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Erotica सोलवां सावन

Nick107

Ishq kr..❤
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kya baat hai, if you try, you be the best writer in this forum, what a turn of phrase, beautiful expression, great
Thank you so much komal ji.aapse tarif milna hi mere liye bahot he... mai to bss abhi aapki kahaniyo se sikh rha hu... abhi virgin hu na to.. in feelings ko itni gahrai se nhi likh paunga.. jaise aap likhti he... aur aap kya likhti he.. man hi nhi krta kahani chhod kr jane ka.. 😍
 

komaalrani

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Thank you so much komal ji.aapse tarif milna hi mere liye bahot he... mai to bss abhi aapki kahaniyo se sikh rha hu... abhi virgin hu na to.. in feelings ko itni gahrai se nhi likh paunga.. jaise aap likhti he... aur aap kya likhti he.. man hi nhi krta kahani chhod kr jane ka.. 😍
to mat jaaiye naa
 

komaalrani

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Merry Xmas
 
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krishna.ahd

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मस्ती की बारिश


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“तो चुदवाओ ना… मेरी जान शर्मा क्यों कर रही थी, लो अभी चोदता हूँ अपनी रानी को…”



और उसने वहीं झूले पे मुझे लिटाके मेरे टीन जोबन को कसके रगड़ने, मसलने, चूमने लगा।


थोड़ी ही देर में मैं मस्ती में सिसकियां ले रही थी।

मेरा एक जोबन उसके हाथों से कसकर रगड़ा जा रहा था और दूसरे को वह पकड़े हुए था

और मेरे उत्तेजित निपल को कस-कस के चूस रहा था।

कुछ ही देर में उसने जांघों पर से मेरे साड़ी सरका दी और उसके हाथ मेरी गोरी-गोरी जांघों को सहलाने लगे।

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मेरी पूरी देह में करेंट दौड़ गया।

देखते-देखते उसने मेरी पूरी साड़ी हटा दी थी और चन्दा की तरह मैं भी टांगें फैलाकर, घुटने से मोड़कर लेट गयी थी।

उसकी उंगलियां, मेरे प्यासे भगोष्ठों को छेड़ रहीं थी, सहला रही थी।

अपने आप मेरी जांघें, और फैल रही थीं।

अचानक उसने अपनी एक उंगली मेरी कुंवारी अनचुदी चूत में डाल दी और मैं मस्ती से पागल हो गयी।

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उसकी उंगली मेरी रसीली चूत से अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत रस से गीली हो रही थी।

बारिश तो लगभग बंद हो गई थी पर मैं अब मदन रस में भीग रही थी। उसका अंगूठा अब मेरी क्लिट को रगड़, छेड़ रहा था।


और मैं जवानी के नशे में पागल हो रही थी-



“बस… बस करो ना… अब और कितना… उह्ह्ह… उह्ह्ह… ओह्ह्ह… अजय… बहुत… और मत तड़पाओ… डाल दो ना…”


अजय ने मुझे झूले पे इस तरह लिटा दिया कि मेरे चूतड़ एकदम किनारे पे थे।

बादल छंट गये थे और चांदनी में अजय का… मोटा… गोरा… मस्क्युलर… लण्ड,

उसने उसे मेरी गुलाबी कुंवारी… कोरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया, मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगें उसके चौड़े कंधों पर थीं।


जब उसके लण्ड ने मेरी क्लिट को सहलाया तो मस्ती से मेरी आँखें बंद हो गयीं।

उसने अपने एक हाथ से मेरे दोनों भगोष्ठों को फैलाया और अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुहाने पे लगा के रगड़ने लगा।

दोनों चूचीयों को पकड़ के उसने पूरी ताकत से धक्का लगाया तो उसका सुपाड़ा मेरी चूत के अंदर था।



ओह… ओह… मेरी जान निकल रही थी, लगा रहा था मेरी चूत फट गयी है-


“उह… उह… अजय प्लीज… जरा सा रुक जाओ… ओह…”


मेरी बुरी हालत थी।


अजय अब एक बार फिर मेरे होंठों को चूचुक को, कस-कस के चूम चूस रहा था।

थोड़ी देर में दर्द कुछ कम हो गया और अब मैं अपनी चूत की अदंरूनी दीवाल पर सुपाड़े की रगड़न,

