• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance सुपरस्टार - The life we dream to live

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
Update - 4


मैंने राहत की सांस ली l तृषा मेरे सीने से लगी थी , उसके आंसुओं ने और उस कमरे की हालत ने बहुत कुछ बयां कर दिया था l मैंने पहले कमरा बंद किया और तृषा के चेहरे को थोडा ऊपर किया l उसका चेहरा जो कभी कमल के फूलों सा खिला खिला रहा करता था आज वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया था l गुस्से में मैं पागल हुआ जा रहा था l

मैं पलटा और दरवाज़े को खोलने ही वाला था की तृषा ने मुझे रोक लिया l उसने मेरे होठों पे ऊँगली रखी और इशारे से मुझे शांत होने को कहा l मैंने उसे कस के अपने सीने से लगा लिया l दरवाज़े की कुण्डी लगाई और बेड पे आ गया l तृषा ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और खुद मेरे कंधे पे सर रख के लेट गयी l बाहर टी वि का शोर इतना था की हमारी आवाज़ बाहर नहीं जा सकती थी l

मैं – क्या हुआ था मेरे जाने के बाद ?

तृषा – मम्मी ने फ़ोन तोड़ दिया और ... वैसे ये सब बातें इतनी जरूरी नहीं हैं l तुम मेरे पास हो इतना ही काफी है l मम्मी पापा ने जो भी किया वो उनका हक़ था, वो मेरी जान भी ले लेते तो भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता l

मैंने उसके होठों पे अपने हाथ रख दियें l पता नहीं क्यों मेरी आँखों में आंसू आ गए थे l कभी भी मैंने ये नहीं सोचा था की हमारे परिवार वाले नहीं मानेंगे l हमारी कास्ट अलग थी पर हमारा पारिवारिक रिश्ता काफी गहरा था l आंटी हमेशा मुझे बेटा जी कह के ही बुलाती थी l और आज हमारे बीच इतनी दूरियां पैदा हो गयी थी की एक दुसरे को देखना भी गवारा नहीं था l

तृषा – मेरी शादी होने वाली है, अगले महीने l

मुझपे तो जैसे बिजली गिर गयी हो l मैंने उससे कहा – और तुम ? शादी की शौपिंग करने कब जा रही हो ? (मेरा गला भर आया था)

तृषा – मैंने कहा न उनका मुझपे इतना हक़ है की वो चाहे तो मेरी जान भी ले ले l

मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो पा रहा था l मुझे रोना आ गया l मैं उठ के बैठ गया l

तृषा (मुझे पकड़ते हुए )- जानू तुम्ही तो कहते थे न मैं तो फस गया तुम्हारे चक्कर में l कोई और आप्शन दिखती भी है तो छोड़ना पड़ता है l

मैं – जा रहा हूँ मैं l अब कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊंगा l तुम्हारा यही फैसला है तो यही सही l मर भी जाओगी तो तुम्हारी तरफ देखूंगा तक नहीं l

तृषा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे गले लग गयी l तृषा – ऐसे मत जाओ l आज मुझे तुमसे एक वादा चाहिए l अगर तुमने मुझसे प्यार किया है तो मुझे ना नहीं कहोगे l

मैं – जब मैं कुछ हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए फिर क्यूँ करूँ तुमसे कोई वादा l तृषा – मैं हमेशा से तुम्हारी थी, हूँ और हमेशा रहूंगी l मेरे लिए ये आखिरी बार मेरी बात मान लो l

मैं – कौन सी बात ?

तृषा – जब मैं अपनी शादी का जोड़ा पहनू तब मुझे सबसे पहले तुम देखो l जब भी मैंने शादी के सपने सजाये हैं हर बार मैंने यही इमेजिन किया है की तुमने मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले देखा है l मैं – किसी और के नाम के जोड़े में अपने प्यार को देखूं l इससे अच्छा तो मेरी जान मांग लेती l एक बार भी ना नहीं कहता l

तृषा – बस मेरे प्यार के लिए , मान जाओ l ( ये कहते हुए मेरे गले से लग गयी और रोने लगी )

मैंने कभी सोचा भी नहीं था की जिसे मैं प्यार करता हूँ उसे इतनी तकलीफ देने वाला मैं ही हूँगा l मुझे एहसास था उस की उस वक़्त मेरे दिल पे क्या बीतेगी जब वो शादी के जोड़े में होगी , वो भी किसी और के नाम की l पर इश्क में दर्द भी किस्मत वालों को ही मिलते हैं l मैं उससे कहा – ठीक है l

कमरे में सन्नाटा सा पसरा था l मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था की क्या बात करूँ उससे l तभी बाहर के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आयी, शायद तृषा के पापा कोर्ट (उसके पापा शहर के जाने माने वकील थें) से आ चुके थे l

लगभग 15 मिनट बाद तृषा ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गयी l मैं दरवाज़े के पास खडा हो गया ताकि बाहर क्या हो रहा है मैं सुन सकूँ l तृषा के पापा अब हॉल में बैठ चुके थें l तृषा भी मम्मी, पापा के साथ हॉल में बैठ गयी l

तृषा – पापा मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ l

उसके पापा – कहो l

तृषा – आप हमेशा कहते थे न की हम चाहे कोई भी मसला हो एक साथ बैठ के शांत दिमाग से बात करें तो उसे सुलझा सकते हैं l आज आप मेरे लिए थोड़ी देर शांत हो के मेरी बात सुनिए l

उसके पापा – ठीक है बेटा , कहो l

तृषा – मुझे पता है मैंने आपका दिल दुखाया है l मैं आपकी राजकुमारी नहीं बन सकी l आपने जो भी किया वो आपका हक़ था l आप मुझे जान से भी मार देते तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता l मैंने आपको बहुत तकलीफ दिए हैं पर अब आप जैसा कहेंगे मैं करने को तैयार हूँ l पर क्या आप मेरी एक बात मानेंगे l

उसके पापा – मैं तुम्हारा भला ही चाहता हूँ l कोई दुश्मन नहीं हूँ मैं तुम्हारा l और गलती सभी से होती है आपसे हुयी तो मुझसे भी हुयी है l बताओ तुम्हे क्या चाहिए ?

तृषा – पापा मैं नक्श को समझा दूंगी और मुझे पता है वो मान जाएगा l मैं अपनी शादी से पहले फिर से वही मुस्कुराते चेहरे देखना चाहती हूँ जो कभी हम दोनों के घर में हुआ करता था l क्या हम पहले की तरह नहीं रह सकते ? और एक आखिरी बात “अब मैं जाने वाली हूँ तो आप दोनों ने मुझसे अब तक जितना प्यार किया है उसका दोगुना प्यार मुझे आने वाले दिनों में चाहिए” l

मैंने दरवाज़े को ज़रा सा सरकाते हुए हॉल में क्या हो रहा है उसे देखने की कोशिश की l हाल में तृषा बीच में बैठी थी और उसके मम्मी , पापा उसे माथे पे चूम रहे थें l “एक अजीब सा सुकून था तृषा के चेहरे पे” l
lovely update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अपडेट - ५

थोड़ी देर में तृषा कमरे में आयी l उसने मुझे बिस्तर पे पटका और अपने होठ मेरे होठों से लगा दिए l मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था l आखिर ये लड़की चाहती क्या है ? उधर अपने मम्मी पापा को ये कह के आयी की आप जहाँ कहोगे मैं शादी करुँगी और इधर मेरी बांहों में... l क्या कोई ये बतायेगा मुझे की लड़कियों को समझा कैसे जाए l

मैं तृषा की आँखों में अपने सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करने लगा l पर शायद मैं भूल गया था ये वहीँ आँखें हैं जिसने मुझे कभी ऐसे कैद किया था किसके जादू से में आज तक बाहर नहीं आ अपया हूँ l जितना मैं उसे देखता गया उतना ही उसका होता चला गया l हमारी साँसे तेज़ होती गयी, हम दोनों एक दुसरे में खोते चले गएँ l आज पहली बार मैं उसके इतने करीब होते हुए भी उससे खुद को कोसों दूर पा रहा था l पर अब भी शायद थोड़ी ये उम्मीद बाकी थी की वो मेरी अब भी हो सकती है l मैं उसके इंच इंच में इतना प्यार भर देना चाहता था की चाह के भी वो किसी और की ना हो पाए l आज मैं उसे खुद से किसी भी हाल में दूर नहीं होना चाहता था l जब जब वो मुझे खुद थोडा अलग करती मैं उसे खीच के फिर से अपने सीने से लगा लेता l आखिर ये सैलाब थम ही गया l

जब एक तूफ़ान शांत तो मेरे अन्दर जो भावनाओं का तूफ़ान था वो सामने आ गया l अब मेरी आँखों से आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे l अब तक मैंने उसे कस के पकड़ा हुआ था मानो कोई उसे मुझसे जबरदस्ती दूर ले जा रहा हो l मैं अब तक इसी उम्मीद में था की शायद वो मेरी हो जाए l तृषा ने मेरे माथे को चुमते हुए कहा “आज मेरे पास ही रह जाओ न, मैं अपना हर लम्हा तुम्हारी बांहों में जीना चाहती हूँ l” मैं उसे रोकते हुए कहा “अधूरी बातों से दिलासा देने की ज़रूरत नहीं है l कहो की शादी तक मैं तुम्हारी बांहों में रहना चाहती हूँ और शादी के बाद” .... कहते कहते मैं रुक गया (मेरा गला भर आया था, अब कुछ भी कहने की हिम्मत बची भी नहीं थी) l

मैं – अब मुझे जाना होगा l

तृषा – “अभी ना जाओ छोड़ के, की दिल अभी भरा नहीं” उसकी बातें मुझे गुस्सा दिला रहीं थी l मैंने उसके बाल पकड़ अपने पास खीचा “जान लेने का कोई नया अंदाज़ है क्या ये ?” तृषा - इस्स्स्स !! जनाब आपका ये गुस्सा... आपकी जान जाए या न जाए पर इतना तो पक्का है आपके ये गुस्सा होने का अंदाज़ हमारी जान जरुर ले लेगा l कहते हुए फिर से उसने मेरे होठों को चूम लिया l

मुझे गुस्सा आ रहा था और उसे ये सब मज़ाक लग रहा था l मैंने उससे कहा – मुझे अब घुटन सी हो रही है , प्लीज मुझे थोड़ी देर अकेला छोड़ दो l मैं अभी यहाँ नहीं रह सकता l

तृषा – ठीक है तो फिर कल मिलने का वादा करो l मैं – ठीक है l

तृषा मेरा हाथ अपने सर पे रखते हुए – ऐसे नहीं मेरी कसम खा के कहो, तुम्हे हर रोज़ मुझसे मिलोगे l

मैं – जिससे शादी हो रही है उससे मिल न , मुझे क्यों तकलीफ दे रही हो l जो करना है करो उसके साथ , मेरी जान छोड़ दो अब बस l

तृषा – मुझसे प्यार करने की सज़ा ही समझ लो l या फिर यही कह दो की तुमने कभी भी मुझसे प्यार किया ही नहीं l मैं कुछ नहीं कहूँगी l

मैं अब कुछ भी नहीं कह सका उसे l “ठीक है जैसा तुम कहो”

तृषा – ऐसे नहीं मेरी कसम खा के कहो की तुम मुझसे हर रोज़ मिलोगे l भले ही मुझे डांटो, मारो या मेरी जान ले लो l लेकिन मुझसे हर रोज मिलोगे l

“हाँ मैं कसम खाता हूँ” अब तो जाने दो l

तृषा – ( मुस्काते हुए ) ह्म्म्म ठीक है अभी बंदोबस्त करती हूँ आपको बॉर्डर पार करवाने काl

वो बाहर गयी l उसके घर का माहौल अब सामान्य हो चुका था l उसने छत की चाभी उठाई और छत पे चली गयी l थोड़ी देर में वो वापिस कमरे में आयी और मुझे पीछे पीछे चलने का इशारा किया l शायद उसके मम्मी - पापा अपने कमरे में थे l मैं अब छत पे आ चुका था l मैं दीवार पार करने जैसे ही आगे बढ़ा.. तृषा मुझसे लिपट गयी, थोड़ी देर रुक के वो मुस्कुरा के मुझसे अलग हो गयी l पता नहीं आज उसकी आँखें मुझसे बहुत सी बातें कहना चाह रही थी पर इस सैलाब को अपने अन्दर ही समेटे रह गयी l

मैं अब अपने कमरे में था l बस एक ही बात जो मुझे खाए जा रही थी की उसने ऐसा फैसला क्यूँ लिया l और जब किसी और के साथ जिन्दगी बिताने का फैसला ले ली है तो अब मुझे ऐसे क्यूँ जता रही है मानो मैं अब भी उसके लिए सब कुछ हूँ l मैं तो पागल सा हुआ जा रहा था ये सब सोच सोच के l एक बार तो मन किया की सब छोड़ छाड़ के भाग जाऊं कही l कैसे देख पाऊंगा उसे मैं किसी और की होते हुए , जिसे मैं हमेशा के लिए अपना मान चुका था l पर अपने दिल को दिलासा भी दिया , आखिर जब उसने ही इन सब रिश्तों का मज़ाक बनाया हुआ है जब उसे ही कोई फर्क नहीं पड़ता तो मैं क्यूँ नींद खराब करूँ l

वादे के मुताबिक़ मुझे हर रोज़ उसे मिलना था, सो मैं छत पे ठीक शाम के 8 बजे आ जाता था l हमेशा यही कोशिश करता की उससे नज़रें ना मिलें मेरी , हमेशा एक दूरी सी बना के रखता था l पर तृषा को समझना अब भी मेरी समझ से परे था l जब जब मैं उससे दूर जाता वो मुझसे जबरदस्ती आ के लिपट जाती l ना जाने कितना कुछ ही कहा था मैंने उसे पर मेरी हर बात का जैसे उसे कोई असर ही ना होता हो l ऐसे ही कुछ 15 दिन बीत गएँ l

आज सन्डे था और शाम के 6 बजे थे l तभी दरवाज़े की घंटी बजी l

मम्मी – जाओ बेटा , देखो तो कौन आया है ?

