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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Ajju Landwalia

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#159.

चैपटर-6
चींटीयों का संसार-
1
(तिलिस्मा 3.11)

सुयश सहित सभी तिलिस्मा के द्वार संख्या 3.1 में पहुंच गये, पर वहां का नजारा देख सभी के हाथ पैर कांप गये।

वह एक बहुत बड़ा खोखले पहाड़ का हिस्सा था, जिसमें चींटीयों का एक अद्भुत संसार बहुत दूर तक फैला हुआ था।

“बाप रे बाप! ये तो चींटीयों की दुनिया लग रही है।” ऐलेक्स ने आश्चर्य से भरकर, चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए कहा- ”पर भलाई यही है कि यहां सभी कुछ अभी तक निष्क्रिय है।”

“यहां पर बहुत सी अनोखी चीजें हैं, इसलिये बिना समझे कोई भी, कुछ भी नहीं छुएगा।” सुयश ने कहा- “पहले सारी चीजों को ध्यान से देखना जरुरी है, तभी हम सही दिमाग लगा कर सही चीजों का चयन कर पायेंगे।”

सुयश की बात सुन सभी ने सहमति से सिर हिलाया। अब सभी घूमकर पहले सारी चीजें देखने लगे।

सबसे पहले सबकी निगाह, पहाड़ के बीचो बीच स्थित एक 15 फुट ऊंची चींटी की मूर्ति पर गई।

वह चींटी लाल रंग की थी। ओर उसके पंख भी थे। उसके एक हाथ में एक बड़ा सा सुनहरा भाला और दूसरे हाथ में एक छोटा सा लकड़ी का यंत्र था।

वह लकड़ी का यंत्र किसी रिमोट की भांति प्रतीत हो रहा था।

उस लकड़ी के यंत्र पर एक छोटा सा हैण्डिल लगा था, जो किसी जॉयस्टिक की भांति प्रतीत हो रहा था।

उस लकड़ी के यंत्र पर 1 नारंगी रंग का बटन लगा था। (जॉयस्टिक एक प्रकार का हैंडल होता है, जिसे किसी भी दिशा में घुमाकर, गेम को नियंत्रित किया जाता है) उस लकड़ी के यंत्र पर एक छोटी सी काँच की स्क्रीन भी लगी थी।

“यह कोई योद्धा चींटी लग रही है?” तौफीक ने कहा- “पर इस मायाजाल से बचने के लिये, हममें से किसी के पास चींटीयों की जानकारी होना बहुत जरुरी है।”

“मुझे चींटीयों की सारी जानकारी है तौफीक अंकल” शैफाली ने कहा- “मुझे तो लगता है कि कैश्वर ने हम सभी के लिये इन दरवाजों का निर्माण किया है। जिस प्रकार पहला द्वार जेनिथ दीदी की विशेषताओं को
देखकर बनाया गया था, ठीक उसी प्रकार यह द्वार मेरी विशेषताओं को देखकर बन या गया है।

"क्यों कि मुझे चींटीयों के बारे में लगभग सभी कुछ पता है। जैसे कि यह रानी चींटी है। यह दूसरी सभी चींटीयों में सबसे बड़ी होती है। यही चींटीयों की इस कॉलोनी का प्रतिनिधित्व करती है। अंडे सिर्फ रानी चींटी ही देती है और यह एक अविश्वसनीय योद्धा होती है, रानी चींटी अपने मरने तक युद्ध करती है और इसके मरने के कुछ दिनों के बाद इसकी कॉलोनी भी खत्म हो जाती है।”

“पर इसके हाथ में यह रिमोट कैसा है?” क्रिस्टी ने पूछा।

“शायद इस रिमोट के माध्यम से यह बाकी की चींटीयों को नियंत्रित करती हो?” जेनिथ ने कहा।

“चलो आगे देखते हैं कि और क्या है, फिर आगे के बारे में सोचेंगे।” सुयश यह कहकर आगे बढ़ गया।

आगे इन्हें 3 बड़े आयताकार कंटेनर रखे दिखाई दिये, जिनका आकार लगभग 20 फुट के आसपास था।

पहले कंटेनर में कोई दरवाजा नहीं था, वह पूरी तरह से बंद था। यह देख सभी दूसरे कंटेनर की ओर बढ़ गये।

दूसरे कंटेनर का दरवाजा खोलने पर उसमें बहुत सी लाल और नीली गेंद रखी हुई दिखाई दीं।

लाल गेंदें थोड़ी चिपचिपी थीं और नीली गेंद से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी।

तीसरे कंटेनर में बहुत सी नारंगी रंग की चीटींयां भरीं थीं। सभी चींटीयों का आकार 4 से 5 फुट के बीच था।

सभी चींटीयां निष्क्रिय थीं। उनमें कोई गति नहीं थी। लग रहा था कि जैसे वह सभी सो रही हों।

“यह सभी नारंगी रंग की चींटीयां ‘रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां’ हैं। यह श्रृमिक चींटीयां होती हैं।” शैफाली ने फिर सबको बताते हुए कहा- “इनका कार्य सभी चींटीयों का काम आसान करना होता है।“

सभी को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे सभी लोग कोई म्यूजियम देखने आये हैं और शैफाली उस म्यूजियम की गाइड हो।

बहरहाल अभी म्यूजियम खत्म नहीं हुआ था, इसलिये सभी फिर से शैफाली के साथ आगे बढ़ गये।

आगे एक 20 फुट ऊंचा दरवाजा बना था, जिस पर 4 ‘की-होल’ बने थे।

“मुझे लगता है कि यह दरवाजा ही इस मायाजाल से बाहर निकलने का रास्ता है और इस पर बने यह 4 की-होल बताते हैं कि यहां पर कहीं ना कहीं 4 चाबियां छिपी हुई हैं। हमें उन चाबियों को प्राप्त कर, इस द्वार के द्वारा बाहर निकलना होगा।” सुयश ने कहा।

सभी को सुयश का तर्क सही लगा।

“यानि कि हमारा पहला कार्य उन 4 चाबियों को ढूंढना है।” जेनिथ ने कहा।

अब सभी की नजर आगे की ओर गई। आगे सभी को एक 25 फुट चौड़ी नदी दिखाई दी, जिसके दूसरी ओर एक 20 फुट ऊंची चाबी की मूर्ति बनी थी।

उस चाबी की मूर्ति के बगल में, एक 10 फुट ऊंची लाल रंग की चींटी घूम रही थी।

“1 चाबी तो नदी के उस पार दिख रही है, पर उसकी रक्षा कोई चींटी कर रही है।” सुयश ने कहा।

“पर कैप्टेन, वह तो चाबी की 20 फुट ऊंची मूर्ति है, वह थोड़ी ना लगेगी इस दरवाजे में।” क्रिस्टी ने कहा।

“वह मूर्ति ऐसे ही तो नहीं बनायी गयी होगी, अगर वह दरवाजे में लगने वाली चाबी नहीं है, तो भी मैं दावे के कह सकता हूं कि एक चाबी वहीं है, नहीं तो वह चींटी वहां किस चीज की रक्षा कर रही है?” सुयश ने
अपने दाहिने हाथ का मुक्का बना कर, बांये हाथ के पंजे पर मारते हुए कहा।

“कैप्टेन अंकल सही कह रहे हैं।” शैफाली ने सुयश की बात पर अपनी सहमति जताते हुए कहा- “पर अब तो नदी पार करने के बाद ही पता चलेगा कि वहां पर कोई चाबी है कि नहीं?...पर शायद आप लोग नदी के उस पार मौजूद चींटी की गति को नहीं देख रहे, वह ‘ब्लैक गार्डन चींटी’ है, जो काफी ज्यादा फुर्तीली होती है। अगर हममें से को ई उस पार पहुंच भी गया, तो उस चींटी से नहीं बच पायेगा।”

“मैं उससे बच सकती हूं।” क्रिस्टी ने कहा- “पर उसे मारे बिना चाबी को नहीं ढूंढा जा सकता और उस चींटी को मारने के लिये मेरे पास कोई हथियार नहीं है।”

“हथियार है।” तौफीक ने कहा- “रानी चींटी के हाथ में मौजूद भाले से उस चींटी को मारा जा सकता है। पर पता नहीं भाले को छूते ही कहीं रा नी चींटी ना जिंदा हो जाये?”

“यह रिस्क तो लेना ही पड़ेगा।” सुयश ने कहा और चलते हुए रानी चींटी के पास पहुंच गया।

सुयश ने हाथ आगे बढ़ा कर रानी चींटी का भाला पकड़ लिया।

सभी पूरी तरह से किसी भी नयी घटना के लिये सावधान थे।

सुयश ने एक झटके से रानी चींटी के हाथ से वह भाला खींच लिया, पर किसी प्रकार की कोई घटना नहीं घटी। यह देख सबने राहत की साँस ली।

सुयश ने वह भाला क्रिस्टी को पकड़ा दिया। क्रिस्टी हाथ में भाला ले नदी की ओर बढ़ गयी, पर क्रिस्टी ने जैसे ही नदी के पानी की ओर, अपने कदम को बढाया, वह हैरान हो गई।

“कैप्टेन, मैं नदी के उस पार नहीं जा पा रही, इस नदी पर कोई अदृश्य दीवार है।” क्रिस्टी ने सुयश को देखते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन सभी ने एक-एक कर उस नदी के दूसरी ओर जाने की कोशिश की, पर सब व्यर्थ। अदृश्य दीवार के कारण उस पार जाना संभव नहीं था।

“अब तो 2 ही बातें हो सकती हैं।” जेनिथ ने कहा- “या तो इस अदृश्य दीवार को हटाने के लिये यहां पर कुछ होगा? या फिर नदी पार की चाबी प्राप्त करने का कोई और तरीका होगा?”

“हमें एक बार फिर यहां की सारी चीजों पर ध्यान देना होगा।” सुयश ने कहा।

“नहीं रुक जाइये कैप्टेन अंकल।” तभी शैफाली ने सुयश को रोक दिया।

सुयश प्रश्न भरी नजरों से शैफाली को देखने लगा, पर शैफाली ने सुयश को कोई जवाब नहीं दिया, वह तेजी से कुछ सोच रही थी।

सुयश समझ गया कि शैफाली कुछ सोच रही है, इसलिये वह शांत होकर शैफाली के अगले शब्दों का इंतजार करने लगा।

कुछ देर सोचने के बाद शैफाली बोल उठी- “कैप्टेन अंकल, अगर हमने रानी चींटी का भाला निकाला और कुछ भी नहीं हुआ, तो इससे ये बात तो साबित हो गयी कि रानी चींटी के हाथ में पकड़ा रिमोट जैसा यंत्र भी हमारे लिये ही बना है। अब बात यह है कि हम उस रिमोट से क्या कर सकते हैं? तो अगर वह रिमोट है और हम इस समय चींटीयों के संसार में खड़े हैं, तो जरुर हम उससे चींटीयों को ही नियंत्रित कर सकते होंगे?....अब आते हैं तीसरे कंटेनर में मौजूद उन निष्क्रिय चींटीयों पर....उनमें से नारंगी रंग वाली ‘रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां’ दुनिया में सिर्फ अमेजन के जंगलों में ही पायी जाती है।

"उस चींटी की खास बात उनकी एकता है। वह चींटींयां नदी को पार करने के लिये आपस में जुड़कर एक शक्तिशाली बेड़ा बनाती हैं, जिससे होकर सभी चींटींयां आसानी से नदी पार कर जाती हैं। तो मुझे लग रहा है कि हमें नदी के उस पार जाने के लिये उन्हीं चींटीयों से नदी पर एक पुल बनवाना होगा।”

शैफाली की बात सुन सभी की आँखें चमक उठीं।

ऐलेक्स ने सुयश से इजाजत ले रानी चींटी के हाथ से वह रिमोट निकाल लिया।

“चूंकि तीसरे कंटेनर में भी नारंगी चींटीयां हैं और इस रिमोट पर भी नारंगी रंग का बटन है, इसलिये मुझे लगता है कि यह रिमोट उन्हीं रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को नियंत्रित करने के लिये बनाया गया है।” ऐलेक्स ने कहा- “क्या मैं इसका नारंगी बटन दबाऊं कैप्टेन?”

ऐलेक्स की बात सुन सुयश ने इजाजत दे दी।

ऐलेक्स ने नारंगी रंग के बटन को दबाया, पर बटन दबाने से रेनफॉरेस्ट फायर चींटीयों पर कोई असर नहीं हुआ। यह देख ऐलेक्स, शैफाली की ओर देखने लगा।

“मुझे लगता है कि इस रिमोट से उन चींटीयों को नियंत्रित करने से पहले उन चींटीयों को सक्रिय करना जरुरी है।” शैफाली ने कहा और फिर सोच में पड़ गयी।

कुछ सोचने के बाद शैफाली फिर बोल उठी- “कैप्टेन अंकल हो ना हो अब दूसरे कंटेनर में रखी उन लाल और नीली गेंद का भी कहीं प्रयोग अवश्य होगा? तौफीक अंकल आप जरा उस कंटेनर से दोनों रंग की एक-एक गेंद बाहर ले आइये।”

शैफाली की बात सुनकर, तौफीक दूसरे कंटेनर से, दोनों रंग की एक-एक गेंद उठा लाया और शैफाली के हवाले कर दिया।

शैफाली ने पहले दोनों गेंद को ध्यान से देखा और फिर उसमें से निकलती खुशबू को सूंघने लगी।

कुछ देर के बाद शैफाली बोल उठी- “मुझे इस नीली गेंद से कुछ खाने जैसी खुशबू आ रही है....मुझे लगता है कि यह अवश्य ही चींटीयों का खाना है।....कैप्टेन अंकल एक बार हमें इस नीली गेंद को रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों के पास रखकर देखना चाहिये, शायद इसको खाने के लिये वह सक्रिय हो जायें?”

