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Incest ससुर बहु की रासलीला

Sam1994

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"Koi to rok lo" story h ye..
Pritam bhai writer hai iske..
This is not a good thing to do juhi.. should use your own imagination
रात को भी हमने डिन्नर किया तब भी मुझसे पद्‍मिनी से ना कुछ कहते बना और ना कुछ करते बना. डिनर करने के बाद मैं अपने कमरे मे आ गया. मैं समझ चुका था कि मुझसे कुछ नही हो सकेगा.

मैं अपने कमरे मे ये ही सब सोच रहा था. तभी पद्‍मिनी दूध का गिलास ले कर आ गयी. मैं समझ नही पा रहा था कि मैं उस से क्या कहूँ और क्या ना कहूँ. मेरी हालत तो ऐसी थी कि, मैं उस से नज़र तक नही मिला पा रहा था.
पद्मि नी ने मुझे दूध का गिलास दिया और कहने लगी.

पद्मि नी बोली “पापा , डॉ माधुरी

जाते समय, मुझे आपके पास ही सोने को बोल कर गयी थी. क्या मैं आपके पास सो सकती हूँ.”

मैं बोला “हाँ सो सकती हो.”

पद्मिोनी बोली “ठीक है मैं अभी कपड़े बदल कर आती हूँ.”

ये बोल कर पद्मिीनी कपड़े बदलने चली गयी. पद्मितनी का इस तरह मेरे साथ सोना ये तो साबित कर रहा था कि, वो सब कुछ करने को तैयार है. इसके बाद भी मैं कोई पहल करने की हालत मे नही था.

मैने अलीशा के पहले कयि कम उमर की लड़कियों के साथ संबंध बनाए थे. लेकिन पद्मि नी की उमर उन सब से बहुत कम थी. वो महज 20 साल की थी और मैं 41 साल का था.

इस सब के अलावा वो मेरी बहू भी थी. ऐसे मे मैं उसके साथ अपने आपको किसी भी तरह से सहज महसूस नही कर पा रहा था. मैं कुछ भी समझ नही पा रहा था. मैं इन्ही सोच मे गुम था. तभी पद्मि नी कपड़े बदल कर वापस आ गयी.

अब वो एक ब्लॅक शॉर्ट नाइटी पहने हुई थी. जिसमे से उसका गोरा गोरा बदन झलक रहा था. जिसमे वो बेहद सुंदर लग रही थी. उसने दूध का गिलास वैसे ही रखा देखा तो मुझसे कहा.

पद्मि नी बोली “ये क्या पापा , आपने अभी तक दूध नही पिया.”

ये कह कर उसने दूध का गिलास फिर से मुझे पकड़ा दिया और मेरे बाजू मे आकर लेट गयी. मैं चुप चाप दूध पीने लगा. दूध पीने के बाद मैने पद्मि नी की तरफ देखा तो वो आँख बंद करके लेटी हुई थी.

थोड़ी देर बाद मैं भी लेट गया और सोने की कोसिस करने लगा. लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी, और कुछ ही देर बाद मुझे अजीब सी बेचेनी होने लगी. इसी बेचेनी मे मैं करवटें बदलने लगा.

मेरी नज़र पद्मिैनी के चेहरे पर पड़ी तो, उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी. जैसे वो नींद मे कोई प्यारा सा सपना देख रही हो. मैं उसके चेहरे को देखता रहा और फिर मेरी नज़र उसके सीने पर पड़ी.

नाइटी मे से उसके सीने के गोल गोल उभार बाहर को निकलते से नज़र आ रहे थे. मैं ना चाहते हुए भी उन्हे टकटकी लगा कर देखने लगा और मेरे लंड मे तनाव आने लगा.

मेरी नज़र उसके सीने से होते हुए उसकी जांघों पर गयी. शॉर्ट नाइटी मे से बाहर निकली, उसकी जाँघो ने मेरी उत्तेजना को और भी बढ़ा दिया. अब मेरा खुद पर से काबू खो चुका था और मैं पायजामे के उपर से ही अपने लंड को मसलने लगा.

अभी मैं पद्मिरनी की जाँघो को देख कर अपने लंड को मसल ही रहा था. तभी पद्मि नी ने करवट बदली और उसका चेहरा मेरी तरफ हो गया. मैने भी उसकी तरफ करवट ले ली.

अब उसके सीने की दोनो गोलाइयाँ मेरी आँखों के सामने थी. मेरी बेचेनी हद से ज़्यादा बढ़ चुकी थी, और मैने इस बेचेनी की हालत मे अपने एक हाथ को धीरे से उसके सीने पर रख दिया.

फिर पद्मि नी की तरफ देखा तो, वो अभी भी आँख बंद किए ही लेटी हुई थी. मुझे लगा कि वो गहरी नींद मे है. मैं धीरे धीरे एक हाथ से उसके सीने की गोलाईयों को और दूसरे हाथ से अपने लंड को मसल्ने लगा.

लेकिन ऐसा करने से मेरी बेचेनी और भी ज़्यादा बढ़ गयी. मैने उसकी नाइटी को उसके पेट के उपर सरका दिया और उसकी जांघों पर हाथ फेरने लगा. अब मैं एक हाथ से पद्मिननी के सीने की गोलाईयों को मसल रहा था और दूसरा हाथ उसकी जांघों पर फेर रहा था.

मेरी उत्तेजना इतनी ज़्यादा बढ़ गयी थी कि, अब मैं अपने दोनो हाथों से, ज़ोर ज़ोर से पद्मि नी के सीने की गोलाइयाँ को मसलने लगा. मेरे ऐसा करने से पद्मि नी ने कसमसाते हुए अपनी आँखे खोल दी.

उसको जागता देख मैं अपने हाथों को उसके सीने से अलग करने लगा. लेकिन तभी पद्मि नी ने अपने दोनो हाथ मेरे हाथों पर रख दिए और उन्हे अपने सीने पर दबाने लगी.

पद्मिदनी की ये सहमति मिलते ही मैं फिर से उसके सीने की गोलाईयों को दबाने लगा और वो मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी. उसकी इस हरकत से मैं और भी ज़्यादा गरम हो गया.

मैने उसकी कमर मे हाथ डाल कर उसे अपने पास खिचा और उसकी कमर पर अपना एक पैर रख कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.और तभी अचानक एकदम से उसने मेरे होंठों को चाकलेट की तरह चूसना-खाना शुरू कर दिया।

अब मेरे लंड की चुभन पद्मि नी को अपनी जाँघो पर महसूस होने लगी थी.

वो भी पूरी तरह से गरम हो गयी थी और किस करने मे मेरा पूरा साथ देने लगी थी. मैने किस करते करते उसकी नाइटी को कमर के उपर सरका दिया और अपना एक हाथ नाइटी के अंदर डाल कर उसके निप्पल्स से खेलने लगा.

मेरे ऐसा करने से वो और भी ज़्यादा कसमसाने लगी और मेरे बलों पर हाथ फेरने लगी. उसकी उतेजना देखकर मेरी उतेज्जना भी चरम पर पहुच गयी थी. मैने उसे उठा कर बेड पर बैठा दिया.

फिर एक झटके मे नाइटी उतार कर अलग कर दी. अब वो सिर्फ़ पैंटी मे थी. उसने नाइटी के उतरते ही अपनी आँखे बंद कर ली और दोनो हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया.

वो बिल्कुल किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह, शरम से अपना चेहरा छुपाये, मेरे सामने बैठी थी. मैं उसके अंग अंग को टकटकी लगाए देख रहा था. उसे उस रूप मे अपने सामने देख कर मैं सब कुछ भूल चुका था.

मैं अपलक उसे देख रहा था और वो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाए बैठी थी. मेरे अंदर सेक्स की ज्वाला भड़क रही थी और पद्मिअनी के इस शरमाने से मुझे उस पर बेहद प्यार भी आ रहा था.

मैने एक झटके मे अपना पायजामा कुर्ता उतार दिया. अब मैं सिर्फ़ अंडर वेअर मे था. मैने पद्मिेनी के चेहरे से उसके दोनो हाथों को अलग करने की कोशिश की, मगर उसने अपने चेहरे से हाथ अलग नही किए. मैने उस से धीरे से कहा.

मैं बोला “पद्मि नी, अपनी आँखे तो खोलो. ऐसे चेहरा छुपा कर क्यो बैठी हो.”

पद्मिोनी बोली “नही पापा , मुझे शरम आ रही है.”

मैं बोला “यदि तुम्हे पसंद नही है तो, हम ये सब नही करते है.”

पद्मिोनी बोली “नही पापा , ऐसी बात नही है. आपको जो करना है कीजिए. लेकिन मुझे देखने के लिए मत बोलिए. मुझे शरम आ रही है.”

मैं बोला “ठीक है, मैं तुम्हे देखने के लिए नही बोलता. लेकिन तुम मेरा साथ तो दोगि ना.”

पद्मिोनी बोली “जी पापा .”

