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बहुत बहुत धन्यवाद, ये कहानी पूरी तरह गाँव की पृष्ठभूमि पर है, और जवानी की दहलीज़ पर खड़ी किशोरी की, ननद भाभी के मीठे रिश्तों की कर सबसे बढ़कर सावन के सेक्सी मौसम की है,वाह , क्या इरोटिक अपडेट है , लगता है की चंदा के साथ हम भी देख रहे थे
मेरा मानना है की भारतीय परिवेश में श्रृंगार में ऋतुओं का बहुत योगदान है , कालिदास के ऋतू संहार से लेकर बहुत सी रचनाये हैं जिनमें ऋतुओं का, और वर्षा का तो मेघदूत में भी, विरह अत्यंत विद्घध हो जाता है और संयोग का मौका हो तो सावन , बसंत से किसी मामले में कम नहीं है,
और गाँव में तो और,
हरियाली चारों ओर, खूब घने काले बादल, ठंडी हवा… हम लोग थोड़ा ही आगे बढे होंगे कि मैंने एक बाग में मोर नाचते देखे, खेतों में औरतें धान की रोपायी कर रहीं थी, सोहनी गा रहीं थी, जगह जगह झूले पड़े थे और कजरी के गाने की आवाजें गूंज रहीं थीं
और सावन का यह मौसम उद्दीपन का काम करता है,
तो यह कहानी जितनी एक किशोरी की है उतनी ही गाँव की भी सावन की, और उनके दृश्यों की भी,
हाँ एक बात और,... कहानी में लोक गीतों का भी प्रयोग करने की मैंने कोशिश की है लेकिन वही जो मैंने गाये या सुने हैं,... शुरआत ही एक सोहर से होती है ( पुत्र जन्म में गाये जाना वाला लोक गीत ) और ननद भाभी के गाँव में है , तो सारी छेड़छाड़ ननद को लेकर ,
स्वागत है आपका गाँव में, सावन में और सावन और गाँव की इस कहानी में ,...