UPDATE 6:
वाणी से मिलकर वापसी में मैंने रोमा द्वारा फरमाइश की गयी स्मार्ट वाच खरीद ली थी। जो बीज वाणी ने मेरे ज़हन में बोया था उसे देखते हुए अब मैं रोमा को किसी भी तरीके से नाराज़ नहीं कर सकता था। रोमा को पटाना और उसे अपनी प्रेमिका बनाना एक असंभव सा कार्य था जिसके बारे में पुरे सफर सोचता हुआ आया था। रोमा को देखने का मेरा नजरिया अब पूरी तरह से बदल चूका था अब मुझे वो बहन से ज़ादा एक कामुक प्रेयसी नज़र आने लगी थी।
मेरी छुट्टी के कुछ ही दिन और शेष बचे थे और मुझे रोमा के साथ कुछ पल तो ऐसे गुज़ारने थे जिसमे सिर्फ वो और मैं हूँ और हमारी बातें हो।
मैंने जब रात को 8 बजे घर की bell बजायी तो थोड़ी देर बाद रोमा ने दरवाज़ा खोला, वो पीले रंग का सलवार कुरता पहने गज़ब की सुन्दर और कामुक प्रतीत हो रही थी, मेरी नज़र उसके सुन्दर चेहरे से होती हुई उसकी बड़ी बड़ी टाइट चूचियों पर टिक गयी जो उसके कुर्ते को फाड़ के बहार आना चाह रही थी।
मैंने पहले कभी भी उसे इस नज़र से नहीं देखा था, रोमा के शब्दों ने मेरी भाव भंगिमा को तोड़ा "ओ, हेलो! अब बहार ही खड़े रहोगे?" मैंने सकपकाते हुए खुद के जज़्बातों पर काबू पाया "अरे सामने से तो हट", मेरी बात सुनकर वो थोड़ा मुस्कुराई और एक साइड हो गयी, मैं घर के अंदर दाखिल हो गया। "ऐसे क्या देख रहे थे ? सब ठीक तो है?" उसने मेरे पीछे आते हुए सवाल किया। "देख रहा था तू कितनी सुन्दर हो गयी है पहले कितनी कल्लो थी" मैंने उसे चिढ़ाते हुए अपना बैग टेबल पर रखते हुए कहा, "जी नहीं, मैं पहले सी ही सुन्दर थी" उसने तपाक से जवाब दिया। "मेरा गिफ्ट लाये हो?" उसने खुश होते हुए पूछा। "हाँ लाया हूँ, पहले ये बता माँ को दवाई दी ?" मैंने उसके चेहरे को निहारते हुए कहा।
"अभी नहीं दी, अभी खाना खा के लेटी हैं" उसने मेरे सवाल का जवाब दिया, उसकी आँखों में एक ख़ुशी की चमक थी "मेरा गिफ्ट निकालो?" उसने हाथ आगे बड़ा के पूछा। "पहले शाही पनीर ?" मैंने उसे छेड़ा।
"अरे यार बनाया है, तुम गिफ्ट नहीं भी लाते तब भी बनाती" उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, मैंने एक मुस्कान के साथ अपने बैग की ज़िप खोल कर एक डब्बी निकाली और उसके हाथ पर रख दी "ले अपना गिफ्ट", रोमा ख़ुशी के मारे उछाल पड़ी "ओह! भईया, थैंक्यू, थैंक्यू" अपने एक हाथ में डब्बी पकडे वो इतने ज़ोर से मेरे गले लगी के उसकी 36 inch की चूचियाँ मेरे सीने में दब कर पीस गयी, उसकी चूचियों की मांसलता और कठोरता के एहसास से ही मेरा लंड पैंट में तम्बू बनाने लगा। बस कुछ पल को ही वो मेरे गले लगी और उन पलों में ही मुझे उसकी जवानी और जिस्म की सुडौलता का एहसास हो गया।
सफर और वाणी की दो बार चुदाई से मैं थका हुआ तो था ही ऊपर से रोमा के हुस्न ने मेरी सोचने समझने की शक्ति क्षीण कर दी, मैंने खाना खाया और माँ को दवाई देने के बाद अपने कमरे में आकर सो गया।