ये बोल कर वो चुप हो गयी और अभी भी अपना चेहरा छुपाकर बैठी रही. मैने उसके कंधे को पकड़ कर, उसे बेड पर लिटा दिया और खुद उसके एक तरफ आकर बैठ गया. थोड़ी देर तक मैं उसे सर से लेकर पाँव तक देखता रहा.मेने सोचा आज पदमनी को हर धड़कन के साथ कांपते मोटे तगड़े लंड को अपनी मक्खन जैसी चूत के अन्दर गहराई तक लेना ही होगा, यही हाहाकारी मुसल लंड सालो से हवस की आग में जल रहे उसके शरीर की भूख मिटा सकता है, यही वो लंड है जो उसकी चूत में उमड़ रहे वासना की आग को ख़तम कर रिमझिम फुहारे बरसा सकता है | सालो से लंड की प्यासी चूत को चीर कर, फाड़कर चूत के दूसरे छोर तक जाना होगा, जितना ज्यादा से ज्यादा उसकी चूत की गहराई तक लंड जायेगा मै ले जाऊंगा | चाहे उसे जितना दर्द हो, चाहे चूत फट जाये, उसकी दीवारों चटक जाये, उनसे खून बहने लगे फिर भी ये मोटा सा भयानक लंड उसकी चूत की अंतिम गहराई तक जायेगा | उसे अपनी चूत की वर्षो की प्यास मिटानी है, उसे अपनी चूत की दीवारों में उमड़ रही चुदास की आग को बुझाना है, जैसे सावन में बार बार बरसते बादल धरती की प्यास बुझाते है ऐसे ही ये मोटा लम्बा लंड बार बार उसकी चूत में जाकर उसे चोदेगा और वो बार बार झड़ झड़ कर चूत के अन्दर लगी आग को बुझाएगी , और अपनी तृप्ति हासिलकरेगी , असली तृप्ति भरपूर तृप्ति, परम सुख परम संतुष्टि, ऐसी संतुष्टि जिसको उसके नंगे जिस्म का एक एक रोम महसूस करे

वो मेरे सामने सिर्फ़ ब्लॅक पैंटी मे लेटी हुई थी. उसका अंग अंग किसी फूल की तरह खिला हुआ था. उसके गोरे और नंगे बदन को देख कर, एक बार फिर मेरे लंड ने अंगड़ाई लेना सुरू कर दी. मैने धीरे से अपना एक हाथ पद्मिदनी के एक नंगे बूब्स पर रख दिया.

मेरे हाथ रखते ही पद्मि्नी को एक झटका सा लगा और उसने अपने शरीर को थोड़ा सा हिलाया. मैं आहिस्ता आहिस्ता उसके एक बूब्स को मसल्ने लगा. मैं कभी उसके बूब्स को मसलता तो, कभी उसके निप्पल्स को उंगलियों से मसल देता. मेरी हर हरकत से पद्मिबनी कसमसा जाती और अपने सर को इधर उधर हिलाने लगती. मगर अभी भी उसका चेहरा उसके हाथों से ढका हुआ था.

मैने उसके बूब्स को मसल्ते हुए, अपने होंठ उसके एक बूब्स पर लगाए और उसके निप्पल्स को चूसने लगा. अपने दूसरे हाथ से मैं उसके दूसरे बूब्स को मसल्ने लगा. मैं बड़ी तेज़ी से उसके निप्पल्स को चूस रहा था और बूब्स को मसल रहा था.

मेरे ऐसा करने से पद्मि नी कसमसाने लगी और उसने अपने हाथो को अपने चेहरे से हटा कर, मेरे सर पर रख दिया. वो मेरे चेहरे को अपने बूब्स पर दबाने लगी. लेकिन अभी भी उसकी आँखे बंद थी. उसके ऐसा करने से मुझे भी जोश आ गया और मैं तेज़ी से उसके निप्पल्स चूसने लगा और ज़ोर से उसके बूब्स मसल्ने लगा.

मैं उसके बूब्स को कभी चूस रहा था तो, कभी मसल रहा था. फिर मैं अपने एक हाथ को उसके पेट पर फेरते हुए, उसकी टाँगों की तरफ ले गया और पैंटी के उपर से उसकी चूत को मसल्ने लगा. मेरे ऐसा करने से पद्मि नी ने अपनी दोनो टाँगों से मेरे हाथ को अपनी चूत पर दबा लिया.

मैने उसके निप्पल्स को चूसना बंद किया और उसकी टाँगों के पास आ गया. पद्मिसनी अभी भी अपनी आँखे बंद किए हुए लेती थी. उसकी टाँगों के पास आकर मैने उसकी पैंटी को पकड़ा और उतारने की कोशिश करने लगा.

पद्मिेनी ने ऐसा करते देखा तो उसने अपने कुल्हों ( हिप्स) को थोड़ा सा उपर उठा लिया. मैने पैंटी को एक झटके मे नीचे उतार दिया पदमनी का गोरा सपाट पेट, उसकी गोरी, केले के तने जैसी चिकनी मुलायम मांसल जांघे , बड़े बड़े गोल सुडौल मांसल चुतड | जांघो के बीच स्थित चिकनी चूत में बालो का नामोनिशान नहीं थाइतनी साफ़ सुथरी चिकनी मखमली गुलाबी चूत बड़े किस्मत वालो की मिलती है |

, में और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा. चूत को मसल्ने लगा.

मैने अपने हाथ की एक उंगली को उसकी चूत पर रगड़ना सुरू किया और फिर धीरे धीरे उंगली को उसकी चूत मे डालने लगा. उसकी चूत बहुत टाइट थी और इस समय पूरी गीली थी.

मेरी उंगली के अंदर जाने से पद्मि नी सिसियाने लगी और जब मेरी उंगली उसकी चूत मे चली गयी. तब मैं धीरे धीरे उंगली को अंदर बाहर करने लगा. मेरे ऐसा करने से पद्मिीनी और कसमसाने लगी और अपनी चूत को सिकोड़ने लगी. अब मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गये- “तुम्हारे कूल्हे बहुत लाजवाब हैं पद्मनी । मुझे बहुत पसंद हैं…” पता नहीं मैं कैसे बोल गया और इसी के साथ मेरी आठों उंगलियां उसके चूतड़ों के नंगे मांस में गड़ गईं।

पदमनी के बदन में जैसी बिजली सी दौड़ गई और थोड़ी लज्जा मिश्रित मुश्कान के साथ बोली- सच में पापा?

मैं- “हाँ पदमनी , तुम्हारे चूतड़ एकदम परफेक्ट हैं। इससे बढ़िया चूतड़ मैंने शायद किसी के नहीं देखे…”

पदमनी अपनी जगह से हिली नहीं और अब मैं उसके नंगे चूतड़ों को अपने हाथों में मसल रहा था। मैंने फुसफुसाते हुए उससे कहा- “पदमनी , मैंने बहुत सारे चूतड़ इस तरह नंगे देखे हैं, सहलाए हैं, चाटे भी हैं पर…” कहते-कहते मैंने अपनी उंगलियों के पोर उन दोनों कूल्हों के बीच की दरार में घुसा दिए। उसके चूतड़ों के नीचे अपने दोनों हाथ लेजाकर उसे ऊपर को उठाया तो उसने अपनी टांगें मेरे कूल्हों के पीछे जकड़ लीं। इससे उसके चूतड़ों के बीच की दरार चौड़ी हो गई और मेरी मध्यमा उंगली उसकी गाण्ड के छेद को कुरेदने लगी। वो मेरे बदन पर सांप की तरह लहरा कर रह गई और मेरी उंगली उसके कसे छेद को भेदते हुए लगभग एक इंच तक अन्दर घुस गई।पदमनी हांफ रही थी- “ऊह्ह… पापा… उह्ह पा… आह्ह… ना…”

उसकी साँसे तेज चल रही थी और मेरा लंड पूरी तरह से अकड़ गया था. मेरी उंगली तेज़ी से पद्मिसनी की चूत के अंदर बाहर हो रही थी. कुछ ही देर मे पद्मिानी पूरे जोश मे आ गयी.वो अपने दोनो हाथों से अपने बूब्स मसल्ने लगी और अपने कुल्हों को बार बार उपर उठा कर मेरा साथ देने लगी.

मैं भी पूरे जोश मे था. मैने एक पल मे उसकी चूत से अपनी उंगली को बाहर निकाला और उसकी दोनो टाँगो को फैला कर अपना मूह उसकी चूत मे लगा दिया. फिर मैने अपने होंठो से उसकी चूत को चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसकी चूत मे डाल दिया.

मेरी जीभ के अंदर जाते ही पद्मि नी के मूह से एक सिसकारी निकली और उसने अपने दोनो हाथो से मेरे चेहरे को अपनी चूत पर दबा दिया. मैं उसकी चूत मे जीभ को गोल गोल घुमाने लगा और तेज़ी से जीभ उसकी चूत के अंदर बाहर करने लगा.

थोड़ी ही देर मे पद्मिीनी ने मुझे अपनी दोनो टाँगों से जाकड़ लिया और मेरे चेहरे को बुरी तरह से अपनी चूत पर दबाने लगी. फिर बुरी तरह से मचलते हुए कहने लगी. “पापा… प्लीज आप करो ना… प्लीज पापा करो…” - “जन्नत का मजा तो आप ही मुझे देंगे ना पापा?

पद्मिपनी बोली “अयाया पापा , मेरा पानी छूटने वाला है.”

