संभोग या सहवास .............ये हमेशा प्रथम मिलन की तरह शुरू हो और..............अंतिम मिलन की तरह चलता जाए......अनंत तक
स्त्री और पुरुष .........बाकी सब रिश्तों में एक मर्यादा तक सीमित रहते हैं
लेकिन पति-पत्नी.........के बीच कहीं कोई मर्यादा ही नहीं........... एकाकार ............सर्वांग समाहित................सम्पूर्ण
पति पत्नी के रिश्ते में न कुछ श्लील हैं ना अश्लील, न कुछ मर्यादित और ना अमर्यादित............
यूं समझिए कि इस सम्पूर्ण सृष्टि से अलग एक नवीन सृष्टि........बल्कि सृष्टि (संतान) के रचियाता तो होते ही हैं वो
बहुत बढ़िया .......... लेकिन
जैसे ज़्यादातर प्रेम कहानियों का शादी होते ही अंत हो जाता है...........कभी-कभी तो प्रेम का भी अंत हो जाता है
ऐसे ही इस संयोग के सुहाग से शुरू हुई विवाह कि कहानी का अंत सुहागरात के संभोग से ही करने का सोच लिया आपने .............
कुछ कदम और चलो............हमभी साथ चलते रहेंगे