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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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krishna.ahd

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एकदम सही कहा आपने , घिर्रा घिर्रा के ,
सही में ? रोकी को मोका मिलेगा ?
Beastality और वोह भी आपके कलम से ?
इंतजार रहेगा कोमल जी
 
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Rajizexy

❤Lovely Doc
Supreme
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मेला



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चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये।




काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत,

हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।


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हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त,

मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो।


और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।



कजरी ने तान छेड़ी-

“अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…”

और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।





तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी-

“अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…”

वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।





पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा-

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“अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”



मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।





“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…”


सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।





“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…”


चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।


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“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…”

उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।

माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल

उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,



कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू

जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू





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चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।



खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.



मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं।


और लड़कों को और उकसा रही थीं





तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,

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" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "


और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा



"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "


गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,



" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "



और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी ,


रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।


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मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।


जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।



और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,



सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।



तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।

कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।

और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ





अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये

रतिया के आयजा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया




और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,

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यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।


और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ ,

फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....


लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,



पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया



हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया मां।

नागिन के जैसे लहरे कमरिया ,

छुरी जैसी है हमरी नजरिया ,

अरे , मार गवा बिच्छू बजरिया में।

अरे मच गवा सोर बजरिया मा

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया माँ।
अरे कइसन बचाय आपन इमनवा

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां


" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो "


ये सुनील था।



और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी

और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,





अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,

तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।



जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई



तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।





आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार ,

रमा ने चिढ़ाया मुझे।



“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…”

अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।

पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।

बबुरे का डंडा फटाफट होए ,

तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा

तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।

पांच के बादल पचास लग जाय ,

बिन रगड़े न छोड़ब चाहे पुलिस लग जाय ,

अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे





आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,

अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।

चन्दा ने फ़ुसफुसाया-

“अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”



“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।



“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।





वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े।


मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज…

भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।





कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”



“और क्या… चलो ना…”

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गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।





“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…”


खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।



मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये।

मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।

जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया।

मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था,

और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।


कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था

और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया

और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।

भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।



अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती,

उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।





पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी।

वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी,

इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।





तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था।


चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था।

मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।





चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे

और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।





बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा-


“क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”




बेशरमी से मैंने कहा-



“बहुत…”


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Very nice story.kamuk nd madak.
 
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krishna.ahd

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दूसरा पाठ - जुबना दिखाय के फँसाय लियो रे



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रोटियां बन गई थीं।


भाभी ने पूछा-

“सुन यार दूध रोटी चलेगी, अचार भी है या सब्जी भी बनाऊँ?”

“दूध रोटी दौड़ेगी, भाभी…”

उन्हें प्यार से दबोचते मैं बोलीं।

और दूध रोटी के साथ भाभी ने दूसरा पाठ शुरू किया, लड़कों को पटाने का-


“जुबना दिखा के ललचाना लुभाना एक बात है, लेकिन थोड़ा लाइन देना भी पड़ता है लौंडन को पटाने के लिए। अरे चुदवाने में खाली लौंडन को मजा थोड़े ही आता है, तो पटने पटाने में लौंडिया को भी हाथ बटाना चाहिए न?”

भाभी अब फुल फार्म पर आगई थीं और बात उनकी सोलहो आना सही भी थी। जोश में मैं भी उनकी हामी भरते बोल गई-


“भाभी आप एकदम सही कह रही हैं, जब जाता है अंदर तो बहुत दर्द होता है, जान निकल जाती है लेकिन जो मजा आता है मैं बता नहीं सकती…”

ऊप्स मैं क्या बोल गई, मैंने जीभ काटी।


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भाभी ने गनीमत था मुझे चिढ़ाना नहीं चालू किया, अभी वो एकदम समझाने पढ़ाने के मूड में थीं। बोलीं-