उसका स्पर्श महसूस कर रही थी और पहली बार एक नये तरह का मज़ा महसूस कर रही थी।

अजय की एक उंगली अब मेरी क्लिट को रगड़ रही थी और मैं भी दर्द को भूलकर धीरे-धीरे चूतड़ फिर से उचका रही थी।


एक बार फिर से बादल घने हो गये थे और पूरा अंधेरा छा गया था।


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अजय ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरी पतली कमर को कस के पकड़ा और लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला, और पूरी ताकत से अंदर पेल दिया। बहुत जोर से बादल गरजा और बिजली कड़की… और मेरी सील टूट गयी।




मेरी चीख किसी ने नहीं सुनी, अजय ने भी नहीं, वह उसी जोश में धक्के मारता रहा।

मैं अपने चूतड़ कस के पटक रही थी पर अब लण्ड अच्छी तरह से मेरी चूत में घुस चुका था और उसके निकलने का कोई सवाल नहीं था। दस बाहर धक्के पूरी ताकत से मारने के बाद ही वह रुका।


जब उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और उसने धक्के मारने बंद किये।





प्यासी धरती की तरह मैं सोखती रही और जब अजय ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया तो भी मैं वैसे ही पड़ी रही।

अजय ने मुझे उठाकर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने झुक कर अपनी जांघों के बीच देखा, मेरी चूत अजय के वीर्य से लथपथ थी

और अभी भी मेरी चूत से वीर्य की सफेद धार, मेरी गोरी जांघ पर निकल रही थी। पर तभी मैंने देखा-




ओह… ये खून खून कहां से… मेरा खून…


अजय ने मेरा गाल चूमते हुए, मेरा ब्लाउज उठाया और उसीसे मेरी जांघ के बीच लगा वीर्य और खून पोंछते हुए बोला-



“अरे रानी पहली बार चुदोगी तो बुर तो फटेगी ही… और बुर फटेगी तो दर्द भी होगा और खून भी निकलेगा, लेकिन अब आगे से सिर्फ मजा मिलेगा…”

अजय का लण्ड अभी भी थोड़ा खड़ा था। उसे पकड़कर अपनी मुट्ठी में लेते हुए, मैं बोली-





“सब इसी की करतूत है… मजे के लिये मेरी कुवांरी चूत फाड़ दी… और खून निकाला सो अलग…

और फिर इतना मोटा लंबा पहली बार में ही पूरा अंदर डालना जरूरी था क्या…”






अजय मेरा गाल काटता बोला-

“अरे रानी मजा भी तो इसी ने दिया है… और आगे के लिये मजे का रास्ता भी साफ किया है…
लेकिन आपकी ये बात गलत है की जब तुम्हें दर्द ज्यादा होने लगा तो मैंने सिर्फ आधे लण्ड से चोदा…” ''






बनावटी गुस्से में उसके लण्ड को कस के आगे पीछे करती, मैं बोली-



“आधे से क्यों… अजय ये तुम्हारी बेईमानी है… इसने मुझे इत्ता मजा दिया, जिंदगी में पहली बार और तुमने…

और दर्द… क्या… आगे से मैं चाहे जितना चिल्लाऊँ, चीखूं, चूतड़ पटकूं, चाहे दर्द से बेहोश हो जाऊँ,
पर बिना पूरा डाले तुम मुझे… छोड़ना मत, मुझे ये पूरा चाहिये…”





अजय भी अब मेरी चूत में कस-कस के ऊँगली कर रहा था-

“ठीक है रानी अभी लो मेरी जान अभी तुम्हें पूरे लण्ड का मजा देता हूं, चाहे तुम जित्ता चूतड़ पटको…”





मैंने मुँह बनाया-



“मेरा मतलब यह नहीं था और अभी तो… तुम कर चुके हो… अगली बार… अभी-अभी तो किया है…”





लेकिन अजय ने अबकी मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे झूले पे इस तरह लिटाया की सारे कपड़े मेरे चूतड़ों के नीचे रख दिये

