Update 57
विक्की के हाथ इस समय रश्मि की कमर पर थे...और दोनो की साँसे एक दूसरे से टकरा रही थी...विक्की ने हिम्मत दिखाते हुए अपने होंठ आगे की तरफ बड़ा दिए...और तभी रश्मि जैसे नींद से जागी...और एकदम से उसे धक्का देकर पीछे हो गयी...और अपनी सांसो पर काबू पाने की कोशिशे करने लगी.ये क्या हो गया था उसे अचानक ...वो अपने आप को कोसने लगी....पर तब तक विक्की समझ चुका था की वो अब उसके चुंगल मे फँस चुकी है...वो रश्मि के करीब आया..और उसके हाथ को पकड़कर बोला : "अगर आगे से मुझसे कोई बदतमीज़ी की तो मुझसे बुरा कोई नही होगा...''और इतना कहते-2 उसने फिर से एक बार उसके मोटे मुम्मे को अपने हाथों मे दबोच लिया....और इस बार रश्मि ने कोई भी विरोध नही किया...शायद वो अब इस हालत मे नही थी की कोई विरोध कर पाती.. वो अपमान का घूँट पीकर रह गयी और विक्की बड़ी बेदर्दी से उसके मुम्मे को मसल-2 कर अपनी ठरक मिटाने लगा..विक्की को तो ये सब सपने जैसा ही लग रहा था...उसने तो सोचा भी नही था की जिस आंटी के मोटे मुम्मे को देखते-2 वो बड़ा हुआ था और दिन रात जिनके बारे मे सोचकर उसने मूठ मारी थी,वो आज उसके हाथों मे है..वो अपने दोनो हाथों से उसके मुम्मों को मसलने लगा..रश्मि ने आस पास देखा..उसके दोस्त दूर खड़े हुए सब देख रहे थे..उन्हे शायद दिख भी रहा था की विक्की उसके साथ क्या कर रहा है...वो विक्की के सामने गिड़गिड़ाने सी लगी..:"विक्की, प्लीज़ मुझे छोड़ दो...ऐसा मत करो..देखो वो सब देख रहे हैं...''
विक्की ने अपने दोस्तों की तरफ देखा...इतनी दूर से कुछ साफ़ तो दिखना नही था, पर रश्मि का डरना भी लाजमी था...उसके डरने का फायदा उठाते हुए वो बोला : "तुम्हे फिर अभी मेरे साथ कही चलना होगा...''शाम के सात बज रहे थे..अंधेरा हो चुका था...इतनी रात को उसके साथ कही भी जाने के बारे मे वो सोच भी नही सकती थी..वो बोली : "नही, ऐसा नही हो सकता...तुम आख़िर चाहते क्या हो...''
विक्की : "देखो आंटी, अगर आप चाहती हो की आपकी बेटी की इज़्ज़त बाजार मे ना उछले तो मैं जैसा कहता हू, वैसा करती रहो..वरना तुम जानो और तुम्हारा काम, मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा..''
इतना कहते हुए उसने रश्मि को एक तरफ धक्का दिया और वापिस मुड़कर अपने दोस्तों की तरफ चल दिया..
रश्मि ने एकदम से उसे पीछे से पकड़ लिया और बोली : "ठीक है..ठीक है...जैसा तुम कहो ...बोलो ..कहाँ चलना है...''
रश्मि भी समझ चुकी थी की विक्की उसके साथ मज़े लेना चाहता है...अपनी बेटी के लिए वो ये कुर्बानी देने के लिए भी तैयार हो गयी.
विक्की की तो बाँछे खिल उठी...उसने तो सोचा भी नही था की जो वो चाहेगा वो इतनी आसानी से हो जाएगा..पर अब प्रॉब्लम ये थी की वो उसे लेकर जाए कहाँ, ऐसी कोई जुगाड़ की जगह तो थी नही उसके पास...काफ़ी सोचने के बाद उसके दिमाग़ मे एक जगह आई...रात के समय वहाँ जाना सही नही था पर फिर भी उसने रिस्क लेते हुए वहीँ जाने का निष्चय किया और भागकर अपनी बाइक ले आया...और रश्मि को बैठने के लिए कहा..वो भी बिना कुछ बोले उसके पीछे बैठ गयी और वो दोनो चल दिए..
उसके दोस्त बेचारे देखते और सोचते ही रह गये की आख़िर विक्की के साथ रश्मि इस वक़्त कहाँ गयी है.
