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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Okay to aapke pahle review ka intezar rahega komal ji :approve:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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To Ab suyash salaka se milega to shyad kuch sawalonk ke jabab mil jaye ya aur ulajh jaye dekhte h
Bhai bahut hi shandar update tha khaskar kailash parvat 🙏
Iske baare me jyada pata aaj ke update me lagega :approve:
Aur aapka sochna sahi hai, iss update se bhi kuch sawaal suljhenge:declare: Thanks brother for your valuable review and support :thanx:
 
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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#78.

शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।

तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।

सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।

तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।

वह स्थान सोने के समान चमक उठा।

सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।

सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।

“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।

तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।

उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।

उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“

“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।

“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"

शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."

“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।

“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"

शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।

सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।

“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"

“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।

“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।

पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।

“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-

“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"

“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....

‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।

तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।

उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।

वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।

“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"

शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"

आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-

“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"

देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।

“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।

तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।

“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"

उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।

“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"

आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"

सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।

शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।

उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।

वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।

कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।

आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।

वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।

कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।

आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।

सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।

तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।

आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।

आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।

लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।

उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।

कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।

तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।

सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।

लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।

ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।

हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।

“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।

वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।

“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।

तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।

“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।

“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।

“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"

आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"

यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।

शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-

“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"

शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।

शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।

अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।

बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।

उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।

बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।

आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।

वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।

तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।

सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।

वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।



जारी रहेगा_______✍️
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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जलेबी की तरह बिल्कुल सीधी सी कहानी हैं
और औरत की तरह सब कुछ समझ आ गया 😂😂😂😂😂😂

Bahut badhiya update bhai

To lagta ha ye makota hi ha jisne supreme ko duboya ha ye akriti bhi lagta ha jhuth bol rahi ha rojer se bhai isne rojer ka pata laga liya ki wo sanduk me chhipa ha to kya makota pata nahi kar sakta sab chal ha or rojer chal me fans gaya or inki baton me aa gaya ir jaise ki akriti suyesh ko janti ha bhai kuchh to gadbad ha mujhe to lagta ha ki shalaka ko or uske bhaiyon ko kaid me jisne kara tha usme is makota ka hath bhi ho sakta ha kher lekin ye age dekhte han ki kya ye sach ha

Or ye emu fir aa gaya idhar or ye jaise emu ne aki aru ka jikra kiya ha bhai aki ka matlab akriti or aru ka matlab aryan jo ki suyesh ha tabhi to emu use dost dost kahta ha lekin aryan ko shalaka ka ha to ye bich me akriti kaise aa gayi lagta ha shalaka hi bachha sakti ha in sabko ab lagta ha shalaka wali palty achhai ki taraf ha or ye akriti wali burayi ki taraf

adhbut aur akalpaniya ....superb updates Sharma ji.:perfect::perfect::love2:

:congrats: for complete 300 pages
💯💯💯

Nice update....

Wow 😲 Roger ke sath sath Vyom bhi jeevit hai, achha laga jaan kar dekhte hain aapne Vyom ke liye kya kya soch rakha hai kyonki sabse jyada varnan aapne isi ka kya hai height, training, water ke andar swimming etc etc.

Ye flying object water ke andar aur hard kide Mariya ko le gaye??? Ye sab alien hain ya phir island ke hi niwasi hain??

Wonderful update brother.

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Roger ne apna kaam ko kar diya............lekin sath hi sath aakriti se rahasay bhi jaan liye.........

Khandahar me ye log raat bitane ke liye aa to gaye he...........lekin raat kaisi gujregi..........ya nahi pata..........

Keep rocking bro


अपडेट 71 :

तो यह अराका द्वीप अटलांटिस का ही अंग है। और वहाँ बर्फ़ के नीचे भी जो भी दबा हुआ है (शलाका का महल), वो मेरे पूर्व के अनुमान के अनुरूप ही अटलांटिस का ही अंग है।

छः फुट की शलाका देवी की मूर्ति आदमक़द ही है। सुयश को उससे महक भी महसूस हुई और शरीर की गर्माहट भी (आपने लिखा नहीं, लेकिन हमने पढ़ लिया... हा हा हा हा)! तो संभव है कि यह मूर्ति शलाका का एक होलोग्राम जैसा प्रतिबिम्ब हो - ऐसा होलोग्राम जो स्थिर है, लेकिन शलाका की जीवन-शक्ति से जुड़ा हुआ है।

