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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Napster

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#136.

“तुम्हारी बात सही है जेनिथ।” सुयश ने फिर एक बार, सभी ओर देखते हुए कहा- “अभी कुछ और है, जो हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं?”

“कैप्टेन जूते और हेलमेट से तो समझ में आता है, पर मुझे नहीं लगता कि इस छड़ी के द्वारा हम उड़ पायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“अगर हम इस छड़ी से उड़ नहीं सकते, तो फिर इसके यहां होने का क्या मतलब है?” सुयश ने कहा।

“मतलब तो उस घोड़े का भी अभी तक समझ में नहीं आया?” शैफाली ने कहा- “एक मिनट रुकिये कैप्टेन अंकल...कहीं वह घोड़ा ‘पेगासस’ तो नहीं?”

“अब ये पेगासस कौन है?” सुयश ने पूछा।

“शायद आपको याद नहीं है कैप्टेन अंकल, अलबर्ट अंकल ने जब हमें मेडूसा की कहानी सुनाई थी, तो बताया था कि मेडूसा के मरने के बाद जब उसका खून समुद्र में मिला, तो एक उड़ने वाले घोड़े पेगासस का जन्म हुआ था।... इसलिये तो कह रहीं हूं कि कहीं ये पेगासस तो नहीं?” शैफाली ने सभी को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।

“पर पेगासस के पंख थे शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “जबकि इस घोड़े के पंख नहीं हैं।”

“कहीं ये छड़ी के पंख उस घोड़े के तो नहीं लगेंगे।” सुयश ने कहा।

वैसे सुयश की बातों में कोई लॉजिक तो नहीं था, फिर भी क्रिस्टी ने उस जादुई छड़ी के पंख निकालने की कोशिश की।

जरा सी देर में छड़ी के पंख क्रिस्टी के हाथों में थे।

जैसे ही क्रिस्टी ने उन पंखों को उस घोड़े की पीठ से सटाया। आश्चर्यजनक ढंग से वह पंख घोड़े के शरीर पर फिट हो गये।

पंख लगते ही घोड़ा जोर से हिनहिनाकर सजीव हो गया और अपने पंख को जोर-जोर से हिलाने लगा।

“हुर्रेऽऽऽऽ यह पेगासस ही है।” शैफाली ने जोर से जयकारा लगाया। सभी शैफाली की यह बच्चों जैसी हरकत देख कर हंस पड़े।

तभी हरमीस की मूर्ति भी वहां से गायब हो गई।

“तौफीक एक बार फिर अब उन छेदों को चेक करो, शायद अब वह खुल गये हों?” सुयश ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने सुयश की बात मान एक बार फिर से सभी छेदों को चेक किया, पर उन छेदों पर अदृश्य दीवार अभी भी बनी थी।

“ये क्या कैप्टेन अंकल....हमने इस मायाजाल का यह भाग तो पूरा कर लिया, फिर वह छेद खुले क्यों नहीं?” शैफाली ने पुनः मुंह बनाते हुए कहा।

तभी जेनिथ की नजर बचे हुए एडमैन्टाइन के टुकड़े पर पड़ी, जो अब भी वहां पड़ा हुआ था।

कुछ सोच जेनिथ ने वह एडमैन्टाइन का टुकड़ा उठा लिया। जेनिथ को उस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा हुआ दिखाई दिया।

“कैप्टेन इस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा है, इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने सुयश को वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

“अगर उस झील में घुसने के लिये एडमैन्टाइन के गोले की जरुरत थी, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस छेद से निकलने के लिये भी हमें इस टुकड़े की जरुरत हो।”

क्रिस्टी के शब्द सुयश को सही प्रतीत हुए, इसलिये उसने 2 नम्बर वाले छेद के पास पहुंचकर उस टुकड़े को फेंका।

टुकड़ा उस छेद से बाहर निकल गया और इसी के साथ 2 नम्बर छेद का अदृश्य द्वार खुल गया।

यह देखकर सभी खुश होकर वहां से निकलने के लिये तैयार हो गये।

“तीनों लड़कियां पेगासस पर बैठेंगी और मैं सुनहरे जूते का प्रयोग करुंगा, तौफीक तुम पंखों वाले हेलमेट का प्रयोग करोगे...इसी की सहायता से हम यहां से निकलेंगे। अगर किसी को अपनी जादुई चीज को प्रयोग में लाकर देखना है, तो वह इसी पहाड़ में देख लो, बाहर हमारे पास दूसरा मौका नहीं मिलेगा।”

सुयश के शब्द सुन सभी ने एक बार अपनी जादुई वस्तु को प्रयोग करके देख लिया और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वह सभी झरने के छेद नम्बर 2 से उड़कर पहाड़ के नीचे की ओर चल दिये।


चैपटर-12 , त्रिआयाम:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 14:20, त्रिआयाम क्षेत्र, नागलोक)

ऐलेक्स की जब आँख खुली, तो वह समुद्र के अंदर था। हर तरफ नीले रंग का पानी चारो ओर फैला हुआ था।

आँखें खोलते ही ऐलेक्स घबरा गया। पर धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह पानी के अंदर भी आसानी से साँस ले रहा है।

ऐलेक्स ने अगल-बगल तैर कर देखा, वह आसानी से किसी मछली की भांति तैर भी ले रहा था।

ऐलेक्स को पास में ही एक बड़ी सी समुद्री चट्टान दिखाई दी। ऐलेक्स ने परीक्षण करने के लिये अपना घूंसा जोर से चट्टान पर मारा।

ऐलेक्स के एक ही वार से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये। यह देख ऐलेक्स खुशी से भर उठा। इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह कोई सुपर हीरो हो।

ऐलेक्स ने अब अपने चारो ओर दृष्टि दौड़ाई, पर उसे कहीं भी त्रिआयाम दिखाई नहीं दिया।

“स्थेनो ने तो कहा था कि फल खाते ही मैं त्रिआयाम के पास पहुंच जाऊंगा, पर यहां तो दूर-दूर तक त्रिआयाम का कहीं निशान तक नहीं है।....लेकिन स्थेनो गलत नहीं कह सकती...त्रिआयाम यहीं कहीं होना
चाहिये? मुझे अपनी आँखों का प्रयोग करना चाहिये, पर कैसे? मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपनी आँखों का उपयोग करना कैसे है? वाह रे सुपर हीरो ! खुद को ही नहीं पता कि शक्तियों का उपयोग करना कैसे है? और आ गये नागलोक राक्षसों और देवताओं से लड़ने।”

ऐलेक्स भी पागलों की तरह स्वयं ही बड़बड़ा रहा था।

ऐलेक्स ने अपनी आँखों को एक बार बंद किया और फिर जोर से खोला।

ऐलेक्स के तेज आँख खोलते ही ऐलेक्स की आँखों से एक किरण निकलकर समुद्र में फैल गयी।

अब ऐलेक्स को समुद्र में एक विशाल पारदर्शी गोला तैरता हुआ दिखाई दिया। वह गोला कम से 500 फिट बड़ा तो जरुर रहा होगा।

“यह कैसा पारदर्शी गोला है...कहीं यही तो त्रिआयाम नहीं?” यह सोचकर ऐलेक्स धीरे-धीरे पानी में तैरता हुआ उस गोले के पास पहुंच गया।

अब ऐलेक्स को उसे गोले में बना एक छोटा सा दरवाजा दिखाई देने लगा था। ऐलेक्स उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया।

अंदर एक बड़ा सा कमरा बना था, जिसमें हर ओर पानी भरा हुआ था और उसमें एक 5 सिर वाला नाग सो रहा था।

“ये लो...यहां इतनी सारी शक्तियां रखीं हैं और ये भाई साहब ड्यूटी टाइम में सो रहे हैं।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा- “उठो भाई साहब, मुझे भी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना है।

ऐलेक्स की तेज आवाज से वह नाग उठ बैठा। अपने पास एक छोटे से मनुष्य को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया।

“कौन हो तुम? और यहां तक कैसे आये?” नाग ने ऐलेक्स से पूछा।

“जब साधारण मनुष्य था, तो चोर था। अब जब शक्तियां भी मिल गयी हैं, तब भी चोर का ही काम मिला है। .....अब उठ भी जाओ और मुझसे लड़ाई करो।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

ऐलेक्स के शब्द सुनकर उस नाग को बहुत आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया।

“मेरा नाम नागफनी है...मेरे रहते तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकते?” नागफनी ने फुंफकारते हुए कहा।

“बिल्कुल सहीं नाम है तुम्हारा...तुम लग भी फनी से रहे हो।” ऐलेक्स ने उस नाग का मजाक उड़ाते हुए कहा।

यह सुन नागफनी ने गुस्से से अपना मुंह खोलकर ऐलेक्स के ऊपर ढेर सारा जहर उगल दिया।

हरे रंग का जहर पानी में फैलकर सीधा ऐलेक्स के मुंह के पास आ गिरा।

“मजा नहीं आया फनी भाई....कुछ और हो तो उसका भी प्रयोग कर लो।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐलेक्स को खड़ा मुस्कुराता देखकर, नागफनी आश्चर्य में पड़ गया।

“मेरे जहर से कैसे बच गये तुम? लगता है कि तुम कोई मायावी राक्षस हो?” नागफनी ने गुस्से से कहा- “पर मेरे पास भी तुम जैसे राक्षसों के लिये बहुत से अस्त्र-शस्त्र हैं।”

यह कहकर नागफनी ने अपना पूंछ को पानी में जोर से हिलाया। नागफनी के ऐसा करते ही पानी में कुछ तलवार और भाले प्रकट होकर ऐलेक्स की ओर लपके।

ऐलेक्स उन तलवार और भालों को देखकर भी अपनी जगह पर खड़ा रहा।

सभी तलवार और भाले ऐलेक्स के शरीर की मोटी त्वचा से टकराकर बेअसर हो गये।

“कुछ और हो तो वह भी आजमा लो, नहीं तो मुझे अगले द्वार की ओर जाने दो।” ऐलेक्स ने उस नाग का उपहास उड़ाते हुए कहा।

