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Thanks brother, sath bane rahiyeShaandar update

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Bhut shandaar update#155.
एण्ड्रोनिका: (आज से 3 दिन पहले.......... 13.01.02, रविवार, 17:00, वाशिंगटन डी.सी से कुछ दूर, अटलांटिक महासागर)
शाम ढलने वाली थी, समुद्र की लहरों में उछाल बढ़ता जा रहा था।
इन्हीं लहरों के बीच 2 साये समुद्र में तेजी से तैरते किसी दिशा की ओर बढ़ रहे थे।
यह दोनों साये और कोई नहीं बल्कि धरा और मयूर थे, जो कि आसमान से उल्का पिंड को गिरता देख वेगा और वीनस को छोड़ समुद्र की ओर आ गये थे।
“क्या तुम्हारा फैसला इस समय सही है धरा?” मयूर ने धरा को देखते हुए कहा- “क्या हमारा इस समय उल्का पिंड देखने जाना ठीक है? वैसे भी समुद्र का क्षेत्र हमारा नहीं है और तुमने कौस्तुभ और धनुषा को खबर भी कर दी है, और ...और अभी तो शाम भी ढलने वाली है। एक बार फिर सोच लो धरा, क्यों कि पानी में हमारी शक्तियां काम नहीं करती हैं। अगर हम किसी मुसीबत में पड़ गये तो?”
धरा और मयूर पानी में मानसिक तरंगों के द्वारा बात कर रहे थे।
“क्या मयूर, तुम भी इस समय शाम, समुद्र और क्षेत्र की बात करने लगे। क्या तुम्हें पता भी है? कि कुछ ही देर में अमेरिकन नेवी इस स्थान को चारो ओर से घेर लेगी, फिर उन सबके बीच किसी का भी छिपकर
अंदर घुस पाना मुश्किल हो जायेगा। इसी लिये मैं कौस्तुभ और धनुषा के आने का इंतजार नहीं कर सकती। हमें तुरंत उस उल्कापिंड का निरीक्षण करना ही होगा।
"हमें भी तो पता चले कि आखिर ऐसा कौन सा उल्का पिंड है? जो बिना किसी पूर्व निर्धारित सूचना के हमारे वैज्ञानिकों की आँखों में धूल झोंक कर, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में आ गया। अवश्य ही इसमें कोई ना कोई रहस्य छिपा है? और पृथ्वी के रक्षक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य बनता है कि हम क्षेत्र और दायरे को छोड़कर, एक दूसरे की मदद करें।”
“अच्छा ठीक है...ठीक है यार, ये भाषण मत सुनाओ, अब मैं तुम्हारे साथ चल तो रहा हूं।” मयूर ने हथियार डालते हुए कहा- “तुम्हीं सही हो, मैं गलत सोच रहा था।”
उल्का पिंड को आसमान से गिरे अभी ज्यादा देर नहीं हुआ था।
धरा और मयूर पानी के अंदर ही अंदर, तेजी से उस दिशा की ओर तैर रहे थे।
तभी धरा को बहुत से समुद्री जीव-जंतु उल्का पिंड की दिशा से भाग कर आते हुए दिखाई दिये, इनमें छोटे और बड़े दोनों ही प्रकार के जीव थे।
“ये सारे जीव-जंतु उस दिशा से भागकर क्यों आ रहें हैं?” धरा ने कहा- “और इनके चेहरे पर भय भी दिख रहा है।”
“अब तुमने उनके चेहरे के भाव इतने गहरे पानी में कैसे पढ़ लिये, जरा मुझे भी बताओगी?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अरे बुद्धू मैंने उनके चेहरे के भाव नहीं पढ़े, पर तुमने ये नहीं देखा कि उन सभी जीवों में छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव थे और बड़े जीव हमेशा से छोटे जीवों को खा जाते है। अब अगर सभी साथ भाग रहे हैं और कोई एक-दूसरे पर हमला नहीं कर रहा, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सबको एक समान ही कोई बड़ा खतरा नजर आया है, जिसकी वजह से यह शिकार करना छोड़ अपनी जान बचाने की सोच रहे हैं। ये तो कॉमन सेंस की बात है।” धरा ने मुस्कुराकर कहा।
“कॉमन सेंस...हुंह....अपना कॉमन सेंस अपने ही पास रखो।” मयूर ने धरा को चिढ़ाते हुए कहा- “मैं तो पहले ही समझ गया था, मैं तुम्हें चेक कर रहा था, कि तुम्हें समझ में आया कि नहीं?”
“वाह मयूर जी....आप कितने महान हैं।” धरा ने कटाक्ष करते हुए कहा- “अब जरा रास्ते पर भी ध्यान दीजिये, कहीं ऐसा ना हो कि कोई बड़ी मछली आपको भी गपक कर चली जाये?”
मयूर ने मुस्कुराकर धरा की ओर देखा और फिर सामने देखकर तैरने लगा।
लगभग आधे घंटे के तैरने के बाद धरा और मयूर को पानी में गिरा वह उल्का पिंड दिखाई देने लगा।
वह उल्का पिंड लगभग 100 मीटर बड़ा दिख रहा था।
“यह तो काफी विशालकाय है, तभी शायद यह पृथ्वी के घर्षण से बचकर जमीन पर आने में सफल हो गया।” धरा ने उल्का पिंड को देखते हुए कहा।
अब दोनों उल्का पिंड के पास पहुंच गये।
वह कोई गोल आकार का बड़ा सा पत्थर लग रहा था, उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह ज्वालामुखी से निकले लावे से निर्मित हो।
“इसका आकार तो बिल्कुल गोल है, इसे देखकर लग रहा है कि यह किसी जीव द्वारा निर्मित है।” मयूर ने कहा।
अब धरा छूकर उस विचित्र उल्का पिंड को देखने लगी। तभी उसे उल्कापिंड पर बनी हुई कुछ रेखाएं दिखाई दीं, जिसे देखकर कोई भी बता देता कि यह रेखाएं स्वयं से नहीं बन सकतीं।
अब धरा ने अपने हाथ में पहने कड़े से, उस उल्का पिंड पर धीरे से चोट मारी। एक हल्की सी, अजीब सी आवाज उभरी।
“यह पत्थर नहीं है मयूर, यह कोई धातु की चट्टान है, बल्कि अब तो इसे चट्टान कहना भी सही नहीं होगा, मुझे तो ये कोई अंतरिक्ष यान लग रहा है, जो कि शायद भटककर यहां आ गिरा है।” धरा के चेहरे पर बोलते हुए पूरी गंभीरता दिख रही थी- “अब इसके बारे में जानना और जरुरी हो गया है। कहीं ऐसा ना हो कि ये पृथ्वी पर आने वाले किसी संकट की शुरुआत हो?”
अब धरा ने समुद्र की मिट्टी को धीरे से थपथपाया और इसी के साथ समुद्र की मिट्टी एक बड़ी सी ड्रिल मशीन का आकार लेने लगी।
अब धरा ने उस ड्रिल मशीन से उस उल्का पिंड में सुराख करना शुरु कर दिया, पर कुछ देर के बाद ड्रिल मशीन का अगला भाग टूटकर समुद्र की तली में बिखर गया, परंतु उस उल्का पिंड पर एक खरोंच भी ना आयी।
अब मयूर ने समुद्र की चट्टानों को छूकर एक बड़े से हथौड़े का रुप दे दिया और उस हथौड़े की एक भीषण चोट उस उल्का पिंड पर कराई, पर फिर वही अंजाम हुआ जो कि ड्रिल मशीन का हुआ था।
हथौड़ा भी टूटकर बिखर गया, पर उस उल्का पिंड का कुछ नहीं हुआ।
“लगता है कि ये किसी दूसरे ग्रह की धातु से बना है और यह ऐसे नहीं टूटेगा....हमें कोई और उपाय सोचना होगा मयूर?” धरा ने कहा।
लेकिन इससे पहले कि धरा और मयूर कोई और उपाय सोच पाते, कि तभी उस उल्का पिंड में एक स्थान पर एक छोटा सा दरवाजा खुला और उसमें से 2 मनुष्य की तरह दिखने वाले जीव निकलकर बाहर आ गये।
उनके शरीर हल्के नीले रंग के थे। उन दोनों ने एक सी दिखने वाली नेवी ब्लू रंग की चुस्त सी पोशाक पहन रखी थी।
उनकी पोशाक के बीच में एक सुनहरे रंग का गोला बना था। एक गोले में A1 और एक के गोले में A7 लिखा था। उन्हें देख धरा और मयूर तुरंत एक समुद्री चट्टान के पीछे छिप गये।
“यह अवश्य ही एलियन हैं।” मयूर ने कहा- “इनके शरीर का रंग तो देखो हमसे कितना अलग है।”
“रंग को छोड़ो, पहले ये देखो कि ये अंग्रेजी भाषा जानते हैं।” धरा ने दोनों की ओर देखते हुए कहा- “तभी तो इनकी पोशाक पर अंग्रेजी भाषा के अक्षर अंकों के साथ लिखे हुए हैं।”
बाहर निकले वह दोनों जीव पानी में भी आसानी से साँस ले रहे थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, जो कि दूर होने की वजह से धरा और मयूर को सुनाई नहीं दे रही थी।
तभी जिस द्वार से वह दोनों निकले थे, उसमें से कुछ धातु का कबाड़ आकर बाहर गिरा, जिसे देख वह दोनों खुश हो गये।
“क्या इन दोनों पर हमें हमला करना चाहिये?” मयूर ने धरा से पूछा।
“अभी नहीं....अभी तो हमें ये भी पता नहीं है कि ये दोनों हमारे दुश्मन हैं या फिर दोस्त? और ना ही हमें इनकी शक्तियां पता हैं....और वैसे भी समुद्र में हमारी शक्तियां सीमित हैं, पता नहीं यहां हम इनसे मुकाबला कर भी पायेंगे या नहीं?”