मैं – ठीक है माँ l मैंने दरवाज़ा खोला सामने तृषा के मम्मी पापा थे l

आंटी – बेटा जी मम्मी पापा हैं घर पे ? ( आज उनकी आवाज़ में अपनापन कम और तंज़ कसने वाला अंदाज़ ज्यादा था )

मैं – हाँ आईये l “मम्मी तृषा के मम्मी पापा आये हैं !”

मम्मी – अरे आईये l आप तो आजकल इधर का रस्ता ही भूल गए हैं l उन्होंने सब को हॉल में बिठाया और बहन को चाय – नाश्ते का कह के मम्मी पापा उनके साथ बैठ गए l

मैं अब अपने कमरे में आ चूका था l पर मेरा ध्यान तो अब भी उन्ही की बातों में लगा हुआ था l

अंकल (मेरे पापा को ) – और बताएं क्या हाल हैं आपके ? कैसा चल रहा है काम l

पापा – सब ठीक है वहां l हमारी सुबह से शाम सरकार नौकरी में और शाम से फिर अगली सुबह बीवी की सेवा में गुज़र जाती है l आप कहें कैसे आना हुआ आज ?

आंटी (तृषा की मम्मी) – जी एक खुश खबरी देनी थी l हमने हमारी बेटी की शादी तय कर दी है l और लड़का भी तृषा को बहुत पसंद है l ( इस बार आंटी आवाज़ थोडा उंचा करती हुयी बोली )

मैं तो सुन्न हो था जैसे l मैंने लाख रोकना चाहा पर मेरी आँखों में आंसुओं का सैलाब सा उमड़ आया हो जैसे l

मम्मी – ये तो बहुत ही अच्छी बात है l पर अब तो बस मिठाई से काम नहीं चलने वाला है भाई साहब ( मम्मी तृषा के पापा को यही बुलाती थी )l अब तो हमें अच्छी सी पार्टी चाहिएl

आंटी – अरे इसके लिए भी कहना होगा क्या ! अगल सन्डे को हम सब चलते हैं कही बाहर l

पापा – अगले सन्डे तक हमसे इंतज़ार नहीं होने वाला है l आज हम सब हैं ही तो घर पर ही पार्टी मना लेते हैं l फिर उन्होंने मुझे आवाज़ दिया l मैं तो समझ ही गया था की पापा की पार्टी का मतलब क्या लाना है l

मैं – आता हूँ l फिर पापा ने पैसे दियें और मैं चला गया वाइन लाने l

मैं बाइक स्टार्ट कर के बाहर मुख्य सडक तक पहुंचा l सड़क पर ढेरों गाड़ियों का शोर था पर मुझे कुछ शोर सुनायी दे ही नहीं रहा था जैसे l बस कानों में एक ही बात गूंज रही तृषा की “मैं तुम्हारी थी , तुम्हारी हूँ और तुम्हारी ही रहूंगी l” मैं बेहद बेपरवाह सा सड़क पे आगे बढ़ा जा रहा था l गाड़ियों के चमकते लाइट में भी मुझे तृषा ही नज़र आ रही थी l एक बार तो मैं अपनी गाडी सामने वाली ट्रक के एकदम सामने ही ले आया पर वो बगल से गुज़र गयाl शायद ड्राईवर मुझे गालियाँ देते आगे बढ़ गया था l मैं तो जैसे अब तक सपने में ही था l ऐसा लग रहा था मानो उस दूर होती लाइट के साथ मेरा प्यार भी मुझसे दूर होता जा रहा था l फिर मैंने संभाला खुद को और वाइन ले के वापिस आया l इस बार मैं छोटी बोतल ज्यादा ले आया , कभी पिया तो नहीं था पर इतना सुना था दर्द कम हो जाता है इसे पीने के बाद l रास्ते में किसी गाडी में एक गाना बज रहा था “मेरी किस्मत में तू नहीं शायद, क्यों तेरा इंतज़ार करता हूँ l मैं तुझे कल भी प्यार करता था मैं तुम्हे अब भी प्यार करता हूँ” l सच कहते हैं लोग जब दिल दर्द से भरा हो तो ऐसा लगता है मानो सारे दर्द भरे गीत आपके लिए ही लिखे गए हो l

अब मैं अपने घर के दरवाज़े तक पहुँच चुका था l तभी घर के अन्दर से एक हंसी की आवाज़ सुनायी दी... मैं वही रुक गया, तृषा मेरे घर में आयी हुयी थी l आखिर वो इतनी खुश कैसे हो सकती है l मेरा दिल अब तक उसे बेवफा मानने को तैयार नहीं था l मुझसे अब बर्दास्त नहीं हुआ , मैंने वो छोटी वोडका की बोतल खोली और उसे ऐसे ही पी गया l जितनी तेज़ जलन मेरे गले में हुयी उससे कई ज्यादा ठंडक मेरे सीने को मिली l मेरी साँसें बहुत तेज़ हो चुकी थी l दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी मानो दिल का दौरा न पड़ जाए मुझे l थोड़ी देर के लिए मैं यहीं ज़मीन पे बैठ गया l मैंने अपने आप को संभाला और अपने घर में दाखिल हुआ l सबसे पहला चेहरा तृषा का ही मेरे सामने था l हॉल में मेरे मम्मी पापा के बीच बैठी बहुत खुश नज़र आ रही थी l

मम्मी – बेटा तृषा को बधाई दो, उसकी शादी तय हो गयी है l

मैं – माँ बधाई तो गैरों को दी जाती है l अपनों को तो गलें लगा के दुआएं दी जाती है l मैं आगे बढ़ा और तृषा को सबके सामने ही गले से लगा लिया l एक खामोशी सी छा गयी वहां पे l तब तृषा ने माहौल को संभालते हुए मुझे अलग किया और...

तृषा – तुम्हे क्या लगता है, तुम्हारी जान छूटी l आंटी के बनाये आलू के पराठे खाने मैं कहीं से भी आ जाउंगी l और मुझे जीभ निकाल चिढाती हुयी मेरी मम्मी की गोद में बैठ गयी l

फिर सब हसने लगें l मैं अपने आप को संभालता हुआ ऊपर छत पे चला गया l शराब का नशा धीरे धीरे अपना रंग दिखा रहा था l मेरे कदम अब लडखडाने लगे थे l मैं अब छत के किनारे तक आ गया था l मेरा एक पाँव छत की रेलिंग पर था l मन में एक ही ख़याल आ रहा था क्यूँ ना कूद ही जाऊं यहाँ से , शायद जिस्म के दुसरे हिस्सों का दर्द मेरे दिल के दर्द को कम कर दे l मैं ये सब सोंच ही रहा था की छत के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आयीl तृषा छत पे थी और उसने दरवाज़े को लॉक कर दिया l

मैं – सूना था की खुबसूरत लोगों के पास दिल नहीं होता, आज देख भी लिया l

तृषा – उफ्फ्फ़ क्या अंदाज़ हैं आपके l वैसे जान खुबसूरत कहने का शुक्रिया l कहते हुए उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी l “वैसे मेरे पास दिल हो या ना हो, पर आपके दिल में मेरे लिए इतना प्यार देख जी करता है की कच्चा चबा जाऊं तुम्हे l”

मैं – जान अपनी भूख अपने होने वाले पति के लिए बचा के रखो l मुझसे अब कुछ भी कहना दुश्वार हो रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे मेरे दिल को कोई अपनी हथेलियों में रख दबा रहा हो l

तृषा – आपको पीने शौक कब से हो गया ? ये बुरी आदत है इसे छोड़ दो l

मैं – छोड़ना तुम्हारी आदत होगी मेरी नहीं l वैसे तुमसे प्यार करना भी तो मेरी बुरी आदत की तरह ही है l अब तुम्हे चाहना भी छोड़ दू ?

तृषा – हाँ ! मैं तुम्हारे लायक नहीं निशु... थोड़ी देर तक खामोशी सी छाई रही वहां l आज मैं उसे वो हर बात कह देना चाहता था जो मेरे सीने में आग बन धधक रही थी l मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और अपने घुटने पे आ गया l

“आज मैं एक बात कहना चाहता हूँ l मैंने जब से प्यार का मतलब जाना है बस तुम्हे ही चाहा है l मैंने जब से जिन्दगी का सपना संजोया है हर सपने में तुम्हे ही अपने साथ देखा है l तुम्हारी आँखों में अपने लिए प्यार देखना बस यही मेरी सबसे बुरी आदत है l जब से मुझसे दूर हुयी हो, मैं साँसे तो ले रहा हूँ पर ज़िंदा होने का एहसास खो दिया है l मैं नहीं जानता हूँ की ये मेरा प्यार है या पागलपन l मैं इतना जानता हूँ की अगर कोई एहसास है जिसने मुझे अब तक ज़िंदा रखा है तो वो तुम्हारे प्यार का एहसास, तुम्हारे साथ बिताएं उन लम्हों की यादें हैं l तुम मेरी दुनिया में वापस आओ या ना आओ मैं अपनी यादों में ही हमेशा तुम्हे इतना ही प्यार करता रहूँगा l इतना प्यार की तुम्हारी ये जिंदगी उस प्यार को समेटने में ही ख़त्म हो जायेगी पर ये प्यार ख़त्म नहीं होगा l”

मेरी आँखों में आंसू आ गए थे l तृषा भी घुटनों पे बैठ मेरे पास आयी मेरे चेहरे को ऊपर कर मेरे होठों को चूम लिया
super duper update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अपडेट - ६


“मैं जानती हूँ तुम्हारे प्यार के लिए मेरा ये जनम काफी नहीं l ऊपरवाले से थोड़ा वक़्त उधार ले मैं फिर से आउंगी, और इस बार बस मैं और तुम होंगे l ना मम्मी पापा कर डर होगा न दुनियावालों की कोई परवाह l फिर से एक साथ अपना बचपन जियेंगे, एक साथ जवानी और अंत में बूढ़े हो एक दुसरे की बांहों में इस दुनिया को अलविदा कह जायेंगे l पर इस जनम में नहीं l” तृषा उठ के जाने को हुयी पर मैंने उसका हाथ पकड़ा और सीने से लगा लिया l उसकी आँखें भी भरी हुयी थी l

तृषा – निशु , शादी के बाद मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी l मैं तुम्हारे प्यार का हर लम्हा अपनी शादी वाले दिन तक समेट लेना चाहती हूँ l ताकि मैं मर भी जाऊं तो भी तुम्हारे प्यार से पूरी हो के मरुँ, कोई अधूरापन ना हो तब तक l मैंने उसके कान पकड़ें और उसे कहा “ये मरने जीने की बात कहाँ से आयी l” तृषा – इस्स्स्स ! अब शादी को लोग बर्बादी भी तो कहते हैं और बर्बादी में सब जीते कहाँ हैं l मैं – बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे l

तृषा – वैसे जान मेरे आज के प्यार का कोटा अब तक भरा नहीं है l (हमेशा की तरह वैसे ही चेह्कते हुए कहा उसने)

मैं – ह्म्म्म , वैसे जान यूँ खुले खुले आसमान के नीचे कोटा फुल करने में मज़ा आयेगा न l

तृषा – सबर करो मेरे शेर नीचे शिकारी हमारी राह देख रहे होंगे l मैं जाती हूँ अब ...

