dream to pura ho gayaमैं बोला “पहली बार मे दर्द होता ही है.”
पद्मिोनी बोली “लेकिन पापा , मैं तो पहले भी कर चुकी हूँ. मुझे पहले इतना दर्द कभी नही हुआ. ना ही कभी इतना मज़ा आया.”
मैं समझ गया कि पद्मिआनी आकाश के साथ करने की बात कर रही है. मैने उस से कहा.
मैं बोला “क्या आकाश का लंड भी मेरे जितना बड़ा है.”
पद्मिोनी बोली “नही पापा , उनका ये तो बहुत छोटा है. बिल्कुल आपकी उंगली की तरह है और वो जब ये सब करते है तो उन्हे मुस्किल से 2-4 मिनिट ही लगते है और फिर वो सो जाते है.”
मैं बोला “मैं बोला शायद यही वजह है कि तुम आज तक माँ नही बन पाई. चलो कोई बात नही. अब तुम जल्दी माँ बन जाओगी.”
मेरी बात सुन कर पद्मिानी फिर से शर्मा गयी और मैने उसे अपने सीने से लगा लिया. मैने उसे एक बार फिर करने को कहा. लेकिन उसने दर्द होने की शिकायत करने का कहते हुए मना कर दिया. मैने भी उसे ज़्यादा ज़ोर नही दिया और फिर हम दोनो एक दूसरे से चिपके चिपके ऐसे ही सो गये.
सुबह जब मेरी नींद खुली तो पद्मिजनी बिस्तर पर नही थी. मैं उठा और जाकर फ्रेश होने लगा. मैं फ्रेश होकर बाथरूम से बाहर निकला तो पद्मि नी बिस्तर सही कर रही थी.
वो नहा धो चुकी थी और मेरे लिए चाय लेकर आई थी. वो बहुत खुश नज़र आ रही थी. उसने मुझे बाथरूम से बाहर निकलते हुए देखा तो, मुझे चाय देते हुए कहने लगी.
पद्मिमनी बोली “पापा , आज हम बाहर से खाना मॅंगा ले.”
मैं बोला “क्यो, क्या हुआ. क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नही है.”
पद्मिोनी बोली “तबीयत तो ठीक है पापा . बस थोड़ा सा दर्द हो रहा है. मुझसे चलते भी नही बन रहा है.”
मैं बोला “कोई बात नही. हम बाहर से खाना मंगा लेगे. तुम आराम करो.”
इसके बाद पद्मिननी आराम करने चली गयी. हमने बाहर से खाना मंगा कर खाया और फिर मैने पद्मिबनी को दर्द की कुछ दवाइयाँ दी. जिसे खाकर वो अपने कमरे मे आराम करने चली गयी.
सारा दिन यू ही बीत गया. रत को भी हमने बाहर से ही खाना मन्गा लिया था. खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे मे आ गया.और उसका इन्तजार करने लगा ,जब काफी देर तक पद्मनी नहीं आयी तो मेने सोचा नींद ही ले लू पर नींद कहाँ, आ भी कैसे सकती थी!
यूं ही ऊंघते ऊँघते पता नहीं कितनी देर बीत गई, फिर किसी की धीमी पदचाप सुनाई दी, दरवाजा धीरे से खुला कोई भीतर घुसा और दरवाजा बंद कर दिया।
उस अँधेरे में मैंने पद्मिनी को उसके जिस्म से उठती परफ्यूम की सुगंध से पहचाना! हाँ वही थी!
वो चुपके से आकर मेरे बगल में लेट गई।
‘पापा जी. सो गये क्या?’ वो धीमे से फुसफुसाई।
‘नहीं, बेटा. तुम्हारा ही इंतज़ार था!’ मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से सटा लिया।
‘मेरा इंतज़ार क्यूँ? मैंने आने को थोड़े ही बोला था।’ पद्मिनी मेरे बालों में उँगलियों से कंघी करती हुई बोली।
‘फिर भी मुझे पता था कि तुम आओगी, आईं या नहीं?’ कहते हुए मैंने उसके दोनों गाल बारी बारी से चूम लिए।
‘ पद्मिनी ने मेरी बांह में चिकोटी काटी।
बदले में मैंने उसके दोनों मम्मे दबोच लिए और उसके होंठों का रस पीने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और चुम्बनों का दौर चल पड़ा।
कभी मेरी जीभ उसके मुंह में कभी उसकी मेरे मुंह में… कितना सरस… कितना मीठा मुंह था पद्मिनी का! बताना मुश्किल है।
‘ पद्मिनी !’
‘हाँ पापा जी!’
‘आज मैं तुझे जी भर के प्यार करना चाहता हूँ।’
‘तो कर लीजिये न अपनी मनमानी, मैं रोकूंगी थोड़े ही!’
‘मैं लाइट जलाता हूँ, पहले तो तेरा हुस्न जी भर के देखूंगा!’
‘नहीं पापा जी, लाइट नहीं. कल की तरह अँधेरे में ही करो।’
‘मान जा न… मैं तुझे जी भर के देखना चाहता हूँ आज!’
‘नहीं, पापा जी, मैं अपना बदन कैसे दिखाऊं आपको? बहुत शर्म आ रही है।’
वो मना करती रही लेकिन मैं नहीं माना और उठ कर बत्ती जला दी, तेज रोशनी कमरे में फैल गई और पद्मिनी अपने घुटने मोड़ के सर झुका के लाज की गठरी बन गई।
मैं उसके बगल में लेट गया और उसे अपनी ओर खींच लिया वो लुढ़क कर मेरे सीने से आ लगी।
पद्मिनी ने कपड़े बदल लिए थे और अब वो सलवार कुर्ता पहने हुए थी और मम्मों पर दुपट्टा पड़ा हुआ था।
सबसे पहले मैंने उसका दुपट्टा उससे अलग किया, उसकी गहरी क्लीवेज यानि वक्ष रेखा नुमायां हो गई। गोरे गोरे गदराये उरोजों का मिलन स्थल कैसी रमणीक घाटी के जैसा नजारा पेश करता है।
मैंने बरबस ही अपना मुंह वहाँ छिपा लिया और दोनों कपोतों को चूमने लगा, उन्हें धीरे धीरे दबाने मसलने लगा, भीतर हाथ घुसा कर स्तनों की घुण्डी चुटकी में मसलने लगा।
ऐसे करते ही पद्मिनी की साँसें भारी हो गईं।
फिर उसके बदन को बाहों में भर कर मैं उस पर चढ़ गया उसके चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा फिर लाज से उसका मुख लाल पड़ गया। गले को चूमते ही उसने अपनी बाहें मेरे गले में पिरो दीं और होंठ से होंठ मिला दिए। फिर मैं पद्मिनी को कुर्ता उतारने को मनाने लगा, बड़ी मुश्किल से उसने मुझे कुर्ता उतारने दिया।
कुर्ता के उतरते ही मैंने उसकी सलवार का नाड़ा एक झटके में खोल दिया और उसे भी खींच के एक तरफ फेंक दिया। ऐसा करते ही पद्मिनी ने अपना मुंह हथेलियों से छिपा लिया लेकिन मैंने दोनों कलाइयाँ पकड़ कर अलग कर दीं और उसका जिस्म निहारने लगा.
पद्मिनी अब सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में मेरे सामने लेटी थी। ऐसा क़यामत ढाने वाला हुस्न तो मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था, साक्षात रति देवी की प्रतिमूर्ति थी वो तो!
मेरे यूँ देखने से पद्मिनी ने अपनी आँखें मूंद लीं और उसका चेहरा आरक्त हो गया।
उसके काले काले घने बालों के चोटी भी मैंने खोल दी और उसके बालों को यूं ही छितरा दिया, घने बादलों के बीच गुलाबी चाँद सा खिल उठा उसका चेहरा!
हल्के गुलाबी रंग की डिजाइनर ब्रा पैंटी में पद्मिनी का हुस्न बेमिसाल लग रहा था। ब्रा में छिपे बड़े बड़े बूब्स उसकी साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उठ बैठ रहे थे और पैंटी के ऊपर से दिख रहा उसकी चूत का उभरा हुआ त्रिभुज जिसके मध्य में त्रिभुज को विभाजित करती उसकी चूत की दरार की लाइन का मामूली सा अहसास हो रहा था।
साढ़े पांच फुट का कद, सुतवां बदन, न पतला न मोटा, जहाँ जितनी मोटाई गहराई अपेक्षित होती है बिल्कुल वैसा ही सांचे में ढला बदन, चिकनी मांसल जांघें और उनके बीच बसी वो सुख की खान!
जैसे कई दिनों का भूखा खाने पर टूट पड़ता है, वैसे ही मेरी हालत हो रही थी कि जल्दी से पद्मिनी की चड्डी भी उतार फेंकू और उसकी टाँगें अपने कंधों पे रख के अपने मूसल जैसे लंड को एक ही झटके में उसकी चूत में पेल दूं!
लेकिन नहीं, अगर कोई पैसे से खरीदी गई रंडी वेश्या रही होती तो जरूर मैं उसे वैसी ही बेदर्दी से चोदता लेकिन अपनी पद्मिनी की तो बड़े प्यार और एहतियात से लेने का मन था मेरा!
फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और पूरा नंगा हो गया, मेरा लंड तो पहले ही पद्मिनी की छिपी चूत देखकर फनफना उठा था। मैं नंगा ही पद्मिनी के ऊपर चढ़ गया और उसे चूमने काटने लगा।
पद्मिनी का बदन भी अब गवाही दे रहा था कि वो मस्ता गई है लेकिन लाज की मारी अभी भी आँखें मूंदें पड़ी थी। मैंने उसकी पीठ के नीचे हाथ ले जा कर ब्रेजरी का हुक खोल दिया और उसके कन्धों के ऊपर से स्ट्रेप्स पकड़ कर ब्रा का खींच लिए!