धरा के शब्दों में लॉजिक था इसलिये मयूर चुपचाप चट्टान के पीछे छिपा उन दोनों को देखता रहा।
तभी उनमें से A1 वाले ने अंतरिक्ष यान से निकले कबाड़ की ओर ध्यान से देखा। उसके घूरकर देखते ही वह कबाड़ आपस में स्वयं जुड़ना शुरु हो गया।
कुछ देर में ही उस कबाड़ ने एक 2 मुंह वाले भाले का रुप ले लिया। अब A1 ने उस भाले को उठाकर अपने हाथ में ले लिया।
“अब तुम दोनों उस चट्टान से निकलकर सामने आ जाओ, नहीं तो हम तुम्हें स्वयं निकाल लेंगे।” A7 ने उस चट्टान की ओर देखते हुए कहा, जिस चट्टान के पीछे धरा और मयूर छिपे थे।
“धत् तेरे की....उन्हें पहले से ही हमारे बारे में पता है।” मयूर ने खीझते हुए कहा- “अब तो बाहर निकलना ही पड़ेगा। पर सावधान रहना धरा, जिस प्रकार से उस जीव ने, उस कबाड़ से हथियार बनाया है, वह अवश्य ही खतरनाक होगा।”
मयूर और धरा निकलकर उनके सामने आ गये।
“कौन हो तुम दोनों? और हमारी पृथ्वी पर क्या करने आये हो?” धरा ने उन दोनों की ओर देखते हुए पूछा।
“अच्छा तो तुम अपने ग्रह को पृथ्वी कहते हो।” A7 ने कहा- “हम पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा के फेरोना ग्रह से आये हैं। A1 का नाम ‘एलनिको’ है और मेरा नाम ‘एनम’ है। तुम लोगों से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। हम यहां बस अपने एक पुराने दुश्मन को ढूंढते हुए आये हैं और उसे लेकर वापस चले जायेंगे, पर अगर हमारे काम में किसी ने बाधा डाली, तो हम इस पृथ्वी को बर्बाद करने की भी ताकत रखते हैं।”
“अगर हमारी कोई दुश्मनी नहीं है, तो बर्बाद करने वाली बातें करना तो छोड़ ही दो।” मयूर ने कहा- “अब रही तुम्हारे दुश्मन की बात, तो तुम हमें उसके बारे में बता दो, हम तुम्हारे दुश्मन को ढूंढकर तुम्हारे पास पहुंचा देंगे और फिर तुम शांति से उसे लेकर पृथ्वी से चल जाओगे। बोलो क्या यह शर्त मंजूर है?”
“हम किसी शर्तों पर काम नहीं करते।” एलनिको ने कहा- “और हम अपने दुश्मन को स्वयं ढूंढने में सक्षम हैं। इसलिये हमें किसी की मदद की जरुरत नहीं है। अब रही बात तुम्हारी बकवास सुनने की.... तो वह हमनें काफी सुन ली। अब निकल जाओ यहां से।” यह कहकर एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े दो मुंहे भाले को धरा की ओर घुमाया।
भाले से किसी प्रकार की शक्तिशाली तरंगें निकलीं और धरा के शरीर से जा टकराईं।
धरा का शरीर इस शक्तिशाली तरंगों की वजह से दूर जाकर एक चट्टान से जा टकराया।
यह देख मयूर ने गुस्से से पत्थरों का एक बड़ा सा चक्र बनाकर उसे एलनिको और एनम की ओर उछाल दिया।
चक्र पानी को काटता हुआ तेजी से एलनिको और एनम की ओर झपटा।
परंतु इससे पहले कि वह चक्र उन दोनों को कोई नुकसान पहुंचा पाता, एलनिको ने अपने हाथ में पकड़े भाले को उस चक्र की ओर कर दिया।
चक्र से तरंगें निकलीं और भाले को उसने हवा में ही रोक दिया।
अब एलनिको ने भाले को दांयी ओर, एक जोर का झटका दिया, इस झटके की वजह से, वह मयूर का बनाया चक्र दाहिनी ओर जाकर, वहां मौजूद समुद्री पत्थरों से जा टकराया और इसी के साथ टूटकर बिखर गया।
तभी एनम के शरीर से सैकड़ों छाया शरीर निकले। अब हर दिशा में एनम ही दिखाई दे रहा था।
यह देख मयूर घबरा गया, उसे समझ में नहीं आया कि उनमें से कौन सा एनम असली है और वह किस पर वार करे।
तभी एलनिको ने मयूर का ध्यान एनम की ओर देख, अपना भाला मयूर की ओर उछाल दिया।
एलनिको का भाला आकर मयूर की गर्दन में फंस गया और उसे घसीटता हुआ समुद्र में जाकर धंस गया।
अब मयूर बिल्कुल भी हिल नहीं पा रहा था।
यह देख मयूर ने धरा से मानसिक तरंगों के द्वारा बात करना शुरु कर दिया- “धरा, हम पानी में अपने शरीर को कणों में विभक्त नहीं कर सकते, पानी हमारी कमजोरी है, इसलिये हमें किसी तरह यहां से निकलना ही होगा, बाद में हम अपने साथियों के साथ दोबारा आ जायेंगे इनसे निपटने के लिये।”
यह सुन धरा उठी और एक बड़ी सी समुद्री चट्टान पर जाकर खड़ी हो गई। धरा ने एक बार ध्यान से चारो ओर फैले सैकड़ों एनम को देखा और फिर अपने पैरों से उस समुद्री चट्टान को थपथपाया।
धरा के ऐसा करते ही वह समुद्री चट्टान सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त हो गई और चट्टान का हर एक टुकड़ा नुकीली कीलों में परिवर्तित हो गया और इससे पहले कि एनम कुछ समझता, वह सारी कीलें अपने आसपास मौजूद सभी एनम के शरीर में जाकर धंस गई।
इसी के साथ एनम के सभी छाया शरीर गायब हो गये।
“मुझे नहीं पता था कि पृथ्वी के लोगों में इतनी शक्तियां हैं....तुम्हारे पास तो कण शक्ति है लड़की....पर चिंता ना करो, अब यह कण शक्ति मैं तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे शरीर से निकाल लूंगा।” एलनिको ने कहा और इसी के साथ उसने अपना बांया हाथ समुद्र की लहरों में गोल नचाया।
एलनिको के ऐसा करते ही अचानक बहुत ही महीन नन्हें काले रंग के कण धरा की नाक के पास मंडराने लगे।
धरा इस समय एलनिको के भाले से सावधान थी, उसे तो पता ही नहीं था कि एलनिको के पास और कौन सी शक्ति है, इसलिये वह धोखा खा गई।
उन काले नन्हे कणों ने धरा की नाक के इर्द-गिर्द जमा हो कर उसकी श्वांस नली को अवरोधित कर दिया।
अब धरा को साँस आनी बंद हो गई थी, पर धरा अब भी अपने को कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी।
धरा ने खतरा भांप कर समुद्री चट्टान से एक बड़ा सा हाथ बनाया और उस हाथ ने मयूर के गले में फंसा भाला खींचकर निकाल दिया।
अब मयूर आजाद हो चुका था, वह एलनिको पर हमला करना छोड़, लड़खड़ाती हुई धरा की ओर लपका।
तभी एलनिको ने इन काले कणों का वार मयूर पर भी कर दिया। अब मयूर का भी दम घुटना शुरु हो गया था।
“मुझे पता था कि तुम दोनों मेरी चुम्बकीय शक्ति को नहीं झेल पाओगे।” एलनिको ने मुस्कुराते हुए कहा।
कुछ ही देर में धरा और मयूर दोनों मूर्छित होकर, उसी समुद्र के धरातल पर गिर पड़े।
यह देख एलनिको और एनम ने धरा और मयूर को अपने कंधों पर उठाया और अपने यान एण्ड्रोनिका के उस खुले द्वार की ओर बढ़ गये।
जारी रहेगा______![]()
Ye chaaro me se do dusre grah se hain, aur do apne hi Prithvi ke vedalay ke chaatra hain jinke baare me pahle bhi ek do update me bata chuka hu, ya fir ye samajh lo ki ye dharti ke super hero hainBhut shandaar update
Par ye charo hai kon....