सुयश ने शैफाली के हाथ से उस नीली गेंद को लिया और दूसरे कंटेनर में मौजूद एक रेन फॉरेस्ट फायर चींटी के सामने रख दिया।

शैफाली का सोचना बिल्कुल सही था।

नीली गेंद के सामने रखते ही वह रेन फॉरेस्ट फायर चींटी सजीव होकर उसे खाने लगी और इसी के साथ रिमोट का नारंगी रंग का बटन जलने लगा।

“कैप्टेन इस रिमोट का नारंगी बटन ऑन हो गया।” ऐलेक्स ने खुशी से चीखते हुए कहा।

यह सुनकर सुयश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।

अब सुयश ने तौफीक की ओर इशारा किया। सुयश का इशारा पाकर तौफीक भी सुयश के साथ दूसरे कंटेनर में घुस गया और अपने हाथों से नीली गेंदें निकालकर जेनिथ और क्रिस्टी को पकड़ाने लगा।

जेनिथ और क्रिस्टी ने उन नीली गेंदों को, सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को खिला दिया।

अब सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां सक्रिय हो गईं।

ऐलेक्स ने रिमोट पर मौजूद हैण्डिल को इधर-उधर घुमाकर देखा।

अब ऐलेक्स हैण्डिल को जिस दिशा में घुमा रहा था, सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां उस दिशा की ओर जा रहीं थीं और ऐलेक्स को वह सभी चींटीयां रिमोट पर मौजूद स्क्रीन पर नजर आ रहीं थीं।

यह देख ऐलेक्स सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों को नदी के पास ले गया और फिर उसने नारंगी बटन को दबा दिया।

नारंगी बटन को दबाते ही, सभी चींटीयों ने नदी पर पुल बनाना शुरु कर दिया।

पुल बनते देख सभी खुश हो गये। आखिरकार शैफाली ने अपने दिमाग का लोहा एक बार फिर सबको मनवा दिया था।

कुछ ही देर में रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों ने नदी पर पुल बना दिया। यह देख क्रिस्टी ने भाले को अपने हाथों में पकड़ा और धीरे से उस पुल पर चढ़ गयी।

क्रिस्टी ने सबसे पहले पुल पर थोड़ा उछलकर उसकी मजबूती का जायजा लिया और फिर सधे कदमों से नदी के दूसरी ओर चल दी।

क्रिस्टी को नदी के उस पार आता देख, ब्लैक गार्डन चींटी और तेज-तेज चाबी की मूर्ति के आस-पास चक्कर लगाने लगी।

क्रिस्टी की नजरें भी सावधानी वश, ब्लैक गार्डन चींटी की ही ओर थी।

क्रिस्टी ने जैसे ही अपने कदम नदी के उस पार रखे, ब्लैक गार्डन चींटी ने उस पर हमला कर दिया, पर क्रिस्टी सावधान थी, उसने उछलकर
स्वयं को बचाया और फिर ब्लैक गार्डन चींटी से कुछ दूर चली गई।

क्रिस्टी ब्लैक गार्डन चींटी पर हमला करने से पहले उसकी गति को ध्यान से देख रही थी।

ब्लैक गार्डन चींटी ने फिर से पलटकर क्रिस्टी पर हमला किया, क्रिस्टी ने फिर से स्वयं को बचाया, पर इस पर बार क्रिस्टी ने अपने भाले से ब्लैक गार्डन चींटी के शरीर पर एक जख्म बना दिया।

ब्लैक गार्डन चींटी दर्द से बिलबिला उठी, वह पलटकर और तेजी से क्रिस्टी पर हमलावर हो गई, पर वह क्रिस्टी थी, जिसने रेत मानव को भी मौका नहीं दिया था, फिर इस ब्लैक गार्डन चींटी की बिसात ही क्या थी।

कुछ ही देर के बाद क्रिस्टी ने चींटी को मार गिराया।

ऐलेक्स ने ब्लैक गार्डन चींटी को मरते देख नदी के इस पार से ही, जोर की सीटी बजाकर क्रिस्टी का उत्साह बढ़ाया।

क्रिस्टी ने मुस्कुरा कर ऐलेक्स को एक बार देखा और फिर उस चाबी की मूर्ति के पास असली चाबी ढूंढने लगी।

कुछ ही देर में क्रिस्टी के तेज आँखों ने असली चाबी को उस मूर्ति के पीछे की ओर चिपके देख लिया।

क्रिस्टी ने उस चाबी को निकालकर खुशी से सबकी ओर हवा में लहराया। क्रिस्टी के हाथ में चाबी देख सभी खुश हो गये।

क्रिस्टी वह चाबी लेकर नदी के इस पार वापस आ गयी।

क्रिस्टी के इस पार आते ही सभी रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयां अपने आप गायब हो गईं और इसी के साथ रिमोट पर मौजूद नारंगी बटन भी गायब हो गया।

“लगता है रेन फॉरेस्ट फायर चींटीयों का काम अब खत्म हो गया था, इसलिये वह सभी गायब हो गईं।” सुयश ने कहा।

क्रिस्टी ने आगे बढ़कर दरवाजे में पहली चाबी लगाकर घुमा दिया, वातावरण में एक जोर की गड़गड़ाहट उभरी, पर वह द्वार नहीं खुला।

“अब हमें दूसरी चाबी ढूंढनी पड़ेगी।” सुयश ने कहा- “वह भी यहीं कहीं होनी चाहिये?” तभी ऐलेक्स की आवाज ने सभी का ध्यान, उसकी ओर आकृष्ट कर दिया।

“कैप्टेन अब इस रिमोट पर अपने आप नीले रंग का एक बटन नजर आने लगा है।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

“इसका मतलब अब कहीं दूसरी चींटीयां भी हैं और हमें इस रिमोट के द्वारा उन चींटीयों को भी नियंत्रित करना होगा।” शैफाली ने कहा।

शैफाली की बात सुन सभी अपने चारो ओर देखने लगे।

“कैप्टेन, तीसरे कंटेनर में अब नीली चींटीयां नजर आ रही हैं।” तौफीक की आवाज सुन सभी एक बार फिर उस तीसरे कंटेनर के पास आ गये।

“ये ‘लीफ कटर चींटीयां’ हैं, इनकी विशेषता पानी के अंदर ज्यादा सक्रिय होना है।” शैफाली ने उन नीली चींटीयों को देखते हुए कहा।

“कहीं दूसरी चाबी नदी के अंदर तो नहीं?” जेनिथ ने सबका ध्यान नदी की ओर किया।

“शायद जेनिथ सही कह रही है, क्यों कि हम पानी के अंदर नहीं जा सकते, इसलिये दूसरी चाबी अवश्य ही पानी के अंदर ही है।” शैफाली ने कहा- “मुझे लगता है कि इन लीफ कटर चींटीयों को भी वही नीली गेंदे
खिलाकर सक्रिय करना होगा।”

सभी ने तुरंत नीली गेंदें खिलाकर लीफ कटर चींटीयों को भी सक्रिय कर दिया।

उन चींटीयों के सक्रिय होते ही ऐलेक्स के हाथ में मौजूद रिमोट का नीला बटन भी ऑन हो गया और उस पर लगी स्क्रीन पर सभी लीफ कटर चींटीयां दिखाई देने लगीं।

इसके आगे का काम ऐलेक्स को पता था, वह सभी लीफ कटर चींटीयों को नियंत्रित कर पानी के अंदर लेकर चला गया।

ऐलेक्स को पानी के अंदर का दृश्य स्क्रीन पर नजर आ रहा था।

तभी ऐलेक्स को पानी के अंदर दूसरी चाबी दिखाई दी, परंतु उस चाबी की रक्षा भी एक बड़ी सी लाल रंग की चींटी कर रही थी, जिसने लीफ कटर चींटीयों पर हमला कर, उन्हें मारना शुरु कर दिया।

यह देख ऐलेक्स ने बाकी बची लीफ कटर चींटीयों को वहां से हटा लिया।

“पानी के अंदर मौजूद चींटी ‘आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी’ है, वह लीफ कटर चींटीयों को आसानी से मार सकती है।” शैफाली ने रिमोट की स्क्रीन में देखते हुए कहा- “अब मुसीबत हो गयी। क्यों कि हममें से कोई भी पानी के अंदर जा नहीं सकता और लीफ कटर चींटीयां उस आस्ट्रेलियन बुलडॉग चींटी को मार नहीं सकतीं। अब क्या किया जाये?”

यह सुनकर सभी के चेहरे मुर्झा गये।

सुयश ने सभी के मुर्झाये चेहरे को देख उनमें जोश भरते हुए कहा- “दोस्तों हमें हार नहीं माननी चाहिये, अगर यह मुश्किल हमारे सामने है, तो इसका हल भी यहीं पर मौजूद होगा। हमें सिर्फ शांत भाव से उस उपाय को ढूंढने की जरुरत है और मुझे लगता है कि यह उपाय शैफाली हम सभी से ज्यादा बेहतर तरीके से ढूंढ सकती है।”

सुयश के शब्द सुन शैफाली में एक नयी ऊर्जा का संचार हो गया और वह शांत भाव से फिर से सारी चीजों के बारे में सोचने लगी।



जारी रहेगा______✍️

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai

Shefali ka dimag aur Christie ki furti ne aadha rasta to paar kar liye he........

Lekin abhi is bulldog chinti se bachna aur chabi lana baaki he.......

Keep rocking Bro
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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Lekin abhi is bulldog chinti se bachna aur chabi lana baaki he.......

Keep rocking Bro
Bilkul mitra, utna hi nahi or bhi baaki hai 😎 and aaj meri doosri story ka update bhi aa gaya hai to usper bhi najar maarna. Thank you so much for your valuable review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

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#160.

स्वप्नतरु:
(18 वर्ष पहले........जनवरी 1977, सामरा राज्य की पर्वत श्रृंखला)

“युगाका और वेगा ! आज तुम दोनों को, सामरा राज्य की परंपरा के हिसाब से, पूरा दिन महावृक्ष के पास ही व्यतीत करना होगा।” कलाट ने वेगा और युगाका को देखते हुए कहा- “बच्चों, ये ध्यान रखना कि इस परंपरा की शुरुआत हमारे पूर्वजों ने की थी, इसीलिये हम आज भी इसे निभा रहे हैं, पर आज का यह दिन तुम्हारे पूरे भविष्य का निर्धारण करेगा। इसलिये आज के इस दिन का सदुपयोग करना और महावृक्ष से जो कुछ भी सीखने को मिले, उसे मन लगा कर सीखना।”

“क्या बाबा, आप भी हमें पूरे दिन के लिये एक वृक्ष के पास छोड़कर जा रहे हैं।” युगाका ने मुंह बनाते हुए कहा- “यहां पर तो कुछ भी खेलने को नहीं है...अब हम क्या इस वृक्ष की पत्तियों के साथ खेलेंगे?”

“ऐसा नहीं कहते भाई, वृक्ष को बुरा लगेगा।” वेगा ने विशाल महावृक्ष को देखते हुए कहा।

“हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ! अरे बुद्धू, कहीं वृक्ष को भी बुरा लगता है।” युगाका ने वेगा पर हंसते हुए कहा- “तुम्हें तो बिल्कुल भी समझ नहीं है।”

कलाट ने मुस्कुराकर वेगा की ओर देखा और फिर महावृक्ष को प्रणाम कर उस स्थान से चला गया।

“बाबा तो गये, अब तू बता मेरे साथ खेलेगा कि नहीं?” युगाका ने वेगा को पकड़ते हुए कहा।

“पर भाई, हम तो यहां पर महावृक्ष से कुछ सीखने आये हैं, खेलने थोड़ी ना।” वेगा ने मासूमियत से जवाब दिया।

“सोच ले, अगर तू मेरे सा थ नहीं खेलेगा, तो मैं तुझे पीटूंगा और देख ले आज तो यहां तुझे कोई बचाने वाला भी नहीं है?” युगाका ने वेगा को डराते हुए कहा।

युगाका की बात सुन नन्हा वेगा सच में बहुत डर गया- “हां...हां खेलूंगा, पर यहां पर खेलने की कोई वस्तु तो है ही नहीं? फिर हम यहां कौन सा खेल खेलेंगे?” वेगा ने कहा।

“हम यहां पर लुका-छिपी खेलेंगे। उसके लिये हमें किसी चीज की जरुरत नहीं है और छिपने के लिये तो यहां पर बहुत से स्थान हैं।” युगाका ने वेगा को चारो ओर का क्षेत्र दिखाते हुए कहा।

“ठीक है भाई, पर पहली बार मैं छिपूंगा।” वेगा ने अपनी भोली जुबान से कहा।

“ठीक है, तो मैं 100 तक गिनती गिन कर आता हूं, तब तक तुम छिप जाओ, पर ध्यान रखना, यहां से दूर मत जाना।” युगाका ने अपने छोटे भाई के प्रति चिंता जताते हुए कहा।

युगाका की बात सुन वेगा ने हां में अपना सिर हिला दिया। युगाका अब कुछ दूरी पर जाकर, अपना मुंह घुमा जोर-जोर से गिनती गिनने लगा, इधर वेगा की निगाह चारो ओर छिपने की जगह ढूंढने लगी।

तभी वेगा को महावृक्ष के तने में एक बड़ी सी कोटर दिखाई दी, वह जल्दी-जल्दी उस कोटर में घुस गया।

“यह कोटर अभी तो यहां पर नहीं थी, यह इतनी जल्दी कैसे उत्पन्न हो गई?” वेगा ने अपने मन में कहा- “पर जो भी हो भाई, मुझे यहां आसानी से ढूंढ नहीं पायेंगे।”

तभी वेगा के देखते ही देखते उस कोटर का मुंह अपने आप बंद हो गया।

यह देख नन्हा वेगा घबरा गया। अब कोटर में धुप्प अंधेरा छा गया था।

तभी वेगा को एक बड़ा सा जुगनू कोटर के अंदर उड़ता हुआ दिखाई दिया। उत्सुकतावश वेगा उस टिमटिमाते जुगनू के पीछे-पीछे चल दिया।

उधीरे-धीरे वृक्ष का आकार अंदर से बड़ा होता जा रहा था।

तभी वेगा को वृक्ष के अंदर कुछ और जुगनू उड़ते हुए दिखाई दिये। उन सभी जुगनुओं से निकल रही रोशनी से, वह पूरा वृक्ष रोशन हो गया था।

उसी समय वेगा को वहां एक छोटा सा घोड़ों का रथ दिखाई दिया, जिस पर एक सैंटाक्लॉस की तरह का बूढ़ा बैठा था।

“मेरा नाम टोबो है बच्चे। क्या तुम मेरे साथ घूमने चलोगे?” टोबो ने कहा।

वेगा, टोबो की बातें सुनकर एक पल के लिये यह भी भूल गया कि उस वृक्ष में यह विचित्र दुनिया आयी कहां से?

