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मेरे आंसू अब थम चुके थे l शायद मुझे मेरी मंजील मिल चुकी थी या मुझे मेरे दर्द का इलाज मिल गया था l मैंने पेपर्स साइन कर दिया l फिर तालियों की गडगडाहट से पूरा स्टूडियो गूंज उठा l और मुझे मेरा पहला चेक दिया गया l पांच लाख इक्यावन हज़ार का चेक था ये l मैं अपने डिटेल्स वहां स्टूडियो में लिखवा कर बाहर आ गया l तभी मुझे याद आया की स्टूडियो में फ़ोन ऑफ करवा दिया गया था l सो मैंने फ़ोन ऑन किया और निशा को कॉल किया l
मैं – हेलो , मैं नक्श बोल रहगा हूँ l
निशा – पता है मुझे पर कहाँ थे अब तक ? तुम्हारा फ़ोन भी ऑफ था सुबह से l फाइलें पहुंचा दी या नहीं ?
मैं – अरे थोड़ा सांस तो ले लो l मैं कही भागने वाला नहीं हूँ l मेरे पास एक अच्छी खबर हैl तुम बस पार्टी का इंतज़ाम करो फ्लैट पे l और हाँ ये खर्चा मेरी तरफ से रहेगा l
निशा – क्या हुआ ? अब बता भी दो l
मैं – नहीं मैं ये खबर जब तुम्हे बताऊँ तब मैं तुम सब की शक्लें देखना चाहता हूँ l मैं बस पहुँच ही रहा हूँ l बाय !
मैंने फ़ोन काटा और टैक्सी ले के चल पड़ा फ्लैट की ओर l रास्ते में वाइन शॉप से मंहगी वाली स्कॉच ली और फ्लैट पहुँच गया l मैंने कॉल बेल बजायी और ऐसा लगा की जैसे सब मेरे इंतज़ार में ही बैठी थी l सो तुरंत दरवाज़ा खोला उन्होंने l मैंने बोतल और फाइलें उनके हाथ में दी और बिना कुछ कहे वाशरूम जाने लगा l
ज्योति – (मुझे पकड़ते हुए) कहाँ जा रहे हो ? पहले बताओ तो सही आज क्या हुआ ?
मैं – देख जो हुआ सो हुआ l पर अभी अगर रोकोगी तो यहीं पे हो जाएगा l
ज्योति – ठीक है l जल्दी आओ , अब हमसे रुका नहीं जा रहा है l
मैं फ्रेश हो के आया और सोफे पे बैठ गया l तीनो मुझे एकटक से घूरे जा रही थी l फिर मैंने एक लम्बी सी अंगड़ाई ली और कहा “यार वो गद्दा आ गया है न ? बहुत नींद आ रही है मुझे l” मेरा इतना कहना था की सब ने मुझे सोफे से नीचे गिरा दिया और मुझपे चढ़ के बैठ गयीं l
निशा – अब जल्दी से बता दो नहीं तो यही जान ले लुंगी तुम्हारी l
मैं – ठीक है बताता हूँ l पर पहले हटो तो सही l (सब अपनी जगह बैठ गयीं) वो आपने जो लिस्ट मुझे दिया था उसमे सबसे पहला नाम यशराज स्टूडियो का था l सो मैं वही गया l वहां जा के मुझे सुभाष जी को फाइलें देनी थी l पर वहां आज ऑडिशन चल रहे थे l और सुभाष जी से मुलाक़ात एक ही शर्त पे हो सकती थी की अगर मैं किसी तरह अन्दर पहुँच पाता l सो मैंने ऑडिशन का फॉर्म भरा और अन्दर चला गया l और फ़ोन अन्दर ऑफ करवा लिया गया था l सुभाष जी कहीं और थें l और मुझे सभी कंटेस्टेंट के साथ अलग कमरे में बिठा दिया गया था l
निशा – तो क्या हुआ ? मुद्दे की बात तो बताओ l
मैं – फिर मुझे मजबूरी में ऑडिशन देना पड़ा l
तृष्णा – तो इसमें कौन सी बड़ी बात है l