Aur Q lad rahe h aapas me
एक बहुत ही जबरदस्त और खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया है#150.
एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा:
(आज से 3 दिन पहले......13.01.02, रविवार, 16:30, फेरोना ग्रह, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा)
पृथ्वी से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा।
फेरोना, एण्ड्रोवर्स आकाशगंगा का सबसे शक्तिशाली ग्रह था। यहां का विज्ञान यहां के 5 गुरुओं की वजह से बहुत ज्यादा उन्नत था।
इन 5 गुरुओं के समूह को ‘पेन्टाक्स’ कहते थे।
यहां के लोगों का मानना है कि पेन्टाक्स, आकाशगंगा के जन्म के समय से ही जीवित हैं, ये कौन हैं? कहां से आये हैं? कोई नहीं जानता? यहां के रहने वाले लोग देखने में लगभग पृथ्वी के ही लोगों के समान हैं, परंतु इनकी औसत आयु 10,000 वर्ष की होती है।
यहां के लोगों का शरीर हल्के नीले रंग का होता है।
यहां का राजा ‘एलान्का’ अपने महल में बैठा, अपनी खिड़की से अपनी आकाशगंगा की खूबसूरती को निहार रहा था, कि तभी एक सेवक ने आकर एलान्का का ध्यान भंग कर दिया।
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर कमांडर ‘प्रीटेक्स’ आपसे इसी वक्त मिलना चाहते हैं।” सेवक ने कहा।
एलान्का ने हाथ हिलाकर सेवक को इजाजत दे दी।
कुछ ही देर में कमांडर प्रीटेक्स उनके कमरे में हाथ बांधे खड़ा था।
एलान्का के इशारा करते ही प्रीटेक्स ने बोलना शुरु कर दिया- “ग्रेट एलान्का, आप पिछले 4 दिन से बहुत व्यस्त थे, इसलिये मैं आपसे बता नहीं पाया, पर आज मैं आपका सपना साकार करने के बहुत करीब पहुंच गया हूं।”
“तुम्हारा मतलब.....तुम्हारा मतलब ‘ओरस’ मिल गया?” एलान्का ने खुशी व्यक्त करते हुए पूछा।
“हां ग्रेट एलान्का, पिछले 20 वर्षों से जिस युवराज ओरस की हमें तलाश थी, वो हमें यहां से 2.5 मिलियन प्रकाशवर्ष दूर एक हरे ग्रह पर मिल गया है।”
प्रीटेक्स ने एलान्का की ओर देखते हुए कहा- “आप तो जानते हैं कि जब से उसका ग्रह डेल्फानो तबाह हुआ है, तब से हम अपनी मशीनों के द्वारा उसे ढूंढने का प्रयास कर रहे थे, पर पिछले 20 वर्षों से उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, पर अचानक 3 दिन पहले, उसने अपनी समय शक्ति का प्रयोग किया, जिसके सिग्नल हमें बहुत दूर से प्राप्त हुए, पर हमें उसके ग्रह का पता नहीं चल पाया था।
"इसलिये हमने ‘एण्ड्रोनिका’ स्पेश शिप को उस दिशा में भेज दिया था। एक दिन बाद ओरस ने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे हम उसकी आकाशगंगा तक पहुंच गये और जब आज उसने फिर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, तो हमें उसके ग्रह का पता चल गया, जिससे मैंने एण्ड्रोनिका को उस ग्रह पर उतार दिया।
"अब वह जैसे ही अगली बार अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगा, हमें उसकी वास्तविक स्थिति का पता चल जायेगा और हम उसे दबोच लेंगे। अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं, जब समयचक्र आपके हाथ में होगा और फिर आप सभी मल्टीवर्स के अजेय सम्राट कहलायेंगे।”
“यह तो बहुत अच्छी खबर सुनाई तुमने प्रीटेक्स।” एलान्का ने खुश होते हुए कहा- “अच्छा ये बताओ कि ‘एण्ड्रोवर्स पावर’ इस समय कहां हैं? मुझे उनसे अभी मिलना है। मैं उनसे भविष्य के बारे में कुछ बात करना चा हता हूं?”
“जी..एण्ड्रोवर्स पावर तो एण्ड्रोनिका में ही हैं, मैंने ही उन्हें वहां पर भेजा है।” प्रीटेक्स ने डरते-डरते कहा- “वो ओरस को कंट्रोल करने में उनकी जरुरत पड़ सकती है, इसीलिये मैंने उन्हें वहां भेजा है।”
“क्या?” एलान्का ने गुस्सा दिखाते हुए कहा- “तुमने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया, जबकि तुम्हें पता भी नहीं है कि उस हरे ग्रह पर किस प्रकार के खतरे हैं?”
“पर एण्ड्रोवर्स पावर तो हर खतरे से निपटने में सक्षम हैं ग्रेट एलान्का।” प्रीटेक्स ने बीच में टोकते हुए कहा।
“तुम मूर्ख हो प्रीटेक्स।” एलान्का अब हद से ज्यादा गुस्से में दिखाई दे रहा था- “अरे, मैं उन शक्तियों का उपयोग समय से पहले नहीं करना चाहता था, नहीं तो एरियन आकाशगंगा के लोग उसकी भी काट ढूंढ लेंगे, फिर हम महायुद्ध में किसका उपयोग करेंगे?”
“क्षमा चाहता हूं ग्रेट एलान्का, पर आपसे बात ना हो पाने के कारण मैंने एण्ड्रोवर्स पावर को उस हरे ग्रह पर भेज दिया है, पर आप चिंता ना करें, मैं उन्हें आज ही संदेश भेज देता हूं कि वह बिना बात के, कहीं भी
अपना शक्ति प्रदर्शन ना करें और चुपचाप युवराज ओरस को लेकर वहां से निकल जाएं।”
प्रीटेक्स, एलान्का का गुस्सा जानता था, इसलिये सावधानी से एक-एक शब्द नाप तौल कर बोल रहा था।
“ठीक है। तुम उन्हें ये संदेश भेज दो।” एलान्का ने कहा- “और ये बताओ कि एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व इस समय कौन कर रहा है?”
