Update 82
वो भी सोचने लगा की आजकल के बच्चे कितने मज़े ले-ले कर ये सब करते हैं..उनके जमाने में तो पूरे कपड़े भी नही उतारते थे ढंग से...और सेक्स को सिर्फ़ बच्चे पैदा करने का साधन समझा जाता था..ऐसे एन्जॉय नहीं करते थे वो लोग
आजकल के लड़के - लड़कियाँ कितने मज़े से एक दूसरे को चूसते हैं...कोई शरम नही. कोई परहेज नही... बस दूसरे को जो खुशी मिले, उसमें अपनी खुशी ढूँढते हैं... काश वो भी आजकल की पीढ़ी का होता तो ये सब मज़े वो भी ले सकता...
और वैसे भी किसी कच्ची कली की चूत को चूसने का तो उसका बरसों पुराना सपना था..जब से उसने एक बी एफ मूवी में एक बुड्ढे को अपनी पोती की उम्र की लड़की की बुर चूसते देखा था, तभी से वो भी ये करना चाहता था.. उसकी तो जीभ लपलपाने लगी काव्या की चूसने के लिए... पर बेचारा सिवाए देखने के और कुछ कर ही नही सकता था.
काव्या तो पागल हो चुकी थी अंदर...वो उसके गुलाब जामुनों को ऐसे चूस रही थी जैसे सच मे उनमे से चाशनी निकल रही है...
उसकी बॉल्स को अपने होंठों मे भरकर वो ज़ोर से चुप्पा मारती ..अंदर की गोटियों को एक-एक करके अलग से चूस रही थी वो. जब वो उसे बाहर छोड़ती तो पक्क की जोरदार आवाज निकलती
और यही हरकत विक्की को उसके झड़ने के बिल्कुल करीब ले गयी...अब आप खुद ही सोचो, जब कोई ज़बरदस्ती गोडाउन में जाकर अंदर के माल को बाहर धकेलेगा तो बंदा कब तक अपने आप को रोकेगा, विक्की के गोडाउन यानी उसकी बॉल्स में पड़ा हुआ माल भी काव्या के मुँह की मार से ना बच सका और आग उगलता हुआ बाहर की तरफ बढ़ने लगा..
और फिर एक जोरदार झटके के साथ वो सारे बाँध तोड़ता हुआ काव्या के चेहरे पर बरस गया...
गरमा गरम सफेद माल की चादर से उसने काव्या के चेहरे को सजाना शुरू कर दिया...जितना हो सकता था काव्या ने उसको अपने मुँह के अंदर लिया..और बाकी से अपना फेशियल करा लिया...
उसका ऐसा सेक्सी चेहरा देखकर देवी लाल का बुरा हाल था... उम्र काफ़ी हो चुकी थी, इसलिए मुठ मारने के बाद अभी तक उसका लंड दोबारा जगा नही था.. पर उसे मसलकर वो जगाने की कोशिश ज़रूर कर रहा था...
काव्या तो धम्म से वापिस बेड पर जा गिरी...उसकी आँखों पर भी सफेद माल की चादर बिछी थी... जिसपर उँगलियाँ चला कर वो माल को अपने मुँह मे ले जा रही थी..
अब उसका नंबर था... और वो अपनी टांगे फेलाए नंगी पड़ी हुई विक्की के मुँह का अपनी चूत पर लगने का इंतजार कर रही थी..
और विक्की झुक भी गया था नीचे की तरफ... अपना निकलवाने के बाद वो थोड़ा ढीला भी हो गया था.. पर वो जानता था की काव्या को झाड़ना भी जरूरी है अगर वो उसके साथ बाद में दोबारा वैसे ही मज़े लेना चाहता है तो उसे ये करना ही पड़ेगा अभी ..
पर जैसे ही वो नीचे झुका, उसे खिड़की की तरफ से हल्की सी आवाज़ सुनाई दी..उसके कान चौकन्ने हो उठे.. विक्की ने गोर से देखा तो उसे झिर्री के पीछे कुछ हिलता हुआ सा दिखाई दिया, वो समझ गया की कोई वहाँ छुपकर उन्हे देख रहा है..पर कौन हो सकता है, उसका बाप तो घर पर ही नही था और बाहर का दरवाजा वो खुद बंद करके आया था... कहीं पड़ोस मे रहने वाले शर्मा अंकल तो छत्त टाप कर उसके घर नही आ गये..वो धीरे से उठा और बाहर की तरफ चल दिया..
काव्या ने पहले उसके हाथों को अपनी जाँघ पर महसूस किया और फिर उन्हे छोड़कर विक्की को बाहर जाते देखा तो वो सिसक उठी और बोली : "नोओओओओ विक्की, मुझे ऐसी हालत में छोड़कर मत जाओ....सक्क मीssssssssssssssssssssss ....करो ना प्लीज़....''
विक्की ने उसे धीरे से कहा : "बस बैबी, एक मिनट में आया..''
