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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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कितना रोया था वो उनकी मृत्यु पर! लोग अक्सर कहते हैं कि लड़के अपनी माँ के अधिक करीब होते हैं, लेकिन अजय को अपने पिता से अपनी माँ की अपेक्षा अधिक लगाव और स्नेह था। उसके पिता उसके चैम्पियन थे। वो उसको अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते थे, लेकिन उनकी असमय मृत्यु के कारण वो पूरा टूट गया था।
मेरा भी यही है, मॉं से कभी वो लगाव नहीं हुआ जिसे ममत्व कहते हैं। एक फॉर्मल रिश्ता रहा बचपन से ही,
पिताजी हमेशा मेरे आदर्श रहे और उनसे मोह-लगाव भी बहुत था। पुरे घर में सिर्फ वही अपने लगते थे

मॉं की ममता की चाहत ही नहीं एक तड़प हमेशा मन में रही लेकिन आज तक भी मेरी जननी मेरी मॉं नहीं मेरे भाई बहन की ही मॉं हैं
अब तो मेरी उम्र का तीसरा पड़ाव आ गया नाती-पोते खिलाने का.... शायद अगले जन्म में 'मॉं' का प्यार मिले
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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भाई जी कहानी में अप्रत्याशित मोड़ दे दिया आपने
अब अजय परिपक्व भी है और उसे अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का ज्ञान भी है
देखते हैं वो कितना और कैसा परिवर्तन लाता है
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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प्रिय मित्रों -- इस नई कहानी को आप सभी ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया है, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

आज इसमें चार और अपडेट्स लिखे हैं -- कोई साढ़े पाँच हज़ार शब्द हैं इनमें।
(कुछ कहानियाँ इतने में ही निपट भी जाती हैं... लेकिन अपनी तो शुरू ही हो रही है बस )

पढ़ कर अपने अपने विचार व्यक्त करें।

क्रिसमस त्यौहार सन्निकट है, इसलिए परिवार संग थोड़ा मौज मस्ती करनी है।
इसलिए इतने सारे और बड़े अपडेट्स दिए हैं। आप सभी भी डिटेल में प्रतिक्रिया दीजिएगा। :)



christmas-gettyimages-184652817

हो हो हो :)

20241204-131956
avsji The real Santa of ExForum
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अपडेट 3


“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

**

Bahut hi shandar update he avsji Bhai,

Ajay ki zindagi me abhi tak kuch positive laga wo he uski Tai Maa,

Sagi maa se jayada pyar karti he wo ajay se, tabhi to is umar me bhi use breastfeed karwati he...........

Keep posting Bro
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बहुत अच्छा मोड दिया है आपने भैया इसे। नाम के अनुसार सब कुछ फिर से करने का मौका मिला है, देखते हैं कितना सुधार पता है अजय अपनी जिंदगी को।

बहुत बढ़िया भैया :applause:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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वैसे एक बात, आशा है रागिनी अमर वाली नहीं रागिनी नहीं होगी इसमें 😜
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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अपडेट 8


“माया दीदी हैं?” अजय ने आश्चर्य से पूछा।

माया दीदी की तो शादी हो गई थी! फिर वो यहाँ कैसे?

उससे भी बड़ा प्रश्न - वो खुद यहाँ कैसे? ये घर तो बिक चुका! लुट चुका!

“नहीं होगी तो कहाँ चली जाएगी?” माँ ने कहा - अब उनका धैर्य जवाब दे रहा था, “क्या हो गया है तुझे आज? चल, कमल आता ही होगा बेटे! वैसे भी बहुत देर हो गई है!”

“माँ, आज डेट क्या है?”

“नौ तारीख़ है,”

“नहीं... मेरा मतलब पूरी डेट?”

“नौ जुलाई, नाइनटीन नाइंटी फाइव।”

“क्या?”

‘ऐसे कैसे हो सकता है?’

‘आज तो नौ जुलाई, टू थाउजेंड एट होना चाहिए!’

‘वो तेरह साल पीछे कैसे जाग सकता है?’

‘वो कोई सपना तो नहीं देख रहा है?’

ऐसे अनेकों ख़याल अजय के दिमाग में कौंध गए।

“क्या हुआ? ऐसा क्या हो गया? ऐसे क्यों चौंक रहा है लड़का?” माँ अपने अंदाज़ में बोलीं - उनके चेहरे पर हँसी वाले भाव थे।

“माँ मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा हूँ?”