और अब मेरे चूतड़ अच्छी तरह उठे हुए थे। वह भी अब झूले पर ही मेरी फैली हुई टांगों के बीच आ गया





और अपने मोटे मूसल जैसे लण्ड को दिखाते हुए बोला-





“अभी का क्या मतलब… अरे ये फिर से तैयार है अभी तुम्हारी इस चूत को कैसा मजा देता है, असली मजा तो अबकी ही आयेगा…” वह अपना सुपाड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ रहा था और उसके हाथ मेरी चूचियां मसल रहे थे। वह अपना मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा, कड़ा सुपाड़ा मेरी क्लिट पर रगड़ता रहा।




और जब मैं नशे से पागल होकर चिल्लाने लगी-


“अजय प्लीज… डाल दो ना… नहीं रहा जा रहा… ओह… ओह… करो ना… क्यों तड़पाते हो…” तो अजय ने एक ही धक्के में पूरा सुपाड़ा मेरी चूत में पेल दिया।


उह्ह्ह्ह, मेरे पूरे शरीर में दर्द की एक लहर दौड़ गयी, पर अबकी वो रुकने वाला नहीं था। मेरी पतली कमर पकड़ के उसने दूसरा धक्का दिया। मेरी चूत को फाड़ता, उसकी भीतरी दीवाल को रगड़ता, आधा लण्ड मेरी कसी किशोर चूत में घुस गया। दर्द तो बहुत हो रहा था पर मजा भी बहुत आ रहा था।

ह कभी मुझे चूमता, मेरी रसीली चूचियों को चूसता, कभी उन्हें कस के दबा देता, कभी मेरी क्लिट सहला देता, पर उसके धक्के लगातार जारी थे।





मैंने भी भाभी के सिखाने के मुताबिक अपनी टांगों को पूरी तरह फैला रखा था।




उसके धक्कों के साथ मेरी पायल में लगे घुंघरू बज रहे थे और साथ में सुर मिलाती सावन की झरती बूंदे, मेरे और उसके देह पर और इस सबके बीच मेरी सिसकियां, उसके मजबूत धक्कों की आवाज… बस मन कर रहा था कि वह चोदता ही रहे… चोदता ही रहे।

कुछ देर में ही उसका पूरा लण्ड मेरी रसीली चूत में समा गया था और अब उसके लण्ड का बेस मेरी चूत से क्लिट से रगड़ खा रहा था।



नीचे कपड़े रखकर जो उसने मेरे चूतड़ उभार रखे थे। एकदम नया मजा मिल रहा था।



थोड़ी देर में जैसे बरसात में, प्यासी धरती के ऊपर बादल छा जाते हैं वह मेरे ऊपर छा गया। अब उसका पूरा शरीर मेरी देह को दबाये हुए था और मैंने भी अपनी टांगें उसकी पीठ पर कर कस के जकड़ लिया था। कुछ उसके धक्कों का असर, कुछ सावन की धीरे-धीरे बहती मस्त हवा… झूला हल्के-हल्के चल रहा था।









मुझे दबाये हुए ही उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये और मैं भी नीचे से चूतड़ उठा-उठाकर उसका जवाब दे रही थी। मेरे जोबन उसके चौड़े सीने के नीचे दबे हुए थे। वह पोज बदल-बदल कर, कभी मेरे कंधों को पकड़कर, कभी चूचियों को, तो कभी चूतड़ों को पकड़कर लगातार धक्के लगा रहा था, चोद रहा था, न सावन की झड़ी रुक रही थी, न मेरे साजन की चुदाई… और यह चलता रहा।









मैं एक बार… दो बार… पता नहीं कितनी बार झड़ी… मैं एकदम लथपथ हो गयी थी।


तब बहुत देर बाद अजय झड़ा और बहुत देर तक मैं अपनी चूत की गहराईयों में उसके वीर्य को महसूस कर रही थी।




उसका वीर्य मेरी चूत से निकलकर मेरी जांघों पर भी गिरता रहा। कुछ देर बाद अजय ने मुझे सहारा देकर झूले पर से उठाया। मैंने किसी तरह से साड़ी पहनी, पहनी क्या बस देह पर लपेट ली।
Oh my
What a narration
Hats Off Komal Ji
 
