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तृष्णा – आ गए एक्टर बाबू l
मैं – हाँ जी l वैसे मेरे पास एक खुशखबरी है आप सब के लिए l
मेरा कहना था की सब लंच छोड़ मुझे घेर के बैठ गयीं l
मैं – यार आप सब ऐसे मत देखो मुझे l मुझे घबराहट होने लगती है l
ज्योति – मेरे हुजुर , अब इसकी आदत डाल लो l अब से हर रोज़ सब तुम्हे ऐसे ही देखेंगे l
मैं – ठीक है देखो फिर l (निशा की ओर देखते हुए) निशा तुम अपनी तैयारी पूरी कर लो l तुम्हारी कल यशराज फिल्म्स में मीटिंग है l हो सकता है तुम्हे असिस्टेंट डायरेक्टर बनाया जाए मेरी फिल्म में l
निशा – सच में l (अपनी आँखें बड़ी करती हुयी)
मैं – हाँ यार l अभी तक झूट कहना अच्छी तरह सीखा नहीं है मैंने l
तृष्णा – और मेरे लिए क्या खुशखबरी है ?
मैं – आप सब को तैयार हो मेरे साथ पार्टी में चलना है l यशराज की पिछली फिल्म की सक्सेस पार्टी है l रात आठ बजे वहां पहुँच जाना है l वहां जाओ सब से मिलो l हो सकता है तुम लोगों का काम भी बन जाए l
मेरा इतना कहना ही था की सब मेरे गले लग मेरे बालों की ऐसी तैसी करने लग गयीं l और जोर जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया सबने l और तेज़ आवाज़ में गाने बजा मुझे पकड़ के डांस करने करने लग गयीं l (आज मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही थी l अगर वो सब भी मेरे साथ होतें तो कितना अच्छा होता) l और फिर सब तैयार होने चली गयीं l वैसे भी मुझे पता था की इन सबको तैयार होने में कितना वक़्त लगने वाला है l इसीलिए मैं थोड़ी देर के लिए सोने चला गया l
तृष्णा की आवाज़ से मेरी नींद खुली l सात बजने वाला था l और अब तक सब मेक अप को फाइनल टच ही दे रही थीं l तृष्णा तैयार हो चुकी थी l
तृष्णा – अरे उठो भी l तुम्हे इतनी नींद कैसे आती है ? फिल्म मिल गयी है, सुपरस्टार बनने जा रहो और तो और आज पहली बार जिन्हें अब परदे पे देखा है उनसे मिलने जा रहे हो l मुझे तो सोच सोच के ही रोमांच आ रहा है l
मैं – मुझे मेरी नींद सबसे प्यारी है l बाकी सब जाए भांड में l (मैं भी नहा धो के कपडे पहन के तैयार हो गया )
ज्योति – हो गए तैयार !! बस दस मिनट में !
मैं – और नहीं तो क्या , अब तुम्हारा पूरा मेक अप किट खुद पे लगा लूँ क्या l
तृष्णा – अरे कुछ तो मेन्टेन करो l बैठो मैं तैयार करती हूँ l
मेरे चेहरे, हाथ और गले पे पता नहीं क्या क्या लगा रही थी l खैर अब मैं भी तैयार हो गया था l तभी ज्योति आयी और उसने अपना लेडीज परफ्यूम मुझपे स्प्रे कर दिया l
मैं – ये क्या किया तुमने ? लेडीज परफ्यूम क्यूँ स्प्रे किया तुमने?
