dil_he_dil_main
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O teri, kya se kya soch lete ho bhai??#154.
चैपटर-4
ऑक्टोपस की आँख: (तिलिस्मा 2.12)
सुयश के साथ अब सभी ऑक्टोपस के क्षेत्र की ओर बढ़ गये।
ऑक्टोपस वाले क्षेत्र की भी जमीन वैसे ही संगमरमर के पत्थरों से बनी थी, जैसे पत्थर नेवले के क्षेत्र में लगे थे। ऑक्टोपस की मूर्ति एक वर्गाकार पत्थर पर रखी थी।
उधर जैसे ही सभी संगमरमर वाले गोल क्षेत्र में पहुंचे, अचानक जमीन के नीचे से, उस गोल क्षेत्र की परिधि में, संगमरमर के पत्थरों की दीवार निकलने लगी।
सबके देखते ही देखते वह पूरा गोल क्षेत्र दीवारों की वजह से बंद हो गया। कहीं भी कोई भी दरवाजा दिखाई नहीं दे रहा था।
“वहां करंट फैला दिया था और यहां पूरा कमरा ही बंद कर दिया।” ऐलेक्स ने कहा- “ये कैश्वर भी ना... भगवान बनने के चक्कर में हमें भगवान के पास भेज देगा।”
सभी ऐलेक्स की बात सुनकर मुस्कुरा दिये।
तभी शैफाली की निगाह नीचे जमीन पर लगे, एक संगमरमर के पत्थर के टुकड़े की ओर गयी, वह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा था।
“कैप्टेन अंकल, यह पत्थर का टुकड़ा थोड़ा सा जमीन में दबा है, यह एक साधारण बात है कि इसमें कोई रहस्य है?” शैफाली ने सुयश को पत्थर का वह टुकड़ा दिखाते हुए कहा।
अब सुयश भी झुककर उस पत्थर के टुकड़े को देखने लगा।
सुयश ने उस टुकड़े को अंदर की ओर दबा कर भी देखा, पर कुछ नहीं हुआ। यह देख सुयश उसे एक साधारण घटना समझ उठकर खड़ा हो गया।
दीवारें खड़ी होने के बाद अब वह स्थान एक मंदिर के समान लगने लगा था। लेकिन उस मंदिर में ना तो कोई खिड़की थी और ना ही कोई दरवाजा।
अब सभी धीरे-धीरे चलते हुए ऑक्टोपस के पास पहुंच गये।
ऑक्टोपस की नेम प्लेट के नीचे यहां भी 2 पंक्तियां लिखी थीं- “ऑक्टोपस की आँख से निकली, विचित्र अश्रुधारा, आँखों का यह भ्रम है, या आँखों का खेल सारा।”
“यह कैश्वर तो कोई कविताकार लगता है, जहां देखो कविताएं लिख रखीं हैं।” ऐलेक्स ने हंसते हुए कहा।
“अरे भला मानो कि कविताएं लिख रखीं है। कम से कम इन्हीं कविताओं को पढ़कर कुछ तो समझ में आता है कि करना क्या है?” क्रिस्टी ने ऐलेक्स को देखते हुए कहा- “सोचो अगर ये कविताएं न होतीं तो समझते कैसे? वैसे कैप्टेन आपको इस कविता को पढ़कर क्या लगता है?”
“मुझे तो बस इतना समझ में आ रहा है कि इस ऑक्टोपस की आँखों में कुछ तो गड़बड़ है।” सुयश ने ऑक्टोपस की आँखों को देखते हुए कहा।
“कैप्टेन अंकल यह ऑक्टोपस पूरा पत्थर का है, पर मुझे इसकी आँख असली लग रही है।” शैफाली ने कहा- “मैंने अभी उसे हिलते हुए देखा था।”
शैफाली की बात सुन सभी ध्यान से ऑक्टोपस की आँख को देखने लगे। तभी ऑक्टोपस के आँखों की पुतली हिली।
“कविता की पंक्तियों में अश्रुधारा की बात हुई है, मुझे लगता है कि ऑक्टोपस के रोने से कोई नया दरवाजा खुलेगा।” तौफीक ने कहा।
“पर ये ऑक्टोपस रोएगा कैसे?” जेनिथ ने कहा- “कैप्टेन क्यों ना यहां कि भी नेम प्लेट हटा कर देखें। हो सकता है कि यहां भी कुछ ना कुछ उसके पीछे छिपा हो?”