“मैं जाती हूँ अब...” ये शब्द बार बार गूंजने लगे थे मेरे जेहन में l जैसे जैसे वो अपनी कदमें वापिस नीचे की ओर बढ़ा रही थी, वैसे वैसे मेरे दिल का वो भारीपन वापस आ रहा था l मैं हाथ बढ़ा के उसे रोकना चाह रहा था पर मैं वहीँ जड़ हो गया था मानो l अब वो चली गयी थी l मैंने अपना मोबाइल निकाला और रेडियो ऑन किया, गाना आ रहा था दर्द दिलों के कम हो जातें.... मैं और तुम गर हम हो जातें l थोड़ी देर बाद दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आयी और तृषा और उसके मम्मी पापा अपने घर की ओर चल दिए l तृषा के बढ़ते कदम और इस गाने के बोल .. “इश्क अधुरा , दुनिया अधूरी l मेरी चाहत कर दो न पूरी l दिल तो ये ही चाहे, तेरा और मेरा हो जाए मुकम्मल ये अफसाना l दूर ये सारे भरम हो जाते मैं और तुम गर हम हो जाते l” पता नहीं रब को क्या मंज़ूर था l अब मैं अपने कमरे में आ चुका था l मेरे व्हाट्स ऐप पे तृषा का मैसेज आया था “अपने प्यार को यूँ दर्द में देखना इस दुनियां में किसी को भी गंवारा नहीं होगा l तुम्हे ऐसे देख कही मैं ना टूट जाऊं l मुझसे लड़ो झगड़ो मुझे कुछ भी करो पर यूँ खुद को जलाओ मत l क्यूंकि जब जब आग तुम्हारे सीने में लगती है जलती मैं हूँ l... तुम्हारी टीपू सुलतान (मैं अक्सर इसी नाम से उसे चिढ़ाता था)”

मैं अपने बिस्तर पे था पर नींद तो मानो कोसों दूर थी मुझसे l बस तृषा के साथ बिताये लम्हें फ़्लैश बैक फिल्म की तरह चल रहे थें में दिमाग में l तृषा के साथ बिताये वो पल मेरी सबसे हसीन यादों में से एक थी l आज उसकी शादी तय हो चुकी थी, बहुत जल्द किसी और की होने वाली थी वो l पता नहीं मैं उसे कभी देख भी पाऊं या नहीं उसके बाद l पर एक काम तो मैं कर ही सकता था, इन बाकी बचे हुए दिनों में ही अपनी पूरी जिंदगी जी लेना l उसके साथ का हर लम्हा अपनी यादों में कैद कर लेना l जानता हूँ जिंदगी यादों के सहारे नहीं जी जा सकती हैं l पर जब ज़िंदगी में साथ की कोई उम्मीद ही ना हो तो ये यादें ही हमेशा साथ निभाती हैं l मुझे तृषा के दर्द का एहसास था , अब मैं उसे और नहीं रुलाना चाहता था l मैं कल की प्लानिंग करने लग गया, तृषा के साथ बिताने वाले वक़्त की l

सुबह के दस बजे थें l मैं नास्ते के लिए बैठा ही था की तृषा का फ़ोन आया l मम्मी ने कॉल रिसीव किया और फिर मुझे कहने लगी l “बेटा वो तृषा को शादी की तैयारी करनी है, तुम्हारी मदत चाहिए उसे l और हाँ आज के नास्ते से रात के खाने तक का इंतज़ाम वहीँ है तुम्हारा l” मैं मन ही मन में “अरे मेरी भोली माँ, वो तेरे बेटे को खिलाने को नहीं बल्कि खाने की तैयारी में है l दिल का तंदूर उसने बना ही दिया है अब पता नहीं क्या क्या पकाने वाली है l” खैर अब नास्ता करता तो मम्मी भी नाराज़ हो जाती सो मैं उठा , अपने हाथ धोये और तृषा के घर चला गया l दरवाज़ा पे तृषा थी l

मैं – क्यों जी , मैदान खाली है क्या?

तृषा – (हँसते हुए) ह्म्म्म l सबको पटना भेज दिया है मेरी शादी का जोड़ा लाने l कल ही आ पायेंगे अब तो l

मैं – और आपने अपना हनीमून प्लान कर लिया l तृषा मुझे रोकते हुए बोली “तुम्हारा हर इलज़ाम कुबूल है मुझे पर ये नहीं l तुमसे प्यार किया है मैंने और पहले भी तुमसे कह चुकी हूँ ... तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी l”

मैं शायद कुछ ज्यादा ही कह गया था l फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा “तो आपको शादी की तयारी में हेल्प चाहिए थी l अब बताओ फूट मसाज दू या फुल बडी मसाज l”

तृषा – ह्म्म्म ... मौके का फायदा l जान पहले आराम तो कर लो l मैं कुछ खाने के लिए ले के आती हूँ l कहते हुए जैसे ही किचेन में जाने को हुयी मैंने उसका हाथ पकड़ा और गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ला के पटक दिया l

तृषा – बड़े बदमाश हो तुम, बड़े नादान हो तुम l हाँ मगर ये सच है ... हमारी जान हो तुम l कहते हुए उसने अपने होठ मेरे होठों से मिला दिए l

वो उसका मुझे देखना, मुझे पागल किये जा रहा था l कितनी सच्चाई थी इन आँखों मे l मैं डूबता चला गया इन आँखों की गहराईयों में l अब ना तो मुझे कुछ होश रहा था ना मैं होश में आना चाहता था बस उसके प्यार में अपने आप को खो देना चाहता था मैं l भूल बैठा था अपने हर दर्द को मैं या यूँ कहूँ की मैं भूल जाना चाहता था हर उस बात को जो कांटे की तरह चुभ रही थी इतने दिनों से l उसकी हर छुअन मेरे जिस्म में जान डाल रही हो जैसे l अब हमारा प्यार अपनी एक्सट्रीम (पराकाष्ठा) पर पहुँच चुका था l एक बार फिर हमारे होंठ मिल गएँ l हमारी आँखें अब बोझिल हो रही थी थकान की वजह से l पर तृषा की आँखों में नींद कहाँ l उसने कपडे बदलें और मेरे लिए नास्ता लाने चली गयी l

मैंने भी कपडे पहन लिए पर गर्मी थोड़ी थी सो शर्ट नहीं पहना था l तृषा कमरे में दाखिल हुयी l “अब उठ भी जाओ जान” l तृषा की आवाज़ सुनते ही मैंने दूसरी तरफ अपना चेहरा किया और तकिये को अपने कानों पे रख लिया l तृषा नास्ते को प्लेट में सजा मेरे पास आ गयी l

तृषा – अब उठ भी जाईये, बाद में आप सो लेना l

मैं – मुझे नहीं उठाना है बस l आपके होते हुए मैं अपने हाथ गंदे क्यूँ करूँ l

तृषा – (मेरे गले पे चुमते हुए) ठीक है मेरा बाबू l मैं – अरे गुदगुदी होती है l ऐसे मत करो ना l और मैं झटके से उठ के बैठ गया l तृषा को तो जैसे मैंने जैकपोट दिखा दिया हो l अब तो बस उसकी गुदगुदी और हाथ जोडके उससे भागता हुआ मैं l “भगवान् के लिए मुझे छोड़ दो” मैं चिल्ला रहा था l और तृषा रेपिस्ट वाली शकल बनाते हुए “जानेमन भगवान् से तू तब मिलेगा न जब मुझसे बचेगा” और फिर से वही गुदगुदी l आखिर में उसके हाथ पकड़ मरोड़ दिए , तब जा के रुकी l अब बेचारी हिल भी नहीं सकती थी l अब बदला लेने की बारी मेरी थी l मैं अपने होठों को उसके कानों के पास ले गया और अपनी जीभ से उसके कानो को कुरेदने लगा (मैं जानता था की उसे तो बस यही गुदगुदी लगेगी) l वो लगभग चिल्ला रही थी l “जो कहोगे वो करुँगी मैं प्लीज मुझे छोड़ दो l” मेरा बदला अब पूरा हो चुका था सो मैंने उसे छोड़ दिया l

मैं – खाना तो खिलाओ , भूख लगी है l वैसे भी बिना खिलाये पिलाए इतनी मेहनत करवा चुकी हो l

तृषा – किसने कहा था मेहनत करने को l खुद ही जोश में आ गए थे तुम तो l

मैं – मैं तो तुमसे हमेशा कहता हूँ की अगर मुझे काबू में रखना हो तो लाल कपड़ों में मत आया करो मेरे सामने l जब खुद गलती की हो तो भुगतो l

तृषा – बातें ही बनाओ अब आप l चलो खाना तो खाओ l लाओ मैं खिला देती हूँ l

मैं तो बस उसके चेहरे को ही देखे जा रहा था l जिसे देख मुझे एक ग़ज़ल की कुछ लाइन याद आ रही थी l “चौदवी की रात थी, शब् भर रहा चर्चा तेरा... सब ने कहा चाँद है, मैंने कहा चेहरा तेरा l” मैं तो खोया ही हुआ था की उसके पहले निवाले ने मेरी तन्द्रा भंग की l मैंने नास्ते की प्लेट पे नज़र डाली l चावल , चिकन अफगानी, और टमाटर की बनी ग्रेवी थीl मेरा सबसे पसंदीदा खाना जो मैं अक्सर तृषा के साथ रेस्टुरेंट में खाया करता था l तृषा शायद ही कभी अपने घर में कुछ बनाया करती थी l मैं अक्सर उसे ताने देता की “तुम अगर मेरी बीवी बनी तब तो बस जली हुयी चपातियों से ही काम चलाना होगा”l और वो हर बार जवाब में यही कहती “अभी शादी को बहुत वक़्त है तब तक सीख लुंगी न l”

मैं – कब सीखा ये बनाना तुमने ?

तृषा – तुम्हे अपने हाथों से बनायी हुयी डिश खिलानी थी, वर्ना जाने के बाद भी मुझे ताने मरते l अब वैसे भी वक़्त बचा नहीं है सो मैंने.... मैंने अपने हाथ उसके मुह पर रख उसकी बात यही रोक दी “वक़्त की याद दिलाओगी तो शायद इस वक़्त को भी मैं जी ना पाऊं l” अब हम दोनों चुप थे l ये खामोशियाँ भी चुभन देती हैं , इस बात एहसास मुझे उसी वक़्त हुआ l मैंने खाना ख़त्म किया और अपनी शर्ट पहनने लगा l तृषा को शायद ये लगा की मैं अब जाने वाला हूँ l वो सब छोड़ छाड़ के मुझसे लिपट गयी l मैंने कहा “जान हाथ तो धो लो l मैं कही नहीं जा रहा हूँ”

तृषा – ठीक है l पर ये शर्ट मेरे पास रहेगा मैं तुम्हे ये देने वाली हूँ ही नहीं l

मैं – अरे यार तो मैं घर कैसे जाऊँगा l

तृषा – वो सब मैं नहीं जानती l मैं ये शर्ट नहीं देने वाली हूँ तुम्हे बस l .. वैसे भी बिना हाथ धोये ही उसने इसे पकड़ लिया था सो शर्ट (वो भी सफ़ेद शर्ट) में दाग भी लग गए थे l मैं इसे ऐसे में घर पहन जा भी नहीं सकता था l सो मैंने कहा “ठीक है जी , आपका हुकुम सर आँखों पे l”

तृषा किचेन ठीक करने लग गयी और मैंने अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ा और तेज़ तेज़ गाने बजाने लगा l उसपे भी अजीब से मेरे डांस स्टेप्स l तृषा के दादा दादी की बोलचाल की भाषा भोजपुरी थी l और जब भी मुझे तृषा को चिढाना होता मैं या तो उससे भोजपुरी में बातें करने लगता या फिर ऐसे ही भोजपुरी गाने तेज़ आवाज़ में बजाने लगता l आज भी मैं वही कर रहा था l

मैं ऐसे ही डांस करते हुते किचेन में गया और तृषा के दुपट्टे को अपनी दांतों में फंसा बरात वाले स्टेप्स करने लग गया l तृषा चिढती हुयी बाहर आयी और गाना बंद कर दिया उसने l

मैं उसे अपनी ओर खींचते हुए “का हो करेजा (क्या हुआ मेरी जान)”

तृषा – (अपना मुंह अजीब सा बनाते हुए) कहो !

मैं – रउरा के हई डिजाइन देख के मन क र ता की चापाकल में डूब के जान दे दईं ! (तुम्हारे इस फिगर को देख के ऐसा लग रहा है जैसे हैण्ड पंप में कूद के जान दूँ मैं)

तृषा – अपना सर पकड़ते हुए “आज तो तुम कूद ही जाओ, मैं भी देखूं आखिर कैसे एडजस्ट होते हो तुम उसमे l” मैं हंसने लग गया l मैंने बॉल डांस की धुन बजायी और तृषा को बांहों में ले स्टेप्स मिलाने लगा l ये डांस तृषा ने ही मुझे सिखाया था l एक दुसरे की बांहों में बाँहें डाले, आँखें बस एक दुसरे को ही देखती हुयी l मैं धीरे से उसके कानों के पास गया और उससे कहा “सच में चली जाओगी मुझे छोड़ के ?”

तृषा – (मुझे कस के पकड़ते हुए) नहीं, बस झूटमूट का ! मैं तो हमेशा तुम्हारे पास रहूंगी l जब कभी अकेला लगे, अपनी आँखें बंद करना और मुझे याद करना l अगर तुम्हे गुदगुदी हुयी तो समझ लेना मैं तुम्हारे साथ हूँ l (फिर से मुझे गुदगुदी करने लग गयी और मैं उससे बचता हुआ कमरे में एक जगह से दूसरी जगह भागने लग गया)

आखिर में हम दोनों थक के बैठ गए l मेरे जनमदिन वाले दिन को जो हुआ था, उसके बाद शायद ही कभी हसे थे हम दोनों l उस दिन को हमने जी भर के जिया l एक बार तो भूल गया था मैं की उसकी शादी किसी और से हो रही है l शायद मैं आज याद भी नहीं करना चाहता था इस बात को ...