अगला दिन मेरे लिए सामान्य दिनों जैसा नहीं था जब भी मेरी नज़र रोमा पर पड़ती मैं उसके हुस्न और गदरायी जवानी में खो सा जाता और उसे टकटकी बाँध के निहारता रहता कई बार तो रोमा ने मुझे खुद को ताड़ते हुए पकड़ भी लिया पर हर बार मैं उससे अपनी नज़रें चुरा जाता। शाम के वक्त में घर की छत्त पर खड़ा रोमा के ही विचारों में व्यस्त था जो मुझे उत्साहित भी कर रहे थे और परेशान भी। मैंने अपनी घड़ी की ओर देखा, ७ बजने को थे और इस वक्त हम दोनों भाई बहन घर के पास एक पार्क में टहलने जाते थे, ये हमारा रोज़ की दिनचर्या का हिस्सा था। पर आज बात कुछ और थी मेरे भीतर एक अजीब सी ख्वाहिश पैदा होने लगी, एक ऐसी भावना जो पूरी तरह से नई थी और फिर भी बेहद जानी पहचानी प्रतीत होती थी।
जैसे ही मैं लिविंग रूम में गया, मैंने पाया कि रोमा पहले से ही इंतज़ार कर रही थी, उसकी आँखें टीवी पर टिकी हुई थीं, उसे मेरे आने का पता नहीं चला। लैम्पलाइट की धीमी रोशनी उसके सुन्दर चेहरे पर एक छठा सी बिखेर रही थी, उसके लंबे, काले बाल उसकी पीठ पर लटक रहे थे, जिससे उसका चेहरा किसी गढ़ी हुई मोहक मूर्ति की तरह लग रहा था। उसके शरीर का आकार उसकी टाइट-फिटिंग कुर्ते से उजागर हो रहा था, जो उससे इस तरह चिपकी हुई थी जैसे कैसी भी पल उसकी चूचियाँ उसके कुर्ते के कपडे को फाड़ के बहार झलक पड़ेंगी। मेरी सांसें मेरे गले में अटक गईं। एक पल के लिए, मैं एक भाई के प्यार और एक आदमी की इच्छाओं के बीच फंस गया था।
उसने मेरी आहट पर पलट के मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें मेरी ओर चमक उठीं, उसकी निगाहों में जिज्ञासा की झलक झलक रही थी। "चलें?" उसने पूछा, उसकी आवाज में उत्साह का संकेत था। मैंने खुद को संभालने की कोशिश करते हुए सिर हिलाया और उसके पीछे शाम की ठंडी हवा में चला गया। पड़ोस शांत था, केवल दूर तक यातायात की गड़गड़ाहट और कुछ लोगों का उसी रास्ते से आना जाना लगा था ।
हम परिचित सड़कों पर टहल रहे थे, हमारी बातचीत में छोटी-मोटी बातें और साझा यादें शामिल थीं। फिर भी, हमारे हर कदम के साथ, वाणी के शब्द मेरे दिमाग में गूंजते रहे, जो मुझे बहका रहे थे। मैंने चोरी से रोमा के हिलते हुए कूल्हों पर नज़रें दौड़ाई, उसके हर कदम के साथ उसकी गांड थोड़ी-थोड़ी हिल रही थी। उसके कुर्ते का सूती कपड़ा उसके चूतड़ों पर कसकर फैला हुआ था, जिससे उसकी पैंटी की रूपरेखा का पता चल रहा था। मैं अपनी पैंट में अपने लंड को हिलते हुए महसूस कर सकता था, और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि क्या उसे इस बात का अंदाज़ा था कि मेरे मन में क्या चल रहा है।
जैसे ही हम पार्क के पास पहुँचे, बच्चों के खेलने का मैदान सुनसान था, खली झूले हवा में धीरे-धीरे झूल रहे थे। आकाश में चंद्रमा खाली बेंचों और छायादार रास्तों पर चांदी की चमक बिखेर रहा था। रोमा को छूने, अपनी उंगलियों के नीचे उसके जिस्म की गर्माहट महसूस करने की इच्छा अचानक मुझ पर हावी हो गई। मैं आगे बढ़ा और उसके हाथ को कोहनी के पास से पकड़ लिया। उसने सवाल करते हुए ऊपर मेरी तरफ देखा और एक पल के लिए मुझे लगा कि वह दूर चली जाएगी। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. इसके बजाय, उसने मुझे एक हल्की सी मुस्कान दी और मेरे स्पर्श को सहजता से स्वीकार कर लिया।
