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Incest सीड्स ऑफ़ लस्ट (Seeds Of Lust)

Tiger 786

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UPDATE 10:


अगले दिन मैं वाणी को छोड़ने उसके घर मेरठ चल दिया, हम सुबह ९ बजे घर से निकले थे। रोमा ने अच्छे से वाणी को विदा किया था, रोमा को देखने से कंही भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था के वो रात की घटना से परिचित है। पर मेरे मन में उथल पुथल मची थी, उसके नाज़ुक अंगों का स्पर्श मेरी हथेलियों पर एक यादगार पल के रूप में अंकित था।

रात की घटना को लेकर, बस में साथ सफर करते हुए मैंने वाणी से पूछा "क्या वो रात के बारे में जानती है?" मेरी आवाज़ में फुसफुसाहट थी।

वाणी ने मेरे हाथ में अपनी उंगलियां फंसा दी और मेरे कान के पास अपना मुंह झुका के उसने जवाब दिया "नहीं, उसे लगता है मैं उसकी चूचियां दबा रही थी ?"

"क्या सच में?" मैंने हैरत से पूछा, मेरी आवाज़ बहुत धीमी थी हमारे आगे पीछे बैठे लोग हमे नहीं सुन सकते थे।

"हम्म, तुम्हारे आने से पहले हमने बहुत मस्ती की थी" उसने एक प्यारी सी मुस्कान के साथ जवाब दिया।

"कैसी मस्ती?" मैंने फुसफुसाते हुए पूछा, "वैसी ही जैसी तुम उसके साथ कर रहे थे" वो मुस्कुरायी, मैं समझ गया के दोनों महिलाएं एक दूसरे के जिस्मो से खेल रहीं थी, वाणी ने मुझे पहले भी बताया था के वो पहले भी ऐसा कर चुकी हैं।

"एक बात बताऊँ, रात जिस तरह से तुम उसके मजे ले रहे थे उसे सोचकर मेरी अभी भी गीली हो रही है" वो मेरे कान में फुसफुसा के बोली और मेरी जांघ पर अपना हाथ रख दिया। "श…श वाणी ठीक से बैठ यार, आस पास तो देख ले?" मैंने थोड़ा झेंपते हुए उसे सतर्क किया।

उसने अपना हाथ मेरी जांघ से वापस खींच लिया। थोड़ी देर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही, मुझे रोमा की मदहोश कर देने वाली यादों ने फिरसे घेर लिया। तेज़ गति से दौड़ती बस में मैं खिड़की से बहार झांकते हुए, हरे भरे खेतों को पीछे छूटते देख रहा था।

"क्या हुआ ज़ादा याद आ रही अपनी प्यारी बहन की?" वाणी ने धीमे से मेरे कान में बोलते हुए मुझे छेड़ा, "पता नहीं यार बस उलझा हुआ हूँ, अंजाम को सोचकर" मैंने अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा।

"ओह हो! इतना मत सोचो, बस मज़े करो यार, थोड़ी सी हिम्मत और दिखानी है तुम्हे" उसने मुझे दिलासा सी दी। "ऐसा मैं और तू सोच रहे हैं, मुझे डर है के कंही वो बुरा मान गयी तो मुसीबत आ जाएगी" मैंने गंभीर होते हुए उससे कहा।

"ऐसा कुछ नहीं होगा, मेरी गारंटी है" वाणी ने स्पष्ट किया उसकी आवाज़ में विश्वास था।

"तुम बस उसे एक लड़की की तरह सोचो और उसे रिझाने के लिए जो कर सकते हो वो करो" उसने मुझे समझया "बाकी सारी चिंताए भूल जाओ", मैंने गर्दन हिला के अपनी सहमति जताई।

वो पूरा दिन मेरा सफर में ही गुज़र गया और में वाणी को उसके घर छोड़कर रात ९ बजे अपने घर लौट आया।

रात को खाने की टेबल पर मेरी नज़रें रोमा से मिली पर उसने अपनी नज़रें फेर ली, हमारे बीच एक खामोशी सी छाई रही। माँ ने हमारी खामोशी को शायद महसूस कर लिया था "क्या हुआ? तुम दोनों में झगड़ा हुआ है क्या?" माँ ने पहले मेरी तरफ और फिर रोमा की तरफ देखकर पूछा। "नहीं तो!" हम दोनों एक साथ बोले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। "तो फिर इतनी ख़ामोशी क्यूँ है?" माँ ने अपना सवाल दोहराया। "कुछ नहीं माँ मैं बस थोड़ा थका हुआ हूँ और एक काली बिल्ली मेरा रास्ता काट गयी थी" मैंने मुस्कुरा के रोमा की तरफ देखते हुए कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दी। जैसे ही रोमा को समझ आया के बिल्ली का शब्द उसके लिए था उसने अपनी आँखें बड़ी करके मुझे घूरते हुए कहा "अच्छा हुआ माँ, बिल्ली ने भईया का रास्ता ही काटा, कंही इन्हे काट लेती तो मुश्किल हो जाती" कह कर रोमा माँ की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगी।

"हम्म, अब आयी न घर में रौनक" माँ ने हँसते हुए कहा, "मैं तो कहता हूँ माँ हमे एक कटोरे में दूध भर के रोज़ बहार रख देना चाहिए, बेचारी बिल्लियां भूखी रहती हैं" मैंने बहुत गंभीर स्वर में माँ से कहा, माँ मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी।

रोमा के चेहरे पर बनावटी गुस्सा उभर आया "माँ समझा लो अपने लाडले को वर्ना बिल्ली ने अगर पंजा मार दिया तो गंजा कर देगी" उसने मेरी तरफ देखते हुए गुस्से में कहा हालाँकि वो सब बनावटी था।

"देखा माँ, मैंने इसका नाम भी नहीं लिया और बेचारी अपनी बिरादरी के लोगों के लिए कितना फील करती है," मैंने मुस्कुराते हुए रोमा को फिर से छेड़ते हुए कहा, रोमा ने चिढ़ कर अपना गिलास पकड़ा और मेरी तरफ उसका पानी उछाला मैं पानी से बचने के लिए पीछे को झुका और अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचा। वो खिलखिला के हंसने लगी क्यूंकि गिलास खाली था और उसने महज़ दिखावा किया था।

"अरे! पागल अभी गिर जाता मैं" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा, "तभी तो मज़ा आता" उसने हँसते हुए जवाब दिया

"अच्छा अच्छा बहुत हुआ तुम दोनों का, जल्दी खाना ख़त्म करो" माँ ने हस्तक्षेप करते हुए हमे डांटा।

हमने जल्दी से अपना खाना ख़त्म किया, मुझे ख़ुशी थी की अभी भी हमारा भाई बहन वाला प्रेम बरकरार था, ऊपरी तौर पर ही सही। हम दोनों ही अपने रिश्ते की मर्यादा और अपनी अनअपेक्षित भावनाओं से झूझ रहे थे।

अगले दिन सुबह के १० बज चुके थे और मैं आज कुछ ज़ादा ही देर से सो के उठा था, आमतौर पर रोमा मुझे जगा देती थी पर आज उसने भी मुझे जगाने की कोशिश नहीं की थी। मैं जल्दी से फ्रेश होकर नीचे किचन में पहुंचा और कुछ खाने के लिए ढूंढ़ने लगा, रोमा उस वक्त शायद अपने रूम में थी। बर्तनो के खड़कने की आवाज़ सुनकर वो अपने कमरे से बहार आयी और मेरे हाथ से प्लेट छींटे हुए बोली "तुम बैठो मैं नाश्ता लगाती हूँ "

