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अब मैं अपनी कार में आ चूका था l ऐसा पल जिसे जीने का सपना ना जाने कीतने ही आँखों को बेचैन सा कर देता है l आज मैं उसी पल में था.. पर फिर भी कुछ तो कमी थी इन पलों में… सीने में कुछ चुभ सा रहा था l वो अनगिनत आवाजें जिनमे मेरा नाम था वो भी मेरे दिल को सुकून नहीं दे पा रही थी l बार बार ऐसा लग रहा था जैसे कानों में कोई मुझे बेहद पास से कुछ कह रहा हो l मुझे अगर कुछ याद आ रहा था तो बस तृषा के आखिरी मैसेज “जब भी मेरी याद आये तो अपनी बाँहें फैला लेना मैं तुम्हारे पास आ जाउंगी“ l ऐसा लग रहा था जैसे तृषा मेरी बांहों में समाती जा रही हो … आँखे धुंधलाने सी लगी … कैमरे की हर चमकती रौशनी के साथ मैं खीचा चला जा रहा था l
उस फ़्लैश की हर चमक के साथ मैं खोता गया आपनी यादों की दुनिया में जहाँ मैं था और मेरी तृषा…
तीन साल पहले …
आज सोमवार था कॉलेज में मेरा नया नया एडमिशन हुआ था और अभी थोड़े दिनों बाद से क्लासेज थी l सो सुबह सुबह का मेरा सबसे पसंदीदा काम l अपनी बहन को तंग करना मैंने शुरू कर दिया l कभी उसके बाल खीचता कभी तकिये से उसे पीटने लगता l
मम्मी – अरे शैतान, कब जा के अकल आएगी तुझे ? रुक अभी पापा को बुलाती हूँ l
और जैसा की हर आम माध्यम वर्गीय परिवारों में होता है l पापा का नाम सुन मैं चुप चाप अपने इयर फ़ोन कानो में लगा के उसपे ग़ज़ल लगाया और छत की तरफ निकल पडा l
छत का दरवाजा खोल मैं अभी पंहुचा ही था की मेरे घर से लगा हुआ जो नया नया बना मकान था वहां बड़ी हलचल सी महसूस हुयी l मैंने झाँक के देखा तो वहां एक परिवार अपने सामान के साथ शिफ्ट कर रहा था l
आज मौसम बड़ा ही सुहाना था l हवा में हल्की हलकी नमी सी थी , बीच बीच में रह रह कर आसमान से गिरती कुछ बूंदें मानो धरती को छेड़ रही थी l मैं अपनी आँखों को बंद कर इन हवाओं को महसूस कर रहा था, और गाना बज रहा था…
“ होश वालों को खबर क्या जिंदगी क्या चीज़ है “ l तभी एक बिजली की चमक ने मुझे नींद से जगाया हो जैसे l मेरी आँखों के सामने एक चमकती हुयी लकीर ने आसमान को चीर दिया हो जैसे l
उस वक़्त बगल वाली छत का दरवाज़ा खुला और एक लड़की लाल रंग की सूट पहने छत पर आयी l उसकी वो जुल्फें जो उस चेहरे को मेरी नज़र से बचाना चाह रही थी, शायद इन हवाओं को भी इल्म था हमारे इश्क का l उस ग़ज़ल की लाईनें भी मानो उस हुस्न की तारीफ़ में कसीदें पढ़ रही थी l “खुलती जुल्फों ने सिखाई मौसमों को शायरी, झुकती आँखों ने बताया मैकशी क्या चीज़ है l” मेरे लिए वक़्त वही रुक गया था, तभी उसे मेरे वहां होने का एहसास हुआ शायद, अपनी जुल्फों को समेटते हुए वो अचानक से पलटी और हमारी नज़रें मिली …. उस वक़्त मेरे दिल की धड़कने मानो उस बादल की गर्जना भी चुनौती दे रही हो l नज़रें जैसे वक़्त के बहते समंदर को कैद कर लेना चाहती थी l और कानो में मुझे बस उस ग़ज़ल की ये लाइने सुनाई दे रही थी …
“उनसे नज़रें क्या मिली रौशन फिज़ाएं हो गयी, आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है l
इश्क कीजे , फिर समझिये … जिंदगी क्या चीज़ है l
