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तब तक चन्दा की आवाज ने मुझे वापस ला दिया। उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था और साड़ी उतार रही थी।
मैंने उसे छेड़ा- “क्यों मेरे चक्कर में घाटा तो नहीं हो गया…”
“और क्या, लेकिन अब तेरे साथ उसकी भरपायी करूंगी…”
और उसने मेरे उभारों को फ्राक के ऊपर से पकड़ लिया। हम दोनों साथ-साथ लेटे तो उसने फिर फ्राक के अंदर हाथ डालकर मेरे रसभरे उभारों को पकड़ लिया और कसकर मसलने लगी।
“हे, नहीं प्लीज छोड़ो ना…”
मैंने बोला।
पर मेरे खड़े चूचुकों को पकड़कर खींचते हुए वह बोली-
“झूठी, तेरे ये कड़े कड़े चूचुक बता रहें हैं कि तू कित्ती मस्त हो रही है और मुझसे छोड़ने के लिये बोल रही है। लेकीन सच में यार असली मजा तो तब आता है जब किसी मर्द का हाथ लगे…”
मेरी चूचियों को पूरे हाथ में लेकर दबाते हुए वो बोली कि कल मेले में चलेगी ना, देख कित्ते छैले तेरे जोबन का रस लूटेंगे।
उसने मेरे हाथ को खींचकर अपने ब्लाउज़ के ऊपर कर दिया और उसकी बटन एक झटके में खुल गयीं।
“मैं अपने यारों को ज्यादा मेहनत नहीं करने देना चाहती, उन्हें जहां मेहनत करना है वहां करें…” चन्दा बोली।
उसका दूसरा हाथ मेरी पैंटी के अंदर घुसकर मेरे भगोष्ठों को छेड़ रहा था। थोड़ी देर दोनों भगोष्ठों को छेड़ने के बाद उसकी एक उंगली मेरी चूत के अंदर घुस गयी और अंदर-बाहर होने लगी।
चन्दा बोली-
“यार, सुनील का बड़ा मोटा है, मैं इत्ते दिनों से करवा रही हूँ पर अभी भी लगाता है, फट जायेगी और एक तो वह नंबरी चोदू भी है, झड़ने के थोड़ी देर के अंदर ही उसका मूसल फिर फनफना कर खड़ा हो जाता है…”
उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को भी रगड़ रहा था और मैं मस्ती में गीली हो रही थी।
“और अजय का…”
मैं अपने को पूछने से नहीं रोक पायी।
“अच्छा, तो गुड्डो रानी, अजय से चुदवाना चाहती हैं…”
चन्दा ने कसकर मेरी क्लिट को पिंच कर लिया और मेरी सिसकी निकल गयी।
“तुम्हारी पसंद सही है, मुझे भी सबसे ज्यादा मजा अजय के ही साथ आता है, और उसे सिर्फ चोदने से ही मतलब नहीं रहता, वह मजा देना भी जानता है, जब वह एक निपल मुँह में लेकर चूसते और दूसरा हाथ से रगड़ते हुए चोदता है
ना तो बस मन करता है कि चोदता ही रहे।
तुम्हारा तो वह एकदम दीवाना है, और वैसे दीवाने तो सभी लड़के हैं तुम पर…”
चन्दा की उंगली अब फुल स्पीड में मेरा चूत मंथन कर रही थी और उसने मेरा भी हाथ खींच कर अपनी चूत पर रख लिया था।
“और रवी तो… वह चाटने और चूसने में एक्सपर्ट है, नंबरी चूत चटोरा है, वह…”
मैं खूब मस्त हो रही थी।
मेरी एक चूची चन्दा के हाथ से मसली जा रही थी और उसके दूसर हाथ की उंगली मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी। ऐसा नहीं था कि मेरी चूत रानी को कभी किसी उंगली से वास्ता न पड़ा हो, पिछली होली में ही भाभी ने जब मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डालकर मेरी चूत पर गुलाल रगड़ा मसला था तो उन्होंने उंगली भी की थी
और वह तो ऐसे भांग के नशे में थीं की कैंडलिंग भी कर देतीं पर भला हो कि रवीन्द्र, उनका देवर आ आया तो, मुझे छोड़कर उसके पीछे पड़ गयीं।