वाऊ… 34 इंची ब्रा मेरे हाथ में थी पद्मिनी के नग्न स्तन का जोड़ा मुझे एक क्षण को दिखा पर उसने तुरन्त अपनी बाहें अपने मम्मों पर कस दीं।
‘ पद्मिनी बेटा, देखने दे ना!’ मैंने कहा।
‘ऊं हूं…’ उसके मुंह से निकला और वो पलट के लेट गई। मैं भी उसकी नंगी पीठ पर लेट गया और उसकी गर्दन चूमने लगा, नीचे हाथ डाल कर उसके नंगे बूब्स अपनी मुट्ठियों में भर लिए और उन्हें मसलने लगा।
उधर मेरा लंड उसकी उसकी जाँघों के बीच रगड़ रहा था और उसके मांसल कोमल नितम्बों का स्पर्श मुझे बड़ा ही प्यारा लग रहा था, तभी सोच लिया था कि पद्मिनी की गांड भी एक बार जरूर मारूंगा आज!
उसकी गुदाज सपाट पीठ को चूमते चूमते मैं नीचे की तरफ उतरने लगा. उसके जिस्म से उठती वो मादक भीनी भीनी सी महक एक अजीब सा नशा दे रही थी।
उसकी कमर को चाटते चूमते मैंने उसकी पैंटी में अपनी उँगलियाँ फंसा दीं और उसे नीचे खिसकाना चाहा, लेकिन तभी पद्मिनी पलट कर चित हो गई।
‘पापाजी, मुझे तो अब नींद आ रही है आप तो बत्ती बुझा दो अब और मुझे सोने दो!’ पद्मिनी बड़े ही बेचैन स्वर में बोली।
‘अभी से कहाँ सोओगी बेटा जी. इन पलों का मज़ा लो, ये क्षण जीवन में फिर कभी नहीं आयेंगे।’ मैंने कहा और उसका एक मम्मा मुंह में लेकर चूसने लगा।
पद्मिनी का शरीर शिथिल पड़ने लगा था और वो गहरी गहरी साँसें भरने लगी थी। मतलब साफ़ था कि अब वो चुदास के मारे बेचैन होने लगी थी उसकी पैंटी के ऊपर की नमी गवाही दे रही थी कि उसकी चूत अब पनिया गई है।
फिर मैं उठ कर बैठ गया और उसके पैर की अंगुलियाँ और तलवे जीभ से चाटने लगा। मेरा ऐसे करते ही पद्मिनी अपना सर दायें बाएं झटकने लगी और अपने बूब्स खुद अपने ही हाथों में भर के दबाने लगी।
जैसे ही मैंने उसकी पिंडलियों को चाटते चाटते चूम चूम के जाँघों को चाटना शुरू किया, वो आपे से बाहर हो गई और अपनी कमर उछालने लगी। अब पद्मिनी की पैंटी उतारने का सही समय आ गया था, मैंने उसकी पैंटी को उतारना शुरू किया।
बहूरानी ने झट से अपनी कमर ऊपर उठा दी जैसे वो खुद भी यही चाह रही थी।
पद्मिनी की गीली पैंटी उसकी चूत से चिपटी हुई सी थी उसके उतरते ही उसकी नंगी चूत मेरे सामने थी।
‘अभी देखना मैं इसमें अपना हल चला के इसे जोत देता हूं और बीज भी बो देता हूं फिर देखना कितनी मस्त फसल उगती है।’ मैंने कहा।और उसकी चूत में उंगली घुसा दी।
‘उई माँ…उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ वो बोली और अपनी टाँगें ऊपर उठा के मोड़ लीं।
पद्मिनी के बदन की गोरी गुलाबी जाँघों के बीच वो सांवली सी गद्देदार फूली हुई चूत कितनी मनोहर लग रही थी, चूत के ऊपर बाएं होंठ पर गहरा काला तिल था जो उसे और भी सेक्सी बना रहा था।
मैंने झट से अपने होंठ पद्मिनी की चूत पर रख दिए और उसे ऊपर से ही चाटने लगा। उसकी चूत का चीरा ज्यादा बड़ा नहीं कोई चार अंगुल जितना ही था लम्बाई में!
मेरे चाटते ही पद्मिनी के मुंह से कामुक आहें कराहें निकलने लगीं।
पद्मिनी!’ मैंने कहा।
तो उसने प्रश्नवाचक नज़रों से मुझे देखा।
‘खोल दो इसे अपने हाथों से!’ मैंने कहा।
उसने झट से अपना हाथ अपनी चूत पर रखा और अंगूठे और उंगली के सहारे उसने अपनी चूत को यूं ओपन कर दिया जैसे हम अपने टच स्क्रीन फोन पर कोई फोटो ज़ूम करते हैं!
‘ऐसे नहीं… अपने दोनों हाथ से खोलो अच्छी तरह से मेरी तरफ देखते हुए!’ मैंने कहा।
‘आप तो मुझे बिल्कुल ही बेशर्म बना दोगे आज! ऐसे तो मैंने आकाश के सामने भी नहीं खोल के परोसी कभी!’ वो शरमा कर बोली।
‘देखो बेटा, जो स्त्री सम्भोग काल में बिल्कुल निर्लज्ज होकर भांति भांति की काम केलि करती हुई अपने हाव भाव से, अपनी अदाओं से, अपने गुप्त अंगों को प्रदर्शित कर अपने साथी को लुभा लुभा कर उसे उत्तेजित कर समर्पित हो जाती है वही हमेशा उसकी ड्रीम गर्ल बन के रहती है।’ मैंने कहा और उसकी चूत को चुटकी में भर के हिलाया।
‘ठीक है पापा , समझ गई यह ज्ञान!’ वो बोली और उसने झट से अपने दोनों हाथ अपनी चूत पर रखे और उंगलियों से उसे पूरा फैला दिया और मेरी होठों पर मीठी मुस्कान लिए मेरी आँखों में झाँकने लगी।
मुझे लड़की का यह पोज बहुत ही पसन्द आता है जब वो चुदासी होकर चुदवाने को अपनी चूत अपने दोनों हाथों से खोलकर चोदने को आमंत्रित करती है।
उसके वैसे करते ही चूत के भीतर का लाल तरबूज के जैसा रसीला गूदा दिखने लगा. साथ ही उसकी चूत का दाना खूंटे जैसा उभर के लपलपाने लगा।
फिर मैंने उसके दोनों बूब्स कस के पकड़ लिए और जैसे ही मैंने उसकी चूत के दाने पर जीभ रखी वो उत्तेजना के मारे उछलने लगी और उसकी चूत मेरी नाक से आ टकराई।
लेकिन मैंने उसकी जांघें कस के दबा के उसकी चूत को गहराई तक चाटने लगा, उसकी चूत रस बरसाने लगी। साथ साथ मैं उसका कुच मर्दन भी करता जा रहा था।
उत्तेजना के मारे पद्मिनी ने बेडशीट को अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिया और अपनी चूत बार बार ऊपर उछालने का प्रयास करने लगी।
‘जीभ मत डालो पापा .. असली चीज डाल दो अब तो! नहीं रहा जा रहा अब!’ वो अपनी कमर उचका के बोली।
‘क्या डाल दूं पद्मिनी ? उसका नाम तो बताओ?’
‘अपना पेनिस!’
‘हिंदी में बताओ न?’
‘अपना लिंग डाल दो न पापा !’
‘लिंग नहीं कोई और नाम बताओ!’ मुझे पद्मिनी को सताने में मजा आ रहा था।
‘उफ्फ… मुझे कुछ नहीं पता अब! मत करो आप कुछ!’ वो थोड़ा झुंझला के बोली लेकिन मैंने उसकी चूत चाटना और बूब्स मसलना जारी रखा।
मुझे पद्मिनी की चूत मारने की कोई जल्दी नहीं थी, मुझे अपने पे पूरा कंट्रोल था, बस चूत को खूब देर तक रस ले ले चाटना मुझे बहुत पसन्द है, और वही मैं करने लगा।
भला पद्मिनी की चूत चाटने चूमने का ऐसा बढ़िया मौका जीवन में दुबारा मिले न मिले, किसे पता?
‘आह.. हूं… करो… मत करो! मान जाओ पापा .. सुनो!’