रात हो चुकी थी l उस रात का खाना हम दोनों ने मिल के बनाया था l वो सोफे पे बैठ गयी, मैंने उसकी गोद में सर रखा और फर्श पर बैठ गया l तृषा मुझे खिलाने लग गयी l मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था, पता नहीं फिर कब उसे जी भर के देखने का मौका मिलेl

खाना पीना हो चूका था और मम्मी का कॉल भी आ चूका था l सो अब जाने का वक़्त हो चुका था l तृषा की आँखें भी नम हुयी जा रही थी, वो कुछ कहना चाह रही थी पर बात उसके गले से बाहर नहीं आ पा रही थी l ना मुझमे अब कुछ बोलने की हिम्मत बची थी l मैं दरवाज़े की ओर मुड़ा और दरवाज़ा खोल ही रहा था की तृषा का मोबाइल बज उठा l कॉलर ट्यून थी “लग जा गले की फिर हंसी रात हो ना हो ... शायद इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो ...” मैं पलटा और तृषा को जोर से बांहों में भर लिया l हम दोनों रोये जा रहे थे l थोड़ी देर ऐसे ही रुक मैंने खुद को उससे अलग किया और दरवाज़े से बाहर आ गया l
lovely update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट

सीने में आग लगी हुयी थी l मैं जोर जोर से चिल्लाना चाह रहा था, मैं थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था l पर कहते हैं न “बड़ी तरक्की हुयी है इस देश की मेरे दोस्त... तसल्ली से रोने की जगह भी नहीं है यहाँ तो l” सारे दर्द को यूँ ही सीने में दबाये मैं अपने कमरे में आ गया l अब कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमे मैं सोने चला गया l उस दिन को बीते लगभग एक हफ्ता हो गया था l यूँ तो हर रोज़ हम किसी न किसी बहाने से मिल ही लेते थें l पर आज शाम तृषा का कोई पता ही नहीं था l उसके घर में भी कोई नहीं था l मैंने अपना सेल फ़ोन निकाला और तृषा को मैसेज किया l

“कहाँ हो ? मैं छत पे तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ l” तृषा का ज़वाब थोड़ी देर में आया “मैं पटना में हूँ कल मिलती हूँ l”

आखिर वो पटना में क्या कर रही है ? ये सवाल मुझे परेशान किये जा रहा था l मैं नीचे गया, मम्मी नूडल्स बना रही थी l

मैं – मम्मी, वो तृषा के घर पे कोई नहीं है l सब कही गए हैं क्या ?

मम्मी – तृषा ने तुम्हे नहीं बताया है क्या ?

मैं – कौन सी बात ?

मम्मी – आज तृषा की सगाई है l लड़के वाले पटना के हैं सो वही किसी होटल से हो रही हैl

बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला मैंने l जब से तृषा की शादी की बात हुयी थी मुझे लगा था की मैं तृषा और उसके परिवार वालों को मना लूँगा l तृषा की प्यार भरी बातें उसका मेरे करीब आना, यूँ मुझपे अपना हक़ जताना l अब तो जैसे सब बेमतलब सा लग रहा था l उसे जब यही करना था तो मुझे उसने ये एहसास क्यूँ दिलाया की सब ठीक हो जाएगा l क्यूँ उसने मुझे खुद से दूर जाने ही नहीं दिया l क्या प्यार बस खेल है उसके लिए l सुना था की दिलों से खेलना भी शौक होता है , पर जान लेने का ये तरीका कुछ नया था मेरे लिए l आज मैं एक बात तय कर चुका था , उसकी हर याद को मिटाने की l शुरुआत उसकी तस्वीरों से की मैंने l छत पर गया और उसकी तस्वीरों को उसी के घर की छत पे रख कर आग लगा दी मैंने l हर जलती तस्वीर और मेरे आंसुओं की हर बूँद के साथ उसकी हर याद को मैं खुद से अलग कर देना चाहता था l पर मैं इस प्यार का क्या करता जो मेरे दिल की हर धड़कन के साथ उसके मेरे पास होने का एहसास कराता जा रहा था l मैं गुमशुम सा हो गया उस दिन के बाद l किसी अजनबी के पास जाने से भी डर सा लगने लगा था मुझे l अब तो अपनी धड़कन भी पराई सी लगती थी मुझे l मैं अब ना तो कहीं जाता और ना ही किसी से बात करता l माँ ने बहुत बार मुझसे वजह जानने की कोशिश की पर क्या बताता मैं उन्हें की उनके बेटे को उसके अपने दिल का धडकना गंवारा नहीं l

तृषा की शादी की तारीख 15 मई को तय हुयी थी l मैं बस इस सैलाब के गुज़र जाने का इंतज़ार कर रहा था l जैसे जैसे दिन करीब आ रहे थे मेरी बेचैनी बढती ही जा रही थी l उसकी शादी में अब दो दिन बचे थे l शादी के गीतों का शोर अब मेरे बंद कमरे के अन्दर भी सुनायी देने लगा था l मैं पापा के कमरे में गया और वहां उनकी आधी खाली शराब की बोतल ले छत पे आ गया l रात के 8:30 बजे थे, मैंने अपने छत के दरवाज़े को बंद किया और किनारे की दीवार के सहारे जमीन पे बैठ गया l जब जब शराब की हर घूंट जब मेरे सीने को जलाती हुयी अन्दर जाती तब तब ऐसा लगता मेरे जलते हुए दिल पे किसी ने मरहम लगाया हो l मेरी आँखें अब बंद थी, अब तो मैं ये मान चूका था की मैंने किसी बेवफा से मोहब्बत की थी l तभी ऐसा लगा मानो कोई मेरी शराब की बोतल को मुझसे दूर कर रहा हो l मैंने अपनी आँखें खोली... सामने तृषा थी l मैं डर गया और लगभग रेंगता हुआ उससे दूर जाने लगा l “ज .. जाओ यहाँ से” लगभग चिल्लाते हुए मैं बोला l मेरी दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो चुकी थी , मेरा पूरा शरीर कांप रहा था l

तृषा – क्यूँ जाऊं मैं ! तुम ऐसे ही घुट घुट के मरते रहो और मैं तुम्हे ऐसे ही मरते हुए देखती रहूँ l

मैं – जान भी लेती हो और कहती हो, तुम्हारा तड़पना मुझे पसंद नहीं l जाओ शादी करो और अपनी जिंदगी में खुश रहो l अब तो तुम्हारी हमदर्दी भी फरेब लगती है मुझे l

तृषा – (मेरे पास आते हुए) मत करो मुझसे इतना प्यार, मैं लायक नहीं तुम्हारे प्यार के l

मैं – दूर रहो मुझसे l और किसने कहा की तुमसे प्यार करता हूँ मैं l (उँगलियों से उसे दिखाते हुए) इत्तू सा भी प्यार नहीं करता तुम्हे मैं l

तृषा – (मेरे गले लग गयी) पता है मुझे l

मैं – अब क्या बचा है जो लेने आयी हो l

तृषा – (मेरे बोतल से एक घूंट लगाते हुए) कुछ नहीं l बस अपनी जिंदगी के कुछ बचे हुए पलों को तुम्हारे साथ जीने आयी हूँ l

मैं – तुम्हे कुछ महसूस नहीं होता क्या ? जब चाहो दिल में बसा लिया जब जी चाहा दिल से दूर कर लिया l

तृषा – होता है न l पर दिल से दूर करुँगी तब न l तुम तो हमेशा से मेरे दिल में हो l तो मुझे क्यूँ दर्द होगा l

मैं – (उसकी सगाई की अंगूठी दिखाते हुए) किसी और के नाम की अंगूठी पहनते हुए भी कुछ महसूस नहीं हुआ क्या ?

तृषा – जब पापा मेरे लिए प्यार से कुछ कपडे लाते थे तो उसे पहन के बहुत खुश होती थी मैं l घर में सबको डांस कर कर के दिखाती थी कभी l आज मेरी इस अंगूठी के पहनने से उन्हें ख़ुशी मिल रही है तो मैं इतना भी नहीं कर सकती उनके लिए l जिन्होंने दिन रात मेहनत की और मेरी हर डिमांड को पूरा किया l आज मैं उन्हें थोड़ी सी भी ख़ुशी दे सकूँ तो ये मेरे लिए खुशनसीबी होगी l

मैं – अपने मम्मी पापा की ख़ुशी का ख्याल है तुम्हे और मैं ? जब से तुम्हे जाना है तुहारे लिए ही जिया है मैंने l जब से तुमसे प्यार हुआ है तब से तुम्हारे हर दर्द को बराबर महसूस किया है मैंने l तुम्हारे लबों पे एक मुस्कान के लिए तुम्हारी हर ख्वाहिश को पूरा करने की कोशिश की है मैंने l और मैं क्या चाहा था तुमसे ... तुम्हारा प्यार l तुमने तो उसे भी किसी और के नाम कर दिया l

तृषा – तुम्हारे इस सवाल का जवाब भी बहुत जल्द दे दूंगी l पर तुम्हारी ये हालत मैं नहीं देख सकती l अपना हुलिया ठीक करो l और याद है न तुमने मुझसे वादा किया था “मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले तुम ही देखोगे” l आओगे न ? मेरी आखिरी ख्वाहिश समझ के आ जाना l

मैं – काश की मैं तुम्हे ना कह पाता l हाँ मैं आऊंगा l

तृषा अपने घर चली गयी l आज बहुत दिनों के बाद मुझे नींद आयी थी l शादी वाला दिन भी आ चुका था l आज एक वादे को निभाना था l अपने लिए ना सही पर आज अपने प्यार के लिए मुस्कुराना था मुझे l सुबह सुबह मैंने शेविंग कराई, बाल ठीक किये और तृषा की गिफ्टेड शर्ट और पैंट को ठीक किया l शाम तक मैंने अपने आप को घर में ही व्यस्त रखा l अपने चेहरे से मुस्कान को एक बार भी खोने ना दिया l कभी आँखों में आंसू आये तो कुछ पड़ने का बहाना बना देता l शाम को चाचा जी घर पे आये “नक्श पापा को भेजना जरा” l मैंने जवाब दिया “ जी घर पे अभी कोई भी नहीं है, सब बगल में शादी में गए हुए हैं l”

चाचा जी – और तुम ?

मैं – हाँ बस थोड़ी देर में घर में ताले लगा के मैं भी जाऊँगा l

चाचा जी – ठीक है ये लो पैसे , पापा को दे देना l एक लाख हैं, गिन के अन्दर रख दो l

मैं – पापा को ही दे दीजियेगा l

चाचा जी – तुम्हारे पापा का ही है l और बार बार इतने पैसे लाना ले जाना सुरक्षित नहीं है l

मैंने पैसे गिने और कहा ठीक है अब आप जाईये मैं पापा को दे दूंगा l चाचा जी चले गए l अब मेरे लिए परेशानी थी की इस रखु तो कहाँ रखूं l लौकर की चाभी पापा कही रख के गए थे l सो मैंने उस हज़ार की गड्डी के दो हिस्से किये और आधा अपनी एक जेब में और बाकी आधा दूसरी जेब में रख लिया l आज वैसे ही कोई कम चिंता थी क्या जो एक और भी आ गयी l अब तक मैंने अपने दिल को मना लिया था l जानता था खुद को काबू में रखना मुश्किल होगा पर मैंने सोच लिया था की किसी और के सामने अपनी भावनाओं को आने से रोकूंगा l अगर किसी और के साथ घर बसाने में ही तृषा की ख़ुशी है तो मैं उसे बर्बाद नहीं करूँगा l वक़्त अब हो चला था l तृषा तो अब तैयार भी हो गयी होगी l मैंने घर को ताला लगाया और तृषा की घर की तरफ बढ़ चला l

तृषा की घर की ओर मेरे हर बढ़ते कदम मेरे दिल की धड़कन को तेज़ और तेज़ किये जा रहे थें l मैं मुख्य दरवाज़े से अन्दर दाखिल हुआ l सभी अपने अपने काम में लगे थें l मैं सबको नमस्ते कहता हुआ तृषा के कमरे के पास पहुंचा l उसकी बहनें और भाभियाँ उसे घेर के उसका श्रींगार कर रहीं थी l

मैं – (खांसता हुआ कमरे में घुसा) अरे मेरे टीपू सुलतान “जंग की तैयारी हो गयी क्या?”