“ओ हेल्लो … कभी कोई लड़की नहीं देखी है क्या ? बस घूरे ही जा रहे हो l “ पहली बार में उसकी आवाज़ मुझे सुनायी ही नहीं दी, मैं तो ग़ज़ल में ही खोया था तभी अपने ईरफ़ोन को निकाल के उसकी और देखते हुए बोला,
“जी मुझे ज़रा ऊंचा सुनायी देता है सो पास आ के कहिये l” उसे शायद यकीन भी हो गया था की मैं बहरा हूँ l और वो पास आ के ज़रा ऊंची आवाज़ में बोली “ऐसे क्यों घूर रहे हो मुझे?” तभी मैंने अपने हाथ उसके होठों पे रखते हुए कहा “धीरे बोल… पापा मम्मी सब सुन लेंगे तो अभी ही मेरी कुटाई हो जायेगी l” पहली बार जब उसकी साँसों का एहसास मेरी हथेलियों को हुआ मैंने अपने हाथ झटक लिए l
“हो जाने दो कुटाई l ऐसी हरकतों पे यही ठीक है तुम्हारे लिए l” मेरी तरफ गुस्से से देखते हुए बोली l
पहली बार वो मेरे इतने करीब खड़ी थी l उसका गुस्से से भरा हुआ चेहरा भी मेरे दिल को सुकून से भर दे रहा था l उसकी सुर्ख निगाहें … उसके गालों की कोमलता … उसके होठों का यूँ हिलना … मैं तो उसके हुस्न के जादू में खो ही गया था l
और वो बस पता नहीं क्या क्या मुझे सुनाये जा रही थी l उसकी आवाज़ को सुन उसकी मम्मी भी छत पर आ गयी l
उसकी मम्मी – “क्या हुआ तृषा ? वो कुछ बोल पाती उससे पहले मैंने ही कह दिया – “आंटी जी मैं वो इयर फ़ोन देने को कह रहा था जो आपकी छत पे गिर गया है गलती से l (मैंने आंटी को देखते ही वो उसकी छत पर गिरा दिया था) और बस पता नहीं क्या क्या बोले जा रही है ये तभी से l”
उसकी मम्मी (उसे डांटते हुए) – यहाँ आते ही लड़ना शुरू कर दिया तुमने ! (और मुझे मेरा इयर फ़ोन दे कर तृषा को साथ ले कर चली गयी) पर जाते जाते तृषा मुझे खा जाने वाली नज़र से घूरे जा रही थी l
और मैं तो बस उसके प्यार में खो सा गया था l हाँ मुझे इश्क हो गया था l पहली नज़र का प्यार …
पूरा दिन मैं उसके ख्यालों में खोया रहा, बार बार छत पर जाता और झाँक कर देखता की कभी तो उसकी झलक दिख जाए l पर नसीब भी मज़े लेने के मूड में था शायद l शाम हुयी और आज मेरे घर पर एक अंकल आये थे l अंकल के दो प्राइवेट स्कूल थे मेरे शहर में और मेरे पापा के बहुत ही करीबी मित्र थे वोl सो मुझे तो पता था की आज फिर पापा की पार्टी चलेगी l
शाम के करीब सात बज चुके थे और पापा और अंकल पेग लगा कर टल्ली हो चुके थे l तभी अंकल ने मुझे आवाज़ दी l
अंकल – और कहो, कैसा चल रहा है ?
मैं – जी , मैंने ग्रेजुएशन में एडमिशन ले लिया है सो अभी तो बस पढाई चल रही है l
अंकल – तुम तो बास्केट बॉल में नेशनल लेवल पर खेल चुके हो न ? उसी में आगे कुछ तैयारी क्यों नहीं करते ?
मैं – जी अभी बस पढाई पर ध्यान देने का इरादा है, आगे जॉब भी तो लेनी है l
अंकल – वो तो तुम कर ही लोगे, अभी कोई पार्ट टाइम जॉब कर लो l
मैं – अभी मेरी क्वालिफीकेशन उतनी नहीं है सो पार्ट टाइम जॉब कहाँ मिलेगा हमारे शहर में … (मेरी बात काटते हुए )
अंकल – अभी मैं हूँ यहाँ l … तुम मेरे स्कूल में आ जाओ बास्केट बॉल कोच बन कर l नया नया कोर्ट बनाया है अभी मैंने हमारे स्कूल में l
मैं – कौन से वाले में ?
अंकल – माउंट कारमेल l
मैं – पर वो तो गर्ल्स स्कूल है न ?
