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Incest सीड्स ऑफ़ लस्ट (Seeds Of Lust)

Rouny

New Member
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Very interesting update 👏👏👏
Incest ka beej jo Vani ne Ravi aur Roma ke dilo dimag me dala ab vo poudhe ke roop me panap raha hai
Ravi ke dil me chal rahi kashmkash aur Roma ke dimag ki uthal puthal ko jis prakar describe Kiya hai vo kabile tarif hai
Is story me jarur kuch aisa hai isliye isko bar bar padhane ka man karta hai, han kahin kahin bhasha thodi kilishth (kathin) hai magar vo koi khas mudda nahi hai
Kahani bahut hi mast chal rahi hai
Congrats to writer again 🙏🙏🙏
 
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Enjoywuth

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Bro eagerly waiting for next update. Want next update to to see how both will handle the situation and avoid the marriage and also get cosy in this emotional situation
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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UPDATE 15:



मसूरी आकर, मैंने खुद को होटल में काम में इतने उत्साह के साथ झोंक दिया कि मैं भी आश्चर्यचकित रह गया। रोज़ आने जाने वाले गेस्ट्स की ज़रूरतों और उनके स्वागत में मैं इस तरह से व्यस्त हुआ के समय गुजरने का पता ही नहीं चला। रोज़मर्रा के काम में व्यस्त होकर मेरे अराजक विचारों को कुछ सांत्वना मिली। रोमा को पाने की चाहतें मेरे मन के भीतर जो उथल पुथल मचाये थीं उन्हें मेरी व्यस्तता की वजह से उभरने का मौका नहीं मिल रहा था।

लेकिन जब रात होती और मेरे होटल के कमरे में शांति छा जाती, तो रोमा के जिस्म की गर्माहट, उसकी त्वचा की कोमलता और उसके जिस्म की मादक खुशबु की यादें मेरे दिमाग में छा जाती। मैं हाथ में फोन लेकर बिस्तर पर लेटा रहता और स्क्रीन पर उसका नाम देखता रहता। रोमा को पाने की मेरी व्याकुलता सामाजिक नियमो को कोसती रहती।

मेरा अंगूठा कॉल बटन पर मंडरा कर रह जाता, एक अनचाहा डर मेरे दिल की धड़कने बड़ा देता। मुझे पता था कि मुझे उससे बात करनी होगी, उस चुप्पी को तोड़ने के लिए जो हमारे चारों ओर एक दीवार की तरह ऊँची हो गयी थी। लेकिन हर बार जब मैं उसका नंबर डायल करने जाता था, तो डर मेरे गले में चिपक जाता था और वे शब्द दब जाते थे जो मैं बहुत उत्सुकता से कहना चाहता था। कांपते हाथों से मैंने उसका नंबर डायल किया पर फिर कॉल कनेक्ट होने से पहले ही फोन काट दिया।

प्यार और भावनाओं से भरी उस बगावती रात को तीन महीने बीत चुके थे, फिर भी उसकी नंगी चिकनी त्वचा की यादें, उसकी भारी मांसल चूचियों का एहसास, मेरे मन में ऐसे ज्वलंत थे मानो कल की बात हो। मुझे उम्मीद थी कि समय के साथ, मेरी भावनाओं की तीव्रता कम हो जाएगी, अपराधबोध कम हो जाएगा, और हम सिर्फ भाई-बहन बनकर लौट सकेंगे। पर हुआ इसके विपरीत, मेरी लालसा और भी मजबूत हो गई थी, किसी जंगल में सुलगती आग की तरह जिसे कोई भी व्यस्तता और काम का बोझ कम नहीं कर सकता था।

मैं लगातार वाणी के संपर्क में था, मसूरी में अपने जीवन की हर बात, होटल में होने वाली हर रोजमर्रा की बात साझा करता था। वह इकलौती मेरी राज़दार थी, मेरे मन की आवाज़ थी जिसने मेरे अंतर्मन में निषिद्ध रोमांस का बीज बोया था। वह मेरे भीतर उमड़ते-घुमड़ते भावनाओं के उथल-पुथल भरे भंवर को समझती थी, वही मुझे उम्मीद देती और नए रास्ते सुझाती थी।

"अपनी चाहत पर भरोसा रखो, रवि," वह कहती थी, उसकी आवाज़ मेरी आत्मा पर एक सौम्य मरहम लगाती थी। "तुम भी जानते हो कि वह तुम्हे कितना चाहती है। माना ये थोड़ा मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं।"

कभी कभी काम से थोड़ी फुर्सत मिलते ही वाणी के शब्द मेरे दिमाग में गूँज उठते थे "वो तुम्हारी है, सिर्फ तुम्हारी"। लेकिन में खुद पर भरोसा खोता जा रहा था, मुझे यकीन नहीं होता था के मेरी ज़िंदगी में ये सब हकीकत में घट रहा है। हमारे बीच सम्बन्धो के अदृश्य दायरे थे, एक ऐसी मर्यादों की रेखा खिंची थी जिसे एक बार पार कर दिया तो फिर वापसी का कोई विकल्प नहीं था।

जब भी मैं अपनी आँखें बंद करता, तो रोमा का चेहरा ही मेरे दिमाग में किसी रौशनी की तरह जगमगाने लगता। उसकी आँखें, गालों की सुर्खी और उसके रसीले होंठ मुझे अपने पाश में जकड़ने लगते। उसकी नंगी कोमल त्वचा की यादें मेरी आत्मा पर एक निशान की तरह थी, जिसे सोचकर ही मेरी रगों में लहू दौड़ने लगता था ।

और फिर, एक दिन ऐसा आया. माँ की कॉल ने उस नियंत्रण के भ्रम को तोड़ दिया जो मैंने बहुत सावधानी से अपने चारों ओर बनाया था।

"रवि,कैसे हो बेटा? " उन्होंने फ़ोन पर अपनी पतली और कमज़ोर आवाज़ में पूछा, "मैं ठीक हूँ माँ, तुम बताओ कैसी हो?" मैंने जवाब देते हुए पूछा, "यंहा भी सब ठीक है। "मैंने तुम्हे बताना था की मैंने रोमा की शादी तय कर दी है, अगले महीने की १५ तारीख निकली है। तुम अपने हिसाब से छुट्टियां ले लेना।" उन्होंने बहुत उत्साह के साथ पूरी बात बताई थी।

उनके शब्द मेरे सर पर हथौड़े की तरह पड़े। मेरी धड़कने सहसा तेज़ हो गयी, और मेरे चारों ओर का कमरा मुझे घूमता हुआ प्रतीत हुआ। शादी? रोमा की? मेरा मन माँ की बाकी बातों को सुनने समझने में असमर्थ हो गया, ऐसा कैसे हो सकता है? रोमा मेरी है, वह किसी और से शादी कैसे कर सकती थी?

"सचमुच, माँ?" मैंने अपनी आवाज को स्थिर रखने की कोशिश करते हुए पूछा। "लड़का कौन है, क्या करता है?"

"उसका नाम आकाश है," उन्होंने कहा, उनके स्वर में उत्साह का संकेत था। "वह एक अच्छा लड़का है, एक सभ्य परिवार से है। उनकी एक कपड़े की दुकान है।"

मेरा दिल ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मेरी छाती से बाहर निकाला जा रहा हो। आकाश? एक ऐसा नाम जिसका मेरे लिए कोई मतलब नहीं है, लेकिन जल्द ही रोमा के लिए सब कुछ हो जाएगा। मुझे क्रोध और ईर्ष्या की लहर महसूस हुई।

"क्या रोमा को पसंद है?" मैं पूछने में कामयाब रहा, मेरी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी।

"हाँ, उसने हाँ कर दी है," माँ ने उत्तर दिया, उसकी आवाज़ उत्साह से भर गई। "दोनों की जोड़ी जंचेगी, तुम जब घर आओगे तो खुद देख लेना"

घर। वह स्थान जहाँ यह सब शुरू हुआ, जहाँ हमारी गुप्त लालसा एक मूक तूफ़ान में बदल गई थी जो हमें किसी भी पल अपने आगोश में भर सकती थी। उस घर में लौटने, रोमा को किसी दूसरे आदमी की बाहों में देखने का विचार लगभग असहनीय था। फिर भी, मुझे पता था कि मुझे जाना होगा। मुझे उसका सामना करना पड़ा, क्योंकि वह मेरी बहन है।'

