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"राहुल तू जा, यह बैग गाड़ी में रख और मैं आती हूँ.... बस एक बैंगन रह गये हैं ... इधर नही मिले... किसी दूसरी दुकान पर देखती हूँ" सलोनी राहुल के हाथों में बैग थमाती बोलती है |
"नही मम्मी, आप बैंगन खरीद लीजिए, हम इकट्ठे चलते हैं" राहुल अपनी मम्मी को उन भूखे भेड़ियों के बीच छोड़ कर नही जाना चाहता था |
"अरे तो क्या इतना भार उठाए मेरे साथ घूमता रहेगा ... तू जा इसे गाड़ी में रख .... मैं अभी आती हूँ"
"रहने दीजिए मम्मी, छोड़िए बैंगन लेने को.... मुझे वैसे भी बैंगन की सब्ज़ी पसंद नही है" राहुल अपनी मम्मी को वहाँ हरगिज़ भी अकेला नही छोड़ना चाहता था |
"मगर मुझे बहुत पसंद है ...... और अब कोई स्वाल ज्वाब नही ........ अभी समान गाड़ी की डिक्की में रखो मैं आती हूँ" सलोनी राहुल को हुक्म देती है | राहुल के पास अब अपनी मम्मी की बात मानने के सिवा कोई और चारा नही था | वो तेज़ तेज़ कदमो से गाड़ी की और बढ़ता है जो कुछ दूरी पर खड़ी थी | राहुल गाड़ी की और जाता पीछे मुड़ मुड़ कर सलोनी की और देख रहा था | सलोनी कुछ देर एक जगह खड़ी दुकानों का जायजा लेती है और फिर उसे एक कोने में एक दुकान दिखाई देती है जो और दुकानों से थोड़ा सा हटकर थी | सलोनी उस दुकान की और बढ़ जाती है |
राहुल जब पीछे मुड़कर अपनी मम्मी को एक तरफ़ बढ़ते हुए देखता है तो वो चलना छोड़ भागना शुरू कर देता है | सब्जियों के बैग बहुत पतली प्लास्टिक के बने हुए थे जो उसके भागने और ज़्यादा वजन के कारण कभी भी फट सकते थे और सब्जियाँ बिखर सकती थी मगर इस बार राहुल की किस्मत ने उसे धोखा नही दिया और वो गाड़ी तक बिना कुछ गिराए पहुँच गया | राहुल कार की डिक्की खोल कर उसमें तेज़ी से सब्जियाँ डालने लगता है |
उधर सलोनी उस दुकान पर जाती है जो थोड़ा सा हट कर थी और उस पर कोई और ग्राहक भी नही था | दुकानदार कोई 40-45 साल का हट्टा कट्टा मर्द था | सलोनी को अपनी दुकान की और बढ़ता देख वो उठ कर खड़ा हो जाता है और सलोनी को आवाज़ देने लगता है |
"आइए बहनजी .... आइए.... बिल्कुल ताज़ी सब्जियाँ हैं.... देखिए पूरी मंडी में से आपको ऐसी सब्जियाँ नही मिलेंगी" | सलोनी जैसे जैसे सब्ज़ी वाले के पास पहुँच रही थी उसकी आँखो की चमक उतनी ही बढ़ती जा रही थी | जैसे जैसे सलोनी की मादक काया और उसके कामुक उभार और कटाव सब्ज़ीवाले की आँखो के पास आ रहे थे उसके चेहर की मुस्कान, आँखो की लाली बढ़ती जा रही थी |
"नही मम्मी, आप बैंगन खरीद लीजिए, हम इकट्ठे चलते हैं" राहुल अपनी मम्मी को उन भूखे भेड़ियों के बीच छोड़ कर नही जाना चाहता था |
"अरे तो क्या इतना भार उठाए मेरे साथ घूमता रहेगा ... तू जा इसे गाड़ी में रख .... मैं अभी आती हूँ"
"रहने दीजिए मम्मी, छोड़िए बैंगन लेने को.... मुझे वैसे भी बैंगन की सब्ज़ी पसंद नही है" राहुल अपनी मम्मी को वहाँ हरगिज़ भी अकेला नही छोड़ना चाहता था |
"मगर मुझे बहुत पसंद है ...... और अब कोई स्वाल ज्वाब नही ........ अभी समान गाड़ी की डिक्की में रखो मैं आती हूँ" सलोनी राहुल को हुक्म देती है | राहुल के पास अब अपनी मम्मी की बात मानने के सिवा कोई और चारा नही था | वो तेज़ तेज़ कदमो से गाड़ी की और बढ़ता है जो कुछ दूरी पर खड़ी थी | राहुल गाड़ी की और जाता पीछे मुड़ मुड़ कर सलोनी की और देख रहा था | सलोनी कुछ देर एक जगह खड़ी दुकानों का जायजा लेती है और फिर उसे एक कोने में एक दुकान दिखाई देती है जो और दुकानों से थोड़ा सा हटकर थी | सलोनी उस दुकान की और बढ़ जाती है |
राहुल जब पीछे मुड़कर अपनी मम्मी को एक तरफ़ बढ़ते हुए देखता है तो वो चलना छोड़ भागना शुरू कर देता है | सब्जियों के बैग बहुत पतली प्लास्टिक के बने हुए थे जो उसके भागने और ज़्यादा वजन के कारण कभी भी फट सकते थे और सब्जियाँ बिखर सकती थी मगर इस बार राहुल की किस्मत ने उसे धोखा नही दिया और वो गाड़ी तक बिना कुछ गिराए पहुँच गया | राहुल कार की डिक्की खोल कर उसमें तेज़ी से सब्जियाँ डालने लगता है |
उधर सलोनी उस दुकान पर जाती है जो थोड़ा सा हट कर थी और उस पर कोई और ग्राहक भी नही था | दुकानदार कोई 40-45 साल का हट्टा कट्टा मर्द था | सलोनी को अपनी दुकान की और बढ़ता देख वो उठ कर खड़ा हो जाता है और सलोनी को आवाज़ देने लगता है |
"आइए बहनजी .... आइए.... बिल्कुल ताज़ी सब्जियाँ हैं.... देखिए पूरी मंडी में से आपको ऐसी सब्जियाँ नही मिलेंगी" | सलोनी जैसे जैसे सब्ज़ी वाले के पास पहुँच रही थी उसकी आँखो की चमक उतनी ही बढ़ती जा रही थी | जैसे जैसे सलोनी की मादक काया और उसके कामुक उभार और कटाव सब्ज़ीवाले की आँखो के पास आ रहे थे उसके चेहर की मुस्कान, आँखो की लाली बढ़ती जा रही थी |
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