पर जैसे चन्दा एक साथ, चूची, चूत और क्लिट कि रगड़ाई कर रही थी वैसे पहले कभी नहीं हुई थी और एक रसीले नशे से मेरी आँखें मुदी जा रही थीं।
चन्दा साथ में मुझे समझा भी रही थी-
“सुन, मेरी बात मान ले, यहां जमकर मजा लूट ले, देखो यहां दो फ़ायदे हैं। अपने शहर में किसी और से करवायेगी तो ये डर रहेगा की बात कहीं फैल ना जाय, वह फिर तुम्हारे पीछे ना पड़ जाय, पर यहां तो तुम हफ्ते दस दिन में चली जाओगी फिर कहां किससे मुलाकात होगी।
और फिर शहर में चांस मिलना भी टेढ़ा काम है, जब भी बाहर निकलोगी कोई भी टोकेगा की कहां जा रही हो, जल्दी आना, और फिर अगर किसी ने किसी के साथ देख लिया और घर आके शिकायत कर दी तो अलग मुसीबत, और यहां तो दिन रात चाहे जहां घूमो, फिरो, मौज मस्ती करो, और फिर तुम्हारी भाभी तो चाहती ही हैं कि तेरी ये कोरी कली जल्द से जल्द फूल बन जाये…”
ये कह के उसने कस के मेरी क्लिट को दबा दिया।
मैं मस्ती से कांप गयी-
“पर… मैंने सुना है कि पहली बार दर्द बहुत होता है…”
मस्ती ने मेरी भी शर्म शत्म कर दी थी।
“अरे मेरी बिन्नो… बिना दर्द के मजा कहां आता है, और कभी तो इसको फड़वाओगी, जब फटेगी… तभी दर्द होगा… वह तो एक बार होना ही है… आखिर तुमने कान छिदवाया, नाक छिदवायी कित्ता दर्द हुआ, पर बाद में कित्ते मजे से कान में बाला और नाक में कील पहनती हो।
ये सोचो न कि मेरी उंगली से जब तुम्हें इतना मजा आ रहा है… तो मोटा लण्ड जायेगा तो कित्ता मजा आयेगा। और अगर तुम्हें इतना डर लगा रहा है तो मैं तो कहती हूँ तुम सबसे पहले अजय से चुदवाओ, वह बहुत सम्हाल-सम्हाल कर चोदेगा…”
सेक्सी बातों और उंगली के मथने से मैं एकदम चरम के पास पहुँच गयी थी, पर चन्दा इत्ती बदमाश थी… वह मुझे कगार तक ले जाकर रोक देती और मैं पागल हो रही थी।
“हे चन्दा प्लीज, रुको नहीं हो जाने दो… मेरा…” मैंने विनती की।
“नहीं पहले तुम प्रामिस करो कि अब तुम सब शर्म छोड़कर…”
“हां हां मैं अजय, रवी, सुनील, दिनेश, जिससे कहोगी, करवा लूंगी… बस प्लीज़ रुको नहीं…” उसे बीच में रोककर मैंने बोला।
“नहीं ऐसे थोड़े ही… साफ-साफ बोलो और आगे से जैसे खुलकर चम्पा भाभी बोलती हैं ना तुम भी बस ऐसे ही
बोलोगी…” चन्दा ने धीरे-धीरे, मेरी क्लिट रगड़ते हुए कहा।
“हां… हां… हां… मैं अजय से, सुनील से तुम जिससे कहोगी सबसे चुदवाऊँगी… ओह… ओह्ह्ह्ह…”
मैं एकदम कगार पर पहुँच गयी थी।
चन्दा ने अब तेजी से मेरी चूत में उंगली अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया और मेरी क्लिट कसकर पिंच कर ली और मैं बस… झड़ती रही… झड़ती रही… मेरी आँखें बहुत देर तक बंद रहीं।
जब मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि चन्दा ने मुझे अपनी बाहों में भर रखा है और वह धीरे-धीरे मेरे उभारों को सहला रही है। मैंने भी उसके जोबन को जो मेरे जोबन से थोड़े बड़े थे, को हल्के-हल्के दबाने शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में ही हम दोनों फिर गर्म हो गये। अबकी चन्दा मेरी दोनों टांगों को फैलाकर, किसी मर्द की तरह, सीधे मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे सख्त मम्मों को दबाना शुरू कर दिया।
“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…”
