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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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23,510
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Bahut hi shandar update he avsji Bhai,

Ajay ki zindagi me abhi tak kuch positive laga wo he uski Tai Maa,

Sagi maa se jayada pyar karti he wo ajay se, tabhi to is umar me bhi use breastfeed karwati he...........

Keep posting Bro

Sabhi updates ek se badhkar ek he avsji Bhai,

Ajay ka yu sapne se jagna aur apne aap ko apni yuva avastha me paana,

Us samay se lagbhag 13 saal pehle pahunch jana

Kuch kuch time travel jaisa lag raha he.....

aakhir ye he kya......iska pata to aane wali updates me hi pata chalega.........

धन्यवाद अज्जू भाई 🙏
सपने वाला अपडेट फ़िर से पढ़िए -- काफ़ी कुछ उसी में बताया है। फिर आगे भी क्लियर होगा 😊
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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बहुत अच्छा मोड दिया है आपने भैया इसे। नाम के अनुसार सब कुछ फिर से करने का मौका मिला है, देखते हैं कितना सुधार पता है अजय अपनी जिंदगी को।

बहुत बढ़िया भैया :applause:

हां आपने सही समझा रिकी भाई।
फ़िर से करने का अवसर तो मिला है। कहानी अब इसी बात पर है।

वैसे एक बात, आशा है रागिनी अमर वाली नहीं रागिनी नहीं होगी इसमें 😜

अमर वाली रागिनी नहीं, रचना थी। उसके अलावा गैब्रिएला, देवयानी, और लतिका भी।
रचना को बहुत गालियां पड़ी थीं। रागिनी का लिखने बैठूं, तो आप केस कर देंगे 🤣
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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हां आपने सही समझा रिकी भाई।
फ़िर से करने का अवसर तो मिला है। कहानी अब इसी बात पर है।



अमर वाली रागिनी नहीं, रचना थी। उसके अलावा गैब्रिएला, देवयानी, और लतिका भी।
रचना को बहुत गालियां पड़ी थीं। रागिनी का लिखने बैठूं, तो आप केस कर देंगे 🤣
वैसे मैने रचना को ज्यादा गालियां नहीं दी थी। मैने तो बस इतना कहा था कि कुछ ज्यादा ही लालची हो रही है।

वैसे एक बात तो थी, उसका कंसर्न भी कुछ हद तक सही ही था, आखिर अपने बच्चे के भले के लिए सब लोग सोचते हैं। उसने भी सोचा तो क्या गलत सोचा। हां डिमांड कुछ ज्यादा ही बड़ी कर दी थी उसने, बस यही गलती थी उसकी।
 

parkas

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अपडेट 5


किसी दिन बनूँगी मैं राजा की रानी... ज़रा फिर से कहना
बड़ी दिलरुबा है ये सारी कहानी... ज़रा फिर से कहना


सुबह अजय की आँख इस गाने की आवाज़ पर खुली। एक समय था, जब ये गीत बहुत प्रसिद्ध था, और अजय को भी बहुत पसंद था! लेकिन इस फिल्म को आए और गए कई साल हो गए। बहुत समय पहले! ऐसे में अपना पसंदीदा गीत सुन कर उठना उसको बहुत अच्छा लगा। आज बहुत गहरी नींद आई थी - ऐसी जैसी उसने कभी नहीं महसूस की।

और ये तब था जब उसने वो सपना देखा था!

कैसा भयानक सपना था वो!

फिर भी इस समय उसको कितना शांत लग रहा था सब कुछ! न किसी तरह की उद्विग्नता, और न ही किसी तरह की बेचैनी! आश्चर्य की बात यह थी कि पहले जब उसको डरावने सपने आते थे, तो उसका पूरा शरीर पसीने से नहा उठता था। लेकिन आज नहीं! उसने अपनी तकिया को फिर से छुआ - हाँ, कोई पसीना नहीं। कमाल है! ऐसा भयानक सपना... ऐसे सपने देख कर कोई भी आदमी पसीने पसीने हो जाए डर के मारे! लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि उसको कुछ हुआ ही नहीं?

दरअसल दो बातें हुईं - पहली यह कि उसको ऐसा भयानक और डरावना सपना आया और उसके शरीर ने परिचित तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दी। और दूसरा यह कि यह शायद पहली बार हुआ था कि वो माँ की ममता भरी गोद में सोया हो, और उसको ऐसा डरावना सपना आया हो। फिर उसने महसूस किया... इन दोनों बातों से इतर भी एक और बात हुई।

अजय का सपना अवश्य ही बहुत भयानक था, लेकिन इतनी गहरी और संतोषजनक नींद आई थी उसको, कि इस समय गज़ब की ऊर्जा महसूस हो रही थी उसको अपने शरीर में। गज़ब की ऊर्जा! जैसे वो किसी अत्याधुनिक स्पा में जा कर कोई यूथ ट्रीटमेंट करवाया हो!

उसने अंगड़ाई भरी - आज हमेशा की तरह उसकी हड्डियाँ भी नहीं कड़कड़ाईं!

कमाल है! उसने सोचा, और एक गहरी साँस भरी... अद्भुत रूप से उसने अपेक्षाकृत बहुत गहरी साँस भरी!

