krishna.ahd
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(आप लोग क्या सोचते हैं कि सिर्फ हम लड़कियां ही माल हो सकती हैं? कतई नहीं। लड़कों को देखकर हम लड़कियां भी आपस में बोलती यही हैं, मस्त माल)लौंडे भरौटी के
(आप लोग क्या सोचते हैं कि सिर्फ हम लड़कियां ही माल हो सकती हैं? कतई नहीं। लड़कों को देखकर हम लड़कियां भी आपस में बोलती यही हैं, मस्त माल)
लौंडा भरोटी का था इसमें कोई शक सुबहा की गुंजाइश थी ही नहीं। कद काठी में अब तक गाँव के जिन लड़कों से मिली थी 21 ही रहा होगा, लेकिन सबसे बढ़कर ताकत गजब की लग रही थी उसमें। गुलबिया ने गन्ने के खेत में अभी जो कुछ बताया था, अब साफ लग रहा था की उसमें कुछ बढ़ा-चढ़ा कर एकदम नहीं था।
कामिनी भाभी ने कल रात जो गुर सिखाये थे उसका हल्का सा इश्तेमाल मैंने कर दिया। नजरों के तीर और जोबन का जादू, बस हल्के से तिरछी नजर से उसे देखा और जोबन के उभार की (टाप वैसे भी इतना टाइट था की साइड से पूरा उभार, उसका कड़ापन सब कुछ झलकता था) हल्की सी झलक दिखला दी।
बस वही तो गजब हो गया। वैसे भी मेरे जोबन का जादू गाँव के चाहे लौंडे हाँ या मर्द सबके सर पे चढ़ के बोलता था, लेकिन सिर्फ झलक दिखाने का ये असर… उसका खूंटा सीधे 90° डिग्री का हो गया। क्या लम्बा, क्या मोटा, देखकर मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी।
मैं सोच रही थी की गुलबिया ने नहीं देखा लेकिन तब तक एक लड़का, और वो पहले वाले से भी ज्यादा (अगर बसंती की बोली में तो कहूं तो जबरदस्त चोदू) लग रहा था। और उसने अपनी मर्जी साफ-साफ जाहिर कर दी, कपड़े के ऊपर से ही जोर-जोर से वो अपने खूंटे को मसल रहा था। मुझे तो लग रहा था की कहीं ये दोनों, यहीं निहुरा के…
गनीमत थी की गुलबिया ने मुड़ के देख लिया और उसको देखकर एक ने पूछ लिया- “ए भौजी, इतना मस्त सहरी माल ले के, तनी हम लोगन की भी…”
कुछ इशारे से, कुछ बोल के गुलबिया ने बोलके समझा दिया की मिलेगी लेकिन आज नहीं।
और मेरे दिल की धड़कनें कुछ नारमल हुईं, चलो आज का खतरा टला। लेकिन तब तक एक और… मैंने भी जब ये समझ लिया की आज मेरी बच गई। कामिनी भाभी ने जो अगवाड़ा पिछवाड़ा सील किया है और गुलबिया को चेताया है, तो अभी तो कुछ…
और मैंने खुल के अपने तीर चलाने शुरू किये, कभी झुक के जो लौंडे आगे थे उन्होंने सिर्फ उभारों की गहराई नहीं, बल्की कड़ी-कड़ी अपने कबूतरों की चोंचें भी दिखा देती। और पीछे वालों को पिछवाड़े की झलक मिल रही थी। कुछ देर में पांच छ लड़के, और सबके खूंटे खड़े, सब खुल के उसे मसल रहे थे, मुठिया रहे थे।
“अरे जहाँ गुड़ होगा चींटे आएंगे ही…” कह के गुलबिया ने जोर से मेरे गुलाबी गालों पे चिकोटी काटी।
एक बार उन लड़कों की ओर देखा, मुश्कुराई, और बोली- “सामने घर है मेरा, बस अभी गई अभी आई। तोहरे भैया के लिए खरमिटाव लाने जा रही हूँ…”
वो घर जिसपर खपड़ैल वाली छत थी और सामने एक कच्चा कुंआ था, अब हम लोगों की पगड़ंडी के ठीक बगल में आ गया था, मुश्किल से 200 कदम रहा होगा, और गुलबिया उसी घर की ओर मुड़ गई।
और वो लौंडे अब मेरे एकदम पास आ गए। साथ में एकदम खुल के, एक बोला- “अरे गाण्ड तो खूब मारने लायक है…”
“अरे चूची तो देख साली की, निहुरा के दोनों चूची पकड़ के हचक-हचक के मारेंगे इसकी…” दूसरे ने कमेंट मारा।
एक के बाद एक कमेंट, सबके औजार तने। कुछ देर के बाद- “बोल चुदवायेगी?” जो उन सबका लीडर लग रहा था उसने खुल के पूछ लिया।
लेकिन जवाब गुलबिया ने दिया जो बस लौटी ही थी- “अरे चुदवायेगी भी, गाण्ड भी मरवायेगी और लौड़ा भी चूसेगी तुम सबका, बस एक दो दिन में। ये केहू को मना नहीं करती, काहें हमारी प्यारी ननद रानी…”
जवाब मैंने गुलबिया को नहीं उन भरोटी के लौंडों को दिया, ज्जा ज्जा के इशारे से, थोड़ा पलकों को उठा गिरा के, जुबना की झलक दिखा के, और तेजी से गुलबिया के साथ गन्ने के खेत के बगल की पगड़ंडी पर मुड़ पड़ी।
वो सब पीछे रह गए, और कुछ देर चलने के बाद मुझे कुछ याद आया- “यही तो वो पगड़ंडी है, जिसके पास चन्दा ने मुझे छोड़ा था और मुड़ के भरोटी की ओर गई थी…” पगड़ंडी खत्म होते ही बस मुड़ते ही घर दिखाई दे रहा था।
गुलबिया को भी जल्दी थी, मुझे भी। गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुँचने की। दुपहरी ढल रही थी।
बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली, उसने जल्दी जल्दी बंसती को कुछ समझाया। मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकी मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार-बार चेताया था, कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री।
बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया, जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
bilkul