“जानती हो अब तक सबसे मोटा और मस्त लण्ड किसका देखा है मैंने…” चन्दा ने कहा।
“किसका…” उत्सुकता से भरकर मैंने पूछा।
मेरी चूत पर अपनी चूत हल्के से रगड़ते हुये, चन्दा बोली-
“तुम्हारे कजिन कम आशिक का… रवीन्द्र का…”
“उसका… पर वह तो बहुत सीधा… शर्मीला… और तुमने उसका कैसे देखा… फिर वह मेरा आशिक कहां से हो गया…”
“बताती हूं…”
मेरी चूत की रगड़ाई अपनी चूत से करते हुए उसने बताना शुरू किया-
“तुम्हें याद है, अभी जब मैं मुन्ने के होने पे गयी थी, मैंने रवीन्द्र पे बहुत डोरे डालने की कोशिश की…
मुझे लगता था कि भले ही वह सीधा हो पर बहुत मस्त चुदक्कड़ होगा, उसका बाडी-बिल्ड मुझे बहुत आकर्षक लगता था…
पर उसने मुझे लिफ्ट नहीं दी…
मैं समझ गयी कि उसका किसी से चक्कर है… पर एक दिन दरवाजे के छेद से मैंने उसे मुट्ठ मारते देखा…
मैं तो देखती ही रह गयी, कम से कम बित्ते भर लंबा लण्ड होगा और मोटा इतना कि मुट्ठी में ना समाये…
और वह किसी फोटो को देखकर मुट्ठ मार रहा था… कम से कम आधे घंटे बाद झड़ा होगा…
और बाद में अंदर जाकर मैंने देखा तो…
जानती हो वह फोटो किसकी थी…”
“किसकी… विपाशा बसु या ऐश की…” मेरी आँखों के सामने तो उसकी मुट्ठ मारती हुई तस्वीर घूम रही थी।
“जी नहीं… तुम्हारी… और मुझे लगा की पहले भी वह तुम्हारी फोटो के साथ कई बार मुट्ठ मार चुका है… यहां मैं अपनी चूत लिये लिये घूम रही हूँ वहां वह बेचारा… तुम्हारी याद में मुट्ठ मार रहा… अगर तुम दे देती तो…”
मुझे याद आ रहा था कि कई बार मैं उसको अपने उभारों को घूरते देख चुकी हूँ और जैसे ही हमारी निगाहें चार होती हैं वह आँखें हटा लेता है…
और एक बार तो मैं सोने वाली थी कि मैंने पाया कि वह हल्के-हल्के मेरे सीने के उभारों को छू रहा है… मैं आँख बंद किये रही और वह हल्के-हल्के सहलाता रहा…
पर उसे लगा कि शायद मैं जगने वाली हूँ तो उसने अपना हाथ हटा लिया। मुझे भी वह बहुत अच्छा लगता था।
“क्यों नहीं चुदवा लेती उससे…” मेरी चूत पर कसकर घिस्सा मारते हुये, चन्दा ने पूछा।
“आखिर… कैसे… मेरा कजिन है…”
मैंने कुछ झिझकते कुछ लजाते पूछा।
“अरे लोग सगे को नहीं छोड़ते… तुम कजिन की बात कर रही हो, तुम्हें कुछ ख्याल है कि नहीं उसका, अगर कहीं इधर-उधर जाना शुरू कर दिया… कोई ऐसा वैसा रोग लगा बैठा…”
चंदा ने जोर देकर समझाया।
मुझे भी उसकी बात में दम लग रहा था ,लेकिन चंदा से कैसे हामी भरती ?
चन्दा ने फिर मुझे पहली बार की तरह कगार पे ले जाके छोड़ना शुरू कर दिया,
और जब मैंने खुलके कसम खाकर ये प्रामिस किया कि न मैं सिर्फ रवीन्द्र से चुदवाऊँगी बलकी
रवीन्द्र से उसकी भी चूत चुदवाऊँगी तभी उसने मुझे झड़ने दिया।
अगले दिन दोपहर के पहले से ही मेले जाने की तैयारियां शुरू हो गयी थीं।
पहले एक चूड़ी वाली आयी और मैंने भी सबके साथ, कुहनी तक हरी-हरी चूड़ीयां पहनी।
मैंने ज़रा सा नखड़ा किया की वो चुड़िहारिन ( आखिर भैया के ससुराल की थी ,तो भैया की सलहज लगी
और फिर मुझसे अपने आप मजाक का रिश्ता बन गया ), और साथ में चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गयीं।
अच्छा ई बूझो ,
चुड़िहारिन ने मेरी कलाई को गोल गोल मोड़ते हुए पूछा,
" हमरि तुम्हरी कब , अरे हाथ पकड़ा जब।
चीख चिल्लाहट कब , अरे आधा जाये तब।
और मजा आये कब ,.... ?