सब बहुत अद्भुत सा था आज - जैसे उसका आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हो! एक तरह का कायाकल्प!

‘क्या हो रहा है आज!’ उसके मन में यह विचार आए बिना न रह सका।

एक बार और अँगड़ाई ली उसने! पूरा शरीर तान दिया, फिर भी कोई कड़कड़ाहट नहीं!

‘आह!’ वो खुश हो गया।

फिर उसने महसूस किया कि उसके शिश्न में भारीपन भी था। अभूतपूर्व तो नहीं कह सकते, लेकिन आज उसको ‘मॉर्निंग वुडी’ भी हो रखी है... आख़िरी बार उसको ऐसा कब हुआ था, अब तो याद भी नहीं था उसे। रागिनी ने उसकी ऐसी झण्ड करी थी कि अब तो उसको लड़की देख कर स्तम्भन भी नहीं होता था। मॉर्निंग वुडी भी नहीं। रही सही कसर जेल की सैर ने पूरी कर दी।

उसने चादर हटा कर बड़े ही आश्चर्य से अपने शिश्न को देखा - एक मज़बूत स्तम्भन! आश्चर्य है न - कैसा भयंकर स्वप्न और फिर भी शरीर में इस तरह की ऊर्जा! अजय का उद्धर्षण बेहद कठोर था। वैसा, जैसा उसको अपने युवावस्था के शिखर पर महसूस होता था! लेकिन, उसके लिंग का आकार? अजय चौंका।

‘ये क्या हुआ?’

उसका शिश्न आकार में अपेक्षाकृत छोटा लग रहा था! वृषण भी छोटे ही लग रहे थे!

क्या शिश्न, क्या वृषण, ये तो पूरा शरीर ही बहुत हल्का लग रहा था उसको।

‘ये क्या हुआ?’ उसने सोचा, ‘इरेक्शन तो परफेक्ट है, लेकिन साइज़ छोटा... और मेरी जांघें, मेरा पेट! ऐसे कैसे?’

एक रात भर में ही कोई कैसे तीस - पैंतीस किलो वज़न घटा सकता है?

उसका दिमाग चकरा गया। वो उठा और लपक कर उसने कमरे में लगे हुए दर्पण में स्वयं को देखा। और जो उसने देखा, वो अकल्पनीय था।

जो वो उसको दिख रहा था, वो अजय ही था, लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम! लगभग एक दशक कम!

वो दृश्य देख कर अजय के शरीर में भीषण झुरझुरी होने लगी। अब जा कर उसको भय महसूस हुआ। अब जा कर उसका शरीर डर के मारे पसीने से नहा उठा।

‘ये क्या देख रहा हूँ मैं,’ उसने सोचा - आँखें मलीं और स्वयं को दो थप्पड़ भी लगाए कि नींद से बाहर निकले वो। लेकिन दर्पण में दिखने वाला प्रतिबिम्ब नहीं बदला। वो वैसा ही रहा। दर्पण के एक तरफ जीवन के तीन दशक पार कर चुका अजय था, और दूसरी तरफ़ वो अजय था, जिसने अभी भी अपने जीवन के दूसरे दशक के दरवाज़े पर दस्तख़त भी नहीं दी थी।

“अज्जू बेटे,” इतने में किरण जी की आवाज़ आई।

अजय को साफ़ महसूस हुआ कि माँ की आवाज़ नीचे से आई है।

‘नीचे से?’ वो चौंका, ‘नीचे से माँ की आवाज़ कैसे आ सकती है?’

वो दोनों तो एक कमरे के फ्लैट में रहते हैं - माँ अंदर के कमरे में और वो बाहर हॉल में सोता है। यही बंदोबस्त है - इतनी ही व्यवस्था कर सका था वो जेल से निकलने के बाद!

“उठ जा बेटे... देर हो जाएगी कॉलेज जाने के लिए...” माँ की आवाज़ निकट आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर आ रही थीं।

‘सीढ़ियाँ?’

अब जा कर वो थोड़ा चैतन्य हुआ! उसने चौंक कर इधर उधर देखा।

‘ये तो... ये तो...’

वो कमरा अभूतपूर्व रूप से परिचित था!

यह कमरा तो उसके पुराने घर में था। पुराना घर... मतलब, दिल्ली का! पुराना घर, जो उसके माता पिता और ताऊ जी ताई जी ने मिल कर बनवाया था! वो घर, जो उनकी निशानी थी - जिसको वो गँवा बैठा था।

वो दिल्ली पहुँच गया?

कब? कैसे? क्या हो रहा है ये सब?

वो बड़ी ही अजीब सी उधेड़बुन में पड़ गया था - क्या हो रहा है ये, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“अज्जू बेटे... उठा नहीं अभी तक?” माँ की आवाज़ पास आती जा रही थी, “ये लड़का भी न!”

अजय अभी भी अचकचाया हुआ था, दर्पण के सामने खड़ा हुआ अभी भी सोच रहा था कि वो शायद कोई सपना देख रहा हो! इतने में दरवाज़ा खुला और माँ अंदर आ गईं।

“हे भगवान,” वो उसको देख कर बोलीं, “इतना समझाती हूँ और ये लड़का है कि समझता ही नहीं!”