इस बार गुस्सा कर नागफनी ने अपने पांचों फन फैला कर सभी मुंह को जोर से खोला।

उसके प्रत्येक मुंह से अलग रंग की नागमणि निकलीं और ऐलेक्स के चारो ओर, पानी का तेज भंवर बनाने लगीं।

“अरे-अरे...यह क्या कर रहे हो?” ऐलेक्स को नागफनी से ऐसे किसी प्रहार का अंदाजा नहीं था।

ऐलेक्स अब उन भंवर में फंसकर तेजी से नाचने लगा। ऐलेक्स को अपना सिर चकराता हुआ सा प्रतीत होने लगा।

वह समझ गया कि नागफनी को उसने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया।

“अब मैं कैसे इस भंवर से बचूं?” ऐलेक्स तेजी से सोचने लगा-“आँख, नाक, कान और जीभ इस प्रहार से मुझे नहीं बचा सकतीं...अब बची त्वचा....पर त्वचा कैसे मुझे इससे बचा सकती है...हां अगर मैं समुद्र की तली पर उतर जाऊं, तो त्वचा की मदद से मैं जमीन से अपने पाँव चिपका सकता हूं।”

ऐलेक्स के इतना सोचते ऐलेक्स का शरीर पानी की तली की ओर स्वतः जाने लगा और कमरे की जमीन को छूते ही ऐलेक्स का पैर उस जमीन पर जम गया।

अब पानी में उत्पन्न लहरें ऐलेक्स का कुछ नहीं कर पा रहीं थी। यह देख नागफनी ने क्रोध में आकर अपनी मणियों को वापस बुला लिया।

ऐलेक्स समझ गया कि अब नागफनी को और मौका देने का मतलब अपने लिये नयी मुसीबतें बुलाना है।

इसलिये इस बार ऐलेक्स नागफनी की ओर तेजी से बढ़ा और इससे पहले की नागफनी अपना किसी भी प्रकार से बचाव कर पाता, ऐलेक्स ने अपने घूंसे से नागफनी के बीच वाले फन पर जोर से प्रहार किया।

वह प्रहार इतना तेज था कि नागफनी को चक्कर आ गया और ऐलेक्स इस मौके का फायदा उठाकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गया।

दूसरे द्वार में एक 50 फुट ऊंचा राक्षस बैठा कुछ खा रहा था। इस कमरे में बिल्कुल भी पानी नहीं था।

“क्या बात है?...इस त्रिआयाम के तो सभी द्वार आलसी लोगों से भरे पड़े हैं...कोई सो रहा है, तो कोई खा रहा है।“ ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

ऐलेक्स की आवाज सुनकर वह राक्षस खाना छोड़कर उठकर खड़ा हो गया।

“अरे...नहीं....नहीं, खाना खाते हुए नहीं उठते, मैं तो बस शरारत कर रहा था, तुम पहले खाना खालो, फिर हम लड़ाई-लड़ाई खेल लेंगे।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कौन हो तुम? तुम तो मनुष्य दिख रहे हो? तुम इस द्वार तक कैसे पहुंच? तुम्हें नागफनी ने रोका क्यों नहीं?” राक्षस ने एक साथ असंख्य सवाल पूछ डाले।

“अरे-अरे....जरा ठहरो राक्षस भाई ...धीरे-धीरे करके सभी सवाल पूछो, मैं एक साथ इतने सारे सवाल देखकर डर जाता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “वैसे आगे वाले कमरे में नागफनी सो रहा है, मैं उसके बगल से होता हुआ इस द्वार तक आ पहुंचा।”

“ये नागफनी भी ना....मैं इसकी शिकायत नागराज से करुंगा।” राक्षस ने कहा।

“बिल्कुल करना....मैं तो कहता हूं कि इसे नौकरी से निकलवा देना... ऐसे नाग त्रिआयाम के लिये कलंक हैं।” ऐलेक्स ने पूरा मजा लेने का मन बना लिया था- “वैसे राक्षस भाई तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम प्रमाली है...मैं नागफनी की तरह नहीं हूं...मैं तुम्हें इस द्वार से अंदर नहीं जाने दूंगा।” प्रमाली ने यह कहकर अपने पास रखी गदा को ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स की त्वचा के कारण उस पर गदा के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, मगर गदा का वार इतना शक्तिशाली था, कि ऐलेक्स उस प्रहार के कारण कई कदम पीछे चला गया।

ऐलेक्स समझ गया कि यहां ज्यादा कॉमेडी करना ठीक नहीं है, अगर उसने प्रमाली को ज्यादा मौका दिया तो वह उसे हरा भी सकता है।

उधर प्रमाली की गदा प्रहार करके वापस प्रमाली के हाथों में पहुंच गई, पर ऐलेक्स को हानि ना पहुंचते देख प्रमाली भी आश्चर्य से भर उठा।

“अच्छा तो तुम भी मायावी हो, तभी तुमने पहला द्वार पार कर लिया है।” यह कहकर प्रमाली ने अपना दाहिना हाथ ऐलेक्स की ओर बढ़ाया।

प्रमाली की हाथ के उंगलियों के नाखून उसके हाथ से निकलकर ऐलेक्स के चेहरे की ओर बढ़े और ऐलेक्स के चेहरे पर तेज खरोंच मारने लगे।

पर प्रमाली के नाखून ऐलेक्स की त्वचा को भेद नहीं पाये। त्वचा को ना भेद पाता देख वह नाखून ऐलेक्स की आँख पर प्रहार करने लगे।

पर ऐलेक्स की आँख का भी कुछ नहीं बिगड़ा। यह देख प्रमाली की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। प्रमाली के नाखून वापस प्रमाली के हाथ में जाकर लग गये।

“वाह...नाखून फेंककर मारते हो... कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने मुझे मैं यह दाँव हमेशा याद रखूंगा।“ ऐलेक्स ने यह कहा और निहत्थे ही प्रमाली की ओर दौड़ लगा दी।

प्रमाली को समझ नहीं आया कि निहत्था ऐलेक्स क्या कर लेगा। इसलिये खड़ा होकर ध्यान से ऐलेक्स को देखने लगा।

ऐलेक्स जा कर प्रमाली के दाहिने पैर से लिपट गया।

यह देख प्रमाली हंसने लगा- “अच्छा ....तो तुम मेरे पैर पकड़कर क्षमा मांगने आये हो।”

तभी ऐलेक्स के पूरे शरीर से 4 फिट लंबे धारदार काँटे निकल आये और उन काँटों ने प्रमाली का पैर जगह-जगह से बुरी तरह से काट दिया।

प्रमाली कराह कर जमीन पर गिर गया। ऐलेक्स के पास यही मौका था, वह दौड़कर प्रमाली के शरीर पर चढ़ गया और अपने शरीर पर निकले काँटों से प्रमाली के पूरे शरीर को घायल करने लगा।

प्रमाली के पूरे शरीर से खून की धाराएं बहने लगीं।

इस समय प्रमाली का पूरा ध्यान अपने शरीर से बह रहे खून की ओर था, ऐलेक्स इसी का फायदा उठा कर तीसरे द्वार में प्रवेश कर गया।



जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अप्रतिम मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सुयश और उसकी टीम पहाडी पर से निकलने में कामयाब हो गई
वही ऐलेक्स फल खाकर त्रिआयामी पहुंच गया वहा प्रथम व्दार पर नागफनी को परास्त कर दुसरें व्दार पर पहुंच गया वहा भी प्रमाली को लगभग परास्त कर तिसरें व्दार की ओर बढ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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“कैप्टेन जूते और हेलमेट से तो समझ में आता है, पर मुझे नहीं लगता कि इस छड़ी के द्वारा हम उड़ पायेंगे?” तौफीक ने कहा।

“अगर हम इस छड़ी से उड़ नहीं सकते, तो फिर इसके यहां होने का क्या मतलब है?” सुयश ने कहा।

“मतलब तो उस घोड़े का भी अभी तक समझ में नहीं आया?” शैफाली ने कहा- “एक मिनट रुकिये कैप्टेन अंकल...कहीं वह घोड़ा ‘पेगासस’ तो नहीं?”

“अब ये पेगासस कौन है?” सुयश ने पूछा।

“शायद आपको याद नहीं है कैप्टेन अंकल, अलबर्ट अंकल ने जब हमें मेडूसा की कहानी सुनाई थी, तो बताया था कि मेडूसा के मरने के बाद जब उसका खून समुद्र में मिला, तो एक उड़ने वाले घोड़े पेगासस का जन्म हुआ था।... इसलिये तो कह रहीं हूं कि कहीं ये पेगासस तो नहीं?” शैफाली ने सभी को पुरानी बातें याद दिलाते हुए कहा।

“पर पेगासस के पंख थे शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “जबकि इस घोड़े के पंख नहीं हैं।”

“कहीं ये छड़ी के पंख उस घोड़े के तो नहीं लगेंगे।” सुयश ने कहा।

वैसे सुयश की बातों में कोई लॉजिक तो नहीं था, फिर भी क्रिस्टी ने उस जादुई छड़ी के पंख निकालने की कोशिश की।

जरा सी देर में छड़ी के पंख क्रिस्टी के हाथों में थे।

जैसे ही क्रिस्टी ने उन पंखों को उस घोड़े की पीठ से सटाया। आश्चर्यजनक ढंग से वह पंख घोड़े के शरीर पर फिट हो गये।

पंख लगते ही घोड़ा जोर से हिनहिनाकर सजीव हो गया और अपने पंख को जोर-जोर से हिलाने लगा।

“हुर्रेऽऽऽऽ यह पेगासस ही है।” शैफाली ने जोर से जयकारा लगाया। सभी शैफाली की यह बच्चों जैसी हरकत देख कर हंस पड़े।

तभी हरमीस की मूर्ति भी वहां से गायब हो गई।

“तौफीक एक बार फिर अब उन छेदों को चेक करो, शायद अब वह खुल गये हों?” सुयश ने तौफीक से कहा।

तौफीक ने सुयश की बात मान एक बार फिर से सभी छेदों को चेक किया, पर उन छेदों पर अदृश्य दीवार अभी भी बनी थी।