“बहुत ही मुश्किल है जेनिथ, कैश्वर कभी भी तिलिस्मा के 2 द्वार एक जैसे नहीं रखेगा।” सुयश ने कहा- “पर फिर भी अगर तुम देखना चाहती हो तो मैं नेम प्लेट हटा कर देख लेता हूं।”
यह कहकर सुयश ने फिर से तौफीक से चाकू लिया और ऑक्टोपस के पत्थर की नेम प्लेट भी हटा दी।
पर सुयश का सोचना गलत था, यहां भी नेम प्लेट के पीछे एक छेद था, यह देख सुयश ने उसमें झांककर देखा, पर अंदर इतना अंधेरा था कि कुछ नजर नहीं आया।
“कैप्टेन अंकल अंदर हाथ मत डालियेगा, हो सकता है कि यहां भी कोई विषैला जीव बैठा हो।” शैफाली ने सुयश को टोकते हुए कहा।
पर सुयश ने कुछ देर तक इंतजार करने के बाद उस छेद में हाथ डाल ही दिया। सुयश का हाथ किसी गोल चीज से टकराया, सुयश ने उस चीज को बाहर निकाल लिया।
“यह तो एक छोटी सी गेंद है, जिसमें हवा भरी हुई है।” क्रिस्टी ने आश्चर्य से देखते हुए कहा- “अब इस गेंद का क्या मतलब है? मुझे तो यह बिल्कुल साधारण गेंद लग रही है।”
“लगता है कि कैश्वर का दिमाग खराब हो गया है, इतनी छोटी सी चीज को कोई भला ऐसे छिपा कर रखता है क्या?” ऐलेक्स ने गेंद को हाथ में लेते हुए कहा।
तभी गेंद को देख ऑक्टोपस की आँखों में बहुत तेज हरकत होने लगी, पर यह बात शैफाली की नजरों से छिपी ना रह सकी।
“ऐलेक्स भैया, लगता है कि यह गेंद इस ऑक्टोपस की ही है, उसकी आँखों को देखिये, वह आपके हाथों में गेंद देखकर एकाएक बहुत परेशान सा लगने लगा है।” शैफाली ने ऐलेक्स से कहा।
यह देख ऐलेक्स को जाने क्या सूझा, उसने सुयश के हाथ में थमा चाकू भी ले लिया और उस चाकू को हाथ में लहराता हुआ ऑक्टोपस की ओर देखने लगा। ऑक्टोपस की बेचैनी अब और बढ़ गई थी।
ऐलेक्स ने ऑक्टोपस की बेचैनी को महसूस कर लिया और तेज-तेज आवाज में बोला- “अगर मैं इस चाकू से इस गेंद को फोड़ दूं तो कैसा रहेगा।”
ऐसा लग रहा था कि वह ऑक्टोपस ऐलेक्स के शब्दों को भली-भांति समझ रहा है, क्यों कि अब उसकी आँखों में डर भी दिखने लगा।
सुयश को भी यह सब कुछ विचित्र सा लग रहा था, इसलिये उसने भी ऐलेक्स से कुछ नहीं कहा।
तभी ऐलेक्स ने सच में चाकू के वार से उस गेंद को फोड़ दिया।
गेंद के फूटते ही वह ऑक्टोपस किसी नन्हें बच्चे की तरह रोने लगा।
सुयश के चेहरे पर यह देखकर मुस्कान आ गई। वह ऐलेक्स की बुद्धिमानी से खुश हो गया, होता भी क्यों ना...आखिर ऐलेक्स की वजह
से उस ऑक्टोपस की अश्रुधारा बह निकली थी।
सुयश सहित अब सभी की निगाहें ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसुओं पर थीं।
ऑक्टोपस की आँखों से निकले आँसू बहते हुए उसी पत्थर के पास जाकर एकत्रित होने लगे, जो थोड़ा सा जमीन में दबा हुआ था।
यह देख सुयश की आँखें सोचने के अंदाज में सिकुड़ गईं।
अब वह पक्का समझ गया कि इस दबे हुए पत्थर में अवश्य ही कोई ना कोई राज छिपा है।
जैसे ही ऑक्टोपस के आँसुओं ने उस पूरे पत्थर को घेरा, वह पत्थर थोड़ा और नीचे दब गया।
इसी के साथ ऑक्टोपस की आँखों से निकलने वाले आँसुओं की गति बढ़ गई।
अब उसकी दोनों आँखों से किसी नल की भांति तेज धार निकलने लगी और उन आँसुओं से मंदिर के अंदर पानी भरने लगा।