उसकी बात सुनकर मैं और भी तेज़ी से अपनी जीभ को अंदर बाहर करने लगा. कुछ ही देर मे पद्मिबनी अकड़ने लगी और उसकी चूत ने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. मैं तब तक अपनी जीभ को अंदर बाहर करता रहा. जब तक की पद्मिननी की चूत का पूरा पानी नही निकल गया और वो शांत नही पड़ गयी.

उसका पानी निकलते ही वो लंबी लंबी साँसे लेने लगी और मैं उसके पास आकर लेट गया. वो अभी भी अपनी आँखे बंद किए हुए लेटी थी. मैने उसके मानते को चूमा और उस से कहा.

मैं बोला “मज़ा आया.”

पद्मिोनी कुछ नही बोली. बस मुस्कुरा दी. मैने फिर उस से कहा.

मैं बोला “तुम्हे मज़ा आया या नही. कुछ तो बोलो.”

पद्मिोनी बोली “जी आया.”

मैं बोला “तो फिर तुम अपनी आँख क्यो नही खोल रही हो.”

पद्मिोनी बोली “मुझे शरम आ रही है.”

पद्मिोनी का तो पानी निकल चुका था लेकिन मेरा लंड अभी भी आकड़ा हुआ था. अब मुझे उसको भी शांत करना था. इसलिए मैने फिर से पद्मि नी को गरम करना शुरू कर दिया.

मैने पद्मिानी को अपनी तरफ खिचा और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैं कभी उसके उपर के होंठो को चूस्ता तो, कभी उसके नीचे के होंठो को चूस्ता. थोड़ी देर मे ही पद्मिउनी भी मेरा साथ देने लगी.

मैं अपने एक हाथ से बारी बारी से पद्मिसनी के दोनो बूब्स को मसल रहा था. मैं उसके होंठो को चूस रहा था और ज़ोर ज़ोर से उसके बूब्स मसल रहा था. थोड़ी ही देर मे पद्मिानी मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी.

वो धीरे धीरे गरम होने लगी थी. मैने उसे गरम होते देखा तो, मैने उसके बूब्स पर मूह लगा कर उसके निप्पल्स को चूसना सुरू कर दिया और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा.

चूत पर हाथ फेरने से पद्मिूनी फिर कसमसाने लगी और मैं उसकी चूत को मसल्ने लगा. कुछ देर तक मैं पद्मिफनी के निप्पल्स चूस्ता रहा और चूत को मसलता रहा. मुझे याद नहीं हम कितनी देर तक इस हालत में रहे होंगे कि तभी उसका मोबाइल घनघना उठा। और इस आवाज से हमारे प्यार के रंग में भंग हो गया। उसने एक हल्के से झटके के साथ अपनी टांगें मेरी कमर से नीचे उतारी और बोली- “पापा, जरा उंगली निकालो, मैं फोन देख लूँ…”

जैसे ही मैंने अपनी उंगली उसकी गाण्ड से निकाली उसने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपनी नाक तक लेजाकर मेरी उंगली सूंघने लगी। उसने पीछे हटकर फोन उठाकर देखा तो उसके पति यानि मेरे बेटे आकाश का फोन
था।

मैंने पदमनी की आँखों में देखा तो वो शर्म के मारे मुझसे नजरें चुराने लगी। मैं उसके पास गया और पदमनी से सटकर फोन पर अपना कान लगा दिया।

आकाश उससे पूछ रहा था- सुबह क्या-क्या किया?

पदमनी ने भी अभी आखिर की कुछ घटनाओं को छोड़कर उसे सब बता दिया।

आकाश ने पूछा कि वो हांफ क्यों रही है?

तो पदमनी ने बताया कि वो नीचे थी और फोन ऊपर, फोन की घंटी सुनकर वो भागकर ऊपर आई तो उसकी सांस फूल गई।

सच में मेरी पुत्र-वधू काफी चतुर है। मैंने मन ही मन भगवान को इसके लिये धन्यवाद किया। मैं अपने बीते अनुभवों से जानता था कि गर्म लोहे पर चोट करने का कितना फायदा होता है। मेरे बेटे का फोन बहुत गलत समय पर आया था, बिल्कुल उस समय जब मैं अपनी बहू की चूत तक पहुँच ही रहा था और वो भी मेरी हरकतों का माकूल जवाब दे रही थी। अगर आकाश का फोन बीस मिनट भी बाद में आया होता तो मेरी बहू अपने ससुर के अनुभवी लौड़े का पूरा मजा ले रही होती। लेकिन शायद भाग्य को यह मंजूर नहीं था। मैं फोन पर कान लगाए सुन रहा था।

मेरे बेट-बहू लगातार फोन पर ‘लव यू’ कह रहे थे और चुम्बनों का आदान प्रदान कर रहे थे।

और मुझे महसूस हो रहा था कि जितनी देर फोन पर मेरे बेटे बहू की यह रासलीला चलती रहेगी, मेरे लण्ड और मेरी बहू पदमनी की चूत के बीच की दूरी बढ़ती जाएगी। और शायद आकाश को बातचीत खत्म करने की कोई जल्दी भी नहीं थी। मुझे आज मिले इस अनमोल अवसर को मैं व्यर्थ ही नहीं गंवा देना चाहता था, तो मैंने अपनी बहू को उसके पीछे आकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।

पदमनी मेरे बेटे के साथ प्यार भरी बातों में मस्त थी और उसने मेरी हरकत पर ज्यादा गौर नहीं किया, वो अपने पति से बिना रुके बातें करती रही, लेकिन उसकी आवाज में एक कंपकंपाहट आ गई थी

“क्या हुआ? तुम ठीक तो हो ना?” मेरे बेटे आकाश ने थोड़ी चिन्ता जताते हुए पूछा।

थोड़ा रुकते हुए पदमनी ने जवाब दिया- “उंह्ह… हाँ ठीक हूँ… जरा हिचकी आ गई थी…”

मैंने पदमनी के जवाब की प्रशंसा में उसके एक बूब्स को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए दूसरा हाथ उसके गाल पर फिरा दिया।

आकाश अपनी पत्नी और मेरी बहू पदमनी से कुछ इधर-उधर की बातें करने लगा। लेकिन उसे लगा कि पदमनी की आवाज में वो जोश नहीं है जो कुछ पल पहले था क्योंकी पदमनी ‘हाँ हूँ’ में जवाब दे रही थी और अपने बदन को थिरकाकर, लचकाकर मेरी तरफ देख-देखकर मेरी हरकतों का यथोचित उत्तर दे रही थी।

इससे मुझे यकीन हो गया था कि वो वास्तव में अपने पति के साथ मेरे सामने प्रेम-प्यार की बातें करने में आनन्द अनुभव कर रही थी। वो अपने पति से प्यार भरी बातें करते हुए अपने ससुर के सामने पूर्ण नग्न होकर अपनी चूचियों को मसलवा रही थी ।

अब मैं समझ चुका था कि मेरी बहू मुझसे इसके अलावा भी बहुत कुछ पाना चाह रही है, तो मैंने भी और आगे बढ़ने का फैसला कर लिया। मैंने फोन के माउथपीस पर हाथ रखा और फुसफुसाया- “बात चालू रखना, फोन बंद मत होने देना। ठीक है?”

उसने मेरी तरफ वासनामयी नजरों से देखा और ‘हाँ’ में सर हिलाया। पदमनी भी अब खुलकर इस खेल में घुस गई थी।

अब मैं उसके सामने आया और नीचे अपने घुटनों पर बैठकर अपने हाथ उसके चूतड़ों पर रखकर उसे अपने पास खींचा और अपने होंठ उसकी चूत के लबों पर टिका दिए।

“ओअ अयाह ऊउह…”पदमनी के होंठों से प्यास भरी सिसकारी निकली।

मैं सुन नहीं पाया कि उसके पति ने क्या कहा।

लेकिन वो उत्तर में बोली- “ना… नहीं, मैं ठीक हूँ। बस मुझे ऐसा लगा कि मेरी जांघ पर कुछ रेंग रहा था…”

एक बार आकाश ने शायद कुछ कहा जिसके जवाब में पदमनी ने कहा- “शायद मेरी पैंटी में कुछ घुस गया है… चींटी या और कुछ? मैं लान में घास पर बैठ गई थी तो…”

मेरे बेटा जरूर कुछ गन्दी बात बोला होगा, तभी तो पदमनी ने कहा- “धत्त… गंदे कहीं के। अच्छा ठीक है, मैं पैंटी उतारकर अंदर देखती हूँ… तो मैं पांच मिनट बाद फोन करूँ?”

उसने हाँ कहा होगा तभी तो उसके बाद पदमनी ने मेरे बेटे को फोन पर एक चुम्मी देकर फोन बन्द कर दिया और फोन को सोफे पर उछालते हुए मुझसे बोली- “पापा…”

मैं खड़ा हो गया और पदमनी को अपनी बाहों में ले लिया।

पदमनी भी मेरी छाती पर अपना चेहरा टिकाकर मुझे बाहों के घेरे में लेते हुए धीमी आवाज में बोली- “आप बहुत गन्दे हैं पापा…” कहकर उसने अपने कूल्हे आगे की तरफ धकेलकर मेरी लंड पर अपनीचूत टिका ली थी।
मैंने अपने हाथों से उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला- “हाँ। सही कह रही हो पदमनी , मैं असल में बहुत गन्दा हूँ जान। अगर मैं गन्दा ना होता तो अपनी प्यारी बहू पदमनी को मजा कैसे दे पाता?”