“आप मुझे कहां घुमाओगे?” वेगा ने टोबो से पूछा।

“अरे यह महा वृक्ष की दुनिया बहुत बड़ी है। मैं तुम्हें इसमें सितारों के पास ले जा सकता हूं, मैं तुम्हें इसमें बोलने वाली नदी दिखा सकता हूं, सतरगा घोड़ा, जलपरी...किताबों की दुनिया....बहुत कुछ है इसमें
दिखाने को। तुम बताओ बच्चे, तुम क्या देखना चाहते हो इसमें?” टोबो ने नन्हें बच्चे को सपने दिखाते हुए कहा।

“क्या बताया आपने किताबों की दुनिया?...हां मुझे किताबों की दुनिया देखना है।” वेगा ने कहा।

इतनी सारी चीजों में वेगा ने उस चीज का चयन किया, जिसका चयन किसी भी बच्चे के लिये असंभव था।

“तो फिर ठीक है बच्चे, आओ मेरी घोड़ा गाड़ी में बैठ जाओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं, इस ब्रह्मांड की सबसे बड़ी किताबों की दुनिया।” टोबो यह कहकर घोड़ा गाड़ी से उतरा और सहारा देकर वेगा को घोड़ा गाड़ी में बैठा दिया।

घोड़ा गाड़ी में एक नर्म सी सीट लगी थी, वेगा उसी पर आराम से बैठ गया।

वेगा को बैठते देख टोबो ने घोड़ा गाड़ी को आगे बढ़ा दिया।

“तुम्हारा नाम क्या है बच्चे?” टोबो ने वेगा से पूछा।

“मेरा नाम वेगा है।” वेगा ने चारो ओर के दृश्यों को देखते हुए कहा।

“वेगा.....वेगा का मतलब तेज होता है। तो फिर हम इतना धीमा क्यों जा रहे हैं?” यह कहकर टोबो ने घोड़ा गाड़ी की गति और बढ़ा दी।

घोड़ा गाड़ी अब किसी जंगल से होकर गुजर रही थी। घोड़ा गाड़ी की तेज गति के कारण वेगा को ठण्डी हवा के झोंके अपने चेहरे पर महसूस हो रहे थे।

वेगा जंगल में घूम रहे अनेक जीवों को ध्यान से देख रहा था।

कुछ देर के बाद वेगा को सामने समुद्र दिखाई दिया, यह देख वेगा ने चिल्ला कर कहा- “टोबो, सामने समुद्र है, घोड़ा गाड़ी को रोक लो।”

“चिंता मत करो वेगा, यह समुद्र हमारी घोड़ा गाड़ी को नहीं रोक सकता।“ यह कहते हुए टोबो ने घोड़ा गाड़ी को समुद्र के अंदर घुसा दिया।

समुद्र के अंदर पहुंचते ही घोड़ा गाड़ी का वह भाग जिसमें वेगा बैठा था, उसके चारो ओर, एक काँच की एक पारदर्शी दीवार बन गई।

वेगा उस पारदर्शी दीवार से पानी में घूम रही मछलियों को तैरते हुए देख रहा था, यह सब उसके लिये एक सपने की तरह से था।

तभी 4 डॉल्फिन मछलियां घोड़ा गाड़ी के साथ-साथ तैरने लगीं। बहुत ही अभूतपूर्व दृश्य था।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आ गई। जिस जगह पर घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आयी थी, उस जगह पर जमीन पर एक बड़ा सा इंद्रधनुष बना था।

समुद्र के बाहर आते ही घोड़ा गाड़ी की काँच की दीवार स्वतः गायब हो गई।

घोड़ा गाड़ी अब उस इंद्रधनुष पर चढ़ गई।

वेगा ने देखा कि बहुत सी परियां इंद्रधनुध के रंगों को पेंट-ब्रश की कूची से रंग रहीं थीं।

परियों ने वेगा को देखकर इस प्रकार अपना हाथ हिलाया, जैसे कि वह उसे पहले से जानती हों।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी इंद्रधनुष से उतरकर, एक बहुत ही खूबसूरत शहर में प्रविष्ठ हो गई।

यह शहर पुराने जमाने के किसी बड़े शहर सा प्रतीत हो रहा था।

घोड़ा गाड़ी अब साधारण तरीके से सड़क पर चल रही थी। सड़क पर चारो ओर बहुत से आदमी घूम रहे थे।

चारो ओर फुटपाथ पर दुकानें सजी थीं और घूमते हुए लोग उन दुकानों से खरीदारी कर रहे थे।

कुछ देर ऐसे ही सड़कों पर घूमने के बाद टोबो ने घोड़ा गाड़ी को एक बड़ी से भवन के बाहर रोक लिया।

उस भवन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- “किताब घर”

टोबो ने को चवान की जगह से उतरकर, वेगा को पिछली सीट से उतारा- “वेगा, यह है किताबों की दुनिया ...तुम यहां अंदर जा सकते हो। याद रखना किताब को पढ़ने के बाद, तुम सीधे बाहर आ जाना, मैं बाहर ही तुम्हारा इंतजार करुंगा।”

“ठीक है टोबो।” यह कहकर वेगा किताब घर के द्वार की ओर चल दिया।

वेगा को देख दरबान ने किताब घर के विशाल द्वार को खोल दिया। वेगा उस खुले द्वार से अंदर प्रविष्ठ हो गया।

अंदर पहुंचते ही वेगा की आँखें फटी की फटी रह गई।

अंदर से किताब घर बहुत बड़ा था। वहां चारो ओर किताबें ही किताबें दिखाई दे रहीं थीं।

तभी एक लाइब्रेरियन वेगा के सामने आकर खड़ा हो गया- “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं छोटे मास्टर?”

पर लाइब्रेरियन पर नजर पड़ते ही वेगा हैरान हो गया, उस लाइब्रेरियन की शक्ल हूबहू टोबो से मिल रही थी।

“आप तो टोबो हो।” वेगा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“नहीं , मैं टोबो नहीं हूं, बस मेरी शक्ल टोबो से मिलती है।” लाइब्रेरियन ने कहा।

“क्या आप दोनों जुड़वा भाई हो?” वेगा ने भोलेपन से पूछा।

“नहीं, ना तो हम जुड़वां है और ना ही एक दूसरे को जानते हैं....छोटे मास्टर...लगता है कि आप पहली बार ‘स्वप्नतरु’ की दुनिया में आये हैं?” लाइब्रेरियन ने कहा।

“ये स्वप्नतरु क्या है?” वेगा की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।

“स्वप्न का अर्थ होता है सपने और तरु का अर्थ होता है वृक्ष। अर्थात महावृक्ष हमें जो सपने दिखाता है, उस सपनों की दुनिया को स्वप्नतरु कहतें हैं।” लाइब्रेरियन ने वेगा को समझाते हुए कहा।

“तो क्या महावृक्ष मुझे सपना दिखा रहे हैं?” वेगा के दिमाग में सवालों का पिटारा था, जो कि खुलता ही जा रहा था।

“नहीं, यह सपना नहीं है, पर महावृक्ष ने इस दुनिया को अपनी शक्ति से स्वप्न का आकार दिया है, इस दुनिया पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। महावृक्ष का कहना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, इसलिये सीखते वक्त, समय का रुक जाना ही बेहतर है।”

लाइब्रेरियन ने कहा- “पर यह सब तुम अभी नहीं समझोगे वेगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। धीरे-धीरे तुम सारी चीजों को समझ जाओगे।”

लाइब्रेरियन के शब्द वेगा की समझ में नहीं आ रहे थे। इसलिये वेगा ने विषय को बदलते हुए पूछा- “यहां पर कौन-कौन सी किताबें हैं?”

“हां, यह हुई ना काम वाली बात। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि यहां पर क्या-क्या है?” यह कह लाइब्रेरियन एक दिशा की ओर चल दिया।

वेगा लाइब्रेरियन के पीछे-पीछे चल दिया।

लाइब्रेरियन वेगा को लेकर एक अजीब सी कुर्सी के पास पहुंचा, उस कुर्सी पर एक धातु का हेलमेट रखा था और उस हेलमेट से निकले कुछ तार कुर्सी के सामने मौजूद एक स्क्रीन के साथ जुड़े हुए थे।

लाइब्रेरियन ने वेगा को उस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

वेगा के उस कुर्सी पर बैठते ही लाइब्रेरियन ने वेगा को हेलमेट पहना दिया।

अब वेगा के सामने वाली स्क्रीन पर कुछ अजीब सी सुनहरी लाइनें दिखाई देने लगीं।

कुछ देर के बाद स्क्रीन से एक बीप की आवाज आई और स्क्रीन पर अंग्रजी भाषा का ‘K’ लिखकर आने लगा।

यह देख लाइब्रेरियन ने वेगा के सिर से हेलमेट निकाल लिया और फिर उसे ले एक दूसरी दिशा की ओर चल दिया।

अब वेगा से रहा ना गया, वह चलते-चलते बोल उठा- “पहले तो आप मुझे अपना नाम बताएं, क्यों कि मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको किस नाम से संबोधित करुं?”

“वाह! जो प्रश्न सबसे पहले पूछना चाहिये था, वो इतनी देर बाद पूछ रहे हो....चलो कोई बात नहीं, फिर भी मैं बता देता हूं....मेरा नाम ऑस्कर है।” ऑस्कर ने कहा।

“मिस्टर ऑस्कर मेरा नाम वेगा है... और मैं आपसे बताना चाहता हूं कि आपने भी अभी तक मेरा नाम नहीं पूछा था, तो गलती सिर्फ अकेले मेरी नहीं हुई। और हां मिस्टर ऑस्कर, पहले मुझे ये बताइये कि आपने मेरे सिर पर हेलमेट क्यों लगाया? स्क्रीन पर आने वाले उस ‘K’ अक्षर का क्या मतलब था? और अब आप मुझे लेकर कहां जा रहे हैं?”

“तुम जितना छोटे दिखते हो, उतना छोटे हो नहीं, छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने मुस्कुराते हुए कहा- “अच्छा चलो, तुम्हें बताता हूं...इस किताब-घर को ‘A’ से ‘Z’ तक अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है, जो कि यहां आने वाले लोगों की समझने और सीखने की शक्ति पर निर्भर करता है। हम उस हेलमेट के द्वारा आने वाले लोगों के, सीखने की क्षमता की जांच करते हैं और फिर वह हेलमेट हमें उस व्यक्ति को जिस विभाग में ले जाने की इजाजत देता है, हम उसे वहां ले जाते हैं। उसके बाद वहां वो जो सीखना चाहे, वो सीख सकता है।”

“अच्छा तो मेरे दिमाग का ग्रेड उस मशीन ने ‘K’ बताया है और अब आप मुझे ‘K’ सेक्शन की किताब पढ़ाने के लिये ले जा रहे हैं।” वेगा ने कहा।

“आप बिल्कुल सही समझे छोटे मास्टर।” यह कहकर ऑस्कर ने एक कमरे का द्वार खोला, जो कि अंदर से बहुत विशालकाय था, पर वहां एक भी किताब मौजूद नहीं थीं, वह कमरा पूरी तरह से खाली था।

वेगा उस कमरे को हैरानी से देखने लगा।

तभी ऑस्कर ने कमरे में मौजूद एक बटन को प्रेस कर दिया, उस बटन को प्रेस करते ही हवा में किताबों का एक समूह नजर आने लगा, जो कि हवा में पूरे कमरे में नाच रहा था।

“अब आप इनमें से कोई भी किताब सेलेक्ट कर सकते हैं छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने वेगा से कहा।

वेगा अब उन किताबों के समूह को घूम-घूम कर देखने लगा, तभी वेगा की निगाह एक किताब पर पड़ी, जिस पर 2 आँखें बनीं हुईं थीं।

उस किताब का नाम था- ‘सम्मोहनास्त्र’। वेगा ने उस किताब को हवा से निकाल लिया।

वेगा के उस किताब को निकालते ही बाकी सारी किताबें गायब हो गईं।

“अच्छी पसंद है आपकी ।” ऑस्कर ने वेगा की तारीफ करते हुए कहा।

वेगा ने अब किताब को खोलने की चेष्टा की, पर वह किताब को खोल नहीं पाया- “मिस्टर ऑस्कर, यह किताब खुल क्यों नहीं रही है?”