“माँ... क्या...”

“अरे मेरे नंगू बाबा! क्या कर रहा है शीशे के सामने? टाइम का कोई अंदाज़ा है तुझे?” माँ दनादन बोले जा रही थीं, “देख कितनी देर हो गई है, बेटे!”

“माँ?”

“क्या माँ माँ कर रहा है? ब्रश किया?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो क्या कर रहा है ऐसे नंगा नंगा शीशे के सामने खड़ा हो कर?”

“अभी अभी उठा हूँ माँ!”

“तो चल! आ जा जल्दी से नीचे। देर नहीं हो रही है कॉलेज के लिए?”

‘कॉलेज?’

“माँ कॉलेज? क्यों?” वो चकराया हुआ बोला।

“नहीं जाना है कॉलेज?”

“मैं क्यों जाऊँगा कॉलेज माँ?” अजय अभी भी सोच रहा था कि वो कोई सपना देख रहा है।

ये सब हो भी कैसे सकता है?

“क्यों?” माँ ने समझाते हुए कहा, “सेशन अभी अभी शुरू हुआ है बेटे! ऐसे नागा करना ठीक नहीं है। चल, जल्दी से आ जा!”

‘क्या कह रही हैं माँ!’

“सेशन? काहे का सेशन माँ?” वो अभी भी चकराया हुआ था, “क्या कह रही हैं आप... समझ ही नहीं आ रहा है?”

“कॉलेज नहीं जाना है?” माँ ने थोड़ा सख़्त लहज़े में कहा।

उनको पढ़ाई लिखाई में कटौती करना बहुत नापसंद था।

“कॉलेज? क्यों मज़ाक करती हो माँ,” अजय ने कहा।

माँ ने उसका कान पकड़ कर कमरे से बाहर निकालते हुए कहा, “बस! अब और मज़ाक नहीं! चल तैयार हो जल्दी से! कमल आता ही होगा... और एक ये लाट साहब हैं कि मस्ती सूझ रही है इनको!”

‘कमल!’

माँ कह रही थीं, “सुन, माया ने नाश्ता तैयार कर दिया है। आधे घण्टे से पहले पहले नीचे आजा... हम वेट कर रहे हैं।”

‘माया?’

कमल उसका बचपन का दोस्त था। बचपन - मतलब आठवीं क्लास से।

माया - माया ‘दीदी’ - उसके माता पिता की दत्तक पुत्री थीं।

**
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

dhparikh

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अपडेट 5


किसी दिन बनूँगी मैं राजा की रानी... ज़रा फिर से कहना
बड़ी दिलरुबा है ये सारी कहानी... ज़रा फिर से कहना


सुबह अजय की आँख इस गाने की आवाज़ पर खुली। एक समय था, जब ये गीत बहुत प्रसिद्ध था, और अजय को भी बहुत पसंद था! लेकिन इस फिल्म को आए और गए कई साल हो गए। बहुत समय पहले! ऐसे में अपना पसंदीदा गीत सुन कर उठना उसको बहुत अच्छा लगा। आज बहुत गहरी नींद आई थी - ऐसी जैसी उसने कभी नहीं महसूस की।

और ये तब था जब उसने वो सपना देखा था!

कैसा भयानक सपना था वो!

फिर भी इस समय उसको कितना शांत लग रहा था सब कुछ! न किसी तरह की उद्विग्नता, और न ही किसी तरह की बेचैनी! आश्चर्य की बात यह थी कि पहले जब उसको डरावने सपने आते थे, तो उसका पूरा शरीर पसीने से नहा उठता था। लेकिन आज नहीं! उसने अपनी तकिया को फिर से छुआ - हाँ, कोई पसीना नहीं। कमाल है! ऐसा भयानक सपना... ऐसे सपने देख कर कोई भी आदमी पसीने पसीने हो जाए डर के मारे! लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि उसको कुछ हुआ ही नहीं?

दरअसल दो बातें हुईं - पहली यह कि उसको ऐसा भयानक और डरावना सपना आया और उसके शरीर ने परिचित तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दी। और दूसरा यह कि यह शायद पहली बार हुआ था कि वो माँ की ममता भरी गोद में सोया हो, और उसको ऐसा डरावना सपना आया हो। फिर उसने महसूस किया... इन दोनों बातों से इतर भी एक और बात हुई।

अजय का सपना अवश्य ही बहुत भयानक था, लेकिन इतनी गहरी और संतोषजनक नींद आई थी उसको, कि इस समय गज़ब की ऊर्जा महसूस हो रही थी उसको अपने शरीर में। गज़ब की ऊर्जा! जैसे वो किसी अत्याधुनिक स्पा में जा कर कोई यूथ ट्रीटमेंट करवाया हो!

उसने अंगड़ाई भरी - आज हमेशा की तरह उसकी हड्डियाँ भी नहीं कड़कड़ाईं!

कमाल है! उसने सोचा, और एक गहरी साँस भरी... अद्भुत रूप से उसने अपेक्षाकृत बहुत गहरी साँस भरी!