मैंने उसके चूतड़ों को थपथपाते हुए कहा- “तुम बहुत समझदार हो जानम। तुम उसे हमेशा खुश और संतुष्ट रखोगी…” कहकर मैंने उसके होंठों को फिर चूमा, और बोला- “और मैं तुम्हें हमेशा खुश और संतुष्ट रखूँगा…”

पदमनी - “मुझे पता है पापा…” कहकर उसने मुझे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया, और कहा- “मैं आकाश से फोन पर बात कर रही थी और आप मुझे वहाँ चूम रहे थे। कितने उत्तेजना भरे थे ना वो पल? मैं तो बस ओर्गैस्म तक पहुँचने ही वाली थी…”

जब पद्मिदनी ज़्यादा कसमसाने लगी. तब मैं उसके पास से उठ कर उसकी टाँगों के पास आ गया. मैने पद्मिलनी की दोनो टाँगों को फैला दिया. वो अभी भी आँख बंद किए हुए इंतजार कर रही थी कि अब मैं क्या करने वाला हूँ.

मैने उसकी टाँगों को फैलाने के बाद अपना लंड उसकी चूत पर लगाया और उसे चूत पर रगड़ने लगा. मेरे लंड की रगड़ से पद्मिपनी सिसियाने लगी. थोड़ी देर मे लंड को उसकी चूत पर रगड़ता रहा.

फिर मैने उसकी चूत के छेद पर अपने लंड को लगाया और ज़ोर देकर अंदर धकेलने की कोशिश करने लगा. लेकिन मेरा लंड चूत के अंदर नही जा रहा था. इसकी दो वजह थी, एक तो पद्मिपनी की चूत बहुत टाइट और उसका छेद बहुत छोटा था. दूसरी मेरा लंड बहुत बड़ा और मोटा था. जिस वजह से वो पद्मिकनी की चूत मे नही जा पा रहा था.

पद्मिजनी उस समय आँख बंद किए हुए थी. इसलिए उसे मेरे लंड की लंबाई और मोटाई का और उस के अंदर जाने से होने वाले का दर्द का कोई अंदाज़ा नही था. मैं उसे ज़्यादा दर्द नही देना चाहता था. इसलिए उसे आराम से अंदर करना चाहता था.

लेकिन मेरेलंड के अंदर जाने के लिए पद्मिरनी का पूरे जोश मे होना ज़रूरी था. ताकि उसे लंड के अंदर जाने पर ज़्यादा दर्द महसूस ना हो. इसलिए मैने लंड को उसकी चूत से अलग कर अपनी एक उंगली को पद्मि़नी की चूत मे डाला और उसे अंदर बाहर करने लगा.

मेरे उंगली अंदर बाहर करने से कुछ ही देर मे पद्मिउनी के शरीर ने हरकत करनी शुरू कर दी. अब वो अपने दोनो हाथों से अपने बूब्स मसल रही थी और अपने कुल्हों को उपर उच्छल रही थी.

मैने जब पद्मिहनी को पूरे जोश मे देखा तो, अपनी उंगली को उसकी चूत से बाहर किया और एक बार फिर लंड को चूत के छेद से लगाया. उसकी चूत पूरी तरह से गीली थी. मैने लंड का दबाब उसकी चूत पर बनाया और फिर उसकी चूत के छेद पर लंड का एक जोरदार धक्का मारा.

एक ही झटके मे मेरे लंड का टॉप पद्मिछनी की चूत मे फस गया था. लेकिन पद्मिेनी इतने से ही धक्के से दर्द से तड़प उठी और अपने दोनो हाथ अपने चेहरे पर रख कर सर को इधर उधर हिला रही थी. शायद उसे बहुत ज़्यादा दर्द हो रहा था. मैं थोड़ी देर रुक गया और उसके बूब्स को मसल्ने लगा.

कुछ देर बाद जब पद्मि नी कुछ शांत सी समझ मे आई. तब मैने लंड का दबाब उसकी चूत पर बनाया और फिर एक जोरदार धक्का मारा. इस बार पद्मिआनी अपने आपको ना रोक सकी और उसकी चीख निकल गयी “हाए मर गयी पापा .”

धक्का इतना जोरदार था कि मेरा आधा लंड पद्मिजनी की चूत के अंदर चला गया था. जिसके होने वाले दर्द से पद्मिथनी तड़प उठी और उठ कर अपनी चूत को देखने लगी. वो आँख फड़कर कभी अपनी चूत को देखती तो कभी उसमे फसे मेरे लंड को देखती. उसकी आँखों मे आँसू आ गये थे.

मैने उसके होंठों को अपने होंठों से लगा लिया और उनको चूसने लगा. कुछ देर तक मैं ऐसे ही उसके होंठो को चूस्ता रहा. फिर जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो मैने उसे लिटा दिया और अब अपने आधे लंड को ही धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगा.

कुछ ही देर मे पद्मि नी को मज़ा आने लगा और वो भी अपने कूल्हे हिलाने लगी. धीरे धीरे मैने लंड को अंदर बाहर करने की गति बढ़ाना सुरू कर दी और जब पद्मिेनी पूरी तरह से जोश मे आ गयी. तब मैने एक और जोरदार धक्का मारा और मेरा पूरा लंड पद्मिेनी की चूत की झिल्ली को फाड़ता हुआ अंदर तक समा गया.

इस बार पद्मिंनी और भी ज़ोर से चीख पड़ी और मुझसे मिन्नत करने लगी. “अया पापा मैं मर गयी. उसे बाहर निकालो, नही तो मैं सच मे मर जाउन्गी”
पद्मिरनी की चूत की झिल्ली फट चुकी थी और उसमे से खून बह रहा था. वो दर्द से तड़प रही थी. लेकिन अभी उसने अपना खून नही देखा था. मैने उसे उठने ना दिया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख कर चूसने लगा.

लेकिन पद्मिखनी को दर्द बहुत ज़्यादा हो रहा था. वो बार बारलंड को बाहर निकालने को बोल रही थी. मगर मैं उसे समझा रहा था कि, पहली बार मे ऐसा दर्द होता ही है. मैं उसके बूब्स मसल रहा था और होंठ चूस रहा था.

जिस से कुछ देर बाद पद्मिानी को कुछ अच्छा महसूस होने लगा और मैं धीरे धीरे लंड को अंदर बाहर करने लगा. कुछ ही देर मे पद्मि नी को मज़ा आने लगा और वो अपने कूल्हे उचकाने लगी.

जिसे देख कर मैने भी लंड अंदर बाहर कररने की गति बढ़ा दी. पद्मिोनी को दर्द अभी भी हो रहा था. मगर अब उसे मज़ा भी आ रहा था. जिस की वजह से वो मुझे रोक नही रही थी. मगर उसके चेहरे पर दर्द और मज़ा दोनो के भाव साफ नज़र आ रहे थे.

कुछ ही देर मे पद्मि़नी जोश और बढ़ गया और अब वो अपने शरीर को उच्छाल उच्छाल कर कहने लगी. “अया पापा और ज़ोर से, पापा और ज़ोर से.” हाँ पापा, और पेलिये ना… रुक क्यों गये? घुसाइए, पूरा बाड़ दीजिए… अपने मोटे लौड़े से अपने बेटे की पत्नी की चूत की धज्जियां उड़ा दीजिए हाँ पापा, और पेलिये ना… रुक क्यों गये? घुसाइए, पूरा बाड़ दीजिए… अपने मोटे लौड़े से अपने बेटे की पत्नी की चूत की धज्जियां उड़ा दीजिए…”

“पेलिये ना अपना पूरा लौड़ा मेरी चूत के अन्दर पापा। आप बहूचोद बन गए , .पदमनी भी आखिर एक मस्त यौन-प्यासी लड़की थी और अब चुदते चुदते दर्द के साथ साथ थोड़ा मजा भी आने लगा था.मेरे जैसे व्यक्ति से चुदने में उसे मन ही मन एक अजीब खुशी हो रही थी, और ऊपर से मुझ से चुदना मुझे ज्यादा उत्तेजित कर रहा था. पिछले कुछ दिनों से उसके अन्दर जो काम वासना उफान मार रही थी, हर बार की तरह इस बार उसने खुद को रोकने की बिलकुल कोशिश नहीं की | उसकी चेतना का विरोध कमजोर होता जा रहा था | उसे अपनी चूत के अन्दर एक लंड चाहिए था | उसे खून से भरा हुआ, फूला हुआ, गरम, लोहे की राड की सख्त हुए एक तगड़ा लंड अपनी चूत में चहिये था जो उसकी चूत की दीवारों में दहसत पैदा कर दे, अन्दर जाकर चूत का हर कोना चोद दे, जैसे पहले किसी ने उसकी चूत को चोदा न हो | उसे ऐसा लंड अभी चहिये था, भले ही क्यों न वो उसके ससुर का ही हो | उसे अपनी चूत में एक लंड चहिये था और लंड की सबसे ज्यादा जरुरत उसे अभी थी

मुझे भी उसकी बातों से और जोश चढ़ रहा था. मैं भी जोरदार धक्के मार रहा था. मेरे धक्को से पद्मिभनी का पूरा शरीर हिल रहा था और उसके बूब्स उपर नीचे हो रहे थे.