एक बात तो है, हमारी पूजा पाठ परंपरा में मूर्तियों का बड़ा ही महत्व है। ईश्वर को निराकार और साकार दोनों रूपों में माना जाता है और मूर्ति ईश्वर के साकार रूप को दर्शाती है और भक्तों में उनकी उपस्थिति का अनुभव करने में सहायता करती है। मूर्तियों के कारण ईश्वर में ध्यान लगाना सरल और सहज हो जाता है। देखा जाए तो मूर्ति ईश्वर का केवल एक प्रतीक मात्र नहीं है, बल्कि भक्त की आस्था और भक्ति का एक सशक्त माध्यम है।

सुयश (आर्यन) और शलाका का पुराना सम्बन्ध है। किस रूप में, यह बताया नहीं अभी तक। लेकिन जिस तरह से सुयश शलाका की मूर्ति की तरफ़ आकर्षित हुआ और जिस तरह से वो उसको स्पर्श करने के बाद बिना क्षति / हानि के बच गया (युगाका को भी आश्चर्य हुआ इस बात पर), उससे तो साफ़ लगता है कि शलाका और सुयश का गहरा सम्बन्ध है। तिलिस्म का टूटना भी सुयश के कारण ही संभव है - मतलब अभी तक का अपना खोटा सिक्का उतना भी खोटा नहीं है! 🙂

वैसे, शलाका शब्द से एक बात याद आ गई, जो संभवतः यहाँ कई पाठकों को पता न हो।

संत तुलसीदास जी की रामचरितमानस में शुरुवात में ही ‘श्री राम शलाका प्रश्नावली’ है। शलाका शब्द के कई अर्थ हैं, लेकिन उसका एक अर्थ तीली/सलाई/सलाख भी होता है। यदि जीवन में कोई बहुत ही कठिन समस्या हो, तो इस प्रश्नावली का प्रयोग करें। संभव है कोई हल मिल जाए। कुछ नहीं तो एक दोहा ही पता चल जाएगा 🙂

[मान्यवर मॉडरेटर महोदय लोग, इस कमेंट को अनावश्यक बैन / एडिट न कर दीजिएगा। यह जानकारी बस सभी का ज्ञान बढ़ाने के लिए शेयर करी है]

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अपडेट 72 :

सात दिन पहले की घटना से पता चलता है कि रोजर जीवित है। उसने एक सिंह-मानव देख लिया। सबसे पहले ऐसे एक जीवों का वर्णन मैंने सुपर कमाण्डो ‘ध्रुव’ की दो कॉमिक्स “आदमखोरों का स्वर्ग” और “स्वर्ग की तबाही” में पढ़ा था - सन 1987 / 1988 में! बचपन की याद ताज़ा हो आई भाई! 🙂

मकोटा ने ज्योतिष विद्या से जान लिया है कि तिलिस्मा अब टूटने ही वाला है। आकृति कौन है, क्यों है, यह नहीं समझा। और सामरा पर अधिकार करना तिलिस्मा के टूटने से पहले ही क्यों आवश्यक है, समझा नहीं।

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अपडेट 73 :

हम्म, तो आकृति भी एक बंधक है यहाँ! और मकोटा की छल के अधीन है।

मकोटा जैगन का भक्त है, जो तमराज है (किल्मिष भाई... हीहीही)! सॉरी शक्तिमान! हा हा हा! 😂

वो पिरामिड जैगन का ही मंदिर है। मतलब बहुत सारा स्यापा इस जैगन और मकोटा के कारण ही है। ये मकोटा थोड़ा थोड़ा "लार्ड ऑफ़ द रिंग्स" के “सारोमान” जैसा ही है। वो सिंह/पशु-मानव लुफासा सिनोर का राजकुमार है! यार - बड़ी दिक्कत हो रही है। अनगिनत पात्र और सबके नाम कठिन! मेरे जैसा भुलक्कड़ कुछ लिखे भी तो कैसे?

हम्म्म, तो वो ऊर्जा/स्वर्ण-मानव अपना रोजर ही था।

आकृति का यह कहना कि तिलिस्मा के टूटने से सभी मुक्त हो जाएँगे - यह एक बचकानी सी बात है। कोई मुक्त नहीं होने वाला। यह खेल बहुत बड़ा है। जैगन इतनी आसानी से किसी को नहीं छोड़ेगा।

अल्बर्ट की यह बात, “यहां की हर वस्तु और जीव ईश्वर के सिद्धांतो से अलग दिख रही है” एकदम सही है। सब कुछ कृत्रिम है यहाँ।

ऐमू ने दो शब्द कहे। अंदाज़ा लगा रहा हूँ कि आरू : मतलब आर्यन, और आकी : मतलब आकृति या फिर अक्का (दीदी)? लेकिन फिर आरू की आकी... ई तो सुसरा प्रेम-त्रिकोण बन जायेगा ऐसे तो (अगर संजू भाई की बात सही है तो)! वैसे ही बरमूडा त्रिकोण के लफ़ड़े से निकल नहीं पा रहे हैं, अब एक और त्रिकोण! दादा रे!