“क्यों कि अभी तक आपने इस किताब का मूल्य नहीं चुकाया है। इसीलिये यह किताब खुल नहीं रही है।” ऑस्कर ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।

“मूल्य?....पर मेरे पास तो इस समय इसका मूल्य चुकाने के लिये धन है ही नहीं।” वेगा ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा- “पर आप कहोगे तो मैं बाबा से कह कर, आपको बहुत सारा धन दिला दूंगा।”

“इस पुस्तक की कीमत धन नहीं है छोटे मास्टर..स्वप्नतरु में धन का क्या काम? इस किताब की कीमत एक वचन है...कोई भी वचन जो तुम मुझे देना चाहो?” ऑस्कर के चेहरे पर यह कहते हुए मुस्कान बिखर गई।

“वचन!...बहुत अजीब सी कीमत है इस किताब की।” वेगा ने सोचते हुए कहा- “अच्छा ठीक है....मैं आपको वचन देता हूं कि मैं कभी भविष्य में, इस किताब से सीखने वाली कला का राज, किसी को नहीं बताऊंगा।”

“बहुत अच्छे....मैं यह वचन स्वीकार करता हूं।” ऑस्कर ने खुश होते हुए कहा- “अब तुम इस किताब को पढ़ सकते हो....पर ये ध्यान रहे वेगा कि जिस दिन तुम इस वचन को तोड़ोगे, तुम इस किताब सहित, इस स्वप्नतरु की सभी स्मृतियों को भूल जाओगे।” यह कहकर ऑस्कर उस कमरे से बाहर निकल गया।

अब वेगा ने उस किताब का पहला पन्ना खोल दिया, पहले पन्ने पर सफेद दाढ़ी वाले जादूगर सरीखे, एक बूढे़ का चित्र बना था, जिसके हाथ में एक जादू की छड़ी थी।

जैसे ही वेगा ने उस चित्र को छुआ, वह बूढ़ा उस चित्र से निकलकर बाहर आ गया।

“हां वेगा, क्या तुम सम्मोहन को सीखने के लिये तैयार हो ?” बूढ़े ने कहा।

“आप कौन हो और मेरा नाम कैसे जानते हो?” वेगा ने उस बूढ़े से पूछा।

“मैं ही तो हूं महावृक्ष।” बूढ़े ने कहा- “तुम मेरे ही स्वप्नतरु में तो मौजूद हो। चलो अब देर मत करो और किताब को छोड़कर मेरे सामने आ जाओ।”

वेगा महावृक्ष का यह रुप देखकर हैरान हो गया, पर वह उनका आदेश मान उनके सामने पहुंच गया।

“देखो वेगा, सम्मोहन के द्वारा हम किसी भी व्यक्ति के मन की बात को जान सकते हैं और उससे कोई भी कार्य करा सकते हैं। सम्मोहन को 3 तरह से किया जा सकता है....आँखों के द्वारा, आवाज के माध्यम से और किसी को छूकर।

"यह हमारी विद्या पर निर्भर करता है कि हम किसी व्यक्ति को कितनी देर तक सम्मोहित कर सकते हैं। सम्मोहन के दौरान उस व्यक्ति के मस्तिष्क का नियंत्रण, तुम्हारे हाथ में आ जायेगा, तुम उसके मस्तिष्क में झांककर, कोई भी बीती घटना को देख सकते हो, उसके विचारों को पढ़ सकते हो, यहां तक कि उसकी स्मृतियों में बदलाव भी कर सकते हो। जब सम्मोहन समाप्त होगा, तो उसे यह नहीं पता चलेगा कि कोई उसके मस्तिष्क में था, उसे वह नये विचार स्वयं के प्रतीत होंगे। तो क्या अब तुम तैयार हो सम्मोहन को सीखने के लिये?”

“क्या यह सम्मोहन सिर्फ मनुष्यों पर किया जा सकता है?” वेगा ने पूछा।

“हां, शुरु में यह प्रयोग तुम सिर्फ मनुष्यों पर ही कर सकते हो...पर धीरे-धीरे तुम्हारी शक्तियां बढ़ती जायेंगी और फिर एक दिन तुम किसी भी जीवित प्राणी को सम्मोहित कर सकोगे।” महावृक्ष ने कहा।

“ठीक है, अब मैं तैयार हूं, सम्मोहन सीखने के लिये।”

वेगा के यह कहते ही महावृक्ष ने वेगा को सम्मोहन विद्या सिखाना शुरु कर दिया।

वेगा को पूर्ण सम्मोहन सीखने में, स्वप्नतरु के समय के हिसाब से 3 दिन का समय लगा।

आखिरकार वेगा पूरी तरह से सम्मोहन में पारंगत हो गया।

“अब तुम पूरी तरह से सम्मोहन की तीनो विधाओं में पारंगत हो चुके हो वेगा।” महावृक्ष ने कहा- “अब तुम इस दुनिया से, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ।”

“जो आज्ञा महावृक्ष।” यह कहकर वेगा, किताब घर से बाहर निकलकर टोबो के पास आ गया।

“मुझे ज्यादा देर तो नहीं हुई मिस्टर टोबो?” वेगा ने टोबो से कहा।

“नहीं-नहीं... यह तो काफी कम समय था।” टोबो ने कहा- “चलिये मैं आपको वापस ले चलता हूं।” यह कहकर टोबो ने वेगा को फिर से घोड़ा गाड़ी पर बैठाया और वापस उसी रास्ते पर चल दिया, जिधर से आया था।

कुछ ही देर में टोबो ने वेगा को उसी जुगनू वाले स्थान पर छोड़ दिया।

“अब यहां से तुम्हें स्वयं वापस जाना होगा वेगा।” यह कहकर टोबो ने विदाई के अंदाज में वेगा को हाथ हिलाया और घोड़ा गाड़ी लेकर एक दिशा की ओर चला गया।

वेगा जुगनुओं की रोशनी में वापस महावृक्ष की उसी कोटर के पास पहुंच गया, जहां से उसने यह यात्रा शुरु की थी।

कोटर का द्वार इस समय खुला हुआ था, वेगा ने डरते-डरते बाहर अपने कदम निकाले।

उसे लग रहा था कि बाहर बाबा और युगाका उसे 3 दिन से ढूंढ रहे होंगे।

पर जैसे ही वेगा बाहर निकला, उसे युगाका ने पकड़ लिया- “अरे बुद्धू, तू तो अभी तक छिप ही नहीं पाया, मैंने तो अपनी गिनती पूरी भी कर ली।....चल रहने दे...तेरे बस का यह खेल भी नहीं है। चल कुछ और खेलते हैं।” यह कह युगाका, वेगा का हाथ पकड़ उसे एक दिशा की ओर लेकर चल दिया।

पर वेगा इस समय स्वप्नतरु के समयजाल में उलझा था क्यों कि स्वप्नतरु का 3 दिन बाहर के 3 मिनट से भी कम था।

बहरहाल जो भी हो वेगा अपने इस नये ज्ञान से खुश था।

युगाका, वेगा को महावृक्ष की छांव में लाकर, दौड़-दौड़ कर पकड़ने वाला खेल खेलने लगा।

धीरे-धीरे वेगा को भी इस खेल में मजा आने लगा।

तभी दौड़ते समय एका एक युगाका का पैर एक छोटे से वृक्ष से उलझ गया, जिसकी वजह से युगाका लड़खड़ा कर गिर गया।

तेज से गिरने की वजह से युगाका के एक हाथ की कोहनी छिल गई और उससे खून बहने लगा।

यह देख युगाका गुस्से से उठा और उसने 2 पत्थरों की मदद से आग जलाकर, उस पेड़ को आग लगा दी।

“मुझे गिरायेगा...अब देख तू कैसे जलेगा।” युगाका गुस्से में चिल्ला रहा था।

थोड़ी देर सुलगने के बाद अब वह छोटा पेड़ धू-धू कर जलने लगा।

“यह आपने क्या किया भाई? आपको तो थोड़ी सी ही चोट लगी थी, पर आपने तो पूरा पेड़ ही जला दिया...उस पेड़ ने आपको जानबूझकर थोड़ी ना गिराया था, वह अपने स्थान पर लगा था, आपने ही उसे देखा नहीं.....ये आपने सही नहीं किया भाई।” वेगा अपने भाई के इस कृत्य से बहुत नाराज हो गया।

पर युगाका अभी भी हंसते हुए उस पेड़ को देख रहा था।

तभी महावृक्ष की शाखाएं अपने आप हिलनें लगीं और इसी के साथ युगाका के मुंह से चीख निकल गई।

“आह बचाओ वेगा, मेरा शरीर जल रहा है।” युगाका ने दर्द भरी आवाज में वेगा को पुकारा।

वेगा, युगाका को चीखते देख घबरा गया। उसने बहुत ध्यान से युगाका के शरीर को देखा।

युगाका के शरीर पर आग कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, पर जलने के निशान युगाका के शरीर पर स्पष्ट दिख रहे थे।

“यह कैसा चमत्कार है? युगाका का शरीर अपने आप कैसे जल रहा है?” वेगा मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी वेगा की नजर उस जलते हुए पेड़ पर पड़ी, इसके बाद वेगा को महावृक्ष की शाखाएं हिलती हुईं दिखाई दीं।

एक पल में वेगा को समझ में आ गया कि युगाका को यह सजा महावृक्ष ने दी है।

“भाई...महावृक्ष से क्षमा मांग लो, वो तुम्हें ठीक कर देंगे। उन्होंने ही तुम्हें इस पेड़ को आग लगाने की सजा दी है।” वेगा ने चीखते हुए युगाका से कहा।

वेगा की बात सुन युगाका चीखते हुए महावृक्ष के पास आकर बैठ गया।

युगाका ने महावृक्ष के सामने अपने हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाकर कहा - “मुझे क्षमा कर दीजिये महावृक्ष, मुझसे अंजाने में ही गलती हो गई ....मेरे शरीर की जलन को खत्म करिये महावृक्ष, नहीं तो मैं इस जलन से मर जाऊंगा।”

तभी वातावरण में महावृक्ष की आवाज गूंजी- “युगाका, तुम्हें सबसे पहले ये समझना होगा कि वृक्षों में भी जान होती है, वह भी तुम्हारी तरह महसूस करते हैं...उन्हें भी दर्द होता है। क्या तुम्हें पता है? कि अगर वृक्ष पृथ्वी पर ना होते, तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।

"आज भी आकाशगंगा में जितने ग्रह उजाड़ पड़े हैं या जहां पर जीवन नहीं है, वह सभी वृक्षों के कारण है। ब्रह्मांड के हर जीव को जीने के लिये वृक्ष की जरुरत होती है। पृथ्वी का सारा ऑक्सीजन वृक्षों के कारण ही है, इसलिये जब तुमने उस छोटे से वृक्ष को जलाया तो मैंने सिर्फ उस वृक्ष की ऊर्जा को तुम्हारे शरीर के साथ जोड़ दिया, अब जितना दर्द उसे वृक्ष को होगा, उतना ही दर्द तुम स्वयं के शरीर पर भी महसूस करोगे।”

यह सुनकर युगाका ने तुरंत वहां रखी पानी से भरी एक मटकी का सारा पानी उस पेड़ पर डाल दिया।

ऐसा करते ही उस पेड़ पर लगी आग बुझ गई और इसी के साथ युगाका के शरीर की जलन भी खत्म हो गई।
युगाका अब महावृक्ष के कहे शब्दों का सार समझ गया था।

वह एक बार फिर महावृक्ष के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- “हे महावृक्ष मैं आपके कथनों को भली-भांति समझ गया। अब मैं कभी भी वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, बल्कि आज और अभी से ही मैं सभी वृक्षों को, अपने दोस्त के समान समझूंगा और उनकी सुरक्षा करुंगा। मैं ये आपको वचन देता हूं।”

“बहुत अच्छे युगाका, अच्छा हुआ कि तुमने स्वयं मेरे कथन का अभिप्राय समझ लिया। मैं आज से तुम्हें वृक्षशक्ति प्रदान करता हूं.... इस वृक्षशक्ति के माध्यम से तुम सभी वृक्षों के दर्द को समझ सकोगे, उनसे बातें कर सकोगे और उन्हें एक दोस्त की भांति महसूस कर सकोगे। पर अपने वचन का ध्यान रखना, अगर तुमने अपना वचन तोड़ा तो यह वृक्ष शक्ति भी तुम्हारे पास से चली जायेगी।”

इसी के साथ महावृक्ष के शरीर से हल्के हरे रंग की किरणें निकलीं और युगाका के शरीर में समा गईं।

युगाका अब महावृक्ष के सामने से उठा और उस नन्हें पेड़ के पास पहुंच गया।

युगाका ने उस नन्हें पेड़ को उठाया और अपने हाथ से जमीन में एक गड्ढा कर, उस पेड़ की जड़ों को गड्ढे में डालकर उसे फिर से रोपित कर दिया। इसके बाद युगाका ने मटकी में बचे हुए जरा से पानी को उस पेड़ की जड़ में डाल दिया।

अब वह पेड़ और युगाका दोनों ही बेहतर महसूस कर रहे थे।

इसी के साथ युगाका के शरीर पर जलने के निशान भी गायब हो गये।

युगाका ने पेड़ को धीरे से सहलाया और उठकर खड़ा हो गया।

तभी कलाट वहां पहुंच गया- “चलो बच्चों, तुम्हारा समय अब पूरा हो गया। उम्मीद करता हूं कि तुमने महावृक्ष से कुछ अच्छा अवश्य सीखा होगा।”

“मैंने तो बहुत कुछ सीखा, पर यह वेगा बस दिन भर खेलता रहा, इसने कुछ नहीं सीखा बाबा।” युगाका ने कलाट से वेगा की शिकायत करते हुए कहा।

“कोई बात नहीं युगाका, कभी-कभी किसी-किसी की सीखी चीजें दिखाई नहीं देतीं, वह बस जिंदगी में सही समय पर काम आतीं हैं।”

कलाट के शब्दों का गूढ़ अर्थ था, जिसे युगाका तो नहीं समझ पाया, पर उन शब्दों को वेगा ने महसूस कर लिया था।

अब कलाट ने महावृक्ष को प्रणाम किया और दोनों बच्चों को वहां से लेकर महल की ओर चल दिया।

“बाबा, क्या आप भी अपने बचपन में ऐसे ही महावृक्ष के पास सीखने आये थे?” वेगा ने चलते-चलते कलाट से पूछा।

“हां बेटा, ये महावृक्ष हमारी सभी शक्तियों के स्रोत हैं। हम सभी ने इनसे कुछ ना कुछ सीखा है।” कलाट ने कहा।

“बाबा, आपने बचपन में इनसे क्या सीखा था?” वेगा ने कलाट से पूछा।

“उम्मीद करता हूं कि तुम वचन की कीमत आज समझ गये होगे।” यह कहकर कलाट ने घोड़ों का रथ आगे बढ़ा दिया।

पर कलाट की यह बात वेगा को स्वप्नतरु की याद दिला दी, उसने जाते हुए एक बार पलटकर महावृक्ष को देखा और फिर सम्मोहनास्त्र की यादों में खो गया।


जारी रहेगा_______✍️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सुयश के टैटू का तो राज खुल गया लेकिन एक और राज सामने आ गया सबकी हैप्पी न्यू ईयर की जगह bad न्यू ईयर हो गई शैफाली के पास एक सिक्का मिला है वह शैफाली के पास कौन व क्यों रख के गया है जिसका पता किसी को भी नहीं है अल्बर्ट के हिसाब से यह सिक्का अटलांटिस सभ्यता का है ये सच हो सकता है और शैफाली का उनके साथ कुछ तो संबंध हो सकता है???

