हुए अंग को मुँह में रखना आसान बात नहीं है।

समीर ने उसको वापस पेट के बल लिटाया और उसकी पीठ पर चुम्बन जड़ने लगा। कुछ देर में मीनाक्षी वापस उत्तेजना के सागर में हिचकोले खाने लगी। वो आनंद से जैसे मरी जा रही थी, जब समीर के हाथ उसके नंगे पुट्ठों को छू रहे थे। उसको आनंद में आते देख समीर ने अपना हाथ उसके चूतड़ों की दरार के और अंदर डाला। मीनाक्षी से रहा नहीं गया और उसने भी अपने हाथ पीछे किए और समीर को नितम्ब से पकड़ कर अपनी तरफ दबाने लगी। समीर इस समय मीनाक्षी के एकदम नज़दीक था और उसने अपना हाथ उसके कूल्हों से हटाया, और अपना लिंग वहाँ स्थापित कर दिया। मीनाक्षी के दबाव से उसका लिंग मीनाक्षी के नितम्ब में दब गया था। और जब मीनाक्षी को इस बात का एहसास हुआ तो वो धीरे धीरे अपने नितम्ब चलाने लगी।

समीर ने अपने लिंग को पकड़ कर उसकी दरार की पूरी लम्बाई में चलाया। अलका ने एक बार उसको कहा था कि मीनाक्षी का पिछवाड़ा बढ़िया गोल मटोल है, और समीर उसको नंगा देख कर मतवाला हो जाएगा।

‘बच के रहना, प्यारी बहना! नहीं तो वो तुम्हारी गाँड भी मार लेगा! हा हा।’ उसने मीनाक्षी को छेड़ा था।

वो ख़याल आते ही मीनाक्षी सकते में आ गई - बाप रे, ये मूसल तो उसकी योनि में ठीक से तो जाता नहीं, और कहीं इन्होने उसको ‘उधर’ घुसाने की कोशिश करी तो वो मर ही जाएगी। यह सोच कर मीनाक्षी काँप उठी।

“आहहहह, आप क्या कर रहे हैं?” मीनाक्षी आह भरती हुई बोली। ठीक उसी समय समीर की उंगलियों ने उसके फिर से गीली हो चली योनिद्वार को छुआ।

“देखो… तुम्हारी आमरस की प्याली से फिर से रस निकल रहा है।” समीर ने अपनी उंगलियों को ऊपर की तरफ ले जाते हुये कहा।

‘नहीं नहीं… ऐसा कैसे? इतनी जल्दी?’

“जानेमन! मैंने कहा था न कि हम दोनों की सेक्सुअल कम्पैटिबिलिटी अमेजिंग है?” कहते हुए उसने लिंग को फिर से मीनाक्षी की योनि में घुसा दिया।

“इईईईईईईईईई”

“क्या हुआ?”

“ओहहहह”

“कैसा लग रहा है?”

“ओह… आ… आप..... ओह… थकते …. ओह…. न…. ओह…. नहीं?”

मीनाक्षी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी। समीर ने पूरी गति से धक्के लगाने शुरू किए थे; उसके हर प्रहार पर मीनाक्षी की योनि कामरस छोड़ रही थी। उसका शरीर थरथरा रहा था।

“आज तो मैं तुमको पूरी रात भर चोदूँगा मेरी जान!”

जैसा दर्द उसको पहली बार हुआ था, वैसा इस बार नहीं हुआ। इस बार के सम्भोग में वाकई आनंद आ रहा था। वो खुद भी जैसा उससे हो पा रहा था, अपने नितम्ब हिलाते हुए समीर का साथ दे रही थी, और सम्भोग का पूरा-पूरा आनंद उठा रही थी। उसकी सिसकियाँ फूट पड़ीं,

“ओह्ह्ह... आहिस्ता ... आह.. अम्मा.. मर गई मैं.... धीरे जानू...!”

समीर उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए ज़ोरदार धक्के मारता जा रहा था। कोई दस मिनट तक चले इस खेल के अंत में मीनाक्षी को फिर से रति-निष्पत्ति हो गई, और उसके थोड़ी ही देर बाद समीर ने भी फिर से मीनाक्षी की कोख में अपना वीर्य छोड़ दिया।

कुछ देर तक दोनों ही खामोश पड़े रहे। मीनाक्षी नीचे, समीर उसके ऊपर। फिर वो वो मीनाक्षी को आलिंगनबद्ध कर के उसकी बगल में लेट गया। उसके हाथ फिर से मीनाक्षी के नितम्बों से खेल रहे थे। उधर मीनाक्षी बिलकुल बेजान हुई अपने नग्न शरीर पर अपने पति के स्पर्श का आनंद ले रही थी। समीर की उँगलियाँ उसकी योनि को छेड़ती रहीं। मीनाक्षी अब चाहती ही थी कि जब भी वो और समीर साथ में हों, तो उसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं हो। और यह कि उसका पति मन भरने तक उसके निर्वस्त्र शरीर से खेलता रहे।

“मेरी जान,” समीर ने कहा, “बिस्तर गीला हो रहा है!”

वो मुस्कुराई, “होने दीजिए! मेरे अंदर अब ताक़त नहीं है बाथरूम तक जाने की।”

“इतनी बड़ी लड़की हो कर बिस्तर गीला करती हो!”

“इतनी बड़ी लड़की को कोई ऐसे सताता है?”