“ये क्या कैप्टेन अंकल....हमने इस मायाजाल का यह भाग तो पूरा कर लिया, फिर वह छेद खुले क्यों नहीं?” शैफाली ने पुनः मुंह बनाते हुए कहा।

तभी जेनिथ की नजर बचे हुए एडमैन्टाइन के टुकड़े पर पड़ी, जो अब भी वहां पड़ा हुआ था।

कुछ सोच जेनिथ ने वह एडमैन्टाइन का टुकड़ा उठा लिया। जेनिथ को उस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा हुआ दिखाई दिया।

“कैप्टेन इस टुकड़े पर गणित का 2 लिखा है, इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने सुयश को वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।

“अगर उस झील में घुसने के लिये एडमैन्टाइन के गोले की जरुरत थी, तो कहीं ऐसा तो नहीं कि इस छेद से निकलने के लिये भी हमें इस टुकड़े की जरुरत हो।”

क्रिस्टी के शब्द सुयश को सही प्रतीत हुए, इसलिये उसने 2 नम्बर वाले छेद के पास पहुंचकर उस टुकड़े को फेंका।

टुकड़ा उस छेद से बाहर निकल गया और इसी के साथ 2 नम्बर छेद का अदृश्य द्वार खुल गया।

यह देखकर सभी खुश होकर वहां से निकलने के लिये तैयार हो गये।

“तीनों लड़कियां पेगासस पर बैठेंगी और मैं सुनहरे जूते का प्रयोग करुंगा, तौफीक तुम पंखों वाले हेलमेट का प्रयोग करोगे...इसी की सहायता से हम यहां से निकलेंगे। अगर किसी को अपनी जादुई चीज को प्रयोग में लाकर देखना है, तो वह इसी पहाड़ में देख लो, बाहर हमारे पास दूसरा मौका नहीं मिलेगा।”

सुयश के शब्द सुन सभी ने एक बार अपनी जादुई वस्तु को प्रयोग करके देख लिया और पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद वह सभी झरने के छेद नम्बर 2 से उड़कर पहाड़ के नीचे की ओर चल दिये।


चैपटर-12 , त्रिआयाम:

(14 जनवरी 2002, सोमवार, 14:20, त्रिआयाम क्षेत्र, नागलोक)

ऐलेक्स की जब आँख खुली, तो वह समुद्र के अंदर था। हर तरफ नीले रंग का पानी चारो ओर फैला हुआ था।

आँखें खोलते ही ऐलेक्स घबरा गया। पर धीरे-धीरे उसे महसूस हुआ कि वह पानी के अंदर भी आसानी से साँस ले रहा है।

ऐलेक्स ने अगल-बगल तैर कर देखा, वह आसानी से किसी मछली की भांति तैर भी ले रहा था।

ऐलेक्स को पास में ही एक बड़ी सी समुद्री चट्टान दिखाई दी। ऐलेक्स ने परीक्षण करने के लिये अपना घूंसा जोर से चट्टान पर मारा।

ऐलेक्स के एक ही वार से चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये। यह देख ऐलेक्स खुशी से भर उठा। इस समय उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे वह कोई सुपर हीरो हो।

ऐलेक्स ने अब अपने चारो ओर दृष्टि दौड़ाई, पर उसे कहीं भी त्रिआयाम दिखाई नहीं दिया।

“स्थेनो ने तो कहा था कि फल खाते ही मैं त्रिआयाम के पास पहुंच जाऊंगा, पर यहां तो दूर-दूर तक त्रिआयाम का कहीं निशान तक नहीं है।....लेकिन स्थेनो गलत नहीं कह सकती...त्रिआयाम यहीं कहीं होना
चाहिये? मुझे अपनी आँखों का प्रयोग करना चाहिये, पर कैसे? मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपनी आँखों का उपयोग करना कैसे है? वाह रे सुपर हीरो ! खुद को ही नहीं पता कि शक्तियों का उपयोग करना कैसे है? और आ गये नागलोक राक्षसों और देवताओं से लड़ने।”

ऐलेक्स भी पागलों की तरह स्वयं ही बड़बड़ा रहा था।

ऐलेक्स ने अपनी आँखों को एक बार बंद किया और फिर जोर से खोला।

ऐलेक्स के तेज आँख खोलते ही ऐलेक्स की आँखों से एक किरण निकलकर समुद्र में फैल गयी।

अब ऐलेक्स को समुद्र में एक विशाल पारदर्शी गोला तैरता हुआ दिखाई दिया। वह गोला कम से 500 फिट बड़ा तो जरुर रहा होगा।

“यह कैसा पारदर्शी गोला है...कहीं यही तो त्रिआयाम नहीं?” यह सोचकर ऐलेक्स धीरे-धीरे पानी में तैरता हुआ उस गोले के पास पहुंच गया।

अब ऐलेक्स को उसे गोले में बना एक छोटा सा दरवाजा दिखाई देने लगा था। ऐलेक्स उस दरवाजे से अंदर प्रवेश कर गया।

अंदर एक बड़ा सा कमरा बना था, जिसमें हर ओर पानी भरा हुआ था और उसमें एक 5 सिर वाला नाग सो रहा था।

“ये लो...यहां इतनी सारी शक्तियां रखीं हैं और ये भाई साहब ड्यूटी टाइम में सो रहे हैं।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा- “उठो भाई साहब, मुझे भी अपनी शक्तियों का परीक्षण करना है।

ऐलेक्स की तेज आवाज से वह नाग उठ बैठा। अपने पास एक छोटे से मनुष्य को देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया।

“कौन हो तुम? और यहां तक कैसे आये?” नाग ने ऐलेक्स से पूछा।

“जब साधारण मनुष्य था, तो चोर था। अब जब शक्तियां भी मिल गयी हैं, तब भी चोर का ही काम मिला है। .....अब उठ भी जाओ और मुझसे लड़ाई करो।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।

ऐलेक्स के शब्द सुनकर उस नाग को बहुत आश्चर्य हुआ। वह उठकर बैठ गया।

“मेरा नाम नागफनी है...मेरे रहते तुम यहां से कुछ भी नहीं ले जा सकते?” नागफनी ने फुंफकारते हुए कहा।

“बिल्कुल सहीं नाम है तुम्हारा...तुम लग भी फनी से रहे हो।” ऐलेक्स ने उस नाग का मजाक उड़ाते हुए कहा।

यह सुन नागफनी ने गुस्से से अपना मुंह खोलकर ऐलेक्स के ऊपर ढेर सारा जहर उगल दिया।

हरे रंग का जहर पानी में फैलकर सीधा ऐलेक्स के मुंह के पास आ गिरा।

“मजा नहीं आया फनी भाई....कुछ और हो तो उसका भी प्रयोग कर लो।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

ऐलेक्स को खड़ा मुस्कुराता देखकर, नागफनी आश्चर्य में पड़ गया।

“मेरे जहर से कैसे बच गये तुम? लगता है कि तुम कोई मायावी राक्षस हो?” नागफनी ने गुस्से से कहा- “पर मेरे पास भी तुम जैसे राक्षसों के लिये बहुत से अस्त्र-शस्त्र हैं।”

यह कहकर नागफनी ने अपना पूंछ को पानी में जोर से हिलाया। नागफनी के ऐसा करते ही पानी में कुछ तलवार और भाले प्रकट होकर ऐलेक्स की ओर लपके।

ऐलेक्स उन तलवार और भालों को देखकर भी अपनी जगह पर खड़ा रहा।

सभी तलवार और भाले ऐलेक्स के शरीर की मोटी त्वचा से टकराकर बेअसर हो गये।

“कुछ और हो तो वह भी आजमा लो, नहीं तो मुझे अगले द्वार की ओर जाने दो।” ऐलेक्स ने उस नाग का उपहास उड़ाते हुए कहा।

इस बार गुस्सा कर नागफनी ने अपने पांचों फन फैला कर सभी मुंह को जोर से खोला।

उसके प्रत्येक मुंह से अलग रंग की नागमणि निकलीं और ऐलेक्स के चारो ओर, पानी का तेज भंवर बनाने लगीं।

“अरे-अरे...यह क्या कर रहे हो?” ऐलेक्स को नागफनी से ऐसे किसी प्रहार का अंदाजा नहीं था।

ऐलेक्स अब उन भंवर में फंसकर तेजी से नाचने लगा। ऐलेक्स को अपना सिर चकराता हुआ सा प्रतीत होने लगा।

वह समझ गया कि नागफनी को उसने कुछ ज्यादा ही हल्के में ले लिया।

“अब मैं कैसे इस भंवर से बचूं?” ऐलेक्स तेजी से सोचने लगा-“आँख, नाक, कान और जीभ इस प्रहार से मुझे नहीं बचा सकतीं...अब बची त्वचा....पर त्वचा कैसे मुझे इससे बचा सकती है...हां अगर मैं समुद्र की तली पर उतर जाऊं, तो त्वचा की मदद से मैं जमीन से अपने पाँव चिपका सकता हूं।”

ऐलेक्स के इतना सोचते ऐलेक्स का शरीर पानी की तली की ओर स्वतः जाने लगा और कमरे की जमीन को छूते ही ऐलेक्स का पैर उस जमीन पर जम गया।

अब पानी में उत्पन्न लहरें ऐलेक्स का कुछ नहीं कर पा रहीं थी। यह देख नागफनी ने क्रोध में आकर अपनी मणियों को वापस बुला लिया।

ऐलेक्स समझ गया कि अब नागफनी को और मौका देने का मतलब अपने लिये नयी मुसीबतें बुलाना है।

इसलिये इस बार ऐलेक्स नागफनी की ओर तेजी से बढ़ा और इससे पहले की नागफनी अपना किसी भी प्रकार से बचाव कर पाता, ऐलेक्स ने अपने घूंसे से नागफनी के बीच वाले फन पर जोर से प्रहार किया।

वह प्रहार इतना तेज था कि नागफनी को चक्कर आ गया और ऐलेक्स इस मौके का फायदा उठाकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गया।