फिर जल्दी ही वो मुकाम भी आ गया. जब पद्मि्नी का शरीर ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा और वो कहने लगी “ऊवू पापा , जल्दी करो. मेरा पानी छूटने वाला है. ज़ोर से करो पापा , ज़ोर से करो.” बहुत मजा आ रहा है. , अब चोद चोद कर मेरी चूत फाड़ दो , मै इसी लायक हू."आआअह्ह्ह आआआआआह्हह्हह् स्सस्सस्स हाय मै मर गयी, प्लीज पापा बहुत दर्द हो रहा है, प्लीज इसे बाहर निकाल लो, वरना मेरी चूत फट जाएगी, आआआआ , मर गई आआ फट गई मेरी चूत आआ निकालो लण्ड मेरी चूत से आआ. आ आ आआ अउ अउ अउ अउ पेलो जोर से चोदो आ आ मज़ा आ रहा है पूरा लण्ड डाल दो मेरी चूत में राजा आ .

मैने भी अपने धक्को की गति बढ़ा दी. मेरा लंड जिस गति से बाहर आता. उस से भी तेज गति से पद्मिभनी की चूत को चीरते हुए अंदर जा रहा था. पूरा कमरा पद्मिानी की आ उहह की आवाज़ों और मेरे धक्कों की आवाज़ों से गूँज रहा था.पद्मनी अब जोर जोर से चीख रही थी - पेलो न बेदर्दी से, जो होगा देखा जायेगा, अब ठेल तो पूरा अन्दर तक, जितना ताकत से घुसेड सकते हो, डाल दो अन्दर तक, जहाँ तक जा सकता है जाने दो, उसके लिए राह बनावो, मेरी और मेरी चूत की परवाह न करो तुम, कब तक मेरी चूत के दर्द के चक्कर में लंड को इस तरह तड़पाते रहोगे | जब तक लंड चूत को चीरेगा नहीं, ये ऐसे ही नखरे दिखाती रहेगी | पेल दो पूरा लंड मेरी चूत की गहराई में | दर्द होता है तो होने दो| लंड को पूरी ताकत से चूत की आखिरी गहराई तक उतार दो, पूरा का पूरा लंड चूत के अन्दर डाल दो| मुझे मेरे चूत के आखिरी कोने तक जमकर चोद डालो | मुझे तुमारा पूरा लंड चाहिए | जो होगा देखा जायेगा | ये चूत है ही इसी लायक, जब तक मोटा तगड़ा लोहे जैसा सख्त लंड इसे कुचलेगा नहीं ये ऐसे ही नखरे दिखाती रहेगी | इस पर जितनी दया दिखावोगे उतना ही ये नाटक करेगी,बिना सख्ती किये ये तुमारे लंड को अपनी गहराई में उतरने का रास्ता नहीं देने वाली | मरी चूत फटती है तो फट जाने दो |

कुछ ही पल बाद पद्मिवनी के शरीर ने अकड़ना सुरू कर दिया और उसकी चुत ने पानी छोड़ना सुरू कर दिया. कुछ पल बाद ही पद्मि नी की चीख पुकार शांत पड़ गयी. मैं भी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुच चुका था.

मेरे धक्के चालू थे और फिर कुछ ही पल बाद मेरे लंड ने भी झटके खाना सुरू कर दिया. मैने जोरदार तीन चार धक्के लगाए और फिर मेरे लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. मैं धक्का लगाता रहा और मेरा लंड पानी छोड़ता रहा. मेरे लंड ने 5-6 पिचकारी पद्मिकनी की चूत मे छोड़ी और शांत पड़ गया.

मैं भी शांत पड़ कर पद्मिडनी के उपर ही ढेर हो गया. कुछ देर मैं वैसे ही पद्मि नी के उपर लेटा रहा. फिर उतर कर उसके पास लेट गया. मैने उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके गाल को दो तीन बार चूम कर कहा.

मैं बोला “मज़ा आया.”

पद्मिोनी कुछ नही बोली. तब मैने फिर कहा.

मैं बोला “अब तो तुम्हरा सब कुछ मैं देख चुका हूँ और मेरा सब कुछ तुम देख चुकी हो. अब क्यो शर्मा रही हो. बोलो ना मज़ा आया या नही.”

पद्मि नी ने मुस्कुराते हुए कहा.

पद्मि नी बोली “जी आया.”

मैं बोला “कितना मज़ा आया. थोड़ा या बहुत.”

पद्मिोनी बोली “बहुत मज़ा आया.”

मैं बोला “फिर करे.”

पद्मिोनी बोली “नही पापा , आज नही. आज बहुत दर्द हो रहा है.”
 
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Rakesh1999

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अगले दिन सुबह देर से आँख खुली. पद्‍मिनी अभी भी मुझसे नंगी ही लिपटी हुई बेसुध सो रही थी पर उसके होंठो पर मधुर मुस्कान खेल रही थी, शायद कोई हसीन सपना देख रहीं हो.

मैं बड़े आहिस्ता से उसके पहलु से निकला और अपनी टी शर्ट और लोअर पहन लिया. सुबह के साढ़े सात बज चुके थे चारों ओर उजाला फ़ैल चुका था ट्रेन अभी भी पूरे रफ़्तार से अपना सफ़र तय कर रही थी.

कुछ ही देर बाद ट्रेन सिकंदराबाद स्टेशन पर आ कर ठहर गयी. मैंने बहूरानी के नंगे जिस्म पर कम्बल ओढ़ा दिया; तभी उसकी नींद खुल गयी और उसे अपनी नग्नता का अहसास होते ही उसने कम्बल को अपने कन्धों के ऊपर तक ओढ़ लिया और मुस्कुरा के मेरी तरफ देखा.

“ पद्‍मिनी बेटा, नींद तो अच्छी आई ना?” मैंने अपना टूथपेस्ट ब्रश पर लगाते हुए पूछा.

“हां पापा … अब मैं खुद को बहुत ही हल्का फुल्का फील कर रही हूं. थैंक्स फॉर आल दैट!” वो शर्माते हुए बोली.

“ओके बेटा , मैं फ्रेश होकर आता हूँ.” मैंने कहा और अपना टूथब्रश मुंह में चलाते हुए कूपे से निकल गया.

मैं वापिस लौटा तो पद्‍मिनी ने सलवार कुर्ता पहन लिया था और मेरे आते ही वो बाहर निकल गयी. मैं खिड़की से बाहर के नज़ारे देखने लगा. मेरे लिये ये एकदम अनजाना रूट था मैं इस रास्ते पर पहले कभी नहीं आया था लेकिन ये बदला बदला माहौल सुखद लग रहा था.तभी पेंट्री कार का स्टाफ चाय नाश्ता लेकर आ गया, साथ में ताजा न्यूज़पेपर भी था.

इन सबसे निपट कर हम दोनों यूं ही बातें करते रहे कि शादी में क्या क्या होना है.

ये… वो…

मैं बीच बीच में बहू का हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाता रहा, बहू के बदन को भी बिना किसी हिचक के यहाँ वहां छूकर बातें कर रहा था. बहू भी मुझसे पूर्ण रूपेण स्वछंद उन्मुक्त मित्रवत व्यवहार कर रही थी.

ऐसे ही बातें करते करते दोपहर के एक बजे से ऊपर ही टाइम हो गया. लंच भी सर्व हो गया. हम लोग लंच करके दो बजे तक फ्री हो गये.

ट्रेन की लम्बी जर्नी में कुछ करने को तो होता नहीं, बस खाओ, पियो और सोओ. लेकिन मेरे साथ तो पद्‍मिनी थी और हम लोगों का ट्रेन से जयपुर जाने का एक ही उद्देश्य था – चुदाई चुदाई और चुदाई!

“ पद्‍मिनी , अब आजा फिर से!”

“क्यों आऊँ पापा जी… मैं तो यहीं ठीक हूं!”

“अरे आ ना टाइम पास करते हैं दोनों मिल के!”

“टाइम तो अच्छे से पास हो रहा है मेरा यहीं बैठे बैठे!”

“बेटा , इस कूपे का हजारों रुपये किराया दिया है हमने. अभीजयपुर पहुँचने में 18 घंटे बाकी हैं. चल आ जा अपने पैसे वसूल करें!”

“वो कैसे करोगे पापा जी?”

“जैसे कल रात किये थे.”

“रहने दो पापा… मेरी नीचे वाली अभी तक दुःख रही है. आपने तो कल बिल्कुल बेरहम, निर्दयी बन के कुचल दिया मुझे. जरा भी रहम नहीं आया आपको अपनी पद्‍मिनी पर?”

“अच्छा, अब तू मुझे ही दोष दे रही है? रात को तू ही तो ‘लव यू… लव यू…’ बोल कर कह रही थी- कुचल डालो इसे… फाड़ के रख दो मेरी चूत आज… बहुत सताती है ये!