मैं बिना कुछ बोले टेबल पर आकर बैठ गया, थोड़ी ही देर में वो मुझे कुछ ब्रेड टोस्ट और चाय दे गयी और फिर किचन में जाके अपना अधूरा काम निपटाने लगी।

मैं नाश्ता करते हुए रोमा को ही देख रहा था, वो हरे रंग की एक शर्ट और सफ़ेद लॉन्ग स्कर्ट में बहुत ही सुन्दर और शालीन लग रही थी, उसके शरीर के हिलने से उसकी भारी गांड में कम्पन होता और उसकी ढीली स्कर्ट थिरकने लगती, मुझे ये दृश्य बहुत ही मोहक लग रहा था।

तभी मेरे फ़ोन की तीव्र घंटी हवा में गूंज उठी, ध्वनि ने मुझे मेरे विचारों से झकझोर दिया। मैं कुर्सी से उछल पड़ा, रोमा ने पलट कर मेरी तरफ देखा। जैसे ही मैंने टेबल से फोन उठाया, मेरा दिल जोरों से धड़क गया। स्क्रीन पर लिखा था 'अलाया होटल्स एंड रिसॉर्ट्स'।

"हैल्लो?" मैंने तनाव से कर्कश स्वर में उत्तर दिया।

"रवि, मैं अलाया होटल्स से प्रीती गौर बोल रही हूँ," दूसरी ओर से आवाज आई, "मैं यह जानना चाहती हूँ के क्या आप हमे ज्वाइन कर रहे हैं या नहीं?"

मेरा हाथ फ़ोन के चारों ओर कस गया, दबाव के कारण प्लास्टिक चरमराने लगा। "मुझे... मैम मुझे कुछ और दिन चाहिए," मैंने हकलाते हुए कहा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। "कुछ फॅमिली में इमरजेंसी है।"

लेकिन दूसरी तरफ से मेरी याचना को अनसुना कर दिया गया. "देखो, रवि, हम अब और नहीं रुक सकते हमारी भी अपनी मजबूरियां हैं। यदि आप कल तक ज्वाइन नहीं कर सकते तो हमे फिर किसी और को आपकी जगह कंसीडर करना पड़ेगा।"

उसके शब्दों ने मेरे माथे पर पसीना ला दिया, मेरा वास्तविकता से फिरसे परिचय हुआ। मसूरी में वह नौकरी जिसका हिस्सा बनने के लिए मैं उत्सुक था, जिसने घटनाओं की इस पूरी श्रृंखला को गति दी थी, अब वह मुझे रोमा से दूर होने को विवश कर रही थी। मुझे अपने सीने में एक घबराहट महसूस हुई, "कल तक कैसे होगा मैम, मैं परसों तक कोशिश करूँगा ज्वाइन करने की" मैंने हड़बड़ाहट में कहा।

रोमा स्लैब की सफ़ाई करते हुए रुक गई, उसकी आँखें चिंता और जिज्ञासा के मिश्रण से मेरी ओर देख रही थीं। वह जानती थी कि मेरी नौकरी मेरे लिए महत्वपूर्ण थी, ये मेरे बेहतर जीवन के लिए और मेरे करियर की सफलता का टिकट था। लेकिन वह यह भी जानती थी कि मेरे दूर हो जाने से मैं संभवतः उस उग्र जुनून को भूल सकता था जो हमारे बीच पनप रहा था।

"ओके, परसों आपका इंतज़ार रहेगा पर अगर आप नहीं ज्वाइन कर पाए तो हम क्षमा चाहेंगे" उस महिला के शब्द थोड़े कठोर थे पर लहज़ा सहज था। "नहीं मैम, परसों पक्का मैं ज्वाइन कर लूंगा" मैंने एक बार फिरसे उसे भरोसा दिलाया, "OK Then, we will meet you day after tomorrow, बाई" कह कर उसने कॉल कट कर दी।

मैंने फ़ोन साइड में रखा और कुर्सी पर गिर पड़ा, मेरा दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। मैंने निराश होकर अपना दोपहर का भोजन समाप्त किया और ऊपर अपने कमरे में आ गया।

जैसे ही मैं अपने विचारों के कोलाहल में खो जाने वाला था, मेरे कमरे का दरवाज़ा चरमरा कर खुला। मैंने सर उठा कर ऊपर देखा तो रोमा वहाँ खड़ी थी, उसके हाथ में पानी का गिलास था। उसकी आँखें मेरे चेहरे पर नज़रें गड़ाए हुए थीं, हवा में छाए अचानक तनाव का स्पष्टीकरण ढूँढ़ रही थीं।

"सब ठीक तो है?" उसने धीरे से पूछा, उसकी आवाज में एक सौम्य दुलार था जिसने मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी।



मैंने सिर हिलाया, उससे पानी लिया और एक घूंट में पी लिया। "तुझे बताया था न नए ऑफर के बारे में," मैंने गिलास को साइड टेबल पर खनकते हुए रख दिया। "वे चाहते हैं कि मैं परसों तक ज्वाइन करूँ।"

रोमा के चेहरे के भाव बदल गए, उसके गालों की लाली फीकी पड़ने लगी। "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है? माँ भी अब ठीक हैं, तुम्हें भी आगे बढ़ना चाहिए" उसने विस्तार से समझाकर मुझे सांत्वना देने की कोशिश की।



उसके शब्द मेरी आत्मा पर चाकू की तरह थे। मैं जानता था कि वह सही थी, लेकिन उसे छोड़ने का, उससे अलग होने का विचार असहनीय था। "मैं बस जाना नहीं चाहता," मैंने कबूल किया, कमरे में मेरे शब्दों का बोझ भारी था।

रोमा ने मेरी ओर एक कदम बढ़ाया, उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ तलाश रही थीं। "तुम्हें जाना चाहिए," उसने धीरे से कहा, "यह तुम्हारे अच्छे के लिए है।"

उसके शब्द मुझे वास्तविकता में खींच रहे थे और उन वर्जित भावनाओ को नज़रअंदाज करने की कोशिश कर रहे थे। वो समझ रही थी, हमारे बीच का रहस्य, हमारी इच्छाएँ, वे कभी भी मेरे करियर से बड़ी नहीं हो सकतीं। मैंने सिर हिलाया, मेरे निर्णय का भार मेरे कंधों पर था। "मैं जनता हूँ," मैं बुदबुदाया, ये शब्द मेरे गले में अटक रहे थे।

रोमा ने एक गहरी साँस ली, उसकी आँखें मेरी आँखों से हट ही नहीं रही थीं। फिर वह पीछे हट गई, उसका हाथ मेरे कंधे से हट गया। "तो फिर जाने की तैयारी करो," उसने मुस्कुराहट के साथ कहा जो एकदम बनावटी थी। "तुम्हारे पास केवल एक दिन है।"

मैंने सिर हिलाया, हर गुजरते पल के साथ मेरे सीने में भारीपन बढ़ता जा रहा था। उसने जो शब्द कहे थे वे एक आदेश और एक सांत्वना थे जो सभी एक में समाहित हो गए थे। मैं जानता था कि वह सही थी; मुझे अपने काम और करियर को गंभीरता से लेना था। यह मेरे जीवन को पटरी पर रखने का एकमात्र तरीका था।

रोमा दरवाजे से मुझे आखिरी बार देखती हुई चली गई, उसकी आँखों में मेरी आँखों जैसा दुःख झलक रहा था। जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ, उस क्षण की अंतिम घड़ी मुझ पर टनों ईंटों की तरह गिरी। ऐसा लग रहा था मानो हमारे बीच एक दीवार खड़ी हो गई हो, जो उसी धूल से बनी हो जिसने हमें स्टोर रूम में घेर रखा था। यह अंतर असहनीय लग रहा था, सन्नाटा बहरा कर देने वाला था।