रोमा की शादी का सुनकर मेरे दिन इस तरह से कटने लगे जैसे मेरे शरीर से किसी ने मेरी आत्मा खींच ली हो। मैं बे मन से काम में लगा रहता, दुल्हन के लहंगे में उसकी छवि मेरे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती, आकाश का उसके हाथ को थामना और उसके नज़दीक आना हमारे वर्जित प्रेम के ताबूत में कील ठोकने के सामान प्रतीत होता।

एक दिन अपने केबिन में बैठा अपने विचारों में गुम लैपटॉप की स्क्रीन को घूर रहा था, काम करने का मेरा बिलकुल भी मन नहीं था।

"हे हैंडसम, कँहा खोये हो?" प्रीती गौर (मेरी HR) ने मेरे केबिन में एंटर होते हुए पूछा जिससे मेरी तन्द्रा भंग हुई।

"क..क..कुछ नहीं मैम, वो बस ऐसे है" मैंने बात को टालते हुए जवाब दिया। "मैं कुछ दिन से नोट कर रही हूँ रवि, तुम बहुत खोये खोये से रहते हो, लंच पर भी लेट आते हो, तुम्हारी मंथली रिपोर्ट्स भी इस बार लेट है, इस एवरीथिंग ओके?" प्रीती मैम ने मेरे सामने की कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।

"यस यस मैम, सब ठीक है" मैंने अपने चेहरे पर बनावटी हंसी लाने का प्रयास करते हुए जवाब दिया।

"देखो रवि, अगर कुछ प्रॉब्लम है तो तुम मुझसे शेयर कर सकते हो, हम मिलकर कोई सोलुशन ढूंढेंगे" उन्होंने मुझे विश्वास में लेने की कोशिश की।

"नहीं..नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है वो बस माँ की तबियत ख़राब रहती है बस इसीलिए थोड़ा मन उदास था" मैंने झूठ बोला और असली वजह को छुपा गया।

"अरे! इसमें इतनी टेंशन वाली क्या बात है कुछ दिन का ब्रेक ले लो और मिल आओ अपनी फॅमिली से" उन्होंने उपाय सुझाया, "हाँ मैम सोच तो रहा हूँ" मैंने जवाब दिया।

"गुड, अब मुझे कल तक मंथली रिपोर्ट्स और परसों तक नेक्स्ट मंथ की बुकिंग डिटेल्स भेजो उसके बाद अपनी लीव एप्लीकेशन लेकर आना" उन्होंने मुझे हिदायत दी और कुर्सी से उठकर केबिन से बहार चली गयीं।

मैंने जानबूझकर रोमा की शादी की बात उनसे छुपाई थी जबकि मुझे उन्हें सच बता कर अपनी छुट्टियां एडवांस में सैंक्शन करा लेनी चाहिए थीं। मैं जानबूझकर अपने स्टाफ से रोमा की शादी को छुपाना चाह रहा था क्यूंकि अगर में अपनी बहन की शादी का ज़िक्र करता तो फिर बहुत से लोगों को वंहा इनविटेशन देना पड़ता और मैं नहीं चाहता था के कोई वंहा आये।

मैंने सोचा के घर पहुंचकर अपनी छुट्टियां बाद में एक्सटेंड करा लूंगा, नहीं तो अनपेड लीव का ऑप्शन तो था ही मेरे पास।

एक हफ्ते बाद मेरी पांच दिन की छुट्टियां मंज़ूर हो गयी। जैसे जैसे रोमा की शादी का दिन नज़दीक आ रहा था मेरी बैचनीयां बढ़ती जा रही थी, मैं अपने जज़्बातों को बमुश्किल काबू किये हुए था। अकेले में अपने कमरे में जब भी उसके बारे में सोचता मेरी सांसें उखाड़ने लगती और मेरी आँखों से आंसू बहने लगते .

मेरी छुट्टी से पहले के दिन उत्साह और भय का एक अजीब मिश्रण थे। मैं रोमा को फिर से देखने, उसकी नज़दीकी महसूस करने और उसकी आँखों में देखने के लिए उत्सुक था, लेकिन उसकी शादी का विचार मेरे हर जागते पल पर काले बादल की तरह मंडरा रहा था। मैंने खुद को अपने काम में झोंक दिया, अपनी हताशा और इच्छा को दबा कर काम में मन लगाया, यह उम्मीद करते हुए कि शारीरिक परिश्रम किसी तरह मेरी आत्मा से उस जुनून को दूर कर देगा जिसने मुझ पर कब्जा कर लिया है।



रोमा की शादी के लिए निकलने से ठीक चार दिन पहले। दिन की हलचल में जब मैं अपने काम में व्यस्त था मेरा फ़ोन मेरी जेब में बजने लगा। मैंने जेब से फ़ोन बहार निकाला और स्क्रीन पर नज़र डाली और महसूस किया कि मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा है। यह रोमा का नाम था, जो अँधेरी पृष्ठभूमि में आशा की किरण की तरह रोशन था।

मैंने जवाब देने के लिए स्वाइप किया, मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं। "हैलो, रोमी," मैंने अपनी आवाज़ को संतुलित रखने की कोशिश करते हुए कहा।

फ़ोन के दूसरे छोर पर एक ठहराव था, जो उसकी उखड़ी साँसों की आवाज़ से भरा हुआ था। "भईया," वह फुसफुसाई, उसकी आवाज कांप रही थी। "माँ को अटैक आया है।"

मेरी दुनिया घूमना बंद हो गयी. "क्या? कब?" मैंने चिल्ला कर पूछा, मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।

"आज सुबह, वह अपने ऑफिस में थी," रोमा की आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी। "उनका BP... बढ़ गया। डॉक्टर ने कहा कि सीरियस है।"

मैं उसकी आवाज़ में डर, उसके शब्दों में कंपकंपी सुन सकता था, और यह मेरे पेट पर एक मुक्का मारने जैसा था। "अब कैसी हैं वो?" मैं पूछने में कामयाब रहा, मेरा दिमाग उसके शब्दों के निहितार्थ के साथ दौड़ रहा था।

"वो आईसीयू में है," रोमा ने उत्तर दिया, उसकी आवाज़ में थकावट झलक रही थी।

मेरा दिल धक से रह गया। "मैं निकल रहा हूं," मैंने तुरंत ही निर्णय लेते हुए कहा। "तू टेंशन मत ले मैं जल्द से जल्द पहुँचने की कोशिश करूँगा।"

अगले 1 घंटे में मैंने अपनी पैकिंग की और अपनी इमरजेंसी के बारे में होटल प्रबंधक को बता के मैं घर के लिए निकल पड़ा, मेरे एक सहकर्मी ने मुझे बस स्टैंड पर ड्राप किया। घर की यात्रा अनंत काल की तरह महसूस हुई, सड़क का ट्रैफिक और हार्न की आवाज़ें मेरे मन में बेचैनियां बढ़ाती थी ।

जैसे ही मैं अस्पताल पहुँचा, सफ़ेद दीवारें और एंटीसेप्टिक गंध ने भय की भावना ला दी जो ठंडी फुहार की तरह मुझ पर हावी हो गई। मैंने तुरंत रोमा को देखा, जो आईसीयू के बाहर वेटिंग एरिया में चिंतित बैठी थी। उसने साधारण सफ़ेद सलवार कमीज़ पहन रखी थी, उसकी आँखें लाल थीं और रोने के कारण सूजी हुई थीं। उसे इतना नाजुक और असुरक्षित देखकर मेरे मन में उसके लिए प्यार और सुरक्षा की भावना और भी बढ़ गई।

"रोमी," मैंने उसके पास आते हुए धीरे से कहा। उसने ऊपर देखा, और एक पल के लिए, मैंने उसकी आँखों में किसी चीज़ की झलक देखी जो आशा, राहत या शायद प्यार भी हो सकती थी। वह दौड़कर मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कस कर पकड़ लिया, उसकी गर्माहट महसूस हो रही थी, उसका कांपता शरीर मेरे शरीर से चिपक गया था। यह अस्पताल के ठंडे, बाँझ वातावरण से बिल्कुल विपरीत था।