तृषा – (मुझे देखते ही उसकी आँखों से आंसू बहने लगे) भाभी आप सबको थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाईये l

सबके बाहर जाते ही उसने मुझे कस के पकड़ लिया और बहुत जोर जोर से रोने लगी l ऐसा लगा जैसे इतने दिनों से जो दर्द अपने अन्दर भरा हुआ था उसने आज वो सैलाब रुक ना सका l “बहुत दुःख दिया है न मैंने तुम्हे ? अब कोई तुम्हे परेशान नहीं करेगी l” मेरे गाल खींचते हुए तृषा बोली l

मैं – तुम्हारे नाम का दर्द भी ख़ास है मेरे लिए वरना औरों से मिली खुशियाँ भी ख़ुशी नहीं देती l वैसे जानू आज मैं देखने आया हूँ l देखूं तो कैसी लग रही हो !

तृषा मुझसे थोड़ी दूर हटते हुए अपना शादी का जोड़ा दिखाने लगी l इन तीन महीनों में बस एक ही बात थी जो मुझे अजीब लगी थी तृषा में “उसकी आँखें कुछ कहती थी और उसकी जुबान पे कुछ और ही बात होती थी” l आज जो उसकी आँखों में था वही उसके जुबां पे भी था l

तृषा – कैसी लग रहीं हूँ मैं ?
very nice update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट


मैं – जैसी मैं अक्सर अपने ख्यालों में तुम्हे देखता था l पर ये नहीं मालुम था की मैं अपने ख्यालों में किसी और की बीवी को देखता हूँ l
तृषा मेरे गले लगते हुए “आज भी ताने दोगे ? मेरी विदाई का वक़्त आ चुका है अब तो माफ़ कर दो l”... एक बात मानोगे मेरी... आज मुझे तुमसे एक तौफा चाहिए l

मैं – कौन सा तौफा ?

तृषा – याद है जब तुमने मुझे पहली बार प्रपोज किया था l आज एक बार फिर से करो न l

मैं अपने घुटने के बल बैठ गया l उसकी हाथ को अपने हाथ में ले के

“सुन मेरी मयूरी ये मोर तुझसे एक बात कहता है , दिल तो उसका है पर तेरा ही नाम ये जपता रहता है l मेंरे दिल में बस जा , मेरी साँसों में समा जा , मेरी नींद तू ले ले, मेरा चैन तू ले ले l पर सुन ले मेरी बात l जल्दी से तू हाँ अब कर दे वर्ना कही आ ना जाए तेरा बाप l”

मैंने ये लाईनें ख़त्म की और हम दोनों ही ज़मीन पे बैठ हसने लगे l

तृषा – मेरी बात और थी पर अगर किसी और को ऐसे प्रपोज करोगे तो चप्पल खोल के मारेगी l ऐसे करता है कोई प्रपोज l

मैं – वही तो कह रहा हूँ , नहीं आता है मुझे किसी को अपने दिल की बात बताना पर तुम तो हर बात बिना बताये समझती हो न l मेरे साथ भाग चलो न l

तभी आवाज़ आयी “तृषा” , और तृषा की माँ लगभग चिल्लाते हुए कमरे में आ गयी l

आंटी – (मेरी ओर देखते हुए) जाओ यहाँ से l तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है l

मैं – आज नहीं जाऊँगा l आप मेरी बात सुन लो तब मैं चला जाऊँगा l

आंटी – ठीक है ! कहो , क्या कहना है तुम्हे ?

मैं – माना की हमसे गलती हुयी l हमें हमारे रिश्ते के बारे में आपको बता देना चाहिए था l हम तो छोटे थे नासमझ थे हमसे गलती हो गयी l पर आपसे गलती कैसे हुयी l आप तो समझदार थे l अपने ही हाथों अपनी बेटी का गला घोंट दिया l कहते हैं एक माँ अपने बच्चे को सबसे अच्छी तरह जानती है l एक बार बस अपनी बेटी को देख के आप कह दे की वो खुश है l मैं कुछ नहीं कहूँगा और चुपचाप चला जाऊँगा l... आंटी चुप थीं l मैंने कहा “आपकी खामोशी ने सब कह दिया मुझसे l जाता हूँ मैं , और मैं इस बात के लिए आपको कभी माफ़ नहीं करूँगा l”

मैंने आंटी के सामने ही तृषा को गले लगाया और उसे किस किया l “जा रहा हूँ , अपना ख्याल रखना l (तृषा मुझे रोकने को हाथ बढ़ा रही थी पर तब तक मैं जा चूका था)

मैं बाहर गया l बाहर पापा खड़े थे l

पापा - “क्या हुआ बेटा उदास दिख रहे हो ?”

मैं – कुछ ख़ास नहीं, आपकी होने वाली बहु की शादी किसी और से हो रही है l

पापा – तुमने मुझे बताया क्यूँ नहीं l तभी इतने दिनों से तुम परेशान थे l मैं तृषा के पापा से बात करता l

मैंने पापा की बात काटते हुए कहा “मैं तृषा के बारे में कहाँ कह रहा था , मैं तो मज़ाक कर रहा था l मैं आता हूँ बारात में डांस करके l” मैं जल्दी से वहां से निकल आया , कही पापा मेरी आँखों में आसू न देख ले l अब मैं पास के ही हाईवे पे था l शराब की दूकान खुली थी और लगभग बाकी सारी दुकानें बंद थी (शादियों के मौसम में यही दूकान तो देर तक चलती है)l मैं दूकान में गया और स्कॉच की हाफ बोतल ले आया l

पास में ही एक बंद दूकान की सीढ़ियों पे बैठ गया l थोड़ी देर में वहां जो बची खुची दुकानें थी वो भी बंद हो गयी l अब तो बिलकुल अकेला सा लग रहा था वहां l आसमान में दिवाली सा पटाखों का शोर , दूर दूर से आता बारात के गानों का शोर और मेरे मन ख्यालों का शोरl अकेला होता हुआ भी अकेला नहीं था मैं वहां पे l अब तक चार बारात मैं देख चूका था यहीं बैठे-बैठे l ना जाने कितने ही आशिकों के दिल वीरान होंगे आज की रात l मैं सोच ही रहा था की एक और बारात आ गुजरने लगी l उसी में से एक उम्र में मुझसे थोडा बड़ा लड़का मेरे पास आया l “भाई यहाँ दारु की दूकान है क्या आसपास ?”

मैं – नहीं भाई , (अपनी आधी बची बोतल आगे बढाते हुए) यही ले लो l

वो साथ में ही बैठ गया l बोतल लेने के साथ ही पूछा “पानी और चखना कहाँ है?” मैंने इशारे में ही कहा “नहीं है l” उसने पूछा “क्यूँ भाई आशिक हो क्या ?” मैं कहा “नहीं दीवाना हूँ l” वो हसने लग गया l हाथ बढाते हुए “हेलो मैं रवि” मैंने भी उससे हाथ मिलाया “मैं नक्श l”

रवि – चलो मेरे साथ , ये बारात भी दीवानों की ही है l (वैसे भी मैं क्या करता, मुझमे इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं तृषा की शादी होता देख सकता l मैं रवि के साथ ही चल पड़ा)

बारात पास की ही थी l रवि और उसके दोस्तों के साथ थोड़ी देर के लिए ही सही पर मैं भूल गया था की आज तृषा की शादी है l बारात पहुँचने पे वहां भी शराब और कबाब का दौर चला l अब नशा हावी हो चला था मुझपे सो थोड़ी देर के लिए नींद सी आ गयी l मैं वही बारात की गाडी में सो गया l तकरीबन पांच बजे मेरी नींद खुली, ऐसा लगा जैसे किसी ने जगाया हो मुझे गहरी नींद से l मैं गाडी से बाहर निकला , आस पास कोई भी नहीं था l अपने चेहरे को धोया फिर अपना मोबाइल देखा l रात को स्विच ऑफ कर दिया था मैंने l अब उसे ऑन किया और अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए l तभी मोबाइल की घंटी बजी, तृषा का मैसेज आया था व्हाट्स ऐप पे l

मैंने उसे देखा तो दो ऑडियो मैसेज थें l

पहला मैसेज

“आई लव यू जान l मेरा ये आखिरी मैसेज तुम्हारे लिए l मुझे माफ़ कर देना निशु, मैंने तुम्हे बहुत दुःख दिए इन तीन महीनों में l पर सच कहूँ तो तुमसे ज्यादा मैं जली हूँ इस आग में l जब जब तुम्हारी आँखों में आंसू आयें ऐसा लगा की किसी ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए हो l जब भी तुमने मुझे बेवफा की नज़रों से देखा तो मुझे खुद पे घिन्न सी आने लगी l जब पहली बार माँ को हमारे बारे में पता चला तो लगा की ये तुरंत का रिएक्शन है अगर मैं शांत हो के सब को समझाउंगी तो सब मान जायेंगे l मैंने शादी की आखिरी रात तक अपने मम्मी पापा को समझाने की कोशिश की पर कोई अपनी जिद के झुकने को तैयार ना हुआl मैंने हर तरीका अपना लिया पर मैं तुम्हारी ना हो सकी l उन्होंने कहा था की मैंने अगर तुम्हे अपनाया तो वो मौत को गले लगा लेंगे l जानू , जिन्होंने मुझे जिंदगी दी उनकी मौत कारण मैं बनू ये कैसे हो सकता था l

इसीलिए मैंने एक फैसला किया l अगर मैं तुम्हारी ना हो सकी तो मैं किसी और की भी नहीं हुंगी l ये ज़हर की शीशी मैं पीने जा रही हूँ l आई लव यू हमेशा हमेशा l



मुझमे अब इतनी हिम्मत नहीं थी की मैं दूसरा मैसेज देख पाता l मेरी साँसे जैसे रुकने को हो आयी थी l मेरा दम घुटने लगा था l ये मैसेज रात बारह बजे का था l मैंने बहुत हिम्मत जुटा के दूसरा मैसेज देखा l

दूसरा मैसेज

जानू , मेरा दम घुट रहा है l पर एक बात मैं कहना चाहती हूँ l तुम कभी खुद को अकेला मत समझना l मैं हमेशा तुम्हारे एक दम पास रहूंगी l जब भी मेरी याद आये तो अपनी आँखें बंद करना और अपनी बाँहें फैला लेना... मैं तुम्हारे गले लग जाउंगी l.... अपना ख्याल रखना ... एक हिचकी की आवाज़ आयी और मैसेज ख़त्म l

मैं वही जमीन पे बैठ गया l मैं अब करूँ तो क्या करूँ l जिसे अपनी दुनिया माना था मैंने वही मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़ चली गयी l मैं बीच सड़क पे बैठा चिल्लाता जा रहा थाl पर कोई भी नहीं था मुझे सुनने वाला वहां l

जिसे शादी के जोड़े में देखने का सपना संजोया था मैंने उसे कैसे कफ़न में लिपटा देखता l जिसके साथ जीवन के हर पड़ाव को पार करने का सपना देखा था कैसे उसे अकेले ही उसके आखिरी पड़ाव पे जाने देता l मुझे अब उसकी हर बात याद आ रही थी l मेरे पास वक़्त था, मैं उसे रोक सकता था पर रोक न पाया l मैं उठा और पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा l मैं बस दूर जाना चाहता था इन सब चीज़ों से l अपने मोबाइल को पास के गटर में फेंक दिया मैंने l स्टेशन पर पहुँचते ही सामने एक गाडी लगी थी “हावड़ा – मुंबई मेल”l सामने वाले डब्बे में मैं चढ़ गया l

थोड़ी देर में ट्रेन खुल गयी l पीछे छूटते स्टेशन के साथ ही हर रिस्ते नाते मैं छोड़ आगे बढ़ा जा रहा था l ऐसा लग रहा था जैसे तृषा मुझे प्लेटफार्म से अलविदा कह रही हो l मैंने हाथ बढ़ा के उसे पकड़ने की कोशिश की तभी पीछे से किसी ने मेरा कालर खीच लिया l

टी टी – मरने का इरादा है क्या ? टिकट दिखाओ !

मैं – जेब से २००० उसे दे दिए l

टी टी – कहाँ जाना है ?