“उठ जा, नहीं तो यहीं तेरे को पानी से नहला दूँगी! नींद और सपना सब उड़ जायेगा!” वो हँसती हुई बोलीं, “और तेरी सारी मसखरी भी!”

माँ ने कहा और कमरे से बाहर निकल गईं।

लेकिन अजय के दिमाग का बुरा हाल था। उसने आँखें मलते हुए ध्यान से अपने हर तरफ़ देखा - बात तो सही है! उसके आस पास की पूरी दुनिया बदल सी गई लगती है! घर... बिस्तर... बाहर चलते हुए गाने... माँ ने जो कुछ कहा... सब कुछ!

कल तक तो वो लगभग तीस साल का आदमी था, और आज! पूरे तेरह साल पीछे चला गया! क्या वाक़ई वो तेरह साल पीछे चला गया, या कि कोई सपना देख रहा था वो? ऐसी कहानियां तो बस विज्ञान गल्प में ही पढ़ने सुनने को मिलीं थीं! और अब शायद वो खुद वैसी ही कहानी में था! कल उस बूढ़े आदमी - प्रजापति - से वो यही बात कर रहा था न!

‘बूढ़े प्रजापति?’

‘प्रजापति... विश्वकर्मा...’

उसके मस्तिष्क में ये दो शब्द कौंधे।

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला।

‘कौन थे प्रजापति?’

‘प्रजापति! कहीं वो प्रजापति जी ईश्वर का ही रूप तो नहीं थे?’

महाभारत में भगवान ब्रह्मा को प्रजापति नाम से सम्बोधित किया गया है। अन्य ग्रंथों में भगवान शिव और भगवान विष्णु को भी प्रजापति माना जाता है। ये तीनों ही सृष्टि के आधार हैं।

‘तो क्या... तो क्या...’

अजय का दिमाग चकरा गया!

‘क्या कल उसकी मुलाकात स्वयं सृष्टि रचयिता ईश्वर से हो गई थी?’

ऐसा संभव भी है क्या? और अगर है भी, तो उन्होंने उसको केवल तेरह साल ही पीछे क्यों भेजा? और पीछे क्यों नहीं? माँ से मिलना भी तो कितना अच्छा होता! वो केवल तेरह साल पीछे ही क्यों आया वो? और पीछे क्यों नहीं?

उसके मन में कई ख़याल आ रहे थे। शायद उसको तेरह साल पीछे इसलिए भेजा गया है, क्योंकि उसने प्रजापति जी से माँ के बारे में एक बार भी बात नहीं करी थी। उसने उनको बताया था कि वो अपने पिता के लिए कुछ करना चाहता है। माँ का नाम तो उसने एक बार भी नहीं लिया! उसका दिल निराशा से टूट गया! काश, वो एक बार माँ से मिल पाता। लेकिन यह बात भी कोई कम है क्या? अगर स्वयं ईश्वर ने उसको यह ‘दूसरा अवसर’ दिया है, तो उसका कर्त्तव्य होता है कि वो इस अवसर का पूरा पूरा लाभ उठाए। और अपने प्रियजनों को भी उसका लाभ दिलाए।

उसके दिमाग में प्रजापति जी की बातें घूम रही थीं - उसको जो समझ में आया वो यह था कि उसको इस अवसर का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए... बस इतना कि जिस तरह से उसके प्रियजनों को अनावश्यक और अनुचित दुःख झेलने मिले हैं, वो न हो। वो प्रसन्न हों!

वो भागता हुआ बाहर हॉल में आया। वहाँ आ कर उसने देखा कि ये तो वही घर है, जिसको रागिनी ने बेच कर सारे पैसे हड़प लिए थे। यह घर - बंगला - उसके माता पिता और ताऊ जी और ताई जी ने मिल कर बनाया था। यह विरासत थी उनकी! प्रशांत भैया ने अपने हिस्से को अजय के नाम कर दिया था, इसलिए सब कुछ उसी का था! लेकिन... कितना अभागा था वो कि वो इस विरासत को सम्हाल कर नहीं रख सका। वो इन सबके लायक ही नहीं था, शायद!

