अपडेट - ६
“मैं जानती हूँ तुम्हारे प्यार के लिए मेरा ये जनम काफी नहीं l ऊपरवाले से थोड़ा वक़्त उधार ले मैं फिर से आउंगी, और इस बार बस मैं और तुम होंगे l ना मम्मी पापा कर डर होगा न दुनियावालों की कोई परवाह l फिर से एक साथ अपना बचपन जियेंगे, एक साथ जवानी और अंत में बूढ़े हो एक दुसरे की बांहों में इस दुनिया को अलविदा कह जायेंगे l पर इस जनम में नहीं l” तृषा उठ के जाने को हुयी पर मैंने उसका हाथ पकड़ा और सीने से लगा लिया l उसकी आँखें भी भरी हुयी थी l
तृषा – निशु , शादी के बाद मैं जिन्दा लाश बन जाउंगी l मैं तुम्हारे प्यार का हर लम्हा अपनी शादी वाले दिन तक समेट लेना चाहती हूँ l ताकि मैं मर भी जाऊं तो भी तुम्हारे प्यार से पूरी हो के मरुँ, कोई अधूरापन ना हो तब तक l मैंने उसके कान पकड़ें और उसे कहा “ये मरने जीने की बात कहाँ से आयी l” तृषा – इस्स्स्स ! अब शादी को लोग बर्बादी भी तो कहते हैं और बर्बादी में सब जीते कहाँ हैं l मैं – बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे l
तृषा – वैसे जान मेरे आज के प्यार का कोटा अब तक भरा नहीं है l (हमेशा की तरह वैसे ही चेह्कते हुए कहा उसने)
मैं – ह्म्म्म , वैसे जान यूँ खुले खुले आसमान के नीचे कोटा फुल करने में मज़ा आयेगा न l
तृषा – सबर करो मेरे शेर नीचे शिकारी हमारी राह देख रहे होंगे l मैं जाती हूँ अब ...
“मैं जाती हूँ अब...” ये शब्द बार बार गूंजने लगे थे मेरे जेहन में l जैसे जैसे वो अपनी कदमें वापिस नीचे की ओर बढ़ा रही थी, वैसे वैसे मेरे दिल का वो भारीपन वापस आ रहा था l मैं हाथ बढ़ा के उसे रोकना चाह रहा था पर मैं वहीँ जड़ हो गया था मानो l अब वो चली गयी थी l मैंने अपना मोबाइल निकाला और रेडियो ऑन किया, गाना आ रहा था दर्द दिलों के कम हो जातें.... मैं और तुम गर हम हो जातें l थोड़ी देर बाद दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आयी और तृषा और उसके मम्मी पापा अपने घर की ओर चल दिए l तृषा के बढ़ते कदम और इस गाने के बोल .. “इश्क अधुरा , दुनिया अधूरी l मेरी चाहत कर दो न पूरी l दिल तो ये ही चाहे, तेरा और मेरा हो जाए मुकम्मल ये अफसाना l दूर ये सारे भरम हो जाते मैं और तुम गर हम हो जाते l” पता नहीं रब को क्या मंज़ूर था l अब मैं अपने कमरे में आ चुका था l मेरे व्हाट्स ऐप पे तृषा का मैसेज आया था “अपने प्यार को यूँ दर्द में देखना इस दुनियां में किसी को भी गंवारा नहीं होगा l तुम्हे ऐसे देख कही मैं ना टूट जाऊं l मुझसे लड़ो झगड़ो मुझे कुछ भी करो पर यूँ खुद को जलाओ मत l क्यूंकि जब जब आग तुम्हारे सीने में लगती है जलती मैं हूँ l... तुम्हारी टीपू सुलतान (मैं अक्सर इसी नाम से उसे चिढ़ाता था)”