‘हाँ बोलो पद्मिनी ?’ मैंने उसकी चूत के दाने को चुभला कर पूछा।
‘अपना लंड घुसा दो अब जल्दी से…’ पद्मिनी ने अपनी कमर उछाली।
‘कहाँ लोगी.. यहाँ लोगी?’ मैंने उसकी गांड के छेद को सहलाते हुए पूछा।
‘धत्त… वहाँ नहीं, कल की तरह मेरी वेजाइना में डाल के जल्दी से फक कर दो मुझे!’ वो मिसमिसाते हुए बोली।
‘वेजाइना नहीं, अपनी बोली में कहो कि कहाँ लोगी मेरा लंड?’ मैंने उसकी नारंगियों को मसकते हुए पूछा।
‘मेरी योनि में घुसा दो अब लंड को!’ उसने जैसे रिक्वेस्ट सी की। उफ्फ पापा , आप और कितना बेशर्म बनाओगे मुझे आज… लो मेरी चूत में पेल दो अपना लंड और चोदो मुझे जल्दी से!’ पद्मिनी अपनी चूत मेरे मुंह पर मारती हुई बेसब्री से बोली।
चूत के रस से मेरी नाक, मुंह भीग गया।
पद्मिनी अब अच्छे से अपने पे आ गई थी, लड़की जब पूरी गर्म हो जाए, अपने पे आ जाए तो फिर वो चूत में लंड लेने के लिए कुछ भी कर सकती है।
‘ पद्मिनी , थोड़ा सब्र और कर, बस एक बार लंड दो चूस दे मेरा अच्छे से, फिर तेरी मस्त चुदाई करता हूँ।’ मैंने उसकी चूची मरोड़ते हुए कहा।
उसके न कहने का तो प्रश्न ही नहीं था अब… मैं उठ कर पालथी मार के बैठ गया, मेरा लंड अब मेरी गोद में 90 डिग्री पर खड़ा था। पद्मिनी ने झट से लंड की चमड़ी चार पांच ऊपर नीचे की फिर झुक कर लंड को मुंह में भर लिया और कल ही की तरह चूम चूम कर चाट चाट कर चूसने लगी।
पद्मिनी के मेहंदी रचे गोरे गोरे हाथों में मेरा लंड कितना मस्त दिख रहा था, देखने में ही मज़ा आ गया।
पद्मिनी कभी मेरी और देख देख के सुपारा चाटती कभी मेरे टट्टे सहलाती। मेरे ऊपर झुकने से उसकी नंगी गोरी पीठ मेरे सामने थी जिस पर उसके रेशमी काले काले बाल बिखरे हुए थे।
मैंने उसकी पीठ को झुक कर चूम लिया और हाथ नीचे ले जा कर उसके कूल्हों पर थपकी दे दे कर सहलाने लगा।
इस तरह मेरे झुकने से मेरा लंड उसके गले तक जा पहुंचा और वो गूं गूं करने लगी जैसे उसकी सांस अटक रही हो।
मैं फिर सीधा बैठ गया तो पद्मिनी ने लंड मुंह से बाहर निकाल लिया लेकिन उसकी लार के तार अभी भी मेरे लंड से जुड़े हुए थे और उसका मुखरस उसके होंठों के किनारों से बह रहा था।
उसने फिरसे लंड मुंह में ले लिया और मैंने उसका सर अपने लंड पर दबा दिया और नीचे से उसका मुंह चोदने लगा। ऐसे एक दो मिनट ही चोद पाया मैं उसका मुंह कि वो हट गई।
‘बस, पापा. सांस फूल गई मेरी. अब नहीं चूसूंगी; इसे अब जल्दी से घुसा दो मेरी चूत में!’ वो तड़प कर बोली।
मैंने भी वक्त की नजाकत को समझते हुए उसकी गांड के नीचे एक मोटा सा तकिया लगा दिया जिससे उसकी चूत अच्छे से उभर गई।
पद्मिनी की चूत में पुनः लंड
तकिया लगाने से पद्मिनी की कमर का नीचे का हिस्सा एक दर्शनीय रूप ले चुका था, पद्मिनी ने अपनी घुटने ऊपर मोड़ लिए थे जिससे उसकी जांघे वी शेप में हो गईं और नीचे उसकी चूत की दरार अब पूरी तरह से खुली हुई नज़र आ रही थी और उसकी चूत का छेद साफ़ साफ़ दिखने लगा था जो कि उत्तेजना वश धड़क सा रहा था।
उसके कोई दो अंगुल नीचे उसकी गांड का छिद्र अपनी विशिष्ट सिलवटें लिए अलग ही छटा बिखेर रहा था।
एक बार मन तो ललचा गया कि पहले गांड में ही पेल दूं लंड को लेकिन मैंने इस तमन्ना को अगले राउंड के लिए सेव कर लिया।
लंड पेलने से पहले मैंने पद्मिनी के मम्मों को एक बार और चूसा, गालों को काटा और फिर नीचे उतर कर चूत को अच्छे से चाटा।
‘अब आ भी जाओ पापा, समा जाओ मुझमें… और मत सताओ मुझे, अब नहीं रहा जाता ले लो मेरी कल की तरह!’ पद्मिनी बहुत ही कामुक और अधीर स्वर में बोली।
‘ये लो पद्मिनी बेटा!’ मैं बोला और लंड को उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया और फिर वहीं घिसने लगा।
‘पापा , जरा आराम से डालना, बहुत मोटा है आपका! दया करना अपनी बहू पे!’ पद्मिनी ने जैसे विनती की मुझसे!
‘ पद्मिनी बेटा, थोड़ा हिम्मत से काम लेना, अब मोटे को मैं दुबला पतला नहीं कर सकता, जैसा भी है कल की तरह चूत अपने आप संभाल लेगी इसे!’
‘जी, पापा !’
‘और अब इधर देख, मेरी आँख से आँख मिलाती रहना और चुदती रहना!’
‘ठीक है अब आ भी जाओ जल्दी!’ वो बोली और मेरी आँखों में अपनी आँखें डाल दीं।
मैंने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर रखा और प्यार से धकेल दिया उसकी चूत में।
चूत बहुत ही चिकनी और रसीली हो गई थी, इस कारण सुपारा निर्विरोध घुस गया पद्मिनी की चूत में! उसके मुंह पर थोड़ी पीड़ा होने जैसे भाव आये लेकिन वो मेरे आँखों में झांकती रही।
कुछ ही पलों बाद मैं लंड को पीछे खींच कर एक बार में ही पेल दिया उसकी चूत में!
‘हाय मम्मी … मर गई. कैसे निर्दयी हो पापा आप?’ वो बोली और मुझे परे धकेलने लगी।
मैंने उसके प्रतिरोध की परवाह किये बिना लंड को जरा सा खींच कर फिर से पूरी ताकत से पेल दिया उसकी चूत में!
इस बार मेरी नुकीली झांटें चुभ गईं उसकी चूत में और वो फड़फड़ा उठी। फिर दोनों दूध कस के दबोच के उसका निचला होंठ चूसने लगा, फिर अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी। बहूरानी मेरी जीभ चूसने लगी और मैं उसके निप्पल चुटकी में भर के नीम्बू की तरह निचोड़ने लगा।
ऐसे करने से उसकी चुदास और प्रचण्ड हो गई और वो अपनी कमर हिलाने लगी।
फिर मैंने उसकी दोनों कलाइयाँ पकड़ कर उसकी ताबड़तोड़ मस्त चुदाई शुरू कर दी और अपनी झांटों से चूत में रगड़ा मारते हुए उसे चोदने लगा।
पद्मिनी के मुंह से कामुक किलकारियाँ निकलने लगीं और वो नीचे से अपनी चूत उठा उठा के मुझे देने लगी।
बस फिर क्या था, रूम में उसकी चूत से निकलती फच फच की आवाज और उसकी कामुक कराहें गूंजने लगीं।
‘अच्छे से कुचल डालो इस चूत को पापा ! बहुत सताती है ये मुझे! आज सुबह से ही जोर की खुजली उठ रही है इसमें उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
‘ पद्मिनी मेरी जान… ये लो फिर!’ मैंने कहा और उसकी चूत कुचलने लगा जैसे मूसल से ओखली में कूटते हैं, और आड़े, तिरछे, सीधे शॉट मारने लगा।
‘हाँ, पापा… बस ऐसे ही चोदते रहो अपनी बहू को… हाँ आ… याआअ… फाड़ डालो इसे पापा!’
इसी तरह की चुदाई कोई दस बारह मिनट ही चली होगी कि मैं झड़ने पे आ गया।
‘ पद्मिनी , अब मेरा निकलने वाला है, कहाँ लोगी इसे!’
‘मैं तो एक बार झड़ भी चुकी हूँ पापा, अब फिर से झड़ने वाली हूँ… आप मेरी चूत में ही झड़ जाओ, बो दो अपना बीज अपनी बहू की चूत में!’ वो मस्ता के बोली।
लगभग आधे मिनट बाद ही पद्मिनी ने मुझे कस के भींच लिया और और कल की ही तरह अपनी टाँगें मेरी कमर में लपेट के कस दीं और मुझे प्यार से बार बार चूमने लगी।
मेरे लंड से भी रस की बरसात होने लगी और उसकी चूत में convulsions होने लगे मतलब मरोड़ उठने लगे, चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ने छोड़ने लगीं जिससे मेरे वीर्य की एक एक बूँद उसकी चूत में निचुड़ गई।
पद्मिनी इस तरह मुझे काफी देर तक बांधे रही अपने से! जब वो बिलकुल नार्मल हो गई तब जाकर उसने मुझे रिलीज किया। मेरा लंड भी सिकुड़ कर बाहर निकल गया।
फिर उसने चूत से बह रहे मेरे वीर्य और चूतरस के मिश्रण को नैपकिन से पौंछ डाला और मेरा लंड भी अच्छे से साफ़ करके सुपारा फोरस्किन से ढक दिया।
चुदाई के बाद बहुत देर तक हम दोनों बाहों में बाहें डाले चिपके लेटे रहे। पद्मिनी के नंगे गर्म जिस्म का स्पर्श कितना सुखद लग रहा था उसे शब्दों में बताना मेरे लिए संभव नहीं है।
‘पापा , कर ली न आपने अपने मन की? अब बत्ती बुझा दो और सो जाओ आप भी!’ पद्मिनी उनींदी सी बोली इतनी जल्दी नहीं बेटा रानी, अभी तो एक राउंड तेरी इस गांड का भी लेना है।’ मैंने कहा और उसकी गांड को प्यार से सहलाया।
‘नहीं पापा , वहाँ मैंने कभी कुछ नहीं करवाया. वहाँ नहीं लूंगी मैं आपका ये मूसल। फिर तो मैं खड़ी भी नहीं हो पाऊँगी।’ उसने साफ़ मना कर दिया।
‘ पद्मिनी , गांड में भी चूत जैसा ही मस्त मस्त मज़ा आता है लंड जाने से, तू एक बार गांड मरवा के तो देख, मज़ा न आये तो कहना!’