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krishna.ahd

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क्या खूब लिखती है आप, आंखों के आगे फिल्म चलने लगतीहै।इतनी खूबसूरत लिखन की तारीफ़ के लिए शब्द कम पर जाते हैं। मैने आपकी काफी कहानियों पनि हैं।
एकदम सही कहा
तारीफ करने के लिए शब्द नही है है
३ हफ्ते में यह तीसरी कहानी - शुरू से अंत तक पढ़ने की कोशिश की हूं में
कच्ची अमिया की तलब लगी है अब तो
 

Rajizexy

❤Lovely Doc
Supreme
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सामने सुबह से अब तक का दृश्य घूम रहा था…



सुबह जब मैं भाभी के साथ उनके मायके पहुँची, तभी सायत अच्छी हो गई थी।


सामने अजय मिला और उसने सामान ले लिया।


चम्पा भाभी ने हँसकर पूछा-

“अरे, इस कुली को सामान उठाने की फ़ीस क्या मिलेगी…”


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भाभी ने हँसकर धक्का देते हुये मुझे आगे कर दिया और अजय की ओर देखते हुए पूछा-

“क्यों पसंद है, फीस…”

अजय जो मेरे उभारों को घूर रहा था, मुश्कुराते हुए बोला-



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“एकदम दीदी, इस फीस के बदले तो आप चाहे जो काम करा लीजिये…”


मुन्ना मेरी गोद में था। तभी किसी ने मुझे चिढ़ाया-

“अरे, बिन्नो तेरी ननद की गोद में बच्चा… अभी तो इसकी शादी भी नहीं हुई…”


मैं शर्मा गयी।
पीछे से किसी का हाथ मेरे कंधे को धप से पड़ा और वह बोली-

“अरे भाभी, बच्चा होने के लिये शादी की क्या जरुरत… हां, उसके लिये जो जरूरी है, वो करवाने लायक यह अच्छी तरह हो गई है…”


पीछे मुड़कर मैंने देखा तो मेरी सहेली, हम उमर चन्दा थी।

भाभी अपनी सहेलियों और भाभियों के बीच जाकर बैठ गयीं। अजय मेरे पास आया और मुन्ने को लेने के लिये हाथ बढ़ाया। मुन्ने को लेने के बहाने से उसकी उंगलियां, मेरे गदराते उभारों को न सिर्फ छू गयीं बल्कि उसने उन्हें अच्छी तरह रगड़ दिया। जहां उसकी उंगली ने छुआ था, मुझे लगा कि मुझे बिज़ली का करेंट लगा गया है। मैं गिनिगना गई।


चन्दा ने मेरे गुलाबी गालों पर चिकोटी काटते हुए कहा-

“अरे गुड्डो, जरा सा जोबन पर हाथ लगाने पर ये हाल हो गया, जब वह जोबन पकड़कर रगड़ेगा, मसलेगा तब क्या हाल होगा तेरा…”

मेरी आँख अजय की ओर मुड़ी, अभी भी मेरे जोबन को घूरते हुए वह शरारत के साथ मुश्कुरा रहा था।

मैं भी अपनी मुश्कुराहट रोक नहीं पायी। भाभी ने मुझे अपने पास बुलाकर बैठा लिया।

एक भाभी ने, भाभी से कहा- “बिन्नो… तेरी ननद तो एकदम पटाखा लगा रही है। उसे देखकर तो मेरे सारे देवरों के हिथयार खड़े रहेंगे…”

मुझे लगा कि शायद, मुझे ऐसा ड्रेस पहनकर गांव नहीं आना चाहिये था। टाप मेरी थोड़ी टाइट थी उभार खूब उभरकर दिख रहे थे।

स्कर्ट घुटने से ऊपर तो थी ही पर मुड़कर बैठने से वह और ऊपर हो गयी थी और मेरी गोरी-गोरी गुदाज जाघें भी दिख रही थीं।


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मेरी भाभी ने हँसकर जवाब दिया- “अरे, मेरी ननद तो जब अपनी गली से बाहर निकलती है तो उसे देखकर उसकी गली के गदहों के भी हिथयार खड़े हो जातें हैं…”