कांपते हाथों से, मैंने अपना लैपटॉप खोला, मैंने एक गहरी सांस ली और रोमा की गांड के उभार का मेरे लंड पर रोमांचकारी दबाव, मेरी हथेलियों के नीचे उसकी नरम सुडोल चूचियों के एहसास को दूर करने की कोशिश की। मुझे ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत थी, मुझे एक झूठा इस्तफ़ा टाइप करना था जो मुझे मेरी वर्तमान कंपनी को भेजना था।

मैंने अपना इस्तीफा टाइप किया, एक पारिवारिक आपातकाल की कहानी गढ़ते हुए जिस पर मुझे तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत थी और मैंने ईमेल सेंड कर दिया।

मेरा पूरा दिन नई नौकरी और नयी जगह के लिए जरूरी चीजें पैक करने में बीता।



जैसे ही मैंने अपना सूटकेस पैक किया, मेरे विचार अव्यवस्थित हो गए। मसूरी में एक नया अध्याय शुरू करने का उत्साह रोमा को पीछे छोड़ने के दुःख से धूमिल हो गया था। मैं इस अहसास को भुला नहीं सका कि मैं अपनी भावनाओं का एक हिस्सा अपने ही घर में छोड़ कर जा रहा हूं।

माँ पूरी शाम मेरे कमरे में आती-जाती रही, उसकी आँखों में गर्व और चिंता का मिश्रण भरा हुआ था। उन्होंने रोमा से यह खबर पहले ही सुन ली थी, और हालाँकि उन्होंने सीधे तौर पर नहीं कहा था, मैं उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें देख सकता था। वह मंडराई, मुझे सामान पैक करने में मदद करने की पेशकश की, पूछा कि क्या मेरे पास पर्याप्त गर्म कपड़े हैं, मुझे अच्छा खाने और बहुत अधिक मेहनत न करने की याद दिलाती रही। उनका प्यार मन को भर देने वाला था, रोमा के उस स्पर्श से एकदम विपरीत, जिसमे वासना और दबी हुई इच्छाएं शामिल थीं।

रात में 11 बजे, मैंने खुद को अपनी माँ के बिस्तर के पास बैठा पाया, बेडसाइड लैंप की हल्की चमक उनके चिंतित चेहरे पर छाया डाल रही थी। उन्होंने आगे की यात्रा, मसूरी में नौकरी के महत्व और घर का बड़ा जिम्मेदार आदमी होने के साथ आने वाली जिम्मेदारियों के बारे में बात की। उनके शब्द एक मरहम की तरह थे, जो मेरे अपराध और भय के कच्चे किनारों को शांत कर रहे थे।

"अब तुम जाओ बेटा," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ चिंता से भरी हुई थी। "तुम हमारी बिलकुल भी चिंता मत करो, यंहा मैं सब सम्हाल लुंगी" उनकी आँखें बंद हो गईं, उनके चेहरे पर उम्र और थकान की रेखाएँ गहरी हो गईं थीं। "अब जाओ, थोड़ा आराम करो। तुम्हे कल बहुत लम्बा सफर तय करना है।"

मैंने सिर हिलाया, उनके शब्दों का बोझ मुझ पर पड़ रहा था। कमरा दमघोंटू था, हवा अनकहे सच और उसकी दवा की गंध से भरी हुई थी। मैं झुका, उनके माथे को धीरे से चूमा, उनकी त्वचा की गर्माहट महसूस की। "ठीक है माँ, गुड़ नाईट" मैंने फुसफुसाया, मेरी आवाज़ मुश्किल से सुनाई दे रही थी।

मैं माँ के कमरे से बहार आया और उनका दरवाज़ा बंद कर दिया। बहार हाल में हलकी सी रौशनी थी जो एक छोटे Led बल्ब से आ रही थी। मैंने एक गहरी साँस ली और रोमा को देखने के लिए उसके कमरे की ओर चल दिया।

उसका दरवाज़ा खुला था, हॉल के बल्ब की रौशनी उसके कमरे के अंदर धीरे से झाँक रही थी। मैंने उसके दरवाज़े को धीरे से पीछे धकेला, और अंदर कदम रखा। रोमा अपने बिस्तर पर दूसरी तरफ मुंह करके लेटी थी, उसकी द्वारा ओडी हुई चादर उसके जिस्म की सुडौलता को रेखांकित कर रही थी।

वह गहरी नींद में सो रही थी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी, कमर तक चादर के नीचे छुपी हुई थी। मैं उसकी छाती के हल्के उभार और गिरावट को देख सकता था, उसकी सांसों की धीमी आवाज कमरे में लोरी की तरह गूंज रही थी। उसके बाल तकिये के ऊपर फैले हुए थे। उसे देखकर मुझमें इतनी तीव्र लालसा भर गई कि यह लगभग असहनीय थी।

उसकी सफेद ढीली टी-शर्ट उसके शरीर से चिपकी हुई थी, जो नीचे छिपे हुए उभारों का संकेत दे रही थी। उसके जिस्म पर ब्रा का कोई स्पष्ट संकेत नहीं था, उसका सौम्य चेहरा मासूमियत की मिसाल था। मेरे दिमाग में पिछली रात की घटना किसी चलचित्र की भाँती चलने लगी जब मैंने उसके नरम उभारों का जायज़ा लिया था।

मैं उसके बिस्तर के किनारे पर बैठ गया, मेरा दिल मेरे सीने में धड़क रहा था। गद्दा मेरे वजन के नीचे थोड़ा सा दब गया, और मैं उसके शरीर की गर्मी को कपड़े के माध्यम से फैलते हुए महसूस कर सकता था। उसकी खुशबू - ताज़ी और मीठी, नशीली थी, जिससे मेरा सीधे सोचना मुश्किल हो रहा था।

उसका नाम, 'रोमा', एक गुप्त मंत्र की तरह मेरी जीभ फिसला, कमरे का अँधेरा एक कंबल की तरह हमारे चारों ओर लिपटा हुआ लग रहा था, जो हमें दुनिया की चुभती नज़रों से छिपा रहा था, हमें उस वास्तविकता से थोड़ी राहत दे रहा था जो सुबह होने पर हमारा इंतजार कर रही थी।

मैंने थोड़ा सा हाथ बढ़ाया, मेरी उंगलियाँ उसकी टी-शर्ट के कपड़े को छू रही थीं। रुई की कोमलता मेरी ज़रूरत की कठोरता से बिल्कुल विपरीत थी, मेरी अशुद्ध भावनाओं की गर्मी उसकी त्वचा की ठंडक से बिल्कुल विपरीत थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन मैं खामोशी में उसकी सांसें सुन सकता था, उथली और तेज, जो उसके भीतर उमड़ रही भावनाओं के कोलाहल को जाहिर कर रही थीं।

"रोमा?" मैंने फिर से पुकारा, मेरी आवाज़ पहले से थोड़ी तेज़ थी।

फिर भी वह नहीं हिली. कमरे में एकमात्र आवाज़ छत्त के पंखे और मेरे अपने दौड़ते दिल की लयबद्ध धड़कन थी। अँधेरा एक लबादे की तरह महसूस हो रहा था जो हमारे ऊपर फेंक दिया गया था, जो हमें दुनिया से छिपा रहा था, लेकिन यह एक जेल की तरह भी महसूस हो रहा था जो हर गुजरते पल के साथ मेरा दम घोंट रहा था।

एक गहरी साँस के साथ, मैंने कुछ साहस जुटाया और बिस्तर से उठ गया, गद्दा एक शांत विरोध के साथ अपनी जगह पर वापस आ गया। मैं दबे पाँव दरवाजे की ओर बढ़ा। मेरा हाथ दरवाज़े के हैंडल पर मंडरा रहा था, मेरा दिल मेरे गले में था, मैंने उसके हैंडल को पकड़ के धकेला और ऊपरी कुण्डी लगा दी।