‘न बाबा, बहुत दर्द होगा मुझे वहाँ! अगर आपका मन अभी नहीं भरा तो चाहे एक बार और मेरी चूत मार लो आप जी भर के!’ वो बोली।
‘अरे तू एक बार ट्राई तो लंड को उसमें, फिर देखना चूत से भी ज्यादा मज़ा तुझे तेरी ये चिकनी गांड देगी।’
ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें कर कर के मैंने पद्मिनी को गांड मरवाने को राजी किया, आखिर वो बुझे मन से मान गई मेरी बात- ठीक है पापा , जहाँ जो करना चाहो कर लो आप, पर धीरे धीरे करना!
‘ठीक है बेटा, अब तू जरा मेरा लंड खड़ा कर दे पहले अच्छे से!’
मेरी बात सुन के पद्मिनी उठ के बैठ गई और मेरे लंड को सहलाने मसलने लगी, जल्दी ही लंड में जान पड़ गई और वो तैयार होने लगा।
फिर मैंने पद्मिनी को अपने लंड पे झुका दिया, मेरा इशारा समझ उसने लंड को मुंह में ले लिया और कुशलता से चूसने लगी।
कुछ ही देर में लंड पूरा तन के तमतमा गया, फिर मैंने उसे जल्दी से डोगी स्टाइल में कर दिया और उसकी चूत में उंगली करने लगा जिससे वो अच्छे से पनिया गई, फिर लंड को उसकी चूत में घुसा कर चिकना कर लिया और फिर बाहर निकाल कर गांड के छेद पर टिका दिया।
गांड के छेद थोड़ा अपना थूक भी लगाया और बड़ी सावधानी से पद्मिनी की कमर पकड़ कर लंड को उसकी गांड में घुसाने लगा।
कुछ प्रयासों बाद मेरा सुपारा गांड में घुसने में कामयाब हो गया।
‘उई माँ… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मर गई पापा जी, निकाल लो इसे, बहुत दर्द हो रहा है वहाँ पे!’ पद्मिनी दर्द से तड़प कर बोली।
मगर मैंने उसकी बात को अनसुना करके धीरे धीरे पूरा लंड पहना दिया उसकी गांड में और रुक गया।
पद्मिनी ने अपनी गांड ढीली कर के लंड को एडजस्ट कर लिया।
‘आपने तो आज मार ही डाला पापा , बहुत दर्द हो रहा है,
‘बस बेटा अब देख, कैसे मज़े आते हैं तुझे गांड में लंड के!’ मैंने कहा और लंड को आहिस्ता आहिस्ता आगे पीछे करने लगा।
बीच बीच में लंड पर थूक भी लगाता जाता ताकि उसका लुब्रीकेशन बना रहे।
जल्दी लंड सटासट चलने लगा उसकी गांड में! पद्मिनी को भी अब मज़ा आने लगा था और वो मस्त आवाजें निकालने लगी।
फिर मैंने उसकी चूत में दो उंगलियाँ घुसा दीं और गांड स्पीड से मारने लगा।
‘हाँ पापा जी, अब मज़ा आने लगा है, जल्दी जल्दी स्पीड से करो आप!’ मैंने तुरन्त अपनी स्पीड बढ़ा दी और निश्चिन्त होकर दम से गांड मारने लगा।
फिर मैंने पद्मिनी के बाल पकड़ कर अपनी कलाई में लपेट खींच लिए जिससे उसका मुंह ऊपर उठ गया और इसी तरह चोटी खींचते हुए अब मैं बेरहमी से गांड में धक्के मारने लगा।
मस्त हो गई पद्मिनी ! वो भी अपनी गांड को मेरे लंड से ताल मिला कर आगे पीछे करने लगी।
फिर मैं रुक गया मगर पद्मिनी नहीं, वो अपनी ही मस्ती में अपनी कमर चलाते हुए लंड लीलती रही।
कितना कामुक नज़ारा था वो!
मैं तो स्थिर रुका हुआ था और पद्मिनी अपनी गांड को आगे पीछे करती हुई मज़े ले रही थी, जब वो पीछे आती हो मेरा लंड उसकी गांड में घुस जाता और वो आगे होती तो बाहर निकल आता!
इस तरह बड़े लय ताल के साथ बहुत देर तक बहू खेलती रही।
मैं अब उसकी चूत में उंगली करता जा रहा था और वो अपने आप में मग्न कमर चलाये जा रही थी। आखिर इस राउंड का भी अंत हुआ और मैं उसकी गांड में ही झड़ गया और लंड सिकुड़ कर स्वतः ही बाहर आ गया और पद्मिनी औंधी ही लेट गई बिस्तर पर…
मैं भी उसी के ऊपर लेट गया और अपनी साँसें काबू करने लगा।
‘मज़ा आया बेटा?’
‘हाँ, पापा . बहुत मज़ा आया, शुरू में तो बहुत दर्द हुआ, बाद में चूत जैसा ही मज़ा वहाँ भी आया।’ वो बोली और उठ कर कपड़े पहनने लगी।
मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए और लेट गया।
‘चलो अब सो जाओ पापा, बहुत रात हो गई, तीन तो बजने वाले ही होंगे। वो बोली।
‘ठीक है बेटा, गुड नाईट, स्वीट ड्रीम्ज़!’ मैं जम्हाई लेते हुए बोला।
‘गुड नाईट पापा !’ वो बोली और मुझसे लिपट के सो गई।
Padamini ki chut kaise tang huyi is raj ka pata nahi chalaजयपुर आने के बाद पद्मिनी आकाश के साथ सोने लगी और में फिर से तरह 2 दिन गुजर गए ,पद्मिनी मेरे सामने भी आती तो नजरे झुका कर ,मेरी समझ नहीं ा रहा था की में अपने दिल और लंड को कैसे समझाऊ तीसरी रात मेने व्हिस्की पीना शुरू कीऔर पद्मिनी के बारे में सोचता रहा ,खाना खाने के बाद व्हिस्की का नशा काफी हद तक कम हो गया था पर सुरूर अब भी अच्छा ख़ासा था. मैं आंख मूंद कर सोने की कोशिश करने लगा, गहरी गहरी सांस लेता हुआ शरीर को शिथिल करके सोने के प्रयास करने से झपकी लगने लगी और फिर नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया.
कोई घंटे भर ही सोया होऊंगा कि नींद उचट गई, मोबाइल में टाइम देखा तो रात के एक बज के बारह मिनट हो रहे थे. लगता था निंदिया रानी भी रूठी रूठी सी थी पद्मिनी की तरह.
जागने के बाद फिर वही बीते हुए पल सताने लगे; तरह तरह के ख्याल मन को कचोटने लगे.
पद्मिनी नाइटी पहने हुए सो रही होगी या नाइटी उतार के पूरी नंगी सो रही होगी? या जाग रही होगी करवटें बदल बदल के? हो सकता है अपनी चूत में उंगली कर रही हो या ये या वो… ऐसे न जाने कितने ख्याल आ आ कर मुझे सताने लगे.
नींद तो लगता था कि अब आने से रही और पद्मिनी दिल-ओ-दिमाग से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं.
घर में सिर्फ मैं और वो जिसे मैं पहले भी कई बार चोद चुका हूं…और आकाश ‘नहीं अब और नहीं…’ उफ्फ्फ हे भगवान् क्या करूं लगता है मैं पागल हो जाऊंगा. यही उथल पुथल दिमाग में चलती रही; इन ख्यालों से बचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था. आज तीसरी रात को मेरा ये हाल है तो आगे रातें कैसे गुजरेंगी?
न जाने क्या सोच कर मैंने अपनी टी शर्ट और लोअर चड्डी के साथ उतार कर दीवान पर फेंक दिए और पूरा नंगा हो गया. पद्मिनी का नाम लेकर लंड पर हाथ फिराया तो उसने अपना सिर उठा लिया. चार पांच बार मुठियाया तो लंड और भी तमतमा गया.
अब आप सब तो जानते ही हो कि खड़ा लंड किसी बादशाह किसी सम्राट से कम नहीं होता. जब बगल वाले कमरे में वो सो रही हो जिसे आप पहले कई बार चोद चुके हों तो खड़े लंड को ज्ञान की बातों से नहीं बहलाया जा सकता, उसे तो सिर्फ चूत ही चाहिये… एक बिल चाहिये घुसने के लिए.
अच्छे अच्छे बड़े लोग, कई देशों के बड़े बड़े नेता, राष्ट्राध्यक्ष, मंत्री, अधिकारी, पंडित पुजारी, आश्रम चलाने वाले बाबा लोग इसी अदना सी चूत के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं. पराई चूत का आकर्षण होता ही ऐसा है कि इंसान अपनी मान मर्यादा रुतबा इज्जत सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाता है एक छेद के लिए.
यही सोचते सोचते मैं ड्राइंग रूम में नंगा ही टहलने लगा; टाइम देखा तो रात के दो बजने वाले थे. अनचाहे ही मेरे कदम बहूरानी के बेडरूम की तरफ उसे चोदने के इरादे से बढ़ चले. सोच लिया था कि बहूरानी को हचक के चोदना है चाहे वो कुछ भी कहे.