बात उनकी पूरी की चम्पा भाभी ने ,
"अरे मजा आये कब , पूरा जाए तब और क्या , आधे तीहे में का मजा। "
मेरे गाल गुलाल हो गए , कल से तो भाभी ,भाभी की कुँवारी शादी शुदा बहने और भाभी की भाभियाँ सब एक ही तो बात कर रही थीं ,
मैं समझ गयी आधा तिहा और पूरा से का मतलब है।
फिर चंदा ने रात में अच्छी कोचिंग भी कर दी थी और भरतपुर के स्टेशन पे आग भी सुलगा दी थी।
"अरे वही लड़का लड़की , डालना और क्या ,
शरमाते शर्माते मैं बोली , फिर क्या था चूड़ी वाली चूड़ी पहनाते हुए मेरे पीछे पड़ गयी।
और मेरी भाभी से बोली ,
" अरी बिन्नो तोहरी ई ननदिया क बिल में बहुत चींटे काट रहे हैं मोटे मोटे , बहुत खुजली हो रही है ,
एके बात उसको सूझ रही है "
और मुझसे मुड़ के बोलीं ,
" अरे रानी एकर मतलब , चूड़ी पहिराना।
पहले हाथ पकड़ना , फिर शुरू में जब घुसता है अंदर , चूड़ी जाती है रगड़ती कसी कसी तो कुछ दर्द तो होगा ही। "
फिर जब भर हाथ चूडी हो जाती है तो कितना निक लगता है , मजा आता है , हैं की नहीं।
दो दर्जन से ऊपर एक एक हाथ में , एकदम कुहनी तक ,
और ऊपर से चम्पा भाभी बोलीं , चुड़िहारिन से ,
" दो दिन बाद फिर आ जाना ".
ये बात न मुझे समझ में आई न चुड़िहारिन को
लेकिन जब चम्पा भाभी ने अर्थाया तो सब लोग हँसते हँसते ,
(सिवाय मेरे , मेरे पास शर्माने के अलावा कोई रास्ता था क्या )
वो बोलीं ,
"अरे एक रात में तो दो दर्जन की एक दर्जन हो जायेगी , और कुछ खेत में टूटेगी कुछ पलंग पे ,कुछ हमरे देवर के साथ तो कुछ नंदोई के साथ। "
आज भाभी और चम्पा भाभी ने तय किया था कि वो मुझे शहर की गोरी से गांव की गोरी बनाकर रहेंगी।
तब तक पूरबी भी आगयी ,
भाभी की रिश्ते में बहन लगती थी ,उम्र में उनसे छोटी , मुझसे दो तीन साल बड़ी होगी ,
इसी साल शादी हुयी थी और पहले सावन में मायके आई थी।
और मेरे श्रृंगार और छेड़ने दोनों में हिस्सा बटाने लगी।
पावों में महावर और हाथों में रच-रच कर मेंहदी तो लगायी ही, नाखून भी खूब गाढ़े लाल रंगे गये,
पावों में घुंघरु वाली पाजेब,
कमर में चांदी की कर्धनी पहनायी गयी।
पूरबी ने चांदी की पाजेब बहुत प्यार से खुद मुझे पहनाई और मुझसे बोलने लगी ,
" ननद रानी ,तुम्हारे गहनों में सबसे जोरदार यही है। "
मेरे कुछ समझ में नहीं आया ,लेकिन पूरबी और चम्पा भाभी जोर जोर से मुस्करा रही थीं।
" अरे छैलों के कंधे पे चढ़ के बोलेगी ये , कभी गन्ने के खेत में तो कभी आम के बाग़ में, इसलिए सबसे पहले ये पाजेब ही पहना रही हूँ। "
कुछ देर में चंदा और रमा भी आ गयीं मेले के लिए तैयार हो के ,खूब सजधज के।
साथ में कामिनी भाभी भी।
भाभी ने अपनी खूब घेर वाली हरे रंग की चुनरी भी पहना दी, लेकिन उसे मेरी गहरी नाभी के खूब नीचे ही बांधा, जिससे मेरी पतली बलखाती कमर और गोरा पेट साफ दिख रहा था।
लेकीन परेशानी चोली की थी, चन्दा के उभार मुझसे बड़े थे इसलिये उसकी चोली तो मुझे आती नहीं
पर रमा जो भाभी की कजिन थी और मुझसे एक साल से थोड़ी ज्यादा छोटी थी, की चोली मैंने ट्राई की। पर वह बहुत कसी थी।
चम्पा भाभी ने कहा-
“अरे यहां गांव में चड्ढी बनयान औरतें नहीं पहनती…”
और उन्होंने मुझे बिना ब्रा के चोली पहनने को मजबूर किया।
भाभी ने तो ऊपर के दो हुक भी खोल दिये, जिससे अब ठीक तो लग रहा था पर मैं थोड़ा भी झुकती तो सामने वाले को मेरे चूचुक तक के दर्शन हो जाते और चोली अभी भी इत्ती टाइट थी कि
मेरे जोबन के उभार साफ-साफ दिख रहे थे।
हाथ में तो मैंने चूड़ियां, कलाई भर-भरकर तो पहनी ही थीं,
भाभी ने मुझे कंगन और बाजूबंद भी पहना दिये।
चन्दा ने मेरी बड़ी-बड़ी आँखों में खूब गाढ़ा काजल लगाया,
माथे को एक बड़ी सी लाल बिंदी और कानों में झुमके पहना दिये।
चम्पा भाभी ने पूरा मुआयना किया और कुछ देर तक सोचती रहीं ,
फिर बोलीं ,अभी भी एक कसर है।
अंदर गयीं और एक नथ ले आयीं , बहुत ही खूबसूरत , बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं।
मेरे होंठों से रगड़ खाती , और एक प्यारा सा बड़ा सा सफेद मोती।
और कामिनी भाभी ने अपने हाथ से पकड़ के पहना दिया।
मैंने जरा सा नखड़ा किया , ना नुकुर किया तो ,कामिनी भाभी चिढ़ाते हुए बोलीं ,
" अरी बिन्नो ,नथ पहनोगी नहीं तो उतरेगी कैसे "
फिर साथ साथ चंदा को हड़काया भी ,
" ये मस्त माल तेरे हवाले कर रही हूँ , तेरी जिम्मेदारी है। २४ घंटे के अंदर नथ उतर जानी चाहिए। "
चंदा भी कौन कम थी , बोली
" भाभी , अरे २४ घंटे। मेरी सहेली को समझती क्या हैं , १२ घंटे से कम में ये नथ न उतर गयी तो कहिये। अरे इसकी बुलबुल तो आई है है यहाँ चारा घोंटने। "
चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये।
काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,
हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।
हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त,
मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।
और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।
कजरी ने तान छेड़ी-
“अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…”
और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।
तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी-
“अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…”
वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।
पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा-
“अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”
मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।
“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…”
सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।
“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…”
चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।