“इसलिए तो समझा रही हूँ, जब लौटोगी शहर तो कुछ करना पड़ेगा न? अरे जैसे पेट को दोनों टाइम भोजन चाहिए न, वैसे जो उसके बित्ते भर नीचे छेद है उसकी भूख मिटाने का भी तो इंतजाम होना चाहिए न? और ओकरे लिए ज्यादा नहीं लेकिन थोड़ा बहुत छिनारपना सीखना पड़ता है। तुम्हारे जैसे सीधी भोली लड़की के लिए तो बहुत जरूरी है वरना कोई लड़का साला फंसेगा ही नहीं…”

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मैं चुप रही। भाभी की बात में दम था।

और भाभी ने मेरे चिकने गोर गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए एक सवाल दाग दिया-

“जस तोहार रंग रूप हो, चिक्कन चिक्कन गाल हो, इतना मस्त जोबन हों, खाली अपने स्कूल में नहीं पूरे तोहरे शहर में अइसन सुन्दर लड़की शयद ही होई…”

भाभी की बात सही थी, लाज से मेरे गाल गुलाल हो गए, लेकिन अपनी तारीफ में मैं क्या कहती?


लेकिन अगली बात जो भाभी ने कही वो ज्यादा सही थी।

“लेकिन खाली खूबसूरत होने से लौंडे नहीं पटते। आई बात पक्की है कि दर्जनों तोहरे पीछे पड़े होंगे, लेकिन मजा कौन लूटी होंगी, जो तुमसे आधी भी अच्छी नहीं होंगी। क्यों? एह लिए की ऊ उनके छेड़ने का जवाब दी होंगी। लौंडन कुछ दिन तक तो लाइन मारते हैं फिर अगर कौनो जवाब नहीं मिला तो थक जाते हैं और फिर जउन जवान माल जवाब देती है, बस उसी के ऊपर ध्यान लगाते हैं, मिलने मिलाने का जुगाड़ करते हैं और बात आगे बढ़ी तो बस, किला फतह। बाकी तोहरे अस सुन्दर लड़की के साथ वो खाली आँख गरम कर लेंगे, कमेंट वमेंट मार लेंगे बस, उसके आगे नहीं बढ़ेंगे।"

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भाभी को तो मनोवैज्ञानिक होना चाहिए था, या जासूस।

उन्होंने जो कुछ कहा था सब एकदम सही था।




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मेरी क्लास में दो तिहाई से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया कब से उड़ने लगी थी। दो चार ही बची थी मेरी जैसी।


ये तो भला हो भाभी का जो मुझे अपने गाँव ले आईं और चन्दा का जिसने अजय और सुनील से…

और ये बात भी सही थी कामिनी भाभी की, कि सीने पे मेरे आये उभारों का पता मुझे बाद में चला, गली के बाहर खड़े लौंडो को पहले।

एक से एक भद्दे खुले कमेंट, कई बार बुरा भी लगता, लेकिन ज्यादातर अच्छा भी। कमेंट ज्यादातर मेरे ऊपर होते थे।


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लेकिन मेरे साथ जाने वाली मेरी एक सहेली ने अपने ताले में ताली पहले लगवा ली, उन्हीं में से एक से।

दो तीन हम लोगों के पीछे स्कूल तक जाते थे और शाम को वापस लौटते, और उनकी रनिंग कमेंट्री चालू रहती।

उन्हीं में से एक से, और आके खूब तेल मसाला लगाकर गाया भी।

सब लड़कियां खूब जल रही थी उससे, मैं भी। और उसके बाद उसने अबतक 6-7 से तो अपनी नैया चलवा ली। सबसे पापुलर लड़कियों में हो गई वो।

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और फिर शहर में पाबंदी भी कितनी, घर से स्कूल, स्कूल से घर। हाँ भाभी के यहाँ मैं रेगुलर जाती थी और सहेलियों के यहाँ जाने पे भी कोई रोक टोक नहीं थी, अक्सर उनके साथ पिक्चर विक्चर भी चली जाती थी, शापिंग को भी।

बात भाभी की सही थी लेकिन कैसे?

एक तो मेरे अंदर हिम्मत नहीं थी, डर भी लगता था और फिर कैसे क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आता था? और जब तक मैं कुछ करूं, मेरी कोई सहेली उस लड़के को ले उड़ती थी। कैसे? कुछ समझ में नहीं आता था।


और यही बात मेरे मुँह से निकल गई-

“कैसे भाभी?”