मैं – जहाँ ये ट्रेन जा रही है l

टी टी – ये फर्स्ट क्लास है ,२००० और दो मैं सीट दे देता हूँ l मैंने पैसे दे दियें l उसने मुझे एक रसीद और बर्थ का नंबर लिख के दे दिया l फिर वो दूसरी बोगी में चला गया l मैं सामने की बेसिन में अपना चेहरा धोने लगा l तभी मेरी नज़र शीशे पे गयी , कल रात तृषा ने जो मुझे किस किया था उसके लिपस्टिक के निशान अब तक मेरे होठों पे थें l मैंने रुमाल निकाल उसे उसमे पोछा l उस निसान को देख मुझे और भी रोना आ रहा था l उस रुमाल को जेब में डाला मैंने और अपने आप को थोडा संयमित करने की कोशिश करने लगा l एक पेंट्री वाला वहां आया l मैंने उसे रोका और कहा “भाई दारु है क्या?”l

पेंट्री वाला – हम दारु नहीं बेचते l

मैं – हाँ हाँ पता है तू पंचामृत बेचता है l जेब से एक हज़ार का नोट निकाला और उसकी जेब में डालते हुए कहा l जा और मेरे लिए एक ढक्कन पंचामृत लेते आ l और अपना बर्थ नंबर बता दिया मैंने उसे l
sad update per aisa nahi hona chahiye tha
 
  • Like
Reactions: Rohit 8800

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट


अब मैं अपनी केबिन में पंहुच चुका था l यहाँ पहले से तीन लोग थे l मेरी बर्थ नीचे की थी सो मैं भी वही बैठ गया l तीनों लड़कियां थी, लगभग 25 के आस पास उम्र होगी उन तीनों की l मैंने अपना सर खिड़की से लगाया और अपने शहर के रास्तों को खुद से दूर होता देख रहा था l मेरे मन में तृषा के साथ बीते हुए दिन फ्लैशबैक फिल्म की तरह चल रहे थें l

एक लड़की जो मेरे सामने बैठी थी, बगलवाली से बोली “यार ये तो जब वी मेट का केस लग रहा है”l दूसरी ने जवाब दिया “हाँ यार सच में, कितना गुमसुम है”l तभी जो मेरे बगल में बैठी थी अपना हाथ मेरे तरफ बढाते हुए बोली “हेलो, मैं निशा l और आप?” मेरा ध्यान अब तक बाहर ही था l मैंने कुछ नहीं कहा l कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी मुझमे l मैं अब तक अपने शहर को ही देख रहा था l

निशा – हाँ यार सच में पक्का “जब वी मेट”(फिल्म) वाला केस है l फिर मेरी तरफ देखते हुए “क्या हुआ है ? किसी एग्जाम में फेल हो गए हो ? मम्मी पापा का डाइवोर्स हो गया है? गर्लफ्रेंड किसी और के साथ भाग गयी है?

उसके एक एक सवाल मेरे दिल को चीरे जा रहे थें l मैं बेहद गुस्से में उनकी तरफ देखता हुआ बोला l “वैसे सवाल किसी से नहीं पूछने चाहिए जिस सवाल के शब्द ही जान लेने के लिए काफी हों l”

निशा – ये सफ़र हम सब के लिए नया है l पहली बार हम अपने अपने घर से इतनी दूर अपनी पहचान बनाने के लिए निकले हैं l मैं तो बस दोस्त बनाने की कोशिश कर रही हूँ l आपको बुरा लगा हो तो मुझे माफ़ कर देना आप l

मैं – किसी के ज़ख्म कुरेद कर दोस्ती करने का अंदाज़ पहली बार देखा है l

निशा – ज़ख्म कुरेद कर मैं बस ये देख रही थी की तुममे अब भी जान बाकी है या नहीं l

उसके बोलने का अंदाज़ बिलकुल तृषा जैसा था, या मैं हर आवाज़ में तृषा को ही ढूंढने की कोशिश करने लगा था l

मैं – क्या दिखा तुम्हे ?

निशा – (मुस्कुराते हुए) ज़िंदा हो l और दोस्ती कर सकते हो l और फिर से उसने अपना हाथ बढ़ा दिया l

मैं हाथ मिलाते हुए, “नक्श” l बाकी दोनों ने भी अपने हाथ बढाए एक का नाम तृष्णा था और दूसरी का ज्योति l

तृष्णा – कहाँ जा रहे हो ? मैं – नहीं जानता l

ज्योति - किस लिए ? मैं – नहीं जानता l

तृष्णा – कहाँ रहोगे वहां ? मैं – नहीं जानता l

तृष्णा ज्योति से – मैंने कहा था न ! पक्का वही केस है l फिर मेरी तरफ देखते हुए – तुम किस बड़े कंपनी के मालिक के बेटे हो क्या ?

क्या ? चिढ़ते हुए मैंने कहा l

तृष्णा – नहीं जब वी मेट में हीरो की यही तो कहानी थी l

मैं – कभी फिल्मों की दुनिया से बाहर भी आओ l यहाँ किसी की जिंदगी स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं चलती l

निशा – क्या डायलॉग बोलते हो यार l हैंडसम हो और आवाज़ भी जबरदस्त है, फिल्मों में कोशिश क्यूँ नहीं करते l

मैं – मैं अपने आप से भाग रहा हूँ l और ये रास्ते किस मंजिल पे मुझे ले जायेंगे मुझे नहीं पता l

निशा – मैं तो बस दरवाज़ा खटखटाने को कह रही हूँ l क्या पता तुम्हारी मंजिल भी वही हो जहाँ हम जा रहे हैं l

मुझमे अभी कुछ भी फैसला लेने की हिम्मत नहीं थी l मैं तो बस अपने दर्द से भागने की कोशिश कर रहा था l तभी पैंट्री वाला आया और सस्ती व्हिस्की की एक बोतल और कुछ स्नैक्स दे गया l बाकी तीनों मेरी शकल ही देखती जा रही थी l मैंने निशा को देखा और पूछा “ग्लास है ?” निशा ने बिना कुछ कहे चार ग्लास निकाले और मेरे बगल में रख दिया उसने l

मैं – चार ग्लास क्यूँ ?

निशा – दारु और दर्द जितना बांटोगे उतना ही खुश रहोगे l

मैं – मैं तो अपने दर्द को भुलने के लिए पी रहा हूँ l तुम सब क्यूँ पी रही हो ?

निशा – मुस्कुराते हुए चेहरे ही सबसे ज्यादा ग़मों को समेटे होते हैं l दो पेग अन्दर जाने दे फिर जान जाओगे हमारे राज़ l

मैंने बोतल उसके हाथों में दे दी और कहा, “मेरे लिए भी बना देना l”

मैंने ग्लास उठाया और खिड़की से बाहर देखने लगा l बाहर खेतों की हरियाली, पहाड़ों की घाटियाँ और भी न जाने कितने ही जन्नत सरीखें रास्ते से हो कर हमारी ट्रेन गुज़र रही थी l पर आज मुझे ये खूबसूरत नज़ारें भी भी काट रहे थे जैसे l मैं अपने ही ख्यालों में खोया था की तभी तृष्णा की आवाज़ से मैं अपने ख्यालों से बाहर आया l

तृष्णा – चलो अब बताओ अपने बारे में l अब हम दोस्त हैं, और दोस्तों से कुछ भी छुपाना नहीं चाहिए l

मैं – मुझसे नहीं कहा जाएगा l और फिर जैसे मेरी आँखें डबडबानें लगीं l

निशा – ठीक है l पहले हम बताते हैं अपने बारे में l शायद तुममे थोड़ी हिम्मत आ जाए l
awesome update
 
  • Like
Reactions: Rohit 8800

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट


निशा ने अपनी कहानी बतानी शुरू की (शराब के असर से थोड़ा रुक रुक के कह रही थी)

“मैं कोलकाता में ही पैदा हुयी थी l मेरा बचपन अब तक की मेरी सबसे हसीन यादों में से एक है l मैं, मम्मी’, पापा और दादा – दादी हम सब एक खुशहाल परिवार की तरह रहते थें l मेरे पापा का कोलकाता में ही गारमेंट्स का बिज़नस था l पैसों की कभी भी कमी नहीं थी हमारे पास l बचपन में दादी अक्सर मुझे परियों की कहानियाँ सुनाया करती थी और मैं हर बार उन परियों की कहानी में खुद को ही देखा करती थी l

पर कहते हैं न जीवन में अगर अच्छे दिन आते हैं तो कुछ बुरे दिन भी होते हैं l जब मैं आठ साल की थी तब मेरे पापा को उनके बिज़नस में जबरदस्त घाटा लगा l अपने बिज़नस को जितना बचाने की कोशिश करते उतना ही वो कर्जे में डूबते चले गएँ l उसके लगभग एक साल बाद दादा और दादी का भी देहांत हो गया l मुझे आज भी याद हैं वो दिन जब हर रोज़ कोई ना कोई लेनदार हमारे दरवाज़े पे खडा रहता l पापा रात को नशे में धुत घर में आते और मुझपे और माँ पे अपनी नाकामयाबी का गुस्सा निकालते l एक दिन मैं अपने स्कूल से आयी तो मेरे घर पे भीड़ लगी थी l मम्मी उसी कॉलोनी के अंकल के साथ भाग गयी थी l और पापा मेरी मम्मी की चिट्ठी हाथ में लिए ज़मीन पे पड़े थे l मैंने पास जा के देखा तो उनकी साँसे नहीं चल रही थी l मैं एक पल में ही अनाथ हो चुकी थी l पापा के इनस्योरेंस से जो पैसे मिलें उनसे मैंने कर्जे चुका दिए और बाकी पैसें अपनी पढाई के लिए रख लिए l दस साल की उम्र से मैंने खुद को संभालना सीख लिया l पिछले महीने मैंने एक डॉक्यूमेंट्री बनायी थी और वो बॉम्बे में एक डायरेक्टर को पसंद आ गयी, सो अब मैं मुंबई जा रही हूँ एक कामयाब डायरेक्टर बनने l”

फिर तृष्णा ने खुद के बारे में बताना शुरू किया l (अब उसकी आवाज़ में कुछ ज्यादा ही भारीपन था)

“एहम एहम (अपना गला ठीक करते हुए)... कहाँ से शुरू करूँ समझ नहीं आ रहा मुझे l वैसे मुझे तो याद भी नहीं की मेरे माँ बाप कौन हैं l बचपन में ही सिलीगुड़ी के एक गाँव में बने देवी मंदिर में मुझे दान कर दिया था उन्होंने l शायद ये बेटी बोझ थी उनके लिए l मुझे वहीँ के पुजारी परिवार ने पाला l जब मैं शायद तीन साल की थी तब उन्होंने पुरे गाँव में एलान करवा दिया की मैं किसी देवी का अवतार हूँ l और इन अफवाहों ने मंदिर की कमाई बहुत बढ़ा दी l पांच साल की उम्र में मैं हर रोज़ छह घंटे रामायण पाठ करती l और उसके बाद कीर्तन में हारमोनियम, तबले बजाने वालों के साथ थोड़ा रियाज़ भी करती थी l बीस साल की उम्र तक पहुँचते पहुँचते मैं शाश्त्रीय संगीत में माहिर हो चुकी थी l अब तो टी वि पे आने वाले गाने भी गुनगुनाने शुर कर दिए थे मैंने l एक बार बाबा (पुजारी जी) ने मुझे टी वि के गाने गाते सुन लिया और उस दिन उन्होंने मुझे बहुत मारा l मैं गुस्से में थी और घर में जो पैसे थे वो लिए और कोलकाता आ गयी l संयोग से मैं निशा के घर किराये पे कमरा लेने गयी l और तभी हमारी मुलाक़ात भी हुयी l उन संघर्ष के दिनों में मुझे मेरा पहला प्यार मिला l वो रिकॉर्डिंग स्टूडियो का मालिक था और उभरते हुए गायकों को मौक़ा भी देता था l मैं अक्सर गाने के लिए वहां जाया करती थी l एक दिन उसने मुझे प्रपोज किया और फिर हम अक्सर साथ वक़्त बिताने लगें l कुछ साल बीत जाने के बाद एक दिन उसने कहा अब तुममे वो बात नहीं रही और हमारे रिश्ते को ख़त्म कर दिया l मैंने उसे मनाने की बहुत की कोशिश की पर शायद उसे मेरे जिस्म से प्यार था l जब निशा ने मुंबई जाने की बात की तो मैं भी साथ चल पड़ी l आखिर अब कुछ बचा भी तो नहीं था मेरे लिए वहां l और शायद मुंबई में ही मेरी किस्मत लिखी हो l”

अब ज्योति ने अपनी कहानी शुरू की

“मेरी जिंदगी का सफ़र इतना भी आसान नहीं था l बंगाल के बेहद गरीब परिवार में मेरा जन्म हुआ था l मुझे तो ठीक से याद भी नहीं पर शायद चार या पांच साल की रही हुंगी तभी मेरे माँ बाप ने पैसों की खातिर मुझे एक दलाल को बेच दिया l उस दलाल ने मेरे माँ बाप को ये भरोसा दिलाया था की मुझे पढ़ा के मेरी शादी भी करवाएगा l फिर वो मुझे कोलकाता लेता आया और मैं यहाँ के एक सभ्य परिवार में घरेलु काम करने लगी l उन परिवार वालों की गालियाँ, छत और दो वक़्त का खाना ही मेरी तनख्वाह थी l जब भी वो परिवार कोई फिल्म देखता मैं भी किसी कोने में बैठ उसे देखती और हमेशा यही सोचती की उसी फिल्म की हिरोइन की तरह मेरी भी जिंदगी होती l एक आज़ाद परिंदे की तरह अपनी जिंदगी बिताना l कुछ इसी तरह अपना जीवन बिताते हुए मैं अब लगभग पंद्रह साल की हो चुकी थी l एक दिन मैं रोज़ की तरह किचेन में काम कर रही थी l तो मेरे घर का 52 साल का मालिक आया और मुझे यहाँ वहां छूने लगा l मैंने उसे रोकने की कोशिश की तो उसने मुझे मारना शुरू कर दिया l फिर उसने मेरे दलाल को बुलाया और मुझे उसके हवाले कर दिया l वो दलाल मुझे एक झोपड़ीनुमा जगह ले गया और वहां उसने और उसके कुछ दोस्तों ने मेरा बलात्कार किया l जब मैं मरने मरने को हो गयी तो कोलकाता की बदनाम गलियों में मेरा सौदा कर दिया उसने l हर रात मैं धीरे धीरे मर रही थी l एक दिन पुलिस की रेड पड़ी और वहां से मुझे एक एन जी ओ के हवाले कर दिया गया l वहां मैंने पढना सीखा और मुझे जीने की एक उम्मीद दिखी l एक दिन निशा हमारे यहाँ आयी और हमारा ऑडिशन लेने लगी l उसे अपनी फिल्म के लिए एक कलाकार चाहिए था l ... (थोड़ी देर रुक के) आप ठीक समझें मैं ही निशा की डॉक्यूमेंट्री की हिरोइन हूँ l और जब निशा मुंबई जा रही थी तो मैं भी उसके साथ चल दी l मुझे तो “सुपरस्टार” बनना है बॉलीवुड का l”