और वो दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया, और पीछे रह गयी अंधेरे कमरे मे नंगी पड़ी हुई काव्या.
विक्की भागकर पीछे की तरफ गया, तब तक देवीलाल भी समझ गया था की शायद विक्की को शक हो गया है, इसलिए वो बाहर आ रहा है, इसलिए वो भी वहाँ से भागकर बाहर की तरफ चल दिया, पर वहाँ जाने का और निकलने का सिर्फ़ एक ही रास्ता था, इसलिए विक्की और उसका बाप बीच गैलरी में एक दूसरे के सामने खड़े थे..
दोनो एक दूसरे को घूर कर देखते रहे
अंत मे विक्की बोला : "शरम तो नही आती आपको बापू, ऐसे मेरे कमरे में छुपकर देख रहे थे ''
देवीलाल : "इसमे शरम की क्या बात है, तेरी बीबी थोड़े ही है जो मैं उसको ऐसे देख नही सकता... ये तो काव्या है ना, उसी रश्मि की बेटी जिसको तूने फँसा रखा है...''
उसकी ये बात सुनकर विक्की के तो तोते उड़ गये, वो समझ नही पाया की उसके बाप को उसके और रश्मि के बारे में कैसे पता चला..
पर वो बेकार की बहस करके और शर्मिंदा नही होना चाहता था..इसलिए उसने मुँह झुका लिया..
और धीरे से बोला : "जो भी है बापू, ये आपको शोभा नही देता...''
अब देवी लाल भी अपने नाटक पर उतर आया और लगभग रोते हुए बोला : "बेटा, जब से तेरी माँ गयी है ना, मेरी तो हालत ही खराब है... तुझे मैं बता नही सकता की रातों को सोते हुए मेरी क्या हालत होती है... बड़ा मन करता है की किसी के साथ कुछ करू.. पर होता कुछ नहीं...''
विक्की समझ गया की उसके बुड्ढे बाप पर ठरक चढ़ी हुई है... और वो ये भी जानता था की 50-60 के बीच की ऐसी उम्र मे आकर अक्सर ऐसी ठरक उठती ही है..
अचानक देवीलाल उसके पैरों मे गिर गया : "बेटा, मेरी मदद कर दे... मुझे भी कुछ करने दे इसके साथ... मेरा कुछ भला हो जाएगा बेटा... कुछ करने दे मुझे भी बेटा...''
उसकी बात सुनकर विक्की का तो दिमाग़ ही ठनक गया... उसका ठरकी बाप काव्या के साथ मज़े लेने की बात कर रहा था उससे... ये जानते हुए भी की वो उसके बेटे के साथ आई है, वो उससे मज़े लेने की बात कर रहा था...
उसे तो बड़ा गुस्सा आया... पर अगले ही पल उसका दिल पसीज गया... अपने बाप की हालत देखकर, उसकी बाते सुनकर. क्योंकि वो भी अपनी जगह सही था... उसकी आँखों में आँसू थे..और वो गिड़गिड़ा रहा था थोड़े से मज़े लेने के लिए...
विक्की ने सोचा की अगर वो ऐसा करने दे तो उसका क्या बिगड़ेगा... वैसे भी अंदर काफ़ी अंधेरा था..खुद तो वो मजे ले ही चुका था, ऐसे में देवी लाल को अगर अपनी जगह भेज भी देता है तो काव्या पहचान नही पाएगी.. वो तो अंदर अपनी चूत के चटवाने का वेट कर रही है... अगर वो पकड़ा भी गया तो अंदर आकर वो बात संभाल लेगा...
विक्की : "अच्छा, ठीक है बापू पर मेरी एक बात गोर से सुन ले... मेरे काम मे टाँग अड़ाना बंद कर दे तू अब... मैं तुझे आज इसके साथ मज़े लेने की इजाज़त दे रहा हू... पर इसके साथ तू सिर्फ़ एक ही काम कर पाएगा...''
देवी लाल तो इतना सुनकर ही खुशी के मारे उठ खड़ा हुआ और बोला : "बोल बेटा, जो तू कहेगा मैं करने को तैयार हूँ ... तू बस बोल दे...''
अब वो बात करते हुए विक्की भी शरमा रहा था... भला अपने बाप को वो कैसे बोले ... पर फिर भी बोलना तो था ही... इसलिए वो एक ही झटके मे बोला : "बापू, तू सिर्फ़ उसे नीचे से चाटियो ..चूसियो ... और कुछ ना करियो छोरी के साथ... और करते हुए चुप रहियो ताकि वो ये समझे की ये सब मैं ही कर रहा हू... तू नही.. उसको शक हो जाए तो फ़ौरन बाहर निकल आइयो... समझा...''