“इसका मतलब यह थोड़ी न के आप सच में ही रौंद डालो मेरी कोमल जगह को बेरहमी से; चाहे कोई जिये या मरे; आपकी बला से!”

पद्‍मिनी थोड़ा तुनक कर बोलीं लेकिन उनकी आँखें से शरारत झलक रही थी.

“और जो अभी सुबह सुबह तू मुझे थैंक्स बोल रही थी वो किसी ख़ुशी में था?”

“वो तो ऐसे ही आपका दिल रखने के लिये; रात में आपने इतनी कठोर मेहनत जो की थी न मेरे ऊपर चढ़ के!”

“और अब क्या इरादा है मेरी प्यारी प्यारी पद्‍मिनी का?”

“पापा , जो आप चाहो… आखिर हमने हजारों रुपये रेलवे को पे किये हैं, उसमें से जितने वसूल हो जायें उतना अच्छा!”

“यह हुई न बात!” मैं बोला और पद्‍मिनी को अपनी गोद में घसीट लिया.

तेरी ये नीचे वाली सच में दुख रही है?” मैंने उनकी चूत सलवार के ऊपर से ही सहलाते हुए पूछा.

“हा हा हा, अरे नहीं पापा जी. मैं तो बस ऐसे ही हंसी ठट्ठा कर रही थी. ये ससुरी ना दुखती… इसे तो लंड से जितना मारो पीटो… उतनी ही ज्यादा खुश होती है बेशरम!” पद्‍मिनी खनकती हुई हंसी हंसी.

पद्‍मिनी आगे बोली- यह आपकी चहेती हो गई है, बिगड़ गई है, पूरी की पूरी ढीठ हो गई है, हद कर दी इसने तो बेशर्मी की!

“तो फिर आ जा मेरी रानी… कुछ नया करते हैं अब इसके साथ!” मैंने कहा- बोलो पद्‍मिनी … क्या ख्याल है?

“अब और क्या नया होना बाकी रह गया पापा … सब कुछ हर तरीके से तो कर चुके आप मेरे साथ. वो घुसेगा तो मेरी ही में है न?”

“अरे वो नहीं घुसेगा तेरी में; अभी तो सिर्फ एन्जॉय करेंगे अलग तरीके से!”

“अच्छा ठीक है, बताओ क्या करना है?” पद्‍मिनी बोली.

“पहले तू पूरी न्यूड हो के बैठ जा मेरे सामने मुंह करके!”

“धत्त, दिन में ही?” पद्‍मिनी बोली.

“अरे बेटा दिन रात से क्या फर्क पड़ता है, चल आ जा!”

पद्‍मिनी ने पहले कूपे को चेक किया कि वो अन्दर से ठीक से बंद है या नहीं… फिर पहले अपनी बाहें ऊपर उठा कर अपना कुर्ता और सलवार का नाड़ा खोला और सलवार भी उतार डाली.

आह… क्या गजब का हुस्न दिया है ऊपर वाले ने मेरी बेटी सी बहू पद्‍मिनी को. सिर्फ ब्रा और पैंटी में मेरी पद्‍मिनी की जवानी क़यामत ढा रहीं थी. डिजाइनर ब्रा में बहू के मम्में और भी दिलकश लग रहे थे और उसकी पैंटी में वो उभरी हुई चूत… चूत का त्रिभुज और लम्बी सी दरार बिल्कुल साफ़ साफ़ दिख रही थी पैंटी के ऊपर से! पैंटी के ऊपर चूत की दरार इस तरह से दिखे तो पोर्न की दुनिया में इसे कैमल टो Camel toe कहते हैं.






मुझे अपनी बहू की कैमल टो बहुत सेक्सी लगी तो मैंने अपना स्मार्ट फोन निकाल कर उसकी पैंटी की एक फोटो खींच ली.

मैंने पद्‍मिनी का हाथ पकड़ के अपने पास खींचा और पहले तो पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत की जो दरार दिख रही थी, उसमें उंगली फिराई, फिर पद्‍मिनी की पैंटी थोड़ी सी साइड में सरका कर उसकी नंगी चूत की दरार में उंगली फिराई और फिर चूत को चूम लिया.

फिर मैं उठ कर खड़ा हो गया और अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया. मेरा मुरझाया लंड झूल रहा था जो धीरे धीरे जान पकड़ रहा था.

अब मैंने अपनी पद्‍मिनी की की ब्रा का हुक खोल दिया; हुक खुलते ही ब्रा के स्ट्रेप्स स्प्रिंग की तरह उछल गये और मैंने ब्रा को उतार कर बर्थ पर डाल दिया और पद्‍मिनी को अपने सीने से लगा लिया. उनके मम्में मेरे सीने में समा गये. मैंने उसके कान की लौ को अपने होंठों और जीभ से चुभलाया और फिर कान के नीचे और गर्दन चूम डाली. फिर उसे बर्थ पर एक कोने में बैठा दिया.

बर्थ के दूसरे कोने पर मैं बैठ गया और पद्‍मिनी के पांव पकड़ कर अपनी गोद में रख लिए.

“पापा … मेरे पांव छोड़िये… मुझे अच्छा नहीं लगता!” मेरी संस्कारशील बहू रानी बोली और अपने पैर पीछे खींचने लगी. मेरी बहू को उसके ससुर द्वारा उसके पाँव छूना अच्छा नहीं लगा.

“अरे बेटा, तू टेंशन मत ले… बस एन्जॉय कर मेरे साथ!” मैंने उनके पांवों के दोनों तलुए चूम डाले और अपना लंड उनके तलुओं के बीच फंसा लिया.

“ पद्‍मिनी बेटा, अब तू अपने पैरों से मेरे लंड से खेल; अपने पंजों में इसे दबा कर इसकी मूठ मार और इसे रगड़!”

मेरे कहने से पद्‍मिनी ने मेरा लंड अपने पैरों के पंजों में अच्छे से दबा लिया और इसे हल्के हल्के रगड़ने लगी जैसे हम कोई चीज अपनी हथेलियों से मलते या रगड़ते हैं. उसके ऐसे करते ही मेरे लंड में जोश भरने लगा.

इस तरह का ‘फुट जॉब’ मैंने कभी किसी पोर्न क्लिप में देखा था, तभी से मेरी तमन्ना थी कि कभी मौका मिला तो ये खेल मैं भी खेल के देखूंगा.

आह… कितना प्यारा नजारा था वो… पद्‍मिनी के गोरे गुलाबी मुलायम पैर .

पद्‍मिनी के कोमल पैरों का स्पर्श मेरे लंड को और कठोर बनाता जा रहा था और अब वह पूरा अकड़ चुका था.

इसी समय ट्रेन की रफ़्तार धीमी पड़ने लगी शायद कोई स्टेशन होगा. मैंने टाइम देखा तो दोपहर के साढ़े तीन होने वाले थे. यह टाइम तो कोटा पहुँचने का था और जल्दी ही ट्रेन स्लो होती चली गई फिर रुक गई.

.

ट्रेन रुकते ही मैंने पद्‍मिनी को थोड़ा सा अपने पास खिसका लिया जिससे मेरे लंड पर उसके पंजों की ग्रिप और मजबूत हो गयी. मेरे पास खिसक आने से पद्‍मिनी की जांघें खुल गयीं थीं और उसकी पैंटी में से चूत की झलक दिखने लगी थी. मैंने अपना एक पैर आगे बढ़ाया और अंगूठे से उसकी पैंटी अलग करके चूत को कुरेदने लगा.

पद्‍मिनी को भी इस खेल में मजा आने लगा तो उसने अपनी पैंटी खुद ही उतार फेंकी और मेरे और नजदीक पैर खोल के बैठ गयी. मैंने अपना लंड फिर से उसके पांवों के तलुओं में दबा लिया और अपने पैर का अंगूठा उसकी चूत में घुसेड़ दिया.

हम दोनों अब पूरी मस्ती में आ चुके थे. पद्‍मिनी अपने पैरों से मेरे लंड की मुठ मार रही थी, बीच बीच में वो मेरे लंड को मथानी की तरह मथने लगती और मैं उसकी चूत में पैर के अंगूठे से कुरेद रहा था. मैं अपने पैर का अंगूठा कभी गोल गोल घुमाता चूत में कभी अप एंड डाउन कभी दायें बायें… उसकी चूत अब खूब रसीली हो उठी थी; मेरा अंगूठा पूरा गीला हो गया था.

पद्‍मिनी की आँखें वासना से गुलाबी हो गयीं थीं और वो इस खेल को खूब एन्जॉय करने लगीं थी.

तभी ट्रेन ने हॉर्न दिया और धीमे धीमे चलने लगी.

कोटा पीछे छूट चला था पर हम दोनों ससुर बहू अपने केबिन से बाहर की दीन दुनिया से बेख़बर अपनी ही दूसरी दुनिया में खोये हुए मजा कर रहे थे. हम दोनों में से कोई किसी को हाथों से छू नहीं रहा था; बस अपने पैरों से ही एक दूजे को मजे दे रहे थे.

पद्‍मिनी ने अब अपनी कमर हिलानी शुरू कर दी थी, मैं समझ गया कि अब उसकी चूत का बांध टूटने ही वाला है. इधर मेरा लंड भी झड़ने के करीब पहुंच रहा था… और मेरे लंड की नसें फूलने लगीं.