“ओरेना ! एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व, इस मिशन के लिये मैंने ओरेना के हाथ में दिया है।” प्रीटेक्स ने जवाब दिया।
“नहीं.....एण्ड्रोवर्स पावर का प्रतिनिधित्व तुरंत ‘रेने’ के हाथ में दे दो। ओरेना बहुत एग्रेसिव है, वह उस हरे ग्रह पर अपनी मनमानी करने लगेगी।” एलान्का ने अपना आदेश सुनाते हुए कहा- “और तुरंत चलकर
मुझे उस हरे ग्रह की सारी जानकारी दो, जितनी तुम्हारे पास है।”
प्रीटेक्स के विचार एलान्का से मैच नहीं खा रहे थे, पर राजा का आदेश तो मानना ही था, इसलिये प्रीटेक्स चुप रहा और एलान्का को ले आकाशगंगा के रिकार्ड रुम की ओर बढ़ गया।
त्रिशक्ति: (आज से 6,000 वर्ष पहले, उत्तर भारत के एक भयानक जंगल की गुफा)
जंगल में एक अजीब सा सन्नाटा बिखरा हुआ था, पर उस सन्नाटे का चीरती एक आवाज वातावरण में गूंज रही थी- “ऊँ नमः शि…य्...... ऊँ नमः..वा..य्....।”
ऐसे बियाबान जंगल की एक गुफा में, एक स्त्री महान देव के मंत्रों का जाप कर रही थी।
वैसे तो वह स्त्री बहुत सुंदर थी, पर वर्षों से जंगल में साधना करने की वजह से, उसके चेहरे के खूबसूरती थोड़ी मलिन हो गई थी।
उसके शरीर के निचले हिस्से में चींटियों ने अपनी बांबियां बना ली थीं, शरीर के ऊपरी हिस्से पर मकड़ियों ने जाले लगा लिये थे, पर उस स्त्री की साधना अनवरत् जारी थी।
आज उसे तपस्या करते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे, इन बीते 10 वर्षों में उसने कुछ भी अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था।
अब उस स्त्री के चेहरे के आसपास एक अजीब सा तेज आ चुका था।
उस स्त्री ने भारतीय वेषभूषा धारण करते हुए एक सफेद रंग की साड़ी पहन रखी थी।
आखिर उस स्त्री की कठिन तपस्या से देव खुश हो गये।
उस स्त्री के सम्मुख एक श्वेत प्रकाश सा जगमगाने लगा, उस श्वेत प्रकाश में देव का छाया शरीर भी था।
“मैं तुम्हारे कठोर तप से प्रसन्न हुआ पुत्री विद्युम्ना। अब तुम आँखें खोलकर मुझसे अपना इच्छित वर मांग सकती हो।”…देव की आवाज वातावरण में गूंजी।
महा.. की आवाज सुन विद्युम्ना ने अपनी आँखें खोल दीं।
देव को सामने देख विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- “हे देव मेरे पिता एक दैत्य हैं और मेरी माता एक मनुष्य। दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर होने के बाद भी दोनों में बहुत प्रेम है, पर उनके प्रेम को ना तो कोई दैत्य समझ पाता है और ना ही कोई मनुष्य, उनके प्रेम को स्वीकार करता है। मैंने अपना पूरा बचपन इन्हीं संघर्षों के बीच गुजारा है। अतः मैंने दैत्यगुरु शुक्राचार्य से इसका समाधान मांगा, तो दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मुझे आपसे त्रिशक्ति का वरदान मांगने को कहा। उन्होंने कहा कि इसी त्रिशक्ति से मैं दैत्यों, राक्षसों और मनुष्यों के बीच संघर्ष विराम कर
सम्पूर्ण पृथ्वी पर संतुलन स्थापित कर सकती हूं। तो हे देव मुझे त्रिशक्ति प्रदान करें।”
“क्या तुम्हें पता भी है विद्युम्ना कि त्रिशक्ति क्या है?” देव ने विद्युम्ना से पूछा।
“हां देव, त्रिशक्ति, जल, बल और छल की शक्तियों से निर्मित एक त्रिसर्पमुखी दंड है, यह दंड जिसके पास रहता है, उसे कोई भी हरा नहीं सकता। इस सर्पदंड को छीना भी नहीं जा सकता और इसके पास रहते हुए इसके स्वामी को मारा भी नहीं जा सकता। मैं इसी महाशक्ति से इस समूची पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करुंगी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या शक्ति के प्रदर्शन से कभी पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो सकता है विद्युम्ना?” देव ने कहा- “या तुम ये समझती हो कि तुम स्वयं कभी पथ भ्रमित नहीं हो सकती?”
देव के शब्दों में एक सार छिपा था, जिसे विद्युम्ना ने एक क्षण में ही महसूस कर लिया।
“म…देव मैं आपके कथनों का अर्थ समझ गई।” विद्युम्ना ने हाथ जोड़कर कहा- “तो फिर मुझे ये भी आशीर्वाद दीजिये कि यदि भविष्य में मैं कभी पथभ्रमित हो भी गई, तो आपकी महाशक्ति के पंचभूत मुझे मार्ग दिखायेंगे।”
“तथास्तु।” देव, विद्युम्ना के कथन सुन मुस्कुरा उठे और विद्युम्ना को वरदान दे वहां से अंतर्ध्यान हो गये।
विद्युम्ना के हाथों में अब एक त्रिसर्पमुखी दंड था, जिसका ऊपरी सिरे पर 3 सर्पों के मुख बने थे।
विद्युम्ना ने वह सर्पदंड हवा में उठाकर, उसे गायब कर दिया और वापस जंगल से अपने घर की ओर चल दी।
देव के प्रभाव से विद्युम्ना के वस्त्र और शरीर साफ हो गये थे, अब वह फिर से बहुत सुंदर नजर आने लगी थी।
विद्युम्ना अब जंगल में आगे बढ़ रही थी कि तभी विद्युम्ना को जंगल में एक स्थान पर सफेद रंग का एक बहुत ही खूबसूरत मोर दिखाई दिया, जो कि अपने पंख फैलाकर एक स्थान पर नृत्य कर रहा था।
इतना खूबसूरत नजारा देखकर विद्युम्ना मंत्रमुग्ध हो कर उस दृश्य को देखने लगी।
विद्युम्ना झाड़ियों की ओट से इस दृश्य को निहार रही थी।
अभी तक उस मोर की निगाह विद्युम्ना पर नहीं पड़ी थी।
वह मोर ना जाने कितनी देर तक ऐसे ही नृत्य करता रहा, फिर अचानक उस मोर ने एक इंसानी शरीर धारण कर लिया।
अब वह मोर किसी देवता की भांति प्रतीत हो रहा था, परंतु उस मोर ने नृत्य अभी भी नहीं रोका था।
तभी आसमान से बारिश की नन्हीं बूंदें गिरने लगीं, अब वह इंसान उस बारिश के जल में पूरी तरह सराबोर हो गया था।
बारिश में सराबोर होने के बाद, शायद उस व्यक्ति की प्यास अब बुझ गई थी।
अब उसने नाचना बंद कर दिया और फिर एक दिशा की ओर जाने लगा।
यह देख विद्युम्ना ने भागकर उस व्यक्ति का रास्ता रोक लिया और बोली- “तुम तो देवताओं के समान नृत्य करते हो। हे मनुष्य तुम कौन हो?”
अचानक से सामने एक स्त्री को देख वह व्यक्ति पहले तो घबरा गया, फिर उसने ध्यान से विद्युम्ना के सौंदर्य को देखा और फिर बोल उठा-
“मैं मनुष्य नहीं, मैं राक्षस राज बाणकेतु हूं। मुझे प्रकृति और जीवों से बहुत लगाव है, इसलिये कभी-कभी मैं छिपकर इस जंगल में आता हूं और कुछ देर के लिये प्रकृति के इन रंगों और इस वातावरण में खो जाता हूं। पर आप कौन हो देवी? और आप इस भयानक जंगल में अकेले क्या कर रही हो?”
“अगर आप राक्षस हो, तो आप इतना सौंदर्यवान कैसे हो?” विद्युम्ना ने बाणकेतु के प्रश्न का उत्तर देने की जगह स्वयं उससे सवाल कर लिया।
“मैं एक मायावी राक्षस हूं, मैं कोई भी रुप धारण कर सकता हूं, असल में मैं ऐसा नहीं दिखता, यह रुप तो मैंने प्रकृति में खोने के लिये चुना था।” बाणकेतु ने कहा- “पर आप वास्तव में बहुत सुंदर हो। क्या मैं
आपका परिचय जान सकता हूं?”