ज्योति – ओह ! सॉरी यार , मैं तो तुम्हे तैयार करने में भूल ही गयी की ये लेडीज परफ्यूम है l
तभी सुभाष जी का कॉल आया l
सुभाष जी – मैंने पता भेज दिया है l और अब जल्दी आ जाओ l पार्टी शुरू हो चुकी है l
मैं – (गुस्से से ज्योति को देखते हुए) ठीक है सुभाष जी मैं आ रहा हूँ l और फ़ोन रख दियाl अब मैं फिर से नहाने भी नहीं जा सकता था l और नए कपड़ों में यही आखिरी था l सो मैं ज्यादा वक़्त ना लेते हुए सबसे चलने को कहा और बाहर आ गया l टैक्सी बुक कर के हम दिए हुए पते पर पहुँच गए l वर्ली में एक होटल में ये पार्टी दी गयी थी l हम सबने एक दुसरे का हाथ थामा और होटल के अन्दर आ गएँ l पार्टी में जाने वालों की लिफ्ट ही अलग थी l नीचे स्टाफ के पास एक लिस्ट थी l मैंने कहा “नक्श और मेरे साथ तीन गेस्ट की एंट्री भी होगी” l स्टाफ ने लिफ्ट में जाने को कहा l
अब हम सब अपने सपने को देखने से कुछ पलों की ही दुरी पर थें l मैं तो काफी हद तक नार्मल था पर बाकी तीनों को देख ऐसा लग रहा था मानो तीनो जोर जोर से चिल्लाने वाली हो l निशा और तृष्णा ने अब तक मेरे हाथ पकडे हुए थे और अब इतनी जोर से दबा रही थी हाथ की अब हल्का हल्का दर्द सा भी होने लगा था l खैर हम अपनी मंजिल पर पहुँच गए थे l सामने एक बड़ा सा दरवाज़ा था l गाने की धुन और लोगों के चिल्लाने का शोर इतना था की दरवाज़े बंद होने के बावजूद भी मैं सुन सकता था l हम सबने एक गहरी सांस ली और दरवाज़े को धक्का दे अन्दर आ गए l पर यहाँ इतना धुँआ था की मैं बर्दास्त नहीं कर पाया और खांसते हुए बाहर आ गया l मेरी इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं दुबारा अन्दर जाने की कोशिश करता l मैं दीवार से टिक के आँखें बंद कर खडा हो गया l एक बेहद मीठी आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा l
किसी बेहतरीन कारीगर की तराशी हुयी संगमरमर की मूर्ति की तरह थी वो l आँखें गहरे भूरे रंग की और भरा पूरा संगमरमर सा बदन l
वो – पहली बार आये हो क्या ऐसी जगह ?
मैं – हाँ, पर लगता नहीं ज्यादा देर यहाँ टिक पाऊंगा l (फिर कोई दरवाज़े को खोल बाहर निकला और उसके साथ निकले धुएं से फिर से मैं खांसने लग गया)
वो – (मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए) आप छत पे चलो l लगता है ये जगह आपको सूट नहीं करने वाली l
मैं – (उसके साथ छत पे जाते हुए) अब तो जो भी हो इसकी आदत तो डालनी ही होगी मुझेl अब खाली हाथ वापस जा भी नहीं सकता मैं l
वो – मतलब ?
मैं – माफ़ कीजियेगा मैं अपने बारे में बताना भूल गया l मेरा नाम नक्श है और कल ही यशराज फिल्म्स ने मुझे अपनी तीन फिल्मों के लिए साइन किया है l
वो – “तो हम बैठे थें जिनके इंतज़ार में, वो खुद ही हमारी बांहों में आ गिरे l”
मैं – मतलब ?