सारे घर में घुप्प अंधेरा छाया हुआ था. मैं बड़ी सावधानी से आगे बढ़ने लगा. . कहीं मैं टकरा न जाऊं यही सब सोचते सोचते मैं सधे हुए क़दमों से पद्मिनी के बेडरूम की तरफ बढ़ने लगा. कुछ ही कदम चला हूंगा कि… मुझे एक अस्पष्ट सा साया अपनी ओर आते दिखा, उसका गोरा जिस्म उस अंधेरे में भी अपनी आभा बिखेर रहा था. आँखें गड़ा कर देखा तो… पद्मिनी ! हाँ पद्मिनी ही तो थी.
मेरी बांहें खुद ब खुद उठ गईं उधर उसकी बांहें भी साथ साथ उठीं और हम दोनों एक दूजे के आगोश में समा गए. पद्मिनी के तन पर कोई वस्त्र नहीं था, एकदम मादरजात नंगी, उसकी जुल्फें खुली हुई कन्धों पर बिखरीं थीं. उसके नंगे बदन की तपिश मुझे जैसे झुलसाने लगी और मेरे हाथ उसके नंगे जिस्म को सब जगह सहलाने लगे. मैंने उसके दोनों दूध मुट्ठियों में दबोच लिए.
इधर मेरा लंड उसकी चूत का आभास पा कर और भी तन गया और उसकी जाँघों से टकराने लगा.
“पापा , आई लव यू!” पद्मिनी बोली
भावावेश में बोली और मेरा लंड पकड़ कर सहलाने लगी साथ में मेरी गर्दन में एक हाथ डाल कर मेरा सिर झुका के अपने होंठ मेरे होंठों से मिला कर चुम्बन करने लगी.
“आई लव यू टू पद्मिनी बेटा!” मैंने कहा और उसका मस्तक चूम लिया और एक हाथ नीचे ले जा कर उसकी चूत सहलाने लगा.
पद्मिनी की चूत बहुत गीली होकर रस बहा रही थी यहाँ तक कि उसकी झांटें भी भीग गईं थीं.
उस नीम अँधेरे ड्राइंग रूम में दो जिस्म आपस में लिपटे हुए यूं ही चूमा चाटी करते रहे.
अचानक पद्मिनी ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और उसे दबा कर अपनी चूत रगड़ने लगी. मैंने भी उसकी चूत मुट्ठी में भर के मसल दी. मेरे ऐसा करते ही पद्मिनी नीचे घुटनों के बल बैठ गई और मेरा लंड अपने मुंह में भर लिया, लंड को कुछ देर चाटने चूसने के बाद वो नंगे फर्श पर ही लेट गई और मेरा हाथ पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया, फिर अपने दोनों पैर ऊपर उठा कर मेरी कमर में लपेट कर कस दिए और मेरे कंधे में जोर से काट लिया.
बहुत उत्तेजित थी वो!
वक़्त की नजाकत को समझते हुए मैंने उसका निचला होंठ अपने होंठों में दबा लिया और चूसने लगा. उधर पद्मिनी ने एक हाथ नीचे ले जा कर मेरे लंड को पकड़ के सुपारा अपनी रिसती चूत के मुहाने पर रख के लंड को चूत का रास्ता दिखाया.
“अब आ जाओ पापा जी जल्दी से. समा जाओ अपनी पद्मिनी की प्यासी चूत में!” पद्मिनी अपनी बांहों से मुझे कसते हुए बोली.
“ये लो पद्मिनी बेटा!” मैंने कहा और लंड को धकेल दिया उसकी चूत में… लंड उसकी चूत में फंसता हुआ कोई दो तीन अंगुल तक घुस के ठहर सा गया.
“धीरे से पापा जी, बहुत बड़ा और मोटा लंड है आपका. आज 2 दिन बाद ले रही हूँ न!” पद्मिनी कुछ विचलित स्वर में बोली और अपनी टाँगें उठा के अपने हाथों से पकड़ कर अच्छे से चौड़ी खोल दीं जिससे उसकी चूत और ऊपर उठ गई.
मैंने पद्मिनी की बात को अनसुना करते हुए लंड को थोड़ा सा आगे पीछे किया और फिर अपने दांत भींच कर लंड को बाहर तक निकाल के जोरदार धक्का मार दिया. इस बार पूरा लंड जड़ तक घुस गया पद्मिनी की चूत में. हाय राम मार डाला रे, आपको तो जरा भी दया नहीं आती अपनी बहू पे. ऐसे बेरहमी से घुसा दिया जैसे कोई बदला निकाल रहे हो मेरी चूत से!” पद्मिनी चिढ़ कर बोली.
“बदला नहीं पद्मिनी , ये तो लंड का प्यार है तेरी चूत के लिए!” मैंने उसे चूमते हुए समझाया.
“रहने दो पापा जी, देख लिया आपका प्यार. धीरे धीरे आराम से घुसाते तो क्या शान घट जाती आपके लंड की? पराई चीज पे दया थोड़ी ही न आती है किसी को!”
पद्मिनी की बात सुन के मुझे हंसी आ गई- पद्मिनी बेटा, तेरी चूत पराई नहीं है मेरे लिए; पर मेरा लंड इसी स्टाइल में घुसता है चूत में!
मैंने कहा.
“चाहे किसी की जान ही निकल जाये आप तो अपने स्टाइल में ही रहना. मम्मी जी को भी ऐसे ही सताते होगे आप?”
“बेटा, तेरी सासू माँ की चूत तो बुलन्द दरवाजे जैसी हो गई थी , उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था चाहे हाथ ही घुसा दो कोहनी तक!”
“तो मेरी चूत भी आप इंडियागेट या लालकिले जैसी बना दोगे इसी तरह बेरहमी से अपना मोटा लंड घुसा घुसा के?” पद्मिनी ने मुझे उलाहना दिया.
“अरे नहीं पद्मिनी बेटा, अभी तेरी उमर ही क्या है, 20 -21 की होगी. अभी तेरी चूत तो यूं ही टाइट रहेगी सालों साल तक और किसी कुंवारी लड़की की कमसिन चूत की तरह मज़ा देती रहेगी मुझे.” मैंने पद्मिनी को मक्खन लगाया और उसके निप्पल चुटकी में भर के उसका निचला होंठ चूसने लगा.
“हुम्म… चिकनी चुपड़ी बातें करवा लो आप से तो!” पद्मिनी बोलीं और मेरे चुम्बन का जवाब देने लगी और उसकी दोनों बांहें अब मेरी गर्दन से लिपट गईं थीं. फिर पद्मिनी ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी जिसे मैं चूसने लगा. मेरा मुखरस बह बह के पद्मिनी नी के मुंह में समाने लगा फिर पद्मिनी ने मेरी जीभ अपने मुंह में ले ली और जीभ से जीभ लड़ाने लगी.
“पापा एक बात बताओ?” पद्मिनी ने चुम्बन तोड़ कर मुझसे कहा.
“पूछो बेटा?”
“आपको मुझसे दूर होकर नींद आ गयी थी क्या ?”
“ पद्मिनी बेटा, मैं सुबह से ही देख रहा था कि तुम मेरी नज़रों से बच रही थी, आंख झुका के बात कर रहीं थीं तो मुझे लगा कि हमारे बीच बन गए सेक्स के रिश्ते का तुम्हें पछतावा है और तुम अब वो सम्बन्ध फिर से नहीं बनाना चाहतीं, इसीलिए मैं अलग सो गया था.”
अब तुम बताओ तुम्हारे मन में क्या चल रहा था?” मैंने कहा.
“पापा , मैं शुरू से बताती हूँ पूरी बात. मैं शादी के समय भी बिल्कुल कोरी कुंवारी थी. फिर उसके बाद आप मेरे जीवन में अचानक अनचाहे ही आ गए.. मैं भी यही जानती थी कि सेक्स ऐसा ही होता होगा. कभी सोचा या कल्पना तक नहीं की थी उस आनन्द के बारे में जिससे आपने मुझे परिचित कराया, जिससे मैं तब तक अनजान थी.”
“फिर मैं आपसे बार बार सेक्स करने को बेचैन, बेकरार रहने लगी और उसके बाद हमारे बीच कई बार सम्बन्ध बने.”
“पापा मेरे बदन को आज तक सिर्फ आपके बेटे ने और आपने ही भोगा है किसी अन्य पुरुष ने कभी गलत नियत से छुआ भी नहीं है पहले. आपसे सम्बन्ध बनने के बाद जब मैं यहाँ आ गयी तो मुझे अपने पति के साथ सहवास में वो आनन्द और तृप्ति नहीं मिली जो आप के साथ मिलन में मिली थी. मेरे संस्कार मुझे धिक्कारने लगे, अपने किये का पछतावा होने लगा मुझे. मन पर एक बोझ सा रहने लगा हमेशा, जैसे कोई महापाप हो गया हो मुझसे. सोच लिया था कि अब और नहीं करना वो सब; क्योंकि मन पे पड़ा बोझ बहुत तकलीफ देता है.” पद्मिनी बोली.
“ पद्मिनी , फिर उसके बाद क्या हुआ तुम खुद नंगी होकर मेरे पास आ रही थी?” मैंने पूछा और अपने लंड को उसकी चूत में दो तीन बार अन्दर बाहर किया. उसकी चूत अब खूब रसीली हो उठी थी और लंड बड़े आराम से मूव करने लगा था.