“अरे बस मेरी बात सुनो ध्यान से और बस वैसे ही करना, महीने दो महीने में जब लौटोगी न यहाँ से तो कम से कम 6-7 लौंडे तो तोहरे मुट्ठी में होंगे। गारंटी हमार है। अबहीं कितने लड़के तोहरे पीछे पड़े रहते हैं?” भाभी ने पूछा।

दो चार मिनट लगे होंगे, मुझे जोड़ने में।




मैं खाली परमानेंट वालों को जोड़ रही थी, चार पांच तो गली के मोड़ पे रहते हैं, जब भी मैं स्कूल जाती हूँ, लौटती हूँ, यहाँ तक की किसी सहेली के यहां जाती हूँ, और तीन चार स्कूल के बाहर मिलते हैं। उसके अलावा दो वहां रहते हैं जहाँ मैं म्यूजिक के ट्यूशन को जाती हूँ। उसमें से एक ने तो कई बार चिट्ठी भी पकड़ाने की कोशिश की।

एक दो और हैं, मेरी सहेली उनकी सिफारिश करती रहती है,

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“भाभी, 10-11 तो होंगे…”

मुश्कुरा के मैं बोली-

“कमेंट करते रहते हैं, चार पांच तो आगे पीछे, मेरे साथ-साथ आते जाते भी हैं, दो तीन ने चिट्ठी देने की भी कोशिश की…”

मैंने पूरा हाल बता दिया।

“और तुम क्या करती हो जब वो कामेंट करते हैं, या आगे पीछे चलते हैं तेरे?” मुश्कुराते हुए कामिनी भाभी ने इन्क्वायरी की।

“भाभी, टोटल इग्नोर। मैं ऐसे बिहेव करती हूँ जैसे वो वहां हो ही नहीं। उनके बारे में किसी से बात भी नहीं करती, अपनी सहेलियों से भी नहीं। आज पहली बार आपको बता रही हूँ…”

भाभी ने गुस्सा होने का नाटक किया और बोलीं-

“तुम तो एकदमै बुद्धू हो, तबै… पिटाई होनी चाहिए तुम्हारी…”
फिर उन्होंने क्या करना चाहिए ये समझाया-

“सबसे बड़ी गलती यही करती हो जो इग्नोर करती हो। अरे बहुत हो तो गुस्सा हो जाओ, हड़काओ उसे लेकिन इग्नोर कभी मत करो। आखिर बिचारा कितने दिन तक पीछे पड़ा रहेगा? उसे लगेगा की यहाँ कुछ नहीं हो रहा है तो किसी और चिड़िया को दाना डालने लगेगा। गुस्सा होने से उतना नुक्सान नहीं है, जितना इग्नोर करने से…”



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बात भाभी की एकदम सही थी।

मेरी एक सहेली थी साथ में थी, एक दिन हम लोग माल जा रहे थे और एक ने कमेंट किया-

“माल में माल, अरे आज तो मालामाल हो जायेगा…”

पीछे वो मेरे पड़ा था, कमेंट भी मेरे ऊपर था।

लेकिन मेरी सहेली ने एकदम गुस्से में सैंडल निकाल लिया। पंद्रह दिनों के अंदर मेरी वो सहेली, उस लड़के के नीचे लेट गई, और फिर तो बिना नागा, और उस लड़के की इतनी तारीफ की…

“अरे सारे कमेंट बुरे थोड़े ही लगते होंगे, कुछ-कुछ अच्छे भी लगते होंगे?”

मैंने सर हिला के माना, ज्यादातर अच्छे ही लगते हैं।

“बस, कुछ बोलने की जरूरत नहीं, अरे कम से कम रुक के अपनी चप्पल झुक के ठीक करो। उनको जोबन का नजारा मिल जाएगा। दुपट्टा ठीक करने के बहाने जुबना झलका दो, लेकिन मुड़ के एक बार देख तो लो और अपना दिखा दो उन बिचारों को, सबसे जरूरी है, हल्के से मुश्कुरा दो। हाँ, उनकी आँखों से आँख मिलाना जरूरी है। बस पहली बार में इतना काफी है।