तो चमेली भाभी उनकी बात काटकर बोलीं-

“अच्छा किया जो इसे ले आयीं इस सावन में मेरे देवर, इसके सारे तालाब पोखर भर देंगे…”

तभी राकी आ आया और मेरे पैर चाटने लगा। डरकर, सिमटकर मैं और पीछे दीवाल से सटकर बैठ आयी। राकी बहुत ही तगड़ा किसी विदेशी ब्रीड का था।


चम्पा भाभी ने कहा- “अरे ननद रानी डरो नहीं वह भी मिलने आया है…”

चाटते-चाटते वह मेरी गोरी पिंडलियों तक पहुँच गया। मैं भी उसे सहलाने लगी। तभी उसने अपना मुँह खुली स्कर्ट के अंदर तक डाल दिया, डर के मारे मैं उसे हटा भी नहीं पा रही थी।

मेरी भाभी ने कहा-


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“अरे गुड्डी, लगता है इसका भी दिल तेरे ऊपर आ आया है जो इतना चूम चाट रहा है…”


चम्पा भाभी बोलीं-


“अरे बिन्नो, तेरी ननद माल ही इतना मस्त है…”

चमेली भाभी कहां चुप रहतीं, उन्होंने छेड़ा-


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“अरे घुसाने के पहले तो यह चूत को अच्छी तरह चूम चाटकर गीली कर देगा तब
पेलेगा । बिना कातिक के तुम्हें देख के ये इतना गर्मा रहा है तो कातिक में तो बिना चोदे छोड़ेगा नहीं।

लेकिन मैं कह रही हूँ कि एक बार ट्राई कर लो, अलग ढंग का स्वाद मिलेगा…”


मैंने देखा कि राकी का शिश्न उत्तेजित होकर थोड़ा-थोड़ा बाहर निकाल रहा था।

बसंती जो नाउन थी, तभी आयी। सबके पैर में महावर और हाथों में मेंहदी लगायी गयी।

मैंने देखा कि अजय के साथ, सुनील भी आ गया था और दोनों मुझे देख-देखकर रस ले रहे थे।

मेरी भी हिम्मत भाभियों का मजाक सुनकर बढ़ गयी थी और मैं भी उन दोनों को देखकर मुश्कुरा दी।
Very nice story Komaalrani ji.👌👌👌
 
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krishna.ahd

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उईइइइइइइइइइ , प्लीज लगता है ,ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई





और मैं जोर से चिल्लाई ,

" उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज लगता है ,माँ ओह्ह आह बहोत जोर से नहीईईईई अजय बहोत दर्द उईईईईईई माँ। "
………….

" अपनी माँ को क्यों याद कर रही हो ,उनको भी चुदवाना है क्या ,चल यार चोद देंगे उनको भी , वो भी याद करेंगी की ,...."

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दोनों हाथों से हलके हलके मेरी दोनों गदराई चूंची दबाते , और अपने पूरा घुसे लंड के बेस से जोर जोर से मेरे क्लिट को रगड़ते अजय ने चिढ़ाया।

लेकिन मैं क्यों छोड़ती उसे ,जब भी वो हमारे यहाँ आता मैं उसे साल्ले ,साल्ले कह के छेड़ती , आखिर मेरे भइया का साला तो था ही। मैंने भी जवाब जोरदार दिया।

" अरे साल्ले भूल गए ,अभी साल दो साल भी नहीं हुआ , जब मैं इसी गाँव से तोहार बहिन को सबके सामने ले गयी थी , अपने घर ,अपने भइया से चुदवाने। और तब से कोई दिन नागा नहीं गया है जब तोहार बहिन बिना चुदवाये रही हों। ओहि चुदाई का नतीजा ई मुन्ना है , और आप मुन्ना के मामा बने हो। "


मिर्ची उसे जोर की लगी।

बस उसने उसी तरह जवाब दिया ,जिस तरह से वो दे सकता था ,पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर निकाल कर ,एक धक्के में हचक के उसने पेल दिया पूरी ताकत अबकी पहली बार से भी जोरदार धक्का उसके मोटे सुपाड़े का मेरी बच्चेदानी पे लगा।

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दर्द और मजे से गिनगीना गयी मैं।