“अब समझे आँसुओं में क्या मुसीबत थी।” सुयश ने कहा- “अब हमें तुरंत इस मंदिर से बचकर बाहर निकलने का रास्ता ढूंढना होगा, नहीं तो हम इस ऑक्टोपस के आँसुओं में ही डूब कर मर जायेंगे।”
“कैप्टेन अंकल, अब इस कविता की पहली पंक्तियों का अर्थ तो पूरा हो गया, पर मुझे लगता है कि इसकी दूसरी पंक्तियों में अवश्य ही बचाव का कोई उपाय छिपा है।” शैफाली ने सुयश को देखते हुए कहा- “और
अगर दूसरी पंक्तियों पर ध्यान दें, तो इसका मतलब है कि ऑक्टोपस की आँख में ही हमारे बचाव का उपाय भी छिपा है।”
सभी एक बार फिर ऑक्टोपस की आँख को ध्यान से देखने लगे, पर ऐलेक्स की निगाह अभी भी उस दबे हुए पत्थर की ओर थी।
ऐलेक्स ने बैठकर उस पत्थर को और दबाने की कोशिश की, पर कुछ नहीं हुआ, तभी ऐलेक्स की निगाह उस पत्थर पर पड़ रही हल्की गुलाबी रंग की रोशनी पर पड़ी, जो कि पहले तो नजर नहीं आ रही थी, पर अब उस पत्थर पर 6 इंच पानी भर जाने की वजह से ऐलेक्स को साफ दिखाई दे रही थी।
ऐलक्स ने उस गुलाबी रोशनी का पीछा करके, उसके स्रोत को जानने की कोशिश की।
वह गुलाबी रोशनी ऑक्टोपस के माथे से आ रही थी।
पानी अब सभी के पंजों के ऊपर तक आ गया था।
ऐलेक्स चलता हुआ ऑक्टोपस के चेहरे तक पहुंच गया, उसकी तेज निगाहें ऑक्टोपस के माथे से निकल रही गुलाबी किरणों पर थीं।
ऐलेक्स ने धीरे से उस ऑक्टोपस के माथे को छुआ, पर माथे के छूते ही वह ऑक्टोपस जिंदा हो गया और उसने अपने 2 हाथों से ऐलेक्स को जोर का धक्का दिया।
ऐलेक्स उस धक्के की वजह से दूर छिटक कर गिर गया।
कोई भी ऑक्टोपस के जिंदा होने का कारण नहीं जान पाया, वह सभी तो बस गिरे पड़े ऐलेक्स को देख रहे थे।
ऑक्टोपस अभी भी पत्थर पर ही बैठा था, पर अब उसके रोने की स्पीड और तेज हो गई थी।
“कैप्टेन उस दबे हुए पत्थर पर एक गुलाबी रोशनी पड़ रही है, जो कि इस ऑक्टोपस के माथे पर मौजूद एक तीसरी आँख से निकल रही है। वह तीसरी आँख इस ऑक्टोपस की त्वचा के अंदर है, इसलिये हमें दिखाई नहीं दे रही है। मैंने उसी को देखने के लिये जैसे ही इस ऑक्टोपस को छुआ, यह स्वतः ही जिंदा हो गया। मुझे लगता है कि उसी तीसरी आँख के द्वारा ही बाहर निकलने का मार्ग खुलेगा।” ऐलेक्स ने तेज आवाज में सुयश को आगाह करते हुए कहा।
तब तक पानी सभी के घुटनों तक पहुंच गया था।
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश उस ऑक्टोपस की ओर तेजी से बढ़ा, पर सुयश को अपनी ओर बढ़ते देखकर उस ऑक्टोपस ने अपने 8 हाथों को चक्र की तरह से चलाना शुरु कर दिया।
अब सुयश के लिये उस ऑक्टोपस के पास पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया।
यह देख क्रिस्टी आगे बढ़ी और क्रिस्टी ने ऑक्टोपस के हाथों को पकड़ने की कोशिश की, पर ऑक्टोपस के हाथों की गति बहुत तेज थी, क्रिस्टी भी एक तेज झटके से दूर पानी में जा गिरी।
पानी अब धीरे-धीरे ऑक्टोपस की मूर्ति के पत्थर के ऊपर तक पहुंच गया था और सभी कमर तक पानी में डूब गये।
अब सभी एक साथ उस ऑक्टोपस की ओर बढ़े, पर यह भी व्यर्थ ऑक्टोपस के हाथों ने सबको ही दूर उछाल दिया।
“कैप्टेन अंकल हमें जल्दी ही कुछ नया सोचना होगा, नहीं तो यह ऑक्टोपस अपने आँसुओं से हम सभी को डुबाकर मार देगा।” शैफाली ने कहा।