“मेरा नाम विद्युम्ना है। मैं दैत्यराज इरवान की पुत्री हूं। मैं इस जंगल में तपस्या करने आयी थी।” विद्युम्ना ने कहा।
“क्या वरदान मांगा आपने देव से?” बाणकेतु ने विद्युम्ना से पूछा।
“मैंने मांगा कि कोई प्रकृति से प्रेम करने वाला, सुंदर सजीला नौजवान कल मेरे पिता के पास आकर मेरा हाथ मांगे और मुझसे विवाह कर मुझे अपने घर ले जाये।” विद्युम्ना ने यह शब्द मुस्कुरा कर कहे और
पलटकर वापस जंगल के दूसरी ओर चल दी।
विद्युम्ना के कुछ आगे बढ़ने के बाद विद्युम्ना के कानों में बाणकेतु की आवाज सुनाई दी- “मैं कल तुम्हारे पिता के पास तुम्हारा हाथ मांगने आ रहा हूं विद्युम्ना। मेरा इंतजार करना।”
यह सुन विद्युम्ना के चेहरे पर मुस्कान खिल गई, पर विद्युम्ना ने पीछे पलटकर नहीं देखा और आगे जाकर बाणकेतु की नजरों से ओझल हो गई।
अजीब प्रणय निवेदन था, पर जो भी हो बाणकेतु को विद्युम्ना भा गई थी।
बाणकेतु भी मुस्कुराकर अब एक दिशा की ओर चला दिया।
जारी रहेगा________![]()
बहुत ही शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट है भाई मजा आ गया#151.
चैपटर-3
रहस्यमय नेवला: (तिलिस्मा 2.11)
सुयश सहित सभी अब तिलिस्मा के दूसरे द्वार पर खड़े थे।
दूसरे द्वार में सभी को एक बड़े से कमरे में 2 विशाल गोल क्षेत्र बने दिखाई दिये, जो कि आकार में लगभग 40 फुट व्यास के बने थे।
उन दोनों गोल क्षेत्रों के बीच 1-1 वर्गाकार पत्थर रखा था। एक पत्थर पर नेवले की मूर्ति और दूसरे पत्थर पर एक ऑक्टोपस की मूर्ति रखी थी।
नेवले की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 1 और ऑक्टोपस की मूर्ति के आगे लगी नेम प्लेट पर 2 लिखा था।
दोनों ही गोल क्षेत्रों की जमीन 1 वर्ग मीटर के संगमरमर के पत्थरों से बनी थी।
“नेवले की मूर्ति के नीचे 1 लिखा है, हमें पहले उस क्षेत्र में ही चलना होगा।” सुयश ने सभी की ओर देखते हुए कहा।
सभी ने सिर हिलाया और नेवले की मूर्ति के पास पहुंच गये। अब सभी संगमरमर के पत्थरों पर खड़े थे।
नेम प्लेट पर, जहां 1 नंबर लिखा था, उसके नीचे 2 लाइन की एक कविता भी लिखी थी-
“जीवनचक्र का है इक सार,
लगाओ परिक्रमा खोलो द्वार”
“इन पंक्तियों का क्या मतलब हुआ कैप्टेन?” जेनिथ ने सुयश की ओर देखते हुए पूछा- “यहां तो कोई भी द्वार नहीं है, यह नेवला हमें कौन से द्वार को खोलने की बात कर रहा है?”
सुयश ने जेनिथ की बात का कोई जवाब नहीं दिया। वह तेजी से कुछ सोच रहा था।
कुछ देर के बाद सुयश ने अपना पैर संगमरमर के पत्थरों से बाहर निकालने की कोशिश की, परंतु जैसे ही उसका पैर उस गोल क्षेत्र के बाहर निकला, उसे करंट का बहुत तेज झटका महसूस हुआ।
“अब हम इस संगमरमर के क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सकते, अगर किसी ने कोशिश की तो उसे करंट का तेज झटका लगेगा।”
सुयश ने अब जेनिथ का उत्तर देते हुए कहा- “समझ गई जेनिथ? यानि कि अब हम इस नेवले की पहेली को सुलझाए बिना इस स्थान से बाहर नहीं जा सकते और कविता की पंक्तियां पढ़कर ऐसा लग रहा है कि हमें इस नेवले की मूर्ति का 1 चक्कर लगाना होगा।”
“पर नेवले की मूर्ति का चक्कर लगाना तो बहुत आसान कार्य है।” ऐलेक्स ने सुयश को देखते हुए कहा।
“ब्वॉयफ्रेंड जी, इस तिलिस्मा में कुछ भी आसान नहीं है।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स से मजा लेते हुए कहा- “अवश्य ही इन बातों में कोई ना कोई पेंच है?”
“अच्छा जी, तो तुम्हीं बता दो कि क्या पेंच है, इन पंक्तियों में?” ऐलेक्स ने क्रिस्टी को देखकर हंसते हुए कहा।
“कैप्टेन क्या मैं नेवले का एक चक्कर लगा कर देखूं।” ऐलेक्स ने सुयश से इजाजत मांगते हुए कहा- “क्यों कि बिना कुछ किये तो हमें कुछ भी समझ में नहीं आयेगा?”
ऐलेक्स की बात में दम था, इसलिये सुयश ने ऐलेक्स को इजाजत दे दी। ऐलेक्स ने मूर्ति का एक चक्कर लगाना शुरु कर दिया।
सभी की नजरें ध्यान से वहां घटने वाली हर एक घटना पर थीं। पर जैसे ही ऐलेक्स का चक्कर पूरा हुआ, वह धड़ाम से जमीन पर गिर गया।
ऐलेक्स को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे उसके पूरे बदन की शक्ति ही खत्म हो गई हो।
उसे गिरते देख सभी भागकर ऐलेक्स के पास आ गये।
“क्या हुआ ऐलेक्स? तुम ठीक तो हो ना?” क्रिस्टी ने घबराते हुए पूछा।
“ऐसा लग रहा है कि जैसे मेरे बदन की पूरी शक्ति खत्म हो गई है।” ऐलेक्स ने पड़े-पड़े ही जवाब दिया- “मैं सबकुछ देख और महसूस कर पा रहा हूं, बस उठ नहीं पा रहा।”
“इसका मतलब तुमने गलत तरीके से चक्कर लगाया है।” सुयश ने चारो ओर देखते हुए कहा- “हमें फिर से इन पंक्तियों का मतलब समझना पड़ेगा और तुम परेशान मत हो क्रिस्टी, मुझे पूरा विश्वास है कि जैसे ही हम इस द्वार की पहेली को सुलझा लेंगे, ऐलेक्स फिर से ठीक हो जायेगा। याद करो मैग्नार्क द्वार में ऐसा तौफीक के साथ भी हो गया था।”
सुयश के शब्द सुन, क्रिस्टी थोड़ा निश्चिंत हो गई।
“कैप्टेन, मुझे लगता है कि ऐलेक्स ने ‘एंटी क्लाक वाइज’ (घड़ी के चलने की विपरीत दिशा) चक्कर लगाया था और इन पंक्तियों में जीवनचक्र की बात की गई है। अब जीवनचक्र तो समय के हिसाब से ही चलता है, तो इसके हिसाब से एंटी क्लाक वाइज तो परिक्रमा लगाई ही नहीं जा सकती।” क्रिस्टी ने कहा।
“क्रिस्टी सहीं कह रही है, यह स्थान किसी मंदिर की भांति बना है और किसी भी मंदिर में एंटी क्लाक वाइज चक्कर नहीं लगाया जाता।” सुयश ने कहा।
“तो क्या मैं क्लाक वाइज चक्कर लगा कर देखूं, हो सकता है कि ऐसा करने से द्वार खुल जाये।” क्रिस्टी ने कहा।
सुयश ने क्रिस्टी की बात सुनकर एक बार फिर ध्यान से उन पंक्तियों को पढ़ा और फिर क्रिस्टी को चक्कर लगाने की इजाजत दे दी।
क्रिस्टी ने क्लाक वाइज चक्कर लगाना शुरु कर दिया, पर इस बार भी चक्कर के पूरा होते ही क्रिस्टी लहरा कर ऐलेक्स जैसी हालत में जमीन पर गिर गई।
“जमीन पर गिरने की आपको ढेरों बधाइयां गर्लफ्रेंड जी, हमारे परिवार में आपका स्वागत है।” ऐलेक्स ने ऐसी स्थिति में भी सबको हंसा दिया।
“मैं तो बस तुम्हारा साथ देने को आयी हूं, वरना मुझे जमीन पर गिरने का शौक नहीं।” क्रिस्टी ने मुंह बनाते हुए कहा।
“कैप्टेन अब हम 4 लोग ही बचे हैं, अब हमें बहुत सोच समझ कर निर्णय लेना होगा।” जेनिथ ने कहा।