सब बहुत अद्भुत सा था आज - जैसे उसका आमूल-चूल परिवर्तन हो गया हो! एक तरह का कायाकल्प!

‘क्या हो रहा है आज!’ उसके मन में यह विचार आए बिना न रह सका।

एक बार और अँगड़ाई ली उसने! पूरा शरीर तान दिया, फिर भी कोई कड़कड़ाहट नहीं!

‘आह!’ वो खुश हो गया।

फिर उसने महसूस किया कि उसके शिश्न में भारीपन भी था। अभूतपूर्व तो नहीं कह सकते, लेकिन आज उसको ‘मॉर्निंग वुडी’ भी हो रखी है... आख़िरी बार उसको ऐसा कब हुआ था, अब तो याद भी नहीं था उसे। रागिनी ने उसकी ऐसी झण्ड करी थी कि अब तो उसको लड़की देख कर स्तम्भन भी नहीं होता था। मॉर्निंग वुडी भी नहीं। रही सही कसर जेल की सैर ने पूरी कर दी।

उसने चादर हटा कर बड़े ही आश्चर्य से अपने शिश्न को देखा - एक मज़बूत स्तम्भन! आश्चर्य है न - कैसा भयंकर स्वप्न और फिर भी शरीर में इस तरह की ऊर्जा! अजय का उद्धर्षण बेहद कठोर था। वैसा, जैसा उसको अपने युवावस्था के शिखर पर महसूस होता था! लेकिन, उसके लिंग का आकार? अजय चौंका।

‘ये क्या हुआ?’

उसका शिश्न आकार में अपेक्षाकृत छोटा लग रहा था! वृषण भी छोटे ही लग रहे थे!

क्या शिश्न, क्या वृषण, ये तो पूरा शरीर ही बहुत हल्का लग रहा था उसको।

‘ये क्या हुआ?’ उसने सोचा, ‘इरेक्शन तो परफेक्ट है, लेकिन साइज़ छोटा... और मेरी जांघें, मेरा पेट! ऐसे कैसे?’

एक रात भर में ही कोई कैसे तीस - पैंतीस किलो वज़न घटा सकता है?

उसका दिमाग चकरा गया। वो उठा और लपक कर उसने कमरे में लगे हुए दर्पण में स्वयं को देखा। और जो उसने देखा, वो अकल्पनीय था।

जो वो उसको दिख रहा था, वो अजय ही था, लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम! लगभग एक दशक कम!

वो दृश्य देख कर अजय के शरीर में भीषण झुरझुरी होने लगी। अब जा कर उसको भय महसूस हुआ। अब जा कर उसका शरीर डर के मारे पसीने से नहा उठा।

‘ये क्या देख रहा हूँ मैं,’ उसने सोचा - आँखें मलीं और स्वयं को दो थप्पड़ भी लगाए कि नींद से बाहर निकले वो। लेकिन दर्पण में दिखने वाला प्रतिबिम्ब नहीं बदला। वो वैसा ही रहा। दर्पण के एक तरफ जीवन के तीन दशक पार कर चुका अजय था, और दूसरी तरफ़ वो अजय था, जिसने अभी भी अपने जीवन के दूसरे दशक के दरवाज़े पर दस्तख़त भी नहीं दी थी।

“अज्जू बेटे,” इतने में किरण जी की आवाज़ आई।

अजय को साफ़ महसूस हुआ कि माँ की आवाज़ नीचे से आई है।

‘नीचे से?’ वो चौंका, ‘नीचे से माँ की आवाज़ कैसे आ सकती है?’

वो दोनों तो एक कमरे के फ्लैट में रहते हैं - माँ अंदर के कमरे में और वो बाहर हॉल में सोता है। यही बंदोबस्त है - इतनी ही व्यवस्था कर सका था वो जेल से निकलने के बाद!

“उठ जा बेटे... देर हो जाएगी कॉलेज जाने के लिए...” माँ की आवाज़ निकट आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर आ रही थीं।

‘सीढ़ियाँ?’

अब जा कर वो थोड़ा चैतन्य हुआ! उसने चौंक कर इधर उधर देखा।

‘ये तो... ये तो...’

वो कमरा अभूतपूर्व रूप से परिचित था!

यह कमरा तो उसके पुराने घर में था। पुराना घर... मतलब, दिल्ली का! पुराना घर, जो उसके माता पिता और ताऊ जी ताई जी ने मिल कर बनवाया था! वो घर, जो उनकी निशानी थी - जिसको वो गँवा बैठा था।

वो दिल्ली पहुँच गया?

कब? कैसे? क्या हो रहा है ये सब?

वो बड़ी ही अजीब सी उधेड़बुन में पड़ गया था - क्या हो रहा है ये, उसको कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

“अज्जू बेटे... उठा नहीं अभी तक?” माँ की आवाज़ पास आती जा रही थी, “ये लड़का भी न!”

अजय अभी भी अचकचाया हुआ था, दर्पण के सामने खड़ा हुआ अभी भी सोच रहा था कि वो शायद कोई सपना देख रहा हो! इतने में दरवाज़ा खुला और माँ अंदर आ गईं।

“हे भगवान,” वो उसको देख कर बोलीं, “इतना समझाती हूँ और ये लड़का है कि समझता ही नहीं!”