कुण्डी की क्लिक मेरे दूषित इरादों की घोषणा थी, उन नियमों के खिलाफ विद्रोह का आगाज़ था, जिन्होंने इतने लंबे समय तक हमारे जीवन को नियंत्रित किया था।

कमरा शांत था, हमारे दिलों के संघर्ष और हमारे दिमागों की लड़ाई का एक प्रमाण। अँधेरा जीवित महसूस हुआ, एक संवेदनशील प्राणी जो हमारे रहस्यों को जानता था और रात के शांत क्षणों में मेरा होंसला बड़ा रहा था।

जब मैं उसके बिस्तर पर वापस गया तो मेरा दिल मेरे सीने में ढोल की तरह बज रहा था, उसकी धड़कन मेरे कानों में गूँज रही थी। वही जगह जहां मैं कुछ देर पहले बैठा था, उसके शरीर की गर्माहट अभी भी किसी छाया के आलिंगन की तरह महसूस हो रही है।

धीरे से, मैंने उसके सिर को सहलाना शुरू कर दिया, मेरी उंगलियाँ उसके रेशमी बालों में फैल गईं। उसके बालों का एक एक कतरा बेहतरीन रेशम के टुकड़े की तरह महसूस हुआ, जो सरसराता हुआ मेरी उँगलियों से फिसल रहा था। मेरा इस तरह से उसे दुलारना सुखद था, ये मेरे मन की उथल-पुथल को शांत कर रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे छूकर मैं किसी तरह अपना प्यार और भावनाएं ट्रांसफर कर सकता हूं, भले ही वह सोती रहे।

पर मेरे अंदर बैठे वासना रूपी उस शैतान को ये मंज़ूर नहीं हुआ और उसने मुझे आगे बढ़कर उसके उभारों को सहलाने के लिए प्रेरित किया। मन में चल रही कश्मकश से जूझते हुए मैंने अपना हाथ उसके बालों से हटा के उसकी उभरी हुई गांड पर रख दिया। मेरे लंड में एक ही बार में हज़ारों तरंगें सी प्रवाहित होने लगीं, मेरा एक दिमाग अभी भी मुझे रोकने की चेष्टा कर रहा था पर वासना का वो प्रेत मुझपर हावी था।

मैंने धीरे से उसकी गांड को सहलाया, मेरे जिस्म में हज़ारों चींटियों के एक साथ रेंगने का एहसास हुआ।

मैंने एक नज़र रोमा के चेहरे पर डाली वो मुझे सोती हुई किसी अप्सरा सी नज़र आने लगी। उसकी मासूमियत पर जैसे मैं दिल हार गया और मैंने अपना हाथ उसकी गांड से खींच लिया। पहली बार ऐसा लगा जैसे वासना के इस खेल में एक भाई जीत गया और वो सभी अशुद्ध वर्जित इच्छाएं हार गयीं।

मेरा हाथ उसकी टी-शर्ट के कपड़े के ऊपर से उसके कंधे तक पहुंच गया। उसके शरीर की गर्मी मेरी हथेली में समा रही थी। मैंने अपनी उँगलियाँ उसकी बाँह पर फिराईं, किसी पंछी के पंख जैसा हल्का स्पर्श, लगभग ऐसा जैसे मैं कोई जादू कर रहा हूँ।



मुझे नहीं पता कि मुझमें साहस कैसे आया, लेकिन मैंने साहस पाया। मैं झुक गया, मेरा दिल भागती हुई ट्रेन से भी तेज़ दौड़ रहा था। मेरा चेहरा उसके चेहरे पर मंडरा रहा था, और मैं उसकी सांसों की गर्मी को अपनी सांसों के साथ घुलते हुए महसूस कर सकता था। उसके बालों की खुशबू मेरी नाक में भर गई.

एक तेज़ गति के साथ, मैंने अपने होंठ उसके गाल पर रख दिए और एक गहरा चुम्बन लिया जिसमे वासना से अधिक प्रेम का मिश्रण था, मेरे शरीर में बिजली सी कोंध गयी क्यूंकि में उसकी प्रतिक्रिया से डर गया था, मुझे लगने लगा के किसी भी पल वो बस मुझे खुद से दूर धकेल देगी, लेकिन वह शांत रही, अपनी गहरी नींद में खोई रही।

मेरे दिमाग में विचारों का बवंडर उमड़ रहा था, हर एक पिछले से भी अधिक विकृत वासनाओं से भरा हुआ था, लेकिन मेरा दिल स्थिर था, उस महिला के लिए प्यार और करुणा के अलावा कुछ भी नहीं था जो मेरी दुनिया का केंद्र बन गई थी, भले ही वो मेरी सगी बहन थी।

एक कोमल स्पर्श से, मैंने रोमा के नंगे कंधे को सहलाया, मेरी उँगलियाँ उसकी टी-शर्ट की नेकलाइन तक जाने वाली चिकनी त्वचा का पता लगा रही थीं। कपड़ा पतला था, जिससे मुझे उसके शरीर की गर्मी महसूस हो रही थी। मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, हर धड़कन मेरे कानों में ढोल की तरह गूँज रही थी, और मुझे डर था कि वह किसी भी समय जाग सकती है। लेकिन वह शांत लेटी रही, नींद के आगोश में खोई हुई। मैं उसे सिर्फ दुलार रहा था, उस से जुदा होने से पहले एक आखरी बार।

रात के सन्नाटे में, मेरा मन मेरे अंदर के मानव और दानव के लिए युद्ध का मैदान था। मानव ने कर्तव्य और पारिवारिक बंधनों के बारे में फुसफुसाया, मुझे उस पवित्र विश्वास की याद दिलाई जो भाई होने के साथ आता है। लेकिन दानव ने जुनून और मेरी आत्मा में जलने वाली उस दबी हुई इच्छा की बात की, जो मुझे रोमा के शरीर को पाने के लिए प्रेरित कर रही थी जो मैं हमेशा से चाहता था।

मैंने एक गहरी साँस ली, अपने आप को भीतर के उग्र तूफ़ान के ख़िलाफ़ मज़बूत करते हुए। धीरे-धीरे, मैंने अपना हाथ रोमा के गर्म कंधे से हटा लिया। मेरी आँखें एक आखिरी बार उसकी गर्दन की कोमल ढलान, उसके कंधे के नरम मोड़ और पतले कपडे के नीचे उसकी भारी मांसल चूचियों के उभारों पर टिक गईं।

कांपती उंगलियों के साथ, मैं आगे बढ़ा और उसके चेहरे से बिखरे बालों को हटा दिया। वह नींद में इतनी शांत, इतनी शांत लग रही थी, मानो उसे स्वयं देवताओं ने गढ़ा हो। मेरा दिल प्यार और लालसा के मिश्रण से दुख गया जो जितना शक्तिशाली था उतना ही गलत भी था। लेकिन मुझे पता था कि समाज ने हमारे लिए जो सीमाएं खींची हैं, उनका सम्मान करने के लिए मुझे उसे छोड़ना होगा, भले ही मेरी आत्मा विरोध में चिल्लाती रहे।

मैं झुक गया, मेरी साँसें गले में अटक रही थीं, और मैंने उसके माथे पर एक नरम, लंबे समय तक चलने वाला चुंबन दिया। " आई लव यू, रोमी" मैंने फुसफुसा के उसके कान में कहा। मेरे शब्द मेरी आत्मा की आवाज़ थे जो बड़ी ही मुश्किल से मेरे होंठों से फूटे थे।