जैसे ही उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपाया, उसकी सिसकियाँ तेज़ हो गईं। "भैया," वह चिल्लाई, "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

मैंने उसके बालों को सहलाया, महसूस किया कि रेशमी बाल मेरी उंगलियों से फिसल रहे हैं और मैंने उसके कान में सांत्वना भरे शब्द फुसफुसाए। "घबरा मत, सब ठीक हो जाएगा," मैंने उसे आश्वासन दिया, हालांकि मेरी अपनी आवाज में संदेह लगभग स्पष्ट था।

उसकी पकड़ मेरे चारों ओर मजबूत हो गई और वह मेरे आलिंगन में कस गई, उसका शरीर मेरे शरीर से मिल कर कांप रहा था। मैं उसके दिल की धड़कन को अपने दिल की गति से मेल खाते हुए महसूस कर सकता था। उस पल में, हवा में व्याप्त भय और हताशा के साथ, मुझे एहसास हुआ कि उसे मेरी कितनी ज़रूरत थी। वह मुझ पर कितना भरोसा करती थी, न केवल एक भाई के रूप में, बल्कि एक विश्वासपात्र, एक रक्षक और शायद इससे भी कुछ अधिक के रूप में।

मैंने उसे दिलासा दी और शांत किया, उसने मुझसे अलग होते हुए माँ का पूरा हाल विस्तार से सुनाया।

हमने धीमे स्वर में अपनी मां की स्थिति, डॉक्टरों की सलाह के बारे में बात की। लेकिन कुछ अनकहे शब्द हमारे बीच भारी थे, उन उथल-पुथल भरी भावनाओं को हम दोनों ही मन के कोने में दबाये सहजता से बात कर रहे थे।

तभी मेरी उम्र का एक आदमी अपने पिता के साथ हमारे पास आया, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी। उसने रोमा पर एक चोर नज़र डाली, उसकी नज़रें उसके आँसुओं से सने चेहरे पर टिक गईं, फिर जल्दी से उसने नज़रें घुमा ली। मुझे गुस्से और इर्षा की एक लहर महसूस हुई जो उस व्यक्ति को रोमा से दूर धकेलना चाह रही थी। लेकिन मैं जानता था कि मुझे अपने प्यार को पारिवारिक कर्तव्य और सामाजिक मानदंडों की परतों के नीचे छिपाकर रखना होगा।

"हेलो, रवि" आदमी ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, उसकी आवाज़ अस्थायी थी। “मैं आकाश हूँ।” मैंने गौर से उसकी तरफ देखा, उसकी सूरत जानी पहचानी सी लगी, वह पतला और लंबा था, उसके माथे पर बिखरे हुए बाल थे। एक साधारण चेक शर्ट और जींस पहने हुए, वह ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी अभी कॉलेज से पास आउट हुआ हो। जब उसने मुझे रोमा का हाथ पकड़ते हुए देखा तो उसकी आंखों में जिज्ञासा का भाव झलक रहा था, शायद ईर्ष्या का भाव।

मैंने उसकी ओर देखा, उसकी नज़रें मेरे और रोमा के चेहरे पर घूम रहीं थी।

आकाश मुझे कंही से भी रोमा के काबिल नहीं लगा, उस तरह से तो बिलकुल नहीं जो वास्तव में मायने रखता था। हमने हाथ मिलाया.

उसकी पकड़ मजबूत थी, उसकी आँखें गहरी थीं और उसने पूछा, "वो कैसी हैं?"

मैंने अपनी आवाज़ धीमी रखते हुए सिर हिलाया। "फिलहाल तो स्थिर है, डॉक्टर चेक कर रहे हैं।"

आकाश और उसके पिता, Mr. गुप्ता, माँ के स्वास्थ्य के बारे में सवाल पूछते रहे, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरी थीं साथ ही हम दोनों भाई बहन को दिलासा देते रहे और हर संभव मदद की पेशकश की।

लगभग एक घंटे के बाद, Mr. गुप्ता ने उदास मुस्कान के साथ मेरी पीठ थपथपाई। "अब हम चलते हैं, तुम्हे किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो कॉल करना" उन्होंने कहा, उनकी आँखों में भाई-बहन के रिश्ते की समझ झलक रही थी। आकाश परेशान लग रहा था, उसकी नज़र रोमा और मेरे बीच घूम रही थी, इससे पहले कि उसने भी सिर हिलाया और जाने के लिए मुड़ गया।

उनके आँखों से ओझल होते ही रोमा ने कस कर मेरी बांह पकड़ ली, हम काफी देर तक मौन बैठे रहे, मेरे मन में अपने और रोमा के सम्बन्धो और माँ की सेहत को लेकर विचारों का एक रेला उमड़ रहा था। रोमा भी शायद वैसा ही महसूस कर रही थी।



"हमें बात करनी चाहिए," आख़िरकार उसने कहा, उसकी आवाज़ धीमी और लड़खड़ा रही थी।

मैंने उसके शब्दों की गंभीरता को महसूस करते हुए सिर हिलाया। "उधर चल कर बैठते हैं" मैंने कोने में पड़ी एक खाली बेंच की और इशारा करते हुए कहा। वो मेरा हाथ पकडे मेरे साथ साथ चल दी और हम दोनों उस कोनेकी बेंच पर आकर बैठ गए।

"क्या बात हैं? रोमी?" मैंने पूछा, मेरी आवाज़ धीमी और सौम्य थी।

रोमा ने गहरी साँस ली, उसकी आँखें मेरी तलाश में थीं। "मुझे इससे शादी नहीं करनी," वह फुसफुसाई, उसकी आवाज़ अस्पताल में रात के सन्नाटे में सुनाई दे रही थी।

उसकी बातें सुनकर मेरा दिल धड़क उठा। "क्या मतलब?" मैंने अपनी आवाज़ को शांत रखने की कोशिश करते हुए पूछा।

"मेरा मतलब है," उसने कहना शुरू किया, उसकी आँखें मेरी आँखों से हट ही नहीं रही थीं।

अचानक, एक नर्स हमे खोजते हुए वंहा आयी "ओह, तुम उधर बैठे हो," उसने कहा, उसकी आवाज़ में तात्कालिकता का संकेत था। "तुम्हारी माँ तुम दोनों के लिए पूछ रही है।"

रोमा और मैंने एक-दूसरे को देखा, हमारी बातचीत के अनकहे शब्द घने कोहरे की तरह हवा में लटक रहे थे। हम जल्दी से खड़े हो गए, और नर्स के पीछे पीछे चल पड़े उसकी एड़ियाँ शांत गलियारे में थिरक रही थीं, उसकी सैंडल की हील की टक टक अस्पताल में गूँज रही थी।

जैसे ही हम ICU के पास पहुँचे, मुझे अपने पेट में एक गांठ सी महसूस हुई। दरवाज़ा खुला, और एंटीसेप्टिक की गंध एक लहर की तरह मुझ पर छा गई। वह अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई थी, विभिन्न मशीनों से चिपकी हुई थी, उनका चेहरा पीला और ऑक्सीजन मास्क से ढका हुआ था।

"माँ," मैंने कहा, मेरी आवाज़ भावना से भर्राई हुई थी। उसने धीरे से अपना सिर घुमाया, उसकी आँखें मेरी थीं और फिर रोमा की ओर बढ़ी।

"बैठो," उन्होंने कमजोर स्वर में कहा, हमें अपने बिस्तर के पास वाली बेंच पर बैठने का इशारा करते हुए। नर्स ने कमरे से बाहर निकलने से पहले सिर हिलाया, और हमें हार्ट मॉनिटर की लयबद्ध बीप के साथ अकेला छोड़ दिया।

जब माँ ने अपना ऑक्सीजन मास्क हटाया तो मेरे हाथ पर उसकी पकड़ आश्चर्यजनक रूप से मजबूत थी। उसकी आँखें मेरे चेहरे को खोज रही थीं, कुछ अनकहा तलाश रही थीं।

"रवि," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ हड़बड़ी और थकान के मिश्रण से कांप रही थी। "मुझे तुम्हें कुछ बताना है।"

मैंने उनकी ओर देखा, मेरे पेट में गाँठ कस रही थी। वह संभवतः क्या कह सकती है जो इस स्थिति को और अधिक जटिल बना देगी?

