“वा वाह! अमेजिंग! अमेजिंग! सुभानअल्लाह! जज़ाकल्लाह! सच में मिनी, आत्मा तृप्त हो गई।”
मीनाक्षी प्रेम से मुस्कुराई। यह गीत उसने इसीलिए गाया जिससे वो समीर को बता सके कि वो उसके कारण क्या महसूस करती है! अगर गाना सुन कर समीर की आत्मा तृप्त हो गई, तो उसकी भी आत्मा तृप्त हो गई।
“इसका मतलब क्या है?” समीर के बगल लेटते हुए उसने पूछा।
“किसका?”
“सुभानअल्लाह के बाद जो बोला!”
“ओह, जज़ाकल्लाह… इसका मतलब है, ‘भगवान तुम्हारा कल्याण करें, भगवान तुमको खुश रखें’!”
मीनाक्षी उसकी बात सुन कर उसको ज़ोर से खुद में भींच लेती है।
“वैसे, मुझे भी गाने में कुछ कुछ समझ में नहीं आया।”
“क्या क्या? पूछिए? बताती हूँ।”
पति पत्नी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे रह कर, ऐसी निरर्थक बातों में भी कितना रस निकाल लेते हैं!
“‘नैना जुड़ाए’ मतलब? आँखों से आँखें मिल गईं?”
“हा हा! इसका मतलब है, कि तुम्हारी मोहनी सूरत देख कर मेरी आँखों में ठंडक आ गई! मतलब, मेरी आत्मा भी तृप्त हो गई। समझे जानू हमरे?”
“हम्म्म.... और, सकारे मतलब?”
“सकारे मतलब सुबह!” मीनाक्षी अपने पति के अंगों को प्रेम से सहलाती हुई समझा रही थी, “जैसे जब शाम ढलती है तो कितने सारे रंग आकाश में घुल जाते हैं, वैसे ही सवेरा होने पर भी आकाश उतना ही सुन्दर, और रंग-बिरंगा हो जाता है। तुम्हारे आने से ऐसे सुन्दर दृश्य भी और सुन्दर हो गए हैं।”
समीर ने सुना - मीनाक्षी ने उसको दो बार ‘तुम’ कह कर सम्बोधित किया था। दोनों ही बार उसकी बोली प्रेम से सराबोर थी। समीर को सुन कर बहुत अच्छा लगा। मीनाक्षी उसको ‘आप’ क्यों कहती है, उसको नहीं मालूम था।
“मिनी?”
“जी?” वो इस समय उसके लिंग को सहला रही थी।
“मुझे ऐसे ही ‘तुम’ कह कर बुलाया करो न?”
“मेरे साजन,” मीनाक्षी इठलाती हुई बोली, “कहूँगी तो मैं हमेशा ‘आप’ ही आपको। ये ‘तुम’ का प्रयोग कभी कभी होगा - स्पेशल मौकों पर!”
“जैसे अभी?”
“जैसे अभी,” मीनाक्षी का हाथ समीर को सहलाते सहलाते उसके वृषण पर चला गया। उसको भी सहलाते हुए बोली, “इसको क्या कहते हैं?”
“टेस्टिकल्स! इसी में स्पर्म्स बनते हैं। ज़ोर से मत दबाना।”
“दर्द होगा?”
“हाँ! दर्द भी होगा, और हमारे आने वाले बच्चे भी, ....वेल, वो नहीं आएँगे! हा हा!”
“बाप रे!” कह कर उसने वहाँ से हाथ हटा लिया।
“अरे! मज़ाक किया! दर्द होगा बस। जो कर रही हो, वो करती रहो।”
“हम्म! ..... जानू?”
“हाँ?”
“आपको ‘वहाँ’ पर बाल अच्छे नहीं लगते न?”
“कहाँ पर?” समीर जानता था कि मीनाक्षी क्या बोल रही है।
“वहाँ पर।” फिर थोड़ा शरमाते, थोड़ा सकुचाते, थोड़ा फुसफुसाते, “चूत पर!”
समीर मुस्कुराया, “आप पर मुझे कुछ भी खराब नहीं लगता।”
“लेकिन वो अगर चिकनी रहे तो आपको ज्यादा अच्छी लगेगी?”
समीर ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ठीक है।”
“क्या करने वाली हो?” समीर ने उत्सुकतावश पूछा।
“बताऊँगी.... नहीं, बताऊँगी नहीं, दिखाऊँगी! ही ही”, फिर थोड़ा सोचती हुई, “जानू, अगर हम ऐसे ही... अह... ‘ये’ करते रहे, तो मैं जल्दी ही माँ बन जाऊँगी!” मीनाक्षी ने समीर के सीने कर उँगली से गोदते हुए कहा।
“हाँ! वो तो है। आप चाहती हैं माँ बनना?”
“आप क्या चाहते हैं?”