“माँ... क्या...”

“अरे मेरे नंगू बाबा! क्या कर रहा है शीशे के सामने? टाइम का कोई अंदाज़ा है तुझे?” माँ दनादन बोले जा रही थीं, “देख कितनी देर हो गई है, बेटे!”

“माँ?”

“क्या माँ माँ कर रहा है? ब्रश किया?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया।

“तो क्या कर रहा है ऐसे नंगा नंगा शीशे के सामने खड़ा हो कर?”

“अभी अभी उठा हूँ माँ!”

“तो चल! आ जा जल्दी से नीचे। देर नहीं हो रही है कॉलेज के लिए?”

‘कॉलेज?’

“माँ कॉलेज? क्यों?” वो चकराया हुआ बोला।

“नहीं जाना है कॉलेज?”

“मैं क्यों जाऊँगा कॉलेज माँ?” अजय अभी भी सोच रहा था कि वो कोई सपना देख रहा है।

ये सब हो भी कैसे सकता है?

“क्यों?” माँ ने समझाते हुए कहा, “सेशन अभी अभी शुरू हुआ है बेटे! ऐसे नागा करना ठीक नहीं है। चल, जल्दी से आ जा!”

‘क्या कह रही हैं माँ!’

“सेशन? काहे का सेशन माँ?” वो अभी भी चकराया हुआ था, “क्या कह रही हैं आप... समझ ही नहीं आ रहा है?”

“कॉलेज नहीं जाना है?” माँ ने थोड़ा सख़्त लहज़े में कहा।

उनको पढ़ाई लिखाई में कटौती करना बहुत नापसंद था।

“कॉलेज? क्यों मज़ाक करती हो माँ,” अजय ने कहा।

माँ ने उसका कान पकड़ कर कमरे से बाहर निकालते हुए कहा, “बस! अब और मज़ाक नहीं! चल तैयार हो जल्दी से! कमल आता ही होगा... और एक ये लाट साहब हैं कि मस्ती सूझ रही है इनको!”

‘कमल!’

माँ कह रही थीं, “सुन, माया ने नाश्ता तैयार कर दिया है। आधे घण्टे से पहले पहले नीचे आजा... हम वेट कर रहे हैं।”

‘माया?’

कमल उसका बचपन का दोस्त था। बचपन - मतलब आठवीं क्लास से।

माया - माया ‘दीदी’ - उसके माता पिता की दत्तक पुत्री थीं।

**
Nice update....
 
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dhparikh

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228
अपडेट 6


माया ‘दीदी’ अजय से कोई पाँच साल बड़ी थीं।

वो उसकी सगी दीदी नहीं थीं।

माया दीदी की माँ एक नटिन थीं, और उनके पिता का कोई ठिकाना या कोई ज्ञान नहीं था किसी को। अजय के माता पिता अक्सर सड़क पर माया और उनकी माँ को नटों वाला खेल तमाशे दिखाते हुए देखते थे। अनेकों खेल तमाशे - जैसे कलाबाज़ियाँ दिखाना, आग के वृत्त में से कूद फाँद करना, मुँह से ही किसी बेढब चीज़ को सम्हालना, एक छोटे से पहिए पर बैलेंस बनाना इत्यादि! एक बार अचानक ही वो दोनों सड़क पर दिखने बंद हो गए, तो उनको लगा कि शायद नटों का डेरा उठ गया वहाँ से। लेकिन कुछ दिनों बाद उनको फिर से माया दिखी। पूछने पर माया से ही उनको पता चला कि कोई सप्ताह भर पहले रस्सी पर चलने वाला तमाशा दिखाते हुए माया की माँ कोई चौदह फुट की ऊंचाई नीचे गिर गईं। और कोई चोट होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि वो सर के बल गिरीं, और उस दुर्घटना में उनकी गर्दन टूट गई।

एक अकेली, निःसहाय, लेकिन जवान लड़की की इस समाज में क्या दुर्दशा हो सकती है, यह सभी जानते हैं! कोई बड़ी बात नहीं थी कि कल वो वेश्यावृत्ति के काले संसार में फंस जाती! और न जाने क्या आकर्षण हुआ अजय के माता पिता को माया से कि वो उसको अकेली न छोड़ सके। इसलिए अजय के माता पिता, माया को अपने घर लिवा लाए। वो एक समय था और आज का समय है - माया इस परिवार का अभिन्न अंग बन गई थी। अवश्य ही वो कानूनी तौर पर उनकी पुत्री न बन सकीं, लेकिन शीघ्र ही वो हर मायनों में उनकी पुत्री अवश्य बन गईं।