देवीलाल समझ गया...अंधेरे का फायदा उठाकर विक्की अपनी जगह उसे अंदर भेजना चाहता था. ये भी सही था... और सबसे सही तो ये था की उसे उसकी चूत चाटने के लिए ही बोल रहा था वो...वैसे भी वो खुद भी यही चाहता था, उसका तो बरसों पुराना सपना पूरा होने जा रहा था, कुँवारी लड़की की चूत को चूसने का...
और वैसे भी थोड़ी देर पहले ही वो मूठ मारकर आया था, इसलिए चुदाई के लिए तो वो खुद भी तैयार नही था अभी...
बस उसकी चूत पर आई मलाई को चाट कर ही मज़े लेना चाहता था वो..
और फिर अच्छी तरह से समझा बुझा कर विक्की ने अपने बाप को कमरे में धकेल दिया. अंधेरे कमरे में वो सिर्फ़ एक अक्स जैसा ही दिख रहा था... खिड़की की हल्की रोशनी में देवीलाल को काव्या का नंगा जिस्म दिख ही गया..
जो अभी तक अपनी आँखों के उपर जमी हुई मलाई को खुरछ-2 कर खा रही थी..उसकी आँखे बंद थी.. पर दरवाजे के खुलने और बंद होने से वो समझ गयी की विक्की वापिस आ गया है.. और उसके हाथों की उंगलियाँ फिर से उसकी रसीली चूत के उपर रगड़ खाने लगी..
काव्या : "ओह विक्की, कितनी देर लगा दी..... अब जल्दी से आओ.... और चाटो मेरी चूत को.... चूसो इसको....''
देवीलाल के सामने नंगी पड़ी थी काव्या... अपनी आँखे बंद करे हुए...
वो अपनी घोड़े जैसी जीभ को लेकर चल दिया... उसकी चूत की तरफ..
और खिड़की के पीछे बैठा विक्की ये सब रिकॉर्ड कर रहा था अपने मोबाइल पर. उसके दिमाग में अब एक नया आईडिया आ चुका था.
देवीलाल की आँखे चौड़ी और मुँह खुला हुआ था...जो नज़ारा वो पिछले आधे घंटे से खिड़की से छुप कर देख रहा था वो अब बिल्कुल उसकी आँखो के सामने था.. इतना रसीला और जवानी से भरा बदन देखकर उसके मुँह से लार निकल कर सीधा काव्या की जाँघ पर गिर गयी.. और वो सुलग उठी..
''सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ..... उम्म्म्ममममममममम ..... ओह विक्कीईइ''
ऐसा लगा जैसे जल रही लकड़ी के उपर किसी ने पानी की बूँद गिरा दी हो...ऐसी चटक आवाज़ निकली थी काव्या के मुँह से...
देवीलाल ने अपनी जीभ उसकी जाँघ पर उसी जगह पर रखी और उसकी केले के तने जैसी जाँघ को चाटता हुआ उपर की तरफ आने लगा..
और उसके टच को काव्या महसूस करके ये भी नही जान पाई की ये विक्की नही बल्कि उसका बाप है..अब ठरक तो उसके उपर भी चढ़ी हुई थी,ऐसे में तो वो सिर्फ़ मज़े लेने के मूड में थी, और मज़े देने वाला इस वक़्त कौन है उसकी तहकीकात करने का वक़्त नही था उसके पास... वैसे भी विक्की ने ये सब इतनी सफाई से किया था की शक करने का कोई सवाल ही नही उठता था
काव्या अपने दोनो हाथ अपने सिर के उपर रखकर फड़फड़ाते हुए होंठों से गर्म साँसे छोड़ते हुए विक्की (देवीलाल) की जीभ का अपनी चूत पर लगने का वेट कर रही थी..
पर वो बड़े ही मज़े ले-लेकर सब काम कर रहा था..अब ऐसी जवानी रोज-2 तो मिलती नही है चाटने के लिए.. इसलिए वो हर इंच को चाट रहा था..अपने होंठों से उस जगह के माँस को दबोच कर ऐसे चूस रहा था जैसे उसमे से रस निकल कर उसके मुँह में जा रहा है... पर साथ ही साथ काव्या की चूत से निकल रही गंध भी उसे मदहोश कर रही थी..और उसे जल्द से जल्द अपनी तरफ आने को कह रही थी.. वो अपनी जीभ से उसकी जाँघ पर पैंटिंग बनाते हुए उसी तरफ चल दिया.. और जब वो काव्या के ज्वालामुखी के मुहाने पर पहुँचा तो उसके होंठ भी झुलस से गये अंदर से निकल रही आँच से..पर उसी के लिए तो वो कब से तड़प रहा था, इसलिए उसने एक गहरी साँस ली और कूद पड़ा उसकी चूत के अंदर.. और उसके बिलखते हुए चूत के होंठों को अपने मुँह में भरकर उसने जोरदार तरीके से उन्हे चूस डाला..