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि ऐमू को कैसे पता कि सुयश की आर्यन है?

बड़े रहस्य हैं भाई! बड़े रहस्य! कहानी ही “तिलिस्मा” है ये तो!

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अपडेट 74 :

आदमखोर पेड़! सुयश भाई का किरदार अचानक से ही खतरे में आ गया। मतलब यह आवश्यक नहीं कि हमारे इन किरदारों को कोई क्षति न हो। पूरी तरह संभव है यह।

“सुयश की पीठ पर बना सुनहरे रंग का सूर्य का टैटू चमकने लगा” -- लेकिन वो गोदना (टैटू) तो काले रंग का था न? हाँ - और यही बात ब्रैंडन ने भी पूछी! वैसे अगर शेफ़ाली का अनुमान सही है, तो यह गोदना एक आवश्यक क्रिया है, जो शलाका के कहने पर पाँच सौ साल पहले शुरू की होगी, सुयश के पुरखों ने।

मतलब, सुयश के किसी पुरखे के साथ शलाका जी का प्रेम/वैवाहिक सम्बन्ध था...

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अपडेट 75 :

ये चूहा बिल्ली लुफासा और उसके ही जैसी शक्ति वाला कोई अन्य सिनोर-वासी तो नहीं? अगर हाँ, तो आकृति और रोजर की सब असलियत उनको पता हैं।

हरे प्राणी, उड़नतश्तरी, झोपड़ी... बाप रे! किन किन बातों को ध्यान में रखें हम! और आप कैसे रख रहे हैं राज भाई!? कमाल है और बलिहारी है आपकी कल्पना और स्मरण-शक्ति के! वाह! अद्भुत!

इन सब बातों के बीच में असलम की याद आ गई। उसको कैसे पता था कि सुप्रीम को अटलांटिस की तरफ़ लाना है?
कहीं वो भी तो मकोटा का ही कोई मातहत (कर्मचारी) नहीं?

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अपडेट 76 :

जैगन -- बुद्ध-ग्रह वासी है। हरे कीड़े भी वहीं की उपज हैं।

लेकिन कुछ भी हो, पृथ्वी और बुद्ध दोनों ही सूर्य की परिक्रमा करते हैं -- अतः सूर्य उन दोनों पर ही भारी पड़ेगा। मतलब, सुयश भाई का पलड़ा खगोलीय दृष्टि से बहुत भारी तो है। सूर्यवंशी है वो! तो जैगन जैसा हरा कीड़ा उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। 😂 मकोटा भी नहीं।

मेरा एक और विचार है -- शायद अनजाने में ही सही, आकृति ने रोजर के रूप में एक ‘भेदी’ को रिक्रूट कर लिया है। समय आने पर रोजर ‘सुयश एंड कं.’ को सारे रहस्य समझा देगा।

नटराज -- भगवान शिव का ताण्डव नृत्य करता हुआ रूप हैं। वैसे तो इस रूप का दार्शनिक ज्ञान मुझको कम ही है, लेकिन इतना पता है कि ताण्डव नृत्य पाँच आदि-शक्तियों को प्रदर्शित करता है -- सृष्टि, स्थिति, संहार, तिरोधन (शुभ का आगमन और अशुभ हटाना), और अनुग्रह (अनुकम्पा)! चूँकि मुझे इस विषय में बहुत कम पता है, इसलिए अनावश्यक बनावटी ज्ञान नहीं झाडूँगा।

देवी शलाका के मंदिर / महल में नटराज की उपस्थिति रोचक है।


Raj_sharma राज भाई -- पढ़ तो लेता हूँ, लेकिन अपने विचार नहीं रख पाता समय पर।

क्या अद्भुत लेखन है भाई! आपको सच में पुस्तक / उपन्यास लिखना चाहिए। बहुत ही अच्छा लेखन है आपका।
उससे भी अच्छी है आपकी कल्पना।
क्या समां बाँधा है इस कहानी में! वाह! वाह!