और साथ ही कचकचा के मेरी चूची काटते , अजय ने अपना इरादा जाहिर किया ,

" जितना तेरी भाभी ने साल भर में , उससे ज्यादा तुम्हे दस दिन में चोद देंगे हम, समझती क्या हो।
मुझे मालूम है हमार दी की ननद कितनी चुदवासी हैं ,सारी चूत की खुजली मिटा के भेजेंगे यहाँ से तुम खुदे आपन बुरिया नही पहचान पाओगी। "

जवाब में जोर से अजय को अपनी बाहों में बाँध के अपने नए आये उभार ,अजय की चौड़ी छाती से रगड़ते हुए , उसे प्यार से चूम के मैंने बोला ,

" तुम्हारे मुंह में घी शक्कर , आखिर यार तेरा माल हूँ और अपनी भाभी की ननद हूँ ,कोई मजाक नहीं। देखती हूँ कितनी ताकत है हमारी भाभी के भैय्या में , चुदवाने में न मैं पीछे हटूंगी ,न घबड़ाउंगी। आखिर तुम्हारी दी भी तो पीछे नहीं हटती चुदवाने में , मेरे शहर में। साल्ले बहनचोद , अरे यार बुरा मत मानना , आखिर मेरे भैय्या के साले हो न और तोहार बहिन को तो हम खुदै ले गयी थीं ,चुदवाने तो बहिनचोद , … "

मेरी बात बीच में ही रुक गयी , इतनी जोर से अजय ने मुझे दुहरा कर के मेरे दोनों मोटे मोटे चूतड़ हाथ से पकड़े और एक ऐसा जोरदार धक्का मारा की मेरी जैसे साँस रुक गयी ,और फिर तो एक के बाद एक ,क्या ताकत थी अजय में ,मैंने अच्छे घर दावत दे दी थी।

मैं जान बूझ के उसे उकसा रही थी। वो बहुत सीधा था और थोड़ा शर्मीला भी ,लेकिन इस समय जिस जोश में वो था ,यही तो मैं चाहती टी।

जोर जोर से मैं भी अब उसका साथ देने की कोशिश कर रही थी। दर्द के मारे मेरी फटी जा रही थी लेकिन फिर भी हर धक्के के जवाब में चूतड़ उचका रही थी , जोर जोर से मेरे नाखून अजय के कंधे में धंस रहे थे ,मेरी चूंचियां उसकी उसके सीने में रगड़ रही थीं।

दरेरता, रगड़ता , घिसटता उसका मोटा लंड जब अजय का ,मेरी चूत में घुसता तो जान निकल जाती लेकिन मजा भी उतना ही आ रहा था।

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कचकचा के गाल काटते ,अजय ने छेड़ा मुझे ,

" जब तुम लौट के जाओगी न तो तोहार भैया सिर्फ हमार बल्कि पूरे गाँव के साले बन जाएंगे , कौनो लड़का बचेगा नहीं ई समझ लो। "







और उस के बाद तो जैसे कोई धुनिया रुई धुनें ,





सिर्फ जब मैं झड़ने लगी तो अजय ने थोड़ी रफ्तार कम की।

मैंने दोनों हाथ से चारपाई पकड़ ली ,पूरी देह काँप रही थी. बाहर तूफान में पीपल के पेड़ के पत्ते काँप रहे थे ,उससे भी ज्यादा तेजी से।



जैसे बाहर पागलों की तरह बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे थे, मैं अपनी देह अजय की देह में रगड़ रही थी।



अजय मेरे अंदर धंसा था लेकिन मेरा मन कर रहा था बस मैं अजय के अंदर खो जाऊं , उसके बांस की बांसुरी की हवा बन के उसके साथ रहूँ।



मुझे अपने ही रंग में रंग ले , मुझे अपने ही रंग में रंग ले ,

जो तू मांगे रंग की रंग रंगाई , जो तू मांगे रंग की रंगाई ,

मोरा जोबन गिरवी रख ले , अरे मोरा जोबन गिरवी रख ले ,





मेरा तन ,मेरा मन दोनों उस के कब्जे में थे।





दो बार तक वह मुझे सातवें आसमान तक ले गया ,और जब तीसरी बार झड़ी मैं तो वो मेरे साथ ,मेरे अंदर , … खूब देर तक गिरता रहा ,झड़ता रहा।