अजय के माता पिता चाहते थे कि अजय की ही भाँति वो भी पढ़ लिख सके, लेकिन एक उम्र हो जाने पर कुछ लोगों को पढ़ने लिखने का मन नहीं करता। बहुत सी बाधाएँ आ जाती हैं। माया के साथ भी यही हुआ। उसको स्कूली ड्रेस पहन कर स्कूल जाना अखरता। वैसे भी एक सयानी लड़की अगर नौवीं दसवीं की क्लास में बैठे, तो उसको तो उसको, उसके सहपाठियों को भी अजीब लगता। सब उसको ‘दीदी’ कहते - आदर से नहीं, चिढ़ाने के लिए! तो इस तरह कुछ दिन स्कूल में पढ़ने की असफल कोशिश करने के बाद, एक दिन उन्होंने ‘अपने’ माता पिता से कह दिया कि वो स्कूल नहीं जाना चाहतीं। हाँ, पढ़ना अवश्य चाहती हैं। इसलिए घर पर ही रह कर जो पढ़ाई लिखाई हो सके, वो करने को तत्पर हैं... और बस उतना ही करना चाहती हैं।

लेकिन उनकी इच्छा गृहकार्य में निपुण होने की थी, जिससे वो अपने आश्रयदाताओं की देखभाल कर सकें। यह भी ठीक था। अधिक समय नहीं लगा कि माया दीदी को घर के लगभग हर काम करने में निपुणता हासिल हो गई। भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन पकाना, घर को ठीक तरीके से सहेज कर रखना, घर की साज-सज्जा, और बाहर पौधों की देखभाल करना इत्यादि उनको बखूबी आ गया था। और इन पाँच सालों में पहले तो अजय की माँ प्रियंका, और फिर बाद में केवल उसकी ताई माँ किरण ने होम-स्कूलिंग कर के माया को प्राईवेट से हाई स्कूल और इण्टर दोनों पास करवा दिया।

माया के लिए पूर्व में यह मुक़ाम हासिल कर पाना भी लगभग असंभव था। पढ़ना लिखना एक काम होता है, लेकिन एक स्वस्थ सुरक्षित जीवन जी पाना अलग! उसको पहले यकीन ही नहीं हुआ कि कोई संभ्रांत परिवार उसको यूँ अपना सकता है। उसको पहले पहले लगता था कि अगर और कुछ नहीं तो वो इस घर की नौकरानी बनेगी। वो भी उसके लिए कोई खराब स्थिति नहीं थी। जिस तरह से उसका रहन सहन था, और जिस जिस तरह के लोगों से उसका पाला पड़ता था, उसके हिसाब से किसी बड़े घर की नौकरानी बनना एक अच्छी बात थी। कभी कभी उसको शक़ भी होता कि कहीं घर के दोनों मर्द (अजय के ताऊ जी, अनामि, और उसके पिता जी, अशोक) उसके साथ कुछ करना तो नहीं चाहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, दोनों ही उसको बड़े प्रेम से, बड़े आदर से, और अपनी बेटी समान ही रखते।

शीघ्र ही परिवार के शुद्ध प्रेम ने माया की शंकाओं पर विजय प्राप्त कर ली।

लेकिन सभी से इतर, अजय को माया से अलग ही प्रकार की चिढ़ थी।

बहुत से कारण थे इस बात के। एक तो यह कि अचानक से घर का एकलौता पुत्र होने का आनंद माया के आने के कारण कम हो गया था। लोग उस पर कम और माया पर अधिक ध्यान देते - हाँलाकि यह बात पूरी तरह से गलत थी, लेकिन एक बारह साल का लड़का और क्या सोचे? दूसरा कारण यह था कि उसको अब अपना कमरा माया के साथ शेयर करना पड़ता। घर में पाँच कमरे थे - बाहर के नौकर या चौकीदार का कमरा छोड़ कर। एक एक कमरा तो मम्मी-पापा और ताऊ जी और ताई जी का था। एक कमरा प्रशांत भैया का और एक कमरा अजय का। एक कमरा गेस्ट्स के लिए था। ऊपर नीचे दो हॉल थे, और एक डाइनिंग हाल था। प्रशांत भैया - अजय के चचेरे बड़े भाई और अनामि और किरण जी के एकलौते बेटे - ने अभी अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करी थी, और उनका जीवन थोड़ा अलग हो गया था। लेकिन फिर भी वो अपना कमरा छोड़ने वाले नहीं थे। उनको बहुत गुस्सा आता अगर कोई उनके कमरे में प्रविष्ट भी होता तो! गेस्ट रूम में माया को रखा नहीं जा सकता था। लिहाज़ा, ले दे कर एक अजय का ही कमरा शेष था। इसलिए अपना कमरा शेयर करने की मजबूरी से उसको माया से और भी चिढ़न महसूस होती।

माया की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वो अजय के ‘क्षेत्र’ में अतिक्रमण करे। वो अपने सर पर एक छत्र-छाया पा कर ही धन्य हो गई थी। वो अजय के कमरे में, उससे दूर ज़मीन पर सोती - हाँलाकि प्रियंका जी और किरण जी ने उसको अजय के साथ ही सोने को कहा था। फिर भी अजय की चिढ़न कम नहीं हुई। कुछ दिन तो ऐसे ही चला, लेकिन एक दिन माया से एक गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। शायद उसने अजय की किसी पसंदीदा वस्तु को छू लिया। मारे गुस्से के अजय ने माया के एक स्तन पर इतनी ज़ोर से दबाया (चिकोटी काटी) कि दर्द के मारे उस बेचारी की आँखों से आँसू निकल गए। शरीर पर लगी चोट बर्दाश्त हो भी जाती है, लेकिन जो चोट मन पर लगती है, उसका निदान आसान नहीं। बेचारी कोमल हृदय वाली माया अगले कई दिनों तक अपने आपको कोसती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे कि ‘बाबू’ (अजय के लिए माया का प्यार वाला नाम) उससे इस तरह से नाराज़ न हो।