"माँ," मैंने शुरू किया, मेरी आवाज अस्थायी थी। "क्या बात है, बोलो?"

उनकी आँखों ने मेरी आँखों को खोजा, और एक पल के लिए, मुझे लगा कि वह उन रहस्यों को देख सकती है जिन्हें हम छिपा कर रखे हुए थे। लेकिन उसने धीरे-धीरे सिर हिलाया, उसकी सांसें उथली थीं। "मेरी अलमारी में एक डायरी है," वह फुसफुसाई, उनकी आवाज महज एक सांस थी। "उसमे सब हिसाब किताब हैं"

मेरा दिल बैठ गया। क्या वह सचमुच यही मुझसे कहना चाहती थी? ऐसे समय में हिसाब किताब? लेकिन रोमा की पकड़ मेरे दूसरे हाथ पर मजबूत हो गई, उसकी आँखें समझ से चौड़ी हो गईं। वह जानती थी कि इसका क्या मतलब है। हमारी माँ हमेशा रिकॉर्ड रखने में सावधानी बरतती थीं।

"ठीक है, माँ," मैंने सिर हिलाते हुए कहा। "उसे मैं देख लूंगा।"

रोमा माँ के करीब झुक गई, उसका हाथ हमारी माँ के हाथ में था। उसके गालों से आँसू बह निकले, जिससे उसकी त्वचा पर झिलमिलाती रेखाएँ रह गईं।

"रोमा, तुम हमेशा अपने भाई की बात मानोगी," माँ ने आदेश दिया, उनकी आवाज महज फुसफुसाहट थी। "मुझसे वादा करो।"

रोमा की आँखें मेरी ओर घूम गईं, अनकहा प्रश्न हवा में लटक रहा था। "मैं वादा करती हूं, मां," वह बुदबुदायी, उसकी आँखों से बिना रुके आंसुओं की धरा बहने लगी थी।

माँ की आँखों ने मेरी आँखों को खोजा, "रवि," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी। "मुझसे वादा करो, तुम इसे हमेशा खुश रखोगे।"

जैसे ही उसने रोमा का हाथ मेरे हाथ में रखा, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, उसकी त्वचा की गर्माहट अस्पताल के बिस्तर की ठंडी धातु की रेलिंग से बिल्कुल विपरीत थी। मैंने रोमा की ओर देखा, उसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे, और गंभीरता से सिर हिलाया। "मैं वादा करता हूँ, माँ," मैंने बुदबुदाया, मेरी आवाज़ भावना से भरी हुई थी।

माँ की आँखें बंद हो गईं और उसने गहरी, उखड़ी हुई साँस ली। कमरे में तनाव दम घोंटने वाला था, उसके शब्दों का बोझ एक भारी कंबल की तरह हम पर दबाव डाल रहा था। जब हम उनका हाथ पकड़कर बैठे थे, तो मैं आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सका कि क्या वह हमारी भावनाओं के बारे में जानती थी, क्या उसने किसी तरह हमारे बीच पनप रहे प्रेम के बीज को महसूस कर लिया था।

कमरे का दरवाज़ा खुला, और सफ़ेद वर्दी में एक नर्स अंदर आई। बिस्तर के पास आते ही उसने हमें सहानुभूतिपूर्ण मुस्कान दी। "अब आप बाहर वेट करो," उसने भारी सन्नाटे को चीरते हुए धीरे से कहा।

हमने आज्ञा का पालन किया, जैसे ही हमने गलियारे में कदम रखा, अस्पताल की ठंडी हवा हमारे चेहरे पर तमाचा मार रही थी। तेज़ फ्लोरोसेंट रोशनी ने हर चीज़ को कठोर बना दिया, स्थिति की वास्तविकता एक झटके के साथ सामने आ गई।

हम अस्पताल के प्रांगण में आ गए, रात के ११ बजे थे और इक्का दुक्का कर्मचारी ही हमे इधर उधर आते जाते दिखाई दे रहे थे। अस्पताल में चारों और शान्ति थी। ठंडी हवा पेड़ों से होकर फुसफुसा रही थी, बेंचें ठंडी और सख्त थीं, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं थी।

रोमा मेरी ओर झुक गई, उसका सिर मेरे कंधे पर था। हमारे बीच पसरा सन्नाटा, अनकहे शब्दों से भरा हुआ। मैं उसकी सांसों की गर्मी, उसकी त्वचा की कोमलता और मेरे शरीर पर उसके शरीर का वजन महसूस कर सकता था। हम कई घंटों तक ऐसे ही रहे, ऐसा लगा जैसे जैसे-जैसे हम एक-दूसरे के दिलों की स्थिर धड़कन पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, हमारे बाहर की दुनिया ख़त्म होती जा रही थी।

किसी अनहोनी की आशंका से दिल में घबराहट थी। मन से रह रह कर माँ के स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं उठ रही थीं। अस्पताल की रात की आवाज़ें लोरी बन गईं, कभी-कभार पास से गुजरती नर्स की हंसी, एक नवजात शिशु की दूर से रोने की आवाज़, मरीजों और उनके प्रियजनों की दबी हुई फुसफुसाहट। इन सबके बीच, हमें एक अजीब सी शांति, एक अपनेपन का एहसास हो रहा था के इस कठिन घडी में हम एक दूसरे के साथ हैं ।

फिर, वह क्षण बिखर गया। वही नर्स हमे खोजती हुई प्रांगड़ में हमारे पास आयी, उसकी आँखें उस बोझ से भारी थीं जो वह कहने वाली थी। उसने हमारी ओर देखा, और मैं उसके चेहरे पर उदासी को देख सकता था, जो हानि की हृदय-विदारक कहानी कह रहा था।

"तुम्हारी माँ..." वह शुरू हुई, उसकी आवाज़ धीमी हो गई।



दुनिया रुक गयी. मुझे लगा कि मेरे नीचे की जमीन खिसक गई है, उसके शब्दों की ठंडी, कठोर हकीकत दिल में चाकू की तरह धंस रही है। मेरी दृष्टि धुंधली हो गई, अस्पताल की दीवारों की सफ़ेद दीवारें मेरी आँखों के सामने तैरने लगीं।

"सॉरी," नर्स ने दोहराया, उसकी शांत आवाज़ ने कान में किसी बेसुरी धुन की तरह गूंजी । "सुनीता जी नहीं रहीं। अभी थोड़ी देर पहले उनका निधन हो गया।"

दुनिया अपनी धुरी पर झुक गयी। रोमा के चेहरे पर बदहवासी थी उसने कस कर मेरी बांह पकड़ ली, उसके नाखून मेरी त्वचा में गड़ रहे थे । कुछ पल के लिए हम दोनों ही स्तब्ध से अपनी जगह पर जड़ होकर रह गए।

"नहीं," रोमा ने हांफते हुए कहा, उसकी आवाज अविश्वास से डूबी हुई थी। "यह नहीं हो सकता। माँ….!!" रोमा चीखते हुए ICU की तरफ भागी, मैं भी रोमा के पीछे पीछे दौड़ा।

हमारी माँ, वह महिला जो हमें इस दुनिया में लेकर आई थी, हमारे अस्तित्व का सार, हमें छोड़कर चली गई थी।

हम ICU में पहुंचे, जहाँ माँ शांत लेटी हुई थीं, उनके चेहरे पर एक शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति उभरी हुई थी, जैसे कि उन्हें वह आराम मिल गया हो जिसकी वह इतने लंबे समय से तलाश कर रही थीं। जो मशीनें उसे जीवित रख रही थीं, वे अब शांत थीं, स्क्रीन पर रेखाएं सपाट थीं।

रोमा दहाड़े मार कर रोते हुए मुझसे लिपट गयी, उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया, उसका शरीर सिसकियों से भर गया। मैंने उसे कस कर थाम लिया, मेरी अपनी आँखों से आँसू बह रहे थे। हमारे रहस्य का बोझ, वह बढ़ता प्यार जिसे हम दोनों पूरी तरह से स्वीकार करने से बहुत डर रहे थे, अब मेरे गले में एक भारी पत्थर की तरह महसूस हो रहा था।