अंकल – हाँ पर हमारे यहाँ टीचर्स तो मेल भी हैं सो कल वहां आ जाना l
मैं – अंकल मुझे दो दिन दीजिये सोचने के लिए फिर मैं आपसे मिल लूँगा l
अंकल – ठीक है जैसा तुम्हे सही लगे l पर आना ज़रूर … कम से कम पॉकेट मनी के लिए पापा को परेशान तो नहीं करोगे उसके बाद l
मैं उन्हें प्रणाम कर अपने कमरे में चला आया l अब ये क्या नयी मुसीबत है l अभी अभी तो इश्क हुआ था l अब अंकल को कैसे समझाता की अभी लड़की को पटा तो लूँ फिर नौकरी भी कर लूँगा l खैर मैं फिर से ग़ज़ल सुनते हुए तृषा के ख्यालों में खो गया l और कब नींद आये मुझे पता ही नहीं चला l
आज सुबह जागने में थोड़ी देर हो गयी, पर आश्चर्य इस बात का लग रहा था मुझे की आज किसी ने अभी तक मुझे जगाने की कोशिश तक नहीं की l जब मैं अपनी आँखें मलता हुआ बाहर को आया तब सामने देखा की तृषा के मम्मी पापा मेरे यहाँ उनके गृहप्रवेश की पार्टी का निमंत्रण देने आये थे l
मैंने बिलकुल संस्कारी दामाद की तरह उनके चरण स्पर्श कर लिए l तभी मेरी बहन बोल उठी “अरे भैया घर में और लोग भी हैं, अब इतनी सुबह उठ ही गए हो तब सभी का आशीर्वाद ले लो l और हाँ मेरे पैर भी अच्छे से छूना l”
मैंने उसे गुस्से से देखा और ब्रश ले कर छत पर चला आया l अब तो बस बेचैनी सी हो रही थी… अपने इश्क का दीदार पाने की चाहत थी इन आँखों में l पर कहते हैं लोग की “इश्क जितना नया हो… अपने कदम उतने ही फूंक फूंक कर रखने चाहिए l पर अब इस दिल को कौन समझाए l थोड़ी देर तक यूँ ही छत पे इन्जार करते हुए जब बर्दास्त ना हुआ तो इस बार मैंने सपने चेहरे को साफ़ किया और छत की दीवार लांघ कर सीढियों से नीचे उसके घर में जाने लाने लगा l मेरे हर बढ़ते कदम मेरी दिल की धडकनों को तेज़ किये जा रही थी l नीचे काफी शोर शराबा था पर शुक्र था की सब अपने अपने कमरों में ही थे l बस एक ही कमरा ऐसा था जहाँ से शोर नहीं आ रहा था l सीढियों के ठीक पास वाला कमरा l मैंने दरवाज़े को थोडा सा सरकाया तो अन्दर बिस्तर पर सोती हुयी उस मासूम सी सीरत का दीदार हुआ जिसके लिए मेरी ये आँखें ना जाने कितने जन्मों से तड़प रही थी जैसे l तभी वो करवट बदली और मुझे लगा कही जाग न जाए सो मैं थोडा पीछे हो गया l उस वक़्त मेरी नज़र वहां टेबल पर पड़े हुए कागज़ पर गयी l एडमिशन फॉर्म था वो …. और उसपे लोगो बना हुआ था “माउंट कारमेल गर्ल्स स्कूल”l अब मुझे रास्ता दिख गया था तृषा के दिल में अपनी जगह बनाने का l सो मैं अब धीरे धीरे सीढियों से वापस ऊपर आता हुआ उसी तरह अपने घर की छत पर आ गया l
अब सबसे पहले मैंने अंकल को मैसेज भेजा की “अंकल मैं वो जॉब के लिए तैयार हूँ l परसों मैं वहां आ जाऊँगा l” और फिर अपना पूरा दिन तृषा की उसी झलक को याद करते हुए बिता दिया l उसकी पार्टी कल थी पर असके घर के परिवार के सदस्यों को आना अभी भी लगा हुआ था l तृषा यूँ तो दिख जा रही थी पर पार्टी की तैयारियों में ही व्यस्त सी थी l एक बार तो मेरा मन किया की मैं भी उसी तैयारियों में हाथ बटाने के बहाने तृषा से अपनी करीबियां बढ़ा लूँ l पर फिर याद आया की अभी तो बहुत वक़्त मिलेगा उसके स्कूल में… और फिर इतनी मेहनत मुझसे हो भी नहीं पाती (कामचोर जो हूँ ) l सो पार्टी की रात से पहले पहले तक यूँ ही छुट्टे में काम चला लिया मैंने l पर शायद तृषा को मेरी नज़र का अंदाजा हो चूका था l