फिर मेरी ओर देखते हुए निशा बोली “अब तो कुछ बताओ अपने बारे में l”

उन लड़कियों की हिम्मत देख मुझमे भी थोड़ी हिम्मत आ गयी थी l मुझे लग रहा था की शायद अब मैं भी लड़ लूँ अपनी तन्हाई से l मैं उनसे अपनी कहानी बतायी l और कहा “मैं नहीं जानता मुझे क्या बनना है अपनी जिंदगी में l मैं तो बस वहां जाऊँगा और सबसे पहले कहीं भी कोई नौकरी करूँगा l बस इतना ही सोचा है l”

तृष्णा – काश दुनिया के हर मर्द के प्यार में तुम्हारे जैसा ही समर्पण होता l

मैं – अगर हर लड़की तृषा जैसे ही सोचती तो शायद कोई भी मर्द कभी किसी से प्यार करता ही नहीं l

निशा – तुम्हे नौकरी ही करनी है न ? हमारे पास तुम्हारे लिए एक नौकरी है l अगर तुम चाहो तो l

मैं – कैसी नौकरी ?

निशा – हम तीनों को अपना मुकाम बॉलीवुड में हासिल करना है और यहाँ पे सफलता के लिए दिखावा बहुत ज़रूरी है l और इस दिखावे के लिए हमें एक पर्सनल असिस्टेंट चाहिए l अभी तो तुम्हे हम बस रहने की जगह, खाना और कुछ खर्चे ही दे पायेंगे पर जैसे हमारी कमाई बढ़ेगी हम तुम्हारी तनख्वाह भी बढ़ा देंगे l
nice update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट


अब तीनों मेरे जवाब को मेरी ओर देखने लगी l मैं हाँ में सर हिलाया l फिर सबने अपने ग्लास टकरायें और ने मेरे हाथ को पकड़ मेरे ग्लास को भी टकराते हुए कहा “ये जाम हमारी आने वाली कामयाबी और पहचान के नाम”l

रात हो चुकी थी और अभी भी 24 घंटों का सफ़र बाकी था l जब जब मैं आँखें बंद करता तृषा की जलती हुयी चिता मेरे सामने होती l ऐसा लगता मानो वो अपना हाथ बढ़ा रही हो और मैं उसे बचा नहीं पा रहा हूँ l मेरे बगलवाली बर्थ पे तृष्णा सोयी थी l वो मुझे इस तरह बार बार करवट लेता देख मेरे पास आई और मेरे हाथ को कस के पकड़ लिया उसने l

मेरे कानों में तृष्णा धीरे से बोली “शांत हो जाओ और सोने की कोशिश करोl मैं तुम्हारे दर्द को समझती हूँ l पर ऐसे तड़पोगे तो तृषा भी बेचैन ही रहेगी l” और मेरे बाल सहलाने लगीl

मैं धीरे धीरे सो गया l सुबह मेरी नींद खुली निशा की आवाज़ से “सोते ही रहोगे क्या ? सुबह के दस बजने जा रहें हैं l” मैं अंगड़ाई लेता हुआ उठा और फ्रेश होने चला गया l मैं फ्रेश हो के जब वापिस आया तो देखा , मोबाइल में गाना बज रहा था, ज्योति तृष्णा को पकड़ डांस कर रही थी और निशा अपने मोबाइल के कैमरे में वो सब रिकॉर्ड कर रही थी l मैं जैसे ही अन्दर दाखिल हुआ ज्योति ने तृष्णा को छोड़ मुझे पकड़ लिया l

मैं – अब मैंने क्या गलती की है l मुझे तो छोड़ दो l तो फिर से मुझे छोड़ तृष्णा को पकड़ के डांस करने लग गयी l वो सब डांस के दौरान जिस तरह की शक्लें बना रही थी, उसे देख मुझे भी हसी आ गयी l आज बहुत वक़्त के बाद ये मुस्कान आयी थी l तभी गाना बदला और नया गाना था “झुम्मा चुम्मा दे दे ...”l एक ही पल में हसी और अगले ही पल मेरी आँखें भर आयीं l ज्योति की नज़र मुझपे पड़ी, फिर उसने गाना बंद किया और मेरे पास सब आ गयीं l

ज्योति – क्या हुआ तुम्हे ?

मैं – नहीं कुछ भी तो नहीं l

निशा – जब झूट कहना ना आता हो तो सच ही कहने की आदत डाल लो l बताओ ना क्या हुआ ?

मैं - घर की याद आ गयी l मैं मम्मी, पापा और मेरी बहन इसी गाने पे डांस किया करते थें l

निशा – ये भी तो सोच सकते हो की तुम्हे तुम्हारा परिवार वापस मिल गया l और सब मेरे गाल खीचने लग गयीं l

तृष्णा – अब रोना धोना बहुत हुआ l तुम्हारी आँखों से निकले आंसू की हर बूँद से तृषा कितनी बेचैन होती होगी l उसकी खातिर अब मुस्कुराना सीख लो l

मैं – (अपनी शक्ल ठीक करते हुए) ठीक है, अब कभी नहीं रोऊंगा बस !

ज्योति – बस नहीं , अब तो तुम्हे डांस करना ही होगा l और मेरा हाथ पकड बॉल डांस वाले स्टेप्स करने लग गयी l

लगभग रात हो चुकी थी और हम सब की मंजील अब आने ही वाली थी l फिर ज्योति ने हम सबको एक दुसरे का हाथ थामने को कहा l

ज्योति – अब सब अपनी आँखें बंद करो और एक विश मांगो l जो कुछ भी तुम्हे इस शहर में हासिल करना है l

बाकियों का तो पता नहीं पर मैंने एक विश माँगा

“हे परमेश्वर अगर मैंने आज तक कुछ भी अच्छा किया हो तो मेरी दुआ कुबूल करना और तृषा की आत्मा को शांति देना l मैं अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता हूँ , क्यूंकि मुझे पता है आप हमेशा मेरे साथ रहोगे l मैं जब भी जिन्दगी से इस जंग में हारने लगूंगा तब आप हमेशा मेरा थाम मुझे बचा लोगे l और हाँ मेरे और तृषा के परिवार को इस सैलाब को झेलने की शक्ति देना l”

मैंने अपनी आँखें खोली, सब मेरे तरफ ही देखे जा रही थी l तृष्णा – हो गया या और भी कुछ माँगना है ? मैंने ना में सर हिलाया और फिर सब अपना अपना सामान बाँधने लग गयीं l

थोड़ी देर बाद हमारी मंजिल आ गयी थी l मुंबई, लोग इसे सपनों का शहर कहते हैं l कहते हैं यहाँ हर रोज़ किसी ना किसी के सपने पुरे होते ही हैं l शायद कभी यहाँ हमारा नंबर भी आ जाए l

अब पी ए था मैं उन सब का तो सामान उठाना पड़ा l मेरा खुद का तो सामान था नहीं सो उनके सामान को बोगी से बाहर निकाला l दो कुली आ गएँ और वो हमारा सामान टैक्सी तक ले जाने लगें l बाकी सब कुली के साथ साथ चलने लगी और मैं आस पास की भीड़ में जैसे खो सा गया l

आज दिल बड़े जोर से धड़क रहा था मेरा , घर से पहली बार इतनी दूर जो आ गया था l आँखें रुआंसी हुयी जा रही थी l आदत थी अब तक हर मुश्किलों में अपनी माँ के हाथ थामने की l आज तो मैं अकेला सा पड़ गया था, पता नहीं क्या करूँगा इतने बड़े शहर में ? कैसी होगी मेरी माँ ? अब तक पापा ने मुझे ढूंढने को ऍफ़ आई आर भी करवा ही दिया होगा l

ऐसे ही कितने ही सवाल मुझे घेरने लग गए थें l तभी मैंने निशा की आवाज़ सुनी, “ओये जल्दी आ l यही रुकने का इरादा है क्या ? मैं फिर भागता हुआ टैक्सी तक पहुंचा और फिर हम चल दिए अपने फ्लैट की तरफ l

मुंबई शहर ... जैसा सुना था और जैसा फिल्मों में देखा था लगभग वैसा ही था ये शहर l हर तरफ बस भागते हुए लोग l इस भागती भीड़ को देख ऐसा लगता था की मानो अगर कोई एक इंसान रुक गया तो बाकी या तो उसके साथ ही गिर जायेंगे या फिर उसे रौंदते हुए आगे निकल जायेंगे l जिंदगी में भी तो ऐसा ही होता है l हर इंसान किसी न किसी रेस का हिस्सा होता है l और इस रेस में जीतने का बस एक ही मंत्र है , अपनी आँखें मंजिल में टिकाओ और भागते चले जाओ उसकी ओर l फिर चाहे रास्ते में कोई भी आये रुको मत l हाँ एक बात मुझे अच्छी लगी , यहाँ की रातें भी जीवन के रंगों से भरी होती हैं l मैं मुंबई के नजारों में ही खो सा गया था, हल्की झपकी आ गयी मुझे l आँख खुली तो हम अपने अपार्टमेंट के बाहर थें l सोसाइटी थी चार धाम सोसाइटी, इलाका था बांद्रा पश्चिम , 7 फ्लोर का अपार्टमेंट था और हमारा फ्लैट 6 फ्लोर पे था l आस पास के घरों में पार्क की गयी मंहगी गाड़ियों को देख मैं अंदाजा लगा सकता था की यहाँ की मिटटी की कीमत सोने से ज्यादा कैसे है l मैंने कुछ सामान उठाया और बाकी ट्राली बैग को सब अपने हाथों में ले फ्लैट पे आ गए l लगभग सारी सुख सुविधाएं पहले से ही थी वहां l सब अपना अपना सामान रखने लग गयीl दो बेडरूम का फ्लैट था, एक कमरे में निशा और दुसरे में ज्योति और तृष्णा ने अपना सामान रख दिया l जब घर का काम पूरा हुआ तो सब हॉल में लगे सोफे पे बैठ गएँ l

ज्योति – (मेरी ओर देखते हुए) तुम यही सोफे पे सोओगे ?

मैं – हाँ आज मैं यही सो जाऊँगा l कल मैं हॉल में जगह बना लूँगा गद्दे के लिए l

निशा – ह्म्म्म ये ठीक रहेगा l मैं पहले कुछ खाने का आर्डर दे देती हूँ फिर हम ऑनलाइन शौपिंग कर लेंगे नक्श के लिए l और हाँ घर के कुछ नियम काएदे भी बनाने होंगे l

सब ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई और फिर खाने का आर्डर और मेरे लिए शौपिंग कर ली गई l खाना खाते हुए हमने कुछ नियम बनाए जिसमे सुबह के ब्रेकफास्ट बनाने की ज़िम्मेदारी मुझे दे दी गयी l रात में तृष्णा और ज्योति सोने चली गयीं और निशा अपने लैपटॉप पे अपना काम निबटाने लगी l मुझे भी अब नींद आ रही थी l पर एक तो सोफे पे सोना और जगह भी नयी सो किसी तरह रात काटी मैंने l सुबह नास्ते के बाद निशा ने मुझे एक लिस्ट दी, इस लिस्ट में कुछ नाम और पते लिखे थें l

निशा – इस लिस्ट में जो नाम दिए गए हैं उनसे मिलना है और ये हैं फाइलों की कॉपी l जिस नाम के सामने हम तीनों में से जिसका भी नाम लिखा है उसे ही देना वो फाइल l और फिर कुछ पैसे दे दिए उसने l

मैं अब सोसाइटी से बाहर आ चुका था l आज तक शायद ही कभी घर पे कोई काम किया था मैंने l सो थोड़ा अजीब सा लग रहा था l पर इतना पता था की इंसान अपने अनुभवों से ही सीखता है सो मैं भी सीख ही जाऊँगा l लिस्ट में कुल मिलाके बाईस लोगों के नाम थें और लगभग पता यही आस पास का ही था l तृष्णा ने अपना एक फ़ोन मुझे दिया था जिसमे मैं गूगल मैप पे रास्ते ढूंढ सकता था l

पहला पता था यशराज फिल्म्स का l अँधेरी पश्चिम का पता था और वहां मुझे तीनों की फाइल देनी थी l मैंने टैक्सी लिया और वहाँ चला गया l पहली बार मैं फ़िल्मी दुनिया के लोगों से मिलने वाला था l मेरे अन्दर अजीब सा उत्साह था l ऐसा लग रहा था की जैसे मेरी फेवरेट हीरोइन ने मुझे डेट पे बुलाया हो l मैं अब पहुँच चुका था यशराज स्टूडियो के ऑफिस में l बड़ा सा नारंगी दरवाजा और एक बड़ी सी बिल्डिंग (ठीक वैसा ही जैसा की मैंने सोचा था) l मैं दरवाज़े के पास पहुंचा l गेट कीपर से कहा “भैया जी मुझे सुभाष सर से मिलना है और ये फाइलें देनी है l” गेट कीपर ने कहा “आज एक फिल्म की ऑडिशन हो रही है सो बाद में आना l आज बस ऑडिशन देने आये लोगों को ही अन्दर आने की इज़ाज़त हैl
good update
 

mashish

BHARAT
8,032
25,909
218
अगला अपडेट

मैं अब सोच में पड़ गया , काम की शुरुआत ही नाकामयाबी से हुयी तब तो हो चूका मुझसे काम l और अगर आज मैंने फाइल सभी को नहीं दी तो पता नहीं निशा मुझे रहने भी दे वहां या नहीं l मुझे किसी भी तरह फाइल अन्दर पहुंचानी थी l सो फिर से मैं गेट के पास गया और कहा “भैया मुझे भी ऑडिशन देना है, फॉर्म कहाँ भरूं ?