मैं अपने बिस्तर पे था पर नींद तो मानो कोसों दूर थी मुझसे l बस तृषा के साथ बिताये लम्हें फ़्लैश बैक फिल्म की तरह चल रहे थें में दिमाग में l तृषा के साथ बिताये वो पल मेरी सबसे हसीन यादों में से एक थी l आज उसकी शादी तय हो चुकी थी, बहुत जल्द किसी और की होने वाली थी वो l पता नहीं मैं उसे कभी देख भी पाऊं या नहीं उसके बाद l पर एक काम तो मैं कर ही सकता था, इन बाकी बचे हुए दिनों में ही अपनी पूरी जिंदगी जी लेना l उसके साथ का हर लम्हा अपनी यादों में कैद कर लेना l जानता हूँ जिंदगी यादों के सहारे नहीं जी जा सकती हैं l पर जब ज़िंदगी में साथ की कोई उम्मीद ही ना हो तो ये यादें ही हमेशा साथ निभाती हैं l मुझे तृषा के दर्द का एहसास था , अब मैं उसे और नहीं रुलाना चाहता था l मैं कल की प्लानिंग करने लग गया, तृषा के साथ बिताने वाले वक़्त की l
सुबह के दस बजे थें l मैं नास्ते के लिए बैठा ही था की तृषा का फ़ोन आया l मम्मी ने कॉल रिसीव किया और फिर मुझे कहने लगी l “बेटा वो तृषा को शादी की तैयारी करनी है, तुम्हारी मदत चाहिए उसे l और हाँ आज के नास्ते से रात के खाने तक का इंतज़ाम वहीँ है तुम्हारा l” मैं मन ही मन में “अरे मेरी भोली माँ, वो तेरे बेटे को खिलाने को नहीं बल्कि खाने की तैयारी में है l दिल का तंदूर उसने बना ही दिया है अब पता नहीं क्या क्या पकाने वाली है l” खैर अब नास्ता करता तो मम्मी भी नाराज़ हो जाती सो मैं उठा , अपने हाथ धोये और तृषा के घर चला गया l दरवाज़ा पे तृषा थी l
मैं – क्यों जी , मैदान खाली है क्या?
तृषा – (हँसते हुए) ह्म्म्म l सबको पटना भेज दिया है मेरी शादी का जोड़ा लाने l कल ही आ पायेंगे अब तो l
मैं – और आपने अपना हनीमून प्लान कर लिया l तृषा मुझे रोकते हुए बोली “तुम्हारा हर इलज़ाम कुबूल है मुझे पर ये नहीं l तुमसे प्यार किया है मैंने और पहले भी तुमसे कह चुकी हूँ ... तुम्हारी थी, तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी l”
मैं शायद कुछ ज्यादा ही कह गया था l फिर बात को संभालते हुए मैंने कहा “तो आपको शादी की तयारी में हेल्प चाहिए थी l अब बताओ फूट मसाज दू या फुल बडी मसाज l”
तृषा – ह्म्म्म ... मौके का फायदा l जान पहले आराम तो कर लो l मैं कुछ खाने के लिए ले के आती हूँ l कहते हुए जैसे ही किचेन में जाने को हुयी मैंने उसका हाथ पकड़ा और गोद में उठा लिया और उसके बेडरूम में ला के पटक दिया l
तृषा – बड़े बदमाश हो तुम, बड़े नादान हो तुम l हाँ मगर ये सच है ... हमारी जान हो तुम l कहते हुए उसने अपने होठ मेरे होठों से मिला दिए l
वो उसका मुझे देखना, मुझे पागल किये जा रहा था l कितनी सच्चाई थी इन आँखों मे l मैं डूबता चला गया इन आँखों की गहराईयों में l अब ना तो मुझे कुछ होश रहा था ना मैं होश में आना चाहता था बस उसके प्यार में अपने आप को खो देना चाहता था मैं l भूल बैठा था अपने हर दर्द को मैं या यूँ कहूँ की मैं भूल जाना चाहता था हर उस बात को जो कांटे की तरह चुभ रही थी इतने दिनों से l उसकी हर छुअन मेरे जिस्म में जान डाल रही हो जैसे l अब हमारा प्यार अपनी एक्सट्रीम (पराकाष्ठा) पर पहुँच चुका था l एक बार फिर हमारे होंठ मिल गएँ l हमारी आँखें अब बोझिल हो रही थी थकान की वजह से l पर तृषा की आँखों में नींद कहाँ l उसने कपडे बदलें और मेरे लिए नास्ता लाने चली गयी l