''आआआआईईईईईईई ...... उफफफफफफफफफफफफ्फ़ ..... जानवर ना बनो विक्की .....................धीरे-2 सक्क करो................... प्यार से............... उम्म्म्मममममममममममम''
अब उस पगली को भला ये कौन समझाए की ये विक्की नही बल्कि उसका बाप है जो अपने दिल की इच्छा पूरी होते देखकर कुछ ज़्यादा ही तेश में आकर उसकी चूत को चूस रहा था..वो भला क्या जाने की चूत कैसे चूसी जाती है... ऐसे खेल में प्यार दिखाकर भला क्या मिलेगा इसका तो उसे पता भी नही था... अब तक काव्या को पता नही चल पाया था की उसकी टाँगो के बीच विक्की नही बल्कि कोई और है.. और ये सब देखते हुए अपने मोबाइल में उनकी हरकतें रिकॉर्ड करता हुआ विक्की काफ़ी खुश था..
खिड़की मे बैठे हुए विक्की को काव्या का शरीर सॉफ दिख रहा था..वो अपनी आँखे बंद करके अपनी चूत चुस्वाई का मज़ा ले रही थी...उसके दोनो स्तन उपर की तरफ थे जिनपर लगी हुई घुंडियां पॉपकॉर्न के दाने की तरह फूल कर उभरी हुई थी..
जब लड़की मस्ती मे आकर अपनी चूत चुस्वा रही होती है तो उसके चेहरे पर आ रहे एक्शप्रेशन देखने का अपना ही मज़ा होता है..
और विक्की तो उन्हे देख भी रहा था और रिकॉर्ड भी कर रहा था.
और विक्की का बाप अपने काम में मस्त था..
ओस की बूँदों की तरह हल्की नमी उभर आती थी काव्या की चूत पर हर 5 सेकंड में.
जिसे देवीलाल बड़े ही प्यार से निहारता और फिर अपने होंठों के शिकंजे में फँसा कर उन्हे अपने मुँह मे खींच लेता..
देवी लाल ने जब उसे चूसा तो उसके होंठों के बीच उसकी क्लिट भी आ गयी, जिसे उसने जोर से भींच डाला, अपनी क्लिट पर हमला होता देखकर काव्या का शरीर अकड़ने लगा.. और उसने अपनी दोनो टांगे देवीलाल की गर्दन में फँसाई और उसे अपने शिकंजे मे दबोच लिया..
और ये सब करते हुए उसकी आँखे बुरी तरह से भींची हुई थी... शायद वो अंदर ही अंदर ये सोच रही थी की उसकी चूत चूसने वाला विक्की नही बल्कि उसका सौतेला बाप समीर है... जिसके बारे मे सोच-सोचकर आजकल उसकी हालत खराब है.. इसलिए वो अपनी आँखे खोलकर नही देख रही थी, जिसका फायदा देवीलाल और विक्की उठा रहे थे.
एक बार फिर काव्या की क्लिट को जब देवीलाल ने अपने शिकंजे मे लिया तो वो कसमसा उठी और उसने अपना पूरा ज़ोर लगा कर देवीलाल को घुमा दिया और उसकी गर्दन को बेड पर टीका दिया और खुद उपर की तरफ आ गयी..
अब विक्की का बाप बेड पर आधा लेटा हुआ था और उसका मुँह उपर की तरफ था..जिस पर काव्या ने अपनी चूत को ऐसे चिपका रखा था मानो उसके थ्रू उसकी साँसे चल रही हो..
वो अपनी चूत से देवीलाल के होंठों को बुरी तरह से मसल रही थी..अपनी चूत को उसके चेहरे पर नचा रही थी.. और अंदर से निकल रही शहद की बूँदों को धीरे-2 उसके मुँह मे पहुँचा रही थी.
देवीलाल ने उसकी जांघे पकड़ी और अपना मुँह उपर करते हुए उसकी बेरी के बेर तोड़ लिए... यानी एक जोरदार हमला करके सीधा उसकी क्लिट के दाने को मुँह मे दबोच लिया और उसे अंगूर के दाने की तरह चूसने लगा..
''ऊऊऊऊऊऊऊऊओह एसस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स... क्या बात है ................ उम्म्म्ममममममम ....ऐसे ही ........... येसस्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ...इसको सक्क करो............... ज़ोर ज़ोर से ............. ओफफफफफफफफफ्फ़ ...... ऐसे ही .................. उम्म्म्ममममममममममममम .....''
और अगले ही पल आह आह्ह्ह करती हुई वो उसके खुले हुए मुँह के अंदर झड़ने लगी..
देवीलाल ने एक भी शहद की बूँद बेकार नही जाने दी... सारी मिठास को उसने अपने अंदर समेट लिया और पी गया..
और बुरी तरह से झड़कर काव्या हांफती हुई फिर से बेड पर गिर गयी और अपनी चूत पर उंगलियाँ फिराकर वहाँ से निकल रही चिपचिपाहट का मज़ा लेने लगी..
अभी भी उसकी गुलाबी चूत से बूँद-2 करता हुआ गाड़ा रस बाहर निकल रहा था..