दूसरे द्वार में एक 50 फुट ऊंचा राक्षस बैठा कुछ खा रहा था। इस कमरे में बिल्कुल भी पानी नहीं था।

“क्या बात है?...इस त्रिआयाम के तो सभी द्वार आलसी लोगों से भरे पड़े हैं...कोई सो रहा है, तो कोई खा रहा है।“ ऐलेक्स ने तेज आवाज में कहा।

ऐलेक्स की आवाज सुनकर वह राक्षस खाना छोड़कर उठकर खड़ा हो गया।

“अरे...नहीं....नहीं, खाना खाते हुए नहीं उठते, मैं तो बस शरारत कर रहा था, तुम पहले खाना खालो, फिर हम लड़ाई-लड़ाई खेल लेंगे।” ऐलेक्स ने मुस्कुराते हुए कहा।

“कौन हो तुम? तुम तो मनुष्य दिख रहे हो? तुम इस द्वार तक कैसे पहुंच? तुम्हें नागफनी ने रोका क्यों नहीं?” राक्षस ने एक साथ असंख्य सवाल पूछ डाले।

“अरे-अरे....जरा ठहरो राक्षस भाई ...धीरे-धीरे करके सभी सवाल पूछो, मैं एक साथ इतने सारे सवाल देखकर डर जाता हूं।” ऐलेक्स ने कहा- “वैसे आगे वाले कमरे में नागफनी सो रहा है, मैं उसके बगल से होता हुआ इस द्वार तक आ पहुंचा।”

“ये नागफनी भी ना....मैं इसकी शिकायत नागराज से करुंगा।” राक्षस ने कहा।

“बिल्कुल करना....मैं तो कहता हूं कि इसे नौकरी से निकलवा देना... ऐसे नाग त्रिआयाम के लिये कलंक हैं।” ऐलेक्स ने पूरा मजा लेने का मन बना लिया था- “वैसे राक्षस भाई तुम्हारा नाम क्या है?”

“मेरा नाम प्रमाली है...मैं नागफनी की तरह नहीं हूं...मैं तुम्हें इस द्वार से अंदर नहीं जाने दूंगा।” प्रमाली ने यह कहकर अपने पास रखी गदा को ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स की त्वचा के कारण उस पर गदा के प्रहार का कोई असर नहीं हुआ, मगर गदा का वार इतना शक्तिशाली था, कि ऐलेक्स उस प्रहार के कारण कई कदम पीछे चला गया।

ऐलेक्स समझ गया कि यहां ज्यादा कॉमेडी करना ठीक नहीं है, अगर उसने प्रमाली को ज्यादा मौका दिया तो वह उसे हरा भी सकता है।

उधर प्रमाली की गदा प्रहार करके वापस प्रमाली के हाथों में पहुंच गई, पर ऐलेक्स को हानि ना पहुंचते देख प्रमाली भी आश्चर्य से भर उठा।

“अच्छा तो तुम भी मायावी हो, तभी तुमने पहला द्वार पार कर लिया है।” यह कहकर प्रमाली ने अपना दाहिना हाथ ऐलेक्स की ओर बढ़ाया।

प्रमाली की हाथ के उंगलियों के नाखून उसके हाथ से निकलकर ऐलेक्स के चेहरे की ओर बढ़े और ऐलेक्स के चेहरे पर तेज खरोंच मारने लगे।

पर प्रमाली के नाखून ऐलेक्स की त्वचा को भेद नहीं पाये। त्वचा को ना भेद पाता देख वह नाखून ऐलेक्स की आँख पर प्रहार करने लगे।

पर ऐलेक्स की आँख का भी कुछ नहीं बिगड़ा। यह देख प्रमाली की आँखें कुछ सोचने वाले अंदाज में सिकुड़ गयीं। प्रमाली के नाखून वापस प्रमाली के हाथ में जाकर लग गये।

“वाह...नाखून फेंककर मारते हो... कितना अच्छा आइडिया दिया तुमने मुझे मैं यह दाँव हमेशा याद रखूंगा।“ ऐलेक्स ने यह कहा और निहत्थे ही प्रमाली की ओर दौड़ लगा दी।

प्रमाली को समझ नहीं आया कि निहत्था ऐलेक्स क्या कर लेगा। इसलिये खड़ा होकर ध्यान से ऐलेक्स को देखने लगा।

ऐलेक्स जा कर प्रमाली के दाहिने पैर से लिपट गया।

यह देख प्रमाली हंसने लगा- “अच्छा ....तो तुम मेरे पैर पकड़कर क्षमा मांगने आये हो।”

तभी ऐलेक्स के पूरे शरीर से 4 फिट लंबे धारदार काँटे निकल आये और उन काँटों ने प्रमाली का पैर जगह-जगह से बुरी तरह से काट दिया।

प्रमाली कराह कर जमीन पर गिर गया। ऐलेक्स के पास यही मौका था, वह दौड़कर प्रमाली के शरीर पर चढ़ गया और अपने शरीर पर निकले काँटों से प्रमाली के पूरे शरीर को घायल करने लगा।

प्रमाली के पूरे शरीर से खून की धाराएं बहने लगीं।

इस समय प्रमाली का पूरा ध्यान अपने शरीर से बह रहे खून की ओर था, ऐलेक्स इसी का फायदा उठा कर तीसरे द्वार में प्रवेश कर गया।



जारी रहेगा_______✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अप्रतिम मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सुयश और उसकी टीम पहाडी पर से निकलने में कामयाब हो गई
वही ऐलेक्स फल खाकर त्रिआयामी पहुंच गया वहा प्रथम व्दार पर नागफनी को परास्त कर दुसरें व्दार पर पहुंच गया वहा भी प्रमाली को लगभग परास्त कर तिसरें व्दार की ओर बढ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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सुयश और उसकी टीम पहाडी पर से निकलने में कामयाब हो गई
वही ऐलेक्स फल खाकर त्रिआयामी पहुंच गया वहा प्रथम व्दार पर नागफनी को परास्त कर दुसरें व्दार पर पहुंच गया वहा भी प्रमाली को लगभग परास्त कर तिसरें व्दार की ओर बढ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Thanks for your wonderful review and superb support bhai :thankyou:
Do dwar paar karke 3rd dwaar per pahuch gaya alex, aur wo bhi paar kar hi lega, aage kya hota hai ye dekhne ke liye sath bane rahiye :shakehands:
 

Raj_sharma

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सुयश और उसकी टीम पहाडी पर से निकलने में कामयाब हो गई
वही ऐलेक्स फल खाकर त्रिआयामी पहुंच गया वहा प्रथम व्दार पर नागफनी को परास्त कर दुसरें व्दार पर पहुंच गया वहा भी प्रमाली को लगभग परास्त कर तिसरें व्दार की ओर बढ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
Thank you very much for your wonderful review and support bhai aagla update bhi post kar diya hai, aapke valuable comments ka intezaar rahega . :thankyou:
 

Raj_sharma

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#137.

तीसरे द्वार के अंदर एक योद्धा स्त्री और पुरुष, काले रंग का धातु का कवच पहने सावधान की मुद्रा में खड़े थे। दोनों के ही कवच पर सामने की ओर एक गोले में मुंह खोले नाग का फन बना था।

दूर से देखने पर ही दोनों कोई पौराणिक योद्धा लग रहे थे।

ऐलेक्स को अपनी ओर देखता हुआ पाकर पुरुष योद्धा बोल उठा- “मेरा नाम पिनाक और इसका नाम शारंगा है। हमारे पास देव शक्तियां हैं। तुम अभी तक तो दोनों द्वार पारकर यहां आ पहुंचे हो, पर मेरा वादा है कि हम तुम्हें इस द्वार को पार करने नहीं देंगे।”

“कुछ ऐसा ही पिछले द्वार मौजूद नागफनी और प्रमाली भी कह रहे थे।” ऐलेक्स ने हंसकर कहा।

“तो फिर बातों में समय नष्ट नहीं करते हैं, तुम द्वार के अंदर घुसने की कोशिश करो और हम देखते हैं कि हम तुम्हें रोक पायेंगे कि नहीं।” पिनाक ने कहा।

“ठीक है।” यह कहकर ऐलेक्स अगले द्वार की ओर बढ़ा।

तभी पिनाक के हाथ से कई जहरीले साँप निकलकर ऐलेक्स के पैरों में लिपट गये। आगे बढ़ता हुआ ऐलेक्स लड़खड़ा कर रुक गया।

उसने एक नजर पैर में लिपटे साँपों की ओर देखा और इसी के साथ ऐलेक्स के पैर में फिर से बड़े-बड़े काँटे उभर आये। जिससे उसके पैर को बांधे हुए सभी साँप जख्मी हो गये और उन्होंने ऐलेक्स के पाँव को छोड़ दिया।

यह देख शारंगा के हाथ में एक फरसा जैसा अस्त्र नजर आने लगा, शारंगा ने वह अस्त्र ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स ने शारंगा के अस्त्र फेंकते देख लिया था, पर फिर भी उसने हटने की कोशिश नहीं की।

शारंगा का फेंका हुआ फरसा ऐलेक्स की गर्दन से आकर टकराया।

एक तेज ध्वनि के साथ ऐलेक्स के शरीर से चिंगारी निकली पर ऐलेक्स के शरीर को कोई अहित नहीं हुआ।

“इसके पास तो महा देव की शक्ति है।” शारंगा ने हैरान होते हुए पिनाक से कहा।

“ये कैसे सम्भव है? ये तो साधारण मनुष्य लग रहा है और ऊपर से दूसरे देश का भी लग रहा है, इसके पास देव की शक्तियां कैसे आयेंगी?” पिनाक ने कहा।

चूंकि पिनाक और शारंगा मानसिक तरंगों के द्वारा बात कर रहे थे इसलिये उन्हें लग रहा था कि ऐलेक्स को ये बातें सुनाई नहीं दे रही होंगी।

पर ऐलेक्स के कान की इंद्रिय की क्षमता बढ़ जाने की वजह से, वह मानसिक तरंगें तो क्या मन की बात भी सुन सकता था।