तौफीक ने अब अपनी जेब से चाकू निकालकर उस ऑक्टोपस के माथे की ओर निशाना लगाकर मार दिया।
निशाना बिल्कुल सही था, चाकू ऑक्टोपस के माथे पर जाकर घुस गया।
ऑक्टोपस के माथे की त्वचा कट गई, पर ऑक्टोपस ने अपने एक हाथ से चाकू निकालकर दूर फेंक दिया। अब वह और जोर से रोने लगा।
मगर अब ऑक्टोपस की तीसरी आँख बिल्कुल साफ नजर आने लगी थी।
पानी अब कुछ लोगों के कंधों तक आ गया था।
तभी क्रिस्टी के दिमाग में एक आइडिया आया, उसने पानी के नीचे एक डुबकी लगाई और नीचे ही नीचे ऑक्टोपस तक पहुंच गई।
क्रिस्टी पानी के नीचे से थोड़ी देर ऑक्टोपस के हाथ देखती रही और फिर उसने फुर्ति से उसके 2 हाथों को पकड़ लिया।
ऐसा करते ही ऑक्टोपस के हाथ चलना बंद हो गये।
यह देख क्रिस्टी ने पानी से अपना सिर निकाला और चीखकर सुयश से कहा- “कैप्टेन मैंने इसके हाथों को पकड़ लिया है, अब आप जल्दी से इसके माथे वाली आँख को निकाल लीजिये।”
क्रिस्टी के इतना बोलते ही सुयश तेजी से ऑक्टोपस की ओर झपटा और उसके माथे में अपनी उंगलियां घुसाकर ऑक्टोपस की उस तीसरी आँख को बाहर निकाल लिया।
जैसे ही सुयश ने ऑक्टोपस की आँख निकाली, क्रिस्टी ने उस ऑक्टोपस को छोड़ दिया।
वह ऑक्टोपस अब रोता हुआ छोटा होने लगा और इससे पहले कि कोई कुछ समझता, वह ऑक्टोपस नेम प्लेट वाले छेद में घुसकर कहीं गायब हो गया।
पानी कुछ लोगों की गर्दन के ऊपर तक आ गया था, पर अब ऑक्टोपस के जाते ही पानी भी उस छेद से बाहर निकलने लगा।
कुछ ही देर में काफी पानी उस छेद से बाहर निकल गया।
“लगता है वह ऑक्टोपस का बच्चा अपने पापा से हमारी शिकायत करने गया है?” ऐलेक्स ने भोला सा मुंह बनाते हुए कहा।
“उसकी छोड़ो, वह तो चला गया, पर हमारा यह द्वार अभी भी पार नहीं हुआ है, हमें पहले यहां से निकलने के बारे में सोचना चाहिये।” क्रिस्टी ने ऐलेक्स का कान पकड़ते हुए कहा।
सुयश के हाथ में अभी भी ऑक्टोपस की तीसरी आँख थी, उसने उस आँख को उस दबे हुए पत्थर से टच कराके देखा, पर कुछ भी नहीं हुआ।
यह देख सुयश ने जोर से उस आँख को उस दबे हुए पत्थर पर मार दिया।
आँख के मारते ही एक जोर की आवाज हुई और वह पूरा संगमरमर का गोल क्षेत्र तेजी से किसी लिफ्ट के समान नीचे की ओर जाने लगा।
सभी पहले तो लड़खड़ा गये, पर जल्दी ही वह सभी संभल गये।
सुयश ने उस ऑक्टोपस की आँख को जमीन से उठाकर अपनी जेब में डाल लिया।
“मुझे लग रहा है कि ये द्वार पार हो गया और अब हम अगले द्वार की ओर जा रहे हैं।” जेनिथ ने कहा।
“भगवान करे कि ऐसा ही हो।” क्रिस्टी ने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा- “जितनी जल्दी यह तिलिस्मा पार हो, उतनी जल्दी हमें घर जाने को मिलेगा।”
लेकिन इससे पहले कि कोई और कुछ कह पाता, वह लिफ्टनुमा जमीन एक स्थान पर रुक गई।
सभी को सामने की ओर एक सुरंग सी दिखाई दी।
सभी उस सुरंग के रास्ते से दूसरी ओर चल दिये।
वह रास्ता एक बड़ी सी जगह में जाकर खुला।
उस जगह को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कोई सुंदर सी घाटी है।
घाटी के बीचो बीच में एक बहुत ही सुंदर गोल सरोवर बना था। उस सरोवर से कुछ दूरी पर एक कंकाल खड़ा था, जिसका सिर नहीं था, पर उसके एक हाथ में एक सुनहरी धातु की दुधारी तलवार थी।