वो भी सोचने लगा की आजकल के बच्चे कितने मज़े ले-ले कर ये सब करते हैं..उनके जमाने में तो पूरे कपड़े भी नही उतारते थे ढंग से...और सेक्स को सिर्फ़ बच्चे पैदा करने का साधन समझा जाता था..ऐसे एन्जॉय नहीं करते थे वो लोग
आजकल के लड़के - लड़कियाँ कितने मज़े से एक दूसरे को चूसते हैं...कोई शरम नही. कोई परहेज नही... बस दूसरे को जो खुशी मिले, उसमें अपनी खुशी ढूँढते हैं... काश वो भी आजकल की पीढ़ी का होता तो ये सब मज़े वो भी ले सकता...
और वैसे भी किसी कच्ची कली की चूत को चूसने का तो उसका बरसों पुराना सपना था..जब से उसने एक बी एफ मूवी में एक बुड्ढे को अपनी पोती की उम्र की लड़की की बुर चूसते देखा था, तभी से वो भी ये करना चाहता था.. उसकी तो जीभ लपलपाने लगी काव्या की चूसने के लिए... पर बेचारा सिवाए देखने के और कुछ कर ही नही सकता था.
काव्या तो पागल हो चुकी थी अंदर...वो उसके गुलाब जामुनों को ऐसे चूस रही थी जैसे सच मे उनमे से चाशनी निकल रही है...
उसकी बॉल्स को अपने होंठों मे भरकर वो ज़ोर से चुप्पा मारती ..अंदर की गोटियों को एक-एक करके अलग से चूस रही थी वो. जब वो उसे बाहर छोड़ती तो पक्क की जोरदार आवाज निकलती
और यही हरकत विक्की को उसके झड़ने के बिल्कुल करीब ले गयी...अब आप खुद ही सोचो, जब कोई ज़बरदस्ती गोडाउन में जाकर अंदर के माल को बाहर धकेलेगा तो बंदा कब तक अपने आप को रोकेगा, विक्की के गोडाउन यानी उसकी बॉल्स में पड़ा हुआ माल भी काव्या के मुँह की मार से ना बच सका और आग उगलता हुआ बाहर की तरफ बढ़ने लगा..
और फिर एक जोरदार झटके के साथ वो सारे बाँध तोड़ता हुआ काव्या के चेहरे पर बरस गया...
गरमा गरम सफेद माल की चादर से उसने काव्या के चेहरे को सजाना शुरू कर दिया...जितना हो सकता था काव्या ने उसको अपने मुँह के अंदर लिया..और बाकी से अपना फेशियल करा लिया...
उसका ऐसा सेक्सी चेहरा देखकर देवी लाल का बुरा हाल था... उम्र काफ़ी हो चुकी थी, इसलिए मुठ मारने के बाद अभी तक उसका लंड दोबारा जगा नही था.. पर उसे मसलकर वो जगाने की कोशिश ज़रूर कर रहा था...
काव्या तो धम्म से वापिस बेड पर जा गिरी...उसकी आँखों पर भी सफेद माल की चादर बिछी थी... जिसपर उँगलियाँ चला कर वो माल को अपने मुँह मे ले जा रही थी..
अब उसका नंबर था... और वो अपनी टांगे फेलाए नंगी पड़ी हुई विक्की के मुँह का अपनी चूत पर लगने का इंतजार कर रही थी..
और विक्की झुक भी गया था नीचे की तरफ... अपना निकलवाने के बाद वो थोड़ा ढीला भी हो गया था.. पर वो जानता था की काव्या को झाड़ना भी जरूरी है अगर वो उसके साथ बाद में दोबारा वैसे ही मज़े लेना चाहता है तो उसे ये करना ही पड़ेगा अभी ..
पर जैसे ही वो नीचे झुका, उसे खिड़की की तरफ से हल्की सी आवाज़ सुनाई दी..उसके कान चौकन्ने हो उठे.. विक्की ने गोर से देखा तो उसे झिर्री के पीछे कुछ हिलता हुआ सा दिखाई दिया, वो समझ गया की कोई वहाँ छुपकर उन्हे देख रहा है..पर कौन हो सकता है, उसका बाप तो घर पर ही नही था और बाहर का दरवाजा वो खुद बंद करके आया था... कहीं पड़ोस मे रहने वाले शर्मा अंकल तो छत्त टाप कर उसके घर नही आ गये..वो धीरे से उठा और बाहर की तरफ चल दिया..
काव्या ने पहले उसके हाथों को अपनी जाँघ पर महसूस किया और फिर उन्हे छोड़कर विक्की को बाहर जाते देखा तो वो सिसक उठी और बोली : "नोओओओओ विक्की, मुझे ऐसी हालत में छोड़कर मत जाओ....सक्क मीssssssssssssssssssssss ....करो ना प्लीज़....''
विक्की ने उसे धीरे से कहा : "बस बैबी, एक मिनट में आया..''