पर ऐलेक्स ने पिनाक और शारंगा पर ये बात जाहिर नहीं होने दी कि उसे उन दोनों की बात सुनाई दे रही है। वह चुपचाप से सारी बातें सुन रहा था।

लेकिन उन दोनों की बातें सुन ऐलेक्स ये समझ गया था कि यह दोनों बुरे इंसान नहीं हैं, इसलिये ऐलेक्स उन दोनों का अहित नहीं करना चाहता था।

इस बार पिनाक ने हवा में हाथ किया। ऐसा करते ही उसके हाथ एक सुनहरे रंग की रस्सी आ गयी, जिसे उसने ऐलेक्स की ओर फेंक दिया।

वह सुनहरी रस्सी किसी सर्प की तरह आकर ऐलेक्स के पूरे शरीर से लिपट गयी।

ऐलेक्स ने ध्यान से देखा, वह पाश बहुत सारे सुनहरे सर्पों से ही निर्मित था।

“यह नागपाश है। यह देवताओं का अस्त्र है। तुम अपने शरीर पर काँटे निकालकर भी इस अस्त्र से बच नहीं सकते। इस ‘पाश’ में हजारों सर्पों की शक्ति है, इस शक्ति को गरुण के अलावा कोई भी नहीं काट
सकता। तुम अपने शरीर को बड़ा छोटा भी करके इस शक्ति से नहीं बच सकते।” पिनाक के शब्द अब पूर्ण विश्वास से भरे नजर आ रहे थे।

“तुम्हें पूर्ण विश्वास है कि मैं इस शक्ति से नहीं छूट सकता?” ऐलेक्स ने पिनाक से कहा।

“हां, पूर्ण विश्वास है।” पिनाक ने अपने सिर को हिलाते हुए कहा।

“अगर मैं इस शक्ति से छूट गया तो क्या तुम मुझे वो चीज ले जाने दोगे? जो मैं लेने यहां पर आया हूं।” ऐलेक्स ने भी मुस्कुराते हुए कहा।

“ठीक है। दे दूंगा, पर अगर तुम इस शक्ति से नहीं छूट पाये तो तुम अपने आप को हमारे हवाले कर दोगे और हमसे युद्ध नहीं करोगे।” पिनाक ने कहा।

शारंगा सबकुछ शांति से बैठी सुन रही थी। वैसे उसे पिनाक की यह शर्त पसंद नहीं आयी थी, पर उसने बीच में टोकना सही नहीं समझा।

“मुझे मंजूर है।” ऐलेक्स ने शर्त को स्वीकार कर लिया।

“तो फिर तुम्हारे पास इस नागपाश से निकलने के लिये 1 घंटे का समय है। अब कोशिश करके देख सकते हो।” पिनाक ने गर्व भरी नजरों से अपने अस्त्र को निहारते हुए कहा।

शारंगा की नजरें पूरी तरह से ऐलेक्स पर थीं।

अभी 30 सेकेण्ड भी नहीं बीते थे कि उस नागपाश ने ऐलेक्स को छोड़ दिया, जबकि ऐलेक्स ने अपने शरीर से काँटे भी नहीं निकाले थे।

यह देख पिनाक के पैरों तले जमीन निकल गयी।

“यह....यह तुमने कैसे किया?” पिनाक ने अपने हथियार डालते हुए कहा।

“तुमने स्वयं मुझे इस नागपाश से बचने का तरीका बताया और स्वयं ही आश्चर्य व्यक्त कर रहे हो।” ऐलेक्स के होठों पर अब गहरी मुस्कान थी।

“मैंने!....मैंने कब बताया ?” पिनाक के चेहरे पर उलझन के भाव नजर आये।

“अरे....तुमने ही तो कहा था कि इस शक्ति को तो केवल गरुण ही काट सकता है, फिर क्या था, मैंने अपने शरीर की त्वचा को गरुण के समान बना लिया, जिससे स्वयं ही नागपाश के सभी सर्प भयभीत होकर भाग गये।”

ऐलेक्स ने कहा- “और अब शर्त के मुताबिक अब तुम मुझे आगे वाले कमरे से लाकर एक बोतल दोगे, जो विषाका यहां लाकर छिपा गया है।”

“बोतल...तुम्हें उस कमरे में रखे सैकड़ों दिव्यास्त्र के बजाय सिर्फ एक साधारण सी बोतल चाहिये?” इस बार पिनाक के साथ शारंगा भी आश्चर्य में पड़ गयी।

शर्त के अनुसार पिनाक दूसरे कमरे में रखी बोतल ले आया और उसे ऐलेक्स के हाथ में पकड़ा दिया।

“क्या मैं पूछ सकती हूं कि इस बोतल में ऐसा क्या है? जिसे लेने तुम इतनी खतरनाक जगह पर आ गये?” शारंगा ने ऐलेक्स से पूछा।

“इस बोतल में मेरी बहन की स्मृतियां हैं, जिन्हें विषाका मुझे धोका देकर लेकर भाग आया था।” ऐलेक्स ने बोतल को देखते हुए कहा।

“तुम्हारे यहां आने का उद्देश्य गलत नहीं था, तुम इंसान भी सही लग रहे हो। क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम्हें ये देव शक्तियां कहां से प्राप्त हुईं?” पिनाक ने ऐलेक्स को जाता देख आखिरी सवाल पूछ लिया।

“मुझे भी इन देव शक्तियों के बारे में ज्यादा नहीं पता। मुझे भी ये देव शक्तियां सिर्फ इस कार्य को पूरा करने के लिये ही मिली हैं। अच्छा अब मैं चलता हूं...और हां...विषाका मिले तो उसे बता देना कि ऐलेक्स आया था और वह यह बोतल ले गया। इसलिये जब वो किसी को मेरी कहानी सुनाए तो इस कहानी का अंत जरुर बताये।”

ऐलेक्स के ये शब्द पिनाक और शारंगा को समझ नहीं आये, पर उन्होंने ऐलेक्स को फिर नहीं टोका।

ऐलेक्स ने अब अपनी जेब से निकालकर स्थेनों का दिया दूसरा फल खा लिया और कणों में बदलकर मायावन की ओर चल दिया, पर जाते समय वह खाली हाथ नहीं था। उसके पास थी मैग्ना की स्मृतियां।

ऐलेक्स अपनी गलती को सुधार लिया था और शायद नागलोक के इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा दी थी।

तिलिस्मी अंगूठी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:20, मायावन, अराका द्वीप)

सुयश सहित सभी हेफेस्टस के द्वारा बनाई गयी उन अद्भुत चीजों से झरने वाले पर्वत से उतरकर नीचे आ गये थे।

नीचे आते ही वह सभी जादुई वस्तुएं अपने आप हवा में गायब हो गईं थीं, मगर अब इन लोगों को उन जादुई वस्तुओं की जरुरत भी नहीं थी, क्यों कि एक छोटे से पहाड़ के बाद आगे पोसाईडन पर्वत नजर आने लगा था।

शाम होने वाली थी, इसलिये सभी ने उस छोटे से पहाड़ के नीचे एक हरे-भरे बाग में रात बिताने का निर्णय लिया।

उस हरे-भरे बाग में छोटे-छोटे पेड़ों के बीच कुछ गिलहरियां और खरगोश कूद रहे थे।

सूरज अब अस्त ही होने वाला था, पर आसमान में सूरज के आगे कुछ सफेद बादलों की टुकड़ी सूरज के साथ लुका छिपी का खेल, खेल रहे थे।

आज बहुत दिन बाद सुयश को थोड़ा रिलैक्स महसूस हो रहा था, शायद ऐसा शलाका के मिलने के कारण हुआ था।

तौफीक, जेनिथ, क्रिस्टी और शैफाली भी हंस-हंस कर आपस में बातें कर रहे थे।

सुयश इस समय थोड़ी देर अकेले बैठना चाहता था, इसलिये उनसे कुछ दूर आकर, एक छोटी सी चट्टान पर बैठकर, सूरज और बादल की लुका छिपी देखने लगा।

बड़ा ही अद्भुत नजारा था, कभी सूरज की किरणें आकर सुयश के माथे और आँखों पर टकरातीं तो कभी गायब हो जातीं।

तभी आसमान से सूरज की एक पतली किरण जमीन पर आयी, और एक स्थान पर गिरने लगीं।

सुयश की नजरें अनायास ही उस स्थान पर पड़ीं, जहां सूरज की किरणें गिरकर एक चमक बिखेर रही थी।

सुयश को उस स्थान पर कुछ सफेद रंग का पड़ी हुई चीज दिखाई दी।

सुयश उस चट्टान से उठा और उस चीज की ओर बढ़ चला।

पास पहुंचने पर पता चला कि वह एक सफेद प्यारा सा खरगोश था, जिसकी पीठ से खून निकल रहा था और वह जमीन पर मूर्छित पड़ा हुआ था।

“यहां इस खरगोश को किसने मार दिया?” सुयश ने यह सोच उस खरगोश को अपने हाथों में उठा लिया।

खरगोश की पीठ पर एक घाव था, जो शायद किसी हमला करने वाले पक्षी के काटने से हुआ था।

तभी सुयश को एक और नन्हा खरगोश एक छोटे से पेड़ के पास दिखाई दिया, जो अपने 2 पैरों पर खड़ा होकर सुयश की ओर ही देख रहा था।

“लगता है कि यह मादा खरगोश है और वह नन्हा खरगोश इसका बच्चा है।” कुछ सोचकर सुयश अपने दोस्तों की ओर बढ़ गया।

“अरे कैप्टेन, यह खरगोश कहां से मार लाये, आज मांसाहारी खाना खाने का मन है क्या?” तौफीक ने सुयश के हाथ में पकड़े खरगोश को देखते हुए पूछा।

“अरे नहीं-नहीं...मैंने इसे नहीं मारा, इसे शायद किसी पक्षी ने घायल कर दिया है, मैं तो इसकी ड्रेसिंग करने जा रहा हूं।” यह कहकर सुयश ने बैग खोलकर एक फर्स्ट एड का पैकेट निकाल लिया।

तभी शैफाली की नजर दूसरे छोटे से खरगोश पर पड़ी- “अरे यह छोटा खरगोश भी आपके पीछे-पीछे आ गया।”

“वह नन्हा खरगोश शायद इसका बच्चा है, जो इसे अकेले नहीं छोड़ना चाहता।” सुयश ने बड़े खरगोश की पीठ पर दवा लगाते हुए कहा- “माँ और बच्चे का रिश्ता इस दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता है। दोनों एक
दूसरे से कभी अलग नहीं होना चाहते।”

सुयश की बातें सुन शैफाली को भी मारथा की याद आ गयी- “आप सही कह रहे हैं कैप्टेन अंकल।”

सुयश उदास शैफाली को देख समझ गया कि शैफाली को अपने पैरेंट्स की याद आ रही है, इसलिये सुयश ने बात बदलने के लिये कहा-
“अरे शैफाली, देखो जरा वह नन्हा खरगोश तुम्हारे पास आता है कि नहीं?”