“मुझे लगता है कि यहां पर जीवनचक्र की बात हो रही है, तो पहले हमें इस नेवले को जिंदा करना होगा, तभी हम इसका चक्कर लगा सकेंगे।” शैफाली ने काफी देर के बाद कुछ कहा।
अब सबकी निगाह फिर से उस पूरे क्षेत्र में दौड़ गई।
“वैसे शैफाली, तुम यह बताओ कि नेवले का प्रिय भोजन है क्या? इससे हमें कुछ ढूंढने में आसानी हो जायेगी।” जेनिथ ने शैफाली से पूछा।
“वैसे तो नेवला सर्वाहारी होता है, वह मांसाहार और शाकाहार दोनों ही करता है, पर जब भी नेवले की बात आती है, तो उसे सांप से लड़ने के लिये ही याद किया जाता है।” शैफाली ने जेनिथ से कहा- “पर यह जानने का कोई फायदा नहीं है जेनिथ दीदी...आप यहां आसपास देखिये, यहां पर कुछ भी ऐसा नहीं है, जिससे कि इस नेवले को जिंदा किया जा सके।”
तभी ऐलेक्स की आवाज ने सभी को चौंका दिया- “कैप्टेन जरा एक मिनट मेरे पास आइये।”
सुयश सहित सभी ऐलेक्स और क्रिस्टी के पास पहुंच गये- “कैप्टेन मेरे कानों में किसी चीज के रेंगने की आवाज सुनाई दे रही है और वह आवाज इस पत्थर से आ रही है, जिस पर यह नेवला बैठा हुआ है।“
ऐलेक्स की बात सुनकर सभी का ध्यान अब उस पत्थर की ओर चला गया। पत्थर में कहीं कोई छेद नहीं था।
तभी ऐलेक्स का ध्यान पत्थर के ऊपर लगी नेम प्लेट पर चला गया।
“तौफीक जरा अपना चाकू मुझे देना।” सुयश ने तौफीक से चाकू मांगा।
तौफीक ने अपनी जेब से चाकू निकालकर सुयश के हवाले कर दिया।
सुयश ने चाकू की नोंक से उस धातु के स्टीकर को पत्थर से निकाल दिया।
उस धातु के स्टीकर के पीछे एक गोल सुराख था, जैसे ही सुयश ने उस नेम प्लेट को पत्थर से निकाला, उस छेद से एक काले रंग का 5 फुट का नाग निकलकर बाहर आ गया।
सभी उस नाग को देखकर पीछे हट गए। वह नाग अब उस पत्थर पर चढ़कर नेवले के सामने जा पहुंचा।
जैसे ही नाग ने नेवले की आँखों में देखा, नेवला जीवित होकर नाग पर टूट पड़ा।
थोड़ी ही देर के बाद नेवले ने नाग के शरीर को काटकर उसे मार डाला। नाग के मरते ही उसका शरीर गायब हो गया।
अब पत्थर पर जिंदा नेवला बैठा था, जो कि इन लोगों को ही घूर रहा था।
“मेरे हिसाब से अब हमें इसका चक्कर लगाना होगा।” सुयश ने कहा।
“आप रुकिये कैप्टेन, इस बार मैं ट्राई करती हूं, आपका अभी सही रहना ज्यादा जरुरी है।” जेनिथ ने कहा।
“नहीं -नहीं...अब मुझे ही चक्कर लगाने दो। मेरे हिसाब से अब कोई परेशानी नहीं होगी।” सुयश यह कहकर क्लाक वाइज नेवले का चक्कर लगाने लगा।
पर सुयश जिस ओर भी जा रहा था, नेवला अपना चेहरा उस ओर कर ले रहा था। सुयश के 1 चक्कर पूरा करने के बाद भी कोई दरवाजा नहीं खुला।
“अब क्या परेशानी हो सकती है?” सुयश ने कहा।
“जेनिथ।” तभी नक्षत्रा ने जेनिथ को पुकारा।
“हां बोलो नक्षत्रा।” जेनिथ ने अपना ध्यान अपने दिमाग पर लगाते हुए कहा।
“सुयश को बताओ कि भौतिक विज्ञान का नियम यह कहता है कि किसी भी चीज का एक चक्कर तब पूर्ण माना जाता है जब कि चक्कर लगाने वाला या फिर जिसके परितः वह चक्कर लगा रहा है, दोनों में से
कोई एक स्थिर रहे। यहां जब भी सुयश नेवले का चक्कर लगा रहा है, वह अपना चेहरा सुयश की ओर कर ले रहा है, ऐसे में यह चक्कर पूर्ण नहीं माना जायेगा। साधारण शब्दों में सुयश को नेवले का चक्कर लगाने के लिये उसकी पीठ देखनी होगी।”
नक्षत्रा ने भौतिक विज्ञान का एक जटिल नियम आसान शब्दों में जेनिथ को समझाया, पर जेनिथ के लिये विज्ञान किसी भैंस के समान ही था, उसे नक्षत्रा की आधी बातें समझ ही नहीं आयीं।
इसलिये जेनिथ ने सुयश को सिर्फ इतना कहा- “कैप्टेन, नक्षत्रा कह रहा है कि आपको नेवले का चक्कर पूरा करने के लिये नेवले की पीठ देखनी होगी।”
सुयश नक्षत्रा की कही बात को समझ गया।
अब सुयश ने चलने की जगह दौड़कर नेवले का चक्कर लगाया, परंतु नेवले ने अपनी गति को सुयश के समान कर लिया।
“यह तो मुसीबत है।” सुयश ने कहा- “मैं अपनी गति में जितना भी परिवर्तन करुंगा, यह नेवला भी उसी गति में अपना चेहरा मेरे सामने कर ले रहा है, इस तरह तो कभी भी इसका एक चक्कर पूरा नहीं होगा।”
कुछ देर सोचने के बाद सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा- “तौफीक तुम भी आ जाओ, अब मैं थोड़ा तेज चक्कर लगाऊंगा, नेवले का चेहरा हमेशा मेरे सामने ही रहेगा, तुम भी इस पत्थर के चारो ओर धीमे-धीमे चक्कर लगाओ, इस प्रकार मेरा नहीं, बल्कि नेवले के चारो ओर तुम्हारा 1 चक्कर पूरा हो जायेगा और यह द्वार पार हो जायेगा।”
आइडिया बुरा नहीं था। सभी को अब इस द्वार के पार होने की पूरी उम्मीद हो गई थी।
परंतु जैसे ही तौफीक ने परिक्रमा स्थल पर अपना कदम रखा, नेवले ने घूरकर तौफीक को देखा।
नेवले के घूरते ही नेवले के शरीर से एक और नेवला निकलकर उस पत्थर पर दिखाई देने लगा।
अब एक का चेहरा सुयश की ओर था और दूसरे का चेहरा तौफीक की ओर था।
“बेड़ा गर्क।” शैफाली ने अपना सिर पीटते हुए कहा- “कुछ और सोचिये कैप्टेन अंकल, हम तिलिस्मा से बेइमानी नहीं कर सकते।”
सुयश अब फिर से सोच में पड़ गया।
काफी देर तक सोचने के बाद सुयश के दिमाग में एक और प्लान आया।
“तौफीक, हममें से एक को एंटी क्लाक वाइज और दूसरे को क्लाक वाइज चक्कर लगाना होगा, इस प्रकार से हममें से दोनों ही एक-एक नेवले का चक्कर पूरा कर लेंगे। अब परेशानी यह है कि जो भी एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगायेगा, उसका हाल भी ऐलेक्स और क्रिस्टी जैसा हो जायेगा, परंतु उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्यों कि तब तक तो यह द्वार भी पार हो जायेगा।” सुयश ने तौफीक की ओर देखते हुए कहा।
तौफीक ने जरा देर तक सुयश का प्लान समझा और फिर मुस्कुरा कर तैयार हो गया।
अब सुयश क्लाक वाइज और तौफीक एंटी क्लाक वाइज चक्कर लगाने लगा।
जैसे ही दोनों का 1 चक्कर पूरा हुआ, वह नेवला वहां से गायब हो गया और ऐलेक्स व क्रिस्टी भी ठीक हो कर खड़े हो गये।
जेनिथ ने संगमरमर के क्षेत्र से अपना हाथ बाहर निकाल कर देखा, अब वहां कोई करंट उपस्थित नहीं था।
यह देख सभी ऑक्टोपस की मूर्ति की ओर चल दिये।
जारी रहेगा_______![]()
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय रहस्य पुर्ण अपडेट हैं भाई मजा आ गया#152.