अवश्य ही वो अजय के दिल में स्थान न बना पाई हो, लेकिन बाकी परिवार के साथ वो जल्दी ही घुल-मिल गई। और तो और, अजय आशाओं के विपरीत प्रशांत भैया भी माया को बुरा नहीं कहते थे। उल्टा, वो उसको पसंद भी करते थे। माया में भी अब अंतर आ गया था। एक प्रेम-भरे परिवार की छत्र-छाया में आ कर वो निखर गई, और संभ्रांत और सौम्य भी दिखने लगी। उसका शरीर भी सुन्दर तरीक़े से भर गया। कोई उसका पुराना जानने वाला उसको देख कर पहचान नहीं सकता था।

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Nice update....
 
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parkas

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माया ‘दीदी’ अजय से कोई पाँच साल बड़ी थीं।

वो उसकी सगी दीदी नहीं थीं।

माया दीदी की माँ एक नटिन थीं, और उनके पिता का कोई ठिकाना या कोई ज्ञान नहीं था किसी को। अजय के माता पिता अक्सर सड़क पर माया और उनकी माँ को नटों वाला खेल तमाशे दिखाते हुए देखते थे। अनेकों खेल तमाशे - जैसे कलाबाज़ियाँ दिखाना, आग के वृत्त में से कूद फाँद करना, मुँह से ही किसी बेढब चीज़ को सम्हालना, एक छोटे से पहिए पर बैलेंस बनाना इत्यादि! एक बार अचानक ही वो दोनों सड़क पर दिखने बंद हो गए, तो उनको लगा कि शायद नटों का डेरा उठ गया वहाँ से। लेकिन कुछ दिनों बाद उनको फिर से माया दिखी। पूछने पर माया से ही उनको पता चला कि कोई सप्ताह भर पहले रस्सी पर चलने वाला तमाशा दिखाते हुए माया की माँ कोई चौदह फुट की ऊंचाई नीचे गिर गईं। और कोई चोट होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि वो सर के बल गिरीं, और उस दुर्घटना में उनकी गर्दन टूट गई।

एक अकेली, निःसहाय, लेकिन जवान लड़की की इस समाज में क्या दुर्दशा हो सकती है, यह सभी जानते हैं! कोई बड़ी बात नहीं थी कि कल वो वेश्यावृत्ति के काले संसार में फंस जाती! और न जाने क्या आकर्षण हुआ अजय के माता पिता को माया से कि वो उसको अकेली न छोड़ सके। इसलिए अजय के माता पिता, माया को अपने घर लिवा लाए। वो एक समय था और आज का समय है - माया इस परिवार का अभिन्न अंग बन गई थी। अवश्य ही वो कानूनी तौर पर उनकी पुत्री न बन सकीं, लेकिन शीघ्र ही वो हर मायनों में उनकी पुत्री अवश्य बन गईं।

अजय के माता पिता चाहते थे कि अजय की ही भाँति वो भी पढ़ लिख सके, लेकिन एक उम्र हो जाने पर कुछ लोगों को पढ़ने लिखने का मन नहीं करता। बहुत सी बाधाएँ आ जाती हैं। माया के साथ भी यही हुआ। उसको स्कूली ड्रेस पहन कर स्कूल जाना अखरता। वैसे भी एक सयानी लड़की अगर नौवीं दसवीं की क्लास में बैठे, तो उसको तो उसको, उसके सहपाठियों को भी अजीब लगता। सब उसको ‘दीदी’ कहते - आदर से नहीं, चिढ़ाने के लिए! तो इस तरह कुछ दिन स्कूल में पढ़ने की असफल कोशिश करने के बाद, एक दिन उन्होंने ‘अपने’ माता पिता से कह दिया कि वो स्कूल नहीं जाना चाहतीं। हाँ, पढ़ना अवश्य चाहती हैं। इसलिए घर पर ही रह कर जो पढ़ाई लिखाई हो सके, वो करने को तत्पर हैं... और बस उतना ही करना चाहती हैं।

लेकिन उनकी इच्छा गृहकार्य में निपुण होने की थी, जिससे वो अपने आश्रयदाताओं की देखभाल कर सकें। यह भी ठीक था। अधिक समय नहीं लगा कि माया दीदी को घर के लगभग हर काम करने में निपुणता हासिल हो गई। भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन पकाना, घर को ठीक तरीके से सहेज कर रखना, घर की साज-सज्जा, और बाहर पौधों की देखभाल करना इत्यादि उनको बखूबी आ गया था। और इन पाँच सालों में पहले तो अजय की माँ प्रियंका, और फिर बाद में केवल उसकी ताई माँ किरण ने होम-स्कूलिंग कर के माया को प्राईवेट से हाई स्कूल और इण्टर दोनों पास करवा दिया।