श्मि का दिल ज़ोर से धड़क रहा था, वैसे आज उसको टाइम की चिंता तो नही थी, क्योंकि समीर और काव्या तो शॉपिंग के लिए गये हुए थे...वो रात को दस बजे से पहले आने वाले नही थे...और वैसे भी समीर को पता था की वो कहाँ गयी है, इसलिए उसकी तरफ से शायद ही कोई फोन आए..
पर वो डर इसलिए रही थी की कही कोई जान पहचान वाला उसको विक्की के साथ जाते हुए ना देख ले...इतने सालों मे उसने सिर्फ़ इज़्ज़त ही तो कमाई थी, उसको ऐसे बदनाम नही करना चाहती थी वो..
अचानक तेज चलती हुई बाइक मे विक्की ने जोरदार ब्रेक मारा..रश्मि अपने ही ख़यालो मे खोई हुई थी..इसलिए संभाल नही पाई और उसकी छाती विक्की की पीठ मे बुरी तरह से घुस कर पिस सी गयी..रश्मि ने गिरने से बचने के लिए विक्की के कंधे को ज़ोर से पकड़ लिया और ऐसा करते हुए उसकी दूसरी चुचि भी उसकी पीठ से रग़ड़ खा गयी..विक्की के तो मज़े हो गये...ऐसा गुदाज एहसास उसने आज तक महसूस नही किया था, उसकी जितनी भी गर्लफ्रेंड्स थी वो स्कूल मे पड़ने वाली ,छोटे-2 मुम्मों वाली अबोध लड़कियाँ थी, आज पहली बार उसने पके हुए फलों को अपनी पीठ पर इस तरह से महसूस किया था.
रश्मि भी एकदम से हड़बड़ा कर बोली : "ये कैसे चला रहे हो...ध्यान से चलाओ..''
विक्की : "क्या करू आंटी ....वो बीच मे कुत्ता आ गया था..''
पर रश्मि को तो कोई कुत्ता नही दिखा...वो समझ गयी की ये उसका तरीका था, उसको अपने शरीर से चिपकाने का...गुस्सा तो उसे बहुत आया पर वो और कुछ ना बोल पाई...
और साथ ही साथ उसने ये भी नोट किया की विक्की की पीठ से रगड़ खाने के बाद उसके निप्पल आश्चर्यजनक रूप से कड़े हो चुके हैं, और ये तभी होता था जब वो समीर के साथ सेक्स करती थी या फिर कभी कभार सेक्स के बारे मे सोचकर उत्तेजित हो जाती थी...पर वो तो इस वक़्त सेक्स के बारे मे सोच भी नही रही थी..फिर ऐसा क्यो हुआ, शायद विक्की की पीठ से टकरा कर उसके शरीर ने अपने आप रिस्पोंड करना शुरू कर दिया था..उसे अपने आप पर बहुत शर्म महसूस हुई...वो अपनी आँखे बंद करके किसी और चीज़ के बारे मे सोचने लगी ताकि उसका ध्यान ऐसी चीज़ो से दूर हो जाए...पर अब विक्की हर थोड़ी देर बाद बाइक को झटके दे-देकर चला रहा था..जिसकी वजह से उसका ध्यान कही और जा ही नही पा रहा था..
उसके ब्लाउस मे से उसके रसीले निप्पल अलग ही चमकने लगे थे..उसने अपनी साड़ी का आँचल आगे करके उन्हे ढक लिया..पर वो तो साड़ी के आँचल से भी नही छुप रहे थे.
खैर,अपने मन को संभालते हुए वो विक्की के पीछे बैठी रही..उसके साथ ज़्यादा चिपकने की वजह से उसे विक्की के शरीर से एक अलग ही तरह की खुश्बू महसूस हुई...शायद उसने कोई बढ़िया वाला डीयो लगा रखा था, जैसा की आजकल के लड़के करते हैं..पर जो भी था, उसकी महक जादुई थी...रश्मि ना चाहते हुए भी उसकी गर्दन के पास अपना चेहरा लेजाकर उसे सूंघ रही थी..और मदहोश सी हो रही थी.
विक्की को भी रश्मि की गर्म साँसे अपनी गर्दन पर महसूस हुई ,उसका तो लंड खड़ा हो गया इतनी गर्म औरत की ऐसी गर्म साँसों को अपने उपर महसूस करके.