ऐसे ही लिखते रहें! देर सवेर ही सही, साथ तो बने ही हैं हम आपके!

Wo to aana hi tha apan ko, pahle hi bola tha. Ye to betichod time ka lafda hai is liye der sawer ka matter ho gayla hai. Khair...jaldi hi start karega apan :dost:

बहुत ही गजब का सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और रहस्यमयी अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

रहस्यों को सुलझाता हुआ रहस्य से भरपूर अपडेट

Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

अद्भुत कथानक 🙏
बन्धु आपने इस फोरम ही नहीं साहित्यिक मंचों के पटल पर 'बाबू देवकीनंदन खत्री' को 💯 वर्ष के बाद पुनर्जन्म दे दिया
बहुत पहले xossip पर इस प्रकार की कहानी 'मायावी गणित' नाम की भी पढ़ी थी

लेकिन ये कथा तिलस्म आधारित खत्री जी की चन्द्रकान्ता, चन्द्रकान्ता सन्तति व भूतनाथ, वेदप्रकाश शर्मा जी की देवकान्ता सन्तति.... और मायावी गणित से बहुत आगे ना सिर्फ तिलिस्म बल्कि वैश्विक धरातल पर विभिन्न संस्कृतियों से जुड़े मनुष्यों के ना सिर्फ वर्तमान बल्कि प्राचीन भावनात्मक सम्बन्धों को भी बहुत आकर्षक रूप से परिभाषित करने का प्रयास कर रही है

और‌ अब तक इस प्रयास में आप सफल‌ भी रहे हैं....कहीं भी ना तो पाठक बोर हुए ना भटके.... हर अपडेट में आकर्षण बना रहा और अगले अपडेट के लिए व्याकुलता भी

nice update

Bhut hi badhiya update
To Kristi ko bachane ke chakkar me us aadam khor ped ne suyash ko pakad liya lekin jab suyash ke tetu par Surya ki kirne padi to un kirno ne us ped ko gher liya or us ped ko jala kar rakh kar diya

Jabardast update
To vah tetu ka nishaan suyash ke kul devta ka nishaan hai
Or suyash ke us singhasan par bethte hi uski aatma 5020 varsho pahle ke samay me kailash parvat par chali gayi

He bhagwaan?😱
Itne saare sawaal? Ye sawal padh kar hi dimaak hil gaye:runaway: ab to hum paaka padhunga, :D

एक बार फ्लैशबैक मे चलते है , बीस हजार साल पूर्व के फ्लैशबैक मे । ग्रीक गाॅड पोसाइडन ने एक सुन्दरी क्लिटो से शादी करने के बाद धरती पर एक स्वर्ग की स्थापना की जिसे अटलांटिस का नाम दिया गया ।
अपनी पत्नी को उन्होने उपहार मे एक गोलाकार बड़ी सी मोती भेंट करी जिनमे ब्रह्माण्ड की अपार शक्तियां समाहित थी । यह मोती ब्रह्माण्ड के सात तत्वों - अग्नि , जल , वायु , पृथ्वी , आकाश , ध्वनि और प्रकाश को नियंत्रित करता था ।
पोसाइडन ने क्लिटो को एक अंगुठी भी भेट की थी और इस अंगुठी को धारण करने वाला ही इस मोती को कंट्रोल कर सकता था ।
इस दौरान क्लिटो ने अटलांटिस की सभ्यता को आधुनिक एवं चमत्कारिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुख सुविधा से लैस कर दिया ।
पर दुर्भाग्य से पोसाइडन किसी बात पर अपने पत्नी से क्रोधित हुए और उन्हे एक तिलिस्म मे कैद कर दिया और साथ मे अंगुठी को किसी पर्वत पर फेंक दिया ।
इस तिलिस्म के अट्ठाइस द्वार थे जिसे खोलना असम्भव था ।
लेकिन यह सब होने से पहले क्लिटो ने पांच बार जुड़वे बच्चों को जन्म दिया था और उनमे सबसे बड़ा लड़का एटलस इस अटलांटिस का शासक बना । बाकी के नौ लड़के अन्य नौ क्षेत्र के शासक बने जिसे क्लिटो ने स्थापित किया था ।
एटलस अपनी मां के साथ हुए अन्याय से दुखी भी था और क्रोधित भी । उसने अपने भाई और सैनिकों के साथ पोसाइडन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया , परिणाम स्वरूप सभी के सभी मारे गए । सिर्फ एटलस की प्रेग्नेंट बीवी लिडिया बची रही ।
पोसाइडन ने इस के बाद एक कृत्रिम तिलिस्म द्वीप ' अराका ' का निर्माण कर क्लिटो को उसमे कैद किया था । और उसने ऐसी व्यवस्था बना दी थी कि काला मोती जो क्लिटो के पास थी , वही प्राप्त कर सकता है जो एक लड़की हो , वह लड़की सिर्फ मानव हो और साथ मे देव पुत्री भी हो ।