मुझे उस वक्त ये परवाह नहीं थी के उसने सुना या नहीं सुना, मैंने बस अपने दिल का एक बोझ से हल्का कर लिया था।

यह मेरे प्यार की घोषणा थी, उस प्यार की जिसे अलविदा कहना था जो चाहकर भी शायद मुझे उस रूप में नसीब नहीं हो सकता था जिसमे में चाहता था।

अपने आप को खड़े होने के लिए मजबूर करते हुए, मैंने रोमा पर एक आखिरी नज़र डाली, उसका रूप उस अँधेरे कमरे में भी जगमगा रहा था। उसकी छातियां एक स्थिर लय में उठ और गिर रहीं थी। मैंने महसूस किया कि मेरी आँख के एक छोर से एक आंसू का कतरा फिसल कर मेरे गाल को भिगो गया।

भारी मन से, मैं उसके कमरे से बहार आ गया। उससे हर कदम दूर होने पर ऐसा लग रहा था जैसे मेरे शरीर का एक हिस्सा मुझसे किसी ने छीन लिया है और उसकी जगह पर एक खालीपन छोड़ दिया है।
Lazwaab superb update
 

karthik90

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UPDATE 14:



मैं रात में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था, नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी, मेरे विचारों में भय और कामनाओं का मिश्रण उमड़ रहा था, मैं बेचैनी महसूस कर रहा था और सो नहीं पा रहा था।

रात के 1:45 बजे थे जब मेरा फोन टेबल पर पड़ा हुआ vibrate हुआ, स्क्रीन की चमक कमरे के अंधेरे को भेद रही थी। मैंने कांपते हाथों से उसे उठाया, मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं।

स्क्रीन पर वही एक ख़ास नाम था, "वाणी" और मैंने जवाब देने के लिए स्वाइप किया, मेरी आवाज धीमी थी। "हम्म, कैसी है?"

"क्या तुम तैयार हो प्यारे भईया?" वह फुसफुसाई, उसकी आवाज में एक शरारती हंसी थी. मैंने एक गहरी साँस ली, जब मैंने दरवाजे की ओर देखा तो मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। "पता नहीं, डर लग रहा है" मैं बुदबुदाया, मेरी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी।

"भूलो मत, डर के आगे ही जीत है" वाणी की आवाज सुखद थी, उसने होंसला बढ़ाया। "तुम दोनों ही इसके लिए तरस रहे हो, रवि।" "आगे बड़ो और किला फ़तेह कर लो" उसने खिलखिलाते हुए कहा।

उसके शब्द मेरी आत्मा पर मरहम की तरह थे, मेरे भीतर उमड़ रहे भावनाओं के तूफान को शांत कर रहे थे। मैंने एक गहरी साँस ली और सिर हिलाया, भले ही वह मुझे नहीं देख पाई। "ठीक है, कोशिश करता हूँ" मैंने फुसफुसाया।

"बहुत बढ़िया," वह फिर खिलखिलाई, उसकी आवाज़ मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर रही थी।

"उम्मीद है आज कोई प्रॉब्लम न हो" वाणी ने फोन में फुसफुसाते हुए हंसते हुए कहा, "10 मिनट और रुको, उसके बाद जाना" उसने फोन रखने से पहले सलाह दी।

मेरा दिल जंगली घोड़े की तरह दौड़ रहा था, और मैं अपने कानों में दिल की धड़कन महसूस कर सकता था। मैं उन आखिरी दस मिनटों के लिए घड़ी की टिक-टिक का इंतजार कर रहा था, हर सेकंड अनंत काल जैसा महसूस हो रहा था। अंतत:, अब और अधिक सहन करने में असमर्थ, मैं बिस्तर से उठ गया और दरवाजे की ओर दबे पाँव चलते हुए, बहार किसी हलचल के संकेत को सुनने लगा।

जब मैं सीढ़ियाँ उतर रहा था तो मैंने अपना सारा वजन अपने पैर के पंजों पर डाला हुआ था, उस शांत रात में यही एकमात्र आवाज़ थी। खिड़कियों से मंद चांदनी झाँक रही थी, जिससे हॉल में लंबी छाया पड़ रही थी। मेरी नज़र रोमा के कमरे पर टिकी थी, दरवाज़े में थोड़ी झिरी दिखाई दे रही थी, वो शायद खुला हुआ था या फिर जानबूझकर खुला छोड़ा गया था।

जैसे ही मैंने उसे पीछे धकेला वो खुल गया, मेरा हाथ कांप रहा था, भीतर का अंधेरा मुझे निषिद्ध आनंद की दुनिया में खींच रहा था। कमरे में हलकी गर्माहट थी, उसके परफ्यूम की खुशबू मुझे दरवाज़े तक महसूस हो रही थी। मैं बिस्तर पर उसकी छाया देख सकता था, कम्बल के नीचे उसके सुडौल शरीर की रूपरेखा स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। वो कमर के बल सीधी लेटी हुई थी, उसका बांया हाथ कम्बल के अंदर और दांया हाथ उसके माथे पर था। मैंने पलट कर दरवाज़ा अंदर से लॉक किया और उसकी तरफ बढ़ गया।

करीब जाकर, मैंने उसके भारी सीने को उसकी हर हल्की सांस के साथ उठते-गिरते देखा, उसकी साँसों की लय मेरे कानों में संगीत बजा रही थी। मैं उसके बिस्तर पर जाकर आहिस्ता से बैठ गया, उसे शायद मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया था। वह अचानक हिली और अपनी बांयी तरफ करवट लेकर मुड़ गयी।

हॉल से मंद रोशनी दरवाजे के ऊपर लगे वेंटिलेटर से कमरे में आ रही थी, जिससे उसके कंधे पर हल्की सी चमक थी। उसने वही ढीली टी-शर्ट पहनी हुई थी जो उसने कल रात पहनी थी, जिसने मुझे वासना से पागल कर दिया था।


1

बड़ी हिम्मत जुटा कर और अपने मन को समझाकर के "जो होगा देखा जायेगा" के साथ मैं कांपते हाथों से, नीचे झुका और धीरे से उसके गाल को चुम लिया, और अपने होंठों पर उसके नरम चिकने गालों की गर्माहट महसूस की।

वह हिली नहीं, स्थिर लेटी रही, मानो गहरी नींद में खोयी हो। उसकी सांसें स्थिर रहीं और एक पल के लिए मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या वह सच में सो रही थी।

"रोमी?" मैं फुसफुसाया, मेरी आवाज़ बमुश्किल सुनाई दे रही थी। नाम हवा में तैर कर रह गया, प्यार और वासना के मिश्रण ने मेरे जज़्बातों पर कब्ज़ा कर लिया। मैं उस पड़ाव पर था जंहा भाई-बहन और प्रेमी के बीच की दूरियां धुंधली पड़ने लगीं थी।

उसका शरीर स्थिर रहा, कोई हलचल नहीं हुई जिससे पता चले कि उसने मेरी आवाज़ सुनी है। मैंने इसे एक संकेत के रूप में लिया, आगे बढ़ने के लिए एक मौन निमंत्रण के रूप में। मेरा हाथ उसके नंगे कंधे पर मंडरा रहा था, उसके संगमरमरी जिस्म की गर्माहट मुझमें समा रही थी, जिससे मुझे आगे बढ़ने का साहस मिल रहा था। मैंने उसकी बांह के नीचे अपनी उंगलियाँ घुमाईं, उसकी चमड़ी की चिकनाई, उसके जिस्म की कोमलता को महसूस किया।