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बाहर धरती सावन की हर बूँद सोख रही थी और अंदर मैं उसी प्यास से ,एक एक बूँद रोप रही थी।



देर तक हम दोनों एक दूसरे में गूथे लिपटे रहे।



वह बूँद बूँद रिसता रहा।

अलसाया ,





बाहर भी तूफान हल्का हो गया था।



बारिश की बूंदो की आवाज , पेड़ों से , घर की खपड़ैल से पानी के टपकने की आवाज एक अजब संगीत पैदा कर रहा था।

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उसके आने के बाद हम दोनों को पहली बार , बाहर का अहसास हुआ।











अजय ने हलके से मुझे चूमा और पलंग से उठ के अँधेरे में सीधे ताखे के पास , और बुझी हुयी ढिबरी जला दी.


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मजा आया गन्ने के खेत में




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वह मुश्कुराता हुआ बोला-



“अरे, मेरी जान अभी तो सिर्फ सुपाड़ा अंदर आया है, अभी पूरा मूसल तो बाहर बाकी है, और वैसे भी इस गन्ने के खेत में तुम चाहे जितना चीखो कोई सुनने वाला नहीं…”


अब उसने मेरी दोनों पतली कोमल कलाईयों को कस के पकड़ लिया और एक बार फिर से पूरे जोर से उसने धक्का लगाया,




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मेरी चीख निकलने के पहले ही उसने संतरे की फांक ऐसे मेरे पतले रसीले होंठों को अपने दोनों होंठों के बीच कसके भींच लिया

और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ दी।

मुझे उसी तरह जकड़े वह धक्के लगाता रहा।

मेरी आधी लाल गुलाबी चूड़ियां टूट गयीं।





मैं अपने गोरे-गोरे मदमस्त चूतड़, मिट्टी में रगड़ रही थी पर उसके लण्ड के निकलने का कोई चांस नहीं था। और जब आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत ने घोंट लिया तभी उस जालिम ने छोड़ा।





पर छोड़ा क्या… उसके हाथ मेरी कलाईयों को छोड़कर मेरी रसीली चूचियों को मसलने, गूंथने में लग गये।



उसके होंठों ने मेरे होंठों को छोड़कर मेरे गुलाबी गालों का रस लेना शुरू कर दिया और उसका लण्ड उसी तरह मेरी चूत में धंसा था।


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“क्यों बहुत दर्द हो रहा है…” उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा।


“बकरी की जान चली गयी और खाने वाला स्वाद के बारे में पूछ रहा है…” मुश्कुराते, आँख नचाते, शिकायत भरे स्वर में मैंने कहा।

“अरे स्वाद तो बहुत आ रहा है, मेरी जान, स्वाद तो मेरे इससे पूछो…”




और ये कह के उसने मेरे चूतड़ पकड़ के कस के अपने लण्ड का धक्का लगाया। अब वह सब कुछ भूल के गचागच गचागच मेरी चुदाई कर रहा था। मेरी चूत पूरी तरह फैली हुई थी। दर्द तो बहुत हो रहा था, पर जब उसका लण्ड मेरी चूत में अंदर तक घुसता तो बता नहीं सकती, कितना मजा आ रहा था।

उसकी उंगलियां कभी मेरे निपल खींचतीं, कभी मेरी क्लिट छेड़तीं, और उस समय तो मैं नशे में पागल हो जाती। उसकी इस धुआंधार चुदाई से मैं जल्द ही झड़ने के कगार पर पहुँच गयी।



पर सुनील को भी मेरी हालत का अंदाज़ हो गया था और उसने अपना लण्ड मेरी चूत के लगभग मुहाने तक निकाल लिया।




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मैं- “हे डालो ना, प्लीज़ रुक क्यों गये, करो ना… अच्छा लगा रहा है…”

पर वह उसी तरह मुझे छेड़ता रहा।


मैं- “हे डालो ना, करो ना…” मैंने फिर कहा।





“क्या डालूं… क्या करूं… साफ-साफ बोलो…” वो बोला।
मैं- “चोदो चोदो, मेरी चूत… अपने इस मोटे लण्ड से कस-कस के चोदो, प्लीज़…”
“ठीक है, लेकिन आज से तुम सिर्फ इसी तरह से बोलोगी, और मुझसे एक बार और चुदवाओगी…”