कई हजार साल बाद इस खानदान मे ' ऐलेना ' नामक एक लड़की का जन्म हुआ । शायद यह सात हजार साल बाद हुआ । ऐलेना की शादी आकाशगंगा के एक योद्धा आर्गस से हुई । फिर इनके सात पुत्र और एक पुत्री हुई । पुत्री का नाम ' शलाका ' रखा गया ।

अब बात करते है ताजा अपडेट के बारे मे । सम्राट शिप का इस क्षेत्र मे पहुंचना कुछ प्रयोग था पर उसके अधिक संयोग था । असलम ने इस शिप को इस क्षेत्र मे लाने के लिए तिकड़म बैठाई पर सुयश और शैफाली का इस द्वीप पर आना हंड्रेड प्रतिशत कुदरती और संयोग था ।
क्यों की शैफाली के अलावा काले मोती को कोई भी धारण नही कर सकता ।
लेकिन फिर भी इस मोती को धारण करने से समस्या का हल नही होने वाला है जब तक अंगुठी की तलाश पुरी न हो । अंगुठी कहां है किसी को भी नही पता !
सुयश साहब की मुख्य भुमिका तिलिस्म के उन अट्ठाइस द्वार को पार करने मे बहुत अधिक होगी । सुयश साहब वैसे भी कुदरत प्रदत सूर्य टैटूज धारण किए हुए है और यह टैटूज कोई मानव द्वारा रचित टैटूज तो बिल्कुल ही नही होना चाहिए । मानव रचित टैटूज नर-भक्षी वृक्ष से उनकी रक्षा कतई नही कर सकता ।
कहानी वाकई बहुत ही बेहतरीन है पर सवाल कभी कम होने का नाम ही नही ले रहा है । आकृति से सुयश साहब का सम्बन्ध वर्तमान से सम्बंधित हो सकता है लेकिन शलाका से उनका सम्बन्ध धुंधला नजर आ रहा है ।

जैसा कामदेव भाई ने कहा , आप देवकी नंदन खत्री साहब और वेद प्रकाश शर्मा साहब के उपन्यास की याद दिला रहे है । मैने उन दोनो की उपन्यास पढ़ी है ।

हमेशा की तरह जगमग जगमग अपडेट शर्मा जी ।

Suspense kafi sulaj rhe hai to kahe ulaj rhe hai lekin safar kafi romanchakari hota jaa raha hai or majedaar bhi
.
Esa lagata hai Suyash jaroor Shalaka ke pass aaya hai is bar ab dekhte hai ye kitna such hai
Aap kya bolte ho Raj_sharma bhai😉😉😉

Shalaka Devi ka mandir ka indian connection yoh sach mei connect ho gaya. Suyash ka shahir wahi hai lekin aatma ne toh space-time travel kar li. Pahuch gaya 5020 saal pehle..

Agle update ka intezaar hai..


To Ab suyash salaka se milega to shyad kuch sawalonk ke jabab mil jaye ya aur ulajh jaye dekhte h
Bhai bahut hi shandar update tha khaskar kailash parvat 🙏

Agla update post kar diya hai dosto.. kripya apne valuable review dijiyega... :approve:
 
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Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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nice update
Thanks :thanx:
 
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parkas

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#78.

शुद्ध चाँदी के समान चारो ओर बर्फ बिखरी हुई थी। बहुत ही मनोरम, शुद्ध और अकल्पनीय वातावरण था।

तभी सुयश को अपना शरीर वहीं बर्फ पर उतरता हुआ महसूस हुआ।

सुयश ने उतरते ही सबसे पहले अपने मस्तक को कैलाश से स्पर्श कर ‘ऊँ नमः शि.....य’ का जाप किया और फ़िर चारो ओर ध्यान से देखने लगा।

तभी सूर्य की एक किरण बादलों की ओट से निकलकर कैलाश पर्वत पर एक स्थान पर गिरी।

वह स्थान सोने के समान चमक उठा।

सुयश यह देखकर आश्चर्यचकित् होकर उस स्थान की ओर चल दिया।

सुयश जब उस स्थान पर पहुंचा तो उसे वहां कुछ दिखाई नहीं दिया।

“यहां तो कुछ भी नहीं है, फ़िर अभी वो सुनहरी रोशनी सी कैसी दिखाई दी थी मुझे?" सुयश आश्चर्य में पड़ गया।