हम एक बेंच पर बैठ गए, बेंच का ठंडा लोहा मेरे भीतर जल रही गर्मी से बिल्कुल विपरीत था। हमारे बीच थोड़ी देर ख़ामोशी छायी रही फिर रोमा मेरे करीब झुक गई, उसकी सांसें मेरे गाल पर हल्की सी फुसफुसाहट के साथ गूंजीं। "कब तक रुकोगे भईया?" उसने पूछा, उसकी आवाज़ धीमी और अंतरंग थी।
मैंने अपना सर उसके सर की तरफ झुकाया, उसके जिस्म से आ रही musk perfume की धीमी खुशबु मादक थी, जो मुझे और अधिक मदहोश कर रही थी। "जब तक माँ ठीक नहीं हो जाती और ऑफिस नहीं जाने लगती, पता नहीं यार…कुछ समझ नहीं आ रहा ।"
रोमा ने आह भरी और दूसरी ओर देखा, उसकी आँखों में हमारी माँ की हालत पर दुख झलक रहा था। उसका हाथ अभी भी मेरे हाथ में था, और मुझे उसे अपने करीब खींचने, उसे चूमने, उस पर अपना दवा ठोकने की इच्छा महसूस हुई। मैंने अपने जज़्बातों पर काबू पाया, मुझे कोई भी ऐसी हरकत नहीं करनी थी जिससे वो नाराज़ हो जाये और मुझे सर्मसार होना पड़े।
"मुझे तुम्हारी याद आएगी," उसने कहा, उसकी आवाज़ फुसफुसाहट से थोड़ी ही ऊपर थी। "लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम माँ की खबर सुनते ही भागे चले आये ।"
उसके शब्दों ने मुझे झकझोर कर रख दिया और मुझे अपने अंदर अचानक से साहस का संचार महसूस हुआ। मैंने उसके हाथ को धीरे से दबाया, उसकी हाथ की कोमल त्वचा के नीचे उसके खून की धड़कन को महसूस किया। "तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन?," मैंने उसके करीब झुकते हुए कहा।
उसने मेरी ओर देखा, उसकी आँखें मेरी आँखों में देख रही थीं, उसके होठों पर एक सवाल घूम रहा था। "तुम Delhi में अपनी Job को मिस कर रहे हो," उसने बातचीत को हल्का रखने की कोशिश करते हुए पूछा।
"अरे! नहीं," मैंने उत्तर दिया, "ढाई साल से वही जॉब करके तंग आ गया हूँ, मुझे भी एक ब्रेक चाहिए था ।" सच तो यह था कि मेरे काम की एकरसता से मेरा दम घुट रहा था, लेकिन माँ की बीमारी ने मेरे घर आने के निर्णय को आसान बना दिया था।
उसकी निगाहें मेरे चेहरे पर परेशानी की वजह तलाश रही थी। "तो ये बात है," उसने धीरे से कहा, और मैं उसके हाथ की गर्माहट अपने हाथ में महसूस कर सकता था, जिससे मेरी रीढ़ में रोमांच पैदा हो गया। "तो जॉब चेंज कर लो।"
"हम्म, मेरे पास एक और जॉब का ऑफर है, लेकिन मैं उलझन में हूँ," मैंने उसे बताया। मुझे बड़े ग्रुप से एक अच्छी जॉब का ऑफर था पर माँ और रोमा से ज़ादा दूर होने की वजह से अभी तक मैंने उस ऑफर को हाँ नहीं कहा था। "नयी कंपनी चाहती है कि मैं उनके एक नए प्रोजेक्ट को लीड करूं, लेकिन यह पहाड़ों में बहुत दूर है।"
"पहाड़ो में कहाँ?" उसने उत्सुकता से पूछा, उसकी आँखें चमक उठीं। "यह तो बढ़िया लगता है। “प्रोजेक्ट किस बारे में है?"
"यह मसूरी में ऊंचाई पर बन रहा एक नए होटल और रिसॉर्ट है," मैंने उसकी ओर देखते हुए उत्तर दिया। मसूरी का जिक्र आते ही मेरी आवाज में उत्साह का संचार हो गया।
रोमा की आँखें फैल गईं। "वाह, मसूरी तो बहुत खूबसूरत जगह है," वह बुदबुदायी, उसकी आवाज में ईर्ष्या का भाव भर गया। "लेकिन हमारा क्या? माँ की देखभाल कौन करेगा?"
