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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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वाह , क्या इरोटिक अपडेट है , लगता है की चंदा के साथ हम भी देख रहे थे
बहुत बहुत धन्यवाद, ये कहानी पूरी तरह गाँव की पृष्ठभूमि पर है, और जवानी की दहलीज़ पर खड़ी किशोरी की, ननद भाभी के मीठे रिश्तों की कर सबसे बढ़कर सावन के सेक्सी मौसम की है,

मेरा मानना है की भारतीय परिवेश में श्रृंगार में ऋतुओं का बहुत योगदान है , कालिदास के ऋतू संहार से लेकर बहुत सी रचनाये हैं जिनमें ऋतुओं का, और वर्षा का तो मेघदूत में भी, विरह अत्यंत विद्घध हो जाता है और संयोग का मौका हो तो सावन , बसंत से किसी मामले में कम नहीं है,

और गाँव में तो और,

हरियाली चारों ओर, खूब घने काले बादल, ठंडी हवा… हम लोग थोड़ा ही आगे बढे होंगे कि मैंने एक बाग में मोर नाचते देखे, खेतों में औरतें धान की रोपायी कर रहीं थी, सोहनी गा रहीं थी, जगह जगह झूले पड़े थे और कजरी के गाने की आवाजें गूंज रहीं थीं

और सावन का यह मौसम उद्दीपन का काम करता है,

तो यह कहानी जितनी एक किशोरी की है उतनी ही गाँव की भी सावन की, और उनके दृश्यों की भी,
हाँ एक बात और,... कहानी में लोक गीतों का भी प्रयोग करने की मैंने कोशिश की है लेकिन वही जो मैंने गाये या सुने हैं,... शुरआत ही एक सोहर से होती है ( पुत्र जन्म में गाये जाना वाला लोक गीत ) और ननद भाभी के गाँव में है , तो सारी छेड़छाड़ ननद को लेकर ,

स्वागत है आपका गाँव में, सावन में और सावन और गाँव की इस कहानी में ,...
 

komaalrani

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सशीरकाम्भोधरमत्तकुञ्जरस्
तटित्पताकोऽशनिशब्दमर्दलः।
समागतो राजवत् उद्धतद्युतिर्
घनागमः कामिजनप्रियः प्रिये ॥ २-१


A king's convoy starts with sweaty elephants in rut, likewise the king of seasons, namely the rainy season, started with its march of elephantine clouds sweating raindrops... a king's retinue carry ornate flags and pennons, likewise the skyey flashes, rainbows etc are the pennants and buntings of this kingly rain... a king's ride will not be mute, but strident with trumpet's trumpeting and drumbeats' thundering, likewise this kinglike monsoon is set out with the thunders of the thunderbolts as its percussive drumbeats... whole environ is sheeny with cloudscapes, raindrops, rainbows etc with the pageant arrival of a king... all this is for the delight of voluptuous people.



ऋतुसंहार के वर्षा सर्ग का प्रथम श्लोक
 

komaalrani

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निपातयन्त्यः परितस् तटद्रुमान्
प्रवृद्धवेगैः सलिलैर् अनिर्मलैः।
स्त्रियः सुदुष्टा इव जातिविभ्रमाः
प्रयान्ति नद्यस् त्वरितम् पयोनिधिम्॥ २-७

"Highly intensified is the rapidity of the waters of these maidens called rivers, which similes with the promptitude of maidens with misdemeanour, where these waters are new and thus miry, while those dames are newly maturated and thus they are in the mire of maturity, while these waters are hurtling hastily towards their lover, called the ocean, with a seasonally created excitement, those damsels are flirtatiously jaunting with their flirty lovers, and in doing so both of them are reckless about their own kith and kin, since the rapid watercourse of rivers is felling its riverine trees, ubiquitously... and the flirty jaunting of those dames is felling the reputation of her family, far and wide... ah, a season is the culprit to cause a seasonal itch...
 
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komaalrani

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कालागुरुप्रचुरचन्दनचर्चिताङ्ग्यः
पुष्पावतंससुरभीकृतकेशपाशाः।
श्रुत्वा ध्वनिम् जलमुचाम् त्वरितम् प्रदोषं
शय्यागृहम् गुरुगृहात् प्रदिशन्ति नार्यः॥ २-२१

"These days the women are not applying sandal-paste that is mixed with yellow camphor etc., for it will be too coolant, and hence their limbs are quietly bedaubed with the powder of aloe vera and sandal-paste as bodily scents, and with flowers bedecked as ear-hangings at hairslides, their plaited hairdo is rendered fragrant with these flowers and shampoos, such as they are, they are in the service of their in-laws in their chambers, but on hearing the rumbles of clouds, they are hastening themselves to their own bedchambers, where their men are in long wait, though the nightfall has not fallen that deep...[
 

komaalrani

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Very nice story Komaalrani ji.👌👌👌
Thanks so much, i cant not tell you how happy i feel after looking at your comments, and more importantly, you gracing my threads,... welcome and please do share your most valuable views,...
 