तभी उस स्थान पर एक दरवाजा खुला और उसमें से 2 लोग निकलकर बाहर आ गये।

उन 2 लोगो पर नजर पड़ते ही सुयश का मुंह खुला का खुला रह गया।

उसमें से एक देवी शलाका थी और दूसरा ....... दूसरा वह स्वयं था।“

“असंभव!......यह तो मैं हूं.... मैं देवी शलाका के साथ क्या कर रहा हूं?....और ....और यह कौन सा समयकाल है? हे ईश्वर....यह कैसा रहस्य है?" सुयश को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

सुयश उन दोनों के सामने ही खड़ा था, पर उसे ऐसा लगा जैसे कि उन दोनों को वह दिख ही ना रहा हो।

“आर्यन... तुम समझने की कोशिश करो, मेरा तुम्हारा कोई मेल नहीं है?"

शलाका ने कहा- “तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, जिसके लिए तुम ‘वेदालय’ आये हो। यहां पर मेरे पढ़ाई करने का कुछ कारण है? जो मैं तुम्हे अभी नहीं बता सकती और वैसे भी तुम एक साधारण मनुष्य हो और तुम्हारी आयु केवल 150 वर्ष है, जबकि मैं एक देवपुत्री हूं, मेरी आयु कम से कम 2000 वर्ष है। अगर मैंने तुमसे शादी की तो 150 वर्ष के बाद क्या होगा? तुम मेरे पास नहीं होगे...."

“तो मैं क्या करूं शलाका?" आर्यन ने शलाका की आँखो में देखते हुए कहा ।

“तुमने पहले तो नहीं बताया था कि तुम एक देवपुत्री हो, अब तो मुझे तुमसे प्यार हो चुका। मैं अब तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता। अब रही बात आयु की तो मैं अपनी आयु भी बढ़ा लूंगा। तुम शायद ‘ब्रह्मकलश’ के बारे में भूल रही हो, जिसके बारे में हमें गुरु ‘नीलाभ’ ने बताया था। ब्रह्मकलश प्राप्त कर हम दोनों ही अमर हो सकते हैं।"

शलाका और आर्यन बात करते-करते सुयश के बिल्कुल पास आ गये और इससे पहले कि सुयश उनके रास्ते से हट पाता, शलाका सुयश के शरीर के ऐसे आरपार हो गयी जैसे वह वहां हो ही ना।

सुयश ने पलटकर दोनों को देखा और फ़िर उनकी बातें सुनते हुए उनके पीछे-पीछे चल दिया।

“ब्रह्मकलश प्राप्त करोगे?" शलाका ने आर्यन पर कटाछ करते हुए कहा- “तुम्हे पता भी है कि ब्रह्म-कलश कहां है?"

“हां, मुझे पता चल गया है। ब्रह्मकलश, ब्र..ह्म-लोक में है। एक बार जब मैं ‘हंस-मुक्ता’ मोती ढूंढने के लिये ब्रह्म-लोक में गया था, तो मैंने दूर से उसकी एक झलक देखी थी।" आर्यन ने कहा।

“दूर से देखने और ब्र..ह्म-कलश को प्राप्त करने में जमीन और आसमान का अंतर है आर्यन। ब्रह्म-कलश को प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल है।

पर हां मैं तुमसे वादा करती हूं कि अगर तुमने ब्रह्मकलश प्राप्त कर लिया तो मैं अवश्य तुमसे शादी कर लूंगी, पर तुमको भी मुझसे एक वादा करना होगा कि ब्रह्मकलश पाने की कोशिश, तुम वेदालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही करोगे।" शलाका ने आर्यन की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा।

“ठीक है वादा रहा।" आर्यन ने शलाका का हाथ थामते हुए कहा।

“तो फ़िर फटाफट, अब आज की प्रतियोगिता पर ध्यान दो।" शलाका ने आर्यन को याद दिलाते हुए कहा-

“आज हमें ‘धेनुका’ नामक ‘गाय’ से ‘स्वर्णदुग्ध’ लाना है। क्या लगता है तुम्हे कहां होगी धेनुका?"

“हूंऽऽऽऽ सोचना पड़ेगा.....