“हाँ पापा , आज जब हम डिनर करके उठ गए तो मैं भी घर का काम समेट कर, मन को पक्का करके लेट गयी थी कि अब आपके साथ वो सम्भोग का रिश्ता फिर से बिल्कुल नहीं बनाना है. लेकिन बहुत देर तक मुझे नींद नहीं आई. जो कुछ सोच रखा था वो सब उड़ गया दिमाग से… मैं वासना की अगन में जलने लगी, मेरा रोम रोम आपको पुकारने लगा और आपका प्यार पाने को, आपके लंड से चुदने को मेरा बदन रह रह कर मचलने लगा. मेरी चूत में बार बार तेज खुजली सी मचती और वो आपके लंड की आस लगाये पानी छोड़ने लगती, थोड़ी देर मैंने अपनी उंगली भी चलाई इसमें पर अच्छा नहीं लगा. और मैं यूं ही छटपटाती रही बहुत देर तक.”
“कई बार मन ही मन चाहा भी कि आप आओ और मुझ में जबरदस्ती समा जाओ; मैं ना ना करती रहूँ लेकिन आप मुझे रगड़ रगड़ के चोद डालो अपने नीचे दबा के. लेकिन आप नहीं आये. फिर टाइम देखा तो दो बजने वाले थे, मुझे लगा कि ऐसे तो जागते जागते मैं पागल ही हो जाऊँगी. अभी कई रातें साथ रहना है कोई कहाँ तक सहन करेगा ऐसे. अब जो होना है वो होने दो यही सोच कर मैंने अपनी नाइटी उतार फेंकी. ब्रा और पैंटी तो मैंने पहनी ही नहीं थी और नंगी ही आ रही थी आपके पास. उधर से आप भी मेरे पास चले आ रहे थे बिना कपड़ों के…” पद्मिनी ने अपनी बात बताई.
पद्मिनी के मुंह से चूत लंड शब्द सुनकर मुझे आनन्द आ गया.
“ पद्मिनी , अब तो कोई पछतावा नहीं होगा न?” मैंने पूछा.
“नहीं पापा, अब कुछ नहीं सोचना इस बारे में, जो हो रहा है होने दो. आप तो जी भर के लो मेरी. जैसे चाहो वैसे चोदो मुझे, मैं पूरी तरह से आपकी हूँ. लाइफ इस फॉर लिविंग!” पद्मिनी खुश होकर बोली और मुझसे लिपट गयी.
“तो लो फिर!” मैंने कहा और उसकी चूत में हल्के हल्के मध्यम रेंज के शॉट्स मारने शुरू किये.
जल्दी ही पद्मिनी अपने चूतड़ उठा उठा के जवाब देने लगीं.
उस अंधेरे में स्त्री पुरुष, नर मादा का सनातन खेल चरम पर पहुंचने लगा. पद्मिनी मेरे लंड से लय ताल मिलाती हुई चुदाई में दक्ष, पारंगत कामिनी की तरह अपनी चूत उठा उठा के मुझे देने लगी. पद्मिनी की चूत से निकलती फच फचफच फचाफच फचा फच की आवाजें, नंगे फर्श पर गिरते उसके कूल्हों की थप थप और उसके मुंह से निकलती कामुक कराहें ड्राइंग रूम में गूंजने लगीं.
“पापा , जोर से चोदो… हाँ ऐसे ही. अच्छे से कुचल दो मेरी चूत… आह… आह… क्या मस्त लंड है आपका…” पद्मिनी अपनी ही धुन में बहक रही थी अब.
अंधेरे कमरे में नंगे फर्श पर चूत मारने का वो मेरा पहला अनुभव था; मेरे घुटने और कोहनी फर्श पर रगड़ने से दर्द करने लगे थे लेकिन चुदाई में भरपूर मज़ा भी आ रहा था. पद्मिनी कमर उठा के मेरे धक्कों का प्रत्युत्तर देती और फिर उसके नितम्ब फर्श से टकराते तो अजीब सी पट पट की उत्तेजक ध्वनि वातावरण को और भी मादक बना देती.
इसी तरह चोदते चोदते मेरे घुटने जवाब देने लगे तो मैंने पद्मिनी को अपने ऊपर ले लिया. अब चुदाई की कमान बहूरानी की चूत ने संभाल ली और वो उछल उछल के लंड लीलने लगी. मैंने उसके मम्मे पकड़ लिए और उन्हें दबाने लगा.
कोई दो मिनट बाद ही पद्मिनी मेरे ऊपर से उतर गई- पापा मेरे बस का नहीं है ऐसे. फर्श पर मेरे घुटने छिल जायेंगे. आप मेरे ऊपर आ जाओ.
वो बोली.
अतः मैंने फिर से पद्मिनी
को अपने नीचे लिटा लिया और उसे पूरी स्पीड से चोदने लगा. जल्दी ही हम दोनों मंजिल पर पहुंचने लगे. पद्मिनी मुझसे बेचैन होकर लिपटने लगी; और अपनी चूत देर देर तक ऊपर उठाये रखते हुए लंड का मज़ा लेने लगी. जल्दी ही हम दोनों एक साथ झड़ने लगे. पद्मिनी ने अपने नाखून मेरी पीठ में गड़ा दिए और टाँगे मेरी कमर में लपेट कर कस दीं. मेरे लंड से रस की पिचकारियां छूट रहीं थीं तो उधर पद्मिनी की चूत भी सुकड़-फैल कर मेरे लंड को निचोड़ रही थी.
थोड़ी देर बाद ही पद्मिनी का भुज बंधन शिथिल पड़ गया साथ ही उसकी चूत सिकुड़ गई जिससे मेरा लंड फिसल के बाहर निकल आया.
“थैंक्स पापा , 2 दिनों बाद आज मैं तृप्त हुई.” वो मुझे चूमते हुए बोली.
“क्यों, मेरा बेटा तुझे मज़ा नहीं देता क्या?”
“वो भी देते हैं लेकिन कुछ देर के लिए ; लेकिन आपके मूसल जैसे लंड की ठोकरें खाने में मेरी चूत को जो आनन्द और तृप्ति मिलती है वो अलग ही होती है, उसका कोई मुकाबला नहीं. आपका बेटा तो ऐसे संभल संभल कर करता है कि कहीं चूत को चोट न लग जाए, उसे पता ही नहीं कि चूत को जितना बेरहमी से ‘मारो’ वो उतनी ही खुश होती है.”
“हहाहा, पद्मिनी वो धीरे धीरे सही हो जाएगा.
“ठीक है पापा , अच्छा चलो अब सो जाओ. साढ़े तीन से ऊपर ही बजने वाले होंगे पूरी रात ही निकल गयी जागते जागते” पद्मिनी बोली.
“अभी थोड़ी देर बाद सोयेंगे. आज अंधेरे में चुदाई हो गई, तेरी चूत के दीदार तो हुए ही नहीं अभी तक. बत्ती जला के अपनी चूत के दर्शन तो करा दे, जरा दिखा तो सही; 2 दिन हो गए देखे हुए!” मैं बोला.
“पापा , कितनी बार तो देख चुके हो मेरी चूत को, चाट भी चुके हो. अब तो आपको ये दो दिन बाद बुधवार को ही मिलेगी.”
“ऐसा क्यों? कल और परसों क्यों नहीं दोगी?”
“पापा , अब सुबह होने वाली है. दिन निकलते ही सोमवार शुरू हो जाएगा. सोमवार को मेरा व्रत होता है और मंगल को आपका. अब तो बुधवार को ही दूंगी मैं!”
“चलो ठीक है. लेकिन अभी एक बार दिखा तो सही अपनी चूत!” मैंने जिद की.
पद्मिनी उठी और लाइट जला दी, पूरे ड्राइंग रूम में तेज रोशनी फैल गयी. पद्मिनी को पूरी नंगी देखा. कुछ भी तो नहीं बदली थी वो. वही रंग रूप, वही तने हुए मम्में, केले के तने जैसी चिकनी जांघे और उनके बीच काली झांटों में छुपी उसकी गुलाबी चूत.
मैंने पद्मिनी को पकड़ कर सोफे पर बैठा लिया और उसका एक पैर अपनी गोद में रखा और दूसरा सोफे पर ऊपर फैला दिया जिससे उसकी चूत खुल के सामने आ गयी. मैंने झुक के देखा और चूम लिया चूत को… चूत में से मेरे वीर्य और उसके रज का मिश्रण धीरे धीरे चू रहा था जिसे पद्मिनी ने पास रखी नैपकिन से पौंछ दिया.
“
“ठीक है अब जाने दो, मुझे फर्श साफ़ कर दूं. देखो कितना गीला हो रहा है”
“तुम्हारी चूत ने ही तो गीला किया है इसे.” मैंने हंसी की.
“अच्छा … आपका लंड तो बड़ा सीधा है न. उसमें से तो कुछ निकला ही न होगा, है ना?”
पद्मिनी ऐसे बोलती हुई किचन में गयी और पौंछा लाकर फर्श साफ़ करने लगी. मैं नंगा ही दीवान पर लेट गया और सोने लगा.
“पापा जी, ऐसे मत सोओ कुछ पहन लो. अभी सात बजे काम वाली मेड आ जायेगी, और आकाश भी उठ जायेंगे अच्छा नहीं लगेगा.”
“ठीक है बेटा!” मैंने कहा और चड्ढी पहन कर टी शर्ट और लोअर पहन लिया.
फिर कब नींद आ गयी पता ही न चला. २ दिन बाद आकाश ने कहा की हम अगले दिन मुंबई वापस चल रहे हे इसलिए उसके दोस्तों ने अलवर में एक पार्टी रखी हे वो उसमे जा रहा हे और अगले दिन सुबह तक आएगा ,मेने और पद्मिनी ने एक दूसरे की आँखों में देखा ,आकाश चला गया , अतः मैंने शाम को रोमांटिक बनाने के लिए पद्मिनी को आउटिंग पर ले जाने और बाहर ही डिनर करने का प्रस्ताव रखा जिसे पद्मिनी ने तुरंत हंस कर मान लिया.