और तभी ब पद्‍मिनी ने इसे महसूस करते हुए लंड को पंजों से मथना शुरू कर दिया.

पंद्रह बीस सेकंड बाद ही मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी छूटी और ऊपर वाली बर्थ से जा टकराई… फिर छोटी छोटी पिचकारियाँ किसी फव्वारे की तरह निकलने लगीं और पद्‍मिनी के दोनों पांव मेरे वीर्य से सन गये.

इसके साथ ही पद्‍मिनी की कमर जोर से तीन चार बार आगे पीछे हुई और वो भी झड़ गयी और निढाल सी होकर उसकी नंगी पीठ पीछे टिक गयी और वो गहरी गहरी साँसें लेने लगीं.

“उफ्फ पापा जी, इस खेल का भी अपना एक अलग ही मजा है; आज पहली बार जाना! अह… मजा आ गया सच में!” पद्‍मिनी थके थके से स्वर में बोली.

“हां बेटा जी, जो काम लंड नहीं कर सकता वो काम उंगली या अंगूठा करता है. लंड तो सिर्फ अन्दर बाहर हो सकता है लेकिन अंगूठा तो हर एंगल से मज़ा दे सकता है.”

“हां पापा जी, आप शत प्रतिशत सही कह रहे हैं.”

मैंने नेपकिन से अपना लंड और पद्‍मिनी के पांव अच्छे से पौंछ डाले और फिर बहूरानी ने अपना सलवार कुर्ता पहन लिया, मैंने भी कपड़े पहन लिये.

अब मैंने टाइम देखा तो सवा चार बजने वाले थे. ट्रेन लगातार फुल स्पीड से सीटी बजाती हुई दिल्ली की ओर दौड़ी चली जा रही थी.अब शाम हो चुकी थी, तभी कूपे के दरवाजे पर किसी ने नॉक किया, मैंने खोल कर देखा था पेंट्री कार का स्टाफ चाय नाश्ता लिए खड़ा था.

चाय से निबट के पद्‍मिनी बोली- पापा जी, अब मैं कुछ देर सोना चाहती हूँ.

और वो ऊपर की बर्थ पर चली गयी.

मैं भी अलसाया सा लेट गया.

जब हम लोग जागे तो चारों ओर अँधेरा घिर चुका था. पद्‍मिनी टॉयलेट जाकर फ्रेश हो आयी फिर उसने अपने उलझे बाल सँवारे और हल्का सा मेकअप किया. इसी बीच मैं भी फ्रेश हो आया; अब कुछ ताजगी महसूस होने लगी थी. फिर हम दोनों कूपे से बाहर निकले और कम्पार्टमेंट के तीन चार चक्कर लगा डाले ताकि टहलना हो जाय और हाथ पैर खुल जायें.


“ पद्‍मिनी बेटा!”

“हां जी पापा ?”

“दस बजने वाले हैं सवेरे छह बजे हम जयपुर पहुंच जायेंगे. बस यही रात है हमारे पास!” मैंने कुछ दुखी होकर कहा.

“हां पापा , फिर न जाने कब ऐसा मौका मिले!” पद्‍मिनी भी कुछ मायूस होकर बोली.

“चलो बेटा, बत्ती बुझा दो, फिर सोते हैं!” मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए और लेटते हुए कहा.

“ओ के पापा जी!” पद्‍मिनी बोली और फिर लाइट्स ऑफ हो गयीं, कूपे में घुप्प अँधेरा छा गया.

मुझे पद्‍मिनी के कपड़े उतरने की सरसराहट सुनाई दी और फिर उसका नंगा जिस्म मुझसे लिपट गया और उसका एक हाथ मेरे बालों में कंघी करने लगा. मैंने भी उसे अपने से चिपटा लिया और उसके स्तनों से खेलने लगा.

पद्‍मिनी मेरी छाती को सहलाने लगी, उसका हाथ मेरे सीने पर पेट पर सब जगह फिरने लगा, फिर उसने मेरी छाती चूमना शुरू कर दी. बार बार लगातार… ऐसा वो पहली बार कर रही थी.

“क्या बात है पद्‍मिनी , आज यूं मेरी छाती ही चूमे जा रही हो; चूमना ही है तो लंड है नीचे की तरफ!” मैंने मजाक किया.

“पापा जी, जो बात इस सीने में है वो लंड में कहां!” वो मेरे बायें निप्पल को मसलते हुए बोली.

“क्या मतलब? मेरी छाती में कौन से मम्में लगे हैं… हहहहा” मैंने हँसते हुए कहा.

“पापा जी, ये राज की बातें हैं. हम लेडीज को पुरुष की चौड़ी छाती ही सबसे ज्यादा अटरेक्ट करती है, आदमी की चौड़ी छाती हमें एक सिक्योर फीलिंग देती है फिर आपके इस चौड़े चकले सीने के तले पिसते हुए आपके लम्बे मोटे लंड की ठोकरें चूत को वो मजा देती हैं कि आत्मा तक तृप्त हो जाती है.”

“अच्छा? अगर चौड़े सीने वाले आदमी का लंड छोटा सा पतला सा हुआ तो?” मैंने हँसते हुए कहा.

“पापा जी, वो बाद की बात है. मैंने तो ये कहा कि पहला इम्प्रेशन इस सीने का ही होता है हम लड़कियों पर; मर्द का चौड़ा मजबूत सीना हम फीमेलज़ को सेक्सुअली अपील करता है.” पद्‍मिनी बोली और मेरे ऊपर मेरे सीने पर लेट गयी; उसके मम्में मेरी छाती में पिसने लगे.

उधर मेरा लंड चूत में घुसने की आशा में झट से खड़ा हो गया.

फिर पद्‍मिनी ने मुझ पर बैठ के मेरा सुपारा अपनी चूत के छेद पर सेट किया और लंड को दबाने लगी. उसकी गीली रसीली चूत मेरे लंड को कुछ ही पलों में समूचा लील गयी. फिर पद्‍मिनी जी मेरा लंड यूं अपनी चूत में घुसाये हुए मेरे ऊपर शांत लेट गयी. मेरे हाथ उसके नितम्बों पर जा पहुंचे, उसके गोल गोल गुदाज नितम्बों को मुट्ठी में भर भर के मसलने दबाने का मजा ही अलग आया.

फिर मेरी कमर धक्के लगाने को उछलने लगी.

“पापा जी, धक्के नहीं लगाओ… बस चुपचाप यूं ही लेटे रहो रात भर!” पद्‍मिनी बोली और मेरा निचला होंठ चूसने लगी.

“ठीक है पद्‍मिनी … एज यू लाइक!” मैंने कहा और अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया.

रात के सन्नाटे को चीरती हुई ट्रैन अपने पूरे वेग से आंधी तूफ़ान की तरह अपने गंतव्य की ओर भागी दौड़ी चली जा रही थी. मेरे ऊपर जैसे कोई सुगन्धित रेशम का ढेर हो वैसी ही फीलिंग देता पद्‍मिनी का नंगा जिस्म मुझसे लिपटा हुआ था. उसकी चूत से कल कल बहता रस मेरी जांघों को भिगोने लगा था.

“पापा जी…” बहूरानी मेरे कान में फुसफुसायी.

“हां बेटा?”

“जब ट्रेन किसी छोटे स्टेशन पर पटरियाँ चेंज करती है तो कितनी मस्त आवाजें आती हैं न…” बहूरानी जी अपनी चूत मेरे लंड पर धीरे से घिसते हुए बोली.

“अबकी छोटा स्टेशन आये, तो आप ध्यान से सुनना!” वो फिर बोली.

“हां बेटा, इन पटरियों का भी अपना संगीत है.” मैं बोला.

“आधी रात बीतने को थी; कभी कभी विपरीत दिशा से आती कोई ट्रेन हमें क्रॉस करती हुई निकल जाती. बहूरानी से मिलन का ये अलौकिक आनन्द अलग ही अनुभूति दे रहा था. चुदाई और सम्भोग का फर्क अब महसूस होने लगा था. नीरव अन्धकार में संभोगरत दो जिस्म आपस में कम्युनिकेट कर रहे थे जहां शब्दों की आवश्यकता ही नहीं थी. न कुछ देखने की जरूरत थी न कुछ सुनने की… योनि और लिंग के मिलन की वो अलौकिक अनुभूति जिसे शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं. चूत में घुस के आनन्द लूटता और लुटाता लंड का आनन्द देखने की चीज नहीं महसूस करने वाली बात है.

तभी किसी छोटे स्टेशन से ट्रेन गुजरने लगी. मेन लाइन से लूप लाइन पर जाती ट्रेन फिर वापिस मेन लाइन पर आती हुई… पटरियों की खटर पटर सच में एक मीठा उन्माद भरा संगीत सुनाने लगी.

“पापा जी… अब आप ऊपर आ जाओ, थक गई मैं तो!” पद्‍मिनी बोली और मेरे ऊपर से हट गयी.

मैं भी उठ के अलग हो गया.

फिर वो बर्थ पर लेट गयीं.