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komaalrani

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komaalrani

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krishna.ahd

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कच्ची अमिया चीज ही ऐसी है ,


और बहुत बहुत धन्यवाद, मेरी कहानियां पढ़ने के लिए तारीफ़ करने के लिए और साथ देने के लिया ,


तो कैसे लग रही है भाभी के गाँव में
भाभी के गांव में , टाइम मशीन से पहुंच गया हूं ऐसे ही लग रहा है
मेले में मस्ती , गन्ने के खेत में जोताई , सपने है या सच , पता नही
 

krishna.ahd

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बारिश में ,… बारिश



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वो खुद बोला ," तुझे बाहर , भीगते पानी में ले जा के हचक हचक के चोदूँ ".



एक पल मैं चुप रही फिर जोर से अपना चूतड़ उसके खड़े हथियार पे जोर से रगड़ के मैने बोला ,



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" तू एक बार समझता नहीं लगता। "









वो समझ गया , मैंने कहा था अगर तूने दोबारा मुझसे पूछा न तो कुट्टी , वो भी पक्की वाली।

पांच मिनट में हम दोनों बाहर थे ,

उस मोटे पाकड़ के तने के पीछे ,ठीक बँसवाड़ी के बीच जहाँ दिन में ढूंढने पे भी आदमी न मिले।

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और इस समय तो घुप्प अँधेरा था , और हाँ वो मुझे अपनी गोद में उठा के ले आया था।


तगड़ा प्रेमी होने का कुछ तो फायदा हो ,लेकिन उसके तगड़े होने सबूत और मिल गया मुझे जब उसने निहुरा दिया ,



कुतिया की तरह उस पाकड़ के पेड़ के मोटे तने को पकड़ के ,और एक झटके में अंदर।


दो बार की मलाई पूरी अंदर थी।



बारिश की बूंदे , आम के पेड़ों से टपकती पानी की धार मुझे भिगो रही थी और ऊपर से अजय की शरारतें ,





"तूने खुद बोला है छिनार की जनी कम से कम २० से चुदेगी, इस गाँव में. \अगर एक भी कम हुआ न तो मुट्ठी पेल दूंगा और जैसे कुतिया बनी है न वैसे ही कुतिया बना के गाँव के जितने,देसी … "





अब मुझे लगा की वो चंपा भाभी का पक्का देवर है यही वार्निंग ठीक मुझे चंपा भाभी ने दी थी ,





" अगर छिनरो ,गाँव का कौनो मरद बचा न त जाने से पहले तोहरी बुरिया में , ई मुट्ठी पूरा पेल दूंगी सोच लो ,लंड खाना है या मुट्ठी। "









इस बार उस ज़ालिम ने हद कर दी , बिना मेरे दर्द की परवाह किये , एक बार में पूरा मूसल पेल दिया जड़ तक ,

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उस सन्नाटे में मेरी चीख निकल गयी , लेकिन मेरे बलमाको कोई परवाह नहीं थी।



मैं कुतिया की तरह , झुकी हुयी , दोनों हाथ मेरे पेड़ के तने पे ,



और उस के दोनों हाथ मेरी चूंचियों को दबाते हुए ऐसे जोर जोर से निचोड़ रहे थे की क्या कोई जूस स्टाल वाला नारंगी निचोड़ेगा।



गपागप गपागप , सटासट सटासट ,


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वो पेल रहा था मैं लील रही थी , खुले आसमान के नीचे ,खुले मैदान में.

बारिश एक बार फिर तेज हो गयी , सावन की छोटी छोटी बूंदे ,तेज धार में बदल गयी थी ,

आसमान में फिर बिजली चमकने लगी थी.