मैं- “हां, हां, जो तुम कहो एक बार क्या मेरे राजा तुम जितनी बार बोलोगे उतनी बार चुदवाऊँगी, पर अभी तो…”



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उसने पूरी ताकत से मेरे कंधे पकड़ के इतनी जोर से धक्का मारा कि उसका पूरा लण्ड एक बार में ही अंदर समा गया। और मैं झड़ गयी, देर तक झड़ती रही, पर वह रुका नहीं और धक्के मारता रहा, मुझे चोदता रहा।



थोड़ी ही देर में मैं फिर पूरे जोश में आ गयी थी और उसके हर धक्के का जवाब चूतड़ उठा के देती। मेरे टीन चूतड़ उसके जोरदार धक्कों से जमीन पर रगड़ खा रहे थे। मेरी चूची पकड़ के, कभी कमर पकड़ के वह बहुत देर तक चोदता रहा और जब मैं अगली बार झड़ी तो उसके बाद ही वह झड़ा।





सुनील ने मुझे हाथ पकड़ के उठाया और मेरे नितम्बों पर लगी मिट्टी झाड़ने के बहाने उसने मेरे चूतड़ों पर कस-कस के मारा और एक चूतड़ पकड़ के न सिर्फ दबोच लिया बल्की मेरी गाण्ड में उंगली भी कर दी।





“हे क्या करते हो मन नहीं भरा क्या, अब इधर भी…” मैंने उसे हटाते हुये कहा।

“और क्या, तेरे ये मस्त चूतड़ देख के गाण्ड मारने का मन तो करने लगाता है…” ये कहते हुये उसने मेरे जोबन दबाते हुये गाल कसकर काट लिया।

“उइइइइ…” मैं चीखी और उससे छुड़ाते हुए बाहर निकली।



साथ-साथ सुनील भी आया। बाहर निकलते ही मैं चकित रह गयी।

चन्दा के साथ-साथ अजय भी था।



सुनील ने मेरे कंधे पे हाथ रखा था, मेरी चूची टीपते हुए, अजय को दिखाकर वो बोला- “देख मैंने तेरे माल पे हाथ साफ कर लिया…”



अजय कौन कम था, उसने चन्दा के गाल हल्के से काटते हुए कहा- “और मैंने तेरे पे…”



चन्दा भी छेड़ने के मूड में थी, उसने आँख नचाकर मुझसे पूछा- “क्यों, आया मजा… सुनील के साथ…”

मुंह बनाकर मैं बोली- “यहां जान निकल गयी और तू मजे की पूछ रही है…”



चन्दा मेरे पास आकर मेरे नितम्बों को दबोचती बोली-









“अभी चूतड़ उठा-उठाकर गपागप घोंट रही थी और… (मेरे कान में बोली) आगे का जो वादा किया है… और यहां छिनारपन दिखा रही है…”



“हे, तूने कहां से देखा…” अब मेरे चौंकने की बारी थी।





“जहां से तू कल देख रही थी…”


मैं उसे पकड़ने को दौड़ी, पर वह मोटे चूतड़ मटकाती, तेजी से भाग निकली। मुझे घर के बाहर छोड़कर ही वह चली गयी। घर के अंदर पहुँचकर मैं सीधे अपने कमरे में गयी और अपनी हालत थोड़ी ठीक की।
वाह , क्या इरोटिक अपडेट है , लगता है की चंदा के साथ हम भी देख रहे थे
 
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komaalrani

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एकदम सही कहा
तारीफ करने के लिए शब्द नही है है
३ हफ्ते में यह तीसरी कहानी - शुरू से अंत तक पढ़ने की कोशिश की हूं में
कच्ची अमिया की तलब लगी है अब तो
कच्ची अमिया चीज ही ऐसी है ,


और बहुत बहुत धन्यवाद, मेरी कहानियां पढ़ने के लिए तारीफ़ करने के लिए और साथ देने के लिया ,


तो कैसे लग रही है भाभी के गाँव में
 
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