गेट कीपर – फॉर्म भरा जा चुका है बस अब ऑडिशन शुरू होने ही वाला है l

मैंने जेब से दो हज़ार निकाले और उसकी हाथों में पकडाता हुआ बोला “कैसे भी फॉर्म भरवा दो l अब आप लोग ही हमारी मदत नहीं करेंगे तो और कौन करेगा l

वो थोड़ी देर सोच के अन्दर गया और लगभग पांच मिनट बाद आया “ये लो फॉर्म जल्दी से भर के दे दो” l अपनी कोई तस्वीर तो थी नहीं तो मैंने तस्वीर वाली जगह पे गोंद से निशान बनाया (जैसे सबको लगे की मैंने तस्वीर तो चिपकाई थी पर फॉर्म पहुंचाने वाले से ही खो गयी) और फॉर्म भर कर उसे मैंने मोड़ के दे दिया l गेट कीपर ने मुझसे एंट्री करवाई और अन्दर जाने को कहा l पहली जंग तो जीत चूका था मैं l

अब अन्दर उस शुभाष नाम के आदमी को ढूँढना था l मैं गेट पे एक लड़की खड़ी दिखाई दीl उसके पास यशराज की आई डी थी l सो मैं उसके पास गया “मैडम सुभाष सर से मिलना था, वो कहाँ मिलेंगे ? उसने जवाब दिया “वो अन्दर ऑडिशन रूम में हैं l और तुम यहाँ ऑडिशन देने आये हो न ? तो बाहर क्या कर रहे हो l अन्दर ऑडिशन शुरू हो चुका है l”

अब मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा l मैं भला ऑडिशन क्या दूंगा l मुझे तो एक्टिंग का ए भी नहीं आता l आज तो बड़ी बेइज्जती होने वाली है मेरी l मन तो कर रहा था की यहीं से भाग जाऊं पर मैं अन्दर था और दरवाज़ा लॉक हो चुका था l मन ही मन मैंने कहा “ हे श्री श्री अमिताभ बच्चन जी आज मुझे एक्टिंग का आशीर्वाद दे दो, बस मेरी इज्जत रह जाए आज l” ऑडिशन रूम के बाहर बहुत से चेहरे थें l सब की आँखों में उम्मीद और कई आँखों में तो जैसे इतना कॉन्फिडेंस था की यहाँ वही चुने जाने वालें हैं l और एक तरफ मैं बेहद घबराया सा की पता नहीं क्या करेंगे वो सब मेरे साथ और पिछले चार दिनों से एक ही कपडे में था सो वो भी अब गंदे दिखने लगे थें l मैं वाशरूम में गया और अपने काले पैंट में जहाँ जहाँ गंदगी के निशान थे उन्हें पानी से साफ़ किया, पर ये क्या ! पानी से भीग के मेरी पैंट पे जो निशान आये थे उससे तो लोग कुछ और ही समझ बैठते l

मैं खैर अब बाहर आया l और एक कुर्सी पे बैठ गया l अन्दर से जो लोग बाहर आ रहें थें उन्हें देख के ऐसा लग रहा था की मानो वो सब के सब चुन लिए गए हों l तो फिर हमें क्यूँ बिठाया हुआ था उन्होंने l जाने को कह देते हमें , कम से कम मेरी जान तो छूटती l एक तो कोई भी किसी से बात नहीं कर रहा था l सब एक दुसरे को ऐसे देख रहें थें मानो कोई कुश्ती का अखाड़ा हो ये l इससे और भी बेचैनी बढ़ रही थी मेरी l बैठे बैठे शाम हो चुकी थीl अब आखिर में हम दो लोग बचे थें l अन्दर से हम दोनों को एक साथ ही बुला लिया गया l शायद उन्हें भी अब जाने की जल्दी थी l पहले उस दुसरे लड़के को बीच में बुलाया l स्टेज पे वो गया था और टाँगे मेरी कांप रही थीं l

वो लड़का - सर मैं अपनी आज तक की सबसे बेहतरीन एक्ट आपको दिखाना चाहता हूँ l

पैनल (जजों का पैनल जिसमे मशहूर फिल्म निर्देशक थें) – दिखाएँ आप l

“माँ मैं लौट आया माँ... देख तेरे कालजे के टुकड़े का दुश्मनों की गोलियां भी कुछ न बिगाड़ पायीं l (जंग से लौटे हुए एक घायल सैनिक की उसकी माँ से बात वहां उसने दिखाई l और हाँ उसके चेहरे के भाव बिलकुल किसी ट्रेंड एक्टर की तरह ही थे) उसका एक्ट ख़त्म हुआ और पैनल ने खड़े हो कर उसका अभिवादन किया l और मुझे हसी आ गयी (वैसे मैं अक्सर कॉमेडी शो देखा करता था जो वहां वो अपना एक्ट दिखा रहा था और मैं अपने मन ही मन इमेजिन करने लगा था की वहां वो नहीं बल्कि मेरे पसंदीदा कॉमेडी कलाकार ये एक्ट दिखा रहा है) l तभी मेरी नज़र पैनल पे गयी l उस कमरे में सब के सब मुझे घूरे जा रहें थे l पैनल में से एक ने मुझसे पूछा “आपको क्या हुआ जनाब ? ये एक्ट देख हसी आ रही थी l

मैं – मैं एक्टिंग के बारे में एक बात जानता हूँ यहाँ वही सबसे बेहतर है जो हर रंग में ढल जाए l कोई भी ये ना कह सके की कोई एक ख़ास एक्ट ही सबसे बेहतरीन है बल्कि उसके हर एक्ट को देख ये महसूस हो की ये इससे बेहतर कोई भी नहीं कर सकता है l (खैर बात को तो संभाल लिया मैंने l पर अब मुझे इतना तो पता था की अब मैं लाल कपडे पहन खुद ही सांड को न्योता दे दिया है l)

पैनल – जनाब आप आ जाएँ l आज हम सब आपसे सीखना चाहते हैं एक्टिंग की बारीकी l (मैं मन ही मन में) “बेटा आज तो बिना वेसिलीन के ही अन्दर जाने वाला है l”

मैं – जैसा आप कहें सर l

पैनल – एक्टिंग में सबसे मुश्किल होता है एक साथ कई भावनाओं को कुछ ही पलों में जी लेना l मैं तुम्हे कहूँगा ख़ुशी .. एक ... दो ... तीन और आप मुझे ख़ुशी के एक्सप्रेशन दिखाओगे l जैसे जैसे मैं शब्द कहता जाऊंगा आपके चेहरे के भाव वैसे वैसे बदलने चाहिए l

(मन ही मन में) और हस ले बेटा , यही पास हसी आनी थी तुझे l अब भुगतना तो पड़ेगा ही l पर आज मैं एक कोशिश तो कर ही सकता हूँ न l क्या होगा ज्यादा से ज्यादा, मुझे गालियाँ देंगे और निकाल देंगे यही न l ठीक है पर अब मैं पीछे नहीं हटूंगा l

मैं स्टेज पे आ चुका था l मेरी आँखें अब बंद थी और बस अब मैं शब्द सुनने को तैयार थाl पैनल – रोमांस .... एक ... दो ... तीन...

मैं इस शब्द के साथ ही फ्लैशबैक में चला गया l जब मैं तृषा को अपनी बांहों में भर उसके साथ बॉल डांस किया करता था l मेरी आँखें बंद थी और ऐसा लग रहा था मानो तृषा मेरी बांहों में हो l और हमारा सबसे पसंदीदा गाना बज रहा हो “हम तेरे बिन अब रह नहीं सकते तेरे बिना क्या वजूद मेरा l” उसके हर कदम से मैं अपने कदम मिला रहा थाl और मेरी नज़र तृषा से हट ही नहीं रही थी l मैंने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया l

डर .... एक .... दो .... तीन....

मैं अब अपने जीवन के उस वक़्त में पहुँच गया जब तृषा से मिले मुझे पंद्रह दिन बीत चुके थे और किसी रिश्तेदार से भी उसकी कोई खबर नहीं मिल पा रही थी l जब तृषा की कामवाली छत पे आयी थी और मैं उसकी नज़रों से बचता हुआ नीचे तृषा के कमरे तक पहुंचा था l मैं तृषा को टिसू पेपर पे अपना नाम लिख के दे चुका था और उम्मीद कर रहा था की कामवाली के नीचे मुझे देखने से पहले तृषा दरवाज़ा खोल दे l

मस्ती .... एक ... दो ... तीन...

मैं अपने घर में था और हम सब परिवारवाले झुम्मा चुम्मा दे दे वाले गाने पे डांस कर रहे थेंl हम सब बहुत ही अजीब अजीब शक्लें बना रहे थें और बहुत खुश थें हम सब l



उदास ... एक ... दो ... तीन ...


जब तृषा अपना फैसला मुझे बतायी थी, की वो अब किसी और के साथ शादी करेगी l मैं तो वहीँ ज़मीन पे गिर पड़ा था जैसे l एक ही पल में मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया हो किसी ने जैसे l



गुस्सा ... एक ... दो ... तीन ...

इस बार मैं उन पलों में पहुँच गया जब मैं पंद्रह दिनों बाद तृषा के कमरे में छुपते छुपाते पहुंचा था l रो रो के उसकी आँखें लाल हो चुकी थी और उसे इतना मारा था की अभी तक उसके चेहरे पे हाथों के निशान थें l उसके चेहरे को देख मैं इतने गुस्से में भर गया की जोर से अपना हाथ जमीन पे दे मारा l

हसी ... एक... दो ... तीन ...

इस बार उन पलों को जी रहा था जब तृषा मुझे गुदगुदी लगा रही थी और मैं हस्ते हस्ते पागल हुआ जा रहा था l हाथ जोड़ के उसे मुझे छोड़ने की मिन्नत कर रहा था मैं l

दर्द ....

एक ...


इस शब्द के साथ ही ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे जख्मों को कुरेद दिया हो l मैं अपने घुटनों पे आ गया l

दो ....

अब मैं उस वक़्त में था जब मैं तृषा का व्हाट्स ऐप मैसेज सुन रहा था l

तीन ....

मेरी ऑंखें भर आयीं l ऐसा लगा जैसे किसी ने गर्म खंजर उतार दिया हो इस सीने में l “मत जाओ मुझे छोड़ के... प्लीज मत जाओ !” कहता हुआ मैं ज़मीन पे गिर पड़ा l मेरे आंसुओं की बूंद अब सैलाब बन उमड़ पड़ी थी l मेरे सीने में दबा हर दर्द अब बाहर आ चुका था l

तभी तालियों और सीटियों की आवाज़ ने मुझे जैसे नींद से जगाया हो l उस पैनल के हर सदस्य की आँखें भरी हुयी थीं l तभी एक निर्देशक चल के मेरे पास आयें l

“शायद इस इंडस्ट्री को तुम्हारी ही तालाश थी l आज इस बॉलीवुड को एक सुपरस्टार मिल गया है l मैं और इंतज़ार नहीं कर सकता l तुम अभी और इसी वक़्त हमारे साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन करोगे l” फिर उन्होंने पेपर्स मंगवाया और मेरे सामने रख दिया l “ये लो पेन l” कहते हुए पेन मेरे हाथ में दे दिया उन्होंने l
awesome update
 
Top