मैंने भी कपडे पहन लिए पर गर्मी थोड़ी थी सो शर्ट नहीं पहना था l तृषा कमरे में दाखिल हुयी l “अब उठ भी जाओ जान” l तृषा की आवाज़ सुनते ही मैंने दूसरी तरफ अपना चेहरा किया और तकिये को अपने कानों पे रख लिया l तृषा नास्ते को प्लेट में सजा मेरे पास आ गयी l
तृषा – अब उठ भी जाईये, बाद में आप सो लेना l
मैं – मुझे नहीं उठाना है बस l आपके होते हुए मैं अपने हाथ गंदे क्यूँ करूँ l
तृषा – (मेरे गले पे चुमते हुए) ठीक है मेरा बाबू l मैं – अरे गुदगुदी होती है l ऐसे मत करो ना l और मैं झटके से उठ के बैठ गया l तृषा को तो जैसे मैंने जैकपोट दिखा दिया हो l अब तो बस उसकी गुदगुदी और हाथ जोडके उससे भागता हुआ मैं l “भगवान् के लिए मुझे छोड़ दो” मैं चिल्ला रहा था l और तृषा रेपिस्ट वाली शकल बनाते हुए “जानेमन भगवान् से तू तब मिलेगा न जब मुझसे बचेगा” और फिर से वही गुदगुदी l आखिर में उसके हाथ पकड़ मरोड़ दिए , तब जा के रुकी l अब बेचारी हिल भी नहीं सकती थी l अब बदला लेने की बारी मेरी थी l मैं अपने होठों को उसके कानों के पास ले गया और अपनी जीभ से उसके कानो को कुरेदने लगा (मैं जानता था की उसे तो बस यही गुदगुदी लगेगी) l वो लगभग चिल्ला रही थी l “जो कहोगे वो करुँगी मैं प्लीज मुझे छोड़ दो l” मेरा बदला अब पूरा हो चुका था सो मैंने उसे छोड़ दिया l
मैं – खाना तो खिलाओ , भूख लगी है l वैसे भी बिना खिलाये पिलाए इतनी मेहनत करवा चुकी हो l
तृषा – किसने कहा था मेहनत करने को l खुद ही जोश में आ गए थे तुम तो l
मैं – मैं तो तुमसे हमेशा कहता हूँ की अगर मुझे काबू में रखना हो तो लाल कपड़ों में मत आया करो मेरे सामने l जब खुद गलती की हो तो भुगतो l
तृषा – बातें ही बनाओ अब आप l चलो खाना तो खाओ l लाओ मैं खिला देती हूँ l
मैं तो बस उसके चेहरे को ही देखे जा रहा था l जिसे देख मुझे एक ग़ज़ल की कुछ लाइन याद आ रही थी l “चौदवी की रात थी, शब् भर रहा चर्चा तेरा... सब ने कहा चाँद है, मैंने कहा चेहरा तेरा l” मैं तो खोया ही हुआ था की उसके पहले निवाले ने मेरी तन्द्रा भंग की l मैंने नास्ते की प्लेट पे नज़र डाली l चावल , चिकन अफगानी, और टमाटर की बनी ग्रेवी थीl मेरा सबसे पसंदीदा खाना जो मैं अक्सर तृषा के साथ रेस्टुरेंट में खाया करता था l तृषा शायद ही कभी अपने घर में कुछ बनाया करती थी l मैं अक्सर उसे ताने देता की “तुम अगर मेरी बीवी बनी तब तो बस जली हुयी चपातियों से ही काम चलाना होगा”l और वो हर बार जवाब में यही कहती “अभी शादी को बहुत वक़्त है तब तक सीख लुंगी न l”
मैं – कब सीखा ये बनाना तुमने ?
