• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

xforum

Welcome to xforum

Click anywhere to continue browsing...

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
28,861
67,052
304

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
28,861
67,052
304

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
10,174
38,516
259
#78.

शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।

तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।

सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।

तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।

वह स्थान सोने के समान चमक उठा।

सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।

सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।

“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।

तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।

उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।

उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“

“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।

“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"

शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."

“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।

“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"

शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।

सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।

“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"

“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।

“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।

पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।

“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-

“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"

“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....

‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।

तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।

उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।

वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।

“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"

शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"

आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-

“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"

देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।

“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।

तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।

“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"

उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।

“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"

आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"

सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।

शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।

उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।

वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।

कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।

आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।

वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।

कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।

आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।

सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।

तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।

आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।

आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।

लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।

उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।

कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।

तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।

सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।

लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।

ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।

हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।

“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।

वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।

“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।

तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।

“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।

“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।

“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"

आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"

यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।

शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-

“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"

शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।

शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।

अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।

बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।

उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।

बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।

आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।

वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।

तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।

सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।

वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।



जारी रहेगा_______✍️
गजब!!!!
आर्यन, शलाका और हेमू सबके बीच का संबंध एक ही अपडेट में सामने ले आए आप :good:
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,381
24,493
159
इतना तो स्पष्ट है कि आर्यन और शलाका आपस में प्रेम करते हैं, और ऐमू भी उन दोनों के बीच की कड़ी है।
लेकिन ऐसे में 'आकृति' कहाँ से दोनों में बीच में टपक पड़ी?
लगता है आर्यन को ब्रह्मकलश नहीं मिल पाया। इसीलिए अब इतने वर्षों के बाद वो सुयश बन कर सामने है।
शलाका को ब्रह्मकलश की आवश्यकता नहीं क्योंकि वो स्वयं ही देवकन्या है।

एक बात का खटका ज़रूर है मन में -- सुप्रीम पर हुए खून का अब इस कहानी से कोई लेना देना है भी या नहीं?
अद्भुत लेखन भाई! अद्भुत!
इस बात को कितनी बार भी लिखें / कहें, कम है। बहुत बढ़िया... अति उत्तम!
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
28,861
67,052
304
गजब!!!!
आर्यन, शलाका और हेमू सबके बीच का संबंध एक ही अपडेट में सामने ले आए आप :good:
ओर क्या करे सर, आप सब पीछे जो पड़े थे।:blush:
अब हम ठहरे शरीफ आदमीं, किसी को परेशान नहीं देख पाए :shy:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
28,861
67,052
304
इतना तो स्पष्ट है कि आर्यन और शलाका आपस में प्रेम करते हैं, और ऐमू भी उन दोनों के बीच की कड़ी है।
लेकिन ऐसे में 'आकृति' कहाँ से दोनों में बीच में टपक पड़ी?
लगता है आर्यन को ब्रह्मकलश नहीं मिल पाया। इसीलिए अब इतने वर्षों के बाद वो सुयश बन कर सामने है।
शलाका को ब्रह्मकलश की आवश्यकता नहीं क्योंकि वो स्वयं ही देवकन्या है।

एक बात का खटका ज़रूर है मन में -- सुप्रीम पर हुए खून का अब इस कहानी से कोई लेना देना है भी या नहीं?
अद्भुत लेखन भाई! अद्भुत!
इस बात को कितनी बार भी लिखें / कहें, कम है। बहुत बढ़िया... अति उत्तम!
1.अब प्रेम तो वो आपस में करते ही है। इसका हिंट मैने पहले भी दिया था।:shy: ऐमू को आर्यन ने बचाया ओर साथ ले गए।,
2.आकृति का संबंध भी वहीं से है मित्र, :approve: आगे आने वाले अपडेट में स्पष्ट कर देंगे। आप तो साथ बने रहो बस।:D
3.ब्रह्म कलश का किस्सा फिर कभी:shhhh: अभी इस से ज्यादा नहीं बता सकते सर:pray:

आपके शब्दों ओर रिव्यू के लिए बोहोत बोहोत आभार प्रकट करता हूं भाई साहब 🙏🏼🙏🏼
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,543
10,769
159
#78.

शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।

तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।

सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।

तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।

वह स्थान सोने के समान चमक उठा।

सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।

सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।

“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।

तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।

उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।

उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“

“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।

“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"

शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."

“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।

“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"

शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।

सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।

“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"

“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।

“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।

पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।

“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-

“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"

“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....

‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।

तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।

उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।

वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।

“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"

शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"

आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-

“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"

देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।

“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।

तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।

“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"

उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।

“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"

आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"

सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।

शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।

उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।

वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।

कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।

आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।

वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।

कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।

आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।

सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।

तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।

आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।

आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।

लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।

उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।

कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।

तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।

सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।

लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।

ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।

हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।

“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।

वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।

“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।

तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।

“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।

“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।

“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"

आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"

यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।

शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-

“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"

शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।

शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।

अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।

बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।

उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।

बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।

आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।

वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।

तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।

सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।

वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।



जारी रहेगा_______✍️
Awesome update
Suyash abhi atit me pahunch gaya hai aur khud ke rahsay ko jan gaya ki wo purane Janam me Aaryan tha aur shalaka devi ke sath padhayi kr rha tha, aur shalaka se prem karta tha aur abhi emu ka rahsay bhi samne aa rha hai
 

kas1709

Well-Known Member
11,123
11,727
213
#78.

शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।

तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।

सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।

तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।

वह स्थान सोने के समान चमक उठा।

सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।

सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।

“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।

तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।

उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।

उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“

“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।

“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"

शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."

“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।

“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"

शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।

सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।

“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"

“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।

“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।

पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।

“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-

“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"

“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....

‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।

तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।

उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।

वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।

“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"

शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"

आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-

“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"

देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।

“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।

तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।

“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"

उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।

“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"

आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"

सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।

शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।

उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।

वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।

कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।

आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।

वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।

कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।

आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।

सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।

तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।

आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।

आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।

लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।

उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।

कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।

तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।

सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।

लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।

ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।

हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।

“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।

वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।

“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।

तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।

“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।

“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।

“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"

आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"

यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।

शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-

“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"

शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।

शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।

अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।

बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।

उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।

बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।

आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।

वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।

तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।

सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।

वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।



जारी रहेगा_______✍️
Nice update....
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
Staff member
Sectional Moderator
Supreme
28,861
67,052
304
Awesome update
Suyash abhi atit me pahunch gaya hai aur khud ke rahsay ko jan gaya ki wo purane Janam me Aaryan tha aur shalaka devi ke sath padhayi kr rha tha, aur shalaka se prem karta tha aur abhi emu ka rahsay bhi samne aa rha hai
Sahi pakde hain devi ji :approve:
Suyash ke swarg-arohan ka uddesya hi yahi tha:approve: Ye niyati hi jisko pata hai ki kab,kya?,or kaise karna hai:declare: Thank you so much for your valuable review and support :thanx:
 
Top