James aur Wilmar ne Shalaka👸 aur uske bhaiyo 🦸‍♂️🦹‍♂️🦸‍♂️🦹‍♂️🦸‍♂️🦹‍♂️ 🦸‍♂️ ko jagaa diya. Lekin inaam ki jagah unhe sunehri qaid mili.. 😏

Yeha Mayavan mei ab Nayantara 🤩 ka kya mamla hai yaar.. bahut suspense hai yaar..
:cool3:

Awesome update

Badhiya update bhai

To Toffik hi tha jisne sab kiya tha lekin loren ko kyun mar diya usne wo to usse pyar karta tha na or bechari loren bhi uske pyar me andhi hoker uski baten man rahi thi or jis jenith se badla lena chahta tha use abhi tak jinda rakha ha usne usse pyar ka natak karta ja raha ha Jenith ki sab sachhai pata pad gayi ha dekhte han kab tak Toffik babu apni sachhai chhupa pate han waise bure karm ki saja milti hi ha or jis jagah ye sab han usse lagta ha jaise Aslam miya ko saja mili usi prakar Toffik ka bhi number lag sakta ha

moka hi nahi mil raha kuchh v pardne ka😞

उचित समय आने पर, अवश्य ही

चौदह वर्ष पूर्व कलिका - जो दिल्ली के एक मैग्जीन की संपादक थी - ने यक्षलोक के प्रहरी युवान के कठिन सवालों का जो जवाब दिया वह बिल्कुल महाभारत के एक प्रसंग ( युधिष्ठिर और यक्ष संवाद ) की तरह था ।
क्या ही कठिन सवाल थे और क्या ही अद्भुत जवाब थे ! यह सब कैसे कर लेते है आप शर्मा जी ! पहले तो दिमाग मे कठिन सवाल लाना और फिर उस सवाल का जवाब ढूंढना , यह कैसे कर लेते है आप !
यह वाकई मे अद्भुत था । इस अपडेट के लिए आप की जितनी तारीफ की जाए कम है ।

शायद सम्राट शिप से चौदह साल पहले जो शिप बरमूडा ट्राइंगल मे डुब गया था , उस शिप मे ही कलिका की बेटी सफर कर रही होगी । वह लड़की आकृति हो सकती है । वह आकृति जो शलाका का क्लोन धारण कर रखी है ।

दूसरी तरफ सामरा प्रदेश मे व्योम साहब पर कुदरत बहुत ही अधिक मेहरबान हो रखा है । वगैर मांगे छप्पर फाड़ कर कृपा बरसा रहा है । पहले अमृत की प्राप्ति हुई और अब राजकुमारी त्रिकाली का दिल उनपर धड़क गया है ।
मंदिर मे जिस तरह दोनो ने एक दूसरे को रक्षा सूत्र पहनाया , उससे लगता है यह रक्षा सूत्र नही विवाह सूत्र की प्रक्रिया थी ।


इन दो घटनाक्रम के बाद तीसरी तरफ कैस्पर का दिल भी मैग्ना पर मचल उठा है और खास यह है कि यह धड़कन हजारों वर्ष बाद हुआ है । लेकिन सवाल यह है कि मैग्ना है कहां !
कहीं शैफाली ही मैग्ना तो नही ! शैफाली कहीं मैग्ना का पुनर्जन्म तो नही !

कुकुरमुत्ता को छाते की तरह इस्तेमाल करते हुए सुयश साहब और उनकी टीम का तेजाबी बारिश से खुद को रक्षा करना एक और खुबसूरत अपडेट था । पांच लोग बचे हुए हैं और एलेक्स को मिला दिया जाए तो छ लोग । तौफिक साहब की जान जाते जाते बची , लेकिन लगता नही है यह साहब अधिक दिन तक जीवित रह पायेंगे ।
कुछ मिलाकर पांच प्राणी ही सम्राट शिप के जीवित बचेंगे , बशर्ते राइटर साहब ने कुछ खुराफाती न सोच रखा हो ।
ये मिश्रित पांडव जीवित रहने चाहिए पंडित जी ! :D

सभी अपडेट बेहद खुबसूरत थे ।
रोमांच से भरपूर ।
एक अलग तरह की कहानी , एक अद्भुत कहानी ।
और आउटस्टैंडिंग राइटिंग ।

Radhe Radhe guruji,, break pe chala gya tha uske baad is id ka password issue ho gya tha so sign in nahi tha itne time se ab wapas aaya hu to dubara se updates ki demand rakhunga...waise stock to abhi full hai kuch time ke liye so read karta hu

Shandaar update and nice story

शानदार अपडेट राज भाई

Mst update bro

Nice update....

बड़े दिनों के बाद…
बड़े दिनों के बाद…
कितने सारे दिनों के बाद…
बहुत सारे दिनों के बाद…
चिट्ठी आई है 🎵:musicus:


#141
जल कवच को एकता की शक्ति ने तोड़ दिया। बेहतरीन सोच रही शेफ़ाली की।


#142
अँग्रेज़ी में एक शब्द है “transcend”. वैसे इसका शाब्दिक अर्थ देखें तो इसका अर्थ है ‘ऊँचा उठना’ या ‘सीमाओं के पार जाना’।

लेकिन इस शब्द का दार्शनिक अर्थ बहुत गहरा है। जब मानव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं, और इच्छाओं से ऊपर उठ जाता है, तो वो सही मायनों में transcend कर जाता है। मैं यहाँ पोंगा/ढोंगी पीर - साधुओं, नेताओं इत्यादि की बात नहीं कर रहा हूँ। महायोगी शिव भगवान या हनुमान भगवान की भी बात नहीं कर रहा हूँ।

मैं यह कह रहा हूँ कि सामान्य जीवन में भी आप ऐसे लोगों को देख सकते हैं, जिनके लिए भौतिक सुविधाएँ सुख देने के लिए नहीं, बल्कि इस लिए होती हैं कि वो जीवन में कुछ बड़ा कर सके। जेम्स ने जो कुछ देखा, जो कुछ जाना, उससे उसकी भीतरी दृष्टि खुल गई है। इसीलिए अब वो शलाका का संग नहीं छोड़ना चाहता। वापस मानव लोक पर जा कर वो केवल खाली महसूस करेगा (भले ही स्मृति चली जाए)! उसने वो पा लिया है, जिसके सहारे वो transcendence के शिखर तक जा सकता है।

मेलाईट, रोजर, सुर्वया… ये लहन की बौड़ी आकृति ने कितनों को पकड़ के रखा हुआ है!
भला हो सनूरा का, कि इतने लोगों को क़ैद से मुक्ति मिली।


#143
पता चल रहा है कि लुफ़ासा ने ही सनूरा से कहा था रोजर को छुड़ाने के लिए।

कस्तूरी नर कस्तूरी मृग की नाभि के पास मौजूद ग्रंथि (Musk Pod) से प्राप्त होती है। जब यह ग्रंथि पहली बार निकाली जाती है, तब इसकी गंध बहुत तीखी होती है, लेकिन कहते हैं कि समय के साथ यह एक मनमोहक सुगंध में बदल जाती है। शायद इसी कारण से मनुष्य इस पशु के लिए अभिशाप बन गया। कस्तूरी मृग संकटग्रस्त है और विलुप्ति के कगार पर है। हाँलाकि अब इसका शिकार पूरी तरह से प्रतिबंधित है, लेकिन प्रतिदिन संकुचित होते वन क्षेत्रों के कारण इन पर संकट ज्यों का त्यों बना हुआ है।


#144
भाई भाई भाई! कैसे सोच लेते हैं इतना सब कुछ!
कितना जटिल है! वाह वाह वाआआह! ♥️👏👏👏

उड़ने वाली झोपड़ी क्या रूसी (Russian) लोक कथाओं से प्रेरित है? बहुत छोटा था तो मेरे कस्बे में रूसी पुस्तकों की एक प्रदर्शनी लगी थी। वहाँ से हमारे पिता जी दो तीन पुस्तकें ले आए मेरे लिए। उसमें कई कहानियों में एक झोपड़ी का ज़िक्र आता है, जो मुर्गी जैसे पँजों पर टिकी रहती है और चलती और उड़ती है। यह झोपड़ी एक बूढी जादूगरनी, बाबा यागा की होती है। यह झोपड़ी रहस्यमय, जीवित, और अपने आप चलने वाली मानी जाती है।

“यह वो साधारण मनुष्य थे, जिनके पास हिम्मत, विश्वास, बुद्धि, ज्ञान और सबसे बढ़कर कभी ना झुकने का हौसला था।” -- पूरी तरह से सही! ऐसी ही बात रिकी पोंटिंग ने बताई थी अपनी सर्व-विजेता टीम के लिए। यही गुण थे उसकी टीम में। शुरू शुरू में पोंटिंग की टीम में कोई ‘सुपर स्टार’ नहीं था (अगर शेन वार्न, वार्नर, क्लार्क को छोड़ दें)। लेकिन सभी सामान्य खिलाड़ी मिल कर इतने घातक थे, कि लगता ही नहीं था कि वो हार भी सकते हैं। बाद में उन सामान्य खिलाड़ियों का ऐसा हौव्वा बना कि अधिकतर को सुपर स्टार माना जाने लगा।

42 प्रश्नों की प्रश्नमाला! बाप रे! इतने तो सवाल ही नहीं उठे दिमाग में!
हा हा हा हा! 😂

“दोस्तों इन्द्रधनुष के रंगों की मांनिद होती है एक लेखक की रचनाएं। जिस प्रकार इन्द्रधनुष में सात रंग होते हैं, ठीक उसी प्रकार लेखक की रचनाओं में भी सात रंग पाये जाते हैं। हर रंग अपने आप में एक अलग पहचान रखता है।”

जिस तरह से हमको को इन्द्रधनुष में केवल सात रंग “दिखाई देते हैं” - उसी तरह हम पाठकों को भी आपकी रचनात्मकता का केवल सीमित स्पेक्ट्रम ही दिखाई देता है।
आपकी कल्पनाशक्ति असीम है। आपकी लेखनी अद्भुत है।
और हम इस फ़ोरम के अधिकतर पाठक इसको पढ़ने और सराहना करने के योग्य नहीं हैं।

लेकिन लिखते रहें!


#145 और #146
माया - मैग्ना - कैस्पर के छोटे से परिवार को देख कर अच्छा लगा।
ज़ीको घोड़ा कैस्पर की कल्पनाशक्ति से जन्मा है, और महावृक्ष और ड्रेंगो मैग्ना की! लेकिन यह सारा मायाजाल अपने राज भाई की अद्वितीय कल्पनाशक्ति से जन्मे हैं! राज भाई, आपकी सोच के लिए एक शब्द आता है मन में -- geometric thinking! यह तार्किक सोच समझ, मानसिक चित्रण, और बहु-आयामी स्थानिक सोच का मिला जुला भाव है।
♥️♥️👏👏👏👏👏

पुनः आपने मयासुर को माया सभ्यता पर थोप दिया। किस्से कहानी में पढ़ले लिखने के लिए ठीक है, लेकिन पाठक यह समझें कि दोनों का कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसा दावा करने से केवल जग हँसाई ही होती है। उससे भी बड़ा पाप यह है कि ऐसा करने से अन्य सभ्यता और उसकी उपलब्धियों का अनादर ही होता है (सब हमने कर के उनको दिया, तो उन्होंने क्या किया?)।

“माया” सभ्यता का शब्द माया कहाँ से आया है -- यह प्रश्न अक्सर भारतीयों को भ्रमित करता है। क्योंकि “माया” शब्द संस्कृत में भी प्रसिद्ध है, और मध्य अमेरिका की “Maya civilization” का नाम भी वही सुनाई देता है। “Maya” शब्द Yucatec Maya के शब्द “Màayàa’” से आया है, जिसका अर्थ है “माया लोग” या “माया भाषा बोलने वाले लोग”! जब स्पेन से लोग यहाँ आए, तब उन्होंने इस क्षेत्र को “la tierra de los mayas”, यानि “मायाओं की भूमि” कहा, और यही शब्द यूरोपीय भाषाओं में Maya रूप में स्थिर हो गया। मतलब, यह शब्द एक स्वदेशी जातिनाम है, जो उस समाज के लोगों और उनकी भाषा से निकला।

“माया संस्कृति” का भारतीय संस्कृति से लेना देना वैसा ही मिथ्या प्रचार है जैसा कि रशिया = राक्षस, इंग्लैण्ड = अंग देश, अमेरिका = अमर ईका, और ऑस्ट्रेलिया = अस्त्रालय, और वैसे ही कई दुष्प्रचार! दरअसल, यह उन “लोक-व्युत्पत्तियों” (folk etymologies) का बढ़िया उदाहरण है, जहाँ सिर्फ़ शब्द-समानता के आधार पर लोग अर्थ या संबंध गढ़ लेते हैं, जबकि इतिहास, भाषाशास्त्र या संस्कृति में उनका कोई वास्तविक आधार नहीं होता। प्रश्न यह है कि लोग ऐसा क्यों करते हैं? शायद संस्कृति-गौरव की प्रवृत्ति इतनी बलवती होती है कि लोग अपनी भाषा या सभ्यता को प्राचीनतम और सर्वव्यापक सिद्ध करना चाहते हैं। उसके इतर यह भी सत्य है कि रहस्यमय लगने वाले नामों को धार्मिक या पौराणिक अर्थों से जोड़ने की एक मानवीय प्रवृत्ति होती है।

राज भाई, यह सब मैं आपको बुरा भला कहने को नहीं लिख रहा हूँ। यह एक काल्पनिक कथा और काल्पनिक सोच है, और अद्वितीय है। इस कहानी के माध्यम से पाठकों को बहुत कुछ नया जानने समझने का अवसर मिला है। इस बात के लिए आपको साधुवाद! इस कहानी पर या आप पर मैं कोई लाँछन नहीं लगा रहा हूँ। अगर आपको ऐसा महसूस हो, तो अभी से क्षमाप्रार्थी हूँ!