मैंने अपना मुंह उसकी गर्दन के करीब झुकाया और उसकी गर्दन को चूमा, उस कोमल स्पर्श से मेरे शरीर में बिजली का झटका सा दौड़ गया। मैं महसूस कर सकता था कि उसके गले के आधार पर उसकी नसें फड़कने लगीं हैं, और उसके होठों से एक हल्की "आह" निकल गई। "आई लव यू, रोमी," मैं उसके कान में फुसफुसाया, शब्द मुश्किल से सुनाई दे रहे थे। "यू आर माय हार्ट एंड सोल।"

उसका शरीर स्थिर रहा, उसकी साँसें अब भारी हो गईं। उसके बालों और जिस्म की खुशबू इतनी मादक थी कि किसी और चीज के बारे में सोचना मुश्किल हो रहा था। मेरा हाथ कम्बल के अंदर उसकी जाँघ पर फिसल गया, उसकी कैपरी का कपड़ा मेरी उंगलियों के पोरों पर खुरदुरा हो गया। जब मैंने धीरे से उसकी गांड के मुलायम उभार को सहलाया तो वह थोड़ा हिल गई। यह दृश्य मुझे उसके शरीर से कपड़े फाड़ने और उसे हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए पर्याप्त था, लेकिन वाणी की सलाह "धीरे धीरे आगे बढ़ना" की याद करते हुए मैंने खुद को रोक लिया।

मैंने अपना हाथ उसकी उभरी हुई गांड से हटा कर उसके सुडोल पेट पर रख दिया। उसकी टी-शर्ट का कपड़ा मेरी उंगलियों से फिसलता हुआ महसूस जब मैंने उसके सिरे को पकड़ा। धीरे से खींचते हुए, मैंने उसे इंच दर इंच ऊपर उठाना शुरू किया, हर हरकत के साथ मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। उसका पेट आगे से नंगा होने लगा और उसके पेट की कोमलता के स्पर्श ने मेरे लंड में तूफ़ान मचा दिया।

मेरा हाथ उसके पेट पर मंडरा रहा था, जिससे उसका सांस लेना लगभग असंभव हो गया था। मैं अपने हाथ की उँगलियों से उसके पेट को सहलाने लगा उसका स्पर्श बिलकुल रेशम की तरह था, पर मेरा मन कंही और था - उसकी थिरकती हुई चूचियों पर।

जैसे ही मेरी उंगली ने उसकी नाभि की रूपरेखा का पता लगाया, मैं अपनी एक ऊँगली से उसकी नाभि को टटोलने लगा, वो धीरे से हांफने लगी, रात के सन्नाटे में यह आवाज मुश्किल से सुनाई दे रही थी। उसका शरीर तनावग्रस्त हो गया, लेकिन उसने मुझे रोका नहीं। वो निढाल सी वैसे ही पड़ी रही।

उसकी साँसें भारी हो गईं, कमरे में बस हम दोनों की सांसें ही गूंजती हुई सुनाई पड़ रही थीं। किसी नशे के अभिभूत मेरा हाथ उसकी टीशर्ट के अंदर ऊपर की ओर सरक गया ।

मेरा लंड पूरी अकड़ के साथ मेरे लोअर में तन गया था और उसकी गांड पर पीछे से दबाव बना रहा था। मेरे आंड दर्द करने लगे थे और मुझसे जल्दी से उसे चोदने का आग्रह सा कर रहे थे। लेकिन मैंने उस पल का स्वाद लेते हुए, अपनी कामनाओं पर काबू पाया और उस मीठी पीड़ा को सहन किया।

जैसे ही मेरा हाथ ऊपर उसकी कठोर चूची पर पहुंचा मेरी हथेली पर उसकी नंगी गर्म चूची के एहसास ने मेरे लंड में हलचल मचा दी, उसने आज ब्रा नहीं पहनी थी या तो वो भूल गयी थी या फिर पिछली रात की रूकावट को दूर करने लिए उसने जानबूझकर ऐसा किया था । मैंने अपनी हथेली खोली और उसकी बड़ी चूची को अपने पंजे में धीरे से कस लिया। मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। यह जानकारी कि वह टी-शर्ट के नीचे नंगी थी, बिजली के झटके की तरह थी, जिसने मेरे शरीर में आग लगा दी।

उसकी दांयी चूची को अपनी हथेली में भरकर मैं धीरे धीरे दबाने लगा, मुझे अपने हाथ में उसकी चूची का भारीपन महसूस हो रहा था, मेरे स्पर्श से उसका निप्पल तन के कठोर हो चूका था। यह पिछली रात से भी ज़ादा अद्भुत और आनंदायक था, उसके जिस्म की कोमलता और गर्माहट मेरे अंदर चाहत की लहरें पैदा कर रही थी। उसका निपल सख्त था, एक छोटा सा शिखर जो मेरा ध्यान आकर्षित कर रहा था। मैंने उस पर अपना अंगूठा घुमाया, और अपना सर उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखा, उसने ज़ोर से अपने होंठों को भींचा हुआ था। आनंद की तरंगें उसे कराहने पर मजबूर कर रहीं थी पर वो अपने मुंह से सिसकारियां निकलने से खुद को रोके हुए थी।

पर कुछ चीज़ें चाह कर भी नियंत्रण में नहीं रह पाती और रोमा के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसकी कोशिशों के बावजूद एक धीमी कराह "आह!" उसके मुंह से फुट पड़ी । उसका शरीर मुझे प्रतिक्रिया दे रहा था, और यह अहसास मेरे द्वारा अब तक देखी गई किसी भी पोर्न से भी अधिक कामुक था। मेरा लंड अब दर्दनाक रूप से सख्त हो गया था और मेरे लोअर के कपड़े से आज़ाद होने की मांग कर रहा था।

एक सेकंड के लिए, मैंने उसकी चूची को छोड़ दिया और अपना लोअर अंडरवियर सहित घुटनों तक सरका दिया, ठंडी हवा मेरी गर्म, सख्त लंड की चमड़ी से टकराने लगी। मैंने एक गहरी साँस ली, अपना हाथ उसके सीने पर वापस लाने से पहले खुद को संयत करने की कोशिश की। मेरी उंगलियों ने फिर से उसके निप्पल को ढूंढ लिया, उसे अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच धीरे से घुमाया। उसकी पीठ मेरे स्पर्श से पीछे को तन गई, कम्बल नीचे खिसक गया और उसकी चूचियों का निचला आधा भाग उजागर हो गया, जिसे मैं अँधेरे में देख तो नहीं सकता था पर महसूस कर रहा था।

हल्के से दबाते हुए, मैंने उसके सख्त निप्पल को मसलना शुरू कर दिया, शांत कमरे में उसकी सांसों की आवाज़ तेज़ हो गयी। मेरी उंगलियाँ उसकी भारी चूची की चिकनी त्वचा पर घूम रही थीं। मैं नीचे झुक गया, जैसे ही मैंने उसके कान के नीचे की कोमल जगह को चूमा, मेरी साँसें उसकी गर्दन पर गर्म हो गईं। उसका शरीर कांपने लगा, और उसने हल्की सी सिसकारी ली "हम्म!" जिसने मुझे उसे तुरंत चोदने के लिए उकसाया।

मैंने अपने नंगे सख्त लंड के सुपाड़े को उसकी गांड के उभार पर दबाव बनाते हुए महसूस किया, इस अनुभूति ने मुझे धीरे से कराहने पर मजबूर कर दिया। उसके शरीर की गर्मी भट्टी की तरह थी, जो मुझे झुलसा दे रही थी।

उसकी चूचियां मेरी कल्पना से भी ज़्यादा बड़ी और सख्त थीं और वे मुश्किल से मेरी हथेलियों में समा पा रही थीं। मैं हमेशा से ही भारी सुडोल चूचियों का दीवाना था और उसकी उन्नत चूचियां मेरी कल्पनाओं से भी अधिक मोहक और सुन्दर थीं। उनका स्पंजी सा अहसास बहुत मादक और आनंदायक था ।