“ठीक है पापा , पहले मॉल में चलेंगे मुझे शॉपिंग करवा देना, आप फिर वहीं पर किसी अच्छे रेस्तरां में डिनर भी करवा देना. फिर घर लौट के मैं आपको बढ़िया सरप्राइज दूंगी बिस्तर में.” पद्मिनी रहस्य भरी मुस्कान के साथ बोली.
“क्या, सरप्राइज दोगी बिस्तर में? मैं कुछ समझा नहीं पद्मिनी ?” मैंने अचंभित होकर पूछा.
“इंतज़ार करो पापा . अभी थोड़ा सस्पेंस रहने दो.”
“ओके माय डिअर बेबी, एज यू लाइक.” मैंने भी कहा और पद्मिनी के मम्में सहला दिए.
शाम को साढ़े पांच बजे के करीब हम लोग निकले. पद्मिनी बड़ी सजधज कर टिपटॉप होकर आयी थी; मुझे भी कुछ यूं लग रहा था जैसे मैं फिर से अट्ठाईस साल का जवान हो गया हूँ और साथ में मेरी गर्लफ्रेंड चल रही है जिसे रात में जी भर के चोदना है.
ये सब सोचते ही मन उमंग तरंग से भर उठा. पार्किंग से मैंने गाड़ी निकाली और पद्मिनी को अपने बगल में आगे बैठा के गाड़ी बढ़ा दी. साथ में मन में पद्मिनी की सरप्राइज वाली बात भी हलचल मचा रही थी.
मॉल पहुँचते पहुँचते टाइम छः से ऊपर ही हो गया, अंधेरा होने लगा था और मॉल में अच्छी चहल पहल हो गई थी. नयी नयी रंगीन तितलियां टाइट जींस टॉप पहले हुए, टॉप में से अपने मम्मों का नजारा दिखलातीं हुई, हाथ में बड़ा वाला स्मार्ट फोन लिए अपने मम्में मटकाती इठलाती हुई घूम रहीं थीं.
मैं और पद्मिनी भी किसी प्रेमी युगल की तरह एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए दुकानों के नज़ारे देखते जा रहे थे. बीच बीच में पद्मिनी को जो चाहिए होता वो खरीदती जा रही थी.
परफ्यूम, शैम्पू, नाईट गाउन, डिज़ाइनर ब्रा और पैन्टीज के सेट इत्यादि और मेरे लिए एक शर्ट और टाई भी पद्मिनी ने पसन्द की; सामान के चार पांच बैग्स मैं ही ले के चल रहा था. यूं ही घूमते घामते, खरीदारी करते करते सवा नौ बज गए; अब भूख भी जोर से लगने लगी थी अतः बहूरानी की पसन्द के रेस्तरां में हमने बढ़िया डिनर लिया.
घर लौटते लौटते ग्यारह के ऊपर ही टाइम हो गया.
घर पहुँचते ही शॉपिंग बैग्स वहीं सोफे पर फेंक के मैंने पद्मिनी को दबोच लिया.
“पापा जी, थोड़ा रुको तो सही. बस दो मिनट. पहले मैं सू सू कर लूं. फिर पूरी तरह से आपकी!”
“ओके डार्लिंग बेबी, ट्रीट योरसेल्फ वेल!”
“बस अभी आती हूँ.” पद्मिनी बोली और वाशरूम में घुस गयी.
पद्मिनी के वाशरूम में घुसते ही तेज सीटी की आवाज सुनसान घर में गूंजने लगी. ये चूत से निकलती सीटी मुझे सुनने में बहुत मजेदार लगती है और पद्मिनी की चूत तो सू सू करते टाइम ऐसे सीटी निकालती है जैसे कहीं लगातार घुंघरू से बज रहे हों.
कुछ ही समय बाद हम दोनों ससुर बहू पद्मिनी के बेडरूम में मादरजात नंगे एक दूसरे की बांहों में लिपटे पड़े थे. मैं पद्मिनी के मम्में गूंथते हुए उसके गाल काट रहा था और पद्मिनी मुझसे बचने के लिए अपना मुंह दायें बाएं हिला रही थी.
“बस करो पापा अब… नीचे वाली की भी कुछ खबर लो!” पद्मिनी अपनी चूत पर हाथ फेरती हुई बोली.
मैं पद्मिनी का बदन चूमते हुए नीचे की तरफ उतरा, होंठ चूसने के बाद गला दोनों दूध पेट नाभि और जांघें; इन सबको चूमते चाटते मैं उसकी गुलाबी जांघों पर ठहर गया. जवान औरत की नंगीं जांगहें चाटने का अपना एक अलग ही किस्म का मज़ा आता है. पद्मिनी की चूत से दालचीनी जैसी गंध उठ रही थी. मैंने मस्त होकर उसके दोनों बूब्स पकड़ लिए और जांघों को चाटते चाटते चूत के होंठ चाटने लगा.
पद्मिनी अपनी चूत अच्छे से धो कर आईं थीं सो हल्का सा गीलापन और पानी की नमी अभी भी थी चूत में. मैं पूरी तन्मयता के साथ पद्मिनी की जांगहें और चूत का त्रिभुज चूम चूम के चाटे जा रहा था और पद्मिनी अपनी एड़ियाँ बेड पर रगड़ते हुए कामुक सिसकारियां निकाल रही थी.
“हाय पापा , खा जाओ मेरी चूत को, ये लो.” पद्मिनी बोली और अपनी चूत की फांकें दोनों हाथों से धीमे से खोल दी.
मैंने भी अपनी जीभ उसकी चूत के दाने पर रख दी और उसके निप्पल निचोड़ता हुआ चाटने लगा. बीच बीच में मैं उसकी चूत के दाने को थोड़ा जोर से दांतों में दबा लेता जिससे पद्मिनी उत्तेजना के मारे उछल जाती और मेरे बाल मुट्ठी में भर लेती.
ऐसे करने से पद्मिनी कुछ ही देर झेल पाई और उसकी चूत का बांध टूट गया, वो भलभला के झड़ गयी और बदन को ढीला छोड़ के गहरी गहरी सांसें लेने लगी.
“अब आप लेट जाओ पापा!”
मेरे लेटते ही पद्मिनी ने मेरा लंड पकड़ लिया और जल्दी जल्दी आठ दस बार इसे मुठियाया और फिर सुपारा मुंह में भर लिया और मेरी तरफ मुस्कुरा के देखती हुई चूसने लगी. लंड चूसने में तो पद्मिनी को विशेष योग्यता प्राप्त है. लंड कैसे कहाँ से पकड़ना है कैसे चाटना है, लंड को हाथ से छोड़ के जीभ से कैसे छूना चाटना और मुंह में लेना है; ये सब कला वो बखूबी जानती है.
कुछ देर पद्मिनी ने सुपारा चूसने के बाद लंड छोड़ दिया और सुपारा भी मुंह से बाहर निकाल दिया और एक जोरदार चटखारा लिया जैसे कोई पसंदीदा चाट खा कर स्वाद लेते हुए चटखारे लेते हैं या कोई बच्चा अपने मन पसन्द खिलौने से खेल कर हर्षित होता है.
मेरा तमतमाया हुआ लंड छत की तरफ मुंह उठाये किसी खम्भे जैसा खड़ा था, पद्मिनी की लार नीचे बह बह के मेरे अण्डों को भिगो रही थी. बहूरानी ने लंड को फिर से चूमा और फिर से इसे चूस चूस कर लाड़ प्यार करने लगी साथ में दूसरे हाथ से अपनी चूत भी सहलाती मसलती जा रही थी.
“पापा जी, अब जल्दी से अपना झंडा गाड़ दो मेरी चूत में.” वो बोली और मेरे बगल में लेट गयी.
मैंने भी देर न करते हुए अपनी पोजीशन ले ली, मुझे भी निपटने की जल्दी थी, आधी रात कब की गुजर चुकी थी मेरे पास बस यही रात थी. कल सुबह को आकाश अलवर से वापिस लौट रहा था.
यही सोचते हुए मैंने अपना लंड पद्मिनी की चूत से सटाया और एकदम से पेल दिया लेकिन लंड फिसल गया, मैंने फिर से उसकी चूत के छेद पर लंड को बिठाया और धकिया दिया आगे.
लेकिन नहीं, पद्मिनी की चूत का दरवाजा तो जैसे सील बंद था.
मैंने पद्मिनी की ओर देखा तो वो हंस रही थी.
“ पद्मिनी तू हंस क्यों रही है?”
“घुसाओ पापा , पूरी ताकत लगा दो लंड की.” पद्मिनी बोली और वो हंस दी.
मैं भी अचंभित था, जिस चूत को मैं पहले बीसों बार चोद चुका था, जिस चूत के मुहाने पर लंड रखते ही वो लंड को गप्प से लील जाती थी आज वही चूत किसी सील बन्द कुंवारी कन्या की चूत की तरह टाइट सील बंद सी लग रही थी.
मैंने फिर से चूत को अपने हाथों से खोला और चूत के भीतर का जायजा लिया. पद्मिनी की चूत की सुरंग जैसे चिपक गयी थी, ‘एडमिशन क्लोज्ड’ जैसी स्थिति लग रही थी.
“ओये पद्मिनी … ये तेरी चूत आज इतनी तंग कैसे हो गयी किसी बच्ची की चूत की जैसे?”