वो – मैं आपकी फिल्म की दो हिरोइन में से एक हूँ l और अपना हाथ बढाते हुए “मेरा नाम ज़न्नत खान”l (मैं उसके गले लगते हुए) “हाथ मिलाना दूसरों से मुझसे अब गले लगने की आदत डाल लो, मैं नहीं चाहता की हमारी फिल्म में हमारे बीच प्यार की कोई कमी दिखे l” जब मैं अलग होने लगा तो ज़न्नत ने मुझे खीच के फिर से गले लगा लिया l और मेरे कानों के पास आ के “अब तसल्ली तो होने दो, ऐसे कहाँ मुझे छोड़ के जा रहे हो l” हम दोनों गले लगे ही हुए थे की सुभाष जी वहाँ आ गए (साथ में एक लड़की भी थी) l
सुभाष जी – (हलके नशे में) तो आप ज़न्नत से मिल चुके हो l ये रहीं आपकी दूसरी हीरोइन “तृषा श्रीवास्तव” (मेरा दिल इस नाम के साथ ही ज़ोरों से धड़क उठा)l इस फिल्म में तुम्हे इन दोनों के साथ ऐसी केमिस्ट्री बनानी है की परदे पे आग लग जाए बस l (उसे वही छोड़ वो फिर से नीचे हॉल में चले गएँ)
तृषा – (मेरे पास आते हुए) आपकी परफ्यूम की पसंद बड़ी अच्छी है l
मैं – (मैं तो इस नाम को सुनने के साथ जैसे उससे जुड़ सा गया था l मेरे अन्दर का ज्वार जैसे फूटने को हो आया था, मुझे अब उसके चेहरे में अपनी तृषा दिख रही थी) मैंने उसे खींच के गले से लगा लिया l और कस के बांहों में भरते हुए मैंने कहा “कहाँ चली गयी थी मुझे छोड़ के l जाने से पहले एक बार भी मेरा ख्याल तक नहीं आया तुम्हे ?, कमसे कम एक बार तो सोच लिया होता तुमने की मैं तुम्हारे बिना जिंदा भी रह पाऊंगा या नहीं (इतना कहते कहते मेरी आँखें भर आयीं) l
तभी तालियों की आवाज़ से मैं नींद से जगा जैसे l ज़न्नत और कुछ लोग तालियाँ बजा रहे थें l “क्या फील के साथ एक्टिंग की है यार तुमने l” कहते हुए ज़न्नत ताली बजा रही थी l
मैंने तृषा को खुद से अलग किया l वो भी थोड़ी शौक्ड थी l ज़न्नत के फ़ोन पे एक कॉल आया और वो चली गयी l मैं अब तृषा से दूर जाना चाह रहा था l सो मैंने तृषा से काम का बहाना किया और होटल के बाहर आ गया l मेरा दिल बेचैन सा हो गया था सो मैंने एक टैक्सी बुलाई और रात को ही समंदर के किनारे पे आ गया l इन लहरों का शोर अब गूंज रहा था वादियों में l समंदर की तेज़ हवाएं मेरे अन्दर लगी इस आग को बुझाने की जगह और भड़का रही थी जैसे l मैं वही रेत पे घुटनों के बल गिर पड़ा l और जोर जोर से चिल्लाने लगा l इतने दिनों से मैं खुद को ही भूल बैठा था l आज जैसे हर वो याद मेरे आँखों के सामने घूम रही थी l थोड़ी देर बाद मैं किसी तरह खुद को काबू में करने की कोशिश करने लगा l तभी किसी ने अपना हाथ मेरे कंधे पे रख दिया l मैंने मुड़ के देखा तो तृषा श्रीवास्तव थी l
तृषा – कोई कितना भी बड़ा एक्टर क्यूँ न हो l उसका जिस्म तो एक्टिंग कर सकता है पर उसका दिल नहीं l तुम्हारी धड़कने मैंने महसूस की हैं, ये झूठ नहीं कह रही थी l क्या है तुम्हारा सच?
सूना था कभी की बांटने से दर्द हल्का होता होता हैl मैंने उससे कहा “कभी मैंने भी किसी को चाहा था पर इस दुनियां ने उसे मुझसे जुदा कर दिया, वो अब इस दुनियां में भी नहीं हैl”
तृषा – तुमने एक्टिंग को ही क्यूँ चुना l
मैं – अपने आप को भूल जाना चाहता था मैं l मुझे ये यादें बस दर्द देती हैं l
तृषा – इस दुनियां में जितना अपने दर्द में तड़पोगे उतनी ही तालियाँ तुम्हे मिलेंगी l ये फिल्मों की दुनियां ही ऐसी है “जो जितना बड़ा कलाकार यहाँ है उतने ही बड़े ग़मों को समेट रखा है उसने l”
मैं – क्या इस दर्द का कोई इलाज नहीं ?
तृषा – (मुस्कुराते हुए) है न l जैसे जैसे वक़्त बीतेंगे इस दर्द में भी मुस्कुराना सीख जाओगे तुम l (फिर वो मेरे पास आ के बैठ गयी और कहने लगी)