हाल में आते ही उसने जिसको देखा, उसको देख कर वो ख़ुशी से फूला न समाया।

“पापा!” वो लगभग चीखते हुए बोला और भागते हुए आ कर अपने पिता, अशोक जी से लिपट गया।

“अरे, क्या हुआ बेटे?” अशोक जी अखबार पढ़ रहे थे और अपने बेटे को यूँ व्यवहार करते देख कर वो थोड़ा चौंक गए। लेकिन उनको अच्छा लगा कि उनका बेटा उनसे इतने प्यार से व्यवहार करता है।

अशोक ठाकुर, अजय के पिताजी एक बिजनेसमैन थे।

थे इसलिए क्योंकि जब वो ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू कर रहा था, तब एक मेडिकल मेलप्रैक्टिस या कहिए, डाक्टरों की लापरवाही के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी।

कितना रोया था वो उनकी मृत्यु पर! लोग अक्सर कहते हैं कि लड़के अपनी माँ के अधिक करीब होते हैं, लेकिन अजय को अपने पिता से अपनी माँ की अपेक्षा अधिक लगाव और स्नेह था। उसके पिता उसके चैम्पियन थे। वो उसको अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते रहते थे, लेकिन उनकी असमय मृत्यु के कारण वो पूरा टूट गया था। इतने सालों बाद उनको पुनः जीवित देख कर उसको कितनी ख़ुशी मिली थी, वो बयान नहीं कर सकता था!

अगर ये सब सपना है, तो बहुत अच्छा है!

“कुछ नहीं पापा,” वो बोला, “कुछ नहीं! सब अच्छा है!”

“पक्का?”

“जी पापा पापा,” अजय ने उनको देखते हुए कहा, “आई ऍम जस्ट सो हैप्पी टू सी यू!”

वो मुस्कुराए, “जल्दी तैयार हो जाओ बेटे... सच में देर हो रही है आज!”

“जी पापा...”

अजय जल्दी जल्दी तैयार हुआ, और नाश्ते के लिए लगभग भागता हुआ नीचे डाइनिंग हॉल में आया।

तब तक माया ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया था, “बाबू, चलो अब जल्दी से खा लो! आलू पराठे बनाए हैं तेरे लिए,”

“दीदी,” कह कर अजय माया से भी लिपट लगा।

आश्चर्यचकित होने की बारी माया की थी अब!

पिछले पाँच सालों में अजय और उसके रिश्तों में बहुत सुधार हुआ तो था, लेकिन जैसी आत्मीयता अजय इस समय दिखा रहा था, वो अभी तक अनुपस्थित थी। सबका प्यार मिल गया था उसको घर में - बस अपने छोटे भाई का नहीं! प्रशांत भैया भी उसको लाड़ करते थे... उनके लिए एक छोटी बहन की कमी माया ने अभूतपूर्व तरीक़े से पूरी कर दी थी। जब भी वो दीपावली पर घर आते, बिना भाई दूज मनाए वापस नहीं जाते थे।

अजय का बदला हुआ व्यवहार अन्य कारणों से भी था। हाँ, वो मैच्योर तो हो ही गया था, लेकिन समय के साथ माया दीदी उसके सबसे प्रबल समर्थकों में से थीं। वो उसके सबसे कठिन समय में उसके साथ खड़ी रही थीं। उनके साथ भी गड़बड़ हो गया था। जैसे प्रशांत भैया और स्वयं अजय की पत्नियाँ लालची और ख़राब किस्म की आई थीं, उसी तरह उनका पति भी खराब ही निकला! ख़राब होना एक अलग बात है, लेकिन वो उनको मानसिक यातनाएँ और संताप देता रहता। लेकिन माया का व्यवहार ऐसा था कि इतना होने पर भी वो उसके ख़िलाफ़ एक शब्द भी न बोलतीं।

वयस्क अजय अक्सर सोचता रहता कि काश वो माया दीदी को उनके नर्क भरे जीवन से निकाल पाता। लेकिन कैसे? संभव ही नहीं था। उसकी खुद की हालत ऐसी खराब थी कि क्या बताए! माँ के साथ गुजारा बहुत मुश्किल से चल रहा था।

उसने एक नज़र दीदी की माँग में डाली - कोई सिन्दूर नहीं! वो दृश्य देख कर उसको राहत हुई। मतलब कुछ तो हुआ है कि ईश्वर ने उसको एक और अवसर दिया है सब कुछ ठीक कर देने के लिए!