अब तक सब मुझे घूरे ही जा रही थी l तभी मैंने अपना चेक निकाल बीच में रख दिया और कहा “ये है वो बात l” तृष्णा चेक उठा के बड़े गौर से देखने लगी l साथ ही ज्योति और निशा भी देख रही थी l अब मैं इंतज़ार कर रहा था ... क्या होगा उनके चेहरे का एक्सप्रेशनl तभी निशा और ज्योति मेरे पैर पकड़ के वही बैठ गयीं l और तृष्णा मुझे चम्पी देने लग गयीं l
निशा – (पुराने फिल्मों की हिरोइन की तरह) मेरे प्राणनाथ ! कृपया हमें अपनी चरणों में थोड़ी जगह दे दें l हमारी तो तकदीर ही संवर जायेगी l
ज्योति – (उसी अंदाज़ में) मैं हर रोज़ आपके पैर दबा दिया करुँगी l
तृष्णा – और जब आप थक के घर आयेंगे तब मैं यूँ ही आपके सर की चम्पी कर दिया करुँगी l
मैं – (उन्ही के अंदाज़ में) आपका इतना प्यार देख के तो मेरी आँखों में आंसू गएँ l “चलो अब अपनी जगह पे बैठो l” (सब अपनी जगह पर बैठ गयीं)
ज्योति – तुम्हे एक्टिंग भी आती है ! और तुमने कभी हमें बताया तक नहीं l
मैं – सच कहूँ तो मुझे अब तक नहीं मालुम एक्टिंग कहते किसे हैं l लोगों से सूना था की अगर आप किसी से बड़ी ही सफाई से झूठ कह सकते हो तो आप उतने ही अच्छे एक्टर बन सकते हो l पर तुम सब तो जानती हो मुझे झूठ कहना तक नहीं आता l मैं कैसे एक्टिंग कर सकता हूँ l
निशा – तो तुमने ऑडिशन दिया कैसे ?
मैं – वो मेरे एक्सप्रेशंस देखना चाहते थे l हसी, मस्ती, डर, दर्द... इन सब के एक्सप्रेशन मैं कैसे देता हूँ l मैंने अपनी आँखें बंद की और मैंने हर शब्द के साथ याद किया उन शब्दों से जुड़े हुए अपने बीते लम्हों को l और मेरे चेहरे के भाव उसी हिसाब से खुद ब खुद बदलते चले गएँ l पर अब तो मुझे एक नयी कहानी दी जायेगी और उस झूठी कहानी में भी ऐसी जान डालनी होगी मुझे की दर्शकों को यकीन हो जाए की ये बिलकुल सच है l मैं कैसे कर पाऊंगा ये सब l
निशा – तुम यहाँ क्यूँ आये थे l
मैं – अपने आप से भाग रहा था मैं, अपने दर्द से पीछा छुडा रहा था मैं l
निशा – क्या आज भी तुम तृषा को याद करते हो l
मैं – ये कैसा सवाल है l अगर याद ना आती तो हर बार इस नाम के साथ मेरी आँखें नाम कैसे हो जाती l
निशा – और अगर मैं कहूँ की तुम्हारे दर्द का इलाज़ एक्टिंग ही है तो ?
मैं – वो कैसे ?
निशा – जैसे आज तुमने आँखें बंद कर के उन लम्हों को जीना शुरू किया l वैसे ही हर दिन जब तुम्हे कोई स्क्रिप्ट मिले तो भूल जाना की तुम नक्श हो l निर्देशक के एक्शन कहने के साथ ही तुम उस स्क्रिप्ट के किरदार हो यही याद रखना और जब वो पैकअप कहे तब तुम वापस आ जाना l
मैं – और मैं वापस आना ही ना चाहुँ तो ?
निशा – मतलब ?
मैं – जब मेरे दर्द का इलाज़ खुद को भूलना ही है तो मैं भला कुछ पलों के लिए खुद को क्यूँ भूलूं l मैं तो हमेशा के लिए भूल सकता हूँ l
निशा – ऐसे में खुद की तकलीफ तो कम कर लोगे पर जो लोग तुम्हे जानते हैं उन्हें दर्द दे जाओगे l