माया के लिए पूर्व में यह मुक़ाम हासिल कर पाना भी लगभग असंभव था। पढ़ना लिखना एक काम होता है, लेकिन एक स्वस्थ सुरक्षित जीवन जी पाना अलग! उसको पहले यकीन ही नहीं हुआ कि कोई संभ्रांत परिवार उसको यूँ अपना सकता है। उसको पहले पहले लगता था कि अगर और कुछ नहीं तो वो इस घर की नौकरानी बनेगी। वो भी उसके लिए कोई खराब स्थिति नहीं थी। जिस तरह से उसका रहन सहन था, और जिस जिस तरह के लोगों से उसका पाला पड़ता था, उसके हिसाब से किसी बड़े घर की नौकरानी बनना एक अच्छी बात थी। कभी कभी उसको शक़ भी होता कि कहीं घर के दोनों मर्द (अजय के ताऊ जी, अनामि, और उसके पिता जी, अशोक) उसके साथ कुछ करना तो नहीं चाहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, दोनों ही उसको बड़े प्रेम से, बड़े आदर से, और अपनी बेटी समान ही रखते।

शीघ्र ही परिवार के शुद्ध प्रेम ने माया की शंकाओं पर विजय प्राप्त कर ली।

लेकिन सभी से इतर, अजय को माया से अलग ही प्रकार की चिढ़ थी।

बहुत से कारण थे इस बात के। एक तो यह कि अचानक से घर का एकलौता पुत्र होने का आनंद माया के आने के कारण कम हो गया था। लोग उस पर कम और माया पर अधिक ध्यान देते - हाँलाकि यह बात पूरी तरह से गलत थी, लेकिन एक बारह साल का लड़का और क्या सोचे? दूसरा कारण यह था कि उसको अब अपना कमरा माया के साथ शेयर करना पड़ता। घर में पाँच कमरे थे - बाहर के नौकर या चौकीदार का कमरा छोड़ कर। एक एक कमरा तो मम्मी-पापा और ताऊ जी और ताई जी का था। एक कमरा प्रशांत भैया का और एक कमरा अजय का। एक कमरा गेस्ट्स के लिए था। ऊपर नीचे दो हॉल थे, और एक डाइनिंग हाल था। प्रशांत भैया - अजय के चचेरे बड़े भाई और अनामि और किरण जी के एकलौते बेटे - ने अभी अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करी थी, और उनका जीवन थोड़ा अलग हो गया था। लेकिन फिर भी वो अपना कमरा छोड़ने वाले नहीं थे। उनको बहुत गुस्सा आता अगर कोई उनके कमरे में प्रविष्ट भी होता तो! गेस्ट रूम में माया को रखा नहीं जा सकता था। लिहाज़ा, ले दे कर एक अजय का ही कमरा शेष था। इसलिए अपना कमरा शेयर करने की मजबूरी से उसको माया से और भी चिढ़न महसूस होती।

माया की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वो अजय के ‘क्षेत्र’ में अतिक्रमण करे। वो अपने सर पर एक छत्र-छाया पा कर ही धन्य हो गई थी। वो अजय के कमरे में, उससे दूर ज़मीन पर सोती - हाँलाकि प्रियंका जी और किरण जी ने उसको अजय के साथ ही सोने को कहा था। फिर भी अजय की चिढ़न कम नहीं हुई। कुछ दिन तो ऐसे ही चला, लेकिन एक दिन माया से एक गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। शायद उसने अजय की किसी पसंदीदा वस्तु को छू लिया। मारे गुस्से के अजय ने माया के एक स्तन पर इतनी ज़ोर से दबाया (चिकोटी काटी) कि दर्द के मारे उस बेचारी की आँखों से आँसू निकल गए। शरीर पर लगी चोट बर्दाश्त हो भी जाती है, लेकिन जो चोट मन पर लगती है, उसका निदान आसान नहीं। बेचारी कोमल हृदय वाली माया अगले कई दिनों तक अपने आपको कोसती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे कि ‘बाबू’ (अजय के लिए माया का प्यार वाला नाम) उससे इस तरह से नाराज़ न हो।

अवश्य ही वो अजय के दिल में स्थान न बना पाई हो, लेकिन बाकी परिवार के साथ वो जल्दी ही घुल-मिल गई। और तो और, अजय आशाओं के विपरीत प्रशांत भैया भी माया को बुरा नहीं कहते थे। उल्टा, वो उसको पसंद भी करते थे। माया में भी अब अंतर आ गया था। एक प्रेम-भरे परिवार की छत्र-छाया में आ कर वो निखर गई, और संभ्रांत और सौम्य भी दिखने लगी। उसका शरीर भी सुन्दर तरीक़े से भर गया। कोई उसका पुराना जानने वाला उसको देख कर पहचान नहीं सकता था।

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

dumbledoreyy

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Avsji, शानदार अपडेट्स दिए है। आनंद आ गया पढ़के। सच में रिश्तों की गहराई को शब्दों में आपके जैसा बयान करना कठिन हैं। इस फोरम पे जहां निपट अश्लीलता परोसी जाती हैं वहां ऐसा साहित्य जो कामुक हो कर भी दिल को छू लेता हो मिलना सुखद है।
 
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