“मिनी, मेरे चाहने की इसमें थोड़ी कम वैल्यू है। ऑफ़ कोर्स, हर आदमी चाहता है अपनी संतान! लेकिन मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ, नौ महीने तक बच्चे को अपने अंदर रखना तो आपको ही पड़ेगा। उससे मैं आपको बचा नहीं पाऊँगा!”
मीनाक्षी मन ही मन सोचने लगी कि समीर को उसका कितना ख़याल है!
“बॉडी चेंज हो जाती है। आपके मूड्स चेंज हो जाएँगे, और आपको समझ ही नहीं आएगा कि क्यों हो रहा है। ये एक बड़ा डीसीजन है, और बहुत बड़ा कमिटमेंट भी! आप को ये डीसीजन लेना चाहिए। और आपका कोई भी डीसीजन होगा, मैं हूँ न! साथ में हमेशा!”
“जानू, मैं कोई काँच की गुड़िया थोड़े ही हूँ जो आपका संतान अपनी कोख में रखने से टूट जाऊँगी! बच्चा तो औरतें ही पैदा कर सकती हैं! मैं कोई अलग थोड़े ही हूँ!”
“आई नो! मैंने वैसे नहीं कहा।”
“हम्म... आपको बच्चे चाहिए?”
“हाँ! ये भी कोई पूछने की बात है?”
“कितने?”
“दो!” कुछ सोच कर, “एक भी ठीक है। पहली अगर लड़की हुई तो मेरे लिए एक भी ठीक है।”
“आपको लड़कियाँ ज़्यादा पसंद हैं?”
“आपको देखने के बाद से, हाँ! मुझे आपके जैसी एक बेटी चाहिए!”
“और मुझे आपके जैसा एक बेटा!”
“मतलब दो बच्चे?”
“मतलब दो बच्चे।”
“हम्म्म! इंटेरेस्टिंग!”
“लेकिन मैं सोच रही थी कि अभी आप अभी भी उम्र में बहुत छोटे हैं।”
“हम्म म्मम?”
“तो मैं सोच रही थी कि हम दो साल रुक जाते हैं.... फिर उसके बाद करते हैं?”
“जानू, मैंने तुमको पहले ही कहा है, कि ये तुम्हारा डीसीजन होना चाहिए! मैं पूरा सपोर्ट करूँगा!”
“ओके! तो अगर मेरा यह डीसीजन हो तो?”
“दो साल रुकने का?”
“हाँ!”
“मतलब, एक साल बाद दूसरे साल में बेबी, या दो साल के बाद तीसरे साल में बेबी?”
“एक साल बाद दूसरे साल में बेबी।” मीनाक्षी अब खिलखिला कर हँसने लगी।
“और उसके पहले हो गया अगर?”
“तो मेरे प्यारे साजन, मैं आपको वो सब सुख कैसे दे पाऊँगी, जो देना चाहती हूँ।”
“क्यों, बच्चा होने पर ऐसा क्या हो जाएगा?”
“क्योंकि बच्चा होने के बाद, मेरे भोले साजन, बच्चों के डायपर बदलने का काम तो आपका हो जाएगा! अब आप ही बताइए, जब एक तरफ मेरा बच्चा रोएगा और दूसरी तरफ मेरा जानू - तो मैं किसको सम्हालूँगी?
“मुझको!”
“हा हा हा!”
“हा हा! मज़ाक कर रहा हूँ! चलो, डायपर बदलने का काम मेरा! लेकिन मुझे उस काम का मेहनताना क्या मिलेगा?”
“मेहनताना? हम्म्म... मैं आपको वो अमृत दूँगी, जिसकी खोज आप पिछले तेरह चौदह साल से कर रहे हैं! सीधा... डेरी से!” मीनाक्षी खिलखिलाती, शरमाती हुई बोली!
“पक्का?” समीर खींसे निपोरते हुए बोला।
“पक्का मेरी जान!”
“वायदा किया है तुमने! पीछे तो नहीं हट जाओगी?”
“बिलकुल भी नहीं मेरे जानू!”
“अरे तो भाड़ में गया दो साल का वेट!” कह कर समीर बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगा।
“जानू... जानू...” मीनाक्षी उसको वापस बिस्तर पर लिटाती बोली।
“क्या?”
“क्या कर रहे हैं आप?”
“ट्राइंग टू पुट ए बेबी इन यू! और क्या?”
“जानू, आपको इतनी जल्दी पापा बनने में कोई ऐतराज़ तो नहीं?”
“मेरी ऐज के कारण आप वेट करना चाहती थीं?”
“हाँ?”
“लेकिन वैसे आप माँ बनना चाहती हैं?”
मीनाक्षी ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और शरम से अपना चेहरा अपनी हथेलियों से ढँक लिया।
“तो मेरी जान, अपनी आमरस की प्याली खोलो, जिससे मेरा नुन्नू अपनी सहेली को चुम्मी दे सके!”
[समाप्त]