अपराधबोध ने मेरे दिल पर वार कर दिया। "इसीलिए तो अभी तक हाँ नहीं किया है यार," मैंने अपनी आवाज़ को स्थिर रखने की कोशिश करते हुए कहा। "इसलिए तो मैं असमंजस में हूं कि ऑफर स्वीकार करूं या छोड़ दूं।"
रोमा एक पल के लिए सोच में पड़ गई, फिर वह अपनी आँखों में दृढ़ निश्चय के साथ मेरी ओर मुड़ी। "तुम ऑफर एक्सेप्ट करो भईया" उसने सुझाव दिया. "तुम हमेशा से पहाड़ों में रहना चाहते थे और ये तुम्हारी ड्रीम जॉब हो सकती है, माँ और मैं जैसे भी होगा मैनेज कर लेंगे।"
उसने बोलते हुए बहुत ही maturity दिखाई थी पर फिर भी मेरे मन में अभी भी शंका थी। "मुझे पता है यार, तुम दोनों पहल भी मेरे बिना संभल रहे थे और आगे भी संभाल लोगे लेकिन मुझे हमेशा तुम्हारी चिंता लगी रहती है" मैंने कहा, मेरी आवाज़ में चिंता स्पष्ट थी। "मैं तुम लोगों को और अकेला नहीं छोड़ सकता, माँ की बीमारी की बाद तो बिलकुल भी नहीं"
रोमा ने अपना सिर मेरे कंधे पर झुका लिया, उसके जिस्म की गर्माहट से मुझमें चाहत की लहरें दौड़ रही थीं। "चिंता मत करो सब ठीक हो जायेगा, माँ भी अब ठीक हैं" उसने मुझे आश्वासन दिया, उसकी आवाज़ मेरे उग्र विचारों पर एक सुखद मरहम थी। "ज़ादा नहीं तो कुछ समय की लिए अपनी दिल्ली की जॉब से ब्रेक समझ कर ज्वाइन कर लो, साल २ साल तो हम खुद को संभाल ही लेंगे"
उसके शब्द मेरे भीतर गूंज गए, उसकी बातों में मेरी समस्या का हल था। मैंने एक गहरी साँस ली और अपने भीतर उमड़ती भावनाओं को शांत करने की कोशिश की। "लेकिन तेरा क्या?" मैंने पूछा, उसकी सुरक्षा की जरूरत सबसे ज़ादा थी । "तूने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली है, जब माँ ऑफिस जाती है तो तू बिल्कुल अकेले रहती है।"
"कँहा से बड़ी हो गयी तू? अभी भी निरि बुद्धू है" मैंने हँसते हुए उस छेड़ा
"अच्छा में बुद्धू, अभी बताती हूँ" कहकर उसने मेरे हाथ को ज़ोर से मोड़ दिया। "आह! मर गया" मैंने बनावटी दर्द और चिल्ला क़े कहा, "ओह! सॉरी सॉरी ज़ादा ज़ोर से कर दिया" उसने तुरंत मेरा हाथ छोड़ क़े मुझसे माफ़ी मांगी।
"जा तुझे माफ़ किया जंगली बिल्ली, ये बता तुझे वो वाच कैसी लगी?" मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा। "ये देखो मैंने पहनी है, प्यारी लग रही है न?" उसने मासूमियत से मुझे अपनी कलाई दिखते हुए जवाब दिया। "हम्म, प्यारी तो है पर तुझसे ज़ादा नहीं" मैंने भावनाओं में बहकर कह दिया, "अच्छा, अभी तो मुझे जंगली बिल्ली बोल रहे थे अब मैं प्यारी हो गयी" उसने अपनी भौंहे सिकोड़ते हुए पूछा, "तो, जंगली बिल्लियां भी तो प्यारी होती हैं" मैंने उससे मुस्कुरा क़े कहा।
"बच के रहना बेटा, जंगली बिल्लियां पंजा भी मार देती हैं" उसने अपने हाथ से बिल्ली की तरह पंजा बनाते हुए कहा, "हाँ सच में उनके नाख़ून भी तेरी तरह बड़े होते हैं हा हा हा" मैंने हँसते हुए उसे फिर छेड़ा। मेरी बात सुनकर वो हंसने लगी और अपने बड़े नाख़ून देखते हुए बोली "सभी लड़कियों के होते हैं" उसने सफाई दी।