कंकाल के पीछे की दीवार पर कंकाल के ही कुछ चित्र बने थे, जिसमें उस कंकाल को एक विशाल ऑक्टोपस से लड़ते दिखाया गया था।
“मुझे नहीं लगता कि यह द्वार अभी पार हुआ है।” सुयश ने दीवार पर बने हुए चित्र को देखते हुए कहा।
अभी सुयश ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, कि तभी सरोवर से एक विशाल 50 फुट ऊंचा ऑक्टोपस निकलकर पानी के बाहर आ गया।
“अरे बाप रे, लगता है मैंने सच कहा था, उस छोटे ऑक्टोपस ने अपने पापा को सब कुछ बता दिया। अब हमारी खैर नहीं।” ऐलेक्स ने चिल्लाते हुए कहा।
पर इस समय किसी का भी ध्यान ऐलेक्स की बात पर नहीं गया, अब सभी सिर्फ उस ऑक्टोपस को ही देख रहे थे।
ऑक्टोपस अपनी लाल-लाल आँखों से सभी को घूर रहा था।
“कैप्टेन अंकल, दीवार पर बने चित्र साफ बता रहे हैं कि यह कंकाल ही अब हमें इस ऑक्टोपस से मुक्ति दिला सकता है, पर मुझे लगता है कि पहले आपको अपने गले से उतारकर यह खोपड़ी इस कंकाल के सिर पर जोड़नी होगी। शायद इसीलिये यह खोपड़ी अभी तक आपके पास थी।” शैफाली ने जोर से चीखकर सुयश से कहा।
सुयश भी दीवार पर बने चित्रों को देख, बिल्कुल शैफाली की तरह ही सोच रहा था, उसने बिना देर किये, अपने गले में टंगी उस खोपड़ी की माला से धागे को अलग किया और उसे कंकाल के सिर पर फिट कर
दिया।
खोपड़ी कंकाल के सिर में फिट तो हो गई, पर वह कंकाल अभी भी जिंदा नहीं हुआ। यह देख सुयश सोच में पड़ गया।
तभी ऑक्टोपस ने सब पर हमला करना शुरु कर दिया।
“सभी लोग ऑक्टोपस से जितनी देर तक बच सकते हो, बचने की कोशिश करो, मैं जब तक कंकाल को जिंदा करने के बारे में सोचता हूं।” सुयश ने सभी से चीखकर कहा और स्वयं ऑक्टोपस की पकड़ से दूर भागा।
“कैप्टेन, आप उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के सिर में लगा दीजिये, वह जिंदा हो जायेगा।” ऐलेक्स ने चीखकर कहा- “क्यों कि उस कंकाल के सिर से भी वैसी ही गुलाबी रोशनी निकल रही है, जैसी उस
ऑक्टोपस के माथे से निकल रही थी और इस कंकाल के माथे पर, उस आँख के बराबर की जगह भी खाली है।”
ऐलेक्स की बात सुनकर सुयश ने कंकाल के माथे की ओर ध्यान से देखा।
ऐलेक्स सही कह रहा था, कंकाल के माथे में बिल्कुल उतनी ही जगह थी, जितनी बड़ी वह ऑक्टोपस की आँख थी।
सुयश ने बिना देर किये अपनी जेब से निकालकर उस ऑक्टोपस की आँख को कंकाल के माथे में फिट कर दिया।
माथे में तीसरी आँख के फिट होते ही वह कंकाल जीवित होकर ऑक्टोपस पर टूट पड़ा।
अब सभी दूर हटकर इस युद्ध को देख रहे थे।
थोड़ी ही देर में एक-एक कर कंकाल ने ऑक्टोपस के हाथ काटने शुरु कर दिये।
बामुश्किल 5 मिनट में ही कंकाल ने ऑक्टोपस को मार दिया।
ऑक्टोपस के मरते ही रोशनी का एक तेज झमाका हुआ और सबकी आँख बंद हो गई।
जब सबकी आँखें खुलीं तो उनके सामने एक दरवाजा था, जिस पर 2.2 लिखा था, सभी उस दरवाजे से अंदर की ओर प्रवेश कर गए।
जारी रहेगा______![]()
Wo khopdi jo suyesh jhopdi se lekar aaya tha , uska ye upyog hoga kisi ne socha bhi nahi hoga?
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