थोड़ी देर मे ही विक्की ने बाइक रोक दी...वो एक पुराना किला था..जहाँ अक्सर विक्की अपनी गर्लफ्रेंडस को लेकर आता था और चूमा-चाटी करता था...एक बार तो उसने एक लड़की की चुदाई भी की थी वहाँ..पर वो हमेशा दिन के टाइम ही आया था वहाँ, और दिन मे भी वहां वीरानीयत ही छाई रहती थी...फिर ये तो रात का वक़्त था..ऐसे मे अंदर जाते हुए उसे भी डर लग रहा था, पर अंदर के चप्पे-2 को वो अच्छी तरह से जानता था, इसलिए हिम्मत करके अंदर चल दिया.
रश्मि : "ये तुम मुझे कहा ले आए विक्की....ऐसे वीराने मे आख़िर तुम ...''
विक्की एकदम से गुस्से मे बोला : "देखो आंटी...मेरे साथ ज़्यादा मग़जमारी तो करो मत...अपनी बेटी की खातिर ही आई हो तुम यहाँ...मैने कोई ज़बरदस्ती नही की है...अगर जाना चाहती हो तो चली जाओ..और कल के बाद तुम्हारी बेटी के साथ जो होगा, उसकी ज़िम्मेदार तुम खुद रहोगी..''
रश्मि डर गयी...उसे पता था की ऐसे लड़के अपनी औकात पर आए तो उसकी बेटी की जिंदगी बर्बाद हो सकती है, उसे ही दिमाग़ से काम लेना होगा और सब कुछ प्यार से निपटाना होगा..वो चुपचाप विक्की के पीछे चल दी.
अंदर चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा था, किले के अंदर एक छोटी सी लेक भी थी, जहाँ फॅमिली वाले लोग पिकनिक के लिए आते थे...और कोने-2 पर बने हुए पुराने खंडरों के अंदर प्रेमी-प्रेमिकाए अपनी रासलीला चलाते थे...
पर आज उन खंडहरों के अंदर जाने का कोई मतलब नही था, क्योंकि वहाँ काफ़ी अंधेरा था...
वो रश्मि को लेकर लेक के पास पहुँच गया और एक पेड़ के नीच जाकर खड़ा हो गया..उपर से आ रही आधे चाँद की रोशनी काफ़ी थी एक दूसरे का चेहरा देखने के लिए.
विक्की : "चल यहाँ आ...मेरे पास...''
वो ऐसी बदतमीज़ी से बोला की रश्मि को लगा की वो उसकी लाई हुई कोई बाजारू औरत है..
वो धीरे-2 चलकर उसके पास पहुँची..और बिना किसी भूमिका के विक्की ने उसके चेहरे को पकड़ा और चूमने लगा...रश्मि तो एकदम से हुए हमले से घबरा गयी...उसे पता तो था की विक्की कुछ ऐसे ही करेगा...पर ऐसे एकदम से करेगा, उसने सोचा नही था..
उसने अपने होंठ बंद कर लिए आँखे बंद कर ली..और बुरा सा मुँह बनाते हुए विक्की को धक्का देकर अपने उपर से हटाया..
रश्मि : "ये...ये क्या कर रहे हो तुम....''
विक्की : "ओ आंटी...तुझे कोई स्टोरी सुनाने के लिए नही लाया हू मैं यहाँ...अपनी बेटी को बचाना चाहती है तो मेरे साथ को-ऑपरेट करना होगा...बस थोड़ा सा मज़ा ही तो ले रहा हू..इसमे भी तेरे को मिर्ची लग रही है..''
रश्मि समझ गयी की वो अब खुलकर उसे ब्लॅकमेल कर रहा है..उसकी बेटी की खातिर...
रश्मि धीरे से बोली : "पर ऐसे थोड़े ही करता है कोई...एकदम से जानवर की तरह तुम तो मुझपर झपट ही पड़े...''
विक्की : "ओहो आंटी...बड़ी टीचर जैसी बन रही हो तुम तो...ऐसा ही है तो मुझे कुछ सीखा ही दो ना...कैसे करते हैं...आज तक आप जैसी मस्त माल मिली ही नही, इसलिए तो मन बेकाबू सा होकर टूट पड़ा तुमपर...''
रश्मि को उसकी दिल फेंक आशिक़ वाली अदा पर हँसी सी आ गयी...उसे मुस्कुराता हुआ देखकर विक्की भी समझ गया की वो बोतल मे उतर गयी है...और ये भी समझ गया की उसे प्यार से हेंडल करना होगा....वरना नुकसान उसी का होगा..