उसकी निप्पल के चरों तरफ एरोला का व्यास लगभग 2 इंच था, निपल्स सख्त थे और सीधे ऊपर की ओर तने थे। मैं विश्वास नहीं कर पा रहा था कि ये मेरी सगी बहन की चूचियां थी जिन्हे छूना भी सामाजिक तौर पर मेरे लिए पाप था पर में उन्हें अपनी हथेलियों में भरकर इस तरह से महसूस कर रहा था जैसे कोई अपनी प्रेमिका या पत्नी की चूचियों से खेलता है।

मेरी हिम्मत बड़ी तो मैंने उसकी दूसरी चूची को भी ऐसे सहलाना शुरू कर दिया, जैसे कि वो कोई नाजुक स्पंज की बॉल हो, और मेरे स्पर्श से उनमें उछाल और बदलाव महसूस हो रहा था।

मैं सावधान था कि बहुत ज्यादा उग्र न हो जाऊं, कंही उसे किसी प्रकार की असुविधा न महसूस हो। लेकिन जिस तरह से वह प्रतिक्रिया दे रही थी, जैसे वो धीरे-धीरे हांफ रही थी और कराह रही थी, उसने मुझे विश्वास दिला दिया कि वह भी उतना ही आनंद ले रही थी जितना मैं ले रहा था। यह अनुभूति ऐसी थी जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी, प्यार और वासना का एक मादक मिश्रण जो मुझे पागल कर रहा था।

बिना सोचे-समझे, मैंने उसकी कैप्री के कपड़े के ऊपर से अपने सख्त लंड से उसकी गांड पर धीरे धीरे धक्के लगाना शुरू कर दिया, उसकी कैप्री हमारे मिलन के बीच एकमात्र बाधा थी। प्रत्येक धक्के से मेरे शरीर में खुशी का झटका महसूस होता था और कराहने से बचने के लिए मुझे अपने होंठ काटने पड़ते थे। घर्षण परेशान करने वाला था, अवरोध को हटाने और उसकी नंगी गांड को अपने नंगे लंड पर महसूस करने की इच्छा जबरदस्त थी।

मेरा हाथ उसकी चूचियों को छोड़कर उसके जिस्म पर फिसलता हुआ उसके पेट पर आ गया। मैंने उसके पेट को धीरे से दबाया, अपनी उंगलियों के नीचे उसकी गर्म और कोमल खाल को महसूस किया, उसके रूप की पूर्णता पर गर्व हुआ। उसकी कमर पतली थी, उसके कूल्हे का मोड़ उसकी जांघों की कोमलता तक जाता था।

कांपती उंगलियों के साथ, मैंने अपना हाथ उसके पेट से नीचे सरकाया और उसकी कैपरी के कमरबंद तक पहुंच गया। जैसे ही मैंने उसके दोनों पैरों के जोड़ पर हाथ घुमाया, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, मेरी साँसें उथल-पुथल हो रही थीं। मैं उसकी चूत से निकलने वाली गर्मी को महसूस कर सकता था, उसकी उत्तेजना की गंध मेरी नाक में भर रही थी। यह एक ऐसी खुशबू थी जिससे में पहले से परिचित था पर अपनी ही बहन के जिस्म से उठते हुए पहली बार महसूस कर रहा था।

धीरे से, मैंने कपड़े के ऊपर से उसकी चूत को रगड़ना शुरू कर दिया, कपडे के ऊपर से ही उसकी चूत की बनावट को महसूस किया। वह गर्म और गीली थी, और मेरे हाथ के हर स्पर्श के साथ नमी बढ़ती गई। उसके कूल्हे हिलने लगे, और अधिक पाने और आगे बढ़ने की लालसा ने मेरे मन पर कब्ज़ा कर लिया। मैं जानता था कि उस वक्त वो सबकुछ भूल कर उन आनंदायक पलों में डूबी हुई थी।

मैंने धीरे से अपना हाथ नीचे सरकाया और उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर भींच लिया, मुझे गर्मी और गीलापन महसूस हुआ।

उसका शरीर ऐंठ गया और उसने एक लम्बी सिसकारी ली "आआ!", उसकी आवाज़ कमरे की शांति में गूँज उठी। यह एक पुकार थी जो मुझे उसपर अपना हक़ जताने और उसकी चूत पर अपना दावा ठोकने को प्रेरित कर रही थी।

मैंने अपने दौड़ते दिल को स्थिर करने की कोशिश करते हुए एक गहरी साँस ली। यही वह क्षण था जिसका मैं बहुत लंबे समय से सपना देख रहा था। कांपते हाथों से मैंने उसका नाड़ा खोजा, नाड़ा हाथ में आते ही मैंने उसे एक झटके से खींच कर खोल दिया। अगले ही पल मैंने उसकी गीली चूत को महसूस करने के लिए अपना हाथ उसकी कैप्री की इलास्टिक के अंदर सरकने की कोशिश की।

लेकिन अचानक, उसके एक हाथ ने मेरा हाथ पकड़ लिया और उसे उठा कर अपने पेट पर रख दिया। एक सेकंड के लिए, मैं स्तब्ध हो गया, मेरा शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया।

उसकी खामोशी बहरा कर देने वाली थी, उसकी आँखें अभी भी बंद थीं, लेकिन उसके शरीर का तनाव बहुत कुछ कह रहा था। मैंने 20 सेकंड तक इंतजार किया, मेरा लंड अभी भी सख्त था और उसकी गांड पर झटके मार रहा था।

मैं नीचे झुका और अपना हाथ वापस उसकी चूची पर रख दिया, मेरा अंगूठा उसके निप्पल के चारों ओर घेरे पर घूम रहा था, मुझे महसूस हुआ कि मेरे स्पर्श से उसका निप्पल और भी सख्त हो गया है। उसने आनन्द भरी आह भरी। मैं जानता था कि वह हमारे रिश्ते की मर्यादाओं और मेरे द्वारा उसे दी जा रही रोमांचक अनुभूति के बीच फंसी हुई थी।



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मैंने कुछ कहने का साहस किया, मेरी आवाज़ धीमी थी, बमुश्किल सुनाई देने वाली फुसफुसाहट जिसे सिर्फ कान में ही सुना जा सकता था, "रोमी, यू आर माय सोल, मैं तेरे बिना नहीं जी सकता।" यह मेरे वासना से भरे प्यार की घोषणा थी, जो उतनी ही सच्ची थी जितनी कि वर्जित थी।

उसने एक गहरी साँस ली और फिर, आश्चर्यजनक ताकत के साथ, उसने मेरा हाथ अपनी चूची से हटा दिया। उसकी अचानक की गई हरकत से मुझमें भ्रम की स्थिति पैदा हो गई, लेकिन कमरे में तनाव कम नहीं हुआ। इसके बजाय, यह और अधिक गाढ़ा हो गया, कोई अनजानी शक्ति थी जो हमे अलग होने पर मजबूर कर रही।

"अब प्लीज़ जाओ और सो जाओ," उसने कहा, उसकी आवाज़ धीमी, बमुश्किल-सी फुसफुसाहट थी। लेकिन उसके स्वर में कुछ ऐसा था जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वह मुझे जाने के लिए कह रही थी, लेकिन वह हिली नहीं, आंखें नहीं खोली, तकिये से चेहरा तक नहीं उठाया।