और अगर कोई सहेली साथ में हो तो थोड़ा हिम्मत करके कमेंट का जवाब भी दे सकती, उन सबको नहीं, अपनी सहेली को लेकिन उन्हें सुना के। और वो समझ जाएंगे इशारा। लेकिन तीन स्टेज होती है इसमें?” उन्होंने ट्रिक का पिटारा खोला।

मैं कान फाड़े सुन रही थी। लेकिन तीन स्टेज वाली बात समझ में नहीं आई, और मैंने पूछ लिया।

कामिनी भाभी ने खुल के समझा भी दिया-



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“देखो पहली स्टेज है सेलेक्ट करो, दूसरी स्टेज है चेक वेक करो, काम लायक है की नहीं? और तीसरी स्टेज है, सटासट गपागप।
“देखो पहली स्टेज है सेलेक्ट करो, दूसरी स्टेज है चेक वेक करो, काम लायक है की नहीं? और तीसरी स्टेज है, सटासट गपागप।
Exactly , Teenage मे यही sahi rehta hai
 

krishna.ahd

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चुसम चुसववल




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अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।


और जब तक मैं कुछ समझूँ, भैय्या सरक के पलंग के सिरहाने, और ‘वो’ एकदम मेरे रसीले होंठों के पास।

“जोर से आऽऽ बोल जैसे एक बार में पूरा लड्डू घोंटती है न, खोल पूरा मुँह…”

भौजी बोलीं।

और मैंने भी पूरी ताकत से मुँह खोल दिया, एक बार में पूरा सुपाड़ा, और भैय्या ने जो मेरा सर पकड़ के धक्का मारा, तो आधा लण्ड मेरे मुँह में था।



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आलमोस्ट गले तक। चूसा मैंने पहले भी था, लेकिन… जो मजा अभी आ रहा था, इतना बड़ा, इतना मोटा, इतना कड़ा। पूरा मुँह मेरा भर गया था, गाल फूल गए थे, ऊपर तलुवे तक रगड़ खा रहा था और नीचे से मेरी जीभ चपड़-चपड़ चाट रही थी, होंठ लण्ड को दबोचे हल्के-हल्के दबा रहे थे।



कुछ देर पहले जैसे अंगूठे और तरजनी के बीच मैं उसे पकड़े थी, अब मुझे भी आदत हो गई थी, पकड़ने की रगड़ने की। और एक मजा लेने के बाद मैं क्यों मौका छोड़ती? एक बार फिर से लण्ड के बेस पे मेरी मुट्ठी ने उसे पकड़ लिया, हल्के-हल्के दबाते सहलाते आगे-पीछे, आगे-पीछे, चाट भी रही थी, चूस भी रही थी, मुठिया भी रही थी।

कितना मजा आ रहा था मुझे बता नहीं सकती।

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उन्हें कोई जल्दी नहीं थी न कोई धक्का, न पुश, बस अपने मुँह में उस कड़े मोटे खूंटे का मजा मैं ले रही थी और मेरे गरम-गरम, मखमली किशोर मुँह का मजा वो।

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काश मेरे मीनू को भी समझ में आ जाए , की उसके पिया को क्या अच्छा लगता है
 
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snidgha12

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कच्ची अमिया चीज ही ऐसी है ,


और बहुत बहुत धन्यवाद, मेरी कहानियां पढ़ने के लिए तारीफ़ करने के लिए और साथ देने के लिया ,


तो कैसे लग रही है भाभी के गाँव में

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komaalrani

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komaalrani

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भाभी के गांव में , टाइम मशीन से पहुंच गया हूं ऐसे ही लग रहा है
मेले में मस्ती , गन्ने के खेत में जोताई , सपने है या सच , पता नही
गाँव का मेला, गाँव की मस्ती, धान की रोपाई, अमराई और सावन के झूले, कजरी और रोपनी के गाने,

अहा ग्राम्य जीवन भी क्या है, ....

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komaalrani

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“देखो पहली स्टेज है सेलेक्ट करो, दूसरी स्टेज है चेक वेक करो, काम लायक है की नहीं? और तीसरी स्टेज है, सटासट गपागप।
Exactly , Teenage मे यही sahi rehta hai
ekdam,...
 
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