‘मत्स्यलोक’ में पानी है, वहां पर गाय का क्या काम? ब्र..ह्मलोक में भी नहीं.... राक्षसलोक, नागलोक, मायालोक, हिमलोक में भी नहीं हो सकती......पाताललोक, सिंहलोक में भी नहीं......" आर्यन तेजी से सोच रहा था।

तभी एक बर्फ़ पर दौड़ने वाली रथनुमा गाड़ी उसी द्वार से प्रकट हुई, जिसे 4 रैंडियर खींच रहे थे।

उस पर एक लड़का और एक लड़की सवार थे।

वह इतनी तेजी से आर्यन और शलाका के पास से निकले कि दोनों वहीं बर्फ़ पर गिर गये।

“लो सोचते रहो तुम, उधर रुद्राक्ष और शिवन्या ‘शक्तिलोक’ की ओर जा रहे हैं।"

शलाका ने उठकर धीरे से बर्फ़ झाड़ते हुए कहा- “अगर वहां उन्हे धेनुका मिल गयी तो आज की प्रतियोगिता वह जीत जाएंगे और हमारे नंबर तुम्हारे प्यार के चक्कर में कम हो जाएंगे।"

आर्यन धीरे से खड़ा हुआ, पर वह अब भी सोच रहा था-

“नहीं-नहीं धेनुका शक्तिलोक में नहीं हो सकती .... प्रेतलोक और यक्षलोक में भी नहीं । अब बचा नक्षत्रलोक, भूलोक, रुद्रलोक और देवलोक......... देवलोक ............. जरूर धेनुका देवलोक में होगी। हमें देवलोक चलना चाहिए।"

देवलोक का नाम सुनकर शलाका के भी चेहरे पर एक चमक आ गयी।

“सही कहा तुमने ... वह देवलोक में ही होगी।" शलाका ने जोर से चीखकर कहा।

तभी उस रहस्यमयी दरवाजे से एक उड़ने वाला वाहन निकला, जिसे 2 हंस उड़ा रहे थे। इस वाहन पर भी 1 लड़का और एक लड़की बैठे हुए थे।

“बहुत-बहुत धन्यवाद.... हमें धेनुका का पता बताने के लिये।"

उस वाहन पर बैठे लड़के ने चिल्लाकर कहा और अपने वाहन को उड़ाकर कैलाश पर्वत के ऊपर की ओर चल दिया।

“और चिल्लाओ तेज से....विक्रम और वारुणी ने सब सुन लिया। और वो गये हमसे आगे।"

आर्यन ने शलाका पर नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा- “अब चलो जल्दी से... नहीं तो वो दोनों पहुंच भी जाएंगे देवलोक।"

सुयश इस मायावी संसार की किसी भी चीज को समझ नहीं पा रहा था, परंतु उसे इस अतीत के दृश्य को देखकर बहुत अच्छा महसूस हो रहा था।

तभी शलाका ने हवा में अपना हाथ घुमाया, तुरंत पता नहीं कहां से 2 सफेद घोड़ों का रथ वहां आ गया। उन घोड़ों के पंख भी थे।

शलाका और आर्यन उस रथ पर सवार हो गये।

उनको जाता देख सुयश भी उनके रथ पर सवार हो गया। घोड़ों ने पंख फड़फड़ाते हुए हवा में उड़ान भरी।

वह रथ कैलाश की ऊंचाइयों की ओर बढ़ा। शलाका के रथ की गति बहुत तेज थी।

कुछ ही देर में उनके रथ ने विक्रम और वारुणी के रथ को पीछे छोड़ दिया।

आर्यन ने अपने दोनो कान के पास अपने हाथ के पंजो को फैलाते हुए, अपनी जीभ निकालकर वारुणी को चिढ़ाया।

वारुणी ने भी जीभ निकालकर आर्यन को चिढ़ा दिया।

कुछ ही देर में शलाका का रथ कैलाश पर्वत के ऊपर उतर गया।

आर्यन और शलाका के साथ सुयश भी तेजी से रथ से नीचे उतर आया।

सुयश को पर्वत के ऊपर कुछ भी विचित्र नजर नहीं आया।

तभी आर्यन ने एक जगह पहुंचकर जमीन पर पड़ी बर्फ़ को धीरे से थपथपाते हुए कुछ कहा।

आर्यन के ऐसा करते ही उस स्थान की बर्फ़ एक तरफ खिसक गयी और उसकी जगह जमीन की तरफ जाने वाली कुछ सीढ़ियाँ नजर आने लगी।