“तो कैसे सताता है?”

“कैसे भी नहीं!” कह कर वो समीर का सीना सहलाने लगी। काफी देर दोनों चुप रहे, फिर मीनाक्षी ने ही बोला, “आई लव यू।”

“आई लव यू, टू!”

इन तीन छोटे से शब्दों का अर्थ बहुत गहरा होता है। इनको सतही तौर पर भी बोला जा सकता है और बहुत गहरे भी जा कर बोला सकता है। दोनों ही स्थितियों में इन शब्दों का अर्थ अलग अलग निकलता है। मीनाक्षी सिर्फ भावनाओं से वशीभूत हो कर समीर को आई लव यू नहीं बोल रही थी। यह पिछले कई दिनों से जो वो समीर के लिए महसूस कर रही थी, ये उसकी भावनाओं की परिणति (culmination) थी। वो समीर को बताना चाहती थी कि वो अब सिर्फ उसकी थी - उसकी सहचरी, उसके सुख-दुःख की बराबर की हिस्सेदार, उसकी प्रेमिका, उसकी सखी, उसकी अर्धांगिनी! वो बताना चाहती थी कि वो समीर को वैसा प्रेम करती है, जैसा प्रेम उसने समीर के पहले न किसी पुरुष से किया, और न ही उसके अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष से करेगी। वो उसको प्रेम करने के लिए कोई भी रूप ले सकती है। वो बताना चाहती थी कि अब वो दोनों एक हैं। उनके शरीर अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी आत्माएँ अब एक हैं। और समीर तो खैर उसको बहुत पहले से ही चाहता था। मीनाक्षी उसकी पत्नी तो तत्क्षण बन गई थी, लेकिन उसको अपनी प्रेमिका बनाने में उसने जो जतन किए हैं, वो निष्छल प्रेम के बिना नहीं हो सकता।

समीर की तरफ करवट लिए मीनाक्षी ने उसको आलिंगनबद्ध कर रखा था। कुछ देर दोनों को कुछ नहीं बोले, फिर समीर के सर को स्नेह से सहलाते हुए मीनाक्षी ने गुनगुनाना शुरू किया,

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं… जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

समीर सुखद आश्चर्य वाले भाव लिए मीनाक्षी को देख रहा था। उसको मालूम नहीं था कि वो गाती भी है।

‘मेरे तेरे दिल का, तय था इक दिन मिलना, जैसे बहार आने पर, तय है फूल का खिलना
ओ मेरे जीवन साथी....’

समीर को मालूम नहीं था कि वो गाती भी है, और इतना अच्छा गाती है। मीठी, सुरीली और जादुई आवाज़! उसके थके हुए शरीर पर मानों शीतल जल की बूँदें गिर रही थीं। मीनाक्षी ने ममता और स्नेह के साथ समीर को सहलाना और थपकियाँ देना शुरू कर दिया।

‘तेरे दुख अब मेरे, मेरे सुख अब तेरे, तेरे ये दो नैना, चाँद और सूरज मेरे’
ओ मेरे जीवन साथी....’

मीनाक्षी गाना नहीं गा रही थी, बल्कि समीर से अपनी भावनाओं का हाल बयान कर रही थी।

‘तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं.... जहाँ भी ले जाएं राहें, हम संग हैं’

“आप कितना अच्छा गाती हैं!” समीर में मंत्रमुग्ध हो कर कहा।

“पत्नी की खूबियाँ, उसके गुण, पति को धीरे धीरे मालूम पड़ने चाहिए! इससे पति की नज़र में उसके लिए प्रेम और रेस्पेक्ट बनी रहती है!”

समीर ने कुछ कहा नहीं, बस उसके होंठों को चूम लिया।

“टेक सम रेस्ट, जानू!” मीनाक्षी की आवाज़, उसके स्पर्श, और उसकी आँखों में समीर के लिए इस समय इतना प्रेम उमड़ रहा था कि उसके सागर उत्प्लवन करते करते समीर की आँख लग गई। अंततः उसको शांत पा कर मीनाक्षी मुस्कुराई, और उसकी जान में जान भी आई। समीर को सहलाते, चूमते हुए वो बहुत देर तक आज तक के अपने विवाहित जीवन का जायज़ा लेने लगी।


[नोट : यह गाना 'गाइड' (1965) फिल्म से है। गीतकार हैं, शैलेन्द्र; संगीतकार हैं, सचिन देव बर्मन; और गायक हैं, मोहम्मद रफ़ी]
 
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avsji

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आज का अपडेट भरपूर लम्बा है। आराम से पढ़िए।
किसी के दिल को या भावनाओं को ठेस पहुँचे तो पहले से ही माफ़ी!
लेकिन जैसा भी विचार आए, लिख कर ज़रूर भेजिए।

कल इस लघु कथा का अंत है ??
 

Abhi32

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Bahut hi umda update bhai jaiseek sacchi romantic movie chal rahi hai. Amazing update no words left, totally speechless. Bas yeh janna chahta hu abhi story finish to nahi hui hai n?
 

avsji

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Bahut hi umda update bhai jaiseek sacchi romantic movie chal rahi hai. Amazing update no words left, totally speechless. Bas yeh janna chahta hu abhi story finish to nahi hui hai n?
Thank you so much, bhai!
Nahi nahi.. kal hai last update :)
 
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