वेदांत रहस्यम्
(15 जनवरी 2002, मंगलवार, 15:00, ट्रांस अंटार्कटिक माउन्टेन, अंटार्कटिका)
विल्मर को सुनहरी ढाल देने के बाद शलाका ने जेम्स को वापस उसी कमरे में रुकाया और स्वयं अपने शयनकक्ष में आ गई।
शलाका ने अपने भाईयों पर नजर मारी जो कि दूसरे कमरे में थे।
शलाका ने अब अपने कमरे का द्वार अंदर से बंद कर लिया, वह नहीं चाहती थी कि वेदांत रहस्यम् पढ़ते समय कोई भी उसे डिस्टर्ब करे।
कक्ष में मौजूद अलमारी से शलाका ने वेदांत रहस्यम् निकाल ली और उसे ले अपने बिस्तर पर आ गई।
लाल रंग के जिल्द वाली, 300 पृष्ठ वाली, 5,000 वर्ष पुरानी, आर्यन के द्वारा लिखी किताब अब उसके सामने थी।
शलाका जानती थी कि इसी किताब में वह रहस्य भी दफन है कि आर्यन ने क्यों अपनी इच्छा से अपनी मौत का वरण किया? यह पुस्तक अपने अंदर सैकड़ों राज दबाये थी, इसलिये उसे खोलते समय शलाका के हाथ कांपने लगे।
शलाका ने वेदांत रहस्यम् का पहला पृष्ठ खोला।
पहले पृष्ठ पर वेदालय की फोटो बनी थी। जिसे आर्यन ने अपनी स्मृति से रेखा चित्रों के माध्यम से बनाया था। उसे देखकर एक पल में ही शलाका 5,000 वर्ष पहले की यादें अपने दिल में महसूस करने लगी।
शलाका जानती थी, कि यह किताब जादुई है, अगर उसने वेदालय की फोटो को छुआ, तो वह उस स्थान पर पहुंच जायेगी, इसलिये इच्छा होने के बाद भी शलाका ने वेदालय की फोटो को स्पर्श नहीं किया।
शलाका ने अब दूसरा पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर वेदालय की वह तस्वीर थी, जब पहली बार सभी वेदालय में प्रविष्ठ हुए थे।
उस तस्वीर में आकृति, आर्यन से चिपक कर खड़ी थी और शलाका उनसे थोड़ा दूर खड़ी थी।
कुछ देर के लिये ही सही पर यह तस्वीर देखते ही शलाका के मन में आकृति के लिये गुस्सा भर गया।
शलाका ने अब एक-एक कर पन्ने पलटने शुरु कर दिये।
आगे के लगभग 30 पेज वेदालय की अलग-अलग यादों से भरे हुए थे। पर एक पेज पलटते ही शलाका से रहा नहीं गया, उसने उस तस्वीर को छू लिया।
एक पल में ही शलाका उस तस्वीर में समाकर उस काल में पहुंच गई, जहां वह एक नदी के किनारे आर्यन के साथ अकेली थी।
आर्यन और शलाका दोनों ही इस समय xyz (chhote) वर्ष के थे।
तो आइये दोस्तों देखते हैं कि ऐसा क्या था उस फोटो में कि शलाका अपने आप को उसे छूने से रोक नहीं पायी।
वेदालय से कुछ दूरी पर एक सुंदर सी झील थी, जहां इस मौसम में बहुत से पंछी और चिड़िया उड़कर, उस स्थान पर आते थे।
इस समय जिधर नजर जा रही थी, उधर चारो ओर रंग-बिरंगे फूल, तितलियां और पंछी दिखाई दे रहे थे। ऐसे मौसम में आर्यन और शलाका उस स्थान पर बैठे थे।
“आज तो छुट्टी का दिन था फिर तुम मुझे यहां पर क्यों लाये आर्यन?” शलाका ने अपनी नन्हीं आँखों से आर्यन को देखते हुए पूछा।
“क्यों कि तुम मुझसे एक छोटी सी शर्त हार गई थी और शर्त केअनुसार एक दिन के लिये मैं जो कहूं, वो तुम्हें मानना पड़ता, तो फिर मैंने सोचा कि क्यों ना मैं तुम्हें अपनी सबसे फेवरेट जगह दिखाऊं, बस यही सोच मैं तुम्हें यहां ले आया। मुझे पता है कि अगर शर्त नहीं होती तो तुम कभी मेरे साथ नहीं आती। पर सच कहूं तो मैं तुम्हें ऐसे अकेले कमरे में बंद पड़े नहीं देख सकता। तुम पता नहीं कमरे से बाहर क्यों नहीं निकलती?”
“वो....वो मैं तुमसे बात करना चाहती हूं, तुम्हारे साथ घूमना भी चाहती हूं, पर वो आकृति हमेशा तुम्हारे साथ रहती है और वह मुझसे बहुत चिढ़ती है, बस इसी लिये मैं तुम्हारे साथ बाहर कहीं नहीं जाती।”
शलाका ने धीरे से कहा।
“कोई बात नहीं, पर आज तो आकृति मेरे साथ नहीं है...आज तुम यहां मेरे साथ खेल सकती हो।” आर्यन ने भोला सा चेहरा बनाते हुए कहा।
“ठीक है, पर तुम यहां पर आकर कौन सा खेल खेलते हो?” शलाका ने आर्यन की बातों में रुचि लेते हुए कहा।
“मैं यहां पर प्रकृति को महसूस करने वाला खेल खेलता हूं। क्या यह खेल तुम मेरे साथ खेलोगी?” आर्यन ने कहा।
“पर मुझे तो ये खेल नहीं आता। इसे कैसे खेलते हैं आर्यन?” शलाका ने कहा।
“यह खेलना बहुत आसान है...सबसे पहले हम कोई चिड़िया ले लेते हैं और उसे महसूस करते हैं।”
“चिड़िया?” शलाका को कुछ भी समझ में नहीं आया- “चिड़िया में महसूस करने वाला क्या होता है आर्यन?”
“रुको , मैं तुम्हें यह करके दिखाता हूं।” यह कहकर आर्यन ने इधर-उधर देखा।
आर्यन को कुछ दूरी पर एक नन्ही सी लाल रंग की चिड़िया उड़ती हुई दिखाई दी, आर्यन उस चिड़िया की ओर दौड़ा।
चिड़िया एक नन्हें बच्चे को अपनी ओर भागते देख, चीं-चीं कर तेजी से उड़ने लगी।
आर्यन ने कुछ देर तक चिड़िया को देखा और फिर वह चिड़िया के समान ही आवाज निकालता उस चिड़िया से अलग दिशा में दौड़ा।
चिड़िया उस नन्हें बालक को अपनी तरह बोलता देख, आर्यन के पीछे-पीछे उड़ने लगी।
अब नजारा उल्टा था, पहले चिड़िया के पीछे आर्यन था, पर अब आर्यन के पीछे चिड़िया।
सच कहें तो शलाका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, पर आर्यन के पीछे चिड़िया का भागना उसे अच्छा लग रहा था।
अब आर्यन एक जगह पर रुक गया, और अपने दोनों हाथों को फैलाकर, फिर चिड़िया की तरह बोलने लगा।
कुछ ही देर में चिड़िया आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गयी, आर्यन ने धीरे से चिड़िया के पंखों को सहलाया।
चिड़िया को आर्यन का सहलाना बहुत अच्छा लगा, वह फिर चीं-चीं कर मानो आर्यन को और ऐसा करने को कह रही थी।
आर्यन ने अब उसे कई बार सहलाया और फिर उसे लेकर शलाका के पास आ गया।
“अब अपना हाथ आगे करो शलाका।” आर्यन ने शलाका से कहा।
शलाका ने डरते-डरते अपना हाथ आगे कर दिया। आर्यन ने नन्हीं चिड़िया को शलाका के हाथों पर रख दिया।
नन्हीं चिड़िया शलाका के हाथ पर फुदक कर चीं-चीं कर रही थी।
कुछ ही देर में शलाका का डर खत्म हो गया और वह भी चिड़िया के साथ खेलने लगी।
शलाका चिड़िया से खेलने में इतना खो गई कि वह भूल गई कि आर्यन भी उसके साथ है।
“क्या अब तुम इस चिड़िया को महसूस कर पा रही हो शलाका?” आर्यन ने शलाका से पूछा।
“हां.... इस चिड़िया का धड़कता दिल, इसके खुशी से फुदकने का अहसास, इसका पंख पसार कर उड़ना, इसका मेरे हाथों पर चोंच मारना, मुझे सबकुछ महसूस हो रहा है आर्यन। सच कहूं तो यह बहुत अच्छी फीलिंग है, मैंने ऐसा पहले कभी नहीं महसूस किया।”
“यही प्रकृति है शलाका, अगर हम अपने आसपास की चीजों को दिल से महसूस करने लगें तो हम कभी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करेंगे। अकेले होकर भी कभी हम दुखी नहीं होंगे।”
आर्यन ने अब उस नन्हीं चिड़िया को चीं-चीं कर कुछ कहा और फिर उसे आसमान में उड़ा दिया।
“क्या तुम्हें पंछियों की भाषा आती है आर्यन?” शलाका ने आर्यन की आँखों में देखते हुए पूछा।
“नहीं !”