जैसे-जैसे हम बिस्तर के पास पहुँचे, रोमा की चीखें तेज़ हो गईं, उसका पूरा शरीर दुःख की तीव्रता से काँप रहा था। मैंने उसे कसकर पकड़ लिया, मेरी अपनी आँखों से आँसू बह रहे थे। हमने उस महिला को खो दिया था जिसने हमे बड़ा किया था, वह महिला जो हमारे जीवन की नींव थी।



--------to be continued--------
Shandar jabardast emotional update
 

Garv

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UPDATE 15:



मसूरी आकर, मैंने खुद को होटल में काम में इतने उत्साह के साथ झोंक दिया कि मैं भी आश्चर्यचकित रह गया। रोज़ आने जाने वाले गेस्ट्स की ज़रूरतों और उनके स्वागत में मैं इस तरह से व्यस्त हुआ के समय गुजरने का पता ही नहीं चला। रोज़मर्रा के काम में व्यस्त होकर मेरे अराजक विचारों को कुछ सांत्वना मिली। रोमा को पाने की चाहतें मेरे मन के भीतर जो उथल पुथल मचाये थीं उन्हें मेरी व्यस्तता की वजह से उभरने का मौका नहीं मिल रहा था।

लेकिन जब रात होती और मेरे होटल के कमरे में शांति छा जाती, तो रोमा के जिस्म की गर्माहट, उसकी त्वचा की कोमलता और उसके जिस्म की मादक खुशबु की यादें मेरे दिमाग में छा जाती। मैं हाथ में फोन लेकर बिस्तर पर लेटा रहता और स्क्रीन पर उसका नाम देखता रहता। रोमा को पाने की मेरी व्याकुलता सामाजिक नियमो को कोसती रहती।

मेरा अंगूठा कॉल बटन पर मंडरा कर रह जाता, एक अनचाहा डर मेरे दिल की धड़कने बड़ा देता। मुझे पता था कि मुझे उससे बात करनी होगी, उस चुप्पी को तोड़ने के लिए जो हमारे चारों ओर एक दीवार की तरह ऊँची हो गयी थी। लेकिन हर बार जब मैं उसका नंबर डायल करने जाता था, तो डर मेरे गले में चिपक जाता था और वे शब्द दब जाते थे जो मैं बहुत उत्सुकता से कहना चाहता था। कांपते हाथों से मैंने उसका नंबर डायल किया पर फिर कॉल कनेक्ट होने से पहले ही फोन काट दिया।

प्यार और भावनाओं से भरी उस बगावती रात को तीन महीने बीत चुके थे, फिर भी उसकी नंगी चिकनी त्वचा की यादें, उसकी भारी मांसल चूचियों का एहसास, मेरे मन में ऐसे ज्वलंत थे मानो कल की बात हो। मुझे उम्मीद थी कि समय के साथ, मेरी भावनाओं की तीव्रता कम हो जाएगी, अपराधबोध कम हो जाएगा, और हम सिर्फ भाई-बहन बनकर लौट सकेंगे। पर हुआ इसके विपरीत, मेरी लालसा और भी मजबूत हो गई थी, किसी जंगल में सुलगती आग की तरह जिसे कोई भी व्यस्तता और काम का बोझ कम नहीं कर सकता था।

मैं लगातार वाणी के संपर्क में था, मसूरी में अपने जीवन की हर बात, होटल में होने वाली हर रोजमर्रा की बात साझा करता था। वह इकलौती मेरी राज़दार थी, मेरे मन की आवाज़ थी जिसने मेरे अंतर्मन में निषिद्ध रोमांस का बीज बोया था। वह मेरे भीतर उमड़ते-घुमड़ते भावनाओं के उथल-पुथल भरे भंवर को समझती थी, वही मुझे उम्मीद देती और नए रास्ते सुझाती थी।

"अपनी चाहत पर भरोसा रखो, रवि," वह कहती थी, उसकी आवाज़ मेरी आत्मा पर एक सौम्य मरहम लगाती थी। "तुम भी जानते हो कि वह तुम्हे कितना चाहती है। माना ये थोड़ा मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं।"

कभी कभी काम से थोड़ी फुर्सत मिलते ही वाणी के शब्द मेरे दिमाग में गूँज उठते थे "वो तुम्हारी है, सिर्फ तुम्हारी"। लेकिन में खुद पर भरोसा खोता जा रहा था, मुझे यकीन नहीं होता था के मेरी ज़िंदगी में ये सब हकीकत में घट रहा है। हमारे बीच सम्बन्धो के अदृश्य दायरे थे, एक ऐसी मर्यादों की रेखा खिंची थी जिसे एक बार पार कर दिया तो फिर वापसी का कोई विकल्प नहीं था।

जब भी मैं अपनी आँखें बंद करता, तो रोमा का चेहरा ही मेरे दिमाग में किसी रौशनी की तरह जगमगाने लगता। उसकी आँखें, गालों की सुर्खी और उसके रसीले होंठ मुझे अपने पाश में जकड़ने लगते। उसकी नंगी कोमल त्वचा की यादें मेरी आत्मा पर एक निशान की तरह थी, जिसे सोचकर ही मेरी रगों में लहू दौड़ने लगता था ।

और फिर, एक दिन ऐसा आया. माँ की कॉल ने उस नियंत्रण के भ्रम को तोड़ दिया जो मैंने बहुत सावधानी से अपने चारों ओर बनाया था।

"रवि,कैसे हो बेटा? " उन्होंने फ़ोन पर अपनी पतली और कमज़ोर आवाज़ में पूछा, "मैं ठीक हूँ माँ, तुम बताओ कैसी हो?" मैंने जवाब देते हुए पूछा, "यंहा भी सब ठीक है। "मैंने तुम्हे बताना था की मैंने रोमा की शादी तय कर दी है, अगले महीने की १५ तारीख निकली है। तुम अपने हिसाब से छुट्टियां ले लेना।" उन्होंने बहुत उत्साह के साथ पूरी बात बताई थी।

उनके शब्द मेरे सर पर हथौड़े की तरह पड़े। मेरी धड़कने सहसा तेज़ हो गयी, और मेरे चारों ओर का कमरा मुझे घूमता हुआ प्रतीत हुआ। शादी? रोमा की? मेरा मन माँ की बाकी बातों को सुनने समझने में असमर्थ हो गया, ऐसा कैसे हो सकता है? रोमा मेरी है, वह किसी और से शादी कैसे कर सकती थी?

"सचमुच, माँ?" मैंने अपनी आवाज को स्थिर रखने की कोशिश करते हुए पूछा। "लड़का कौन है, क्या करता है?"

"उसका नाम आकाश है," उन्होंने कहा, उनके स्वर में उत्साह का संकेत था। "वह एक अच्छा लड़का है, एक सभ्य परिवार से है। उनकी एक कपड़े की दुकान है।"

मेरा दिल ऐसा महसूस हुआ जैसे वह मेरी छाती से बाहर निकाला जा रहा हो। आकाश? एक ऐसा नाम जिसका मेरे लिए कोई मतलब नहीं है, लेकिन जल्द ही रोमा के लिए सब कुछ हो जाएगा। मुझे क्रोध और ईर्ष्या की लहर महसूस हुई।

"क्या रोमा को पसंद है?" मैं पूछने में कामयाब रहा, मेरी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी।

"हाँ, उसने हाँ कर दी है," माँ ने उत्तर दिया, उसकी आवाज़ उत्साह से भर गई। "दोनों की जोड़ी जंचेगी, तुम जब घर आओगे तो खुद देख लेना"

घर। वह स्थान जहाँ यह सब शुरू हुआ, जहाँ हमारी गुप्त लालसा एक मूक तूफ़ान में बदल गई थी जो हमें किसी भी पल अपने आगोश में भर सकती थी। उस घर में लौटने, रोमा को किसी दूसरे आदमी की बाहों में देखने का विचार लगभग असहनीय था। फिर भी, मुझे पता था कि मुझे जाना होगा। मुझे उसका सामना करना पड़ा, क्योंकि वह मेरी बहन है।'

रोमा की शादी का सुनकर मेरे दिन इस तरह से कटने लगे जैसे मेरे शरीर से किसी ने मेरी आत्मा खींच ली हो। मैं बे मन से काम में लगा रहता, दुल्हन के लहंगे में उसकी छवि मेरे अंतर्मन को झकझोर कर रख देती, आकाश का उसके हाथ को थामना और उसके नज़दीक आना हमारे वर्जित प्रेम के ताबूत में कील ठोकने के सामान प्रतीत होता।