‘हाँ! इस समय तक भी माया दीदी की शादी नहीं हुई थी!’

उसने दिमाग पर ज़ोर डाला और पुरानी बातें याद करने की कोशिश करी।

‘लेकिन माया दीदी की शादी जुलाई में ही तय हुई थी... और नवम्बर में शादी हो गई थी उनकी!’

इस बात पर उसको याद आया कि नवम्बर के महीने में ही प्रशांत भैया की शादी भी तो कणिका भाभी से हुई थी! वो शादी भी सही नहीं हुई - प्रशांत भैया थोड़ा मेहरे स्वभाव के आदमी हैं। औरत देख कर बिछ जाने वाली हालत है उनकी। मतलब माया दीदी और प्रशांत भैया - दोनों की ही नैया उसी को सही राह पर लानी है! और अपनी? वो खुद शादी नहीं करेगा - एक बार जंजाल मोल लिया, और पेट भर गया उसका!

शरीर से वो अवश्य ही किशोर है, लेकिन अनुभव में तो वो काफ़ी आगे है! भविष्य से आया हुआ है वो! उस बात का कोई मोल तो होना चाहिए।

उसने माया के दोनों गालों को चूम लिया - ऐसा करना उसने अभी कुछ वर्षों पहले ही शुरू किया था। इसलिए ‘इस’ माया दीदी के लिए यह पहली घटना थी। उनको भी सुखद आश्चर्य हुआ।

“क्या हुआ है बाबू? कोई अच्छी खबर मिली है लगता है?” माया ने हँसते हुए कहा।

वो सच में बहुत प्रसन्न थी।

“ऐसा ही समझ लो दीदी... ऐसा ही समझ लो!”

“अच्छी बात है... स्कूल से वापस आओ, फिर आराम से सुनेंगे!”

“स्कूल नहीं दीदी, कॉलेज!”

“आलू पराठा!” दीदी ने मुस्कुराते हुए चेताया, “... अरे, कमल?” और कमल को भीतर आते देख कर कहा, “आ गया?” और फिर जैसे कमल से अजय की शिकायत करती हुई बोलीं, “ये देखो... तुम्हारा दोस्त अभी नाश्ता भी नहीं कर सका!”

“कोई बात नहीं दीदी... थोड़ा टाइम तो है!” कमल ने कहा।

“टाइम है?” उसने खुश होते हुए कहा, “तो बैठो फिर, तुमको भी पराठे खिलाती हूँ!”

और कमल के लिए भी प्लेट लगाने लगी।

कमल और अजय आज समझ गए थे कि कॉलेज के लिए लेट होगा।

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Sabhi updates ek se badhkar ek he avsji Bhai,

Ajay ka yu sapne se jagna aur apne aap ko apni yuva avastha me paana,

Us samay se lagbhag 13 saal pehle pahunch jana

Kuch kuch time travel jaisa lag raha he.....

aakhir ye he kya......iska pata to aane wali updates me hi pata chalega.........
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Nice update....
Thanks
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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मेरा भी यही है, मॉं से कभी वो लगाव नहीं हुआ जिसे ममत्व कहते हैं। एक फॉर्मल रिश्ता रहा बचपन से ही,
पिताजी हमेशा मेरे आदर्श रहे और उनसे मोह-लगाव भी बहुत था। पुरे घर में सिर्फ वही अपने लगते थे

मॉं की ममता की चाहत ही नहीं एक तड़प हमेशा मन में रही लेकिन आज तक भी मेरी जननी मेरी मॉं नहीं मेरे भाई बहन की ही मॉं हैं
अब तो मेरी उम्र का तीसरा पड़ाव आ गया नाती-पोते खिलाने का.... शायद अगले जन्म में 'मॉं' का प्यार मिले

अब इस बात पर क्या ही कहें भैया।
इतनी पर्सनल बात शेयर करने के लिए शुक्रिया 🙏🙏
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भाई जी कहानी में अप्रत्याशित मोड़ दे दिया आपने
अब अजय परिपक्व भी है और उसे अपने जीवन में होने वाली घटनाओं का ज्ञान भी है
देखते हैं वो कितना और कैसा परिवर्तन लाता है

"फ़िर से" -- इसीलिए यह शीर्षक है 😊
 
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