“बहूरानी बेटा… अपनी चूत खोल न!” मैं उस पर झुकते हुए बोला.

“वो तो मैंने पहले ही अपने हाथों से खोल रखी है पूरी… आ जाओ आप जल्दी से!” वो बेचैन स्वर में बोली.

मैं उसके ऊपर झुका और उसने खुद ही मेरा लंड पकड़ कर सही जगह पर रख कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया. मैंने भी देर न करते हुए लंड से एक करारा शॉट लगा दिया; लंड फचाक से पद्‍मिनी की चूत में जड़ तक समा गया.

पद्‍मिनी ने मुझे अपने आलिंगन में भर कर प्यार से चूमा और अपनी कमर ऊपर तक उठा के मेरे लंड का सत्कार किया- बस पापाजी, ऐसे ही लेटे रहिये मेरे ऊपर चुपचाप!

वो बोली और अपने घुटने मोड़ के ऊपर उठा लिए; अब उसकी चूत का खांचा अपने पूरे आकार में आ चुका था; मैंने अपने लंड को और दबाया तो लगभग एक अंगुल के करीब लंड और सरक गया चूत में.

यूं लंड घुसाये हुए चुपचाप शांत पड़े रहने का भी एक अलग ही मजा है; जी तो कर रहा था कि ताबड़तोड़ धक्के लगाऊं उसकी चूत में; पद्‍मिनी का दिल भी पक्का कर रहा होगा लंड उसकी चूत में सटासट अन्दर बाहर होने लगे तो उसे चैन आये.

हम दोनों को ही मिसमिसी छूट रही थी लेकिन खुद पे काबू किये हुए जैसे तैसे एक दूसरे की हथेलियों में हथेली फंसाए होंठों को चूस रहे थे.

ये सब कोई आधा घंटा चलता रहा.

“पापा … अब नहीं रहा जाता, नहीं सहा जाता मुझसे… मेरी चूत में चीटियाँ सी रेंग रहीं है बहुत देर से!”

“तो क्या करूं बता?” मैंने उसका गाल काटते हुए कहा.

“अब तो आप मुझे जल्दी से चोद डालो पापा!”

“अभी तो तू कह रही थी कि चुपचाप पड़े रहना है… अब क्या हुआ?”

“पापा, मेरी चूत में बहुत तेज खुजली मच रही है… ये आपके लंड से ही मिट सकती है… फक मी हार्ड पापा डार्लिंग!” पद्‍मिनी अधीरता से अपनी चूत ऊपर उचकाते हुए बोली.

लंड तो मेरा भी कब से तड़प रहा था उसकी चूत में उछलने के लिए तो मैंने पहले बहूरानी के निप्पल जो सख्त हो चुके थे, उन्हें मसल कर बारी बारी से चूसा, साथ में अपनी कमर को उसकी चूत के दाने पर घिसा.

“हाय राजा… मार ही डालो आज तो!” पद्‍मिनी के मुंह से आनन्द भरी किलकारी सी निकली.

“ये लो मेरी रानी…” मैंने भी कहा और लंड को बाहर तक निकाल कर पूरी दम से पेल दिया चूत में!

“हाय राजा … ऐसे ही चोदो अपनी बहूरानी को!” पद्‍मिनी कामुक स्वर में बोली और मेरे धक्के का जवाब उसने अपनी चूत को उछाल कर दिया.

“हाय… कितनी मस्त कसी हुई टाइट चूत है मेरी पद्‍मिनी बिटिया की!” मैंने जोश में बोला और फुल स्पीड से अपनी बहू को चोदने लगा.

“हां पापा.‍ऽऽऽ… ऐसे ही… अपनी पद्‍मिनी बिटिया की चूत बेदर्दी से चोदो, इस राजधानी से भी तेज तेज चोदिये… आःह! कितना मस्त लंड है आपका… पापा खोद डालो मेरी चूत… अब आप ही मालिक हो इस चूत के!” पद्‍मिनी ऐसे ही वासना के नशे में बोलती चली जा रही थी.

मैं भी अपने पूरे दम से लंड चला रहा था पद्‍मिनी की चूत में; उसकी चूत से आती चुदाई की आवाजें पूरे कूपे में गूँज रहीं थीं. चूत की फचफच और ट्रेन चलने की आवाज एक दूसरे में मिल कर मस्त समां बांध रहीं थीं.

“पापा जी अब डॉगी पोज में चोद दो मुझे अच्छे से!” पद्‍मिनी ने फरमाइश की.

“ओके बेटा जी… चल डॉगी बन जा जल्दी से!” मैं बोला और उसके ऊपर से हट गया.

पद्‍मिनी ने बर्थ से उतर कर कूपे की लाइट जला दी; रोशनी में उसका किसी चुदासी औरत जैसा रूप लिए उसका हुस्न दमक उठा… कन्धों पर बिखरे बाल… गुलाबी प्यासी आँखें… तनी हुई चूचियाँ… चूचियों की घुन्डियाँ फूल कर अंगूर जैसी हो रहीं थीं और उसकी चूत से बहता रस जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक बह रहा था.

फिर पद्‍मिनी शीशे के सामने जा खड़ी हुयी, कुछ पलों के लिये उसने खुद को शीशे में निहारा, फिर झुक गयीं और सामान रखने वाले काउंटर का सहारा लेकर डॉगी बन गयी. उसके गीले चमकते हुए गोल गुलाबी नितम्बों का जोड़ा मेरे सामने था जिनके बीच बसी चूत का छेद किसी अंधेरी गुफा के प्रवेश द्वार की तरह लग रहा था.

मैंने नेपकिन से अपने लंड को पौंछा, फिर उसकी चूत और जांघें पौंछ डाली और लंड को चूत के छेद पर टिका के सुपारा भीतर धकेल दिया. उसकी चूत अभी भी भीतर से बहुत गीली थी जिससे समूचा लंड एक ही बार में सरसराता हुआ घुस गया और मैंने नीचे हाथ ले जाकर दोनों मम्में पकड़ लिए और चूत में धक्के मारने लगा.

“लव यू पापा… यू फक सो वेल!” पद्‍मिनी चुदाई से आनन्दित होती हुई चहकी.

“या पद्‍मिनी बेटा… यू आर आल्सो ए रियल जेम… सच ए नाईस टाइट कंट यू हैव इन बिटवीन योर थाइस!” मैं भी मस्ती में था.

“सब कुछ आपके लिए ही है पापा… आप जैसे चाहो वैसे भोगो मेरे जवान जिस्म को!” पद्‍मिनी समर्पित भाव से बोली.

अब मैंने उसके सिर के बाल पकड़ कर अपने हाथों में लपेट कर खींच लिए जिससे उसका चेहरा ऊपर उठ गया और मैं इसी तरह उसकी चूत मारने लगा; बीच बीच में मैं उसके नितम्बों पर चांटे मारता हुआ उसे बेरहमी से चोदने लगा. पद्‍मिनी भी पूरे आनन्द से अपनी चूत आगे पीछे करते हुए लंड का मजा लूटने लगी. हमारी जांघें आपस में टकरा टकरा के पट पट आवाजें करने लगी.

और चुदाई का यह सनातन खेल कोई दस बारह मिनट और चला और फिर मेरा लंड फूलने लगा झड़ने के करीब हो गया.

“ पद्‍मिनी , अब मैं झड़ने वाला हूं तुम्हारी चूत में!”

“झड़ जाइए पापा; मेरा तो दो बार हो भी चुका और तीसरी बार भी बस होने ही वाला है…”

फिर मैंने आखिरी पंद्रह बीस धक्के और मारे, फिर बहू की पीठ पर झुक गया और मम्मे थाम लिये. मेरे लंड से रस की फुहारें छूट छूट कर बहूरानी की चूत को तृप्त करने लगीं. उसकी चूत भी संकुचित हो हो कर मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी.

अंत में मेरा लंड वीरगति को प्राप्त होता हुआ चूत से बाहर निकल आया और उसकी चूत से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण बह बह कर टपकने लगा.

जब हम अलग हुए हुए तो सवा बारह बजने ही वाले थे.

“चल बेटा अब सोते हैं, छह बजे ट्रेन निजामुद्दीन पहुंच जायेगी. हमें पांच सवा पांच तक उठना पड़ेगा.”

“ओके पापा जी!” पद्‍मिनी बोली और उसने अपनी ब्रा पैंटी पहन ली और बर्थ पर जा लेटी. मैं भी अपने पूरे कपड़े पहन कर बत्ती बुझा कर उसके बगल में जा पहुंचा.

“गुड नाईट पापा !” पद्‍मिनी मेरी तरफ करवट लेकर बोली और अपना एक पैर मेरे ऊपर रख लिया.

“गुड नाईट बेटा !” मैंने भी कहा और उसका सिर अपने सीने से सटा लिया और उसे थपकी देने लगा जैसे किसी छोटे बच्चे को सुलाते हैं.

सुबह पांच बजकर दस मिनट पर हम उठ गये. तैयार होकर पद्‍मिनी ने वही साड़ी पहन ली जो वो बोम्बे से पहन कर निकली थी और एक संस्कारवान बहू की तरह अपना सिर ढक आंचल से ढक लिया.



Nice one.


Jaipur jana tha ya Delhi?
?
 
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