“पापा , मैंने कहा था न आपसे कि आपको बेड में सरप्राइज दूंगी. यही सरप्राइज है. अब आप ताकत से लंड घुसाओ और जीत लो मुझे!” पद्मिनी जैसे चैलेंज भरे स्वर में बोली.
“अच्छा. देखता हूँ. अभी लो.” मैंने कहा और उसकी चूत को अच्छे से खोल कर चाटना शुरू किया और अपनी बीच वाली उंगली थूक से गीली करके चूत में घुसाई. बड़ी मुश्किल से दो पोर ही घुसीं थीं कि आगे रास्ता बंद मिला.
उधर पद्मिनी मुझे देख देख के मन्द मन्द मुस्कुरा रही थी- क्या हुआ पापा, आपकी उंगली भी नहीं घुस रही है अपना मूसल कैसे घुसाओगे मेरी छुटकी में?
“तेरा सरप्राइज अच्छा लगा पद्मिनी , अभी देख कैसे घुसता है तेरी छुटकी में!” मैंने कहा और उठ कर पद्मिनी की ड्रेसिंग टेबल से हेयर आयल की शीशी में से तेल लेकर लंड को अच्छे से चुपड़ लिया और दो तीन बार फोरस्किन को आगे पीछे कर के लंड को चूत के द्वार पर रखा और धीरे धीरे ताकत से आगे धकेलने लगा.
ऐसे तीन चार बार करने से मेरी कोशिश रंग लायी और मेरा सुपाड़ा पद्मिनी की चूत में घुसने में कामयाब हो गया. मैं इसी पोजीशन में गहरी गहरी सांसें भरता हुआ लंड को आगे पीछे डुलाता रहा. कुछ ही देर में लगा की चूत कुछ नर्म पड़ गयी है. बस अब क्या था; पद्मिनी के दोनों मम्में कस कर दबोच कर लंड को पूरी ताकत से फॉरवर्ड कर दिया उसकी चूत में.
इस बार पूरा लंड जड़ तक समा गया पद्मिनी हू की चूत में. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा लंड किसी ने अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ताकत से दबा रखा हो.
उधर पद्मिनी के चेहरे पर तकलीफ के चिह्न दिखाई दिए.
“वेलडन, पापा… यू हेव डन इट. नाउ फ़क मी लाइक एनीथिंग.” पद्मिनी मुझे चूमते हुए बोली.
“वो तो अब चोदूँगा ही तेरी चूत को. मैंने अधीरता से पूछा.
“ मैंने कहा और बहूरानी की तंग चूत में अपना मूसल पेलने लगा.
थोड़ी देर की मेहनत के बाद चूत की पकड़ कुछ लूज हुई तो लंड आराम से मूव करने लगा. बस फिर क्या था, मैंने पद्मिनी के दोनों पैर अपने कन्धों पर रखे और उसकी दोनों चूचियां दबोच के चुदाई शुरू कर दी, पहले आराम से धीरे धीरे, फिर तेज और तेज फिर पूरी बेरहमी से. ऐसा लग रहा था जैसे किसी नयी नवेली चूत की पहली पहली चुदाई हो रही हो.
पद्मिनी भी मस्ता गयी अच्छे से और कमर उठा उठा के हिचकोले खाती हुई लंड का मज़ा लेने लगीं.
मैं थोड़ी देर रिलैक्स करने के लिए रुक गया. मेरे रुक जाने से पद्मिनी ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जैसे आंखों ही आंखों में पूछ रही हो कि रुक क्यों गए.
“बस पद्मिनी एक मिनट” मैंने कहा और लंड को उसकी चूत से बाहर खींच लिया. चूत से ‘पक्क’ जैसी आवाज निकली जैसे कोल्ड ड्रिंक का ढक्कन ओपनर से खोलते टाइम निकलती है.
पद्मिनी की चूत रस से सराबोर होकर बहने लगी थी, मैंने नेपकिन से उसकी चूत और अपने लंड को अच्छे से पोंछा और चूत में उंगली घुसा कर भीतर की चिकनाई निकाल कर अपने टोपे पर चुपड़ी और पद्मिनीको घोड़ी बना कर लंड को फिर से चूत के ठीये पर रख कर धकेल दिया.
इस बार भी लंड को ठेलना पड़ा तब जा के रगड़ता हुआ घुस पाया.
“आह…धीरे पापा . चूत की चमड़ी खिंच रही है.” पद्मिनी बोली.
“ पद्मिनी तुम्ही ने तो अपनी चूत कस ली है, अब लंड को थोड़ा सहन करो.” मैंने कहा और धीरे धीरे चोदने लगा पद्मिनी को.
एकाध मिनट की चुदाई के बाद पद्मिनी की चूत रसीली हो उठी और लंड चूत में सटासट चलने लगा.
“आह… वंडरफुल चुदाई… लव यु माय ग्रेट पापा.” वो बोली और अपनी चूत ऊपर उठा दी.
मैं भी थोड़ा सा ऊपर को खिसका और जम के धकापेल उसकी चूत बजाने लगा. पद्मिनी की चूत बिल्कुल वैसा मज़ा दे रही थी जैसे किसी कुंवारी गर्लफ्रेंड की चूत देती है.
बेडरूम में पद्मिनी की कामुक कराहें और उसकी चूत से निकलतीं फचफच फचाफाच की आवाजें गूंज रहीं थीं उसकी चूत मेरे लंड से लोहा लेती हुई संघर्षरत थी.
जल्दी ही हम दोनों मंजिल के करीब जा पहुंचे और पद्मिनी कामुक किलकारियां निकालती हुई कमर उछालने लगी और फिर उसने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और टाँगे मेरी कमर में लपेट कर झड़ने लगी.
मैंने भी आठ दस धक्के पूरी ताकत से लगाये; पद्मिनी अपनी बांहों और टांगो से मुझे जकड़े थी जिससे मेरे धक्कों से उसका बदन उठता और गिरता था लेकिन वो मुझसे चिपटी रही और कुछ ही पलों में लंड जैसे फटने को हुआ और रस की फुहारों से चूत को भरने लगा और शीघ्र ही वीरगति को प्राप्त होकर निढाल बाहर निकल गया.
फिर उस रात हम दोनों नंगे ही लिपट कर बेसुध होकर सो गए.
हमेशा की तरह पांच बजे मेरी नींद खुल गयी, पद्मिनी का एक हाथ अभी भी मेरी गर्दन में लिपटा था और वो नींद में किसी अबोध शिशु की तरह गहरी गहरी सांसें लेती हुई निद्रामग्न थी. उसके नग्न उरोज सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.
जैसा कि सुबह सुबह होता ही है, मेरे लंड महाराज टनाटन तैयार खड़े थे मन तो हुआ कि नंगी पद्मिनी के पैर खोल कर लंड चूत में पहना कर फिर से आँख मूंद कर पड़ा रहूँ. लेकिन पद्मिनी को जगाने का दिल नहीं किया सो चुपके से पद्मिनी के आगोश से निकलने लगा.
जैसे ही उसका हाथ अपनी गर्दन से हटाया वो जाग गयी- ऊंऊं… कहाँ जा रहे हो पापा? उसने मुझे फिर से लिपटा लिया.
“अरे सुबह हो गयी, मैं तो जल्दी उठ जाता हूँ न. तू सोती रह आराम से!”
“नहीं, आप भी यहीं रहो मेरे पास.” पद्मिनी ने मुझे फिर से लिपटा लिया.
थोड़ी ही देर में पद्मिनी को मस्ती चढ़ने लगी और उसने मेरा लंड पकड़ के खेलना शुरू कर दिया फिर मेरी कमर में अपना पैर फंसा कर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मुझे चूमने लगी. मैंने भी उसकी टांगें खोल के लंड को बहु की चूत पर रखा और धीरे से घकेल दिया भीतर.
“बस अब चुपचाप लेटे रहो पापा, धक्के नहीं लगाना.” वो बोली.
मुझे पता था इस पोजीशन का भी अपना अलग ही आनन्द है. चूत में लंड फंसाए पड़े रहो बस. ऐसी पोजीशन में भी बदन में अजीब सी सनसनाहट, सुरसुरी होती रहती है और फिर एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि दोनों पार्टनर मिसमिसा कर लिपट जाते हैं और चूत लंड की लड़ाई होने लगती है.
हुआ भी वही. हम लोग ऐसे ही एक दूसरे के अंगों का आनन्द महसूस करते चिपटे हुए लेटे रहे. लगभग आधे घंटे बाद लंड अनचाहे ही चूत में अन्दर बाहर होने लगा, उधर चूत भी प्रत्युत्तर देने लगी, हमारे होंठ एक दूसरे से लड़ने लगे. पद्मिनी की जीभ पता नहीं कब मेरे मुंह में घुस गयी और वो करवट लिए लिए ही अपनी चूत चलाने लगी. जल्दी ही लंड ने लावा उगल दिया और चूत फैल सिकुड़ कर लंड को निचोड़ने लगी.
सुबह की धूप बेडरूम में खिड़की से झांकने लगी थी. हमारे नंगे जिस्म अभी भी चुदाई की खुमारी में थे.
“उठने दो पापा. आकाश आ जायेंगे सात बजे!”
“अरे अभी छह ही तो बजे हैं, चली जाना.”
“नहीं पापा. उठो आप भी और ड्राइंग रूम में सो जाओ. मैं बिस्तर ठीक कर दूं. आकाश आपको यहाँ सोते देख पता नहीं क्या सोचे… अच्छा नहीं लगेगा.” पद्मिनी नी ने अपनी चिंता जताई.
पद्मिनी की समझदारी पर मैं भी खुश होता हुआ बिस्तर से निकल गया.