सुयश की बात सुन शैफाली उस नन्हें खरगोश की ओर बढ़ी, पर नन्हा खरगोश शैफाली से डरकर पीछे हटने लगा।

तब तक सुयश ने मादा खरगोश की पट्टी भी कर दी, अब वह मादा खरगोश थोड़ा चैतन्य हो गयी थी और सुयश को देख कर कुछ समझने की कोशिश कर रही थी।

“चलो, अब इसे इसके घर तक छोड़ आते हैं।”सुयश ने शैफाली को देखते हुए कहा।

“पर आप इसका घर कैसे ढूंढोगे?” शैफाली ने पूछा।

“अरे वह है ना नन्हा गाइड। देखो कैसे आगे-आगे कूद रहा है।” सुयश ने शैफाली को नन्हें खरगोश की ओर इशारा करते हुए कहा।

नन्हा खरगोश सच में इस तरह कूदते हुए आगे चल रहा था, जैसे कि वह सुयश को रास्ता दिखा रहा हो।

यह देख शैफाली मुस्कुरा दी और सुयश के पीछे-पीछे चलने लगी।

नन्हा खरगोश कुछ दूर जा कर एक पेड़ के पास बने बिल के पास रुक गया। उसने पलटकर एक बार सुयश को देखा और फिर कूदकर उस बिल के अंदर चला गया।

सुयश ने मादा खरगोश को भी धीरे से उस बिल के पास रख दिया।

मादा खरगोश उठी और धीरे-धीरे चलते हुए उस बिल के अंदर चली गयी।

“अरे वाह कैप्टेन अंकल, आपने तो आज के दिन का सबसे अच्छा काम किया है।” शैफाली ने खुश होते हुए कहा।

सुयश मुस्कुराया और उठकर वापस चलने लगा। तभी सुयश को अपने पीछे से एक ‘चूं-चूं’ की आवाज सुनाई दी।

आवाज को सुन सुयश ने पीछे पलटकर देखा, उसके पीछे वही नन्हा खरगोश था, जो अपने आगे के दोनों हाथों में कोई सुनहरी चीज पकड़े हुए था।

उसे देख सुयश ने मुस्कुरा कर कहा- “अरे वाह, हमारा नन्हा दोस्त हमारे लिये कोई गिफ्ट लाया है।” सुयश उस नन्हें खरगोश के सामने अपने घुटनों के बल बैठ गया।

नन्हा खरगोश धीरे-धीरे 2 पैरों पर चलता हुआ सुयश के हाथ के पास आया और उसने सुयश के हाथ पर कोई सुनहरी चीज रख दी।

सुयश ने उस चीज को देखा, वह एक सुनहरे रंग की धातु की बनी एक अंगूठी थी, जिसके आगे एक गोल काले रंग का रत्न लगा था।

पूरी अंगूठी तेज चमक बिखेर रही थी।

सुयश को खुश देख वह नन्हा खरगोश फुदकता हुआ, अपने बिल की ओर चल दिया। सुयश आश्चर्य से कभी उस नन्हें खरगोश को, तो कभी अपने हाथ में पकड़ी उस सुनहरी अंगूठी को देख रहा था।

“अरे वाह कैप्टेन अंकल, नन्हें दोस्त नें तो आपको बहुत ही कीमती उपहार दिया है।” शैफाली ने अंगूठी को देखते हुए कहा- “जरा पहनकर दिखाइये तो कि यह आपके हाथ में कैसी लगेगी?”

शैफाली की बात सुन सुयश ने उस अंगूठी को अपने सीधे हाथ की ‘रिंग फिंगर’ में पहनने की कोशिश की, पर वह अंगूठी उसकी उंगली में ढीली पड़ रही थी।

यह देख सुयश ने उसे ‘मिडिल फिंगर’ में पहनने की कोशिश की, पर वह उस उंगली में भी ढीली पड़ रही थी।

“यह मेरे हाथ में फिट नहीं हो रही, शायद यह किसी विशाल हाथ के लिये बनी है।” सुयश ने अंगूठी को देखते हुए कहा।

“जरा मुझे भी दिखाइये कैप्टेन अंकल।”शैफाली ने अंगूठी को देखने की रिक्वेस्ट की।

सुयश ने वह अंगूठी शैफाली को दे दी।

“वाह! कितनी सुंदर अंगूठी है, काश ये मेरी उंगली में फिट हो पाती!” यह कहकर शैफाली ने जैसे ही अपने बांये हाथ की ‘रिंग फिंगर’ में वह अंगूठी डाली, वह अंगूठी शैफाली के बिल्कुल फिट बैठ गयी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अंगूठी शैफाली के लिये ही बनी थी।
यह देख सुयश और शैफाली दोनों ही आश्चर्य से भी उठे।

“शैफाली, यह अंगूठी अब तुम अपने ही पास रख लो, यह तुम्हें अच्छी भी लग रही थी और तुम्हारी उंगली में फिट भी हो रही है। मुझे तो ऐसा लगता है कि इस अंगूठी में भी कोई रहस्य छिपा होगा?” सुयश ने
कहा।

शैफाली ने खुशी-खुशी सिर हिलाया और किसी बच्चे की तरह उछलते-कूदते जेनिथ की ओर चल दी।



जारी रहेगा
_________✍️
बहुत ही जबरदस्त लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर ऐलेक्स ने तिसरे व्दार पर पिनाका और सारंगा को बडे ही सरल तरीके से परास्त कर अपने बहन की स्मृतियाॅं लेकर चला गया
ये शेफाली को खरगोश के जखम का इलाज करने के लिये सुयश के कारण नन्हे खरगोश से जो अंगुठी मिली शायद वो भी कोई एक शक्ती हो सकती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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त्रिकाली का विवाह:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:50, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम को सामरा महल में रहते आज दूसरा दिन था। सामरा राज्य का विज्ञान और वहां के लोगों का काम करने का तरीका व्योम को बहुत अच्छा लगा था।

व्योम जब भी महल में कहीं निकलता था, तो सभी सैनिक झुककर व्योम को अभिवादन करते। व्योम को यह सब किसी सपने सरीखा लग रहा था।

धीरे-धीरे व्योम को अपने अंदर की गुरुत्व शक्ति का भी अहसास हो गया था।

व्योम ने इस समय युगाका के शाही कपड़ों को पहन रखा था, जो देखने में तो अच्छे थे, पर थोड़े छोटे थे।

शायद वह कपड़े युगाका सोते समय पहनता था। इन कपड़ों में व्योम इस समय किसी ड्रामा कंपनी का नमूना दिख रहा था।

त्रिकाली ने अभी तक व्योम को अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति से मिलाया नहीं था।

इस समय भी वह महल के एक विशाल शयनकक्ष में बैठा, अपनी पुरानी जिंदगी और इस नयी जिंदगी के परिवर्तनों को आंकने की कोशिश कर रहा था, कि तभी त्रिकाली उसके कमरे में प्रविष्ठ हुई।

त्रिकाली ने इस समय एक नीले रंग का लंबा सा गाउन पहन रखा था। उस नीले गाउन में सुनहरे सितारे जड़े हुए थे।

इस गाउन में त्रिकाली किसी स्वर्ग की अप्सरा सी प्रतीत हो रही थी।

व्योम की नजर जैसे ही त्रिकाली पर पड़ी, वह अपलक उसे निहारने लगा।

“इस तरह क्या देख रहे हो? कभी किसी सुंदर स्त्री को नहीं देखा क्या?” त्रिकाली ने अपने चेहरे पर एक शोख मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

“सुंदर तो बहुत सी स्त्रियों को देखा है, पर किसी अप्सरा को इतने पास से कभी नहीं देखा।” व्योम ने भी अपने भावों को उजागर करते हुए कहा।

“अरे वाह! आप तो प्यार की भाषा भी जानते हैं।” त्रिकाली ने अपने माथे पर आयी लटों को, उंगली से पीछे करते हुए कहा- “अब जरा तुरंत तैयार हो जाइये....आप से मिलने बाबा और भाई आ रहे हैं।”

“मुझसे मिलने?....प...पर मैंने क्या किया है?” व्योम ने घबराते हुए कहा- “मैं उनसे साफ-साफ बोल दूंगा कि तुम ही मुझे जबरदस्ती यहां पर लायी हो।”

“पर...मैंने तो अपने बाबा से बोल दिया है कि मैंने तुम्हारे साथ शादी कर ली।” त्रिशाली ने अपनी आँखों को गोल-गोल नचाते हुए कहा।

“क्याऽऽऽऽऽ? शादी!” शादी की बात सुनकर व्योम एका एक घबरा सा गया- “मैंने नहीं की तुमसे शादी...। तुमने झूठ क्यों बोला?”