एक दिन अपने केबिन में बैठा अपने विचारों में गुम लैपटॉप की स्क्रीन को घूर रहा था, काम करने का मेरा बिलकुल भी मन नहीं था।

"हे हैंडसम, कँहा खोये हो?" प्रीती गौर (मेरी HR) ने मेरे केबिन में एंटर होते हुए पूछा जिससे मेरी तन्द्रा भंग हुई।

"क..क..कुछ नहीं मैम, वो बस ऐसे है" मैंने बात को टालते हुए जवाब दिया। "मैं कुछ दिन से नोट कर रही हूँ रवि, तुम बहुत खोये खोये से रहते हो, लंच पर भी लेट आते हो, तुम्हारी मंथली रिपोर्ट्स भी इस बार लेट है, इस एवरीथिंग ओके?" प्रीती मैम ने मेरे सामने की कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।

"यस यस मैम, सब ठीक है" मैंने अपने चेहरे पर बनावटी हंसी लाने का प्रयास करते हुए जवाब दिया।

"देखो रवि, अगर कुछ प्रॉब्लम है तो तुम मुझसे शेयर कर सकते हो, हम मिलकर कोई सोलुशन ढूंढेंगे" उन्होंने मुझे विश्वास में लेने की कोशिश की।

"नहीं..नहीं मैम, ऐसी कोई बात नहीं है वो बस माँ की तबियत ख़राब रहती है बस इसीलिए थोड़ा मन उदास था" मैंने झूठ बोला और असली वजह को छुपा गया।

"अरे! इसमें इतनी टेंशन वाली क्या बात है कुछ दिन का ब्रेक ले लो और मिल आओ अपनी फॅमिली से" उन्होंने उपाय सुझाया, "हाँ मैम सोच तो रहा हूँ" मैंने जवाब दिया।

"गुड, अब मुझे कल तक मंथली रिपोर्ट्स और परसों तक नेक्स्ट मंथ की बुकिंग डिटेल्स भेजो उसके बाद अपनी लीव एप्लीकेशन लेकर आना" उन्होंने मुझे हिदायत दी और कुर्सी से उठकर केबिन से बहार चली गयीं।

मैंने जानबूझकर रोमा की शादी की बात उनसे छुपाई थी जबकि मुझे उन्हें सच बता कर अपनी छुट्टियां एडवांस में सैंक्शन करा लेनी चाहिए थीं। मैं जानबूझकर अपने स्टाफ से रोमा की शादी को छुपाना चाह रहा था क्यूंकि अगर में अपनी बहन की शादी का ज़िक्र करता तो फिर बहुत से लोगों को वंहा इनविटेशन देना पड़ता और मैं नहीं चाहता था के कोई वंहा आये।

मैंने सोचा के घर पहुंचकर अपनी छुट्टियां बाद में एक्सटेंड करा लूंगा, नहीं तो अनपेड लीव का ऑप्शन तो था ही मेरे पास।

एक हफ्ते बाद मेरी पांच दिन की छुट्टियां मंज़ूर हो गयी। जैसे जैसे रोमा की शादी का दिन नज़दीक आ रहा था मेरी बैचनीयां बढ़ती जा रही थी, मैं अपने जज़्बातों को बमुश्किल काबू किये हुए था। अकेले में अपने कमरे में जब भी उसके बारे में सोचता मेरी सांसें उखाड़ने लगती और मेरी आँखों से आंसू बहने लगते .

मेरी छुट्टी से पहले के दिन उत्साह और भय का एक अजीब मिश्रण थे। मैं रोमा को फिर से देखने, उसकी नज़दीकी महसूस करने और उसकी आँखों में देखने के लिए उत्सुक था, लेकिन उसकी शादी का विचार मेरे हर जागते पल पर काले बादल की तरह मंडरा रहा था। मैंने खुद को अपने काम में झोंक दिया, अपनी हताशा और इच्छा को दबा कर काम में मन लगाया, यह उम्मीद करते हुए कि शारीरिक परिश्रम किसी तरह मेरी आत्मा से उस जुनून को दूर कर देगा जिसने मुझ पर कब्जा कर लिया है।



रोमा की शादी के लिए निकलने से ठीक चार दिन पहले। दिन की हलचल में जब मैं अपने काम में व्यस्त था मेरा फ़ोन मेरी जेब में बजने लगा। मैंने जेब से फ़ोन बहार निकाला और स्क्रीन पर नज़र डाली और महसूस किया कि मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा है। यह रोमा का नाम था, जो अँधेरी पृष्ठभूमि में आशा की किरण की तरह रोशन था।

मैंने जवाब देने के लिए स्वाइप किया, मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं। "हैलो, रोमी," मैंने अपनी आवाज़ को संतुलित रखने की कोशिश करते हुए कहा।

फ़ोन के दूसरे छोर पर एक ठहराव था, जो उसकी उखड़ी साँसों की आवाज़ से भरा हुआ था। "भईया," वह फुसफुसाई, उसकी आवाज कांप रही थी। "माँ को अटैक आया है।"

मेरी दुनिया घूमना बंद हो गयी. "क्या? कब?" मैंने चिल्ला कर पूछा, मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था।

"आज सुबह, वह अपने ऑफिस में थी," रोमा की आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी। "उनका BP... बढ़ गया। डॉक्टर ने कहा कि सीरियस है।"

मैं उसकी आवाज़ में डर, उसके शब्दों में कंपकंपी सुन सकता था, और यह मेरे पेट पर एक मुक्का मारने जैसा था। "अब कैसी हैं वो?" मैं पूछने में कामयाब रहा, मेरा दिमाग उसके शब्दों के निहितार्थ के साथ दौड़ रहा था।

"वो आईसीयू में है," रोमा ने उत्तर दिया, उसकी आवाज़ में थकावट झलक रही थी।

मेरा दिल धक से रह गया। "मैं निकल रहा हूं," मैंने तुरंत ही निर्णय लेते हुए कहा। "तू टेंशन मत ले मैं जल्द से जल्द पहुँचने की कोशिश करूँगा।"

अगले 1 घंटे में मैंने अपनी पैकिंग की और अपनी इमरजेंसी के बारे में होटल प्रबंधक को बता के मैं घर के लिए निकल पड़ा, मेरे एक सहकर्मी ने मुझे बस स्टैंड पर ड्राप किया। घर की यात्रा अनंत काल की तरह महसूस हुई, सड़क का ट्रैफिक और हार्न की आवाज़ें मेरे मन में बेचैनियां बढ़ाती थी ।

जैसे ही मैं अस्पताल पहुँचा, सफ़ेद दीवारें और एंटीसेप्टिक गंध ने भय की भावना ला दी जो ठंडी फुहार की तरह मुझ पर हावी हो गई। मैंने तुरंत रोमा को देखा, जो आईसीयू के बाहर वेटिंग एरिया में चिंतित बैठी थी। उसने साधारण सफ़ेद सलवार कमीज़ पहन रखी थी, उसकी आँखें लाल थीं और रोने के कारण सूजी हुई थीं। उसे इतना नाजुक और असुरक्षित देखकर मेरे मन में उसके लिए प्यार और सुरक्षा की भावना और भी बढ़ गई।

"रोमी," मैंने उसके पास आते हुए धीरे से कहा। उसने ऊपर देखा, और एक पल के लिए, मैंने उसकी आँखों में किसी चीज़ की झलक देखी जो आशा, राहत या शायद प्यार भी हो सकती थी। वह दौड़कर मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कस कर पकड़ लिया, उसकी गर्माहट महसूस हो रही थी, उसका कांपता शरीर मेरे शरीर से चिपक गया था। यह अस्पताल के ठंडे, बाँझ वातावरण से बिल्कुल विपरीत था।

जैसे ही उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपाया, उसकी सिसकियाँ तेज़ हो गईं। "भैया," वह चिल्लाई, "मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

मैंने उसके बालों को सहलाया, महसूस किया कि रेशमी बाल मेरी उंगलियों से फिसल रहे हैं और मैंने उसके कान में सांत्वना भरे शब्द फुसफुसाए। "घबरा मत, सब ठीक हो जाएगा," मैंने उसे आश्वासन दिया, हालांकि मेरी अपनी आवाज में संदेह लगभग स्पष्ट था।