मेरा दिल निराशा और भ्रम से भारी हो गया। मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी जाँघ से हटा लिया और पीछे हो गया, अपना लोअर खींच के ऊपर किया जिसमे मेरा सख्त लंड फिर से कैद हो गया। मैंने अपने बढ़ते विचारों को शांत करने की कोशिश करते हुए एक गहरी साँस ली।

मैं कुछ मिनट तक उसके पास बिना हिले डुले लेटा रहा, मेरा दिल पिंजरे में बंद एक जानवर की तरह मेरी पसलियों पर जोर से धड़क रहा था जो रिहाई के लिए बेचैन था। मैं कुछ कहना चाहता था, अपनी भावनाएँ समझाना चाहता था, लेकिन डर ने मेरी ज़ुबान पर क़ब्ज़ा कर रखा था। अगर उसने मुझे अस्वीकार कर दिया तो क्या होगा? क्या होगा अगर वह वैसा ही महसूस न कर रही होगी? जोखिम बहुत बड़ा था, परिणाम बहुत गंभीर।

बड़ी मायूसी के साथ, मैंने धीरे से खुद को उसके बिस्तर से उठाया। मैंने आखिरी बार उस पर नजर डाली, मेरी नजरें उसकी साँसों के साथ उठती गिरती छातियों के उभारों, उसके कूल्हों के नरम घुमाव, तकिये पर फैले उसके रेशमी काले बालों को अपनी यादों में संजो रही थीं।

उसकी सुंदरता उस मोहक फल के सामान थी जो सामने होकर भी बहुत दूर प्रतीत होता था और जिसे मेरे आलावा हर कोई चख और खा सकता था। मैं अपने रिश्ते की मरियादों और सीमाओं से से भली भाँती परिचित था।

मुझे इस बात का अफ़सोस था कि मैं उसे यह नहीं बता सका कि मैं उससे कितना प्यार करता था, मुझे उसकी कितनी ज़रूरत थी। मुझे डर था के उसने अगर पलट कर हमारे रिश्ते को लेकर सवाल किये तो मैं कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाउँगा। और ये डर ही था जिसने मुझे रोक रखा था, उसे खोने का डर, हमारे जीवन का नाजुक संतुलन बिखरने का डर।

उसके शांत रूप पर एक आखिरी नज़र डालते हुए, मैं मुड़ा और दबे पाँव कमरे से बाहर चला गया, दरवाज़ा मेरे पीछे बंद हो गया। बहार हॉल का वातावरण उसके कमरे की गर्मी से बिल्कुल विपरीत था, हवा की ठंडक मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर रही थी। मैं अपने कमरे में वापस चला आया, मेरे विचारों में प्यार, वासना और संदेह की उथल-पुथल मची हुई थी।

अगली सुबह, मैंने भारी मन से अपना बैग पैक किया, हमारी अनकही इच्छाओं का बोझ मेरे कंधों पर चट्टान की तरह भारी था। मेरे जाने को लेकर, घर में बहुत हलचल थी, लेकिन मेरा दिमाग कहीं और था और पिछली रात की घटनाओं को दोहरा रहा था।

माँ रसोई में व्यस्त थी, गर्म परांठे की महक हवा में फैल रही थी। रोमा मेरे पास से गुज़री, वो मुझसे नज़रें चुरा रही थीं, उसे देखकर मुझमें फिर से चाहत जाग उठी। वह अपनी पारंपरिक हरे रंग की सलवार कमीज में हमेशा की तरह खूबसूरत लग रही थी, कपड़ा उसके सीने के उभारों को इस तरह से जकड़े हुए था कि मुझे उसे फिर से उन्हें छूने इच्छा हुई।

हमारे बीच तनाव स्पष्ट था, चूल्हे के धुएं जैसा गाढ़ा। मुझे पता था कि उसने मेरा स्पर्श, मेरा प्यार महसूस किया है, और उस प्रेम की आग में वो भी उसी प्रकार जल रही है लेकिन वह आज्ञाकारी बेटी की भूमिका निभा रही थी, हमारे रहस्य को उजागर नहीं होने दे रही थी, उसे अपनी मर्यादाओं में रहना था।

मैंने ख़ामोशी से नाश्ता किया, प्लेट पर चम्मच की खनक उस अजीब खामोशी को तोड़ने वाली एकमात्र आवाज थी। हमारी माँ हमारे भीतर चल रहे तूफ़ान से बेखबर बड़बड़ाती रहीं। मैंने सामान्य व्यवहार करने की कोशिश की, भोजन के स्वाद, चाय की गर्माहट पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन मैं बस यही सोच सका कि रोमा के जिस्म का कोमल स्पर्श मेरे हाथों के नीचे कितना आनंदायक और विस्मयकारी था, उसक शरीर कैसे मेरे छूने से ऐंठ गया था।

नाश्ता करते हुए मैं चोरी चोरी उसे देखता रहा, उम्मीद कर रहा था कि वह मेरी तरफ देखेगी और मुझे कुछ संकेत देगी कि वह क्या महसूस कर रही थी। लेकिन वह स्थिर रही, उसकी आँखें अपनी प्लेट पर केंद्रित थीं।

वाणी के शब्दों ने जो बीज बोया था, उसने हमारे बीच शालीनता की दीवारों को तोड़ दिया था और हमारे निषिद्ध प्रेम का द्वार खोल दिया था। लेकिन अब, दिन के उजाले में, उन दीवारों ने खुद को फिर से बना लिया था, मुझे आश्चर्य हो रहा था कंही में कोई सपना तो नहीं देख रहा।

नाश्ता ख़त्म करके जब में घर से विदा लेने को हुआ। मां, हमारे दिल में चल रही उथल-पुथल से बेखबर, मुझसे लिपट गईं, उनकी आंखें आंसुओं से धुंधली हो गईं। "अपना ख्याल रखना, बेटा," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ भावुकता से भरी हुई थी। "और फ़ोन करना मत भूलना।"

रोमा चुप रही, उसकी आँखें नीची हो गईं, उसने मुझे यात्रा के लिए नाश्ते से भरा एक बॉक्स दिया। हमारी उंगलियाँ आपस में टकराईं, और मुझे लगा कि बिजली की एक चिंगारी हमारे बीच से गुज़री है।

"थैंक्स," मैं बुदबुदाया, मेरी आवाज़ अनकही भावनाओं से भरी हुई थी। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उसका हाथ मेरे हाथ पर आवश्यकता से कुछ सेकंड अधिक समय तक रहा।

बस स्टैंड की ऊबड़-खाबड़ यात्रा के दौरान, मैं रात की घटनाओं को अपने दिमाग में दोहराए बिना नहीं रह सका। जिस तरह से रोमा के शरीर ने मेरे स्पर्श पर प्रतिक्रिया दी थी, उसकी चिकनी गुन्दाज़ चूचियों को दबाने से उसकी साँसों का तेज़ चलना, उसकी कराहें, उसकी नरम चौड़ी गांड पर मेरे नंगे लंड का दबाव और जिस तरह से उसने मेरा हाथ अपनी चूत पर जाने से रोकते हुए अपने पेट पर रखा था, सब कुछ मेरे दिमाग में एक मूक फिल्म की तरह घूम रहा था।



------To be continued------
Beautiful update
 
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sunoanuj

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बहुत ही अद्भुत अपडेट है! थोड़ा bhavnao का समावेश जायदा रहा !

बहुत अच्छा लिख रहे हो मित्र !
 
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Battu

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Bahut hi achchha shandar update. Thoda emotional tha but aage ki kahani k liye rasta bana gaya. Shayad maa in dono k pyar k bare me janti thi tabhi jate time Roma ka hanth apne bete k hanth me de kar vada le gayi. Uski dairy ne shayad sab kuchh likha ho. Ab Roma aur hero ek ho sakte he. Akash se shadi cancel ho jayegi.
 
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