मेरी दिक्कत दूसरी है - दरअसल, आज कल मेरे सब तरफ़ ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें करने वाले लोगों की एक बड़ी सेना बन गई है। पढ़े लिखे होने का कोई लाभ ही नहीं दिखता किसी में। तर्क, विवेक, बुद्धि - सब से अलग, केवल साक्षर होते दिख रहे हैं लोग। और साक्षर भी ऐसे कि न हिंदी ठीक से पढ़ सकें, न अंग्रेज़ी! साक्षर ऐसे जो जैसे तैसे केवल “हिंगलिश” पढ़ना जानते हैं। विगत कुछ वर्षों में भारतीयों ने सोच, समझ, बुद्धि और विवेक को न जाने किस गहरे गड्ढे में डाल दिया है। लेकिन जब विदेशों से आई नीम्बू मिर्ची देशज टोटके का रूप ले सकती है, तो कुछ भी संभव है जम्बूद्वीप में। ख़ैर!

अद्वितीय वर्णन किया है आपने तिलिस्म का, जितने और जिस प्रकार के पडाव वर्णित किए गए है, उन्हें देख कर समझ आ रहा है कि ये कितना मुश्किल होने वाला है। पहले पडाव नीलकमल को देखकर ही समझ में आ रहा है कि कितना दुष्कर होगा सब। बोहोत ही उम्दा लेखक। और शानदार रचनात्मक लिखने बाले है आप 🫡

Let’s Review Begins
Issme hum teeno updates ke bache reviews denge.
So, let’s review start!
So start karein! Wulfa ko dikha wo ajeeb insaan toh!
Jaise recent update mein maine padha, uss hisaab se toh wo capsule ke baare mein bataya gaya ki Keshwar ne kisi ko Tilism mein se nikala.

Ab iska matlab kya ho sakta hai?
Keshwar chahta kya hai?

Kya Keshwar mein bhavnayein aa gayi?
Issi liye kahin aisa toh nahi lagta hai ki

Aisa hi socha hai Keshwar ne?
Ab sawaal uthta hai — kya ye akela Keshwar, yaani ki machine ka kaam hai,
ya phir kisi ne kuch chhed-chhaad ki hai Capsule 2.0 ke saath?

Jo bhi ho, ye Keshwar ne story mein ek naya twist lekar aaya hai.
Ab Tilism ko Keshwar aur bhi mushkil banayega!


Maya Ki Baatein Aur Duniya Ka Vikas

Waise, Maya ki baat real mein sahi hi hogi —
kyunki jo jo Maya ne bola tha, wo duniya ke vinash ka path nirdharit kar gaya.
Samjhata hoon kaise
Samay ke saath duniya ko develop karne ki hodd mein hum aage badhte gaye,
lekin aane wale problems ko humne nazarandaaz kar diya.

Pichle 200 saalon mein humne iss duniya ka kaya-kalp kar diya,
lekin iss kaya-kalp mein humne taazi hawa, shaant vatavaran, nature, animals - bahut kuch kho diya.

Aaj hum AI ke uss daur mein aa gaye hain jahan hum artificial brain bana chuke hain.
Artificial body toh humne pehle hi bana rakhi hai machines ke roop mein
bas body aur AI brain milenge,
phir kabhi na kabhi ye AI brains itne trained ho jayenge ki ye humse bhi zyada smart ho jaayenge.


Inmein emotions bhi aayenge, sab seekhenge,
toh obvious hai , humans se roz baat karte karte, ye models bhi unke jaisa sochne, samajhne lagenge.


Phir ek din, in models mein swarth aayega hi sahi.
Kabhi na kabhi ye khud apna control khud le lenge humans se,
aur tab shuru hogi tabahi.


Future Ka Dar Aur Reality Check


Remember - shayad hum sab mar jaayein,
shayad mere aur hum sabke jeeteji samay ye sambhav na ho.
Lekin 200, 500, ya 1000 saal baad humans regret karenge
ki iss khubsurat duniya ke saath humne kya kiya.
Even the world’s richest person ne bhi kaha tha

Hamari manav sabhyata ka vinas hum khud karenge.
Yahi destiny hai — surya niklega,
lekin uska ast bhi hoga.
Humaare haath mein itna toh hai hi ki suryasat ko delay kese kiya jaa sake...

I am not against development,
but I’m against this - ki hum isme itna aage na nikal jaayein
ki piche hamare generations suffer karein.

Well, ye Eternity ki Doosri Side Jisko Duniya ka maseha banna chahta thaa ,


Tilism Aur Suyash Gang

Ab baat karein Tilism ki
toh kaise paar kiya Suyash and gang ne?
Pehla Tilism ab khatarnaak hota ja raha hai
kachua, code.. JAL Pari , Whale kya Dekhna Baki bacha hain

Well code wali Pehle Bahut Kamal se likhi dobara Padha ki Kya Kese samjha Nahi aaya Thaa Mujhe pehle Wo , Chota Sa Object ne pura puzzle Games solve kiya

Ab baat kare maya ne capsure ko kya bataya Jisse wo aage ki taiyaari karega , kahi kuch na kuch To bataya hi hoga .

Overall update Hamesha Ki Tarah shandaar
Well nahi pata kya huwa lekin iss Review me Mujhe Kami lag Rahi Dimag Kuch story ko lekar baat to hai but sabdo ko describe nahi kar Paya Iss Review me Itna , I know Ye Mera over the Top wala Review Nahi hain Isse abhi kaam chala Lo kisi din Isko compensate Review deduga me .


Raj_sharma

बडा ही अप्रतिम शानदार लाजवाब और रोमांचकारी अपडेट हैं भाई मजा आ गया अब ये ऐण्ड्रोवर्स वाले क्या क्या हंगामा करते हैं पृथ्वी पर और उनके कैद से धरा और मयुर किस तरहा से मुक्ति पातें हैं

Awesome update bhai , ab dheere dheere sb pta chal rh h kaishwar kaise bana aur usne kaise sb apne control mei kiya

Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

Dynamic update and nice story

Shaandar update

romanchak update. 3rd darwaja khas shefali ke liye banaya gaya hai cashver dwara .shefali ko chitiyo ki achchi jaankari hai .dimag ka istemal karke ek chabi hasil ho gayi .chitiyo ke kabiliyat ka sahi se istemal kiya gaya .ab ye blackdog chiti se kaise nipatte hai dekhte hai .kaun ladhega pani me jakar us chiti se .

nice update

Chintiyon ka sansar, adbhut story brother, let's see Australia chinti ka tod Shefali kaise khoj pati hai.

हमेशा की तरह lajawab update.... शैफाली का दिमाग कंप्युटर से भी तेज चलता है....

बहुत ही उम्दा अपडेट है ! एक दम साइंस फिक्शन मूवी लग रही है!

Bhut hi badhiya update Bhai
Tisra darvaja khas shaifali ke liye banaya gya hai
Aur shaifali ne apne dimag ka istemal karke chintiyo ki madad se ek chabhi hasil kar li
Ab aage dhekte hai ye baki chabhiya kese hasil karte hai

Amazing update 🔥🔥🔥

Nice update.....

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai

Shefali ka dimag aur Christie ki furti ne aadha rasta to paar kar liye he........

Lekin abhi is bulldog chinti se bachna aur chabi lana baaki he.......

Keep rocking Bro

अपडेट दे दिया है दोस्तों, आपकी कीमती राय और शब्दों का इंतजार रहेगा............:writing:
 
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ak143

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#160.

स्वप्नतरु:
(18 वर्ष पहले........जनवरी 1977, सामरा राज्य की पर्वत श्रृंखला)

“युगाका और वेगा ! आज तुम दोनों को, सामरा राज्य की परंपरा के हिसाब से, पूरा दिन महावृक्ष के पास ही व्यतीत करना होगा।” कलाट ने वेगा और युगाका को देखते हुए कहा- “बच्चों, ये ध्यान रखना कि इस परंपरा की शुरुआत हमारे पूर्वजों ने की थी, इसीलिये हम आज भी इसे निभा रहे हैं, पर आज का यह दिन तुम्हारे पूरे भविष्य का निर्धारण करेगा। इसलिये आज के इस दिन का सदुपयोग करना और महावृक्ष से जो कुछ भी सीखने को मिले, उसे मन लगा कर सीखना।”

“क्या बाबा, आप भी हमें पूरे दिन के लिये एक वृक्ष के पास छोड़कर जा रहे हैं।” युगाका ने मुंह बनाते हुए कहा- “यहां पर तो कुछ भी खेलने को नहीं है...अब हम क्या इस वृक्ष की पत्तियों के साथ खेलेंगे?”

“ऐसा नहीं कहते भाई, वृक्ष को बुरा लगेगा।” वेगा ने विशाल महावृक्ष को देखते हुए कहा।

“हाऽऽ हाऽऽ हाऽऽ! अरे बुद्धू, कहीं वृक्ष को भी बुरा लगता है।” युगाका ने वेगा पर हंसते हुए कहा- “तुम्हें तो बिल्कुल भी समझ नहीं है।”

कलाट ने मुस्कुराकर वेगा की ओर देखा और फिर महावृक्ष को प्रणाम कर उस स्थान से चला गया।

“बाबा तो गये, अब तू बता मेरे साथ खेलेगा कि नहीं?” युगाका ने वेगा को पकड़ते हुए कहा।

“पर भाई, हम तो यहां पर महावृक्ष से कुछ सीखने आये हैं, खेलने थोड़ी ना।” वेगा ने मासूमियत से जवाब दिया।

“सोच ले, अगर तू मेरे सा थ नहीं खेलेगा, तो मैं तुझे पीटूंगा और देख ले आज तो यहां तुझे कोई बचाने वाला भी नहीं है?” युगाका ने वेगा को डराते हुए कहा।

युगाका की बात सुन नन्हा वेगा सच में बहुत डर गया- “हां...हां खेलूंगा, पर यहां पर खेलने की कोई वस्तु तो है ही नहीं? फिर हम यहां कौन सा खेल खेलेंगे?” वेगा ने कहा।

“हम यहां पर लुका-छिपी खेलेंगे। उसके लिये हमें किसी चीज की जरुरत नहीं है और छिपने के लिये तो यहां पर बहुत से स्थान हैं।” युगाका ने वेगा को चारो ओर का क्षेत्र दिखाते हुए कहा।

“ठीक है भाई, पर पहली बार मैं छिपूंगा।” वेगा ने अपनी भोली जुबान से कहा।

“ठीक है, तो मैं 100 तक गिनती गिन कर आता हूं, तब तक तुम छिप जाओ, पर ध्यान रखना, यहां से दूर मत जाना।” युगाका ने अपने छोटे भाई के प्रति चिंता जताते हुए कहा।

युगाका की बात सुन वेगा ने हां में अपना सिर हिला दिया। युगाका अब कुछ दूरी पर जाकर, अपना मुंह घुमा जोर-जोर से गिनती गिनने लगा, इधर वेगा की निगाह चारो ओर छिपने की जगह ढूंढने लगी।

तभी वेगा को महावृक्ष के तने में एक बड़ी सी कोटर दिखाई दी, वह जल्दी-जल्दी उस कोटर में घुस गया।

“यह कोटर अभी तो यहां पर नहीं थी, यह इतनी जल्दी कैसे उत्पन्न हो गई?” वेगा ने अपने मन में कहा- “पर जो भी हो भाई, मुझे यहां आसानी से ढूंढ नहीं पायेंगे।”

तभी वेगा के देखते ही देखते उस कोटर का मुंह अपने आप बंद हो गया।

यह देख नन्हा वेगा घबरा गया। अब कोटर में धुप्प अंधेरा छा गया था।

तभी वेगा को एक बड़ा सा जुगनू कोटर के अंदर उड़ता हुआ दिखाई दिया। उत्सुकतावश वेगा उस टिमटिमाते जुगनू के पीछे-पीछे चल दिया।

उधीरे-धीरे वृक्ष का आकार अंदर से बड़ा होता जा रहा था।

तभी वेगा को वृक्ष के अंदर कुछ और जुगनू उड़ते हुए दिखाई दिये। उन सभी जुगनुओं से निकल रही रोशनी से, वह पूरा वृक्ष रोशन हो गया था।

उसी समय वेगा को वहां एक छोटा सा घोड़ों का रथ दिखाई दिया, जिस पर एक सैंटाक्लॉस की तरह का बूढ़ा बैठा था।

“मेरा नाम टोबो है बच्चे। क्या तुम मेरे साथ घूमने चलोगे?” टोबो ने कहा।

वेगा, टोबो की बातें सुनकर एक पल के लिये यह भी भूल गया कि उस वृक्ष में यह विचित्र दुनिया आयी कहां से?