आर्यन, शलाका और सुयश के प्रवेश करते ही जमीन का वह हिस्सा फ़िर से बराबर हो गया।

लगभग 20 से 25 सीढ़ियाँ उतरने के बाद उन्हें दीवार में एक कांच का कैप्सूलनुमा दरवाजा दिखाई दिया, जो किसी लिफ्ट के जैसा दिख रहा था।

उसमें तीनो सवार हो गये। उनके सवार होते ही वह कैप्सूल बहुत तेजी से नीचे जाने लगा।

कुछ ही सेकंड में वह कैप्सूलनुमा लिफ्ट नीचे पहुंच गयी।

तीनो लिफ्ट से बाहर आ गये। सामने की दुनियां देख सुयश के होश उड़ गये।

सुयश को लग रहा था कि देवलोक किसी पौराणिक कथा के समान कोई स्थान होगा, पर वहां का तो नजारा ही अलग था।

लग रहा था कि वहां कोई दूसरा सूर्य उग गया हो। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिख रहा था।

ऊंची-ऊंची शानदार भव्य इमारते, हर तरफ साफ-सुथरा वातावरण, सुंदर उद्यान, झरने और जगह-जगह लगे हुए फ़व्वारे सुयश को एक विकसित शहर की तरह लग रहे थे।

हवा में कुछ अजीब तरह के वाहन उड़ रहे थे। जिन पर सवार हो ‘देवमानव’ घूम रहे थे।

“बाप रे .... इतने बड़े शहर में आर्यन, धेनुका को कैसे ढूंढेगा?" सुयश मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी विक्रम और वारुणी भी वहां पहुंच गये। उन्होने एक नजर वहां खड़े आर्यन और शलाका पर मारी।

वारुणी ने नाक सिकोड़कर आर्यन को चिढ़ाया और फ़िर उनके बगल से निकलते हुए शहर की ओर चल दिये।

“अब क्या करना है आर्यन? वो दोनों फ़िर हमसे आगे निकल गये।" शलाका ने आर्यन से कहा।

तभी सुयश की निगाह आसमान की ओर गयी। जहां एक बड़ा सा बाज एक छोटे से तोते को मारने के लिये उसके पीछे पड़ा था।

“लगता है उस तोते की जान खतरे में है।" आर्यन ने कहा।

“अरे इधर हम प्रतियोगिता में हार रहे हैं और तुम्हें एक पक्षी की चिंता लगी है।" शलाका ने कहा।

“अगर हम प्रतियोगिता नहीं जीतेंगे तो ज़्यादा से ज़्यादा क्या हो जायेगा?"

आर्यन ने उस तोते की ओर देखते हुए कहा- “पर अगर हम उस पक्षी की जान नहीं बचाएंगे तो वह मर जायेगा।"

यह कहकर आर्यन उस दिशा में बढ़ गया, जिधर वह पक्षी गिर रहा था।

शलाका ने एक क्षण के लिये भागते हुए आर्यन को देखा और फ़िर होठों ही होठों में बुदबुदायी-

“यही तो वजह है तुमसे प्यार करने की।.... क्यों कि तुम दूसरोँ का दर्द भी महसूस कर सकते हो और ऐसा व्यक्ती ही ‘ब्रह्मकण’ का सही उत्तराधिकारी होगा।"

शलाका के चेहरे पर आर्यन के लिये ढेर सारा प्यार नजर आ रहा था। सुयश ने शलाका के शब्दों को सुना और उसके चेहरे के भावों को भी पहचान गया।

शलाका ने भी अब आर्यन के पीछे दौड़ लगा दी।

अपनी जान बचाने के लिये वह तोता, एक पार्क में मौजूद, आधी बनी गाय की मूर्ति के मुंह में छिप गया।

बाज उस मूर्ति के मुंह में अपना पंजा डालकर उस तोते को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। तभी आर्यन वहां पहुंच गया।

उसने पास में पड़ा एक लकड़ी का डंडा उठाया और जोर से चिल्लाकर बाज को डराने लगा।

बाज आर्यन को देख डर गया और वहां से उड़कर गायब हो गया।

आर्यन ने गाय की मूर्ति के मुंह में हाथ डालकर उस तोते को बाहर निकाल लिया।

वह एक छोटा सा पहाड़ी तोते का बच्चा था।

तभी शलाका और सुयश भी उस जगह पर पहुंच गये।

सुयश की नजर जैसे ही उस तोते पर गयी, वह हैरान रह गया।

वह तोता ऐमू था। एक पल में ही सुयश को समझ में आ गया की क्यों ऐमू, सुयश को अपना दोस्त बोल रहा था।



जारी रहेगा_______✍️
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 
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