“अरे बुद्धू घबराओ नहीं...पहले जाकर 5 मिनट में तैयार हो जाओ... बाबा और भाई बस आते ही होंगे।” त्रिकाली ने व्योम को धक्का देते हुए कहा।

“पर अब तैयार क्या होना? मैं सुबह नहा चुका हूं और यह कपड़े भी मुझे आरामदायक लग रहे हैं। मैं इन्हीं कपड़ों में तुम्हारे बाबा और भाई से मिल लूंगा।”व्योम ने भी जिद पकड़ते हुए कहा।

तभी शयनकक्ष के बाहर खड़े एक सैनिक ने जोर से आवाज लगाकर कलाट और युगाका के आने की पुष्टि की।

त्रिकाली घबराकर व्योम से थोड़ा दूर खड़ी हो गई।

व्योम के चेहरे पर डर के निशान साफ दिख रहे थे।

हमेशा से ही व्योम बडे़-बड़े काम को तो आसानी से अंजाम देता था, पर लड़की के मामले में उसकी आवाज निकलनी बंद हो जाती थी।

तभी शयनकक्ष में कलाट, युगाका, किरीट, रिंजो और शिंजो ने प्रवेश किया।

व्योम ने झुककर सभी का अभिवादन किया, पर रिंजो-शिंजो को वहां देख वह अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था।

सभी वहां रखी आरामदायक कुर्सियों पर बैठ गये। त्रिकाली कलाट की कुर्सी के पीछे जाकर खड़ी हो गयी।

कलाट की अनुभवी निगाहें और युगाका की तीखी नजरें व्योम का ऊपर से नीचे तक एक्स-रे कर रहीं थीं।

उन्हें इस प्रकार से घूरते देख व्योम बोल उठा- “जी मेरा नाम व्योम है। मैं वैसे तो मूलतः भारत का रहने वाला हूं, पर अभी अमेरिका में रह रहा हूं।”

“भारत? तुम भारत के रहने वाले हो?” त्रिकाली ने आश्चर्य से कहा- “तुमने पहले तो नहीं बताया...फिर तो तुम्हें हिन्दी भाषा भी आती ही होगी?”

“आपने मुझसे पूछा नहीं और मैंने आपको अंग्रेजी भाषा में बोलते देख, स्वयं भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करने लगा।” व्योम ने त्रिकाली को देखते हुए कहा- “वैसे मुझे हिन्दी भाषा आती है।”

“इसे खुश रख पाओगे?” कलाट ने त्रिकाली की ओर इशारा करते हुए कहा।

“म...म....मैं इसे...मेरा मतलब है कि इन्हें क्यों खुश रखूंगा?” व्योम ने घबराते हुए कहा।

“क्यों शादी के बाद इसे कोई दूसरा खुश रखेगा क्या?” युगाका ने व्योम को घूरते हुए कहा।

“क....किसकी शादी?” पहले व्योम को लगा था कि त्रिकाली उससे हंसी मजाक करके शादी की बात कर रही थी, पर अब उसे सब बातें सीरियस दिखने लगीं थीं।

“अरे तुम्हारी शादी, त्रिकाली के साथ.....तुम शादी कर चुके हो ना त्रिकाली के साथ? तुम्हें कुछ पता भी है या नहीं?” कलाट ने नाराज होते हुए कहा।

“म....म....मैंने कब की शादी?” अब व्योम पूरा घबरा गया।

“तुमने देवी की मूर्ति के सामने इसे रक्षा सूत्र बांधा था ना?” कलाट ने फिर जोर से पूछा- और फिर देवी से आशीर्वाद भी लिया था, फिर तुम क्यों कह रहे हो कि तुम्हारी शादी इसके साथ नहीं हुई?”

अब व्योम को सबकुछ समझ आ गया, जिसे वह रक्षा कवच समझ कर त्रिकाली के गले में बांध रहा था, वह रक्षा कवच नहीं बल्कि शादी का रक्षा सूत्र था और त्रिकाली ने जानबूझकर उसके साथ ऐसा किया था।

वैसे व्येाम को त्रिकाली बहुत पसंद थी, पर इस प्रकार से उसका विवाह होगा, यह बात उसे सपने में भी नहीं पता थी।

व्योम के ऐसे जवाब सुन कलाट त्रिकाली की ओर घूमकर बोला- “देवी ने इस शादी को मंजूरी दी भी थी या नहीं?....इसे तो कुछ मालूम ही नहीं है?... यह तो पूरा नमूना है। कहीं इसकी बिना जानकारी में आये तो तुमने इससे शादी नहीं कर ली?”

“उन्हें कुछ मत कहिये, उन्होंने मुझसे शादी के लिये पूछा था और मेरी मंजूरी के बाद ही हमारा विवाह हुआ था।” अचानक से व्योम का सुर बदल गया- “और हां...मैं नमूना नहीं हूं...और मेरी शादी के बाद आप
मेरी पत्नि को नहीं डांट सकते।”

व्योम के ऐसे शब्द सुन त्रिकाली हैरानी से व्योम को देखने लगी। दोनों की नजरें मिलीं, व्योम ने धीरे से अपनी पलकें झपका कर त्रिकाली को निश्चिंत रहने का इशारा किया।

त्रिकाली अब बहुत खुश थी, एक पल में ही मानों वह आसमान में उड़ने लगी थी।

“तुम कोई हथियार चला भी पाते हो? या फिर खाली हाथ ही इसकी रक्षा करोगे।” यह कहकर युगाका ने खड़े हो कर शयनकक्ष में मौजूद एक भाले को खींचकर व्योम की ओर मारा।

व्योम ने एक तरफ हटकर उस भाले से अपना बचाव किया। अब व्योम के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आयीं और उसके हाथ में अब चमकता हुआ पंचशूल प्रकट हो गया।

पंचशूल से निकल रहे तीव्र प्रकाश ने पूरे कमरे में उजाला फैला दिया। युगाका पंचशूल को देखकर अपनी पलके झपकाना भी भूल गया।

तभी कलाट के मुंह से बुदबुदाहट निकली- “महाशक्तिऽऽऽऽऽ!”

त्रिकाली ने किसी भी अनिष्ट के होने के पहले ही व्योम को चीखकर रोक दिया- “रुक जाओ व्योम, महाशक्ति का प्रयोग मत करना, युगाका मेरा भाई है।

त्रिकाली की चीख सुन व्योम का गुस्सा अब शांत हो गया। इसी के साथ व्योम के हाथ में पकड़ा पंचशूल हवा में विलीन हो गया।

युगाका का सारा घमंड अब चूर हो गया था। अब वह शांत होकर कुर्सी पर बैठ गया, पर उसके चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे। शायद वो समझ चुका था कि त्रिकाली के लिये इससे बेहतर कोई नहीं मिलता।

“बैठ जाओ बेटे...दरअसल हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे।” कलाट ने व्योम को बैठने का इशारा किया- “हम हमेशा से चाहते थे कि त्रिकाली का विवाह किसी योग्य व्यक्ति के साथ हो। वैसे भी तुम्हारे सामरा राज्य में आने की सूचना हमें पहले ही महावृक्ष से मिल चुकी थी। ... तुम भी आकर व्योम के पास बैठ जाओ त्रिकाली ...आज मैं तुम लोगों के सामने कुछ रहस्य की बात बताना चाहता हूं। इस रहस्य को खोलने का ये सर्वोत्तम समय है।”

कलाट की बातें सुन त्रिकाली और युगाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे। वो सोचने लगे कि बाबा आज कौन सा रहस्य उनके सामने खोलने जा रहे हैं? त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के बगल में बैठ गई।

त्रिकाली को बैठते देख कलाट ने बोलना शुरु कर दिया- “बच्चों आज मैं तुम लोगों को एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूं, यह कहानी है हिमालय पर्वत पर स्थित 2 ऐसे राज्यों की, जिनमें आपस में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी। एक राज्य का नाम ‘हिमावत’ था और दूसरे का ‘कालीगढ़’। दोनों ही राज्य साधारण दुनिया से अलग बर्फ की घाटी में बसे थे।

"आज से 26 वर्ष पहले दोनों राज्यों के राजाओं ने इस लड़ाई को खत्म करने के लिये अपने राजकुमार और राजकुमारी की शादी आपस में तय कर दी। हिमावत का राजकुमार त्रिशाल जितना पराक्रमी था, कालीगढ़ की राजकुमारी उतना ही सौंदर्यमती और बुद्धिमान थी।

"इन दोनों की होने वाली संतान अवश्य ही विलक्षण होती, पर नियति को भला कौन रोक पाया है।
दोनों की शादी के 5 वर्ष बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। दोनों इस बात से बहुत परेशान रहने लगे। एक बार उनके राज्य में एक ऋषि विश्वाकु पधारे। विश्वाकु एक बहुत पहुंचे हुए ऋषि थे। त्रिशाल और कलिका ने ऋषि विश्वाकु के सामने अपनी परेशानी को रखा। ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल और कलिका को संतान देने का वचन दिया, परंतु उन दोनों से ऋषि विश्वाकु ने अपना भी एक काम करवाने का वचन ले लिया।

"ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल को एक सुनहरा फल दिया और उसे कलिका को खिलाने को कहा। 9 माह बाद कलिका ने एक खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया। त्रिशाल व कलिका ने अपने नाम के आधे अक्षरों को मिलाकर उसका नाम ‘त्रिकाली’ रखा।” यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोग सन्नाटे में आ गये।

“इसका मतलब मैं आपकी बेटी नहीं हूं बाबा?” त्रिकाली के होंठ यह बोलते हुए कांप रहे थे। उसके पूरे शरीर में भी एक अजीब से आवेश की वजह से थिरकन होने लगी थी।

व्योम ने त्रिकाली का हाथ धीरे से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहला कर त्रिकाली के भावों को कम करने की कोशिश करने लगा।

कलाट ने वहां के माहौल को शांत कराते हुए कहा- “अभी भावनाओं में बहने का समय नहीं है त्रिकाली... पहले पूरी कहानी सुन लो...फिर सभी लोग बैठकर शांति से बात करते हैं।”

कलाट की बात सुन त्रिकाली ने अपना सिर झुका लिया और शांत होकर बैठ गई।

कलाट ने फिर बोलना शुरु कर दिया- “जब त्रिकाली एक वर्ष की हो गई, तो ऋषि विश्वाकु, फिर त्रिशाल और कलिका के पास आये, और उन्हें अपना दिया वचन पूरा करने को कहा। वचन के अनुसार त्रिशाल और कलिका को एक राक्षस कालबाहु को जीवित पकड़ कर लाने को कहा।