उसने धीरे से अपने दोनो हाथों को उसकी नंगी बाजुओं पर फेरना शुरू कर दिया...वैसे तो रश्मि इसके लिए भी तयार नही थी पर ना जाने कैसा जादू था विक्की के हाथों मे, उसके बदन के रोँये खड़े होने लगे...चिकनी बाजुओं मे हल्के-2 दाने उभर आए और खुरदुरापन आ गया उनमे..उसके सुस्ता रहे निप्पल फिर से खड़े होकर हाहाकार मचाने लगे...उसकी साँसे फिर से तेज हो उठी ...और आँखे अपने आप बंद हो गयी...
और ठीक उसी पल रश्मि का आँचल फिसल कर उसके सीने से नीचे गिर गया..और क्रीम कलर के ब्लाउस मे फंसी उसकी मोटी-2 चुचियाँ विक्की की आँखो के सामने उजागर हो गयी...उसकी क्लीवेज़ देखकर तो विक्की के मुँह मे पानी आ गया..इतने मोटे और सफेद रंग के खरबूजे उसने आज तक सिर्फ़ फिल्मी हेरोइनों के ही देखे थे...या ब्लू फिल्म मे..
और उसके मोटे-2 दाने अलग ही चमक रहे थे...ऐसा लग रहा था उसने अपने ब्लाउस मे जामुन छुपा रखे है,इतने मोटे निप्पल है इसके...वो एक हाथ से अपने लंड को मसलने लगा...और साथ ही अपने सूखे होंठों पर जीभ फेर कर उन्हे चूसने के सपने भी देखने लगा.
उसकी तेज साँसों की वजह से उठती -बैठती छातियाँ कयामत लग रही थी..और नीचे उसका हल्का सा निकला हुआ पेट और गहरी नाभि देखकर तो विक्की की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी...और उसने अपने काँपते हुए हाथ उसकी नाभि पर रख दिए..
रश्मि ने आख़िरी प्रयास किया : "नही विक्की....मत करो...ये सब...मैं एक शादीशुदा औरत हू...तुम्हारी और मेरी उम्र मे भी काफ़ी फ़र्क है....ये सब तुम्हे शोभा नही देता...''
पर विक्की तो एक नंबर का हरामी था, उसके उपर रश्मि की याचना का कोई असर नही हुआ...और उसके हाथ सरकते हुए उसके उरोजों पर आ गये..और उसने उसके दोनो मुम्मे हॉर्न की तरह बजाने शुरू कर दिए...
दर्द और मीठे एहसास से तड़प उठी रश्मि....और उसके मुँह से एक जोरदार चीख निकल गयी..जो वहां के सन्नाटे को चीरती हुई पूरे किले मे गूँज गयी..
''अहहssssssssssssssssssssssssss .......... नहियीईईईईईईईईईईईईईई ......मत करो.................दर्द होता है.......अहह ssssssssssssssssssssssssssssss ....''
पर विक्की को तो जैसे खेलने के लिए दो छोटी-2 फूटबाल मिल गयी थी...वो उन्हे बुरी तरह दबा रहा था...अपने मुँह को उसके क्लीवेज़ पर रगड़कर वहाँ के मुलायमपन का मज़ा उठा रहा था...अपने अंगूठों से उसके उभरे हुए निप्पल्स को कुरेद रहा था..
रश्मि ने बड़ी मुश्किल से अपने आप पर काबू रखा हुआ था...वो अभी तक उसका विरोध ही कर रही थी...पर अंदर ही अंदर वो सुलग उठी थी...अगर इस वक़्त समीर होता तो वो उसे कच्चा ही खा जाती..ऐसी कामाग्नी तो उसमे आज तक नही जली थी..उत्तेजना के मारे उसके मुँह से लार निकल कर बाहर गिरने लगी..उसका शरीर काँपने लगा...उसकी चूत से गर्म पानी निकलकर , उसकी पेंटी को भिगोता हुआ, उसकी जांघों से चिपककर नीचे रिसने लगा..उसकी चूत से निकल रही गर्म हवा के भभके उसकी टाँगो को झुलसा रहे थे...पर वो ये सब विक्की के सामने उजागर करके अपनी कमज़ोरी उसे नही दिखाना चाहती थी...
वो तो चाहती थी की विक्की बस ये ही समझे की उसके साथ जो भी हो रहा है, वो ज़बरदस्ती है...वो नही चाहती ऐसा कुछ भी...वरना उसमे और एक बाजारू रंडी मे फ़र्क ही क्या रह जाएगा.