"चलें अब, माँ इंतज़ार कर रही होगी" मैंने बेंच से उसका हाथ पकड़ के उठाते हुए कहा, वो उठी और मेरा हाथ थामे साथ साथ चलने लगी, मैंने प्यार और कामनाओं का एक अजीब मिश्रण अपने अंदर महसूस करते हुए उसका हाथ दबाया। "मैं शाम के इस वक्त को बहुत मिस करूँगा, रोमी" मैंने कहा, मेरी आवाज़ भर्राई हुई थी, सिर्फ मैं ही उसे प्यार से रोमी बुलाता था और उसे ये पसंद था। ।
रोमा ने मेरी ओर देखा, उसकी आँखों में गर्माहट भरी हुई थी जो अंधेरे को चीरती हुई लग रही थी। "मैं भी," उसने कहा, उसकी आवाज में हल्का दुलार था। "लेकिन प्रॉमिस करो मुझे कॉल करते रहोगे।"
उसके शब्दों ने मेरी रीढ़ में सिहरन पैदा कर दी। उसकी आवाज सुनने का, उसके साथ अपना दिनचर्या साझा करने का विचार, भले ही वह फोन पर ही क्यों न हो, मेरी सहन शक्ति से कहीं अधिक था। "बिलकुल, ये भी कोई प्रॉमिस करने वाली बात है" मैं बुदबुदाया, भावना से मेरा गला रुँध गया। "रोज़, सोने से पहले, तुझे कॉल करूँगा।"
हमारे बीच फिर एक ख़ामोशी सी छा गयी, अनकहे वादों और इच्छाओं से भर हुई। मैं उसकी सांसों की गर्माहट महसूस कर सकता था, उसका शरीर धीरे से मेरे शरीर से चिपक कर चल रहा था। उसके परफ्यूम की खुशबू इतनी मादक थी कि सीधे तौर पर सोचना मुश्किल हो जाता था। कांपते हाथ से, मैं आगे बढ़ा और उसके चेहरे से बिखरे बालों को हटाकर उसके कान के पीछे कर दिया। उसने सवालिया नज़रों से मुझे देखा।
"तुझे पता है, रेखा आंटी की बेटी की शादी है कल," मैंने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा। "माँ मुझे वंहा जाने को बोल रही है, लेकिन मेरा मूड में नहीं है।"
शादी का जिक्र होते ही रोमा की आंखें चमक उठीं। "ओह, हाँ मुझे पता है!" उसने चिल्लाकर कहा. "नेहा की शादी है, वह मेरे साथ कॉलेज में थी। वैसे मेरी मानो तो चले जाओ, क्या पता, तुम्हें वहाँ कोई मिल जाए," उसने मुझे चिढ़ाते हुए चंचलता से धक्का दिया।
मैं किसी और लड़की से मिलने के विचार से ईर्ष्या की भावना महसूस करने से खुद को नहीं रोक सका। "मुझे किसी में कोई दिलचस्पी नहीं है," मैंने दृढ़ता से कहा, मेरी आवाज़ मेरे भीतर उमड़ रही उथल-पुथल भरी भावनाओं को उजागर नहीं कर रही थी। "लेकिन मैं माँ की ज़िद की वजह से जाऊँगा।"
रोमा की आँखें मेरी आँखों को खोज रही थीं, मानो किसी गहरी चीज़ की तलाश कर रही हों। "मुझे भी अपने साथ ले चलो न, प्लीज?" उसने अचानक ज़िद सी की, उसकी आवाज उत्साह से भरी थी। "फिर तो तुम चले ही जाओगे, पता नहीं फिर कब वक्त मिलेगा"
उसको साथ ले जाने का विचार लुभावना था, उसके साथ कुछ और पल साझा करने की मेरी लालसा को मैं दबा नहीं सका। "आईडिया तो अच्छा है, मुझे बोरियत और अकेलापन महसूस नहीं होगा पर माँ से पूछना पड़ेगा" मैंने कहा, मेरी आवाज़ में झिझक और आशा का मिश्रण था।
रोमा की मुस्कान और चौड़ी हो गई। "मैं माँ से पूछ लुंगी," उसने पेशकश की, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थीं। "वो मान जाएँगी।" और फिर हम अपने घर के अंदर Enter हो गए।
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