और वो दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया, और पीछे रह गयी अंधेरे कमरे मे नंगी पड़ी हुई काव्या.
विक्की भागकर पीछे की तरफ गया, तब तक देवीलाल भी समझ गया था की शायद विक्की को शक हो गया है, इसलिए वो बाहर आ रहा है, इसलिए वो भी वहाँ से भागकर बाहर की तरफ चल दिया, पर वहाँ जाने का और निकलने का सिर्फ़ एक ही रास्ता था, इसलिए विक्की और उसका बाप बीच गैलरी में एक दूसरे के सामने खड़े थे..
दोनो एक दूसरे को घूर कर देखते रहे
अंत मे विक्की बोला : "शरम तो नही आती आपको बापू, ऐसे मेरे कमरे में छुपकर देख रहे थे ''
देवीलाल : "इसमे शरम की क्या बात है, तेरी बीबी थोड़े ही है जो मैं उसको ऐसे देख नही सकता... ये तो काव्या है ना, उसी रश्मि की बेटी जिसको तूने फँसा रखा है...''
उसकी ये बात सुनकर विक्की के तो तोते उड़ गये, वो समझ नही पाया की उसके बाप को उसके और रश्मि के बारे में कैसे पता चला..
पर वो बेकार की बहस करके और शर्मिंदा नही होना चाहता था..इसलिए उसने मुँह झुका लिया..
और धीरे से बोला : "जो भी है बापू, ये आपको शोभा नही देता...''
अब देवी लाल भी अपने नाटक पर उतर आया और लगभग रोते हुए बोला : "बेटा, जब से तेरी माँ गयी है ना, मेरी तो हालत ही खराब है... तुझे मैं बता नही सकता की रातों को सोते हुए मेरी क्या हालत होती है... बड़ा मन करता है की किसी के साथ कुछ करू.. पर होता कुछ नहीं...''
विक्की समझ गया की उसके बुड्ढे बाप पर ठरक चढ़ी हुई है... और वो ये भी जानता था की 50-60 के बीच की ऐसी उम्र मे आकर अक्सर ऐसी ठरक उठती ही है..
अचानक देवीलाल उसके पैरों मे गिर गया : "बेटा, मेरी मदद कर दे... मुझे भी कुछ करने दे इसके साथ... मेरा कुछ भला हो जाएगा बेटा... कुछ करने दे मुझे भी बेटा...''
उसकी बात सुनकर विक्की का तो दिमाग़ ही ठनक गया... उसका ठरकी बाप काव्या के साथ मज़े लेने की बात कर रहा था उससे... ये जानते हुए भी की वो उसके बेटे के साथ आई है, वो उससे मज़े लेने की बात कर रहा था...
उसे तो बड़ा गुस्सा आया... पर अगले ही पल उसका दिल पसीज गया... अपने बाप की हालत देखकर, उसकी बाते सुनकर. क्योंकि वो भी अपनी जगह सही था... उसकी आँखों में आँसू थे..और वो गिड़गिड़ा रहा था थोड़े से मज़े लेने के लिए...
विक्की ने सोचा की अगर वो ऐसा करने दे तो उसका क्या बिगड़ेगा... वैसे भी अंदर काफ़ी अंधेरा था..खुद तो वो मजे ले ही चुका था, ऐसे में देवी लाल को अगर अपनी जगह भेज भी देता है तो काव्या पहचान नही पाएगी.. वो तो अंदर अपनी चूत के चटवाने का वेट कर रही है... अगर वो पकड़ा भी गया तो अंदर आकर वो बात संभाल लेगा...
विक्की : "अच्छा, ठीक है बापू पर मेरी एक बात गोर से सुन ले... मेरे काम मे टाँग अड़ाना बंद कर दे तू अब... मैं तुझे आज इसके साथ मज़े लेने की इजाज़त दे रहा हू... पर इसके साथ तू सिर्फ़ एक ही काम कर पाएगा...''
देवी लाल तो इतना सुनकर ही खुशी के मारे उठ खड़ा हुआ और बोला : "बोल बेटा, जो तू कहेगा मैं करने को तैयार हूँ ... तू बस बोल दे...''
अब वो बात करते हुए विक्की भी शरमा रहा था... भला अपने बाप को वो कैसे बोले ... पर फिर भी बोलना तो था ही... इसलिए वो एक ही झटके मे बोला : "बापू, तू सिर्फ़ उसे नीचे से चाटियो ..चूसियो ... और कुछ ना करियो छोरी के साथ... और करते हुए चुप रहियो ताकि वो ये समझे की ये सब मैं ही कर रहा हू... तू नही.. उसको शक हो जाए तो फ़ौरन बाहर निकल आइयो... समझा...''