उसकी पकड़ मेरे चारों ओर मजबूत हो गई और वह मेरे आलिंगन में कस गई, उसका शरीर मेरे शरीर से मिल कर कांप रहा था। मैं उसके दिल की धड़कन को अपने दिल की गति से मेल खाते हुए महसूस कर सकता था। उस पल में, हवा में व्याप्त भय और हताशा के साथ, मुझे एहसास हुआ कि उसे मेरी कितनी ज़रूरत थी। वह मुझ पर कितना भरोसा करती थी, न केवल एक भाई के रूप में, बल्कि एक विश्वासपात्र, एक रक्षक और शायद इससे भी कुछ अधिक के रूप में।

मैंने उसे दिलासा दी और शांत किया, उसने मुझसे अलग होते हुए माँ का पूरा हाल विस्तार से सुनाया।

हमने धीमे स्वर में अपनी मां की स्थिति, डॉक्टरों की सलाह के बारे में बात की। लेकिन कुछ अनकहे शब्द हमारे बीच भारी थे, उन उथल-पुथल भरी भावनाओं को हम दोनों ही मन के कोने में दबाये सहजता से बात कर रहे थे।

तभी मेरी उम्र का एक आदमी अपने पिता के साथ हमारे पास आया, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी। उसने रोमा पर एक चोर नज़र डाली, उसकी नज़रें उसके आँसुओं से सने चेहरे पर टिक गईं, फिर जल्दी से उसने नज़रें घुमा ली। मुझे गुस्से और इर्षा की एक लहर महसूस हुई जो उस व्यक्ति को रोमा से दूर धकेलना चाह रही थी। लेकिन मैं जानता था कि मुझे अपने प्यार को पारिवारिक कर्तव्य और सामाजिक मानदंडों की परतों के नीचे छिपाकर रखना होगा।

"हेलो, रवि" आदमी ने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, उसकी आवाज़ अस्थायी थी। “मैं आकाश हूँ।” मैंने गौर से उसकी तरफ देखा, उसकी सूरत जानी पहचानी सी लगी, वह पतला और लंबा था, उसके माथे पर बिखरे हुए बाल थे। एक साधारण चेक शर्ट और जींस पहने हुए, वह ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी अभी कॉलेज से पास आउट हुआ हो। जब उसने मुझे रोमा का हाथ पकड़ते हुए देखा तो उसकी आंखों में जिज्ञासा का भाव झलक रहा था, शायद ईर्ष्या का भाव।

मैंने उसकी ओर देखा, उसकी नज़रें मेरे और रोमा के चेहरे पर घूम रहीं थी।

आकाश मुझे कंही से भी रोमा के काबिल नहीं लगा, उस तरह से तो बिलकुल नहीं जो वास्तव में मायने रखता था। हमने हाथ मिलाया.

उसकी पकड़ मजबूत थी, उसकी आँखें गहरी थीं और उसने पूछा, "वो कैसी हैं?"

मैंने अपनी आवाज़ धीमी रखते हुए सिर हिलाया। "फिलहाल तो स्थिर है, डॉक्टर चेक कर रहे हैं।"

आकाश और उसके पिता, Mr. गुप्ता, माँ के स्वास्थ्य के बारे में सवाल पूछते रहे, उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरी थीं साथ ही हम दोनों भाई बहन को दिलासा देते रहे और हर संभव मदद की पेशकश की।

लगभग एक घंटे के बाद, Mr. गुप्ता ने उदास मुस्कान के साथ मेरी पीठ थपथपाई। "अब हम चलते हैं, तुम्हे किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो कॉल करना" उन्होंने कहा, उनकी आँखों में भाई-बहन के रिश्ते की समझ झलक रही थी। आकाश परेशान लग रहा था, उसकी नज़र रोमा और मेरे बीच घूम रही थी, इससे पहले कि उसने भी सिर हिलाया और जाने के लिए मुड़ गया।

उनके आँखों से ओझल होते ही रोमा ने कस कर मेरी बांह पकड़ ली, हम काफी देर तक मौन बैठे रहे, मेरे मन में अपने और रोमा के सम्बन्धो और माँ की सेहत को लेकर विचारों का एक रेला उमड़ रहा था। रोमा भी शायद वैसा ही महसूस कर रही थी।



"हमें बात करनी चाहिए," आख़िरकार उसने कहा, उसकी आवाज़ धीमी और लड़खड़ा रही थी।

मैंने उसके शब्दों की गंभीरता को महसूस करते हुए सिर हिलाया। "उधर चल कर बैठते हैं" मैंने कोने में पड़ी एक खाली बेंच की और इशारा करते हुए कहा। वो मेरा हाथ पकडे मेरे साथ साथ चल दी और हम दोनों उस कोनेकी बेंच पर आकर बैठ गए।

"क्या बात हैं? रोमी?" मैंने पूछा, मेरी आवाज़ धीमी और सौम्य थी।

रोमा ने गहरी साँस ली, उसकी आँखें मेरी तलाश में थीं। "मुझे इससे शादी नहीं करनी," वह फुसफुसाई, उसकी आवाज़ अस्पताल में रात के सन्नाटे में सुनाई दे रही थी।

उसकी बातें सुनकर मेरा दिल धड़क उठा। "क्या मतलब?" मैंने अपनी आवाज़ को शांत रखने की कोशिश करते हुए पूछा।

"मेरा मतलब है," उसने कहना शुरू किया, उसकी आँखें मेरी आँखों से हट ही नहीं रही थीं।

अचानक, एक नर्स हमे खोजते हुए वंहा आयी "ओह, तुम उधर बैठे हो," उसने कहा, उसकी आवाज़ में तात्कालिकता का संकेत था। "तुम्हारी माँ तुम दोनों के लिए पूछ रही है।"

रोमा और मैंने एक-दूसरे को देखा, हमारी बातचीत के अनकहे शब्द घने कोहरे की तरह हवा में लटक रहे थे। हम जल्दी से खड़े हो गए, और नर्स के पीछे पीछे चल पड़े उसकी एड़ियाँ शांत गलियारे में थिरक रही थीं, उसकी सैंडल की हील की टक टक अस्पताल में गूँज रही थी।

जैसे ही हम ICU के पास पहुँचे, मुझे अपने पेट में एक गांठ सी महसूस हुई। दरवाज़ा खुला, और एंटीसेप्टिक की गंध एक लहर की तरह मुझ पर छा गई। वह अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई थी, विभिन्न मशीनों से चिपकी हुई थी, उनका चेहरा पीला और ऑक्सीजन मास्क से ढका हुआ था।

"माँ," मैंने कहा, मेरी आवाज़ भावना से भर्राई हुई थी। उसने धीरे से अपना सिर घुमाया, उसकी आँखें मेरी थीं और फिर रोमा की ओर बढ़ी।

"बैठो," उन्होंने कमजोर स्वर में कहा, हमें अपने बिस्तर के पास वाली बेंच पर बैठने का इशारा करते हुए। नर्स ने कमरे से बाहर निकलने से पहले सिर हिलाया, और हमें हार्ट मॉनिटर की लयबद्ध बीप के साथ अकेला छोड़ दिया।

जब माँ ने अपना ऑक्सीजन मास्क हटाया तो मेरे हाथ पर उसकी पकड़ आश्चर्यजनक रूप से मजबूत थी। उसकी आँखें मेरे चेहरे को खोज रही थीं, कुछ अनकहा तलाश रही थीं।

"रवि," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ हड़बड़ी और थकान के मिश्रण से कांप रही थी। "मुझे तुम्हें कुछ बताना है।"

मैंने उनकी ओर देखा, मेरे पेट में गाँठ कस रही थी। वह संभवतः क्या कह सकती है जो इस स्थिति को और अधिक जटिल बना देगी?

"माँ," मैंने शुरू किया, मेरी आवाज अस्थायी थी। "क्या बात है, बोलो?"