पर विक्की भी पूरा उस्ताद था...वो जान बूझकर उसे उत्साहित करते हुए उसके ऐसे-2 वीक पायंट्स दबा रहा था की जिनसे बच पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन था, उसे पता था की लड़कियों को कैसे उत्तेजित किया जाता है...हांलाकि किसी औरत के साथ ये उसका पहला मौका था, पर फंडे तो उनपर भी वही लागू होंगे ना जो जवान लड़कियों पर होते हैं..
वो अपनी जीभ निकाल कर उसकी गर्दन को चाटने लगा...एक हाथ से उसने उसके निप्पल दबाने नही छोड़े..दूसरे से वो उसकी मोटी और फेली हुई गांड को मसलने लगा...और उसे उठा -2 कर अपनी तरफ दबाने लगा, ऐसा करते हुए रश्मि की भभकती हुई चूत उसके खड़े हुए लंड से टकरा रही थी..जिसकी वजह से रश्मि का बचा खुचा विरोध भी जाता रहा...
और अंत मे जब विक्की के होंठ उसकी गर्दन को किसी ड्रेकूला की तरहा चूसते हुए उसके होंठों तक पहुँचे तो रश्मि से सब्र नही हुआ...उत्तेजना की वजह से नर्म पड़ चुके होंठों से उसने विक्की के होंठों को दबोचा और अपने मुँह का मीठा रस उसके अंदर पहुँचाने लगी..
औरत जितनी ज़्यादा उत्तेजित हो जाती है , उसके होंठ उतने ही नर्म और मीठे हो जाते हैं, रश्मि के साथ भी यही हुआ था...विक्की ने तो आज तक ऐसा रसीला माल नही चूसा था...वो दोनो हाथों से उसके मुम्मे दबाता हुआ, उसके होंठों को चूसने लगा...
और तभी पीछे से कुछ आवाज़ आई...और दोनो ने पलट कर उस तरफ देखा... वहाँ 3 लोग खड़े थे...फटे हुए से कपड़े...दाढ़ी बड़ी हुई सी.........दो के हाथ मे सिगरेट थी और एक के हाथ मे शराब की बॉटल..वो लोग नशेड़ी थे..जो अक्सर ऐसी जगहों पर पाए जाते हैं..
विक्की भी उन्हें देखकर डर सा गया...पर फिर भी थोड़ी हिम्मत करते हुए उसने गरजते हुए कहा : "क्या देख रहे हो भोंसड़ीवालों ....चलो भागो यहा से...साले नशेड़ी...''
पर उसकी बात ना सुनते हुए उसने विक्की की आशा के विपरीत अपनी जेब मे हाथ डाला और एक लंबा सा रामपुरी निकाल लिया..और बटन दबाते ही वो खुल गया और उनकी आँखो के सामने लहराने लगा.
अब तो विक्की की सचमुच मे फट गयी...दूसरी तरफ रश्मि अंदर से डर भी रही थी और शुक्र भी माना रही थी की वो लोग आख़िरी वक़्त पर आ गये,शायद वो बच गयी..पर उसका ये ख्याल कितना ग़लत था, वो भी नही जानती थी..
जिस आदमी ने रामपुरी पकड़ा हुआ था वो बोला : "चल बे चिकने...निकल ले यहा से...और इस माल को यही छोड़ दे...चल भाग...''
विक्की की तो गिघी बंध गयी...वो गिड़गिडाया : "नही भाई साहब..ये कोई धंधे वाली नही है...मैं इन्हे जानता हू...ये मेरी पहचान वाली है...हम तो बस यहाँ ऐसे ही...''
उसकी बात पूरी होने से पहले ही उस आदमी ने चाकू लहराया और विक्की के कंधे से उसकी नोक छूती हुई निकल गयी....उसकी टी शर्ट मे छोटा सा छेद हो गया और वहाँ से खून की बूंदे उभर आई..
वो आदमी गरजा : "बोला ना साले , निकल ले यहाँ से...भेन चोद , हमे चूतिया समझता है....इतनी रात को तेरी कौन सी रिश्तेदार आएगी तेरे साथ इस किले मे...चल भाग अब..नही तो तेरी गर्दन काटकर यही फेंक दूँगा..किसी को पता भी नही चलेगा...''
विक्की का दर्द के मारे बुरा हाल था...वो अपने कंधे की चोट को पकड़कर बाहर की तरफ निकल गया..
रश्मि उसे बुलाती रह गयी...पर उसके बस का कुछ होता तो वो वहाँ रुकता ना...वो वहाँ से दुम दबा कर भाग निकला..