देवीलाल समझ गया...अंधेरे का फायदा उठाकर विक्की अपनी जगह उसे अंदर भेजना चाहता था. ये भी सही था... और सबसे सही तो ये था की उसे उसकी चूत चाटने के लिए ही बोल रहा था वो...वैसे भी वो खुद भी यही चाहता था, उसका तो बरसों पुराना सपना पूरा होने जा रहा था, कुँवारी लड़की की चूत को चूसने का...
और वैसे भी थोड़ी देर पहले ही वो मूठ मारकर आया था, इसलिए चुदाई के लिए तो वो खुद भी तैयार नही था अभी...
बस उसकी चूत पर आई मलाई को चाट कर ही मज़े लेना चाहता था वो..
और फिर अच्छी तरह से समझा बुझा कर विक्की ने अपने बाप को कमरे में धकेल दिया. अंधेरे कमरे में वो सिर्फ़ एक अक्स जैसा ही दिख रहा था... खिड़की की हल्की रोशनी में देवीलाल को काव्या का नंगा जिस्म दिख ही गया..
जो अभी तक अपनी आँखों के उपर जमी हुई मलाई को खुरछ-2 कर खा रही थी..उसकी आँखे बंद थी.. पर दरवाजे के खुलने और बंद होने से वो समझ गयी की विक्की वापिस आ गया है.. और उसके हाथों की उंगलियाँ फिर से उसकी रसीली चूत के उपर रगड़ खाने लगी..
काव्या : "ओह विक्की, कितनी देर लगा दी..... अब जल्दी से आओ.... और चाटो मेरी चूत को.... चूसो इसको....''
देवीलाल के सामने नंगी पड़ी थी काव्या... अपनी आँखे बंद करे हुए...
वो अपनी घोड़े जैसी जीभ को लेकर चल दिया... उसकी चूत की तरफ..
और खिड़की के पीछे बैठा विक्की ये सब रिकॉर्ड कर रहा था अपने मोबाइल पर. उसके दिमाग में अब एक नया आईडिया आ चुका था.
देवीलाल की आँखे चौड़ी और मुँह खुला हुआ था...जो नज़ारा वो पिछले आधे घंटे से खिड़की से छुप कर देख रहा था वो अब बिल्कुल उसकी आँखो के सामने था.. इतना रसीला और जवानी से भरा बदन देखकर उसके मुँह से लार निकल कर सीधा काव्या की जाँघ पर गिर गयी.. और वो सुलग उठी..
''सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ..... उम्म्म्ममममममममम ..... ओह विक्कीईइ''
ऐसा लगा जैसे जल रही लकड़ी के उपर किसी ने पानी की बूँद गिरा दी हो...ऐसी चटक आवाज़ निकली थी काव्या के मुँह से...
देवीलाल ने अपनी जीभ उसकी जाँघ पर उसी जगह पर रखी और उसकी केले के तने जैसी जाँघ को चाटता हुआ उपर की तरफ आने लगा..
और उसके टच को काव्या महसूस करके ये भी नही जान पाई की ये विक्की नही बल्कि उसका बाप है..अब ठरक तो उसके उपर भी चढ़ी हुई थी,ऐसे में तो वो सिर्फ़ मज़े लेने के मूड में थी, और मज़े देने वाला इस वक़्त कौन है उसकी तहकीकात करने का वक़्त नही था उसके पास... वैसे भी विक्की ने ये सब इतनी सफाई से किया था की शक करने का कोई सवाल ही नही उठता था
काव्या अपने दोनो हाथ अपने सिर के उपर रखकर फड़फड़ाते हुए होंठों से गर्म साँसे छोड़ते हुए विक्की (देवीलाल) की जीभ का अपनी चूत पर लगने का वेट कर रही थी..
पर वो बड़े ही मज़े ले-लेकर सब काम कर रहा था..अब ऐसी जवानी रोज-2 तो मिलती नही है चाटने के लिए.. इसलिए वो हर इंच को चाट रहा था..अपने होंठों से उस जगह के माँस को दबोच कर ऐसे चूस रहा था जैसे उसमे से रस निकल कर उसके मुँह में जा रहा है... पर साथ ही साथ काव्या की चूत से निकल रही गंध भी उसे मदहोश कर रही थी..और उसे जल्द से जल्द अपनी तरफ आने को कह रही थी.. वो अपनी जीभ से उसकी जाँघ पर पैंटिंग बनाते हुए उसी तरफ चल दिया.. और जब वो काव्या के ज्वालामुखी के मुहाने पर पहुँचा तो उसके होंठ भी झुलस से गये अंदर से निकल रही आँच से..पर उसी के लिए तो वो कब से तड़प रहा था, इसलिए उसने एक गहरी साँस ली और कूद पड़ा उसकी चूत के अंदर.. और उसके बिलखते हुए चूत के होंठों को अपने मुँह में भरकर उसने जोरदार तरीके से उन्हे चूस डाला..