उनकी आँखों ने मेरी आँखों को खोजा, और एक पल के लिए, मुझे लगा कि वह उन रहस्यों को देख सकती है जिन्हें हम छिपा कर रखे हुए थे। लेकिन उसने धीरे-धीरे सिर हिलाया, उसकी सांसें उथली थीं। "मेरी अलमारी में एक डायरी है," वह फुसफुसाई, उनकी आवाज महज एक सांस थी। "उसमे सब हिसाब किताब हैं"

मेरा दिल बैठ गया। क्या वह सचमुच यही मुझसे कहना चाहती थी? ऐसे समय में हिसाब किताब? लेकिन रोमा की पकड़ मेरे दूसरे हाथ पर मजबूत हो गई, उसकी आँखें समझ से चौड़ी हो गईं। वह जानती थी कि इसका क्या मतलब है। हमारी माँ हमेशा रिकॉर्ड रखने में सावधानी बरतती थीं।

"ठीक है, माँ," मैंने सिर हिलाते हुए कहा। "उसे मैं देख लूंगा।"

रोमा माँ के करीब झुक गई, उसका हाथ हमारी माँ के हाथ में था। उसके गालों से आँसू बह निकले, जिससे उसकी त्वचा पर झिलमिलाती रेखाएँ रह गईं।

"रोमा, तुम हमेशा अपने भाई की बात मानोगी," माँ ने आदेश दिया, उनकी आवाज महज फुसफुसाहट थी। "मुझसे वादा करो।"

रोमा की आँखें मेरी ओर घूम गईं, अनकहा प्रश्न हवा में लटक रहा था। "मैं वादा करती हूं, मां," वह बुदबुदायी, उसकी आँखों से बिना रुके आंसुओं की धरा बहने लगी थी।

माँ की आँखों ने मेरी आँखों को खोजा, "रवि," उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी। "मुझसे वादा करो, तुम इसे हमेशा खुश रखोगे।"

जैसे ही उसने रोमा का हाथ मेरे हाथ में रखा, मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा, उसकी त्वचा की गर्माहट अस्पताल के बिस्तर की ठंडी धातु की रेलिंग से बिल्कुल विपरीत थी। मैंने रोमा की ओर देखा, उसकी आँखों में आँसू छलक रहे थे, और गंभीरता से सिर हिलाया। "मैं वादा करता हूँ, माँ," मैंने बुदबुदाया, मेरी आवाज़ भावना से भरी हुई थी।

माँ की आँखें बंद हो गईं और उसने गहरी, उखड़ी हुई साँस ली। कमरे में तनाव दम घोंटने वाला था, उसके शब्दों का बोझ एक भारी कंबल की तरह हम पर दबाव डाल रहा था। जब हम उनका हाथ पकड़कर बैठे थे, तो मैं आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सका कि क्या वह हमारी भावनाओं के बारे में जानती थी, क्या उसने किसी तरह हमारे बीच पनप रहे प्रेम के बीज को महसूस कर लिया था।

कमरे का दरवाज़ा खुला, और सफ़ेद वर्दी में एक नर्स अंदर आई। बिस्तर के पास आते ही उसने हमें सहानुभूतिपूर्ण मुस्कान दी। "अब आप बाहर वेट करो," उसने भारी सन्नाटे को चीरते हुए धीरे से कहा।

हमने आज्ञा का पालन किया, जैसे ही हमने गलियारे में कदम रखा, अस्पताल की ठंडी हवा हमारे चेहरे पर तमाचा मार रही थी। तेज़ फ्लोरोसेंट रोशनी ने हर चीज़ को कठोर बना दिया, स्थिति की वास्तविकता एक झटके के साथ सामने आ गई।

हम अस्पताल के प्रांगण में आ गए, रात के ११ बजे थे और इक्का दुक्का कर्मचारी ही हमे इधर उधर आते जाते दिखाई दे रहे थे। अस्पताल में चारों और शान्ति थी। ठंडी हवा पेड़ों से होकर फुसफुसा रही थी, बेंचें ठंडी और सख्त थीं, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं थी।

रोमा मेरी ओर झुक गई, उसका सिर मेरे कंधे पर था। हमारे बीच पसरा सन्नाटा, अनकहे शब्दों से भरा हुआ। मैं उसकी सांसों की गर्मी, उसकी त्वचा की कोमलता और मेरे शरीर पर उसके शरीर का वजन महसूस कर सकता था। हम कई घंटों तक ऐसे ही रहे, ऐसा लगा जैसे जैसे-जैसे हम एक-दूसरे के दिलों की स्थिर धड़कन पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, हमारे बाहर की दुनिया ख़त्म होती जा रही थी।

किसी अनहोनी की आशंका से दिल में घबराहट थी। मन से रह रह कर माँ के स्वस्थ होने की प्रार्थनाएं उठ रही थीं। अस्पताल की रात की आवाज़ें लोरी बन गईं, कभी-कभार पास से गुजरती नर्स की हंसी, एक नवजात शिशु की दूर से रोने की आवाज़, मरीजों और उनके प्रियजनों की दबी हुई फुसफुसाहट। इन सबके बीच, हमें एक अजीब सी शांति, एक अपनेपन का एहसास हो रहा था के इस कठिन घडी में हम एक दूसरे के साथ हैं ।

फिर, वह क्षण बिखर गया। वही नर्स हमे खोजती हुई प्रांगड़ में हमारे पास आयी, उसकी आँखें उस बोझ से भारी थीं जो वह कहने वाली थी। उसने हमारी ओर देखा, और मैं उसके चेहरे पर उदासी को देख सकता था, जो हानि की हृदय-विदारक कहानी कह रहा था।

"तुम्हारी माँ..." वह शुरू हुई, उसकी आवाज़ धीमी हो गई।



दुनिया रुक गयी. मुझे लगा कि मेरे नीचे की जमीन खिसक गई है, उसके शब्दों की ठंडी, कठोर हकीकत दिल में चाकू की तरह धंस रही है। मेरी दृष्टि धुंधली हो गई, अस्पताल की दीवारों की सफ़ेद दीवारें मेरी आँखों के सामने तैरने लगीं।

"सॉरी," नर्स ने दोहराया, उसकी शांत आवाज़ ने कान में किसी बेसुरी धुन की तरह गूंजी । "सुनीता जी नहीं रहीं। अभी थोड़ी देर पहले उनका निधन हो गया।"

दुनिया अपनी धुरी पर झुक गयी। रोमा के चेहरे पर बदहवासी थी उसने कस कर मेरी बांह पकड़ ली, उसके नाखून मेरी त्वचा में गड़ रहे थे । कुछ पल के लिए हम दोनों ही स्तब्ध से अपनी जगह पर जड़ होकर रह गए।

"नहीं," रोमा ने हांफते हुए कहा, उसकी आवाज अविश्वास से डूबी हुई थी। "यह नहीं हो सकता। माँ….!!" रोमा चीखते हुए ICU की तरफ भागी, मैं भी रोमा के पीछे पीछे दौड़ा।

हमारी माँ, वह महिला जो हमें इस दुनिया में लेकर आई थी, हमारे अस्तित्व का सार, हमें छोड़कर चली गई थी।

हम ICU में पहुंचे, जहाँ माँ शांत लेटी हुई थीं, उनके चेहरे पर एक शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति उभरी हुई थी, जैसे कि उन्हें वह आराम मिल गया हो जिसकी वह इतने लंबे समय से तलाश कर रही थीं। जो मशीनें उसे जीवित रख रही थीं, वे अब शांत थीं, स्क्रीन पर रेखाएं सपाट थीं।

रोमा दहाड़े मार कर रोते हुए मुझसे लिपट गयी, उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छिपा लिया, उसका शरीर सिसकियों से भर गया। मैंने उसे कस कर थाम लिया, मेरी अपनी आँखों से आँसू बह रहे थे। हमारे रहस्य का बोझ, वह बढ़ता प्यार जिसे हम दोनों पूरी तरह से स्वीकार करने से बहुत डर रहे थे, अब मेरे गले में एक भारी पत्थर की तरह महसूस हो रहा था।

जैसे-जैसे हम बिस्तर के पास पहुँचे, रोमा की चीखें तेज़ हो गईं, उसका पूरा शरीर दुःख की तीव्रता से काँप रहा था। मैंने उसे कसकर पकड़ लिया, मेरी अपनी आँखों से आँसू बह रहे थे। हमने उस महिला को खो दिया था जिसने हमे बड़ा किया था, वह महिला जो हमारे जीवन की नींव थी।



--------to be continued--------
Brilliantly crafted emotions.. Great work dear.
 
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