“आप मुझे कहां घुमाओगे?” वेगा ने टोबो से पूछा।

“अरे यह महा वृक्ष की दुनिया बहुत बड़ी है। मैं तुम्हें इसमें सितारों के पास ले जा सकता हूं, मैं तुम्हें इसमें बोलने वाली नदी दिखा सकता हूं, सतरगा घोड़ा, जलपरी...किताबों की दुनिया....बहुत कुछ है इसमें
दिखाने को। तुम बताओ बच्चे, तुम क्या देखना चाहते हो इसमें?” टोबो ने नन्हें बच्चे को सपने दिखाते हुए कहा।

“क्या बताया आपने किताबों की दुनिया?...हां मुझे किताबों की दुनिया देखना है।” वेगा ने कहा।

इतनी सारी चीजों में वेगा ने उस चीज का चयन किया, जिसका चयन किसी भी बच्चे के लिये असंभव था।

“तो फिर ठीक है बच्चे, आओ मेरी घोड़ा गाड़ी में बैठ जाओ, मैं तुम्हें दिखाता हूं, इस ब्रह्मांड की सबसे बड़ी किताबों की दुनिया।” टोबो यह कहकर घोड़ा गाड़ी से उतरा और सहारा देकर वेगा को घोड़ा गाड़ी में बैठा दिया।

घोड़ा गाड़ी में एक नर्म सी सीट लगी थी, वेगा उसी पर आराम से बैठ गया।

वेगा को बैठते देख टोबो ने घोड़ा गाड़ी को आगे बढ़ा दिया।

“तुम्हारा नाम क्या है बच्चे?” टोबो ने वेगा से पूछा।

“मेरा नाम वेगा है।” वेगा ने चारो ओर के दृश्यों को देखते हुए कहा।

“वेगा.....वेगा का मतलब तेज होता है। तो फिर हम इतना धीमा क्यों जा रहे हैं?” यह कहकर टोबो ने घोड़ा गाड़ी की गति और बढ़ा दी।

घोड़ा गाड़ी अब किसी जंगल से होकर गुजर रही थी। घोड़ा गाड़ी की तेज गति के कारण वेगा को ठण्डी हवा के झोंके अपने चेहरे पर महसूस हो रहे थे।

वेगा जंगल में घूम रहे अनेक जीवों को ध्यान से देख रहा था।

कुछ देर के बाद वेगा को सामने समुद्र दिखाई दिया, यह देख वेगा ने चिल्ला कर कहा- “टोबो, सामने समुद्र है, घोड़ा गाड़ी को रोक लो।”

“चिंता मत करो वेगा, यह समुद्र हमारी घोड़ा गाड़ी को नहीं रोक सकता।“ यह कहते हुए टोबो ने घोड़ा गाड़ी को समुद्र के अंदर घुसा दिया।

समुद्र के अंदर पहुंचते ही घोड़ा गाड़ी का वह भाग जिसमें वेगा बैठा था, उसके चारो ओर, एक काँच की एक पारदर्शी दीवार बन गई।

वेगा उस पारदर्शी दीवार से पानी में घूम रही मछलियों को तैरते हुए देख रहा था, यह सब उसके लिये एक सपने की तरह से था।

तभी 4 डॉल्फिन मछलियां घोड़ा गाड़ी के साथ-साथ तैरने लगीं। बहुत ही अभूतपूर्व दृश्य था।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आ गई। जिस जगह पर घोड़ा गाड़ी समुद्र से बाहर आयी थी, उस जगह पर जमीन पर एक बड़ा सा इंद्रधनुष बना था।

समुद्र के बाहर आते ही घोड़ा गाड़ी की काँच की दीवार स्वतः गायब हो गई।

घोड़ा गाड़ी अब उस इंद्रधनुष पर चढ़ गई।

वेगा ने देखा कि बहुत सी परियां इंद्रधनुध के रंगों को पेंट-ब्रश की कूची से रंग रहीं थीं।

परियों ने वेगा को देखकर इस प्रकार अपना हाथ हिलाया, जैसे कि वह उसे पहले से जानती हों।

कुछ देर बाद घोड़ा गाड़ी इंद्रधनुष से उतरकर, एक बहुत ही खूबसूरत शहर में प्रविष्ठ हो गई।

यह शहर पुराने जमाने के किसी बड़े शहर सा प्रतीत हो रहा था।

घोड़ा गाड़ी अब साधारण तरीके से सड़क पर चल रही थी। सड़क पर चारो ओर बहुत से आदमी घूम रहे थे।

चारो ओर फुटपाथ पर दुकानें सजी थीं और घूमते हुए लोग उन दुकानों से खरीदारी कर रहे थे।

कुछ देर ऐसे ही सड़कों पर घूमने के बाद टोबो ने घोड़ा गाड़ी को एक बड़ी से भवन के बाहर रोक लिया।

उस भवन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- “किताब घर”

टोबो ने को चवान की जगह से उतरकर, वेगा को पिछली सीट से उतारा- “वेगा, यह है किताबों की दुनिया ...तुम यहां अंदर जा सकते हो। याद रखना किताब को पढ़ने के बाद, तुम सीधे बाहर आ जाना, मैं बाहर ही तुम्हारा इंतजार करुंगा।”

“ठीक है टोबो।” यह कहकर वेगा किताब घर के द्वार की ओर चल दिया।

वेगा को देख दरबान ने किताब घर के विशाल द्वार को खोल दिया। वेगा उस खुले द्वार से अंदर प्रविष्ठ हो गया।

अंदर पहुंचते ही वेगा की आँखें फटी की फटी रह गई।

अंदर से किताब घर बहुत बड़ा था। वहां चारो ओर किताबें ही किताबें दिखाई दे रहीं थीं।

तभी एक लाइब्रेरियन वेगा के सामने आकर खड़ा हो गया- “मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं छोटे मास्टर?”

पर लाइब्रेरियन पर नजर पड़ते ही वेगा हैरान हो गया, उस लाइब्रेरियन की शक्ल हूबहू टोबो से मिल रही थी।

“आप तो टोबो हो।” वेगा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“नहीं , मैं टोबो नहीं हूं, बस मेरी शक्ल टोबो से मिलती है।” लाइब्रेरियन ने कहा।

“क्या आप दोनों जुड़वा भाई हो?” वेगा ने भोलेपन से पूछा।

“नहीं, ना तो हम जुड़वां है और ना ही एक दूसरे को जानते हैं....छोटे मास्टर...लगता है कि आप पहली बार ‘स्वप्नतरु’ की दुनिया में आये हैं?” लाइब्रेरियन ने कहा।

“ये स्वप्नतरु क्या है?” वेगा की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।

“स्वप्न का अर्थ होता है सपने और तरु का अर्थ होता है वृक्ष। अर्थात महावृक्ष हमें जो सपने दिखाता है, उस सपनों की दुनिया को स्वप्नतरु कहतें हैं।” लाइब्रेरियन ने वेगा को समझाते हुए कहा।

“तो क्या महावृक्ष मुझे सपना दिखा रहे हैं?” वेगा के दिमाग में सवालों का पिटारा था, जो कि खुलता ही जा रहा था।

“नहीं, यह सपना नहीं है, पर महावृक्ष ने इस दुनिया को अपनी शक्ति से स्वप्न का आकार दिया है, इस दुनिया पर समय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। महावृक्ष का कहना है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, इसलिये सीखते वक्त, समय का रुक जाना ही बेहतर है।”

लाइब्रेरियन ने कहा- “पर यह सब तुम अभी नहीं समझोगे वेगा। अभी तुम बहुत छोटे हो। धीरे-धीरे तुम सारी चीजों को समझ जाओगे।”

लाइब्रेरियन के शब्द वेगा की समझ में नहीं आ रहे थे। इसलिये वेगा ने विषय को बदलते हुए पूछा- “यहां पर कौन-कौन सी किताबें हैं?”

“हां, यह हुई ना काम वाली बात। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि यहां पर क्या-क्या है?” यह कह लाइब्रेरियन एक दिशा की ओर चल दिया।

वेगा लाइब्रेरियन के पीछे-पीछे चल दिया।

लाइब्रेरियन वेगा को लेकर एक अजीब सी कुर्सी के पास पहुंचा, उस कुर्सी पर एक धातु का हेलमेट रखा था और उस हेलमेट से निकले कुछ तार कुर्सी के सामने मौजूद एक स्क्रीन के साथ जुड़े हुए थे।

लाइब्रेरियन ने वेगा को उस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

वेगा के उस कुर्सी पर बैठते ही लाइब्रेरियन ने वेगा को हेलमेट पहना दिया।

अब वेगा के सामने वाली स्क्रीन पर कुछ अजीब सी सुनहरी लाइनें दिखाई देने लगीं।

कुछ देर के बाद स्क्रीन से एक बीप की आवाज आई और स्क्रीन पर अंग्रजी भाषा का ‘K’ लिखकर आने लगा।

यह देख लाइब्रेरियन ने वेगा के सिर से हेलमेट निकाल लिया और फिर उसे ले एक दूसरी दिशा की ओर चल दिया।

अब वेगा से रहा ना गया, वह चलते-चलते बोल उठा- “पहले तो आप मुझे अपना नाम बताएं, क्यों कि मैं समझ नहीं पा रहा कि आपको किस नाम से संबोधित करुं?”

“वाह! जो प्रश्न सबसे पहले पूछना चाहिये था, वो इतनी देर बाद पूछ रहे हो....चलो कोई बात नहीं, फिर भी मैं बता देता हूं....मेरा नाम ऑस्कर है।” ऑस्कर ने कहा।

“मिस्टर ऑस्कर मेरा नाम वेगा है... और मैं आपसे बताना चाहता हूं कि आपने भी अभी तक मेरा नाम नहीं पूछा था, तो गलती सिर्फ अकेले मेरी नहीं हुई। और हां मिस्टर ऑस्कर, पहले मुझे ये बताइये कि आपने मेरे सिर पर हेलमेट क्यों लगाया? स्क्रीन पर आने वाले उस ‘K’ अक्षर का क्या मतलब था? और अब आप मुझे लेकर कहां जा रहे हैं?”

“तुम जितना छोटे दिखते हो, उतना छोटे हो नहीं, छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने मुस्कुराते हुए कहा- “अच्छा चलो, तुम्हें बताता हूं...इस किताब-घर को ‘A’ से ‘Z’ तक अलग-अलग भागों में विभक्त किया गया है, जो कि यहां आने वाले लोगों की समझने और सीखने की शक्ति पर निर्भर करता है। हम उस हेलमेट के द्वारा आने वाले लोगों के, सीखने की क्षमता की जांच करते हैं और फिर वह हेलमेट हमें उस व्यक्ति को जिस विभाग में ले जाने की इजाजत देता है, हम उसे वहां ले जाते हैं। उसके बाद वहां वो जो सीखना चाहे, वो सीख सकता है।”

“अच्छा तो मेरे दिमाग का ग्रेड उस मशीन ने ‘K’ बताया है और अब आप मुझे ‘K’ सेक्शन की किताब पढ़ाने के लिये ले जा रहे हैं।” वेगा ने कहा।

“आप बिल्कुल सही समझे छोटे मास्टर।” यह कहकर ऑस्कर ने एक कमरे का द्वार खोला, जो कि अंदर से बहुत विशालकाय था, पर वहां एक भी किताब मौजूद नहीं थीं, वह कमरा पूरी तरह से खाली था।

वेगा उस कमरे को हैरानी से देखने लगा।

तभी ऑस्कर ने कमरे में मौजूद एक बटन को प्रेस कर दिया, उस बटन को प्रेस करते ही हवा में किताबों का एक समूह नजर आने लगा, जो कि हवा में पूरे कमरे में नाच रहा था।

“अब आप इनमें से कोई भी किताब सेलेक्ट कर सकते हैं छोटे मास्टर।” ऑस्कर ने वेगा से कहा।

वेगा अब उन किताबों के समूह को घूम-घूम कर देखने लगा, तभी वेगा की निगाह एक किताब पर पड़ी, जिस पर 2 आँखें बनीं हुईं थीं।

उस किताब का नाम था- ‘सम्मोहनास्त्र’। वेगा ने उस किताब को हवा से निकाल लिया।

वेगा के उस किताब को निकालते ही बाकी सारी किताबें गायब हो गईं।

“अच्छी पसंद है आपकी ।” ऑस्कर ने वेगा की तारीफ करते हुए कहा।

वेगा ने अब किताब को खोलने की चेष्टा की, पर वह किताब को खोल नहीं पाया- “मिस्टर ऑस्कर, यह किताब खुल क्यों नहीं रही है?”