“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…”
उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।
माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल
उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,
कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू
जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू
चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।
खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.
मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं।
और लड़कों को और उकसा रही थीं
तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,
" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "
और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा
"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "
गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,
" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "
और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी ,
रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान
मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।
और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,
सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।
तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।
कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।
और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ
अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया
चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये
रतिया के आयजा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया
और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,
यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।
और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ ,
फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....
लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,
पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया
" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो "
ये सुनील था।
और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी
और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,
अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,
तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।
जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई
तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।
आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार ,
रमा ने चिढ़ाया मुझे।
“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…”
अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।
बबुरे का डंडा फटाफट होए ,
तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा
तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।
पांच के बादल पचास लग जाय ,
बिन रगड़े न छोड़ब चाहे पुलिस लग जाय ,
अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।
साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे
आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,
अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।
चन्दा ने फ़ुसफुसाया-
“अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”
“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।
“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।
वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े।
मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज…
भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।
कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”
“और क्या… चलो ना…”
गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।
“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…”
खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।
मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये।
मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।
जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया।
मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था,
और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।
कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था
और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया
और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।
भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।
अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती,
उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।
पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी।
वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी,
इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।
तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था।
चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था।
मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।
चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे
और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।
बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा-
mam,you are so creative ,you would be very happy in your life,and due to it all man who know you,will be very happy,because I guess that you laugh and believe in make laugh.your writing skill is awesome.