''आआआआईईईईईईई ...... उफफफफफफफफफफफफ्फ़ ..... जानवर ना बनो विक्की .....................धीरे-2 सक्क करो................... प्यार से............... उम्म्म्मममममममममममम''
अब उस पगली को भला ये कौन समझाए की ये विक्की नही बल्कि उसका बाप है जो अपने दिल की इच्छा पूरी होते देखकर कुछ ज़्यादा ही तेश में आकर उसकी चूत को चूस रहा था..वो भला क्या जाने की चूत कैसे चूसी जाती है... ऐसे खेल में प्यार दिखाकर भला क्या मिलेगा इसका तो उसे पता भी नही था... अब तक काव्या को पता नही चल पाया था की उसकी टाँगो के बीच विक्की नही बल्कि कोई और है.. और ये सब देखते हुए अपने मोबाइल में उनकी हरकतें रिकॉर्ड करता हुआ विक्की काफ़ी खुश था..
खिड़की मे बैठे हुए विक्की को काव्या का शरीर सॉफ दिख रहा था..वो अपनी आँखे बंद करके अपनी चूत चुस्वाई का मज़ा ले रही थी...उसके दोनो स्तन उपर की तरफ थे जिनपर लगी हुई घुंडियां पॉपकॉर्न के दाने की तरह फूल कर उभरी हुई थी..
जब लड़की मस्ती मे आकर अपनी चूत चुस्वा रही होती है तो उसके चेहरे पर आ रहे एक्शप्रेशन देखने का अपना ही मज़ा होता है..
और विक्की तो उन्हे देख भी रहा था और रिकॉर्ड भी कर रहा था.
और विक्की का बाप अपने काम में मस्त था..
ओस की बूँदों की तरह हल्की नमी उभर आती थी काव्या की चूत पर हर 5 सेकंड में.
जिसे देवीलाल बड़े ही प्यार से निहारता और फिर अपने होंठों के शिकंजे में फँसा कर उन्हे अपने मुँह मे खींच लेता..
देवी लाल ने जब उसे चूसा तो उसके होंठों के बीच उसकी क्लिट भी आ गयी, जिसे उसने जोर से भींच डाला, अपनी क्लिट पर हमला होता देखकर काव्या का शरीर अकड़ने लगा.. और उसने अपनी दोनो टांगे देवीलाल की गर्दन में फँसाई और उसे अपने शिकंजे मे दबोच लिया..
और ये सब करते हुए उसकी आँखे बुरी तरह से भींची हुई थी... शायद वो अंदर ही अंदर ये सोच रही थी की उसकी चूत चूसने वाला विक्की नही बल्कि उसका सौतेला बाप समीर है... जिसके बारे मे सोच-सोचकर आजकल उसकी हालत खराब है.. इसलिए वो अपनी आँखे खोलकर नही देख रही थी, जिसका फायदा देवीलाल और विक्की उठा रहे थे.
एक बार फिर काव्या की क्लिट को जब देवीलाल ने अपने शिकंजे मे लिया तो वो कसमसा उठी और उसने अपना पूरा ज़ोर लगा कर देवीलाल को घुमा दिया और उसकी गर्दन को बेड पर टीका दिया और खुद उपर की तरफ आ गयी..
अब विक्की का बाप बेड पर आधा लेटा हुआ था और उसका मुँह उपर की तरफ था..जिस पर काव्या ने अपनी चूत को ऐसे चिपका रखा था मानो उसके थ्रू उसकी साँसे चल रही हो..
वो अपनी चूत से देवीलाल के होंठों को बुरी तरह से मसल रही थी..अपनी चूत को उसके चेहरे पर नचा रही थी.. और अंदर से निकल रही शहद की बूँदों को धीरे-2 उसके मुँह मे पहुँचा रही थी.
देवीलाल ने उसकी जांघे पकड़ी और अपना मुँह उपर करते हुए उसकी बेरी के बेर तोड़ लिए... यानी एक जोरदार हमला करके सीधा उसकी क्लिट के दाने को मुँह मे दबोच लिया और उसे अंगूर के दाने की तरह चूसने लगा..
''ऊऊऊऊऊऊऊऊओह एसस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स... क्या बात है ................ उम्म्म्ममममममम ....ऐसे ही ........... येसस्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स ...इसको सक्क करो............... ज़ोर ज़ोर से ............. ओफफफफफफफफफ्फ़ ...... ऐसे ही .................. उम्म्म्ममममममममममममम .....''
और अगले ही पल आह आह्ह्ह करती हुई वो उसके खुले हुए मुँह के अंदर झड़ने लगी..
देवीलाल ने एक भी शहद की बूँद बेकार नही जाने दी... सारी मिठास को उसने अपने अंदर समेट लिया और पी गया..
और बुरी तरह से झड़कर काव्या हांफती हुई फिर से बेड पर गिर गयी और अपनी चूत पर उंगलियाँ फिराकर वहाँ से निकल रही चिपचिपाहट का मज़ा लेने लगी..
अभी भी उसकी गुलाबी चूत से बूँद-2 करता हुआ गाड़ा रस बाहर निकल रहा था..