तृषा – तुम्हे अपने हाथों से बनायी हुयी डिश खिलानी थी, वर्ना जाने के बाद भी मुझे ताने मरते l अब वैसे भी वक़्त बचा नहीं है सो मैंने.... मैंने अपने हाथ उसके मुह पर रख उसकी बात यही रोक दी “वक़्त की याद दिलाओगी तो शायद इस वक़्त को भी मैं जी ना पाऊं l” अब हम दोनों चुप थे l ये खामोशियाँ भी चुभन देती हैं , इस बात एहसास मुझे उसी वक़्त हुआ l मैंने खाना ख़त्म किया और अपनी शर्ट पहनने लगा l तृषा को शायद ये लगा की मैं अब जाने वाला हूँ l वो सब छोड़ छाड़ के मुझसे लिपट गयी l मैंने कहा “जान हाथ तो धो लो l मैं कही नहीं जा रहा हूँ”
तृषा – ठीक है l पर ये शर्ट मेरे पास रहेगा मैं तुम्हे ये देने वाली हूँ ही नहीं l
मैं – अरे यार तो मैं घर कैसे जाऊँगा l
तृषा – वो सब मैं नहीं जानती l मैं ये शर्ट नहीं देने वाली हूँ तुम्हे बस l .. वैसे भी बिना हाथ धोये ही उसने इसे पकड़ लिया था सो शर्ट (वो भी सफ़ेद शर्ट) में दाग भी लग गए थे l मैं इसे ऐसे में घर पहन जा भी नहीं सकता था l सो मैंने कहा “ठीक है जी , आपका हुकुम सर आँखों पे l”
तृषा किचेन ठीक करने लग गयी और मैंने अपने फ़ोन को स्पीकर से जोड़ा और तेज़ तेज़ गाने बजाने लगा l उसपे भी अजीब से मेरे डांस स्टेप्स l तृषा के दादा दादी की बोलचाल की भाषा भोजपुरी थी l और जब भी मुझे तृषा को चिढाना होता मैं या तो उससे भोजपुरी में बातें करने लगता या फिर ऐसे ही भोजपुरी गाने तेज़ आवाज़ में बजाने लगता l आज भी मैं वही कर रहा था l
मैं ऐसे ही डांस करते हुते किचेन में गया और तृषा के दुपट्टे को अपनी दांतों में फंसा बरात वाले स्टेप्स करने लग गया l तृषा चिढती हुयी बाहर आयी और गाना बंद कर दिया उसने l
मैं उसे अपनी ओर खींचते हुए “का हो करेजा (क्या हुआ मेरी जान)”
तृषा – (अपना मुंह अजीब सा बनाते हुए) कहो !
मैं – रउरा के हई डिजाइन देख के मन क र ता की चापाकल में डूब के जान दे दईं ! (तुम्हारे इस फिगर को देख के ऐसा लग रहा है जैसे हैण्ड पंप में कूद के जान दूँ मैं)
तृषा – अपना सर पकड़ते हुए “आज तो तुम कूद ही जाओ, मैं भी देखूं आखिर कैसे एडजस्ट होते हो तुम उसमे l” मैं हंसने लग गया l मैंने बॉल डांस की धुन बजायी और तृषा को बांहों में ले स्टेप्स मिलाने लगा l ये डांस तृषा ने ही मुझे सिखाया था l एक दुसरे की बांहों में बाँहें डाले, आँखें बस एक दुसरे को ही देखती हुयी l मैं धीरे से उसके कानों के पास गया और उससे कहा “सच में चली जाओगी मुझे छोड़ के ?”
तृषा – (मुझे कस के पकड़ते हुए) नहीं, बस झूटमूट का ! मैं तो हमेशा तुम्हारे पास रहूंगी l जब कभी अकेला लगे, अपनी आँखें बंद करना और मुझे याद करना l अगर तुम्हे गुदगुदी हुयी तो समझ लेना मैं तुम्हारे साथ हूँ l (फिर से मुझे गुदगुदी करने लग गयी और मैं उससे बचता हुआ कमरे में एक जगह से दूसरी जगह भागने लग गया)
आखिर में हम दोनों थक के बैठ गए l मेरे जनमदिन वाले दिन को जो हुआ था, उसके बाद शायद ही कभी हसे थे हम दोनों l उस दिन को हमने जी भर के जिया l एक बार तो भूल गया था मैं की उसकी शादी किसी और से हो रही है l शायद मैं आज याद भी नहीं करना चाहता था इस बात को ...
रात हो चुकी थी l उस रात का खाना हम दोनों ने मिल के बनाया था l वो सोफे पे बैठ गयी, मैंने उसकी गोद में सर रखा और फर्श पर बैठ गया l तृषा मुझे खिलाने लग गयी l मैं तो बस उसे देखता ही जा रहा था, पता नहीं फिर कब उसे जी भर के देखने का मौका मिलेl
खाना पीना हो चूका था और मम्मी का कॉल भी आ चूका था l सो अब जाने का वक़्त हो चुका था l तृषा की आँखें भी नम हुयी जा रही थी, वो कुछ कहना चाह रही थी पर बात उसके गले से बाहर नहीं आ पा रही थी l ना मुझमे अब कुछ बोलने की हिम्मत बची थी l मैं दरवाज़े की ओर मुड़ा और दरवाज़ा खोल ही रहा था की तृषा का मोबाइल बज उठा l कॉलर ट्यून थी “लग जा गले की फिर हंसी रात हो ना हो ... शायद इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो ...” मैं पलटा और तृषा को जोर से बांहों में भर लिया l हम दोनों रोये जा रहे थे l थोड़ी देर ऐसे ही रुक मैंने खुद को उससे अलग किया और दरवाज़े से बाहर आ गया l