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लेकिन उस बेरहम पे कोई फरक नहीं पड़ने वाला था , बल्कि उसकी चुदाई की रफ्तार और बढ़ गयी।



जो मुझे चंदा और बसंती ने बताया सिखाया था , अगर मरद दो बार झड़ चुका है और फिर चोद रहा है ,



तो समझ लो चूत के चिथड़े उड़ेंगे ,और वो वही कर रहा था ,धकापेल चुदाई।





जोर जोर से उसके धक्कों की थाप मेरे भारी भारी चूतड़ों पर पड़ रही थी,



झुक झुक के मेरे मीठे मालपूआ ऐसे गालों को वो बेशरम कचाक कचाक काट रहा था।









घूस गइल , धंस गइल ,अंडस गइल हो ,



लेकिन उसे कोई फरक पड़ने वाला था क्या , इतनी जोर जोर से वो बेरहम पेल रहा था ठेल रहा था , मेरी कसी कच्ची चूत को फैलाते,चौड़ा करते ,.... इत्ते जोर से मेरी छरछरा रही थी , लेकिन अब चुदवाने के अलावा कोई रास्ता भी था क्या।



एक पल के लिए उसने चूंची पर से एक हाथ उठाया तो मैंने गहरी सांस ली लेकिन मुझे क्या पता की अब क्या होने वाला था ,



उसने उस हाथ से अपना मोटा बांस ऐसा लंड जो अभी भी ३/४ करीब ६ इंच से ज्यादा मेरी चूत में घुसा था पकड़ लिया और लगा गोल गोल घुमाने।



चूत की अंदरुनी दीवालों को रगड़ता अब वो सीधे मेरी जान लेने पे तुला था और उस सन्नाटे में कौन सुनता मेरी सिसकियों और चीखों को ,



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और जो सुन रहा था वो तो बस हचक हचक कर चोदने में जुटा था।
मैं सोच रही थी ,

चल गुड्डी आज तुझे असली गाँव की चुदाई का मजा मिल रहा है।



जोर से उसने निपल पिंच किया और गाली एक के बाद एक , गलती मेरी थी जब वो हाथ से पकड़ के गोल गोल अपना मोटा लंड चूत में घुमा रहा था , मेरी मुंह से दर्द के मारे निकल गया ,







उईइइइइइइइइइइ माँ

बस ,




“तेरी माँ की , न जाने कितने भंडुवों से चुदवा के उसने तेरा जैसे गरम माल अपने भोसड़े से निकाला , \उसका भोसड़ा मारूं ,मादरचोद "



और मेरी हिम्मत नहीं हुयी की कुछ बोलूं क्यों की उसी के साथ ,

उसने सुपाड़े तक लंड बाहर निकाल के एक धक्के में , … इत्ते जोर से मेरी बच्चेदानी पे लगा की मेरी चीख निकल गयी और उसके बाद फिर उसकी गालियां ,




"तेरे सारे मायकेवालों की चूत मारूं, गांड मारूं अब तक कहाँ छिपा के रखी थी ऐसी मस्त छिनार चूत, साल्ली।”

और फिर ,



धक्के पर धक्के और साथ में , गालियों की झड़ी,






" गदहे की जनी, जनम की चुदक्क्ड़ , तेरी सारी चुदवास मिट जायेगी , ऐसी चुदेगी हमारे गाँव में न गिनती भूल जायेगी ,कितने लंड घुसे ,कितने निकले ,दिन रात सड़का टपकता रहेगा , किसी को मना किया न तेरी माँ बहन सब चोद दूंगा .



" मादरचोद ,तेरी माँ का भोंसड़ा मारूं क्या मस्त माल पैदा किया है हमारे गाँव वालों के लिए , … "

"तूने खुद बोला है छिनार की जनी कम से कम २० से चुदेगी, इस गाँव में. अगर एक भी कम हुआ न तो मुट्ठी पेल दूंगा और जैसे कुतिया बनी है न वैसे ही कुतिया बना के गाँव के जितने,देसी … "






अब मुझे लगा की वो चंपा भाभी का पक्का देवर है यही वार्निंग ठीक मुझे चंपा भाभी ने दी थी ,






" अगर छिनरो ,गाँव का कौनो मरद बचा न त जाने से पहले तोहरी बुरिया में , ई मुट्ठी पूरा पेल दूंगी सोच लो ,लंड खाना है या मुट्ठी। "







आज उसकी गालियां बहुत प्यारी लग रही थीं ,


कई बार रिश्ते ऐसे हो जाते हैं की कोई बिना गाली के बात करे तो गाली लगता है।





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मेरी तो १०( चूत ) तक की गिनती नही हुई (१७ साल तक ) तो गांव छोड़ दिया , नसीब खुल गई पढ़ाई के चक्कर में usa पहुंच गए , मां कसम , देसी चूत और नखरेवाली के सामने गोरी चूत कुछ भी नही
 

krishna.ahd

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पूरा मदमस्त कर देती हैं आप।
आरे , अभी तक , रात के १२ से सुबह ७ तक तीन बार मुठ मार चुका हु
वर्णन ही कोमल जी ऐसे करती है की लगता है नजर के सामने चूत फाड़ी जा रही है वी
 
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