"दरअसल कालबाहु ने एक समय अकारण ही ऋषि विश्वाकु के दोनों पुत्र और पत्नि को मार दिया था, तबसे ही ऋषि विश्वाकु कालबाहु को अपने सामने मरता हुआ देखना चाहते थे। परंतु कालबाहु को पकड़कर लाना इतना भी आसान नहीं था। कालबाहु को प्राप्त ब्रह्मदेव के वरदान स्वरुप, उसकी मृत्यु उस रोशनी से होनी थी, जिसमें ध्वनि का समावेश हो, और ऐसा हो पाना लगभग असंभव था। ऋषि विश्वाकु ने बताया कि कालबाहु को मारने के पहले त्रिशाल और कलिका को शक्ति लोक से प्रकाश शक्ति और यक्षलोक से ध्वनि शक्ति प्राप्त करना होगा।

"त्रिशाल और कलिका जानते थे कि इन शक्तियों को प्राप्त करने में कई वर्षों का समय लग सकता है, इसलिये उन्होंने अपनी पुत्री त्रिकाली को अपने गुरु नीमा को सौंप दिया। नीमा एक सिद्ध पुरुष थे, इसलिये वह अधिकतर योग साधना में लीन रहते थे। उनके लिये एक अबोध बालिका की देख-रेख कर पाना बहुत मुश्किल था, इसलिये उन्होंने त्रिकाली को मुझे सौंप दिया। चूंकि नीमा मेरा गुरुभाई था, इसलिये मैंने त्रिकाली को अपनी पुत्री के समान पाला और कभी भी त्रिकाली का यह रहस्य, युगाका और वेगा को पता नहीं चलने दिया।

"उधर 5 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद त्रिशाल और कलिका ने प्रकाश शक्ति और ध्वनि शक्ति को प्राप्त कर लिया। दोनों शक्तियां प्राप्त करते समय त्रिशाल और कलिका ने देवताओं से अपनी पुत्री के लिये 2
वरदान भी मांग लिये। पहले वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली के 20 वर्ष के पूर्ण होते ही उसे हिमालय की बर्फ की शक्तियां स्वतः मिल जातीं, दूसरे वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली का विवाह एक महाशक्ति से होना था, जिसके पास पंचशूल हो।

"उधर त्रिशाल और कलिका अपने वचन को पूरा करने के लिये राक्षसलोक जा पहुंचे, पर कालबाहु की माता विद्युम्ना ने पहले से अपने पुत्र की सुरक्षा के लिये एक भ्रमन्तिका नाम का मायाजाल तैयार कर रखा था। त्रिशाल और कलिका महाशक्तियों के पास में होने के बाद भी, उस मायाजाल में फंस गये और आज 14 वर्षों से उसी मायाजाल में बंद हैं। मुझे इंतजार था त्रिकाली के दोनों वरदान के पूरे होने का....अब वह दोनों वरदान फलीभूत हो चुके हैं, इसलिये ही मैंने आज इन सारे रहस्यों को तुम्हारे सामने खोल दिया।”

इतना कहकर कलाट चुप हो गया और शांत भाव से त्रिकाली और व्योम को देखने लगा।

यह बातें सुन युगाका थोड़ा भावुक हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा होकर त्रिकाली के पास पहुंच गया।

युगाका ने त्रिकाली के सिर पर पर हाथ फेरते हुए कहा- “आज भले ही हमें सत्य का पता चल गया है, परंतु तुम आजीवन मेरी वैसे ही बहन रहोगी, जैसे कि पहले थी।”

फिर युगाका व्योम के गले लगते हुए बोला- “आज से मेरी बहन पर मुझसे ज्यादा तुम्हारा अधिकार है, परंतु ये याद रहे कि इसे कभी दुख मत देना। और हां....हम सब एक साथ चलेंगे, त्रिकाली के माता और पिता को राक्षसलोक से छुड़ाने के लिये।”

“नहीं भाई...अपने माता और पिता को उस कैद से छुड़ाने के लिये मैं और व्योम जायेंगे बस। यहां अराका में भी कम मुसीबतें नहीं है, आप यहां रहकर सामरा राज्य और बाबा की देखभाल करो। हम आपसे वादा
करते हैं कि जल्द ही अपने माता-पिता को छुड़ाकर वापस लौटेंगे।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है, अगर तुम दोनों जाना चाहते हो तो जाओ, परंतु जाने से पहले हमें एक बार तुम्हारे विवाह का उत्सव तो मना लेने दो।” कलाट ने कहा।

“नहीं बाबा....अगर मेरे माता-पिता किसी कैद में हैं, तो ये सुनने के बाद हम उत्सव कैसे मना सकते हैं?” त्रिकाली ने कहा- “अब उत्सव तो हमारे लौटने के बाद ही मनाया जायेगा।”

त्रिकाली की बातों में सत्यता थी इसलिये कलाट ने उसकी इस बात को स्वीकार कर लिया।

“ठीक है, हम तुम्हारी सारी बात मानते हैं, पर हम चाहते हैं कि जाने से पहले तुम लोग एक बार महावृक्ष से मिलकर उनका भी आशीर्वाद ले लो और एक बार कालबाहु की माँ विद्युम्ना की शक्तियों की जानकारी भी ले लो, मुझे लगता है कि विद्युम्ना के पास कई ऐसी शक्तियां हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता, उसे इतना साधारण तौर पर नहीं लिया जा सकता।”

कलाट के शब्दों में कुछ ऐसे भाव थे कि त्रिकाली ने इस बात के लिये अपनी सहमति जता दी।

“तो फिर ठीक है, कल हम प्रातः काल महावृक्ष से मिलने चलेंगे, तब तक के लिये तुम लोग आराम करो।” यह कहकर कलाट सभी को लेकर शयनकक्ष से बाहर निकल गया।

अब व्योम और त्रिकाली शयनकक्ष में अकेले थे। त्रिकाली ने व्योम की आँखों में देखा, व्योम की आँखों में प्यार का समुन्दर लहरा रहा था।

त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के गले से लग गयी, उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह रही थी, पर यह अश्रु एक ऐसी भावना के लिये थे, जिसने त्रिकाली को अपार शक्ति की अनुभूति कराई थी।

एक ऐसी शक्ति, जिसमें विश्वास की डोर भी थी और प्यार का अहसास भी।

एक नन्हीं तितली आज इंद्रधनुष के सारे रंगों को चुपके-चुपके चुरा रही थी..........।


जारी
रहेगा______✍️
फिर से एक अप्रतिम रोमांचक और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
चलो व्योम और त्रिकाली एक सुंदर से बंधन में बंध गये है और दो हैं विवाह
कलाट के व्दारा त्रिकाली को अपने जन्म से लेकर अपने माता पिता की सच्चाई का पता चल गया अब वो पंचशुल धारी व्योम और अपनी हिम शक्ती के माध्यम से अपने माता पिता को कालबाहु और विद्युम्ना की भ्रमन्तिका नाम के मायाजाल की कैद से छूडाने प्रात: महावृक्ष का आशिर्वाद लेके जाने वाले है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Avaran

एवरन - I am Unpredictable
Supreme
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144
Let's review start
137&138
Alex bhaiya ne Aakhir kar megna ki smriti lane mein vijay prapt ki , pinak aur sharng dono ke baare mein meine shayad real world mein kuch read kiya ,
Shayad Vishnu ji ka sharang dhanush ,
Mahadev ka pinak dhanush .

Khair yaha dusre sharang aur pinaka thee , dono ka dil achaa Thaa aur wo sirf yaha rakhi vastu ki raksha kar rahe thee ,
Chalo alex ab samjh daari bhari baat bhi karne lagaya warna cristi ko ek noob mil Jata .

Then baat kare ke wo anghuthi ki To woh shadharan Toh hogi na most probably megna ki anghuthi hai .
Shayad maya ke anusaar unhone dweep rachana mein kuch chheje chhod ne Ko kaha thaa Taki bhavishya mein uska kaam aaye .
Ye anghuthi mein shayad megna ki shaktiyaa bhi ho sakti .

Ache kam kiya suyash and company ne khargosh ki madad kar
Isme ek word aaya chetanya most probably mera next permanent new name yahi hoga .
Ya fir darshan ( jo Ki mera name ka half hissa hai )

Then baat kare aaj ke update ki ye update mujhe kaffi pasand aaya , iski length todhi regular update se jyada lagi

Trikali ke sare Raaj khul gaye , Jo Jo guesses lagaye wo sahi Rahe Trishal aur kalika ki hi beti nikali wo aakhir kaar .

Dusra guess bhi sahi raha dono ki wo rituals perform karne se hi shadi huwi .
Trikali ka chanchal Mann aur chalak swabhav vyom ko bha gaya .
Ab ham keh sakte hai vyom bhaiya ko bhabhi mil gayi .

Jo vyvhaar vyom ka abhi dekha usse Toh yahi lag raha bhai ko pyaar hogaya .
Lekin vyom ka ek dum se vyavshar change hona ek dum sharmane se khul kar trikali ko apnana iske piche kuch wajah .

Yaha trikali ke rahane ka bhi Raaz khul gaya .

Yaha logo ne notice kiya nahi maine notice kiya ki vyom ki shaktiya uska bhala Toh karengi lekin sath hi Power ke side effects bhi aayenge Jaise gussa aana , vyom ko bhi sudden gussa aaya yugaka Par .

Jis Tarah ye log vyom ko maha shakti keh Rahe , kya vyom suyash se bhi powerful hoga .
Kya panch shool vs Suyash na Tatto dono mein kon powerful

Vyom aur Trikali waha jaa Toh Rahe Hain lekin inki shaktiyo se kalbahu ko nahi maar payenge .
Kal bahu ko sirf Trishal , kalika ki shaktiyo se mara ja sakta .

Tough challenge hoga vyom aur Trikali ke liye pehle viidhumna fir kal bahu ka samna.

Overall update as always awesome

Waiting for more
 
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