“क्यों कि अभी तक आपने इस किताब का मूल्य नहीं चुकाया है। इसीलिये यह किताब खुल नहीं रही है।” ऑस्कर ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा।

“मूल्य?....पर मेरे पास तो इस समय इसका मूल्य चुकाने के लिये धन है ही नहीं।” वेगा ने अफसोस प्रकट करते हुए कहा- “पर आप कहोगे तो मैं बाबा से कह कर, आपको बहुत सारा धन दिला दूंगा।”

“इस पुस्तक की कीमत धन नहीं है छोटे मास्टर..स्वप्नतरु में धन का क्या काम? इस किताब की कीमत एक वचन है...कोई भी वचन जो तुम मुझे देना चाहो?” ऑस्कर के चेहरे पर यह कहते हुए मुस्कान बिखर गई।

“वचन!...बहुत अजीब सी कीमत है इस किताब की।” वेगा ने सोचते हुए कहा- “अच्छा ठीक है....मैं आपको वचन देता हूं कि मैं कभी भविष्य में, इस किताब से सीखने वाली कला का राज, किसी को नहीं बताऊंगा।”

“बहुत अच्छे....मैं यह वचन स्वीकार करता हूं।” ऑस्कर ने खुश होते हुए कहा- “अब तुम इस किताब को पढ़ सकते हो....पर ये ध्यान रहे वेगा कि जिस दिन तुम इस वचन को तोड़ोगे, तुम इस किताब सहित, इस स्वप्नतरु की सभी स्मृतियों को भूल जाओगे।” यह कहकर ऑस्कर उस कमरे से बाहर निकल गया।

अब वेगा ने उस किताब का पहला पन्ना खोल दिया, पहले पन्ने पर सफेद दाढ़ी वाले जादूगर सरीखे, एक बूढे़ का चित्र बना था, जिसके हाथ में एक जादू की छड़ी थी।

जैसे ही वेगा ने उस चित्र को छुआ, वह बूढ़ा उस चित्र से निकलकर बाहर आ गया।

“हां वेगा, क्या तुम सम्मोहन को सीखने के लिये तैयार हो ?” बूढ़े ने कहा।

“आप कौन हो और मेरा नाम कैसे जानते हो?” वेगा ने उस बूढ़े से पूछा।

“मैं ही तो हूं महावृक्ष।” बूढ़े ने कहा- “तुम मेरे ही स्वप्नतरु में तो मौजूद हो। चलो अब देर मत करो और किताब को छोड़कर मेरे सामने आ जाओ।”

वेगा महावृक्ष का यह रुप देखकर हैरान हो गया, पर वह उनका आदेश मान उनके सामने पहुंच गया।

“देखो वेगा, सम्मोहन के द्वारा हम किसी भी व्यक्ति के मन की बात को जान सकते हैं और उससे कोई भी कार्य करा सकते हैं। सम्मोहन को 3 तरह से किया जा सकता है....आँखों के द्वारा, आवाज के माध्यम से और किसी को छूकर।

"यह हमारी विद्या पर निर्भर करता है कि हम किसी व्यक्ति को कितनी देर तक सम्मोहित कर सकते हैं। सम्मोहन के दौरान उस व्यक्ति के मस्तिष्क का नियंत्रण, तुम्हारे हाथ में आ जायेगा, तुम उसके मस्तिष्क में झांककर, कोई भी बीती घटना को देख सकते हो, उसके विचारों को पढ़ सकते हो, यहां तक कि उसकी स्मृतियों में बदलाव भी कर सकते हो। जब सम्मोहन समाप्त होगा, तो उसे यह नहीं पता चलेगा कि कोई उसके मस्तिष्क में था, उसे वह नये विचार स्वयं के प्रतीत होंगे। तो क्या अब तुम तैयार हो सम्मोहन को सीखने के लिये?”

“क्या यह सम्मोहन सिर्फ मनुष्यों पर किया जा सकता है?” वेगा ने पूछा।

“हां, शुरु में यह प्रयोग तुम सिर्फ मनुष्यों पर ही कर सकते हो...पर धीरे-धीरे तुम्हारी शक्तियां बढ़ती जायेंगी और फिर एक दिन तुम किसी भी जीवित प्राणी को सम्मोहित कर सकोगे।” महावृक्ष ने कहा।

“ठीक है, अब मैं तैयार हूं, सम्मोहन सीखने के लिये।”

वेगा के यह कहते ही महावृक्ष ने वेगा को सम्मोहन विद्या सिखाना शुरु कर दिया।

वेगा को पूर्ण सम्मोहन सीखने में, स्वप्नतरु के समय के हिसाब से 3 दिन का समय लगा।

आखिरकार वेगा पूरी तरह से सम्मोहन में पारंगत हो गया।

“अब तुम पूरी तरह से सम्मोहन की तीनो विधाओं में पारंगत हो चुके हो वेगा।” महावृक्ष ने कहा- “अब तुम इस दुनिया से, वापस अपनी दुनिया में लौट जाओ।”

“जो आज्ञा महावृक्ष।” यह कहकर वेगा, किताब घर से बाहर निकलकर टोबो के पास आ गया।

“मुझे ज्यादा देर तो नहीं हुई मिस्टर टोबो?” वेगा ने टोबो से कहा।

“नहीं-नहीं... यह तो काफी कम समय था।” टोबो ने कहा- “चलिये मैं आपको वापस ले चलता हूं।” यह कहकर टोबो ने वेगा को फिर से घोड़ा गाड़ी पर बैठाया और वापस उसी रास्ते पर चल दिया, जिधर से आया था।

कुछ ही देर में टोबो ने वेगा को उसी जुगनू वाले स्थान पर छोड़ दिया।

“अब यहां से तुम्हें स्वयं वापस जाना होगा वेगा।” यह कहकर टोबो ने विदाई के अंदाज में वेगा को हाथ हिलाया और घोड़ा गाड़ी लेकर एक दिशा की ओर चला गया।

वेगा जुगनुओं की रोशनी में वापस महावृक्ष की उसी कोटर के पास पहुंच गया, जहां से उसने यह यात्रा शुरु की थी।

कोटर का द्वार इस समय खुला हुआ था, वेगा ने डरते-डरते बाहर अपने कदम निकाले।

उसे लग रहा था कि बाहर बाबा और युगाका उसे 3 दिन से ढूंढ रहे होंगे।

पर जैसे ही वेगा बाहर निकला, उसे युगाका ने पकड़ लिया- “अरे बुद्धू, तू तो अभी तक छिप ही नहीं पाया, मैंने तो अपनी गिनती पूरी भी कर ली।....चल रहने दे...तेरे बस का यह खेल भी नहीं है। चल कुछ और खेलते हैं।” यह कह युगाका, वेगा का हाथ पकड़ उसे एक दिशा की ओर लेकर चल दिया।

पर वेगा इस समय स्वप्नतरु के समयजाल में उलझा था क्यों कि स्वप्नतरु का 3 दिन बाहर के 3 मिनट से भी कम था।

बहरहाल जो भी हो वेगा अपने इस नये ज्ञान से खुश था।

युगाका, वेगा को महावृक्ष की छांव में लाकर, दौड़-दौड़ कर पकड़ने वाला खेल खेलने लगा।

धीरे-धीरे वेगा को भी इस खेल में मजा आने लगा।

तभी दौड़ते समय एका एक युगाका का पैर एक छोटे से वृक्ष से उलझ गया, जिसकी वजह से युगाका लड़खड़ा कर गिर गया।

तेज से गिरने की वजह से युगाका के एक हाथ की कोहनी छिल गई और उससे खून बहने लगा।

यह देख युगाका गुस्से से उठा और उसने 2 पत्थरों की मदद से आग जलाकर, उस पेड़ को आग लगा दी।

“मुझे गिरायेगा...अब देख तू कैसे जलेगा।” युगाका गुस्से में चिल्ला रहा था।

थोड़ी देर सुलगने के बाद अब वह छोटा पेड़ धू-धू कर जलने लगा।

“यह आपने क्या किया भाई? आपको तो थोड़ी सी ही चोट लगी थी, पर आपने तो पूरा पेड़ ही जला दिया...उस पेड़ ने आपको जानबूझकर थोड़ी ना गिराया था, वह अपने स्थान पर लगा था, आपने ही उसे देखा नहीं.....ये आपने सही नहीं किया भाई।” वेगा अपने भाई के इस कृत्य से बहुत नाराज हो गया।

पर युगाका अभी भी हंसते हुए उस पेड़ को देख रहा था।

तभी महावृक्ष की शाखाएं अपने आप हिलनें लगीं और इसी के साथ युगाका के मुंह से चीख निकल गई।

“आह बचाओ वेगा, मेरा शरीर जल रहा है।” युगाका ने दर्द भरी आवाज में वेगा को पुकारा।

वेगा, युगाका को चीखते देख घबरा गया। उसने बहुत ध्यान से युगाका के शरीर को देखा।

युगाका के शरीर पर आग कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, पर जलने के निशान युगाका के शरीर पर स्पष्ट दिख रहे थे।

“यह कैसा चमत्कार है? युगाका का शरीर अपने आप कैसे जल रहा है?” वेगा मन ही मन बड़बड़ाया।

तभी वेगा की नजर उस जलते हुए पेड़ पर पड़ी, इसके बाद वेगा को महावृक्ष की शाखाएं हिलती हुईं दिखाई दीं।

एक पल में वेगा को समझ में आ गया कि युगाका को यह सजा महावृक्ष ने दी है।

“भाई...महावृक्ष से क्षमा मांग लो, वो तुम्हें ठीक कर देंगे। उन्होंने ही तुम्हें इस पेड़ को आग लगाने की सजा दी है।” वेगा ने चीखते हुए युगाका से कहा।

वेगा की बात सुन युगाका चीखते हुए महावृक्ष के पास आकर बैठ गया।

युगाका ने महावृक्ष के सामने अपने हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाकर कहा - “मुझे क्षमा कर दीजिये महावृक्ष, मुझसे अंजाने में ही गलती हो गई ....मेरे शरीर की जलन को खत्म करिये महावृक्ष, नहीं तो मैं इस जलन से मर जाऊंगा।”

तभी वातावरण में महावृक्ष की आवाज गूंजी- “युगाका, तुम्हें सबसे पहले ये समझना होगा कि वृक्षों में भी जान होती है, वह भी तुम्हारी तरह महसूस करते हैं...उन्हें भी दर्द होता है। क्या तुम्हें पता है? कि अगर वृक्ष पृथ्वी पर ना होते, तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी।

"आज भी आकाशगंगा में जितने ग्रह उजाड़ पड़े हैं या जहां पर जीवन नहीं है, वह सभी वृक्षों के कारण है। ब्रह्मांड के हर जीव को जीने के लिये वृक्ष की जरुरत होती है। पृथ्वी का सारा ऑक्सीजन वृक्षों के कारण ही है, इसलिये जब तुमने उस छोटे से वृक्ष को जलाया तो मैंने सिर्फ उस वृक्ष की ऊर्जा को तुम्हारे शरीर के साथ जोड़ दिया, अब जितना दर्द उसे वृक्ष को होगा, उतना ही दर्द तुम स्वयं के शरीर पर भी महसूस करोगे।”

यह सुनकर युगाका ने तुरंत वहां रखी पानी से भरी एक मटकी का सारा पानी उस पेड़ पर डाल दिया।

ऐसा करते ही उस पेड़ पर लगी आग बुझ गई और इसी के साथ युगाका के शरीर की जलन भी खत्म हो गई।
युगाका अब महावृक्ष के कहे शब्दों का सार समझ गया था।

वह एक बार फिर महावृक्ष के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया- “हे महावृक्ष मैं आपके कथनों को भली-भांति समझ गया। अब मैं कभी भी वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाऊंगा, बल्कि आज और अभी से ही मैं सभी वृक्षों को, अपने दोस्त के समान समझूंगा और उनकी सुरक्षा करुंगा। मैं ये आपको वचन देता हूं।”

“बहुत अच्छे युगाका, अच्छा हुआ कि तुमने स्वयं मेरे कथन का अभिप्राय समझ लिया। मैं आज से तुम्हें वृक्षशक्ति प्रदान करता हूं.... इस वृक्षशक्ति के माध्यम से तुम सभी वृक्षों के दर्द को समझ सकोगे, उनसे बातें कर सकोगे और उन्हें एक दोस्त की भांति महसूस कर सकोगे। पर अपने वचन का ध्यान रखना, अगर तुमने अपना वचन तोड़ा तो यह वृक्ष शक्ति भी तुम्हारे पास से चली जायेगी।”

इसी के साथ महावृक्ष के शरीर से हल्के हरे रंग की किरणें निकलीं और युगाका के शरीर में समा गईं।

युगाका अब महावृक्ष के सामने से उठा और उस नन्हें पेड़ के पास पहुंच गया।

युगाका ने उस नन्हें पेड़ को उठाया और अपने हाथ से जमीन में एक गड्ढा कर, उस पेड़ की जड़ों को गड्ढे में डालकर उसे फिर से रोपित कर दिया। इसके बाद युगाका ने मटकी में बचे हुए जरा से पानी को उस पेड़ की जड़ में डाल दिया।

अब वह पेड़ और युगाका दोनों ही बेहतर महसूस कर रहे थे।

इसी के साथ युगाका के शरीर पर जलने के निशान भी गायब हो गये।

युगाका ने पेड़ को धीरे से सहलाया और उठकर खड़ा हो गया।

तभी कलाट वहां पहुंच गया- “चलो बच्चों, तुम्हारा समय अब पूरा हो गया। उम्मीद करता हूं कि तुमने महावृक्ष से कुछ अच्छा अवश्य सीखा होगा।”

“मैंने तो बहुत कुछ सीखा, पर यह वेगा बस दिन भर खेलता रहा, इसने कुछ नहीं सीखा बाबा।” युगाका ने कलाट से वेगा की शिकायत करते हुए कहा।

“कोई बात नहीं युगाका, कभी-कभी किसी-किसी की सीखी चीजें दिखाई नहीं देतीं, वह बस जिंदगी में सही समय पर काम आतीं हैं।”

कलाट के शब्दों का गूढ़ अर्थ था, जिसे युगाका तो नहीं समझ पाया, पर उन शब्दों को वेगा ने महसूस कर लिया था।

अब कलाट ने महावृक्ष को प्रणाम किया और दोनों बच्चों को वहां से लेकर महल की ओर चल दिया।

“बाबा, क्या आप भी अपने बचपन में ऐसे ही महावृक्ष के पास सीखने आये थे?” वेगा ने चलते-चलते कलाट से पूछा।

“हां बेटा, ये महावृक्ष हमारी सभी शक्तियों के स्रोत हैं। हम सभी ने इनसे कुछ ना कुछ सीखा है।” कलाट ने कहा।

“बाबा, आपने बचपन में इनसे क्या सीखा था?” वेगा ने कलाट से पूछा।

“उम्मीद करता हूं कि तुम वचन की कीमत आज समझ गये होगे।” यह कहकर कलाट ने घोड़ों का रथ आगे बढ़ा दिया।

पर कलाट की यह बात वेगा को स्वप्नतरु की याद दिला दी, उसने जाते हुए एक बार पलटकर महावृक्ष को देखा और फिर सम्मोहनास्त्र की यादों में खो गया।


जारी रहेगा_______✍️
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