“तो फिर तुम उस चिड़िया से बात कैसे कर रहे थे?” शलाका ने हैरानी से कहा।
“किसने कहा कि मैं उससे बात कर रहा था। मैं तो बस उसे महसूस कर रहा था, पर महसूस करते-करते, वह मेरी भावनाओं को स्वयं समझ जा रही थी।” आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा।
तभी शलाका को एक फूल पर बैठी बहुत ही खूबसूरत तितली दिखाई दी, जो नीले और काले रंग की थी।
उसे देख शलाका ने उसे पकड़ लिया।
वह तितली अब शलाका की पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी।
यह देख आर्यन ने शलाका का हाथ थाम लिया और बोला- “किसी को दुख पहुंचा कर हमें खुशी कभी नहीं मिल सकती शलाका।”
आर्यन के शब्द सुन शलाका ने अपनी चुटकी खोलकर उस तितली को उड़ा दिया।
यह देख आर्यन ने अपने हाथ पसार कर अपने मुंह से एक विचित्र सी ध्वनि निकाली, ऐसा करते ही पता नहीं कहां से सैकड़ों तितलियां आकर आर्यन के हाथ पर बैठ गईं।
“एक बार तितली को तुम छूकर के देख लो, हर पंख उसका छाप दिल पर छोड़ जायेगा।”
आर्यन के शब्द समझ शलाका ने अपने हाथों की ओर देखा, जिस पर तितली का नीला और काला रंग अब भी लगा था।
तितली का रंग शलाका के हाथ पर एक छाप छोड़ गया था, पर आर्यन का रंग शलाका के दिल पर एक अमिट छाप छोड़ रहा था, वह अब महसूस कर रही थी, इस पूरे जहान को, नीले से आसमान को....और
कुछ अलग सा महसूस कराने वाले उस आर्यन को............।”
शलाका अब वापस अपने कमरे में आ गई थी, पर उन कुछ पलों ने शलाका के दिमाग में एक हलचल सी मचा दी थी।
कुछ पलों तक शलाका यूं ही बैठी रही फिर उसने एक गहरी साँस भरी और वेदांत रहस्यम् के आगे के पन्नों को पलटने लगी।
धीरे-धीरे वेदालय की सभी घटनाएं निकल गईं। इसके बाद कुछ और चित्र नजर आये, पर वह शलाका के लिये जरुरी नहीं थे, उसे तो बस अब रहस्य जानना था, इसलिये शलाका ने जल्दी-जल्दी बहुत से पृष्ठ पलट
दिये।
अब शलाका की नजर एक ऐसे पृष्ठ पर थी, जिसमें आर्यन शलाका के साथ उसके कमरे में था, पर बहुत याद करने के बाद भी शलाका को कोई ऐसी स्मृति याद नहीं आयी, यह सोच शलाका ने उस फोटो को भी छू लिया।..............
“शलाका-शलाका कहां हो तुम?” आर्यन, शलाका को आवाज देते हुए अपने घर में प्रविष्ठ हुआ- “देखो मैं वापस आ गया।” आर्यन यह कहते हुए धड़धड़ा कर अपने कमरे में प्रविष्ठ हो गया।
कमरे में शलाका एक अलमारी के पास खड़ी थी, आर्यन ने उसे देखते ही गोद में उठा लिया और उसे पूरे कमरे में नचाने लगा- “आज मेरा सपना पूरा हो गया, आज मैंने वो हासिल कर लिया, जिसकी वजह से अब हम सदियों तक साथ रह सकते हैं। अब मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता, यहां तक कि मौत भी नहीं।” यह कहकर आर्यन ने शलाका को नीचे उतार दिया।
“तुमने.... तुमने ऐसा क्या प्राप्त कर लिया आर्यन? जिससे अब तुम सदियों तक मेरे साथ रहोगे।” शलाका ने अपना चेहरा आर्यन की ओर से दूसरी ओर घुमाते हुए कहा।
“ये लो कितनी भुलक्कड़ हो यार तुम। अरे मैंने तुम्हें जाने से पहले बताया तो था कि मैं, हम दोनों के लिये ब्रह्मकलश से अमृत लेने जा रहा हूं।” आर्यन ने कहा।
“तो क्या....तो क्या तुम्हें अमृत प्राप्त हो गया?” शलाका के शब्द कांप रहे थे।
“ऐसा हो सकता है क्या कि मैं कोई चीज चाहूं और मुझे ना मिले?”
आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा- “अरे हां यार...मैंने अमृत की 2 बूंदें प्राप्त कर लीं। अब हम शादी शुदा जिंदगी बिताते हुए भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।” यह कहते हुए आर्यन ने 2 नन्हीं सुनहरी धातु की बनी शीशियां शलाका के सामने रख दीं।
“और अब हम कल सुबह नहा कर, पूजा करके इस अमृत को धारण करेंगे।” आर्यन के शब्दों में खुशी साफ झलक रही थी- “और ये तुम अपना मुंह घुमाकर क्या बात कर रही हो? मैं 3 महीने के बाद वापस आया हूं और तुम अजीब सी हरकतें कर रही हो।”
“क्या हम इसे अभी नहीं पी सकते?” शलाका ने पलटते हुए कहा- “सुबह का इंतजार करने से क्या फायदा?”
“नहीं हम इसे सुबह ही पीयेंगे।” आर्यन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा।
“तो फिर हम अभी क्या करेंगे?” शलाका ने आर्यन की ओर देखते हुए पूछा।
“ये लो ये भी कोई पूछने की बात है?” आर्यन ने हंसकर शलाका को पकड़ लिया- “अभी हम सिर्फ और सिर्फ प्यार करेंगे।”
यह कहकर आर्यन ने वहां जल रही शमा को बुझा दिया। कमरे में अब पूरा अंधेरा छा गया था। इसी के साथ शलाका वापस वेदांत रहस्यम् के पास आ गई।
पर इस समय शलाका की आँखें, उसका चेहरा और यहां तक कि उसके बाल भी अग्नि के समान प्रतीत हो रहे थे क्यों कि जिस शलाका को वह अभी आर्यन के साथ देखकर आ रही थी, वह वो नहीं थी।
शलाका ने तुरंत अपनी भावनाओं को नियंत्रण में किया, नहीं तो उसकी अग्नि शक्ति से अभी वेदांत रहस्यम् भी जल जाती।
“काश....काश इस वेदांत रहस्यम् से भूतकाल को बदला जा सकता।” शलाका ने गुर्राकर कहा और जल्दी से वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना खोल दिया।
जारी रहेगा______![]()
Androverse power dusri dunia ke shakti shali grah aur logo se juda hai, aur ye log poori Prithvi ko khatam karne ka maadda rakhte hai bhai, Sath bane rahiye, thank you very much for your wonderful review and support bhaiएक बहुत ही जबरदस्त और खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया है
ये ऐण्ड्रोवर्स पाॅवर कौनसी शक्तीशाली बला हैं और वो किस तरहा तबाही मचा सकती हैं
विद्युम्ना और बाणकेतु की शादी हो जायेगी तद पश्चात त्रिसर्पमुखी त्रिशक्ती का योग्य उपयोग कर पायेगी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
